Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 12 - SexBaba
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Long Sex Kahani सोलहवां सावन

फट गईईई 







" देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है। तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं , तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के कहने छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दरद होगा बुरचोदी को लेकिन गांड मारने ,मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को। "

और भैया ने , एक बार फिर जोर से मेरीटाँगे कंधे पे सेट कीं ,चूतड़ जोर से पकड़ा सुपाड़ा थोड़ा सा बाहर निकाला , और वो अपनी पूरी ताकत से ठेला की ,... 

बस मैं बेहोश नहीं हुयी। मेरी जान नहीं गयी। 

जैसे किसी ने मुट्ठी भर लाल मिर्च मेरी गांड में ठूस दी हो और कूट रहा हो। 





उईईईईई ओह्ह्ह्ह्ह्ह नहीं ईईईईईई। .... चीख रुकती नहीं दुबारा चालू हो जाती। 

मैं चूतड़ पटक रही थी , पलंग से रगड़ रही थी , दर्द से बिलबिला रही थी। 







लेकिन न मेरी चीख रोंकने की कोशिश भैया ने की न भाभी ने। 

भैया ठेलते रहे ,धकेलते रहे। 

भला हो बंसती का , जब मैं सुनील से गांड मरवा के लौटी थी , और वो मेरी दुखती गांड में क्रीम लगा रही थी ,पूरे अंदर तक। उसने समझाया था की गांड मरवाते समय लड़की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है , गांड को और खासतौर से गांड के छल्ले को ढीला छोड़ना। अपना ध्यान वहां से हटा लेना।



बसंती की बात एकदम सही थी। 

लेकिन वो भी , जब एक बार सुपाड़ा गांड के छल्ले को पार कर जाता तो फिर से एक बार वो उसे खींचकर बाहर निकालते , और दरेरते ,रगड़ते ,घिसटते जब वो बाहर निकलता तो बस मेरी जान नहीं निकलती थी बस बाकी सब कुछ हो जाता। 

और बड़ी बेरहमी से दूनी ताकत से वो अपना मोटा सुपाड़ा ,गांड के छल्ले के पार ढकेल देते। 

बिना बेरहमी के गांड मारी भी नहीं जा सकती , ये बात भी बसंती ने ही मुझे समझायी थी। 

छ सात बार इसी तरह उन्होंने गांड के छल्ले के आर पार धकेला ,ठेला। और धीरे धीरे दर्द के साथ एक हलकी सी टीस, मजे की टीस भी शुरू हो गयी। 


और अब जो उन्होंने मेरे चूतड़ों को दबोच के जो करारा धक्का मारा , अबकी आधे से ज्यादा खूंटा अंदर था , फाड़ता चीरता। 






दर्द के मारे मेरी जबरदस्त चीख निकल गयी ,लेकिन साथ में मजे की एक लहर भी ,

एकदम नए तरह का मजा। 

" दो तीन बार जब कामिनी भाभी के मरद से गांड मरवा लोगी न तब आएगा असली गांड मरवाने का मजा, समझलु। " बसंती ने छेड़ते हुए कहा था। 


जैसे अर्ध विराम हो गया हो।
….
भैय्या ने ठेलना बंद कर दिया था। 

आधे से थोड़ा ज्यादा लंड अंदर घुस गया था। 


गांड बुरी तरह चरपरा रही थी। चेहरा मेरा दर्द से डूबा हुआ था। 

लेकिन भैय्या ने अब अपनी गदोरी से मेरी चुनमुनिया को हलके हलके ,बहुत धीरे धीरे सहलाना मसलना शुरू किया। 

चूत में अगन जगाने के लिए वो बहुत था , और कुछ देर में उनका अंगूठा भी उसी सुर ताल में , मेरी क्लिट को भी रगड़ने लगा। 

भैय्या के दूसरे हाथ ने चूंची को हलके से पकड़ के दबाना शुरू किया लेकिन कामिनी भौजी उतनी सीधी नहीं थी। दूसरा उभार भौजी के हाथ में था ,खूब कस कस के उन्होंने मिजना मसलना शुरू कर दिया। 

बस मैं पनियाने लगी ,हलके हलके चूतड़ उछालने लगी। पिछवाड़े का दर्द कम नहीं हुआ था , लेकिन इस दुहरे हमले से ऐसी मस्ती देह में छायी की ,... 


" हे हमार ननदो छिनार , बुरियो क मजा लेत हाउ और गंडियो क , और भौजी तोहार सूखी सूखी। चल चाट हमार बुर। "






वैसे भी कामिनी भाभी अगर किसी ननद को बुर चटवाना चाहें तो वो बच नहीं सकती और अभी तो मेरी दोनों कलाइयां कस के बंधी हुयी थीं , गांड में मोटा खूंटा धंसा हुआ था ,न मैं हिल डुल सकती थी , न कुछ कर सकती थी। 

कुछ ही देर में भाभी की दोनों तगड़ी जाँघों के बीच मेरा सर दबा हुआ था और जोर से अपनी बुर वो मेरे होंठों पे मसल रगड़ रही थीं , साथ में गालियां भी
 
कुछ ही देर में भाभी की दोनों तगड़ी जाँघों के बीच मेरा सर दबा हुआ था और जोर से अपनी बुर वो मेरे होंठों पे मसल रगड़ रही थीं , साथ में गालियां भी


" अरे छिनरो , गदहा चोदी , कुत्ताचोदी , तेरे सारे मायकेवालियों क गांड मारूं , चाट ,जोर जोर से चाट , रंडी क जनी ,हरामिन , अबहीं तो गांड मारे क शुरुआत है , अभी देखो कैसे कैसे ,किससे किससे तोहार गांड कुटवाती हूँ। "

गाली की इस फुहार का मतलब था की भौजी खूब गरमा रही हैं और उन्हें बुर चूसवाने में बहुत मजा आ रहा है। 

मजा मुझे भी आ रहा था ,गाली सुनने में भी और भौजी की रसीली बुरिया चूसने चाटने में भी। मैंने अपने दोनों होंठों के बीच भौजी की रसभरी दोनों फांके दबाई और लगी पूरे मजे ले ले के चूसने। 

उधर भैया ने भी अपनी दो उँगलियों के बीच मेरी गुलाबी पुत्तियों को दबा के इतने जोर से मसलना शुरू कर दिया की मैं झड़ने के कगार पे आ गयी। 

और मेरे भैय्या कोई कामिनी भाभी की तरह थोड़ी थे की मुझे झाड़ने के किनारे पे ले आ के छोड़ देते। 

उन्होंने अपनी स्पीड बढ़ा दी , और मैं , बस,... जोर जोर से काँप रही थी , चूतड़ पटक रही थी , मचल रही थी , सिसक रही थी। 

भैया और भाभी ने बिना इस बात की परवाह किये अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। भैया ने अपना मूसल एक बार फिर मेरी गांड में ठेलना शुरू कर दिया। 






भाभी ने अब पूरी ताकत से अपनी बुर मेरी होंठों पे रगड़ना शुरू कर दिया , और मैं झड़ने से उबरी भी नहीं थी की उन्होंने अपना चूतड़ उचकाया , अपने दोनों हाथों से अपनी गांड छेद खूब जोर से फैलाया और सीधे मेरे मुंह के ऊपर ,

" चाट ,गांडचट्टो ,चाट जोर जोर से। तोहार गांड हमार सैयां क लंड का मजा ले रही है त तनी हमरे गांड के चाट चुट के हमहुँ क , हाँ हाँ ऐसे ही चाट , अरे जीभ गांड के अंदर डाल के चाट। मस्त चाट रही हो छिनार और जोर से , हाँ घुसेड़ दो जीभ , अरे तोहें खूब मक्खन खिलाऊँगी , हाँ अरे गाँव क कुल भौजाइयन क मक्खन चटवाउंगी ,हमार ननदो ,... "

मैं कुछ भी नहीं सुन रही थी बस जोर जोर से चाट रही थी , गांड वैसे ही चूस रही थी जैसे थोड़ी देर पहले कामिनी भाभी की बुर चूस रही थी। 



खुश होके भौजी ने मेरे दोनों हाथ खोल दिए और मेरी मेरे खुले हाथों ने सीधे भौजी की बुर दबोचा ,दो ऊँगली अंदर ,अंगूठा क्लिट पे। 

थोड़ी देर में भौजी भी झड़ने लगीं ,जैसे तूफान में बँसवाड़ी के बांस एक दूसरे से रगड़ रहे हो बस उसी तरह ,हम दोनों की देह गुथमगुथा,लिपटी। 


जब भौजी का झड़ना रुका , भैय्या ने लंड अंदर पूरी जड़ तक मेरी गांड में ठोंक दिया था। 


थोड़ी देर तक उन्होंने सांस ली फिर मेरे ऊपर से उतर कर भैया के पास चली गयी। 

पूरा लंड ठेलने के बाद भैय्या भी जैसे सुस्ता रहे थे। मेरी टाँगे जो अब तक उनके कंधे पे जमीं थीं सीधे बिस्तर पे आ गयी थीं। हाँ अभी भी मुड़ीं ,दुहरी। हम दोनों की देह एक दूसरे से चिपकी हुयी थी। 


भौजी ऐसे देख रही थीं की जैसे उन्हें बिस्वास नहीं हो रहां की मेरी गांड ने इतना मोटा लंबा मूसल घोंट लिया। 

बाहर मौसम भी बदल रहा था। हवा रुकी थी ,बादल पूरे आसमान पे छाए थे और हलकी हलकी एक दो बूंदे फिर शुरू हो गयी थीं। लग रहा था की जोर की बारिश बस शुरू होने वाली है। 


मेरे हाथ अब खुल गए थे तो मैंने भी भैय्या को प्यार से अपनी बाहों में भर लिया था। 

" अरे एह छिनार ,भैया चोदी को कुतिया बना के चोदो। बिना कुतिया बनाये न गांड मारने का मजा , न गांड मरवाने का। बनाओ कुतिया। "





भैय्या को मैं मान गयी। 


बिना एक इंच भी लंड बाहर निकाले उन्होंने पोज बदला , हाँ कामिनी भाभी ने मेरे घुटनों और पेट के नीचे वो सारे तकिये और कुशन लगा दिए जो कुछ देर पहले चूतड़ के नीचे थे। 


इसके बाद तो फिर तूफान आ गया ,बाहर भी अंदर भी। 


खूब तेज बारिश अचानक फिर शुरू हो गयी , आसमान बिजली की चमक ,बादलों की गडगडगाहट से भर गया। 

भैय्या ने अब शुरुआत ही फुल स्पीड से की , हर धक्के में लंड सुपाड़े तक बाहर निकालते और फिर पूरी ताकत से लंड जड़ तक , गांड के अंदर। 




साथ में मेरी दोनों चूंचियां उनके मजबूत हाथों में , बस लग रहां था की निचोड़ के दम लेंगे। 

एक बार फिर मेरी चीख पुकार से कमरा गूँज उठा। 

बसंती भौजी ने बताया था की मर्द अगर एक बार झड़ने के बाद दुबारा चोदता है तो दुगना टाइम लेता है और अगर वो कामिनी भाभी के मरद जैसा है तो फिर तो ,... चिथड़े चिथड़े कर के ही छोड़ेगा। 

जैसे कोई धुनिया रुई धुनें उस तरह , 

लेकिन कुछ ही देर में दर्द मजे में बदल गया ,

बल्कि यूँ कहूँ की दर्द मजे में बदल गया। 

चीखों की जगह सिसिकिया , ... लेकिन इसमें भौजी का भी हाथ था। 

उन्होंने मेरी जाँघों के बीच हाथ डाल पहले तो मेरी चुनमुनिया को थोड़ा सहलाया मसला , फिर पूरी ताकत से अपनी एक ऊँगली , ज्यादा नहीं बस दो पोर ,लेकिन फिर जिस तरह से भैय्या का लंड मेरी गांड में अंदर बाहर ,अंदर बाहर होता उसी तरह कामिनी भाभी की ऊँगली मेरी चूत में,




और जब भौजी ने मेरी बुर से ऊँगली निकाली तो भैय्या ने ठेल दी। 

भौजी ने एक बार फिर से मेरा मुंह अपनी बुर में , ...वो मेरे सामने बैठी थी अपनी दोनों जांघे खोल के , और मेरा सर पकड़ के सीधे उन्होंने वहीँ। 

बिना कहे मैंने जोर जोर से चूसना शुरू कर दिया। 

भैय्या हचक हचक के गांड मार रहे थे ,साथ में उनकी एक ऊँगली मेरी चूत में कभी गोल गोल तो कभी अंदर बाहर ,

उनके हर धक्के के साथ मेरी भौजी की बुर चूसने की रफ़्तार भी बढ़ जाती। 





भौजी के मुंह से गालियां बरस रही थी और उनका एक हाथ मेरी चूंची की रगड़ाई मसलाई में जुटी थीं। 

बारिश की तीखी बौछार मेरी पीठ पे पड़ रही थी , लेकिन इससे न भैय्या की गांड मारने की रफ़्तार कम हो रही थी ,न मरवाने की मेरी। 

भैया के हर धक्के का जवाब मैं भी धक्के से अब दे रही थी। मेरी गांड भी भैया के लंड को दबोच रही थी ,निचोड़ रही थी जोर जोर से। 






आधे घंटे से ऊपर ही हो गया , धक्के पे धक्का 



भौजी और मैं साथ साथ झड़े ,और फिर मेरी गांड ने इतने जोर से निचोड़ना शुरू किया की , ... 

की साथ साथ भैया भी , उनका लंड मेरी गांड में जड़ तक घुसा हुआ था। 

और उसके बाद सारा दर्द सारी थकान एक साथ , ...मैं कब सो गयी मुझे पता नहीं चला , बस यही की मैं भौजी और भैय्या के बीच में लेटी थी। 


शायद सोते समय भी भैया ने बाहर नहीं निकाला था।
 
सुबह सबेरे 


अगली सुबह 




पता नहीं , भाभी की चिकोटियां की तरह नटखट सुनहली धूप ने मुझे जगाया या बाहर से आ रही मीठी मीठी गानों की गुनगुनाहट ने। लेकिन मुश्किल से जब मैंने अलसाते अलसाते आँखे खोली , तो धूप काफी अंदर तक आ गयी थीं। 



एक टुकड़ा धूप का जैसे मेरे बगल में बैठ के मुझे निहार रहा था। 

मैंने इधर उधर निगाह डाली , न तो कामिनी भौजी दिखीं न भैय्या , यानी कामिनी भाभी के पति। लेकिन जब मैंने अपने ऊपर निगाह डाली तो खुद लजा गयी। एकदम निसुती, कपडे का एक धागा भी नहीं मेरे ऊपर और रात के सारे निशान बाकी थे , 

खुले उभारों पर दांतों के और नाखूनों के निशान काफी ऊपर तक , जाँघों के और चद्दर पर भी गाढ़ी सफ़ेद थक्केदार मलाई अभी भी बह रही थी। देह कुछ दर्द से कुछ थकान से एकदम चूर चूर हो रही थी। उठा नहीं जा रहा था।


एक पल के लिए मैंने आँखे बंद कर लीं ,लेकिन धूप सोने नहीं दे रही थी। दिन भी चढ़ अाया था। 

किसी तरह दोनों हाथों से पलंग को पकड़ के , बहुत मुश्किल से उठी। और बाहर की ओर देखा। 

खिडकी पूरी तरह खुली थी। ,मतलब अगर कोई बगल से निकले और ज़रा सी भी गर्दन उचका के देखे तो , सब कुछ, ... मैं जोर से लजा गयी। 
इधर उधर देखा तो पलंग के बगल में वो साडी जो मैंने रात में पहन रखी थी , गिरी पड़ी थी। 

किसी तरह झुक के मैंने उसे उठा लिया और बस ऐसे तैसे बदन पर लपेट लिया।



खिड़की के बाहर रात की बारिश के निशान साफ़ साफ़ दिख रहे थे। भाभी की दूर दूरतक फैली अमराई नहाईं धोई साफ़ साफ़ दिख रही थी। 


और बगल में जो उनके धान के खेत थे , हरी चूनर की तरह फैले , वहां बारिश का पानी भरा था। ढेर सारी काम वाली औरतें झुकी रोपनी कर रही थीं और सोहनी गा रही थीं। 


उनमें से कई तो मुझे अच्छी तरह जानती थीं जो मेरी भाभी के यहाँ भी काम करती थीं और रतजगे में आई थीं। बस गनीमत था की वो झुक के रोपनी कर रही थीं इसलिए वहां से वो मुझे और मेरी हालत नहीं देख सकती थी। 


बारिश ने आसमान एकदम साफ़ कर दिया था। जैसे पाठ खत्म होने के बाद कोई बच्चा स्लेट साफ़ कर दे। हाँ दूर आसमान के छोर पे कुछ बादल गाँव के आवारा लौंडों की तरह टहल रहे थे। 



हवा बहुत मस्त चल रही थी. हलकी हलकी ठंडी ठंडी। रात की हुयी बरसात का असर अभी भी हवा में था।



किसी तरह दीवाल का सहारा लेकर मैं खिड़की के पास खड़ी थी। 

रात का एक एक सीन सामने पिक्चर की तरह चल रहा था, किस तरह कामिनी भाभी ने मेरी कोमल किशोर कलाइयां कस कस के बाँधी थीं , मैं टस से मस भी नहीं हो सकती थी। और फिर आधी बोतल से भी ज्यादा कडुवा तेल की बोतल सीधे मेरे पिछवाड़े के अंदर तक ,घर के सारे कुशन तकिये ,मेरे चूतड़ के नीचे।


लेकिन अब मुझे लग रहा है की भौजी ने बहुत सही किया। अगर मेरे हाथ उन्होंने बांधे नहीं होते तो जितना दर्द हुआ , भैय्या का मोटा भी कितना है , मेरी कलाई से ज्यादा ही होगा। और वो तो उन्होंने अपनी मोटी मोटी चूंची मेरे मुंह में ठूंस रखी थी ,वरना मैं चीख चीख के , फिर भैया अपना मोटा सुपाड़ा ठूंस भी नहीं पाते। 

पीछे से तेज चिलख उठी , और मैं ने मुश्किल से चीख दबाई। 






रसोई से कामिनी भाभी के काम करने की आवाज आ रही थी और मैं उधर ही चल पड़ी।
 
कामिनी भौजी 





रसोई से कामिनी भाभी के काम करने की आवाज आ रही थी और मैं उधर ही चल पड़ी। 

कामिनी भाभी भी मेरी ही धजा में थी , यानी सिर्फ साडी। 

दरवाजे का सहारा लेकर मैं खड़ी हो गयी और उनकी ओर देखने लगी। 







लेकिन एक बार फिर हलकी सी चीख निकल गयी ,वही पीछे जहाँ रात भर भैय्या का मूसल चला था , जोर चिलख उठी। 






भाभी की निगाह मेरे ऊपर पड़ी और मुस्कराते हुए उन्होंने छेड़ा ,


" क्यों मजा आया रात में। "

यहाँ दर्द के मारे जान निकल रही थी। किसी तरह मुस्कराते दर्द के निशान मैंने चेहरे से मिटाये और कुछ बोलने की कोशिश की ,उसके पहले ही भाभी खड़ी हो गयीं और आके उन्होंने कस के मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया। 

कामिनी भाभी हों तो बात सिर्फ अंकवार में भरने से नहीं रुकती ये मुझे अच्छी तरह मालूम था और वही हुआ।






उन्होंने सीधे से लिप टू लिप एक जबरदस्त चुम्मी ली। देर तक उनके होंठ मेंरे कोमल किशोर होंठ चूसते रहे और फिर सीधे गाल पे, कुछ देर उन्होंने चूमा , चाटा ,... फिर कचकचा के काट लिया। 

" बहुत नमकीन माल हो। " अपने होंठों पे जीभ फिराते बोलीं लेकिन उन्होंने अगली बात जो बोली वो ज्यादा खतरनाक थी,

" एक बार भौजी लोगन का नमकीन शरबत पिए लगोगी न तो एहु से १०० गुना ज्यादा नमकीन हो जाओगी , हमर बात मान लो। "


अब मुझे समझाने की जरूरत नहीं थी इस से उनका क्या मतलब था ,जिस तरह से बसंती और गुलबिया मेरे पीछे पड़ी थीं और ऊपर से कल तो लाइव शो देख लिया था मैंने कैसे जबरन नीरू के ऊपर चढ़ के गुलबिया ने ,और बसंती ने कैसे उस बिचारी को दबोच रखा था।


नीरू तो मुझसे भी एक साल छोटी थी। 


उधर कामिनी भाभी का एक हाथ साडी के ऊपर से मेरे छोटे छोटे किशोर चूतड़ों को दबा दबोच रही थी। और उनकी ऊँगली सीधे मेरी गांड की दरार पे , जैसे ही उन्होंने वहां हलके से दबाया एक कतरा भैय्या की गाढ़ी मलाई का मेरे पिछवाड़े से सरक कर ,... मेरी टांगो पे।


लेकिन भाभी की ऊँगली साडी के ऊपर से ही वहां गोल गोल घूमती रही। 


बात बदलने के लिए मैंने भाभी से पूछा ,

" भैया कहाँ है ". 

" नंबरी छिनार भाईचोद बहन हो। सुबह से भैया को ढूंढ रही हो। "

मैंने हमले का जवाब हमले से देने की कोशिश की , 

" आपका भरता है क्या ?"

लेकिन हमला उलटा पड़ा , कामिनी भाभी से कौन ननद जीत पायी है जो मैं जीत पाती।
" एकदम सही कहती हो , नहीं भरता मन। सिर्फ मेरा ही नहीं तेरे भैय्या का मन नहीं भरा तुमसे , सुबह से तुझे याद कर रहे हैं। लेकिन इसके लिए तो तेरे ये जोबन जिम्मेदार है " निपल की घुन्डियाँ साडी के ऊपर से मरोड़ती वो चिढ़ाती बोलीं ,फिर जोड़ा। " और तेरी भी क्या गलती , तेरे भैया बल्कि तेरे सारे मायकेवाले भंडुए मरद ही , बहनचोद ,मादरचोद हैं। "

बहनचोद तो ठीक ,रात भर तो भैय्या मेरे ऊपर चढ़े थे ,लेकिन मादरचोद ,... 

और कामिनी भाभी खुद ही बोलीं , " अरे इतना मोटा और कड़ा है तेरे भैय्या का , भोंसड़ीवालियों को जवानी के मजे आ जाते हैं। और खेली खायी चोदी चुदाई भोंसड़े का रस अलग ही है। और फिर तेरी तरह वो भी बिचारे किसी को मना नहीं कर पाते ,जहाँ बिल देखा वहीँ घुसेड़ा। "

साथ साथ भाभी का हाथ मेरे चूतड़ों को सहला रहा था और उनकी ऊँगली गांड की दरार में घुसी गोल गोल ,... साडी हलकी हलकी गीली होरही थी। 


अंदर का ,... 


" सुबह से तेरे भैया पीछे पड़े थे , बस एक बार। वो तो मैंने मना किया अभी बच्ची है , रात भर चढ़े रहे हो। जैसे तुम सुबह से भैय्या ,भैय्या कर रही हो न वो गुड्डी गुड्डी रट रहे थे। "

मैं क्या बोलती। ये भी तो नहीं कह सकती थी की अरे भाभी कर लेने दिया होता ना। 

भाभी ने कलाई की पूरी ताकत से गचाक से अपनी मंझली ऊँगली साडी के ऊपर से ही दरार के अंदर ठेलने की पूरी कोशिश की। 

" एकदम ऊपर तक बजबजा रहा है। " 


मुस्करा के वो बोलीं 
 
पिछवाड़े का खेल 

भाभी ने कलाई की पूरी ताकत से गचाक से अपनी मंझली ऊँगली साडी के ऊपर से ही दरार के अंदर ठेलने की पूरी कोशिश की। 

" एकदम ऊपर तक बजबजा रहा है। " 

मुस्करा के वो बोलीं और मुझे समझाया , " ये कह के वो मेरी हामी के लिए चुप हो गयीं। 


मैंने हामी भर दी।



बात उन की सही थी ,मैं खुद महसूस कर रही थी , भैया ने जो कटोरी भर रबड़ी मेरे पिछवाड़े डाली थी और फिर डाट की तरह अपना मोटा कसी कसी गांड में ठूंसे ठूंसे सो गए थे। उसके पहले आधी बोतल कडुवा तेल भी तो भौजी ने वहां उड़ेला था। 



लेकिन उसके अलावा , ये क्या ,... मेरी समझ में नहीं आया। 


समझाया कामिनी भाभी ने गांड में गोल गोल ऊँगली करते। 

" अरे सिर्फ तेरे भैय्या की मलाई थोड़ी ,इस समय सुबह सुबह तो तेरा मक्खन भी अंदर , पूरा नीचे तक ,... बजबज करता है। बस खाली एक बार पेलने की देर है , भले ही सूखा ठेल दो हचक के पूरी ताकत से , और जहाँ गांड का छल्ला पार हुआ , ... बस,... तेरा गांड का मक्खन जहाँ लगा फिर तो सटासट सटासट ,गपागप गपागप। इससे बढ़िया चिकनाई हो नहीं सकती। "

मैं शरम से लाल हो रही थी , लेकिन कुछ भाभी की बातों का असर और कुछ उनकी ऊँगली का गांड में फिर से जोर जोर से कीड़े काटने लगे थे। 

तभी उनकी ऊँगली कुछ इधर उधर लग गयी और मेरी जोर से चीख निकल गयी। 


भाभी ने उंगली हटा ली और बोलीं , 

" इसकी सिर्फ एक इलाज है मेरी प्यारी ननद रानी , तेरी इस कसी कच्ची गांड में चार पांच मरदों का मोटा मोटा खूंटा जाय। और घबड़ाओ मत , मैं और गुलबिया मिल के इसका इंतजाम कर देंगे , तेरे शहर लौटने के पहले। गांड मरवाने में एकदम एक्सपर्ट करा के भेजंगे तुझे ,चलो बैठो। "


मैं भाभी के साथ पीढ़े पर रसोई में बैठ गयी। मुझे बसंती की बात याद आ रही थी बार बार गुलबिया के मरद के बारे में और भरौटी के लौंडो के बारे में। 

मैं भाभी का काम में हाथ बटा रही थी और भाभी ने काम शिक्षा का पाठ शुरू कर दिया। कल उन्होंने लौंडों को पटाने के बारे में बताया था तो आज पिछवाड़े के मजे के बारे में।
कामिनी भाभी की ये बात तो एकदम ठीक थी की मजा लड़के और लड़कियों दोनों को आता है तो बिचारे लड़के लाइन मारते रहें और लड़कियां भाव ही न दें। 

लौंडो को पटाने ,रिझाने ,बिना हाँ किये हाँ कहने की ढेर सारी ट्रिक्स उन्होंने कल रात मुझे सिखाई थी और तब मुझे लगा था मैं कितनी बेवकूफ थी।









स्कूल क्या पूरे शहर में शायद मेरे ऐसी कोई लड़की न होगी ,ऐसा रूप और जोबन। लड़के भी सारे मेरे पीछे पड़ते थे ,लेकिन ले मेरी कोई सहेली उड़ती थी , फिर उसके साथ कभी पिक्चर तो कभी पार्टी। 

और ऊपर से मुझे चिढ़ातीं , मुझे सुना सुना के बोलतीं , मेरे पास तो चार हैं , मेरे पास तो पांच है। और जान बूझ के मुझसे पूछतीं , हे गुड्डी तेरा ब्वॉय फ्रेंड ,... अब मैं अपनी गलती समझ गयी थी। मुझे भी उनके कमेंट्स का , लाइन मारने का कुछ तो जवाब देना पडेगा। अब की लौटूँगी शहर तो बताती हूँ ,... 


लेकिन भाभी अभी पिछवाड़े के मजे के गुर सिखा रही थीं। 

" लड़कों को जितना आगे में मजा आता हैं न उससे ज्यादा पिछवाड़े में ख़ास तौर से जो खेले खाए मरद होते हैं उन्हें। "

" लेकिन भाभी , दर्द बहुत होता है। " मैंने अपनी परेशानी बताई। 

" अरी छिनरो इसी दरद में तो मजा है। गांड मरवाने वाली को जब दरद का मजा लेना आ जाए न तब आता है उसे सच में गांड मारने का मजा। वो तुम मेरे और गुलबिया के ऊपर छोड़ दो , अब चाहे तुम मानो चाहे जबरदस्ती ,६-७ मरदों का मोटा मोटा खूंटा अपनी गांड में ले लोगी न तो खुद ही गांड में चींटे काटेंगे। लेकिन दो तीन बाते हैं , ... "
 
गुदा ज्ञान

भाभी अभी पिछवाड़े के मजे के गुर सिखा रही थीं। 

" लड़कों को जितना आगे में मजा आता हैं न उससे ज्यादा पिछवाड़े में ख़ास तौर से जो खेले खाए मरद होते हैं उन्हें। "


" लेकिन भाभी , दर्द बहुत होता है। " मैंने अपनी परेशानी बताई। 

" अरी छिनरो इसी दरद में तो मजा है। गांड मरवाने वाली को जब दरद का मजा लेना आ जाए न तब आता है उसे सच में गांड मारने का मजा। 

वो तुम मेरे और गुलबिया के ऊपर छोड़ दो , अब चाहे तुम मानो चाहे जबरदस्ती ,६-७ मरदों का मोटा मोटा खूंटा अपनी गांड में ले लोगी न तो खुद ही गांड में चींटे काटेंगे। लेकिन दो तीन बाते हैं , ... "

मैं कान पारे सुन रही थी। 

" पहली बात है मन से डर निकाल दो। अरे तोहसे कम उम्र के लौंडे ,नेकर सरकाय सरकाय के गांड मरौवल खेलते हैं , ( मुझे भी अजय की बात याद आई की उसने सबसे पहले वो जब क्लास नौ में पढ़ता था किसी लड़के की मारी थी जो उससे भी छोटा था ) और तोहार चूतड़ तो इतने मस्त है की सब मरद ललचाते हैं ,... तो डरने की कोई बात नहीं है। और न एहमें कोई गड़बड़ है।


एकरे लिए जब नहाती हो न ,और रात में सोते समय,आज नहाते समय मैं सीखा दूंगी , ऊँगली से पहले छेद को सहलाओ , दबाओ बिना घुसेड़े। शीशे में अपने पिछवाड़े के छेद को देखो ध्यान से , फिर ऊँगली की टिप में नारियल का खूब तेल लगा के या कड़ुआ तेल लगा के , बहुत हलके गांड में डालो। ज्यादा नहीं सिर्फ एक पोर , ... "





ये बोल के भाभी किसी काम में लग गयी लेकिन मेरी उत्सुकता बनी हुयी थी। 


" फिर , ऊँगली गोल गोल घुमाओ , आगे पीछे नहीं। सिर्फ गोल गोल। कम से कम चार पांच मिनट। गांड को मजा आने लगेगा और तोहार डर भी कम हो जाएगा।



मेरे मन ने नोट कर लिया , ठीक है आज से ही। 

" लेकिन असली खेल है गांड के छल्ले का ,सबसे ज्यादा दर्द वहीँ होता है। " वो बोलीं। 


मुझसे ज्यादा कौन जानता था ये बात जब भैया ने कल रात सुपाड़ा गांड के छल्ले में पेला था , उस समय भाभी ने अपनी चूंची भी निकाल ली थी मेरे मुंह से ,कितना जोर से चिल्लाई थी मैं। आधा गाँव जरूर जग गया होगा। वो तो मेरे हाथ कामिनी भाभी ने कस के बाँध रखे थे वरना ,... 


"उसके लिए भी जरूरी है मन को तैयार करो। खुद ही उसको ढीला करो। एकदम रिलैक्स , एही लिए पहले ऊँगली गोल गोल घुमाओ , फिर गांड के छल्ले को ढीला छोड़ के हलके हलके ऊँगली ठेलो अंदर तक। 


कुछ दिन में ही गांड के छल्ले को आदत पड़ जायेगी , ऊँगली के अंदर बाहर होने की और उस से भी बढ़के तोहार दिमाग की बात मानने की , की कौनो डरने की बात नहीं है , खूब ढीला छोड़ दो , आने दो अंदर। " कामिनी भाभी बता रही थीं और मैं ध्यान से सुन रही थी एक एक बात। 


" सबसे जरूरी है मन बना लो , फिर डर छोड़ दो और मारने वाले का बराबर का साथ दो। रात में भी प्रैक्टिस करो लेकिन कभी भी एक ऊँगली से ज्यादा मत डालो और ऊँगली के अलावा कुछ भी नहीं, वो काम लौंडो के ऊपर छोड़ दो। " भाभी मुस्कराते हुए बोलीं। 

मैं शरमा गयी। 

" हाँ एक बात और , जब आता है न तो खूब ढीला छोड़ दो लेकिन एक बार जब सुपाड़ा अच्छी तरह अंदर घुस जाए न तो बस तब कस के भींच दो , निकलने मत दो साल्ले को ,असली मजा तो मर्द को भी और तोहूँ को भी तभी अायेगा ,जब दरेरते ,फाड़ते ,रगड़ते घुसेगा अंदर बाहर होगा। 

और एक प्रैक्टिस और , अपने गांड के छल्ले को पूरी ताकत से भींच लो ,सांस रोक लो ,२० तक गिनती गिनो और फिर खूब धीमे धीमे १०० तक गिनती गिन के सांस छोड़ो और उसी साथ उसे छल्ले को ढीला करो। खूब धीमे धीमे। कुछ देर रुक के ,फिर से। एक बार में पन्दरह बीस बार करो। क्लास में बैठी हो तब भी कर सकती हो।

सिकोड़ते समय महसूस करो की , अपने किसी यार के बारे में सोच के कि उसका मोटा खूंटा पीछे अटका है। "


वास्तव में कामिनी भाभी के पास ज्ञान का पिटारा था।और मैं ध्यान से एक एक बात सुन रही थी , सीख रही थी। शहर में कौन था जो मुझे ये बताता ,सिखाता। 

अचानक कामिनी भाभी ने एक सवाल दाग दिया, 

" तू हमार असली पक्की ननद हो न "

" हाँ , भौजी हाँ एहु में कोई शक है " मैंने तुरंत बोला। 

" तो अगर तू हमार असल ननद हो तो पक्की गाँड़मरानो बनने के लिए तैयार रहो। असली गाँड़मरानो जानत हो कौन लौंडिया होती है ? " भाभी ने सवाल फिर पूछ लिया।
 
कामिनी भाभी 



" तो अगर तू हमार असल ननद हो तो पक्की गाँड़मरानो बनने के लिए तैयार रहो। असली गाँड़मरानो जानत हो कौन लौंडिया होती है ? " भाभी ने सवाल फिर पूछ लिया। 

...........


जवाब मुझे क्या मालूम होता लेकिन मैं ऐसी मस्त भाभी को खोना नहीं चाहती थी , तुरंत बोली। 

" भौजी मुझे इतना मालूम है की मैं आपकी असल ननद हूँ और आप हमार असल भौजी , और हम आप को कबहुँ नहीं छोड़ेंगे। " ये कहके मैंने भौजी को दुलार से अंकवार में भर लिया। 


प्यार से मेरे चिकने गाल सहलाते भौजी बोलीं ,

" एकदम मालूम है। एही बदे तो कह रही हूँ तोहें पक्की गाँड़मरानो बना के छोडूंगी। 

असल गाँड़मरानी उ होती है जो खुदे आपन गांड चियार के मर्द के लंड पे बैठ जाय और बिना मरद के कुछ किये, मोटा लौंड़ा गपागप घोंटे और अपने से ही गाण्ड मरवाये। "


मेरे चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आयीं। मेरी आँखों के सामने भैया का मोटा लंड नाच रहा था। 


भाभी मन की बात समझ गयीं। साडी के ऊपर से मेरे उभारों को हलके हलके सहलाते बोलीं ,

" अरे काहें परेसान हो रही हो हम हैं न तोहार भौजी। सिखाय भी देंगे ट्रेनिंग भी दे देंगे। "

" लेकिन इतना मोटा , .... " मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। 


" अरे बताय रही हूँ , न गांड खूब ढीली कर लो और दोनों पैर अच्छी तरह फैलाय के , खूंटे के ऊपर , हां बैठने के पहले अपने दोनों हाथों से गांड का छेद खूब फैलाय लो। उहू क रोज प्रैक्टिस किया करो ,बस। 

अब जब सुपाड़ा सेंटर हो जाय ठीक से , छेद में अटक जाय तो बस जहाँ बैठी हो पलंग पे ,कुर्सी पे जमींन पे ,दोनों हाथ से खूब कस के पकड़ लो और अपनी पूरी देह का वजन जोर लगा के , हाँ ओकरे पहले लंड को खूब चूस चूस के चिक्कन कर लो। धीमे धीमे सुपाड़ा अंदर घुसेगा। 

असली चीज गांड का छल्ला है , बस डरना मत। दर्द की चिंता भी मत करना ,उसको एकदम ढीला छोड़ देना। "





भाभी की बात से कुछ तो लगा शायद ,फिर भी ,.. मुझे भी डर उसी का था , वो तो सीधे लंड को दबोच लेता है। 

और भाभी ने शंका समाधान किया। जब छल्ले में अटक जाय न तो बजाय ठेलने के , जैसे ढक्कन की चूड़ी गोल गोल घुमाते हैं न बस कभी दायें कभी बाएं बस वैसे ,और थोड़ी देर में बेडा पार , उसके बाद तो बस सटासट ,गपागप।



मारे ख़ुशी के मैंने भाभी को गले लगा लिया और जोर जोर से उनके गाल चूमने लगी। 

वो मौका क्यों छोड़ती दूने जोर से उन्होंने मुझे चूमा , और साथ में जोर से मेरे उभार दबाती बोलीं ,

" इसके बाद तो वो मरद तुझे छोड़ेगा नहीं। लेकिन ध्यान रखना चुदाई सिरफ़ बुर और गांड से नहीं होती , पूरी देह से होती है। जो

र जोर से उसे अपनी बाँहों में भींच के रखना , बार बार चूमना और सबसे बढ़ के अपनी ये मस्त जानमारु कड़ी कड़ी चूंचियां उसके सीने पे कस कस के रगड़ना। सबसे बड़ी चीज है आँखे और मन। जो भी तेरी ले न उसे लगना चाहिए की तेरी आँखों में मस्ती है , तुझे मजा आ रहा है , तू मन से मरवा रही है। उसके बाद तो बस ,... "
 
मिस्ट्री,... 


जोर जोर से उसे अपनी बाँहों में भींच के रखना , बार बार चूमना और सबसे बढ़ के अपनी ये मस्त जानमारु कड़ी कड़ी चूंचियां उसके सीने पे कस कस के रगड़ना। सबसे बड़ी चीज है आँखे और मन। जो भी तेरी ले न उसे लगना चाहिए की तेरी आँखों में मस्ती है , तुझे मजा आ रहा है , तू मन से मरवा रही है। उसके बाद तो बस ,... "

कामिनी भाभी कहीं थ्योरी से प्रक्टिकल पर न आ जाएँ उसके पहले मैंने बात बदल दी और उनसे वो बात पूछ ली जो कल से मुझे समझ में नहीं आ रही थी। 




" भाभी , आप तो कह रही थीं की भैय्या कल रात बाहर गए हैं ,नहीं आएंगे लेकिन अचानक ,... " मैंने बोला। 


वो जोर से खिलखिला के हंसी और बोलीं 




" तेरी गांड फटनी थी न , अरे उन्हें अपनी कुँवारी बहन की चूत की खूशबू आ गयी। " 

फिर उन्होंने साफ़ साफ़ बताया की भैय्या को शहर में दो लोगों से मिलना था। एक ने बोला की वो कल मिलेगा , इसलिए वो शाम को ही लौट आये और बगल के गाँव में अपने दोस्त के यहाँ रुक गए थे। तब तक तेज बारिश आ गयी और उन्होंने खाना वहीँ खा लिया। लेकिन जब बारिश थमी तो वो ,... "

बात काट के मैं खिलखिलाते हुए बोली , तो रात को जो चूहा आप कह रही थीं , वो वही,.... 


" एकदम बिल ढूंढता हुआ आ गया। चूहे को तो बिल बहुत पसंद आयी लेकिन बिल को चूहा कैसा लगा। " कामिनी भाभी भी हँसते मुझे चिढ़ाते बोलीं। 


" बहुत अच्छा ,बहुत प्यारा लेकिन भौजी मोटा बहुत था। " मैंने ने भी उसी तरह जवाब दिया। 


तब तक बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई ,

हँसते हुए भाभी बोलीं ," चूहा "
 
भैय्या 


अब तक 


की भैय्या को शहर में दो लोगों से मिलना था। एक ने बोला की वो कल मिलेगा , इसलिए वो शाम को ही लौट आये और बगल के गाँव में अपने दोस्त के यहाँ रुक गए थे। तब तक तेज बारिश आ गयी और उन्होंने खाना वहीँ खा लिया। लेकिन जब बारिश थमी तो वो ,... "

बात काट के मैं खिलखिलाते हुए बोली , तो रात को जो चूहा आप कह रही थीं , वो वही,.... 


" एकदम बिल ढूंढता हुआ आ गया। चूहे को तो बिल बहुत पसंद आयी लेकिन बिल को चूहा कैसा लगा। " कामिनी भाभी भी हँसते मुझे चिढ़ाते बोलीं। 


" बहुत अच्छा ,बहुत प्यारा लेकिन भौजी मोटा बहुत था। " मैंने ने भी उसी तरह जवाब दिया। 


तब तक बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई ,

हँसते हुए भाभी बोलीं ," चूहा "




आगे 



हँसते हुए भाभी बोलीं ," चूहा "



भैया थे ,नहा के निकले। सिर्फ एक छोटा सा गीला अंगोछा पहने , जो 'वहां ' पर एकदम चिपका था , सब कुछ दिखने वाले अंदाज में। 

भाभी और उनके पीछे मैं वहीँ पहुँच गए।

मैं बस ,... पागल नहीं हुयी। 

देखा तो उन्हें कल रात में भी था। लेकिन धुंधली रौशनी उस पर चांदनी और बादलों की लुकाछिपी का खेल, फिर कभी मैं दर्द में डूबती, कभी मजे में उतराती और सबसे बढ़कर भाभी आधे समय मेरे ऊपर चढ़ी हुयी थीं , इस लिए कल देखने से ज्यादा उन्हें मैंने महसूस किया था। 




लेकिन इस समय तो बस ,क्या मेल मॉडल्स की फोटोग्राफ्स होंगी ,... 

सबसे दुष्ट होती हैं आँखे। और उनकी बड़ी बड़ी खुश खुश आँखों में जो मस्ती तैर रही थी,जो नशा तारी हो रहा था ,वो किसी भी लड़की को पागल बनाने के लिए काफी था। 

चार आँखों का खेल कुछ देर चला , फिर मैंने आँखे थोड़ी नीचे कर लीं। 

पर वो जादू कम नहीं हआ। 

वो जादू क्या जो सर पे चढ़ के न बोले और उन के देह का तिलस्म , बस मैं हमेशा के लिए उसमें कैद हो चुकी थी। 

जैसे साँचे में बदन ढला हो , एक एक मसल्स , और क्या ताकत थी उनमें , जोश और जवानी दोनों छलक रही थीं। 

फ़िल्मी हीरों के सिस्क्स पैक्स सूना भी था और देखा भी था , लेकिन आज लगा वो सब झूठ था। असली जो था मेरे सामने था। 

सीना कितना चौड़ा और एकदम फौलादी ,लेकिन कमर वैसी ही पतली ,केहरि कटि ,

एकदम V शेप में ,

और उसके नीचे , एक पल के लिए ,... मेरी आँखे अपने आप मुंद गयी , ... लाज से। 




आप कहोगे रात भर घोटने के बाद भी , लेकिन रात की बात और थी , यहां दिन दहाड़े , बल्कि सुबह सबेरे,... 

लेकिन नदीदी आँखे , लजाते शर्माते , झिझकते सकुचाते आँखे मैंने खोल ही दिन। 

ढका था वो , अपनी सहेलियों की भाषा में कहूँ तो सबसे इम्पॉरटेंट मेल मसल , ... 


लेकिन ढका भी क्या , गीले गमछे में सब कुछ दिख रहा था। था भी मुश्किल से डेढ़ बित्ते का वो और गीला देह से एकदम चिपका।सब कुछ दिख रहा था। शेप , साइज ,... 

बाकी लोगो का जो एकदम तन्नाने के बाद जिस साइज का होता है , ५-६ इंच का उतना बड़ा तो वो इसी समय लग रहा था। खूब मोटा ,प्यारा सा , मीठा और सबसे बढ़ कर उसका सर , एकदम लीची सा ,... मन कर रहा था झट से मुंह में ले लूँ। 


मेरी आँखे अब बस यहीं चिपक के रह गयीं। 


अगर मेरे नैन चोर थे तो उनकी आँखे डाकू। 

अगर मेरी निगाहें गीले गमछे के अंदर उनके 'वहां' चिपकी थीं, तो उनकी आँखे भी मेरे किशोर नए आये उभारो पे ,


और वहां भी तो सिर्फ पतली सी साडी से मेरे जुबना ढके थे , न ब्रा न ब्लाउज। और उन्हें छिपाने के लिए जो मैंने कस के साडी उनके ऊपर बाँधी थी वही मेरा दुश्मन हो गया। 

पूरे उभार ,उनका कटाव और यहाँ तक की गोल गोल कड़े कंचे के शेप और साइज के निपल्स , सब कुछ दिख रहा था। 






दिख रहा था तो दिखे , मुझे भी अब ललचाने में रिझाने में मजा अाने लगा था। और मैं ये भी जानती थी की मेरे जोबन का जादू सर चढ़ के बोलता है। 

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हम दोनों का देखा देखी का खेल पता नहीं कितने देर तक चलता रहता , मैच ड्रॉ ही रहता अगर कामिनी भाभी ने थर्ड अंपायर की तरह अपना फैसला नहीं सुनाया होता ,


" आपसे कहा था न , सारे गीले कपडे वहीँ बाथरूम में , तो ये गीला गीला गमछा पहने , ... उतार कर वहीँ , जहाँ बाकी गीले कपडे हैं ,... "


भाभी ने बोला भैय्या से था , लेकिन जिस तरह से मेरी ओर देख के वो मुस्कराई थीं , मैं समझ गयी , हुकुम मेरे लिए है। 

बस अगले ही पल , मैंने झट से गमछा खीच के उतार दिया और गोल गोल लपेट के ,पूरी ताकत से , ,... एकदम लांग आन बाउंड्री से सीधे विकेट पर। गीले कपड़ों वाली बाल्टी में। 
……………..
 
थोड़ी सी लिप सर्विस ,कहीं भी कभी भी 









बस अगले ही पल , मैंने झट से गमछा खीच के उतार दिया और गोल गोल लपेट के ,पूरी ताकत से , ,... एकदम लांग आन बाउंड्री से सीधे विकेट पर। गीले कपड़ों वाली बाल्टी में। 
……………..

और इधर भी नतीजा जो होना था वही हुआ , पूरे ९० डिग्री पे , एकदम टनटनाया , खूब मोटा ,... लेकिन कल के अपने अनुभव से मैं कह सकती थी अभी भी वो पूरी तरह ,... थोड़ा सोया थोड़ा जागा। लेकिन अब जागा ज्यादा। 


लीची ऐसा रसीला सुपाड़ा भी अब खूूब तन्नाया ,मोटा , पूरे जोश में। 

भौजी ने चिढ़ाया , " क्यों हो गया न सबेरे सबेरे दरसन , अब दिन अच्छा बीतेगा। "

मैं लजा गयी लेकिन आँखे वहां से नहीं हटीं। 

" हे गुड्डी ढेर भइल चोरवा सिपहिया , ... अरे यार एक छोटी सी चुम्मी तो बनती है." भौजी ने मुझे चढ़ाया। 

मन तो मेरा भी कर रहा था। अब तो भौजी का हुकुम ,मैं घुटने के बल बैठ गयी सीधे 'उसके' सामने। 




और गप्प से मुंह में ले लिया। 




पहले तो अपने रसीले होंठों से बहुत प्यार से सुपाड़े पर से दुलहन का घूंघट हटाया , और फिर एक बार खुल के अब ,एकदम ख़ुशी से फूल के कुप्पा सुपाड़े को देखा मन भर के। 


खूब बड़ा खूब रसीला।



ललचाई निगाह से थोड़ी देर देखती रही , फिर अपनी तर्जनी के टिप से सुपाड़े के पी होल ( पेशाब के छेद ) को बस छू कर सुरसुरा दिया। 




मेरी आँखे भैय्या के आँखों से जुडी थीं ,उनकी प्यास देख रही थीं। 

न उनसे रहा जा रहा था न मुझसे। 

मैंने फिर उन्हें कुछ चिढ़ाते , कुछ छेड़ते अपनी लम्बी रसीली जीभ से उसी पेशाब के छेद में सुरसुरी करनी शुरू कर दी। 

बिचारे भैय्या ,उनकी हालत खराब हो रही थी , और कुछ देर तंग करने के बाद मैंने गप्प से पूरा सुपाड़ा एक बार में गप्प कर लिया। 





कितना कड़ा लेकिन कितना रसीला , एकदम रसगुल्ला। 

अब सब कुछ भूल के मैं बस उसे चूस रही थी ,चुभला रही थी , मेरे होंठ दबा दबा के मोटे कड़े सुपाड़े का मजा ले रहे थे और साथ में जीभ नीचे से चाट रही थी। 





मैंने तो अपने हाथों को मना कर रखा था , आज सिर्फ मुंह से ,... लेकिन भैय्या भी तो पागल हो रहे थे। उन्हें कौन रोकता। 

उन्होंने दोनों हाथों से कस के मेरे सर को पकड़ लिया और फिर , एक झटके में हचक के आधा लंड उन्होंने मेरे किशोर मुंह में पेल दिया। 


यही तो मैं चाहती थी। भैय्या के साथ पहली बार मुझे रफ एंड वाइल्ड सेक्स का मजा मिल रहा था। 

कामिनी भाभी लेकिन मेरे साथ थीं , उन्होंने हलके से भैय्या को धक्का दे दिया और अब वो बिस्तर पे बैठ गए ,वही बिस्तर जहाँ रात भर हमलोगों ने कबड्डी खेली थी और जहां से थोड़ी देर पहले ही मैं सो के उठी थी। 

अब वो आराम से बैठे थे और मैं आराम से उनकी टांगों के बीच बैठ कर चूस रही थी ,चाट रही थी सपड़ सपड़।


कभी चूसती तो कभी उन्हें दिखा के अपनी कुँवारी किशोर जीभ उनके सीधे बाल्स से शुरू कर लंड के सुपाड़े तक हलके हलके चाटती और जब भैय्या तड़पने लगते तो मुस्करा के एक बार फिर से लंड में मुंह में। 

भइया से कुछ देर में नहीं रहा गया और उन्होंने लगाम अपने हाथ में ले ली। 







अब बजाय मैं भैय्या का लंड चूसने के , वो मेरा मुंह चोद रहे थे ,पूरी ताकत से।
 
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