hotaks444
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शादी सुहागरात और हनीमून--16
गतान्क से आगे…………………………………..
मेरा सारा शरीर मस्ती से शिथिल हो गया था. तभी उसने मेरी दोनो कलाईयो को पकड़ के खूब कस के धक्का मारा, और..
हज़ार बिजलियाँ एक साथ चमक गयी.
हज़ार बदल एक साथ कॅड्क उठे.
मेरी दोनो कलाईयो की आधी चूड़ियाँ एक साथ चटक गयी.
और 'मेरी' दर्द की एक लहर जाँघो के बीच से निकल के पूरे शरीर मे दौड़ गयी. मेने चीखने की कोशिश की लेकिन मेरे दोनो होंठ उसके होंठो के बीच दबे थे, और सिर्फ़ गो गो की आवाज़ निकल के रह गयी.
लेकिन वो रुका नही एक के बाद दूसरा और.. फिर तीसरा.
मेरी सब मस्ती, रस गायब हो चुका था. मैं पानी के बाहर मछली की तरह तड़फदा रही थी, पलट रही थी. लेकिन मेरी कलाईयो पे उसका ज़ोर, होंठो की पकड़ बिना कोई ढील दिए वो धक्के पे धक्का मारे जा रहा था. 8-10 धक्के के बाद ही वो रुका, और मेरी कलाई पे पकड़ थोड़ी ढीली हुई. जब मेने दो पल बाद आँखे खोली तो उसका चेहरा,
एकदम खुशी से भरा था, आँखे बंद. इतना खुश मेने उसे कभी नही देखा था. और उसके इस खुशी के लिए ये दर्द क्या कुछ भी कुरबान था. मेने अपनी पलके बंद कर ली और सारा दर्द बूँद बूँद कर पीती रही.
लेकिन लगता है उसे इस बात का अहसास हो गया था कि मेरे उपर क्या गुज़री. कलाई छोड़ के अब वो मेरा सर सहला रहा था. उसके होंठ अब मेरे दर्द से भरी पॅल्को को चूम के, दर्द सोख रहे थे. उसके हाथ, बहुत हल्के से मेरे सीने को छू रहे थे, दुलार रहे थे. अब जब मेने आँख खोली, तो उसका चेहरा उस परेशान बच्चे की तरह लग रहा था जिससे कोई कीमती फ्लवर वेस टूट गया हो, और वह उसे किसी के देखने से पहले, जोड़ कर इस तरह रख रहा हो कि किसी को पता ना चले. मुझसे नही रहा गया. मेने खुद उसे अपनी बाहों मे कस लिया और जैसे कोई सूखा गुल खुद झुक के, फूल गिरा दे, अपने चेहरा उठा के मेने उसे चूम लिया.
और यही मेने सबसे बड़ी ग़लती की. अपने लिए मुसीबत मोल ली.
उसने मेरे हल्के से चुंबन के जवाब मे कस के मेरे रसीले होंठो को चूम लिया. मेरे पॅल्को को उसने ऐसे चूमा जैसे थॅंक्स दे रहा हो. उसके बाद तो मेरे पूरे चेहरे पे चुंबनो की बदिश सी हो गयी. और उसकी उंगलियाँ जो सहम के मेरे सीने को छू रही थी, कस कस के उन्होने फिर से उसे दबाने, मसलने, उसका रस लेना शुरू कर दिया. इस रस की बदिश मे मेरी देह कैसे बचाती. मेरे तन मन मे एक बार फिर से रस भर गया, वही कस्क मस्त होने लगी. ये कहु कि दर्द ख़तम हो गया था तो ग़लत होगा, हा दर्द का अहसास ज़रूर कम हो गया था. वहाँ पर 'नीचे' अभी भी बची थी एक टीस, मीठी सी.
गतान्क से आगे…………………………………..
मेरा सारा शरीर मस्ती से शिथिल हो गया था. तभी उसने मेरी दोनो कलाईयो को पकड़ के खूब कस के धक्का मारा, और..
हज़ार बिजलियाँ एक साथ चमक गयी.
हज़ार बदल एक साथ कॅड्क उठे.
मेरी दोनो कलाईयो की आधी चूड़ियाँ एक साथ चटक गयी.
और 'मेरी' दर्द की एक लहर जाँघो के बीच से निकल के पूरे शरीर मे दौड़ गयी. मेने चीखने की कोशिश की लेकिन मेरे दोनो होंठ उसके होंठो के बीच दबे थे, और सिर्फ़ गो गो की आवाज़ निकल के रह गयी.
लेकिन वो रुका नही एक के बाद दूसरा और.. फिर तीसरा.
मेरी सब मस्ती, रस गायब हो चुका था. मैं पानी के बाहर मछली की तरह तड़फदा रही थी, पलट रही थी. लेकिन मेरी कलाईयो पे उसका ज़ोर, होंठो की पकड़ बिना कोई ढील दिए वो धक्के पे धक्का मारे जा रहा था. 8-10 धक्के के बाद ही वो रुका, और मेरी कलाई पे पकड़ थोड़ी ढीली हुई. जब मेने दो पल बाद आँखे खोली तो उसका चेहरा,
एकदम खुशी से भरा था, आँखे बंद. इतना खुश मेने उसे कभी नही देखा था. और उसके इस खुशी के लिए ये दर्द क्या कुछ भी कुरबान था. मेने अपनी पलके बंद कर ली और सारा दर्द बूँद बूँद कर पीती रही.
लेकिन लगता है उसे इस बात का अहसास हो गया था कि मेरे उपर क्या गुज़री. कलाई छोड़ के अब वो मेरा सर सहला रहा था. उसके होंठ अब मेरे दर्द से भरी पॅल्को को चूम के, दर्द सोख रहे थे. उसके हाथ, बहुत हल्के से मेरे सीने को छू रहे थे, दुलार रहे थे. अब जब मेने आँख खोली, तो उसका चेहरा उस परेशान बच्चे की तरह लग रहा था जिससे कोई कीमती फ्लवर वेस टूट गया हो, और वह उसे किसी के देखने से पहले, जोड़ कर इस तरह रख रहा हो कि किसी को पता ना चले. मुझसे नही रहा गया. मेने खुद उसे अपनी बाहों मे कस लिया और जैसे कोई सूखा गुल खुद झुक के, फूल गिरा दे, अपने चेहरा उठा के मेने उसे चूम लिया.
और यही मेने सबसे बड़ी ग़लती की. अपने लिए मुसीबत मोल ली.
उसने मेरे हल्के से चुंबन के जवाब मे कस के मेरे रसीले होंठो को चूम लिया. मेरे पॅल्को को उसने ऐसे चूमा जैसे थॅंक्स दे रहा हो. उसके बाद तो मेरे पूरे चेहरे पे चुंबनो की बदिश सी हो गयी. और उसकी उंगलियाँ जो सहम के मेरे सीने को छू रही थी, कस कस के उन्होने फिर से उसे दबाने, मसलने, उसका रस लेना शुरू कर दिया. इस रस की बदिश मे मेरी देह कैसे बचाती. मेरे तन मन मे एक बार फिर से रस भर गया, वही कस्क मस्त होने लगी. ये कहु कि दर्द ख़तम हो गया था तो ग़लत होगा, हा दर्द का अहसास ज़रूर कम हो गया था. वहाँ पर 'नीचे' अभी भी बची थी एक टीस, मीठी सी.