hotaks444
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कुछ देर तक मैं विशाल का इंतेज़ार करती रही मगर वो नहीं आया.......फिर मैने मम्मी के मोबाइल पर कॉल किया तो पता लगा कि ट्रेन एक घंटे लेट है......मैं जितनी जल्दी चाहती थी विशाल घर पर आए वो उतना ही लेट हो रहा था........मैं कुछ देर तक वैसे ही इधेर उधेर टहलती रही फिर मैने मेन डोर का दरवाज़ा जाकर खोला तो एक बार फिर से मुझे निराशा ही हाथ लगी.......विशाल अभी भी नहीं आया था.....कुछ देर तक मैं उसकी राह तकती रही फिर मैं मैंन डोर का दरवाज़ा ऐसे ही सटा कर अपने कमरे में आ गयी और अपने हाथों में मेहंदी लगाने लगी.........
विशाल का इंतेज़ार करते मुझे पूरा एक घंटा बीत चुका था.........अब तक मैं अपने दोनो हाथों में मेहंदी भी लगा चुकी थी.......इस वक़्त भी मैं वही अपने कमरे में ड्रेसिंग टेबल के पास बैठी हुई अपने आप को शीशे में निहार रही थी.........तभी थोड़े देर बाद मुझे मेन डोर खुलने की आहट सुनाई दी और इधेर मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी............
उसकी आवाज़ सुनकर मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़कने लगा.......मेरा गला पता नहीं क्यों बार बार सुख रहा था........जैसे जैसे विशाल मेरे कमरे के करीब आता जा रहा था वही मेरे दिल में बेचैनी भी साथ साथ बढ़ती जा रही थी.......आख़िरकार वो घड़ी भी आ गयी जब विशाल मेरे कमरे के पास पहुँच कर मुझे आवाज़ दी......
जैसी ही विशाल की नज़र मुझपर पड़ी वो कुछ पल तक मुझे अपनी आँखे फाडे ऐसे ही देखता रहा........वो तो उस वक़्त ये भी भूल चुका था कि उसे बोलना क्या है.......वो मेरी तरफ ऐसे आँखे फाडे देख रहा था जैसे मैं कोई जन्नत से उतरी हुई कोई हूर हूँ......
विशाल- दीदी .......यकीन नहीं होता मुझे आज खुद पर........कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ ना....
मैं विशाल को उसी आईने के सामने देखकर धीरे से मुस्कुराती रही........विशाल फिर मेरे करीब आया और आकर मैं जिस टेबल पर बैठी थी वो भी आकर वही मेरे पीछे मुझसे सट कर बैठ गया........मुझे तो विशाल की हिम्मत पर हैरानी हो रही थी.......वैसे अब तक वो मुझसे काफ़ी खुल गया था......इस वक़्त उसका लंड मेरी गान्ड पर टच हो रहा था.....और उसका सीना मेरी पीठ से पूरी तरह चिपका हुआ था.........विशाल मेरे सिर के पास अपना नाक लेजा कर मेरे बाल से निकल रही शॅमपू की खुसबू धीरे धीरे अपने अंदर उतार रहा था........
ये खुसबू उसे पल पल मदहोश कर रही थी.......वही दूसरी तरफ मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था..........
अदिति- क्या कर रहे हो विशाल........जैसे तैसे मैने अपने शब्द पूरे किए........
विशाल- आज कुछ मत कहो अदिति........बस मुझे मेरे दिल की आवाज़ सुनने दो.........मैं इसी पल के लिए तो कब से तरस रहा था........और अब वो हसीन पल आ गया है अदिति.........
मैं विशाल की बातों को सुनकर कुछ ना कह सकी और अपना फ़ैसला आने वाले वक़्त के हाथों में सौप दिया......मैं जानती थी कि अब आगे क्या होने वाला है.......... ना जाने कब से मुझे इस हसीन पल का मुझे बड़ी ही बेसब्री से इंतेज़ार था..
विशाल के इस तरह मेरे इतने करीब बैठने पर मुझे बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था.......इस वक़्त विशाल का मूह मेरे बालो के बेहद करीब था......वो मेरे बालों से निकल रही भीनी भीनी शॅमपू की खुसबू अपने अंदर धीरे धीरे उतार रहा था.......मैं उसकी सांसो को अच्छे से महसूस कर सकती थी.......
इस वक़्त मेरी जुल्फें खुली हुई थी और अब भी मेरे बाल कुछ भीगे से थे........सामने के कुछ बाल मेरी नाज़ुक से गाल को बार बार टच कर रहें थे.......विशाल अपना एक हाथ धीरे से मेरी गर्देन पर रख देता है और मेरे बालों को मेरे सीने की तरफ आगे की ओर करता है........मेरे बाल आगे आने की वजह से अब मेरी पीठ विशाल के सामने काफ़ी हद तक क्सपोज़ हो रही थी.........
विशाल कुछ देर तक मेरी नंगी पीठ को ऐसे ही दीदार करता रहा....... फिर वो अपना मूह आगे बढ़ाकर बहुत आहिस्ता से अपना जीभ मेरी नंगी पीठ पर हौले से रख देता है.........विशाल के इस हरकत पर मैं एक बार फिर से उछल पड़ी थी.........मेरे अंदर का सब्र धीरे धीरे अब टूटता जा रहा था.......मेरी आँखें खुद बा खुद एक बार फिर से बंद हो गयी थी और उधेर विशाल अपना जीभ धीरे धीरे मेरे पीठ के उस नंगे हिस्से पर फेरे जा रहा था........मुझे उसकी हरकतों पर गुदगुदी सी हो रही थी.......
विशाल का इंतेज़ार करते मुझे पूरा एक घंटा बीत चुका था.........अब तक मैं अपने दोनो हाथों में मेहंदी भी लगा चुकी थी.......इस वक़्त भी मैं वही अपने कमरे में ड्रेसिंग टेबल के पास बैठी हुई अपने आप को शीशे में निहार रही थी.........तभी थोड़े देर बाद मुझे मेन डोर खुलने की आहट सुनाई दी और इधेर मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी............
उसकी आवाज़ सुनकर मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़कने लगा.......मेरा गला पता नहीं क्यों बार बार सुख रहा था........जैसे जैसे विशाल मेरे कमरे के करीब आता जा रहा था वही मेरे दिल में बेचैनी भी साथ साथ बढ़ती जा रही थी.......आख़िरकार वो घड़ी भी आ गयी जब विशाल मेरे कमरे के पास पहुँच कर मुझे आवाज़ दी......
जैसी ही विशाल की नज़र मुझपर पड़ी वो कुछ पल तक मुझे अपनी आँखे फाडे ऐसे ही देखता रहा........वो तो उस वक़्त ये भी भूल चुका था कि उसे बोलना क्या है.......वो मेरी तरफ ऐसे आँखे फाडे देख रहा था जैसे मैं कोई जन्नत से उतरी हुई कोई हूर हूँ......
विशाल- दीदी .......यकीन नहीं होता मुझे आज खुद पर........कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ ना....
मैं विशाल को उसी आईने के सामने देखकर धीरे से मुस्कुराती रही........विशाल फिर मेरे करीब आया और आकर मैं जिस टेबल पर बैठी थी वो भी आकर वही मेरे पीछे मुझसे सट कर बैठ गया........मुझे तो विशाल की हिम्मत पर हैरानी हो रही थी.......वैसे अब तक वो मुझसे काफ़ी खुल गया था......इस वक़्त उसका लंड मेरी गान्ड पर टच हो रहा था.....और उसका सीना मेरी पीठ से पूरी तरह चिपका हुआ था.........विशाल मेरे सिर के पास अपना नाक लेजा कर मेरे बाल से निकल रही शॅमपू की खुसबू धीरे धीरे अपने अंदर उतार रहा था........
ये खुसबू उसे पल पल मदहोश कर रही थी.......वही दूसरी तरफ मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था..........
अदिति- क्या कर रहे हो विशाल........जैसे तैसे मैने अपने शब्द पूरे किए........
विशाल- आज कुछ मत कहो अदिति........बस मुझे मेरे दिल की आवाज़ सुनने दो.........मैं इसी पल के लिए तो कब से तरस रहा था........और अब वो हसीन पल आ गया है अदिति.........
मैं विशाल की बातों को सुनकर कुछ ना कह सकी और अपना फ़ैसला आने वाले वक़्त के हाथों में सौप दिया......मैं जानती थी कि अब आगे क्या होने वाला है.......... ना जाने कब से मुझे इस हसीन पल का मुझे बड़ी ही बेसब्री से इंतेज़ार था..
विशाल के इस तरह मेरे इतने करीब बैठने पर मुझे बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था.......इस वक़्त विशाल का मूह मेरे बालो के बेहद करीब था......वो मेरे बालों से निकल रही भीनी भीनी शॅमपू की खुसबू अपने अंदर धीरे धीरे उतार रहा था.......मैं उसकी सांसो को अच्छे से महसूस कर सकती थी.......
इस वक़्त मेरी जुल्फें खुली हुई थी और अब भी मेरे बाल कुछ भीगे से थे........सामने के कुछ बाल मेरी नाज़ुक से गाल को बार बार टच कर रहें थे.......विशाल अपना एक हाथ धीरे से मेरी गर्देन पर रख देता है और मेरे बालों को मेरे सीने की तरफ आगे की ओर करता है........मेरे बाल आगे आने की वजह से अब मेरी पीठ विशाल के सामने काफ़ी हद तक क्सपोज़ हो रही थी.........
विशाल कुछ देर तक मेरी नंगी पीठ को ऐसे ही दीदार करता रहा....... फिर वो अपना मूह आगे बढ़ाकर बहुत आहिस्ता से अपना जीभ मेरी नंगी पीठ पर हौले से रख देता है.........विशाल के इस हरकत पर मैं एक बार फिर से उछल पड़ी थी.........मेरे अंदर का सब्र धीरे धीरे अब टूटता जा रहा था.......मेरी आँखें खुद बा खुद एक बार फिर से बंद हो गयी थी और उधेर विशाल अपना जीभ धीरे धीरे मेरे पीठ के उस नंगे हिस्से पर फेरे जा रहा था........मुझे उसकी हरकतों पर गुदगुदी सी हो रही थी.......