Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 50 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

महेश अपनी ऊँगली को अपनी बहु की गांड से निकाले बिना ही उसकी चूत में धक्के लगाने लगा । थोड़ी ही देर में नीलम को जन्नत का मजा आने लगा और वह बुहत ज़ोर से अपने चूतडों को उछालते हुए अपने ससुर से चुदवाने लगी । महेश ने मौका देखकर अपनी ऊँगली को पूरा अपनी बहु की गांड में पेल दिया और उसे बुहत ज़ोर से चोदने लगा।नीलम भी अब चुदाई में उसका पूरा सहयोग कर रही थी।महेश जब भी पेलता नीलम अपनी गांड से धक्का मार देती।महेश को अपनी बहु को चोदने में में इतना मज़ा आ रहा था की वह अपनी बहु की गांड में अब दो दो ऊँगली पेल रहा था और नीलम की चूत को पूरी बेरहमी से चोद रहा था।

आह साली रांड कितनी टाइट और गरम चूत हैं तेरी साली मेरे लंड को पूरा निचोड़ लेगी क्या।आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह



"उईईए इसशहहहह पिता जी ज़ोर से ओह्ह्ह्हह मै आई" कुछ ही धक्कों के बाद नीलम ज़ोर से चिललाते हुए झडने लगी।

नीलम की चूत ने झडते हुए अपने ससुर के लंड को ज़ोर से जकड लिया जिस वजह से महेश भी अपने आप को रोक नहीं पाया और वह भी ज़ोर से सिसकते हुए झडने लगा । महेश का लंड पूरी तरह झडने के बाद नीलम की चूत से सिकुड़ कर निकल गया और उसकी चूत से ढेर सारा वीर्य नीचे गिरने लगा, महेश और नीलम दोनों निढाल होकर बेड पर सीधा होकर लेट गए। दोनों सीधे लेटे हुए बुहत ज़ोर से हांफ रहे थे।
 
दोस्तों आज फिर से रेखा के घर की तरफ चलते हैं वहां पर अब सब कुछ नार्मल हो चुका था । विजय अब डेली अपनी दोनों बहनों के साथ कॉलेज जाने लगा था और आज भी विजय कॉलेज से लौटने के बाद खाना खाकर अपने कमरे में सो रहा था । कंचन को जाने क्यों आज नींद नहीं आ रही थी तो उसने सोचा वह अपनी बहन के कमरे में जाकर उससे बाते करे, इधर कोमल अपने बेड पर सिर्फ पेंटी और ब्रा में लेटी हुयी थी और उसका हाथ अपनी पेंटी में घुसा हुआ था वह बुहत तेज़ी के साथ अपने हाथ को हिला रही थी।

कंचन अपने कमरे से निकलकर अपनी बहन के कमरे के बाहर पुहंच गयी। कंचन ने अपने हाथ से दरवाज़े को धक्का दिया तो वह अपने आप खुल गया शायद कोमल आज दरवाज़े को लॉक करना भी भूल गयी थी। कंचन दरवाज़ा खोलने के बाद जैसे ही अंदर दाखिल हुई वहां का नज़ारा देखकर उसका मुँह खुला का खुला रह गया क्योंकी उसकी छोटी बहन अपना हाथ अपनी पेंटी में डाले हुए ज़ोर से हिला रही थी और उसका पूरा जिस्म अकडकर झटके खा रहा था। शायद वह उस वक्त झड़ रही थी।

कंचन ने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और आगे बढ़कर अपनी बहन के सामने जाकर खड़ी हो गई । कोमल की आँखें बंद होने के कारण उसे कुछ भी पता नहीं था थोड़ी देर बाद जब कोमल नार्मल हुयी और उसने अपनी आँखें खोली तो अचानक अपने सामने अपनी बड़ी बहन को देखकर वह हैंरान होते हुए उठकर सीढ़ी बैठ गई।
"हम्म्म्म क्या कर रही थी छोटी?" कंचन ने मुसकुराकर अपनी छोटी बहन के साथ बैठते हुए कहा।
"कुछ नहीं दीदी" कोमल ने शर्म से अपना मुँह नीचे करते हुए कहा।

"च कुछ नहीं पगली मुझसे मत शर्मा वरना सारी ज़िंदगी ऐसे ही अपने हाथ का इस्तेमाल करती रहेगी" कंचन ने शरारती हंसी के साथ अपनी छोटी बहन के गाल को अपनी दोनों उँगलियों के बीच लेकर मसलते हुए कहा।
"दीदी" कोमल ने सिर्फ इतना कहा।
"तुम कब से यह सब कर रही हो?" कंचन ने एक और सवाल किया।
"दीदी १-२ महीना हो गया है" कोमल ने वैसे ही शर्म के मारे अपना मुँह झुकाये हुए कहा।
"ह्म्मम्म सिर्फ यही करती है या कोई बॉयफ्रेंड भी बनाया है?" कंचन ने फिर से कोमल से पूछा।
"नही दीदी मैं आपके जीतनी खुशनसीब नही" कोमल ने अपनी बहन को टोकते हुए कहा।

"मेरा कौन सा बॉयफ्रेंड देख लिया तुमने?" कंचन ने हैंरानी से पूछा।
"दीदी बाहर नहीं है तो क्या हुआ यहाँ तो है न भइया" कोमल ने अपनी बड़ी बहन से कहा।
"ह्म्म्म वह तो है इसका मतलब तुम्हें सब पता है तुम्हें भी बनाना है उसे बॉयफ्रेंड?" कंचन ने अपनी छोटी बहन से चिपकते हुए कहा।
"हाँ बनाना है मगर मुझे डर लगता है" कोमल ने अपनी बहन को देखते हुए कहा।
"क्यों इसमें डरने की क्या बात है?" कंचन ने हैंरानी से अपनी बहन को देखते हुए कहा।
"वो दीदी मैंने सुना है जब किसी लड़के के साथ प्यार करते हैं तो वह अपना मोटा डंडा लड़की की चूत में घुसाता है जिससे लड़की को बुहत तकलीफ होती है" कोमल ने बड़ी सादगी के साथ अपनी बहन को देखते हुए कहा।
 
पगली कहीं की । मरद का वही मोटा डंडा जिसे लंड कहते हैं हमें ज़िंदगी का सब से ज्यादा हसीन मजा देता है बस पहली बार में कुछ तकलीफ होती है मगर वह उस मज़े के सामने कुछ भी नही" कंचन ने अपनी बहन को समझाते हुए कहा।
"आप सच कह रही हैं दीदी?" कोमल ने हैंरान होते हुए कहा।
"हाँ पगली मैं सच कह रही हूँ अब तुम देखती जाओ । मैं तुम्हें वह अनोखा मजा दिलाकर रहुँगी" कंचन ने अपने दोनों हाथों से अपनी छोटी बहन की दोनों छोटी सी चुचियों को पकडकर दबाते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह दीदी" अपनी बहन का हाथ अपनी चुचियों पर पडते ही कोमल के मुँह से सिसकी निकल गयी,
"देखा पगली मेरे हाथ लगने से जब तुम्हारा यह हाल है तो जब तुम्हारी इन दोनों छोटी सी चुचियों को भइया अपने मूह में लेकर चूसेंगे तो तुम्हारी क्या हालत होगी" कंचन ने अपनी बहन को देखते हुए कहा।

"दीदी आपने तो मुझे फिर से गरम कर दिया" कोमल ने अपनी बहन की बात सुनकर उसे गले लगाते हुए कहा।
"बुहत गरम हो तुम। तुम्हारे लिए जल्दी कुछ करना होगा" कंचन ने भी अपनी छोटी बहन को ज़ोर से अपने गले से लगाते हुए कहा।
"हाहहह दीदी आपकी चुचियाँ कितनी बड़ी है" कोमल अपनी चुचियों से अपनी बहन की चुचियों के टकराने से सिसकते हुए कहा।
"बुहत जल्द तुम्हारी चुचियां भी बड़ी होने लगेंगी क्योंकी जब मरद इन्हें अपने हाथों से मसलता है तो इनका साइज बढ़ने लगता है" कंचन ने अपनी बहन की आँखों में देखते हुए कहा और अपने होंठो को अपनी छोटी बहन के गुलाबी होंठो पर रख दिया । दोनों बहनें कुछ देर तक एक दुसरे के होठो और जीभों को चूसने के बाद एक दुसरे से अलग हो गयी।

"छोटी तुम रात को मेरा इंतज़ार करना आज तुम्हारी चूत का उदघाटन होने वाला है" कंचन ने बेड से उठते हुए कहा और उस कमरे से निकलकर बाहर आ गयी । कंचन अपने कमरे की तरफ ही जा रहि थी की अचानक उसे किसी की सिसकियों की आवाज़ सुनायी दी कंचन के पाँव वहीँ ठहर गए और वह बड़े गौर से उन सिसकियों को सुनने की कोशिश करने लगी की आखिर वह कहाँ से आ रही है, कुछ ही देर में कंचन को पता चल गया की सिस्कियाँ कहाँ से आ रही है मगर उसे बहूत हैंरानी हुई की इस वक्त उसके दादा के कमरे में कौन है। अगले ही पल उसकी धडक़नें तेज़ होने लगी क्योंकी उसे पता चल गया की वह उसकी माँ ही होगी क्योंकी उस घर में दूसरी तो कोई औरत नही।
 
कंचन के पाँव अपने आप उसके दादा के कमरे की तरफ बढ़ने लगे। दरवाज़े के पास पुहंचकर वह रुक गयी और अपना कान दरवाज़े पर लगाकर अंदर से आने वाली आवाज़ सुनने की कोशिश करने लगी।
"आह्ह्ह्ह बहु अगर तुम नहीं होती तो मैं तो मर ही जाता कितना ख्याल रखती हो तुम मेरा और तेरा बदन भी कितना ख़ूबसूरत है। मैं शायद दुनिया का सब से ख़ुशनसीब ससुर हूँ जो मुझे तुम्हारी जैसी ख़ूबसूरत बहु मिली" अनिल अपनी बहु की तारीफ करते हुए बोल रहा था।
"बापु जी मुझे तो आपने हर तरीके से भोग लिया है क्या आपका मन अब किसी और को चोदने का नहीं होता?" रेखा जो अपने ससुर के लंड पर उछल रही थी उसकी तेज़ साँसों के साथ आवाज़ आई।

"बेटी करता तो है मगर मैं घर से बाहर कुछ करना नहीं चाहता" अनिल ने अपनी बहु को जवाब देते हुए कहा।
"बापु जी अगर घर में कोई मिल जाए तो" रेखा ने अपने ससुर को देखते हुए कहा।
"घर में मगर कौन?" अनिल ने उत्तेजित होकर अपनी बहु की दोनों बड़ी बड़ी चुचियों को अपने हाथों से मसलते हुए कहा । कंचन बड़े गौर से अंदर से आने वाली आवाज़ सुन रही थी। उसका दिल बुहत ज़ोर से धड़क रहा था आखिर उसकी माँ किसकी बात कर रही थी ।
"मेरी बड़ी बेटी कंचन तुम्हें कैसी लगती है" रेखा ने अपने ससुर से कहा।

"बेटी तुम क्या कह रही हो" अनिल ने उत्तेजना के मारे रेखा को नीचे सीधा लिटाते हुए उसके ऊपर आकर उसकी चूत में अपना लंड बुहत तेज़ी के साथ अंदर बाहर करते हुए कहा।
"हाँ कंचन कैसी लगती है तुम्हें कच्ची कली है" रेखा ने भी अपने चूतड़ों को उछालते हुए अपने ससुर का साथ देते हुए कहा।
"बेटी मुझे तो वह बुहत अच्छी लगती है मगर वह भला क्यों मानेगी?" अनिल अपनी बहु की बातों से बुहत ज्यादा उत्तेजित हो चुका था । इसीलिए वह अपने लंड को पूरा बाहर खींचकर अपनी बहु की चूत में पेल रहा था।
"आजहहहह बापू जी मानेगी क्यों नहीं मैं हूँ न। आप तो उसकी बात सुनकर ही पागल हो गये हैं जब आप उसकी कमसीन जवानी को देखेंगे तो आपका क्या हाल होगा" रेखा अपने ससुर के ज़ोरदार धक्कों से ज़ोर से सिसकते हुए बोली।

"आह्ह्ह्ह बहु ओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह" अनिल रेखा की बात सुनकर बुहत जोर से चिल्लाते हुए उसकी चूत में अपना वीर्य छोड़ने लगा । अनिल ने झडते हुए अपने लंड को जड़ तक अपनी बहु की चूत में घुसा दिया था जिस वजह से उसका वीर्य सीधा रेखा की चूत की गहराईयों में गिरने लगा।
"आह्ह्ह्हह्ह पिता जीईईईई आह्ह्हह्हह्ह्" रेखा भी अपने ससुर के गरम वीर्य को अपनी चूत में गिरने से चिल्लाते हुए झडने लगी रेखा ने झडते हुए अपने दोनों हाथों के नाखुनों को ज़ोर से अपने ससुर की गांड पर गडा दिया।
 
कंचन अपनी माँ और दादा की बाते सुनकर बुहत गरम हो चुकी थी । उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अपने दादा के साथ सेक्स करने के ख़याल से ही उसका पूरा जिस्म तपकर आग बन चूका था । कंचन अब वहां से जाते हुए अपने कमरे में जाने लगी क्योंकी उसे पता था की उसकी माँ अब किसी भी वक्त कमरे से बाहर निकल सकती है, कंचन ने अपने कमरे में आकर दरवाज़ा अंदर से बंद किया और खुद अपने पूरे कपडे उतारकर बाथरूम में घुस गयी।

कंचन ने शावर ऑन किया और शावर के ठन्डे पानी से अपने तपते बदन को ठण्डा करने की कोशिश करने लगी। मगर ठन्डे पानी के लगने से उसके बदन की आग शांत होने की बजाये ज्यादा भडकने लगी । कंचन ने अपनी एक हाथ को अपनी चूत पर रखा और उससे अपनी चूत को सहलाने लगी, कंचन के ऐसा करने से उसे कुछ सुकून मिलने लगा। इसीलिए उसने अपनी एक ऊँगली को अपनी चूत में घुसा दिया और उसे बुहत ज़ोर से आगे पीछे करने लगी, कुछ देर की मेंहनत के बाद ही कंचन का बदन अकडकर झटके खाने लगा और वह झडने लगी।

कंचन ने झडने के बाद अपने पूरे बदन को ठन्डे पानी से फ्रेश किया और बाथरूम से निकलकर अपने कमरे में आ गयी। कंचन ने कपडे पहने और अपने बेड पर लेटकर अपने दादा के बारे में सोचने लगी, कंचन ने पहले कभी अपने दादा को उस नज़र से नहीं देखा था मगर आज अपनी माँ की बात सुनने के बाद कंचन को अपने दादा का गठीला बदन याद आ रहा था । वह सोच रही थी की क्या उसके दादा का लंड भी उसके पिता की तरह छोटा ही होगा या उसके भाई के लंड की तरह लम्बा और मोटा। यही सब सोचते सोचते उसे कब नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला।
 
रेखा ने अपने ससुर को समझा दिया की उसे कंचन को कैसे पटाना है क्योंकी वह जानती थी की जब उसकी बेटी अपने पिता से चुदवा चुकी है तो वह अपने दादा को इन्कार नहीं करेगी क्योंकी उसके दादा का लंड उसके पिता के लंड से ज्यादा मज़बूत और लम्बा था। रेखा ने एक प्लान बनाकर अपने ससुर को समझा दिया था की कैसे उसे अपनी पोती को सेडयुस करके अपने क़रीब लाना है और उस प्लान की शुरुआत आज से ही करनी थी।

"उठो बेटी शाम होगई है मैं चाय बना रही हू" रेखा ने अपनी बेटी को उठाते हुए कहा । कंचन करवटे लेते हुए उठ गयी और बाथरूम में फ्रेश होने चलि गयी । कंचन फ्रेश होने के बाद अपने कमरे से निकलकर किचन की तरफ जाने लगी।
"बेटी तुम आ गयी न अच्छा हुआ मुझे देर हो रही है । मैं तुम्हारे भाई के साथ बाजार जा रही हूँ कुछ सामान खरीद करने तुम्हारे पिता भी अपने दोस्त के पास चले गए हैं तुम अपने दादा को उठाकर चाय दे देना" रेखा ने कंचन के अंदर दाखिल होते ही कहा और किचन से निकलकर अपने बेटे के कमरे में घुस गयी वह विजय के साथ घर से निकल गयी । अपनी माँ के जाते ही कंचन किचन से निकलकर अपने दादा को उठाने के लिए उसके कमरे में जाने लगी।

कंचन ने कमरे के दरवाज़ा को धक्का दिया तो वह खुल गया। अनिल धोती पहने बेड पर लेटा हुआ था। कंचन अंदर दाखिल होकर अपने दादा को उठाने के लिए बेड की तरफ बढ़ने लगी । कंचन जैसे ही बेड के क़रीब पुहंची उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी और उसकी साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी, अनिल सीधा लेटा हुआ था और उसकी धोती आगे से थोडा हट गयी थी जिस वजह से अनिल का लम्बा और मोटा लंड जो बिलकुल तना हुआ था कंचन की आँखों के सामने आ गया।

कंचन की आँखें वहीँ ठहर गयी थी वह बड़े गौर से अपने दादा का मोटा और लम्बा लंड देख रही थी और बुहत ज़ोर से साँसें भी ले रही थी। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था की उसके दादा का लंड भी इतना बड़ा और मोटा होगा । कंचन सब कुछ भूलकर सिर्फ अपने दादा के लंड को घूर रही थी। उसे कुछ भी याद नहीं था की वह यहाँ क्यों आई है, अचानक कंचन के कदम अपने आप आगे बढ़ने लगे और वह अपने दादा की टांगों के पास बेड पर जाकर बैठ गयी।

अनिल का लंड अब कंचन के बिलकुल पास था इतना पास की वह उसे अपने हाथ से पकड़ सकती थी मगर उसे बुहत डर लग रहा था । कंचन की चूत अपने दादा के लंड को देखते हुए उत्तेजना के मारे बुहत ज्यादा पानी बहा रही थी । अनिल जो सिर्फ सोने का नाटक कर रहा था वह अपनी पोती को ऐसे अपने लंड की तरफ घूरता देखकर मन ही मन में खुश हो रहा था उसे अब पूरा यकीन हो गया था की उसकी पोती कंचन बुहत जल्द उसकी बाहों में होगी।
"दादा जी" कंचन ने अचानक अपने दादा को आवाज़ देते हुए कहा। वह देखना चाहती थी की उसके दादा पक्की नींद में है या नही।
 
अनिल अपनी पोती की आवाज़ सुनकर भी चुपचाप लेटा रहा। वह देखना चाहता था की उसकी पोती क्या करना चाहती है।
"दादा जी" कंचन ने इस बार ज़ोर से अपने दादा को पुकारा मगर अनिल फिर भी सोने का नाटक करता रहा । कंचन को अब यकीन हो गया की उसके दादा बड़ी गहरी नींद में है । उसका मन अपने दादा के लंड को छूने का हो रहा था क्योंकी उसका तना हुआ लम्बा मोटा गुलाबी लंड उसे बुहत अच्छा लग रहा था, कंचन ने ड़रते ड़रते अपने हाथ को आगे बढाकर अपने दादा के लंड की तरफ ले जाने लगी। ऐसा करते हुए कंचन को बुहत डर भी लग रहा था मगर उस वक्त तो उसपर हवस का अँधा नशा चढा हुआ था।

कंचन ने अपना हाथ आगे ले जाते हुए अपने दादा के लंड को अपनी मुठी में पकड लिया । कंचन का नरम हाथ अपने लंड पर पडते ही अनिल के लंड ने एक ज़ोर का ठुमका लगाया मगर कंचन की मुठी में क़ैद होने की वजह से वह उछल न सका । कंचन अपने हाथ में अपने दादा का मोटा और लम्बा लंड महसूस करते ही सिहर उठी क्योंकी वह बुहत ही ज्यादा गरम और तना हुआ था, कंचन को अपने दादा का लंड अपनी मुठी में बुहत अच्छा लग रहा था जिस वजह से उसका हाथ अपने आप उनके लंड पर आगे पीछे होने लगा।

अनिल जो सोने का नाटक किये हुए था अपनी पोती के हाथों अपने लंड को सहलाने से मज़े के मारे जन्नत की सैर करने लगा । कंचन का पूरा जिस्म तप कर आग बन चूका था। वह दीवानों की तरह अपने दादा के लंड को सहला रही थी अचानक कंचन को मन में आया की वह एक बार अपने दादा के लंड का गुलाबी सुपाडा चूम ले। मगर ऐसा करना खतरनाक था क्योंकी अगर उसके दादा उठ गए तो वह क्या सोचेंगे, कंचन ने मन ही मन में सोचा । छोड़ो बचपना यह ठीक नहीं है मगर अगले ही पल अपने दादा के लंड के सुपाडे से वीर्य की एक बूँद निकलते देखकर कंचन के मूह में पानी आ गया और वह सब कुछ भूलकर अपना मुँह नीचे करते हुए अपने दादा के लंड को चूमने के लिए झुकने लगी।

कंचन का मूह अब अपने दादा के लंड कुछ इंच ही दूर था कंचन ने एक आखरी नज़र अपने दादा के लंड पर डाली और अपनी जीभ निकालकर उसके सुपाडे से निकलते हुए वीर्य की बूँद को चाट लिया । अनिल का पूरा जिस्म अपनी पोती की जीभ अपने लंड पर लगते ही कांप उठा। अचानक अपने दादा के इस तरह काम्पने से कंचन डर के मारे अपने दादा के लंड को छोडकर दूर खड़ी हो गयी, अनिल मन ही मन में अपने आपको कोसने लगा की अगर वह अपने ऊपर थोड़ा कण्ट्रोल करता तो उसे और मजा मिलता।
 
"दादा जी उठिये चाय तैयार है" कंचन ने अपने आप को संभालते हुए इस बार अपने दादा को बाज़ू से पकडकर झंझोडते हुए कहा । अनिल भी अब नाटक को ख़तम करते हुए अपनी आँखें को मलते हुए उठ गया।
"अरे बेटी तुम बहु किधर है?" अनिल ने अपनी पोती को देखकर हैंरानी का नाटक करते हुए कहा।
"दादा जी वह बाजार गयी है मैं चाय ले आऊं" कंचन ने अपने दादा को देखते हुए कहा।
"हाँ बेटी ले आओ मैं अभी फ्रेश होता हू" अनिल ने बेड से उठते हुए कहा । अनिल का लंड अब भी उसकी धोती में तम्बू बनाये हुए था।
"ठीक है दादा जी अभी लाई" कंचन ने चोर नज़रों से अपने दादा की धोती में बने तम्बू को देखा और यह कहते हुए वहां से बाहर निकल गयी।

कंचन अपने दादा के कमरे से निकलकर किचन में आ गयी और चाय को गरम करने लगी । वह मन ही मन में अपने आप पर हँस रही थी की उसे यह क्या हो गया था मगर उसकी आँखों के सामने अब भी अपने दादा का लंड घूम रहा था । कंचन सोचने लगी अगर उसके दादा उसका चुदाई कर दे तो उसे कितना मजा आएगा मगर अगले ही पल अपनी सोच पर उसे हंसी आने लगी। कंचन ने चाय को दो कप्स में ड़ाला और ट्रे में कुछ बिस्कुट्स के साथ अपने दादा के कमरे में ले जाने लगी।

कंचन अपने दादा के कमरे में कमरे में दाखिल होकर ट्रे को टेबल पर रखा और खुद सोफ़े पर जाकर बैठ गयी। बाथरूम से पानी के गिरने की आवज़ सुनकर कंचन समझ गयी थी की उसके दादा नहा रहे हैं । कुछ ही देर में पानी की आवाज़ बंद हो गई कंचन अपने दादा के आने का इंतज़ार करने लगी।
"बेटी क्या तुम इधर हो?" अचानक बाथरूम से आवाज़ आई।
"हाँ दादा जी कोई काम है?" कंचन ने हैंरान होते हुए पुछा।
"हाँ बेटी वह मैं टॉवल बाहर ही भूल गया बेड पर पडा होगा मुझे उठाकर दो" बाथरूम से फिर से अनिल की आवाज़ आई।
"ठीक है दादा जी अभी लाई" कंचन सोफ़े से उठते हुए बोली।

कंचन ने टॉवल को बेड से उठाया और बाथरूम की तरफ बढ़ने लगी।
"दादा जी यह रहा टॉवेल" कंचन ने बाथरूम के दरवाज़े पर पुहंचकर चिल्लाते हुए कहा । अगले ही पल बाथरूम का दरवाज़ा खुला दरवाज़े के खुलते ही कंचन का मुँह खुला का खुला रह गया।
"थैंक्स बेटी" अनिल ने अपनी पोती के हाथों से टॉवल को लेते हुए कहा और दरवाज़ा बंद कर दिया । कंचन के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था क्योंकी दरवाज़े के खुलते ही उसने एक बार फिर से अपने दादा के लम्बे और मोटे लंड को जो पानी से भीगकर झटके खा रहा था देख लिया था, कंचन के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। वह बिलकुल एक बूत की तरह चलते हुए सोफ़े पर जाकर बैठ गयी।
 
कुछ ही देर में अनिल बाथरूम से निकलकर बाहर आ गया वह अब भी सिर्फ एक धोती में था और धोती के आगे एक बड़ा उभार बना हुआ था।
"सॉरी बेटी मेरी वजह से तुम्हारी चाय भी ठण्डी हो गयी" अनिल ने भी कंचन के साथ सोफ़े पर बैठते हुए कहा।
"नाही दादा जी अभी चाय गरम है" कंचन ने एक कप उठाकर अपने दादा के सामने रखते हुए कहा।
"वाह बेटी बुहत बढ़िया चाय बनाई है लगता है ताज़ा दूध से बनी हुयी है" अनिल ने चाय की एक चुसकी लेते हुए अपनी पोती की चुचियों की तरफ देखते हुए कहा। जिसके ऊपर से साड़ी का पल्लु हटने से वह आधी नंगी होकर अनिल के सामने आ गयी थी । अनिल के ऐसा करने से कंचन के पूरे जिस्म में एक झुरझुरी सी फ़ैल गयी और उसकी चूत से उत्तेजना के मारे पानी बहने लगा।

"दादा जी चाय तो माँ ने बनाई थी पता नहीं कौन सा दूध इस्तेमाल किया उसने । वैसे आपको दूध पसंद है" कंचन ने अपने दादा की बात का जवाब देते हुए कहा और थोडा झुककर ट्रे में से बिस्कुट उठाने लगी। जिस वजह से उसकी चुचियां आगे से थोड़ा ज्यादा खुलकर अनिल के बिलकुल सामने आ गयी।
"बेटी दूध का तो मैं दीवाना हूँ मगर मुझे ताज़ा गरम दूध पसंद है" अनिल ने भी अपनी पोती की चुचियों को बड़े गौर से देखते हुए कहा।

"ठीक कहा दादा जी दूध का असल मजा तो तब आता है जब वह बिलकुल ताज़ा और गरम हो" कंचन ने अब सीधे होते हुए कहा।
"ता बेटी कब पीला रही हो ताज़ा गरम दूध" अनिल ने भी बिस्कुट को उठाते हुए कहा।
"जब आप चाहें दादा जी अभी तो आप चाय पी रहे है" कंचन ने शरारती मुसकान के साथ अपने दादा को देखते हुए कहा।
"हाँ बेटी फिर कभी ही पीला देना वैसे तुम्हें क्या पसंद है" अनिल ने भी अपनी पोती को देखते हुए कहा।
"आईसक्रीम दादा जी में मैं आइसक्रीम की दीवानी हूँ बस अपनी जीभ निकालकर उसे चाटने का मन करता है" कंचन ने भी अपने दादा के धोती के आगे बने हुए उभार को घूरते हुए कहा।

"सच्ची बेटी तुम्हें आइसक्रीम पसंद है" अनिल ने अपनी पोती की बात सुनकर कहा । उसका लंड अपनी पोती की बात सुनकर ठुमके मार रहा था।
"हाँ दादा जी कब खिला रहे हो?" कंचन ने अपनी जीभ को निकालकर अपने गुलाबी होंटठो पर फिराते हुए कहा । तभी बाहर का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई।
"दादा जी लगता है माँ आ गयी है अब जल्दी से चाय ख़तम करो" कंचन ने अपने दादा से कहा और चाय पीने लगी । अनिल भी अब चाय पीने लगा कुछ ही देर में दोनों ने चाय ख़तम कर दी और कंचन चाय के कप ट्रे समेत उठाकर बाहर जाने लगी।
"बेटी मुझे तुम्हारे ताज़े दूध का इंतज़ार रहेगा" अनिल ने कंचन को जाता हुआ देखकर कहा।
"दादा जी जब भी मौका मिला मैं आपको ताज़ा दूध पिला दूँगी" कंचन ने भी जाते हुए अपने दादा से कहा और वहां से निकलकर कप्स को किचन में जाकर रख दिया।
 
कंचन ट्रे को किचन में रखने के बाद अपने कमरे में जाने लगी।
"बेटी इधर आओ?" अपने कमरे में जाते हुए रेखा ने कंचन को देख लिया जो अपने कमरे में सामान रख रही थी और उसे अपने कमरे में बुला लिया।
"जी मा" कंचन अपनी माँ के कमरे में जाकर उसके सामने खड़ी होकर बोली।
"बेटी दादा को चाय दे दी?" रेखा ने कंचन को देखते हुए कहा।
"जी माँ और कप उठाकर किचन में रख दिए" कंचन ने अपनी माँ को जवाब दिया।
"ठीक है बेटी अब भले तुम जाओ" रेखा ने अपनी बेटी के बालों में हाथ डालकर उसके बालों को सहलाते हुए कहा।

कंचन अपनी माँ की बात सुनकर वहां से निकलकर अपने कमरे में आ गयी । कंचन अभी बेड पर बैठी ही थी की विजय वहां पर आ गया।
"हल्लो भैया कहाँ घूमने गए थे माँ के साथ?" कंचन ने अपने भाई को देखते ही कहा।
"दीदी बस माँ को कुछ सामन खरीद करना था तो मुझे भी साथ ले गई" विजय ने भी अपनी बहन के पास बेड पर बैठते हुए कहा।
"भइया तुमसे एक बात कहनी है" कंचन ने अपने भाई को देखते हुए कहा।
"क्या बात है दीदी हुक्म करो" विजय ने भी अपनी बहन की बात सुनकर रोमांटिक होते हुए कहा।

"भइया ज्यादा मस्का मत लगाओ कोमल दीदी के बारे में बात करनी है" कंचन ने अपने भाई की बात को सुनकर हँसते हुए कहा।
"कोमल दीदी क्या हुआ उसे कोई परेशानी है क्या उसे कॉलेज में?" विजय ने जल्दी से परेशान होते हुए कहा।
"नही भैया ऐसी कोई बात नही" कंचन ने अपने भाई को देखते हुए कहा।
"ता फिर बताओ न क्या बात है?" विजय ने फिर से परेशान होते हुए कहा।
"अरे भैया तुम परशान क्यों होते हो बस हमारी छोटी अब जवान हो गई है और उसे भी अब किस्सी मरद की ज़रुरत है" कंचन ने अखिरकार अपने भाई को सही बात बताते हुए कहा।

"क्या कहा दीदी कोमल दीदी को मरद की ज़रुरत है मगर तुम्हें यह सब कैसे पता चला" विजय ने एक्साईटमेंट और हैंरानी से कंचन को कमर से पकडकर अपनी गोद पर बिठाते हुए कहा।
"ओहहहह भैया आप भी न ज़रा सबर रखो न इतनी जल्दी आप को क्या हो जाता है" कंचन ने अपने भाई के खड़े लंड को अपनी साड़ी के ऊपर से अपनी गांड पर लगने से सिसकते हुए कहा।
"दीदी आपने बात ही ऐसी की है की मैं अपना कण्ट्रोल खो बैठता हूँ" विजय ने अपनी बहन के नंगे पेट को अपने हाथों से सहलाते हुए अपने होंठो से उसके काँधे को चूमते हुए कहा।
 
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