Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका - Page 4 - SexBaba
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Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका

ललित के चेहरे के भाव देखकर शान्ताबाई जोर से सांस लेते हुए बोलीं "लगता है ... ललित राजा ने ... जीजाजी के असली कारनामे देखे नहीं हैं ... एक नंबर के खिलाड़ी हैं राजा वे ... न जाने कहां से सीखे हैं ... लीना बाई घर में ना हों तो आधे घंटे में मुझे ऐसे ठोक देते हैं कि दो तीन दिन के लिये मेरी ये बदमाश बुर ठंडी हो जाती है"

"अब लीना जैसी अप्सरा ... बीवी हो तो ... आदमी बहुत कुछ ... सीख जाता है ... ललित ... पर जरा संभालना पड़ता है ... पटाखा है पटाखा ... कब फूट जाये पता भी नहीं चलता ..." मैंने चोदते हुए कहा.

"हां ललित बेटा ... तुम्हारी दीदी याने एकदम परी है ... हुस्न की परी ...." शान्ताबाई चूतड़ उछालते हुए बोली "जब से वे यहां ... रहने आयीं ... तब से मैं देखती थी हमेशा ... फ़िर मेरे यहां से सब्जी भाजी खरीदने लगीं ... मैं तो बस टक लगाकर देखती रहती थी उनका रूप. और तू जानता है- उसको देखकर मेरी चूत गीली हो जाती थी जैसे किसी मर्द का लंड खड़ा हो जाता होगा. अब उसके सामने मैं क्या हूं , फ़िर भी मेरे पास थोड़ा बहुत माल तो है ना ... " अपने ही स्तनों को गर्व से देखती हुई शान्ताबाई बोली " ... सो मैं भी दिखाती थी उसको अपनी पुरानी टाइट चोली पहन पहन कर. उनकी आंखों को देखकर लगता था कि वे भी मुझे पसंद करती हैं इसलिये बड़ी तमन्ना से रोज राह देखती थी उनकी. और जब एक दिन लीना बाई खुद बोली कि शान्ताबाई, अब भाजी का ठेला छोड़ो और मेरे यहां काम करने को आ जाओ, मेरे को लगा जैसे मन्नत मिल गयी हो"

"वैसे आप भी कम खूबसूरत नहीं हैं शान्ताबाई, बस यह फरक है कि लीना जरा नाजुक और स्लिम है और आप के जलवे एकदम खाये पिये मांसल किस्म के हैं. ये पपीते जैसे स्तन ... या ये कहो कि झूलते नारियल जैसी चूंचियां, ये जामुन या खजूर जैसे निपल, ये नरम नरम डनलोपिलो जैसा पेट, ये घने रेशमी घुंघराले बालों से भरी - घनी झांटों के बीच खिली हुई लाल लाल गीली चिपचिपी गरमागरम चूत ... अब वो रंभा और उर्वशी के पास भी इससे ज्यादा क्या होगा बाई?" मैंने तारीफ़ की. हमेशा करता हूं, बाई ऐसे खिल जाती हैं कि रस का बहाव दुगना हो जाता है. अब भी ऐसा ही हुई, उनमें ऐसा जोर आया कि डबल स्पीड से नीचे से चोदने लगीं.

अब मस्ती में उन्होंने ललित को बैठने को कहा और फ़िर कमर में हाथ डालकर उसे पास खींचा और उसका लंड मुंह में ले लिया. जब तक ललित ने उनको अपनी क्रीम खिलाई तब तक वे एकदम सर्र से झड़ गयीं. ऐसी झड़ीं कि तीन चार हल्की हल्की चीखें उनके मुंह से निकल गयीं. झड़ने के बाद फ़िर उनको मेरे लंड के धक्के जरा भारी पड़ने लगे. "बस बाबूजी ... भैयाजी अब रुक जाओ ... हो गया मेरा ... " वे कहती रह गयीं पर मैंने उनके होंठ मुंह में लेकर उनकी बोलती बंद कर दी और ऐसा कूटा कि वे तड़प कर अपना सिर इधर उधर फ़ेकने लगीं.

जब वे पांच मिनिट में उठीं तो पूरी लस्त हो गयी थीं. कपड़े पहनते पहनते ललित से बोलीं "तेरे जीजाजी से चुदवा कर मैं एकदम ठंडी हो जाती हूं बेटा ... क्या कूटते हैं ... बड़ा जुलम करते हैं ... मेरे और तुम्हारी दीदी जैसी गरम चूत को ऐसा ही लंड चाहिये नहीं तो जीवन नरक हो जाता है बेटा. खैर, अब मैं चलती हूं, तुम आराम करो"

"मौसी ... तुमने प्रॉमिस किया था" ललित उठकर चिल्लाया.

"अरे भूल ही गयी, चलो बेटा, उस कमरे में चलते हैं" फ़िर मेरी ओर मुड़ कर बोलीं "अब ऐसे ना देखो, कुछ ऐसा वैसा नहीं करने वाली इस छोरे के साथ, करना हो तो सरे आम आप के सामने करूंगी. इतनी भयंकर चुदाई के बाद किसी में इतना हौसला नहीं है कि अंदर जाकर शुरू हो जायें. ललित को कुछ सिखाना है, आप बाहर बैठ कर अपना काम करो अब"

मैं बाहर जाकर बैठ गया. मन हो रहा था कि अंदर जाकर देखूं कि क्या चल रहा है पर फ़िर रुक गया.

करीब डेढ़ घंटे बाद शान्ताबाई बाहर आयीं. मुड़ कर बोलीं "आओ ना ललिता रानी, शरमाओ मत"

और अंदर से साड़ी पहनी, पूरी तरह से तैयार हुई एक खूबसूरत लड़की के भेस में ललित बाहर आया. क्या बला का हुस्न था. मैंने सोचा कि ललित बाकी कैसे भी कपड़े पहने, लीना की तरह की सुंदरता उसकी साड़ी में ही निखरती थी.

मेरी आंखों में के प्रशंसा के भाव देखकर शान्ताबाई गर्व से बोलीं "ये खुद पहनी है इसने, आखिर सीख ही गया, एक घंटे में चार पांच बार प्रैक्टिस करवाई मैंने, वैसे सच में शौकीन लड़का है भैयाजी हमारा ललित, नहीं तो लड़कियों को भी आसानी से नहीं आता साड़ी बांधना."

ललित को सीने से लगाकर वे बोलीं "ललित राजा ... अरे अब तुझे ललिता कहने की आदत डालना पड़ेगी, अब मैं परसों आऊंगी, तब तक जो इश्क विश करना है, कर ले जीजाजी के साथ." ललित वहां आइने में खुद को निहारने में जुट गया था, बड़ा खुश नजर आ रहा था.

बाहर जाते जाते मेरे पास आकर शान्ताबाई बोलीं "भैयाजी, जरा बुरा मत मानना, आप को कह कर गयी थी कि कुछ नहीं करूंगी पर अभी मैंने अंदर साड़ी पहनाते पहनाते फ़िर से ललित का लंड चूस लिया, आप को बुरा तो नहीं लगेगा भैयाजी?"

"मुझे क्यों बुरा लगेगा बाई? आप को मौसी कहता है आखिर. पर अभी फिर से याने ... अभी एक घंटा पहले ही तो चोदते वक्त आपने चूसा था फ़िर ... "

"अरे साड़ी पहनाते पहनाते मुझसे नहीं रहा गया, और लड़के का शौक तो देखो, साड़ी पहनने के शौक में फ़िर लंड खड़ा हो गया उसका. ऊपर से कहता है कि गोटियां दुखती हैं. असल का रसिक लौंडा है लगता है. मुझसे नहीं रहा गया. याने आज रात को ज्यादा मस्ती नहीं कर पायेगा बेचारा, तीन चार बार तो मेरे साथ ही झड़ा है छोकरा. आप ऐसा करो कि आज सच में आप दोनों आराम कर लो भैयाजी, कल नये दम खम से अपनी प्यार मुहब्बत होने दो"

"ठीक है बाई, मैं आज ललित को तकलीफ़ नहीं दूंगा"

"और मैंने बादमा का हलुआ बहुत सारा बनाया है रात को भी खा लेना, अच्छा होता है सेहत के लिये, खास कर नौजवान मर्दों के लिये. और भैयाजी .... बुरा मत मानना ... एक बात कहनी है ..." वे बोलीं. अब तक हम बाहर ड्राइंग रूम में आ गये थे, ललित अंदर ही था.

"अब मैं क्यों बुरा मानूंगा?" मैंने पूछा.

"अरे आप भरे पूरे मर्द हो, और अधिकतर मर्दों को मैं जो कहने जा रही हूं, वो बात ठीक नहीं लगेगी, पर आप उसको इतना प्यार करते हो इसलिये कह रही हूं. ललित को आप बहुत अच्छे लगते हैं, याने जैसा आपने आज उसके साथ किया, शायद उसको भी आपके साथ वैसा ही करना है. आज उसे साड़ी पहनना सिखाते वक्त मैं जब उसके इस लड़कियों के कपड़े के शौक के बारे में बातें कर रही थी तो वो बोला कि जीजाजी भी अगर ऐसे ... बन जायें तो बला के सेक्सी लगेंगे."

"याने ऐसे लड़कियों के कपड़े पहनकर? ..." मैं अचंभे में आ गया.

"... और भैयाजी ..."

"क्या शान्ताबाई?"

आंख मार कर वे बोलीं "ऐसा मत समझो आप कि उसको बस आपका लंड ही अच्छा लगता है, पूरे बदन पर फिदा है आपके, शरमा कर कह नहीं पाता पर ...’ मेरे चूतड़ को दबा कर शान्ताबाई बोली "इसमें भी बड़ा इन्टरेस्ट लगता है छोरे का"

"ऐसा?" मैंने चकराकर कहा "बड़ा छुपा रुस्तम निकला. ठीक है, मैं देख लूंगा उसको"

"डांटना मत. वो आपका दीवाना है" कहकर वे दरवाजा खोल रही थीं तो मैंने कहा "परसों जरूर आइये शान्ताबाई. मैं अब रोज रोज तो छुट्टी नहीं ले सकता, आप आयेंगी तो मन बहला रहगा उसका"

कमर पर हाथ रखकर शान्ताबाई बड़ी शोखी से बोलीं "सिर्फ़ मन ही नहीं, तन भी बहला रहेगा मेरे साथ. अब देखो भैयाजी, सिर्फ़ गपशप करने को तो मैं आऊंगी नहीं, इतना हसीन जवान है, खेले निचोड़े बिना नहीं रहा जायेगा मेरे को"


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"मैं कब कह रहा हूं कि सिर्फ़ गप्पें मारो शान्ताबाई. हां पूरा मत निचोड़ लेना बेचारे को, मेरे लिये भी थोड़ा रस छोड़ दिया करो. उसे खुश रखना है शान्ताबाई. इतना खुश कि आकर लीना के पास तारीफ़ के पुल बांध दे, मैं चाहता हूं कि वो यहां इतन रम जाये कि हमेशा आकर यहां रहे"

"मैं समझ गयी भैयाजी, आप चिन्ता मत करो. ऐसी जवानी का लुत्फ़ मिलने को तकदीर लगती है"

उस रात मैंने और ललित ने ज्यादा कुछ नहीं किया. बस बाहर बैठकर जरा गपशप की और किसिंग वगैरह की. ललित सोने तक उसी साड़ी को पहने हुए था इसलिये बस उसके उस स्त्री रूप की मिठास मैंने उसके चुंबनों में चखी.

"जीजाजी, आप से कुछ मांगूं तो आप देंगे?" वो बोला.

"वो शर्त के बारे में बोल रहा है क्या?"

"नहीं जीजाजी, वो ... याने आप भी ऐसे ... आप का बदन भी इतना गोरा चिकना और सुडौल है ... आप भी वो लिन्गरी में ... बड़े मस्त दिखेंगे" शान्ताबाई सच कह रही थीं. पर एक बात अच्छी थी कि ललित अब खुले दिल से अपने मन की बात कह रहा था.

"तेरी बात और है जानेमन, मेरी और. तू इतना नाजुक चिकना जवान है, अब पांच फुट दस इंच ऊंचा और बहात्तर किलो का मेरे जैसा आदमी अजीब नहीं लगेगा ब्रेसियर पहनकर?" मैंने लो कट ब्लाउज़ में से दिखती उसकी चिकनी पीठ सहलाते हुए कहा.

"नहीं जीजाजी, बहुत सेक्सी दिखेंगे आप, याने भले नाजुक युवती जैसे ना दिखें पर वो डब्ल्यू डब्ल्यू एफ़ रेसलिंग वाले चैनल पर जो पहलवान औरतें आती हैं ना, उनमें कुछ कुछ क्या सेक्सी लगती हैं ... "

"कल देखेंगे यार, वैसे तेरा इतना मन है तो ..." मैंने बात अधूरी छोड़ दी. सोचा कल उसे फुसला कर बहला दूंगा पर मुझे क्या पता कि हमारी अधूरी बात्चीत को वह यह समझ बैठेगा कि मैं तैयार हूं.

दूसरे दिन मुझे जल्दी ऑफ़िस जाना पड़ा. आने में भी छह बज गये. वैसे ललित अब घर में सेट हो गया था इसलिये वह अकेला कैसे रहेगा इसकी मुझे कोई चिन्ता नहीं थी. शाम को घर में दाखिल हुआ तो ललित साड़ी पहनकर बैठा था. आज उसने लीना की गुलाबी साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज़ पहना था. गुलाबी लिपस्टिक भी लगायी थी.

मैंने उस भींच लिया. कस के चूमा. "ललिता डार्लिंग, हार्ट अटैक करवाओगी क्या, लंड देखो कैसे खड़ा हो गया तेरी खूबसूरती देख कर, अभी चौबीस घंटे का भी आराम नहीं हुआ कल की चुदाई के बाद. सुबह तक गोटियां भी दुख रही थीं. अब चल, देख आज मैं कैसे चोदता हूं तेरे को"

"जीजाजी, अभी नहीं" नखरा करते ललित बोला "मुझे तैयारी करना है आपकी"

"अब चुदाई के लिये क्या तैयारी करनी है, और तुझे कुछ नहीं करना है, बस अपनी साड़ी उठाकर पट लेटना है और चुदवाना है मुझसे" मैंने उसे पकड़ा तो मेरी गिरफ़्त से छूटकर वो बोला. "भूल गये कल आपने प्रॉमिस किया था?"

मैंने बात बनाने की कोशिश की "हां ... वो ...अब रहने दो ना रानी .... क्यों इस पचड़े में पड़ें हम, वैसे ही इतना मस्त इश्क चल रहा है अपना, मन भी नहीं भरा अब तक"

"नहीं जीजाजी, मैं रूठ जाऊंगी, आप को पहननी ही पड़ेगी मेरी पसंद की ब्रा और पैंटी" पैर पटककर ललित बोला. "अभी के अभी आप मेरे साथ मॉल चलिये, मैं अभी खरादूंगी" उसके हाव भाव से लगता था कि औरतों की तरह जिद करना भी उसने भली भांति सीख लिया था.

"अब रहने भी दो ना डार्लिंग, मुझे अजीब सा लगता है" मैंने उसको मनाने की कोशिश की.

"पर मेरे को देखना है आपको औरत बने हुए. मैं सोचती हूं तो मेरा ... याने मैं गरमा जाती हूं" ललित मुझसे चिपटकर बोला, साड़ी में से भी उसके लंड का उभार मुझे महसूस हो रहा था.

"अब बाहर जाने का मूड नहीं है रानी, यहीं देखो ना, लीना की इतनी लिंगरी पड़ी है"

ललित मुस्करा दिया "याने पहनने को तैयार हैं आप, पर बाहर तो चलना ही है, लीना दीदी की पैंटी तो आप को शायद हो जायेगी, इलेस्टिक होता है उसमें, पर ब्रा आपको कम से कम ३८ कप डी साइज़ की लगेगी. दीदी की तो बस ३४ डी है"

"यार मुझे कैसा भी तो लगता है ऐसे जाकर ब्रा खरीदना" मैंने फिर कोशिश की.

"आप बस कार से चलिये मेरे साथ वो वरली की मॉल में. आप बाहर फ़ूड कोर्ट में कॉफ़ी पीजिये, मैं तब तक सब ले आऊंगा - आऊंगी" ललित बोला. पहली बार उसने ऐसे चूक कर मर्द का वर्ब इस्तेमाल किया था. मैं समझ गया कि जनाब मेरे ऊपर जो इतना फिदा हैं वो अब एक जवान लड़के की तरह याने क्या करना चाहते हैं मेरे साथ, ये पक्का है.

फिर भी मैंने हथियार डाल दिये, उसने मुझे इतना सुख दिया था, अब बेचारे को एक दो घंटे मन की करने देने में कोई हर्ज नहीं था.

हम मॉल गये. मैंने उस अपना कार्ड दे दिया. ललित आधे घंटे में शॉपिंग करके आ गया. आठ बज गये थे इसलिये हमने डिनर भी कर लिया. घर वापस आये तो नौ बज गये थे. 

ललित ने घर आकर ड्राइंग रुम में बैग में से पैकेट निकाले. एक ब्रा का पैकेट था, एक पैंटी का, एक विग का और एक शूज़ का. मैंने कहा "ये विग क्यों लायी है ललिता रानी? अच्छा मेरा पूरा लिंग परिवर्तन करके ही मानेगी तू आज, और ये जूते?"

"जूते नहीं जीजाजी, हाई हील्स" ललित मुस्करा कर बोला.

"हाई हील? मेरे लिये? अरे पर मुझे होंगे क्या? नाप के हैं?"

"हां जीजाजी, मैंने आपकी शू साइज़ देख ली थी. ८ तो है, कोई बड़े पैर नहीं हैं आपके, आसानी से मिल गयीं आपके साइज़ की "

मैं सोचने लगा कि यह लड़का तो इसको बड़ा सीरियसली कर रहा है. उसकी आंखों में आज गजब की मस्ती और चाहत थी. दिख भी बड़ा खूबसूरत रहा था, साड़ी पहनने का अब उसे इतना अभ्यास हो गया था कि शाम से वह स्लीवलेस ब्लाउज़ और नाभिदर्शना साड़ी उसने बिना झिझक बिना सेल्फ़्कॉन्शस हुए पहनी थी. मैंने सीधे उसको उठाया और गोद में लेकर बैठ गया. नेकिंग किसिंग के दौरान लग तो रहा था कि साले को वहीं पट लिटा कर साड़ी ऊपर करके चोद मारूं पर मैंने संयम रखा, साथ ही अपने लंड को पुचकारा कि अभी रुक जा राजा, आज रात को तुझे खुली छूट दूंगा कि इस मतवाली महकती कली को आज जैसा चाहे मसल ले.

चूमा चाटी, नेकिंग, कडलिंग करते करते ललित अब ऐसा हो गया कि उससे रहा नहीं जा रहा था. आखिर वह मेरी गिरफ़्त से छूट कर खड़ा हो गया और खींच कर अंदर ले जाने लगा.

"अरे अभी तो दस भी नहीं बजे" मैंने कहा. "रात बाकी है पूरी मेरी जान अभी तो, जरा पास बैठकर चुम्मे तो दे ठीक से"

"चुम्मे चाहिये तो पहले मैं कह रही हूं वैसा कीजिये. तैयार कर दूं पहले आप को" मेरी आंखों में आंखें डाल कर ललित बड़े मादक अंदाज में बोला.

मैंने सोचा क्या मस्ती चढ़ी है इसको. मजा आयेगा. फ़िर उसको पूछा "दिखा तो क्या लाया है मॉल से?"

"अब चलिये जीजाजी, और चुपचाप सब पहनिये. फ़िर देखिये मैं आपको कैसे चो .... " अपना सेंटेंस अधूरा छोड़ कर मुझे सोफ़े पर बिठाकर ललित जाकर सब पैकेट्स उठा लाया. फ़िर वहां ड्राइंग रूम के बड़े टीवी पर एक थंब ड्राइव लगाई. "मूवी देखने का प्रोग्राम है मेरी रानी?" मैंने पूछा

"हां, आज मैंने स्पेशल मुई डाउनलोड की है, पहले आप तैयार हो जाइये, फ़िर साथ साथ देखेंगे"

मैंने उसे रोक कर कहा "ललिता डार्लिंग ... ललित ... अब सच बता ... आज रात मेरी गांड मारने का इरादा है क्या? ये सब पहना कर मुझे औरत बनाकर करेगा क्या? चोदेगा?"

"हां जीजाजी, चोदूंगा. पहले अंदर चलिये और ये सब पहनिये" मुझे धकेलकर वह अंदर ले गया. मेरे कपड़े निकालते हुए मेरे नितंबों को पकड़कर मसलते हुए ललित बोला "बहुत अच्छी लगती है मुझे आपकी गांड. इतनी कसी हुई और ठोस सॉलिड है. उस दिन जब आप भाभी और मां को चोद रहे थे तो मुझे इनका परफ़ेक्ट व्यू मिल रहा था. तभी से मैंने ठान ली थी कि आपकी गांड जरूर मारूंगा, भले मुझे कोई भी कीमत देनी पड़े. और सच जीजाजी, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, याने आपसे लड़की बनकर चुदवाने में और आपका लंड चूसने में भी मुझे बहुत मजा आता है" ललित ने अपने दिल की सारी बातें आज कन्फ़ेस कर ली थीं.
 
अब मुझे समझ में आया कि उस दिन मेरे ताईजी को चोदते वक्त क्यों ललित की आंखें मुझपर जमी थीं. मुझे लगा था कि मेरे लंड को घूर रहा है, और वैसे वो सच भी था पर साथ साथ उसे मेरे नंगे बॉटम का भी व्यू मिल रहा था.

"ठीक है मेरे राजा ... मेरी रानी ... पर एक शर्त है. अबसे दो घंटे तेरे ... जो चाहे कर ले मेरे साथ. उसके बाद सारी रात मेरी ... मैं कुछ भी करूं तेरे साथ, तू चुपचाप करवा लेगा"

"मंजूर है जीजाजी"

मेरे सारे कपड़े निकाल कर उसने पहले मुझे विग पहनाया. शोल्डर लेन्ग्थ काले बालों का विग था. मैं आइने में देखना चाहता था पर उसने मना कर दिया, बोला पूरा तैयार होने पर ही देखने दूंगा. उसके बाद उसने मेरे लंड को पकड़कर कहा "इसको जरा छिपाना पड़ेगा जीजाजी, इसलिये जरा टाइट इलेस्टिक वाली पैंटी ढूंढी है मैंने लीना दीदी की."

पैंटी टाइट थी, मेरे लिये छोटी थी, इसलिये और कसी हुई लग रही थी. मेरे लंड को पेट से सटा कर ऊपर से पैंटी का इलेस्टिक फ़िट कर दिया कि वह काबू में रहे, ज्यादा बड़ा तंबू ना बनाये.

उसके बाद ललित ने मुझे हाइ हील सैंडल पहनाये. क्या पता कहां से लाया था, सिल्वर कलर के, जरा जरा से नाजुक पट्टों वाले और चार इंच हील के. उनको पहनकर मुझे बड़ा अजीब लगने लगा, ऐसा लगा जैसे पंजों पर खड़ा हूं. चलकर देखा तो ऐसा लगा कि गिर पड़ूंगा.

"ललित डार्लिंग, ये मैं नहीं पहन सकता, वहां बाहर ड्राइंग रूम तक जाना भी मुश्किल लग रहा है, गिर पड़ूंगा जरूर"

"जीजाजी, मैं तो आपके साथ पूरी बंबई घूमी ऐसे सैंडल पहनकर, और आप बस घर के अंदर भी नहीं पहन सकते?" कहकर ललित मुझसे चिपक गया "जीजाजी, आप चलते हैं तो क्या लचकती है कमर आपकी"

मैंने कहा "चलो मेरी जान, तुम्हारी खातिर यह भी सही."

फ़िर उसने मुझे ब्रा पहनाने की तैयारी की. सफ़ेद ब्रा थी पर एकदम महंगी. लेस लगी हुई. स्ट्रैप्स भी एकदम अच्छे क्वालिटी के इलेस्टिक के थे. ब्रा के कपों में उसने स्पंज की दो कोनिकल शेप के स्पंज के गोले लगाये.

"यह कहां से लाया? यह भी खरीदे क्या?"

"ये आसानी से नहीं मिलते जीजाजी, और सेल्स गर्ल्स से मैं मिनिमम बोलना चाहता था कि आवाज पर से न पकड़ा जाऊं. वैसे मैंने आवाज लड़की जैसी बारीक कर ली थी. ये स्पंज के गोले तो मैंने आज दोपहर बनाये, वहां स्टोर रूम में पुराना पैकिंग बॉक्स था, उसमें स्पंज था. वो ले लिया"

उसने मुझे ब्रा पहनाई और स्ट्रैप तान कर पीछे से बकल लगा दिया.

"बहुत टाइट है डार्लिंग" मैंने कहा.

"साइज़ ३८ नहीं मिली मेरे मन की जीजाजी. इसलिये ३६ ले आया. और टाइट ब्रा मस्त दिखती है आपको. देखिये स्ट्रैप्स कैसे गड़ रहे हैं आपकी पीठ में. सेक्सी!" उसने मेरी पीठ का चुंबन लेते हुए कहा.

"हो गया?" मैंने पूछा.

"अभी नहीं जीजाजी, लिपस्टिक बाकी है"

"अब मैं लिपस्टिक विपस्टिक नहीं लगाऊंगा यार" मैं थोड़ा नाराज हुआ तो ललित मेरे पास आकर मुझसे लिपट गया और पंजों के बल खड़े होकर मुझे किस किया जैसे लड़कियां करती हैं, उसका एक हाथ मेरी पैंटी में छुपे लंड को सहला रहा था. मेरा रहा सहा गुस्सा ठंडा हो गया. फ़िर चुपचाप जाकर वह गहरे लाल रंग की लिपस्टिक ले आया. बड़े जतन से धीरे धीरे उसने मुझे लिपस्टिक लगायी. "अब देखिये आइने में"

मैंने देखा तो बहुत अजीब लगा. याने मैं बड़ा विद्रूप दिख रहा था ऐसा नहीं था. भले ललित की टक्कर की ना हो, पर ठीक ठाक ऊंचे पूरी भरे बदन की अधनंगी सेक्सी औरत जैसा जरूर दिख रहा था. पर किसी सुंदर खानदानी औरत जैसा नहीं, एक नंबर की चुदैल औरत जैसा. मेरा वह रूप देखकर अजीब लगते हुए भी मेरा कस के खड़ा हो गया.

ललित मेरे लंड पर पैंटी के ऊपर से हाथ फेरते हुए बोला "देखा जीजाजी! आप को भी मजा आ गया. मैं कहता था ना कि आप मस्त सेक्सी दिखेंगे"

"यार, खड़ा मेरे खुद को देख कर नहीं हुआ है, यह सोच कर हुआ है कि अब तू मेरे साथ क्या करने वाला है और मैं तेरे साथ क्या करने वाला हूं" मैंने अपने लंड को दबाने की कोशिश करते हुए कहा.

"पर जीजाजी ..." ललित बोला "मैं जो करूंगा वो आज यहां ..." मेरे नितंब पकड़कर वह बोला "फ़िर यह ..." मेरे लंड को पकड़कर उसने कहा "कैसे मस्त हो गया?"

"अब मैं क्या जानूं रानी, वैसे दोनों का रिश्ता तो है, एक खुश तो दूसरा भी खुश"

"और अब आज आपको अनिता आंटी कहूंगा जीजाई. चलिये अब बाहर चलिये, सोफ़े पर." मुझे लिपट कर उसने कस के मेरा चुंबन लिया और खींच कर बाहर ले गया, मैं हाइ हीलों पर बैलेंस करता हुआ किसी तरह उसके पीछे हो लिया, मन में सोचा कि ’ललित राजा, अब बहुत गर्मी चढ़ रही है तेरे को, उतारना पड़ेगी.’ पर उसके पहले उसको मैं अपने मन की करने देना चाहता था.

मुझे सोफ़े पर बिठाकर ललित अंदर जाकर फ़्रिज से वही मख्खन का डिब्बा ले आया. "बड़ी जोर शोर से तैयारी चल रही है ललिता डार्लिंग, आज लगता है मेरी खैर नहीं"

"और क्या अनिता आंटी! आज आप कस के चुदने वाली हैं" ललित बोला. उसने जाकर मूवी शुरू की और हम दोनों सोफ़े पर बैठकर लिपटकर आपस में मस्ती के करम करते हुए मूवी देखने लगे. ट्रानी मूई थी. याने एक ट्रानी और एक जवान मर्द. स्टोरी वोरी कुछ नहीं थी, बस सीधे गांड मारना, लंड चूसना वगैरह शुरू हो गया. वह ट्रानी भी एकदम क्यूट और सेक्सी थी, एशियन लेडीबॉय कहते हैं वह वाली. पर उसका लंड अच्छा खासा था. चूमा चाटी करते करते, एक दूसरे की ब्रा के कप मसलते हुए हम देखते रहे. जब वह ट्रानी उस मर्द पर चढ़कर उसकी गांड मारने लगी, तो ललित मानों पागल सा हो गया. मुझे नीचे सोफ़े पर गिराकर मुझपर चढ़ कर मुझे बेतहाशा चूमने लगा.

एक मिनिट में उठ कर बोला "ऐसे ही पड़े रहिये जीजाजी - सॉरी अनिता आंटी" उसने कहा और फ़िर मेरी पैंटी नीचे कर दी. मेरे पीछे बैठकर वह अब मेरे चूतड़ों को दबाने लगा. "एकदम मस्त गोरे गोरे मसल वाले कसे चूतड़ हैं आंटी" वह बोला और फ़िर झुक कर उनको चूमने लगा. अब लीना भी कभी कभी प्यार में जब मेरे बदन को किस करती है तो कई बार नितंबों पर भी करती है. पर ललित के चुंबनों में खास धार थी. चूमते चूमते उसने अपने होंठ मेरे गुदा पर लगाये और किस कर लिया. फ़िर जीभ से गुदगुदाने लगा. मुझे गुदगुदी हुई और मैंने उसका सिर हटा दिया. वह कुछ नहीं बोला पर उसकी आंखों में अब तेज कामना चमक रही थी. उसने डिब्बा खोला और मेरे गुदा में मख्खन चुपड़ने लगा. फ़िर उंगली अंदर डाल डाल कर मख्खन अंदर तक लगाने लगा.

"अरे बस रानी ... कितनी उंगली करेगी? और इस पैंटी में छेद नहीं किया जैसा कल मौसी ने तेरी पैंटी में किया था" मैं बोला. उसकी उंगली जब जब मेरी गांड में गहरी जाती थी, बड़ी अजीब सी गुदगुदी होती थी.

"अभी तो मख्खन और भरूंगी जीजाजी, वो मौसी ने कितना सारा मख्खन डाला था अंदर. आप चोद रहे थे तो कैसी ’पुच’ ’पुच’ आवाज हो रही थी. आज वैसी ही आवाज आपको चोदते वक्त ना निकाली तो मेरा नाम ललिता नहीं. अब जरा झुक कर सोफ़े को पकड़कर खड़ी हो जाइये अनिता आंटी"

मैंने फ़िर कहा "वो छेद क्यों नहीं किया ये तो बता"

"मुझे आप के गोरे गोरे चूतड़ अच्छे लगते हैं, इसलिये चोदते वक्त उनको देखना चाहता हूं, अब चलिये और खड़े हो जाइये"

"मेरी रानी, तू तो फ़ुल साड़ी में है अब तक. कपड़े तो निकाल" मैंने पोज़िशन लेते हुए कहा. एक बार और मख्खन उंगली पर लेकर मेरी गांड में उंगली डालता हुआ ललित बोला "साड़ी नहीं निकालूंगा जीजाजी, साड़ी ऊपर कर के ऐसे ही आप को चोद लूंगा. एकदम सेक्सी लगेगा. जरा आइने में तो देखिये"

मैंने बाजू के शेल्फ़ में लगे आइने में देखा. उसमें हम दोनों दिख रहे थे. साड़ी पहनी हुई एक युवती एक अधनंगी हट्टी कट्टी औरत की गांड में उंगली कर रही थी यह सीन था. अजीब टाबू करम कर रहा हूं यह जानकर मेरा और जम के खड़ा हो गया.

मैं झुक कर सोफ़े की पीठ पकड़कर खड़ा हो गया. ललित मेरे पीछे खड़ा हुआ और अपनी साड़ी ऊपर कर ली. फ़िर अपनी पैंटी थोड़ी बाजू में करके उसने अपना लंड बाहर निकाला. उसका वह पांच इंच का गोरा लंड काफ़ी सूज गया था और उछल रहा था.

मैंने कहा "अपने शिश्न पर मख्खन नहीं लगायेंगे प्राणनाथ? आपकी दासी को थोड़ी आसानी होगी"

ललित हंसने लगा "आप भी जीजाजी ... " पर उसने थोड़ा मख्खन अपने सुपाड़े पर चुपड़ लिया. फ़िर सुपाड़ा मेरे छेद पर रखकर दबाने लगा. मैंने भी सोचा कि उसे जरा हेल्प कर दूं इसलिये अपनी गांड जरा ढीली की. ललित का लंड पक्क से आधा अंदर घुस गया. मुझे भी एकदम टाइट फ़ीलिंग हुई.

’अं .. आह ... जीजाजी ... अनिता आंटी ... क्या टाइट गांड है आपकी" ललित मस्ती में चहक कर बोला.

"होगी ही ललिता रानी, आखिर तेरी ये अनिता आंटी भी कुवारी है इस मामले में" मैंने कहा और फ़िर थोड़ा धक्का दिया पीछे की तरह जैसे मेरे को मजा आ रहा हो. उधर अब वह ट्रानी उस जवान की गांड मार रही थी और वह युवक ’बगर मी डार्लिंग ... फ़क माइ आर्स’ बड़बड़ा रहा था. ललित की अब वासना से जोर जोर से सांस चल रही थी. उसने फ़िर जोर लगाया और अगले ही पल मुझे महसूस हुआ कि उसका पूरा लंड मेरी गांड में समा गया. ऐसा लगा जैसे गांड पूरी भर गयी हो.

"जीजाजी ... प्लीज़ ... अब रहा नहीं जाता ... आपको चोद ... आपकी गांड मार लूं अब?" ललित ने पूछा. बेचारा अब भी मुझसे पूछ पूछ कर रहा था, मुझे किसी भी तरह से नाराज नहीं करना चाहता था.

"मार ना डार्लिंग ... मैंने तुझे कल पूछा था तेरी मारते वक्त? वैसे पूछता तो भी तू बोल नहीं पाता ... तेरा मुंह तो मौसी के मम्मे से भरा था"
 
ललित ने मेरी कमर पकड़ी और आगे पीछे होकर धक्के लगाने लगा. मुझे जरा सा दर्द हुआ पर उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, आखिर ये मेरी पहली बार थी. वैसे लीना कभी कभी चुदते वक्त मेरी गांड में उंगली करने लगती है पर उसकी वो पतली पेंसिल जैसी उंगली और यहां ललित का खड़ा जवान लंड, भले वो मुझसे काफ़ी छोटा हो, कोई कंपेरिज़न नहीं है दोनों में.

मैंने आइने में देखा तो आइने में वो अनिता आंटी की गांड मारे जाने का सीन एक लाइव ब्ल्यू फ़िल्म जैसा लग रहा था. मेरी गांड मारते मारते ललित ने हाथ बढ़ाकर मेरी ब्रा के कप पकड़ लिये और दबाते दबाते मुझे चोदने लगा. अब वे नकली स्तन थे पर मजा लेने के लिये मैं कराहने लगा "हाय रानी ... कितनी जोर से दबाती है ... पिचका देगी क्या? .... कितनी बेरहमी से मसल रहा है रे ... पर ... अच्छा लग रहा है डार्लिंग ... दबा ना मेरी छतियां और जोर से ... हां ऐसे ही ... "

ललित के धक्के तेज हो गये, साला मेरे उन बोलों से और गरमा गया था शायद. अब ललित का लंड एकदम आसानी से मेरी गांड में फिसल रहा था और ’पुच’ ’पुच’ ’पुच’ आवाज भी हो रही थी जैसी उसे चाहिये थी. मस्ती में वह झुक कर मेरी पीठ चूमने लगा. "क्या चिकनी पीठ है आपकी जीजाजी ... अनिता आंटी ... और ये ब्रा की कसी हुए पट्टी ..." मेरी ब्रा के स्ट्रैप को दांत में पकड़कर वह सिसकते हुए बोला. "बहुत मजा आ रहा है जीजाजी ... एकदम टॉप ... अं ऽ अंऽ ... आह ..."

"मजा कर ले मेरी जान ... दिल खोल कर चोद ले अपनी आंटी को ... मार ले अपने जीजाजी की गांड ... तेरी दीदी की मारते हैं ना? ... तेरी भी मारी थी कल? ... बदला ले ले आज ... तेरे मन जैसा ’पुच’ ’पुच’ कर रही है ना मेरी गांड?" उसे उकसाने को मैं अनाप शनाप बोले जा रहा था, क्योंकि वह जिस तरह से तड़प तड़प कर अब मुझे चोद रहा था, वह बड़ा मतवाला एक्सपीरियेंस था.

अचानक उसका लंड उछलने लगा "संभाल साले ... झड़ जायेगा ... अरे जरा कंट्रोल कर ...’ मैं कहता रह गया और वहां मेरी गांड के अंदर गरम गरम फवारे छूटने लगे. हांफ़ता हुआ ललित मेरी पीठ पर ही लस्त हो गया. मैंने कुछ देर उसे वैसे ही रहने दिया कि झड़ते लंड का पूरा मजा ले ले, फ़िर सीधा हुआ और मेरी गांड से उसकी लुल्ली निकालकर उसे सोफ़े पर ले गया.

"बड़ी जल्दी ढेर हो गया ललित मेरी जान. और चोदना था ना" उसे बाहों में लेकर चूमते हुए मैंने कहा. उसने कोई जवाब नहीं दिया, बस मेरी ब्रा के कपों में अपनी चेहरा छुपा लिया.

मैंने पिक्चर पॉज़ कर दिया और ललित के बदन पर हाथ फ़ेरने लगा. मेरा बहुत कस के खड़ा था, यह अच्छा मौका था उसे वहीं लिटा कर उसकी गांड मार लेने का पर मैं आज जरा ज्यादा मूड में था, सोच रहा था कि भले थोड़ा और रुकना पड़े, जब मारूंगा तो ऐसी मारूंगा कि उसे याद रहे.

ललित के मुरझाये लंड को मैंने अपनी जांघों पर रगड़ना शुरू किया और लगातार उसे किस करता रहा. जब वह थोड़ा संभला तो मैंने कहा "अब जरा पूरी पिक्चर तो दिखा ललिता जान, तू तो पहले ही ढेर हो गयी"

"लगा लीजिये ना अनिता आंटी, रिमोट तो आपके ही पास है" ललित बोला.

"ऐसे नहीं रानी, तेरी गोद में बैठ कर पिक्चर देखना चाहती है तेरी आंटी"

ललित संभलकर सोफ़े पर बैठ गया और मैं उसकी गोद में. उसके हाथ उठाकर मैंने खुद के नकली स्तनों पर रखे और मूवी चालू कर दी. अब पिक्चर में एक और ट्रानी आ गयी थी. ये जरा ऊंची पूरी यूरोपियन ट्रानी थी. दोनों मिलकर उस जवान के पीछे लगी थीं. एक अपना लंड चुसवा रही थी और एक उसकी गांड मार रही थी.

पांच मिनिट में ललित का लंड फ़िर से आधा खड़ा होकर मेरे चूतड़ों के बीच की लकीर में धंस गया, ऊपर नीचे भी हो रहा था जैसे मुझे उठाने की कोशिश कर रहा हो. "तेरी क्रेन अभी जरा छोटी है ललिता रानी, और पॉवर बढ़ा ले तो शायद अपनी आंटी को उठा सकेगी" मैंने मुड़ कर ललित को किस करके उसके कान में कहा.

ललित अब कस कर मेरी फ़ाल्सी दबा रहा था और मेरी पीठ को चूम रहा था. मैंने पांच मिनिट उसे और गरम हो जाने दिया फ़िर पूछा "ऐसे ही बैठे बैठे मारेगा मेरी ललित राजा?" ललित ने सिर हिला कर हां कहा.

"तू बैठा रह, मैं करता हूं जो करना है" मैं जरा उठा और उसके लंड को पकड़कर उसका सुपाड़ा अपने छेद पर जमाया. फ़िर धीरे से उसके तन्नाये लंड को अंदर लेता हुआ उसकी गोद में बैठ गया. ललित तुरंत ऊपर नीचे होकर मुझे चोदने लगा. मैंने घड़ी देखी, वह लड़का सिर्फ़ बीस मिनिट में फ़िर से पूरी मस्ती में आ गया था, जवानी का कमाल था.

"अब बहुत देर मारूंगी आंटी आपकी, पिछली बार तो कंट्रोल नहीं किया मैंने पर अब चोद चोद कर आपकी ना ढीली कर दी तो देखिये" मेरी गर्दन को बेतहाशा चूमते हुए ललित बोला.

मैंने सोचा थोड़ी फिरकी ली जाये लौंडे की " ललित राजा, बेट लगायेगा?"

"कैसी बेट जीजाजी? अब तो बस आपकी मारनी है मेरे को, रात भर मारूंगा आज, आप मना नहीं करेंगे"

"वही तो बेट लगा रहा हूं. अभी ये मूवी पूरी नहीं हुई है, अब बैठे बैठे जैसा मन चाहे, मेरी मार, चोद डाल मेरे को. पर मूवी खतम होने तक नहीं झड़ना."

"लगी बेट अनिता आंटी" मुझे कस के पकड़कर नीचे से धक्के मारता हुआ ललित बोला "अगर मैं जीत गया, बिना झड़े मूवी देख ली तो रात भर आप मेरे, जैसा मैं करूं, करने देंगे"

"मंजूर. और अगर झड़ गया तो उलटा होगा. मैं रात भर जो चाहे तेरे साथ करूंगा. ठीक है?"

"ऒ के जीजाजी" कहकर ललित जरा संभलकर बैठ गया. उसके धक्के थोड़े धीमे हो गये पर अब भी वो मजा ले रहा था, बस धीरे धीरे ऊपर नीचे होकर मेरी गांड में अपना लंड जरा सा अंदर बाहर कर रहा था. मैं भी नीचे ऊपर होकर जितना हो सके उसके लंड को अंदर लेने की कोशिश कर रहा था. मेरा खुद का लंड झंडे जैसा तन कर खड़ा था. सुपाड़ा पूरा पैंटी के इलेस्टिक से बाहर आ गया था और मेरे पेट पर दबा हुआ था बड़ा मीठा टॉर्चर सा हो रहा था. बार बार लगता कि ललित को पटककर चोद डालूं पर अब बेट लगा ली थी. वैसे मुझे पूरा भरोसा था कि मैं बेट जीतूंगा पर उतना समय काटना मुश्किल हो रहा था. मैंने सोचा कि अगर हार भी जाऊं तो ललित मेरे साथ जो करेगा, उसमें मेरे को भी भरपूर मजा आने ही वाला था. इसलिये अपने लंड को मैं हाथ भी नहीं लगा रहा था कि वह रास्कल बेकाबू ना हो जाये. एक दो बार जब ललित ने उसको हाथ में लिया तो उसका हाथ हटाकर अपनी नकली चूंची पर रख दिया.

वैसे मैं चाहता तो उसे एक मिनिट में झड़ा सकता था. एक दो बार गांड सिकोड़ कर मैंने उसके लंड को दुहने की प्रैक्टिस की थी. उस वक्त वो बेचारा पागल सा हो जाता, ’अं .. अं .. आह’ करने लगता, उसका लंड उस वक्त जैसे मेरी गांड में मुठियाने लगता, उससे मुझे अंदाजा हो गया था कि मेरा ऐसा करना उसे कितना उत्तेजित कर रहा था. पर मैंने सोचा कि फ़ेयर प्ले हो जाने दो, उस लौंडे को ऐसे फंसा कर मुझे उसपर करम नहीं करना थे.

काफ़ी देर ललित बेचारा कंट्रोल करता रहा पर आखिर उसकी सहन शक्ति जवाब दे गयी, वो मूवी भी ऐसी कुछ बीडीएसेम हो गयी कि उसका कंट्रोल जाता रहा. उस पिक्चर में अब उस छोटी वाली एशियन ट्रानी की मुश्कें बांध कर वह युवक कस कस के उसकी मार रहा था. दूसरी ट्रानी खड़े खड़े उसे अपना लंड चुसवा रही थी. वो छोटी ट्रानी ऐसे चीख रही थी (झूट मूट) कि गांड फटी जा रही हो. अब मूवी का मुझे अंदाजा तो था नहीं, इसलिये जो हुआ वो बिलकुल फ़ेयरली हुआ.

उस सीन को देखकर ललित ऐसा बेकाबू हुआ कि जोर लगाकर मुझे वह सोफ़े पर पटकने की कोशिश करने लगा. जब मैं जम के बैठा रहा तो नीचे से ही कस के उछल उछल कर धक्के मार मार कर मेरी गांड मारने लगा. इस बार मैंने उसे शांत करने की कोशिश नहीं की. आखिर में अपनी वासना में उसने मेरे कंधे पर दांत जमा दिये और एकदम स्खलित हो गया. हांफ़ते जोर से सांस लेते ललित की गोद में मैं बैठा रहा कि उसे पूरा मजा मिल जाये. मूवी भी खतम होने को आयी थी. पांच मिनिट में उस छोटी ट्रानी की गांड का भुरता बना कर वह मर्द भी झड़ गया और मूवी खतम हो गयी.

पीछे मुड़ कर ललित का चुंबन लेते हुए मैंने कहा "हो गया डार्लिंग ... मजा आया?"

"हां जीजाजी ... कैसा तो भी हो रहा है लंड में ... इतनी जोर से कभी नहीं झड़ा मैं" वह सांसें भरते हुए बोला.

"चल, अब अंदर चल बेडरूम में, वहां आगे की प्यार मुहब्बत करेंगे" मेरा लंड अब तक मेरी पैंटी को हटाकर बाहर आ गया था, सूज कर किसी बड़ी मोटी ककड़ी जैसा हो गया था. उसपर ललित की नजर लगी हुई थी. उसकी नजर में चाहत भी थी और डर भी. बेट हारने पर मेरा जवाबी हमला सहने की अब उसकी बारी थी.

"जीजाजी ... एकाध और मूवी देख लें? फ़िर चलेंगे अंदर" मेरी ओर बड़ी आशा से तकता हुआ ललित बोला. मैं उठ खड़ा हुआ. उसकी नजरों के सामने ही मैंने अपन तन्नाये हुए लंड पर थोड़ा मख्खन चुपड़ा और फ़िर हाथ पोछ कर ललित को बाहों में उठा लिया, किसी दुल्हन की तरह. "मूवी तो बाद में भी देख लेंगे मेरी जान, पर मेरा जो यह लौड़ा अब मुझे पागल कर रहा है और कह रहा है कि बेट जीतने पर अब चलो, मेरा इनाम मुझे दो, उसे कैसे समझाऊं ललिता डार्लिंग" 
 
उसने मेरी गर्दन में बाहें डाल दीं और चुप चाप मेरी बाहों में पड़ा रहा. उसे मैंने अपने बेड पर ओंधा पटक दिया और फ़िर उसपर चढ़ बैठा. अपनी पैंटी निकाली पर उसके कपड़े निकालने के चक्कर में नहीं पड़ा. बस साड़ी ऊपर सरकाई और लौड़ा गाड़ दिया उन गोरे चिकने चूतड़ों के बीच. ललित किसी आधे पके सेब जैसा रसीला लग रहा था. अब मैं जिस सैडिस्टिक मूड में था, उसमें धीरे धीरे हौले हौले डालने का सवाल ही नहीं था जैसा शान्ताबाई की मदद से ललित की गांड पहली बार मारते वक्त मैंने किया था.

लंड पहली बार में ही सुपाड़े समेत आधा अंदर हो गया. ललित तड़पा, शायद चीख भी पड़ता पर उसने अपने होंठ दांतों तले दबाकर अपनी चीख दबा ली. शायद उस शरम लगी होगी कि जवान युवक होते हुए भी वह लड़की की तरह चिल्लाने वाला था. मैंने दूसरे धक्के में लंड जड़ तक उतार दिया और फ़िर अपने इस मीठे मतवाले फ़ीस्ट में जुट गया जिसके लिये इतनी देर से मैं प्यासा था.

मैंने लगातार दो बार ललित की गांड मारी. बिना कोई परवाह किये उसकी जवानी को भोगा. पहले पहले वह थोड़ा हिल डुल रहा था पर बाद में चुपचाप पड़ा पड़ा सहन करता रहा. बस बीच में मेरे लंड के स्ट्रोक कभी ज्यादा जोर से पड़ने लगते तो हल्के से कराह देता. पहली बार ही मैंने कम से कम बीस पच्चीस मिनिट उसको चोदा होगा, लगता है कि अगर लंड ज्यादा देर खड़ा रहे तो जैसे झड़ना ही भूल जाता है.

स्खलित होने के बाद भी मैं उसपर पड़ा रहा, उसे छोड़ा नहीं, बस पटापट उसका सिर अपनी ओर घुमा घुमा कर चुम्मे लेता रहा. आधे घंटे में मेरा लंड फ़िर तन्ना कर उसकी चुदी हुई गांड में अपने आप उतर गया, और मैंने उसे फ़िर दूसरी बार चोद डाला.

रात को नींद में भी मैंने उसे चिपटाये रखा, बीच बीच में उसे नीचे गद्दी जैसा लेकर उसपर सो जाता था. सुबह नींद खुली, तो लंड फ़िर कस के खड़ा था, जैसे उसे पागलपन का दौर पड़ रहा हो. ललित बेचारा गहरी नींद सोया था. एक बार उसपर दया आई, लगा कि अब छोड़ दूं पर फ़िर नजर दिन की रोशनी में दमकती उसकी गोरी गोरी गांड पर पड़ी, उसकी साड़ी नींद में फ़िर ऊपर हो गयी थी. इतनी लाजवाब मिठाई थी कि मेरा मन फ़िर डोल गया. उसे हौले से पट लिटा कर मैं उसके बदन के दोनों ओर घुटने टेक कर बैठ गया और फ़िर सुपाड़ा उसके गुदा पर रखकर अंदर कर दिया. मख्खन की बची खुची लेयर इतनी थी कि मेरा लंड आसानी से अंदर घुस गया. जब तक उसकी नींद खुलती, मेरा पूरा लंड अंदर हो गया था.

"ओह जीजाजी ... दुखता है प्लीज़ ..." ललित कराह कर बोला पर मैंने ध्यान नहीं दिया. उसने एक दो बार और कहा पर मैं इतनी मस्ती में था कि बिना परवा किये उसपर चड़ कर उसके बदन को अपने हाथों पैरों में जकड़कर हचक हचक कर उसकी गांड मारता रहा. मैं मूड में हूं यह देखकर वह भी बस चुपचाप पड़ा रहा.

उस सुबह की चुदाई में जो मिठास थी, याने मेरे लिये, वो सबसे ज्यादा थी. लंड में अजीब से जिद पैदा हो गयी थी, कुछ भी करके यह आनंद लूटना है यह जिद. वह चुदाई दस एक मिनिट चली होगी पर उसकी फ़ीलिंग बहुत इंटेंस थी.

मुझे फ़िर नींद लग गयी. सो कर उठा तो नौ बज गये थे. ललित पहले ही उठ गया था, शायद नहा भी लिया था. मैंने चाय बनाई. वह आया और चुपचाप चाय पीने लगा.

मैंने उसे पास खींचकर कहा "सॉरी यार"

"सॉरी क्यों जीजाजी?" उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा.

"जरा ज्यादा ही मसल डाला मैंने तेरे को. अब क्या करूं, तेरा जोबन ऐसा निखर आया था कि रहा ही नहीं गया. वो क्या है, कभी कभी टेस्टी मिठाई धीरे धीरे खाकर मजा नहीं आता, बकाबक खाने का मन होता है. वैसा ही हुआ. अब नहीं करूंगा, कल काफ़ी जी भर के जीमा है मैंने" ललित के गाल को सहला कर मैंने कहा.

वो चुप था, बस थोड़ा मुस्करा दिया.

"तेरे को दर्द तो हुआ होगा, वैसे ठीक है ना, सच में फाड़ तो नहीं दी मैंने तेरी?"

"करीब करीब फाड़ ही दी जीजाजी, असल में कल रात को मेरे को पता चला कि गांड फटना याने क्या है. पर जीजाजी .... मजा भी आ रहा था ... बहुत अच्छा लग रहा था .... और फ़िर मैंने भी तो आप की मारी ना दो बार."

"हां यार ... वैसे मुझे नहीं लगा था कि तू यह भी करेगा"

"वो क्या है जीजाजी, वहां घर में कोई नहीं मारने देता, ना मां, ना मीनल भाभी, लीना दीदी या राधाबाई से तो पूछते भी डर लगता है ... इसलिये ...."

"इसलिये मेरे पर हाथ साफ़ कर लिया, तू दिखता है उतना सीधा नहीं है ललित" मैंने उसका कान पकड़कर कहा.

"और जीजाजी ... जब आप इतनी कस के मार रहे थे ... आपका सांड जैसा खड़ा हो गया था, तब मुझे ये भी लगा कि मुझे देख कर आप का इतना खड़ा हो गया ... याने मस्ती भर गयी नस नस में. अगर सच में लड़की होता तो पूरा कुरबान हो जाता अगर आप ऐसे चोदते मेरे को"

उत्तरार्ध



इस बात को अब हफ़्ता हो गया है. ललित कल ही वापस चला गया. लीना तीन चार दिन और रहेगी वहां, शायद छोटे भाई के साथ समय बिताने का मौका नहीं मिला अब तक इसलिये.

पिछले हफ़्ते में हमने क्या रंगरेलियां मनाईं, हिसाब नहीं. पर अधिकतर शान्ताबाई के साथ, हम तीनों ने मिलकर, मैं, ललित और शान्ताबाई. शान्ताबाई रोज लंच टाइम में आती थीं और शाम को आठ बजे जाती थीं, मेरे ऑफ़िस से लौटने के दो घंटे बाद. ललित को सब से ज्यादा मजा आया होगा, दोपहर शाम और रात को लगातार चुदाई.

वैसे उसे बेट से मुक्त कर दिया मैंने. एक ऐपल का लैपटॉप भी ला दिया. बंदा खुश हो गया. और उसके ये लड़की के कपड़े दिन भर पहनना भी कम कर दिया. मैं नहीं चाहता कि वो लड़की ही बन जाये, आखिर उसका भी फ़र्ज़ बनता है अपनी मां और भाभी के प्रति, खासकर जब उसका बड़ा भाई हेमन्त यहां नहीं है. और उसकी गांड मारना भी मैंने कम कर दिया. साले को लत ना पड़ जाये, मैं चाहता हूं कि वह ऐसा ही जवान मस्ताना नौजवान लड़का बन कर रहे, और बस कभी कभी मुझे साली का सुख दे दिया करे.


दो महने बाद


लीना के आने के बाद हमारी यहां की जिंदगी फ़िर से शुरू हो गयी. मुझे लगा था वैसे लीना ने मेरे और ललित के बारे में ज्यादा नहीं पूछा कि तुम लोगों ने यहां अकेले में क्या हंगामा किया. शायद उसे ललित ने बता दिया होगा या वो समझ गयी होगी. वैसे उसका मूड अब बहुत अच्छा है. करीब करीन तीन हफ़्ते मां के यहां रहकर उसे मन चाहा आरम और सुख मिला होगा. मीनल भाभी और राधाबाई ने भी खूब लाड़ किया होगा.

अब खास बात यह है जल्दी ही हमारे लाइफ़ में बड़े चेन्जेस आने वाले हैं.

हेमन्त को दो साल के लिये कैनेडा जाना है. वह मीनल और अपनी बच्ची को लेकर अगले ही महने जाने वाला है. जाते वक्त यहां हमारे यहां हफ़्ते भर रहने वाला है. लीना ने अभी से मुझे हिंट कर दिया है कि अब बड़ा भाई दो साल नहीं मिलेगा इसलिये वह पूरा हफ़्ता ज्यादातर उसके साथ बिताना चाहेगी. फ़िर मुझे यह भी बोली, कि मैं चिंता ना करूं, मैं बोर नहीं होऊंगा, मीनल भाभी को बंबई घूमना है, सो मैं घुमा दूं, और टाइम पास करने में उसकी सहायता करू. अब मीनल के साथ एक हफ़्ता करीब करीब अकेले में मिलना याने इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है.

पर उससे भी बड़ी खुशी की बात जल्दी ही पता चली. हेमन्त और मीनल अब नहीं रहेंगे इसलिये लीना ने डिसाइड किया है कि उसकी मां और छोटे भाई का वहां उसके मायके वाले घर में अकेले रहने का कोई मतलब नहीं है. इसलिये मार्च के बाद जब ललित के फ़ाइनल एग्ज़ाम हो जायेंगे, ताईजी और ललित यहां हमारे यहां आकर रहेंगे. ललित को यहां के कॉलेज में एडमिशन मिल जायेगा. हमारा घर भी बड़ा है, चार बेडरूम का, कोई परेशानी नहीं होगी. वैसे अगर एक बेडरूम का भी होता तो कोई परेशानी नहीं होती, मुझे नहीं लगता किसी भी रात में एक से ज्यादा बेडरूम यूज़ होगा.

शान्ताबाई के काम पर क्या असर पड़ेगा, यह सवाल है. पर लीना को नहीं लगता कि कोई प्रॉब्लम होगा. ललित की तो पहचान है ही शान्ताबाई से, रहीं मांजी, उनकी भी जल्दी हो जायेगी. जैसे वहां राधाबाई, वैसे यहां शान्ताबाई.

राधाबाई नहीं आने वाली हैं, वे शायद अपने गांव लौट जायेंगी, अपने भाई और उसकी बीवी के यहां. जाने के पहले वे दो हफ़्ते के लिये यहां आने वाली हैं. मजा आयेगा. खास कर मुझे देखना है कि उनमें और शान्ताबाई में कैसी जमती है. वैसे दोनों करीब करीन बहनें ही लगती हैं, राधाबाई बड़ी बहन, उमर में बड़ी और बदन से भी बड़ी. उनकी जुगलबंदी अगर जम जाये और देखने मिले तो इससे अच्छी कोई ब्ल्यू फ़िल्म हो ही नहीं सकती.

ललित आ रहा है इससे अब इस मस्ती वाली जिंदगी में थोड़ी धार आ जायेगी. यहां उसके साथ दस दिन जो धमचौकड़ी की वो रिपीट करने का मेरा इरादा नहीं है. उस वक्त तो ऐसा था जैसे पहली बार कोई तीखा चटपटा पकवान खाया हो. अब यह पकवान बस कभी कभी खाने में ही मजा है यह तय है, और वह भी जरा छिपा कर, कभी सबसे नजर बचाकर एकाध दो घंटे अकेले में मिलें तब.

वैसे एक बात है, जो मुझे ज्यादा एक्साइटिंग लग रही है. उन भाई बहन की इतनी जमती है कि ललित का ज्यादा समय लीना के साथ ही जाने वाला है, और शान्ताबाई भी उसे छोड़ेगी नहीं, उसके तो दिल में उतर गया है ललित. अब अगर ये तीनों आपस में बिज़ी हों तो ताईजी के साथ, लीना की मां के साथ मुझे ज्यादा समय बिताने का मौका मिलेगा, ऐसी मेरी आशा है. उनपर तो मैं मर मिटा हूं, क्या ब्यूटी है, क्या मुलायम बदन है, क्या स्वीट नेचर है, मेरा तो इश्क हो गया है उनसे, पर लीना से संभालकर ही करना पड़ेगा.

मुझे खास इन्टरेस्ट है अब उनकी गोरी गुदाज गांड में. अब तक अछूती है, लीना के वीटो के बाद मैंने भी उन तीन दिनों में ट्राइ नहीं किया, पर अब अगर साथ रहेंगी तो मेरी मिन्नत पर जरूर ध्यान देंगी ये आशा है. और अब भी मेरा प्लान है कि उनको कोकण दर्शन पर ले जाऊंगा, अकेले. दो चार रातें होटल में गुजरेंगी, उन रातों में सिर्फ़ वे और मैं ...



--- समाप्त ---
 
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