राहुल वहीं के वही लेटा राहा अपनी दादी के ऊपर, और दूसरे और रामधीर इस दृश्य से अभी भी हैरान हुए दोनों को देखे जा रहा था। बेहद मनमोहक दृश्य था, अजीब सी कशिश थी दोनों के मुद्रा और उम्र के फर्क में। रामधीर अपने सिकुड़े हुए लिंग को फिर एक बार टटोलने लगा, अपने कमुकुता को फिर जागृत करने लगा। वाकई में उनके परिवार ने सारी हदें पार कर दी थी। अब कोई चाहे भी तो उसे अपने बही आशा की और आकर्षित होने से नहीं रोक सकता था।
राहुल को देखकर उन्हें कुछ पल तक तो ऐसा लगा जैसे उनके जवानी के दिन वापस लौट आया हो। एक सुकून कि नींद लिए वोह फिर लेट गए। पूरी रात यूहीं गुजर गया और राहुल बी बेशर्मी से वहीं अपने दादी पे लेटा रहा। अनजाने में ही सही लेकिन यशोधा की हाथ अब अपने पोते के पीठ की और कस के जकड़े हुए थे। मानो उसे अपनी आगोश में ज़प्त करके रखी हो। राहुल के चेहरे पर भी बीहमार मुस्कान था।
सुबह सुबह कुछ तकरीबन चार बजे के आसपास, गेजोधरी कमरे में प्रवेश की ओर राहुल को जगाने लगी। हरबड़ी में वोह उठा तो सामने एक बेहद हसीन औरत को देखकर हैरान हो उठा "आप????" । "हां मेरे शेर! में हूं! अब उठ जाओ और अपने कमरे कि और रवाना हो जाओ! कहीं किसी ने आपको पूजनीय यशोधा देवी के उपर यू देख लिया तो खैर नहीं!!" एक मुस्कुराई हुई चेहरे पे असीम चंचलता थी। राहुल भी एक चोर कि तरह चुपचाप कपड़े समेत कमरे में से निकल गया।
गेजोधरी ने फिर से एक बार गौर से यशोधा की तरफ देखी, जिसके चेहरे पर अभी एक चरम सुखप्रप्ती की छलक थी, मानो आसमां छू लिया हो। फिर एक नजर रामधीर की तरफ देखी और हौले से खुद से बात की "अब आप की बरी है सरपंच जी!" इतना कहना था कि वोह वहा से फिर एक धुएं की भांति गायब हो गई। रामधीर अभी भी एक गहरी नींद में लेटा रहा।
राहुल के लिए अब एक नई ज़िन्दगी का शुरवात हो चला था। मस्त नहा धोकर उसने अपने और एक नजर डालने लगा, कैसे उसके जिस्म से अभी भी उसके दादी यशोधा देवी की महेक अभी भी आ रही थी, कैसे उसने अपनी गहरी से गहरी मलाई उनके अंदर उड़ेल दिया था और कैसे कैसे वातावरण भी अब बदला बदला सा लगने लगा था। एक मुस्कुराते हुए चेहरा लिए, वोह टीशर्ट और ट्रेकपांट पहने हुए कमरे में से बाहर निकलकर सीधा नमिता दीदी के कमरे की और जाने लगा।
लेकिन एक अजीब माहौल था कमरे में, रेवती अपनी बाल बना रही थी आइने की और देखकर, रिमी अपनी किताब में व्यस्त थी और नमिता लैपटॉप में काम कर रही थी। तीनों के तीनों राहुल को नजरंदाज की, ज़रा सी भी भाव नहीं दिया गया उस लड़के को। राहुल हक्कबक्का तीनों की और देखने लगा और सर को खुजाए सीधा गया रसोई की और, कहा आशा और रमोला खाना बना रहे थे। अपने बेटे को आते देख आशा कुछ कहने ही वाली थी के रमोला उसे चुप करा देती है। आशा भी चुप्पी में मुस्कुराई।
राहुल हैरानी से दोनों को देखने लगा, फिर बिना कुछ कहे कॉलेज की और निकल गया। उसे जाते देखे डिनर रमोला और और खिलखिलाई। कुछ देर बाद आशा अपने ससुर के लिए नाश्ता बनाने लगी, जब की उसकी नजर रसोई के खिड़की से बगीचे की और झांक रही थी। हैरानी की बात यह थी के अभी तक। उसने गौर किया के अभी तक रामधीर कसरत करने के लिए उठा नहीं था। परेशान होती हुई वोह अपनी ससुर की कमरे कि और जाने लगी, बिना रमोला को कुछ कहे।
कमरे के अंदर प्रवेश करते ही आशा हैरान और आश्चर्य से बिस्तर की और देखने लगी, जहा उसकी सास ससुर चैन से लेटे हुए थे, एक चादर तेले। चादर के तले दोनों नग्न अवस्था में थे, इस बात की एहसास से आशा बुरी तरह शर्मा गई "यह लोग भी ना! इस उम्र में भी कोई लाज शर्म नहीं है!" अपने आप से बारबरा रही थी के अचानक ना चाहते हुए भी उसकी नजर अपने ससुर की जिस्म की ओर चिपक गई।
इतना बलिष्ट जिस्म शायद ही उसने देखी थी। मन ही मन कल्पना करने लगी के काश एक बार हिम्मत जुटा के वोह काश चादर के भीतर झांक सके, लेकिन यह हिम्मत आए तो कैसे आए? शायद समय ही कह पाए। लेकिन फिलहाल अपनी सास ससुर की दशा देखकर वोह पसीना पसीना हो रही थी और बस मुड़कर जाने ही वाली थी के एक उबासी लेते हुए रामधीर अपने आप को पलट देता है जिससे कि चादर हटके सीधा उनके लिंग की इर्द पर रुक गया। बस! इतना ही होना था कि आशा की सांसे रुक गई वहीं के वहीं।
उसके जी में बहुत कुछ होने लगी और इच्छा यह भी हुई के काश उस नाग वसु की दर्शन थोड़ी और हो जाए। उसकी होंठो मै थरथराहट हुई और बदन पसीने में भीग उठी। अचानक से हवाओं में एक औरत की आवाज़ बेहती हुई उसकी कानो तक आने लगी "बस देखती ही रहोगी??". हवाओं के झोंके जैसे आशा के साथ खेल रही हो, उसने तुरंत फैसला किया के चाहे जो कुछ हो जाए, वोह एक झलक देख के ही रहेगी। बिना किसी विलंब के, वोह नाश्ते को मेज़ पर रखती हुई, हौले से आगे जाने लगी अपनी ससुर की और।
एक अजीब गंध आ रही थी चादर के इर्द गिर्दसे, जिसे आशा आसानी से भांप ली के सूखे विर्यो के थी, और मन ही मन मुस्कुराई। बिना सास की और देखे वोह तुरंत अपनी हाथ चादर की और ले आई और ना जाने क्यों फिर डर के मारे वापस ले ली। "नहीं नहीं! यह में क्या कर रही हूं! ईश!!!" लेकिन फिर वही मधुर आवाज़ उसकी कान में शहद की तरह घोलती चली गई "जा जाके एक बार देख तो ले! कुछ नहीं होगा!"। कमबख्त ना जाने कौन थी जो उसकी मन को भ्रष्ट कर रही थी धीरे धीरे। पूरी बदन पसीने में भीग रही थी और हाथ कांप रहे थे।
क्या कोई घरेलू औरत यह गुना कर सकती है? काश उसे पता होती के उसी कमरे में उसके अपने बेटे ने अपने ही दादी को भोग चुका था। लेकिन यह सोच एक पवित्र मन में आए तो कैसे आए! बार बार आशा नज़रे हटाने की कोशिश करती रही और बार बार उसकी मन अपनी मनमानी करती गई। कुछ था उस दृश्य मै! एक काला सा, मोटा सा नाग चुपके से चादर की तले झांक रहा था उसकी और।
अनजाने में ही, लेकिन बिना किसी झिझक के आशा अपनी होंठों को दांतो तले दबा देती है। "नहीं! कुछ नहीं होगा ज़रा आ स्पर्श से! मै पीछे नहीं हटूंगी! रामधीर सिंह की बड़ी बहू हूं आखिर!" इस अटल सोच विचार लिए वोह आगे बरी और एक थरथराते हाथ लिए चादर को एक झटके में ससुर के घुटनों तक नीचे कर दी, और जैसी ही यह हुआ, एक तेज़ किरण सीधा उसकी आंखो में झलक परी।
एक बेहद कामुक और देहशत भरा दृश्य आंखों में समा गई!
उसकी ससुर का मोटा काला नाग! पूर्ण नग्न अवस्था में!
आशा की आंखे फटी के फटी रह गई। शुक्र इस बात की थी के लिंग सोया हुआ था, वरना शायद उसकी चीख भी निकल आती। "है राम!!!!! क्या है यह!" आशा कि रूह तक कांप गई उस वसु नाग के दर्शन में। कुछ अलग तो था ही उसके पति महेश के सावले से लिंग के मुकाबले, जो माध्यम आकार का था। लेकिन को लिंग उसकी नज़रों के सामने अब थी, वोह कुछ हद तक पूजने के लायक बन गई थी आशा की नज़रों में।