kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून - Page 7 - SexBaba
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kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून

वो तुरंत पास आए लेकिन बैठते हुए, उन्होने मुझे उठा के अपनी गोद मे बिठा लिया. बैठते ही मेरा वो छोटा सा गाउन उपर सरक गया और बड़े हिप्स सीधे उनकी गोद मे. भाभी ने अपने सवाल मुझसे जारी रखे लेकिन अब वो खुल के..

एकदम अपने स्टॅंडर्ड पे "हे तेरे जोबन का खुल के मज़ा लिया कि नही. बहुत रसिया लगता है वो तेरे जोबन का."

"हां, लिया."मैं क्या बोलती. और मुझे लग रहा था जिस तरह ज़ोर से भाभी बोल रही थी उन्हे भी पक्का सुनाई दे रहा होगा.

"तू नही सुधरेगी, रात भर चुचि मीजावाने मे शरम नही आई और खुल के चुचि बोलने मे शरम आती है."

मैं क्या बोलती. वो काम तो अभी भी जारी था. मेरे लो काट गाउन से झाँकते मेरे उरोजो के उपर के खुले भाग मे, जहा उनके दांतो के निशान थे, उनकी उंगलिया सहला रही थी दबा रही थी. और उनका दूसरा हाथ मेरे उठे गाउन से खुली जाँघो को सहला रहा था.

पीछे से मम्मी की हल्की हल्की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी. लगता है वो भाभी से कुछ कह रही थी, पूछने के लिए. पर भाभी तो अपनी इनिमिहिल स्टाइल मे "मज़ा आया तुझे चुदवाने मे राजीव के साथ, बोल ना खुल के अच्छा लगा."

"हाँ भाभी, अच्छा लगा.

"अरे तो खुल के बोल ना, अच्छा लगा या बहुत अच्छा लगा."

भाभी से तो मैं झूठ नही बोल सकती थी.

"भाभी बहुत अच्छा लगा."और वो अब अगला सवाल पता नही क्या करे इसलीए मेने फ़ोन 'उनकी' ओर बढ़ा दिया. लेकिन वो एक चॉक, बिना अपने हाथ 'वहाँ से' हटाए, फोन मेरे हाथ मे पकड़ाए, वो बात करने लगे.

"थॅंक्स भाभी बल्कि डबल थॅंक्स.."हंस के वो बोले. मैं चकित, किस बात की डबल थॅंक्स.

वो लोग खूब खुल के खुश होके, हंस हंस बात कर रहे थे. और उनकी बातो का अंदाज़ा मुझे 'उनके' हाथो की हर्कतो से हो रहा था. उंगलिया, जो उरोजो के उपरी हिस्से पे थी, फिसल के उन्होने अब पूरे को 'कप' कर लिया था और हल्के हल्के दबा रही थी. भाभी के किसी सवाल के जवाब मे उन्होने कहा, बहुत अच्छा भाभी और उनका हाथ जो मेरी जाँघो पे फिसल रहा था, उपर सरक आया और उसने कस के मेरी 'बुलबुल' पकड़ ली. मेने कान फोन से लगा दिए कि आख़िर भाभी क्या कह रही है. भाभी ने पूछा,

"मेरी ननद कैसी लगी." तो जवाब मे वो बोले कि बहुत अच्छी और इतनी कस कस के मेरे गाल पे दो चुम्मे ले लिए कि उसकी आवाज़ ज़रूर भाभी तक गयी होगी. और फिर मम्मी भी तो थी वही पे.

भाभी का अगला सवाल तो मैं नही सुन पाई पर ये बोले, "बहुत अच्छी है पर थोड़ा शर्मीली ज़्यादा है."और साथ मे मेरे निपल्स पे बहुत कस के पिंच कर दिया कि मेरी ज़ोर से सिसकी निकल गयी' "अरे इसका इलाज भी तो तुम्हारे हाथ मे है"और उसके बाद भाभी ने कुछ हल्के से कहा कि जो मैं नही सुन पाई. सिर्फ़ उनकी हँसी और जवाब एकदम भाभी, सही कहा आपने, से अंदाज लगाया कि भाभी ने कुछ 'अपनी स्टाइल' मे कहा होगा. उन्होने फिर फोन मुझे दे दिया. पहले मम्मी फिर भाभी ने प्रोग्राम के बारे मे, मुझे और क्या करना चाहिए, अभी क्या पहनु, शाम को रिसेप्षन मे सब बाते की. मैं आधे मन से सुन रही और हाँ हू कर रही थी क्यो कि उनके हाथ अब पूरी तरह आक्टिव हो गये थे. वो कस कस के मेरे कुछ दबा रहे थे, निपल्स को फ्लिक कर रहे थे और मेरे उरोज भी उत्तेजना से पत्थर हो रहे थे, उधर दूसरे हाथ की उंगली भी, 'पंखुड़ियो' के बीच मे.
 
तभी भाभी बात ख़तम करने से पहले बोली,

"हे ज़रा नेंदोई जी को फोन देना"और मेने क्रेडल उनकी ओर बढ़ा दिया.

"हाँ एकदम भाभी, हाँ अभी.. एकदम जो हुकुम."फोन रख के उन्होने मुझे अपनी बाहो मे उठा लिया और पलंग पे किनारे ले जा के लिटा दिया.

"हे हे ये क्या कर रहे है"मैं बोली.

"मैं अपनी सलहज का हुकुम मान रहा हू. हंस के, गाउन को मेरे कंधे तक उपर सरकाते वो बोले.

"हे सलहज और नेंदोई के बीच बेचारी ननद पीस रही है. जा के करिए ने अपनी सलहज के साथ"

"अरे क्या समझती हो उनको छोड़ दूँगा, एकलौती सलहज जो है."मेरे दोनो कुछ कस कस के मसलते वो बोले. वो खड़े ही खड़े, उनका शर्ट अपने आप सरक गया था और 'उठती' उन्होने मेरे हिप्स को उठा के मेरी गुलाबी काँपति पंखुड़ियो के बीच लगा दिया था.

"लेकिन ऐसे दिन दहाड़े"मेने हल्का सा रेज़िस्ट किया. पर अब मेरा भी मन कर रहा था. "क्या हुकुम था आपकी सलहज का."हिप्स उठाते मेने पूछा.

"मैं उनकी ननद को एक बार और हचक के चोदु उनकी ओर से."हल्के से मेरे कान को चूमते वो बोले.

उनके मूह से ये शब्द पहली बार सुन के मैं सिहर उठी और मेरी बाहों ने कस के उन्हे अपनी ओर खींच लिया. और उसी साथ के जो मस्त हो के उन्होने खड़े खड़े करारा धक्का मारा वो मेरे अंदर थे. मेरी दोनो जांघे पूरी तरह फैली.

दोनो नितंबो को पकड़ के उन्होने चार पाँच करारे धक्के मारे. और फिर कस के मेरे होंठ को चूम के बोले,

"ये मस्त रसीले होंठ मेरे है,

"हाँ"मेरी आँखे बंद हो रही थी और आवाज़ सरसरा रही थी.

मेरे कुचो को कस कस के मसलते, दबाते निपल को चूस के बोले,

"और ये मस्त मस्त जोबन' "हाँ हां तुम्हारे है"मेरी आवाज़ मुश्किल से निकल रही थी. मेने कस के उन्हे भींच लिया.

"और ये"उनकी उंगलिया अब मेरे यौन द्वार पे थी. उनकी बात पूरी होने के पहले ही मैं बोल पड़ी,

"हाँ राजीव हां, मेरे साजन, मेरे बालम सब कुछ मेरा सब कुछ तुम्हारा है.

हर अंग हर साँस सब तुम्हारा है, तुम्हारे लिए प्यासा है."और मेरे नितंब अपने आप उनके धक्को के साथ उठ गये.

"तो.. चोदु तुम्हे.."झुक के मेरी आँखो मे झुक, फूस फुसाते हुए उन्होने पूछा. जैसे कोई बहुत बड़ा बाँध टूट गया हो. फिर दुबारा उनके मूह से ये सुनके.

"हाँ डार्लिंग हां ले लो ले लो मुझे और कस के रूको मत"मेरे शरीर की चाहत मेरे ज़ुबान पे आ गयी थी. और खुद उठ के मेरे कुछ मेरे मस्त जोबन उनकी चौड़ी छाती मे मैं रगड़ रही थी, उनके हर धक्के के जवाब मे मैं भी कस कस के अपने हिप्स उठा रही थी. कमरे मे लगता है कोई तूफान आ गया था. वो कस कस के मुझे रगड़ रहे थे मसल रहे थे. उनके धक्के लगातार पूरी ताक़त से नाख़ून मेरे जोबन पे. और मैं भी सब कुछ भूल के उनका साथ दे रही थी. कभी दर्द से चीखती, कभी मज़े से सिसकती. मेरी टांगे उन्हे मेरे और अंदर और अंदर खींच रही थी मेरी बाहे उन्हे और कस के मेरी ओर खींच रही थी. उनके हर चुंबन का जवाब मेरे होंठ बराबर जोश से दे रहे थे. और 'वहाँ' नीचे भी.. हर स्पर्श हर रगड़ का मैं मज़ा ले रही थी. बस मन कर रहा था ये.. करते ही रहे करते ही रहे. और आधे घंटे से भी ज़्यादा बिना थमे ये तूफान चलता रहा. जब वो रुका तो हम दोनो एक साथ बारिश होती ही रही होती ही रही. मेरा तन मन सब शिथिल था. मेने आँखे खोली तो आठ बजने वाले थे और ये कह रहे थे,

"तुम थोड़ी देर उठना मत बस मैं पाँच मिनिट मे आता हू."

यहाँ उठने की ताक़त किसमे थी...

क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--18
 
शादी सुहागरात और हनीमून--19

गतान्क से आगे…………………………………..

उनके स्पर्श से मेरी आँखे खुली. उन्होने फूल की तरह मुझे उठा लिया और सीधे बाथ टब मे . बाथ टब मे उन्होने इतना अच्छा बाथ तैयार कर के रखा था बबल बाथ और उसमे गुलाब की पंखुड़िया और पता नही साथ मे कौन से एरोआटिक सेंट्स थे कि पाँच मिनिट मे ही मेरी सारी थकान दूर हो गयी. मेने खूब रगड़ रगड़ के नहाया और जब ड्रेसिंग रूम मे आई दंग रही गयी मैं. तीन ओर लाइफ साइज़ मिरर..मेरे लाये कॉसमेटिक्स के साथ..ढेर सारे और इंपोर्टेड कॉसमेटिक्स और मैं फिर दुलहन की तरह सिर्फ़ एक प्राब्लम थी. भाभी ने मेरे सारे ब्लाउस लो कट सिलवाए थे, जिससे ना सिर्फ़ क्लीवेज बल्कि, सीने का उपरी भाग भी..और वहाँ इनके रात के दाँत के निशान. मैं ध्यान से हर निशान पे 'नो मार्क' लगा रही थी कि इनकी आवाज़ सुनाई पड़ी,

"हे चाय चलेगी"

खुश होके मैं बोली, "नही.. चलेगी नही दौड़ेगी."

और जब मैं तैयार होके बाहर निकली एकदम चकित हो गयी मैं. कमरा खास तौर से बेड पहचाना नही जा रहा था. उस पर रात भर हम लोगो के 'युद्ध' के निशान गायब थे. हम लोगो की देह से कुचले मसले गुलाब के फूल,

पंखुड़िया, मेरी काँच की चूड़ियो के टुकड़े और हमारी 'देह के निशान' सब गायब थे, बल्कि सहेज के रख लिए गये थे, इस रात की याद के तौर पे. और बिस्तर पे सफेद चादर और बेड कवर कमरे मे बाकी जगहो पे भी और वो खुद कुर्ते पाजामे मे सोफे पे. उनके बगल मे बैठ के मुस्कराते हुए मेने पूछा,

"हे क्या आपके पास कोई जादू की छड़ी है."

"है ना "शैतानी से वो बोले. "रात मे देखा नही था क्या.. दिखाऊ फिर से"

"धत्त आप को तो सिर्फ़ एक ही चीज़ सुझति है"मैं बोली.

"एक नही ..दो"साड़ी और चोली से ढँके मेरे उभारो की ओर देखते वो बोले.

'बल्कि..एक और' अब उनकी निगाहे मेरी जाँघो की ओर थी.

चाय उदेलते हुए, बात टालने की कोशिश करते हुए मेने पूछा,

"आप भाभी को थॅंक्स बल्कि डबल थॅंक्स किस बात पे दे रहे थे."

"जाने दो तुम बुरा मान जाओगी."चाय सीप करते वो बोले.

"नही नही. भाभी की किसी बार का मैं बुरा नही मानती."

"पहला थॅंक्स तुम्हे याद है कुहबार मे उन्होने मेरे कान मे कुछ कहा था."

मैं कैसे भूल सकती थी. मेरी भाभियो और सहेलियो ने उनकी बहन अंजलि की फ्रॉक उठा दी थी, बिना ये जाने कि वो बिना पैंटी के है और उसका सब कुछ झलक दिख गयी थी. बस सबको लग रहा था कि अब ये ज़रूर बुरा मान जाएँगे.
 
लेकिन भाभी ने कुछ इनके कान मे कहा और बात सम्भल गयी.

"उन्होने कुहबार मे कहा था कि तुम पिल लेती हो इसलिए मुझे कोई प्रोटेक्षन लेने की ज़रूरत नही है, वरना मैं परेशान हो रहा था कि मैं क्या करूँगा."

उन्होने राज खोला.

"और दूसरा"मैं उत्सुक थी.

"जाने दो तुम नाराज़ हो जाओगी."चाय ख़तम करते वो बोले.

"नही नही..प्लीज़ बताइए ने."इठला के उनकी बाह पकड़ के मेने पूछा.

"तुम्हे याद है विदाई के समय जब मैं और भाभी गले मिल रहे थे तभी उन्होने मुझे पैंटी के हुक का राज बता दिया था."हँसते हुए उन्होने बताया.

ये ये फाउल है..चलिए भाभी से मिलूंगी तो खूब झगड़ा करूँगी. मुझे छोड़ आपसे मिल गयी."

"अर्रे मैं उनका प्यारा ननदोयि जो हू"वो बोले.

"अच्छा प्यारे ननदोयि जी और आज सुबह आपकी प्यारी सलहज ने क्या सुझाव दिया जब आपने"

"वो ..वो जब मेने उनसे कहा कि आपकी ननद बड़ी शर्मीली है, तो वो बोली कि,

पहले आप तो अपनी शरम छोड़िए, और खास तौर से बोलने मे. जितने आप बेशरम होंगे, खुल के हर चीज़ बोल पड़ेंगे, उतनी ज़्यादा उसको बेशरम बना पाएँगे."मेरे कंधे पे हाथ रख के मुस्कराते हुए वो बोले.

मेने हंस के सोचा कि भाभी ने दे दिया इनको गुरु मन्त्र.

वो चाय का प्याला रखने उठाने लगे तो मेने कहा मैं रख आती हू तो वो बोले अच्छा चलो साथ साथ. कमरे से लगा एक किचन था. लेकिन छोटे किचेन के साइज़ का, गॅस स्टोव, ओवेन, फ्रिड्ज, वॉश बेसिन सब कुछ था, और चाय काफ़ी और ढेर सारा स्नेक्क्स.

जब हम लोग बाहर निकले तो 9 बजने मे सिर्फ़ 10 मिनिट बचे थे. उन्होने मुझसे बोला कि दरवाजा अंदर से खोल दो. मेने सितकनि खोल दी और उनके साथ सोफे पे बैठ गयी.

मैं सोचने लगी कि कैसे रात गुजर गयी पता ही नही चला. अगर मेरी कोई सहेली, मुझसे पूछे कि मुलाकात हुई क्या बात हुई तो मैं क्या बताउन्गि.

रात भर हम लोग. बोले तो बहुत कम लेकिन बाते बहुत की.

तब तक हल्के से और फिर एक झटके से दरवाजा खुलने की आवाज़ आई.

अंजलि, मेरी एक और ननद, गुड्डी और पीछे पीछे मेरी जेठानी जी. मेरी ननदो की निगाहें सीधे बेड पे जैसे अभी भी हम लोग लेटे या कुछ कर रहे या फिर बेड पे कुछ तेल साइन्स पर वहाँ पे तो बिस्तर साफ सुथरा, एक सिकन भी नही और फिर जब उन लोगो ने हम लोगो को देखा तो हम दोनो सोफे पे अच्छे बच्चो की तरह दूर दूर बैठे और मैं नहा धो के तैयार, सजी. मेने झुक के अपनी जेठानी का पैर छुआ तो पैर छूने के पहले ही उन्होने मुझे, ये कहते हुए उठा लिया कि तुम मेरा पैर मत छुआ करो, तुम तो मेरी छोटी बहन हो, और गले से लगा लिया. लेकिन वो भी गले से लगा के धीरे से मेरे कान मे पूछा, कैसी रही. अपनी भाभी की तरह मैं उनसे भी कोई बात छिपा नही सकती थी. बस मैं हल्के से मुस्करा दी और मेरे मुस्कराहट ने सब कुछ कह दिया. सब कुछ समझ के उनेका चेहरा खिल उठा और हल्के से फिर पूछा, और कैसा लगा मेरा देवर. बहुत अच्छे और बहुत बदमाश मेरे मूह से हल्के से निकल पड़ा और वो हंस दी.
 
मेरी ननदो से वो बोली,

"भाभी को नीचे ले जाओ और नाश्ता वास्ता कराओ, मैं आती हू."

बिना उनमे से किसी के पूछे मैं बोल पड़ी, नींद अच्छी आई थी.

दरवाजे से बाहर निकलते ही सब एक साथ चालू हो गयी. और सब से ज़्यादा अंजलि,

"क्यो भाभी कैसी रही. भैया ने ज़्यादा तंग वन्ग तो नही किया."

एक तो साड़ी उपर से घुँघटओर फिर नया घर और उपर से सबने समझाया था कि धीरे धीरे चलना.

"वो पूछने की बात है, देख बिचारी भाभी से चला नही जा रहा है, तुम सब भी धीमे धीमे चलो ना साथ."दूसरी ननद ने और छेड़ा. तब तक मेरे गाल पे कोई निशान दिख गया( मेने ध्यान से हर जगह नो मार्क लगाया था तब भी कुछ छूट ही गये थे). वो उसे दिखाती हुई गुड्डी से बोली,

"हे तुझसे इतना कहा था ना. गुड नाइट नही लगाया था क्या. देख भाभी को इतना कस के मच्छर ने काट लिया."और आज गुड्डी ने भी इन सब का कॅंप जाय्न कर लिया था. वो उसे छेड़ते बोली,

"हे अंजलि. अपने भैया को मच्छर कह रही है."

"क्या भैया ने ये तो बहुत बुरी बात है. दिखाइए भाभी कहाँ कहाँ काटा खोल के दिखाईयगा, मैं उस जगह मलहम लगा दूँगी. "दूसरी बोली.

मैं क्या बोलती. गनीमत थी, तब तक हम लोग नीचे पहुँच गये थे.

नीचे बरांडे मे मेरी सास, मेरी ममिया, मौसेरी सास और बाकी सब औरतें बैठी थी. मेने पहले अपनी सास और फिर बाकी सबके पैर छुए. सास ने मेरी, खूब आशीर्वाद दिया. किसी औरत ने बोला,

"लगता है बहू को रात मे ठीक से नींद नही आई. आँखे देखो, जागी जागी लग रही है"

"अर्रे नेई जगह है, नेया घर. नेई जगह कहा ठीक से पहली रात नींद आती है."मेरी सास ने बार सम्हली.

"हा नई चीज़, पहली बार बहू परेशान मत हो. पहली रात थी ना. दो तीन दिन मे आदत पड़ जाएगी."मेरी ममिया सास ने फिर छेड़ा.

"चलो कोई बात नही अब आराम कर लो. "मेरा सास ने मुस्कराते हुए मेरी ननदो से कहा कि वो मुझे ले जाए और कमरे मे आराम करने दे. पर वो दुष्ट.. जैसे ही मैं उठ के दो पग भी नही चली होंगी, एक ने पीछे से बोला,

"रात पिया के संग जागी रे सखी. चैन पड़ा जो अंग लगी रे सखी."

और जिस कमरे मे मैं कल बैठाई गयी थी, वही, उन्होने बैठा दिया. थोड़ी ही देर मे लड़कियो और औरतो ने घेर लिया. एक मेरी शादी शुदा ननद ने मेरी ठुड्डी पकड़ के उठाया और बोली,

"लगता है बहुत मेहनेत पड़ी रात भर बेचारी का तो सारा जूस ही निकल गया."

मेरी एक जेठानी ने उल्टा उसको छेड़ते हुए कहा, ' तुम्हे अपने दिन याद आ गये क्या जो इतना खून खच्चर हो गया कि अस्पताल जाना पड़ा. फिर पता चला कि बिना कुछ चिकनाई लगाए ही अर्रे कुछ नही था तो नेंदौई जी से कहती थूक ही लगा लेते,"

"अर्रे तभी तो मैं भाभी से कह रही थी बार बार कि वैसलीन लगा ले."अंजलि बोली.
 
"अर्रे बड़ा एक्सपीरियेन्स है ना तुमको वैसलीन लगवाने और डलवाने का तभी उस दिन उल्टिया कर रही थी."मेरी उन जेठानी ने उसे भी खींचा. लेकिन तब तक मेरी मझली ननद, अंजलि की सहेलिया, सब इकट्ठी हो गयी और मेरी उन जेठानी को किसी ने बाहर बुला लिया और मेरी हालत चक्रव्यूह मे अभिमन्यु की तरह हो गयी.

लेकिन अच्छी बात ये है कि मुझे जवाब देना नही था. मैं घूँघट मे मुस्करा रही थी.

"अर्रे भाभी अभी भी इतना लंबा घूँघट क्या रात मे भैया ने घूँघट नही खोला.?"

"अर्रे घूँघट क्या भैया ने तो सब कुछ खोल दिया. अब कुछ बचा नही खोलने के लिए."दूसरी बोली.

"अर्रे ये तो बड़ी नाइंसाफी है, भैया के सामने सब कुछ और हम लोगो से इतनी शरम. आख़िर हम भी आपकी ननदे है, कोई गैर नही."और उस ने घूँघट उपर उठा दिया. मेरी मझली ननद चालू हो गयी "अर्रे भाभी को कोई शरम नही है. ननदो से क्या शरम. जो उनके पास है वो हमारे पास है. भाभी याद है कल आप ने क्या प्रोमिस किया था, नीचे वाले मूह को दिखाने के बारे मे."और फिर सब ननदो और औरतो को सुना के बड़ी अदा से बोली,

"भाभी ने बोला था, कि सबसे पहले मैं अपने सैंया को 'वो' वाला मूह दिखाउन्गि, और फिर उनके बाद आप लोगो को.. तो भाभी भैया ने तो मूह दिखाई भी कर ली और बाकी सब कुछ भी तो ज़रा देखे कि इस्तेमाल के बाद कैसे लगता है."सब हँसने लगी. मैं क्या बोलती. लेकिन बात यही नही ख़तम हुई.

उसने अंजलि की सहेलियो को चढ़ाया, "अर्रे भाभी खुद थोड़ी दिखाएँगी. आज तक उन्होने किसी को खुद नही दिखाया. हां जिस को 'मूह दिखाई' करनी हो वो खोल ले तो ये बुरा भी नही मनेती. हां मूह दिखाई देनी पड़ती हो. पर तुम सब तो छोटी ननदे हो तुम से क्या मूह दिखाई लेना और अगर तुम लोग खोल दोगि तो भाभी बुरा थोड़ी मानेगी. आख़िर ननद भाभी का रिश्ता ही मज़ाक का है. और फिर रात भर भैया ने खोला होगा तो उन्होने बुरा थोड़े ही माना क्यो भाभी.

अंजलि और उस की एक सहेली ने हिम्मत की लेकिन थी तब तक एक मेरी मौसेरी सास आ गयी और उन्होने ह्ड़काया,

"ये क्या लड़कियो. रात भर तुम्हारा भाई तंग करे और दिन भर तुम कभी तो चैन लेने दो बिचारी को"

"अर्रे हम लोग तंग थोड़ी कर रहे है बस हाल चाल पूछ रहे है मौसी." मेरी ननद बोली. लेकिन अंजलि और बाकी सब लड़कियाँ उठ खड़ी हुई. तब तक जेठानी जी नज़र आई और मेरी जान मे जान आई. वो मझली ननद से बोली. अर्रे आप ज़रा जाके अपने पति जी का हाल पूछिए. बेचारे नेंदोई जी आपको ढूँढ रहे है उनका पाजामा कही खो गया है. ज़रा देखिए रात मे कहाँ उतारा था."

"अर्रे अपना पेटिकोट क्यो नही दे दिया." मौसेरी सास हंस के बोली.
 
फिर उन्होने गुड्डी से कहा कि हलवा और नाश्ता जाके मेरे लिए लाए, बेचारी रात भर की भूखी है. और मुझे समझाने लगी कि मुझे भी उनके मज़ाक का बराबर का जवाब देना चाहिए. फिर वो किसी काम से बाहर चली गयी.

थोड़ी देर मे गुड्डी एक और ननद और दुलारी हलवा और गरम पकौड़िया ले आए और मुझे और बाकी लोगो को दिया.

दुलारी (वो नाऊ की लड़की जो मेरी ननद लगती थी और गाली देने मे और मज़ाक मे बसंती के टक्कर की थी) ने मुझे हलवा थमाते हुए बोला,

"लीजिए भाभी घी से भरा है, एक दम सटा-सॅट, गपा-गॅप अंदर जाएगा. जैसे कल रात को लील रही थी ना गपा-गॅप बिना दाँत वाले मूह मे. भरतपुर लुटा ना जैसे. वैसे भाभी जब जुल्मी सिपैया ने लहंगा खोला तो कैसे लूटा, कैसा घुसा कसी बुर मे मोटा लंड. इसीलिए ये हलवा लाई है कि इसे खा के आपकी बुर की चिलख मिट जाएगी, और फिर वो गपा-गॅप गपा-गॅप रात भर लंड घोंटने के लिए, चुदवाने के लिए फिर से तैयार हो जाएगी. लॅप-लपा तो रही होगी ना लंड के लिए."

"अर्रे रात का इंतजार करने की क्या ज़रूरत है, कहो तो दिन मे ही"कोई औरत बोली.

"और क्या एक बार जब मेरी छोटी भौजी की बुर ने घोंट लिया है तो फिर क्या दिन क्या रात. अब तो हरदम वो गीली होगी, लंड के इंतजार मे.

गुड्डी मेरी जेठानी की भतीजी, बीच मे बोली, अर्रे ये क्या बोल रही हो..कैसे कैसी बात. फिर तो दुलारी ने उसकी ऐसी की तैसी कर दी,

"अर्रे अभी गया नही है ना अंदर, तभी इतना चिहुंक रही हो.मैं तो कह रही हू मौका बढ़िया है, शादी का घर है. इतने सारे लड़के और मर्द है. घोंट लो किसी का अपनी इस चुनमुनिया बुर मे. मुझे मालूम है कितनी खु.जली मची है तेरी चूत मे. बस एक बार लंड का मज़ा मिल जाएगा ना बस सारी शरम लिहाज छोड़ के..अर्रे चुदवाने मे नही शरम, चूतड़ उठ उठा के बुर मे लंड गटकने मे नही शरम. मुझे मालूम है कैसे लंड के लिए चूत ललचाती रहती है तेरितो पीर लंड बुर और चुदवाने बोलने मे काहे की शरम क्यो भौजी."

वो तो और बोलती और सच पूछिए तो मुझे उसकी बतो मे मज़ा आ रहा था,

लेकिन मेरी सास ने बाहर से उसी किसी काम के लिए आवाज़ दी और वो चली गयी. तभी मेरी जेठानी आई.

क्रमशः……………………….

शादी सुहागरात और हनीमून--19
 
शादी सुहागरात और हनीमून--20

गतान्क से आगे…………………………………..

शरम के मारे मुझसे खाया नही जा रहा था हालाँकि भूख कस के लग रही थी और फिर गरम गर्म घी से भरा सूजी का हलवा. मेरी जेठानी ने धमकाया,

"हे खाती है या अपने हाथ से खिलाउ, ज़बरदस्ती."मेरी मौसेरी सास ने भी उनका साथ दिया और बोली, अर्रे बहू अगर तू ऐसी शरमाती रही ना तो भूखी ही रह जाएगी."इस चौतरफ़ा हमले से बचने के लिए मेने धीरे धीरे खाना शुरू कर दिया."वो ननद जो गुड्डी के साथ आई थी उसने चिढ़ाया, क्यो भाभी भैया को बुलाऊ क्या. उनके हाथ से तो खा लीजिएगा."

शैतान का नाम लो वो कमरे मे उस की बात ख़तम भी नही हुई थी कि दाखिल हुए. किसी औरत ने हलके से बोला लो आ गये हलवा खिलाने वाले. लेकिन मेरी ननद कैसे चुप रहती, उसने धीरे से तड़ाका लगाया, "अर्रे हलवा खिलाने वाले या भाभी का हलवा बनाने वाले."

वो हम लोगो को खाते देख के अपनी भाभी से बोले, "अर्रे वाह अकेले, अकेले."

"अर्रे अकेले अकेले कहाँ तुम्हारी दुल्हन भी साथ है."उनकी भाभी बोली "दे दीजिए ना दीदी, इतने प्यार से आपके देवर माँग रहे है,"मैने धीमे से अपनी जेठानी से कहा.

"अच्छा बोली. मेरी बिल्ली और मुझी से मियाऊ, तुझको किस लिए ले आई हू."

तब तक 'वो' अपनी भाभी के पास आके बैठ गये थे और सीधे उंगली से ही उनकी प्लेट से "हे मुझे मालूम है, 'मानुष गंध बल्कि मनुश्ही गंध' लग गयी है तुझे. अपनी दुल्हन से माँग ना"और उठ के वो मेरी दूसरी ओर बैठ गयी. अब वो और हम अगल बगल. जब वो तिरछी निगाहो से देखते तो मुझे शरम भी लगती और अच्छा भी. तब तक और कयि औरतें और उनकी भाभियाँ घुसी और वो हट के सामने बैठ गये. किसी ने छेड़ा,

"और बोलो लाला कैसी रही."

तब तक उनकी गाव की एक भौजाई ने ताना मारा,

"क्यो लाला क्या रात भर दुल्हन के गोद (पैर) छूते रहे,"और 'कुछ देख' के सारी औरते हंस पड़ी.

मेरी कुछ समझ मे नही आया. तो मेरे बगल मे बैठी मेरी एक जेठानी ने उनके माथे की ओर इशारा किया. दोनो ओर मेरे पैर के महावर के गुलाबी निशान थे. अब मुझे समझ मे आया कि रात मे कमरे मे जाने के पहले मुझे रच रच कर फिर से खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर क्यो लगाया गया था.

"अर्रे कुछ माँग रहे होंगे, दुल्हन नही दे रही होगी तो"एक और ने जोड़ा. तब तक चमेली भाभी आ गयी थी और फिर तो, वो बोली,

"अर्रे पैर छूना तो ठीक कही दुल्हन ने लात तो नही मार दी"

मुझे भी अब मज़ाक मे खूब मज़ा आ रहा था. वो बिचारे शरमाये,

घबडाये, चुप. तब तक दुलारी आ गयी और वो उनकी ओर से बोली,

"अर्रे दुल्हन की लातो के बीच मे 'कुछ चीज़' ही ऐसी है कि बिचारे उसके लिए लात खाने को भी तैयार हो गये."

और फिर तो सारी उनकी भौजाईयाँ एक साथ, 'वो चीज़' मिली कि नही, दुल्हन ने पैर पे क्यो झुकाया. बेचारे हार कर कमरे से वो बाहर चले गये. वो हमला मेरी ओर भी मूड सकती थी, पर मैं बच गयी. मेरी बड़ी ननद ने आ के कहा कि बाहर मूह दिखाई के लिए बुलाया है.

मेरी जेठानी ने फिर से मेरा घूँघट ठीक किया और मुझे ले के बाहर आई. वहाँ, लिफ़ाफ़ा ले के मैं हर औरत का पैर छूती, और फिर हल्का सा मेरा घूँघट उठा के जेठानी जी मेरा मूह दिखाती.सब की सब मेरे साथ मेरी सास की खूब तारीफ कर रही थी.'बहुत सुंदर बहू लाई."

"एकदम चाँद का टुकड़ा है""कितनी कोयल लगती है"और मेरी जेठानी की भी,' देवर केलिए ए-1 देवरानी ले आई है'. और साथ मे हँसी मज़ाक भी. सास मेरे साथ मे बताती भी जा रही थी कि कौन कौन है. सबसे आख़िर मे जब मैं पैर छूने जा रही थी तो वो हंस के बोली, "बहू इनेका सिर्फ़ पैर ही मत छूना,
 
साड़ी उठा के अंदर का भी दर्शन कर लेना, ये मेरी भौजाई है."मेने जैसे ही उनके पैर छुए, आशीष के साथ वो बोली "अर्रे बहू इनका दोष नही है. इस घर की सारी ननदे ही छिनार है, अपने मरद को बचा के रखना, ये साली अपने भाइयो को भी नही छोड़ती."बड़ी मुश्किल से मैं अपनी मुस्कराहट रोक पाई.

जब मेने अपनी जेठानी जी की ओर देखा तो वो अंजलि और मेरी बाकी ननदो की ओर देख के खुल के मुस्करा रही थी.

और जब हम लोग वापस कमरे मे पहुँचे तो खुल के हंस रहे थे. और कमरे मे मचमच मची थी. लड़किया औरते, कोई नहाने जा रहा था, कोई तैयार हो रहा था.. कई रिश्तेदार आज ही जा रहे थे, कयि पॅक कर रहे थे, उनकी ट्रेन रात को थी और वो रिसेप्षन से सीधे जाने वाले थे. रिसेप्षन की तैयारियो को ले के. और उस कमरे मे सिर्फ़ औरते और लड़कियाँ ही थी तो और खुलापन था. किसी का मॅचिंग दुपट्टा नही मिल रहा था तो किसी को पिन करना. सब लोग अपने मे व्यस्त. बहुत देर के बाद मैं अपने आप मे खोई मुझे अभी भी 'वहाँ' हल्की सी टीस सुबह तो हालत बहुत ही खराब थी. भला हो वो डॉक्टर भाभी की क्रीम का मुझे मम्मी की बात याद आई कि सबसे ज़्यादा दर्द दो बार होता है,

एक लड़की की जिंदगी मे और वही उसके सबसे बड़े सुख के पल होते है. एक जब उसका पति उसे मिलता है और दूसरा जब उसे बच्चा होता है. मेरे सामने 'उनका' चेहरा आ गया. कितने खुश वो लग रहे थे, कितने प्रसन्न और उनकी इस खुशी के लिए मैं तभी मेरा ध्यान किसी की आवाज़ पे गया, किसी महिला की. रिश्ते से मेरी सास लगती थी. उनकी लड़की 'चेंज करने' मे शरमा रही थी. वो बोल रही थी, अर्रे ये तो तेरी भाभी लगती है, ननद भाभी मे क्या शरम. उस ने कुर्ता चेंज कर लिया और उस की मम्मी साड़ी बदल रही थी. वो 13-14 साल की रही होगी. वो अब खुद मेरे पास आई कि भाभी मेरा दुपट्टा पिन कर दीजिए. उसके 'उभार' थोड़े थोड़े आ गये थे. मेरा मन तो किया कि उसके उभारो को हल्के से छेड़ दू लेकिन मेने कंट्रोल किया. हां दुपट्टा सेट करते समय ज़रूर, जो मेरी भाभी करती थी मेरे साथ, 'थोड़ा दिखाओ, थोड़ा छिपाओ' बस उसी तरह.

तैयार होके सब लोग निकल गये तो उसी समय अंजलि और उस की सहेलिया फिर आई.

लेकिन इस बार वो तंग नही कर रही थी. अंजलि ने एक एक को खूब डीटेल मे इंट्रोड्यूस किया और हम लोग बाते करने लगे. वो सारी टेन्थ मे पढ़ती थी. थी तक एक लड़का आया, खूब गोरा, दुबला पतला, कमसिन सा शर्मिला (मुझे याद है भाभी ने उसे देख के कहा था कि बड़ा नेमकिन लौंडा है और उसे टारगेट कर के सब लड़कियो ने कहा मंडप मे गया था, दूल्हे का भाई.. हाई गंडुआ है) उसने आ के अपने को इंट्रोड्यूस किया, "भाभी मैं आपका छोटा देवर हू."

वो रवि था, अंजलि का बड़ा भाई, उससे एक साल बड़ा, 11 मे पढ़ता था. वो खुद कुछ बोलने मे शरमा रहा था. मेने उसे बैठने के लिए बोला. थोड़ी ही देर मे तीन चार और लड़के, सब इनके छोटे कज़िन, मेरे देवर लगते थे. हम लोग कुछ कुछ बाते करने लगे. थी तभी मेरी सास आई और उन सब से बोली हे, यहाँ कहाँ औरतो के कमरें मे...तुम सब तो दुलारी बोली, अर्रे माता जी इतना अच्छा गुड लाई है तो चीटे तो लगेगे ही और फिर ये तो सब देवर है, इनेका तो भाभी पे पूरा हक है."मुझे लग रहा था कि 'ये' बाहर ही चक्कर काट रहे है. मेरा शक एक दम सही निकाला. ये देख के कि अंदर उनकी भाभीया नही है वो अंदर आए और साथ मे एक तगड़े से...., 'उनके' कंधे को सूँघते हुए बोले,"अर्रे साले, तुम्हारी देह से अभी भी मेहदी और महावर की खुशबू आ रही है."
 
और उन्हे अंजलि ने इंट्रोड्यूस कराया,

"भाभी ये मेरा जीजा जी है और आपके नेंदोई."उनके बारे मे मैं सुन चुकी थी, अश्विन नाम था उनका और बड़े ही रसिया स्वाभाव के ' वो' रवि मेरे देवर को लेके कमरे के कोने मे चले गये. पर मैं देख रही थी कि उनकी निगाहें बार बार मूड केमेरी ही ओर थी तक मेरी मझली ननद ने मेरे नेंदोई को छेड़ा,

"हे क्या बात है, बिना पैसा लिए ही भाभी का मूह देख लिया. चलिए पहले पैसा निकालिए."

"अर्रे नेंदोई का तो 'सब कुछ देखने' का हक बनता है, सलहज नेंदोई का तो स्पेशल रिश्ता है"

"सब कुछ देखने का अलग रेट है, लेकिन पहले मेरी चाँद सी भाभी का मूह देखने का पैसा"

"अर्रे पैसे के मामले मे तो तुमने रंदियो को भी मात कर दिया है. देता हू पहले ठीक से पास से देख तो लेने दो"

वो हंस के बोले और मुझसे कहने लगे, "तेरी सुबह कह रही है तेरी रात का फसाना. फिर ननद से बोले,

"परदा उठे सलाम हो जाए."मेरी ननद ने आगे बढ़के मेरा घूँघट उठा दिया और उसके साथ शरारत मे मेरा आँचल भी हटा दिया. मेने आँचल ठीक करने की कोशिश की, पर बात और बिगड़ गयी. न सिर्फ़ क्लीवेज बल्कि मेरी गोलाइयाँ भी और कुछ निशान लेकिन तब तक मेरी ननद बोली, अर्रे भाभी क्यो इतने छिपा रही है आख़िर आपके ननदोयि ही तो है. 'वहाँ' देख के अश्विन, मेरे ननदोयि बोले,

"लगता है रात को लड़ाई जबरदस्त हुई"

"लड़ाई या" मेरी ननद आँख नचा के बोली.

"अर्रे वही समझ लो, 'ई' तो कॉमन है न दोनो मे' वो जबरदस्त ठहाके के साथ बोले और उनके साथ बाकी लोग भी हंस पड़े. वो मेरी ओर झुक के धीरे से बोले,

"ये बताओ 'ई' मे साले जी का खून, मेरा मतलब है सफेद खून से है, कितनी बार निकलवाया." मैं बड़ी मुश्किल से उनकी बातो पे मुस्कराहट दबा पाई.

बात कुछ और आगे बढ़ती कि जेठानी जी ने आके हुंकार लगाई खाना लग गया है,

सब लड़के चले और 'उनके' कान पकड़ते हुए बोली, मैं देख रही हू सुबह से तुम यही चक्कर काट रहे हो. कौन सी सूंघनी सूँघा दी है मेरी देवरानी ने. नेंदोई जी सबसे बाद मे उठे. वो मेरी ननद के कान मे कह रहे थे,

"साले की किस्मत बड़ी अच्छी है. ए-1 माल मिला है, एक दम मस्त. पटाखा."और बुरा लगने की बजाय मैं मुस्करा रही थी.
 
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