Kamukta Story प्यास बुझाई नौकर से - Page 7 - SexBaba
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Kamukta Story प्यास बुझाई नौकर से

रामू- रूबी जी मैं इन्हें देखना चाहता हूँ। इनको आज महसूस करने के बाद मेरे से रहा नहीं जा रहा।

रूबी- नहीं रामू, ऐसा नहीं हो सकता।

राम- रूबी जी मैंने तो इसके लिए तैयारी भी कर ली थी।

रूबी- तैयारी?

रामू- हाँ। मैंने सोचा कल हमें टाइम नहीं मिलेगा तो मुझे लगा की मालिक को किसी काम में मशरूफ कर दूंगा।

रूबी- कौन सा काम?

रामू- वो कल पता चलेगा आप बस देखते जाओ।

रूबी सोचती है की रामू ने पता नहीं क्या प्लान बनाया होगा उसके ससुर को बिजी करने के लिए?

रामू- तो बताओ ना रूबी जी। कल मुझे दूध पीने दोगे?

रूबी- नहीं हो सकता रामू ऐसे।

राम- रूबी जी हमारे पास सिर्फ दो ही दिन हैं। फिर इसके बाद पता नहीं कब टाइम मिलेगा।

रूबी को भी ध्यान में आता है की उसके पास तो सिर्फ दो ही दिन हैं राम के साथ के लिए। उसके बाद तो सीमा आ जाएगी और फिर पता नहीं कभी मिल भी पाएंगे या नहीं? रूबी उसे सीधा हाँ नहीं बोलती पर बातों में ही अपनी सहमति दे देती है।

रूबी- पता नहीं रामू, मम्मीजी घर पे होंगी।

राम- रूबी जी आपको मालेकिन को बिजी करना होगा।

रूबी- मैं क्या करूं?

रामू- कुछ तो सोचिए। आपके पास रात का टाइम है।

रूबी- मुझसे नहीं होगा राम्। मैं क्या करूं इसमें?

रामू- आपको मेरी कसम। आपको कुछ तो करना होगा।

रूबी- ठीक है देखती हूँ।

रामू- तो इसका मतलब मुझे आम चूसने दोगी?

रूबी- “पागल... मैंने ऐसा नहीं बोला..." और हँस पड़ती है।

दोनों कछ दर और बातें करते हैं, और फिर राम सो जाता है। पर रूबी कल के लिए प्लान बनाने लगती है। सोचते-सोचते उसे भी नींद आ जाती है।

अगले दिन सुबह हरदयाल ट्रैक्टर स्टार्ट करता है तो ट्रैक्टर स्टार्ट नहीं होता। उसे लगता है की इसे शहर लेकर जाना पड़ेगा ठीक करवाने के लिए। वो खाना खाता है और शहर जाने के लिए तैयार हो जाता है। वो गाँव से किसी से हेल्प माँगता है और अपने ट्रैक्टर को टो करके शहर के लिए रवाना हो जाता है।

सुबह के 9:00 बजे का टाइम था। रूबी को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। रामू ने तो अपना काम कर दिया था। उसका काम अधूरा था अभी। एक घंटे तक राम् आ जाएगा फिर कछ नहीं हो सकता। उसके आने से पहले ही कमलजीत को कहीं पे बिजी करना होगा। तभी उसे याद आता है की मम्मीजी को काकरोच किल्लर स्प्रे से अलर्जी है। तो उसके दिमाग में प्लान आता है की वो मम्मीजी को बोलेगी की घर में काकरोच काफी हो गये हैं तो उसने आज राम के साथ मिलकर स्प्रे करनी है।

रूबी- मम्मीजी।

कमलजीत- बोलो बहू।

रूबी- मैं सोच रही थी की काकरोच किल्लर स्प्रे करवा दं घर में। काफी काकरोच हो गये हैं। मैंने नोट किया हा।

कमलजीत- अरे तुम्हें पता है ना मुझे अलर्जी है उससे।

रूबी- मम्मीजी इसलिए मैं बोल रही थी की मैं राम के साथ मिलकर स्प्रे कर दूंगी और बाकी सफाई भी कर दूंगी, तो दोपहर तक स्प्रे की स्मेल खतम हो जाएगी। इसलिए आप अपना जो काम करने वाला है घर के बाहर ले जाओ एक बार ताकी आपको अंदर ना आना पड़े।

कमलजीत- ठीक है जैसे तुम्हें ठीक लगे।

रूबी का प्लान कामयाब हो जाता है, और रामू को मेसेज कर देती है। रामू के आने पे कमलजीत अपना काम, सब्ज़ी काटने का, और स्वेटर बुनने का लेकर मुख्य घर के बाहर गैरेज के साथ बैठ जाती है। अब रूबी और रामू अकेले थे घर के अंदर। कमलजीत के बाहर बैठने की तसल्ली करने के बाद रामू सीधा रूबी के कमरे में घुस जाता है और सीधे उसे अपनी बाहों में ले लेता है। रूबी अपना सिर रामू की बलिष्ठ छाती से चिपका लेती है

और रामू उसके सिर को सहलाने लगता है।
 
उसके सिर को सहलाते-सहलाते राम रूबी के होंठों को अपने होंठों में बदा लेटा है और रसपान करने लगता है। रूबी भी उसका साथ देने लगती है। नीचे रामू रूबी के चूतरों को अपने हाथ से सहलाने लगता है। रूबी मदहोशी के आलम में खोने लगती है। राम् का हाथ उसके विशाल चूतरों का जायजा ले रहा था।

तभी रामू रूबी को घुमा देता है और अब रूबी की पीठ रामू की तरफ होती है। रामू रूबी की गर्दन पे किस करना शुरू करता है। रूबी के अंदर उत्तेजना बढ़ने लगती है। रूबी इसी उत्तेजना में अपनी कमर हिलाने लगती है जिससे उसके चूतर राम के लण्ड से रगड़ खाने लगते हैं। तभी राम अपने दोनों हाथों से रूबी के उभारों को दबाने लगता है। राम के कठोर हाथों का स्पर्श पाकर रूबी अपने ऊपर कंट्रोल खोने लगती है। रामू के हाथों का दबाव बढ़ जाता है और रूबी को उभारों पे दर्द महसूस होने लगती है, और उसके मुँह से सिसकियां निकलने लगती हैं।

रूबी- “आहह... उफफ्फ..."

रामू- अच्छा लग रहा है रूबी जी?

रूबी- बहुत अच्छा।

रामू अपने हाथों का दबाव और बढ़ा देता है।

रूबी- उफफ्फ... रामू धीरे-धीरे दर्द होता है।

रामू अब उभारों को छोड़कर रूबी को फिर से अपनी तरफ पलट देता है जिससे रूबी और राम का चेहरा आमने सामने हो जाता है। रूबी रामू की आँखों में अपने लिए बेइंतेहा मोहब्बत देखती है और आगे बढ़कर उसके होंठों को चूम लेती है। रामू रूबी की इस पहल से खुश हो जाता है और उसके चूतरों को अपने दोनों हाथों का सहारा देकर उसे ऊपर उठा लेता है।

दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमते चाटते हैं, और रामू फिर रूबी को नीचे फर्श पे खड़ा कर देता है। अब रामू धीरे-धीरे रूबी के उभारों को उसके टाप के ऊपर से सहलाता है। रूबी उसे स्माइल देती है और राम आगे बढ़कर उसके टाप के नीचे हाथ डालकर रूबी की ब्रा के ऊपर से उसके उभारों को सहलाने लगता है।

रूबी शर्माकर उसकी छाती में अपना सिर रख देती है और उसके हाथों के जादू में खो जाती है। बड़े-बड़े उभार रामू के कठोर हाथों में मसले जा रहे थे और रूबी को और ज्यादा उत्तेजित कर रहे थे। रूबी की चूत नीचे से गीली होने लगी थी। रामू ने एक-दो मिनट तक उभारों को ऐसे ही ब्रा के ऊपर से दबाया और फिर रूबी का टाप उतारने की कोशिश करने लगा।

रूबी जो की इसके लिए तैयार नहीं थी उसका हाथ पकड़ लेती है। राम सवालिया नजरों से उसे देखता है।

रूबी- मम्मीजी हैं बाहर।

रामू- मैंने मुख्य दरवाजा लगाया हुआ है। जब वो अंदर आना चाहेंगी तो उनको आवाज देनी पड़ेगी दरवाजा खुलवाने के लिए। अगर पूछेगी तो बोल देगे की आप गलती से अंदर ना आ जाएं, इसलिए लगाया था। रूबी मुश्कुराती है और रामू अपना अधूरा काम पूरा करने के लिए आगे बढ़ता है। वो रूबी के टाप को पकड़कर रूबी से अलग कर देता है। उसके सामने दो गोल-गोल उभार ब्रा में कैद थे। रामू उनको अपनी उंगलियों से सहलाता है।

रूबी का गला सूखने लगता है। रामू रूबी को कमर से पकड़कर अपनी छाती से लगा लेता है, और अपने हाथ से ब्रा के हुक खोलने लगता है। रूबी की हिम्मत जबाव देने लगती है। क्या वो सचमुच आज अपने उभार रामू को दिखाएगी। अगर ऐसा करती है तो लखविंदर के इलावा रामू पहला मर्द होगा जो उसकी नंगी छातियां देखेगा।

रामू ब्रा के हुक खोलने के बाद रूबी को अपने से अलग करता है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देखते हैं। दोनों की नजरों में वासना झलक रही थी। एक दूसरे को होंठों पे किस करते हैं और राम अपने हाथों को ब्रा के अंदर डाल देता है और रूबी के नंगे उभारों को सहलाने लगता है। इतने टाइम के बाद किसी मर्द का हाथ अपने उभारों पे पाकर रूबी से रहा नहीं जाता और रामू के होंठों को और जोर से चूमना शुरू कर देती है। इधर रामू के सख्त हाथ रूबी के रूई जैसे मुलायम उभारों को निचोड़ रहे थे। रूबी का बुरा हाल हो रहा था।

तभी राम ने रूबी की ब्रा को भी उससे अलग कर दिया और रूबी के दूध जैसे गोरे उभार उसके सामने आ जाते हैं। रूबी शर्माते हुए अपने हाथ से उभारों को ढकने की नाकाम कोशिश करती है। उसके हाथ उभारों को पूरी तरह नहीं छुपा पा रहे थे। सिर्फ निपल्स ही छुपा पा रही थी।

राम- रूबी जी। अब तो ना तड़पाओ, इन दशहरी आँमों को देखने दो ना।

रूबी शम र अपना चेहरा नीचे कर लेती है। राम उसके हाथों को पकड़कर उभारों से अलग करने की कोशिश करता है तो रूबी हाथ छुड़ाकर भागने की कोशिश करती है। राम उसे पकड़ने की कोशिश करता है तो इसी कशमकश में रूबी बेड पे गिर जाती है, और राम उसके ऊपर आ जाता है।

रूबी के दोनों हाथ राम के एक हाथ में जकड़े हए थे। रूबी अब बेबस थी। अब उसके पास अपने उभारों को छुपाने का कोई रास्ता नहीं था। उसके दूध जैसे गोरे उभार रामू के हमले का सामना करके को तैयार थे। रूबी शर्माकर आँखें बंद लेती है और आगे की घटना का इंतेजार करने लगती है। रूबी जोर-जोर से सांसें लेने लगती है। जिससे उसके उभार ऊपर-नीचे होने लगते हैं।
 
रामू अच्छी तरह इन आमों के दीदार करता है। क्या सुडौल गोल भरे-भरे से उभारों की मालेकिन थी रूबी। उभारों के ऊपर ब्राउन निपल कहर ढा रही थी। रामू से रहा नहीं जाता और वो आगे बढ़ता है। रामू की गरम सांसें रूबी को अपने सीने पे महसूस होती हैं। उसकी सांस रुक जाती है। और तभी रामू अपनी जुबान रूबी के दायें उभार की ब्राउन निपल पे घुमाता है।

रूबी के लिए मानो समय थम सा गया था। कुछ देर ऐसे करने के बाद राम और नहीं सह पाता और दायें उभार को अपने होंठों में भर लेता है। आखीरकार, रूबी के गोरे-गोरे सुडौल उभारों पे हमला हो चुका था। रूबी तो मानो सांस लेना भूल गई थी। रामू धीरे-धीरे उसका उभार चूसने लगता है।

***** *****

रूबी के शरीर में चींटियां रेंगने लगती हैं। वो अपनी आँखें खोलती है और राम को अपना उभार चूसते देखती है। रूबी का गला सूखने लगता है। राम धीरे-धीरे अपनी पकड़ रूबी के हाथों से कम कर देता है। रूबी मदहोशी में खोती जा रही थी। अब रामू ने उसके दूसरे उभार को अपने होंठों में ले लिया और एक हाथ से रूबी के दायें उभार को दबाने लगा।

रूबी अपना हाथ रामू के पीछे लेजाकर उसके सिर को पकड़ लेती है और हल्का-हल्का रामू के चेहरे को अपने उभार पे दबाने लगती है। अब रूबी हे भरने लगती है।

रूबी- “हाँ उम्म रामू और चूसो उफफ्फ..."

रामू अपनी रफ़्तार बढ़ा देता है। रूबी की सिसकियां भी तेज होने लगती हैं।

रूबी- “उहह... आअहह... और चूस्सो... चूस लो मेरे आम... उफफ्फ... माँ पूरा रस्स पी लो इनका उई माँ.."

रामू देखता है की रूबी के ऊपर उसका जादू पूरा चढ़ चुका है। वो रूबी के उभारों को चूसना छोड़ देता है और अपनी टी-शर्ट उतार देता है और फिर से उसके उभारों पे टूट पड़ता है। रूबी उसके सिर को पकड़ के अपने उभारों में दबा रही थी। रूबी की चूत नीचे से आग उगल रही थी। उसका बुरा हाल हो रहा था। रूबी अब अपनी कमर को हल्का-हल्का घुमाने लगती है। राम उसकी हालत का अंदाजा लगा लेता है और अपना एक हाथ उसके चूतड़ों पर लेजाकर मसलने लगता है। कुछ देर में उसका हाथ रूबी की जांघों को सहलाने लगता है।
 
रूबी अपनी दुनियां में खोई हुई रामू के हरेक हमले का मजा लेती रहती है। अब रामू अपने एक हाथ से रूबी की चूत को रगड़ने की कोशिश करता है। रूबी इस हमले से हड़बड़ा जाती और अपनी जांघे टाइट कर लेती है। राम का हाथ बार-बार हमला करता है रूबी की जांघे खुलवाने के लिए। उधर रामू उसके उभारों को पागलों की तरह चूस रहा था। उसके उभार रामू के थूक से चमक रहे थे।

रूबी का विरोध धीरे-धीरे कम होने लगता है और राम का हाथ लेगिंग के ऊपर से चूत को रगड़ के हाथ का स्पर्श पाकर रूबी की चूत पानी छोड़ने लगती है। रामू धीरे-धीरे चूत रगड़ने की स्पीड बढ़ा देता है। रूबी उसके हाथ की मूटमेंट के साथ-साथ अपने चूतर हिलाने शुरू कर देती है। उसकी इस हरकत से रामू को लगता है की रूबी उसके कंट्रोल में आ गई है और वो उसकी चूत के दीदार कर सकता है। यही सोचते हुए रामू उसकी लेगिंग की लाइन को पकड़कर नीचे खींचना शुरू कर देता है।

रूबी समझती है की शायद राम उसको भोगने की फिराक में है, और इसलिए उसे नंगी करने की कोशिश कर रहा है। वो रामू का हाथ पकड़ लेती है। दोनों की नजरें मिलती हैं, और रूबी ना में अपना सिर हिला देती है।

रामू रिक्वेस्ट करता है। पर रूबी उसको अपन वादा याद दिला देती है।

रूबी- देखो राम तुमने वादा किया था की मेरी मर्जी के वगैर नहीं करोगे।

रामू- पर हम आपको भोगने नहीं लगे थे।

रूबी- नहीं रामू मम्मीजी बाहर हैं। मैं नहीं चाहती कोई इश्यू खड़ा हो।

रामू- मेरी जान अपनी तरफ देखो। तुम्हारा दिल चरमसुख पाने को नहीं कर रहा क्या?

रूबी- वो बात नहीं है। पर प्लीज लेगिंग मत उतारो।

राम अधूरे मन से लेगिंग छोड़ देता है, और कहता है- “ठीक है मैं आपकी लेगिंग नहीं उतारूगा और ना ही आपको आपकी मर्जी के बिना भोगूंगा। पर इसके इलावा मैं जो चाहूं मुझे करने देना.."

रूबी उसपे विश्वाश करती है और आँखें बंद कर लेती है।

रामू फिर से अपने हाथ से रूबी की चूत रगड़ने लगता है, तो उसे अपनी उंगलियों पे गीला-गीला महसूस होता है। वो समझ जाता है की रूबी की चूत पानी छोड़ रही है और आग में झुलस रही है। रामू की उंगलियां रूबी की चूत पे जादू कर रही थी, और रूबी के चूतर उनके साथ डान्स कर रहे थे। उधर रूबी आहें भरने लगती है। रामू आगे बढ़कर रूबी के होंठों पे अपने होंठ रख देता है और अपने हाथ को लेगिंग के अंदर डाल देता है और तब उसे पता चलता है की रूबी की चूत बलों से भारी है। रामू उसके होंठ छोड़कर फिर से उभार चूसना शुरू कर देता है। उसका हाथ रूबी की चूत के रेशमी बालों से खेलने लगता है, और फिर उंगलियां चूत की दीवार से खेलने लगती हैं। रूबी की सांसें तेज हो जाती हैं। वो अपनी कमर को और तेज हिलाने लगती है। वो अपने चरमसुख की ओर बढ़ने लगती है।

रूबी- “आहह... उफफ्फ... ओफफ्फ... रामू मेरी जान... मार डालोगे क्या?"

रूबी तेजी से अपनी चूत की दीवार को अपने चूतर हिला-हिलाकर राम की उंगली से रगड़ती है, और उसकी उंगली के चूत में प्रवेश के लिए तड़पने लगती है। पर वो ज्यादा देर इस इंतेजार को सहन नहीं कर पाती और उसकी चूत पानी छोड़ देती है। रूबी अपनी आँखें बंद कर लेती है और अपने आर्गेज्म को एंजाय करती है। रूबी धीरे-धीरे ठंडी पड़ने लगती है।

रामू यह सब देखकर अचंभित हो जाता है। रूबी तो इस खेल में बिल्कुल अनाड़ी निकली थी। रामू रूबी की सांसें नार्मल होने की इंतेजार करता है। कछ देर बाद रूबी अपने आँखें खोलती है तो पाती है की राम उसकी तरफ ही देख रहा था। रूबी उसके चेहरे पे चुंबनों की बरसात कर देती है। उधर रामू भी खुश होता है की रूबी को चरम आनंद का एहसास हो गया था, और वो भी उसे चूमने लगता है। अभी रामू अगले कदम के बारे में सोच ही रहा होता है की बाहर मुख्य दरवाजे के खुलने की आवाज आती है।
 
रूबी और रामू घबरा जाते हैं और चुपचाप सुनने की कोशिश करने लगते है की बाहर कौन आया होगा? तभी उनको हरदयाल की आवाज सुनाई पड़ती है। दोनों घबरा जाते है और रामू जल्दी से काकरोच वाली स्प्रे करने लगता है। उधर रूबी अपना टाप पहनती है और अपने कपड़े ठीक करके सफाई में राम का हाथ बटाने लगती है

और मैं घर के आने के दरवाजे को चुपके से खोल देती है।

रूबी और रामू हैरान हैं की हरदयाल इतनी जल्दी कैसे वापिस आ गया? रामू उनकी बातें ध्यान से सुनने लगता

कमलजीत- इतनी जल्दी कैसे वापिस आ गये। ट्रैक्टर ठीक हो गया?

हरदयाल- नहीं अभी नहीं। तेल की टंकी में मिट्टी है। कल को मिलेगा। कल जाऊँगा इसी टाइम। तब मिलेगा।

कमलजीत- ठीक है जी।

हरदयाल- तुम बाहर बैठी हूँ। रूबी कहा है?

कमलजीत- वो तो काकरोच वाली स्प्रे कर रही है। आपको तो पता ही है की मुझे अलर्जी है स्प्रे से।

हरदयाल- "ठीक है मैं खुद ही पानी पी लेता हूँ अंदर जाकर..” कहकर हरदयाल अंदर आता है और रामू से बात करता है- "रामू स्प्रे हो गई क्या?"

रामू- बाबूजी, कर तो दी है। पर कल को एक बार फिर से करनी पड़ेगी।

रूबी उनकी बातें ध्यान से सुनती है। उसे समझ में नहीं आता की रामू कल दुबारा करने को क्यों बोल रहा है?

रामू यह सोचकर खुश है की कल भी हरदयाल को शहर जाना पड़ेगा और स्प्रे का बहाना तो उसने बना दिया है। तो कल भी उसे रूबी के जिश्म से खेलने का समय मिलेगा। राम घर की बाकी सफाई करने के बाद अपने रूम में चला जाता है।

इधर रूबी भी अपना काम खतम करने के बाद नहा धोकर कमलजीत के पास आकर बैठ जाती है। कमलजीत से बातें करते-करते उसे पता चलता है की हरदयाल को कल भी शहर जाना पड़ेगा ट्रैक्टर को लाने के लिए। रूबी समझ जाती है की राम ने स्प्रे का बहाना क्यों बनाया होगा? रात को खाना खाने के बाद सभी बैठे टीवी देख रहे होते हैं, और राम फिर से रूबी को मिस काल मार देता है। रूबी अपने कमरे में आ जाती है और बेड पे लेटकर रामू से बातें करने लगती है।

रूबी अंजान बनते हए- "तुमने स्प्रे का बहाना क्यों बनाया कल के लिये। तुम्हें लगता है की कल भी तुम कुछ कर पाओगे?"

रामू- जी रूबी जी।

रूबी- क्यों ऐसे क्यों लगता है?

राम- कल मालिक शहर जा रहे हैं ट्रैक्टर लाने। तो कल भी हमारे पास टाइम होगा।

रूबी- बड़े चालक हो तुम तो राम्। शकल से तो मासूम लगते हो।

रामू- “अपने शैतान बना दिया है मुझे..."

दोनों हँस पड़ते हैं।

राम- रूबी जी अपने तो आज मेरा दिल जीत लिया।

रूबी- वो कैसे?

रामू- आज वासना में डूबे हुए आपने मुझे जान कहकर पुकारा था।

रूबी को कुछ याद नहीं होता। एक उत्तेजना में वो क्या-क्या बोल गई होगी।

रामू- रूबी जी एक बात बोलूँ?

रूबी- हाँ।

राम- आज मुझे यकीन हो गया की संभोग के मामले में आप अभी भी अनाड़ी है।

रूबी- तुम्हें क्यों लगा ऐसे?

राम- अभी तो मैंने अपनी उंगली आपकी चूत में भी नहीं डाली थी और आप झड़ भी गई।
 
रूबी को सुबह राम के साथ बिताए पल याद आते हैं और अपनी झड़ने की बात सोचकर शर्मा जाती है। सच में राम की उंगलियों में तो जादू है। अभी तो वो उसकी चूत के रेशमी बालों और चूत की दीवार से ही खेला था और वो झड़ भी गई।

रामू- रूबी जी, एक बात पुडूं?

रूबी हँसते हुए- “हाँ जी राम जी पुछिये?"

रामू- आपको मजा आ रहा था ना?

रूबी- हाँ।

रामू- तो फिर आप लेगिंग क्यों नहीं उतारने दे रही थी?

रूबी- पता नहीं।

राम- और किसको पता होगा रूबी जी? बताइए ना?

रूबी- पता नहीं शायद डर लगता है।

रामू- किससे?

रूबी शर्माते हुए- “तुमसे और इस दुनियां से भी."

रामू- दुनियां का तो मैं समझ गया, पर मेरे से क्यों?

रूबी- पता नहीं।

रामू- बताओ ना मेरी कसम आपको।

रूबी- “क्या पता तुम अपने पे कंट्रोल ना कर पाओ और मुझे चो.....”

रामू- बोलो ना क्या बोलने वाले थे?

रूबी- कुछ नहीं।

रामू- तो क्या आप हमसे चुदवाना नहीं चाहती?

रूबी- पहले तो इस शब्द को मत बोला करो, मुझे शर्म आती है। गंदा शब्द है यह।

राम- आप भी तो बोलने वाली थी इसे अभी-अभी।

रूबी- तुम रोज इसे बोलते हो तो मेरे मुँह से भी निकलने वाला था।

राम- अच्छा ठीक है नहीं बोलते। तो बताओ ना आप हमसे मिलन नहीं करना चाहते?

रूबी- पता नहीं।

रामू- तो क्या हम दोनों ऐसे अधूरे ही रहेंगे।

रूबी- पता नहीं...शायद हाँ।

रामू- ऐसा क्या हो गया मेरी जान? मैं तो आपके ऊपर फिदा हूँ और प्रेम करना चाहता हूँ।
 
रूबी- “पर रामू मैं किसी और की हूँ.” रूबी अभी भी अच्छे से डिसाइड नहीं कर पा रही थी की वो क्या करे?

रामू- हम जानते हैं की आप किसी और की हैं, पर क्या हम आपको इस जनम में अपना नहीं बना सकते?

रूबी- पता नहीं।

रामू- रूबी जी। आप ज्यादा ही सोचती हो। आपको आज चरमसुख मिला था ना?

रूबी- हाँ।

राम- तो फिर अच्छी बात है ना... आपकी चूत भी तो देखो कैसे पानी छोड़ रही थी। वो तो मिलनाना चाहती है।

रूबी- पर मैं किसी और की हूँ राम्। मैं कैसे कर सकती हूँ ऐसे?

राम- तो क्या आप के ऊपर हमारा थोड़ा सा भी हक नहीं है क्या? क्या हमारा लण्ड आपकी चूत का जरा सा भी रस नहीं पी सकता?

रूबी रामू की बातों से फिसलती जा रही थी। रामू सच ही तो कह रहा था की उसकी चूत तो मिलने के लिए तैयार थी। पर उसके समाज के बंधन और लखविंदर को धोखा देना उसके लिए काफी मुश्किल लग रहा था। उधर रामू अपनी बातें जारी रखता है।

राम- देखिये ना आपसे बातें करते-करते हमारा लण्ड कितना सख्त हो गया है। इस बिचारे को आपकी चूत का अमृत पीने दो ना... सिर्फ एक बार..."

रूबी- मैं तुम्हारी भावनाए समझती हूँ पर मुझे समझ में नहीं आ रहा की मैं क्या करूं?

रामू काफी देर तक रूबी को चुदवाने के लिए मनाता रहा। पर रूबी डिसाइड नहीं कर पाती। उसे लगता है की वो ऐसा करके लखविंदर को धोखा देगी। इधर रामू को लगता है कल आखिरी दिन है उसके पास। कल कुछ ऐसा किया जाए जिससे रूबी चुदवाने के लिए तड़प उठे। वो डिसाइड करता है की कल वो जैसे-तैसे रूबी को अपने लण्ड के दीदार जरूर करवाएगा। मोटे तगड़े लण्ड को देखकर कोई भी लड़की ज्यादा देर तक उससे चदवाए वगैर नहीं रह सकती।

अगले दिन खाना खाने के बाद हरदयाल शहर ट्रैक्टर लेने चला जाता है, और राम काकरोच वाली स्प्रे वाला प्लान इंप्लिमेंट कर देता है। इससे यह होता है की कमलजीत को फिर से घर के बाहर बैठना पड़ता है। रूबी को तो आज उसको बताना भी नहीं पड़ता, जो कर रहा था रामू कर रहा था।

कमलजीत के बाहर बैठते ही रामू रूबी को उसके कमरे में आकर अपनी बाहों में भर लेता है, चूमने लगता है। रूबी पहले हिचकचाती है पर जल्दी ही उसका साथ देने लगती है। धीरे-धीरे रामू उसके कुर्ते और ब्रा को उतार के फेंक देता है, जिससे दोनों दशहरी आम उसके सामने आ जाते हैं। रामू दोनों उभारों पे टूट पड़ता है। रूबी की निपलें टाइट होने लगती है, और वो खुलकर अपने चूचियां चुसवाने लगती है।
 
कमलजीत के बाहर बैठते ही रामू रूबी को उसके कमरे में आकर अपनी बाहों में भर लेता है, चूमने लगता है। रूबी पहले हिचकचाती है पर जल्दी ही उसका साथ देने लगती है। धीरे-धीरे रामू उसके कुर्ते और ब्रा को उतार के फेंक देता है, जिससे दोनों दशहरी आम उसके सामने आ जाते हैं। रामू दोनों उभारों पे टूट पड़ता है। रूबी की निपलें टाइट होने लगती है, और वो खुलकर अपने चूचियां चुसवाने लगती है।

उत्तेजना बढ़ने से रूबी की हालत पतली होने लगती है, और वो रामू के सिर को पकड़कर अपनी छातियों पे दबाने लगती है। राम उसके उभार चूस-चूसकर लाल कर देता है। अब वो अपने एक हाथ से रूबी की लेगिंग को उतरने की कोशिश करने लगता है, तो रूबी फिर से उसका हाथ पकड़ लेती है।

रामू- क्या हुआ रूबी जी?

रूबी- नहीं रामू प्लीज... वो नहीं करना।

रामू- मेरी जान... मैं कुछ नहीं करूंगा सिर्फ देखना चाहता हूँ। इसके इलावा कुछ नहीं करूंगा।

रूबी- नहीं रामू उसपे लखविंदर का हक है।

रामू- हाँ ठीक है। पर वो हक तो चोदने का है। मैं तो सिर्फ देखना चाहता हूँ।

रूबी- नहीं प्लीज।

राम के समझाने पे भी रूबी तैयार नहीं होती। तो राम चूत को अपने हाथ की उंगलियों से रगड़ने लगता है। रूबी आहें भरने लगती है।

इधर रामू दुबारा से उसके उभारों को अपने होंठों में लेकर चूसना शुरू कर देता है। रूबी दोनों तरफ के हमले से आनंदित हो जाती है। अब राम धीरे-धीरे उसकी लेगिंग में हाथ डालता है और फिर पैंटी में हाथ डालकर चूत की दवार से खेलने लगता है। रूबी और इंतेजार नहीं कर पाती और मदहोशी के आलम में अपनी कमर हिलाने लगती है। उसकी चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी। रामू सही समय देखते हुए उसकी चूत में अपनी उंगली सरका देता है।

रूबी- “आह्ह... आराम से... बहुत मोटी है.."

रूबी की चूत जिसको अभी तक रूबी की पतली उंगलियां लेने की आदत थी, आज रामू की मोटी उंगली से ज्यादा खुल जाती है। रामू धीरे-धीरे अपनी पूरी उंगली उसकी चूत में पेल देता है। उसकी चूत की गर्मी रामू अपनी उंगली पे अच्छी तरह महसूस कर रहा था। रामू अपनी उंगली को ऐसे ही उसकी चूत में पेले रखता है और कोई मूव्मेंट नहीं करता। लेकिन रूबी के उभार लगातार चूसता रहता है।

रूबी अपने उभार चुसवाने का पूरा मजा ले रही थी। पर साथ ही रामू के अगले हमले का इंतेजार भी कर रही थी। धीरे-धीरे रूबी अपने चूतर ऊपर-नीचे करना शुरू कर देती है और सिसकियां लेनी लगती है। उसकी चूत लगातार पानी छोड़ने लगती है।

रामू की उंगली उसके रस में भीग जाती है। रामू उसके उभार चूसना बंद कर देता है और रूबी के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगता है। रूबी जो की अपने चूतरों को हिला रही थी अपनी आँखें खोलती है और राम की आँखों में देखती है, और चूतर हिलाना बंद कर देती है। दोनों एक दूसरे की नजरों को पढ़ने की कोशिश करते हैं। रूबी अपने चेहरे को हिलाती है और चूतरों हिलाकर रामू को आगे बढ़ने का न्योता देती है। रामू समझ जाता है

और अपनी उंगली को उसकी गीली चूत के अंदर-बाहर करना शुरू कर देता है। रूबी भी अपने चूतरों उठा-उठाकर उसका साथ देने लगती है। रूबी का रोम-रोम उत्तेजना से भर जाता है और वो सिसकियां लेने लगती है।

रूबी- “आss आहह... उईई माँ.."

रामू- कैसा लग रहा है मेरी जान?

रूबी- बहुत अच्छा जान।

रामू- तुम्हारी चूत बहुत टाइट है।

रूबी- “हाँ उह्ह... उफफ्फ... मेरी जान्न ई का कर रहे हो... उफफ्फ.."

राम अपनी उंगली की रफ़्तार तेज कर देता है। रूबी अपने कंट्रोल में नहीं रहती। राम तो काम क्रीड़ा में पूरा एक्स पर्ट था।
 
ऐसा अनुभव तो रूबी को लखविंदर के साथ भी नहीं हुआ था। उसका दिल करता है की रामू उसकी चूत का पानी निकाल दे और वो शांत पड़ जाए जल्दी से, वर्ना कहीं वो बहक ना जाए और राम से मिलना कर बैठे।

इधर रामू रूबी के चेहरे को पढ़ लेता है की वो थोड़ी देर ही टिक पाएगी। वो अपनी उंगली को चूत के अंदर-बाहर करना रोक देता है। रूबी जो की चरमसुख की ओर बढ़ रही थी उसकी इस हरकत से चकित रह जाती है, और रामू की तरफ देखने लगती है। रामू भी उसकी नजरों में देखता है और मुश्करा पड़ता है। रूबी की आँखों में देखते रामू धीरे-धीरे अपनी उंगली रूबी की चूत के अंदर-बाहर करता है। रूबी के चूतर भी ऊपर उठकर उसका साथ देते हैं। रामू फिर से रुक जाता है। रूबी दुबारा से उसकी तरफ सवालिया नजरों से देखती है। रामू चार पाँच बार ऐसे करता है और रूबी के चूतर उसकी उंगली की मूटमेंट के साथ ताल मिलाते हैं।

रूबी से और बर्दाश्त नहीं होता- "राम करो ना... मेरा पानी निकल दो प्लीज..."

राम- पहले मेरी बात का जवाब दो मेरी जान।

रूबी- क्या रामू जल्दी पूछो और मुझे शांत करो।

रामू- हमारा मिलन कब होगा?

रूबी- रामू क्या है यह प्लीज... करो।

रामू आगे को झुकता है अपने होंठों से उसके होंठों का चुंबन लेता है और फिर रूबी की आँखों में देखकर बोलता है- "बताओ ना मेरी जान। कब तुम मेरी बनोगी?"

रूबी- प्लीज रामू, जो काम कर रहे हो वो कर दो बाद में देखेंगे। ऐसे ना तड़पाओ।

रामू अपनी उंगली को फिर से उसकी चूत में अंदर-बाहर करता है, और रूबी की कमर उसका पूरा साथ देती है।

रामू- कौन किसे तड़पा रहा है? आप खुद भी तड़प रही हैं और मुझे भी तड़पा रही हैं। बताओ कब मैं आपको भोग सकूँगा?

रूबी- पता नहीं। प्लीज्ज... रामू मुझे शांत कर दो।
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रामू- रूबी जी क्यों अपने आपको बंधन में जकड़े रहना चाहती हो। मुझे अपने प्रेम को इसकी आखिरी मंजिल तक पहुँचाना है।

रूबी से रहा नहीं जाता- “ठीक है पहुँचा लेना। पर अब तो मुझे अधूरा ना छोड़ो.."

रामू- “कब?" कहकर वो उंगली को पूरा बाहर निकालकर जोर से रूबी की चूत में डाल देता है।

जिससे रूबी की हल्की सी चीख निकल जाती है और वो हार मान लेती है। उसे लगता है की राम आज उससे मिलन का पक्का वादा लेकर रहेगा।

रूबी- जल्दी ही, टाइम आने पे।

राम- टाइम कब आएगा मेरी जान?

रूबी- पता नहीं रामू प्लीज... मेरी चूत की आग को शांत करो।

रामू- कर देता हूँ रूबी जी। पर बताओ कब टाइम आएगा?

रूबी- जब कोई घर पे नहीं होगा। बस अब चूत का रस निकाल दो मेरे राजा।

राम उसकी बात से खुश हो जाता है। उसे लगता है की आज भले ही वो रूबी को अपनी ना बना पाए। पर उनका मिलन ज्यादा दूर नहीं है। वो रूबी के होंठों को चूसता है और अपनी उंगली से उसे चोदने लगता है। रूबी की सिसकियां पूरे कमरे में भर जाती है।

रूबी- “उफफ्फ... राज्जा आss और तेज..."
 
रूबी की चूत के पानी से रामू की उंगली पूरी तरह भीग गई थी। जब उसकी उंगली अंदर-बाहर होती तो फच-फच की आवाज आती। रामू अपनी स्पीड तेज कर देता है। इधर रूबी चरमसुख की ओर बढ़ने लगती है। उसका जिश्म अकड़ जाता है। अपने चूतरों को हवा में उठा देती है, और तभी चरमसुख को प्राप्त कर लेती है। धीरे-धीरे रूबी की सांसें नार्मल होने लगती हैं, और वो उठकर राम को चूम लेती है। तभी वो बेड से उठने लगती है तो रामू उसे पकड़कर बैठा देता है। रूबी सवालिया नजरों से उसकी तरफ देखती है।

रामू- आप बहुत खुदगर्ज हो रूबी जी।

रूबी रामू के चेहरे को हाथों में लेती है और उसे चूमती है- “क्या हुआ रामू..'

रामू- आप सिर्फ अपना ही सोचती हो रूबी जी। मेरा नहीं?

रूबी- ऐसा क्यों बोल रहे हो राम?

रामू- रूबी जी क्या आपने यह नहीं सोचा की अगर आपको चरमसुख प्राप्त हुआ है तो मेरा भी मन करता होगा?

रूबी को सच में महसूस होता है की वो तो सिर्फ अपने बारे में ही सोचती है। कितनी खुदगर्ज़ है वो। उसने राम के बारे में तो सोचा ही नहीं कभी।

रूबी- बोलो क्या चाहिए?

रामू- थोड़ा सा मजा हमें भी तो आने दो ना।

रूबी- अच्छा क्या चाहिए?

राम- मेरे लण्ड का भी पानी निकल दो ना।

रूबी- खुद कर लो ना बाथरूम में जाकर।

राम- “नहीं रूबी जी प्लीज... हम आपकी सारी बात मानते हैं। एक बार हमारी बात मान लो ना। बाथरूम में जाकर खुद करना होता तो आपको नहीं बोलते। पर आपके हाथ के स्पर्श को पाने के लिए बेचारा तड़प रहा है..."

और रामू अपनी पैंट उतार देता है।

रूबी की नजरों के सामने रामू का टाइट लण्ड अंडरवेर के अंदर से साफ-साफ दिखाई देता है। इतने बड़े लण्ड को देखकर रूबी की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं।
 
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