Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में - Page 5 - SexBaba
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Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में

कुछ देर तक मैं विशाल का इंतेज़ार करती रही मगर वो नहीं आया.......फिर मैने मम्मी के मोबाइल पर कॉल किया तो पता लगा कि ट्रेन एक घंटे लेट है......मैं जितनी जल्दी चाहती थी विशाल घर पर आए वो उतना ही लेट हो रहा था........मैं कुछ देर तक वैसे ही इधेर उधेर टहलती रही फिर मैने मेन डोर का दरवाज़ा जाकर खोला तो एक बार फिर से मुझे निराशा ही हाथ लगी.......विशाल अभी भी नहीं आया था.....कुछ देर तक मैं उसकी राह तकती रही फिर मैं मैंन डोर का दरवाज़ा ऐसे ही सटा कर अपने कमरे में आ गयी और अपने हाथों में मेहंदी लगाने लगी.........

विशाल का इंतेज़ार करते मुझे पूरा एक घंटा बीत चुका था.........अब तक मैं अपने दोनो हाथों में मेहंदी भी लगा चुकी थी.......इस वक़्त भी मैं वही अपने कमरे में ड्रेसिंग टेबल के पास बैठी हुई अपने आप को शीशे में निहार रही थी.........तभी थोड़े देर बाद मुझे मेन डोर खुलने की आहट सुनाई दी और इधेर मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी............

उसकी आवाज़ सुनकर मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़कने लगा.......मेरा गला पता नहीं क्यों बार बार सुख रहा था........जैसे जैसे विशाल मेरे कमरे के करीब आता जा रहा था वही मेरे दिल में बेचैनी भी साथ साथ बढ़ती जा रही थी.......आख़िरकार वो घड़ी भी आ गयी जब विशाल मेरे कमरे के पास पहुँच कर मुझे आवाज़ दी......

जैसी ही विशाल की नज़र मुझपर पड़ी वो कुछ पल तक मुझे अपनी आँखे फाडे ऐसे ही देखता रहा........वो तो उस वक़्त ये भी भूल चुका था कि उसे बोलना क्या है.......वो मेरी तरफ ऐसे आँखे फाडे देख रहा था जैसे मैं कोई जन्नत से उतरी हुई कोई हूर हूँ......

विशाल- दीदी .......यकीन नहीं होता मुझे आज खुद पर........कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ ना....

मैं विशाल को उसी आईने के सामने देखकर धीरे से मुस्कुराती रही........विशाल फिर मेरे करीब आया और आकर मैं जिस टेबल पर बैठी थी वो भी आकर वही मेरे पीछे मुझसे सट कर बैठ गया........मुझे तो विशाल की हिम्मत पर हैरानी हो रही थी.......वैसे अब तक वो मुझसे काफ़ी खुल गया था......इस वक़्त उसका लंड मेरी गान्ड पर टच हो रहा था.....और उसका सीना मेरी पीठ से पूरी तरह चिपका हुआ था.........विशाल मेरे सिर के पास अपना नाक लेजा कर मेरे बाल से निकल रही शॅमपू की खुसबू धीरे धीरे अपने अंदर उतार रहा था........

ये खुसबू उसे पल पल मदहोश कर रही थी.......वही दूसरी तरफ मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था..........

अदिति- क्या कर रहे हो विशाल........जैसे तैसे मैने अपने शब्द पूरे किए........

विशाल- आज कुछ मत कहो अदिति........बस मुझे मेरे दिल की आवाज़ सुनने दो.........मैं इसी पल के लिए तो कब से तरस रहा था........और अब वो हसीन पल आ गया है अदिति.........

मैं विशाल की बातों को सुनकर कुछ ना कह सकी और अपना फ़ैसला आने वाले वक़्त के हाथों में सौप दिया......मैं जानती थी कि अब आगे क्या होने वाला है.......... ना जाने कब से मुझे इस हसीन पल का मुझे बड़ी ही बेसब्री से इंतेज़ार था..

विशाल के इस तरह मेरे इतने करीब बैठने पर मुझे बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था.......इस वक़्त विशाल का मूह मेरे बालो के बेहद करीब था......वो मेरे बालों से निकल रही भीनी भीनी शॅमपू की खुसबू अपने अंदर धीरे धीरे उतार रहा था.......मैं उसकी सांसो को अच्छे से महसूस कर सकती थी.......

इस वक़्त मेरी जुल्फें खुली हुई थी और अब भी मेरे बाल कुछ भीगे से थे........सामने के कुछ बाल मेरी नाज़ुक से गाल को बार बार टच कर रहें थे.......विशाल अपना एक हाथ धीरे से मेरी गर्देन पर रख देता है और मेरे बालों को मेरे सीने की तरफ आगे की ओर करता है........मेरे बाल आगे आने की वजह से अब मेरी पीठ विशाल के सामने काफ़ी हद तक क्सपोज़ हो रही थी.........

विशाल कुछ देर तक मेरी नंगी पीठ को ऐसे ही दीदार करता रहा....... फिर वो अपना मूह आगे बढ़ाकर बहुत आहिस्ता से अपना जीभ मेरी नंगी पीठ पर हौले से रख देता है.........विशाल के इस हरकत पर मैं एक बार फिर से उछल पड़ी थी.........मेरे अंदर का सब्र धीरे धीरे अब टूटता जा रहा था.......मेरी आँखें खुद बा खुद एक बार फिर से बंद हो गयी थी और उधेर विशाल अपना जीभ धीरे धीरे मेरे पीठ के उस नंगे हिस्से पर फेरे जा रहा था........मुझे उसकी हरकतों पर गुदगुदी सी हो रही थी.......
 
विशाल फिर अपने दोनो हाथ मेरे हाथों पर रख देता है और उसे बहुत आहिस्ता से धीरे धीरे सरकाते हुए उपर की तरफ ले जाने लगता है.........मेरे अंदर ज़रा भी हिम्मत नहीं थी कि मैं विशाल को किसी भी बात के लिए मना करती.......सच तो ये था कि मुझे उसकी हरकतें अच्छी लग रही थी........

विशाल के दोनो हाथ तेज़ी से मेरे हाथों पर सरक रहें थे........धीरे धीरे अब उसका हाथ मेरे कंधों पर आ चुका था.........मैं अब ये देखना चाहती थी कि वो आगे क्या करता है.....तभी विशाल अपने दाँतों के बीच मेरे सूट की पिच्छली डोरी (जो कंधों के बीच बँधी होती है) को धीरे से खीचना शुरू करता है......विशाल के इस हरकत पर मैं उछल सी पड़ी थी..........मेरा दिल एक बार फिर से ज़ोरों से धड़कने लगा था.........

मगर कमाल की बात तो ये थी कि आज मेरे अंदर इनकार की कहीं कोई भावना नहीं थी......मैं विशाल को पूरी मनमानी करने दे रही थी.......शायद विशाल ने भी मेरी इस खामोश को मेरा इकरार समझ लिया था......इस लिए अब वो बिना किसी झिझक के आगे बढ़ रहा था.......तभी मैने अपनी गर्देन पीछे की ओर की और एक नज़र मैं विशाल के चेहरे की तरफ देखने लगी.......विशाल भी मेरी तरफ देख रहा था........उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी........अब तक मेरी सूट की दोनो डोर अलग हो चुकी थी.......

विशाल- मुझे ऐसे क्या देख रही हो दीदी........मैं कुछ आपके साथ ग़लत तो नहीं कर रहा ना.........

अदिति- नहीं विशाल........आज मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी..........तुम्हारा जो जी में आए वो मेरे साथ करो.........

विशाल फिर धीरे से मुस्कुरा देता है और फ़ौरन अपनी जगह से उठकर कमरे से बाहर चला जाता है......मैं उसे कमरे से बाहर जाते हुए देख रही थी......मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे अचानक वो कहाँ चला गया.......थोड़ी देर बाद विशाल फिर वापस कमरे में आया और आते ही उसने कमरे की सभी खिड़की अच्छे से बंद कर दी......फिर उनपर परदा लगाया........अब कमरे में थोड़ा अंधेरा हो गया था.......

तभी उसने फॅन की स्विच भी ऑफ कर दी.........इस वक़्त इतनी गर्मी थी कि एक पल भी फॅन के बगैर बैठना बहुत मुश्किल था........फिर उसने एक ब्लू कलर की ज़ीरो वॉट की बल्ब का स्विच ऑन किया......इस वक़्त कमरे का माहौल काफ़ी रंगीन सा लग रहा था.......मुझे विशाल की ये सारी हरकतें बिल्कुल समझ में नहीं आ रही थी........तभी विशाल फिर से मेरे पीछे आकर बैठ गया और इस बार उसने मेरी हाथ फिर से अपने हाथों में थाम लिया........

उसके हाथ में एक सोने की अंगूठी थी.........जब मेरी नज़र उसपर पड़ी तो मैं फिर से विशाल के चेहरे की ओर सवाल भरी नज़रो से देखने लगी........

अदिति- ये सब क्या है विशाल........तुम ये अंगूठी कहाँ से लाए.......

विशाल- ये आपके लिए है दीदी....... मुझे ग़लत मत समझना मैने कहीं कोई चोरी नहीं की........वो तो मैं काफ़ी दिनों से कुछ पैसे अपने लिए जमा कर रहा था तो सोचा कि हर बार मैं अपने लिए कुछ ना कुछ खरीद लेता हूँ.......सोचा इस बार आपके लिए कुछ ले लूँ......ये उसी पैसे की है.......सोचा आपको ये ज़रूर पसंद आएगा.........
 
मैं विशाल के उस मासूम चेहरे की ओर बड़े प्यार से देख रही थी........मुझे उसके प्यार में कहीं कोई स्वार्थ नज़र नहीं आ रहा था.......मैं उसकी आँखों में ऐसे ही कुछ पल तक देखती रही फिर मैं धीरे से आगे बढ़कर अपना लब उसके लबों पर रख दिए.......विशाल बस मुझे यू ही देखता रहा.......मगर वो मुझसे आगे कुछ ना बोला.......

अदिति- इसकी क्या ज़रूरत थी विशाल.........

विशाल- दीदी रख लो इसे.......पहली बार तो मैं आपको कुछ दे रहा हूँ.........मुझे अच्छा लगेगा.............

अदिति- अब लाए हो तो इसे खुद ही पहना दो.......मैं विशाल को देखकर फिर धीरे से मुस्कुरा पड़ी.....जवाब में विशाल भी मुझे देखकर मुस्कुरा रहा.......फिर उसने वो अंगूठी मेरे उंगली में पहना दी........

अदिति- तुमने फॅन क्यों बंद कर दिया विशाल.......देखो अंदर कितनी गर्मी हो रही है.....

मेरे उस सवाल से विशाल के चेहरे पर मुस्कान और गहरी हो गयी थी - यही तो मैं चाहता हूँ कि आपको गर्मी हो.......गर्मी होगी तो पसीना तो निकलेगा ही......क्या आप मेरे लिए इतना नहीं कर सकती.

अदिति- ऐसी बात नहीं है विशाल.......मुझे तुम्हारे खातिर सब मंज़ूर है......फिर ये गर्मी क्या चीज़ है........

विशाल- दीदी मेरे दिल में एक बात बहुत दिनों से मुझे परेशान कर रही है.....अगर आप बुरा ना माने तो मैं वो बात आपसे कहूँ......

अदिति- हां विशाल......कहो....

विशाल- आपका कोई बाय्फ्रेंड है.......मेरा मतलब क्या आपने कभी इसी पहले सेक्स किया है किसी और के साथ.......

अदिति- मारूँगी विशाल एक कसकर थप्पड़.........तुमने मुझे ऐसी वैसी लड़की समझ रखा है क्या........मेरा कोई बाय्फ्रेंड नहीं है.......और जब कोई बाय्फ्रेंड नहीं है तो सवाल ही नहीं पैदा होता कि मैं किसी और के साथ सेक्स करूँ.......

विशाल- आइ अम सॉरी दीदी....बस ऐसे ही ये सवाल आपसे पूछा था मैने........मगर मैं अच्छे से जानती थी कि विशाल ने आख़िर ये सवाल मुझसे क्यों पूछा था......वो ये जानना चाहता था कि मैं अभी तक वर्जिन हूँ कि नहीं........एक अलग सी चमक मैने उसके चेहरे पर देखी थी जब मैने उससे ये जवाब दिया था........

अदिति -अब ये दीदी बोलना बंद करो विशाल........तुम मुझे मेरे नाम से ही बुलाओ तो मुझे अच्छा लगेगा........

विशाल- ओके अदिति.......जैसी आपकी मर्ज़ी.....इतना कहकर विशाल धीरे से मुस्कुरा पड़ता है......जवाब में मैं भी हंस पड़ती हूँ.......

इस वक़्त मेरा गर्मी से बुरा हाल था........मेरा सूट अब मेरे पसीने से धीरे धीरे भीग रहा था.........ऐसा लग रहा था कि मेरा दम घुट जाएगा........मगर मुझे विशाल के लिए आज सब मंज़ूर था.........अब मेरे जिस्म पर पसीने की कुछ बूँदें सॉफ दिखाई दे रही थी........विशाल फिर से अपना जीभ मेरी नंगी पीठ पर रख देता है और बड़े हौले से अपना जीभ धीरे धीरे वहाँ पर फेरना शुरू करता है.........मैं एक बार फिर से उसके इस हरकत पर मचल सी गयी थी......मेरे अंदर की तपिस अब भड़क चुकी थी.........
 
विशाल- क्या आप तैयार हो.........अगर आपकी मर्ज़ी हो तो मैं........

अदिति- मैने तुम्हें कब मना किया है विशाल......जो तुम्हारा दिल करे मेरे साथ वो करो........मैं उफ्फ तक नहीं करूँगी.........मगर हां जो भी करना प्यार से करना.......देखना तुम्हारी अदिति तुम्हारे लिए हंसकर अपनी जान तक दे देगी..........

विशाल फिर मेरे चेहरे के पास अपने होंठ ले गया और फिर से मेरे नरम गुलाबी होंठो को बड़े प्यार से चूसने लगा.......मैने अपना मूह धीरे से पूरा खोल दिया और विशाल के होंठो को अपने मूह के अंदर आने दिया..........इस वक़्त उसके दोनो हाथ मेरे कंधे पर थे.......मैं तुरंत अपना एक हाथ अपने कंधे की तरफ ले गयी और विशाल का एक हाथ पर मैने अपना हाथ धीरे से रख दिया.........फिर मैं उसके हाथों को धीरे धीरे सरकाते हुए नीचे की तरफ ले जाने लगी .......मेरे सीने की तरफ..........

मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था........साथ में मुझे बहुत शरम सी भी महसूस हो रही थी......एक बार तो दिल में ये ख्याल आया कि ये सब ग़लत है......मगर अब इतना सब कुछ हो जाने के बाद अब मैं पीछे नहीं मूड सकती थी.......जैसे जैसे विशाल के हाथ मेरे सीने की तरफ सरक रहें थे वैसे वैसे विशाल की भी साँसें और तेज़ होती जा रही थी.......वो मेरे होंठो को अपने दाँतों के बीच फँसाकर उसे हौले हौले काट रहा था.........

जैसे ही विशाल के हाथ मेरे सीने पर गये लज़्जत से एक बार फिर से मेरी आँखें बंद हो गयी.....इस वक़्त मेरी चूत पूरी तरह से भीग चुकी थी.........जिससे मेरी पैंटी भी गीली होकर मेरी चूत से चिपक गयी थी......मेरा अब बैठना मुश्किल होता जा रहा था.........लज़्जत के मारे मैं चाह कर भी अपने मूह से सिसकारी नहीं रोक पा रही थी.....

अदिति- आआआआआआआ....................सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स...............हह....विस....स.हह.आाअलल्ल्ल्ल्ल......
इन्हें ऐसे ही मसल्ते रहो विशाल........फिर मैं विशाल के होंठो को धीरे धीरे काटने लगी.......इस वक़्त मैं पसीने से पूरी तरह भीग चुकी थी.......मेरे चेहरे से बहता हुआ पसीना धीरे धीरे मेरे मूह में घुल रहा था वही विशाल का भी कुछ वैसा ही हाल था.......

विशाल अपने हाथ को बहुत आहिस्ता से मेरे बूब्स पर फेर रहा था....जैसे वो उसका साइज़ नाप रहा हो.......उसके मज़बूत हाथों के स्पर्श से मैं अब पागल सी हो रही थी.......मेरी सॉफ्ट बूब्स को मसल्ने से उसे भी बहुत मज़ा आ रहा था........वही उसका दूसरा हाथ अब भी मेरे कंधे पर धीरे धीरे सरक रहा था.......कुछ देर बाद विशाल अपने दोनो हाथ मेरी पीठ पर ले गया और वही उपर से मेरे ब्रा के स्ट्रॅप्स के साथ खेलने लगा........

काफ़ी देर तक वो मेरे ब्रा के हुक के साथ छेड़खानी करता रहा और आख़िरकार उसने मेरी सूट के उपर से मेरे ब्रा की हुक को खोल दिया....... जिससे मैं एक बार फिर से उसे बड़े गौर से देखने लगी.........उसके चेहरे पर अब भी मुस्कान थी.........

अदिति- ये क्या विशाल........ये तुम.......

विशाल- क्या अदिति.........मैने कुछ ग़लत किया क्या.........

मैं विशाल से क्या कहती मैं खामोश होकर अपनी नज़रें नीचे झुका ली........विशाल मेरी चिन पर हाथ रखता हुआ मेरा चेहरा अपनी तरफ करता हुआ बोला.....

विशाल- आप शरमाती हो तो और भी सुंदर लगती हो........मैने तो आपकी हेल्प की है.......अगर आप कहो तो मैं आपके सारे कपड़े इसी तरह उतार देता हूँ.....कम से कम आपको गर्मी से थोड़ी राहत तो ज़रूर मिल जाएगी......

मैने फ़ौरन अपनी नज़रें दुबारा नीचे झुका ली........शरम अब भी मेरी आँखों से सॉफ बयान हो रही थी.....
 
मेरी ब्रा की हुक खुल जाने से मुझे बहुत अजीब सा फील हो रहा था....मेरी ब्रा की स्ट्रॅप्स अब बाहर की ओर सॉफ दिखाई दे रहें थे........विशाल फिर अपने दोनो हाथ सरकाते हुए मेरे बूब्स की तरफ ले गया और इस बार उसने बिना देर किए अपने दोनो मज़बूत हाथों से मेरी बूब्स को मसलना शुरू कर दिया........मैं फिर से ज़ोरों से सिसक पड़ी........मैने अपने दोनो हाथ विशाल की गर्देन पर रख दिए और उसे पूरी मनमानी करने की छूट दे दी......अब चाहे विशाल मेरे बूब्स को निचोड़े या दबाता रहें मुझे इसी कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था.......

इस वक़्त उसके सख़्त हाथ मेरे दोनो बूब्स को बुरी तरह निचोड़ रहें थे...........ऐसा लग रहा था जैसे विशाल मेरे सीने से दूध निकालना चाहता हो.........कभी वो दोनो उंगलियों के बीच मेरी निपल्स को दबाता तो मेरी हालत और खराब हो जाती.......मैं इस वक़्त सब कुछ भूल चुकी थी........हमारे दरमियाँ अब कहीं कोई मर्यादा की कोई सीमा नहीं रह गयी थी.......आज मैने जाना था कि मर्द के हाथों में कौन सा जादू है........भले ही लाख बार मैं अपनी निपल्स मसल चुकी थी मगर जो मज़ा अब मुझे विशाल के हाथों से मिल रहा था वो सुख मुझे कभी नहीं मिला था.....

करीब 10 मिनिट तक विशाल बारी बारी से मेरे दोनो दूधो को ऐसे ही अपने मज़बूत हाथों से मसलता रहा.....और मैं वही धीरे धीरे सिसकती रही.......मैं कभी उसके होंठो को काट लेती तो कभी उसके गालों को..........धीरे धीरे मेरे जिस्म में आग भरती जा रही थी.......मैं तो आने वाले उस पल को सोच सोच कर और भी रोमांचित हो रही थी कि जब विशाल का लंड मेरी कुँवारी चूत में जाएगा तब मेरा क्या होगा..........अब कुछ पल की देरी थी मेरा वो सपना भी पूरा होने वाला था......


मैं इस वक़्त पसीने से बुरी तरह भीग चुकी थी......पता नहीं विशाल को इसमें क्या मज़ा आ रहा था इस तरह गर्मी में सेक्स करने पर.........अब उसका हाथ धीरे धीरे मेरे चेहरे से होते हुए मेरे पीठ पर सरक रहा था.......फिर वो अपने हाथों को और नीचे की तरफ ले जाने लगा ......मेरी गान्ड की तरफ.........इस वक़्त लज़्जत से मेरा बुरा हाल था........तभी अचानक विशाल रुक गया और मुझे फ़ौरन अपनी गोद में उठाकर मेरे बिस्तेर पर मुझे बड़े प्यार से सुला दिया........

जैसे ही मैं अपने बिस्तेर पर गयी मैने आपनी आँखे फ़ौरन बंद कर ली.......अब वो वक़्त आ गया था जिसका मुझे बहुत शिद्दत से इंतेज़ार थी.......अब मैं आज एक लड़की से औरत बनने वाली थी......मगर कमाल कि बात तो ये थी कि ये शुभ काम मेरे भाई के हाथों होने वाला था.

विशाल मेरे करीब आया और उसने झुककर फिर से मेरे होंठो को चूसना शुरू कर दिया.......मैं भी अब उसका पूरा साथ दे रही थी........उसका जीभ मेरी जीभ से बार बार टच हो रहा था जिससे मेरे अंदर की तपीश अब और भी बढ़ती जा रही थी........उसके दोनो हाथ मेरे सीने पर थे और वो उन्हें बेदर्दी से मसल रहा था........मेरी चुचियाँ अब दर्द करने लगी थी.......विशाल के लगातार इस तरह मसल्ने पर अब उसका रंग गुलाबी से लाल पड़ गया मगर मैं आज विशाल को किसी बात के लिए रोकना नहीं चाहती थी..........मुझे उसके लिए आज सब मंज़ूर था.......
 
तभी उसने मेरे सूट के अंदर अपना हाथ डाला......मेरी ब्रा तो पहले से खुली हुई थी...... विशाल फिर से मेरी दोनो छातियों पर अपना हाथ रखकर उसे फिर से ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगा.......एक बार फिर से मेरे मूह से लज्जत भरी सिसकारी फुट पड़ी.......मेरी आँखें फिर से बंद हो गयी थी........

विशाल- अदिति उतारो ना अपने सारे कपड़े.......मैं आपको एक बार बिना कपड़ों के देखना चाहता हूँ......कब से ना जाने मेरी आँखें तरस गयी है आपके इस सुंदर रूप के दीदार को........

अदिति- मुझे शरम आ रही है विशाल........ये मुझसे नहीं होगा.....प्लीज़......

विशाल- अब कैसा शरमाना अदिति........आप की रागों में भी वही खून दौड़ रहा है जो कि मेरी रगों में .......फिर भला अपनों से कैसा शरमाना.......

अदिति- हाआंम्म्मम......बातें तो तुम बहुत बड़ी बड़ी करते हो.........मुझे नहीं उतारने अपने कपड़े.......

विशाल- तो फिर ठीक है तो ये शुभ काम मैं ही कर देता हूँ........फिर विशाल मुझे बैठने का इशारा करता है और फिर से वो मेरे पीछे आकर बैठ जाता है..........अब वो मेरे पीठ पर अपना जीभ धीरे धीरे फेरना शुरू करता है.......मगर साथ ही साथ वो मेरे सूट को अब उपर की ओर धीरे धीरे उठा भी रहा था.........मेरा दिल एक बार फिर से ज़ोरों से धड़कने लगा था.......

मुझे विशाल के सामने यू नंगा होगा बहुत अजीब लग रहा था.........मगर कहीं ना कहीं मेरा जिस्म यही चाहता था कि मैं अपने आप को उसके हवाले कर दूं........

धीरे धीरे मेरा सूट जब मेरे सीने के करीब पहुँचा तो मैने झट से अपने दोनो हाथ उपर की ओर कर लिए........विशाल मेरे बदन को बड़े गौर से देख रहा था......जैसे ही मैने अपने दोनो हाथ उपर किए उसने फ़ौरन मेरा सूट उपर कर दिया और अगले ही पल मेरी ब्रा और सूट दोनो मेरे बदन से जुदा हो गये.........शरम से एक बार फिर से मेरा चेहरा लाल पड़ गया था.......हालाँकि मेरा चेहरा दूसरी तरफ था फिर भी इस हाल में विशाल के इतने करीब मुझे बहुत अजीब सा फील हो रहा था..........

मेरे दोनो हाथ खुद बा खुद मेरे दोनो बूब्स पर चले गये थे और मैने अपने सीने को अपने दोनो हाथों से फ़ौरन छुपा लिया........उधेर विशाल अपने दोनो हाथ मेरे पीठ पर धीरे धीरे फेर रहा था और साथ ही साथ मेरी गर्देन पर अपनी जीभ भी चला रहा था.......मेरी उस वक़्त क्या दशा थी ये मैं ही जानती थी......वो सब कुछ किसी मँज़े हुए खिलाड़ी की तरह कर रहा था.......ऐसा लग रहा था जैसे उसे किसी बात की कोई जल्दी ना हो.......पता नहीं वो अपने आप को कैसे संभाले हुए था.....

विशाल- अदिति ..........प्लीज़ अपना चेहरा मेरी तरफ करो ना.......अब भला मुझसे कैसी शरम!!!!

अदिति- तुम बहुत गंदे हो विशाल.......खुद तो तुमने अपने सारे कपड़े पहन रखे है और मुझे नंगा करने पर तुले हुए हो.......अब इसी ज़्यादा अब और नहीं उतार सकती मैं अपने कपड़े........
 
विशाल- अच्छा....तो ये बात है.....फिर मैं आपकी ये शिकायत भी दूर कर देता हहूँ........फिर विशाल फ़ौरन अपनी टी-शर्ट उतारता है और फिर अपना जीन्स भी वही उतार कर फेंक देता है......अब वो सिर्फ़ बनियान और अंडरवेर में था.......मेरे अंदर ज़रा भी हिम्मत नहीं थी कि मैं विशाल से नज़र मिलाती......बस मैं यू ही ऐसी बैठी रही.........

फिर वो अपने हाथों से फिर से मेरी नंगी पीठ पर धीरे धीरे हरकत करने लगा.......एक बार फिर से मेरी साँसें बेकाबू हो चली थी..........

अदिति- आआआआआआ.हह.......विशाल.............प्लीस.ईईईईईई............

विशाल- क्या हुआ अदिति......अगर तुम्हें बुरा लगा तो कहो मैं रुक जाता हूँ........

मैं विशाल की तरफ एक नज़र डाली तो वो मुझे ही घूर रहा था.......वो मुझे देखकर फिर से मुस्कुरा पड़ा.......

अदिति- सच में तुम बहुत बेशरम हो........तुमसे तो बात करना भी बेकार है.......अरे कुछ तो शरम मेरे अंदर रहने दो........अगर मैं पूरी बेशर्मी पर उतर आउन्गि तो फिर तुम्हें मुझसे कोई नहीं बचा पाएगा.......तुम्हें अपना सिर भी छुपाने को जगह नहीं मिलेगी कहीं.......

विशाल- तो दिखाओ ना अदिति.....अपनी बेशर्मी......मैं वही तो देखना चाहता हूँ.......जो मैने अब तक सुना है मैं भी देखना चाहता हूँ कि क्या वो सही है........

अदिति- क्या सुना है...........मतलब......मैं कुछ समझी नहीं....

विशाल मेरी बातों को सुनकर धीरे से मुस्कुरा पड़ता है- यही कि जब औरतें बेशहमी पर उतर जाती है तो वो कुछ भी कर सकती है......खैर वो तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.......फिर विशाल मुझे फ़ौरन अपनी गोद में उठा लेता है और मुझे अपनी जाँघो पर बैठा देता है.......अभी भी मेरे दोनो हाथ मेरे सीने पर थे.......अब तक विशाल ने मेरी छातियों का दीदार नहीं किया था.....मगर उसका मकसद तो कुछ और था.........जैसे ही मैं उसके जगहों के बीच बैठी उसने फ़ौरन मेरे दोनो पाँव पूरे फैला दिए और फिर अपना एक हाथ मेरे पेट पर रखकर उसे बहुत धीरे से सरकाते हुए नीचे की तरफ ले जाने लगा ........मेरी चूत के तरफ.........

मेरा इस वक़्त बहुत बुरा हाल था......मेरे दिल में ये डर था कि जब विशाल का हाथ मेरी चूत पर जाएगा तो वो क्या सोचेगा मेरे बारे में......मेरी चूत इस वक़्त इस कदर गीली थी की मेरी पैंटी बुरी तरह भीग चुकी थी........मैं दिल ही दिल में मना रही थी कि विशाल को इस बारे में कुछ पता ना चले......मगर ऐसा भला कैसे हो सकता था........
 
विशाल का हाथ तेज़ी से सरकते हुए नीचे मेरी चूत पर जा रहा था.......मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं अपने बूब्स को छुपाऊँ या विशाल के बढ़ते उसके हाथों को रोकू........आख़िर कार वही हुआ जिसका मुझे डर था......जैसे ही विशाल का हाथ मेरी चूत पर पहुँचा उसने फ़ौरन उसे कसकर अपनी मुट्ठी में ज़ोरों से भीच लिया.......और मेरी तरफ देखकर मुस्कुराने लगा........मैं समझ गयी थी कि उसकी मुस्कुराने की इसके पीछे क्या वजह है...जवाब में मैने अपनी दोनो टाँगें सिकोड़ने की कोशिस की मगर विशाल ने मेरी एक ना चलने दी........मैं भी बेशरमो की तरह उसकी बाहों में अपनी दोनो टाँगें पूरा फैला कर दुबारा बैठ गयी.......

विशाल के हाथों के स्पर्श से अब मेरा और बुरा हाल था.........मैं किसी जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी........मैं फ़ौरन अपना सिर पीछे की तरफ की और फिर से विशाल के लबों को धीरे धीरे चूसने लगी.......विशाल अपने दोनो हाथ मेरी कमर पर ले गया और उसने मेरी कमर पर हाथ लगा मेरी लॅगी को धीरे धीरे नीचे की तरफ सरकाने लगा.......मैं अच्छे से जानती थी कि अब मेरे इनकार करने से भी विशाल अब नहीं रुकेगा इस लिए मैने भी अपनी कमर थोड़ी उपर की तरफ कर दी और अपनी लॅगी उतरवाने में उसकी मदद करने लगी.

थोड़ी देर बाद विशाल मेरी लॅगी के साथ साथ मेरी पैंटी भी सरकाते हुए नीचे की तरफ ले जाना लगा.......मेरे घुटनों की तरफ.........उसका हाथ बार बार मेरी गान्ड को टच कर रहा था.......एक बार फिर से मेरा बहुत बुरा हाल था........विशाल के हाथ तेज़ी से मेरे जिस्म पर सरक रहें थे........थोड़ी देर बाद उसने मेरी लॅगी और मेरी पैंटी दोनो मेरे बदन से अलग कर दी...........अब मैं अपने बिस्तेर पर पूरी नंगी हालत में विशाल की गोद में बैठी हुई थी.........मेरे पास कोई शब्द नहीं बचे थे कि मैं उस पल को बयान कर पाती.......

विशाल मेरे बदन को खा जाने वाली नज़रो से देख रहा था.......उसने मेरी लॅगी साइड में फेंक दी मगर मेरी पैंटी अभी भी उसके हाथ में थी.......इधेर मेरा गर्मी से बहुत बुरा हाल था......मेरा जिस्म इस कदर पसीने से डूब चुका था कि मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अभी अभी नहा कर आई हूँ........
 
विशाल मेरी पैंटी को अपने हाथों में लेकर उसे बड़े गौर से देख रहा था........फिर उसने मेरी पैंटी मेरे मूह के पास रख दी.......मैं उसे सवाल भरी नज़रो से देखने लगी.......

अदिति- ये सब क्या है विशाल........

विशाल- जो आप समझ रही हो वो सच है अदिति.......इसे अपने मूह में लेकर चूसो........देखना इसमें आपको भी बहुत मज़ा आएगा.......

अदिति- मगर........

विशाल- सेक्स में कोई चीज़ बुरी नहीं होती अदिति.......इसमें जितनी बेशरिमी और जितना नग्नता की जाए उतना ही ज़्यादा मज़ा आता है........

मैं विशाल के बातों का कोई जवाब ना दे सकी और चुप चाप मैने अपना मूह धीरे से खोल दिया.......अब मेरी चूत की महक मेरी नाक के रास्ते धीरे धीरे मेरे जिस्म में घुल रही थी......जैसे ही मेरी जीभ मेरी पैंटी से टच हुई विशाल मेरे चेहरे को बड़े गौर से देखने लगा..........फिर उसने अपना एक हाथ मेरे हाथों पर रखा और मेरे सीने पर रखा मेरा हाथ धीरे धीरे अलग करने लगा.......मुझे भी अब बहुत मज़ा आ रहा था.......एक एक एहसास मेरे जिस्म में आग भरता जा रहा था........

एक बार तो दिल में आया की मैं अब अपनी चूत विशाल के सामने पूरा खोलकर लेट जाऊं और अपने आप को उसके हवाले कर दूं.......मगर मैं अब विशाल को देखना चाहती थी कि वो आगे क्या करता है मेरे साथ........

मैं अब धीरे धीरे अपना जीभ अपनी पैंटी पर चला रही थी और अपनी पैंटी का रस अपने मूह के रास्ते उसे अपने गले के नीचे उतार रही थी .........मुझे अब कुछ भी बुरा नहीं लग रहा था.........विशाल फिर मेरी पैंटी को मुझे थामता हुआ उसने एक हाथ मेरे सीने पर रखकर फिर से वो मेरे दोनो बूब्स को बड़ी ही बेदर्दी से मसल्ने लगा.......मेरी मूह से अब सिसकारी बढ़ती जा रही थी.......

वो फिर अपना दूसरा हाथ मेरे जगहों के बीच मेरी चूत के तरफ ले गया और उसने बड़े हौले से मेरे चूत के चारों तरफ अपनी उंगलियों को धीरे धीरे फेरना शुरू कर दिया.......मैं इस बार अपनी सिसकारी नहीं रोक सकी और वही ज़ोरों से सिसक पड़ी........

आडिट- आआआआआआआअ.....हह.............विशाल..............अब बस...............भी करो..........मुझसे अब बर्दास्त नहीं होता......प्लीज़........मेरी आवाज़ में रिक्वेस्ट और तड़प सॉफ बयान हो रही थी.....

विशाल- इतनी भी क्या जल्दी है दीदी.......अभी तो पूरी रात पड़ी है......और मज़े करने के लिए हमारे पास पूरे 3 दिन.........आप ये तीन दिन कभी नहीं भूलेंगी अपनी ज़िंदगी के........
 
विशाल फिर अपनी दोनो उग्लियों को बहुत धीरे धीरे मेरी चूत की पंखुड़ियों पर फेरने लगा......जवाब में मैं विशाल के गालों को काटने लगी.......मेरे अंदर की बेचैनी विशाल पल पल महसूस कर रहा था.......इस वक़्त मुझे बस अपनी चूत की गर्मी को कैसे भी शांत करना था......विशाल तो मेरी चूत में आग भड़काने का काम कर रहा था ..........ना कि बुझाने की.........मैं अपना सैयम अब पूरी तरह से खो चुकी थी.........मैं अपने नाख़ून को विशाल के पीठ पर गढ़ी रही थी मगर विशाल तो जैसे लोहे का बना हो उसे कुछ असर नहीं हो रहा था........

विशाल ने मेरे बाल को अपनी मुट्ठी में ज़ोर से बीच लिया जिससे मैं दर्द से सिसक पड़ी.......मैं उसके चेहरे को बड़े गौर से देखने लगी.......मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि विशाल मेरे साथ कैसा खेल खेलना चाहता है.........

विशाल फिर अपना जीभ मेरी गर्देन पर रखकर उसे बड़े हौले से अपना जीभ धीरे धीरे फेरते हुए नीचे की तरफ ले जाने लगा.........उसके मूह में मेरे शरीर से बहता पसीना भी धीरे धीरे उसके मूह में घुल रहा था........फिर उसने मुझे बिस्तेर पर बड़े आराम से पीठ के बल लिटाया और अब मेरा नंगा जिस्म विशाल के सामने बे-परदा हो गया...........मैं अभी भी अपनी पैंटी को अपने मूह में लेकर चूस रही थी......विशाल फिर मुझे बड़े गौर से सिर से लेकर पाँव तक घूर्ने लगा........उसका लंड भी किसी पत्थर की तरह सख़्त हो चुका था.......

अदिति- कसम से दीदी......आप वाकई बहुत खूबसूरत हो........मैं पहली बार किसी लड़की को इस हाल में देख रहा हूँ....और मैं ही जानता हूँ कि मैं अब तक आपने आप को कैसे संभाले हुए हूँ........

मैं जैसे ही अपना हाथ अपनी पैंटी के तरफ ले गयी विशाल फ़ौरन अपनी गर्देन मेरे मूह के सामने ले गया और वो भी मेरी पैंटी को धीरे धीरे चूसने लगा......एक तरफ विशाल मेरी पैंटी को चूस रहा था वही दूसरी तरफ मैं अपनी पैंटी को चूस रही थी......मुझे उस वक़्त बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था......ऐसा सेक्स ना ही मैने कभी सुना था और ना ही कभी ब्लू फिल्म में देखा था......मेरे मूह से निकलता हुआ थूक धीरे धीरे विशाल के मूह में जा रहा था वही मुझे अपने उपर हैरानी हो रही थी कि आज मुझे ये सब कुछ भी बुरा नहीं लग रहा बल्कि मेरी चूत और भी गीली होती जा रही थी.....

कुछ देर पैंटी चूसने के बाद विशाल मेरी पैंटी को मेरे मूह से बाहर निकाला और जहाँ मेरी थूक लगी थी वो उसे फिर से अपने मूह में लेकर चूसने लगा......ऐसा उसने मेरे साथ भी किया.........अब तक मेरे अंदर की तपीश अपनी चरम सीमा पर थी........इधेर मेरी चूत से बहता पानी अब रुकने का नाम नहीं ले रहा था........

विशाल फिर मेरे उपर आया और वो फिर मेरे जिस्म पर सिर से लेकर पाँव तक अपनी जीभ धीरे धीरे फेरने लगा.......एक बार फिर से वो मेरे होंठो को चूसने लगा.......

वो मेरे होंठो को धीरे धीरे काट रहा था और मैं अपना मूह पूरा खोलकर उसे और अंदर लेती जा रही थी.......उसका थूक मेरे मूह में घुलता जा रहा था......मुझे इस वक़्त कोई होश ना था कि ये सब सही है या ग़लत मगर जो हो रहा था मैं नहीं चाहती थी कि ये सिलसिला अब ख़तम हो.....

थोड़ी देर मेरे होंतों को चूसने के बाद जैसे ही उसने मेरे बूब्स पर अपनी जीभ फेरी मैं एक बार फिर से उछल सी पड़ी.........ना चाहते हुए भी मैं चीख पड़ी......वो फिर अपने मूह में मेरी एक निपल को लेकर उसे बड़े प्यार से चूसने लगा........मैं अपना एक हाथ उसके सिर पर बड़े प्यार से फेर रही थी.......अब मेरे अंदर की शरम लगभग ख़तम हो चुकी थी........
 
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