hotaks444
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बिन बुलाया मेहमान-1
लेखक- अंजान
दोस्तो एक और कहानी पेशे खिदमत है आपके लिए तो दोस्तो पढ़ते रहो कमेंट देते रहो
गगन से मेरी शादी एक साल पहले हुई थी. शादी के बाद कुछ दिन हम गगन के पेरेंट्स के साथ ही रहे भोपाल में. मगर 2 महीने बाद ही हमें देल्ही आना पड़ा क्योंकि गगन का ट्रान्स्फर देल्ही हो गया था. हमने मुखर्जी नगर में एक घर रेंट पर ले लिया और तब से यही पर हैं. मैं भी किसी जॉब की तलाश में हूँ पर कोई आस पास के एरिया में सूटेबल जॉब मिल नही रही और देल्ही जैसे सहर में घर से ज़्यादा दूर जॉब मैं करना नही चाहती.
मैने गगन का नंबर डाइयल किया. फिर से वो आउट ऑफ कवरेज एरिया आया. पता नही कहाँ घूम रहा है गगन. मैं इरिटेट हो कर अपने बेडरूम में आ गयी. मैं बहुत हताश थी. कोई जब भी घूमने का प्रोग्राम बनाओ कुछ अजीब ही होता है मेरे साथ. घर की चार दीवारी ही मेरी दुनिया बन गयी है. मैं इन ख़यालो में खोई थी कि अचानक डोर बेल बाजी. मेरे चेहरे पर ख़ुसी की लहर दौड़ गयी. मगर मैने गगन को गुस्सा दीखाने के लिए अपने चेहरे पर आई ख़ुसी छुपा ली. मैने भाग कर दरवाजा खोला.
गगन सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था.
"थोड़ा और लेट आना चाहिए था तुम्हे ताकि मूवी जाने का स्कोप ही ख़तम हो जाए."
गगन अंदर आया और दरवाजा बंद करके मुझे बाहों में भर लिया. उसके हाथ मेरे नितंबो पर थे.
"क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे."
"बहुत प्यारी लग रही हो इस साड़ी में. क्या इरादा है आज." गगन ने मेरे नितंबो को मसल्ते हुए कहा.
"बाते मत बनाओ मुझे आज हर हाल में मूवी देखनी है." मैने गुस्से में कहा.
"मूवी भी देख लेंगे पहले अपनी खूबसूरत बीवी को तो देख लें."
"हम लेट हो रहे हैं गगन..."
"ओह हां..."गगन ने घड़ी की ओर देखते हुवे कहा. "मैं 2 मिनिट में फ्रेश हो कर आता हूँ. बस 2 मिनिट."
"अगर मेरी मूवी छूट गयी ना तो देखना. मुझसे बुरा कोई नही होगा."
गगन वॉश रूम में घुस गया और 2 मिनिट की बजाए पूरे 5 मिनिट में बाहर निकला.
"सॉरी हनी...चलो चलते हैं."
हमने दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाया ही था कि डोर बेल बज उठी.
"कॉन हो सकता है इस वक्त?" मैने पूछा.
"आओ देखते हैं" गगन ने कहा.
गगन ने दरवाजा खोला.
हमारे सामने एक कोई 40 साल की उमर का हॅटा कट्ट व्यक्ति खड़ा था. उसके कपड़ो से लगता था कि वो देहाती है. गर्दन में एक गमछा डाल रखा था उसने और सर पर पगड़ी थी उसके. बड़ी बड़ी मूच्छे थी उसकी. हम दोनो की तरफ वो कुछ ऐसे मुस्कुरा रहा था जैसे कि बरसो की जान पहचान हो. मुस्कुराते वक्त उसके पीले दाँत सॉफ दीखाई दे रहे थे.
"जी कहिए...क्या काम है."
"अरे गग्गू पहचाना नही का अपने चाचा को."
"जी नही कॉन है आप और आप मेरा नाम कैसे जानते हैं."
"अरे बेटा तुम्हारे पापा तुम्हे काई बार हमारे गाँव लेकर आए थे. तुम बहुत छोटे थे. भूल गये क्या वो आम की बगिया में आम तोड़ना छुप छुप कर. अरे हम तुम्हारे राघव चाचा हैं."
गगन को कुछ ध्यान आया और उसने तुरंत चाचा जी के पाँव छू लिए. मेरे तो सीने पर जैसे साँप ही लेट गया. मुझे मूवी का प्रोग्राम बिगड़ता नज़र आ रहा था.
"चाचा जी ये मेरी बीवी है निधि....निधि पाँव छुओ चाचा जी के."
मेरा उनके पाँव छूने का बिल्कुल मन नही था पर गगन के कहने पर मुझे पाँव छूने पड़े.
"आओ चाचा जी अंदर आओ"
देहाती मेरी तरफ हंसता हुवा अंदर घुस गया. उसकी हँसी कुछ अजीब सी थी.
मुझे कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा है. मैं गुस्से से तिलमिला रही थी. मैं बिना एक शब्द कहे अपने बेडरूम में आ गयी. 2 मिनिट बाद गगन कमरे में आया और बोला,"सॉरी डार्लिंग आज का प्रोग्राम कॅन्सल करना होगा. अब हम घर आए मेहमान को अकेला छ्चोड़ कर तो नही जा सकते ना"
"मुझे पता था पहले से की आज भी कोई ना कोई मुसीबत आ ही जाएगी. वैसे है कॉन ये देहाती. ना हमारी शादी में देखा इसे ना ही कभी घर चर्चा सुनी इसके बारे में. ये तुम्हारा चाचा कैसे बन गया अचानक."
लेखक- अंजान
दोस्तो एक और कहानी पेशे खिदमत है आपके लिए तो दोस्तो पढ़ते रहो कमेंट देते रहो
गगन से मेरी शादी एक साल पहले हुई थी. शादी के बाद कुछ दिन हम गगन के पेरेंट्स के साथ ही रहे भोपाल में. मगर 2 महीने बाद ही हमें देल्ही आना पड़ा क्योंकि गगन का ट्रान्स्फर देल्ही हो गया था. हमने मुखर्जी नगर में एक घर रेंट पर ले लिया और तब से यही पर हैं. मैं भी किसी जॉब की तलाश में हूँ पर कोई आस पास के एरिया में सूटेबल जॉब मिल नही रही और देल्ही जैसे सहर में घर से ज़्यादा दूर जॉब मैं करना नही चाहती.
मैने गगन का नंबर डाइयल किया. फिर से वो आउट ऑफ कवरेज एरिया आया. पता नही कहाँ घूम रहा है गगन. मैं इरिटेट हो कर अपने बेडरूम में आ गयी. मैं बहुत हताश थी. कोई जब भी घूमने का प्रोग्राम बनाओ कुछ अजीब ही होता है मेरे साथ. घर की चार दीवारी ही मेरी दुनिया बन गयी है. मैं इन ख़यालो में खोई थी कि अचानक डोर बेल बाजी. मेरे चेहरे पर ख़ुसी की लहर दौड़ गयी. मगर मैने गगन को गुस्सा दीखाने के लिए अपने चेहरे पर आई ख़ुसी छुपा ली. मैने भाग कर दरवाजा खोला.
गगन सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था.
"थोड़ा और लेट आना चाहिए था तुम्हे ताकि मूवी जाने का स्कोप ही ख़तम हो जाए."
गगन अंदर आया और दरवाजा बंद करके मुझे बाहों में भर लिया. उसके हाथ मेरे नितंबो पर थे.
"क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे."
"बहुत प्यारी लग रही हो इस साड़ी में. क्या इरादा है आज." गगन ने मेरे नितंबो को मसल्ते हुए कहा.
"बाते मत बनाओ मुझे आज हर हाल में मूवी देखनी है." मैने गुस्से में कहा.
"मूवी भी देख लेंगे पहले अपनी खूबसूरत बीवी को तो देख लें."
"हम लेट हो रहे हैं गगन..."
"ओह हां..."गगन ने घड़ी की ओर देखते हुवे कहा. "मैं 2 मिनिट में फ्रेश हो कर आता हूँ. बस 2 मिनिट."
"अगर मेरी मूवी छूट गयी ना तो देखना. मुझसे बुरा कोई नही होगा."
गगन वॉश रूम में घुस गया और 2 मिनिट की बजाए पूरे 5 मिनिट में बाहर निकला.
"सॉरी हनी...चलो चलते हैं."
हमने दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाया ही था कि डोर बेल बज उठी.
"कॉन हो सकता है इस वक्त?" मैने पूछा.
"आओ देखते हैं" गगन ने कहा.
गगन ने दरवाजा खोला.
हमारे सामने एक कोई 40 साल की उमर का हॅटा कट्ट व्यक्ति खड़ा था. उसके कपड़ो से लगता था कि वो देहाती है. गर्दन में एक गमछा डाल रखा था उसने और सर पर पगड़ी थी उसके. बड़ी बड़ी मूच्छे थी उसकी. हम दोनो की तरफ वो कुछ ऐसे मुस्कुरा रहा था जैसे कि बरसो की जान पहचान हो. मुस्कुराते वक्त उसके पीले दाँत सॉफ दीखाई दे रहे थे.
"जी कहिए...क्या काम है."
"अरे गग्गू पहचाना नही का अपने चाचा को."
"जी नही कॉन है आप और आप मेरा नाम कैसे जानते हैं."
"अरे बेटा तुम्हारे पापा तुम्हे काई बार हमारे गाँव लेकर आए थे. तुम बहुत छोटे थे. भूल गये क्या वो आम की बगिया में आम तोड़ना छुप छुप कर. अरे हम तुम्हारे राघव चाचा हैं."
गगन को कुछ ध्यान आया और उसने तुरंत चाचा जी के पाँव छू लिए. मेरे तो सीने पर जैसे साँप ही लेट गया. मुझे मूवी का प्रोग्राम बिगड़ता नज़र आ रहा था.
"चाचा जी ये मेरी बीवी है निधि....निधि पाँव छुओ चाचा जी के."
मेरा उनके पाँव छूने का बिल्कुल मन नही था पर गगन के कहने पर मुझे पाँव छूने पड़े.
"आओ चाचा जी अंदर आओ"
देहाती मेरी तरफ हंसता हुवा अंदर घुस गया. उसकी हँसी कुछ अजीब सी थी.
मुझे कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा है. मैं गुस्से से तिलमिला रही थी. मैं बिना एक शब्द कहे अपने बेडरूम में आ गयी. 2 मिनिट बाद गगन कमरे में आया और बोला,"सॉरी डार्लिंग आज का प्रोग्राम कॅन्सल करना होगा. अब हम घर आए मेहमान को अकेला छ्चोड़ कर तो नही जा सकते ना"
"मुझे पता था पहले से की आज भी कोई ना कोई मुसीबत आ ही जाएगी. वैसे है कॉन ये देहाती. ना हमारी शादी में देखा इसे ना ही कभी घर चर्चा सुनी इसके बारे में. ये तुम्हारा चाचा कैसे बन गया अचानक."