kamukta Kaamdev ki Leela - Page 5 - SexBaba
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kamukta Kaamdev ki Leela

सब ख़ामोश रहे और उस धोंग करती हुई बूढ़ी औरत को देखने लगे।

फिर कुछ चुप्पी और खामोशी के बाद, हस्ते यशोधा की मुंह से ऐसी बात निकल गई, जिसे सुनने के बाद सब के दिल गर्दन तक आ गए और सासें तेज़ हो गई। "अरे मेरे प्यारे बच्चों! मेरे प्यारे पोते ने मुझे वोह अनमोल प्रस्ताव दिया, जिसके वजह से हाए!!!! मै खुशी से फूल उठी हूं!!"।

"अरे भाग्यवान बता भी दो! शरमाओ मत!" रामधीर शैतानी अंदाज़ में पूछने लगा।

"कौन सा प्रस्ताव दादी?????" रिमी भी उत्सुकता से भरपूर थी, नमिता और रेवती भी कम नहीं थी "दादी!! कामोंन!!!"

"यह माजी क्या कहना चाहती है?? दीदी आप को कुछ मालूम है?" रमोला का इशारा आशा की तरफ थी, जो केवल इस सारी और चिरकुट के बारे में सोचने लगी, कुछ बोल नहीं रही थी। रात का खौफ अभी से ही आंखो में साफ झलक रही थी। बहा दूसरे और यशोधा देवी नाटकीय अंदाज़ में बोल परी "शादी का प्रस्ताव!!!!"

"क्या???????" सब के अब हैरान हो गए।

राहुल भी हस परा "अरे माय दादी इस बेस्ट दादी!!!! शादी तो में उनसे ही करूंगा!"। बातों के हल्कापन को महसूस करते हुए, सब राहत के सास लेने लगे और तभी नमिता "व्हाट द हेल राहुल!!! कुछ भी शुरू कर देता है तू!" "पागल हो तुम भइया!!!" रेवती भी खीखीला उठी और सब के स कम हंस परे। यशोधा एक चैन की सास ली और राहुल को मारने की इशारा की। जवाब में राहुल ने भी आंख मार दी।

सब नॉरमल चलता गया, खाना पीना और थोड़ा संगीत वेजरण भी हुआ। धीरे धीरे रात से आधी रात हो चुका था, चांद की रोशनी आशा और महेश के कमरे पर झलक रहा था खिड़की में से। होंठ दबाए, हथेलियों को मसलते हुए आशा ने अपनी साइड टेबल पर घरी को देखी, पूरे १३ ब्ज चुके थे। दिल की धड़कन तेज, बहुत तेज़ होने लगी। उसी अंधेरे में अचानक ड्रेसिंग टेबल के आइने में गजोधरी प्रकट हुई, जिसने आशा का ही रूप धारण कर ली।

"क्या सोच रही हो आशा! यही तो तुम चाहती थी!" इस वाक्य को खत्म करते ही आशा की प्रेटोबिंब हसने लगी, जिसे देख आशा भी हैरान चकित हो उठी और शरमा गई, क्योंकि आइने ने जो कुछ भी कहा, सब सच थी। बिना किसी विलंब किए वोह बिस्तर पे से उठी और निर्वस्त्र हो गई, फिर एक नजर अपनी नग्न जिस्म पर डाली, सुडौल और मदमस्त जिस्म की मालकिन थी वोह! इस बात पे खुश होके, पैकेट में दी गई साड़ी को पहनने लगी। फिर झुमके, नथ और चूड़ियां।

सज संवर के वोह ऐसे प्रस्तुत दिख रही थी, मानो पहली सुहागरात हो। "ईश! ना जाने क्या होने वाली है आज मेरे साथ!"। चुपके से पूरी दुल्हन अंदाज़ में वोह कमरे में से निकल परी। हाथ में दिल थामे और लाज का गहना तो पहले ही उतार चुकी थी। एक तरफा अपनी सोते हुए पतिदेव को देखी और फिर दांतो तेले होंठो को दबाए अपने सास ससुर की कमरे कि और जाने लगी।

दिल मै उमंगे और योनि में गीलापन, सज धज दुल्हन की तरह और आंखो में किसी कमसिन कली की तरह उमंगे लिए!

यह दशा थी आशा की।

__________
 
धीरे धीरे आशा की कदम अपने ससुर की कमरे कि और जाने लगी। रात के अंधेरे में घुंगट अोदे बरी मदमस्त अदा से वोह चल रही थी, दुनिया और रस्मो रिवाज से बेखबर। ठीक उसी समय रिमी नीचे रसोई की तरफ जाने लगी, पानी की खाली जग लिए, के उसकी नज़र एक शादी के जोड़े वाली औरत पे आके रुक गई। हैरान और उत्सुख होती हुई वोह वहीं से देखने लगी के जोड़े में और कोई नहीं बल्कि उसकी अपनी मा थी। "मा और ऐसे??? इस समय?"। उसकी आंखे बड़ी हो गई जब आशा के कदम सीधे उसकी दादी और दादा के कमरे की और चलदी और जैसे ही वोह अंदर प्रवेश कर ली, चुपके से रिमी कमरे के चौखट के बाहर खड़ी हो गई।

आशा अंदर आते ही एक दम से दंग रह गई, सामने का नज़ारा देखकर!

उसकी सास यशोधा देवी, अपनी बलो को डाई कर चुकी थी, मानो उम्र कम होने का एहसास दे रही हो, एक रंग बिरंगी सारी पहनी हुई, अपनी हथेली पर एक आरती की थाली लिए खड़ी थी "आओ बहू!"। चेहरे पर एक कामुक मुस्कान थी और जैसे ही आशा के नज़रे यहां वहा गई, वोह इतनी ज़्यादा हैरान हुई, जितनी शायद वोह अपनी पूरी जिंदगी में अब तक ना ही पाई!

दीवारों पे से सारे के सारे देवी देवताओं के तस्वीरे निकले गए थे और केवल कामदेव और रति की तस्वीरें सजाए गए थे चारो और। इतना ही नहीं, बल्कि बिस्तर पूरी के पूरी सफेद चादर और उसपे गुलाब की पंखुड़ियां फैले हुए थे। एक अजीब महक थी पूरी कमरे में और आशा को यह सब देखकर मशेश के साथ सुहागरात याद आ गई "माजी! यह सब......."। तुरंत यशोधा अपनी उंगलियां आशा की होंठो को थाम ली "चुप हो जाओ बहू! आज कुछ मत बोलो, कुछ मत सोचो! सब भूल जाओ! आओ!"। अपने बहू के पीठ पर हाथ रखे यशोधा उसे बिस्तर की और ले गई और अजीब तरीके से देखने लगी "हाए मेरी प्यारी बहु!"

आशा और उसकी सास बैठ गई और आशा हैरानी से अपनी सास की और देखने लगी "माजी! मुझे डर लग रहा है! यह सब......." "ज़रूरी है बहू! तू अपनी ज़िन्दगी नए से शुरू कर!" फिर कमरे के कोने में एक पर नज़रे फिरती हुई "सुनिए जी! आजाइए!"। बस फिर क्या, रस्सी टूटी और सांड मैदान में! रामधीर एक दूल्हे के लिबाज़ में हाज़िर और आंखो में भयानक प्यास और भूख लिए अपने बहू के तरफ देखने लगी और किसी अनजाने मर्द की तरह बरताव करने लगी, जो अभी अभी अपने नए नवेली बिवी की खुदाई करने वाला था।

आशा चौंक के उठने ही बली थी कि उसकी हाथो को कस के रोक दी यशोधा, आंखो में जिद और क्रोध का मिश्रण का मिलन थी, जिसे देख आशा को बिन कहे बहुत कुछ सुनाई दी और वोह चुप रहना ही मुनासिब समझी। रामधीर के बिस्तर के करीब आने पे यशोधा उठ गई और प्यार से अपने पति की और मुस्कुराई और सामने एक कुर्सी पे बैठ गई। समय एक अजीब लहर से गुजर रहा था और आशा की दिल की धकड़न काफी तेज हो गई। रामधीर के धोती में तो उनका मोटा लिंग उभर के उपर की तरफ उठने लगा अपने बहू की और देखकर।

यशोधा देवी पूर्ण बेशर्मी के साथ सामने के कुर्सी पर ऐसी विराजमन थी, मानो अपनी मनपसंद सीरियल देखने बैठी हो! पूरी उत्सुकता लिए वोह बैठी रही, सामने बिस्तर पर आंखे गड़े हुए। लेकिन उन्हें देखें आशा, जो अपने ससुर की हाथ थामे थी, अचानक वहीं के वही रुक गई "बाबूजी! यह माजी यहां पर??" उसकी आंखो में सवाल बहुत थे, लेकिन रामधीर हंस के बात को टाल दिया और आशा को अपने बाहों में लेली, कस के उसके उभर पर अपने छाती रगड़ने लगे। आशा बस इस स्पर्श के लिए हमेशा तरसती रहती थी, और आज जब यह मौका हाथ लगी थी, तो खुद को रोक नहीं पाई और खुद भी कसकर जकड़ लिया अपने ससुर को, और कान में फिर भी मासूमियत से पूछने लगी "क्या माजी! यही रहेंगे??"

रामधीर आपने बहू के कान को चूम लेता है "तुम्हे अपत्ती है?"। आशा अपने गीले कान से सिसक उठी "धत!! मुझे शर्म आ रही है!"। बहू की मधुर वाणी सुनकर यशोधा क्रोधित होने का नाटक करने लगी "बहू!! मुझे सब सुनाई दे रही है! चुप हो जा! वरना मुर्गी बना दूंगी!!!" क्योंकि यशोधा एक अध्यापक थी अपने समय में, उसकी ध्वनि में एक स्कत भाव और यह सुनकर आशा शर्म से पानी पानी हो गई। सास की मौजूदगी मै अपनी ससुर के साथ ऐसी स्तिथि ने खुद को पाकर बहुत ही उत्तेजित हो रही थी। ऊपर से सास से ऐसी डांट खाकर एक अजीब सी खुमार छा गई उसकी जिस्म मै।

जब उंगलियों कस गई अपने ससुर के अस्थिन पर, तो रामधीर ने मौका देखें और ज़्यादा बाहों में कस लिया। छाती और स्तन ऐसे रगड़े के आशा की सिसकी निकल गई "आह बाबूजी!"।
रामधीर भी इस सिसकी से प्रभावित होकर आगे बढ़ने लगा और अब की बार अपने बहू के गले के चारो और चूमने लगा। एक मीठी तरंग गुजर गई आशा की बदन में और उसकी नजर सीधे जम गई अपनी सास पे, जो वहीं कुछ दूरी पर बैठी बैठी यह हसीन सीन देख रही थी। अब पहले के मुकाबले फर्क यह थी के यशोधा ने अपने पल्लू को नीचे कर चुकी थी और अपने खुद के हाथो से अपने ही रसभरे सुडौल पपीतों को मसल रही थी।

उनकी होंठ से सिसकी निकलकर सीधे आशा की कान में ऐसे शहद घोल रही थी, जिससे उसकी खुद की भी सिसकी निकल रही थी। सास को ऐसे देख और ससुर को अपनी जिस्म से चिपके मिलने पे वोह पागल होने लगी और अब की बार आंखें शर्म से बंद कर दी। रामधीर अपने उंगलियां अपने बहू के होंठो पर अब फिराने लगा "कामल के होंठ है तेरे बहू! पता नहीं इतने साल मैंने कैसी इन्हे पान नहीं की!" रामधीर की आवाज़ में एक बेचैनी साफ प्रकट हो रहा था, जो आशा को साफ़ नज़र आ रही थी।

पति के कामुकता से यशोधा काफी प्रसन्न हो उठी और खुद राहुल के यादों में जुड़ गई, खास करके वोह घरी जब राहुल ने उनसे मज़ाक में कह डाला था के "अरें दादी! मुझे तो लड़की नहीं, औरतें ज़्यादा पसंद है!"। हाए! मज़ाक में कहीं गई बात उत्तेजित तो भरपूर कर रही थी यशोधा को! लेकिन इन अब ख़यालो को उसने दूर ही रखा, और सिर्फ अपने पति और बहू पे ध्यान देना मुनासिब समझी। देख रही थी के कैसे उसकी पति एक दम मस्त्मग्न होके अपने बहू को भोगने चला।

"हाय राम! यह तो है है पैदाइशी बदमाश!" एक नटखट अंदाज़ में मुस्कुरा उठी यशोधा जब गौर किया के आशा की बदन से पल्लू हट चुकी थी और दुनिया के सामने पेश हुई उसकी लाल ब्लाउस में लिपटी मोटे मोटे स्तन!
 
रामधीर से अब रहा नहीं गया! उन्होंने फौरन ब्लाउस में कैद कबूतरों को मसलने लगा, हौले से, प्यार से। स्तन दबोच जाने से आशा की मुंह से सिसकारियां भरी मीठी मीठी वाणी निकल गई। इस वक्त वोह बस अपनी ससुर की बाहों में रहना चाहती थी। अपने आप ही उसके हाथ रामधीर की पीठ पर कस लिए और इस बार वोह खुद अपनी रसीले लबों को अपने ससुर से जोड़ दी, जिसे देख यशोधा को प्रेम वासना भारी जलन हुई, वोह केवल वासना भरी नजर से सामने देखती गई और हाथो को अपने पपीते जैसे स्तन पर कायम रखा।

रामधीर अपनी बहू की रसपान करने में मगन हो गई और साथ साथ अब ब्लाउस के बटनों को खोलने में व्यस्त हो गए। एक बटन के खुल जाने पे आशा की धड़कन तेज तेज दौड़ने लगी। अपनी होंठो को दबाए उसने केवल अपनी आंखे बंद की थी और बहू के स्तन कसायाई देखकर यशोधा स्वयंम अपनी ब्लाउस के अंदर हाथ घुसेड़ के सफेद ब्रा के ऊपर से पपीतों को मसलने लगी पागलों की तरह। वासना का तापमान बड़ रहा था, लेकिन केवल अंदर का ही दृश्य मनमोहक थी, ऐसा नहीं था दोस्तों! कमरे के बिलकुल चौखट पे चुप चाप एक लड़की अपनी पूरी पैंटी और शोर्ट्स घुटनों तक करके अपनी मुनिया को मसल रही थी, और साथ साथ हथेली को मुंह तक लेके गई, ताकि दुनिया को अपनी बेबसी ना ऐलान कर सके! यह लड़की कोई और नहीं बल्कि रिमी थी।

अंदर होते हुए दृश्य को हजम करना काफी मुश्किल थी एक ऐसे लड़की के लिए, जो पिछले कुछ दिनों से इतना कामुक हो उठी थी के अपने भाई से भी सम्बन्ध बना ली थी! और अब अपने ही मा को अपने दादा के साथ इस तरह देखें, पूरी जिस्म में एक भयंकर खुमारी छा गई थी, जो संभाल पाना काफी कठिन होने वाली है रिमी के लिए। खैर, बार बार उसके दादाजी उसके मा को दबोच लेते, उतनी बार वोह बेचैरित अपनी थूक से सने उंगलियां नीचे की और ले जाती। ब्लू फिल्मे देखना तो एक और बात थी, लेकिन परिवार में ऐसी वासना जनक माहौल को देखना एक और बात थी!

रिमी आगे आगे देखती गई और वहा दूसरे और रामधीर अब अपने कुत्ते को निकाकर फेंक देता है और हैरान जनक, उन्होंने कोई बनियान नहीं पहना था और उनका चौदा बालों से घने छाती सीधा आशा के नज़रों के सामने आ गया। यह वहीं छाती था जिसके गंध आशा अक्सर बनियान से सुंगती थी और आज वही पसिनेदार छाती उसकी आंखो के सामने खुले आम। उत्तेजित होकर वोह ससुर के छाती पर अपनी नाक को रगड़ ने लगी, जिसे देख यशोधा बहुत कमुक हो उठी, इतना मात्रा में, के वोह खुद कुर्सी से उठ गई और अब निर्वस्त्र होने में मगन हो गई।

कामवासना का तापमान इतना बड़ गया था के सारी, ब्लाउस और पेटिकोट तक उतार दी फेंकी थी। अपनी भरी भरकम शरीर को यशोधा नग्न करके उसे एक अजीब सुकून मिली, सच पूछिए तो कमरे की हवाओं से और उनकी जिस्म महक उठी और पूर्ण बेशर्मी से जब वोह मटक मटक कर आगे गई और बिस्तर के बिकुक करीब रुक गई, कमर पर हाथो को थामे। इस दृश्य को देखे रिमी की योनि इतनी गंगा जमुना बहाने लगी, के नीचे टाइल्स अब चिकना होने लगा। "ओह माय गॉड!!! दादी???" उसे यकीन नहीं हो रही थी के याहोधा देवी पूर्ण नग्न खड़ी थी बिस्तर के बिल्कुल सामने, जहा उनके पति अपने ही बहू को जी भर कर भोग रहे थे।

"आओ! आओ मेरे आगोश में बहू!" रामधीर अब आशा की ब्लाउस पूर्ण उतार फेंक देती है, जिससे शर्म और हया की एक और दीवार भी टूट गई और फिर जैसे ही शर्म से आशा की नज़रों थोड़ी सी बाजू में मुड़ी, तो उसकी रूह कांप उठी अपनी सांस को पूर्ण नग्न अवस्था में देखकर "माजी!!!?? यह आप...."। लेकिन वासना से भरी मन और जिस्म लिए यशोधा इतनी आंधी हो गई के उनकी हाथ अपने आप ही अपने बहू के गाल पर उठ गई "साली कुतीया!!! बहुत बात कर रही है!! चुप!"।

आशा की आंखे नम हो गई "माजी?"

"चुप!!! मेरे पति को चैन से भोगने दें! जब गान्ड मतकई यहां से वहा फिरती थी उनके सामने से, तब सोचना चाहाई था!!!" एक हुंकार मारती हुई यशोधा बोल परी।

आशा और रिमी, दोनों के दिल कांप उठे! ना जाने किसकी आत्मा घुस चुकी थी इस कोमल सी बूढ़ी औरत के अंदर के वासना के इस मुकाम पर लाकर खड़ी की थी खुदको! गाल पर तमाचा मिलते ही आशा मायूस हो गई और इस बहाने रामधीर उसे नीचे लेटा देता है और आंखो के इर्द गिर्द चूमने लगा, साथ साथ अब ब्रा का भी मुक्त होने का समय आगाय। उंगलियां पीछे स्ट्रैप से खेलने लगे और आशा की सासे तेज़ हो गई। अब बरी थी लंगोट मिया की, जो सीधा रामधीर ने शरीर से अलग करके नीचे टाइल्स की और फेंक दिया।

फिर एक एक वस्त्र आशा के त्याग होने लगे! पेटिकोट से लेके ब्रा तक।

अब दृश्य कमरे में बेहद कामुक था, दो साठ साल के पति पत्नी अपने ही बहू की साथ पूर्ण नग्न अवस्था में प्रिमलीला के मज़े ले रहे थे और बाहर रिमी की थूक और उंगली का मिलन कभी नहीं रुक पाई। वोह हर घरी अपनी मुनिया को मारने लगी, मसलने लगी और खुरेड़ने लगी "आह!!!! उफ्फ!!! यह सब...ओह गॉड!!" उसकी सिसकियां रुके नहीं रुक रही थी। आज माहौल बेहद रंगीन थी।

अब हुआ यू के, आशा के मुख्य दुआर में घुसने के लिए रामधीर पागल होने लगा और ऐसे में यशोधा खुद अपने पति के लिंग को जकड़ लेती है "आय जी! यह तो लोहा के तरह सकत हो गया है! एक मिनिट!" इतना कहने के बाद, उन्होंने कामदेव के तस्वीर के नीचे रखे आरती की थाली ली और वहा से कुछ सिंदूर लिए अपने पति के लिंग और बहू के नग्न योनि पर फिरा दी "जय कामदेव! जय कामदेव!" की रट भी लगाई हुई थी। "उफ्फ भाग्यवान! कुछ भी कहो, बहू की जिस्म तो लाजवाब है!" रामधीर ऊपर से नीचे आशा को तारने लगे, जिससे हुआ यह के यशोधा घुस्से में नाटक करती हुई बोल परी "जाइए जी! एक ज़माने में, में भी ऐसी ही थी, लेकिन अब मोटी हो गई हूं! तो आपको बहू भा गई!!"

एक रोने के पोज लिए यशोधा नाटक करने लगी, उनकी चौड़ी हो गई पहले से ही चौड़ी स्तन देखें रिमी अपनी योनि को कस के ऐसे दबोच ली, के उसकी घुटनों पे अब कमजोरी आने लगी और वोह उसी चिकने टाइल्स पर छूटने टिकाए बैठी, आगे देखती गई।
 
रामधीर हसने लगा अपनी पत्नी की कथन सुनके "अरे फिक्र मत करो! यह मोटी जिस्म का तो राहुल बेटा खुद दीवाना है!!!" इस वाक्य को आशा ने सुन तो ली थी, लेकिन ससुर की आगोश में वोह पहले से ही इतनी मदहोश थी के, कुछ भी सूझ नहीं रही थी। पति के लिंग को जड़करे हुए यशोधा देवी सीधे अपने बहू की मुख्य दुआर पे दस्तक देने लगी, तो आशा की दिल ज़ोर ज़ोर ऐसे धड़क उठी के मानो सीने से निलकर भाग जाएगी!

फिर.....
की
हुआ वोह जिसका आशा और रामधीर, दोनों को इंतज़ार थी! लिंग और योनि का मधुर मिलन हो गया और पहले धक्के से ही आशा ऐसी मस्त हो उठी, के एक लम्बी "उई मा!!!! बाबूजी!!!!" कहकर सिसक उठी और उसकी टांगे रामधीर के गांड़ को कस कर जकड़ लिया! "जय हो कामदेव!!!!! जय हो!" यशोधा मन ही मन बोल परी और आशा की हाथ कस कर थाम ली। आशा अब चुदाई में मगन हो गई और साथ साथ रिमी की भी सिसकियां निकलती गई। कमरे का दृश्य बेहद मनमोहक हो उठा था।

"बहू!!!!! ओह बहू!"

"मत रुकिए बाबूजी!! मत रुकिए! भोगिय मुझे! आप महेश से बरकर है मेरी नज़रों में!!!!"

"अरे में बाप हूं उसका!!! उसने तीन बच्चे पेले है ना अंदर??? मै चार दूंगा तुझे!!!! तेरी पेट फूलाऊंगा में बहू!!!!"

"ओह मा!!! बाबूजी! अब बारे वोह हो!" जिस्म को जिस्म म रगड़ रगड़ कर बिस्तर को हिलाने लगी आशा और यह देख और सुनके रिमी अपनी खुद की जिस्म को यहां वहा, नीचे उपर मसलने लगी। उसकी होश पूर्ण खो गई थी और अब अगर पूरी दुनिया ने उसे इस अवस्था में रंगे हाथ पकड़ ली तो भी कोई हर्ज नहीं थी!

ससुर, बहू सिसकी पे सिसकी देते त रहे, के तभी रामधीर एक ज़ोर का हुंकार मारता है और बंदूक के गोली की भांति मलाई पे मलाई दुआर के अंदर घोलने लगा। दुआर में गरमा गरम पदार्थ के एहसास से आशा एक गहरी सिसकी दे उठी और सास के हाथो को कस के ज जकड़ ली। आंखे नमी थी, और चेहरे पर एक अजीब सी सुकून। उपर रामधीर भी थके बहू से लिपट के सो गए और यशोधा मन ही मन मुस्कुरा उठी "अब हिसाब बराबर हुआ! बेचारे कबसे तरस रहे थे!"

थके चुरे रिमी भी अपने कमरे में भाग गई और यशोधा खड़ी के खड़ी रही, और कुछ पल के बाद जब नज़रे नीचे की तो गौर किया के मोटी मोटी जांघों पे गीलापन फैल चुकी थी और एक मोटी कतरा लटक रही थी योन के दुआर पर। एक मीठी मिठी हसी देती हुई यशोधा उस कतरे को उठाके चूस गई प्यार से।

तस्वीर में से कामदेव खुद मुस्कुरा उठे और अपने पति और बहू के बाहर बहती हुई कुछ रस को अपने हाथ पर इख्ट्रा किय, और अपनी जिस्म में मलने लगी और हस्ते हुए सोचने लगी "गजोधरी की भी जई हों! तुम्हारे इस रिवाज ने मुझे मस्त कर दिया, हाय!"।

एक नज़र अपने बहू के नंगे पेट पर रखी और पति की दावा को याद करके फिर शर्मा गई "उफ़! यह भी ना!"।

______
 
उपर स्वर्ग में पूरी रात की दास्तां लाइव टेलीकास्ट हुआ था कामदेव और रती की मेहल मै। दोनों उत्तेजित तरीके से एक दूसरे को देखने लगे!

कामदेव : सच में बहुत कामुक स्तिथि थी कल रात को!

रती : बिल्कुल प्रभु! ओह! कैसे एक इतनी उम्र की औरत अपने ही बहू को अपने पति के साथ जुड़ा ली!

कामदेव : सच कह रही हो प्रियतमा! यह यशोधा देवी तो सचमुच बेहद कामुक और नटखट निकली। खैर! कामुकता तो हर इंसान के रग रग में है! क्यों सच कह रहा हूं ना?

रती : (बाहों में बाहें डाले) आप जो बोले, सत्यवचन है प्रभु! सच पूछिए तो इतना कामुक सीन देखने के बाद, मै खुद कामुक होता जैसे शब्द पर और ज़्यादा गर्व करने लगी हूं! (कामदेव के छाती प पर सर रखे) लेकिन प्रभु! मुझे अब राहुल की भवहिस्या जानने में बेहद दिलचस्पी है। इस लड़के का क्या होगा?

कामदेव : (रती के बालों पर हाथ फेरता हुआ) तुम्हारा उत्कसुख रखना लाजमी है! अब राहुल कामुकता की नदी में उतर चुका है! अब इसका वापस लौटना मुश्किल है! धीरे धीरे वोह सब को आगोश में लेलेगा! (मुस्कुराता हुआ) अब चलिए आगे आगे देखते है क्या होता है!

रती : (होंठो को दबाए) जी प्रभु! मुझे और भी देखना है! क्या क्या होते है इस घर में!

चलिए हम भी चलते है नीचे धरती की तरफ!

.......

सुबह सुबह हमेशा की तरह चिड़िया चेहक उठी और एक लम्बी अंगराई लिए आशा अपनी नींद से जाग उठी। आंखे खोलते ही जब आस पास देखी, तो बुरी तरह शर्मा गई, क्योंकि दूसरे तरफ लेटा था उसका ससुर रामधीर, जैसे कोई थका लेटा हुआ सांड हो, जो पूरी रात अपने गाई का खुदाई या खेत जुटाई में व्यस्त था। फिर एक नजर आशा ने अपने हुलिए की और गौर की तो अपनी पूरी नग्न जिस्म की उपर के हिस्से पे हर जगह प्रेम के छाप महसूस की! चाहे वोह उसकी मोटी मोटी स्तन हो, या गले और गाल हो! हर हिस्से पे एक लव बाइट के नाम पे खरोच मौजूद था रामधीर का दिया हुआ।

बेसंकोच बोह पूर्ण नग्न अवस्था प में उठ गई और सेधा आइने के सामने खड़ी हो गई, ताकि अपनी जिस्म मै लगे हर बाइट को गौर से देख रके। "हाई राम! यह बाबूजी तो सच में सांड निकले! यह गालों और स्तन पर दाग लिए, मै भला कैसे निकलूंगा कमरे से!!" आशा की मन तो थोड़ी सी चिंतित ज़रूर थी, लेकिन जिस्म तृप्त हो चुकी थी रात के खुदाई के बाद। उसकी नज़र अपने आप ही अपनी मोटी मोटी स्तन पे गई जो पहले से थोड़ी और सूझ गई थी, मसल जाने के कारन!

यूं तो ४० की थी, लेकिन आज २० की महसूस कर रही थी आशा, मानो इसे लगी के अंग अंग खिल उठी थी, रामधीर के कारन! फिर उसकी नज़र अपने गालों पर गई, जाहा उसने गौर किया के दोनों तरफ दांत के बैट्स मौजूद थे। इस एहसास से वोह शर्मा गई और जांघ पर फिर से गीलापन महसूस की "अब बच्चो को मुंह कैसे दिखाऊ! हाय राम!" लेकिन यह तो कुछ भी नहीं थी, जहा उसके योनि में गरमा गरम मलाई जाने का एहसास हुआ था!

अब क्या होगा! क्या सच में वोह गर्भ से होंगी? इस चुटकी भर सोच से ही आशा फिर शर्मा गई और बहुत ही खुशी छलक गई चेहरे पर, एक अजीब सी लहर दौड़ गई पूरी जिस्म मै, मानो नई नई दुल्हन हो! "हाई काश में मर जाऊ!!! यह सब क्या हो गया मेरे साथ! महेश हो सके तो मुझे माफ़ कर देना!" इतना कहना था के वोह फौरन अपने लिबाज़ उठाए अपनी कमरे कि और भाग गई।

थिरकते गांड़ लिए वोह कैसे भी हो अपने खुद की कमरे तक पहुंच जाती है और एक सुकून की सास ले ली, जब महेश को चैन से सोते हुए पाई। एक नॉरमल सी सारी और ब्लाउस लिए वोह अपने बाथरूम में घुस जाती है।

वहा दूसरे और हॉल मै अब चाई की चुस्की का वकत हो चुका था। सबसे पहले बैठी खुद यशोधा देवी, हाथ में चाई लिए और मज़े की बात यह थी के बाल डाई किया हुआ था और गालों पे हल्की सी लालिमा भी अाई थी, मानो कोई हल्का टच लगाया गया हो अनपे। यह सब राहुल के साथ रासलीला का नतीजा था, जो उन्हें जवान बनने पे मजबुर कर रही थी। जी में तो यह भी आती रही के काश वोह कुछ रेंग बिरंगी सारी पहने! लेकिन सफेद पुराने सारी पे डाई किया हुआ बाल, कुछ हद तक कामुक लगने लगी उन्हें।

रमोला अपने आस के बाजू में चाई लेकर बैठ जाती है और अपनी सास पे गौर करने लगी। सच में एक सुकून का भाव थी चेहरे पर और तो और यह गालों के लालिमा कुछ ज़्यादा नहीं थी? सच में इनकी उम्र के हिसाब से कछ ज़्यादा ही छलक रहे थे फूले हुए गालों पे। यूं तो यशोधा अख़बार में मगन थी, लेकिन ध्यान रमोला की और भी बरकरार थी "क्या हुआ बहू? ऐसे क्या देख रही हों?" चाई की चुस्की लिए वोह मुस्कुरा उठी। जवाब मै रमोला भी हल्के से मुस्कुराई "कुछ नहीं माजी! आप कुछ ज़्यादा ही खिली खिली लग रही है!"। यशोधा खुशी खुशी अख़बार को बाजू में रखती है और मन ही मन एक फैसला करने लगी, फिर मुस्कुराके रमोला की हाथ थाम लेती है "तू जानती है यह खुशी किस लिए है?"

रमोला आश्चर्य से अपने सास की और देखने लगी, मानो लाखो सवाल हो मन में, लेकिन फिर ना मै सर हिलाई। यशोधा ने उसके हाथ पर हाथ मल दिए और प्यार से बोली "यह हुआ है कामदेव के पूजा से! तुझे नहीं मालूम बहू, कुछ दिन पहले, रात को सपने में स्वयंम प्रभु कामदेव खुद आए हुए थे और मुझसे आदेश दी के अब से घर में उन्हीं की पूजा होनी चाहिए!" इतना कहना था कि वोह एक झलक अपने बहू को गौर से देखने लगी, जिसके चेहरे पर हैरानी झलक रही थी अभी भी "सच माजी?? ओह!"

यशोधा केवल मुस्कुराई और आगे आगे सुनाती गई "सपने में उन्होंने मुझे एक जरीबुटी दी, जिससे हुआ यू के पीने के बाद एक ताज़गी आती है जिस्म मै! देह तृप्त हो जाती है! और जवानी का आलम छाने लगती है! सच कह रही हूं बहू!"। रमोला की धड़कने तेज हो गई यह सुनके, वोह भी और उत्सुक हो गई सपने के डिटेल्स जानने के लिए "माजी, कैसे दिखते है प्रभु??"। यशोधा भी बहू की तरफ मुड़ जाती है और राहुल के मस्त जिस्म को याद करती हुई मुस्कुरा उठी "क्या कहूं बहू! एकदम जवान था! गठीला युवक! उफ़!"

रमोला : (उत्सुक होके) और बताइए माजी!

यशोधा देवी : आती सुंदर! बड़े प्यार से उन्होंने मुझे एक कटोरी दी (राहुल के लिंग को याद करके) उस कटोरी में एक बेहद मजेदार पदर्थ था! दूध मलाई के समान! (अपने पोते के सुपाड़े से निकले मलाई के याद में) बस फिर क्या! उस के रसपान से नतीजा यह हुए के तुझे मै इतनी खिली खिली लग रही हूं!

रमोला केवल तसव्वुर कर रही थी इन सब का, काश उसे यह पता होती की इन सब से भी बड़कर बहुत कुछ हुआ रहा उस रात को। काश उसे यह पता होती की कैसे राहुल ने अपने ही दादी को भोगा था और सच में कटोरी भर मलाई ही खिलाया था। वोह सोच ही रही थी के गौरव का बुलावा आता है और वोह उठ के, अपने कमरे की और जाने लगी।

यशोदा भी उठ जाती है और यूहीं घर में यहां वहा ठहलने लगी। ठहलते ठहलते, वोह राहुल के कमरे से गुजर ही रही थी के अचानक उनकी कदम वहीं के वहीं रुक जाती है।

यशोधा की नज़रे कमरे के हल्के खुले हुए दरवाज़े के उस पार टिक गई, जहा राहुल पूर्ण मगन होके अपने डंबल हाथ लिए वर्जिश कर रहा था। पसीने में लथपथ गठीले जिस्म को देखकर यशोधा वहीं के वहीं रुक गई और नज़रे अपने पोते पे जमाई रेखी। दुनिया से बेखबर राहुल अपने वर्जिश में लगा हुआ था और बार बार अपनी चौड़ी स्तन को फुलाए देखती गई "हाय! सच में मेरा पोते का जवाब नहीं!" उसकी सांसे तक फूल उठी और हाथ अपने आप अपनी पैरो कर दर्मिया चली गई।

जैसे जैसे राहुल पंप करने लगा, वैसे वैसे यशोधा अपनी फूली हुई योनि सारी के उपर से ही सेहलने लगी। वहा उनके पोते के मुंह से एक आह निकला और यहां उनकी लबों से भी अंहा निकली। राहुल के जिस्म को निहारती हुए एक बेबस बूढ़ी औरत वहीं के बही रुके, अपने जिस्म की इर्द गिर्द मसलने लगी और ऐसा करने पे बार बार खुद को और जवान महसूस करने लगी। उनकी होंठ थरथराए "राहुल! ओह राहुल बेटे!"। रमोला से कहीं गई बात गलत तो नहीं थी! उनका पोता सचमुच कामदेव का ही अवतार था। खैर, सीन का मज़ा लेते हुए यशोधा वहीं खड़ी थी के अचानक पीछे से "दादी!!"

यशोधा की दिल की धड़कन ज़ोर से कांप उठी, और वोह पीछे मुड़ गई।
 
जब यशोधा पीछे मुड़ी तो हैरानी से रिमी की और देखने लेगी, जिसके चेहरे पर मानो लाखो सवाल थे, लेकिन फिलहाल आचार्य और हैरानगी थी। "दादी क्या के रही है? कुछ चाहिए था आपको?"। "अरे नहीं बेटा! कुछ भी तो नहीं! बस ऐसे ही ठहल रही थी, कुछ नहीं!" मुस्कुराए वोह आगे बढ़ने लगी और तभी रिमी की नज़र अपने वर्जिश करते हुए भाई की तरफ गई, और फिर वापस अपने दादी पे, जो बड़ी अदा से मटकती हुई अंदाज़ मै अपनी सुडौल कमर हिलाए चल रही थी।

"मुझे मालूम है बुढ़िया! तू किसी चुड़ैल से कम नहीं है! कल रात मैंने सब कुछ देख ली थी, तुझे तो नंगी रंगे हाथ पकृंगी एक दिन!" इतना के कहना था के फिर रिमी की नज़र वापस राहुल की तरफ जाने लगी और खुद ही मटक मटक के कमरे की अंदर चाल दी "ही भइया! बिजी?"। राहुल अपने मस्त खिली खाई बहन कि और देखकर, फौरन डंबेलों को नीचे गिरा देता है और रिमी को फटक से अपने पसीने में झुझले बदन से चिपका देता है "नो बेबी! एकदम फ्री हूं!"। रिमी खुशी खुशी अपने भाई की बाहों में झुकने लगी और दिनों के होठ मिल जाते है।

राहुल दुनिया को भूल के, जी भर के रिमी की रसीले लबों को चूसता गया और जवाब में वोह भी अपने भइया का पूरा साथ देने लगी। धीरे धीरे राहुल अपने हाथों को अपनी बहन के नए नए उगे आमो पर ले आया और उन्हें प्यार से सहलाने लगा, जिस करन यह हुआ के रिमी अपनी आंखे बन्द कर लेती है और स्तन मर्दन की मज़ा लेने लगती है "ओह भइया और करो ना प्लीज़!!! आप जब भी स्तन को ऐसे मसाज करते है! एक मीठी मिठी दर्द होने लगती है मुझे!"

कमरे के दरवाजे को झट से बन्द करते हुए राहुल अब रिमी को सीधे बिस्तर की और धकेल दैता है और फिर से लबो से लब जोड़ देता है। कछ पल के बाद लब आज़ाद करके अब की बार उसके होंठ सीधा अपनी बहन के गर्दन कि और थामकर जी भर के लुफ्त उठा ता है और वापस फिर एक बार उसके हाथ उन आमो को सहलाने लगा गया "बड़ी प्यारी है तेरे यह! उफ़ जी में आता है खा जाऊ!"। "बड़ा प्यार आ रहा है इनपे, भइया? अभी तक तो नमिता दीदी जितनी बड़ी भी नहीं हुई!" मायूस होने का नाटक करती हुई रिमी फुसफुसाई।

राहुल भी और कामुक हो उठा, उसने और थोड़ा कस के उन आमो को मसल दिया "अरे हो जाएंगे! चिंता की क्या बात है! इन्हे दबा दबा के करदुंगा!" इतना कहना था के राहुल फिर एक बार अपने बहन के होंठो को चूम लेता है और अब अपने हाथो को सीधे उसकी जांघो तक लेके चलता है, जहा पे उसकी मुनिया चुप के से आराम कर रही थी। फिर क्या! हौले से उसने मुनिया पर थपकी मारना शुरू कर दिया और उसकी गरमाहट महसूस करने लगा। अपने योनि पे थपकी लगने से रिमी और सिसक उठी "ओह गॉड! भइया!!!!!! क्या करना चाहते हो??"

राहुल मुस्कुरा उठा और उसकी पैंट को नीचे खींचने लगा "कुछ खास नहीं! तेरी सहेली को साजा देना चाहता हूं!" और अब पैंटी के दर्शन होते ही, उसी के उपर अपनी ज़बान को फिराने लगा, उस दौरान रिहुल ने गौर किया के उसकी बहन की योनि पिछले बार के मुकाबले थोड़ी सी फूली हुई लग रही थी, यूं कहिए के वोह होंठ थोड़े से मोटे हो चुके थे। इस बात को गौर करते हुए राहुल और ज़्यादा मगन हो गया उस योनि पे और जी भर के चूसने लगा। रिमी तो मानो गदगद हो उठी इस हमले से और कस के अपनी भाई के मुंह को दबा दी योनि पर "ओह!!! यूं र सो बैद भइया!!!!! ओह!"

अब राहुल से रहा नहीं गया और वोह पैंटी को भी सरका देता है, नतीजा यह हुआ के फूले हुए होंठो वाली योनि, जो बीच में एक पतली सी दरार लिए पूर्ण नग्न उसके आंखो के सामने पेश हुआ "ओह रिमी! कितनी फूल गई है यह तो!"। रिमी अपनी होंठो को काट कर बोली "रहने दो भइया! आप का ही करतूत है!! खुट खुट के निखार दिया इन्हे!" एक अंगराई लेती हुई रिमी बोल परी और जांघो को अलग कर दी। इस बात से प्रेरणा लिए राहुल अपने होंठो को धस देता है उसकी योनि पर और रिमी की जिस्म एक झटके खाती हुई, दिनों तरफ फैले चद्दर को कस लेती है और पूरी कोशिश के साथ अपनी सिसकी दबाई रखी।

राहुल रुक गया थोड़ी देर "खा जाऊं?"

रिमी की आंखे छलक परी "प्लीज़ भइया! कुछ भी करो, लेकिन झड़ा दो मुझे!!!!"

और क्या अफसर चाहिए था एक भाई को! राहुल मगन हो गया मुनिया के चुसाई में, भगनासे से लेकर होंठो तक बेहद चूमता गया और रिमी की जिस्म भयानक तरीके से उपर नीचे होने लगी, इतना कि बिस्तर की हिलने की आवाज़ भी सुनाई दे सकती थी। रिमी की हाथ बेझिझक राहुल के सर की और अपने अंदर कस ली और राहुल और ज़्यादा चूसता गया। कुछ पल के बाद रिमी की जिस्म कमसेंकम तीन बार हुंकार मारी और योनि की मुख्य दुआर से झड़ने बहने लगी, सीधा राहुल के मुंह में। तीन बार हिलोरे मारने के बाद रिमी की जिस्म चैन से रुक गई और पसीना पसीना हो उठी, योनि पर होंठ आज उसे पहली बार महसूस कि थी। बेचारी भूल ही चुकी थी के नारी के योनि में कहीं नसे है, जिससे उत्तेजना कहीं गुना बड़ जाता है।

योनि की लकीर अब रस से रिस चुकी थी और राहुल एक घटक में अपने मुंह पे आए रस को पी लिया था। अपने भाई की दशा देखें रिमी खिलखिला उठी "भइया! टेस्ट तो ठीक है ना?"। जवाब में राहुल उसकी माथे को चूम लेता है और खुद को नॉरमल करने लगा "वैसे..... इतना भी बूरा नहीं है रिमी! लेकिन तुलना जब करूंगा, तब बता पाऊंगा!"। रिमी की आंखे तेज़ हो गई "किस्से?? नमिता दीदी के साथ??" एक हैरानी की नाटक करके रिमी बोल परी। राहुल ने जवाब तो नहीं दिया, बस मुरकुराया और कमरे से बहार निकल गया।

अपने भाई को जाते देख, रिमी सोच में पर गई,। के क्या दीदी और उसके अलावा, कोई और थी राहुल के लीला में? एक विचलित मन बार बार अपने दादी की और जाने लगी, संदेह के तौर पे, और फिर वोह क्रोधित हो उठी "नहीं नहीं! यह कैसे हो सकता है! दादी?? ओह गॉड!"। यूं तो क्रोधित थी, लेकिन मुनिया फिर से रिसने लगीं थीं उस विचार से। खैर, योनि की रसपान अपने भाई को चखा के, वोह बेहद खुश थी और मन ही मन ठान ली के एक दिन वोह हिसाब को बराबर करेगी।

मर्द के लिंग को अपने मुंह से प्यार करने कर खयाल से ही वोह शर्मा गई और पास में परी टेडी को कस के जकड़ ली "भइया! आई लव यू सो मच!"
 
रिमी अब एक हल्की नींद लेने लग गई और राहुल अपने कमरे में से बाहर निकल ही रहा था के, अचानक उसका सेल बज उठा और वोह तुरंत अपने कमरे में वापसी करने लगा और फिर बिस्तर को टटोलता हुआ, सेल को हाथ में लिए कमरे से बाहर निकल जाता है। स्क्रीन में मीनल की पीक देखकर उसका दिल पिघल गया और फौरन उठा देता है "कैसी हो बेबी??"

मीनल : सोचा थोड़ी खबर ले लिया जाए जनाब का!

राहुल : ऐसा मत कहो! तुम ही तुम हो सोच में हर वक्त!

मीनल : राहुल! मै जानती हूं तुम मुझसे नाराज़ हो! इट्स ओके!

राहुल : किस बात पे? ओह! समझ गया! अभी तक होंठो के स्पर्श से हम आगे नहीं गए इसलिए ना??

मीनल : चुप रहो! मै ........ मै हमारी शादी की बात कर रही हूं!

राहुल : शादी?? इतनी जल्दी?

मीनल : मोम और डैड को तुम्हारे बारे में सब मालूम है! सच पूछो तो! यह रिश्ता ज़रूर मंज़ूर होका उन्हें!

राहुल : मीनल! शादी का खुआब तो मै खुद देख रहा हूं! इस बार केवल चूमूंगा नहीं! बल्कि बहुत कुछ करने का इरादा है!

मीनल (शर्मा के) : हट! बस भी करो! मोम पास में ही है! खैर! तुमने वोह चिट्ठी देखी??

राहुल : चिट्ठी कौन सी???

मीनल : लग ता है जनाब अपने पैंट के पॉकेट नहीं चेक करते! खैर मैं रखती हू अब! टाइम मिले तो पड़ लेना! बाई।

दो, दो झटके खाकर राहुल वहीं खड़ा रहा। पहले तो वोह शादी वाली बात, जो मीनल की ज़हन में चल रही थीं, और दूसरी वोह चिट्ठी! बिना विलंब किए वोह अपने कमरे में भागकर सारे के सारे पेंट्स और ट्राउजर्स तेटोलने लगा और फिर अपनी जबान बाहर निकाल दी जब खयाल आया के आखिर बार जिस पैंट को पहने वोह मीनल से मिला था, वह तो वाश बेसिन में रखा हुआ था। फटक से वोह बरामदे पे पहुंच गया।

टांगे हुए कपड़ों को टटोलने लगा, तो खयाल आया के ट्राउजर धूल चुकी थी और चिट्ठी गायब! सोच में पड़कर रहुल बरामदे में से निकल गया और सोचने लगा के चिट्ठी किस के हाथ लग चुकी थी। "कहीं मा......?" धड़कते दिल के साथ राहुल फौरन आशा के कमरे की और जाने लगा। चौखट तक पहुंच ही चुका था के आशा तभी के तभी निकलती है और उसकी मोटी सी स्तन राहुल के छाती से धस जाती है "ओह बेटा! आराम से!"। "सोरी मा! वोह में....."। आशा, जो रात के चुदाई के बाद एकदम तरो ताज़ा हो चुकी थी और चेहरे पर भी एक उत्तेजित सा मुस्कान थी। मा को इतना पॉजिटिव देखें राहुल भी खुश हुआ।

खैर, इस वक्त आशा कुछ और है खयाल बुन रही थी मन में। राहुल की और, वोह एक चंचल मुस्कुराहट के साथ देख रही थी "तू तो सच में शितान निकला!"।

राहुल : क्या कह रही हो मा???

आशा (हाथ में वहीं मीनल वाली चिट्ठी थामकर) : यह क्या है मेरे लाल?

राहुल : ओह नो! तो आपके हाथो लग गई!! ओह!

आशा : (रात के दास्तां के बाद और ज़्यादा नटखट हो चुकी थी) : तो मेरे बेटे को प्रेम पत्र लिखा जा रहा है! हम... और यह मीनल कौन है?

राहुल : मा! वोह.....

तभी रमोला की आवाज़ आती है "अरे यह बताओ कि कब मिलवा रहा है उसे!" अपनी जेठानी का पूरा साथ देने लगी और दोनों महिलाएं अब रव राहुल को घूरने लगे। "वैसे दीदी, यह आपका लाडला तो गबरू हो गया है एकदम से!" एक नजर राहुल के उपर नीचे तरती हुई रमोला बोल परी। आशा एक थपकी लगा देती है रमोला को पीठ पर "चुप भी हो जा! नज़र मत डाल!" फिर राहुल की और गौर से देखने लगी, चिट्ठी हाथ में बरकरार "अब तू चाहता क्या है! ठीक से बता"।

राहुल : वोह दरअसल मा! मीनल और मै अब साल भार साथ साथ है और....

आशा : तुम दोनों शादी के लिए भी राजी हो, है ना?

राहुल : वोह...... आप.......ऐसा कह सकते है!

रमोला भी एक थपकी देने लगी राहुल के पीठ पर "बदमाश! खुले आम शादी की बातें कर रहा है मा के सामने!"। रमोला के मुंह से बदमाश सुनते ही आशा खुद हंस परी "बदमाश तो हमारे ससुरजी के खुद भी है रमोला! कल रात काश तूने मुझे उनके साथ देखी होती! हाय!" राहुल शर्म के मारे वोह चिट्ठी लिए वहा से रफू चक्कर हो जाता है और तभी आशा भी जाने ही लगी के रमोला उसे टोक देती है "वैसे दीदी! आपकी चाल कुछ बलखाती हुई नजर आ रही है!"। आशा को यह सुनना लाजमी थी, क्योंकि उसकी कूल्हे कुछ ज़्यादा ही मटक रही थी। "वोह दरअसल रमोला! बात यह है के थोड़ी मोच आहाई थी कमर पर! और मुव का ट्यूब तो कमरे में थी नहीं! तो..."।

रमोला भी कम नहीं थी, अपने दीदी कि बाजुओं को मसाज करती हुई बोल परी "अब रहने भी दो दीदी! महेश भाई साहब का सब किया धरा है!"। आशा और वोह दोनों खिलखिला उठे और आशा अपनी जिस्म को मटकाए रसोई की और जाने लगी। उसकी ऐसे बलखाती चाल को देखकर रिमोला खुद जल उठी "गौरव के साथ तो आजकल मज़े भी नहीं मिल रहे है, और वहा दीदी अपनी कूल्हे और कमर कस रही है हर रात को!" मुंह मोड़ती हुई वोह भी मटक के चल देती है रसोई की और।

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राहुल चिट्ठी को लिए अपने कमरे कि और जाने ही लगा के रास्ता रोक देती है नमिता! "जनाब कहा चले?"। राहुल के चेहरे पर असीम खुशी था और वोह अपने दीदी को बाहों में लेकर झूम उठा "मीनल की चिट्ठी है दीदी! लगता है अब शुभ घरी जल्द ही आयेगा!। वैसे दोस्तों, आप सब को बता दू के नमिता को अपने भाई और मीनल की रिश्ते के बारे में मालूम थी। नमिता उस चिट्ठी को लेती है और नज़ाकत के साथ पड़ने लगी :

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राहुल!

प्यार के बारे मै जितना भी कहूं, कम है! और सच पूछो तो यह चोरी चूपी का खेल अब सता ने लगी मुझे! जितनी जल्दी हो सके, में चाहती हूं के अब हम एक अटूट बन्धन में जुड़ हाए!

अब जल्द से जल्द दोली लेके आना!

तुम्हारी मीनल!

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चिट्ठी को पड़के, नमिता अपने भाई की तरफ देखने लगी और भोली बनने का नाटक करती हुई एक बलखाती नज़र से अपने भाई की और देखने लेगी "वैसे! दिखती कैसी है वोह! कभी बताया नहीं तूने" इतना कहना था के वोह अब राहुल के करीब आने लगी। राहुल भी खेल का पूरा साथ देता हुआ आगे की और जाने लगा "क्या जानना चाहती हो मेरी सेक्सी दीदी?"। नमिता की स्तन अब उसके भाई की छाती से केवल कुछ इंच दूरी पे थी और होंठ थे के जुड़ने के लिए बेताब हो रहे थे।

नमिता : क्या उसकी होंठ रसीले है? (होंठ दबाती हुई)

राहुल : (दीदी के होंठो पर एक उंगली फिरता हुआ) हा! काफी रसीले है!

नमिता : और उसकी स्तन और कूल्हे? (राहुल के हाथ को लिए अपने सुडौल कमर पर लगाई)

राहुल : (कमर को कस के दबा देता है) दीदी!!! उसकी कूल्हे तुमसे कम नहीं है! लेकिन तुम्हारे कुछ ज़्यादा ही गदराए हुए है!

नमिता : (अब अपने भाई की हाथो को अपने बग्लो पर रख देती है) और क्या यहां पर वोह तुझे आकर्षित लगती है??

राहुल जो पहले से ही नमिता के बगलो का दीवाना था, फिर एक बार अपने नाक को उस जगह पर धस लिया "हम! पता नहीं दीदी!! सुंगा नहीं कभी! लेकिन आप सा गंध ही होगा शायद!"। नमिता इस कथन से बहुत कामुक हो उठी और अपने भाई को कस ली अपने बगल मै "और सुंग राहुल! उफ़ मैंने तो आजकल वहा शैव भी नहीं कर रही हूं तेरे लिए! तू देख लेना एकुम आदिवासी औरतों कि तरह इसे और उगा दूंगी!!!"। ऐसी कामुक कथन के बाद अब राहुल बारी बरी दोनों बगल को सूंग्ने लगा "उफ्फ यह गंध मुझे पागल कर देगा दीदी! आप इन्हे कभी भी धोया मत करो!!!"

नमिता : (दोनों हाथो को ऊपर किए हुए) सुबह से इतनी नित्य कर बैठी हूं, के पसीना रुकने का नाम ही नहीं ले रही है इनमें!!! हाय!

राहुल : (बगल के कुछ बालों को मुंह से चाटते हुए) ओह! मज़ा आया दीदी! कितनी नमकीन पानी है!!

नमिता अपने बगल पर नाज़ करने लेगी और फिर अपने भाई के होंठ पर अपने होंठ जोड़ देती है। राहुल भी दुनिया को भूलकर दीदी की रसपान करने लगता है। धीरे धीरे उसके हाथ कमर से नीचे कैसे हुए मोटी गांड़ पर जाने लगा और मास को यह वहा दबा ने लगा। नमिता अपने पीछे के कैसे हुए मास के दबाए जाने से सिसक उठी और जिस्म में हिलोरे आने लगी। "दीदी यह आपकी गांड़ उफ्फ!!!!"। "रिमी सी भी अच्छी है??" बस फिर क्या! राहुल सीधा खड़ा हो गया "क्या मतलब दीदी??"।

नमिता अपनी भाई की कान को प्यार से मदोड दी "अब मुझसे मत छुपा! तू इतना सांड हो गया के, रिमी को भी भोग लिया! वैसे तू वर्जिश कर कर के और चिकन वगेरह खा खा कर इतना सांड हो रहा है! कहीं तेरी नजर बाकी के औरतों पे तो नहीं?? नमिता एक तीखी अंदाज़ में अपनी कमर पर हाथ कासाए पूछने लगी। आंखो में शरारत लिए और होंठ को गीली करती हुई वोह जवाब का इंतज़ार करने लगी अपनी भाई से।

राहुल का लिंग महाराज और उठने लगा दीदी की ऐसी बातों से। वोह और कस के अपने दीदी को जकड़ लेता है "हा! दीदी सही कह रही हो तुम!! रिमी के साथ भी मेरे संभध है! क्या करू दीदी, भूख तो मिटती ही नहीं" और इस बार कस के र राहुल अपने छाती को नमिता के सीने पर धस द देता है। उफ़! एक तेज़ तूफान दौड़ गई दोनों के जिस्म में, और नमिता जो पहले से ही कामुक थी! और कामुक हो उठी राहुल के मुंह से सच सुनने के बाद।

बिना किसी झिझक के नमिता अपने भाई को लिए सीधा बाथरूम में घुस जाति है। दीवार पर धस के राहुल के शर्ट को बदन से आज़ाद कर लेती है नमिता और फिर उन हाथो को दीवारों के दोनों और फैला देती है, कुछ इस तरह, जिससे अब राहुल के बगले अब उसकी आंखों के सामने था। सुबह पे वर्जिश करने के कारण वहा पे भी काफी पसीना जम गया था। अपने दीदी कि मुस्कुराहट देखकर राहुल समझ गया था के उसके एहसान के जवाब का समय आ चुका था और इस सोच में खुद भी मुक्सुराया।

तुरंत ही नमिता भी अपनी टीशर्ट निकाल फेंक देती है और अब दोनों के दोनों उपर से नग्न थे। एक तरफ चौड़ी छाती तो दूसरे तरफ गुब्बारे समान स्तन, दोनों के निप्पल मानो एक दूसरे को देख रहे थे। दोनों में से किसी को भी शॉवर का खयाल नहीं आया, इतने मगन थे एक दूसरे के पसीने को भांपने में। नमिता को हमेशा से डोमिनेट करना अच्छी लगती थी, भाई बहनों में सबसे बड़ी जो ठहरी!

उसने थोड़ी ज़ोर से राहुल के गाल पर एक चमाट लगाई "कमिना कहीं का! घर पर अपनी बहनों से मन नहीं भरता और बाहर उस मीनल को भी पटा रखा है तूने!" फिर दूसरे गाल और और कस के एक थुस दी "खैर! तेरा एहसान में आज चुका दूंगी" इतना कहना था के वोह अपनी नाक को अपने भाई के एक बगल के पसीनेदर झांट पर ले आती है और संगने लग जाति है।

इक अजीब सी महक थी राहुल के झांट पे, एक मर्दाना एहसास जो नमिता को पागल बना रही थी। बिना विमलंब किए वोह एक एक बगल को चाटने लगी और फिर एक बार दिनों भाई बहन शवर के नीचे ही अपने अपने चुदाई में मगन हो जाते है। पानी के बूंदें उनके नंगे जिस्म को भीगो तो रही थी, साथ साथ जिस्म की रिहाई में और भी ज़्यादा मज़ा आ रही थी। राहुल निरंतर अपने दीदी के मोटे मोटे स्तन का रसपान करता गया और साथ साथ बलखाती मास को मसलता भी गया। "ओह राहुल! ओह! दबा इन्हे और इन्हे और फूला दे! उफ़!! हो सके तो इन्हे मा जितनी करदे!"

बस! इतना कहना था के राहुल के उत्तेजना और कहीं ज़्यादा बड़ जाता है और वोह कस के अपने दीदी को अपने आगोश में लेलेता है। शॉवर के पानी से भीगती हुई दो बदन एक हो गए थे। एक तो पहले ही होगेये थे लेकिन बहती पानी का लुफ्त साथ साथ लेना कुछ अलग ही मज़ा था। राहुल अब नमिता की कानो तक होंठ ले जाता है और प्यार से "दीदी आपका यह गुब्बारे जैसी गांड़ को भी चखना है!!! प्लीज प्लीज!" राहुल बच्चो की तरह ज़िद्द करने लगा, जैसे बचपन में अक्सर वोह अपने नमिता से चॉकलेट मंगताता था। भाई की अर्जी सुनके नमिता हाथ में मुंह लगाए शर्मा गई "हाय! सचमुच मेरी इस गांड़ को चखेगा??"

राहुल जवाब में अपने तने हुए लिंग को गांड़ के चारो और घिसने लगा "और भी कुछ करने का मन तो कर रहा है दीदी! लेकिन फिलहाल इसे चखना है! देखना यह है के इसका गंध कितना पागल करती है कि मुझे!!" इतना कहना था के वोह नीचे घुटनों के बल झुक जाता है और दोनों हाथों से दीदी कि मोटी मस्त गांड़ के दोनों फनखो को फैला देता है "उफ़! दीदी? यह गुब्बारे का मज़ा ही अलग है!" दरार की तरफ गौर करते हुए है उन मासो को दबाना और दबोचने लगा। नमिता इस एहसास के बिल्कुल गदगद हो उठी।
 
गांड़ की दरार को देखकर राहुल एक लम्बी महक लेने लगता है और फिर बिना विमंभ किए अपने नाक को थोड़ा धस देता है दरार में। क्योंकि नमिता की गांड़ काफी हद तक मोटी थी, उसकी छेद तक नाक को पहुंचना राहुल का फिलहाल के लिए मकसत बन चुका था और उसमें कामयाब भी होने लगा था। कुछ इस तरह के उस का चेहरा गांड़ से विकलुल मानो चिपक गया हो और तभी नमिता अपने छेद पे ज़ुबान के खुरेडने के एहसास महसूस करती है। पलके बंद किए वोह एक सिसकी देने लगी और कस के हैंडल को जकड़ लेती है।
सिसकी मानो कोई मीठी सी वाणी हो, जिसे सुनके राहुल और ज़बान हिलाने लगता है और नमिता की जिस्म हिलोरे मारने लगी आनंद से। राहुल जब तक अंदर चाटता गया, वैसे वैसे उसके हाथ गुब्बारों को मसलता भी गया। नमिता तो उसके मसलवाने से ही पागल हो रही थी। एक ऐसी मसाज चल रही थीं, के मानो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बिना किसी संकोच के वोह अपनी गांड़ को अब पीछे की तरफ धकेलने लगी "ऊह!!!! राहुल तू सबकुछ उह!!!"

छेद के कुछ देर तक रसपान के बाद राहुल उठ जाता है और दीदी को कस के एक बार फिर जकड़ लेते है। नमिता हौले से उसके कान तक अपनी जबान ले आती है "मसाज अभी भी पूरी नहीं हुई मेरे प्यारे भाई! इसे खुटना अभी भी बाकी है! बहुत तेज़ खुजली हो रही है अंदर!!!" इतना कहना था के वोह एक झ्टके में राहुल के कान को हौले से काट लेती है और राहुल भी मस्ती में आकर दीदी को आगे के तरफ झुका देता ह और अपने लिंग लिए सीधे दरार की और थपकी देने लगा "दीदी!!! तुम कह रही हो तो....."। "हां! मै कह रही हूं!! अब ज़्यादा देर की, तो एक थप्पड़ पड़ेगी तुझे!"

दीदी की आदेश का पालन करते हुए वोह लिंग के सुपाड़े को धीरे से गांड़ के दरार में धसने लगा और वैसे वैसे नमिता की सासें तेज़ होती गई। अब कुछ और प्रगती करते हुए राहुल आगे गया और नमिता और सिसक उठी। फिर कुछ पल यूहीं सिसकियों में बीत गए और राहुल पूर्ण ताय्यार होगया आगे बढ़ने के लिए। उसने एक कस के धक्का दिया और सीधा दीदी के गांड़ की अंदर प्रवेश कर लिया, जिससे यह हुआ के नमिता अब एक हाथ टॉवेल स्टैंड को जकड़ लेती है और दूसरे से शोआवर के हैंडल को "ओह!!!! उई मा!" मुंह से एक तड़गी सिसकी का निकलना तो लाजमी थी, क्योंकि लिंग का दस्तक ही तगड़ा था।

राहुल अब गांड़ चुदाई में मगन हो गया और वैसे वैसे नमिता की जिस्म भी हिलने लगी, हर धक्के के साथ साथ उसकी मोटी मोटी पपीते भी खूब हिलने लगे और उसकी मुंह सिस्कीइयिओ से भर उठी। पूरी बाथरूम में एक कामुक माहौल घोल उठा और दो बदन फिर एक हो गए। एक भाई का अपने बड़ी बेहन के लिए कामुकता और वासना देख नमिता खुद गदगद हो उठी और वोह राहुल को और उकसाने लगी "ओह! ९ ओह!!! और ज़ोर से! उफ्फ!!"

राहुल अपने दीदी के सुडौल कमर को अब कस के जकड़ लेता है और कस कस के खुदाई करने लग गया।

धक्के पर धक्का!

सिसकियों पे सिसकियां!

बस फिर क्या! सब्र का पुल टूट गया और अपने आप को संभाले अपने सुपाड़े से धेर सारा मलाई गांड़ के चारो और फैलाने लगा और उसके मुंह से केवल आग बरस परा "दीदी!!!!!!!!!!! लेलो सबब!!!!"। नमिता भी आंखे मूंद लेती है और एक लम्बी सांस छोड़ने लगी "उफ़! मार ही डाला तूने तो!" पसीने से लथपथ गांड़ पे सफेद पदार्थ देखकर राहुल उत्तेजना से भरपूर हो उठा।

नमिता भाई के नजरिए को भाप्ती हुई, हाथ पीछे लेजाकर अपनी गांड़ पे से कुछ तिनके उठाके मुंह से चख लेती है और पूर्ण तरीके से अन्दर घोलके, होंठो को आपस में रगड़के भाई की और देखने लगी "थैंक्स राहुल!"।

चेहरे पे शरारत बरकरार!

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गांड़ गमासाई के बाद, नमिता एक आखरी बार अपने भाई को चूमती हुई, बाथरूम में से निकल जाती है और राहुल भी खुश होकर बीते हुए हसीन लम्हे को मन मै कैद किए, अपने कमरे की और जाने लगता है। अभी भी लिंग में थोड़े तनाव था, और मन में कहीं अभिलाषा फुट परे। टॉवेल में लिंग को एडजस्ट करता हुआ, अपने ड्रॉयर खोलके पैंट टटोलने लगता है और फिर एहसास होता है, के एक भी धुला हुआ नहीं था। "लगता है मा को ही पूछना पड़ेगा!" इतना कहना था के, उसी उभरे हुए लिंग को टॉवेल में अजुस्ट किए, मा के कमरे की और जाने लगा।

वहा दूसरे और अपने कमरे में आशा अपने ससुर के साथ बीते लम्हों को याद करती हुई, अपनी गद्रयी जिस्म को सेहलाने लगी। पल्लू सर्के जाने से उसकी ब्लाउस में मोटे मोटे स्तन का दरार किसी को भी दूर से भी दिखाई जा सकती थी, लेकिन इस बात का उसे कोई परवाह नहीं थी। आंखो में बीते लम्हे के चित्र लिए और मन में ना जानने कितने हजारों उमंगे लिए आशा एक तकिए के सहारे लेटी रही। कभी उसकी उंगलियां अपने गर्दन को छूती गई, तो कभी गालों की और, उन्हीं खास जगाओ पे, जहां रामधीर लव बाइट जमे थे।

वैसे सही बात है, ऐसे सेब जैसे फूले हुए गाल को वोह सांड जैसा आदमी क्यों छोरता। "बहुत गंदे है आप ससुरजी!" आशा बिरबिरती गाई खुद के साथ और फिर वोह हसीन लम्हे को याद करने लगी जब उसके ससुर के बीज उसकी कोख में धसी गई थी और ना जाने क्यों उसके मुंह से फिर से वैसे के वैसा सिसकी फुट परी "ओह!" और अपनी पेट को सहलाने लगी। चिंता की बात तो यह थी, के ना कंडोम और ना ही पिल का सहारा था, अब अगर बीज और अंडे का मिलन हो भी गया, तो उसी फूले हुए सुडौल पेट को और फूलना निश्चित थी।

उसी खयाल से वोह शर्मा जाती है और एक लम्बी सांस लिए एक छोटी सी नींद में चली जाती है। जब तक राहुल कमरे में प्रवेश कर चुका था, आशा आंखे मूंदे सो गई थी।

राहुल अपने मा के करीब गया और गौर की इस बात की के वोह सो चुकी थी। ऐसे ही बिना कारण के, उसके नजर सीधे आशा के तपते होंठो पर चला जाता है और उन्हें गौर से देखने लगा, सचमुच कितने रस भरे थे इनमें। फिर नजर सीधे स्तन की दरार पर जाके रुक गया, उफ़! उन पहाड़ों की गहराई भला किसे ना मोहित कर सकते थे, और फिर राहुल तो ठहरा गरम खून का जवान! स्तन से नज़रे नीचे की, तो सुडौल सा पेट पे गहरी नाभि कयामत मचा रही थी।

इन सब में जो सबसे आकर्षित थी, वोह थी ब्लाउस में कैद मोटे मोटे गुब्बारे, जो शायद कोई स्पर्श के लिए तरस रहे थे, मचल रहे थे। "सच में! मा कितनी सुंदर है! कितनी गद्रायी हुई है!" दीदी, रिमी और दादी को भोगने के बाद मानो राहुल के आत्मा स्वयंम ही कामुक हो उठा था, के अब नज़रे उसके अपने मा पर आ चुका था। आशा बेटे के मौजूदगी से अनजान अपने नींद में मगन थी और यहां राहुल हवस के इरादे से अपने मा को तार रहा था। ऐसी नाज़ुक घड़ी में तभी एक हाथ आ जाता है उसके कंधो पर और राहुल घबराकर पीछ देखता है।

कंधे पर हाथ इक महिला की थी, और वोह और कोई नहीं बल्कि यशोधा देवी थी। लबों पर मुस्कुराहट लिए वोह अपने पोते को नटखट अंदाज़ से देखने लगी "सही कहते है के एक बार नाखून पर खून आजाये, तो शेर को काबू में रखना मुश्किल होता है!" इतना कहके वोह फौरन अपने हाथ को अपने पोते के उभरे लिंग को टॉवेल के उपर से ही जकड़ लिया "हाए! मा को देखकर ही तन गया! उफ़!" कान में वोह मीठी अंदाज़ में बोल परी। राहुल अपने कान में दादी की शहद घुले जैसी आवाज़ सुनके और उत्तेजित हो गया और वैसा का विसा खड़ा रहा।

यशोधा अब अपने हाथ से उसके लिंग को सहलाने लगा टॉवेल को बरकरार रखे। अब हुआ यू के उभर एक तम्बू समान हो चुका था टॉवेल के कपड़े में, और जनाब के आंखे भी वासना से भर चुका था "दादी! मा सच में कितनी सुन्दर है!" उसके मुंह से स्वयंम ही निकल गया। यशोधा मुस्कुराई और अपने पोते के गर्दन को चूम ली "बेचारी आशा! अब उसकी खैर नहीं! बेचारी कल ही ससुर से संभोग कर चुकी है!"। इतना सुनना था के राहुल का लौड़ा और त् तन गया अंदर और उसके आंख लंबे हो गए "क्या! यह क्या कह रही हो दादी???"

यशोधा : (लिंग को सहलाते हुई) अब इतना भी भोला मत बन! यह बात तो तुझे पहली है बता चुकी थी में!

राहुल : ओह नो! मा क्या...

यशोधा : (टॉवेल को एक झतके में आज़ाद करके नीचे गिरा देती है) ठीक सुना! ठीक समझा तूने!!! तेरी मा आशा किसी रण्डी से कम नहीं!!!!

टॉवेल नीचे गिर चुका था और दादी के शब्दो के असर मिला कर राहुल के लौड़े के नसे इतना फूल गया था के मानो अगर अभी इसी वक्त उस लौड़े को अगर थोड़ा रगड़ा ना जाए, तो पाप होगा। "दादी!!!! आप..."। "चुप भी हो जा! तू नहीं जानता कैसी उछल रही थी तेरी मा तेरे दादा के गोद में!!" इतना कहना था के फिर एक बार कस के अब नंगे लौड़े को मसल दिया अपनी हाथो से यशोधा। राहुल तो मानो एक अजीब जन्नत की सैर करने चला था।

यशोधा अपने पोते के लिंग को आराम से मसलती गई, जब की राहुल का नजर अपने मा पे जमा रहा। स्तन की दरार ही काफी थी उसका खून खोलने के लिए और उपर से उसके दादी के हरकतें! फिर हुआ यू के यशोधा अपनी होंठो को अपने पोते के कानो तक लाती है "सच में कयामत है तेरी मा आशा! उफ़! तेरे दादा के साथ इतना घुल गई थी, मानो बरसो की प्यासी हो!"। राहुल दादा और मा के लीला के बारे में सुनके बहुत उत्तेजित हो रहा था और बार बार लम्बी सासे लेने लगा अपने मा की और देखकर।

यशोधा भी आनंद ले रही थी इस लम्हे का और फिर हुआ यू के उसने फौरन अपनी घिसाई और बरा दी लिंग पे, जिससे हुआ यह के राहुल और उत्तेजित हो उठा और लिंग पे थामे हाथ पर अपने हाथ रख देता है और दादी को और बरावा देने लगा "और करो दादी!! आह कभी भी हंदी टूट सकता है!!!!"। "अरे पागल! तेरी हंडी का कीमत मै जानती हूं! इतना बढ़िया मलाई का मात्रा है कि, मै खुद कायल हो चुकी हूं, तो फिर यह तो मेरी बहू है!"। दादी की शब्दो का असर राहुल को होने लगा और अब वोह अपने आंखे मूंद के, उस हसीन लम्हे का इंतज़ार करने लगा, जब फिर से उसके जरिए बरसात होगी और पिर!

आखिर हंडी टूट गई और एक लंबे आहे भरता हुए राहुल का सुपाड़े के मुंह खुल जाता है और कुछ हद तक मलाई छिटक देता है सीधे आशा के चेहरे पर। गरमा गरम मलाई अपने मा पर यू छिरक के, एक आनंदमई एहसास में खो गया राहुल, जो सेशे बिस्तर पर बैठ गया अब। पोते के उत्तेजित और तृप्त चेहरे को देखकर यशोधा भी मुस्कुरा उठी "लाडला!"।
 
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