hotaks444
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मनिका के दिल की धड़कने अपना वेग कम करने का नाम ही नहीं ले रहीं थी. पर अब उसे हौले-हौले एक और आभास भी होने लगा था, 'क्या सच में मुझे पापा के बिहेवियर (बर्ताव) में बदलाव का पता नहीं चला?' वह सोचने लगी, 'पर मैंने भी तो सब बातें नोटिस की थीं, लेकिन फिर भी कभी पापा को ना नहीं किया...पापा...ओह. उनको पापा कहने पर आई फील सो गुड (कितना अच्छा लगता है उन्हें पापा कहना)...एंड इट्स नॉट लाइक हाउ आई फेल्ट बिफोर (और उस तरह नहीं जैसे पहले लगता था)...बट लाइक ही इज़...पता नहीं कैसे एक्सप्लेन करूँ...ऐसा पहले कभी नहीं लगता था. पर जब वो मुझे देखते हैं, क्या मुझे पता रहता है कि वो मुझे...क्या वो मुझे अपनी डॉटर समझते हैं?' मनिका के रोंगटे खड़े हो गए थे. 'और क्या सचमुच मैं उन्हें अपने पापा समझती हूँ..? उनकी बॉडी कितनी पावरफुल है...और वे कहते हैं कि सिर्फ मर्द ही लड़कियों को खुश...उनका डिक...पापा का डिक...ओह इतना बड़ा डिक है...पापा का...पापा...' मनिका ने अपने आप को रोकने की कोशिश की लेकिन उसके ख्याल थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. 'पापा ने कहा किसी को न बताने को...ओह गॉड, अगर किसी को पता चल जाए तो..? ये सब गलत है...पाप है, अब ऐसा नहीं होने दूँगी...' मनिका ने करवट बदल ली और अपने मन से विचारों को निकालने की कोशिश करने लगी. उसके पूरे बदन में एक करंट सा दौड़ रहा था, एक पल के लिए उसे अपने पिता का हाथ अपनी योनि पर महसूस हुआ, और उसने सिसक कर आँखें मींच ली.
उधर जयसिंह मनिका के मन में मची उथल-पुथल से अनजान घोड़े बेच कर सो रहे थे. दरअसल जब तक मनिका की आँख खुली थी, उसके पिता उसके जिस्म से खेलते-खेलते सो चुके थे. मनिका के आतंकित-आशंकित मन ने उसे थकाने का का काम किया था और थोड़ी देर बाद उसकी भी आँख लग गई.
उस दिन जब जयसिंह की आँख खुली तो उन्होंने पाया कि मनिका उनसे पहले उठ चुकी है. वह सोफे पर बैठी थी और उसकी पीठ उनकी तरफ थी. वे तकिये से टेक लगा कर उठ बैठे और बोले,
'अरे, आज तो तुम बड़ी जल्दी उठ गई.'
'हूँ.' मनिका की तरफ से जवाब आया.
जयसिंह ने मनिका से ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी, और उनसे कुछ बोलते न बना. फिर उन्हें याद आया कि पिछली रात उन्होंने किस तरह मनिका को अपने साथ ले कर उसकी मर्यादा पर हाथ डाला था. वे सतर्क हो गए 'क्या आज आखिरी दिन पर आकर बात बिगड़ गई है? मैंने भी सब्र नहीं किया कल...' जयसिंह कुछ पल सोचते रहे फिर बिस्तर से बाहर निकल, अपना तौलिया उठा कर बाथरूम की तरफ बढे.
'मनिका, मैं बाथरूम हो कर आता हूँ, जरा कुछ ब्रेकफास्ट ऑर्डर कर लो.' जयसिंह ने एक नज़र अपनी बेटी पर डालते हुए कहा. मनिका ने उनके उठने की आहट होते ही अपना चेहरा फिर एक बार घुमा लिया था और जयसिंह ने जब उसकी तरफ देखा था तो पाया कि उसका मुहं दूसरी तरफ था. मनिका ने कोई जवाब नहीं दिया.
जयसिंह भी बिना कुछ बोले बाथरूम में घुस गए.
जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो देखा की मेज़ पर ब्रेकफास्ट लगा था और मनिका अभी भी वहीँ बैठी थी, जयसिंह ने अपने कपड़े वगरह अटैची में रखे और आ कर मनिका के सामने सोफे पे बैठ गए. उनके बैठते ही मनिका उठ खड़ी हुई और बेड की तरफ जाने लगी.
'क्या हुआ मनिका? ब्रेकफास्ट नहीं करना..?' जयसिंह ने पूछा. वे नार्मल एक्ट कर रहे थे लेकिन मनिका का बर्ताव पल-पल उनकी बेचैनी बढ़ाता जा रहा था.
'मैंने कर लिया.' बोल कर मनिका बेड पर जा बैठी. उसका चेहरा अब झुका हुआ था और उसके बालों की ओट में छुपा हुआ था.
जयसिंह ने जैसे-तैसे नाश्ता ख़तम किया. उन्होंने उठ कर रूम-सर्विस को कॉल कर टेबल साफ़ करने को बोला. मनिका ने उनके उठ जाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, उन्होंने एक बार फिर से बात करने की कोशिश की.
'तो फिर क्या प्लान है आज का?' उन्होंने मनिका से मुखातिब हो पूछा.
'कुछ नहीं...' मनिका की आवाज में कोई भाव न था.
'अरे आज हमारा लास्ट डे है डेल्ही में...भूल गईं? और तुम कह रही हो के कुछ नहीं?' जयसिंह ने आवाज में झूठा उत्साह लाते हुए कहा.
'नहीं.' मनिका ने सिर्फ एक शब्द का जवाब दिया.
जयसिंह समझ गए की गड़बड़ शायद हो चुकी है. फिर भी उन्होंने चुप रहना मुनासिब नहीं समझा. वे चल कर मनिका के पास पहुंचे और उसकी बगल में बैठ गए. मनिका ने एक पल के लिए ऐसे रियेक्ट किया था मानो वह उठ खड़ी हो रही हो, लेकिन बैठी रही.
'क्या हुआ मनिका? आज मूड ऑफ लग रहा है तुम्हारा..?'
'नहीं.' मनिका ने फिर से एक ही लफ्ज़ में जवाब दिया था.
जयसिंह ने अब अपना हाथ बढ़ा कर मनिका के झुके हुए चेहरे को ठुड्डी से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया, मनिका ने हल्का सा प्रतिरोध किया था. जयसिंह ने उसका चेहरा देखा तो पाया कि उसकी नज़रें झुकी हुईं थी.
'क्या हुआ मनिका?' जयसिंह ने फिर पूछा.
'कुछ भी नहीं...' मनिका बोली.
'कहीं आज हमारा यहाँ आखिरी दिन है इसलिए तो मेरी जान उदास नहीं है?' जयसिंह ने फैसला कर लिया था कि जब तक मनिका उनका साफ़-साफ़ प्रतिरोध नहीं करेगी वे भी पीछे नहीं हटेंगे. उन्होंने अब मनिका का गाल सहलाते हुए आगे कहा, 'डोंट वरी डार्लिंग, वापस जा कर भी वी विल हैव फन.'
उनके ऐसे कहने पर मनिका की नज़र एक पल के लिए उनसे मिली और फिर से झुक गई, पर उसने कुछ नहीं कहा.
'अरे भई, अभी भी उदासी?' जयसिंह ने झूठा व्यंग्य करते हुए कहा, 'कम हियर (इधर आओ).' और मनिका का हाथ पकड़ उसे रोज़ की तरह अपनी गोद में लेने का प्रयास किया.
पर मनिका ने इस बार उनका प्रतिरोध किया और बैठी रही. 'नो पापा!' उसने थोड़ा उचक कर कहा था.
जयसिंह भी कहाँ हार मानने वाले थे, आज उनके लिए आर या पार की लड़ाई थी. वे उठ खड़े हुए, उन्होंने अभी भी मनिका का हाथ पकड़ रखा था, लेकिन अब उन्होंने उसका हाथ छोड़ते हुए उसकी बगल में हाथ डाला और दूसरा हाथ उसकी जाँघों के नीचे डाल कर एक ही पल में उसे उठा लिया.
'पापाआआअ..! व्हाट आर यु डूइंग?' मनिका ने तीखी आवाज़ में कहा, 'छोड़िये मुझे!'
लेकिन जयसिंह ने उसकी एक न सुनी और उसे लेकर सोफे की तरफ चल दिए. मनिका कसमसा रही थी. जयसिंह सोफे पे बैठ गए और मनिका को अपनी गोद में ले लिया. मनिका ने उठने की कोशिश की थी लेकिन जयसिंह ने उसे कस कर पकड़ रखा था.
'पहले बताओ क्या हुआ?' जयसिंह ने उसे पूछा.
'कुछ नहीं...लेट मी गो (मुझे जाने दो).' मनिका ने दबी सी जुबान में कहा.
'नो.' जयसिंह की आवाज़ में एक सख्ती थी. 'व्हाट हैपनड मनिका?'
'नथिंग...हाउ मैनि टाइम्स शुड आई टेल यू?' मनिका बोली. उसने नज़र झुका ली थी और अब जयसिंह का प्रतिरोध भी नहीं कर रही थी.
'तो फिर ठीक है जब तक तुम नहीं बताओगी, मैं भी तुम्हें जाने नहीं दूंगा.' जयसिंह बोले. मनिका चुप रही.
अब जयसिंह ने एक बार फिर मनिका के चेहरे पर हाथ रख लिया था और उसका गाल सहला रहे थे. रोजाना तो जयसिंह की गोद में बैठने पर उसके पैर ज़मीन पर होते थे लेकिन आज जयसिंह ने उसे अपनी गोद में इस तरह रखा था की उसकी दोनों टांगें सोफे के ऊपर थी और अपने एक हाथ से जयसिंह ने उसे जकड़ रखा था. मनिका ने अपने पिता की ताकत के आगे घुटने टेक दिए थे और चुपचाप नज़र झुकाए उनकी गोद में लेटी रही. जयसिंह हौले-हौले उसका गाल सहलाते-सहलाते अब उसकी गर्दन पर भी हाथ फिरा रहे थे और कभी-कभी हाथ के अंगूठे से उसके गुलाबी होंठों को भी धीरे से मसल दे रहे थे.
'पापाआआअ..!' मनिका ने कुछ देर बाद एक लम्बी आह के साथ कहा. 'प्लीज मुझे छोड़ दीजिए...'
'पहले बताओ क्या बात है, तुम इस तरह क्यूँ बिहेव कर रही हो?' जयसिंह ने पूछा. वे मनिका के ऊपर झुके हुए थे.
'कुछ नहीं पापा...ऐसे ही पापा...' मनिका थोड़ा अटकते हुए बोली.
'देन स्माइल फॉर मी डार्लिंग...' जयसिंह ने मनिका से कहा.
मनिका की नज़र उनसे मिली, उसके चेहरे पर एक अंतर्द्वंद झलक रहा था. एक पल के लिए उसने अपनी आँखें मींच ली, और फिर आँखें खोलते हुए मुस्का दी. जयसिंह ने उसके मुस्काते ही उसे खींच कर अपनी बाहों में भर लिया था. मनिका भी उनसे लिपट गई.
मनिका को जयसिंह के आगोश में समाए दस मिनट से भी ज्यादा हो गए थे, जयसिंह ने उसे कस कर सीने से लगा रखा था, हर एक दो पल में वे उसे अपने शक्तिशाली बाजुओं में भींच लेते थे. मनिका भी उनसे लिपट कर उनकी पीठ को अपने दोनों हाथों से जकड़े हुए थी.
सुबह जब मनिका उठी थी तो उसने तय किया था कि वह अब अपने पिता के जाल में नहीं आएगी. इसीलिए उसने उन्हें सुबह से ही इग्नोर (नज़रंदाज़) करना चालु कर दिया था. उसे लगा कि जयसिंह भी उसकी तल्खी की वजह अपने आप समझ कर उस से दूर हो जाएँगे. लेकिन जैसे-जैसे उसने उन्हें निराश करने की कोशिश की थी, जयसिंह बार-बार उसके करीब आते रहे. अभी-अभी जवान हुई मनिका का यह जयसिंह जैसे मर्द से पहला सामना था और उस को यह नहीं मालूम था कि भय और प्रतिबंधित सीमाओं के उल्लंघन का पुराना वास्ता है. जितना अधिक एक व्यक्ति अपने-आप को नियम-कायदों में बांधता जाता है और उनको तोड़ने से डरता है, उसकी उन्हें तोड़ने की इच्छा भी उसी अनुपात में बढती भी जाती है.
जब जयसिंह उसके रोकने से भी नहीं रुके और उसे उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया, तो मनिका भी उनके गंदे मंसूबों को भांप कर उत्तेजित होने लगी थी. अपने बदन में पिछली रात हुए उस सनसनीखेज़ एहसास को वह भूली नहीं थी, और अब जब उसके पिता उसे इस तरह अपनी गोद में जकड़ कर बैठे थे तो उसके मन में प्रतिरोध की जगह कुछ और ही ख्याल चल रहे थे, 'ओह्ह गॉड...पापा तो रुक ही नहीं रहे...कितने गंदे हैं पापा...मुझे जबरदस्ती पकड़ कर अपनी लैप में बिठा लिया है...अपने डिक (लंड) पर...ओह्ह, कितना बड़ा डिक है पापा का...ओह गॉड! आई कैन फील इट अंडर मीईईई...' उधर जयसिंह के उसके गाल और गर्दन पर चलते हाथ ने उसे और अधिक उत्तेजित करने का काम किया था, और आखिर में न चाहते हुए भी मनिका ने समाज के बनाए नियमों को ताक पर रख दिया था, वह अपने पिता की कामेच्छा के आगे बेबस हो कर उनसे लिपट गई थी.
उधर जयसिंह मनिका के मन में मची उथल-पुथल से अनजान घोड़े बेच कर सो रहे थे. दरअसल जब तक मनिका की आँख खुली थी, उसके पिता उसके जिस्म से खेलते-खेलते सो चुके थे. मनिका के आतंकित-आशंकित मन ने उसे थकाने का का काम किया था और थोड़ी देर बाद उसकी भी आँख लग गई.
उस दिन जब जयसिंह की आँख खुली तो उन्होंने पाया कि मनिका उनसे पहले उठ चुकी है. वह सोफे पर बैठी थी और उसकी पीठ उनकी तरफ थी. वे तकिये से टेक लगा कर उठ बैठे और बोले,
'अरे, आज तो तुम बड़ी जल्दी उठ गई.'
'हूँ.' मनिका की तरफ से जवाब आया.
जयसिंह ने मनिका से ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी, और उनसे कुछ बोलते न बना. फिर उन्हें याद आया कि पिछली रात उन्होंने किस तरह मनिका को अपने साथ ले कर उसकी मर्यादा पर हाथ डाला था. वे सतर्क हो गए 'क्या आज आखिरी दिन पर आकर बात बिगड़ गई है? मैंने भी सब्र नहीं किया कल...' जयसिंह कुछ पल सोचते रहे फिर बिस्तर से बाहर निकल, अपना तौलिया उठा कर बाथरूम की तरफ बढे.
'मनिका, मैं बाथरूम हो कर आता हूँ, जरा कुछ ब्रेकफास्ट ऑर्डर कर लो.' जयसिंह ने एक नज़र अपनी बेटी पर डालते हुए कहा. मनिका ने उनके उठने की आहट होते ही अपना चेहरा फिर एक बार घुमा लिया था और जयसिंह ने जब उसकी तरफ देखा था तो पाया कि उसका मुहं दूसरी तरफ था. मनिका ने कोई जवाब नहीं दिया.
जयसिंह भी बिना कुछ बोले बाथरूम में घुस गए.
जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो देखा की मेज़ पर ब्रेकफास्ट लगा था और मनिका अभी भी वहीँ बैठी थी, जयसिंह ने अपने कपड़े वगरह अटैची में रखे और आ कर मनिका के सामने सोफे पे बैठ गए. उनके बैठते ही मनिका उठ खड़ी हुई और बेड की तरफ जाने लगी.
'क्या हुआ मनिका? ब्रेकफास्ट नहीं करना..?' जयसिंह ने पूछा. वे नार्मल एक्ट कर रहे थे लेकिन मनिका का बर्ताव पल-पल उनकी बेचैनी बढ़ाता जा रहा था.
'मैंने कर लिया.' बोल कर मनिका बेड पर जा बैठी. उसका चेहरा अब झुका हुआ था और उसके बालों की ओट में छुपा हुआ था.
जयसिंह ने जैसे-तैसे नाश्ता ख़तम किया. उन्होंने उठ कर रूम-सर्विस को कॉल कर टेबल साफ़ करने को बोला. मनिका ने उनके उठ जाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, उन्होंने एक बार फिर से बात करने की कोशिश की.
'तो फिर क्या प्लान है आज का?' उन्होंने मनिका से मुखातिब हो पूछा.
'कुछ नहीं...' मनिका की आवाज में कोई भाव न था.
'अरे आज हमारा लास्ट डे है डेल्ही में...भूल गईं? और तुम कह रही हो के कुछ नहीं?' जयसिंह ने आवाज में झूठा उत्साह लाते हुए कहा.
'नहीं.' मनिका ने सिर्फ एक शब्द का जवाब दिया.
जयसिंह समझ गए की गड़बड़ शायद हो चुकी है. फिर भी उन्होंने चुप रहना मुनासिब नहीं समझा. वे चल कर मनिका के पास पहुंचे और उसकी बगल में बैठ गए. मनिका ने एक पल के लिए ऐसे रियेक्ट किया था मानो वह उठ खड़ी हो रही हो, लेकिन बैठी रही.
'क्या हुआ मनिका? आज मूड ऑफ लग रहा है तुम्हारा..?'
'नहीं.' मनिका ने फिर से एक ही लफ्ज़ में जवाब दिया था.
जयसिंह ने अब अपना हाथ बढ़ा कर मनिका के झुके हुए चेहरे को ठुड्डी से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया, मनिका ने हल्का सा प्रतिरोध किया था. जयसिंह ने उसका चेहरा देखा तो पाया कि उसकी नज़रें झुकी हुईं थी.
'क्या हुआ मनिका?' जयसिंह ने फिर पूछा.
'कुछ भी नहीं...' मनिका बोली.
'कहीं आज हमारा यहाँ आखिरी दिन है इसलिए तो मेरी जान उदास नहीं है?' जयसिंह ने फैसला कर लिया था कि जब तक मनिका उनका साफ़-साफ़ प्रतिरोध नहीं करेगी वे भी पीछे नहीं हटेंगे. उन्होंने अब मनिका का गाल सहलाते हुए आगे कहा, 'डोंट वरी डार्लिंग, वापस जा कर भी वी विल हैव फन.'
उनके ऐसे कहने पर मनिका की नज़र एक पल के लिए उनसे मिली और फिर से झुक गई, पर उसने कुछ नहीं कहा.
'अरे भई, अभी भी उदासी?' जयसिंह ने झूठा व्यंग्य करते हुए कहा, 'कम हियर (इधर आओ).' और मनिका का हाथ पकड़ उसे रोज़ की तरह अपनी गोद में लेने का प्रयास किया.
पर मनिका ने इस बार उनका प्रतिरोध किया और बैठी रही. 'नो पापा!' उसने थोड़ा उचक कर कहा था.
जयसिंह भी कहाँ हार मानने वाले थे, आज उनके लिए आर या पार की लड़ाई थी. वे उठ खड़े हुए, उन्होंने अभी भी मनिका का हाथ पकड़ रखा था, लेकिन अब उन्होंने उसका हाथ छोड़ते हुए उसकी बगल में हाथ डाला और दूसरा हाथ उसकी जाँघों के नीचे डाल कर एक ही पल में उसे उठा लिया.
'पापाआआअ..! व्हाट आर यु डूइंग?' मनिका ने तीखी आवाज़ में कहा, 'छोड़िये मुझे!'
लेकिन जयसिंह ने उसकी एक न सुनी और उसे लेकर सोफे की तरफ चल दिए. मनिका कसमसा रही थी. जयसिंह सोफे पे बैठ गए और मनिका को अपनी गोद में ले लिया. मनिका ने उठने की कोशिश की थी लेकिन जयसिंह ने उसे कस कर पकड़ रखा था.
'पहले बताओ क्या हुआ?' जयसिंह ने उसे पूछा.
'कुछ नहीं...लेट मी गो (मुझे जाने दो).' मनिका ने दबी सी जुबान में कहा.
'नो.' जयसिंह की आवाज़ में एक सख्ती थी. 'व्हाट हैपनड मनिका?'
'नथिंग...हाउ मैनि टाइम्स शुड आई टेल यू?' मनिका बोली. उसने नज़र झुका ली थी और अब जयसिंह का प्रतिरोध भी नहीं कर रही थी.
'तो फिर ठीक है जब तक तुम नहीं बताओगी, मैं भी तुम्हें जाने नहीं दूंगा.' जयसिंह बोले. मनिका चुप रही.
अब जयसिंह ने एक बार फिर मनिका के चेहरे पर हाथ रख लिया था और उसका गाल सहला रहे थे. रोजाना तो जयसिंह की गोद में बैठने पर उसके पैर ज़मीन पर होते थे लेकिन आज जयसिंह ने उसे अपनी गोद में इस तरह रखा था की उसकी दोनों टांगें सोफे के ऊपर थी और अपने एक हाथ से जयसिंह ने उसे जकड़ रखा था. मनिका ने अपने पिता की ताकत के आगे घुटने टेक दिए थे और चुपचाप नज़र झुकाए उनकी गोद में लेटी रही. जयसिंह हौले-हौले उसका गाल सहलाते-सहलाते अब उसकी गर्दन पर भी हाथ फिरा रहे थे और कभी-कभी हाथ के अंगूठे से उसके गुलाबी होंठों को भी धीरे से मसल दे रहे थे.
'पापाआआअ..!' मनिका ने कुछ देर बाद एक लम्बी आह के साथ कहा. 'प्लीज मुझे छोड़ दीजिए...'
'पहले बताओ क्या बात है, तुम इस तरह क्यूँ बिहेव कर रही हो?' जयसिंह ने पूछा. वे मनिका के ऊपर झुके हुए थे.
'कुछ नहीं पापा...ऐसे ही पापा...' मनिका थोड़ा अटकते हुए बोली.
'देन स्माइल फॉर मी डार्लिंग...' जयसिंह ने मनिका से कहा.
मनिका की नज़र उनसे मिली, उसके चेहरे पर एक अंतर्द्वंद झलक रहा था. एक पल के लिए उसने अपनी आँखें मींच ली, और फिर आँखें खोलते हुए मुस्का दी. जयसिंह ने उसके मुस्काते ही उसे खींच कर अपनी बाहों में भर लिया था. मनिका भी उनसे लिपट गई.
मनिका को जयसिंह के आगोश में समाए दस मिनट से भी ज्यादा हो गए थे, जयसिंह ने उसे कस कर सीने से लगा रखा था, हर एक दो पल में वे उसे अपने शक्तिशाली बाजुओं में भींच लेते थे. मनिका भी उनसे लिपट कर उनकी पीठ को अपने दोनों हाथों से जकड़े हुए थी.
सुबह जब मनिका उठी थी तो उसने तय किया था कि वह अब अपने पिता के जाल में नहीं आएगी. इसीलिए उसने उन्हें सुबह से ही इग्नोर (नज़रंदाज़) करना चालु कर दिया था. उसे लगा कि जयसिंह भी उसकी तल्खी की वजह अपने आप समझ कर उस से दूर हो जाएँगे. लेकिन जैसे-जैसे उसने उन्हें निराश करने की कोशिश की थी, जयसिंह बार-बार उसके करीब आते रहे. अभी-अभी जवान हुई मनिका का यह जयसिंह जैसे मर्द से पहला सामना था और उस को यह नहीं मालूम था कि भय और प्रतिबंधित सीमाओं के उल्लंघन का पुराना वास्ता है. जितना अधिक एक व्यक्ति अपने-आप को नियम-कायदों में बांधता जाता है और उनको तोड़ने से डरता है, उसकी उन्हें तोड़ने की इच्छा भी उसी अनुपात में बढती भी जाती है.
जब जयसिंह उसके रोकने से भी नहीं रुके और उसे उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया, तो मनिका भी उनके गंदे मंसूबों को भांप कर उत्तेजित होने लगी थी. अपने बदन में पिछली रात हुए उस सनसनीखेज़ एहसास को वह भूली नहीं थी, और अब जब उसके पिता उसे इस तरह अपनी गोद में जकड़ कर बैठे थे तो उसके मन में प्रतिरोध की जगह कुछ और ही ख्याल चल रहे थे, 'ओह्ह गॉड...पापा तो रुक ही नहीं रहे...कितने गंदे हैं पापा...मुझे जबरदस्ती पकड़ कर अपनी लैप में बिठा लिया है...अपने डिक (लंड) पर...ओह्ह, कितना बड़ा डिक है पापा का...ओह गॉड! आई कैन फील इट अंडर मीईईई...' उधर जयसिंह के उसके गाल और गर्दन पर चलते हाथ ने उसे और अधिक उत्तेजित करने का काम किया था, और आखिर में न चाहते हुए भी मनिका ने समाज के बनाए नियमों को ताक पर रख दिया था, वह अपने पिता की कामेच्छा के आगे बेबस हो कर उनसे लिपट गई थी.