भोपाल जाने के कोई दो महीने बाद सितम्बर/अक्टूबर में उसने मुझे बार बार फोन किया और मुझे भोपाल आने की लिए जिद करने लगी, अपनी चाहत बताने लगी कि वो तड़प रही है मिलने (चुदने) के लिए!
लेकिन मैं जानबूझ के नहीं गया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरे कारण उसके चरित्र पर या उसके जीवन पर कोई दाग धब्बा लगे. लेकिन उसकी तो चढ़ती जवानी थी, उसका जोबन खुद उसके बस में नहीं था, मुझसे लगभग बीस पच्चीस बार चुदने के बाद उसकी काम पिपासा और भी भड़की हुई थी; जमाने की ऊँच नीच की उसे परवाह ही कहाँ थी. उसकी चूत को मेरे लंड की लत लग चुकी थी और पिछले दो माह से बिना चुदे जैसे तैसे खुद को संभाले हुए थी.
मैंने तो उससे एक बार फोन पर हंसी हंसी में कहा भी कि वो कोई बॉय फ्रेंड ढूँढ ले और अपनी तमन्ना पूरी कर ले.
लेकिन उसने साफ़ मना कर दिया, कहने लगी कि लड़के विश्वास के काबिल नहीं होते धोखा देते हैं, लड़की की इज्जत करना नहीं जानते!
इसी सम्बन्ध में उसने अपनी क्लासमेट डॉली का किस्सा भी बताया कि वो अपने एक बॉय फ्रेंड से चुदवाती थी लेकिन उसके बॉयफ्रेंड ने उसे जबरदस्त धोखा दिया, बहाने से अपने घर बुलाया और अपने दो दोस्तों को भी चुपके से बुला लिया और उसको सबसे चुदवा दिया. किसी ने चूत में लंड पेला, दूसरे ने गांड में तीसरे ने मुंह में. इस तरह तीन लड़कों ने एक साथ दो घंटों तक उसे तरह तरह से पोर्न फिल्म की स्टाइल में चोदा फिर अपना पानी भी उसके बालों में मुंह में चूत में गांड में सब जगह भर दिया.
बेचारी करती भी क्या, चुद गई और किसी तरह गिरती पड़ती अपने घर पहुंची.
शालिनी इस तरह मुझे बार बार फोन करती. कभी उलाहना भी देने लगती कि मुझसे दिल भर गया ना आपका; और कोई मिल गई होगी कमसिन कच्ची कली… उसी से खेल रहे होगे आप, तभी तो अब मेरी परवाह नहीं करते आप… इस तरह वो इमोशनल बातें करती रहती.
लड़कियों की तो आदत ही होती है ऐसे अपनेपन से शिकायत और प्यार जताने की!
मित्रो, उसी साल नवम्बर के दूसरे हफ्ते में दीवाली थी; मुझे याद है कि फर्स्ट वीक में उसका फोन आया था. मुझे उसने अपनी जान की कसम देकर कहा कि एक बार तो भोपाल आना ही होगा. साथ में ये भी कहा कि भोपाल में मुझे बढ़िया सरप्राइज भी मिलेगा.
जब मैंने सरप्राइज के बारे में पूछा तो वो टाल गई, बस अपनी कसमें दे दे कर आने को कहती रही.
इस बार मैंने उसकी कसम से मजबूर होकर हाँ कर दी और बोला कि सिर्फ एक बार ही भोपाल आऊंगा उससे मिलने, इसके बाद वो मुझे नहीं बुलायेगी, न मैं कभी फिर दुबारा आऊंगा.
और वो मान गई मेरी ये बात.
हमने प्लान बनाया कि कैसे कहाँ मिलना है. तो वो बोली कि जिस किराए के कमरे में वो रहती है वहीं पर मुझे आना है.
जब मैंने प्रश्न किया कि वो मेरे बारे में मकान मालिक को क्या परिचय देगी तो उसने कहा कि कह दूंगी कि मेरी पालम पुर वाली सहेली के पापा हैं, किसी काम से आ रहे थे तो मैंने अपने यहाँ रुकने को बुला लिया. इस तरह किसी को कोई शक नहीं होगा.
मैंने भी इस पर विचार करके हाँ कह दी और जाने की तारीख भी तय कर ली, नई दिल्ली-भोपाल शताब्दी से अपना आरक्षण भी करवा लिया.
जिस दिन मुझे भोपाल जाना था, उस दिन शनिवार था. ऐसे तो शताब्दी के पालम पुर आने का टाइम दोपहर में साढ़े बारह के करीब है लेकिन उस दिन वो डेढ़ घंटे की देरी से आई; खैर जाना तो था ही तो चढ़ गया.
भोपाल पहुँचते पहुँचते कोई पांच बज गये.
भोपाल उतर कर मैंने शालिनी को रिंग किया कि मैं आ गया हूँ.
वो तो जैसे तैयार ही बैठी थी मेरा फोन सुनने के लिये… ‘हाय अंकल जी, जल्दी से आ जाओ अब!’
‘अरे आ तो गया ही हूँ लेकिन आना कहाँ है, भोपाल तो मैं पहली बार आया हूँ मुझे यहाँ का कुछ नहीं पता!’
‘अंकल जी, आप एक नंबर प्लेटफोर्म के बाईं तरफ वाले गेट से बाहर आ जाओ, फिर किसी ऑटो वाले से मेरी बात कराओ, मैं उसे समझा दूंगी कि कहाँ आना है.’
‘ओके बेबी…’ मैंने कहा.
और जैसे उसने कहा था, मैं प्लेटफोर्म से बाहर निकला और एक खाली ऑटो वाले से शालिनी की बात कराई और बैठ कर निकल लिया.
ऑटो रिक्शा से भोपाल शहर का नजारा काफी अच्छा लगा. चौड़ी सड़कें, वाहनों की भीड़, सजीधजी दुकानें, सड़क की साइड में फल, चाट वालों के ठेले. मध्यप्रदेश की राजधानी के हिसाब से भोपाल की रौनक अच्छी लगी.
कोई पंद्रह बीस मिनट बाद ऑटो रुका. शालिनी मुझे दरवाजे पर ही खड़ी मिली, मरून कलर की मेक्सी पहन रखी थी उसने, जिसमें से उसके मम्मों का आकर्षक उभार साफ़ साफ़ दिख रहा था.
लगता था कि उसके मम्मे पहले से बड़े बड़े हो गये थे.
मुझे देखते ही उसने अपने होंठो से हवा में ही मुझे चूमा और मेरा बैग मुझसे ले कर घर के भीतर ले गई मुझे!
अन्दर से अच्छा साफ़ सुथरा घर था, घर के आंगन के बगल में बरामदा और किचन था. किचन से खाना बनने की महक उठ रही थी. शालिनी के मकान मालिक के परिवार के लोग वहीं बरामदे में बैठे थे, हमारा आपस में परिचय हुआ, मेरे बारे में तो शालिनी ने सबको बता ही दिया था कि मैं उसका अंकल, उसकी सहेली डॉली का पापा हूँ.
लैंड लार्ड की फॅमिली में एक बुजुर्ग दंपत्ति और एक बेटा बहू थे बस!
सबसे परिचय होते होते एक स्त्री माथे तक घूंघट डाले मेरे सामने चाय, बिस्किट और पानी रख गई. कुछ ही देर बाद घर के पुरुष विदा हो गये कि उन्हें अपनी दूकान पर जाना है और वो बुजुर्ग महिला भी ये कह कर चली गई कि उनका मंदिर जाने का टाइम हो गया.
जलपान के बाद शालिनी मुझे अपने रूम में ले गई, उसका रूम तीसरी मंजिल पर था. एक अच्छा ख़ासा बड़ा कमरा था साथ में अटैच्ड वाशरूम था, आगे खुली छत थी जिसके नीचे झाँकने पर बाजार की चहल पहल दिखती थी.
‘बढ़िया जगह है!’ मैंने सोचा.
शालिनी ने मेरा बैग टेबल पर रखा और मेरे सीने से लग गई. मैंने भी उसे अपने बाहुपाश में कैद कर लिया. काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोला, बस एक दूजे के दिलों की धक् धक् सुनते रहे.
‘कितना मनाने के बाद आये हो ना!’ उसने शिकायत की.
‘अब आ तो गया ना… आज की सारी रात कल का सारा दिन और रात तुम्हारे पास रहूँगा!’ मैंने बोला और मैक्सी के ऊपर से ही उसके मम्में दबोच के उन्हें मसलने लगा.
‘सब्र करो ना थोड़ा सा. पहले फ्रेश हो लो, चाहो तो नहा लो, सफ़र की थकान उतर जायेगी!’ वो बोली.
मैंने वैसा ही किया, नहा कर बाहर आया और खुली छत पर कुर्सी ले के बैठ गया. बढ़िया मस्त हवा चल रही थी; भोपाल का मौसम अच्छा लगा मुझे. सर्दियों का मौसम शुरू हो रहा था हवा में हल्की सी सिहरन महसूस होने लगी थी.