hotaks444
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फट गईईई
" देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है। तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं , तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के कहने छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दरद होगा बुरचोदी को लेकिन गांड मारने ,मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को। "
और भैया ने , एक बार फिर जोर से मेरीटाँगे कंधे पे सेट कीं ,चूतड़ जोर से पकड़ा सुपाड़ा थोड़ा सा बाहर निकाला , और वो अपनी पूरी ताकत से ठेला की ,...
बस मैं बेहोश नहीं हुयी। मेरी जान नहीं गयी।
जैसे किसी ने मुट्ठी भर लाल मिर्च मेरी गांड में ठूस दी हो और कूट रहा हो।
उईईईईई ओह्ह्ह्ह्ह्ह नहीं ईईईईईई। .... चीख रुकती नहीं दुबारा चालू हो जाती।
मैं चूतड़ पटक रही थी , पलंग से रगड़ रही थी , दर्द से बिलबिला रही थी।
लेकिन न मेरी चीख रोंकने की कोशिश भैया ने की न भाभी ने।
भैया ठेलते रहे ,धकेलते रहे।
भला हो बंसती का , जब मैं सुनील से गांड मरवा के लौटी थी , और वो मेरी दुखती गांड में क्रीम लगा रही थी ,पूरे अंदर तक। उसने समझाया था की गांड मरवाते समय लड़की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है , गांड को और खासतौर से गांड के छल्ले को ढीला छोड़ना। अपना ध्यान वहां से हटा लेना।
बसंती की बात एकदम सही थी।
लेकिन वो भी , जब एक बार सुपाड़ा गांड के छल्ले को पार कर जाता तो फिर से एक बार वो उसे खींचकर बाहर निकालते , और दरेरते ,रगड़ते ,घिसटते जब वो बाहर निकलता तो बस मेरी जान नहीं निकलती थी बस बाकी सब कुछ हो जाता।
और बड़ी बेरहमी से दूनी ताकत से वो अपना मोटा सुपाड़ा ,गांड के छल्ले के पार ढकेल देते।
बिना बेरहमी के गांड मारी भी नहीं जा सकती , ये बात भी बसंती ने ही मुझे समझायी थी।
छ सात बार इसी तरह उन्होंने गांड के छल्ले के आर पार धकेला ,ठेला। और धीरे धीरे दर्द के साथ एक हलकी सी टीस, मजे की टीस भी शुरू हो गयी।
और अब जो उन्होंने मेरे चूतड़ों को दबोच के जो करारा धक्का मारा , अबकी आधे से ज्यादा खूंटा अंदर था , फाड़ता चीरता।
दर्द के मारे मेरी जबरदस्त चीख निकल गयी ,लेकिन साथ में मजे की एक लहर भी ,
एकदम नए तरह का मजा।
" दो तीन बार जब कामिनी भाभी के मरद से गांड मरवा लोगी न तब आएगा असली गांड मरवाने का मजा, समझलु। " बसंती ने छेड़ते हुए कहा था।
जैसे अर्ध विराम हो गया हो।
….
भैय्या ने ठेलना बंद कर दिया था।
आधे से थोड़ा ज्यादा लंड अंदर घुस गया था।
गांड बुरी तरह चरपरा रही थी। चेहरा मेरा दर्द से डूबा हुआ था।
लेकिन भैय्या ने अब अपनी गदोरी से मेरी चुनमुनिया को हलके हलके ,बहुत धीरे धीरे सहलाना मसलना शुरू किया।
चूत में अगन जगाने के लिए वो बहुत था , और कुछ देर में उनका अंगूठा भी उसी सुर ताल में , मेरी क्लिट को भी रगड़ने लगा।
भैय्या के दूसरे हाथ ने चूंची को हलके से पकड़ के दबाना शुरू किया लेकिन कामिनी भौजी उतनी सीधी नहीं थी। दूसरा उभार भौजी के हाथ में था ,खूब कस कस के उन्होंने मिजना मसलना शुरू कर दिया।
बस मैं पनियाने लगी ,हलके हलके चूतड़ उछालने लगी। पिछवाड़े का दर्द कम नहीं हुआ था , लेकिन इस दुहरे हमले से ऐसी मस्ती देह में छायी की ,...
" हे हमार ननदो छिनार , बुरियो क मजा लेत हाउ और गंडियो क , और भौजी तोहार सूखी सूखी। चल चाट हमार बुर। "
वैसे भी कामिनी भाभी अगर किसी ननद को बुर चटवाना चाहें तो वो बच नहीं सकती और अभी तो मेरी दोनों कलाइयां कस के बंधी हुयी थीं , गांड में मोटा खूंटा धंसा हुआ था ,न मैं हिल डुल सकती थी , न कुछ कर सकती थी।
कुछ ही देर में भाभी की दोनों तगड़ी जाँघों के बीच मेरा सर दबा हुआ था और जोर से अपनी बुर वो मेरे होंठों पे मसल रगड़ रही थीं , साथ में गालियां भी
" देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है। तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं , तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के कहने छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दरद होगा बुरचोदी को लेकिन गांड मारने ,मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को। "
और भैया ने , एक बार फिर जोर से मेरीटाँगे कंधे पे सेट कीं ,चूतड़ जोर से पकड़ा सुपाड़ा थोड़ा सा बाहर निकाला , और वो अपनी पूरी ताकत से ठेला की ,...
बस मैं बेहोश नहीं हुयी। मेरी जान नहीं गयी।
जैसे किसी ने मुट्ठी भर लाल मिर्च मेरी गांड में ठूस दी हो और कूट रहा हो।
उईईईईई ओह्ह्ह्ह्ह्ह नहीं ईईईईईई। .... चीख रुकती नहीं दुबारा चालू हो जाती।
मैं चूतड़ पटक रही थी , पलंग से रगड़ रही थी , दर्द से बिलबिला रही थी।
लेकिन न मेरी चीख रोंकने की कोशिश भैया ने की न भाभी ने।
भैया ठेलते रहे ,धकेलते रहे।
भला हो बंसती का , जब मैं सुनील से गांड मरवा के लौटी थी , और वो मेरी दुखती गांड में क्रीम लगा रही थी ,पूरे अंदर तक। उसने समझाया था की गांड मरवाते समय लड़की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है , गांड को और खासतौर से गांड के छल्ले को ढीला छोड़ना। अपना ध्यान वहां से हटा लेना।
बसंती की बात एकदम सही थी।
लेकिन वो भी , जब एक बार सुपाड़ा गांड के छल्ले को पार कर जाता तो फिर से एक बार वो उसे खींचकर बाहर निकालते , और दरेरते ,रगड़ते ,घिसटते जब वो बाहर निकलता तो बस मेरी जान नहीं निकलती थी बस बाकी सब कुछ हो जाता।
और बड़ी बेरहमी से दूनी ताकत से वो अपना मोटा सुपाड़ा ,गांड के छल्ले के पार ढकेल देते।
बिना बेरहमी के गांड मारी भी नहीं जा सकती , ये बात भी बसंती ने ही मुझे समझायी थी।
छ सात बार इसी तरह उन्होंने गांड के छल्ले के आर पार धकेला ,ठेला। और धीरे धीरे दर्द के साथ एक हलकी सी टीस, मजे की टीस भी शुरू हो गयी।
और अब जो उन्होंने मेरे चूतड़ों को दबोच के जो करारा धक्का मारा , अबकी आधे से ज्यादा खूंटा अंदर था , फाड़ता चीरता।
दर्द के मारे मेरी जबरदस्त चीख निकल गयी ,लेकिन साथ में मजे की एक लहर भी ,
एकदम नए तरह का मजा।
" दो तीन बार जब कामिनी भाभी के मरद से गांड मरवा लोगी न तब आएगा असली गांड मरवाने का मजा, समझलु। " बसंती ने छेड़ते हुए कहा था।
जैसे अर्ध विराम हो गया हो।
….
भैय्या ने ठेलना बंद कर दिया था।
आधे से थोड़ा ज्यादा लंड अंदर घुस गया था।
गांड बुरी तरह चरपरा रही थी। चेहरा मेरा दर्द से डूबा हुआ था।
लेकिन भैय्या ने अब अपनी गदोरी से मेरी चुनमुनिया को हलके हलके ,बहुत धीरे धीरे सहलाना मसलना शुरू किया।
चूत में अगन जगाने के लिए वो बहुत था , और कुछ देर में उनका अंगूठा भी उसी सुर ताल में , मेरी क्लिट को भी रगड़ने लगा।
भैय्या के दूसरे हाथ ने चूंची को हलके से पकड़ के दबाना शुरू किया लेकिन कामिनी भौजी उतनी सीधी नहीं थी। दूसरा उभार भौजी के हाथ में था ,खूब कस कस के उन्होंने मिजना मसलना शुरू कर दिया।
बस मैं पनियाने लगी ,हलके हलके चूतड़ उछालने लगी। पिछवाड़े का दर्द कम नहीं हुआ था , लेकिन इस दुहरे हमले से ऐसी मस्ती देह में छायी की ,...
" हे हमार ननदो छिनार , बुरियो क मजा लेत हाउ और गंडियो क , और भौजी तोहार सूखी सूखी। चल चाट हमार बुर। "
वैसे भी कामिनी भाभी अगर किसी ननद को बुर चटवाना चाहें तो वो बच नहीं सकती और अभी तो मेरी दोनों कलाइयां कस के बंधी हुयी थीं , गांड में मोटा खूंटा धंसा हुआ था ,न मैं हिल डुल सकती थी , न कुछ कर सकती थी।
कुछ ही देर में भाभी की दोनों तगड़ी जाँघों के बीच मेरा सर दबा हुआ था और जोर से अपनी बुर वो मेरे होंठों पे मसल रगड़ रही थीं , साथ में गालियां भी