Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान - SexBaba
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Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान

hotaks444

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बिन बुलाया मेहमान-1

लेखक- अंजान 


दोस्तो एक और कहानी पेशे खिदमत है आपके लिए तो दोस्तो पढ़ते रहो कमेंट देते रहो 

गगन से मेरी शादी एक साल पहले हुई थी. शादी के बाद कुछ दिन हम गगन के पेरेंट्स के साथ ही रहे भोपाल में. मगर 2 महीने बाद ही हमें देल्ही आना पड़ा क्योंकि गगन का ट्रान्स्फर देल्ही हो गया था. हमने मुखर्जी नगर में एक घर रेंट पर ले लिया और तब से यही पर हैं. मैं भी किसी जॉब की तलाश में हूँ पर कोई आस पास के एरिया में सूटेबल जॉब मिल नही रही और देल्ही जैसे सहर में घर से ज़्यादा दूर जॉब मैं करना नही चाहती.

मैने गगन का नंबर डाइयल किया. फिर से वो आउट ऑफ कवरेज एरिया आया. पता नही कहाँ घूम रहा है गगन. मैं इरिटेट हो कर अपने बेडरूम में आ गयी. मैं बहुत हताश थी. कोई जब भी घूमने का प्रोग्राम बनाओ कुछ अजीब ही होता है मेरे साथ. घर की चार दीवारी ही मेरी दुनिया बन गयी है. मैं इन ख़यालो में खोई थी कि अचानक डोर बेल बाजी. मेरे चेहरे पर ख़ुसी की लहर दौड़ गयी. मगर मैने गगन को गुस्सा दीखाने के लिए अपने चेहरे पर आई ख़ुसी छुपा ली. मैने भाग कर दरवाजा खोला.

गगन सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था.

"थोड़ा और लेट आना चाहिए था तुम्हे ताकि मूवी जाने का स्कोप ही ख़तम हो जाए."

गगन अंदर आया और दरवाजा बंद करके मुझे बाहों में भर लिया. उसके हाथ मेरे नितंबो पर थे.

"क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे."

"बहुत प्यारी लग रही हो इस साड़ी में. क्या इरादा है आज." गगन ने मेरे नितंबो को मसल्ते हुए कहा.

"बाते मत बनाओ मुझे आज हर हाल में मूवी देखनी है." मैने गुस्से में कहा.

"मूवी भी देख लेंगे पहले अपनी खूबसूरत बीवी को तो देख लें."

"हम लेट हो रहे हैं गगन..."

"ओह हां..."गगन ने घड़ी की ओर देखते हुवे कहा. "मैं 2 मिनिट में फ्रेश हो कर आता हूँ. बस 2 मिनिट."

"अगर मेरी मूवी छूट गयी ना तो देखना. मुझसे बुरा कोई नही होगा."

गगन वॉश रूम में घुस गया और 2 मिनिट की बजाए पूरे 5 मिनिट में बाहर निकला.

"सॉरी हनी...चलो चलते हैं."

हमने दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाया ही था कि डोर बेल बज उठी.

"कॉन हो सकता है इस वक्त?" मैने पूछा.

"आओ देखते हैं" गगन ने कहा.

गगन ने दरवाजा खोला.

हमारे सामने एक कोई 40 साल की उमर का हॅटा कट्ट व्यक्ति खड़ा था. उसके कपड़ो से लगता था कि वो देहाती है. गर्दन में एक गमछा डाल रखा था उसने और सर पर पगड़ी थी उसके. बड़ी बड़ी मूच्छे थी उसकी. हम दोनो की तरफ वो कुछ ऐसे मुस्कुरा रहा था जैसे कि बरसो की जान पहचान हो. मुस्कुराते वक्त उसके पीले दाँत सॉफ दीखाई दे रहे थे.

"जी कहिए...क्या काम है."

"अरे गग्गू पहचाना नही का अपने चाचा को."

"जी नही कॉन है आप और आप मेरा नाम कैसे जानते हैं."

"अरे बेटा तुम्हारे पापा तुम्हे काई बार हमारे गाँव लेकर आए थे. तुम बहुत छोटे थे. भूल गये क्या वो आम की बगिया में आम तोड़ना छुप छुप कर. अरे हम तुम्हारे राघव चाचा हैं."

गगन को कुछ ध्यान आया और उसने तुरंत चाचा जी के पाँव छू लिए. मेरे तो सीने पर जैसे साँप ही लेट गया. मुझे मूवी का प्रोग्राम बिगड़ता नज़र आ रहा था.

"चाचा जी ये मेरी बीवी है निधि....निधि पाँव छुओ चाचा जी के."

मेरा उनके पाँव छूने का बिल्कुल मन नही था पर गगन के कहने पर मुझे पाँव छूने पड़े.

"आओ चाचा जी अंदर आओ"

देहाती मेरी तरफ हंसता हुवा अंदर घुस गया. उसकी हँसी कुछ अजीब सी थी.

मुझे कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा है. मैं गुस्से से तिलमिला रही थी. मैं बिना एक शब्द कहे अपने बेडरूम में आ गयी. 2 मिनिट बाद गगन कमरे में आया और बोला,"सॉरी डार्लिंग आज का प्रोग्राम कॅन्सल करना होगा. अब हम घर आए मेहमान को अकेला छ्चोड़ कर तो नही जा सकते ना"

"मुझे पता था पहले से की आज भी कोई ना कोई मुसीबत आ ही जाएगी. वैसे है कॉन ये देहाती. ना हमारी शादी में देखा इसे ना ही कभी घर चर्चा सुनी इसके बारे में. ये तुम्हारा चाचा कैसे बन गया अचानक."
 
"अरे सागा चाचा नही है. डॅडी इसे भाई की तरह ही मानते थे. केयी बार गया हूँ इनके गाँव. इन्हे चाचा ही कहता था बचपन में."

"मतलब बहुत दूर की रिश्तेदारी है...वो भी नाम मात्र की. ये यहाँ करने क्या आया है."

"उसके बाल झाड़ रहे हैं. उसी के इलाज के लिए देल्ही आया है. किसी ने इन्हे हमारा पता दे दिया इसलिए यहाँ चला आए"

"इसी वक्त आना था इनको...सारा मूड कराब कर दिया मेरा. कब जाएगा ये वापिस."

"ये पूछना अच्छा नही लगेगा निधि....जस्ट रिलॅक्स. घर आए मेहमान की इज़्ज़त करनी चाहिए. मैं उनके पास बैठता हूँ तुम चाय पानी का बंदोबस्त करो."

"मैं कुछ नही करूँगी"

"देख लो तुम्हारी अच्छी बहू की इमेज जो तुमने घर पर बनाई थी वो खराब हो जाएगी. इनका डॅडी से मिलने जाने का भी प्लान है." गगन ने मुझे बाहों में भर कर कहा.

"ठीक है ठीक है जाओ तुम मैं चाय लाती हूँ." मैने खुद को गगन की बाहों से आज़ाद करते हुए कहा.

मैं चाय और बिस्कट ले कर गयी तो वो देहाती तुरंत मुझे घूरते हुए बोला,

"बड़ी सुंदर बहू मिली है तुम्हे बेटा. भगवान तुम दोनो की जोड़ी सलामत रखे."

"शुक्रिया चाचा जी. जो कोई भी निधि को देखता है यही कहता है." गगन ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

"आओ बेटा तुम भी बैठो....तुम्हारी शादी में नही आ पाया था. उस वक्त एक मुसीबत में फँसा हुआ था वरना मैं ज़रूर आता." उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

"मुझे काम है आप दोनो बाते कीजिए." मैं कह कर वहाँ से चल दी.

"बड़ी शर्मीली दुल्हनिया है तुम्हारी. अच्छी बात है. बेटा बहुत थक गया हूँ. नहा धो कर आराम करना चाहता हूँ."

"बिल्कुल चाचा जी. आप नहा लीजिए. तब तक खाना तैयार हो जाएगा. आप खा कर आराम कीजिएगा."

सोचा था कि आज बाहर खाएँगे मगर इस बिन बुलाए मेहमान के कारण मुझे रसोई में लगना पड़ा.

जब मैं खाना सर्व कर रही थी डाइनिंग टेबल तो राघव चाचा मुझे घूर कर देख रहा था. उसकी नज़रे मुझे ठीक नही लग रही थी.

?अरे तुम भी आ जाओ ना.? गगन ने कहा.

हां बेटा तुम भी आ जाओ...? चाचा ने घिनोनी सी हँसी हंसते हुए कहा.

?नही आप लोग खाओ मैं बाद में खा लूँगी. अभी मुझे भूक नही है.? मैं कह कर किचन में आ गयी.

मैने चुपचाप किचन में ही खाना खा लिया और खाना खा कर नहाने चली गयी.

बाथरूम में चाचा ने हर तरफ गीला कर रखा था.

?बदतमीज़ कही का. हर तरफ पानी बिखेर दिया. फर्श पर साबुन भी पड़ा हुआ है. कोई गिर गया तो.? मैं बड़बड़ाई.

नहा कर चुपचाप मैं बेडरूम में घुस गयी. गगन ने चाचा के सोने का इंतज़ाम दूसरे कमरे में कर दिया था.

मैं गुस्से में थी और चुपचाप आकर बिस्तर पर लेट गयी थी. मेरी कब आँख लग गयी मुझे पता ही नही चला.

मेरी आँख तब खुली जब मुझे अपनी चूचियों पर कसाव महसूस हुवा. मैने आँखे खोल कर देखी तो पाया कि गगन मेरे उभारों को मसल रहा है.

?छोड़ो मुझे नींद आ रही है.?

?आओ ना आज बहुत मूड है मेरा.?

?पर मेरा मूड नही है. तुम्हारे चाचा ने मेरा सारा मूड खराब कर दिया. इन्हे जल्दी यहा से दफ़ा करो.?

?छ्चोड़ो भी निधि ये सब. लाओ इन्हे चूमने दो.? गगन ने मेरे उभारों को मसल्ते हुए कहा.
 
मैने कुछ नही कहा और अपनी आँखे बंद कर ली. गगन ने मेरे उभार बाहर निकाल लिए और उन्हे चूमने लगा. मैं खोती चली गयी. उसने मुझे बहकते देख मेरा नाडा खोल कर मेरी टांगे अपने कंधे पर रख ली और एक झटके में मुझ में समा गया. मेरे मूह से सिसकियाँ निकलने लगी. मैं बहुत धीरे धीरे आवाज़ कर रही थी क्योंकि अब घर में हम अकेले नही थे. जब गगन ने स्पीड बहुत तेज बढ़ा दी तो मैं खुद को रोक नही पाई और मैं ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी

?आहह....गगन...यस.....? गगन ने मेरे मूह पर हाथ रख लिया और बोला.

?ष्ह्ह क्या कर रही हो. चाचा जी को सब सुन रहा होगा.?

?सॉरी... सब तुम्हारी ग़लती है. मुझे पागल बना देते हो तुम.?

कुछ देर और गगन मेरे अंदर अपने लंड को बहुत तेज़ी से रगड़ता रहा और फिर अचानक मेरे उपर निढाल हो गया. मेरा भी ऑर्गॅज़म उसी वक्त हो गया. कुछ देर हम यू ही पड़े रहे. कब हमें नींद आ गयी पता ही नही चला.

कोई 12 बजे मेरी आँख खुल गयी. गगन मेरे बाजू में पड़ा खर्राटे भर रहा था. मुझे बहुत ज़ोर का प्रेशर लगा हुआ था. मैने कपड़े पहने बेडरूम से बाहर आ कर दबे पाँव टाय्लेट में घुस गयी.

जब मैं बाहर निकली तो मेरे होश उड़ गये. टाय्लेट के दरवाजे पर चाचा खड़ा था.

?आप यहाँ?? मैने गुस्से में कहा.

?माफ़ करना बेटी...मुझे लगा कि गगन अंदर है. इसलिए यही खड़ा हो गया.? चाचा ने कहा.

मैं नाक...मूह सिकोड कर वहाँ से चल दी.

?आआहह....खि..खि..खि? चाचा ने हंसते हुए कहा ओए टाय्लेट में घुस गया.

क्रमशः…………………………………
 
बिन बुलाया मेहमान-2

गतान्क से आगे……………………

मैने पीछे मूड कर देखा तो मुझे टाय्लेट का बंद दरवाजा ही मिला.

?हे भगवान. मतलब इसने सब सुन लिया. और बेशर्मी तो देखो...कैसे मज़ाक उड़ा रहा था. मुझे ये बात गगन को बतानी होगी.?

अगली सुबह मैं गगन से कोई बात नही कर पाई क्योंकि वो बहुत जल्दी में था ऑफीस जाने के लिए.

जाते जाते गगन ने चाचा से पूछा, "चाचा जी आप तो हॉस्पिटल कल जाएँगे ना."

"हां बेटा आज आराम ही करूँगा. कल जाउन्गा हॉस्पिटल."

मैं अपने दाँत भींच कर रह गयी. हमारे घर में हमने एक काम वाली लगा रखी थी. वो रोज 10 बजे आकर 11 बजे तक सफाई करके चली जाती थी.

उसके जाने के बाद कोई 12 बजे जब मैं किचन में लंच की तैयारी में लग गयी.

गगन तो टिफिन लेकर जाते थे सुबह. लंच पर वो घर नही आते थे. मुझे बस अपने और देहाती चाचा के लिए बनाना था. मैने चाचा से उसकी पसंद पुच्छनी ज़रूरी नही समझी. मैने सोचा बिन बुलाए मेहमान को जितना कम भाव दो उतना ही अच्छा होता है.

लंच बनाने के बाद में टाय्लेट में गयी तो टाय्लेट सीट पर बैठते वक्त मेरा ध्यान टाय्लेट टॅंक पर रखी एक डाइयरी पर गया. मैने डाइयरी उठाई और सीट पर बैठ गयी. डाइयरी खोलते ही जो मैने पढ़ा मेरे होश उड़ गये.

पहले पेज पर बड़े बड़े अक्षरो में लिखा था--- "कैसे, कब और कहाँ मैने किस की चूत मारी"

मैने ये पढ़ते ही डाइयरी बंद कर दी. मैं सोच में पड़ गयी की ये किसकी डाइयरी है. लिखाई गगन की नही थी. तभी मेरा ध्यान चाचा पर गया. मैने मन ही मन कहा, "कमीना कही का. देखने से ही लफंगा लगता है."

पर मुझे ना जाने क्या हुआ मैने डाइयरी का पन्ना पलटा और पढ़ना शुरू किया. मुझे कूरीोसिटी हो रही थी उसकी करतूतों को जानने की.

डाइयरी से---------

मुझे आज भी याद है कैसे मैने पहली बार चूत मारी थी. उस वक्त मैं कोई 19 साल का था. मुझे ही पता है कितना तड़प्ता था मैं अपने लंड को किसी की चूत में डालने के लिए. बहुत कोशिश की मैने यहा वहाँ मगर कोई फ़ायदा नही हुआ. जब कोई बात बनती नही दिखी तो मेरा ध्यान मेरी भाभी पर गया. जब मेरा ध्यान भाभी पर गया तो मैने उन्हे ध्यान से देखना शुरू किया. उनकी उमर उस वक्त कोई 30 या 31 की थी. मैने काई बार उन्हे सोच सोच कर मूठ मारी.

भाभी बहुत लाड करती थी मेरा. कभी कभी लाड़ में मुझे गले भी लगा लेती थी. दोपहर को जब भाभी सो जाती थी तो मैं छुप छुप कर उसे देखता था.

भैया तो खेत में रहते थे सारा दिन. मेरे पास अच्छा मोका था. पर समझ नही आता था कि कैसे भाभी को पटाया जाए. मैने एक प्लान बनाया. भाभी घर से बाहर गयी हुई थी. उन्हे दुकान से कुछ समान लाना था. जब मैने उन्हे आते देखा तो मैं अपने कमरे में घुस गया और अपना लंड बाहर निकाल कर उसे हिलाने लगा. साथ ही मुँह कुछ अश्लील बाते भी बोलनी थी. जब भाभी कमरे के पास से गुज़री तो मैने बोलना शुरू किया.

"आहह मेरा लंड कब तक तरसेगा चूत के लिए. मैं कब तक यू ही हाथ से हिलाता रहूँगा. काश आज कोई चूत मिल जाए मुझे जिसमे मैं अपना ये लंड घुसा सकूँ."

भाभी ये सुनते ही मेरे कमरे के बाहर रुक गयी. मैने तुरंत अपना लंड अंदर किया और दरवाजा खोल कर बाहर आ गया. मैने नाटक करते हुए कहा, ?ओह भाभी आप. आप कब आई.?

"किसने सिखाया तुम्हे ये सब?" भाभी ने पुछा.

"क्या मतलब मैं कुछ समझा नही." मैने कहा.

"मैने सब सुन लिया है. किसने सिखाया तुम्हे ये सब."

"भाभी माफ़ कर दो दुबारा ऐसा नही करूँगा. मेरी बहुत इच्छा हो रही थी इसलिए वो सब बोल रहा था."

"अभी से इच्छा होने लगी तुम्हे?"

"भाभी भैया को मत बोलना नही तो वो मारेंगे."

"किसने सिखाया तुम्हे ये सब."

"पीछले हफ्ते दूसरे गाँव से एक मेहमान आया था मेरे दोस्त के घर. उसी ने बताया कि चूत में लंड डालने से बहुत मज़ा आता है. पर मुझे समझ नही आ रहा कि मैं किसकी चूत में लंड डालूं." मैने हिम्मत करके बोल ही दिया क्योंकि मुझ पर हवस सवार थी.

ये सुनते ही भाभी ने अपने मूह पर हाथ रख लिया.
 
"भाभी क्या आप अपनी चूत में डलवा सकती हैं मेरा. बस एक बार."

"चुप रहो...ऐसी बाते नही करते."

"कोई बात नही मैं कही और तलाश करता हूँ." कह कर मैं बाहर आ गया.

दोपहर को भाभी अपने कमरे में सो रही थी तो मैं चुपचाप उनके कमरे में घुस गया और उनके पीछे लेट गया.

"राघव क्या कर रहे हो तुम यहाँ."

"भाभी दे दो ना एक बार. मैं रोज आपको सोच सोच कर मूठ मारता हूँ."

"तो मारते रहो ना. किसने रोका है."

"नही अब मुझे असली में मज़ा लेना है. बस एक बार डलवा लो ना चूत में."

"तुम्हारे भैया को पता चला ना तो मार डालेंगे मुझे."

मुझे बात कुछ बनती नज़र आ रही थी. क्योंकि भाभी ने सॉफ सॉफ मना नही किया.

मैने भाभी की गांद को थाम लिया और उसे सहलाने लगा.

"बहुत मस्त गांद है आपकी भाभी."

"हट पागल कैसी बाते करते हो. कुछ नही मिलेगा तुम्हे. कही और ट्राइ करो."

मैं भाभी के उपर आ गया और उनकी चुचियों को मसल्ने लगा. मोका देख कर मैने भाभी के होंटो को भी चूम लिया.

"दरवाजा खुला पड़ा है तुम मरवाओगे मुझे."

"मैं बंद कर देता हूँ. वैसे भी भैया तो शाम को ही आएँगे." मैने उठ कर दरवाजा बंद कर दिया और वापिस भाभी पर चढ़ गया. भाभी ने सलवार कमीज़ पहन रखी थी. मैने ज़्यादा देर करनी ठीक नही समझी और भाभी का नाडा खोलने लगा.
 
"क्या कर रहे हो रुक जाओ. ये सब ठीक नही है." भाभी गिड़गिडाई

पर मैं रुकने वाला नही था. मैने नाडा खोल कर सलवार नीचे सरका कर टाँगो से उतार दी. मैने भी अपनी पॅंट उतार दी और भाभी के उपर आ गया. मैने कभी चूत देखी नही थी इसलिए नीचे झुक कर भाभी की चूत को निहारने लगा.

चूत पर हल्के हल्के बाल थे. मैने अपने लंड को हाथ में लिया और भाभी की चूत पर रगड़ने लगा.

"मेरे प्यारे लंड ये है चूत जिसके अंदर तुझे घुसना है."

भाभी बहकने लगी थी और उन्होने अपनी आँखे बंद कर ली थी. अब मैं पूरी आज़ादी से भाभी को यहाँ वहाँ छू रहा था. मुझसे रुका नही जा रहा था. मैने लंड हाथ में लिया और भाभी की चूत में डालने लगा. पर बहुत कॉसिश करने पर भी वो अंदर नही गया.

भाभी मेरे उपर हँसने लगी. "हहहे... ऐसे नही जाएगा ये अंदर."

"मेरी मदद करो ना फिर...पहली बार चूत देखी है और पहली बार ही चूत मारने जा रहा हूँ."

भाभी ने हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को थाम लिया. लंड को हाथ में लेते ही वो चिल्ला उठी, "हाई राम ये तो बहुत बड़ा है."

"क्यों मज़ाक करती हो भाभी. क्या भैया के लंड से भी बड़ा है."

"हां उनके उस से तो ये बहुत बड़ा है."

"ऐसा कैसे हो सकता है भाभी. मैं तो भैया से छोटा हूँ."

"मुझे नही पता. पर इतना बड़ा मैने आज तक नही देखा."न भाभी ने मेरे लंड को देखते हुए कहा.

"मतलब आपने भैया के लंड के अलावा भी दूसरो के लंड देखे हैं."

"हां शादी से पहले 2 लड़को के देखे थे. उन दोनो के तुम्हारे भैया से बड़े थे पर तुम्हारा तो कोई मुक़ाबला नही. ये तो राक्षस है."

"वो सब तो ठीक है अब इसे अंदर तो ले लो भाभी."

"मुझे डर लग रहा है. इतना बड़ा मैं नही ले सकती. मुझे माफ़ कर दो. मैं हाथ से हिला देती हूँ."

"नही हाथ से तो मैं रोज हिला रहा हूँ. आज मुझे चूत के अंदर डालना है इसे." मैने लंड को फिर से भाभी की चूत में डालने की कॉसिश की पर फिर से मुझे रास्ता नही मिला.

मैने भाभी से बहुत रिक्वेस्ट की तो उन्होने दुबारा मेरे लंड को हाथ में लिया और अपनी चूत के छेद पर रख दिया. जब उन्होने मेरे लंड को अपनी चूत के छेद पर रखा तो मुझे समझ में आया कि मैं क्यों नही घुसा पा रहा था. मैं तो हर वक्त उस छेद से उपर कॉसिश कर रहा था.

मैने ज़ोर का धक्का मारा और भाभी की चीन्ख निकल गयी.

"ऊओह....राघव निकाआअल बाहर बहुत दर्द हो रहा है."

पर मेरे लंड को पहली बार चूत मिली थी. और बड़ी मुस्किल से चूत में घुसने का रास्ता मिला था. मेरा बाहर निकालने का कोई इरादा नही था. मैने एक और धक्का मारा और थोड़ा और लंड अंदर सरक गया.
 
"नही राघव... आहह बहुत दर्द हो रहा है."

मुझे कुछ सुनाई नही दे रहा था. मैने धीरे धीरे अपना पूरा लंड भाभी की चूत में उतार दिया और फिर बिना रुके धक्के मारने लगा. मैने सुबह मूठ मारी थी इसलिए जल्दी झड़ने की चिंता नही थी. मेरे लंड को चूत के अंदर होने का बहुत अच्छा अहसास हो रहा था. मैं पूरा बाहर निकाल कर वापिस अंदर डाल रहा था. भाभी अब शिसकिया ले रही थी मेरे नीचे पड़ी हुई. कोई आधे घंटे बाद मैने अपना पानी छ्चोड़ दिया भाभी के अंदर. इस दौरान भाभी काई बार झाड़ चुकी थी. जब मैने अपना लंड भाभी की चूत से बाहर निकालने की कोशिस की तो भाभी ने मुझे जाकड़ लिया.

"राघव इतना मज़ा कभी नही आया."

"ये मज़ा आपको रोज मिलेगा भाभी. बस भैया को पता ना चलने पाए."

इस तरह मेरे प्यासे लंड को पहली चूत मिली. भाभी से ही मुझे पता चला कि मेरा लंड बहुत बड़ा है. ये बात जान कर मुझे खुद पर बहुत गर्व हुआ था.

डायरी के ये 2 पेज समाप्त करके जब मैं हटी तो मेरे माथे पर पसीने की बूंदे थी.

क्रमशः…………………………………
 
बिन बुलाया मेहमान-3

गतान्क से आगे……………………

जींदगी में पहली बार मैने ऐसा कुछ पढ़ा था. मेरी योनि गीली हो गयी थी. फिर अचानक मुझे गुस्सा आ गया कि इस देहाती चाचा ने ये डाइयरी टाय्लेट में क्यों रख छ्चोड़ी. मैं डाइयरी टॅंक पर ही रख कर बाहर आ गयी. मैं किचन की तरफ जा रही थी तो चाचा ने मुझे पीछे से आवाज़ दी, ?बेटा मेरी एक डाइयरी नही मिल रही. तुमने देखी क्या कही. ब्लू रंग का कवर है उसका.?

"मैने नही देखी..." कह कर मैं किचन में आ गयी. मैने चाचा के लिए डाइनिंग टेबल पर खाना रख दिया और अपना खाना लेकर अपने बेडरूम में आ गयी.

मैने अपने बेडरूम में ही खाना खाया और खाना खा कर सोने के लिए लेट गयी. रोजाना लंच के बाद मुझे सोने की आदत थी. मगर आज आँखो से नींद गायब थी. डाइयरी में जो कुछ मैने पढ़ा वो मेरे दिमाग़ में घूम रहा था.

"कैसे कोई इतनी गंदी बाते लिख सकता है. ये देहाती बहुत गंदा है. अपने मन की गंदगी निकाल रखी है इसने डाइयरी में. पर इसने वो डाइयरी टाय्लेट में क्यों रख छोड़ी थी. कही वो उसे मुझे तो पढ़ाना नही चाहता."

ये सोचते ही मेरी आँखो में खून उतर आया. मैं ये सोच कर गुस्से से आग बाबूला हो गयी कि उसकी हिम्मत कैसे हुई वो डाइयरी मेरे लिए टाय्लेट में रखने की.

फिर मुझे खुद पर गुस्सा आया कि मैने उसकी डाइयरी के वो 2-3 पन्ने क्यों पढ़े. सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी.

अचानक मेरे बेडरूम पर हुई दस्तक से मेरी आँख खुल गयी. मैने दरवाजा खोला तो मेरे सामने चाचा खड़ा मुस्कुरा रहा था.

"कहिए क्या बात है?" मैने पुचछा.

"कुछ नही निधि बेटी. मुझे चाय की इच्छा हो रही थी. सोचा तुम्हे बता दूं. कही तुम सो तो नही रही."

"जी हां मैं सो रही थी."मैने गुस्से में कहा.

"ओह..फिर तो मैने ग़लती कर दी तुम्हे उठा कर."

"घर में दूध नही है. इसलिए चाय नही बना सकती आपके लिए अभी."

"मुझे काली चाय पसंद है. दूध वाली मैं पीता भी नही."चाचा ने घिनोनी हँसी के साथ कहा.

मन तो कर रहा था कि अभी उसके मूह पर एक थप्पड़ जड़ दूं पर मैं चुप रही. घर आए मेहमान की बेज्जति नही करना चाहती थी मैं.

"ठीक है आप थोड़ा इंतेज़ार कीजिए मैं चाय बनाती हूँ." मैने कहा.

चाचा मूड कर जाने लगा मगर जाते जाते अचानक रुक गया और वापिस मेरी तरफ मूड कर बोला, "अरे हां निधि बेटी वो डाइयरी मुझे मिल गयी थी. टाय्लेट में भूल गया था उसे. तुमने तो देखी होगी वहाँ. कही पढ़ तो नही ली."

"म...म...मैं क्यों पढ़ूंगी आपकी डाइयरी. मैने टाय्लेट में कोई डाइयरी नही देखी थी." चाचा के अचानक पूछने पर मैं हड़बड़ा गयी थी.

"हां बेटी किसी की निजी डाइयरी पढ़नी भी नही चाहिए." चाचा कह कर चला गया.

मैं अपने पाँव पटक कर रह गयी.

मैने गुस्से में काली चाय बना कर चाचा को उनके कमरे में जाकर थमा दी, "ये लीजिए आपकी चाय."

"अरे बहुत जल्दी बना दी. घर के कामों में माहिर हो तुम निधि बेटी. अच्छी बात है. गगन और तुम्हारी जोड़ी बहुत अच्छी है."

"दोपहर को मैं सोई होती हूँ. प्लीज़ दुबारा मेरा दरवाजा मत खड़काना"

"हां हां बेटी आगे से ध्यान रखूँगा. बेटी ये लो मेरी डाइयरी. इसमे मेरे जीवन की कुछ घटनाओ का विवरण है. पढ़ लो और पढ़ कर वापिस दे देना."चाचा ने गंदी सी हँसी के साथ कहा.

"जी नही मुझे कोई शौक नही है आपके जीवन के बारे में जानने का. अपनी डाइयरी अपने पास रखिए." कह कर मैं बाहर आ गयी. मैं गुस्से से तिलमिला रही थी.

"हिम्मत तो देखो इस देहाती की. मुझे अपनी अश्लील डायरी पढ़ने को दे रहा है. चाहता क्या है ये. शाम को मुझे गगन से मुझे बात करनी ही होगी. ऐसे व्यक्ति का हमारे घर में रहना ठीक नही है."

.......शाम को मैने गगन से कहा कि चाचा को जल्दी से यहाँ से रफ़ा दफ़ा करो. मैने ये भी बोल दिया कि उसकी नज़र ठीक नही है.

"अरे निधि चाचा जी भले इंसान हैं. पता है बाल ब्रह्म चारी हैं वो. आज तक उन्होने शादी भी नही की जबकि बहुत रिश्ते आए थे उन्हे."

"बाल ब्रह्म चारी किसने कहा तुम्हे ये."

चाचा जी ने ही बताया. ऑफीस से आकर मैं उनके कमरे में गया था तो उनसे बात हुई थी."

"उनकी डाइयरी पढ़ो तुम्हे सब पता चल जाएगा कि कितना बड़ा बाल ब्रह्म चारी है वो." मैने मन ही मन कहा.
 
नेक्स्ट डे:

अगले दिन गगन ऑफीस चले गये और चाचा भी अपना चेक अप कराने हॉस्पिटल चला गया. घर के सभी काम निपटा कर मैं बेडरूम में रेस्ट कर रही थी तो अचानक मेरा ध्यान चाचा की डाइयरी पर गया.

"देखूं तो सही आगे क्या लिखा है उस देहाती ने."मगर अगले ही पल दूसरा विचार आया, "नही नही मुझे ऐसी गंदी बाते नही पढ़नी चाहिए."

फिर मैने निर्णय लिया कि मैं बालिग हूँ अगर ये सब पढ़ भी लूँ तो क्या फरक पड़ेगा. देखूं तो सही इस चाचा ने और क्या गुल खीलाए हैं.

मैं उठ कर चाचा के कमरे में आ गयी. मैने हर तरफ डाइयरी ढुंडी पर मुझे कही नही मिली. तभी मुझे ख्याल आया कि कही उसने डाइयरी टाय्लेट में तो नही रख छ्चोड़ी फिर से. मैं टाय्लेट में आई तो मेरा शक सही निकला. डाइयरी को वहाँ देखते ही मेरा चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

"जान बुझ कर मेरे लिए यहा डाइयरी छ्चोड़ गया वो. बहुत बेशरम है ये देहाती."

डाइयरी ले कर मैं बेडरूम में आ गयी और लेट कर आगे के पन्ने पढ़ने लगी.

डाइयरी के पन्नो से:

कैसे मेरे लंड को पहली गांद मिली: हुआ यू कि एक दिन दोपहरी को मैं भैया से मिलने खेत जा रहा था. रास्ते में खेत ही खेत थे दोनो तरफ. अचानक मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी. आवाज़ सुनते भी मैं रुक गया. मुझे अहसास हुआ कि हो ना हो खेतों में ज़रूर कोई रास लीला चल रही है. मैं दबे पाँव आवाज़ की दिसा में चल दिया. मैं वहाँ पहुँचा तो दंग रह गया.

बब्बन जो कि सरपंच का नौकर था उसकी बेटी कोयल को ठोक रहा था. कोयल कुत्तिया बनी हुई थी और बब्बन उसकी चूत में ज़ोर ज़ोर से धक्के मार रहा था. ये देखते ही मैं आग बाबूला हो गया. कोयल को कयि बार मैने पटाने की कोसिस की थी. पर उसने हर बार मेरा मज़ाक उड़ाया था. कहती थी शीसे में शकल देखो जाकर. मुझसे रहा नही गया और आगे बढ़कर बब्बन को ज़ोर से धक्का दिया.

"पीछे हट अब मैं लूँगा इसकी." मैं चिल्लाया.

"राघव ये क्या मज़ाक है."बब्बन ने कहा.

"बब्बन चुप रह तू मुझे इस से हिसाब बराबर करना है." मैने कोयल की गांद को कश कर थाम लिया. कोयल घबराई हुई थी. वो तुरंत उठ कर खड़ी हो गयी और बोली, "दफ़ा हो जा यहाँ से."

"हां चला जाता हूँ और तेरे बापू को यहाँ की तेरी सारी करतूत बताता हूँ. बब्बन तो मरेगा ही तू भी नही बचेगी."मैं कह कर चल दिया.

"रूको राघव..."बब्बन ने आवाज़ दी.

मैं रुक गया. "बोलो क्या बात है."

"सरपंच को कुछ मत बताना."बब्बन गिद्गिडाया.

"ठीक है नही बताउन्गा. कोयल को बोल चुपचाप मेरे आगे झुक जाए आकर."

"मैं ऐसा हरगिज़ नही करूँगी"कोयल चिल्लाई.

"ठीक है फिर मैं चला तेरे बापू के पास."

"रूको" बब्बन और कोयल दोनो चिल्लाए.

मैं रुक गया और वापिस कोयल के पास आ गया, "चल झुक मेरे आगे."

कोयल ने बब्बन की तरफ देखा और मेरे आगे झुक गयी. जैसे वो बब्बन के लिए कुतिया बनी हुई थी वैसे ही मेरे लिए भी बन गयी. मैने उसकी गांद पर ज़ोर से तमाचा मारा.

"ऊऊहह...बब्बन इसे बोल दो कि दुबारा ऐसा ना करे."

"आराम से कर ना राघव." बब्बन गिड्गिडाया.

मैने उनकी बात अनसुनी करके कोयल की गांद पर फिर से ज़ोर से चाँटा मारा. उसकी गांद लाल हो गयी.
 
"तूने कभी मारी है क्या इसकी गान्ड?"मैने बब्बन की ओर देखते हुए कहा.

"नही..."बब्बन ने जवाब दिया.

"आज मैं मारूँगा हहहे इसकी गांद." मैने कहा.

"नही मुझे वहाँ से अच्छा नही लगता." कोयल गिड्गिडाइ

"चुप कर. तेरी पसंद पूछी क्या किसी ने"

मैने अपना लंड बाहर निकाला और उसे कोयल की गान्ड पर रगड्ने लगा.

"अंदर मत डालना. मुझे अच्छा नही लगता."कोयल ने पीछे मूड कर कहा. मगर जब उसकी नज़र मेरे लंड पर पड़ी तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी.

"हे भगवान ये तो बहुत बड़ा है. किसी का इतना बड़ा कैसे हो सकता है." कोयल ने हैरानी में कहा.

बब्बन भी आँखे फाडे मेरे लंड को देख रहा था.

मैने अपने लंड पर बहुत सारा थूक लगा लिया और कोयल की गांद को फैला कर लंड उसके छेद पर रख दिया.

"नही जाएगा ये अंदर. जब बब्बन का नही गया तो इतना बड़ा कैसे जाएगा." कोयल गिड़गिडाई

मैने सवालिया नज़रो से बब्बन की तरफ देखा.

क्रमशः…………………………………
 
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