hotaks444
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मेरे अंदर लबरेज़ी का एक अनोखा सा एहसास था जो पहले मैंने कभी महसूस नहीं किया था। कुत्ते से ज़बरदस्त और मुख्तलीफ़ चुदाई की लज़्ज़त में मैं बेहद बेखुदी के आलम में थी। उसकी अगली टाँगें अभी भी मेरी कमर पे जोर से जकड़ी हुई थीं। वो कुत्ता चुपचाप हाँफ रहा था और उसकी धड़कन मुझे अपनी पीठ पर महसूस हो रही थी। कुछ ही देर में हाँफते हुए कुत्ता अपनी एक पिछली टाँग मेरे चूतड़ों के ऊपर उठा कर घुमते हुए मेरी कमर से उतर गया। उसके लंड की फूली हुई गाँठ मेरी चूत में फंसे होने से अब हम दोनों आपस में गाँड से गाँड बिल्कुल ऐसे चिपके हुए थे जैसे कि कुत्ता और कुत्तिया चुदाई के बाद हमेशा आपस में चिपक जाते हैं। करीब पंद्रह-बीस मिनट मैं कुत्तिया बन के कुत्ते का लंड अपनी चूत में फंसाये हुए उससे चिपकी रही। चूँकि कुत्ते के ऊँचे कद की वजह से मैं अपनी गाँड उसके मुताबिक ऊँची उठाये रखने को मजबूर थी लेकिन इस तकलीफ़ के बावजूद मुझे उससे चिपकने में ज़बरदस्त मज़ा आया। बेहद पुर-चुदास और लज़्ज़त अमेज़ तजुर्बा था। इस दौरान भी मेरी चूत में उसके लंड से मनी का इखराज़ ज़ारी था। मेरी मस्ती भरी सिसकियाँ और कराहें भी ज़ारी रही क्योंकि मेरी चूत में तो जैसे झड़ी लग गयी थी। हम दोनों में से कोई अगर ज़रा सी भी हिलता तो मेरी चूत में उसके लंड की गाँठ के दबाव से और बाज़र के मुश्तैल होने से मेरी चूत फिर झड़ने लगती।
इस दर्मियान मेरे चारों चोदू आशिक़ स्टूडेंट्स अपनी टीचर को एक कुत्तिया की तरह गाँड से गाँड मिलाकर कुत्ते के लंड से चिपके देख कर मज़ाक़ उड़ाते हुए ताने देने लगे। उनके तंज़िया फ़िक़रों का मुझ पे कहाँ असर होने वाला था। उन्हें क्या मालूम कि मैं उस वक़्त किस कदर मस्ती में चूर ज़न्नत का चुदासी मज़ा लूट रही थी। मैं भी उनकी फब्तियों के जवाब में सिसकते हुए बीच-बीच में उन्हें गालियाँ बक देती थी। खैर पंद्रह-बीस मिनट बाद मुझे कुत्ते की गाँठ ज़रा सी सिकुड़ती हुई महसूस हुई और फिर अचानक मेरी चूत में से कुत्ते का लंड आज़ाद हो गया। उसकी गाँठ मेरी चूत में से बाहर निकली तो ज़ोर से ऐसी आवाज़ आयी जैसे कि शेंपेन की बोतल में से कॉर्क निकला हो। उसका लंड बाहर निकलते ही मुझे ज़रा मायूसी सी हुई और अपनी चूत में भी अचानक बेहद खालीपन का एहसास हुआ जैसे की अभी से ही मुझे उस लाजवाब लंड की तलब महसूस होने लगी थी। मेरी चूत में से कुत्ते की मनी और मेरी चूत का रस मखलूत होकर मेरी नंगी रानों पे नीचे बह रहे थे।
शराब के नशे में चूर और जज़बाती और जिस्मानी तौर पे थकी हुई मैं वहीं कालीन पे पसर गयी। मैं हैरान थी कि उस कुत्ते ने एक ही चुदाई के दौरान मुसलसल कमज़ कम बीस-पच्चीस ज़बरदस्त ऑर्गैज़्म मुझे मुहैया करवा दिये थे। मेरी ज़िंदगी की अभी तक की सबसे ज्यादा ज़बरदस्त और लज़्ज़त-अमेज़ तसल्ली बख्श चुदाई थी। मैंने मोहब्बत भरी शुक्राना नज़र कुत्ते की जानिब डाली जो मुतमईन होके हॉल में ही एक कोने में जा के बैठ गया था। मेरे चेहरे पे रंग-ए-मुसर्रत और तस्कीन देख कर उन चारों लड़कों ने भी तंज़ करना बंद कर दिया और तालियाँ बजा कर मुझे दाद दी। मैंने उनसे अपने लिये एक सिगरेट सुलगवायी और बिल्कुल मादरजात नंगी सिर्फ़ सैंडल पहने वहीं पसरी हुई सिगरेट के कश लगाते हुए बेमिसाल चुदाई के बाद की तस्कीनी का मज़ा लेने लगी और ना मालूम कब नींद के आगोश में चली गयी।
उस दिन से मेरी चुदाइयों के... मेरी बेराहरवियों के दायरे और भी खुल गये। ज़ाहिर सी बात है कि उस दिन से मैं कुत्तों से चुदवाने की इन्तेहा दीवानी हो गयी। प्रिंस के अलावा कुळदीप के पास एक और अल्सेशन कुत्ता था और सुरेंदर के पास भी प्रिंस जैसा ही एक डॉबरमैन नस्ल का कुत्ता था। किसी ना किसी तरह मैं इन तीनों कुत्तों से हर दूसरे-तीसरे दिन बाकायदा मुख्तलीफ़ तरीकों से चुदवाने लगी हालांकि अपने बाकी स्टूडेंट्स के साथ रोज़ाना चुदाई का सिलसिला पहले की तरह ही क़ायम रहा। इंटरनेट पे भी अब बिलखसूस जानवरों के साथ औरतों की चुदाई के किस्से पढ़ने और फ़िल्में देखना शुरू कर दिया। पाँच-छः हफ़्तों तक तो मैं इन तीनों कुत्तों तक ही महदूद रही और फिर आहिस्ता-आहिस्ता मुनासिब मौकों पर दूसरे कुत्तों से भी चुदवाना शुरू कर दिया जिनमें अपनी जान-पहचान वालों या दूसरे स्टूडेंट्स के कुत्तों के अलावा गली के आवारा कुत्ते भी शामिल हैं। कईं दफ़ा मौका देख कर अपने किसी जान-पहचान वाले या दूसरी टीचरों या स्टूडेंट्स से उनके पालतू कुत्ते, जानवरों से लगाव और अकेलेपन में उनसे अपना दिल बहलाने के बहाने कुछ घंटों और कईं दफ़ा तो तमाम रात के लिये माँग कर अपने घर ले आती और फिर उन्हें फुसला कर उनसे खूब चुदवाती। इस तरह अब तक साल भर में कईं तरह की बड़ी नस्लों के कमज़ कम बीस कुत्तों के साथ हर तरह से चुदाई के मज़े ले चुकी हूँ।
वैसे हर कुत्ते को चुदाई के लिये फुसलाना आसान नहीं होता क्योंकि कुछ कुत्तों के साथ मुझे काफ़ी मेहनत करनी पड़ी और इनके अलावा चार -पाँच कुत्ते ऐसे भी थे जिनको मैं काफ़ी कोशिश के बाद भी चोदने के लिये राज़ी कार पाने में नाकाम रही। कुत्तों के साथ मैं हर तरह की चुदाई का खूब मज़ा लेती हूँ। बेहद शौक से उनके लौड़े मुँह में चूस-चूस कर उनकी मज़ी और मनी के ज़ायके का लुत्फ़ लेती हूँ। मैं तो हूँ ही पुख्ता गाँड-चुदासी तो ज़ाहिर है अपनी हस्सास चुदक्कड़ गाँड भी कुत्तों के लौड़ों से बाकायदा मरवाती हूँ। कुत्तों से चुदाई के दौरान सबसे पुर-चुदास और बेमिसाल लुत्फ़-अंदोज़ी मुझे उनके लंड की लट्टू-नुमा गाँठ के चूत या गाँड में अंदर घुसकर फंसने पर होती है।
बेशक़ मेरी दिल्चस्पी सिर्फ़ कुत्तों तक ही महदूद नहीं रही और जल्द ही मैं दूसरे मुख्तलीफ़ जानवरों से भी चुदाई का तसव्वुर करने लगी। कुत्तों से चुदाई के दो-ढाई महीनों में ही मेरी हवस का अगला शिकार सीधे घोड़ा बना। दर असल कुलद़ीप के फार्म-हाऊज़ पे ही मवेशियों के लिये छोटा सा अस्तबल भी था जिसमें दो बड़े-बड़े घोड़े भी थे। शुरुआती आठ-दस मौकों पर घोड़ों के साथ असल चुदाई नहीं हुई बल्कि मैं दोनों घोड़ों के अज़ीम लौड़े सहलाने और चूमने चाटने तक ही महदूद रही क्योंकि उन दोनों घोड़े को भी मुझ से मानूस होने में कुछ वक़्त लगा। शराब और हवस के नशे में मैं नंगी होकर मस्ती में उन घोड़ों के लौड़े खूब चूमती-चाटती और सहलाती और अपनी चूत पे... मम्मों पे... और रानों के दर्मियान रगड़ कर बेहद लुत्फ़-अंदोज़ होती। अपने जिस्म पे घोड़े के अज़ीम काले लौड़े के महज़ लम्स से ही तमाम जिस्म में शहूत भड़क उठती थी। मेरे सहलाने और चाटने से जब घोड़े का लंड फैलते हुए लंबा होने लगता तो ये नज़रा देखकर मेरे रोम-रोम में मस्ती भरी लहरें दौड़ने लगती और बाज़र और चूत के लबों पे घोड़े के लंड के महज़ लम्स का एहसास होते ही चूत भी फ़ौरन पानी छोड़ने लगती।
इस दर्मियान मेरे चारों चोदू आशिक़ स्टूडेंट्स अपनी टीचर को एक कुत्तिया की तरह गाँड से गाँड मिलाकर कुत्ते के लंड से चिपके देख कर मज़ाक़ उड़ाते हुए ताने देने लगे। उनके तंज़िया फ़िक़रों का मुझ पे कहाँ असर होने वाला था। उन्हें क्या मालूम कि मैं उस वक़्त किस कदर मस्ती में चूर ज़न्नत का चुदासी मज़ा लूट रही थी। मैं भी उनकी फब्तियों के जवाब में सिसकते हुए बीच-बीच में उन्हें गालियाँ बक देती थी। खैर पंद्रह-बीस मिनट बाद मुझे कुत्ते की गाँठ ज़रा सी सिकुड़ती हुई महसूस हुई और फिर अचानक मेरी चूत में से कुत्ते का लंड आज़ाद हो गया। उसकी गाँठ मेरी चूत में से बाहर निकली तो ज़ोर से ऐसी आवाज़ आयी जैसे कि शेंपेन की बोतल में से कॉर्क निकला हो। उसका लंड बाहर निकलते ही मुझे ज़रा मायूसी सी हुई और अपनी चूत में भी अचानक बेहद खालीपन का एहसास हुआ जैसे की अभी से ही मुझे उस लाजवाब लंड की तलब महसूस होने लगी थी। मेरी चूत में से कुत्ते की मनी और मेरी चूत का रस मखलूत होकर मेरी नंगी रानों पे नीचे बह रहे थे।
शराब के नशे में चूर और जज़बाती और जिस्मानी तौर पे थकी हुई मैं वहीं कालीन पे पसर गयी। मैं हैरान थी कि उस कुत्ते ने एक ही चुदाई के दौरान मुसलसल कमज़ कम बीस-पच्चीस ज़बरदस्त ऑर्गैज़्म मुझे मुहैया करवा दिये थे। मेरी ज़िंदगी की अभी तक की सबसे ज्यादा ज़बरदस्त और लज़्ज़त-अमेज़ तसल्ली बख्श चुदाई थी। मैंने मोहब्बत भरी शुक्राना नज़र कुत्ते की जानिब डाली जो मुतमईन होके हॉल में ही एक कोने में जा के बैठ गया था। मेरे चेहरे पे रंग-ए-मुसर्रत और तस्कीन देख कर उन चारों लड़कों ने भी तंज़ करना बंद कर दिया और तालियाँ बजा कर मुझे दाद दी। मैंने उनसे अपने लिये एक सिगरेट सुलगवायी और बिल्कुल मादरजात नंगी सिर्फ़ सैंडल पहने वहीं पसरी हुई सिगरेट के कश लगाते हुए बेमिसाल चुदाई के बाद की तस्कीनी का मज़ा लेने लगी और ना मालूम कब नींद के आगोश में चली गयी।
उस दिन से मेरी चुदाइयों के... मेरी बेराहरवियों के दायरे और भी खुल गये। ज़ाहिर सी बात है कि उस दिन से मैं कुत्तों से चुदवाने की इन्तेहा दीवानी हो गयी। प्रिंस के अलावा कुळदीप के पास एक और अल्सेशन कुत्ता था और सुरेंदर के पास भी प्रिंस जैसा ही एक डॉबरमैन नस्ल का कुत्ता था। किसी ना किसी तरह मैं इन तीनों कुत्तों से हर दूसरे-तीसरे दिन बाकायदा मुख्तलीफ़ तरीकों से चुदवाने लगी हालांकि अपने बाकी स्टूडेंट्स के साथ रोज़ाना चुदाई का सिलसिला पहले की तरह ही क़ायम रहा। इंटरनेट पे भी अब बिलखसूस जानवरों के साथ औरतों की चुदाई के किस्से पढ़ने और फ़िल्में देखना शुरू कर दिया। पाँच-छः हफ़्तों तक तो मैं इन तीनों कुत्तों तक ही महदूद रही और फिर आहिस्ता-आहिस्ता मुनासिब मौकों पर दूसरे कुत्तों से भी चुदवाना शुरू कर दिया जिनमें अपनी जान-पहचान वालों या दूसरे स्टूडेंट्स के कुत्तों के अलावा गली के आवारा कुत्ते भी शामिल हैं। कईं दफ़ा मौका देख कर अपने किसी जान-पहचान वाले या दूसरी टीचरों या स्टूडेंट्स से उनके पालतू कुत्ते, जानवरों से लगाव और अकेलेपन में उनसे अपना दिल बहलाने के बहाने कुछ घंटों और कईं दफ़ा तो तमाम रात के लिये माँग कर अपने घर ले आती और फिर उन्हें फुसला कर उनसे खूब चुदवाती। इस तरह अब तक साल भर में कईं तरह की बड़ी नस्लों के कमज़ कम बीस कुत्तों के साथ हर तरह से चुदाई के मज़े ले चुकी हूँ।
वैसे हर कुत्ते को चुदाई के लिये फुसलाना आसान नहीं होता क्योंकि कुछ कुत्तों के साथ मुझे काफ़ी मेहनत करनी पड़ी और इनके अलावा चार -पाँच कुत्ते ऐसे भी थे जिनको मैं काफ़ी कोशिश के बाद भी चोदने के लिये राज़ी कार पाने में नाकाम रही। कुत्तों के साथ मैं हर तरह की चुदाई का खूब मज़ा लेती हूँ। बेहद शौक से उनके लौड़े मुँह में चूस-चूस कर उनकी मज़ी और मनी के ज़ायके का लुत्फ़ लेती हूँ। मैं तो हूँ ही पुख्ता गाँड-चुदासी तो ज़ाहिर है अपनी हस्सास चुदक्कड़ गाँड भी कुत्तों के लौड़ों से बाकायदा मरवाती हूँ। कुत्तों से चुदाई के दौरान सबसे पुर-चुदास और बेमिसाल लुत्फ़-अंदोज़ी मुझे उनके लंड की लट्टू-नुमा गाँठ के चूत या गाँड में अंदर घुसकर फंसने पर होती है।
बेशक़ मेरी दिल्चस्पी सिर्फ़ कुत्तों तक ही महदूद नहीं रही और जल्द ही मैं दूसरे मुख्तलीफ़ जानवरों से भी चुदाई का तसव्वुर करने लगी। कुत्तों से चुदाई के दो-ढाई महीनों में ही मेरी हवस का अगला शिकार सीधे घोड़ा बना। दर असल कुलद़ीप के फार्म-हाऊज़ पे ही मवेशियों के लिये छोटा सा अस्तबल भी था जिसमें दो बड़े-बड़े घोड़े भी थे। शुरुआती आठ-दस मौकों पर घोड़ों के साथ असल चुदाई नहीं हुई बल्कि मैं दोनों घोड़ों के अज़ीम लौड़े सहलाने और चूमने चाटने तक ही महदूद रही क्योंकि उन दोनों घोड़े को भी मुझ से मानूस होने में कुछ वक़्त लगा। शराब और हवस के नशे में मैं नंगी होकर मस्ती में उन घोड़ों के लौड़े खूब चूमती-चाटती और सहलाती और अपनी चूत पे... मम्मों पे... और रानों के दर्मियान रगड़ कर बेहद लुत्फ़-अंदोज़ होती। अपने जिस्म पे घोड़े के अज़ीम काले लौड़े के महज़ लम्स से ही तमाम जिस्म में शहूत भड़क उठती थी। मेरे सहलाने और चाटने से जब घोड़े का लंड फैलते हुए लंबा होने लगता तो ये नज़रा देखकर मेरे रोम-रोम में मस्ती भरी लहरें दौड़ने लगती और बाज़र और चूत के लबों पे घोड़े के लंड के महज़ लम्स का एहसास होते ही चूत भी फ़ौरन पानी छोड़ने लगती।