hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
उनके जाने के बाद मुझे गहरे नींद लग गयी. नींद खुली तो फ़्रेश लग रहा था. मैंने पजामा कुर्ता पहना और बाहर आ गया. पहली बार मैं अपने कमरे से बाहर निकला था. बाहर कोई नहीं था. मैंने सोचा कहां गये ये सब! एक कमरा खुला था, उसमें गया तो मीनल का कमरा था. बिस्तर पर मीनल की एक साल की बच्ची हाथ में बोतल धरे आराम से दूध पी रही थी. पास ही मीनल के उतारे कपड़े याने साड़ी ब्लाउज़ ब्रा वगैरह पड़े थे. मैंने ब्रा उठा कर देखी, मेरा बड़ा इन्टरेस्ट रहता है ब्रा में, स्त्रियों का सबसे प्यारा अंगवस्त्र यही है. वहा सुबह वाली लाल लेस की ब्रा थी. मैंने इधर उधर देखा कि कोई है तो नहीं और फ़िर उठा कर सूंघ ली, सेंट और मीनल के बदन की खुशबू थी उसमें. लंड खड़ा होने लगा.
ध्यान बटाने को मैं सोनू को खिलाने लगा. बड़ी प्यारी बच्ची थी "हेलो सोनू ... अकेली खेल रही है .... मां कहां है ... अपनी नन्ही मुन्नी को छोड़कर मां कहां गयी ..." सोनू ने बस मुंह से ’गं’ ’गड़’ ऐसे आवाज निकाले और फ़िर दूध पीने में जुट गयी. मैंने सोचा कितनी अच्छी बच्ची है, रो रो के मां को तंग नहीं करती.
मैं कमरे के बाहर आया. सब दरवाजे बंद थे. एक दरवाजा खोला, अंदर मोटर साइकिल के पोस्टर दिखे तो सोचा ललित का कमरा है शायद. अंदर गया तो अंदर मस्त नजारा था. ललित को नीचे बिस्तर पर चित लिटा कर हमारी प्राणप्रिया लीना उसपर चढ़ी हुई थी. गाउन कमर के आस पास खोंस लिया था और आराम से मजे ले लेकर अपने छोटे भाई को चोद रही थी. उसका यह खास अंदाज है, जब बहुत देर मस्ती करना होती है तो ऐसे ही हौले हौले चोदती है मेरी रानी! और मीनल वहीं उनके बाजू में बैठी हुई थी. मीनल और लीना दोनों ने पुराना गाउन पहन रखा था, चेहरे पर ककड़ी का लेप लगा था, शायद बाहर जाने के लिये मेकप की तैयारी चल रही थी.
ललित बेचारा थोड़ा परेशान था, सच में काफ़ी नाजुक सा लगता है. मजा ले रहा था पर थोड़ा भुनभुना रहा था "दीदी ... प्लीज़ बस करो ना ... ये चौथी बार है सुबह से ... मैं सच में थक गया ... कितना तंगाती हो" वैसे ये भुनभुनाना नाम के वास्ते था, बंदा मजे ले रहा था. जीन की खुली ज़िप में से उसका खड़ा लंड निकला हुआ था, लीना जब ऊपर होती तो साफ़ दिखता था.
मुझे देखकर बेचारा चौंक गया, लीना की ओर देखने लगा कि दीदी, अब बस करो. पर लीना ने कोई परवाह नहीं की, चोदती रही. ललित ने कहा "दीदी ... अब ..." लीना ने मुड़ कर मीनल से कहा "भाभी इसका मुंह तो बंद करो, कुछ दे दो इसके मुंह में, फालतू खिट पिट कर रहा है. और ललित मैंने पहले ही कहा था तेरे से कि इतने दिन बाद दीदी की गिरफ़्त में आया है तो ऐसे ही छोड़ दूं तेरे को? और इतना शरमा क्यों रहा है? मां तो कह रही थी कि बार बार पूछता था कि दीदी और जीजाजी कब आ रहे हैं?"
मीनल ने गाउन के बटन खोले और झुक कर अपनी चूंची ललित के मुंह में ठूंस दी. उसने एक दो बार ’गों’ ’गों’ किया पर फिर चुपचाप स्तनपान करने लगा. मीनल के उन भरे गुदाज स्तनों को देखकर दिल बाघ बाघ हो गया, ललित से मुझे जलन भी होने लगी.
"क्यों जीजाजी, आराम हो गया? हम तो राह ही देख रहे थे आपके उठने की. राधाबाई आज आपको नाश्ता कराके आयीं तो इतनी थकी लेग रही थीं पर एकदम खुश थीं. हमें डांट कर कह गयीं कि जमाईराजा को आराम करने देना, उठाना नहीं. लगता है आप ने बहुत इंप्रेस कर दिया है उनको" ललित को दूध पिलाते हुए मीनल बोली.
"अब भाभी, इनसे बातें करने में क्यों वक्त जाया कर रही है? सूखी सूखी बैठी है, मुझे कह रही थी कि सुबह मन नहीं भरा अनिल के साथ, जल्दी करनी पड़ी. तो अब चढ़ जा उसे यहां लिटा कर. ये भूल जा कि ये जमाई वमाई हैं, चुदासी लगी है और लंड सामने है तो मजा कर ले. और भाभी, ललित को सारा ना पिला देना. मेरा सैंया कहेगा कि मैंने क्या पाप किया है कि मुझे यह अमरित नहीं दे रहा कोई" लीना मेरी ओर देखकर शोखी से मुस्कराते हुए बोली.
मीनल को बात जच गयी. उसने मुझे बैठने को कहा. मैं वहीं पलंग के किनारे पर बैठ गया. दो मिनिट ललित को स्तनपान करवाकर मीनल उठी और ललित को सरकने को कहा. ललित बेचारा किसी तरह लीना को अपने ऊपर लिये लिये ही सरक गया. मीनल ने मुझे वहीं उसके बाजू में लिटा दिया "मैंने कहा था ना अनिल कि तुम लोगों का खास कर तुम्हारा घंटे घंटे का टाइम टेबल हमने बना कर रखा है. अब आगे आधे घंटे का प्रोग्राम यही है"
---
मीनल ने मेरे पजामे के बटन खोलकर मेरा लंड बाहर निकाला. पहले ही खड़ा था, उसके मुलायम हाथ लगते ही और टनटना गया. उसने गाउन ऊपर किया और चढ़ बैठी. लंड को चूत में खोंसते हुए बोली. "बहुत अच्छा हुआ जीजाजी कि आप उठ गये नहीं तो सब टाइम टेबल गड़बड़ा जाता. वैसे भी आधा घंटा ये ककड़ी का लेप लगा कर रखना है धोने के पहले, इस लीनाने तो इंतजाम कर लिया था आधा घंटा बिताने का, अब आप आये हो, तो मेरा भी हो गया."
उधर बेचारा ललित ’ओह’ ’ओह’ करने लगा. बेचारे का लंड शायद गर्दन झुकाने वाला था. लीना ने उसके कान मरोड़े और कहा "खबरदार ... अभी नहीं ... मार खायेगा ... अभी मेरा नहीं हुआ"
ललित सिसकने लगा "दीदी ... प्लीज़ ... प्लीज़"
मीनल ने मुझे चोदते चोदते अपना पैर आगे करके ललित को गाल को लाड़ से अपने अंगूठे से सहलाते हुए कहा "ऐसे दीदी को मझदार में नहीं छोड़ते ललित राजा. जरा मन लगा कर सेवा कर ना. जब वो नहीं थी तो उसके नाम की माला जपता था, अब वो आ गयी है तो जरा मन की कर उसके. ऐसा क्यों सिसक रहा है? दर्द हो रहा है? मजा नहीं आ रहा?"
"नहीं भाभी ... बहुत ... मजा ... आ रहा ... है .... रहा नहीं ... जाता ... दीदी बहुत ... तड़पाती है ... दीदी प्लीज़ झड़ा दो ना"
लीना बड़े वहशी मूड में थी. उसने अपना पैर उठाकर अपने पैर की उंगलियां ललित के होंठों पर रख दीं और अंगूठा और एक दो उंगलियां उसके मुंह में ठूंस दीं. बेचारा ललित ’गं’ ’गं’ करके चुप हो गया. अब वो ऐसी मस्ती में था कि और कुछ नहीं सूझा तो लीना के पैर की उंगलियां ही चूसने लगा.
लीना ने मेरी ओर देखा और मीनल से बोली "अब जरा पिला दे ने मेरे सैंया को. बचा है ना? कि सब ललित को पिला दिया? वैसे भी आज कम पड़ने ही वाला था, मैंने जो दो बार पी लिया सुबह से"
"नहीं लीना दीदी ..." मीनल इठलाते हुए बोली. "एक खाली हो गया पर दूसरा अभी भरा है. जीजाजी, आप ही देखिये" मीनल ने मेरे सिर के नीचे दो बड़े तकिये रखे कि मेरा सिर ऊपर हो जाये. फ़िर चोदते चोदते मेरे ऊपर झुक गयी. उसका स्तन अब मेरी चेहरे के सामने लहरा रहा था. मैंने गर्दन लंबी करके निपल मुंह में ले लिया और चूसने लगा. कुनकुने दूध से मुंह भर गया. मैं चुपचाप आंख बंद करके उस अमरित का पान करने लगा. जल्द ही पता चल गया कि सब मीनल के पीछे क्यों रहते थे. अजब स्वाद था इस दूध का, और स्वाद से ज्यादा किसी जवान औरत का दूध सेक्स करते करते पीने में जो मादकता का अनुभव होता था, उसका बयान करना मुश्किल है.
आधा घंटा ये मस्ती चली. दोनों चुदैलें एकदम एक्सपर्ट थीं. हमें बिना झड़ाये खुद झड़ कर अपनी अगन शांत कर ली. जब आधा घंटा हो गया तो मेकप धोने के पहले हमें चोदने दिया. मैं और ललैत पहले ही ऐसे कगार पर कि दो मिनिट भी नहीं लगे.
लीना उठकर नहाने को बाथ रूम जाते हुए बोली "अनिल, अब तैयार हो जाओ तुम भी. बड़े घर जाना है, वहां पूजा है. रात को भी वहीं रहना होगा, सीधे सुबह वापस आयेंगे. वहां जरा ठीक से अच्छे बच्चे जैसे रहना, शैतानी मत करना, तुम्हें तकलीफ़ ना हो इसलिये आज तुम्हारे लंड महाराज को पूरा तृप्त कर दिया है सबने मिलके. अब उसे जरा सुलाये रखना, नहीं तो आओगे रात को फ़िर से लप लप करते"
मैंने जरा नाराज होकर कहा "अब इतना गया गुजरा भी नहीं हूं. मान लिया कि तुम्हारा और अब ममी और मीनल भाभी का भी दीवाना हूं पर इतना कंट्रोल कर सकता हूं. पर ये जरूरी है क्या वहां जाना? कल रात को वापस भी जाना है ट्रेन से, मुझे जॉइन करना है"
लीना ने मुझे पहले ही बता रखा था. बड़ा घर याने जहां लीना के दादा दादी और बाकी सब सदस्य रहते थे. शहर के बाहर गांव में बड़ा मकान था, करीब बीस मील दूर होगा. वहां जरा कड़क डिसिप्लिन का माहौल रहता था. कोई ताज्जुब नहीं कि लीना और उसका परिवार अलग रहते थे, उनके जैसे परिवार को सबसे साथ रहना भी मुमकिन नहीं था. पर खास मौकों पर रिश्तेदारी निभाना जरूरी थी.
लीना ने मेरे कान खींचते हुए कहा "आवाज चढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है, तुम कंट्रोल ना करके देखो, तुम्हारी कैसी हालत करती हूं देखना"
ध्यान बटाने को मैं सोनू को खिलाने लगा. बड़ी प्यारी बच्ची थी "हेलो सोनू ... अकेली खेल रही है .... मां कहां है ... अपनी नन्ही मुन्नी को छोड़कर मां कहां गयी ..." सोनू ने बस मुंह से ’गं’ ’गड़’ ऐसे आवाज निकाले और फ़िर दूध पीने में जुट गयी. मैंने सोचा कितनी अच्छी बच्ची है, रो रो के मां को तंग नहीं करती.
मैं कमरे के बाहर आया. सब दरवाजे बंद थे. एक दरवाजा खोला, अंदर मोटर साइकिल के पोस्टर दिखे तो सोचा ललित का कमरा है शायद. अंदर गया तो अंदर मस्त नजारा था. ललित को नीचे बिस्तर पर चित लिटा कर हमारी प्राणप्रिया लीना उसपर चढ़ी हुई थी. गाउन कमर के आस पास खोंस लिया था और आराम से मजे ले लेकर अपने छोटे भाई को चोद रही थी. उसका यह खास अंदाज है, जब बहुत देर मस्ती करना होती है तो ऐसे ही हौले हौले चोदती है मेरी रानी! और मीनल वहीं उनके बाजू में बैठी हुई थी. मीनल और लीना दोनों ने पुराना गाउन पहन रखा था, चेहरे पर ककड़ी का लेप लगा था, शायद बाहर जाने के लिये मेकप की तैयारी चल रही थी.
ललित बेचारा थोड़ा परेशान था, सच में काफ़ी नाजुक सा लगता है. मजा ले रहा था पर थोड़ा भुनभुना रहा था "दीदी ... प्लीज़ बस करो ना ... ये चौथी बार है सुबह से ... मैं सच में थक गया ... कितना तंगाती हो" वैसे ये भुनभुनाना नाम के वास्ते था, बंदा मजे ले रहा था. जीन की खुली ज़िप में से उसका खड़ा लंड निकला हुआ था, लीना जब ऊपर होती तो साफ़ दिखता था.
मुझे देखकर बेचारा चौंक गया, लीना की ओर देखने लगा कि दीदी, अब बस करो. पर लीना ने कोई परवाह नहीं की, चोदती रही. ललित ने कहा "दीदी ... अब ..." लीना ने मुड़ कर मीनल से कहा "भाभी इसका मुंह तो बंद करो, कुछ दे दो इसके मुंह में, फालतू खिट पिट कर रहा है. और ललित मैंने पहले ही कहा था तेरे से कि इतने दिन बाद दीदी की गिरफ़्त में आया है तो ऐसे ही छोड़ दूं तेरे को? और इतना शरमा क्यों रहा है? मां तो कह रही थी कि बार बार पूछता था कि दीदी और जीजाजी कब आ रहे हैं?"
मीनल ने गाउन के बटन खोले और झुक कर अपनी चूंची ललित के मुंह में ठूंस दी. उसने एक दो बार ’गों’ ’गों’ किया पर फिर चुपचाप स्तनपान करने लगा. मीनल के उन भरे गुदाज स्तनों को देखकर दिल बाघ बाघ हो गया, ललित से मुझे जलन भी होने लगी.
"क्यों जीजाजी, आराम हो गया? हम तो राह ही देख रहे थे आपके उठने की. राधाबाई आज आपको नाश्ता कराके आयीं तो इतनी थकी लेग रही थीं पर एकदम खुश थीं. हमें डांट कर कह गयीं कि जमाईराजा को आराम करने देना, उठाना नहीं. लगता है आप ने बहुत इंप्रेस कर दिया है उनको" ललित को दूध पिलाते हुए मीनल बोली.
"अब भाभी, इनसे बातें करने में क्यों वक्त जाया कर रही है? सूखी सूखी बैठी है, मुझे कह रही थी कि सुबह मन नहीं भरा अनिल के साथ, जल्दी करनी पड़ी. तो अब चढ़ जा उसे यहां लिटा कर. ये भूल जा कि ये जमाई वमाई हैं, चुदासी लगी है और लंड सामने है तो मजा कर ले. और भाभी, ललित को सारा ना पिला देना. मेरा सैंया कहेगा कि मैंने क्या पाप किया है कि मुझे यह अमरित नहीं दे रहा कोई" लीना मेरी ओर देखकर शोखी से मुस्कराते हुए बोली.
मीनल को बात जच गयी. उसने मुझे बैठने को कहा. मैं वहीं पलंग के किनारे पर बैठ गया. दो मिनिट ललित को स्तनपान करवाकर मीनल उठी और ललित को सरकने को कहा. ललित बेचारा किसी तरह लीना को अपने ऊपर लिये लिये ही सरक गया. मीनल ने मुझे वहीं उसके बाजू में लिटा दिया "मैंने कहा था ना अनिल कि तुम लोगों का खास कर तुम्हारा घंटे घंटे का टाइम टेबल हमने बना कर रखा है. अब आगे आधे घंटे का प्रोग्राम यही है"
---
मीनल ने मेरे पजामे के बटन खोलकर मेरा लंड बाहर निकाला. पहले ही खड़ा था, उसके मुलायम हाथ लगते ही और टनटना गया. उसने गाउन ऊपर किया और चढ़ बैठी. लंड को चूत में खोंसते हुए बोली. "बहुत अच्छा हुआ जीजाजी कि आप उठ गये नहीं तो सब टाइम टेबल गड़बड़ा जाता. वैसे भी आधा घंटा ये ककड़ी का लेप लगा कर रखना है धोने के पहले, इस लीनाने तो इंतजाम कर लिया था आधा घंटा बिताने का, अब आप आये हो, तो मेरा भी हो गया."
उधर बेचारा ललित ’ओह’ ’ओह’ करने लगा. बेचारे का लंड शायद गर्दन झुकाने वाला था. लीना ने उसके कान मरोड़े और कहा "खबरदार ... अभी नहीं ... मार खायेगा ... अभी मेरा नहीं हुआ"
ललित सिसकने लगा "दीदी ... प्लीज़ ... प्लीज़"
मीनल ने मुझे चोदते चोदते अपना पैर आगे करके ललित को गाल को लाड़ से अपने अंगूठे से सहलाते हुए कहा "ऐसे दीदी को मझदार में नहीं छोड़ते ललित राजा. जरा मन लगा कर सेवा कर ना. जब वो नहीं थी तो उसके नाम की माला जपता था, अब वो आ गयी है तो जरा मन की कर उसके. ऐसा क्यों सिसक रहा है? दर्द हो रहा है? मजा नहीं आ रहा?"
"नहीं भाभी ... बहुत ... मजा ... आ रहा ... है .... रहा नहीं ... जाता ... दीदी बहुत ... तड़पाती है ... दीदी प्लीज़ झड़ा दो ना"
लीना बड़े वहशी मूड में थी. उसने अपना पैर उठाकर अपने पैर की उंगलियां ललित के होंठों पर रख दीं और अंगूठा और एक दो उंगलियां उसके मुंह में ठूंस दीं. बेचारा ललित ’गं’ ’गं’ करके चुप हो गया. अब वो ऐसी मस्ती में था कि और कुछ नहीं सूझा तो लीना के पैर की उंगलियां ही चूसने लगा.
लीना ने मेरी ओर देखा और मीनल से बोली "अब जरा पिला दे ने मेरे सैंया को. बचा है ना? कि सब ललित को पिला दिया? वैसे भी आज कम पड़ने ही वाला था, मैंने जो दो बार पी लिया सुबह से"
"नहीं लीना दीदी ..." मीनल इठलाते हुए बोली. "एक खाली हो गया पर दूसरा अभी भरा है. जीजाजी, आप ही देखिये" मीनल ने मेरे सिर के नीचे दो बड़े तकिये रखे कि मेरा सिर ऊपर हो जाये. फ़िर चोदते चोदते मेरे ऊपर झुक गयी. उसका स्तन अब मेरी चेहरे के सामने लहरा रहा था. मैंने गर्दन लंबी करके निपल मुंह में ले लिया और चूसने लगा. कुनकुने दूध से मुंह भर गया. मैं चुपचाप आंख बंद करके उस अमरित का पान करने लगा. जल्द ही पता चल गया कि सब मीनल के पीछे क्यों रहते थे. अजब स्वाद था इस दूध का, और स्वाद से ज्यादा किसी जवान औरत का दूध सेक्स करते करते पीने में जो मादकता का अनुभव होता था, उसका बयान करना मुश्किल है.
आधा घंटा ये मस्ती चली. दोनों चुदैलें एकदम एक्सपर्ट थीं. हमें बिना झड़ाये खुद झड़ कर अपनी अगन शांत कर ली. जब आधा घंटा हो गया तो मेकप धोने के पहले हमें चोदने दिया. मैं और ललैत पहले ही ऐसे कगार पर कि दो मिनिट भी नहीं लगे.
लीना उठकर नहाने को बाथ रूम जाते हुए बोली "अनिल, अब तैयार हो जाओ तुम भी. बड़े घर जाना है, वहां पूजा है. रात को भी वहीं रहना होगा, सीधे सुबह वापस आयेंगे. वहां जरा ठीक से अच्छे बच्चे जैसे रहना, शैतानी मत करना, तुम्हें तकलीफ़ ना हो इसलिये आज तुम्हारे लंड महाराज को पूरा तृप्त कर दिया है सबने मिलके. अब उसे जरा सुलाये रखना, नहीं तो आओगे रात को फ़िर से लप लप करते"
मैंने जरा नाराज होकर कहा "अब इतना गया गुजरा भी नहीं हूं. मान लिया कि तुम्हारा और अब ममी और मीनल भाभी का भी दीवाना हूं पर इतना कंट्रोल कर सकता हूं. पर ये जरूरी है क्या वहां जाना? कल रात को वापस भी जाना है ट्रेन से, मुझे जॉइन करना है"
लीना ने मुझे पहले ही बता रखा था. बड़ा घर याने जहां लीना के दादा दादी और बाकी सब सदस्य रहते थे. शहर के बाहर गांव में बड़ा मकान था, करीब बीस मील दूर होगा. वहां जरा कड़क डिसिप्लिन का माहौल रहता था. कोई ताज्जुब नहीं कि लीना और उसका परिवार अलग रहते थे, उनके जैसे परिवार को सबसे साथ रहना भी मुमकिन नहीं था. पर खास मौकों पर रिश्तेदारी निभाना जरूरी थी.
लीना ने मेरे कान खींचते हुए कहा "आवाज चढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है, तुम कंट्रोल ना करके देखो, तुम्हारी कैसी हालत करती हूं देखना"