Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 11 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Long Sex Kahani सोलहवां सावन

और नीचे उसी मजबूती से उनके दोनों हाथों ने मेरी दोनों जांघो को कस के फैला रखा था। 

उन्होंने इतनी जोर से चूसा की मैं काँप गयी और साथ में हलके से क्लिट पे जो उन्होंने बाइट ली की , बस लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी.बस मन कर रहां था की जैसे कोई मोटा लम्बा आके , मेरी चूत की चूल चूल ढीली कर दे , 


लेकिन भौजी मेरी झड़ने दे तब न , जैसे ही मैं किनारे पे पहुंची , उन्होंने मेरी चूत पर से अपने होंठ हटा लिए और जबरदस्त गाली दी ,

" काहें ननदी छिनार , भाईचोदी , तेरे सारे खानदान की गांड मरवाऊं तोहरे भैया से , तोहरी चूत को चोद चोद के भोंसड़ा न बनाय दिया तो तुहारे भैया ने ,.. "

मैं भी कौन कम थी , अपनी भाभी की चुलबुली ननद , मैंने भी मुंह बना के जवाब दिया ,

" भौजी आपके मुंह में घी शक्कर लेकिन भैया हैं कहाँ , "

जवाब भौजी ने अपने स्टाइल से दिया , दो ऊँगली से पूरी ताकत से उन्होंने चूत की दोनों फांके फैला दिया और एक बार में जैसे कोई लंड पेले , गचाक से अपनी जीभ पूरी अंदर ठेल दिया और उनके दोनों होंठ जैसे कोई संतरे की फांक चूसे वैसे पहले धीमे धीमे फिर जोर जोर से , और उनकी शैतान उँगलियाँ भी खाली नहीं थी। जाँघों को सहलाते सहलाते सीधे क्लिट पे ,


मेरे पास कोई जवाब नहीं था सिवाय अपने छोटे छोटे कुंवारे चूतड़ मस्ती में बिस्तर पे पटकने के। 

मुंह तो हमारा एक बार फिर भौजी की बुर ने कस के बंद कर दिया था और अब उनका इशारा समझ के मैं भी जोर जोर से चूस रही थी। भाभी की जाँघों ने न सिर्फ मेरे सर को दबोच रखा था बल्कि सीधे वो मेरी दोनों नरम कलाई पे थीं इसलिए मैं हाथ भी नहीं हिला सकती थी। 

नीचे मैं पनिया रही थी और ऊपर भाभी की चूत से भी एक तार की चाशनी निकलनी शुरू हो गयी थी। क्या कोई मर्द किसी लौंडिया का मुंह चोदेगा ,जिस ताकत से कामिनी भाभी मेरा मुंह चोद रही थीं। 



क्या मस्त स्वाद था , लेकिन इस समय मन कर रहा था बस एक मोटे लम्बे ,... 
मैं तो बोल नहीं सकती थी ,

भौजी ही बोली , " कहो छिनार ,चाहि न तोहें मोटा लंड , 

मैं जवाब देने के हालत में नहीं थी क्यों की एक तो कामिनी भाभी ने पूरी ताकत से अब अपनी बुर से मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे अबकी मैं तीसरी बार झड़ने के कगार पे थी। 


तबतक किसी ने मेरी दोनों लम्बी टांगो को पकड़ के अपने मजबूत कंधे पे रख लिया।

भाभी ने अपने होंठ मेरी गीली कीचड़ भरी चूत से हटा लिया था लेकिन उनके दोनों हाथों की उंगलिया कस के मेरे निचले होंठों को फैलाये हुयें थीं। 

मैं एकदम हिलने की हालत में नहीं थी और तभी जो मैंने चाह रही थी ,

एक खूब मोटे गरम सुपाड़े का अहसास , मेरी चूत की दरार के बीच ,

जब तक मैं सम्हलूँ , दो तीन धक्के पूरी ताकत से , आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा मेरी चूत में। 




मैं दर्द से कहर रही थी , लेकिन कामिनी भाभी ने ऊपर से ऐसे मुझे दबोच रखा था की न मैं हिल सकती थी न चीख सकती थी। ऊपर उनकी मोटी मोटी जाँघों ने मेरे चेहरे को दबा रखा था ,

सिर्फ दर्द का अहसास था और इस बात का की एक खूब मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा बुरी तरह मेरी बुर में धंसा है।
 
अब तक 


मैं जवाब देने के हालत में नहीं थी क्यों की एक तो कामिनी भाभी ने पूरी ताकत से अब अपनी बुर से मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे अबकी मैं तीसरी बार झड़ने के कगार पे थी। 


तबतक किसी ने मेरी दोनों लम्बी टांगो को पकड़ के अपने मजबूत कंधे पे रख लिया।

भाभी ने अपने होंठ मेरी गीली कीचड़ भरी चूत से हटा लिया था लेकिन उनके दोनों हाथों की उंगलिया कस के मेरे निचले होंठों को फैलाये हुयें थीं। 

मैं एकदम हिलने की हालत में नहीं थी और तभी जो मैं चाह रही थी ,

एक खूब मोटे गरम सुपाड़े का अहसास , मेरी चूत की दरार के बीच ,

जब तक मैं सम्हलूँ , दो तीन धक्के पूरी ताकत से , आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा मेरी चूत में। 




मैं दर्द से कहर रही थी , लेकिन कामिनी भाभी ने ऊपर से ऐसे मुझे दबोच रखा था की न मैं हिल सकती थी न चीख सकती थी। ऊपर उनकी मोटी मोटी जाँघों ने मेरे चेहरे को दबा रखा था ,

सिर्फ दर्द का अहसास था और इस बात का की एक खूब मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा बुरी तरह मेरी बुर में धंसा है। 









आगे 







भैय्या 







फँस गया ,धंस गया , अंडस गया






मैं दर्द से कहर रही थी , लेकिन कामिनी भाभी ने ऊपर से ऐसे मुझे दबोच रखा था की न मैं हिल सकती थी न चीख सकती थी। ऊपर उनकी मोटी मोटी जाँघों ने मेरे चेहरे को दबा रखा था ,

सिर्फ दर्द का अहसास था और इस बात का की एक खूब मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा बुरी तरह मेरी बुर में धंसा है। 

..............







दर्द के मारे जान निकली जा रही थी। बस चीख नहीं पा रही थी क्योंकि कामिनी भाभी ने अपनी गीली बुर से मेरे मुंह को कस के दबोच रखा था। मैं छटपटा रही थी। 

लेकिन कामिनी भाभी की तगड़ी मोटी जाँघों की पकड़ के से हिलना भी मुश्किल था ,ऊपर से अपनी देह से उन्होंने मुझे पूरी ताकत से दबा रखा था। उनके होंठ मेरी चूत से हट जरूर गए थे , लेकिन उनकी दोनों हाथ की उँगलियों ने चूत को फैला रखा था। 

अभी तक मैं लंड के लिए तड़प रही थी लेकिन बस अब मन कर रहा था की बस किसी तरह ये मोटा बांस निकल जाय। चूत फटी पड़ रही थी। 


भाभी के होंठो ने एक बार फिर चूत के किनारे चाटना शुरू कर दिया। 




और कुछ देर में ही मेरी फूली पगलाई बौराई क्लिट भौजी के दुष्ट होंठों के बीच ,... चूसते चूसते उन्होंने हलके से एक बाइट ली और फिर बाँध टूट गया। 

साथ में जोरदार धक्को के साथ सुपाड़ा पूरा अंदर ,... 

पता नहीं मैं चूत में सुपाड़े के धक्के से झड़ी या भौजी ने जो जम के क्लिट चूसी ,काटी थी। 

लेकिन अब सब दर्द भूल के मैं सिसक रही थी , चूतड़ हलके हलके ऊपर उचका रही थी और मौके का फायदा उठा के कभी गोल गोल घुमा के , तो कभी पूरी ताकत से , सुपाड़े के साथ साथ अब लंड भी थोड़ा सा अंदर पैबस्त हो गया था ,करीब १/३ , दो तीन इंच। 

और झड़ना रुकने के साथ ही एक बार उस चूत फाडू दर्द का अहसास फिर से शुरू हो गया। 

लेकिन अब कामिनी भाभी मेरे ऊपर से उठ गयी ,लेकिन उठने के पहले मेरे कान में फुसफुसा के बोलीं ,

" छिनरो अब चाहे जितना चूतड़ पटको , सुपाड़ा तो गटक ली हो , अब बिना चोदे ई लंड निकलने वाला नहीं है। भाई चोद तो बन ही गयी , अब आराम से चूतड़ उठा उठा के अपने भैय्या का लंड घोंटों , मस्ती से चुदवाओ। चलो देख लो अपने भैय्या को। "




भौजी उनको क्यों छोड़तीं , उनको भी लपेटा कामिनी भाभी ने ,

" क्यों मजा आ रहा है न बहिन चोदने में। अरे हचक्क के चोदो छिनार को ,दोनों चूंची पकड़ के कस कस के , उहू के याद रहे भैया से चोदवाये क मजा। "


मैंने हलके हलके आँखे खोलीं। 

मस्त हवा चल रही थी। बादलों और चांदनी की लुका छिपी में इस समय चाँद ने अपना घूँघट हटा दिया था और बेशरम कीतरह खुली खिड़की से उतर कर सीधे कमरे में बैठा था। 





खिड़की से एक ओर आम का घना बाग और दूसरी ओर दूर तक गन्ने का खेत दिख रहा था। बारिश कब की थम चुकी थी , लेकिन कभी कभी घर की खपड़ैल से और आम के पेड़ों से पानी की टपटप बूंदे गिर रही थीं। 

और मैंने उनको देखा , कामिनी भाभी के 'उनको '


ऊप्स ' भैय्या ' को 

( कामिनी भाभी ने मुझे कसम धरा दी थी की 'उनको ' मैं भैया ही बोलूं , और मैं मान भी गयी थी। )






खूब गठा बदन , चौड़ा सीना ,हाथों की मछलियाँ साफ़ दिख रही थी। ताकत छलक रही थी , और कैसी ललचाई निगाह से मुझे देख रहे थे , मेरे ऊपर झुके हुए ,... 

कामिनी भौजी भी दूर नहीं गयी थीं , मेरे सिरहाने ही बैठी थीं। मेरा सर अपनी गोद में लेकर , हलके हलके दुलराते मेरा माथा सहला रही थीं। 

चिढ़ाते हुए कामिनी भौजी बोलीं ,

" अरे ले लो न अब काहें ललचा रहे हो , अब तो तोहार बहिनिया तोहरे नीचे है। "

वो झुके , मुझे लगा मेरे होंठ , ..मेरी पलकें काँपकर अपने आप बंद हो गयीं , लेकिन उनके होंठ सीधे मेरे जुबना पर , एक निपल उनके होंठ में और दूसरा उनके हाथों के बीच। 

लेकिन बिना किसी जल्दी बाजी के , होंठ चुभलाते चूसते और हाथ धीरे धीरे मेरे मस्त उभार रगड़ते मसलते। 


मुझे चम्पा भाभी की बात याद आई , उन्होंने मुझे मेले में देखा था और तबसे मेरे जोबन ने उनकी नींद चुरा ली थी और बसंती ने भी यही बात कही थी की सिर्फ वोही नही गाँव के सारे मरद मेरी मस्त चूचियों पे मरते हैं। 





मैंने निगाहे खोल दी और नीचे ले गयी चोरी चोरी ,और सिहर गयी ,

उफ्फ्फ कितना मोटा था , मैंने अब तक कितनों का घोंटा था , सुनील ,अजय ,दिनेश , ... लेकिन किसी का भी, तो इतना नहीं ,... ये तो एकदम मोटा बांस , ... लेकिन मेरी चोरी पकड़ी गयी , पकड़ने वाली और कौन , मेरी भौजी , कामिनी भौजी। 





चोरी चोरी मुझे देखते उन्होंने पकड़ लिया और कान में फुसफुसा के बोली ,

" अरे ननद रानी तोहरे भैया का है , काहें छुप के देख रही हो। पसंद आया न। अब घोंटो गपागप्प। "

दर्द के मारे चूत फटी जा रही थी , फिर भी मैं मुस्करा पड़ी ,भौजी भी न ,.. 

मुझे बसंती की बात याद आ रही थी , मरद की चुदाई की बात और होती है। एकदम सही बोली थी वो। दर्द भी मज़ा भी। 

कोई और लड़का होता तो सिर्फ सुपाड़ा घुसा के छोड़ता थोड़े ही , उसे तो जल्द से जल्द पूरा घुसाने की जल्दी रहती। जैसे कोई दौड़ जीतनी हो , कुछ साबित करना हो , लेकिन जैसा बसंती ने बोला था मरद सब मज़ा लेना भी जानते हैं और देना भी। 

कुछ ही देर में मेरी चूत दर्द का अहसास कम होने लगा , एक मीठी टीस थी अभी भी लेकिन इसके साथ जिस तरह वह चूत के ऊपरी नर्व्स को रगड़ रही थी , एक नए तरह का मजा भी मिल रहा था , सिसक भी रही थी , उफ़ उफ़ भी कर रही थी। 

और चूंची की रगड़ाई मसलाई भी बहुत तेज हो गयी थी। जैसे कोई आटा गूंथे वैसे,…


पर कामिनी भौजी कहाँ चुप बैठने वाली थीं , उन्होंने उकसाया ,






" अरे हचक हचक के पेल दो पूरा लंड न । इस छिनार को आधे तीहे में मजा नहीं आता। चोद चोद के एह्की बुरिया को आज भोंसड़ा बना दो। तोहरी बहिन के इहाँ से रंडी बना के भेजूंगी। "
 
लगाय जाय राजा धक्के पे धक्का 



भैया ने मेरी दोनों चूंचियां छोड़ दी , एक हाथ कमर पे , एक मेरे छोटे छोटे कड़े चूतड़ पे। थोड़ा सा सुपाड़ा उन्होंने बाहर निकाला और फिर क्या करारा धक्का मारा ,

मेरी आँखों के आगे तारे नाच गए। 

मेरी इतनी जोर से चीख निकली की आधे गाँव में सुनाई दिया होगा। 

पूरी देह में दर्द की लहर दौड़ गयी और अभी पहले धक्के के दर्द से उबरी भी नहीं थी की एक बार फिर , और अबकी पहले वाले से भी दूनी ताकत से ,


मुझे लग रहा था की मेरी चूत फट जायेगी। एक के बाद एक धक्के जैसे कोई धुनिया रुई धुनें। 








मेरी चीखें कुछ कम हो गयी थीं , लेकिन बंद नहीं हुयी थीं। आँखों में दर्द का छलकता पानी , कुछ छलक कर गालों पे भी उतर आया था। 

भैय्या का एक हाथ अभी भी जोर से मेरे चूतड़ को दबोचे हुआ था और दूसरा मेरी पतली कमर को पकडे था। 

चूंचियां अब भौजी के कब्जे में थी और वो उसे कभी हलके हलके सहलाती ,दुलराती तो कभी कस कस के मसल मीज देतीं और मुझे छेड़ते हुए बोलतीं ,

" क्यों ननद रानी आ रहा है मजा चुदवाने का न , अब बन गयी न भाईचोद। "




और उनको भी छेड़तीं , " अरे बहन की चुदाई क्या जबतक आधे गाँव को पता न चले , पेलो हचक हचक के। बिना चीख पुकार के कच्ची कुँवारी चूत की चुदाई थोड़े ही होती है , चीखने दो छिनार को। "

कुछ भौजी की छेड़छाड़ , कुछ जिस तरह वो चूंची मीज मसल रही थी और कुछ भैय्या के धक्कों का जोर भी अब कम हो गया था। 

एक बार फिर से दर्द अब मजे में बदल गया था। चूत में अभी भी टीस हो रही थी , फटी पड रही थी लेकिन देह में बार बार हर धक्के के साथ एक मजे की लहर उठती। मैं सिसक रही थी , धक्को का जवाब भी अब चूतड़ उठा के दे रही थी। 

लेकिन तब तक भैया ने चोदना रोक दिया , और जब तक मैं कुछ समझ पाती , भौजी ने झुक के मेरे होंठों को चूम के बोला , 

" बिन्नो ,अभी सिर्फ आधा गया है , जो इत्ता चीख रही हो , आधा मूसल बाकी है। "

और मैंने शरमाते लजाते ,कुछ डरते झिझकते देखा , ..सच में करीब तीन चार इंच बांस बाकी था। 

मेरी तो जान निकल गयी , और असली जान तो तब निकली ,जब भैया ने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ के मेरी चूत में गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया। 


जिस तरह वो मेरी सहेली की अंदर की दीवारो को रगड़ रहा था ,दरेर रहा था , घिसट रहा था , बस दो मिनट में वही हुआ जो होना था। 



पहले मैं दर्द से मर रही थी और अब मजे से। 

भैय्या ने उसके साथ दूसरे हाथ से मेरी क्लिट को छेड़ना मसलना शुरू कर दिया। 

भौजी भी उनके साथ , जोर जोर से मेरे निप्स को पिंच कर रही थी। 

मन तो यही कह रहा था की भैया अब बाकी बचा मूसल भी मेरी चूत में डाल दें लेकिन कैसे कहती। 






अपने ऊपर झुकी भौजी की आँखों से लेकिन मेरी प्यासी आँखों ने अपनी फ़रियाद कह दी , और हल भी भौजी ने बता दिया ,मेरेकानों में 

" आरी बिन्नो , अरे मजा लेना है तो लाज शरम छोड़ के खुल के बोल न अपने भैय्या से की पूरा लंड डाल के चोदें , जब तक तू नहीं बोलेगी न उनसे , न वो पूरा चोदेंगे , न तुझे झड़ने देंगे ,बस ऐसे तड़पाते रहेंगे। "

मैंने उनकी ओर देखा ,उनकी आँखे मेरी आँखों में झाँक रही थी ,मुस्करा रही थीं जैसे मेरे बोलने का इन्तजार कर रही हो और मैंने बोल दिया।
 
भैय्या , करो न,.....






" भैय्या , करो न ,... 








" भैय्या , करो न ,... प्लीज , करो न। "
………………………………………………………
न उन्होंने धक्का मारा और न बोले ,सिर्फ उनकी आँखे मेरी आँखों में झांकती रहीं। और फिर मुस्करा के हलके से बोले ,

" क्या करूँ , खुल के बोल न "

मेरी चूत दर्द से परपरा रही थी , लेकिन उसमें चींटे भी जोर जोर से काट रहे थे। 

लेकिन शरम ,झिझक अभी भी बहुत थी। किसी तरह हिम्मत कर के बोली ,

" भैय्या ,रुको मत ,डालो न पूरा , बहुत मन कर रहा है मेरा। "

" क्या डालूं मेरी बहना ,खुल के बोल न " मेरे निपल से खेलते वो बोले। 

दूसरे निपल को जोर से पिंच करते भौजी ने मेरे कान में फुसफुसाया,

" अरे छिनरो , साफ़ साफ़ बोल तुझे तेरे भैय्या का मोटा लंड चाहिए , तुझे हचक के चोदें ,वरना रात भर बिना झड़े तड़पती रहेगी। 






और मेरी तड़पन और बढ़ गयी थी क्योंकि भैया के दूसरे हाथ के अंगूठे ने जोर जोर से मेरे क्लिट को रगड़ना शुरू कर दिया था। मेरे चूतड़ अपने आप उछल रहे थे। मेरा मन कर रहा था बस वो हचक के चोद दें। 

" भैया , मुझे आपकी बहन को आपका मोटा लंड चाहिए। चोदो न मुझे पूरा लंड डाल के ,झाड़ दो मुझे। " अब बेशरम चुदवासी की तरह मैं बोली। 

उन्होंने एक बार फिर मेरी दोनों लम्बी गोरी टाँगे अपने चौड़े कंधे पे सेट की और एक हाथ चूंची से हट के मेरे चूतड़ पे आगया। लेकिन भौजी ने दोनों चूंचियां दबोच ली और जोर जोर से मीजने रगड़ने लगी ,

मुझे लगा की भैय्या अब धक्का मारेंगे , लेकिन उन्होंने क्लिट को मसलने की रफ़्तार तेज की और मेरे गाल को कचकचा के काटते हुए , बोला ,

" सुन चोदूंगा मैं तुझे ,लेकिन आज ही नहीं रोज चुदवाना होगा , जहाँ कहूँ वहां आना होगा , हर जगह चुदवाना होगा। "

" हाँ भैया , हाँ " मैं चूतड़ पटक रही थी ,सिसक रही थी। 

उन्होंने लंड आलमोस्ट बाहर निकाल लिया , आधे से ज्यादा सुपाड़ा भी बाहर था ,क्लिट वो जोर जोर से दबा रहे थे ,रगड़ रहे थे। 

" जिस से कहूँ उस से चुदवाना पडेगा , बहना मेरी समझ ले। '

मैं न कुछ सुनने की हालत में थी न समझने की हालत में। बस चूतड़ पटक रही थी ,सिसक रही थी , हाँ हाँ बोल रही थी। 

और अगला धक्का इतना तेज था की मैं ऑलमोस्ट बेहोश हो गयी। दर्द की जोर जोर से चीखे निकल रही थी 

चौथे पांचवें धक्के में लंड ने सीधे बच्चेदानी पे धक्का मारा। 








वो मोटा सुपाड़ा , पहाड़ी आलू जैसा बड़ा ,तगड़ा सीधे मेरी बच्चेदानी पे ,

और मेरी चूत से जैसे कोई ज्वालामुखी फूटा , मैं काँप रही थी , चीख रही थी , अपने चूतड़ जोर जोर से चादर पर रगड़ रही थी। 


झड़ रही थी। 

आज तक मैं इतने जोर से नहीं झड़ी थी। 


झड़ती रही ,झड़ती रही।



पता नहीं मैंने कितने दिन तक आँख बंद कर के बस जस की तस पड़ी रही। मेरेदोनों हाथ जोर से चादर को भींचे हुए थे। 

और जब मैंने आँखों खोली तो , बाहर अब सब कुछ बदल गया था। चाँद की आँखे शैतान कजरारी बदरियों ने अपनी गदोरियों में बंद कर दी थी। बस बादलो से छिटक कर थोड़ी सी चाँदनी अभी भी कमरे में छलक रही थी। बाहर खिड़की से दिखती अमराई और गन्ने के खेत अब स्याह अँधेरे में पुत गए थे।
 
जादूगर सैयां...बना भैय्या


और जब मैंने आँखों खोली तो , बाहर अब सब कुछ बदल गया था। चाँद की आँखे शैतान कजरारी बदरियों ने अपनी गदोरियों में बंद कर दी थी। बस बादलो से छिटक कर थोड़ी सी चाँदनी अभी भी कमरे में छलक रही थी। बाहर खिड़की से दिखती अमराई और गन्ने के खेत अब स्याह अँधेरे में पुत गए थे। 

लेकिन अंदर कुछ भी नहीं बदला था। 


भैय्या का 'वो ' , वो लंड अभी भी पूरी तरह पैबस्त था ,एकदम जड़ तक ,मेरी कुँवारी चूत में। उनके हाथ अभी भी मेरी पतरी कमरिया को पकडे थे जोर से। उनकी जादू भरी आँखे मेरी चेहरे को टकटकी लगाए देख रही थी ,जैसे कोई नदीदा बच्चा हवा मिठाई देखता है। 

कामिनी भाभी अभी भी अपनी गोद में मेरा सर रखे हलके प्यार से मेरा सर सहला रही थीं। 

झड़ते समय तो लग रहा था मैं हवा में उड़ रही थी , लेकिन अब ,... मेरी पूरी देह टूट रही थी , दर्द में डूबी थी। खासतौर से दोनों फैली खुली जांघे फटी पड़ रही थीं। ऐसी थकान लग रही थी की बस , ... 

मेरी खुली आँखों को देख के भैय्या की आँखे मुस्कराईं। 

भाभी ने भी शायद कुछ इशारा किया ,और जैसे कोई फिल्म जो फ्रीज़ हो गयी ,एक बार फिर से स्लो मोशन में शुरू हो जाए बस उसी तरह ,
………………..

भैय्या ने अपनी पोज ज़रा भी नहीं बदली , उनके हाथ मेरी कमर को थामे रहे। उन्होंने अपने उसको भी नहीं बाहर निकाला न धक्के शुरू किये। लंड उसी तरह पूरी तरह मेंरी चूत में , ,... बस ,उनके लंड के बेस ने मेरी क्लिट को हलके हलके रगड़ना शुरू किया , पहले बहुत धीमे धीमे ,जैसे बाहर से हलकी हल्की पुरवाई अंदर आ रही थी। 

कोई धीरे से आलाप छेड़े लेकिन कुछ देर में रगड़न का जोर और स्पीड दोनों बढ़ने लगी। 

भौजी ने ऊपर की मंजिल सम्हाली। 



पहले तो माथे से उनका एक हाथ मेरे चिकने चिकने गाल को सहलाता रहा लेकिन जैसे ही भैय्या के लंड के बेस ने क्लिट को रगड़ने की रफ़्तार तेज की उन्होंने मेरे दोनों जुबना को दबोच लिया , लेकिन बहुत हलके से ,प्यार से , कभी सहलाती , तो कभी धीरे से मीज देती। झुक के उन्होंने मेरे होंठ भी चूम लिए। 


मुझ से ज्यादा कौन जानता था उनकी उँगलियों के जादू को। 


और भैया और भौजी के दुहरे हमले का असर तुरंत हुआ , एक बार फिर मेरे तन और मन दोनों ने मेरा साथ छोड़ दिया। 

दर्द से देह टूट रही थी लेकिन मेरे चूतड़ हलके हलके भैय्या के लंड के बेस की रगड़ाई के रिदम में ऊपर नीचे होने लगे। जैसे ही भौजी मेरे निपल्स पिंच किये मस्ती की सिसकी जोर से मेरे होंठों से निकली। 




दिल का हर तार हिला छिड़ने लगी रागिनी ,



और कुछ ही देर में भइया ने लंड हलके से थोड़ा सा बाहर निकाला और बहुत हलके से पुश किया। जिस तरह से उनका मोटा लंड मेरी चूत की दीवालों को रगड़तै दरेरते अंदर बाहर हो रहा था , मस्ती से मैं काँप रही थी। 

भौजी ने झुक के एक निपल मेरे होंठों में भर लिया और लगी पूरी ताकत से चूसने , दूसरी चूंची उनके हाथों से रगड़ी मसली जा रही थी। 

बहुत समय नहीं लगा मुझे उस आर्केस्ट्रा का हिस्सा बनने में। 





मैं कमर हिला रही थी , चूतड़ उचका रही थी। और जब मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगों ने भैया की कमर को लता की तरह घेर के दबोच लिया , अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया , मेरे दोनों हाथ उनके कंधे पे थे , मेरे लम्बे नाख़ून उनके शोल्डर ब्लेड्स पे धंस रहे थे और जब मैंने खुद बोल दिया , 

"ओह्ह आह,... भैय्या , करो न , आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह। "

फिर तो कमरे में वो तूफान मचा। 

एक बारगी उन्होंने लंड ऑलमोस्ट बाहर निकाल लिया और मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ के वो करारा धक्का मारा की सीधे सुपाड़ा बच्चेदानी पे। बालिश्त भर का उनका पहलवान अंदर। 

दर्द से मेरी जान निकल गयी लेकिन साथ साथ मजे से मैं सिहर गयी। 


जादूगर सैयां छोडो मेरी बैंयां , 


लेकिन मेरा सैयां बना भैय्या जानता था मुझे क्या चाहिये। 

आज की पूरी रात उनके नाम थी। और बचा खुचा बताने के लिए थीं न मेरी भौजी ,


" अरे चोदो न हचक हचक के , मुझे तो इतनी जोर से और तुम्हारी बहन है तो रहम दिखा रहे हो , फाड़ दो इसकी आज " 

भौजी ने मौके का फायदा उठाया, और साथ उनकी ननद यानी मैंने भी दिया , अपना चूतड़ जोर से उचकाकर। और खूब जोर से भैय्या को अपनी ओर खींच कर ,

फिर क्या था , एक बार फिर से मेरी दोनों उभरती चूंचियां भैय्या के कब्जे में आ गयी और अब वो बिना किसी रहम के उसे मसल रहे थे थे रगड़ रहे थे और धक्के पर धक्के ,

" दोनों जुबन जरा कस के दबाओ , लगाय जाओ राजा धक्के पे धक्का। " 



भौजी ने एक बार फिर भैय्या को उकसाया। 


चूत दर्द से फटी जा रही थी , फिर भी मस्ती में चूर मेरी देह उनके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी। जब उनका सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से टकराता तो रस में डूबी चूत जोर से उनके मोटे लंड को भींच लेती जैसे कभी छोड़ेगी नहीं। 




और कामिनी भाभी अब भैया के पास बैठी कभी उन्हें उकसातीं कभी छेड़ती , 

और मेरी भौजी हो तो बिना गालियों के ,... लेकिन अब गालियों की रसीली दरिया में मैं और भैय्या भी खुल के शामिल हो गए थे। और अक्सर मैं और भैया एक साथ ,... 

" क्यों मजा आ रहा है भैया को सैयां बना के चुदवाने का " भौजी ने मुझे चिढ़ाया , लेकिन मैंने भी जवाब उसी लेवल का दिया। 

" अरे भौजी रोज रोज हमरे भैया से चुदवावत हो तो एक दिन तो हमारा भी हक़ बनता है न ,क्यों " भैय्या की आँखों में झांक के मैंने बोला और भौजी को सुना के गुनगुनाया ,

सुन सुन सुन मेरे बालमा,


और सीधे उनके होंठों को चूम लिया। 

भैया ने भी जवाब अपने ढंग से दिया ,आलमोस्ट मुझे दुहरा करके वो धक्का मारा की, 

बस जान नहीं निकली। 

और भौजी को सुनाते मुझसे बोले ,

" तू एकदम सही कह रही है। एक दिन क्यों, ... हर रोज, बिना नागा ,जब तक तू है यहां पे , अरे मेरी बहन पे जोबन आया है तो मैं नहीं चोदूंगा तो कौन चोदेगा। "

दर्द बहुत हुआ लेकिन मजा भी बहुत अाया , उस धक्के में। मैं एक बार फिर झड़ने के कगार पे थी ,लेकिन बजाय रुकने के भैय्या ने एक और ट्रिक शुरू कर दी थी वो पोज बदल लेते थे। आसान बदल बदल कर चोदने में मुझे भी एक नया मजा आ रहां था। 


उन्होंने उठाकर मुझे गोद में बिठा लिया लेकिन इस तरह की उनका लंड उसी तरह मेरी चूत में धंसा हुआ था। 

कामिनी भाभी ने मेरी टाँगे एडजस्ट कर के उनके पीठ के पीछे फंसा दी। अब मैं गोद में थी ,लंड अंदर जड़ तक धंसा हुआ , और मेरी चूंचियां उनके सीने में रगड़ खाती। 

मेरी थकान कुछ कम हुयी इस आसन में क्यंकि अब उनके धक्के का असर उतना नहीं हो रहा था। 

" ज़रा हमरी ननदिया को झूला झुलाओ ,मैं आती हूँ। " बोल के भाभी चली गयीं। 

बाहर हवाएँ तेज हो गयीं थी , रुक रुक के हलकी बूंदे भी शुरू हो गयी थीं। 


और फिर उन्होंने हलके हलके अंदर बाहर , ...और मैं भी उन्ही के ताल पे आगे पीछे आगे पीछे , एकदम झूले का मजा था। 

जब वो बाहर निकालते तो मैं भी कमर पीछे खीच लेती और सुपाड़ा तक बाहर निकालने के बाद कुछ रुक के जब मेरी कमरिया पकड़ के वो पुश करतै तो मैंने उन्ही की स्पीड में बराबर के जोर से धक्के मारती। उनका हाथ मेरी पीठ पे और मेरा हाथ उनकी पीठ पे , साथ साथ हम दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे ,चाट रहे थे। 

भाभी एक बड़े गिलास में दूध भर के ले आयीं ,कम से कम दो अंगुल तक मलाई। 


हम दोनों ने तो पिया ही थोड़ा बहुत भौजी को भी , ... 

और फिर तो भैया को एकदम जैसे नयी ताकत ,.... और मेरी भी सारी थकान जैसे उतर गयी। 

( ये तो मुझे बाद में पता चला की इस दूध में कुछ रेयर हर्ब्स पड़ी थी जिससे उनकी ताकत दूनी हो गयी और मेरी थकान कम होने के साथ उत्तेजना भी बढ़ गयी। शिलाजीत ,अश्वगंधा ,जिनसेंग ,सफ़ेद मूसली ,शतावरी, शुद्ध कुचला ,केसर और भी बहुत कुछ )

कुछ देर बाद मैं फिर उनके नीचे थी। और अब मूसल लगातार चल रहा था। 

मैं चीख रही थी ,सिसक रही थी। 

लेकिन वो रुकने वाले नहीं थी और न मैं चाहती थी की वो रुकें। 

दो बार मैं झड़ चुकी थी , एक बार जब उन्होंने पहली बार सुपाड़ा ठेला था और दूसरी बार जब उन्होंने पूरा लंड पेल दिया था , सुपाड़ा बच्चेदानी से टकराया था। 


तीसरी बार जब मैं झड़ी तो साथ में वो भी ,

हम दोनों साथ साथ देर तक ,.... लंड जड़ तक चूत में घुसा था। 

मैं बुरी तरह थक गयी थी। हम दोनों एक दूसरे को बाँहों पकड़े जकड़े भींचे सो गए। 
 
रात अभी बाकी है 









हम दोनों साथ साथ देर तक ,.... लंड जड़ तक चूत में घुसा था। 

मैं बुरी तरह थक गयी थी। हम दोनों एक दूसरे को बाँहों पकड़े जकड़े भींचे सो गए। 

…………………………………………………………………………………………………………………………………..

मेरी नींद जब खुली बाहर अभी भी पूरा अँधेरा था। 


मैं करवट लिए लेटी थी , सामने की ओर कामिनी भाभी और पीछे उनके पति ,भैया। 


सोते समय भी उन्होंने पीछे से मुझे कस के दबोच रखा था , एक हाथ उनका मेरे एक उभार पे था। दूसरा उभार भौजी के हाथ में था। 

रात अभी बाकी थी। 

मैंने फिर सोने की कोशिश की तो लगा मेरे उठने के चक्कर में कामिनी भाभी की नींद भी टूट गयी थी।कामिनी भाभी की उँगलियाँ अब मेरे जोबन पे हलके हलके रेंगने लगी थीं। 


मै डर गयी। 

कहीं भैय्या भी जग गए , और वो दोनों लोग मिल के चालू हो गए , ...अभी भी नीचे बहुत दर्द हो रहा था। 

मैंने झट से आँखे बंद कर ली और फिर से सोने की ऐक्टिंग करने लगी। 

लेकिन बचत नहीं थी। लगता है मेरे हिलने डुलने से कामिनी भाभी के पति की भी नींद खुल गयी और मेरे उभार पे जो उन्होंने हाथ सोये में रखा था , वो हलके हलके उसे दबाने सहलाने लगा। 

मैंने खर्राटे की एक्टिंग की और ऐसे की जैसे मुझे पता न चल रहा हो की वो दोनों जग गए हैं। 

लेकिन कामिनी भाभी भी न , उनसे कौन ननद बच पायी है जो मैं बच पाती। 
झट से दूसरे हाथ से गुदगुदी लगानी शुरू कर दी और बोलीं ,

" मेरी बिन्नो , ई छिनारपना कहीं और करना , मुझे सब मालूम है अच्छी तरह जग गयी हो , अब नौटंकी मत करो। "

खिलखिलाते हुए मैंने आँखे खोल दी और करवट से अब सीधे पीठ के बल लेट गयी। 

बस मुझे दोनों ने बाँट लिया , एक उभार भैया के हाथ में तो दूसरा भौजी ने दबोच रखा था। 

और सिर्फ चूंचियां ही नहीं गाल भी , 




एक पे कामिनी भौजी हलके हलके किस कर रही थी तो दूसरे पे लिक करते करते उन्होंने कचकचा के गाल काट लिया।" उईई , आह्ह्ह , लगता है " मैं जोर से चीखी। 

नींद अच्छी तरह भाग गयी। 

" सब कुछ तो ले लिहला , गाल जिन काटा , भैय्या बहुते ख़राब तू त बाटा। "


भौजी ने मुझे चिढ़ाया लेकिन भैय्या को और उकसाया ,

" अरे अस मालपुआ जस गाल है , खूब मजे ले कचकचा के काटा , दो चार दिन तक तो निशान रहना चाहिए। अरे पूरे गाँव को पता तो चलना चाहिए न की छुटकी ननदिया केहसे गाल कटवा के आय रही हैं। "


भैय्या कभी भौजी की बात टालते नहीं थे , तो उन्होंने एक फिर उसी जगह पे दुहरी ताकत से ,... और अबकी जो गाल पे निशान पड़ा तो सचमुच में तीन चार दिन से पहले नहीं मिटने वाला था। 



वो खूब मस्ता रहे थे। उन्होंने अपने हाथ से मेरी चूंची अब जोर जोर से पकड़ ली थी और खूब कस कस के मीज रहे थे। 

भौजी दोनों ओर से आग लगा रही थीं , वैसे उन्होंने मुझे खुद अपनी असली ननद बनाया था तो कुछ मेरा हक़ तो बनता ही था न। उन्होंने अब मेरी साइड ली और कान में फुसफुसाया ,

" सिर्फ वही थोड़ी पकड़ सकते हैं , तू भी तो पकड़ा पकड़ी कर सकती है। उनके पास भी तो पकड़ाने के लिए , ... :

भौजी का इशारा काफी था। वैसे भी 'वो ' थोड़ा सोया थोड़ा जागा बहुत देर से मेरे पिछवाड़े पड़ा था। और जब वो जग जाता तो इतना मोटा हो जाता की मेरी मुट्ठी में समाता ही नहीं। 


बस मैंने पकड़ लिया। 


अभी भी थोड़ा थोड़ा सोया ही था। 

सिर्फ पकड़ने से थोड़े ही होता है ,मैंने हलके हलके मुठियाना भी शुरू कर दिया। डरती तो थी लेकिन इतना भी नहीं ,अभी थोड़ी देर पहले ही पूरा घोंट चुकी थी। फिर अजय सुनील ने पकडवाके और चंदा मेरी सहेली,चम्पा भाभी ,बसंती की संगत में मुठियाना,रगड़ना सीख भी गयी थी। 

फिर जब हम तीनो अच्छी तरह जग गए थे तो उसके सोने का क्या मतलब। 



भैया जोर जोर से मेरी चूंचियां मसल रहे थे , मजे ले ले के मेरे मुलायम मुलायम गाल काट रहे थे। 



कामिनी भाभी भी दूसरे उभार को अपनी मुट्ठी में ले के मजे ले रही थी। 

और मैं भी इन दोनों के साथ , और 'उसे' ले के जोर जोर से मुठिया रही थी। 

नतीजा वही हुआ जो होना था ,शेर अंगड़ाई ले के जाग गया। 

पर बसंती ,गुलबिया का सिखाया पढ़ाया , मैंने एक झटके से खींचा तो सुपाड़ा खुल गया। खूब मोटा ,एकदम कड़ा , ... लेकिन था तो मेरी मुट्ठी में , मुझे एक और शरारत सूझी। 

मैंने अंगूठे से सुपाड़े पे रगड़ दिया , और वो मस्ती से गिनगीना उठे। 

भौजी ने मस्ती से ,कुछ तारीफ़ से मेरी और देखा। 

मेरी शैतानी और बढ़ गयी , और मैंने अंगूठे को सीधे 'पी होल ' ( पेशाब के छेद ) पे लगा के हलके से दबा दिया। 


अब भैय्या के पास जवाब देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। 

उन्होंने अपना एक हाथ मेरी दोनों जाँघों के बीच पहुँच गया और उंगलिया प्रेम गली की ओर बढ़ने लगीं। 

बुर मेरी अभी भी किसी ताज़ी चोट की तरह दुःख रही थी। जांघे भी दर्द से फटी पड़ रही थीं। मुझे डर लगा की कहीं भैया दुबारा मेरी बुर तो नहीं ,... बुरी हालत थी बुर की। 




holding cock.jpg[/attachment]मैंने उसी अदालत में गुहार लगाई , " भौजी , भैय्या से बोलिए वहां नहीं , प्लीज वहां नहीं ,.. "

" अरे वहां नहीं , मतलब कहाँ नहीं , नाम डुबो देगी मेरा बोल साफ़ साफ़ , ...." उलटे कामिनी भाभी की डांट पड़ गयी। 

" भौजी , भैय्या से बोल दीजिये ,उन्हें मना कर दीजिये , बहुत दुःख रहा है , भईया से कहिये दीजिये मेरी , .... मेरी चूत मत चोदें। चूत बहुत दुःख रही है। "

भैय्या ने दूसरा रास्ता निकाला , उन्होंने अपनी ऊँगली मेरी चूत के मुहाने पे लगा दी और अभी कुछ देर पहले लंड के जो धक्के उसने खाए थे ,जो चोटें लगी थी ,... दर्द से मैं दुहरी हो गयी। जोर से चीख उठी ,

" भौजी नहीईइइइइइइइइइ ,ऊँगली भी नहीं , चूत में कुछ मत डालें ,मना करिये न उन्हें "


और अब डांट भैय्या को पड़ी। 

" सुन नहीं रहे हो क्या बोल रही है बिचारी , इसकी चूत को हाथ भी मत लगाओ , न चोदना ,न ऊँगली करना। "


भौजी को देख के मैंने जोर जोर से हामी में सर हिलाया। 
 
" सुन नहीं रहे हो क्या बोल रही है बिचारी , इसकी चूत को हाथ भी मत लगाओ , न चोदना ,न ऊँगली करना। "


भौजी को देख के मैंने जोर जोर से हामी में सर हिलाया। 
…………

भइया ने तुरंत हाथ हटा दिया। 

प्यार से मेरे बाल सहलाते बोली , " न बुर चोदना है न बुर में ऊँगली करना है , क्यों बिन्नो " 

मैंने ख़ुशी में मुस्कराते हुए हामी में सर हिलाया। 

लेकिन भैया को भी तो थैंक्स देना था , उनके सामने से रसमलाई हटा ली थी मैंने , कहीं गुस्सा न हो जाएँ। 

तो मूड के मैंने उन्हें देख के भी एक किस सीधे उनके लिप्स पे दिया और फिर एक बार जोर से मुठियाने लगी। 





भैय्या की जीभ मेरी मुंह में थी और मैं उसे प्यार से चूस रही थी। भैया मेरे दोनों उभार अब जोर से मसल रहे थे और मैं उनके भी दुने जोर से उनका लंड दबा रही थी , मसल रही थी , मुठिया रही थी। 




भाभी मुझे हलके हलके चूम रही थीं , फिर मेरे कान में बोली ,




" तूने उसे तो एकदम खड़ा कर दिया और फिर चुदवाने से भी मना कर दिया। कम से कम एकाध चुम्मी तो दे दे उसे। "



उसमें मुझे कोई ऐतराज नहीं था। 


अजय ने खूब चुसवाया था मुझे। तो भैय्या के लंड चूसने में कौन ऐतराज हो सकता था ,

और जब तक मैं कुछ समझूँ , भैय्या सरक के पलंग के सिरहाने , और ' वो ' एकदम मेरे रसीले होंठों के पास ,



" जोर से आ बोल जैसे एक बार में पूरा लडू घोंटती है न ,खोल पूरा मुंह " 

भौजी बोलीं और मैंने भी पूरी ताकत से मुंह खोल दिया ,




एक बार में पूरा सुपाड़ा , और भैय्या ने जो मेरा सर पकड़ के धक्का मारा , आधा लंड मेरे मुंह में था। आलमोस्ट गले तक।





,,,, चूसा मैंने पहले भी था , लेकिन,... जो मजा अभी आ रहा था , इतना बड़ा , इतना मोटा , इतना कड़ा। 

पूरा मुंह मेरा भर गया था , गाल फूल गए थे ,ऊपर तलुवे तक रगड़ खा रहा था और नीचे से मेरी जीभ चपड़ चपड़ चाट रही थी , होंठ लंड को दबोचे हलके हलके दबा रहे थे। 

कुछ देर पहले जैसे अंगूठे और तरजनी के बीच मैं उसे पकड़े थी , अब मुझे भी आदत हो गयी थी ,पकड़ने की रगड़ने की। 


और एक मजा लेने के बाद मैं क्यों मौका छोड़ती ,एक बार फिर से लंड के बेस पे मेरी मुट्ठी ने उसे पकड़ लिया , हलके हलके दबाते सहलाते आगे पीछे , आगे पीछे ,... 

चाट भी रही थी ,चूस भी रही थी ,मुठिया भी रही थी। 

कितना मजा आ रहा था मुझे बता नहीं सकती। 


उन्हें कोई जल्दी नहीं थी न कोई धक्का ,न पुश , बस अपने मुंह में उस कड़े मोटे खूंटे का मजा मैं ले रही थी और मेरे गरम गरम ,मखमली किशोर मुंह का मजा वो ,


उन्हें कैसा लग रहा था? चलिए आपसे ही पूछती हूँ , एक शोख चुलबुली लड़की , ग्यारहवें -बारहवें में पढ़ने वाली किशोरी , नरम नरम उँगलियों से अगर पकड़ करके हलके हलके दबाते मुठियाते , उसे अपने गुलाबी मखमली ,गुलाब की पंखड़ियों से होंठों से चाटे , अपने मुलायम मुंह में लेके चूसे तो कैसा लगेगा। 





भैया ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ रखा था और बस मेरे मुंह का मजा ले रहे थे , न उन्हें कोई जल्दी थी न मुझे। 

बसंती ने यही बात तो बार बार कही थी , एक बार कौने मरद से मरवा लगी न ननद रानी तब पता चलेगा लौंडन और मरद का फरक। 

और जब उन्हें लग गया की मेरे कोमल किशोर मुंह को उनके उस मोटे खूंटे की आदत पड़ गयी है , तो फिर बहुत धीमे धीमे उन्होंने अंदर पुश करना ठेलना शुरू कर दिया। मेरी लार से लग कर अब लंड चिकना भी हो गया था और सरक सरक कर , ... 






मैंने कहीं सुना था , मेरी उसी सहेली ने बताया था जिसने अपने सगे भाई से ही अपनी सील तुड़वा ली थी और पिछले साल तक ही उसके आधे दर्जन से ज्यादा यार थे , कई बार तो दो दो एक साथ , मुझसे बोलती रहती थी ,तू तो बहन जी टाइप है तेरे से कुछ नहीं होगा ,... उसी ने बोला था लड़कों को हैंड फ्री ओरल सेक्स बहुत अच्छा लगता है ,सिर्फ होंठों और मुंह का टच , और सर के जोर से धक्के मार के अंदर लेना , बहुत प्रैक्टिस से आता है लेकिन एक बार जो लड़की ऐसा करना सीख जाती है न बस लड़के उसके पीछे पीछे , ... 



और मैंने हाथ हटा लिया। सिर्फ सर के धक्के से हलके हलके पुश कर के ,


और भैय्या ने भी हाथ हटा लिया। 

उन्होंने थोड़ा सा अपने को शिफ्ट किया और बस अब जैसे वो मेरे मुंह चोद रहे हों ,उस हालत में , ऐसे में उनके पुश का जोर भी ज्यादा लग रहा था। 

मेरे जबड़े दुःख रहे थे ,करीब तीन चार इंच से ज्यादा घोट लिया था मैंने ,लेकिन मोटा कितना था ,मुंह फटा जा रहा था। 


मैं प्यार से चूस रही थी और उनके चेहरे को उनकी चमकती आँखों को देख रही थी। उनकी आँखों में छलकती ख़ुशी मेरा दर्द आधा कर दे रही थी। 

हम दोनों एक दूसरे को देख रहे थे और कामिनी भाभी मुझे , तारीफ़ भरी निगाहों से। उनकी छुटकी ननदिया इतना मस्त चूस रही थी। 

' तनी जोर का धक्का मारो न , पूरा गन्ना चुसाओ , हमरी छिनार ननदिया को आधे तीहे में मजा नही आता। "





भैय्या ने अब पहली बार अपने चूतड़ के पूरे जोर से ठेला और मेरे तलुवे को छीलता , ऑलमोस्ट गले तक , ... 


मैं गों गों करती रही लेकिन मेरा मुंह भर गया था। 
 
बंधे हाथ 



और मजा गन्ना चूसने का 




मैं गों गों करती रही लेकिन मेरा मुंह भर गया था। 

मेरे दोनों हाथ फ्री थे , लेकिन भौजी और भैय्या के भी दोनों हाथ फ्री थे , दो के मुकाबले चार। 


जबतक मैं गों गों कर रह थी , भौजी ने मेरी दोनों नरम कलाइयां पकड़ के एक दूसरे पर क्रास करा के बाँध दी। एक पल के लिए भैया ने मेरे बंधे हाथों को पकड़ा और भाभी ने फिर आराम से पलंग के सिरहाने से कस कस के मेरे हाथों को बांध दिया। 




हिला डुला के उन्होंने चेक भी कर लिया की मैं इंच बराबर भी हाथ नहीं हिला सकती। 

लेकिन मुझे इस की कोई फ़िक्र नहीं थीं ,मैं तो मजे से भैय्या का गन्ना चूसने का मजा ले रही थी। 

" अरे तोहरी बहिनिया ने बुर चोदने को मना किया था , बुर में ऊँगली करने को मना किया और कुछ चोदने को थोड़े ही मना किया था , तोहार चुदवासी ,भाईचोद छिनार बहिनिया ने। तो मजा ले ले के मुंह चोदो उसका। बिचारी की शहर में कहाँ ऐसा मोटा गन्ना मिलेगा। "



भौजी की बात भैय्या न माने , उन्होंने मेरे मुंह में धक्के की रफ़्तार बढ़ा दी। उनकी देह अब इस तरह से मुझ पे छा गयी थी की मुझे कुछ नहीं दिख रहा था ,और वैसे भी मस्ती में मेरी आँखे बंद थीं।



बात भौजी की एकदम सही थी , शहर में मुझे ये मौका नहीं मिलने वाला था। वहां तो मैं पढ़ाकू ,सीधी सादी ,छुई मुई लजीली , ... 

और मैंने चूसने की रफ़्तार और तेज कर दी। 

मेरे चूतड़ जोर से उचके , जैसे करेंट मार गया हो। 







भौजी की जीभ मेरी चूत पे , वो हलके हलके चाट रही थी। 



बात मेरी मानी थी उन्होंने ऊँगली क्या जीभ भी अंदर घुसाने की कोशिश नहीं की उन्होंने ,लेकिन उनका चाटना ही , ...मैं जल्द झड़ने के कगार पे पहुँच गयी।
 
अरे तोहरी बहिनिया ने बुर चोदने को मना किया था , बुर में ऊँगली करने को मना किया और कुछ चोदने को थोड़े ही मना किया था , तोहार चुदवासी ,भाईचोद छिनार बहिनिया ने। 

तो मजा ले ले के मुंह चोदो उसका। बिचारी की शहर में कहाँ ऐसा मोटा गन्ना मिलेगा। "

भौजी की बात भैय्या न माने , उन्होंने मेरे मुंह में धक्के की रफ़्तार बढ़ा दी। उनकी देह अब इस तरह से मुझ पे छा गयी थी की मुझे कुछ नहीं दिख रहा था ,और वैसे भी मस्ती में मेरी आँखे बंद थीं। बात भौजी की एकदम सही थी , शहर में मुझे ये मौका नहीं मिलने वाला था। वहां तो मैं पढ़ाकू ,सीधी सादी ,छुई मुई लजीली , ... 

और मैंने चूसने की रफ़्तार और तेज कर दी। 

मेरे चूतड़ जोर से उचके , जैसे करेंट मार गया हो। 

भौजी की जीभ मेरी चूत पे , वो हलके हलके चाट रही थी। बात मेरी मानी थी उन्होंने ऊँगली क्या जीभ भी अंदर घुसाने की कोशिश नहीं की उन्होंने ,लेकिन उनका चाटना ही , ...मैं जल्द झड़ने के कगार पे पहुँच गयी।
…………………..








लेकिन अगर एक बार में वो झाड़ दें तो कामिनी भाभी क्या। कामिनी भाभी को जितना मजा ननदों को मजा देने में , उनसे मजा लेने में आता था , उससे जयादा मजा उन्हें अपनी ननदों को तड़पाने में आता था। 

मुझे बीच मझधार में छोड़ के वो उठ गयीं और जब लौटीं तो जैसे घर भर के तकिये ,कुशन उनके हाथ में। सब उन्होंने ठूंस ठूंस करके नितम्बो के नीचे ,आलमोस्ट पीठ तक , और मेरे भारी भारी , गोल गोल चूतड़ , अब हवा में एक बित्ते से भी ज्यादा उठे थे। 

भौजी फिर चालू हो गयीं। 


जीभ की नोक से उन्होंने कुछ देर तक क्लिट फ्लिक की और जब मैं एक बार फिर पनिया गयी , उनकी जीभ ने जैसे कोई , आम की फांक दोनों हाथों से फैला के सपड़ सपड़ चाटे ,बस उसी तरह। 


मुश्किल से दो इंच जीभ उनकी अंदर थी। 

लेकिन कभी गोल गोल घूमकर चाटते , चूसते , तो कभी अंदर बाहर ,... कुँवारी कमसिन ननदों की चूत का मंतर भौजी को अच्छी तरह मालूम था। कुछ ही देर में मैं फिर किनारे पर थी। और भाभी ने अपना अंगूठा भी , सीधे क्लिट पे ,... 




मैं झड़ती रही कांपती रही ,चूतड़ पटकती रही। 

जब सुधि आई तो ,... भौजी ने अपने दोनों अंगूठों से मेरे पिछवाड़े का छेद चियार रखा था पूरी ताकत से. किसी कुप्पी ऐसी चीज से या सीधे बोतल को ही मेरे पिछवाड़े के खुले छेद से सटा के , 

टप टप ,टप टप , ... कडुवा तेल। 




लेंकिन ध्यान मेरा कहीं और था , मेरे मुंह में , पूरा बाहर निकाल कर एक झटके में ,...जैसे कोई चूत चोद रहा हो , एकदम वैसे, ... और मैं भी उन का पूरा साथ दे रही थी। मेरे रसीले गुलाबी होंठ उस मोटे कड़े लंड पे रगड़ते घिसते किस कर रहे थे। नीचे से मेरी मखमली जीभ चाट रही थी। 

और मैं जोर जोर से पूरी ताकत से चूस रही थी। सुपाड़ा आलमोस्ट मेरे गले से ठोकर मार रहा था। गाल मेरे एकदम फूले फूले , बड़ी बड़ी आँखे मेरी उबली पड़ रही थीं। साँसे भी बहुत मुश्किल से धीरे धीरे , ... और उसी बीच कभी ये ध्यान जा पाता था... की ,




भौजी पूरी ताकत से मेरी कसी गांड जबरदस्ती फैला के , उसमें ,... आधी से ज्यादा बोतल खाली कर दी होगे उन्होंने , कम से कम पांच दस मिनट , और फिर थोड़ा सा बाहर भी छेद के मुहाने पे , पूरी गांड चपचप हो रही थी। 

दोनों नितम्बो को अपने हाथ से दबोच कर उन्होंने अब आपस में इस तरह मसला की तेल अंदर अच्छी तरह लिथड़ गया , कुछ देर टांग भी वो उठाये रहीं जिससे तेल की एक बूँद भी अंदर से बाहर न आ पाये। 

और फिर आके एक बार मेरे सिरहाने वो बैठ गयीं , कुछ देर मेरा मुख चोदन देखती रहीं , फिर अपने 'उनसे ' बोली ,

" अरे तुम्हारी बहन है तो क्या मतलब , ई लोहे के राड ऐसा इसके मुलायम मुंह में कबतक ठेलोगे। अरे तोहार बहिन है तो हमरो तो ननद है ज़रा हमहू ,... "


बड़े बेमन से भैया ने बाहर निकाला ,

पहली बार मैंने उसे इतने नजदीक से देखा , एकदम तन्नाया ,खूब कड़ा , मोटा और गुस्से में जैसे उससे उसका शिकार छीन लिया गया हो। 


भाभी ने थोड़ी देर मेरा गाल सहलाया , मेरे जबड़ों को गालों को कुछ आराम मिला तो वो बोली ,

" इतना देर इत्ता कड़ा कड़ा चूसी हो तो चलो जरा कुछ देर कुछ मुलायम भी चूस लो। " और मेरे समझने के पहले , मेरे मुंह को अपने हाथों से दबाकर , सीधे अपने निपल मेरे मुंह में ,





निपल उनके पहले भी मैं चूस चुकी थी ,लेकिन इस बार निपल के साथ उन्होंने अपनी बड़ी बड़ी चूंची भी ठेल दी और जैसे कार्क से कोई बोतल का मुंह बंद कर दे बस उसी तरह , मेरा मुंह बंद हो गया। 

वो मेरे गाल सहलाती रहीं , बाल सहलाती रहीं , दुलराती पुचकारती रहीं। और उनका एक हाथ मेरे उभारों को भी सहला ,दबा रहा था।

मैं भी हलके हलके उनकी बड़ी बड़ी चूंची चूसने का मजा लेने लगी। कभी निपल को चूसती तो कभी मेरी जीभ निपल को हलके हलके फ्लिक करती। भाभी को भी मजा आ रहा था , वो खूब सिसक रही थीं। मेरे दोनों हाथ बंधे थे लेकिन मुंह जीभ तो आजाद थी। भैय्या ,भाभी ने खूब मजे ले लिए थे अब नंबर मेरा था तो मैं क्यों छोड़ती। 

लेकिन तभी कड़वा तेल का जोरदार भभका मेरे नथुनों में भर गया। 

शायद भैय्या ने , अपने मोटे सुपाड़े में , 



लेकिन मेरा ध्यान फिर भौजी की ओर आ गया। उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ कर पूरी ताकत से अपनी मोटी मोटी चूंची मेरे मुंह में पेल दी। वो ठेलती रहीं ठूसतीं रहीं। 



एक बार फिर मेरे गाल फटे जा रहे थे ,जबड़े दुःख रहे थे , लेकिन कामिनी भाभी ने अपनी चूंची का प्रेशर कम नहीं किया। उनके दोनों हाथों ने इस तरह मेरे सर को पकड़ रखा था की मैं ज़रा भी सर हिला भी नहीं सकती थी। उनकी देह मेरे ऊपर इस तरह पसरी थी की न मुझे कुछ और दिख रहा था। पूरी तरह दबी ,मेरे दोनों हाथ कस कर पलंग के सिरहाने से बंधे 


जिस तरह कुछ देर पहले कामिनी भाभी ने मेरे पिछवाड़े के छेद को पूरी ताकत से चियार कर ,आधी बोतल से भी ज्यादा वहां कड़वा पिलाया था , उसी तरह ,... 

लेकिन उससे १०० गुना ज्यादा ताकत से भैय्या के दोनों हाथों ने मेरी गांड को फैला के , मैंने उनके सुपाड़े के टच को महसूस किया , 
 
घुस गया ,अटक गया ,अंडस गया 


लेकिन उससे १०० गुना ज्यादा ताकत से भैय्या के दोनों हाथों ने मेरी गांड को फैला के , मैंने उनके सुपाड़े के टच को महसूस किया , 

लेकिन तभी 




………………….

पूरे जोर से , कककचा के कामिनी भाभी ने मेरे निपल काट लिए। उनके दांत गड गए और वो तब भी दबाती रही , चबाती रहीं। 




मैं दर्द से बिलबिला रही थी , आँखों में आंसू छलक रहे थे लेकिन उसी समय कामिनी भाभी के लम्बे नाखूनों ने उससे भी जोर से मेरे क्लिट को नोच लिया और नाख़ून वहां भी दबा रहे थे। 

दर्द से मैं तड़प रही थी , उलट पलट रही थी लेकिन मेरी सारी सिसकियाँ मेरी मुंह में घुंट घुंट के दब रही थी। कामिनी भाभी ने इतनी जोर से अपनी चूंची मेरे कोमल किशोर मुंह में ठेल रखी थी ,कि ,... 





मैं बिलबिला रही थी और मुहे पता नहीं चला की कब मोटा कड़ा तगड़ा सुपाड़ा भैय्या ने ठेलना शुरू कर दिया मेरी गांड में। 

दोनों हाथ से उन्होंने गांड के छेद को चियार रखा था और पूरी ताकत से अपने मोटे भाले को ठेल रहे थे , पेल रहे थे ,धकेल रहे थे। 



बिना रुके वो पुश करते रहे 



उधर भाभी के दांतों का दबाव मेरे निपल पर कम नहीं हुआ ,मेरा पूरा ध्यान उधर ही था। दर्द से मेरी चूंची बिलबिला रही थी। 

भैया ने मेरी लम्बी छरहरी टाँगे अपने कंधो पर कर रखी थी , उनके दोनों हाथ मेरे गोल गोल चूतड़ों को पकड़ के लंड मेरी कसी कुँवारी गांड पे अपनी पूरी ताकत से पेल रहे थे। 

चार पांच मिनट तक वो ठेलते रहे वो , और कलाई ऐसा मोटा सुपाड़ा मेरी गांड में पूरी तरह पैबस्त हो गया। 






गुड्डी ,रतिया में खेललू कवना खेल , अबहीं ले महके कड़वा तेल। 



और उसके बाद कामिनी भाभी ने अपने दाँतो का जोर मेरे निपल पर कुछ कम किया


लेकिन जैसे वहां का दर्द कुछ कम हुआ , गांड का दर्द तेजी से महसूस हुआ। लग रहा था जैसे किसी ने लोहे का राड घुसेड़ दिया हो ,मेरी कुँवारी गांड में। 

उनका लंड मोटा तो बहुत था ही कड़ा भी बहुत था। फिर चूस चूस कर मैंने भी तो ,... मेरी गाँड फटी जा रही थी। 

कामिनी भाभी ने अब दाँतो का जोर हटा लिया था ,बल्कि अब उनकी जीभ मेरी काटी कुचली चूंची पे हलके हलके ,...जैसे कोई मलहम लगा रहा हो , बस उस तरह से ,... और धीमे धीमे दर्द भी कम होता जा रहा था। निपल चाटने में , चूसने में तो भौजी को महारत हासिल थी इसलिए थोड़े ही देर में दर्द की जगह चूंचियों में एक अजब सनसनाहट महसूस हो रही थी। 

मेरे मुंह में भी घुसी अपनी चूंची का जोर उन्होंने कम कर दिया था , लेकिन निकाला नहीं था।

मैं बोल तो नहीं सकती थी , लेकिन गाल और जबड़े अब दुःख नहीं रहे थे। 

नीचे भैया ने भी अब लंड ठेलना बंद कर दिया था। उनके दोनों हाथ अभी भी मेरे गोल गोल चूतड़ों पे थे ,लेकिन बजाय दबोचने के अब उसकी गोलाइयों का वो सहलाते हुए मजा ले रहे थे। 




मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा अभी भी मेरी गांड में धंसा था। दर्द बहुत हो रहा था , लेकिन धीमे धीमे मेरी गांड अब उनके सुपाड़े की आदी होती जा रही थी। 

दो चार मिनट के बाद भाभी ने मेरे थके फैले मुंह से अपनी बड़ी बड़ी ३८ डी डी साइज की चूंची निकाली , और हलके हलके मेरे गाल को सहलाया। 

कुछ देर बाद भैय्या को देख के बनावटी गुस्से से बोलीं , 

"ये क्या किया तुमने , माना तुम्हारी बहन है ये , ये भी माना की तेरी बहन होने के नाते नंबरी छिनार , चुदवासी है , लेकिन इसका क्या मतलब इस बिचारी की कसी कसी कुँवारी गांड में इतना मोटा सुपाड़ा तुमने पेल दिया। कितना दर्द हो रहा होगा बिचारी को। "

वो खिस्स खिस्स मुस्कराये जा रहे थे। 

बाहर काले बादलों ने आसमान में काली स्याही पोत दी थी। न तारे ,न चाँद ,न चांदनी। हवा एकदम रुकी हुयी।



भाभी उठी और उन्होंने लालटेन की रौशनी थोड़ी तेज कर दी। 

अब मुझे मेरी गांड में घुसा हुआ उनका वो मोटा खूंटा साफ़ साफ़ दिख रहा था। 


भौजी , मेरी कमर के पास बैठ गयीं और एक बार फिर प्यार से मेरी चुन्मुनिया सहलाते आँख मार के मुझसे बोलीं ,

" मेरी छिनार बिन्नो , असली दरद तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गांड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते ,दरेरते ,घिसटते पार करेगा न , बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है ,गुड्डी रानी तोहरे पास।
 

दोनों हाथ तो कस के बंधे हुए हैं , हिला भी नहीं सकती। सुपाड़ा गांड में धंस गया है , लाख चूतड़ पटको सूत भर भी नहीं हिलेगा। हाँ चीखने चिल्लाने पर कोई रोक नहीं है। फिर कुँवारी ननद की उसके भैय्या गांड मारे और चीख चिल्लाहट न हो , ये तो सख्त नाइंसाफी है। जब तक आधे गाँव को तुम्हारी चीख न सुनाई पड़े तो न गांड मारने का मजा न मरवाने का। "


और फिर उन्होंने भैया को भी ललकारा ,

" देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है। तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं , तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के कहने छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दरद होगा बुरचोदी को लेकिन गांड मारने ,मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को। "





और भैया ने , एक बार फिर जोर से मेरीटाँगे कंधे पे सेट कीं ,चूतड़ जोर से पकड़ा सुपाड़ा थोड़ा सा बाहर निकाला , और वो अपनी पूरी ताकत से ठेला की ,... 
 
Back
Top