hotaks444
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मेरी भुलक्कड़ चाची
दोस्तो हर आदमी के बचपन मे कभी ना कभी कोई ऐसा वक़्त आता है जब वो सेक्स को समझने लगता है. ठीक उसी तरह मे बचपन मे, चाची के साथ हुए कुछ हादसों को देख कर मे भी सेक्स के प्रति आकर्षित हुआ.
ये एक रियल स्टोरी है मेरी सग़ी चाची की, जो अभी देल्ही मे रहती है, चाचा सेबी मे जॉब पर है. थोड़ी चाची के बारे मे आप लोगो को बता दू, मेरी चाची का नाम कोमल है, अभी चाची की उमर 40 साल. है पर उस वक़्त उनकी उमर 28 य्र. थी, दिखने मे एक दम नॉर्थ इंडियन घरेलू औरत की तरह है, रंग गोरा, कद 5.2 इंच. ज़्यादा लंबी नही है, सरीर से थोड़ी हेल्ती है, चेहरा एक दम गोल, बूब्स थोड़े बड़े, कमर थोड़ी मोटी, उनकी खास बात ये है कि वो बहुत ज़्यादा भोली है और थोड़ी भुलक्कड़ है, इसीलये चाचा हमेशा उन्हे डाँट ते रहते है, उनके दो बेटे है और देल्ही मे पढ़ते है बड़ा बेटा विकाश 15साल का और छोटा राजीव 10साल का है. चाची हमेशा सारी पहनती है और घर मे छोटी बहू होने के कारण, सर पर हमेशा पल्लू रखती है और सारा बदन हमेशा सारी से ढका रहता है. अब थोड़ा चाचा पे नज़र डाली जाए मेरा पिताजी (फादर) के 3 भाई और एक सिस्टर है. पिताजी सबसे बड़े, प्रकाश चाचा मझले है, इनके बाद एक छोटे चाचा प्रेम और बुआ कमल. मेरी पूरी फॅमिली मे प्रकाश चाचा पढ़ने मे सबसे ज़्यादा तेज और किताबी कीड़े है (बुक वर्म), पढ़ाई की वजह से आँखो पे मोटा चस्मा आ गया है मेरी उनके साथ बहुत बनती है, क्यूंकी बचपन से उन्होने मुझे बहुत खिलाया है मैं बचपन मे उनके साथ ही सोता था और उन्हे छोटे बाबूजी कह कर बुलाता था.
अब स्टोरी पर आता हूँ, किस तरह अंजाने मे चाची ने मुझे सेक्स का मतलब बता दिया. ये बात उन दिनो की जब मेरी उमर 12साल. की थी, हम सब प्रेम चाचा की शादी मे अपने गाओं गये थे वान्हा पर हमारा पुस्तेनि घर है, जो 2 फ्लोर का है, ग्राउंड फ्लोर मे 5 कमरे है, किचन, स्टोर रूम, छोटे चाचा का कमरा, दादा दाई और गेस्ट रूम है, गेस्ट रूम के बीच एक डोर है जो दालान मे खुलता है, दालान जान्हा खेती के समान, गाये और भैंसे (काउ & बफेलो) रखे जाते है.
और दालान की देखभाल के लिए हमारा नौकर भूरा था जिसकी उमर तकरीबन 40 साल होगी उस वक़्त और वो वन्हि दालान मे रहता था., सिफ खाना खाने ही घर मे आता था. भूरा एक दम हटा कटा ताकतवर मर्द था, हम जैसे 3, 4 बच्चो को तो वो एक हाथ मे ही उठा लेता था पर वो थोड़ा मंद बुधि का था, बचपन मे उसके मा बाप गुजर गये थे, दादाजी ने उसे अपने पास रख लिया, वो घर के सब काम कर देता था और दादा जी की बहुत सेवा करता था.
सेकेंड फ्लोर पे हमारा रूम, चाची का और चाचा का स्टडी रूम था और दो कमरे हमेशा बंद रहते थे जिसमे कोई रहता नही हा, जब हमारी कमल बुआ या कोई रिलेटिव आते थे उसी मे रुक ते थे और उपर छत (टेरेस) थी, जान्हा से दालान और गाओं साफ दिखता था. साल दो साल मे एक बार हम गाओं जाते थे, दादा दादी हमे देख कर काफ़ी खुस होते थे, हमे भी वान्हा काफ़ी अछा लगता था, दिन भर गाओं, खेत मे घूमना और नदी मे नहाते और मस्ती करते और वैसे भी वान्हा पर किसी भी तरह की कोई रोक टोक नही थी.