kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून - Page 9 - SexBaba
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kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून

"धत्त" मैं क्या बोलती.

कस के उन्होने मुझे भी अपनी बाहों मे बाँध लिया और कस कस के मेरी पलको, होंठो को चूमते हुए बोले,

"मुझे तुमसे कुछ कहना है.. "

"मुझे भी कुछ कहना है"मैं भी हल्के से चूमती बोली.

"पहले आप. "

"पहले आप. "

"पहले आप. पहले आप कहते कही गाड़ी ने छूट जाय तो चलो मैं ही बोलता हू. "वो बोले. तुम्हारी दो बुराया बुरा तो नही मनोगी पहले मैं सहम रहा था कि.. लेकिन अब हम आपस मे घुल मिल गये है तो अगर तुम कहो. "वो बोले.

"बोलिए ना.. "मेने कह तो दिया. कौन सी बात, मैं एकदम सहम गयी थी.

"तुम्हारे लिए जिंदगी भर की परेशानी की बात है लेकिन शुरू मे कह दे तो अच्छा रहता है है ना. "वो गमभीरता से बोले.

मैं चुप सहमी उनकी बात का इंतजार करती रही. और वो इंतजार करते रहे. थोड़ी देर बाद बोले,

"पहली बात तो ये तुम बहुत अच्छी हो. खैर इसमे परेशानी की कोई बात नही परेशानी ये है कि तू मुझे बहुत बहुत बहुत बहुत अच्छी लगती है. जबसे तुम्हे देखा है बस मन करता है कि.. तुम मेरे पास रहो मैं तुम्हे देखता रहू, और तुम्हारी ज़ुल्फो से खेलता रहू (मेरे खुले लंबे गेसुओ मे उंगली डाल के वो रुके,

थोड़ा और हिम्मत जुटाई और बोले), तुम्हारे होंठो को चूमता रहू, तुम्हारे इन रसीले उरोजो को"(आगे बोलने की हिम्मत वो नही जुटा पाए लेकिन उनके हाथो ने मेरी 'चुनमुनिया' को दबोच के बता दिया. ) वो कुछ देर तक मुझे चूमते रहे और कस के मेरे कुछ सहलाते रहे, फिर मुझेसे अचानक उन्होने पूछा,

"तुम्हे मालूम है मेरी उमर.. "

"हाँ 23 साल होने वाली है"

उन्होने मेरे सामने अपना दाया हाथ बढ़ा के बोले,

"ज़रा मेरी जीवन रेखा देखो"मैं तो एक दम घबडा गई, हे क्या बात है. मम्मी की तरह मेने भी देव पीर मना डाले. और जब मेने हिम्मत कर हाथ पे नज़र डाली,

खूब लंबी, मोटी और बिना किसी कट पीट के स्वस्थ और लंबे जीवन की पाइचायक..

"ठीक तो है मैने चिंतित स्वर मे बोला.

"यही तो परेशानी है मेरी आयु बहुत लंबी है और मुझे कोई रोग सॉक नही होने वाला है. "

"ये तो अच्छी बात है.. आप को मेरी उमर लग जाय. आप को क्यो कुछ हो. "उन्हे बाहों मे भर के मैं बोली.

"नही परेशानी की बात तुम्हारे लिए है. तुम इतनी अच्छी लगती हो कि तुम्हे प्यार किए बिना मेरा मन नही मानता. एक बार करता हू तो मन करता है कि फिर दुबारा. मैं कम से कम 73 साल तक यानी अगले 50 साल तक तो तुम्हे इसी तरह प्यार करूँगा. अगर साल मे 300 दिन जोड़ो, 5 दिन तुम्हारी मासिक छुट्टी के काट के भी, तो अगले 50 साल मे पंद्रह हज़ार दिन"और ये कहते हुए उनके हाथ कस कस के मेरे जोबन का मर्दन कर रहे थे और उनकी एक उंगली भी मेरी योनि मे घचघाच जा रही थी, उनका इरादा बताते हुए. फिर हल्के से मेरे रसीले होंठो को काटते हुए उन्होने अपनी बात जारी रखी, तो अगर मैं 4 बार रोज करूँ तो साथ हज़ार बार यानी कम से कम पचास हज़ार बार, ये तुम्हारे अंदर"

"अपना अब फिर से पूरी तरह उत्थित लिंग को मेरी नितंबो के बीच उचकाते उन्होने बात पूरी की, "तो कम से कम पचास हज़ार बार तो मैं तुम्हे कच कचा के प्यार करूँगा ही. "झूठ झूठ झूठे कही के. मेने सोचा. चार बार कैसे, पिछले 24 घंटे मे 7 बार ये 'कर'चुके है और ये तो अभी शुरुआत है. तो फिर 50 हज़ार बार कैसे, एक लाख से भी ज़्यादा होगा. लेकिन मुझे क्या, मेरी भी तो यही हालत है,. एक बार वो करते है तो फिर मन करता है दुबारा लेकिन ये बात मैं कैसे कहती, मेने उसी तरह कहा जिस तरह कह सकती थी. अपनी देह की भाषा मे.

मेने कस के अपने नितंबो से उनके ठोकर दे रहे खड़े, फनफंाते लिंग को दबा के इशारा किया कि मैं तैयार हू. मेरे योनि ने खुद को उनकी उंगली पर सिकोड लिया और अपने मादक उरोज उनके चौड़े सीने से दबाते, कस के मेने उनके होंठो पे एक चुम्मि ले ली. मुझे कस के चूम के बोले,
 
"आई लव यू"(24 घंटे लग गये उन्हे ये कहने मे, आलसी) लेकिन अब धीरे धीरे मेरी ज़ुबान भी बोलने लगी थी.

"मी टू"मेने कहा.

एक बार फिर उन्हे चूम के मैं हल्के से बोली,

"मुझे भी कुछ कहना है, "

मेरे अधरो को आज़ाद कर मेरे पलको को चूम के वो बोले, बोलो ना.

"तुम्हारे मेरा मतलब आप"

"उंह उंह, तुम ही बोलो ना, तुम्हारे मूह से तुम सुनना अच्छा लगता है. "उन्हे मुझे कच कचा के चूमने का एक बहाना मिल गया था. जब मेरे होंठ आज़ाद हुए तो मैं फिर उन्हे कस के बाहो मे भर के हिचकिचाती, अदा से बोली,

"मुझे भी दो बाते कहानी है. एक तो ये जो लड़का है ना, "उनकी नाक पकड़ के मैं बोली, "मुझे बहुत बहुत अच्छा लगता है. बहुत बहुत तो पहली बात ये कि आप उसे कभी किसी चीज़ के लिए मना मत करिएगा, ये मेरा बहुत प्यारा सा चोने सा, सोने सोने, ये जो भी मुझेसे कहना चाहे माँगना चाहे, लेना चाहे, करना चाहे,

आंड आइ मीन एनितिंग एनितिंग, आप इसे करने दीजिएगा, मन भर. प्लीज़ प्रॉमिस मी. "

"प्रॉमिस लेकिन डू यू रियली मीन एनितिंग. "वो बोले.

"हाँ, आइ मीन एनितिंग. "मैं भी हंस के बोली. और हाँ एक बात और जो इस लड़के को अच्छा लगता है न वो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है. "

"एक बात और मुझे कहानी है, "कस के मुझे अपनी बाहो मे भींच के वो बोले,

"तुम जो चाहे कहो, जैसे कहो जो बात करने को कहो मुझे मंजूर है लेकिन मुझे ये चाहिए, तुम्हारे रसीले होंठ"मेरे होंठो को उंगली से छू के वो बोले. हाँ, ह्ल्के से बोली मैं. "और ये चाहिए तुम्हारे ये मस्त उरोज, "कस के मेरे उभारो को दबा के उन्होने माँगा. हाँ हाँ.. सिसक़ियो के साथ मेने हामी भरी. और तुम्हारे ये "मेरी बुरी तरह गीली हो चुकी योनि को दबोच के वो बोले( अभी भी थोड़ी हिचक उनमे बची थी जो चाह के भी वो नही बोल पा रहे थे, भाभी ने मुझे समझाया था कि कभी कभी लड़की को ही मर्द बनना पड़ता है, शरम दूर करने के लिए).

"हाँ हाँ मुझे मंजूर है बस दो बाते ये मेरे रसीले होंठ, मादक उरोज और मस्त योनि,

मेरी सारी देह, तन मन सब आप ही की है आप के लिए. बस आगे से आप दुबारा मत मांगिएगा, जब चाहे जैसे चाहे, जितनी बार चाहे. हाँ लेकिन अगर आप माँगेंगे तो इजाज़त खुल के मागनी पड़ेगी, ये वो नही चलेगा. ये वो बोलने का काम मेरा है. "

इतने खुला आमंत्रण देने मे मेरी सारी ताक़त और हिम्मत निकल गयी थी, और मैं अधलेति हो गयी, तकिये के सहारे. जो बात, जो आमंत्रण देने मे मेरी ज़ुबान झिझक रही थी, वो इशारा मेरी जाँघो ने खुल कर. अच्छी तरह फैल कर दे दिया.

वो मेरी खुली जाँघो के बीच थे और उनका मोटा कड़ा लिंग मेरे उत्तेजित कांप रहे भागोश्ठो के बीच,

मेरे पत्थर की तरह कड़े जोबन को पकड़ के वो बोले,

"थेल दू.. . "

ना की मुद्रा मे मेने सर हिलाया.

"पेल दू"वो मुस्करा के बोले.

"हाँ"मैं खुश हो के कस के मैं बोली और साथ मे मेने अपने नितंब भी उचका दिए.

फिर क्या था मेरे किशोर जवानी के उभारो को कस के मसलते, कुचलते, उन्होने वो करार धक्के दिए कि मेरी जान निकल गई, मस्ती से. उनका वो मोटा लिंग मेरी योनि मे इतनी तेज़ी से घुसा, मेरी योनि की गीली दीवालो को रगड़ता. थोड़ी देर तक इसी तरह डालने,घुसेड़ने के बाद उन्होने पैंतरा बदला. मेरे जोबन को अभी भी मुक्ति नही मिली,

लेकिन एक हाथ अब मेरे कमर पे था. मेने भी अब उन्हे अपनी बाहों मे भींच रखा था. मेरी दोनो टांगे भी उठ के उन के कमर के चारो ओर. जहाँ से उनका हाथ हटा था वो निपल अब उनके होंठो के बीच था और वो इतने कस कस के चूस रहे थे कि बड़ी देर तक वो इसी तरह थेलते रहे, पेलते रहे. उनका मोटा लिंग घचघाच,

घचघाच मेरी रसीली योनि के अंदर बाहर और वो भी गपगाप गपगाप उसे घोंट रही थी तभी उन्होने मुझे अपनी शक्तिशाली बाहो के सहारे पकड़ के मुझे उपर उठा लिया. और अब मैं उनकी गोद मेबैठी, मेरी जांघे पूरी तरह फैली, टांगे उनके कमर के चारो ओर कस के लिपटी और मेने बाहो मे उन्हे कस के जाकड़ रखा था.

लिंग अंदर योनि मे धंसा हुआ और मेरे कुछ कस कस के उनकी चौड़ी छाती से रगड़ खाते थोड़ी देर तक हम दोनो ऐसे ही बैठे रहे, फिर उन्होने मेरी कमर पकड़ के हौले हौले अंदर बाहर धक्के लगाने शुरू किए. मुझे लगा जैसे मस्त पुरवाई चल रही और मैं झूले पे बैठी, और वो झोते लगा रहे हो. मेने भी उनका साथ देने की कोशिश की लेकिन ज़ोर ज़ोर से धक्के नही लगा पा रही थी. फिर भी उनकी गोद मे बैठ के,

रति क्रिया का यह अनोखा स्वाद था. योनि के अंदर रगड़ के जिस तरह मोटा लिंग जा रहा था और साथ मे चुंबन, आलिंगन जोबन की रगड़ाई, मसालाई और अब धीरे धीरे मेरे कमर मे भी जोश आ रहा था. बहुत देर तक हम लोग इसी तरह प्यार करते रहे.

लेकिन वो तो नेवल खिलाड़ी थे. तरह तरह से रस लेने वाले उन्होने मुझे हल्के से बिस्तर पे अध लेटा कर दिया, वो उसी तरह बैठे, मेरी जांघे उसी तरह उनके चारो ओर लिपटी और वो सख़्त लिंग मेरी योनि मे धंसा हुआ. अब एक बार फिर उन्होने मुझे, मेरे भागोश्ठो को छेड़ना शुरू कर दिया. मैं सिहर रही थी, सिसक रही थी, कमर उचका रही थी, लेकिन उन्हे तॉजैसे मुझे तड़पाने मे ही मज़ा मिल रहा था. और अचानक उनकी उंगली ने मेरी क्लिट, मेरी भागनासा छू दी और फिर तो मुझे जैसे 440 वॉल्ट का करेंट लग गया हो. मस्ती से मैं सिहर रही थी, अपने नितंब पटक रही थी,

चीख रही थी पर वो उसका मोटा लिंग मुझे और मद होश बना रहा था. और वो, जैसे किसी शरारती बच्चे को कोल बेल का बटन हाथ लग जाए और वो उसे बार बार दबा कर तंग कर रहा हो. उनकी उंगलिया कभी मेरे निपल को फ्लिक करती और फिर आके मेरे क्लिट को छू देती, छेड़ देती, दबा देती. थोड़ी देर मे जब तक उनको इसका अहसास हुआ, मेरी देह पत्ते की तरह कांप रही थी. उन्होने मेरी कमर पकड़ के कस कस के ठेलना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर मे मैं झाड़ रही थी.

वो कुछ देर तक तो रुके रहे लेकिन फिर. उनके होंठो और उंगलियो ने, हल्के हल्के मुझे चूमना सहलाना शुरू किया. वो मस्ती मे बेहोश भी कर सकती थी और होश मे वापस भी ला सकती थी.

क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--23
 
शादी सुहागरात और हनीमून--24

गतान्क से आगे…………………………………..

जब मुझे होश आया तो मैं एक बार फिर पहले की तरह उनकी गोद मे, उनकी एक बाँह ने पीछे से मेरी पीठ पकड़ के सहारा दिया था, मेरी जांघे उसी तरह फैली और उनका सख़्त बेकाबू लिंग उसी तरह मेरी यौन गुफा मे अंदर घुसा. कुछ देर मे मैं फिर उसी तरह, रस भीनी होके उनके धक्को के साथ कमर पकड़ के हल्के हल्के धक्के लगा रही थी. अभी भी मैं थकि सी थी लेकिन मन के आगे तन हर जाता है. तभी हम दोनो की आँखे एक साथ टेबल पे रखी तश्तरी मे , चाँदी के बार्क लगे पान के जोड़ो पे पड़ी. मेरी आँखो मे कल के रात की सारी सीन घूम गयी. उनकी आँखो ने भी इशारा किया और कमर के धक्के ने भी, उकसाया. और पान का एक जोड़ा मेरे होंठो मे आज मैं और ज़्यादा बोल्ड हो गयी थी और ज़्यादा छेड़ रही थी. कभी पान उनके होंठो पे चुला देती, कभी जव वो पास आते तो मैं पीछे झुक के दूर हो जाती और अपने उरोजो को उनके सामने उचका देती. लेकिन मेरे बालमा खिलाड़ी से कौन जीत सकता था. उसने मेरे सर को दोनो हाथो से पकड़ के पान और मेरे होंठ दोनो मुझेसे छीन लिया. फिर तो वो कस कस के मेरे होंठ अपने होंठो मे ले भींचते, चूसते और निचले होंठ को हल्के से काट लेते. उनकी ज़ुबान मेरे मूह के अंदर थी. फ़र्क सिर्फ़ ये था कि अब मैं भी कुछ कुछ रस लेना उनसे सीख गयी थी. अब जब उनके होंठ मेरे होंठो को चूस के हटते तो मेर होंठ भी उन्हे चूम लेते. और मेरे मूह मे घुसी उनकी जीभ जब मेरे मूह मे रस लेते हुए छेड़ छाड़ करती तो अब मेरी ज़ुबान भी हल्के से ही सही,

उनकी जीभ को छू लेती चूम लेती. पहले उन्होने मेरी जीभ को अपने मूह मे ले के चूसना शुरू किया तो देखा देखी मेने भी जब उनकी जीभ अगली बार मेरे मूह मे घुसी, तो मेने भी उसे कस के चूस लिया. कुछ इन चुंबनो का असर कुछ होंठो और पान के रस का असर, थोड़ी ही देर मे मैं पूरी तरह जागृत थी और अब मेरे कमर के धक्के भी. थोड़ी देर के लिए, मेने पीछे की ओर हाथ कर के सहारा लिया तो मुझे एक नया सहारा मिल गया फिर तो मेने कस के उनकी कमर को अपनी टाँगो मे लपेटा और हाथो के सहारे, पूरी ताक़त से उठा के नितंबो को पुश किया तो उनका लिंग सूत सूत कर के मेरी योनि के और अंदर. अब उन्होने भी उसी तरह से हाथ बिस्तर पे कर, कमर के पूरे ज़ोर से. कभी हम दोनो साथ साथ पुश करते और कभी बड़ी बड़ी से एक बार वो धकेलते. मैं बता नही सकती कितना अच्छा लग रहा था, जव उनका वो मोटा चर्म दंड अंदर जाता. चुंबन, आलिंगन सब कुछ छोड़ के बस अंदर बाहर अंदर बाहर. जब मैं धक्का मारने केलिए पीछे झुकती तो मेरे गदराए मस्त किशोर, सत्रह साल के जोबन खूब उचक के , उभर के उनके होंठो से रहा नही गया. फिर तो गचक सेउन्होने मेरे खड़े चूचुक को भर लिया और लगे चुभलाने,चूसने. फिर दूसरे उभार पे उनके हाथ की और वो भी कस कस के मसला जाने लगा.

कुछ देर तक तो उन्होने जम के मेरे निपल्स चूसे और फिर उरोजो के उपरी भाग पे अपने दाँत के निशान, पान के निशान. उन्होने कस के मुझे अपनी बाहो मे भर रखा था और फिर धीरे से वो नीचे की ओर लेट गये मुझे उपर लिए.

अब मैं उपर थी और वो नीचे.

उनका लिंग इस तरह धंसा था मेरे अंदर कि वो कुछ भी करते जैसे उसने मुझे चोदने की कसम खा रखी हो. मेने पढ़ रखा था, फोटो मे देख रखा था, विपाइत रति मेने पूरी कोशिश भी की लेकिन मुझेसे नही हुआ. मुस्करा कर उन्होने मेरी कमर पकड़ी और मुझे इशारे से सीधे होने को कहा और फिर कमर पकड़ के अपनी बाहो की ताक़त से मुझे उपर नीचे.. उपर नीचे करने लगे. कितनी ताक़त थी उनकी बाहो मे और जब मैं उपर नीचे होती उनके मोटे लिंग पे लगता मैं किसी मीठी शूली पे चढ़ रही हू. थोड़ी देर इसी तरह मुझे रस देने के बाद वो रुक गये और मैं उनके उपर झुक गयी.

मैं धक्के तो नही लगा पा रही थी पर अपनी कमर को आगे पीछे कर के मज़ा ले रही थी. फिर मेने उन्हे छेड़ना शुरू किया. अपने लंबे काले बाल झुक के मैं उनके मूह पे बिखेर देती और जब उनका मूह छिप जाता मैं हल्के से उन्हे छू लेती. और फिर मेरे उरोज.. मैं एक दम उनके मूह के पास ले जाती और जब वो चूमने के लिए होंठ बढ़ते,

मैं उन्हे उपर उठा लेती. कभी अपने मस्त जोबन उनकी छाती मे रगड़ देती. जो थरथराहट उनके लिंग मे हो रही थी, लग रह था वो भी किनारे के करीब है और मेरे तो पूरे तन बदन मे तरंगे दौड़ रही थी.

अचानक उन्होने फिर पलटा खाया. अब मैं फिर से नीचे थी. उन्होने मेरे नितंबो केनिचे ढेर सारे कुशन लगाए और अब मुझे लगभग दुहरा कर दिया. मेरे घुटने मेरे स्तनो के पास थे. और उन्होने कस कस के धक्के मारने शुरू किए. मेरे कानो के पास आके उन्होने पूछा, "क्यो रानी मज़ा आ रह है. ""हाँ, राजा हाँ मैं चूतड़ उछाल के बोली. म. ""मज़ा आ रहा है जानम. . दवाने मे( अभी भी झिझकने उनका दामन पूरी तरह नही छोड़ा था). "हाँ राजा हाँ, और कस के और औरब्हुत मज़ा आ रहा है दबवाने मे"हम दोनो मस्ती मे पागल हो गये थे. और पहले मैं किनारे पे पहुँची. मेरी योनि कस कस के उनके लिंग को पकड़ रही थी, दबा रही थी निचोड़ रही थी. फिर वो भी कैसे रुक पाते. एक बार फिर जम के बदिश शुरू हुई. वह झाड़ भी रहे थे फिर भी उनके धक्के नही रुक रहे थे. जब वो वो रुके तो.. सिर्फ़ मेरी योनि ही नही उनका वीर्य मेरी गोरी गोरी जाँघो पे देर तक बहता रहा.

अबकी बार मैं एक दम थक गयी थी. मुझे नही लग रहा था, आज रात मैं दुबारा किसी हालत मे, दुबराबाड़ी देर तक मैं पड़ी रही ऐसेही. उन्होने फिर सहारा देके मुझे बैठने की कोशिश की. बहुत मुश्किल से मैं पलंग के सिरहाने और उनके सहारे, अधलेति बैठी रही. थोड़ी देर तक तो वो भी चुप बैठे रहे, फिर उन्होने कुछ कुछ बाते शुरू की. और उनकी बाते भी.. बस मैं सुनती रही. वो मेरे गेसुओ से खेलते रहे, मेरे चेहरे को देखते. फिर उन्होने प्लेट मे से एक मिठाई उठाई और आधी मुझे खिलाई, बिना किसी छेड़ छाड़ के, इस समय तो वो अगर मेरे पास आने की ज़रा भी कोशिश करते तो मैं शायद झटक देती. थकान के साथ साथ पूरी देह, खास तौर से मेरी जाँघो मे इतना दर्द हो रहा था इतनी देर तक और कस के फैलाया था, इन्होने और छातियो मे भी. आधी मुझे खिला के आधी उन्होने खुद खा ली. इससे भूख और बढ़ गयी. वो प्लेट उठा के बिस्तर पे ही लाए, और फिर हम दोनो ने मिल के पूरी प्लेट भर की मिठाई सफाचट कर दी. और मिठाई भी खूब पौष्टिक काजू की बरफी, पाइस्ट के रोल. मुझे प्यास लगी और वो बिना कहे पानी लाए. मेने पानी पी के उनसे पूछा, हे अब मूह कैसे सॉफ करूँ तो उन्होने अपने होंठ मेरे होंठ रगड़ के दोनो के सॉफ कर दिए. मेने हंस के कहा, हे बदमाशी नही. उन्होने झट से कान छू लिए और मैं हंस पड़ी. पेट मे मिठाई गयी तो थकान भी कुछ कम हुई और दर्द भी. फिर अचानक वो बोले हे गुस्सा मत होना अपनी चीज़ मैं फिर भूल गया. मेने कब से सोचा था कि पहली रात तुम्हे दूँगा लेकिन भूल गया. मैं हंस के बोली, जाओ माफ़ किया आप भी क्या याद करेंगे लेकिन बताइए तो सही क्या चीज़ है.

"बताने की नही दिखाने की है, वो भी यहाँ नही सोफे पे चलो. "वो बोले और मैं लाख ना नुकुर करती हुई उनकी बाहों मे सवार सोफे पे पहुँच गयी. वहाँ राइडिंग टेबल से उन्होने एक बड़ी सी डायरी निकाली. मैं अपनी धुन मे मैं बोली अब तो इतना,
 
लेकिन बताइए शादी के पहले कितना याद किया. वो पास मे आ के बैठ गये और डायरी का सितम्बर का एक पन्ना खोला और उस पे हाथ रख के हंस के पूछा ये डेट याद है ना. वो डेटमैन अपनी बर्थ डेट भूल सकती हू वो डेट कैसे भूल सकती हू. ये वो दिन था जब मैं 'उनसे' सबसे पहले मसूरी मे मिली थी. एक दम खुश हो के मैं बोली हाँ और उन्होने हाथ हटाया मेरी फोटो.. जो उन्होने खींची थी. और उसके बाद हर पेज पे कुछ ने कुछ.. ढेर सारी कविताए और कयि पे मेरी फोटौ भी. वो बोले रोज तुम्हारी बेइंतहा याद आती थी, बस इसी लिए.. हर रोज तुम मेरे ख्यालो मे होती थी और तुमसे बतियाते जो कुछ मैं लिख लेता था, बस वो यहा टांक लेता था. मेने पन्ने पलते एक दिन भी नागा नही गया. रोमांच से मेरे रोगते खड़े हो गये. कोई मुझे इतना चाह सकता है, मेने सोचा भी नही था. मेरी आँखो मे पानी भर आया. मिलने के अगले दिन का पन्ना और उस पर एक कविता थी "तुम". वो बोला, उस दिन तुम लोगो को देहरादून मे छोड़ के आया तो रात भर नींद नही आई. उसी दिन लिखा था. मैं पढ़ने लगी,

मधुर मधुर तुम ,

मधुरिम मन के ,

आलंबन .

मेरे जीवन के तृप्त तुम्हे ,

देख होते है, त्रिशित नेयन ,

मन उपवन के.

रूप तुम्हारा, निर्मित करता ,

नित नूतन ,

चित्र सृजन के ,

तुम ही तो हो इस मधुबन मे ,

केंद्र बिंदु ,

नव आकर्षण के.


मैं तो एक दम सिहर गयी. मैं सोच भी नही सकती थी कि कोई इस तरह वो भी मेरे बारे मे सोचता होगा. कविता लिखने की बात तो दूर. मेने लाड से उसके घुंघराले बाल बिगाड़ दिए और बोली, बावारे तुम एक दम पागल हो.

और उस के बाद ढेर सारी कवितए मेरे बारे मे हाशिए मे लिखा मेरा नेम. और कुछ कविताओ के बाद एक सीरिस थी, केश, आँखे, अधर वो बोला रोज तुम मुझे सपने मे आ के तंग करती थी. इसलिए जैसा तुम दिखती थी, नेक **** वर्णें, सारे अंगो के. मैं प्यार से लताड़ के बोली, केसरे अंगो के वो हंस के बोला. हाँ पढ़ो तो सारे अंगो के.


मुझसे क्या छुपाव, दुराव. मेने पढ़ना शुरू किया. पहली कविता थी "केश"


उन्मुक्त कर दो केश,

मत बांधो इन्हे.

ये भ्रमर से डोलाते ,

मुख पर तुम्हारे,

चाँद की जैसे नज़र कोई उतारे.

दे रहे संदेश,

मत बांधो इन्हे.

खा रहे है खम दमकते भाल पे ,

छोड़ दो इनको ,

इन्ही के हाल पे ,

दे रहे आदेश ,

मत बांधो इन्हे.


और उसके बाद आँखो और फिर होंठो और उसके साथ साथ वो और ज़्यादा रसिक होते जा रहे थे. "मीन सी, कानो से बाते करती, आँखे, ढीठ डित, लज़ाई सकूचाई, मेरे सपने जहाँ जाके पल भर चुंबनो के स्वादों से लदी थकि पलके, कतर सी तिरछी भौंहे, और सुधा के सदन, मधुर रस मयि अधर, प्रतीक्ष्हरत मेरे अधर जीनेके स्वाद के स्नेह केलेकिन सबसे ज़्यादा कविताए जिन पे थी वे थे मेरेउरोज. पूरी 7 और एक से एक और सिर्फ़ उन पर ही नही मेरे निपल्स के बारे मे, उसके आस पास के रंग के बारे मे "

ये तेरे यौवन के रस कलश,

ये किशोर उभार,

खोल दो घाट पी लेने दो

मेरे अतृप्त नेयन, प्यासे आधार""व्याकुल है

मेरे कर युगल पाने को,

पागल है मेरा मन, ये ये आनंद शिखर,

उन पे शोभित कलश,

तनवी तेरी देह लता के ये फल चखने को"
 
मेरा तो मन खराब हो गया इन कविताओ को पढ़ के और मेने कई पन्ने पलट दिए. अब नितंबो का वर्णन था, "काम देव के उल्टे मृदंग, भारी घने नितंब. "कई इंग्लीश मे भी थी.

पुश अगेन्स्ट माइ हंग्री माउथ ,

ऐज दा टिप ऑफ माइ टंग स्लाइड्स अप दा स्लिपरी फरो ,

दट वेल्कम्स मे बिट्वीन रौज़ ऑफ डेलिकेट पिंक पेटल्स ,

थ्रस्ट अगेन्स्ट माइ गेनरस टंग.


वो बोले. पन्ने पीछे पलटो, 'वो' तो तुमने छोड़ ही दिया जिसके बारे मे पूच्छ रही थी. और वास्तव मे नितंब के पहले, नाभि के बाद थी वो, रस कूप, मदन स्थान"

करती रहोगी तुम नही नही,

शरमाती, इतलाती और बल पूर्वक खोल दूँगा

मैं हटा के लाज के सारे पहरे, पर्दे,

छिपी रहती होगी जो किरानो से भी. रस कूप,

गुलाबी पंखुड़ियो से बंद असाव का वो प्याला",


पढ़ते पढ़ते मेरी आँखे मस्ती से मुन्दि जा रही थी. मैं सोच भी नही सकती थी शब्द भी इतने रसीले हो सकते है. मैं वहाँ भी गीली हो रही थी, मेरे रस कूप एक बार फिर रस से छलक रहे थे. और जहाँ तक उनकी हालत थी, मुझे तो लगने लगा था कि कब तक मैं उनके पास रहती थी, उनका तो 'वो' खड़ा ही रहता था. मेने उनसे कहा कि, आप मेरे बारे मे आप बोलो मैं आपके मूह से सुनना चाहती हू. उन्होने डायरी के पन्ने खोले तो शरारत से मेने उसे बंद कर दिया और बोली ऐसे थोड़ी, तुरंत बना के कवि ऐसे जो भी आप के मन मे आए. तभी मुझे ध्यान आया, पढ़ने के बहाने उन्होने लाइट जला दी थी, और निर्वासना मैं, मेरा सब कुछ. शरमा के मेने उनकी आँखे अपनी हथेली बंद कर दी. वो बोले, अरे देखुगा तो नही बोलूँगा कैसे. मेने उनका हाथ अपने सीने पे रख के कहा, उंगलियो से देख के. फिर मेने कहा, मुझे अपनी प्रशंसा सुनना अच्छा लगता है और वो भी आपके मूह से. वो बोलने लगे,


"तेरे ये मदभरे, मतवाले, रस कलश, किशोर यौवन के उभार, रूप के शिखर,

'डज़ ऑफ जॉय', जवानी की जुन्हाई से नहाए जोबन, प्यासे है मेरे अधर,

इनेका रस पाने को, छू लेने को चख लेने को. चख लेने को सुधा रस"


और मेरी आँखे भी मस्ती मे बंद हो गयी. मेने खुद उनके प्यासे अधरो को खींच के अपने जोबन के उभारो पे लगा दिया. और अब उनकी उंगलिया भी सरक के और नीचेसीधे मेरे रस कूप पे और वो बोले जा रहे थे,

"तेरे ये भीगे गुलाबी प्रेम के स्वाद को चखने को बैचेन होंठ, थरथराते, लजाते,

ये गुलाबी पंखुड़िया किशोरखिलाने को बैठी ये कली ( उनकी उंगलिया अब मेरे भागोश्ठो का फैला के अंदर घुस चुकी थी),

ये सन्करि प्रेम गली, मेरे चुंबनो के स्वाद से सजी रस से पगी,

स्वागत करने को बैठी, भींच लेने को, कस लेने को, सिकोड लेने को

अपनी बाहो मे मेरे मिलन को उत्सुक बेचैन उत्थित काम दंड. "


हम दोनो रस से पेज बैठी हो रहे थे. मेरी आँखो के सामने शाम को पढ़ी वो किताब उनके 'काम रस' से सने वो पन्ने याद आ रहे थे जिसमे पति और पत्नी पहले मिलन मे ही कितने खुले कारनामे उनके कान मे फुसफुसा कर कहा,

". . . दंड या"वो हंस के धीरे से बोले,

"लंड घुसाने को तुम्हारी कसी किशोर चूत मेओर उसके साथ ही बाँध टूट गया.

मेरी जांघे अपने आप ही फैल गयी और कवि ने उन जाँघो के बीच प्रतीक्षारत मेरी योनि मे एक झटक मे ही पेल दिया. उनका एक पैर फर्श पे था और दूसरा सोफे पे,

मेरी फैली हुई गोरी गोरी किशोर जाँघो के बीच, मेरे रसीले जोबन को पकड़ केउन्होने कस के ऐसे धक्के मारे की मैं चीख पड़ी. मेरे मस्त रस से भरे उभारो को पकड़ के रगड़ते मसलते, वो बोले "तेरी इन मस्त मस्त"

"हाँ हाँ मेरे बलम मेरे साजन बोलो ना, मेरी मस्त मस्त क्या"उनको कस के अपनी बाहो मे जाकड़ के मैं बोली,

"तेरी ये मस्त मस्त चूचु.. चुचिया, मन करता है कस के मसल दू, दबा दू. "


"हाँ राजा हाँ मेरे साजन मसल दो मसल दो कस के, ये बैठी है तेरे लिए"

"जब मैं इन्हे देखता था ना तुम्हारे टाप के अंदर, उभरे ये उभार, ब्लाउस के अंदर मचलते, मुश्किल से रोक पाता था मैं, मन करता था बस छू लू,. . ओह ओह मसलने दो, रगड़ने दो, ये रस से भरे जोबन, ये रसीली चुचिया"

"तो ले लो ना ये तेरे ही तो है, रगड़ दो मसल दो, चूम लो चूस लो"


तभी उन्होने मेरी निगाह थोड़ी मोडी. पास मे ही एक बड़ा सा मिरर था और उसमे सोफे पे जो हो रहा था वो सब कुछ दिख रहा था. जिस तरह से वो मेरे चुचिया मसल रहे थे, मेरे निपल चूस रहे थे और फिर जब मेरी निगाह नीचे की ओर गयी तो मेने शरमा के आँखे बंद कर ली और उन्होने मेरे जोबन पे कस के कचक से काट लिया, और मेरी आँख खुल गयी. और मैं फिर देखने लगी नीचे,


क्रमशः……………………….
 
शादी सुहागरात और हनीमून--25

गतान्क से आगे…………………………………..

मेरी फैली खूब खुली जाँघो के बची मेरी कसी योनि मे उनका मोटा लिंग जा रहा था,

सतसट सतसट. और मेरी रसीली योनि उसे मज़े से लील रही थी, गपगाप, और ये देख के मैं इतनी उत्तेजित हुई कि मेने भी अपने नितंबो को उठा के, कस के धक्के लगाने शुरू कर दिए और उन्होने भी मुझे दिखा के कस कस केज़ोर ज़ोर से, कभी वो ऑलमोस्ट बाहर निकाल लेते और फिर पूरी ज़ोर के सता अंदर. मेरी चीखो सिसक़ियो की परवाह किए बिना वो लगातार पेल रहे थे. मेरी आँखो के सामने शाम को पढ़ी उस किताब के दृश्य घूम रहे थे और मैं आँखे बंद कर के बस उसी तरह मज़ा ले रही थी. और वो भी रुक रुक केमेरे कान उन के अस्फुट शब्द सुन रहे थे,

"क्या मस्त रसीली चूचुचिया है तेरी कितना मज़ा आता है चूसने मे. "

"डार्लिंग हहा चूस लो और कस के ओह ओह चूस लो मेरी"मैं भी उनका साथ देने की कोशिश कर रही थी.

"हा लेले घोंट मेरा लंड, घोंट कस कस के. "

"हाँ राजा, हाँ हाँ दो दो ना पेल दो. पूरा"मैं भी कस कस के चूतड़ उछाल के उनका साथ दे रही थी.

"क्या मस्त चूत है तेरी ओह. "वो रुक रुक के बोल रहे थे लेकिन अब उनकी झिझक ख़तम हो रही थी.

जब मेने मूड के शीशे मे देखा, तो कुशन के सहारे मेरे उठे हुए चूतड़ और और मेरी ओर उनका खूब बड़ा, मोटा सख़्त लंड. मेरी चूत मे कच कचाकर घुसता हुआ, मस्ती के मारे मेने उन्हे अपनी बाँहो मे कस के भिच लिया और मेरे नाख़ून उनकी पीठ पे धँस गये. और उनके दाँत मेरे कंधो मे. और फिर तो फूल स्पीड वो पूरी ताक़त से चोद रहे थे.

मैं पूरी ताक़त से चुदवा रही थी.

और आज ना तो चाँदनी थी ना सिर्फ़ नाइट लैंप. उन्होने जो लाइट आन की थी उसकी पूरी रोशनी मे, मैं उनके खुशी मे नहाए चेहरे को, ताकतवर बाँहो और मस्लस को, मेरे जोबन को कुचलते रगड़ते उनके चौड़े सीने को और कभी सामने कभी शीशे मे,

मेरी बुर का मर्दन करते, उनके मोटे काम दंड को.

बहुत देर तक इसी तरह और जब हम झाडे तो साथ साथ लेकिन आज मुझे बहुत आराम नही मिलना वाला था.

थोड़ी देर मे वो फिर तैयार थे और इस बार अपनी बाहों मे उठा के वो मुझे फिर बिस्तर पे ले गये और अधलेता कर दिया. कमर तक मैं बिस्तर पे थी, वो फर्श पे खड़े थे.

उन्होने मेरी दोनो टांगे फैला के अपने कंधो पे रख ली थी और फिर जो उन्होने मेरे कमर को पकड़ के कस कस के धक्के लगाए तो थोड़ी ही देर मे वो अंदर थे. फिर तो कभी कमर पकड़ के कभी मेरे नितंबो को उपर उठा के, कभी दोनो जोबनो का मर्दन करते और कुछ ही देर मे तकी होने पे भी मैं उनका साथ देने की कोशिश करने लगी. वैसे ही अंदर डाले डाले, उन्होने मुझे उठाया और थोड़ी देर मे हम दोनो बिस्तर पे थे. फिर तो जो धक्का पेल मुझे कुछ सोचने का समय नही मिल रहा था. बस जैसे कोई धुनिया रूई धुने वही हालत मेरी थी. मेरी दोनो टांगे पूरी तरह फैली कभी उनके कंधे पे, कभी बिस्तर पे कभी मैं नीचे रहती थी, कभी वो बिना रुके मुझे गोद मे बिठा के, कभी अपने उपरबिना रुके. आज रात वो तीन बार तो झाड़ चुके थे इसलिए अगली बार टाइम लगना ही था. लगातार पिस्तन की तरह वो मेरे अंदर बाहर अंदर बाहर फ़र्क सिर्फ़ दो था.

एक तो वो अब 'खुल के बोल रहे' थे और थोड़ा बहुत मैं भी साथ दे रही थी.

शरम लिहाज, लाज झिझक सब ख़तम हो चुकी थी.
 
शरम लिहाज, लाज झिझक सब ख़तम हो चुकी थी.

"ले रानी लेमेरा मोटा लंड.. लेओह ओह"

"हा हाँ. . उफहा डार्लिंग दो. . दो डाल दूह' "ओह ओह क्या मज़ा रहा है चोह.. चोदने मे ओह लेले चुदवा कस के. "

"हा राजा ओहचोह मुझे भी बड़ा मज़ा आ रहा है चुदने मे"मैं कस के उनकी कमर मेटांगे कस के, बोलती.

"क्या गजब की गदराई मस्त. चुचिया है टेरीबहुत तड़पाया है इन्होने. "वो मसल के बोलते.

"हाँ डार्लिंग हाँ. दबा दो रगड़ दो कस के बहुत अच्छा लगता है. दबा दो कस के मेरी चूचुचि. "

और वो दोनो चुचिया दबाते हुए कस के एक बार मे पूरा लंड पेल देते.

और दूसरा फ़र्क ये था कि जब उन्हे लगता कि मैं थक रही हू, रुक रही हुउन्हे मेरा 'जादुई बटन' मिल गया था. वो मेरी क्लिट छेड़ देते और फिर मैं जोश मे वापस.

सबसे ज़्यादा तो तब होता जब वो तिहरा हमला करते,

उनके होंठ, पकड़ के कस कस के मेरे एक निपल को चूसते.

एक हाथ की उंगलिया दूसरे निपल को फ्लिक करती, पिंच करती और अंगूठे और तर्जनी के बीच दबा के रोल करती.

और दूसरे हाथ की उंगली, हल्के से मेरी क्लिट प्रेस करती, फ्लिक करती फिर अंगूठे और तर्जनी के बीच कस कस के छेड़ती. इस एक साथ हुए तिहरे हमले सेमेरी जान निकल जाती.

थोड़ी ही देर मे मैं फिर सिसकिया भरने लगती, कमर हिलाने लगती और मेरे चूतड़ अपने आप उछलने लगते.

और वह मुझे इसी तरह तड़पाते रहते, रुके जाते जब तक मैं मस्ती मे आ के, खुल के खुद नही बोलती,


"डार्लिंगओर ना तड़पा करो ने.. प्लीज़ डाल दो छो.. चोदो मुझे"


और उसके बाद तो फिर तूफान चालू हो जाता. उनका वो तिहरा हमला तो जारी ही रहता, मेरी चुचियो का निपल्स का मसला जाना, कस कस के चूसने और क्लिट को छेड़ने और साथ मे ही पूरी ताक़त से, पूरी स्पीड से मेरी बुर को रगड़ता, चीरता और साथ साथ वो बोलते भी रहते आ रहा है ना मज़ा चुदवाने मे और मैं भी. जब मैं थकने लगती तो वो थोड़ी देर रुक जाते और फिर वही तिहरा हमला मेरे दोनो निपल्स और क्लिट पे.

मुझे याद नही कि वो कितनी देर तक मुझे इस तरह चोदते रहे.

बस इतना याद है, मुझे जब हम दोनो अबकी झाडे तो बहुत देर तक झाड़ते रहे.

जैसे एक लहर ख़तम होतो तो दूसरी.. और थोड़ी देर मे फिर मैं एक दम लस्त पस्त हो गयी थी.

जब मेरी आँखे खुली तो पूनम की चाँदनी जा चुकी थी और पूरब मे हल्की लाली छाने लगी थी.

मैं मुस्करा उठी ये सोच के कि भाभी से अगर मैं ये बात कहती तो वो तुरंत बोलती,

जैसे रात भर चुदवा चुदवा के तेरी चूत लाल हो गयी.
 
कुछ देर तक मैं वैसी ही पड़ी रही फिर उनका सहारा ले के बाथरूम तक गयी, फ्रेश होने के बाद जब मेने वहाँ डाक्टर भाभी की दी गयी क्रीम वहाँ लगाई, एक दम जादू का असर हुआ. मैं ये तो नही कह सकती कि दर्द एकदम ख़तम हो गया, लेकिन अब कम से कम मैं चल फिर सकती थी. अभी भी 'वहाँ' पे एक तीखी मीठी टीस तो थी ही, जांघे पे भी फट रही थी. बाहर मैं निकली तो वो चाय के साथ इंतजार कर रहे थे. चाय पीते पीते उन्होने पूछा,

"आज तो तुम्हारा गाने का प्रोग्राम होगा. कौन से गाने गओगि. जैसे तुम्हारी भाभी और बहने गा रही थी, कुहबार मे' "धत्त वहाँ बात और थी, मुझे शरम आएगी. वहाँ सासू जी होंगी और सब औरते"

"अरे वाह इसमे शरम की क्या बात है. सास तो तुम्हारी भाभी की भी थी. अरे गाने वैसे ही, खुल के बहुत मज़ा आएगा. सिर्फ़ घर के तो लोग रहेंगे. "मेरे होंठो को चूम के उन्होने कहा, और फिर मुझे चिढ़ाते हुए बोले, "कही ऐसा तो नही है तुम्हे आता न हो, और शरम का बहाने बना रही हो. "

"धत्त, आता तो मुझे ऐसा है कि मेरी सारी ननदो की हालत खराब हो जाय लेकिन मुझे शरम लगती है, उसमे कैसी. कैसी बाते एक दम खुल केक्या कहेंगे लोग कि मैं कैसे बोलती हू. "

"अरे सब बड़ी तारीफ़ करेंगे तेरी, अभी तो सब लोग कहते है कि अँग्रेज़ी स्कूल की पढ़ी है पता नही, इसे शादी वादी के गाने आते भी होंगे कि नही, आज मूह बंद कर दो सबका और फिर गाली का तो नाम ही गाली है. और अब किस बात की शरम"उन्होने फिर उकसाया.

"तो ये कहिए कि आपको अपनी बहनो का हाल खुल के सुनने का मन कर रहा है.

है ना.. "मेने चिढ़ाया.


"तो पक्का, तो फिर जैसे तुम्हारे यहाँ हुए थे वैसे ही सुनना. सारे लोग बहुत तारीफ़ कर रहे थे कि कितनी बाराते की, लेकिन बहुत दिन बाद ऐसी गालिया और गाने सुनने को मिले.


लग रहा था पुराना जमाना लौट आया. "उन्होने फिर चढ़ाया.

तब तक फ़ोन की घंटी बजी. उन्होने जो कल बुक की थी मेच्योर हो गयी थी.

मेने फ़ोन उठाया. मम्मी की आवाज़ थी. इतनी अच्छी लगी. ये बाथरूम चले गये थे.

थोड़ी देर हम लोगो ने बाते की फिर भाभी ने फ़ोन उठाया. पहला सवाल तो वही था, रात मे कितनी बार चुदवाया और आज मेने सॉफ साफ बता दिया. फिर उन्होने रिसेप्षन का और बाकी सब हाल चाल पूछा. मेने उनसे अपनी समस्या बतलाई, की शाम को मुझे गाने गाने है और 'ये' कह रहे है कि मैं खुल के जैसे हम लोगो के यहाँ हुए थे वैसे गाने गाउ. वो चमक के बोली
 "ये बता, तू अब तक कितनी बार चुदवा चुकी है"

"दस बार"हंस के मैं बोली.

"कितनी देर मेपहली बार से. "मेने कुछ जोड़ा और बोली,

"30 घंटे मे"


"तो मेरी प्यारी छीनाल ननद रानी, 30 घंटे मे ससुराल पहुँच के तुम 10 बार चुदवा चुकी हो. तो तुझे चुदवाने मे नही शरम है, गपगाप अपने पिया का मोटा लंड लेने मे नही शरम है, चूतड़ उछाल उछाल के चुचिया दबवा के बुर मे लंड लेने मे नही शरम है, तो अपनी सास और ननदो के सामने ये बोलने मे कैसी शरम. भूल गयी मेने तुम सब को कैसी जबरदस्त गालिया दी थी. ( मैं कैसे भूल सकती थी. मैं रजनी के उमर की रही होउंगी, लेकिन भाभी ने कुछ भी कसर नही छोड़ी थी, अपनी शादी के अगले ही दिन और जब मेने उन्हे दिखाते हुए कान मे उंगली डाल ली पर उन्होने अपने हाथ से पकड़ के उंगली भी निकाल दी. ). अरे ननद रानी ये सब मौका है, आज अपनी किसी भी ननद को मत छोड़ना और ननदोइ जी का नेम लगा के ज़रूर और अगर तुमने ज़रा भी शराफ़त दिखाई ना तो, जानती हो मैं क्या करूँगी. "मैं चुप रही.

"अभी मैं बोलती हू अपने ननदोयि को अभी पटक पटक के तुम्हारी ऐसी कस के गांद मारे ऐसी कस के गांद मारे कि तुम बिस्तर से उठने लायक ना रहो, "

मैं डर गयी. कल सुबह सुबह दिन दहाड़े 'उन्होने' अपनी सलहज की बात मान के मेरी कैसे कस के
 "नही भाभी नही मैं एक दम देखना एक दम एक से एक सुनाउन्गि. आख़िर आपकी ननद हू. "
 
फिर मेने उनके कबार्ड के बारे मे और जो किताब मेने देखी थी और उसके अंदर सब बताया. भाभी से मैं कुछ भी छुपाटी नही थी. उन्होने मुझे पहले ही बताया था कि हर औरत को अपने मर्द का 'ट्रिगर' पता होना चाहिए कि क्या चीज़ उसे सबसे ज़्यादा उत्तेजित करती है. वो हंस के बोली कि तू अभी चुदवाते समय खुल के बोलती है कि नही लंड बुर या 'ये वो' कह के काम चलती है. मैं ने सच सच बता दिया कि मैं नही बोल पाती. उन्होने फिर हड़काया, अरे तो क्या वो बोर्ड लगाएगा. इसका मतलब उसे ये सब सुनना सुनाना, खास कर अपनी बीबी के मूह से अच्छा लगता है. तो लाज शरम छोड़ मज़े कर और आज से तुमने ये वो.. लिंग योनि बोला ना तो अरे तू कहती है तुझसे वो इत्ता प्यार करता है तो तू इसके लिए इतना भी नही कर सकती. अरे औरत जब मर्द को कच कचा के प्यार करती है ना तो उसके लिए बिस्तर पे रंडी की तरह भी हो सकती है. "

"ठीक है भाभी जी से एक कदम आगे. . वो सब बंद और मैं ये रिकार्ड भी आप का तोड़ दुगी. "

भाभी मेरी बात से एक दम खुश हो गयी और बोली,

"समझ ले मेरी बन्नो आज तेरा तीसरा दिन है और दुलहन के लिए ये सबसे सेक्सी होता है. 
"

"क्यो भाभी"

"अरे इस लिए कि पहला दिन तो डरते शरमाते होता है. दूसरे दिन थोड़ी हिम्मत बँधती है और तीसरे दिन दुल्हन चुदि भी होती है और चुदासि भी. ".

भाभी की बात एकदम सही थी.

तक तक वो बाथरूम से निकल आए, उनकी आवाज़ सुन कर भाभी बोली उनसे बात करवाने के लिए. मैं डर गयी और बोली मैं मान तो गयी आप की बात जैसा आप ने कहा है गाने के लिए भी और उसके लिए भी.

तब तक वो पास आ गये और बोले भाभी जी है क्या, बात कराओ ना. और फिर तो वो दोनो फोन पे ऐसे चिपक गये. बात ख़तम करने के बाद मेने पूछा, हे सलहज ने नेंदोई को कोई इन्स्ट्रक्षन तो नही दिए. वो हंस के बोले हाँ दिए तो है लेकिन वो तुम्हारे रात के गाने पर डीपेंड करेगा. और उन्होने मुझे अपनी बाहो मे उठा लिया. हे हे मैं चिल्लाई. पौने आठ बज रहे है और वो दोनो दुतियाँ, साढ़े आठ बजे हाजिर हो जाएँगी. तब तक हम दोनो बाथरूम मे थे. मुझे उतारते हुए वो बोले तभी तो साथ साथ नेहा लेते है, जल्दी हो जाएगी.
 
नहाने तो एक बहाना था. उन्होने अपने दोनो हाथो मे साबुन ले के मेरे चुचियो पे कस कस के मलना शुरू कर दिया. मैं क्यो चूकती, मेने भी नोज़ल शावर से सीधे उनके 'वहाँ'. 'उसे' भी सिर्फ़ खड़े होने का बहाना चाहिए था. मिनेट भर मे फनफनाता वो खड़ा हो गया. पहली बार मैं इस तरह से खुल के उसे देख रही थी. रात मे आधे टाइम तो वो मेरे अंदर ही या तो घुसा रहता था या घुसने की जुगाड़ मे रहता था. खूब मोटा. जब मेने भी उनकी तरह से अपने साबुन लगी मुट्ठी मे उसे पकड़ने की कोशिश की तो वो इतने मोटा था, मुट्ठी मे आया नही. बीयर कॅन ऐसा. वो मुझे चिढ़ाती हुई नजरो से देख रहे थे. खिज के मेने उसे दोनो हाथो से पकड़ लिया और आगे पीछे करने लगी. वो मेरे हाथो के बीच पहली बार आके खुशी से और फूल गया. मेने जब कस के खींचा तो उपर का चमड़ा हट गया. पहली बार मेने उनका सूपड़ा देखा, खूब फूला, गुस्से मे लाल , मोटा सा तमतमाया. वो बोले मोटाई तो देख ली, अब लंबाई भी नाप लो. पूरे बलिश्त भर का था. शरमा के मेने बात बदली,

"इतना लंबा है तभी मेरी हालत खराब हो गयी"उन्होने हंस के अपने हाथ से पकड़ के दिखाते हुए कहा,

"जी नही. कल मेने सिर्फ़ इतना डाला था (सूपदे से थोड़ा नीचे) और आज तुम जो चीख रही थी तो अभी भी मेने सिर्फ़ इतना डाला था,

इसका मतलब अभी भी एक तिहाई के करीब बचा था. कितना क्ंट्रोल और मेरा ख्याल है इन्हे मेरा. मेने पैंतरा बदला,

"हे तो ये बाकी का किसके लिए बचा रखा था, क्या मेरी ननद के लिए. "मेरे अंदर भाभी की आत्मा प्रवेश कर गयी थी. मेने उनके लंड को कस के दोनो हाथो के बीच भींच के बोला, खबरदार अगर एक इंच भी, इंच क्या सूत भी बाहर रहा. ये सारे का सारा मेरा है. अब मैं चाहे चीखू, चिल्लौं, चाहे मेरा खून निकले, चाहे मैं बेहोश हो जाउ, लेकिन ये मुझे पूरा चाहिए. एकदम जड़ तक. "

"तो चलो नेक काम मे देरी क्यो. अभी लो पूरा का पूरा"मुझे पकड़ने की कोशिश करते हुए वो बोले.

"ना बाबा ना अभी वेरी ननदे आती होंगी पर अगली बार हाँ"फिसल के मैं निकल गयी और तौलिए से अपनी देह सॉफ करती हुई बोली.

जब तक वो बाहर आए मैं तैयार हो रही थी. मैं पेटी कोट ब्रा मे थी. तय कर रही थी कौन सा ब्लाउस पहनु. उन्होने एक लो लो काट ब्लाउस की ओर इशारा किया. मैं उनका इरादा समझ गयी पर मैं कौन होती थी पति की बात टालने वाली. दुल्हन को तो तैयार होने मे पूरा सिंगार करना होता था, मेकप के बाद गहने भी.

खास तौर से चूड़िया रोज मैं पहनती थी, रोज रात मे आधी चटक जाती थी. मेरे ननदे सारी मज़ाक बनाती, इसलिए ध्यान दे के मैं फिर से रात के बराबर चूड़िया पहनती जिससे किसी को शक ना हो. शक की बात थी तो मेने गाल पे जो निशान थे सब पे नो मार्क लगाए, लेकिन जब मेने गले के नीचे निगाह डाली, तो मेरे उरोजो पे इतने कस कस के इन्होने और उपर से इनकी बात मान के मेने इतना लो काट ब्लाउस भी पहन लिया था.

क्रमशः………………………

शादी सुहागरात और हनीमून--25
 
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