kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून - Page 6 - SexBaba
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kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून

शादी सुहागरात और हनीमून--16

गतान्क से आगे…………………………………..

मेरा सारा शरीर मस्ती से शिथिल हो गया था. तभी उसने मेरी दोनो कलाईयो को पकड़ के खूब कस के धक्का मारा, और..

हज़ार बिजलियाँ एक साथ चमक गयी.

हज़ार बदल एक साथ कॅड्क उठे.

मेरी दोनो कलाईयो की आधी चूड़ियाँ एक साथ चटक गयी.

और 'मेरी' दर्द की एक लहर जाँघो के बीच से निकल के पूरे शरीर मे दौड़ गयी. मेने चीखने की कोशिश की लेकिन मेरे दोनो होंठ उसके होंठो के बीच दबे थे, और सिर्फ़ गो गो की आवाज़ निकल के रह गयी.

लेकिन वो रुका नही एक के बाद दूसरा और.. फिर तीसरा.

मेरी सब मस्ती, रस गायब हो चुका था. मैं पानी के बाहर मछली की तरह तड़फदा रही थी, पलट रही थी. लेकिन मेरी कलाईयो पे उसका ज़ोर, होंठो की पकड़ बिना कोई ढील दिए वो धक्के पे धक्का मारे जा रहा था. 8-10 धक्के के बाद ही वो रुका, और मेरी कलाई पे पकड़ थोड़ी ढीली हुई. जब मेने दो पल बाद आँखे खोली तो उसका चेहरा,

एकदम खुशी से भरा था, आँखे बंद. इतना खुश मेने उसे कभी नही देखा था. और उसके इस खुशी के लिए ये दर्द क्या कुछ भी कुरबान था. मेने अपनी पलके बंद कर ली और सारा दर्द बूँद बूँद कर पीती रही.

लेकिन लगता है उसे इस बात का अहसास हो गया था कि मेरे उपर क्या गुज़री. कलाई छोड़ के अब वो मेरा सर सहला रहा था. उसके होंठ अब मेरे दर्द से भरी पॅल्को को चूम के, दर्द सोख रहे थे. उसके हाथ, बहुत हल्के से मेरे सीने को छू रहे थे, दुलार रहे थे. अब जब मेने आँख खोली, तो उसका चेहरा उस परेशान बच्चे की तरह लग रहा था जिससे कोई कीमती फ्लवर वेस टूट गया हो, और वह उसे किसी के देखने से पहले, जोड़ कर इस तरह रख रहा हो कि किसी को पता ना चले. मुझसे नही रहा गया. मेने खुद उसे अपनी बाहों मे कस लिया और जैसे कोई सूखा गुल खुद झुक के, फूल गिरा दे, अपने चेहरा उठा के मेने उसे चूम लिया.

और यही मेने सबसे बड़ी ग़लती की. अपने लिए मुसीबत मोल ली.

उसने मेरे हल्के से चुंबन के जवाब मे कस के मेरे रसीले होंठो को चूम लिया. मेरे पॅल्को को उसने ऐसे चूमा जैसे थॅंक्स दे रहा हो. उसके बाद तो मेरे पूरे चेहरे पे चुंबनो की बदिश सी हो गयी. और उसकी उंगलियाँ जो सहम के मेरे सीने को छू रही थी, कस कस के उन्होने फिर से उसे दबाने, मसलने, उसका रस लेना शुरू कर दिया. इस रस की बदिश मे मेरी देह कैसे बचाती. मेरे तन मन मे एक बार फिर से रस भर गया, वही कस्क मस्त होने लगी. ये कहु कि दर्द ख़तम हो गया था तो ग़लत होगा, हा दर्द का अहसास ज़रूर कम हो गया था. वहाँ पर 'नीचे' अभी भी बची थी एक टीस, मीठी सी.
 
हां, उसने अभी धक्के मारने नही शुरू किए थे. उसे जब महुसुस हो गया कि मैं एक बार फिर रस की सरिता मे गोते लगा रही हू, उसने मेरे नितंबो के नीचे कुशन को, मेरी उठी हुई टाँगो को, फिर से अड्जस्ट किया. (मुझे मम्मी की गाली, जो उन्होने बार बार दी थी, 'जितने चौड़ा कर सकती हो उससे ज़्यादा चौड़ा, जितने उँचा कर सकती हो उससे ज़्यादा उँचा' और फिर जिम मे मेरी ट्रेनर ने जो जिमनेस्ट की तरह टांगे फैलाना सिखाया था..) मेने अपने हिप्स थोड़ा और उठाए और दर्द के बावजूद जांघे खूब कस के, पूरी ताक़त से फैलाई. अब उसने फिर बहुत हल्के हल्के थोड़ा सा बाहर निकाल के 'उसे'अंदर बहुत प्यार से घुसेड़ा. उसके हाथ मेरी कमर पे थे.

कुछ देर धीमे धीमे करने के बाद, उसका हाथ मेरे सीने पे जा पहुँचा और उसे उसने दबाने, सहलाना चालू कर दिया. थोड़ी देर मे उसने घोड़े को एड दे दी और फिर तो कभी मेरे दोनो किशोर रसीले उरोज पकड़ के, कभी कमर, कभी नित्म्बो को, उसके धक्को की रफ़्तार बढ़ने लगी. पर मुझे जो पागल कर रही थी वो उसके होंठ और उंगलिया थी, जो कभी होंठो का रस लेती, कभी मेरे रस कलशो का और जब अचानक उसने मेरे 'मदन द्वार' के उपर उस 'तिलस्मि बटन' को छू लिया (जिसका घूँघट मेरी डॉक्टर भाभी ने उठा दिया था) मेरे पूरे बदन मे तरंगे दौड़ने लगी. एक नये सवार की तरह उसने एड तो लगा दी थी, पर लगाम खींचनी उसे आती नही थी. थोड़ी ही देर मे मेरी सारी देह काँप रही थी और मैं उत्तेजना के चरम शिखर पे पहुँच के शिथिल हो गयी.

उस दौरान वो रुका नही, हां धीमा ज़रूर हो गया. लेकिन मेरे शरीर के ढीले पड़ने के साथ वो रुक गया, बिना कुछ भी किए. थोड़ी देर मे जैसे कोई ठंडे हो रहे अंगारो को फिर से धौन्कने शुरू करे उसी तरह, पहले उसने मेरे पॅल्को पे, फिर होंठो पे और जब वह मेरी गोलाईयो के तले से होते हुए 'शिखरो' तक पहुँचा, वो उसके स्वागत मे खड़े हो गये थे. फिर तो 'उन्हे' अपने होंठो से चूम कर, सहला कर. होंठो के बीच भींच कर और उसकी शैतान उंगलियाँ भी जो अब मेरी देह के कटाव और गोलाईयो से अंजान नही थी, कभी मेरे सीने को छूटी, दबाती, सहलाती और कभी 'नीचे' भी. अब तो उसे मेरी 'यौवन गुहा' के उपर के उस चमत्कारी बटन का भी पता चल गया था. थोड़े ही देर मे उसने फिर से अंदर बाहर ..करना शुरू कर दिया था. दर्द अभी भी हो रहा था, खास तौर पे जब वह कस के.. मैं सिहर भी उठती लेकिन अब सुख का अहसास ज़्यादा था थोड़ी ही देर मे उसने फिर 'घोड़े' को एड लगा दी और अब हम दोनो मे से कोई रुकना नही चाह रहा था. वह मुझे बाहो मे कस के भींच लेता, दबा देता, अंग अंग को चूम लेता और मैं भी बिना कुछ बोले इस नये सुख को, बूँद बूँद सोख रही थी. अबकी जब मदन तरंगे मेरी देह मे दौड़ने लगी तो..वो मेरे साथ था. उसके धक्को की रफ़्तार तेज हो गयी थी,

उसका एक हाथ कस कस के मेरे कुछ मसल रहा था और दूसरा मेरे कंधे को पकड़े मेरी उंगलियाँ भी उसके पीठ पे धँसी उसके साथ साथ जीवन मे पहली बार और मेरे शिथिल होने के पहले ही मेने पहली बूँद महसूस की.

उसके साथ ही जैसे बंद टूट पड़ा हो. तपती प्यासी धरती को कैसा लगता होगा,

असाढ़ की पहली बूँद पा के उस रिम झिम की हर बूँद मैं सोख रही थी उतावली होके. मेने अपनी बाहे कस के भींच ली, और मेरी टांगे भी और यहा तक कि मेरी 'वो' भी 'उसे' कस के भींच रही थी, आलिंगन कर रही थी, लता की तरह लिपटी हुई थी मैं. उसी समय कही 12 बजे का घंटा बजा 'टन' 'टन' 'टन' 'टन' बार बार तरंगे उठ रही थी मेरी देह मे. और जब मुझे लगता था कि इस स्नेह रस की बदिश रुक गयी है. घंटा बजता ही चला जा रहा था, टन टन टन टन, फिर दुबारा फिर फिर. और मैं अपने नितंब और कस के उपर उठा लेती थी कि हर बूँद सोख लू. बंद होने के बाद भी हम लोग बहुत देर तक उसी तरह लिपटे रहे.
 
हम दोनो की हालत खड़े मे थक के पड़े पहलवानो की तरह थी. पहले वो उठा, और फिर हल्के से एक रुमाल से मेरी जाँघो के बीच और थोड़ा अंदर तक साफ किया (उस समय तो मैं कुछ महसूस करने की हालत मे नही थी. अगले दिन मेने कमरा ठीक करते हुए देखा, कि हमारे उस 'प्रथम मिलन' के सबूत को जनाब ने बहुत सम्हाल के रखा था, और उसमे खून के भी अच्छा हुआ उसने उस समय नही दिखाया या बताया वरना मैं घबडा ही जाती). मेरी हालत उठने की नही थी. कुछ देर बाद उसने सहारा दे के मुझे उठाया और पलंग के हेड स्टेड के सहारे बैठा दिया. उनके हाथ मेरे कंधे पे थे. कुछ देर मे उनकी बातो मे मैं थोड़ी सहज हुई. तब तक मेरी निगाह पलंग के बगल मे टेबल पे पड़ी जहाँ चाँदी की ग्लास मे दूध रखा था. मुझे याद आया कि जेठानी जी ने कहा था कि सबसे पहले दूध पिला देने और मैं भूल गयी थी. जब मैं दूध के ग्लास की ओर बढ़ी तो मेने देखा कि उनका हाथ पलंग के पीछे स्विच की ओर था. मैं तुरंत बोली, नही प्लीज़ लाइट नही. ये बात तो वो मेरी मान गये, लेकिन जैसे ही दूध ले के उनकी ओर मूडी, उन्होने डोर खींच के परदा खोल दिया. बाहर चौदहावी का चाँद चाँदनी की बदिश करता हुआ और जब मेने नीचे देखा तो चादनि मे नहाई मेरी गोलाइयाँ शरमा के मेने जब उन्हे अपने हाथो से छिपाना चाहा तो मेरे हाथ मे दूध का ग्लास. मेने इससे बचने के लिए झट से ग्लास उन्हे देने चाहा पर वो मेरी परेशानी समझ गये थे, इसलीए वो कहाँ हेल्प करते. वो मुस्करा के बोले,

"दूध तो मैं तुम्हारे हाथ से ही पीऊंगा. हाँ 'जिसे' तुम छिपाना चाहती हो, लाओ उसे मैं अपने हाथो से छुपा लेता हू."और उन्होने मुझे अपनी गोद मे खिच लिया, उनके दोनो हाथ सीधे मेरे यौवन कलश पे. कमर तक तो मेने रज़ाई खींच ली थी पर बाकी देह चाँदनी से एक दम नहाई हुई उनकी गोद मे. थोडा दूध पीने के बाद उन्होने मुझे भी पिलाया. लेकिन वो भी मेरे ही हाथ से.

उनका हाथ तो बस मेरी गोलाईयो पे कसमसा रहा था. उनके होंठो पे दूध लगा था, जिसे देख के मैं मुस्काराई. पर शरारत मे तो उनका एक हाथ हटा के उन्होने अपने दूध से लगे होंठ, सीधे मेरे निपल्स पे लगा दिए और बोले,

"मेरा तो सीधे यहाँ से दूध पीने का मन करता है"

"उसके लिए तो आप को अभी कुछ दिन इंतजार करना पड़ेगा"मैं बोली, और फिर अपनी ही बात पे शरमा गयी.

"ठीक है, इंतजार कर लेंगे लेकिन तब तक प्रॅक्टीस कर लेते है.' और वो मेरे निपल को चुभूक चुभूक कर चूसने लगे. दूसरा हाथ क्यो चुप बैठा रहता वो दूसरा कुछ को मसलने लगा और एक बार फिर मेरा मैने थोड़ी ही देर मे मेने महसूस किया कि, मेरे नितंबो के नीचे उनका 'वो खुन्टा' एक बार फिर से खड़ा हो के ठोक रहा था और उन्हे ही क्यो कहु, मेरे तन की ठनक भी कम होके एक बार फिर से कस्क मस्क शुरू हो गयी थी (ये तो मुझे बाद मे पता चला कि उस गाढ़े औटाये दूध मे सिर्फ़ केसर ही नही और भी अनेक अर्ब्स थी जो क्षॅन भर मे थकान तो गायब ही करती थी साथ मे बहुत कामोत्तेजक भी थी). उन्होने हाथ हटा के मुझे चाँद को दिखाते हुए कहा,

"हे तुम इससे शरमा रही थी, पर ये तो गवाह है, हमारे प्रेम का, प्रेम से भरी इस रात का"और मेरे होंठो पे कस के चुंबन ले लिया. और जब मेने गर्दन झुकाई तो मेरी पूरी देह, निर्वासना, मेरे गोल, गुदाज, भरे भरे, किशोर उरोज.. मैं उनकी गोद से छितक के पलंग पे लेट गयी. मेरी निगाह पास पड़ी अपनी गुलाबी चुनर पे गयी. उसी से मेने अपने सीने को ढक लिया, और उसे पीठ के नीचे भी कस के दबा लिया. जब उन्होने उसे हटाने चाहा तो मैं हल्के से मुस्करा के बोली,

"हाथ लगाने की नही होती."

"मंजूर"वो हंस के बोले. और उस चुनर के उपर से ही अपने होंठो से मेरे कचाग्रो को किस करने लगे. वो चुनर भी कितना ढँकती चाँदनी बरस रही थी और उस छितकी जुन्हाई मे मेरी गोरी देह, मेरे गोरे जोबन. उनके होंठ,

मेरे पतले चिकने पेट पे किस करते और फिर गोलाई के बेस पे और छोटे छोटे चुंबनो के पग धरते सीधे मेरे उत्तेजित कचाग्रो पे. उन्हे फ्लिक करते,

किस करते,. होंठो मे हल्के से दबा के काट लेते. जिस चुनर को इतना वो किसी काम की नही थी. चाँदनी मे गुलाबी झीनी चुनर से झाँकते मेरे उभारो को और व्याकुल कर रहे थे.

और मेरी हालत कौन सी अच्छी थी. मैं भी तो मचल रही थी तड़प रही थी, बस बोल नही सकती थी कि राजीव अब मुझे अपनी बाहों मे ले लो. अब उनके होंठ मेरे उरोजो के उपर के भाग पे, जो ढँका नही था वहाँ पहुँच गये और होंठो से ही चुनर को पकड़ के नीचे सरकाने लगे. थोड़ी ही देर मे चुनर मेरी कमर तक सरक गयी और मेरे दोनो चाँदनी मे नहाए, दूधिया यौवन कलश उन्होने मेरी बगलो मे हल्की सी गुद गुदि लगाई और मैं जैसे ही थोड़ी हिली, चुनर सरक के अलग हो गयी.
 
हमारे सुहाग की सेज गुलाब की पंखुड़ियो से सजाई गयी थी. उन्होने थोड़ी सी गुलाब की पंखुड़िया अपने हाथो मे ली और उसे मेरे जवानी के कलसो पे अंजलि से बरसा दिया. थोड़ी देर मे ही दोनो गुलाब की पंखुड़ियो से ढँके सिर्फ़ उनके 'शिखर' बाहर निकले और उसके बाद वो और नीचे मैं. लाख मना करती रही पर उन्होने रज़ाई भी हटा दी और नीचे..'वहाँ' भी ढेर सारी गुलाब की पंखुड़िया बिखेर दी. और वो इतने से मानने वाले कहाँ. उन गुलाब की पंखुड़ियो के बीच जो मेरी ' पंखुड़िया' थी उन्हे उंगलियो के बीच दबा के, सहलाने मसलने लगे. मेरी तो हालत खराब थी, पर मैं कुछ बोलती तो उसके पहले वो मेरे उपर और मेरे होंठ उनके होंठो के बीच. देर तक पहले मेरे रस भरे अधरो का रस और फिर नीचे उतर के गुलाब की पंखुड़ियो से ढके उरोजो के शिखरो का रस.. और इस पूरे समय उनकी उंगलिया पहले तो मेरी पंखुड़ियो को बाहर से और फिर उनके बीच अंदर मधु रस का पान. अब उनकी दो उंगलियाँ अंदर थी, और दोनो वैसलीन से अच्छी तरह लिपि अंदर बाहर कभी गोल गोल घूमती मुझे गीली करती. (अब वो उनमे झिझक नही थी. उन्होने मेरे सामने ही तकिए के नीचे से वैसलीन की शीशी निकाली और पहले अपनी दो उंगलियो मे लगा के मेरे 'वहाँ' और फिर ढेर सारी निकाली और 'अपने.'.मैं कनखियो से देख रही थी.) मस्ती के मारे मेरी बुरी हालत थी. शायद उन्हे मेरी हालत का अहसास हो गया था. जब वो मेरी गोरी गोरी जाँघो के बीच आए तो मेरी टांगे खुद उनके कंधे पे सवार हो गयी. मुस्करा के वो बोले,

"अबकी बार इतना दर्द नही होगा."

"अगर हुआ तो"मैं भी बेशरम हो गयी थी.

"तो सह लेना.."मेरे नितंब के नीचे एक मोटी तकिया लगाते वो बोले.

दर्द हुआ भी और मेने सह भी लिया.

लेकिन अब की बार ना तो उन्हे इतनी जल्दी थी और ने मुझे इतनी घबड़ाहट.

मेरी 'पंखुड़ियो' के बीच फँसा, उन्होने धीरे से, लेकिन ताक़त के साथ पुश किया.

मेने खुद अपनी जांघे जितनी फैला सकती थी उससे ज़्यादा फैला ली.

जब दो चार धकको के बाद उन्होने कस के कमर पकड़ के धक्का लगाया,तो मेरी हल्की सी चीख निकल गई. लेकिन ना मेने चीख रोकने की कोशिश की ना उन्होने मेरे होंठो को अपने होंठो से बंद करने की.

थोड़ी ही देर मे उनके होंठ मुझे चूम रहे थे, चूस रहे थे. उनके हाथ गुलाब की पंखुड़ियो से ढके छिपे मेरे मस्त उरोजो का मर्दन, मसलन कर रहे थे. नीचे मथानी की तरह उनका मदन दंड, पूरी तेज़ी से मेरी काम गुहा मे मंथन कर रहा था. मैं उनकी बाहो मे थी और वो मेरे हमारी देह एक दूसरे की देह मे लिपटी, रगड़ती और बीच मे वो गुलाब की पंखुड़िया भी मेरी देह के साथ कुचली मसली जा रही थी. मेरे पैर उनके सर के पास सटे थे.

जब वो मेरे नितंबो को पकड़ के कस के धक्का लगाते तो पैरो के हिलने के साथ साथ मेरे बिछुए भी रुन झुन करते, उसी के साथ मेरी पायल मे लगे घुंघरू भी झंकार कर उठते. जब कभी उनका साथ देने के लिए मेरी कमर भी उठती, या वही मुझे कमर से पकड़ के उठाते तो मेरी चाँदी की करधन भी झनक उठती. फिर थोड़ी थोड़ी देर मे वो मेरी कलाई पकड़ के जब कस कस के धक्के मारते तो मेरी चूड़ियो की चूर मूर चूर मूर गूँज उठती.

मेरी देह भी उन्ही के सुर ताल मे चल रही थी. मैं भी कस के उन्हे अपने बाहु पाश मे बाँध लेती और साथ मे मेरे बाजू बंद भी गा उठते. वक्त रुक सा गया था. चाँद भी अपने काम भूल, खिड़की मे से हमारी केली क्रीड़ा देख रहा था.

बस जब मुझे ज़्यादा शरम लगती, या जब मैं खुद शरम भूल उन का मुख चूम लेती तो मेरी सखी बदलियाँ आ के चाँद की आँखे बंद कर लेती.

क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--16
 
शादी सुहागरात और हनीमून--17

गतान्क से आगे…………………………………..

मस्ती मे हम दोनो सब कुछ भूले हुए थे. ये बात नही थी कि मुझे दर्द नही हो रहा था. मेरी जांघे फटी जा रही थी, और मेरी योनि मे भी जब वो रगड़ के जाता तो कस के टीस उठती. लेकिन अब जो उन्माद की लहरें उठ रही थी, उस के आगे मैं सब कुछ भूली हुई थी. अब उसने एड के साथ लगाम लगाना भी शुरू कर लिया था. वो कस के रगड़ता, दबाता मसलता. मेरी देह, मेरे नितंब भी उसके धक्को के साथ साथ उठ रहे थे. अब जब हम चरम आनंद पे पहुँचे तो साथ साथ मैं अपनी देह की तरंगो के साथ साथ उनकी तरंगे भी महसूस कर रही थी. मेरी प्रेम गली मे पहली बूँद के साथ कस कस के 'वो' सिकुड़ने लगी, 'उसे' भींचने लगी. मेरी आँखे बंद थी. रस की हर बूँद मैं सोख रही थी. मेरे 'अंदर' वो बरस रहे थे और बाहर चाँदनी बरस रही थी. हर सिंगार झर रहे थे, उसकी महक गुलाबो की भीनी भीनी महक के साथ रात को और मस्त बना रही थी.

हम लोग बहुत देर तक वैसे पड़े रहे और अब जब अलग हुए तो ना मुझे रज़ाई से अपनी देह धकने का होश था और ना 'वहाँ' साफ करने का. उन्होने फिर मुझे सहारा दे कर अधलेटा बैठा दिया, और उनकी उंगलिया बहुत देर तक मेरे चेहरे पे आई लाटो से खेलती रही. वो मेरे चादानी मे नहाए बदन को देखते रहे और मैं उन्हे (सिर्फ़ अभी भी मेरी जांघे अपने आप सिकुड जाती और टांगे एक दूसरे से लिपट कर छुपाने की कोशिश करती). कभी वो मुझे अपनी बाहों मे भर लेते और मैं उनके चौड़े सीने मे दुबक जाती. मेरे कान को हल्के से चूमते हुए उन्होने पूछा,

"तुम्हे बहुत ज़्यादा दर्द तो नही हुआ."

मेरे मन मे तो आया कहु, तुम बड़े बुद्धू हो, पर मेने जवाब मे अपनी उंगली से उनके होंठो को सहला कर बड़े धीमे से कहा,

"आप बड़े अच्छे है'."

उन्होने कस के मुझे भींच लिया. हल्के हल्के मेरे सीने को सहलाते, वो बोले,

"जब से मेने तुम्हे पहली बार देखा था ना.. बस मन करता था कितनी जल्दी मिलो तुम."

मेरा भी तो बस यही मन करता था, हर पल. सोचा बोलू मैं. पर मेरे शब्द कर मेरे होंठो पे रुक गये. और उनके होंठो ने उन्हे, मेरे होंठो से चुरा लिया.

"एक रस्म हमने नही की. मुझे तुम्हे, गोद मे उठा के कमरे मे घुसाना चाहिए था."मैं क्या बोलती. वो फिर बोले, "हम अब से कर सकते है",

उनकी आँखो मे देख के बस मैं मुस्करा दी. बस क्या था, उन्होने मुझे अपनी गोद मे उठाया, जैसे कोई किसी गुड़िया को उठा ले, बहुत आहिस्ता से. और ले जाके सामने फर्श पे बिस्तर था वहाँ उतार दिया. उनका स्पर्श और जिस तरह उन्होने मुझे उठाया था, मेरी तो आँखे बंद हो गयी. और जब मैं ने फिर आँखे खोली, तो एक बार फिर उन्होने उठा लिया. अब मैं उनकी गोद मे थी, उनकी ओर फेस करती हुई, मेरा सीना उनके सीने से लगा चिपता.

वो मेरी टाँगो को फैला के अपनी कमर के चारो ओर अड्जस्ट कर रहे थे. मेने अपनी टांगे उनके पीठ के पीछे बाँध ली और उनकी गोद मे बैठ गयी. तभी मेरी निगाह पास मे रखी चाँदी की तश्तरी मे रखे, चाँदी के बार्क लगे पानो पे गयी. मुझे याद आया, मेरी जेठानी ने ये भी कहा था कि पान भी खिला देना. जैसे ही मेने हाथ बढ़ाया, वो बोले,

"हाँ हां, हाथ से नही."मैं नही समझ पाई कि मैं क्या करूँ. थी तब तक उन्होने अपने हाथ से एक पान पकड़ के मेरे होंठो के बीच पकड़ा दिया. अब मैं उनकी मंशा समझ गयी. जब मेने पान अपने होंठो मे ले के उनकी ओर बढ़ाया तो थोड़ी देर तो वो इधर उधर सर करते रहे. पर अब मैं भी थोड़ा हिम्मती हो गयी थी. मेने उनका सर पकड़ लिया और अपने रसीले होंठो मे पकड़ा पान, उनके होंठो पे बढ़ाया और उनके शरारती होंठो ने पान के साथ मेरे होंठ भी जबरन पकड़ लिए और दोनो का रस, लेने लगे. आधा पान काट के मेरे मूह मे और आधा उनके मूह मे. उनकी बाहो मे मेरी देह और उनके होंठो के बीच मेरे होंठ. होंठो का रस लेते लेते उन्होने अचानक हल्के से मेरे निचले होंठ को काट लिया 'उईईइ' मेरी चीख निकल गयी और उनकी जीभ मेरे मूह मे घुस गयी. कुछ मेरे मूह मे घुलते पान के रस का असर, कुछ मेरे होंठो को चुसते उनके होंठो का और कुछ मेरे मूह मे उनकी ज़ुबान मेरी पूरे देह मे फिर से मदन तरंगे दौड़ने लगी.
 
मेने भी उन्हे कस के अपनी बाहो मे भींच लिया. मेरे रसीले यौवन कलश उनकी चौड़ी मजबूत छाती से कस के दबे, कुचले जा रहे थे. मन तो मेरा भी कर रहा था कि मैं भी उसी तरह उनके होंठ चुसू, उनकी ज़ुबान से, लेकिन मेरे होंठ बस लरज के रह जाते. पर उनकी ज़ुबान मेरे मूह मे घूमती, रस लेती, मेरी जीभ को छेड़ती, खिलवाड़ करती और उनके होंठ, मेरे रसीले निचले होंठ को दोनो होंठो के बीच दबा के कस कस के रस लेते, कभी हल्के से काट लेते.

मेरे उपरी होंठ पे मेरी नथुनि लहरा रही थी, इस लिए वो शायद बच जाते पर आख़िर कब तक. ये बात उन्हे नागवार गुज़री औरनथ उठा के उन्होने एक कस के वहाँ भी चुम्मा ले लिया. और कुछ देर तक उसका रस लेने के बाद जब उन्होने उसे छोड़ के मेरे मुखड़े को देखा सुख से मेरी आँखे बंद थी. मांगती के और बिंदी को उठा के उन्होने मेरे माथे को चूम लिया. फिर अपनी जीभ की नोक से मेरे कान को छू लिया, और मेरे कान मे लहराते झूमर झनझणा उठे. अब मुझेसे भी रुकना मुश्किल था. मेरे होंठो ने शरारत से, हल्के से, उनके इयर लॉब्स चूम लिए. फिर तो मेरे गुलाबी गालो की शामत आ गयी. पहले तो वो चूमते रहे फिर उसे होंठो के बीच ले के चुसते चुसते, उन्होने हल्के से काट लिया. मैं चिहुन्क गयी कि कल अगर मेरी ननदो ने देख लिया तो चिढ़ा चिढ़ा के मेरी शामत कर देंगी. पर जहा उन्होने काटा था, वही मूह मे ले चुभलाने लगे. और जब तक मैं मना करती मेरे दूसरे गाल पे भी पहले तो चूसा फिर हल्के से काट लिया. वो गनीमत थी कि थोड़ी देर मे उनकी निगाह मेरी गहरी ठुड्डी पे, मेरे गाढ़े काले तिल पे पड़ी और उनके लालचाते होंठ उसे चूमने लगे.

तभी मेरी निगाह कपबोर्ड मे रखी घड़ी के रेडियम डाइयल पे पड़ी. 3 बजे रहे थे. ये 6 घंटे उनके साथ कैसे गुजर गये पता ही नही चला. मुझे ये भी नही पता चला था कि, उनके होंठ ठुड्डी से फिसल कर, गले से होते हुए कब और नीचे.. जैसे कोई यात्री दो पहाड़ियो के बीच घाटी मे हो उसी तरह उनके होंठ मेरी दोनो यौवन की पहाड़ियो के बीच. अचानक उन्होने अपनी बाहे ढीली कर दी और मैं पीछे की ओर झुक गयी. मेने अपने हाथो से पीछे की ओर सपोर्ट किया. मेरा सर एकदम नीचे झुका था और सिर्फ़ मेरे दोनो उरोज उपर उठे. 'हाँ हन बस इसी तरह..' वो बुदबुदाये (मैं उनकी नियत समझ गयी.

क्यो वो मुझे बिस्तर से यहा ले आए थे और क्यो मुझे गोद मे बिठा के इस तरह असल नाइट लॅंप फुट लाइट की तरह थे और अब उनकी रोशनी सीधे मेरे रूप कलशो पे अब ना मैं इन्हे छिपा सकती थी ना छिपाना चाह रही थी.)

बीच की घाटी से चढ़ते हुए उनके होंठ, जैसे आनंद के शिखर पे चढ़ रहे हो और वहाँ भी उनके होंठो ने वही शरारत की जो मेरे होंठो और गालो के साथ की थी. पहले तो चूमा, चूसा, चुभालाया और फिर हल्के से काट लिया. उनके मन सागर मे काम तरंगे ज्वर पे थी. और क्यो ना होती. वहाँ तो एक पूनम का चाँद रहता है और यहा उनके हाथ मे दो पूर्ण चंद्रा थे. वे नीचे से उन्हे हाथ से पकड़ते, दबाते और उपर से उनके होंठ और ज्वर सिर्फ़ उनके मन मे नही आ रहा था उनके तन पे भी उनका 'खुन्टा'और खुन्टा क्या.. वो इतने कड़ा लग रहा था जैसे लोहे का रोड हो. जैसे ज्वर मे सागर की लहरे पागल हो किनारे पे अपने सर पटकती है उसी तरह मेरी 'पंखुड़ियो' पे मेरी पूरी तरह खुली जाँघो के बीच 'वो' सर पटक रहा था. और मेरी पंखुड़िया भी मदमाति थी, 'उसे' 'अपने अंदर' लेने को, भींच लेने को. उधर उनके होंठो ने मेरी दोनो गोलाईयो के उपरी भाग पे कस कस के दाँत से अर्ध चन्द्र के निशान बानाए और फिर मेरे व्याकुल, एरेक्ट, प्रतीक्षा रत निपल के पास पहुँच कस के उन्हे मूह मे भर लिया और लगे चूसने. बहुत देर तक चुभालने के बाद उन्होने फिर मुझे पहले की तरह वापस खींच लिया. मेने दोनो हाथो से उन्हे कस के थाम रखा था, और उनके हाथ वो कहाँ खाली बैठने वाले थे.

एक मेरे कुचो से खेल रहा था और दूसरा मेरी 'गुलाबी पंखुड़ियो' से.
 
मेरी निगाह फिर चाँदी की तश्तरी पे पड़ी और मुझे भाभी की बात याद आ गई की दूल्हा दुल्हन को हर चीज़ जोड़े की करनी चाहिए. खास तौर् से पान तो जोड़ा से ही खाने चाहिए. लेकिन मेने सिर्फ़ एक पान उन्हे खिलाया और खुद खाया था.

मेने जोड़े का दूसरा पान उठाया और अपने गुलाबी होंठो के बीच ले के अबकी बार मैं उन्हे सता रही थी, छेड़ रही थी उकसा रही थी, पान के साथ मेरे रसीले होंठो का रस लेने को. और वो बेताब थे. जब उन्होने मेरा सर कस के पकड़ा अब मैं भी शरारती हो गयी थी मेरे होंठो ने उनके होंठो को जकाड़ लिया और मेने पान का एक हिस्सा उनके मूह मे पान के साथ मेरी जीभ भी उनके मूह मे चली गयी. बस क्या था पान चुभालने के साथ साथ उन्होने मेरी ज़ुबान भी चुसनी, चुभालनी शुरू कर दी. उनका हाथ मेरे सीने को कस कस के मसल रहा था, और दूसरा हाथ ' खूटे' को पकड़ के मेरी 'गुलाबी पंखुड़ियो के बीच' रगड़ रहा था, छेड़ रहा था. कुछ पान के रस का असर,

(ये मुझे तीन दिन बाद पता चला कि वो पान 'पलंग तोड़' पान था, बहुत ही कामोत्तेजक और मेरी शैतान ननदो ने उसमे डबल डोज डलवा दी थी.) कुछ उनके हाथो और होंठो की हरकतें मस्ती से मेरी हालत खराब थी, बस मन कर रहा था कि वो मुझे मसल दे, रगड़ दे बस 'करें' और तभी उन्होने फिर उठा के, मुझे आगे की ओर कर अपनी गोद मे बिठा लिया कि अब मेरी पीठ उनके सीने से रगड़ रही थी पहले की तरह अभी भी मेरी जांघें पूरी तरह खुली थी उनकी टाँगो मे इस तरह कस के फाँसी, कि मैं चाह के भी अपनी टांगे ज़रा सा भी नही सिकोड सकती थी. जब मेने नीचे झुक के देखा तो फुट लाइट की रोशनी सीधे मेरी गोरी जाँघो के बीच गुलाबी पंखुड़ियो पे. छुपाने का तो सवाल ही नही उठता था, इस कदर कस के उन्होने अपनी टाँगो से मेरी टांगे फैला रखी थी. मेने शरमा के अपनी आँखे बंद कर ली. उन्होने कचकचा के कस के मेरे गालो पे काटा और बोले आँख बंद करने की नही होती. वो उसे मन भर देख रहे थे, और उनकी दुष्ट उंगलियाँ, मेरी 'पंखुड़ियो' को छेड़ रही थी, मसल रही थी. फिर एक और फिर यौवन द्वार के अंदर घुस के अंदर बाहर मस्ती से मैं गीली हो रही थी.

और उधर उनका वो मोटा कड़ा काम दंड, ठीक मेरे नितंबो की दरारो के बीच और फूल रहा था, रगड़ रहा था. उसका मोटा गुलाबी, बेताब सर मेरी खुली जाँघो के बीच से झाँक रहा था. उन्होने अब वैसलीन की शीशी से दो उंगलियो मे ढेर सारी वैसलीन लेके 'उसके सर' पे लगाया और फिर उंगलियो को मेरे अंदर घुसेड दिया. कुछ देर के बाद फिर उन्हे बाहर निकाल के वैसलीन लगा के पहले ' 'उसके' उपर और फिर 'मेरे अंदर' खूब देर तक. मेरे सर को उन्होने अपनी ओर घुमा लिया था. एक बार फिर मेरे होंठ उनके होंठो के बीच दबे.. और उनकी जीभ मेरे मूह मे. मेरी तो बस मेरा मन कह रहा था कि शरम लिहाज छोड़ के मैं कहु, बस और मत तड़पाओ.. करो ना प्लीज़ बस करो और जैसे उन्होने मेरे मन की सुन ली.

बहुत हल्के से उन्होने मुझे बिस्तर पे लिटा दिया. वो उसी तरह मेरी फैली जाँघो के बीच मे जब उन्होने मेरे नितंबो के नीचे कुशण लगाया तो मेने अपने आप एक पैर उनके कंधे पे मुस्करा के उन्होने मेरा दूसरा पैर भी अपनी बाह के बीच फँसा लिया. 'उसे' मेरी 'पंखुड़ियो' के बीच फँसा.. खूब कस के धक्का मारा. मेरी चीख निकल गयी, लेकिन अपने आप मेरे हिप्स उपर उठ गये 'उसे' और लेने के लिए. 6-7 धक्को के बाद जब 'वो' अंदर घुस गया तो एक पल के लिए वो रुके और झुक के मेरे होंठ चूम लिए. इस बार मेरे होंठो ने हल्के से ही लेकिन सिहर केउनके होंठ भी चूम लिए. फिर तो लगातार जैसे उन्हे इजाज़त मिल गयी हो कभी मेरी पतली कमर पकड़ के, कभी मेरे रसीले उरोजो को पकड़ के, दबाते, मसलते वो 5-6 धक्के खूब कस कस के लगाते. मैं सिहर जाती, कभी हल्की सी टीस भी उठती और फिर 10-12 धक्के खूब हल्के हल्के वो रगड़ते हुए मेरी सांकरी प्रेम गली को फैलाते कस के घिसटते उस समय कैसा लगता था बता नही स्काती. बिस्तर पे फुट लाइट की रोशनी मे सब कुछ दिखता था. बाकी कुछ कसर चारो ओर जल रही एरोआटिक कॅंडल्स पूरी कर दे रही थी, जिनकी मादक रोशनी खास तौर से मेरे चेहरे,

गोलाईयो और 'वहाँ' पड़ रही थी.
 
मेने एक दो बार शरम से आँखे बंद करने की कोशिस कीलेकिन कचा कचा कर उन्होने कस के मेरे गाल, मेरे उरोजो पे दाँत गढ़ा दिए और मुझे आँखे खोलनी पड़ी. बस सारी लाज शरम कही दूर जा के बैठ गयी थी. मैं उनको ही क्यो दोष दू, मेरी अपनी देह भी जब वह 'बाहर' निकालते तो मेरी कमर अपने आप उठ जाती. अगर वह कस कस के मेरे कुच मसल रहे थे तो मेरी बाहों ने भी उन्हे कस के अपने बहुपाश मे बाँध रखा था. अगर वो मेरे गुलाबी गालो, रसीले उरोजो को चूस रहे थे, कच कचा के काट लेते थे तो मेरे लंबे नाख़ून भी उत्तेजना मे उनके पीठ और सीने पे खरोंच रहे थे. काफ़ी देर तक हम इसी तरह प्यार करते रहे, फिर अचानक उन्होने अपने हाथ के सहारे मुझे खींच के पहले की तरह अपनी गोद मे बिठा लिया. मेरी टांगे उनकी पीठ पे पहले से ही लिपटी थी. मेरे उरोज उनकी चौड़ी छाती से रगड़ते रहे थे.

चारो ओर लिपटी उनकी बाहे, मेरे देह से रगड़ती उनकी देह और मेरे 'अंदर' वो ये अहसास मैं कभी भूल नही स्काती. वो थोड़ी देर तक मेरी पीठ सहलाते रहे और फिर मेरे नितंबो को पकड़ के आगे पीछे और मैं भी उनकी पीठ पकड़ के उनका साथ देने की कोशिश कर रही थी. साथ मे बरसते उनके चुंबन, कभी मेरी सप्निली पॅल्को पे, कभी प्यासे होंठो पे और कभी गालो पे. तभी उनकी निगाह चाँदी की तश्तरी मे पड़े एक जोड़े पान पे गयी. और उन्होने अपने हाथ मे उसे ले के मेरे होंठो के बीच.और फिर पहली बार की तरह पान के साथ मेरे होंठ उनके होंठो की गिरफ़्त मे.. और अबकी बार जब उसे चुसते चुसते उन्होने जीभ मेरे मूह मे डाली तो मेने भी उनकी तरह जैसे वो मेरी जीभ चूस रहे हाँ थोड़ा शरमा के चूसने शुरू कर दिए. हमारे होंठ आपस मे उलझे बाकी देह भी और नीचे 'वो' भी. जब उन्होने अपनी जीभ मेरे मूह से निकाली, तो साथ मे कुछ अध कुचला पान भी मेरे मूह से अपने मूह मे.. अबकी बार जब उन्होने मुझे पीछे झुकाया, और उनके होंठ मेरे उरोजो पे अपने निशान छोड़ रहे थे तो सिर्फ़ दाँत के ही नही पान के भी और साथ मे हमारे और उनके नितंब आगे पीछे.

थोड़ी देर मे हम दोनो एक दूसरे के आमने सामने, साइड मे लेटे मेरे पैर खूब फैले उनकी कमर के उपर, मेरी दोनो टाँगो के बीच उनके पैर और वो मेरी कमर पकड़ के हल्के हल्के धक्को के साथ. बीच मे मैं दो बार 'शिथिल' हुई पड़ाव लगातार और जब मैं तीसरी बार तो वो मेरे साथ बूँद बूँद कर 'मैं' सिकुड रही थी, 'उन्हे' भींच रही थी कस कस कर उनकी आख़िरी बूँद तक.

और मैं उसी तरह उनकी बाहो मे, कसी बँधी और 'वो' उसी तरह, पूरी तरह मेरे अंदर, सो गयी तो नही कहूँगी, तंद्रा मे. आधे पौन घंटे तक और उस पूरे दरम्यान, मैं उनके होंठो, बाहो और 'उसे अपने अंदर' लगातार महसूस कर रही थी. कुछ देर बाद मेने महसूस किया कि 'वो' मेरे अंदर तन रहा है, पूरी तरह से फिर से कड़ा हो गया है. उनके होंठ भी मेरे होंठो को हल्के से चूम रहे है और हाथ मेरे सीने को सहला रहे है. मेने जान बुझ के आँख नही खोली, कि मैं जानती थी कि अगर वो जान गये कि मैं जाग रही हू तो तुरंत चालू हो जाएँगे. हल्के से उन्होने मुझे पीठ के बल कर दिया और मेरे उपर होके मेरी टांगे पूरी तरह पहले से ही फैली थी. वो 'उसी तरह मेरे अंदर' थे. अबकी बार जब उन्होने चूमा तो, मेने आँखे तो नही खोली पर, जैसा मैं पहले ही बोल चुकी हू, मेरी देह अब मेरी नही रही थी मेरे होंठो ने मुस्करा के मेरी चुगली कर दी. और फिर तो मेरी मुसीबत आ गयी.

"झूठी बदमाश समझती हो ऐसे बच जाओगी."मुझे कस के चूम के वो बोले.

और मैं आँखे खोल के फिर से हंस दी.

उनके होंठो और उंगलियो ने मेरे होंठो, उरोजो और निपल्स को छेड़ छेड़ के मेरी देह को भी थोड़ी ही देर मे जगा दिया. और मेने भी बस पूरी ताक़त से अपनी जाँघो को अच्छी तरह फैला के, उन्हे अपनी बाहों मे बाँध के अपना इरादा बता दिया.

' वो' तो अंदर थे ही, बस मेरे दोनो कुछ पकड़ के वो चालू हो गये. थोड़ी देर बाद ही मुझे पता चल गया कि अबकी बार उन का इरादा एकदम अलग है. मेरी फैली हुई जाँघो को उन्होने और चौड़ा किया और फिर मेरी दोनो कलाइयाँ पकड़ के पूरी ताक़त से मेरी चीख निकल गयी. पर उसकी परवाह किए बिना उन्होने दूसरा धकका और कस के मेरी चूल चूल हिल गयी. इस बार उनका कोई और अंग ना मुझे छू रहा था ना सहला रहा था.बस एक के बाद एक पूरी ताक़त से उनका मोटा सख़्त शिश्न मेरी कसी योनि मे रगड़ता घिसटता उसे फाड़ता बिना रुके.

बस वो शेअर फीसिकल रॉ इंटरकोर्स. मेरी निगाह कमरे मे लगी घड़ी पे गयी और मैं बोल पड़ी, अरे सुबह होने वाली है, साढ़े पाँच बज रहे है. बस उसका नतीजा ये हुआ कि, उनके धक्को की रफ़्तार और ताक़त और तेज हो गयी. कुछ देर तक तो मैं सिर्फ़ काँप रही थी हिल रही थी. सिर्फ़ वही. जब उनका मोटा लिंग रगड़ के मेरी योनि को तो बस इतना मजेदार सेन्सेशन होता था. लेकिन थोड़ी ही देर मे ये सेन्सेशन सारी देह मे फैल गया और मेरे नितंब भी उनके धक्के के साथ दर्द भी हो रहा था टीस भी हो रही थी लेकिन मज़ा भी खूब आ रहा था.

क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--17
 
शादी सुहागरात और हनीमून--18

गतान्क से आगे…………………………………..

मुझे पता नही मैं कितनी बार झड़ी लेकिन वो बिना रुके उसी तरह अपने लिंग पूरी ताक़त के.. साथ मैं झड़ती लेकिन उनके धक्के इतने बस दो मिनिट मे मैं फिर उसी तरह उनके धक्को के साथ..अपने नितंब उठाती और आधे घंटे से ज़्यादा उसी तरह लगातार जब वो झाडे तो फिर मैं साथ थी. मुझे लगा मस्ती से मैं बेहोश हो जाउन्गि. जब मेने आँखे खोली वो मेरे उपर थे. अबकी बार मेने उन्हें चूम लिया और मैं शरमाई भी नही. जब वो मेरे उपर से हटे तो लगा कि मेरे 'वहाँ' कुछ खाली खाली सा हो गया है. सवा छ: बज रहे थे. मेने दो तीन बार उठने की कोशिश की पर नही उठ पाई. उन्होने सहारा देके उठाया. जांघे फटी जा रही थी और पूरी देह दर्द से चलने मे भी तकलीफ़. मेरे कंधे पे सहारा दे के वो मुझे बाथरूम के दरवाजे पे छोड़ आए.

क्या बाथरूम था, एक नॉर्मल साइज़ कमरे से भी बड़ा. खूब बड़ा सा बाथ टब,

शवर जो कुछ कोई सोच स्कता हो, उससे भी ज़्यादा. थोड़ी देर मे मैं फ्रेश हुई तो मुझे डॉक्टर भाभी की क्रीम याद आई जो उन्होने मुझे 'इस्टेनेल के बाद' लगाने की सलाह दी थी. वो मेरे वॅनिटी बॉक्स मे ही थी. उसको लगाने के बाद वास्तव मे आराम मिला. थोड़ा 'वहाँ' दर्द कम हुआ और जाँघो की चिल्खन भी.

कॉटन का एक थिन सा सफेद गाउन भी वहाँ टंगा था. वो मेने पहन लिया.

काफ़ी छोटा, मुश्किल से मेरी जाँघो तक और स्लीव लेस लेकिन धकने के लिए काफ़ी था. बस जब मैं बाहर निकली तो बस यही सोच रही थी कि बस एक कप गरम गरम चाय मिल जाय तो एकदम ताजी हो जाउ. वहाँ तो भाभी या मम्मी की बेड टी के साथ ही आँख खुलती थी. पर यहा कौन और जेठानी जी भी तो 9 बजे आएँगी. तब तक दो ढाई घंटे बचे है.

और जब मैं बाहर निकली तो केट्ल मे गरम चाय और दो प्याले. ये भी फ्रेश होके शर्ट पहन के बैठे. मुझे देख के इन्होने प्याले मे चाय उडेली. मेने धन्यवाद भरी निगाहो से इन्हे देखा, और चाय की सीप ली. वह.. एकदम कॅड्क जैसी मुझे पसंद थी. मेरी तो आँखे खुल गयी और रही सही थकान भी रफू चक्कर हो गयी.

"आप चाय बहुत अच्छी बनाते है'. मेने मुस्करा के कहा."

"और क्या क्या अच्छा करता हू"मेरे कंधे पे हाथ रख के आँखे नचा के उन्होने पूछा.

"धत्त"और वो शरम जिसने रात मे मेरा साथ छोड़ दिया था, अब फिर मेरे साथ आ गयी थी. हम लोग चाय पी ही रहे थे कि फोन की घंटी बजी "हाँ मम्मी जी, हम लोग ठीक है. जी ये भी यही है, लीजिए बात कीजिए"मुझे फोन थमाते हुए वो बोले लो मम्मी का फोन.. मैं तो खुशी से पागल हो गयी. (उस जमाने मे ना तो एस.टी.डी था और ना मोबाइल. इन्होने एक्सचेंज मे किसी से कह के, लाइटनिंग कॉल बुक कर के कॉल लगवाई थी.)

"कैसी हो"मम्मी ने पूछा "अच्छी हू और आप लोग"

"दामाद जी कैसे है अच्छे है."उन्होने पूछा. मैं क्या बोलती. मैं जानेती थी वो क्या जानना चाहती है पर कैसे बोलती. वो थोड़े दूर चले गये थे जिससे की मैं खुल के बात कर सकु.

"बोल ना तुम्हे कैसा अच्छे है ना तुम्हारे साथ."

"हाँ मम्मी बहुत अच्छे है चाय बहुत अच्छी बनाते है."मैं खिलखिला के हंस पड़ी.

"अरे तू तो बहुत वो है. पहले दिन बेचारे से चाय भी बनवा लिया. बता रात मे कच कचा के प्यार किया कि नही." उन्हे हरदम ये डर रहता था कि मैं कही कुछ गड़बड़ ने कर दू.

"हाँ किया."

अरे मैं पूछती हू साफ साफ पीछे से भाभी की आवाज़ सुनाई दी.

"हे बोल कित्ति बार."भाभी ने पूछा.

मैं सिर्फ़ खिलखिलाती रही.
 
"अरे बोल ने.. एक बार दो बार"

मैं फिर सिर्फ़ खिलखिलाती रही.

"अरे बोल ना साफ साफ कितनी बार चुदवाया, एक बार दो बार या ऐसा तो नही कि कही कुछ गड़बड़."

"भाभी आप का रेकॉर्ड तोड़ दिया."मैं खिलखिलाती हुई बोली.

"क्या मैं मान नही सकती वो बेचारा इतना सीधा साधा है. तीन बार से ज़्यादा हो नही सकता."भाभी चकित थी.

"तो ठीक है, अपने नेन्दोइ से पूछ लीजिए"

"हे बता कितना बड़ा है, कितना मोटा"

"अरे, वो भी उन्ही से पूछ लीजिएगा या फिर हाथ कंगन को आरसी क्या, देख या पकड़ के नाप लीजिएगा."

"मैं तो पकडूँगी भी, नापुँगी भी और अंदर भी लूँगी. एकलौती सलहज जो हू.

तेरी सुलगेगि तो नही."भाभी अपने स्टॅंडर्ड पे आती जा रही थी.

"अरे भाभी जो सुलगने वाली चीज़ थी, वो तो आपने पहले से ही साफ करवा दी.

मेरी ओर से पूरी छूट है."हंस के मैं बोली.

"तू ऐसे नही बताएगी. अच्छा बता 6 इंच 7 इंच या 8 इंच.."उन्होने सवाल जारी रखे.

"मेने नापा तो नही पर जो आपने अंत मे बताया था.. बस थोड़ा सा और हो सकता है."मुझे भाभी को जलाने और चिढ़ाने मे मज़ा आ रहा था.

"कितनी देर तक किया उसने 5 मिनिट 10 मिनिट 15 मिनिट"उन्होने अगला सवाल दागा.

"नही और."मैं रात के बारे मे सोच रही थी और शरमा रही थी कि कितनी देर तक वो "तो क्या आधे घंटे तक"भाभी ने चकित हो के पूछा "हाँ बस थोड़ी और देर तक."

"हे मैं नही मान सकती वो और"भाभी की बात काट कर मेने कहा,

"अरे तो मेने कहा ना आप अपने नेंदोई से हाल खुलासा पूछ लीजिए या फिर जब वो मिलेंगे तो ट्राइयल कर लीजिएगा. मैं बुलाती हू उनको."हे आइए भाभी बुला रही है, मेने उनसे कहा.
 
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