Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 20 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

विजय अपनी माँ से अलग होते ही मायूस होकर कुर्सी पर जाकर बैठ गया।
"क्या हुआ बेटे नाराज़ हो गये क्या" रेखा ने काम करते हुए जैसे ही अपने बेटे को देखा उसका मुँह फूला हुआ देखकर उसकी तरफ देखते हुए कहा।

"माँ मैं आपसे नाराज़ कैसे हो सकता हूँ । मगर मुझे इतना मज़ा आ रहा था की आप से अलग होने से कुछ अजीब लग रहा है" विजय ने अपनी माँ की बात सुनते ही कहा।
"बेटे अब सच बताओ सुबह किसका सपना देख रहे थे" रेखा ने फिर से काम करते हुए कहा ।
"माँ सच कहूँ तो मुझे रात को सपने में आपकी यह बड़ी बड़ी चुचियां और आपके यह बड़े बड़े चूतड़ दिखाई देते हैं । जिन्हें देखकर मेरा लंड तन जाता है" विजय ने अपनी माँ की बात का जवाब बड़ी बेशरमी से देते हुए कहा।

"बेटे क्या मज़ाक कर रहे हो तुम भी मुझे बना रहे हो क्या" रेखा ने अपने बेटे की बात को सुनकर हँसते हुए कहा।
"क्यों माँ मैंने ऐसा क्या कह दिया" विजय ने हैंरानी से अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटे तुम्हें तो कोई कॉलेज की लड़की सपने में आती होगी मुझ में क्या है जो तुम्हें सपने में आती हू" रेखा ने अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा।
"माँ मुझे तो आपकी बड़ी बड़ी चुचियां और यह बड़े चूतड पसंद है। कॉलेज की लड़कयों की तो चुचियां भी छोटी होती है और उनके चूतड भी आपके जैसे बड़े नहीं होते और मैं तो अपनी माँ का दीवाना हू" विजय ने अपनी माँ को घूरते हुए कहा।

"बेटे लगता है तुम्हारी शादी के लिए भी कोई ऐसी लड़की ढूंढ़नी पड़ेगी जिसकी चुचियां और चूतड बड़े हो" रेखा ने हँसते हुए कहा।
"नही माँ मैं शादी नहीं करूँगा मुझे तो बस अपनी माँ को खुश रखना है" विजय ने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटे ऐसा मत बोलो मैं तुम्हारी शादी तो ज़रूर कराऊँगी" रेखा ने अपने बेटे की बात को सुनते हुए कहा ।
"माँ जब होगी तब देखेंगे अभी तो मुझे बस आप ही अच्छी लगती हो" विजय ने अपनी माँ से कहा।
"बेटे नाश्ता तैयार हो गया है । अब तुम जाकर बाहर बैठ जाओ मैं नाश्ता लेकर आती हू" रेखा ने अपने बेटे से कहा।
विजय अपनी माँ की बात सुनकर बाहर चला गया और नाशते के टेबल पर जाकर बैठ गया जहाँ पर पहले से ही उसके पिता और बाकी लोग बैठे थे।
विजय अपने पिता की तरफ देखकर सोचने लगा क्या बात है । उसका बाप इतना बूढा भी नहीं है फिर उसका लंड क्यों उसकी माँ को शांत नहीं कर पाता, विजय यह सोच ही रहा था की उसकी माँ नाश्ता ले आई और सब मिलकर नाश्ता करने लगे।
 
नाश्ता ख़तम करने के बाद रेखा बरतन उठाने लगी और सभी उठकर अपने अपने कमरों में जाने लगे।
"बेटा तुम बर्तन उठाने में मेरी मदद करो" रेखा ने अपने बेटे को वहां पर बैठा देखकर कहा।
"जी मम्मी" यह कहते हुए विजय अपनी माँ के साथ बर्तन उठाकर किचन में रखने लगा ।
कंचन शीला के साथ अपने कमरे में आ गयी और उसके साथ बैठकर बाते करने लगी, मनीषा अपने बापू के कमरे में जाकर उसे देखने लगी । अनिल अब भी बेड पर लेटा हुआ था और वह गहरी नींद में था।

मानिषा ने अपने बापू को उठाना ठीक नहीं समझा और वहां से निकलकर बाहर आ गयी । अचानक मनीषा को सूझा क्यों न वह अपने भाई के साथ कुछ देर जाकर बाते करे और वह अपने भाई के बारे में भी पता लगाए की क्यों वह भाभी में इंट्रेस्ट नहीं ले रहे हैं। यह सोचकर वह अपने भाई और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई।
मानिषा जैसे ही कमरे में दाखिल हुयी उसने देखा की उसका भाई पेपर पढ रहा था।
"क्या भाई साहब हम इतने दिनों से यहाँ पर हैं और आप हैं की हम से बात करने के लिए भी टाइम नहीं है" मनीषा ने अंदर दाखिल होते ही शिकायत करते हुए कहा और दरवाज़ा बंद करते हुए अंदर आ गयी।

"नही दीदी ऐसी तो कोई बात नहीं है" मुकेश ने अपनी बहन को देखकर खुश होते हुए कहा।
"तो फिर भैया क्यों आप ने हमसे बात भी नहीं की" मनिषा ने यों ही झूठे गुस्से से अपने भाई की तरफ देखते हुए कहा।
"दीदी डेली ऑफिस वर्क की वजह से मैं तुम से बात नहीं कर सका और यकीन करो आज मैं खुद तुम से मिलने आने वाला था की तुम आ गयी" मुकेश ने अपनी बहन की बात सुनकर शर्म से पानी पानी होते हुए कहा ।

"भइया फिर देख क्या रहे हो इतने दिनों के बाद मिले हैं हमें अपने गले तो लगाओ" मनीषा ने अपने भाई को देखकर अपनी बाहों को खोलते हुए कहा । मुकेश अपनी बहन की बाहें खुलते ही उसकी चुचियों और अपनी बहन के जिस्म के फिगर को देखकर हैंरान रह गया ।
मानिषा ने आज सल्वार कमीज पहनी थी और वह अपने कमरे से नाश्ता करने के चक्कर में जल्दी से निकलने की वजह से ब्रा भी नहीं पहन कर निकली थी । मनीषा ने जैसे ही अपनी बाहों को खोला उसका पल्लु उसके आगे से फिसल गया और मनीषा की चुचियां बगैर ब्रा के उसके भाई के सामने आ गयी, मुकेश का टेम्प्रेचर भी अपनी बहन की चुचियों को बगैर ब्रा के सिर्फ कमीज में हिलता हुआ देखकर गरम होने लगा।

मुकेश को अपनी बहन की चुचियां उसकी कमीज में भी नंगी ही महसूस हो रही थी । क्योंकी उसने बुहत पतली कमीज पहन रखी थी । जिस वजह से मुकेश को कमीज के ऊपर से अपनी बहन की चुचियों के गोल नासी दाने साफ़ नज़र आ रहे थे।
"कहा खो गये भइया" मनीषा ने अपने भाई को अपनी चुचियों की तरफ घूरता हुआ देखकर उसे टोकते हुए कहा ।
 
दीदी कहीं नहीं मगर आपने अपने फिगर को तो बुहत बढिया रखा हुआ है" मुकेश ने अपनी बहन के टोकने से होश में आते हुए अपनी थूक को गटका और आगे बढ़ते हुए अपनी बहन को बुहत ज़ोर से अपने गले लगा लिया,
"आआह्ह्ह्ह दीदी तुम से मिलकर बुहत अच्छा लग रहा है । कितने टाइम के बाद हम गले लगे है" मुकेश ने अपनी बहन के गले लगते ही उसकी चुचियों को अपने सीने में दबने से सिसककर कहा ।
"भइया आपके सीने से लग मुझे भी बुहत अच्छा लग रहा है। अभी तक आपका बदन बुहत गठीला है" मनीषा ने अपने भाई के सख्त सीने से अपनी नरम चुचियों को रगडते हुए कहा।
"ओहहहहह दीदी और बताओ हमारे जीजा जी कैसे हैं और तुम खुश तो हो ना" मुकेश ने अपनी बहन की चुचियों को अपने सीने से रगडता हुआ महसूस करके ज़ोर से सिसकते हुए उससे पुछा।

"भइया मैं खुश हूँ और आपके जीजा जी भी बुहत अच्छे हैं । मगर आप आज मेरी इतनी तारीफ क्यों कर रहे हो आपकी पत्नी तो सेक्स की देवी है उसके सामने मेरी क्या औकात" मनीषा ने यह बात कहते हुए अपनी चुचियों को बुहत ज़ोर से अपने भैया के सीने में दबाकर घिस दिया ।
"हाहहह दीदी तुम क्या कह रही हो । तुम भी कम नहीं हो" मुकेश ने फिर से सिसककर कहा।
"भइया आपकी सेक्स लाइफ तो बुहत बढिया होगी रेखा भाभी के साथ" मनीषा ने अब अपने भाई के गले से अलग होते हुए कहा और अपने भाई के साथ जाकर सोफ़े पर बैठ गई।

"दीदी रेखा बुहत सेक्सी है और शायद मैं उसकी ज़रुरत को पूरा भी नहीं कर पाता हू" मुकेष ने अपनी बहन की बात सुनकर ठण्डी आह्ह्ह्ह भारते हुए कहा।
"मगर क्यों भैया आप में कोई कमी है क्या" मनीषा ने अपने भाई की बात को सुनकर चौकते हुए कहा ।
"नही दीदी मगर मैं उसका मुकाबला नहीं कर पाता और जल्द ही ठण्डा हो जाता हूँ और इसीलिए मैंने उसके साथ सेक्स करना भी कम कर दिया है" मुकेश ने मायूस होते हुए कहा।

"भइया आप किसी डॉक्टर से क्यों नहीं बात करते" मनीषा ने अपने भाई की बात को सुनने के बाद कहा।
"दीदी मैंने कोशिश की थी मगर सब का मानना है की मैं नार्मल हू" मुकेष ने फिर से अपनी दीदी की बात का जवाब देते हुए कहा ।
"भइया मैं समझी नहीं अगर आप नार्मल हो तो क्या तकलीफ है जो आप भाभी का साथ नहीं दे पाते" मनीषा ने फिर से हैंरान होते हुए कहा।
"दीदी डॉक्टर्स का कहना है की ऐसा किसी किसी मरद के साथ होता है की वह बिलकुल सही होते हुए भी किसी एक औरत के सामने टिक नहीं पाता। जिसके साथ वह एक बार सही तरीके से सम्भोग नहीं बनाया हो । शायद वह डर दिल में हर वक्त उस मरद को होता है जब वह उस औरत के क़रीब जाता है मगर अपनी पत्नी के साथ ऐसा होने वाला मेरा पहला केस है" मुकेश ने अपनी दीदी को सारी बात बताते हुए कहा।
 
"भइया मगर इसका कोई हल तो होगा" मनीषा ने मायूस होते हुए कहा।
"हा है मगर मैं वह नहीं कर सकता" मुकेश ने अपनी बहन की तरफ देखते हुए कहा।
"क्या हल है भैया मुझे जल्दी से बतओ" मनीषा ने एक्साइटेडट होते हुए कहा ।
"दीदी मैं अगर किसी ऐसी औरत से सम्भोग बनाऊँ जो मेरी अपनी हो और जिससे मुझे कोई हिचकिचाहट न हो तो में हमेशा के लिए ठीक हो सकता हूँ" विजय ने अपनी दीदी को बताते हुए कहा।

"भइया मगर यह आपको कब से रेखा भाभी से डर लगने लगा" मनीषा ने फिर से हैंरान होते हुए अपने भाई से कहा।
"दीदी पहले सब कुछ नार्मल था। मगर पिछले कुछ सालों से काम ज्यादा होने के कारण मैं सेक्स में कम इंट्रेस्ट ले रहा था तो एक दफ़ा संभोग करते वक्त तुम्हारी भाभी ने कुछ ऐसे लफ्ज़ कहे जिन्हें सुनकर मैं सेक्स करते वक्त हर बार उससे डरने लगा ।
"क्या कहा था भाभी ने जो आप उससे डरने लगे" मनीषा ने अपने भाई को देखते हुए कहा।
"दीदी 3 दिन बाद सम्भोग हो रहा था और मैंने जैसे ही उसे नंगा करके अपने लंड को उसकी चूत में ड़ाला वह उत्तेजना के मारे अपने चूतड़ उछालते हुए कहने लगी। मुकेष आप को क्या हुआ है मेरी आग क्यों नहीं बुझा पाते । मुझे अब आपके लंड से वह मज़ा नहीं मिलता जो पहले मिलता था" मुकेश ने अपनी बहन को बताते हुए कहा।

"भइया पर इससे आपको क्या हो गया" मनीषा ने हँसते हुए कहा।
"दीदी उसके बाद जब भी मैं अपनी पत्नी को चोदता तो मुझे वह लफ्ज़ याद आ जाते और में अपनी इन्सलट होने के ख़याल से ही उसे इतना एक्साइटेडट होकर चोदता की मेरे लाख कोशिश के बाद भी मैं जल्दी ही फ़ारिग हो जाता" मुकेश ने अपनी बात अपनी बहन को बताते हुए कहा ।
"भइया फिर आप अपने खातिर न सही मगर भाभी के लिए तो अपने आप को ठीक करने की कोशीश किजिये। ऐसा न हो की भाभी कहीं और बहक जाए" मनीषा ने अपने भाई को समझाते हुए कहा।
"दीदी आपकी बात तो ठीक है मगर मैं ऐसी औरत कहाँ से लाऊँ जो मेरे नज़दीक की हो और मैं उससे डरता न हू" मुकेष ने सोचते हुए कहा।

"भइया आप दूर मत जाओ आपके सामने भी तो एक औरत है जो आपसे बुहत प्यार करती है और शायद आप उससे ड़रते भी नही" मनीषा ने अपने भाई के क़रीब जाकर उसके साथ चिपक कर बैठते हुए कहा।
"दीदी आप मगर आप तो मेरी बहन है क्या यह ठीक होगा" मुकेश अपनी बहन के जिस्म का फिगर देखकर उसका दीवाना हो चुका था । मगर फिर भी वह अपनी सगी बहन के साथ होने वाले इस रिश्ते को सोचकर ही काम्पने लगा ।

"क्यों भइया मैं आपको अच्छी नहीं लगती क्या" मनीषा ने अपने भाई के मुँह के क़रीब अपने मुह को लाते हुए कहा । मनीषा का मूह अपने भाई के इतने क़रीब था की उसे अपनी बहन की साँसें अपनी साँसों से टकराती हुयी महसूस हो रही थी।
"दीदी आप तो बुहत सूंदर हो पर" मुकेश सिर्फ इतना कह पाया।
"पर छोड़ो भैया मुझ पर भरोसा करो । इस बारे में किसी को पता नहीं चलेगा" मनीषा ने यह कहते हुए अपने तपते होंठो को अपने भाई के होंठो पर चिपका दिया ।
 
मुकेश के सारे जिस्म में अपनी बहन के गरम होंठो को अपने होंठो पर महसूस करते ही एक करंट का झटका लगा । मुकेष का सिकुडा हुआ लंड अचानक उत्तेजना से उसकी पेण्ट में उठने की कोशिश करने लगा, मुकेश ने भी अपनी बहन का साथ देते हुए उसके बालों में हाथ ड़ालते हुए अपनी बहन के नरम नरम होंठो को ज़ोर से चूसने लगा ।
मानिषा अपने भाई का साथ मिलते ही सोफ़े पर सीधा लिटाते हुए उसके ऊपर चढ़ गयी और अपनी चुचियों को अपने भाई के सीने में दबाते हुए उसके किसेस का जवाब देने लगी, मुकेश कुछ देर तक अपनी बहन के होंठो को चूसने के बाद अपना मूह उसके होंठो से हटा कर हाँफने लगा।

"भइया लगता है आप बूढ़े हो गये हो" मनीषा ने अपने भाई को हाँफता हुआ देखकर अपने चूतडों को उसके लंड पर दबाते हुए हँसकर कहा।
"दीदी भले मैं बूढा होगया हूँ मगर तुम जैसी गरम चीज़ को देखकर तो हिजडे का लंड भी झटके खाने लगेगा। मैं तो फिर भी सही हू" मुकेश ने यह कहते हुए अपनी बहन को अपने ऊपर से उतारते हुए अपनी गोद में उठा लिया और उसे बेड पर जाकर लेटा दिया ।
मानिषा बेड पर सीधी पडी थी और वह बुहत ज़ोर से साँसें ले रही थी जिस वजह से उसकी चुचियां कमीज में बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी । मुकेश अपनी बहन की चुचियों को देखता हुआ उसके ऊपर चढ़ गया और अपने एक हाथ से अपनी सगी बहन की एक चूचि को उसकी कमीज के ऊपर से पकडते हुए दबाने लगा।

"आआह्ह्ह्ह क्या कर रहे हो भैया" मनीषा का पूरा जिस्म अपने भाई का हाथ कमीज के ऊपर से ही अपनी चुचियों पर पड़ने से सिहर उठा जिस वजह से उसने सिसकते हुए कहा।
"ओहहहहह दीदी आपकी चुचियां कितनी नरम हैं । मुझे इन्हें छूने से बुहत मज़ा आ रहा है" मुकेश ने वैसे ही अपने हाथ से अपनी बहन की चुचियों को दबाते हुए कहा ।

"भइया आप तो छुपे रुस्तम निकले पहले तो इतना शरमा रहे थे और अब अपनी बहन की चुचियों को इतनी बेशरमी से दबा रहे हो" मनीषा ने अपने भाई को देखकर हँसते हुए कहा।
"क्या करुं दीदी तुम चीज़ बड़ी हो मस्त मस्त" मुकेश ने यह कहते हुए अपना मूह अपनी दीदी की चूचि पर उसकी कमीज के ऊपर से ही रख दिया ।
मुकेश ने अपनी बहन की चूचि के एक दाने को कमीज के ऊपर से ही अपने मूह में भर लिया और उसे बुहत ज़ोर से चूसते हुए अपनी बहन की दूसरी चूचि को अपने हाथ में लेकर ज़ोर से दबाने लगा।
 
"ओहहहहह भैया आप ने तो कमीज के ऊपर से ही इसे अपने मूह में ले लिया" मनीषा अपनी चूचि के दाने को कमीज के ऊपर से ही अपने भाई के मुँह में महसूस करके सिहर उठी और अपने भाई के बालों में हाथ ड़ालते हुए बुहत ज़ोर से सिसकते हुए बोली ।
मुकेश कुछ देर तक अपनी बहन की चूचि को यों ही उसकी कमीज के ऊपर से चूसने के बाद नीचे होते हुए अपनी बहन की कमीज को पकड कर ऊपर करते हुए अपना मुँह उसके गोरे चिकने पेट पर रख दिया।

मुकेश अपनी बहन के गोरे पेट को चाटते हुए ऊपर बढने लगा, मुकेश का लंड उसकी पेण्ट में अब पूरी तरह तन चूका था । मुकेश अपनी बहन के पेट को चाटते हुए उसकी कमीज तक आ गया और वह अपने हाथों से अपनी बहन की कमीज को खीच कर और ऊपर कर दिया, कमीज के ऊपर होते ही मनीषा की चुचियां अब बिलकुल नंगी होकर उसके भाई के मुँह के सामने आ गयी ।
"दीदी क्या चुचियां है। इतने दिन आप कहाँ थी" मुकेश ने अपनी बहन की गोरी नंगी चुचियों को अपना मूह थोडा ऊपर करके देखते हुए कहा । मनीषा अपने भाई की हरक़तों और बातों से बुहत ज्यादा उत्तेजित हो चुकी थी । इसीलिए उसने अपने भाई को बालों से पकडते हुए उसका मुँह अपनी एक नंगी चूचि पर दबा दिया।

मुकेश अपना मुँह अपनी बहन की नंगी चूचि पर महसूस करते ही बुहत ज़्यादा उत्तेजित हो गया और अपनी सगी बहन की चूचि के तने हुए नासी दाने को अपने मूह में भरते हुए ज़ोर से चूसने लगा । मुकेश कुछ देर तक अपनी बहन की चूचि के एक दाने को ज़ोर से चूसने के बाद अपना पूरा मूह खोलते हुए अपनी बहन की चूचि को पूरा अपने मूह में भरकर चूसने लगा ।
"आह्ह्ह्हह भैया आप के ऐसा करने से मुझे बुहत ज्यादा मज़ा आ रहा है" मनीषा ने अपने भाई के बालों को वैसे ही सहलाते हुए उसके मुँह में अपनी चूचि को ज़ोर से दबाते हुए कहा।

मुकेश ने कुछ देर तक अपनी बहन की एक चूचि को चूसने के बाद उसकी दूसरी चूचि को भी वैसे ही अपने मूह में भर लिया और उसे बुहत ज़ोर से चूसने लगा । मनीषा की चूत से उत्तेजना के मारे बुहत ज्यादा पानी निकल रहा था और मनीषा भी उत्तेजना के मारे सिसकते हुए अपने हाथ को नीचे करते हुए अपने भाई के लंड पर रखकर उसकी पेण्ट के ऊपर से ही उस पर फिराने लगी ।

"माँ मुझे आपकी चुचियां देखनी है" विजय और रेखा पूरे बर्तन उठाने के बाद किचन में आ गये थे। जहाँ पर रेखा बर्तनों को साफ़ कर रही थी।जिस वजह से उसकी साड़ी का पल्लु नीचे गिर चूका था । जिस वजह से उसके बेटे ने अपनी माँ की बड़ी बड़ी चुचियों को आधा नंगा देखकर उसकी तरफ देखते हुए कहा ।
"बेटे तुम पागल तो नहीं हो गये । मैं तुम्हारी माँ हू" रेखा ने गुस्से से अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा और अपनी साड़ी के पल्लु से अपनी चुचियों को ढक लिया,
"माँ मैं जानता हूँ मगर कब तक आप तडपति रहेंगी।मैं आपको दुनिया की हर ख़ुशी और सुख देना चाहता हू" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर उसे समझाते हुए कहा।

"बेटा तुम उसकी चिंता मत करो जो मेरा नसीब होगा वह ही मुझे मिलेंगा" रेखा ने बर्तनों को धोते हुए कहा। वह अपने बेटे को थोडा तडपाना चाहती थी। इसीलिए वह नाटक कर रही थी।
"पर माँ जब आपका बेटा आपके सामने आप की सेवा के लिए खडा है तो फिर आप क्यों सारी ज़िंदगी ऐसे ही तडपना चाहती हो" विजय ने फिर से अपनी माँ को देखते हुए कहा ।
"बेटे मुझे यह सब अच्छा नहीं लगेगा यह पाप है" रेखा ने वैसे ही नाटक करते हुए कहा।
"माँ मगर आप मुझे बुहत अच्छी लगती हैं । मैं आपको एक बार बिना कपड़ों के देखना चाहता हूँ" विजय ने फिर से अपनी बात करते हुए कहा।

"बेटे सच में तुम पागल हो गये हो। मैं तुम्हारी माँ हूँ कोई रंडी नहीं जो तुम्हारे सामने नंगी हो जाऊं" रेखा ने फिर से गुस्सा करते हुए कहा।
"माँ अगर आप रंडी होती तो अब तक में आपसे मिन्नतें नहीं कर रहा होता। मगर आपको अब तक चोद चूका होता" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर उसे करारा जवाब देते हुए कहा।
"बेटे चुप करो तुम्हें अपनी माँ से बात करने की ज़रा भी तमीज नहीं है" रेखा ने अपने बेटे की बेचैनी देखकर मन ही मन में मुस्कराते हुए कहा ।

"माँ आपको क्या हो गया है। मैं आपसे प्यार करता हूँ इसीलिए ऐसा बोल दिया मगर आप भी तो मुझसे प्यार करती थी । अब अचानक क्या हो गया आपको" विजय ने अपनी माँ को गुस्सा करता हुआ देखकर अपना मुँह बनाते हुए कहा।
"हाँ बेटे मैं तुम से प्यार करती हूँ मगर मैं यह सब गलत मानती हूँ इसीलिए यह सब नहीं करना चाहती" रेखा ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा ।
 
"माँ मैं कुछ गलत नहीं करूँगा। मगर कम से कम एक बार मुझे अपने प्यार का जिस्म देखने का तो हक़ है" विजय ने अपनी आखरी कोशिश करते हुए कहा।
"बेटे अब मैं तुझे कैसे समझाऊँ मैं मजबूर हू" रेखा ने अपना कन्धा नीचे करते हुए कहा।
"माँ मैं समझ गया की आप अब तक मेरे प्यार को समझी ही नहीं है" विजय ने कुर्सी से उठते हुए कहा ।

विजय कुर्सी से उठते हुए जाने लगा।
"बेटे कहाँ जा रहे हो" रेखा ने अपने बेटे को जाता हुआ देखकर कहा।
"माँ मैं आज के बाद आप से कभी बात नहीं करूंगा" विजय यह कहकर वहां से जाने लगा।
"बेटे ज़रा इधर तो देख तेरी माँ तुम्हारे प्यार की खातिर हार मान गई" रेखा ने विजय को जाता हुआ देखकर कहा ।

विजय ने जैसे ही अपना मूह घुमा कर अपनी माँ को देखा । वह हैंरान रह गया उसकी माँ अपनी साड़ी उतारकर सिर्फ ब्लाउज और पेटिकोट में खड़ी थी और वह अपनी बाहों को अपने बेटे को अपने गले लगाने के लिए खोले हुए थी और उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे । विजय अपनी माँ को इस हालत में देखकर भागता हुआ उसके पास जाकर उसके गले लग गया।

"माँ आप रो क्यों रही हो आई लव यू" विजय ने अपनी माँ को अपनी बाहों में भरते हुए उसके गालों पर अपने होंठो को रखकर उसके निकलते हुए आंसू को पीते हुए कहा।
"बेटा मैं कितनी खुशनसीब हूँ । मुझे तुम्हारे जैसे प्यार करने वाला बेटा मिला" रेखा ने वैसे ही अपने बेटे की बाहों में रोते हुए कहा ।
 
माँ मैं जानता था आप मेरे प्यार को पहचानती हो मगर आप सिर्फ ज़माने के डर की वजह से मुझे नहीं कह पा रही थी" विजय ने वैसे ही अपनी माँ को अपनी बाहों में भरे उसके गालों को चूमते हुए कहा।
"बेटे शायद तुम सच कह रहे थे मगर अब मुझसे दूर हटो कोई आ गया तो" रेखा ने अचानक अपने बेटे से दूर होते हुए कहा ।
"माँ एक बार तो मुझे अपना जिस्म दिखा दो" विजय ने अपनी माँ से अलग होकर उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"बेटे मैं समझ सकती हूँ तुम्हारी बेक़रारी। मगर इस वक्त यह ठीक नहीं होगा" रेखा ने अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा।
"माँ एक काम करते हैं । मैं दरवाज़ा बंद कर देता हूँ और कुर्सी पर बैठ जाता हूँ । आप सिर्फ एक बार अपने कपड़े उतारकर अपना प्यारा जिस्म हमें दिखाओ। हम वादा करते हैं हम यहाँ से चले जाएंगे" विजय ने अपनी माँ से मिनट करते हुए कहा।

"बेटे तुम बुहत ज़िद्दी हो मानोगे नहीं अपनी माँ को नंगा देखे बगैर जाओ दरवाज़ा बंद कर लो" रेखा ने अपने बेटे के सामने हार मानते हुए कहा।
"माँ सच में आप मुझसे बुहत प्यार करती हो" विजय अपनी माँ की बात सुन कर ख़ुशी से उछलते हुए कहा और आगे जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया ।
विजय दरवाज़ा बंद करने के बाद सीधा आकर कुर्सी पर बैठ गया और गौर से अपनी माँ की तरफ देखने लगा, रेखा अपने बेटे को यो घूरता हुआ देखकर शर्म के मारे यों ही पेटिकोट और ब्लाउज में चुप चाप खडी थी।

"माँ उतारो न अपने कपडे" विजय अपनी माँ को चुपचाप खडा देखकर बेचेनी से बोला । विजय का लंड आने वाले पल के बारे में सोचते ही उसकी पेण्ट में झटके खाने लगा।
"बेटे मुझे शर्म आ रही है । तुम अपनी आँखें बंद करो जब मैं अपने कपडे उतार दूं तो तुम अपनी आँखें खोल देना" रेखा ने अपने बेटे को अपनी परेशानी बताते हुए कहा।
"माँ आप भी चलो मैंने अपनी आँखें बंद कर ली अब जल्दी से आप अपने कपडे उतार दो" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर जल्दी से अपनी आँखों पर अपने हाथ रखते हुए कहा ।

रेखा ने अपने बेटे की आँखें बंद होते ही अपने पेटिकोट में हाथ ड़ालते हुए उसे अपने जिस्म से अलग कर दिया । विजय ने अपनी आँखें ऐसे ही बंद की थी की दूर से रेखा को दिख रहा था की उसका बेटा अपनी आँखें बंद किये हुए है जबकी विजय अपनी माँ को पूरी तरह देख रहा था ।
 
विजय का लंड अपनी माँ की नंगी गोरी चिकनी टांगों को देखकर झटके मारने लगा । रेखा ने अपना पेटिकोट उतारने के बाद अपने ब्लाउज को खोलते हुए उसे अपने जिस्म से अलग कर दिया और ब्लाउज उतारने के बाद फिर से अपने बेटे की तरफ देखने लगी, रेखा ने देखा उसका बेटा वैसे ही अपनी आँखों के सामने अपने हाथों को रखे हुए था । मगर उसकी पेण्ट की तरफ देखते ही रेखा का जिस्म कम्पने लगा उसके बेटे का लंड पूरी तरह तनकर उसकी पेण्ट में तम्बू बनाये हुए था।

विजय की हालत बिगडती जा रही थी। उसकी माँ अब उसके सामने सिर्फ एक छोटी सी पेंटी और ब्रा में खडी थी, रेखा की बड़ी बड़ी चुचियां उसकी ब्रा में पूरी तरह समा नहीं पा रही थी। जिस वजह से उसकी आधी चुचियां नंगी होकर विजय के आँखों के सामने मण्डरा रही थी ।
नीचे से भी रेखा की वही हालत थी उसके बड़े बड़े चूतडों के बीच उसकी छोटी सी पेंटी फँसी हुयी थी। जिस वजह से रेखा की फूली हुयी चूत आधि नंगी होकर विजय को दिख रही थी । रेखा ने अचानक अपना मूह फेरते हुए दूसरी तरफ कर दिया और अपनी ब्रा को नीचे करते हुए उसके हुक्स को आगे की तरफ़ कर दिया, रेखा ने ब्रा के हुक खोलकर उसे अपने जिस्म से उतारकर नीचे फ़ेंक दिया।

विजय को अपनी माँ की चुचियां तो नहीं दिख रही थी मगर उसका लंड अपनी सगी माँ की चुचियों के नंगे होने के ख़याल से ही उसकी पेण्ट में ज़ोर के झटके खाने लगा, विजय से अब बर्दाशत से बाहर हो गया उसका लंड अब उसकी पेण्ट में अकड़कर दर्द करने लगा था ।
विजय ने अपनी पेण्ट में हाथ ड़ालते हुए कुर्सी से उठकर उसे नीचे करते हुए अपने पेरों में फ़ेंक दिया और अपने अंडरवियर को भी थोडा नीचे सरकाते हुए अपने लंड को नंगा करते हुए वापस कुर्सी पर बैठ गया । रेखा ने अपनी ब्रा को उतारने के बाद अपनी पेंटी में हाथ ड़ालते हुए उसे अपने चूतडों से नीचे सरका दिया।

रेखा ने नीचे झुकते हुए अपनी पेंटी को अपने पैरों में से निकालकर ज़मीन पर फ़ेंक दिया । विजय अपनी माँ के नंगे चूतडों को देख कर पागल होने लगा और रेखा ने जैसे ही नाचे झुककर अपनी पेंटी को अपने पाँव से निकाला उसके चूतड पीछे से निकलकर विजय की आँखों के सामने आ गये। विजय अपनी माँ की फूली हुयी काले बालों वाली चूत को नंगा देखकर अपने लंड को हाथ में लेकर ज़ोर से हिलाने लगा और उसकी साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी ।
 
विजय ने ज़िंदगी में आज दूसरी चूत देखी थी । पहली उसकी बहन की गुलाबी चूत जो बुहत छोटी सी थी । और दूसरी उसकी माँ की जो वह अभी देख रहा था। मगर उसकी माँ की चूत उसकी दीदी की चूत से बुहत ज़्यादा बड़ी और फूली हुयी थी और विजय को अपनी माँ की चूत अपनी बहन की चूत से बुहत ज़्यादा अच्छी लग रही थी ।
विजय की साँसें अपनी माँ की फूली हुयी चूत को देखकर बुहत ज़ोर से चल रही थी।
"बेटा अब अपनी आँखें खोलों मैंने अपने कपडे निकाल दिए है" रेखा ने वैसे ही उलटे खडे हुए कहा । उसे क्या पता उसका बेटा उसे कब से देख रहा है।

"माँ सीधी हो जाओ ना" विजय ने अपने मुँह से जाने कैसे यह लफ़्ज़ निकाले। वह उत्तेजना के मारे मरा जा रहा था । रेखा अपने बेटे की बात सुनकर सीधी हो गई मगर उसने अपना एक हाथ अपनी दोनों चुचियों के ऊपर और दूसरा अपनी चूत के आगे रखे हुए सीधा हो गयी, रेखा ने अपनी आँखें बंद किये हुयी थी ।
"माँ यह क्या है प्लीज अपने हाथ हटाओ ना" विजय ने अपनी माँ को अपने सामने ऐसे देखकर अपने गले से थूक को गटकते हुए कहा।
"विजय मुझे शर्म आ रही है" रेखा ने वैसे ही अपनी आँखें बंद किये हुए कहा। उसे पता नहीं था की उसका बेटा भी उसकी सामने बिलकुल नंगा बैठा हुआ है।

"माँ अगर आप ने अपने हाथ नहीं हटाए तो मैं आपके पास आकर आपके हाथ हटा देता हू" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर उत्तेजना के मारे अपने लंड को सहलाते हुए कहा।
"नही बेटा प्लीज ऐसा गज़ब मत करना" रेखा ने अपने बेटे की बात सुनकर जल्दी से कहा ।
"माँ फिर आप खुद ही अपने हाथ हटा दो । अब मुझसे सबर नहीं हो रहा है" विजय ने वैसे ही बेचैनी से कहा।
"हाँ बेटा मैं हटाती हू" रेखा ने यह कहते हुए अपना एक हाथ अपनी चुचियों से अलग कर दिया।

"वाह माँ आपकी चुचियां कितनी बड़ी हैं और कितनी सूंदर ओहहहह माँ आपके चुचियों के दाने कितने कठोर दिख रहे हैं" विजय ने अपनी माँ की बड़ी बड़ी गोरी चुचियों को देखकर उत्तेजना के मारे ज़ोर से सिसककर उसकी तारीफ करते हुए कहा।
"माँ नीचे से हाथ हटाओ ना" विजय ने अपनी माँ की चुचियों को जी भरकर देखने के बाद अपने होंठो पर अपनी जीभ को फिराते हुए कहा।
रेखा ने अपने बेटे की बात सुनकर अपना हाथ अपनी चूत से हटा दिया।
"आआह्ह्ह्ह माँ क्या गज़ब है आपकी चूत कितनी बड़ी और फूली हुयी है और बेचारी काले बाल इसे और ज़्यादा सूंदर बना रहे है" विजय ने अपनी माँ की चूत को देखकर अपने लंड को ज़ोर से हिलाते हुए उसकी तारीफ करते हुए कहा।
 
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