hotaks444
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वो तुरंत पास आए लेकिन बैठते हुए, उन्होने मुझे उठा के अपनी गोद मे बिठा लिया. बैठते ही मेरा वो छोटा सा गाउन उपर सरक गया और बड़े हिप्स सीधे उनकी गोद मे. भाभी ने अपने सवाल मुझसे जारी रखे लेकिन अब वो खुल के..
एकदम अपने स्टॅंडर्ड पे "हे तेरे जोबन का खुल के मज़ा लिया कि नही. बहुत रसिया लगता है वो तेरे जोबन का."
"हां, लिया."मैं क्या बोलती. और मुझे लग रहा था जिस तरह ज़ोर से भाभी बोल रही थी उन्हे भी पक्का सुनाई दे रहा होगा.
"तू नही सुधरेगी, रात भर चुचि मीजावाने मे शरम नही आई और खुल के चुचि बोलने मे शरम आती है."
मैं क्या बोलती. वो काम तो अभी भी जारी था. मेरे लो काट गाउन से झाँकते मेरे उरोजो के उपर के खुले भाग मे, जहा उनके दांतो के निशान थे, उनकी उंगलिया सहला रही थी दबा रही थी. और उनका दूसरा हाथ मेरे उठे गाउन से खुली जाँघो को सहला रहा था.
पीछे से मम्मी की हल्की हल्की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी. लगता है वो भाभी से कुछ कह रही थी, पूछने के लिए. पर भाभी तो अपनी इनिमिहिल स्टाइल मे "मज़ा आया तुझे चुदवाने मे राजीव के साथ, बोल ना खुल के अच्छा लगा."
"हाँ भाभी, अच्छा लगा.
"अरे तो खुल के बोल ना, अच्छा लगा या बहुत अच्छा लगा."
भाभी से तो मैं झूठ नही बोल सकती थी.
"भाभी बहुत अच्छा लगा."और वो अब अगला सवाल पता नही क्या करे इसलीए मेने फ़ोन 'उनकी' ओर बढ़ा दिया. लेकिन वो एक चॉक, बिना अपने हाथ 'वहाँ से' हटाए, फोन मेरे हाथ मे पकड़ाए, वो बात करने लगे.
"थॅंक्स भाभी बल्कि डबल थॅंक्स.."हंस के वो बोले. मैं चकित, किस बात की डबल थॅंक्स.
वो लोग खूब खुल के खुश होके, हंस हंस बात कर रहे थे. और उनकी बातो का अंदाज़ा मुझे 'उनके' हाथो की हर्कतो से हो रहा था. उंगलिया, जो उरोजो के उपरी हिस्से पे थी, फिसल के उन्होने अब पूरे को 'कप' कर लिया था और हल्के हल्के दबा रही थी. भाभी के किसी सवाल के जवाब मे उन्होने कहा, बहुत अच्छा भाभी और उनका हाथ जो मेरी जाँघो पे फिसल रहा था, उपर सरक आया और उसने कस के मेरी 'बुलबुल' पकड़ ली. मेने कान फोन से लगा दिए कि आख़िर भाभी क्या कह रही है. भाभी ने पूछा,
"मेरी ननद कैसी लगी." तो जवाब मे वो बोले कि बहुत अच्छी और इतनी कस कस के मेरे गाल पे दो चुम्मे ले लिए कि उसकी आवाज़ ज़रूर भाभी तक गयी होगी. और फिर मम्मी भी तो थी वही पे.
भाभी का अगला सवाल तो मैं नही सुन पाई पर ये बोले, "बहुत अच्छी है पर थोड़ा शर्मीली ज़्यादा है."और साथ मे मेरे निपल्स पे बहुत कस के पिंच कर दिया कि मेरी ज़ोर से सिसकी निकल गयी' "अरे इसका इलाज भी तो तुम्हारे हाथ मे है"और उसके बाद भाभी ने कुछ हल्के से कहा कि जो मैं नही सुन पाई. सिर्फ़ उनकी हँसी और जवाब एकदम भाभी, सही कहा आपने, से अंदाज लगाया कि भाभी ने कुछ 'अपनी स्टाइल' मे कहा होगा. उन्होने फिर फोन मुझे दे दिया. पहले मम्मी फिर भाभी ने प्रोग्राम के बारे मे, मुझे और क्या करना चाहिए, अभी क्या पहनु, शाम को रिसेप्षन मे सब बाते की. मैं आधे मन से सुन रही और हाँ हू कर रही थी क्यो कि उनके हाथ अब पूरी तरह आक्टिव हो गये थे. वो कस कस के मेरे कुछ दबा रहे थे, निपल्स को फ्लिक कर रहे थे और मेरे उरोज भी उत्तेजना से पत्थर हो रहे थे, उधर दूसरे हाथ की उंगली भी, 'पंखुड़ियो' के बीच मे.
एकदम अपने स्टॅंडर्ड पे "हे तेरे जोबन का खुल के मज़ा लिया कि नही. बहुत रसिया लगता है वो तेरे जोबन का."
"हां, लिया."मैं क्या बोलती. और मुझे लग रहा था जिस तरह ज़ोर से भाभी बोल रही थी उन्हे भी पक्का सुनाई दे रहा होगा.
"तू नही सुधरेगी, रात भर चुचि मीजावाने मे शरम नही आई और खुल के चुचि बोलने मे शरम आती है."
मैं क्या बोलती. वो काम तो अभी भी जारी था. मेरे लो काट गाउन से झाँकते मेरे उरोजो के उपर के खुले भाग मे, जहा उनके दांतो के निशान थे, उनकी उंगलिया सहला रही थी दबा रही थी. और उनका दूसरा हाथ मेरे उठे गाउन से खुली जाँघो को सहला रहा था.
पीछे से मम्मी की हल्की हल्की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी. लगता है वो भाभी से कुछ कह रही थी, पूछने के लिए. पर भाभी तो अपनी इनिमिहिल स्टाइल मे "मज़ा आया तुझे चुदवाने मे राजीव के साथ, बोल ना खुल के अच्छा लगा."
"हाँ भाभी, अच्छा लगा.
"अरे तो खुल के बोल ना, अच्छा लगा या बहुत अच्छा लगा."
भाभी से तो मैं झूठ नही बोल सकती थी.
"भाभी बहुत अच्छा लगा."और वो अब अगला सवाल पता नही क्या करे इसलीए मेने फ़ोन 'उनकी' ओर बढ़ा दिया. लेकिन वो एक चॉक, बिना अपने हाथ 'वहाँ से' हटाए, फोन मेरे हाथ मे पकड़ाए, वो बात करने लगे.
"थॅंक्स भाभी बल्कि डबल थॅंक्स.."हंस के वो बोले. मैं चकित, किस बात की डबल थॅंक्स.
वो लोग खूब खुल के खुश होके, हंस हंस बात कर रहे थे. और उनकी बातो का अंदाज़ा मुझे 'उनके' हाथो की हर्कतो से हो रहा था. उंगलिया, जो उरोजो के उपरी हिस्से पे थी, फिसल के उन्होने अब पूरे को 'कप' कर लिया था और हल्के हल्के दबा रही थी. भाभी के किसी सवाल के जवाब मे उन्होने कहा, बहुत अच्छा भाभी और उनका हाथ जो मेरी जाँघो पे फिसल रहा था, उपर सरक आया और उसने कस के मेरी 'बुलबुल' पकड़ ली. मेने कान फोन से लगा दिए कि आख़िर भाभी क्या कह रही है. भाभी ने पूछा,
"मेरी ननद कैसी लगी." तो जवाब मे वो बोले कि बहुत अच्छी और इतनी कस कस के मेरे गाल पे दो चुम्मे ले लिए कि उसकी आवाज़ ज़रूर भाभी तक गयी होगी. और फिर मम्मी भी तो थी वही पे.
भाभी का अगला सवाल तो मैं नही सुन पाई पर ये बोले, "बहुत अच्छी है पर थोड़ा शर्मीली ज़्यादा है."और साथ मे मेरे निपल्स पे बहुत कस के पिंच कर दिया कि मेरी ज़ोर से सिसकी निकल गयी' "अरे इसका इलाज भी तो तुम्हारे हाथ मे है"और उसके बाद भाभी ने कुछ हल्के से कहा कि जो मैं नही सुन पाई. सिर्फ़ उनकी हँसी और जवाब एकदम भाभी, सही कहा आपने, से अंदाज लगाया कि भाभी ने कुछ 'अपनी स्टाइल' मे कहा होगा. उन्होने फिर फोन मुझे दे दिया. पहले मम्मी फिर भाभी ने प्रोग्राम के बारे मे, मुझे और क्या करना चाहिए, अभी क्या पहनु, शाम को रिसेप्षन मे सब बाते की. मैं आधे मन से सुन रही और हाँ हू कर रही थी क्यो कि उनके हाथ अब पूरी तरह आक्टिव हो गये थे. वो कस कस के मेरे कुछ दबा रहे थे, निपल्स को फ्लिक कर रहे थे और मेरे उरोज भी उत्तेजना से पत्थर हो रहे थे, उधर दूसरे हाथ की उंगली भी, 'पंखुड़ियो' के बीच मे.