Kamvasna मजा पहली होली का, ससुराल में - Page 4 - SexBaba
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Kamvasna मजा पहली होली का, ससुराल में

• हम दोनो तैयार हैं। दोनो साथ साथ बोले. “आगे वाली तेरी पीछे वाली मेरी • ननदोयी ने टुकडा लगाया. तब तक गिरे हुए रंग पे फिसल के मेरे छोटे ( जो बाद में आये थे और जिसे ननद ने जीजा कहा था ) ननदोयी गिरे और उन्हें पकडे पकड़े उनके उपर मैं गिरी. रंग में सराबोर, ननदोयी ने मेरी साडी खींच के मुझे वस्त्र हीन कर दिया. लेकिन अबकी ननद ने मेरा साथ दिया. मेरे नीचे दबे छोटे ननदोयी का पजामा खींच के उनको भी मेरी हालत में ला दिया. ( कुर्ता बनियान तो दोनो का हम लोग पहले ही फाड के टाप लेस कर चुके थे। और ननदोई ने मेरी ननद को भी तो अब हम चारो एक हालत में थे).

क्या लंड था खूब मोटा एक बालिश साल लंबा और एक दम खडा.

ननद ने अपने हाथों में लगा रंग सीधे उनके लंड पे कस कस के पोत दिया. मैं क्यों पीछे रहती, मेरे मुंह के पास ननदोयी जी का मोटा लंड था. मैने दोनो हाथों से कस कस के लाल पक्का रंग पोत दिया. खडा तो वो पहले से ही था मेरा हाथ लग के वो लोहे की राड हो गया, लाल रंग का. मेरे नीचे दबे ननदोयी मेरी चूत और चूची दोनो पे रंग लगा रहे थे.

" अरे चूत के बाहर तो बहोत लगा चुके जरा अंदर भी तो लगा दो मेरी प्यारी भाभी जान को.” ननद ने ललकारा.

“ अरे चूत क्या मैं तो सीधे बच्चेदानी तक रंग दूंगा याद रहेगी ये पहली होली गांव की. वो बोले.
जब तक मैं सम्हलू सम्हलू, उन्होन मेरी पतली कमर को पकड के उठा लिया और मेरी चूत सीधे उनके सुपाडे से रगड खा रही थी. ननद ने झुक के पुत्तियों को फैलाया और ननदोयी ने उपर से कंधों को पकड के कस के धक्का दिया और एक बार में ही गचाक से आधे से ज्यादा लंड अंदर. मैने भी कमर का जोर से लगाया और जब मेरी कसी गुलाबी चूत में वो मोटा हलब्बी लंड घुसा तो होली का असली मजा आ गया. 

मेरे हाथ का रंग तो खतम हो गया था जमीन पे गिरे लाल रंग को मैने हाथ में लिया और कस कस के पक्के लाल रंग को ननदोयी के लंड पे पोत के बोलने लगी,
* अरे ननदोयी राजा, ये रंग इतना पक्का है जब अपने मायके जाके मेरी इस छिनाल ननद की दर चिनाल हराम जादी गदहा चोदी ननदों से, अपनी रंडी बहनों से चुसवाओगे ना हफ्ते भर तब भी ये लाल का लाल रहेगा. चाहे अपनी बहनों के बुर में डालना या अम्मा के भोंसडे में.”

तब तक जमीन पे लेटे मुझे चोद रहे नन्दोयी ने कस के मुझे अपनी बांहों में भींच लिया और अब एक्दम उनकी छाती पे लेटी मैं कस के चिपकी हुयी थी. मेरी टांगे उनकी कमर । के दोनो ओर फैली, चूतड भी कस के फैले हुए. अचानाक पीछे से ननदोयी ने मेरी गांड के छेद में सुपाड़ा लगा दिया. नीचे से नन्दोयी ने कस के बांहों में जकड़ रखा था और ननद भी कस के अपनी उंगलियों से मेरी गांड का छेद फैला के उनका सुपाडा सेंटर कर दिया. ननदोइ ने कस के जो मेरे चूतड पकड के पेला तो झटाक से मेरी कसी गांड फाडता, फैलाता सुपाडा अंदर. मैं तिल्मिलाती रही छटपटाती रही लेकिन,
“ अरे भाभी आप कह रही थीं ना दोनों ओर से मजा लेने का तो ले लो ना एक साथ दो दो लंड ननद ने मुझे छेडा.
 
* अरे तेरी सास ने गदहे से चुदवाया था या घोडे से जो तुझे ऐसे लंड वाला मर्द मिला..,ओह लगता है अरे एक मिनट रुक न ननदोयी राजा,अरे तेरी सलज़ की कसी गांड है तेरी अम्मा की ४ बच्चो जनी भोंसड़ा नहीं जो इस तरह पेल रहे हो...रुक रुक फट गई ओह.” मैं दर्द में गालियां दे रही थी.

पर रुकने वाला कौन था. एक चूची मेरी गांड मारते ननदोयी ने पकड़ी और दूसरी चूत चोदते छोटे ननदोई ने इतनी कस कस के मींजना शुरु किया की मैं गांड का दर्द भूल गयी. थोडे ही देर में जब लंड गांड में पूरी तरह घुस चुका था था तो उसे अंदर का नेचुरल लुब्रीकेट भी मिल गया,

फिर तो गपागप गपागप...मेरी चूत और गांड दोनो ही लंड लील रही थीं. कभी एक निकालता दूसरा डालता और दूसरा निकालता तो पहला डालता, और कभी दोनो एक साथ निकाल के एक साथ सुपाडे से पूरे जड तक एक धक्के में पेल देते. एक बार में जड तक लंड गांड में उतर जाता, गांड भी लंड को कस के दबोच रही थी.

खूब घर्षण भी हो रहा था, कोयी चिकनाई भी नहीं थी सिवाय गांड के अंदर के मसाले के. मैं सिसक रही थी तड़प रही थी मजे ले रही थी. साथ में मेरी साल्ली छिनाल ननद भी मौके का फायदा उठा के मेरी खडी मस्त क्लीट को फडका रही थी, नोच रही थी. खूब हचक के गांड मारने के बाद ननदोयी एक पल के लिये रुके. मूसल अभी भी आधे से ज्यादा अंदर ही था. उन्होने लंड के बेस को पकड के कस कस के उसे मथनी की तरह घुमान शुरु कर दिया. थोड़ी ही देर में मेरे पेट में हलचल सी शुरु हो गई. ( रात में खूब कस के सास ननद ने खिलाया था और सुबह से ‘फ्रेश’ भी नहीं हुयी थी.)

उमड घुमड...और लंड भी अब फचाक फचाक की आवाज के साथ गांड के अंदर बाहर...तीतरफा हमले से मैं दो तीन बार झड गयी, उसके बाद मेरे नीचे लेटे नन्दोइ मेरी बुर में झडे. उनके लंड निकालते ही मेरी ननद की उंगलीयां मेरी चूत में ...और उनके सफेद मक्खन को ले के सीधे मेरे मुंह में,चेहरे पे अच्छी तरह फेसियल कर दिया. लेकिन नन्दोयी अभी भी कस कस के गांड मार रहे थे बल्की साथ गांड मथ रहे थे. ( एक बार पहले भी वो अभी ही मेरे भाई की गांड में झड़ चुके थे). और जब उन्होने झडना शुरु किया तो पलट के मुझे पीठ के बल लिटा के लंड, गांड से निकाल के सीधे मेरे मुंह पे.
 
मैने जबरन मुंह भींच लिया लेकिन दोनो नन्दोइयों ने एक साथ कस के मेरा गाल जो दबाया तो मुंह खुल गया. फिर तो उन्होने सीधे मुंह में लंड ठेल दिया. मुझे बडा ऐसा ..ऐसा लग रहा था लेकिन उन्होने कस के मेरा सर पकड रखा था और दूसरे ननदोई ने मुंह भींच रखा था. धीरे धीरे कर के पूरा घुसेड दिया. मेरे मुंह में...उनके लंड में ...लिथडा ...लिथडा...वो बोले,
* अरे सलहज रानी गांड में तो गपाक गपाक ले रही थी तो मुंह में लेने में क्यों झिझक रही हो”

* भाभी एक नन्दोई ने तो जो बुर में सफेद मक्खन डाला वो तो आपने मजे ले के गटक लिया तो इस मक्खन में क्या खराबी है. अरे एक बार स्वाद लग गया न तो फिर ढूंडती । फिरियेगा, फिर आपके ही तो गांड का माल है. जरा चख के तो देखिये.” ननद ने छेडा और फिर ननदोईयों को ललकारा,

अरे आज होली के दिन सलहज को नया स्वाद लगा देना, छोडना मत चाहे जितना ये चूतड पटके मैं आंख बंद कर के चाट चूट रही थी. कोई रास्ता भी नहीं थ. लेकिन अब धीरे धीरे मेरे मुंह को भी और एक....नये ढंग की वासना मेरे उपर सवार हो रही थी. लेकिन मेरी ननद को मेरी अंद आंख भी नहीं कबूल थी. 

उसने कस के मेरे निपल पिंच किये और साथ में ननदोयी ने बाल खींचे,
* अरे बोल रही थी ना की मेरे लंड को लाल रंग का कर दिया की मेरी बहने चूसेंगी तब भी इस का रंग लाल ही रहेगा ना तो देख छिनाल, तेरी गांड से निकल के किस रंग का हो गया है.”

वास्तव में लाल रंग तो कही दिख ही नहीं रहा था वो पूरी तरह मेरी गांड के रस से लिपटा...

* चल जब तक चाट चूट के इसे साफ नहीं कर देती, फिर से लाल रंग का ये तेरे मुंह से नहीं निकलेगा. चल चाट चूस कस कस के ले ले गांड का मजा” वो कस के ठेलते बोले. तब तक छोटे नन्दोई का लंड भी फिर से खड़ा हो गया था. मेरी ननद ने कुछ बोलना चाहा तो उन्होने उसे पकड़ के निहुरा दिया और बोले चल अब तू भी गांड मरा बहोत बोल रही है। ना और मुझसे कहा की मैं उसकी गांड फैलाने में मदद करू. मुझे तो मौका मिल गया. पूरी ताकत से जो मैने उसकी गांड चियारी तो क्या...होल था. गांड का छेद पूरा खूला खूला. 

तब तक ननदोइ ने मेरे मुंह से लंड निकाल लिया था. उनका इशारा पाके मैने मुंह में थूक का गोला बना के ननद की खुली गांड में कस के थूक के बोला,
* क्यों मुझे बहोत बोल रही थी ना छिनाल ले अब अपनी गांड में लंड घोंत. ननदोई जी एक बार में ही पूरा पेल देना इसकी गांड में.” उन्होंने वही किया. इचाक चाक...और थोड़ी देर में उसकी गांड से भी गांड का...अब मुझे कोइ... घिन नहीं लग रही थी. बल्की मैं मजे से देख रही थी. लेकिन एक बात मुझे समझ में नहीं आ रही थी की ननद बजाय । चीखने के अभी भी क्यों मुस्करा रहीं थीं. वो मुझे थोड़ी देर में ही समझ में आ गया, जब उन्होने उनकी गांड से अपना...लिथड़ा लंड निकाल के सीधे जब तक मैं समझू सम्हलू मेरे मुंह में घुसेड दिया.
 
मैं मुंह भले बना रही थी..लेकिन अब थोडा बहोत मुझे भी...और मैं ये समझ भी गयी थी की बिना चाटे चूटे छुटकारा भी नहीं मिलने वाला. ओं में मैं करती रही लेकिन उन्होने पूरी जड तक लंड पेल दिया.

* अरे भाभी अपनी गांड के मसाले का तो बहोत मजा ले लिया अब जरा मेरी गांड के... का भी तो मजा चखो, बोलो कौन ज्यादा मसालेदार है. जरा प्यार से चख के बताना.” ननद ने छेडा.

तब तक ननदोई ने बोला, “ अरे ज्यादा मत बोल अभी तेरी गांड को मैं मजा चखाता हूं. सलहज जी जरा फैलाना तो कस के अपनी ननद की गांड.” 

मैं ये मौका क्यों चूकती. वैसे मेरी ननद के चूतड थे भी बड़े मस्त, गोल गोल गुदाज और बडे बडे. मैने दोनों हाथों से पूरे ताकत से उसे फैलाया. पूरा छेद और उसके अंदर का माल ...सब दिख रहा था. नन्दोई ने दो उंगली एक साथ घुसेडी की ननद की चीख निकल गयी. लेकिन वो इतने आसानी से। थोडी : ही रुकने वाले थे. उसके बाद तीम उंगली, सिर्फ अंगूठा और छोटी उंगली बहर थी और तीनों उंगली सटासट सटासट...अंदर बाहर, मैने चूत की फिस्टिंग कि बात सुनी थी लेकिन इस तरह गांड में तीन उंगली एक साथ...मैं सोच भी नहीं सकती थी. एक पल के लिये तो गांड से निकले मेरे मुंह में जड तक घुसे लंड को भी भूल कर मैं देखती रही. वो कराह रही थी, उनके आंखों से दर्द साफ साफ झलक रहा था. पल भर के लिये जब मेरे । मुंह से लंड बाहर निकला तो मुझसे रहा नहीं गया,

* अरे चूत मरानो, मेरे बहन चोद सैयां की रखैल, पंच भतारी, बहोत बोल रही थी ना मेरी गांड के बारे में...क्या हाल है तेरी गांड का. अगर अभी मजा ना आ रहा है तो तेरे भैया को बुला लें. जरा कुहनी तक हाथ डाल के इस की गांड का मजा दो इसे. इस कुत्ता चोद को इससे कम में मजा ही नहीं आता.” मैं बोले जा रही थी और उंगलियां क्या लगभग पूरा । हाथ उनकी गांड में...

तबतक वो लस लसा हाथ गांड से निकाल के ...उन्होने एक झटके में पूरा मेरे मुंह में डाल दिया और बोले, 
अरी बहोत बोलती है, ले चूस गांड का रस...अरे कुहनी तक तो तुम दोनों की गांड और भोसंडे में डालूंगा तब आयेगा ना होली का मजा . लेकिन इस के पहले मजा दूं जरा चूस चाट के मेरा हाथ साफ तो कर सटा सट.” मैं गोंगों करती रही लेकिन पूरा हाथ अंदर डाल के उनहोने चटवा के ही दम लिया.

* अरे चटनी चटाने से मेरी प्यारी भाभी की भूख थोड़े ही मिटेगी. ले भाभी सीधे गांड से ही..” वो मेरे उपर आ गयी और बड़ी अदा से मुझे अपनी गांड का छेद फैल के दिखाते बोली.”

* अरे तू क्या चटायेगी.... सुबह तेरी छोटी बहन को मैं सीधे अपनी बुर से होली का ...गरमा गरम खारा सरबत पिला चुखी हूं. सारी की सारी सुनहली धार एक एक बूंद घोंट गयी तेरी बहना” खीझ के मैने भी सुना दिया.
 
* अरे तो जो भाभी रानी आपको सुबह से हम लोग सरबत पिला रहे थे उसमें आप क्या समझती हैं क्या था. आपकी सास से लेके...ननद तक लेकिन मैने तय कर लिया था खि मैं तो अपनी प्यारी भाभी को होली के मौके पे , सीधे बुर और गांड से ही ...तो लीजिये ना.”

और वो मेरे मुंह के ठीक उपर अपनी गांड का छेद कर के बैठ गयी.

मैने लेकिन तय कर लिया था की लाख कुछ हो जाय अबकी मैं मुंह नहीं खोलूंगी. पहले तो उसने मेरे होंठों पे अपनी गांड का छेद रगडा, फिर कहती रही की सिर्फ जरा सा, बस होली के नाम के लिये, लेकिन मैं टस से मस ना हुयी. फिर तो उस छिनाल ने कस के मेरी नाक दबा दी. मेरे दोनो हात्थ दोनो ननदोइयों के कब्जे में थे और मैं हिल डुल नहीं पा रही थी. यहां तक की मेरी नथ भी चुभने लगी. थोड़ी देर में मेरी सांस फूलने लगी, चेहरा लाल होनेलगा, आंखे बाहर की ओर.

क्यों आ रहा है मजा, मत खोल मुंह” वो चिडा के बोली और सच में इतना कस के उसने अपनी गांड से मेरे होंठों को दबा रखा था की मैं चाह के भी मुंह नहीं खोल पा रही थी.

* ले भाभी देती हूँ तुझे एक मौका तू भी क्या याद करेगी ...किसी ननद से पाला पड़ा था. और उसने चूतड उपर उठा के अपनी गांड का छेद दोनो हाथ से पूरा फैला लिया.

* उईइइइ ऊइइइइइ..” मैं कस के चीखी. नन्दोई ने दोनो निपल्स को कस के पिंच करते हुए मोड दिया था. मेरे खूले होंठों पे अपनी फैली गांड का छेद रख के फिर वो कस के बैठ गयी और एक बार फिर से मेरी नाक उसकी उंगलियों के बीच. अब गांड का छेड सीधे मेरे मुंह में. वो हंस के बोली,

* भाभी बस अब अगर तुम्हारी जीभ रुकी तो ...अरे खुल के इस नये स्वाद का मजा लो. अरे पहेल चूत को आपके जब तक लंड का मजा नहीं मिला था चुदाई के नाम से बिदकती थी लेकिन जब सुहाग रात को मेरे भैया ने हचक हचक के चोद के चूत फाड़ दी तो एक मिनट एक साली चूत को लंड के बिना नहीं रहा जाता. पहले गांड मरवाने के नाम से भाभी तेरी गांड फटती थी, अब तेरी गांड में हरदम चींटी काटती रहती है, अब गांड को ऐसा लंड का स्वाद लगा की ...तो जैसे वो स्वाद भैया ने लगाये तो ये स्वाद आज उनकी बहना लगा रही है. सच भाभी ससुराल की ये पहली होली और ये स्वाद आप कभी नहीं भूलेंगीं..”
 
तब तक मेरी दोनों चूचीयां, मेरे ननदोइयों के कब्जे में थीं, वो रंग भी लगा रहे थे, चूची की रगडाई मसलाई भी कर रहे थे. दोनो चूचीओं के बाद दोनों छेद पे भी...ननदोई ने तो गांड का मजा पहले ही ले लिया था तो वो अब बुर में और छोटे नन्दोई गांड में ...मैं फिर सैंडविच बन गयी थी. लेकिन सबसे ज्यादा तो मेरी ननद मेरे मुंह में झड़ने के साथ दोनो ने फिर मेरा फेसीयल किया मेरी चूचीयों पे ...और ननद ने पता नहीं क्या लगाया था की अब ‘जो भी मेरी देह से लगता था ...वो बस चिपक जाता था. घंटे भर मेरी दुरगत कर के ही उन तीनो ने छोड़ा.

बाहर खूब होली की गालीयां, जोगीडा, कबीर....जमीन पे पडी साडी चोली किसी तरह मैने लपेटा, और अंदर गयी की जरा देखू मेरा भाई कहां है.

उस बिचारे की तो मुझसे भी ज्यादा दुरगत हो रही थी. सारी की सारी औरतें यहां तक की मेरी सास भी...तब तक मेरी बडी ननद भी वहां पहुंची और बोली अरे तुम सब अकेले इस कच्ची कली का मजा ले रहे हो. रुक साल्ले, अभी तेरी बहन को खिला पिला के आ रही हूँ अब तेरा नम्बर है चल अभी तुझे गरम गरम हलवा खिलाती हूँ.” मैं सहम गयी की इतनी मुशकिल से तो बची हूं अगर फिर कहीं इन लोगों के चक्कर में पड़ी तो...उन सब की नजर बचा के मैं छत पे पहुंच गयी.

बहोत देर से मैने ‘इनको’ और अपनी जेठानी को नहीं देखा था. शैतान की बात सोचिये और... भुस वाले कमरे में मैने देखा कि भागते हुये मेरी जेठानी घुसीं और उन्के पीछे पीछे उनके देवर यानी मेरे वो रंग लेके. अंदर घुसते ही उन्होने दरवाजा बंद कर दिया. पर उपर एक रोशदान से, जहां मैं खडी थी, अंदर का नजारा साफ साफ दिख रहा था. उन्होंने अपनी भाभी को कस के बांहों में भर लिया और गालों पे कस कस के रंग लगाने लगे. थोडी देर में उनका हाथ सरक के उनकी चोली पे और फिर चोली के अंदर जोबन पे...वो भी न सिर्फ खुशी खुशी रंग लगवा रही थी, बल्की उन्होने भी उनके पाजामे में हाथ डाल के सीधे उनके खूटे को पकड़ लिया. थोड़ी ही देर में दोनों के कपड़े दूर थे और जेठानी मेरी पुवाल पे और वो उनकी जांघों के बीच...और उनकी ८ इंच की मोटी पिचकारी सीधे अपने निशाने पे..देवर भाभी की ये होली देख के मेरा भी मन गन गना गया. और मैं सोचने लगी। की मेरा भी देवर.देवर भाभी की भी होली का मजा ले ले लेती.

सगा देवर चाहे मेरा न हो लेकिन ममरे चचरे गांव के देवरों की कोयी कमी नहीं थी. खास कर फागुन लगने के बाद से सब उसे देख के इशारे करते, सैन मारते गंदे गंदे गाने गाते । और उनमें सुनील सबसे ज्यादा. उसका चचेरा देवर लगता था सटा हुआ घर था उन लोगों के घर के बगल में ही. गबरु पठ्ठा जवान और क्या मछलियां थी हाथों में, खूब तगडा, । सारी लडकियां, औरतें उसे देख के मचल जाती थीं. एक दिन फागुन शुरु ही हुआ । था,फगुनाट वाली बयार चल रही थी की गन्ने के खेत की बीच की पगडंडी पे उसने मुझे रोक लिया और गाते हुए गन्ने के खेत की ओर इशारा कर के बोला,

बोला, बोला, भौजी देबू देबू की जईबू थाना में.''
 
अगले दिन पनघट पे जब मैने जिकर किया तो मेरी क्या ब्याही अन ब्याही ननदों और जेठानीयों की सासें रुकी रह गयी.

एक ननद बेला बोली, अरे भौजी आप मौका चूक गयी. फागुन भी था और रंगीला देवर का रिशता भी आपकी अच्छी होली की शुरुआत हो जाती.” फिर तो ..एक्दम खूल के एक ननद बोली,जो सब्से ज्यादा चालू थी गांव में, अरे क्या लंड है उसका भाभी एक बार ले लोगी तो..

.चंपा भाभी ( जो मेरी जेठानीयों में सबसे बड़ी लगती थीं और जिन्का ‘खुल के गाली देने में हर ननद पानी मांग लेती, दीर्घ स्तना, ४०डी साइज के चूतड) बोली हां हां ये एक दम सही कह रही है, ये इसके पहले बिना कुत्ते से चुदवाये इसे नींद नहीं आती थी लेकिन एक बार इसने जो सुनील से चुदवा लिया तो फिर उसके बाद कुत्तों से चुदवाने की आदत छूट गयी. बेचारी ननद वो कुछ बोलती उसके पहले ही वो बोलीं और भूल गयी, जब सुनील से गांड मरवायी थी सबसे पहले तो मैं ही ले के गयी थी मोची के पास ..सिलवाने.

तब तक हे भौजी की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा, सुनील ही था अपने दो तीन दोस्तों के साथ मुझे होली खेलने के लिये नीचे बुला रह था. 


मैने हाथ के इशारे से उसे मना किया. दरवाजा बंद था इस लिये वो तो अंदर आ नहीं सकता था. लेकिन मन तो मेरा भी कर रहा था, उसने उंगली के इशारे से चूत और लंड बना के चुदाई का निशान बनाया तो उसकी बहन गुडिया का नाम लेके मैंने एक गंदी सी गाली दी और साडी सुखाने के बहाने आंचल ठूलका के उसे अपने जोबन का दरसन भी करा दिया. अब तो उस बेचारे की हालत और खराब हो गयी. दो दिन पहले जब वह फिर मुझे खेतों के बीच मिला था तो अबकी उसने सिर्फ हाथ ही नहीं पकड़ा बल्कि सीधे बाहों में भर लिया था उर खींच के गन्ने के खेत के बीच में ...छेड़ता रहा मुझे, “अरे भौजी तोहरी कोठरिया हम झाडब, अरे आगे से झाडब, पीछे से झाडब, उखियों में झाडब रहरियो में झाडब, अरे तोहरी कुठरिया..” 

अखिर जब मैने वायदा कर लिया की होली के दिन दूंगी सच मुच में एक दम मना नहीं करूंगी तो वो जाके माना. जब उसने नीचे से बहोत इशारे किये तो मैने कहा की अपने दोस्तों को टाओ तो बाहर आउंगी होली खेलने. वो मान गया. मैं नीचे उतर के पीछे के दरवाजे से बाहर । निकली. मैने अपने दोनो हाथों में गाढा पेंट लगाया और कमर में रंगों का पैकेट खोंसा.

सामने से वो इशारे कर रहा था. दोनो हाथ पीछे किये मैं बढी. तब तक पीछे से उसके दोनो दोस्तों ने, जो दीवाल के साथ छिप के खडे थे, मुझे पीछे से आके पकड़ लिया. मैं । छटपटाती रही. वो दोनो हाथों में रंगपोत के मेरे सामने आके खड़ा हो गया और बोला, क्यों डाल दिया जाय की छोड़ दिया जाय बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाय.

मैं बड़ी अदा से बोली, तुम तीन हो ना तभी...छोडो तो बताती हूं. जैसे ही उसके इशारे पे उसके साथियों ने मुझे छोडा, होली है कह के कस के उसके गालों पे रंग मल दिया.

अच्छा बताता हूं, और फिर उसने मेरे गुलाबी गालों को जम के रगड़ रगड के रंग लगाया. मुझे पकड के खींचते हुये वो पास के गन्ने के खेत में ले गया और बोली असली होली तो अब होगी. हां मंजूर है।

लेकिन एक एक करके पहले अपने दोस्तों को तो हटाओ. उसके इशारे पे वो पास मेंही कहीं बैटः गये. पहले ब्लाउज के उपर से और फिर कब बटन गये कब मेरा साडी उपर सरक गयी ...थोड़ी देर में ही मेरी गोरी रसीली जांघे पूरी तरह फैली थीं, टांगें उसके कंधे पे और वो अंदर. मैं मान गयी की जो चंपा भाभी मेरी ननद को चिढ़ा रही थीं वो ठीक ही रहा होगा. उसका मोटा कडा सुपाडा जब रगड के अंदर जाता तो सिसकी निकल जाती. वो किसी कुत्ते की गांठ से कम मोटा नहीं लग रहा था. और क्या धमक के धक्के मार रहा था, हर चोट सीधे बच्चे दानी पे. साथ में उसके रंग लगे हाथ मेरी मोटी मोटी चूचीयों पे कस
के रंग भी लगा रहे थे. पहली बार मैं इस तरह गन्ने के खेत में चुद रही थी मेरे चूतड कस कस के मिट्टी पे, मिट्टी के बडे बडे ढेलों से रगड़ रहे थे. लेकिन बहोत मजा आ रहा था और साथ में मैं उसके बहन का नाम ले ले के और गालियां भी दे रही थी,
 
* चोद साले चोद, अरे गुडीया के यार, बहन के भंडुये, देखती हूं उस साल्ली मेरी छिनाल ननद एन क्या कया सिखाया, उस चूत मरानो के खसम, तेरी बहन की बुर में...गदहे का लंड जाय” वो ताव में आके और कस कस के चोद रहा था. हम दोनों जब झडे तो मैने देखा की बगल में उसके दोनो दोस्त, “ भौजी हम भी...”

मैं कौन होती थी मना करने वाली, लेकिन उन दोनो ने मैने जो सुना था की गांव में कीचड़ की होली होती है, उसका मजा दे दिया. बगल में एक गड्ढे में कीचड था वहां से लाके कीचड पोता मुझे. मैं क्यों छोडती अपने देवरों को. मैने भी कुछ अपने बदन का कीचड रगड के उनकी देह पे लगाया, कुछ उनके हाथ से छीन के. फिर उन सबने मिल के मेरी डोली बना के कीचड में ही ले जा के पटक दिया. एक साथ मुझे मड रेस्लिंग का भी मजा मिला और चुदाइ का. 

थोड़ी देर वो उपर था और फिर मैं उपर हो गयी और खूद उसे कीचड में गिरा गिरा के रगड़ के चोदा. बस गनीमत थी की उनके दिमाग में मुझे सैंडविच बनाने की आईडिया नहीं आयी इस लिये मेरी गांड बच गयी. उन सब से निपटने के बाद मैने साडी ब्लाउज फिर से पहना और खेत से बाहर निकली.

मैं घर की ओर मुड़ रही ही थी की कुछ का झुंड मिल गया. वो मुझे ले के चंपा भाभी के घर पहुंची जहां गांव भर की औरतें इक्ट्ठा होतीं थी और होली का जम के हुडदंग होता था. क्या हंगामा था. मेरे साथ जो औरतें पहुंची पहले तो बाकी सब ने मिल के उन के कपडेफाडे. मेरे साथ गनीमत ये थी की चंपा भाभी ने मुझे अपने आसरे ले लिया था और मेरे आने से वो बहोत खुश थीं. एक से एक गंदे गाने, कबीर जोगीडा...जो अब तक मैं सोचती सिर्फ आदमी ही गाते हैं, एक ने मुझे पकड़ा और गाने लगी

दिन में निकले सूरज और रात में निकले चंदा..
अरे हमरे यार ने... किसकी पकड़ी चूची और किसको चोदा.
.अरे हमरे यार ने..
भाभी की चूची पकडी ओ संगीता को चोदा..अरे कबीरा..सा...रा..रा..

चंपा भाभी ने सब को भांग मिली ठंडाई पिलाई थी इस लिये सब की सब खूब नशे में थीं. उन्होने कन्डोम में गुलाल भर भर के ढेर सारे डिल्डो भी बना रखे थे और चार पांच मुझे। भी दिये. तब तक एक ननद ने मुझे पीछे से पकडा,( वो भी शादी शुदा थी और जो स्थान भाभीयों में चंपा भाभी का था वही ननदों में उनका था). मुझे पकड के पटकते हुए वो । बोलीं, चल देख तुझे बताती हूँ होली की चुदाइ कैसे होती है. उनके हाथ में एक खूब लंबा और मोटा, निरोध में मोमबत्ती डाल के बनाया हुआ डिल्डो था.

तब तक चंपा भाभी ने मुझे इशारा किया और मैंने उन्हे उल्टे पटक दिया. उधर चंपा भाभी ने उनके हाथ से डिल्डो छीन के मुझे थमा दिया, और बोलीं, लगता है नन्दोइ अब ठंडे पड गये हैं जो तुम्हे इससे काम चलाना पड़ रहा है. अरे ननद रानी हम लोगों से मजे ले लो ना, फिर मुझे इशारा किया की जरा ननद रानी को मजा तो चखा दे.


मैं सिक्स्टी नाइन की पोज में उनके उपर चड गयी और पहले अपनी चूत फिर गांड सीधे उनके मुंह पे रख के कस के एक बार में ही ६ इंच डिल्डो सीधे पेल दिया, वो बिल बिलाती रही गोंगों करती रही लेकिन मैं कस कस के अपनी गांड उनके मुंह पे रगड के बोलती रही, “अरे ननद रानी जरा भौजी का स्वाद तो चख लो तब मैं तुम्हारे इस कुत्ते गधे के लंड की आदी भोंसडे की भूख मिटाती हूँ.”

चम्पा भाभी ने गुलाल भरा एक डिल्डौ ले के सीधे उनकी गांड में ठेल दिया.

वहां से निकल के चंपा भाभी के साथ और लडकियों के यहां गये. उनकी संगत में मैं पूरी तरह ट्रेन हो गयी. सुनील की बहन गुडीया मिली तो चंपा भाभी के इशारे पे मैने उसे धर दबोचा. वो अभी कच्ची कली थी ९ वें पढ़ती थी. लेकिन तब फ्राक के अंदर हाथ डाल के उसकी उठ रही चूचीयों को, कस कस के रगडा और चड्ढी में हाथ डाल के उस की चूत में भी जम के तब तक उंगली की जब तक वो झड नहीं गयी. 
 
यहां तक की मैने उस से खूब गंदी गंदी गालियां भी दिलवायीं, उस के भाई सुनील के नाम भी. कोई लड़की, औरत बच नहीं पा रही थी. एक ने जरा ज्यादा नखड़ा किया तो भाभी ने उसका ब्लाउज खोल के पेड पे फेंक दिया और आगे पीछे दोनों ओर गुलाल भरे कंडोम जड तक डाल के छोड दिया और बोलीं, जा के अपने भाई से निकलवाना. और जिन जिन की हम रगडाई करते थे, वो हमारे ग्रुप में ज्वाइन हो जाती थीं और दूने जोश से जो अगली बार पकड़ में आती थी उसकी दुरगत करती थीं यहां तक की भाभी लड़कों को भी नहीं बख्सती थीं. 

एक छोटा । लडका पकड में आया तो मुझसे बोलीं, खोल दे इस साल्ले का पाजामा. मैं जरा सा झिझकी तो बोलीं, अरे तेरा देवर लगेगा जरा देख अभी नूनी है की लंड हो गया. चेक कर के बता इस ने अभी गांड मरवानी शुरु की नहीं वरना तू ही नथ उतार दे साल्ले की. वो बेचारा भागने लगा लेकिन हम लोगों की पकड से कहां बच सकता था. मैने आराम से उसके पजामे का नाडा खोला, और लंड में टट्टे में खूब जम के तो रंग लगाया ही उसकी गांड में उंगली भी की और गुलाल भरे कंडोम से गांड भी मार के बोला, जा जा अपने बहन से चटवा के साफ करवा लेना. कई कई बार लड़कों का झुंद एक दो को पकड भी। लेता या वो खुद कट लेतीं और मजे ले के वापस. तीन चार बार तो मैं भी पकड़ी गयी और कई बार मैं खुद.

तिजहरिया के समय तक होली खेल के सब वापस लौट रहीं थी.चंपा भाभी और कई औरतें अपने घर रास्ते में रुक गयीं. हम लोग दो तीन ही बचे थे की रास्ते में एक मर्दो का झुंड दिखा, शराब के नशे में चूर, शायद दूसरे गांव के थे. एक तो हम लोग कम रह गये थे, दूसरा उनका भाव देख के हम डर के तितर बितर हो गये. थोडी देर में मैने देखा तो मैं अब गांव के एक दम बाहरी हिस्से में आ गयी थी. मुख्य बस्ती से थोडा दूर, चारो ओर गन्ने और अरहर के खेत और बगीचे थे. तभी मैने देखा की वहां एक कुआ और घर है. उसे पहचान के मेरी हिम्मत बढ गयी, वो मेरी कहाइन कुसमा का घर था. और उसका मरद कल्लू कूये पे पानी भर रहा था.

कुसुमा गांव में मेरी अकेली देवरानी लगती थी. उसकी शादी मेरी शादी के दो तींन । महीनेबाद ही हुयी थी. गोरी छुयी मुयी सी, छूरहरी लेकिन बहोत ताकत थी उसमें , छातियां छोती छोटी, लेकिन बहोत सख्त, पतली कमर भरे भरे चूतड. लेकिन मरद का हाथ लगते ही वो एक दम गदरा गई. कहते हैं की मरद का रस सोखने के बाद ही औरत की असली जवानी चढती है. घर में वो काम करती थी, नहाने के लिये पानी लाने से देह दबाने तक. पानी बाहर कुये पे उसका मरद भरता था और अंदर वो लाती थी. हम दोनों की लगभग साथ ही शादी हुयी थी इस लिये दोस्ती भी हो गयी थी. रोज तेल लगवाते समय मैं उसे छेड छेड के रात की कहानी पूछती, पहले कुछ दिन तो शर्मायी लेकिन्मैने सब उगलवा ही लिया. रात भर चढा रहता है वो वो बोली. मैने हंस के कहा हे मेरे देवर को कुछ मत कहना मेरी देवरानी का जोबन ही ऐसा है. क्यों दो बार किया या तीन बार. मेरी जांघे दबाती बोली,
अरे दो तीण की बात ही नहीं झडने के बाद वो बाहर ही नहीं निकालता मुआ, थोडी देर में फिर डंडे ऐसा और फिर चोदना चालू, कभी चार बार तो कभी पांच बार और घर में और कोयी तो है नहीं न पास पडोसी इस लिये जब चाहे तब दिन दहाडे भी. सुन के मैं गिन गिना गयी. उस को माला डी भी मैने ही दी. एक बार वो आंगन में मुझे नहला रही थी. मैने उसे छेडा, अरे अपने मर्द से बोल ना, एक बार उसके असली पानी से नहाउंगी. तो वो हंस के बोली, हां ठीक है मैं बोल दंगी, लेकिन वो सरमाता बहोत है.ठसके से वो बोली.
अरे मेरा देवर लगता है मेरा हक है क्या रोज रोज सिर्फ देवरानी को ही...और क्या फागुन लग गया हैपीठ मलते वो बोली. एक दम और उसको ये भी बोल देना इस होली में ना, तुम मेरी अकेली देवरानी हो परे गांव में तो मैं और भले सबको छोड़ दें, लेकिन उसको नहीं । छोडने वाली. सच में, उसने पूछा. एक दम साडी पहनते मैं बोली.सच बात तो ये थी की मैने उसे कई बार कुंये पे पानी भरते देखा था. था तो वो आबनूस जैसा, लेकिन क्या गठा बदन था, एक एक मसल नजर फिसल जाती थी. ताकत छलकती थी और उपर से जो कुसुमा ने उसके बारे में कहा की वो कैसे जबरदस्त चोदता था. मैं एक दम पास पहुंच, एक पेड की आड़ में खड़े होके देख रही थी.

लेकिन...लग रहा था जैसे होली उन लोगों के घर को बचा के निकल गयी. जहां चारो ओर फाग की धूम मची थी वहीं, उसके देह पे रंग के एक बूंद का भी निशान नहीं था. चारो और रंगों की बरसात और यहां एक दम सूखा. होली में तो कोई भेद भाव नहीं होता, कोयी छोटा बड़ा नहीं...लेकिन, मुझे बुरा तो बहोत लग पर मैं समझ गयी. फिर मैने दोनों हाथों में खूब गाढा लाल पेंट लगाया और पीछे हाथ छिपा के ...उसके सामने जा के खडी हो गयी और पूछा,
* क्यों लाला अभी से नहा धो के साफ वाफ हो के...”
“ नहीं भौजी अभी तो नहाने जा ही रहा था...” वो बोला.
* तो फिर होली के दिन इतने चिक्कन मुक्कन कैसे बचे हो रंग नहीं लगवाया...”
* रंग...होली ...हमसे कौन होली खेलेगा, कौन रंग लगायेगा...

* औरों का तो मुझे नहीं पता लेकिन ये तेरी भौजी आज तुझे बिना रंग लगाये नहीं छोड़ने वाली.” दोनो हाथों में लाल पेंट मैने कस के रगड़ रगड़ के उसके चेहरे पे लगा दिया.
 
मैं उससे अब एक दम सट के खडी थी. सिर्फ धोती में उसकी एक मसल्स साफ साफ दिख रही थीं, पूरी मर्दानगी की मूरत हो जैसे.
लेकिन वो अब भी झिझक रहा था.

मैने बचा हुआ पेंट उसकी छाती पे लगा के, उसके निपल्स को कस के पिंच कर दिया और चिढाते हुए बोली, “ देवरानी तो बहोत तारीफ काती है तुम्हारी. तो सिर्फ लगवाओगे ही या लगाओगे भी.

• भौजी, कहां लगाउं...” अब पहली बार मुस्करा के मेरी देह की ओर देखता वो बोला.

मैने भी अपनी देह की ओर देखा, सच में पहले तो मेरी सास, ननद ऐर फिर जो कुछ नन्दोई और ननद ने मिल के लगाया था, फिर सुनील और दोस्तों ने जिस तरह कीचड़ में रगड़ा था उसके बाद चंपा भाभी के यहां...मेरी देह का कोयी हिस्सा बचा नहीं था.

एक मिनट रुको...मैं बोली और फिर पेड के पीछे जा के मैने सब कुछ उतार के सिर्फ साडी लपेट ली, अपने स्तनों को कस के उसी में बांध के...गों और पेंट की झोली, कुये के पास रख दी और कुये पे जा के बैठ के बोली, रोज तो तुम्हारे निकाले पानी से नहाती थी. आज अपने हाथ से पानी निकालो और मुझे नहलाओ भी भी धुलाओ भी. थोड़ी ही देर में पानी की धार से मेरा सारा रंग वंघ धुल गया. पतली गुलाबी साडी अच्छी तरह देह से चिपक गयी थी. गदराये जोबन के उभार, यहां तक की मेरे इरेक्ट निपल्स एक दम साफ साफ झलक रहे थे. दोनो जांघे फैला के मैं बोली, अरे देवर जी जरा यहां भी तो डालो, साडी पाने आप सरक के मेरी जांघों के उपरी हिस्से तक सरक गयी थी. पूरे डोल भर पानी उसने सीधे वहीं डाला और अब मेरी चूत की फांक तक झलक रही थी. जवान मर्द और वो
भी इतना तगडा...धोती के अंदर अब उसका भी खूटा तन गया था.

* क्यों हो गयी न अब डालने के लायक, सीना उभार कर मैने पूछा...” और उस का । इंतजार किये बिना रंग उसके चेहरे छाती हर जगह लगाने लगी. अब वो भी जोश में आ गया था. कस कस के मेरे गाल पे चेहरे पे और जो भी रंग उस के देह पे मैं लगाती वो रगड़ रगड़ के मेरी देह पे...साडी के उपर से ही कस कस के मेरे रसीले जोबन पे भी...

लेकिन अभी भी उसका हाथ मेरी साड़ी के अंदर नहीं जा रहा था.

“अरे सारी होली बाहर ही खेल लोगे तुम दोनों अंदर ले आओ भौजी को.” अंदर से निकल के कुसुमा बोली. और वो मुझे गोद में उठा के अंदर आंगन में ले आया . कुसुमा ने दरवाजा बंद अक्र दिया. उसके बाद तो...

पूरे आंगन में रंग बरसने लगा,हर पेड टेसू का हो गया. बस लग रहा था की सारा गांव नगर छोड के फागुन यहीं आ गया हो. कुसुमा भी हमारे साथ, कभी मेरी तरफ से कभी उसकी. उसने अपने मरद को ललकारा, हे अगर सच्चे मर्द हो तो आज भौजी को पूरी ताकत दिखा दो. मैं भी बोली हां देवर जरा मैं भी देखी तो मेरी देवरानी सही तारीफ कर ती थी या..अगर अपने बाप के होतो ...और मैने उसकी धोती खींच दी. मैने अब तक जितने देखे थे सबसे ज्यादा लंबा और मोटा...फिर वो मेरी साडी क्यों छोड़ता. उसे मैने अपने उपर खींच के कहा देवर जरा आज फागुन में भाभी को इस पिचकारी का रंग तो बरसा के दिखाओ. पल भर में वो मेरे अंदर था. चुदाई और होली साथ साथ चल रही थी. कुसुमा ने कहा जरा हम लोगों का रंग तो देख लो और एक घड़े में गोबर और कीचड़ के घोल से बना ( और भी ‘ पता नहीं क्या क्या' पडा था) डाल दिया. मैने उसके मर्द को सामने कर दिया. क्या तबड तोड चुदाइ कर रहा था. मस्त हो कर मेरी चूत भी कस कस के उसके लंड को भींच रही थी. अब जितनी भी लंड से मैं चुदी थी उनसे ये २० नहीं २२ रहा होगा. जैसे ही वो झड़ के अलग हुआ मिअने कुसुमा को धर दबोचा और अरंग लगाने के साथ निहुर कर उस एपटक के सीधे उसकी चूत कस कस के चाटने लगी और बोली देखें इस ने कितना मेरा देवर का माल घोंटा है. जैसे दो पहलवान अखाड़े में लड़ रहे हों हम दोनो कस कस के एक दूसरे की चूचीयां रगड़ रहे रंघ गोबर और कीचड़ लगा रहे थे. उधर मौका देख के वो पीछे से ही कुतिआ की तरह मुझे चोदने लगा. मैं उसे कस के हुचुक हुचुक कर कुसुमा की चूत अपनी जीभ से चोद रही थी. वो नीचे से चिल्लाइ ये तेरी भौजी छिनाल ऐसे नहीं मानेगी, हुमच के अपना लंड इस की गांड में पेल दो. मैं दर गयी पर बोली और क्या अकेले तुम्ही देवर से गांड मराने का मजा लोगी. लेकिन जैसे ही उसने गांड में मूसल पेला, दिन में तारे दिख गये. मैं भी हार मानने वाली नहीं थी. मेरी चूत खाली हो गयी थी. मैं उसे कुसुमा की झांटो भरी बुर पे रगडनी लगी. कुछ ही देर में हम लोग सिक्स्टी नाइण की पोज में ते । लेकिन वो घचाघच मेरी गांड मारे जा रहा था. हम दोनो दो दो बार झड़ चुके थे. उसने जैसे गांड से झड़ने के बाड लंड निकाला सीधे मैने मुंह में गडप कर लिया. वो लाख मना करता रहा लेकिन चाट चूट के ही मैने छोडा.

तीन बार मेरी बुर चुदी.

मैं उठने की हालत में नहीं थी. किसी तरह साडी लपेटी, ब्लाउज देह पे टांगा और घर को लौटी. शाम को फिर सूखी होली, अबीर और गुलाल की और इस बार भी इनके दोस्त, देवर कइयों ने नम्बर लगाया. और मेरा भाई बेचारा ( हालांखि उसने भी सिरफ छोटी ननद की ही नहीं बल्की दो तीन और की सीळ तोडी)मेरी ननदों ने मिल के जबरन साडी ब्लाउज पहना पूरा श्रिंगार करके लडकी बनाया और मेरे सामने ही निहुरा के...मैं सोच रही थी आज दिन भर..शायद ही कोई लडका मर्द बचा हो जिसने मेरे जोबन का रस ना लिया. सारे के सारे नदीदे ललचाते रहते थे.. होली का मौका हो नयी भौजाई हो...लेकिन मैने भी अपनी ओर से छोडा थोडे ही सबके कपडे फाडै पाजामें में हाथ डाल के नाप जोख की और अंगुली किये बिना छोड़ा नहीं कम से कम चार बार मेरी गांड मारी गयी, ७-८ बार मैने बुर में लिया होगा और मुंह में लिया वो बोनस. ननदों के साथ जो मजा लिया वो अलग. मेरी बडी ननद और जेठानी अपने बारे में बता रही थी...
 
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