Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 15 - SexBaba
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Long Sex Kahani सोलहवां सावन

गुलबिया और भरौटी के लौंडे 

अब तक 



लेकिन गुलबिया भी उसने पीछे से दबा के मुझे निहुरा दिया , अच्छी तरह , बस ज़रा सा इधर उधर उठने की कोशिश करती तो पक्का चपाक से कीचड़ में गिरती। 


और गुलबिया ने स्कर्ट उठा के सीधे मेरी कमर पे और सबको दावत दे दी ,

" अरे तानी नजदीक से देख ला न। " 

एक रोपनी कर रही लड़की जो मेरी उम्र की ही रही होगी और खूब बढ़ चढ़ के बोल रही थी , पास आई और खनकती आवाज में बोली ,

" एतना मस्त , पूरे गाँव जवार में आग लगावे वाली हौ , हमरे भैय्या क कौन दोष जो सबेरे भिनसारे चांप दिहलें इसको। "
जो औरत गुलबिया को टोक रही थी , और रतजगे में आई थी उसने थोड़ी देर तक मेरे पिछवाड़े हाथ फिराया , और अपने दोनों हाथों से पूरी ताकत से मेरे कटे गोल तरबूजों ऐसे चूतड़ों को फ़ैलाने की पूरी कोशिश की , लेकिन गोलकुंडा का दर्रा ज़रा भी न खुला। एक हाथ प्यार से मारती बोली,

" अभी अभी मरवाई है , एतना मोट मूसल होती है साल्ली , तबहियों , एतना कसा ,.. "

गुलबिया ने और आग लगाई , " तबै तो पूरे गाँव क लौंडन और मरदन क लिए चैलेन्ज है ये , ई केहू क मना नहीं करेगी ,"

एक लड़की बोली, " अरे ई तो हम अपने कान से सुने थे , अभी थोड़ी देर पहिले। "

दूसरी औरत बोली , " अरे एक गाँव क लौंडन सब नंबरी गांड मारने वाले हैं जब ई लौटेंगी न अपने मायके तो ई गांड का भोसड़ा हो जाएगा , पूरा पांच रुपैया वाली रंडी के भोसड़ा की तरह। पोखरा की तरह छपर छपर करीहें सब , एस चाकर होय जाई। "

पहले तो मुझे बड़ा ऐसा वैसा लग रहा था लेकिन अब उनकी बातें सुनने में मजा आ रहा था। सोचा की बोलूं इतनों को देख लिया ,उनका भी देख लुंगी। कामिनी भाभी की कृमउर मंतर पे मुझे पूरा भरोसा था , उन्होंने असीसा था की मैं चाहे दिन रात मरवाऊं , आगे पीछे , न गाभिन होउंगी , न कोई रोग दोष और अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों ऐसे ही कसा रहेगा , जैसा तब जब मैं गाँव में छुई मुई बन के आई थी। 

लेकिन चुप ही रही , तबतक गुलबिया ने मुझे पकड़ के सीधा कर दिया और हम लोग फिर मेंड़ मेड चल पड़े। 

पीछे से कोई बोली भी की कहाँ ले जा रही हो इसे तो गुलबिया ने भद्दी सी गाली देके बात टाल दी। 

जहाँ धान के खेत खत्म होते थे उसके पहले ही गन्ने के खेत शुरू होगये थे और गुलबिया मुझे ले के उसमें धंस गयी। 




आगे 






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जहाँ धान के खेत खत्म होते थे उसके पहले ही गन्ने के खेत शुरू होगये थे और गुलबिया मुझे ले के उसमें धंस गयी। 

दो फायदे थे उसमें , जिस मेंड़ पे हम चल रहे थे वो एकदम सूखी थी और हम दोनों को कोई देखने टोकने वाला नहीं था। 

और अपने टोले के , भरौटी के लौंडो की उसने खुल के तारीफ़ करनी शुरू कर दी ,

केतना मोटा कितना लम्बा , और कैसे गाली दे दे के , खुले में ही , ...वो भी अपने अंदाज में , 

एक पल के लिए तो मैं घबड़ाई , की कही उसका इस गन्ने के खेत में ही तो मेरी फडवाने का प्लान नहीं है , 

लेकिन तब तक मुझे कामिनी भौजी की बाद याद आगई , आगे पीछे क्रीम से सील करते हुए उन्होंने मुझसे तो बोला ही था गुलबिया को भी सहेजा था की कल सुबह तक इसकी चिरैया के मुंह में चारा नहीं जाना चाहिए ,न आगे न पीछे ,ऊँगली की एक पोर तक नहीं। और ये भी बोला था की वो ये बात बसंती और चंपा भाभी को बता दे ठीक से। 


कामिनी भाभी की बात टालने की हिम्मत गुलबिया में भी नहीं थी। फिर अभी तो मुझे हफ्ता दस दिन गाँव में रहना था और मन तो मेरा भी कर रहा था , ... भरौटी के लौंडो का , ... बसंती ने भी बहुत गुन गाया था उनका। 

और ये सोच कर मेरी हिम्मत और बढ़ गयी की कम से कम अभी तो कोई खतरा नहीं है और मैं भी खुल के गुलबिया की बातों का जवाब देने लगी।

गुलबिया बोलती , एक बार भरोटी के लौंडो का लौंडा घोंटगी न तो चूं बोल जायेगी तेरी चुनमुनिया , तो मैं भी हंस के जवाब देती ,

" अरे भौजी ,बाकी गाँव के लौंडो का देख लिया है उनका भी देख लूंगी ,निचोड़ के रख दूंगी साल्लो का। "
" अरे उ सब बाकी लौंडो की तरह नहीं है , ठोंकेंगे पहले बात बाद में करेंगे। एक साथ चार चार चढवाऊंगी , और ऊपर से उ सब गन्ना ,अरहर क खेत नहीं देखते ,जहां पाएंगे उन्ही निहुरा के चोद देंगे। " 
गुलबिया बोली और उस की बातों से एक बार फिर मेरी चुनमुनिया चुनचुनाने लगी थी। 

" चार चार , मेरे मुंह से हलके से निकल गया। 

" और क्या उस से कम में हमार छिनार ननदिया को क्या मजा आयेगा। तीनो छेदो का मजा एकसाथ। और एक हाथ में मुठियाते रहना। जैसे पहला झडेगा , वो पेल देगा। " गुलबिया ने समझाया। 

गन्ने का घना खेत जहाँ हाथ भर आगे का भी न दिख रहा हो , उसी के बीच से गुलबिया मेरा हाथ पकड़े पकडे , और एक से एक मस्त बातें , कभी अपने जवार के लौंडो के बारे में तो कभी अपने मरद के बारे में , और कभी अपने मेरे बारे में , क्या क्या करेगी वो मेरे साथ , ' खिलाने पिलाने ' के बारे में ,


और अचानक हम लोग गन्ने के खेत से बाहर आगये। 

एक खूब ऊँची मेड , और अब गन्ने के खेत साइड में और दूसरी ओर एकदम खुला मैदान , थोड़ी दूर पर एक छोटा सा पोखर ,जिसके किनारे कुछ औरतें कपडे धो रही थीं , थोड़ी दूर पर दस पन्दरह घर सारे कच्चे , कुछ पर झोपड़ी टाइप छत थी और कुछ पर खपड़ैल की. एक कच्चा कुंआ किनारे एक घर के सामने , नीम महुआ के थोड़े से पेड़ ,

हम दोनों मेड पे चल रहे थे।
और तभी वो दिखा ,
 
भरौटी के लौंडे 








एक खूब ऊँची मेड , और अब गन्ने के खेत साइड में और दूसरी ओर एकदम खुला मैदान , थोड़ी दूर पर एक छोटा सा पोखर ,जिसके किनारे कुछ औरतें कपडे धो रही थीं , थोड़ी दूर पर दस पन्दरह घर सारे कच्चे , कुछ पर झोपड़ी टाइप छत थी और कुछ पर खपड़ैल की. एक कच्चा कुंआ किनारे एक घर के सामने , नीम महुआ के थोड़े से पेड़ ,

हम दोनों मेड पे चल रहे थे।
और तभी वो दिखा , View attachment 1male thong 2.jpg[/attachment]
………………………
एकदम मस्त माल , १० में १०। 

( आप लोग क्या सोचते हैं सिर्फ हम लड़कियां ही माल हो सकती हैं। कतई नहीं। लड़कों को देख के हम लड़कियां भी आपस में बोलती यही हैं , मस्त माल )

लौंडा भरोटी का था इसमें कोई शक सुबहां की गुंजाइश थी ही नहीं। 

कद काठी में अब तक गाँव के जिन लड़कों से मिली थी २१ ही रहा होगा , लेकिन सबसे बढ़कर ताकत गजब की लग रही थी उसमें। गुलबिया ने गन्ने के खेत में अभी जो कुछ बताया था , अब साफ़ लग रहा था की उसमें कुछ बढ़ा चढ़ा कर एकदम नहीं था। 

कामिनी भाभी ने कल रात जो गुर सिखाये थे उसका हलका सा इस्तेमाल मैंने कर दिया। नज़रों के तीर और जोबन का जादू, बस हलके से तिरछी नजर से उसे देखा और जोबन के उभार की ( टॉप वैसे भी इतना टाइट था की साइड से पूरा उभार ,उसका कड़ापन सब कुछ झलकता था ) हलकी सी झलक दिखला दी ,

बस वही तो गजब हो गया। 

वैसे भी मेरे जोबन का जादू गाँव के चाहे लौंडे हाँ या मर्द सब के सर पे चढ़ के बोलता था , लेकिन सिर्फ झलक दिखाने का ये असर ,


उसका खूंटा सीधे 90 डिग्री का होगया। क्या लम्बा ,क्या मोटा ,... देख के मेरी चुनमुनिया चुनचुनाने लगी। 

मैं सोच रही थी की गुलबिया ने नहीं देखा लेकिन तब तक एक लड़का , और वो पहले वाले से भी ज्यादा ( अगर बसंती की बोलीं में तो कहूं तो जबरदस्त चोदू ) लग रहा था। 

और उसने अपनी मर्जी साफ़ साफ़ जाहिर कर दी , कपडे के ऊपर से ही जोर जोर से वो अपने खूंटे को मसल रहा था। मुझे तो लग रहा था की कहीं ये दोनों ,यहीं निहुरा के ,

गनीमत थी की गुलबिया ने मुड़ के देख लिया और उसको देख के एक ने पूछ लिया , 

" ए भौजी ,इतना मस्त सहरी माल ले के , तानी हम लोगन की भी ,... "

कुछ इशारे से , कुछ बोल के गुलबिया ने बोल समझा दिया की मिलेगी लेकिन आज नहीं।
और मेरे दिल की धड़कने कुछ नारमल हुईं ,चलो आज का खतरा टला। 

लेकिन तबतक एक और , 

मैंने भी जब ये समझ लिया की आज मेरी बच गयी। कामिनी भाभी ने जो अगवाड़ा पिछवाड़ा सील किया है और गुलबिया को चेताया है , तो अभी तो कुछ ,... और मैंने खुल के अपने तीर चलाने शुरू किये ,कभी झुक के जो लौंडे आगे थे उन्होंने सिर्फ उभारों की गहराई नहीं , बल्कि कड़ी कड़ी अपने कबूतरों की चोंचें भी दिखा देती। 

और पीछे वालों को पिछवाड़े की झलक मिल रही थी। 

कुछ देर में पांच छ लड़के , और सबके खूंटे खड़े सब खुल के उसे मसल रहे थे ,मुठिया रहे थे। 

" अरे जहाँ गुड होगा चींटे आएंगे ही ," कह के गुलबिया ने जोर से मेरे गुलाबी गालों पे चिकोटी काटी, एक बार उन लड़को की ओर देखा ,मुस्कराई बोली ,

" सामने घर है मेरा , बस अभी गयी अभी आई। तोहरे भैया के लिए खरमिटाव लाने जा रही हूँ। "

वो घर जिसपर खपड़ैल वाली छत थी और सामने एक कच्चा कुंआ था , अब हम लोगों की पगडण्डी के ठीक बगल में आ गया था , मुश्किल से २०० कदम रहा होगा , और गुलबिया उसी घर की ओर मुड़ गयी। 


और वो लौंडे अब मेरे एकदम पास आ गए। 

साथ में एकदम खुल के , ...एक बोला ,

" अरे गांड तो खूब मारने लायक है। "

" अरे चूंची तोदेख साली की , निहुरा क दोनों चूंची पकड़ के हचक हचक के मारेंगे इसकी। " दूसरे ने कमेंट मारा। 

एक के बाद एक कमेंट ,सबके औजार तने। कुछ देर के बाद 

' बोल चुदवायेगी। " जो उन सबका लीडर लग रहा था उसने खुल के पूछ लिया ,


लेकिन जवाब गुलबिया ने दिया जो बस लौटी ही थी ,

" अरे चुदवायेगी भी , गांड भी मरवायेगी और लौंडा भी चूसेगी तुम सबका ,बस एक दो दिन में। ये केहू को मना नहीं करती , काहें हमारी प्यारी ननद रानी। "


जवाब मैंने गुलबिया को नहीं उन भरोटी के लौंडो को दिया , ज्जा ज्जा के इशारे से , थोड़ा पलकों को उठा गिरा के ,जुबना की झलक दिखा के ,

और तेजी से गुलबिया के साथ गन्ने के खेत के बगल की पगडण्डी पर मुड़ पड़ी। 
…………………..
वो सब पीछे रह गए , और कुछ देर चलने के बाद मुझे कुछ याद आया ,

' यही तो वो पगडण्डी है ,जिसके पास चन्दा ने मुझे छोड़ा था और मुड़ के भरोटी की ओर गयी थी। ' 


पगडण्डी खत्म होते ही बस मुड़ते ही घर दिखाई दे रहा था। 

गुलबिया को भी जल्दी थी , मुझे भी। 

गुलबिया को अपने मर्द को खरमिटाव देने की जल्दी थी और मुझे घर पहुंचने की। 

दुपहरी ढल रही थी। 

बाहर से ही उसने सांकल खटकाई और बसंती निकली ,

उसने जल्द जल्द बंसती को कुछ समझाया। 

मैंने सुनने को कोशिश नहीं की क्योंकि मुझे मालूम था की गुलबिया क्या बोल रही होगी। वही जो कामिनी भाभी ने बार बार चेताया था ,कल सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े नो एंट्री। 


बसंती ने दरवाजा अंदर से बंद किया और आंगन में ही मुझे जोर से अंकवार में भर के भींच लिया , जैसे मैं न जाने कब की बिछुड़ी हूँ।
 
वापस घर : बसंती 


अब तक 



जवाब मैंने गुलबिया को नहीं उन भरोटी के लौंडो को दिया , ज्जा ज्जा के इशारे से , थोड़ा पलकों को उठा गिरा के ,जुबना की झलक दिखा के ,

और तेजी से गुलबिया के साथ गन्ने के खेत के बगल की पगडण्डी पर मुड़ पड़ी। 
…………………..
वो सब पीछे रह गए , और कुछ देर चलने के बाद मुझे कुछ याद आया ,

' यही तो वो पगडण्डी है ,जिसके पास चन्दा ने मुझे छोड़ा था और मुड़ के भरोटी की ओर गयी थी। ' 


पगडण्डी खत्म होते ही बस मुड़ते ही घर दिखाई दे रहा था। 

गुलबिया को भी जल्दी थी , मुझे भी। 

गुलबिया को अपने मर्द को खरमिटाव देने की जल्दी थी और मुझे घर पहुंचने की। 

दुपहरी ढल रही थी। 

बाहर से ही उसने सांकल खटकाई और बसंती निकली ,

उसने जल्द जल्द बंसती को कुछ समझाया। 

मैंने सुनने को कोशिश नहीं की क्योंकि मुझे मालूम था की गुलबिया क्या बोल रही होगी। वही जो कामिनी भाभी ने बार बार चेताया था ,कल सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े नो एंट्री। 


बसंती ने दरवाजा अंदर से बंद किया और आंगन में ही मुझे जोर से अंकवार में भर के भींच लिया , जैसे मैं न जाने कब की बिछुड़ी हूँ।









आगे 


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और आज जिस तरह बसंती देर तक मुझे अंकवार में लेकर दबा रही थी उसमें सिर्फ प्यार और दुलार था। 

और मैं भी उसे मिस कर रही थी , कल शाम को ही तो मैं कामिनी भाभी के घर गयी थी , २४ घंटे भी नहीं हुए थे ,लेकिन अब भाभी का ये घर अपना घर ही लगता था , उनकी माँ ,चंपा भाभी ,बसंती , 

मजाक ,मस्ती छेड़छाड़ अलग बात थी लेकिन ये सारे लोग मेरा ख्याल भी कितना रखते थे। 

चुप्पी मैंने ही तोड़ी , पूछा ,चम्पा भाभी कहाँ है। 

दूसरा दिन होता तो बसंती उन्हें दस गालियां सुनाती ,अपने देवरों से चुदवा रही हैं , कहीं गांड मरवा रही होंगी ,ऐसे ही जवाब सुनने की मुझे उम्मीद थी। 

लेकिन वो सीधे साधे ढंग से बोली , अंदर कुछ काम रही हैं। बस आ रही होंगी। 


दुपहरिया बस ढल रही थी। धूप के घर वापस जाने का समय हो गया था और वो लम्बे लम्बे डग भरते वापस जा रही थी। 

आधे आँगन में धूप थी ,हलकी गुनगुनी नरम नरम 

और आधे में छाँह थी , मेरे कमरे से सटी हुयी एक चटाई पड़ी थी , आँगन के पुराने नीम के पेड़ की छाँह में। 

धुप उस पर चितकबरी ड्राइंग बना रही थी। 

जो आवारा बादल ,गाँव के लौंडो की तरह मुझे ललचाते ऊपर से झाँक रहे थे , जब मैं कामिनी भाभी के घर से चली थी , मेरा पीछा करते करते आँगन तक पहुँच गए थे ,और अब उन के साथ और भी श्वेत श्याम बादल ,


चंपा भाभी आईं और हम तीनों वही चटाई पर बैठ गए और गुटरगूं चालू हो गयी। 

पता चला की भाभी और उनकी माँ , शाम तक आ जाएंगी। कल वो लोग बगल के गाँव में किसी के यहां गयी थीं। 

उन दोनों ने कुछ भी नहीं पूछा की कामिनी भाभी के यहां क्या हुआ। 

और भी गाँव के लोगों के बारे में , बिना मेरे पूछे बसंती बोली की अजय भी भाभी लोगों के साथ गया था लेकिन वो शायद परसों आएगा। हाँ चन्दा मिली थी और पूछ रही थी। 

रात भर की थकन ,जिस तरह से भैया भाभी ने ,... देह थक के चूर चूर हो रही थी। एक पल को भी मुश्किल से आँख लगी थी। और ऊपर से गुलबिया , शार्ट कट के नाम पे काम दो चार किलोमीटर का एक्स्ट्रा चक्कर तो उसने लगवाया ही थी। 

मैंने लाख मना किया लेकिन बसंती बोली की मैं कुछ खा लूँ , पर चम्पा भाभी मेरी मदद को आईं। मुझसे बोली ,

" थकी लग रही हो थोड़ी देर सो जा , कुछ देर बाद बसंती चाय बनाएगी तो तुझे जगा देंगे। "


और मैं झट से कोठरी में घुस गयी। पहले तो कामिनी भाभी ने जो क्रीम , तेल ,गोलियां और लडू दिए थे सब ताखे में सम्हाल के लगा दिए। फिर मेरी नजर पड़ी और मैं बिना मुस्कराए नहीं रह सकी। 

कड़ुवे तेल की बोतल , एकदम गर्दन तक बचोबुच भरी ,...ताखे पर सबसे ऊपर , 


मेरी निगाह उस छोटे से दरवाजे पर पड़ी जहां से अजय आया था और सारी रात निचोड़ के रख दिया था मुझे। 

छोटी सी खिड़की जहां से गाँव की बँसवाड़ी और घनी अमराई दिखती थी। 

थकी इतनी थी की झट से नींद ने आ दबोचा।
 
सपने 


थकी इतनी थी की झट से नींद ने आ दबोचा। 

लेकिन आप कितनी भी थकी रहो , रात को , किसी भी गाँव की नयी दुल्हन से पूछो , मरद छोड़ता है क्या। 

और वही हालत सपनों की थी , न जाने कहाँ कहाँ से रंग बिरंगे सपने , पंख लगाए इंद्रधनुषी।
बस सिर्फ एक बात थी की अगर सपने सेंसर होते , तो सब पर कैंची चल जाती और कुछ पर अडल्ट का सर्टिफिकेट लग जाता। सपनों की कोई सींग पूँछ भी तो नहीं होती कहीं से शुरू कहीं से खत्म हो जाते हैं। कोई भी बीच में आ जाता है। लड़के लड़कियां ,औारतें सब ,

एक लड़के के मोटे खूंटे पे मैं बैठ के झूला झूल रही थी , तभी उसने पकड़ के मुझे अपने ऊपर खींच लिया और दोनों पैर पिछवाड़े पे कर के बाँध दिया। मैं हिल डुल भी नहीं सकती थी। और तब तक पीछे से दूसरे ने , कामिनी भाभी के मर्द से भी मोटा औजार रहा होगा , ठेल दिया। 

फट गईईईई ई ई, .... मैं जोर से चीखी लेकिन चीख न निकल पायी। 

मेरे खुले मुंह में एक मोटा लण्ड किसी ने ठूंस दिया। उसके बाद तीनो ने हचक हचक कर ,

सपने में भी दर्द के मारे मैं मरी जा रही थी। 

मजे से भी मैं मरी जा रही थी। 

गपागप , गपागप 

सटासट ,सटासट , तीनो छेदों में मोटा मूसल , 

और तभी एक कस के खिलखिलाहट भरी हंसी सुनाई दी और एक तगड़ा कमेंट। 

सपने में भी ये आवाज मैं पहचान सकती थी , गुलबिया थी। 

" कहो हमार छिनार ननदिया आ रहा है मजा भरौटी क लौंडन का , अरे अबहिन तो ई शुरआत है , आधा दरजन से ऊपर अभी तेल लगा के मुठिया रहे हैं। ' फिर 

फिर गुलबिया ने उन लड़कों को लललकारा ,

" अरे हचक के पेलो सालों। आगे पीछे दुनो भोसड़ा बन जाना चाहिए। जब ई भरोटी से जाए न तो चार लड़कन वाली सी भी ढीली एकर भोसड़ा हो जाना चाहिए। "

अरे अचानक मैं ने उन लड़कों को पहचाना , वही तो थे जो आज भरोटी में मिले थे और जिन्हे ललचा के मैं दावत दे के आ गई थी। 


गुलबिया एकदम पास आ गयी थी और सपने में मैं वो देख रही थी जो कल मैंने शाम को सच में देखा था। 

झूले के बाद जब पानी बरसने लगा था तो वहीँ कीचड़ में लिटाकर ,पटक कर ,

नीरू अरे वही सुनील की बहन जो मुझसे भी थोड़ी छोटी है , और गुलबिया , बसंती , चंपा भाभी सबकी ननद लगती है ,

बसंती ने कस के उसे दबोच रखा था और गुलबिया सीधे उसके ऊपर , साडी उठा के , अपनी मोटी मोटी जाँघों से कस के उसका सर दबोच के ,


चारो ओर बारिश की बूंदे बरस रही थीं ,और गुलबिया की ,... से, हलकी हलकी सुनहली धार ,

नीरू छटपटा रही थी , छोटे छोटे किशोर चूतड़ पटक रही थी लेकिन , बसंती और गुलबिया की पकड़ ,

सपने में मैं कहीं भी नहीं थी , 

लेकिन सपनों का क्या भरोसा ,


कुछ देर में नीरू की जगह मैं थी और मेरे ऊपर बसंती 


चंपा भाभी , चमेली भाभी , मेरी भाभी की माँ सब बसंती को ललकार रही थी , पिला दे , पिला दे ,


कुछ देर बाद बसंती ने सुनहला शरबत ,.... 

मैंने आँखे बंद कर ली पर सपने में आँखे बंद करने से क्या होता है ,

हाँ कुछ देर में सपना जरूर बदल गया। 

बसंती और गुलबिया दोनों मेरे बगल में थी ,

मेरी गोरी चिकनी जाँघे फैली थीं , मैं देख नहीं पा रही थी ,लेकिन कुछ देर में मैंने वहां एक जीभ महसूस की , 

पहले हलके हलके फिर जोर से मेरी चूत चाट रहा था।

अपने आप जैसे मैं पिघल रही थी , मेरी जाँघे खुद ब खुद खुल रही थी , फ़ैल रही थी। 

मैं एकदम आपे में नहीं थी। बस मन कर रहा था की ,

और वो जीभ भी , पहले ऊपर से नीचे तक जोर जोर से लिक करने के बाद , उसने जैसे ऊँगली की तरह मेरी गुलाबी पंखुड़ियों को फैलाया और ,सीधे अंदर। 

फिर गोल गोल अंदर घूमने लगी। 

' नहीं रॉकी नहीं , अभी नहीं , तुम बहुत शैतान हो गए हो , लालची छोड़ बस कर , बाद में बाद में, ... "

मैं नींद में बोल रही थी ,अपने हाथ से हटाने की कोशिश कर रही थी , लेकिन उसकी जीभ का असर , मस्ती से मेरी गीली हो गयी। 

तबतक झिंझोड़ के मैं जगाई गयी। 

" बहुत चुदवासी हो रही हो छिनार , अरे बिना रॉकी से चुदवाए तुझे जाने नहीं दूंगी लेकिन अभी तो उठो। "

मैंने मुश्किल से आँखे खोली। चम्पा भाभी थीं। 

और जिसे मैं सपने में रॉकी की जीभ समझी थी , वो चम्पा भाभी की हथेली और उंगलियां थी। उन्होंने छोटी सी स्कर्ट को उलट दिया था और जो मुझे जगाने का उनका तरीका था , अपनी गदोरी से मेरी चूत को हलके हलके रगड़ मसल रही थीं ,और जब मैंने मस्त होकर खुद अपनी जाँघे फैला दी तो ऊँगली का एक पोर बल्कि उसकी भी टिप सिर्फ , खुले फैले निचले गुलाबी होंठों के बीच 


मैं एकदम पनिया गयी थी , मन कर रहा था बस कोई हचक के ,...लेकिन मैं भी जानती थी कल सुबह तक उपवास है ,भूखी ही रहना होगा। "

" आ गयी है न चल आज से रॉकी तेरे हवाले फिर से। तुझे बहुत भूख लग रही होगी न ,बसंती हलवा बना रही है तेरा फेवरिट। "


लेकिन मेरे दिमाग में तो कामिनी भाभी की बाते याद आ रही थी जब वो गुलबिया को उकसा रही थी , मुझे 'खिलाने पिलाने ' के लिए , .... कहीं बसंती भी कुछ , और मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी। घर में सिर्फ बसंती और चंपा भाभी ही तो थीं ,

और चंपा भाभी कौन कामिनी भाभी से कम थीं।
 
हलवा गरमागरम 



अब तक 



कुछ देर में नीरू की जगह मैं थी और मेरे ऊपर बसंती 


चंपा भाभी , चमेली भाभी , मेरी भाभी की माँ सब बसंती को ललकार रही थी , पिला दे , पिला दे ,


कुछ देर बाद बसंती ने सुनहला शरबत ,.... 

मैंने आँखे बंद कर ली पर सपने में आँखे बंद करने से क्या होता है ,

हाँ कुछ देर में सपना जरूर बदल गया। 

बसंती और गुलबिया दोनों मेरे बगल में थी ,

मेरी गोरी चिकनी जाँघे फैली थीं , मैं देख नहीं पा रही थी ,लेकिन कुछ देर में मैंने वहां एक जीभ महसूस की , 

पहले हलके हलके फिर जोर से मेरी चूत चाट रहा था।

अपने आप जैसे मैं पिघल रही थी , मेरी जाँघे खुद ब खुद खुल रही थी , फ़ैल रही थी। 

मैं एकदम आपे में नहीं थी। बस मन कर रहा था की ,

और वो जीभ भी , पहले ऊपर से नीचे तक जोर जोर से लिक करने के बाद , उसने जैसे ऊँगली की तरह मेरी गुलाबी पंखुड़ियों को फैलाया और ,सीधे अंदर। 

फिर गोल गोल अंदर घूमने लगी। 

' नहीं रॉकी नहीं , अभी नहीं , तुम बहुत शैतान हो गए हो , लालची छोड़ बस कर , बाद में बाद में, ... "

मैं नींद में बोल रही थी ,अपने हाथ से हटाने की कोशिश कर रही थी , लेकिन उसकी जीभ का असर , मस्ती से मेरी गीली हो गयी। 

तबतक झिंझोड़ के मैं जगाई गयी। 

" बहुत चुदवासी हो रही हो छिनार , अरे बिना रॉकी से चुदवाए तुझे जाने नहीं दूंगी लेकिन अभी तो उठो। "

मैंने मुश्किल से आँखे खोली। चम्पा भाभी थीं। 

और जिसे मैं सपने में रॉकी की जीभ समझी थी , वो चम्पा भाभी की हथेली और उंगलियां थी। उन्होंने छोटी सी स्कर्ट को उलट दिया था और जो मुझे जगाने का उनका तरीका था , अपनी गदोरी से मेरी चूत को हलके हलके रगड़ मसल रही थीं ,और जब मैंने मस्त होकर खुद अपनी जाँघे फैला दी तो ऊँगली का एक पोर बल्कि उसकी भी टिप सिर्फ , खुले फैले निचले गुलाबी होंठों के बीच 


मैं एकदम पनिया गयी थी , मन कर रहा था बस कोई हचक के ,...लेकिन मैं भी जानती थी कल सुबह तक उपवास है ,भूखी ही रहना होगा। "

" आ गयी है न चल आज से रॉकी तेरे हवाले फिर से। तुझे बहुत भूख लग रही होगी न ,बसंती हलवा बना रही है तेरा फेवरिट। "













आगे 







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" आ गयी है न चल आज से रॉकी तेरे हवाले फिर से। तुझे बहुत भूख लग रही होगी न ,बसंती हलवा बना रही है तेरा फेवरिट। "


लेकिन मेरे दिमाग में तो कामिनी भाभी की बाते याद आ रही थी जब वो गुलबिया को उकसा रही थी , मुझे 'खिलाने पिलाने ' के लिए , .... कहीं बसंती भी कुछ , और मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी। घर में सिर्फ बसंती और चंपा भाभी ही तो थीं ,

और चंपा भाभी कौन कामिनी भाभी से कम थीं। 

गनीमत थी कमरे से बाहर आँगन में आते ही रसोई से मीठी मीठी सोंधी सोंधी बेसन के भूने जाने की महक आ रही थी।

सच में मेरा फेवरिट , ... बेसन का हलवा। 

मौसम भी बदल गया था। साँझ ढलने लगी थी , धूप अब नीम के पेड़ की पुनगियों पर अटकी थी और रही सही उसकी गरमी , आवारा बादल कम कर रहे थे जो झुण्ड बना के किरणों से लुका छिपी खेल रहे थे। 

हवा में भी मस्ती और नमी थी , लगता था आस पास के गाँव में कही ताजा पानी बरसा है।
………..
मौसम के साथ साथ चंपा भाभी का मूड भी अब मस्ती भरा हो रहा था। उन्होंने मजे से मुझे प्यार से धक्का देकर चटाई पर गिरा दिया , और खुद मेरे बगल में आके लेट गईं। उनकी शरारते जो मुझे जगाने के साथ जो शुरू हुयी थीं दुगुनी ताकत से चालू हो गईं। 
एक बार फिर से स्कर्ट उठा के उन्होंने मेरी कमर तक कर दिया और बोलीं ,

" अरे ज़रा इसको भी तो हवा खाने दो , कहें अपनी बुलबुल को हरदम पिजड़े में रखती हो। "

लेकिन मैं क्यों छोड़ती उन्हें आखिर थी तो मैं भी उनकी ननद , मैंने ऊपर की मंजिल पे हमला किया और ब्लाउज के ऊपर से ही गदराए जोबन अब मेरी मुट्ठी में थे , और चटपट चटपट उनकी दो चार चुटपुटिया बटनों ने साथ छोड़ दिया और कबूतर पिंजड़े से बहार झांकने लगे। 

उन्हें भी मालुम था की प्रेम गली के अंदर आज आना जाना बंद था , लेकिन गली के बाहर भी तो जादू की बटन थी। बस दोनों भरी भरी रसीली मोटी मोटी चूत की पुत्तियों के किनारे किनारे चंपा भौजी की रस भरी उँगलियाँ , और कभी कभी एक झटके में हथेली से रगड़ देतीं और मेरी सिसकियाँ निकल जाती। 

तभी ढेर सारे घी की महक और बेसन के हलवे में दूध डालने की झनाक की आवाज आई ,और मेरा ध्यान उधर चला गया। 

चंपा भाभी का दूसरा हाथ मेरे टॉप के अंदर , आखिर ऊपरी मंजिल में तो कोई रोक टोक थी भी नहीं , और जोर से उन्होंने टॉप के अंदर ही मेरा निपल पल कर दिया। 

जवाब में मेरा हाथ भी उनके ब्लाउज के अंदर घुस गया और यही तो वो चाहती थीं एक कमिसन किशोरी के हाथ जोबन मर्दन , मसलना रगड़ना। 

और वो मैंने शुरू कर दिया . उनकी उँगलियों ने मेरे ऊपर और नीचे दोनों हमला कर दिया ,


तबतक रसोई से बंसती की आवाज आई , हलवा बन गया है ,निकाल के ले आऊं या ,... 

उनकी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की चम्पा भाभी ने जवाब दे दिया। 

" अरे इस छिनार को सीधे कड़ाही से गरम गरम हलवा खिलाओ तभी तो , ... " और अबकी बात बसंती ने काटी ,बोलीं 

" हलवा खिलाऊंगी भी और हलवा बनाउंगी भी। " बसंती ने रसोई से ही जवाब दिया , और कुछ देर में सच में सीधे वो रसोई से कड़ाही ही लेकर बाहर निकली। 

बेसन के हलवे की सोंधी सोंधी मीठी मीठी महक मेरे नथुने में भर गयी। मेरा सारा ध्यान उधर ही था ,लेकिन बंसती का ध्यान मेरी खुली जाँघों और चंपा भाभी की वहां खोज बीन करती उँगलियों पर। 

" अरे अकेले अकेले इस कच्ची कली का मजा लूट रही हो " उसने चंपा भाभी से शिकायत की। 

" एकदम नहीं ,आओ न मिल बाँट के खाएंगे इसको। " हँसते हुए चंपा भाभी बोलीं। 

लेकिन मेरी निगाहें हलवे पर थीं , इतना गरम गरम हलवा , देसी घी तो तैर रहा था , लेकिन खाऊंगी कैसे , चम्मच वमम्च तो कुछ था नहीं। 

चंपा भाभी और बसंती दोनों ही मेरे तन और मन दोनों की जरूरतें मुझसे ज्यादा समझती थीं और वो भी बिना बोले ,और इस बार फिर यही हुआ। 

" अरे ननद रानी ,दो दो भौजाइयों के होते हुए तू काहे आपन हाथ इस्तेमाल करोगी , हम दोनों के हाथ हैं न तुम्हारे लिए। "

और एक बार फिर चंपा भाभी और बसंती ने मुझे मिल के बाँट लिया। 

एक बार चम्पा भाभी खिलाती तो अगली बार बसंती और कभी हाथ से तो कभी अपने मुंह से सीधे। 

मेरे दोनों हाथ भी बिजी थे , एक हाथ तो पहले ही चंपा भाभी के ब्लाउज में घुसा था , दूसरे ने बसंती के ब्लाउज में सेंध लगा दी। 

मेरे लिए तो दोनों भौजाइयां थी।


बंसती की बदमाशी या मेरी लापरवाही , ज़रा सा हलवा मेरे टॉप पे गिर गया और फिर एक झटके में ,

" अरे इतना महंगा ,खराब हो जाएगा ,उतार दो इसको " बसंती बोली और वो और चंपा भाभी मिलके ,

मेरा टॉप अगले पल चटाई के दूसरी ओर पड़ा था। 
 
शरबत सुनहला 




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मेरा टॉप अगले पल चटाई के दूसरी ओर पड़ा था। 

लेकिन उस समय मस्ती में मुझे भी परवाह भी नहीं थी और परवाह कर के कर भी क्या सकती थी ,चंपा भाभी और बसंती की जुगलबंदी के आगे। उनमे से एक ही काफी थी मुझसे क्या खेली खायी ननदों से निबटने के लिए और जब बसंती और चंपा भाभी मिल जाएँ तो हर ननद जानती थी सरेंडर के अलावा कोई चारा भी नहीं होता था। सरेंडर करो और जम के मजे लो। 


मैंने भी वही किया। 


बंसती अपने मुंह से हलवा खिलाती,हंसती खिलखिलाती ,मुझे छेड़ती , बोली , 

" अरे ननद रानी ,आज कुचा कुचाया खाय ला , बेहने ( कल ) पचा पचाया खाए क मिली। "

मेरे मन में कामिनी भाभी की बात याद आ गयी जो गुलबिया को वो चढ़ा रही थीं और गुलबिया भी हंस के कह रही थी , " अरे अभी तो ई सात आठ दिन रहेंगी न , रोज बिना नागा खिलाऊंगी , और सीधे से न मनहिएं तो जबरदस्ती। "

पूरा नहीं तो कुछ कुछ मैं भी समझ रही थी उस की बातें , इधर चंपा भाभी आँख के इशारे से बसंती को बरज रही थी की वो ऐसी बातें न करें की कहीं मैं बिचक न जाऊं। 

पर बसंती इस समय पूरे मूड में थी। वो कहाँ मानने वाली , 

एक हाथ से उसने जोर से मेरे निपल को उमेठा, पूरी ताकत से और फिर अपने मुंह से सीधे मेरे मुंह में , 

मेरा मुंह हलवे से भरा था और वो बोली ,

" अरे रानी थोड़ बहुत जबरदस्त तो करनी ही पड़ेगी, बुरा मत मानना , और बुरा मान भी जाओगी तो कौन हम छोड़ने वाले हैं। "

अब चंपा भाभी भी बसंती के रंग में रंग गयी थीं , मुझे देख के नज़रों से सहलाती ,ललचाती बोलीं ,

" अरे अइसन कम उमर क लौंडियन क साथ तो , जबरदस्ती में ही , थोड़ा बहुत हाथ गोड़ पटकिहैं , चीखीये चिल्लाइयें, तबै तो असली मजा आता है। "


और देखते देखते हम तीनो मिल के हलवा चट कर गए। वास्तव में बहुत स्वादिष्ट था और मुझे भूख भी लगी थी। 

मैं सच में अपने होंठ चाट रही थी.

कड़ाही में कुछ हलवा अभी बचा था , तलछट में लगा। 

चंपा भाभी ने बसंती को इशारा किया और मुझे हलके से धक्का देकर चटाई पे गिरा दिया , मेरी कोमल कलाइयां चंपा भाभी की मजबूत गिरफत में। 


बंसती ने करो के हलवा निकाला ,चम्पा भाभी ने दबा के मेरा मुंह खोलवा दिया , और सीधे बंसती ने सारा का सारा मेरे मुंह के अंदर ,

इतना गरम था , की,... लग रहा था मुंह जल गया , मैं चिल्लाई पानी , पानी। 

बसंती तो सिर्फ कड़ाही में रसोई से हलवा लायी थी , न ग्लास न पानी। 

चम्पा भाभी ने बसंती की देख के मजे से मुस्कराया ,

" पानी ,... जल गया ,... पानी ,... " मुश्किल से मैं बोल पा रही थी , दोनों को बारी बारी से देखते मैंने गुहार लगायी। 

" अरे बसंती , पियासे को पानी पिलाने से बहुत पुन्न मिलता है , बेचारी चिल्ला रही है , पिला दे न। " मुस्करा के चंपा भाभी ने बसंती से बोला। 

" और क्या ननद की पियास भौजाई नहीं बुझाएगी तो कौन बुझाएगा। और ये खुदे मांग रही है। "

और बसंती मेरे ऊपर , उसकी दोनों टांगों ने मेरे कंधो बाहों को कस के दबा लिया था ,मेरे सर को चम्पा भाभी ने दोनों हाथों से पकड़ लिया था , मैं एक सूत नहीं हिल सकती थी। 



बसंती ने अपनी साडी सरका के कमर तक कर ली , मेरे मुंह से बस कुछ ही दूर , ... 
मेरे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। 


" बोलो, ननद रानी ,पिला दूँ पानी बहुत पियास लगी है न " मेरी आँखों में आँखे डॉल के पूछा। 

मुंह जल रहा था मुश्किल से मेरे मुंह से निकला , पानी,... 


सांझ ढल रही थी। 

सुनहली धूप नीम के पेड़ की फुनगियों से टंगी छन छन कर नीचे उतर रही थी। 

" पिला दूँ ,एक बूँद भी लेकिन इधर उधर हुआ न तो बहुत पीटूंगी। " वो बोली , पूरी ताकत से उसने मेरे गालों को दबा रखा था और मेरा मुंह खुला हुआ था चिड़िया की तरह। 


पिघलती सुनहली धूप मेरे ऊपर गिर गिर रही थी थी जैसे पिघलते सोने की एक एक बूँद हो , 


मेरे खुले मुंह में एक सुनहली बूँद बंसती की छलक कर , फिर दूसरी , फिर तीसरी , ... सीधे 


मैंने दीये की तरह की अपनी बड़ी बड़ी आँखे बंद कर लीं। 

जाँघों के बीच बंसती ने मेरे सर को दबोच रखा था , 

पहले पिघलता सोना बूँद बूँद फिर , ... 


छरर छरर , सुनहली शराब। 


" ऐ छिनरो आँख खोल देख खोल के , " बसंती जोर से बोली और कस के मेरे निपल नोच लिए। 

दर्द से मैं बिलबिला उठी और चट से मेरी आँखे खुल गयी , 

बूँद बूँद बसंती की ,... से,... सीधे मेरे मुंह में ,... 

और अब बसंती ने मेरा मुंह सील कर दिया , और फिर तो ,

जैसे कोई शैम्पेन की बोतल मुंह में लगा के उड़ेल दे , पूरी की पूरी , एक बार में ,


घल घल 


मैंने कुछ देर मुंह में रोकने की कोशिश की पर बंसती के आगे चलती कया , एक तो उसने एक हाथ से मेरे निपल को पूरी ताकत से उमेठ दिया , और फिर मेरे नथुनो को दूसरे हाथ से भींच दिया। मुंह उसकी बुर ने सील कर रखा था , पहले ही। 


" घोंट , रंडी क जनी , हरामजादी , भड़वे की , घोंट पूरा , वरना एक बूँद साँस को तड़पा दूंगी। "

अपने आप मेरा गला खुल गया , और सब धीमे धीमे अंदर ,... 

चार पांच मिनट तक , ... 
बसंती अभी उठी भी नहीं थी की बाहर से सांकल खटकाने की आवाज आई। 



साडी का यही फायदा है , बसंती सिर्फ खड़ी हो गयी और साडी ने सब कुछ ढँक लिया।
 
शाम 



बसंती अभी उठी भी नहीं थी की बाहर से सांकल खटकाने की आवाज आई। 



साडी का यही फायदा है , बसंती सिर्फ खड़ी हो गयी और साडी ने सब कुछ ढँक लिया। 


बाहर गुलबिया थी ,बसंती की बुलाने आई थी। बिंदु सिंह की बछिया बियाने वाली थी इसलिए उसको और बसंती को बुलाया था। 

गुलबिया अंदर तो नहीं आई लेकिन जिस तरह से वो मुझे देख कर मुस्करा रही थी , ये साफ़ था की वो समझ गयी बसंती मेरे साथ क्या कर रही थी। 

उसने ये भी बोला की भाभी और उनकी माँ गाँव में तो आ गयी है लेकिन वो लोग दिनेश के यहाँ रुकी है , और उन्होंने कहलवाया है की वो लोग आठ बजे के बाद ही आएँगी इसलिए खाना बना लें और मैंने खाना खा लूँ , उन लोगों का इन्तजार न करूँ। 


बादल एक बार फिर से घिर रहे थे ,

एक बार फिर दरवाजे से झाँक के बंसती ने मुझे देख के मुस्कराते हुए बोला ,


" घबड़ाना मत , घंटे भर में आ जाउंगी। "और गुलबिया के साथ चल दी। 

जिस तरह से वो गुलबिया से बतिया रही थी , ये साफ़ लग रहा थी की उसने सब कुछ ,... 
……………….और मैंने चम्पा भाभी की ओर देखा। 


मुझे लगा की शायद वो मुझे चिढ़ाए ,खिझाएं , लेकिन ,... 

बस उन्होंने मेरी ओर देखा और मुस्करा दिन। 

और मैंने शर्माकर आँखे नीचे कर लीं। 


चम्पा भाभी ने आँखे ऊपर कर के चढते बादलों को देखा और जैसे घबड़ा के बोलीं ,

" अरी गुड्डी , साली बसंती तो चुदाने चली गयी अब हमीं तुम को सारा काम सम्हालना पडेगा। चल जल्दी ऊपर ,कभी भी पानी आ सकता है। "


आगे आगे वो और पीछे पीछे मैं धड़धड़ाते सीढ़ी से चढ़कर छत पर पहुँच गए। 


भाभी का घर गाँव के उन गिने चुने १०-१२ घरों में था जहां पक्की छत थी। और उनमे भी उनके घर के छत सबसे ऊँची थी। और वहां से करीब करीब पूरा गाँव, खेत बगीचे और दूर पतली चांदी की हंसुली सी नदी भी नजर आती थी। 

वास्तव में काम बहुत फैला था। 

छत पर बड़ी सुखाने के लिए डाली हुयी थी , कपडे और भी बहुत कुछ ,... 

आज बहुत दिन बाद इतना चटक घाम निकला था इसलिए , ... लेकिन अब मुझे और चंपा भाभी को सब समेटना था ,नीचे ले जाना था। 

हम दोनों लग गए काम पे। 

पहले तो हम दोनों ने बड़ी समेटी और फिर भाभी उसे नीचे ले गयी। 

और मैं डारे पर से कपडे उतारने लगी। 

बादल तेजी से बढे चले आ रहे थे। 

भाभी ऊपर आगयी और हम दोनों ने जल्दी जल्दी। 

" बस थोड़े से कपडे बचे हैं इसे उतार के तुम , ..." और भाभी नीचे सब सामान ले कर चली गईं। 

हवा बहुत अच्छी चल रही थी , एक पल के लिए मैं छत के किनारे खड़ी हो गयी। 


दूर दूर तक खड़े गन्ने के खेत दिख रहे थे और धान के चूनर की तरह लहलहाते खेत दिख रहे थे। 

एक पोखर और अमराई के आगे खूब घना गन्ने का खेत था ,

और एक पल के लिए मैं शर्मा गयी। 

उसके बाद वो मैदान था जिधर मेला लगता था। 

उसी खेत से तो शुरू हुयी थी सारी कहानी। 



भले मेरी नथ सबसे पहले अजय ने उतारी हो लेकिन मेरे बदन में मदन की ज्वाला जगाने वाला तो सुनील था। 


उसी गन्ने के खेत में सबसे पहले , मैंने उसे हचक कर चन्दा ,मेरी सहेली को चोदते देखा था और उस के मुंह से से ये सुन के की वो मुझे भी चोदना चाहता है ,लजा गयी लेकिन मेरा पहली बार मन भी करने लगा जोर जोर से चुदवाने का। 


और उसी खेत में ही अगले दिन चन्दा मुझे बहला फुसला कर लेगयी और क्या मस्त सुनील ने गन्ने के खेत में जबरदस्त चोदा था ,और सिर्फ चोदा ही नहीं था बल्कि शाम को बगल में जो अमराई दिख रही है , उस में शाम को आने का वायदा भी करा लिया। और वहां रवी के साथ ,... फिर तो मेरी सारी लाज शरम झिझक निकल गयी और खाली चुदवास बची। 


और मेरा पिछवाड़े का डर तो कभी जाता ही नहीं , लेकिन उस चन्दा की बच्ची ने किस तरह मुझे अपने घर बुलाया और वहां भी सुनील ने ही पहली बार , ..मैं चिलाती रही चूतड़ पटकती रही उसकी माँ बहन सब गरियाती रही लेकिन 


मेरी कसी कुँवारी कच्ची गांड मार् के ही सुनील ने छोड़ा। 

कल की ही तो बात है , लेकिन लग रहा है कितने दिन हो गए उससे मिले। 
बहुत तेज याद आरही थी सुनील की।

उसकी दो बातें जो शुरू में थोड़ी ऐसी वैसी लगती थीं ,अब बहुत अच्छी लगती हैं। 

एक तो उसकी चोदते समय ,गालियां देने की आदत ,एक से एक गन्दी गालियां ,

और दूसरे जबरदस्ती करने की आदत ,

अब तो मैं कई बार जान बूझ के ना ना करती थी ,जिससे वो जबरन , खूब जबरदस्ती करके , गाली दे दे के , ... 


सोच सोच के चुनमुनिया में खुजली मचने लगी। 



तभी मुझे लगा की कोई मुझे बुला रहा है , नाम ले ले के ,

मैंने चारो ओर देखा , और मेरी आँखों में चमक आ गयी। 


शैतान का नाम लो , शैतान हाजिर।
 
सुनील 


तभी मुझे लगा की कोई मुझे बुला रहा है , नाम ले ले के ,

मैंने चारो ओर देखा , और मेरी आँखों में चमक आ गयी। 


शैतान का नाम लो , शैतान हाजिर। 


सुनील ही था। थोड़ी दूर पे जो गन्ने का खेत था उसके सामने वाली पगडण्डी पे खड़ा इशारे कर रहा था। 

और उसके साथ एक और लड़का , उम्र सुनील से तो कम रही ही होगी ,शायद मेरे बराबर ही रही होगी। मुश्किल से रेख अभी आ ही रही थी। 


मेरे क्लास की लड़कियां ऐसे लड़कों को 'कच्चा केला ' ( कच्ची कली की तर्ज पर ) पर कहती थीं। एकदम वैसा ही। 

मुझे अपनी ओर देख के सुनील ने जोर जोर से हाथ हिला के इशारा किया और मैंने उससे भी दुगुने जोर से इशारा किया। 

सुनील ने फ़्लाइंग किस दी तो मैंने फ़्लाइंग किस दी। सुनील ने उस लड़के की ओर दिखा के इशारा किया तो मैं एक फ़्लाइंग किस उछाल दी। 

बिचारा वो ,ऐसा शर्माया ,सुनील ने उसे बहुत समझाया। एकदम कच्चा केला ही था। मुश्किल से उसने फ़्लाइंग किस दी। 


मुझे एक शरारत सूझी तो मैंने उसे दिखा के फ़्लाइंग किस कैच किया और फिर अपने आलमोस्ट खुले टॉप में उस लड़के को दिखा के अपने उभारों की गहराइयों में छुपा लिया। 

बिचारे की हालत खराब हो गई। 

लेकिन सुनील तो सुनील था ,उसे इस बात की कोई परवाह नहीं थी की कोई देख तो नहीं रहा। अंगूठे और तर्जनी को जोड़ के गोला बना के उसके अंदर एक ऊँगली डाल के इंटरनेशनल चुदाई का सिंबल दिखाया। 

मैंने गुस्सा होने का नाटक किया और जाने लगी। 

लेकिन वो तो नाटक था , मैंने एक बार मुड़ के देखा तो सुनील हाथ जोड़ के माफ़ी मांगने की ऐक्टिंग कर रहा था। 

मेरे चेहरे पे मुस्कान आ ही गयी। बस सुनील ने अपने दोस्त से बोला , देख हंसी तो फंसी। 

और मुझसे नीचे आने का इशारा किया , मैं ना ना करती रही। 

फिर उसने गन्ने के खेत की ओर इशारा किया और जोर जोर से कमर उचका के जैसे मुझे चोद रहा हो ऐसे दिखाया। 

मन तो मेरा बहुत कर रहा था लेकिन कामिनी भाभी की हिदायत याद आ गयी। कल सुबह तक कुछ नहीं ,ऊँगली भी नहीं , न आगे न पीछे। 

और जब सुनील ने दुबारा मुझे चोदने का कमर उचका के इशारा किया तो मैंने भी हँसते हुए अपनी कमर उचका के चुदवाने की हम भरी लेकिन ये भी इशारा किया की ,

' कल ,पक्का। "

तब तक नीचे से चम्पा भाभी की आवाज आई , और मैं सुनील को दिखा के ,चूतड़ मटका के , छत पर से बाकी कपडे समेट के नीचे आ गयी। 


" किससे नैन मटक्का हो रहा था , रानी। " भाभी ने चिढ़ाया ,लेकिन मुस्करा के मैंने जवाब टाल दिया।
….मैं कपडे तहिया कर रखने में लग गयी। और चुपचाप सुनील के बारे में सोच सोच के मैं मुस्करा रही थी। 

तबतक चम्पा भाभी की आवाज किचन से आई , 

" चाय चलेगी "

" चलेगी नहीं भाभी दौड़ेगी " . मैं बोली और कुछ देर में किचन में जाके बैठ गयी। 

चाय के साथ हम दोनों गप्पे मारते रहे। 

गाँव में रात बहुत जल्द हो जाती थी , सूरज झप्प से नदी के पिछवाड़े जाकर छुप गया और पूरा गाँव अँधेरे में ,... 

फिर मैं चंपा भाभी का हाथ खाना बनाने में बंटाने लगी। 
 
चंपा भाभी 


अब तक 


सुनील ही था। थोड़ी दूर पे जो गन्ने का खेत था उसके सामने वाली पगडण्डी पे खड़ा इशारे कर रहा था। 

और उसके साथ एक और लड़का , उम्र सुनील से तो कम रही ही होगी ,शायद मेरे बराबर ही रही होगी। मुश्किल से रेख अभी आ ही रही थी। 


मेरे क्लास की लड़कियां ऐसे लड़कों को 'कच्चा केला ' ( कच्ची कली की तर्ज पर ) पर कहती थीं। एकदम वैसा ही। 

मुझे अपनी ओर देख के सुनील ने जोर जोर से हाथ हिला के इशारा किया और मैंने उससे भी दुगुने जोर से इशारा किया। 

सुनील ने फ़्लाइंग किस दी तो मैंने फ़्लाइंग किस दी। सुनील ने उस लड़के की ओर दिखा के इशारा किया तो मैं एक फ़्लाइंग किस उछाल दी। 

बिचारा वो ,ऐसा शर्माया ,सुनील ने उसे बहुत समझाया। एकदम कच्चा केला ही था। मुश्किल से उसने फ़्लाइंग किस दी। 


मुझे एक शरारत सूझी तो मैंने उसे दिखा के फ़्लाइंग किस कैच किया और फिर अपने आलमोस्ट खुले टॉप में उस लड़के को दिखा के अपने उभारों की गहराइयों में छुपा लिया। 

बिचारे की हालत खराब हो गई। 

लेकिन सुनील तो सुनील था ,उसे इस बात की कोई परवाह नहीं थी की कोई देख तो नहीं रहा। अंगूठे और तर्जनी को जोड़ के गोला बना के उसके अंदर एक ऊँगली डाल के इंटरनेशनल चुदाई का सिंबल दिखाया। 

मैंने गुस्सा होने का नाटक किया और जाने लगी। 

लेकिन वो तो नाटक था , मैंने एक बार मुड़ के देखा तो सुनील हाथ जोड़ के माफ़ी मांगने की ऐक्टिंग कर रहा था। 

मेरे चेहरे पे मुस्कान आ ही गयी। बस सुनील ने अपने दोस्त से बोला , देख हंसी तो फंसी। 

और मुझसे नीचे आने का इशारा किया , मैं ना ना करती रही। 

फिर उसने गन्ने के खेत की ओर इशारा किया और जोर जोर से कमर उचका के जैसे मुझे चोद रहा हो ऐसे दिखाया। 

मन तो मेरा बहुत कर रहा था लेकिन कामिनी भाभी की हिदायत याद आ गयी। कल सुबह तक कुछ नहीं ,ऊँगली भी नहीं , न आगे न पीछे। 

और जब सुनील ने दुबारा मुझे चोदने का कमर उचका के इशारा किया तो मैंने भी हँसते हुए अपनी कमर उचका के चुदवाने की हम भरी लेकिन ये भी इशारा किया की ,

' कल ,पक्का। "

तब तक नीचे से चम्पा भाभी की आवाज आई , और मैं सुनील को दिखा के ,चूतड़ मटका के , छत पर से बाकी कपडे समेट के नीचे आ गयी। 


" किससे नैन मटक्का हो रहा था , रानी। " भाभी ने चिढ़ाया ,लेकिन मुस्करा के मैंने जवाब टाल दिया।











आगे 







" किससे नैन मटक्का हो रहा था , रानी। " भाभी ने चिढ़ाया ,लेकिन मुस्करा के मैंने जवाब टाल दिया।
….मैं कपडे तहिया कर रखने में लग गयी। और चुपचाप सुनील के बारे में सोच सोच के मैं मुस्करा रही थी। 

तबतक चम्पा भाभी की आवाज किचन से आई , 

" चाय चलेगी "

" चलेगी नहीं भाभी दौड़ेगी " . मैं बोली और कुछ देर में किचन में जाके बैठ गयी। 

चाय के साथ हम दोनों गप्पे मारते रहे। 

गाँव में रात बहुत जल्द हो जाती थी , सूरज झप्प से नदी के पिछवाड़े जाकर छुप गया और पूरा गाँव अँधेरे में ,... 

फिर मैं चंपा भाभी का हाथ खाना बनाने में बंटाने लगी। 

गाँव में 'और चीजों ' के साथ मैंने घर के ढेर सारे काम भी सीखने शुरू कर दिए थे। 
चम्पा भाभी का मैं हाथ बटा रही थी , लेकिन साथ में ' सीखना ' भी चल रहा था.
बहुत दिनों से मैं चम्पा भाभी के पीछे पड़ी थी , 'अच्छी वाली ' शुद्ध देसी गारी सिखाने के लिए। 


कोई भी मौक़ा होता था तो भाभी मुझे एक साथ चार पांच सूना देती थीं , रवींद्र मेरे कजिन से लेकर मेरी गली के गदहों तक से मेरा नाम जोड़ के , 

और मैं अगर मुंह बनाती थी तो सब लोग मुझे ही चिढ़ाते थे ,

"वो तेरी भाभी हैं ,रिश्ता है , तुझे आता हो तो तू भी सुना दे न , वो बुरा थोड़े ही मानेंगी। "

मुझे आती होती तब न , और एक दो जो आती थीं वोभी बड़ी फीकी सी , शाकाहारी सी। और लोग और चिढ़ाते। 


चंपा भाभी तो देहाती गारियों का खजाना थीं। एक दो बार मैंने बोला भी की लिख के दे दें या मैं लिख लुंगी , तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया। 

वो बोलीं की अरे इसमें धुन , कैसे गाया जाता है ये सब भी तो सीखना पडेगा। मैं गाऊंगी और तू मेरे साथ साथ गाना , और फिर तू गा के सुनाना , एक दोबार तब पक्का होगा। 

और वो तब हो पाता ,जब खाली हम दोनों होते। 

आज वो मौक़ा था और टाइम भी थी। फिर मेरी भाभी को गारी देने का रिश्ता उनका भी था और मेरा भी। मेरी भाभी थीं तो उनकी छोटी ननद। 
 
गारी सिखाई 



चंपा भाभी तो देहाती गारियों का खजाना थीं। एक दो बार मैंने बोला भी की लिख के दे दें या मैं लिख लुंगी , तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया। 

वो बोलीं की अरे इसमें धुन , कैसे गाया जाता है ये सब भी तो सीखना पडेगा। मैं गाऊंगी और तू मेरे साथ साथ गाना , और फिर तू गा के सुनाना , एक दोबार तब पक्का होगा। 

और वो तब हो पाता ,जब खाली हम दोनों होते। 

आज वो मौक़ा था और टाइम भी थी। फिर मेरी भाभी को गारी देने का रिश्ता उनका भी था और मेरा भी। मेरी भाभी थीं तो उनकी छोटी ननद। 



अरिया अरिया रइया बोवायो ,बिचवा बोवायो चउरिया , 

अरे बिचवा बोवायो चउरिया , की वाह वाह ,

अरे अरिया अरिया रइया बोवायो ,बिचवा बोवायो चउरिया , 

अरे बिचवा बोवायो चउरिया , की वाह वाह ,

सगवा खोटन गईं गुड्डी क भौजी अरे गुड्डी क भौजी 

सगवा खोटन गईं चम्पा भौजी क ननदो अरे चंपा भौजी क ननदो ( मैंने जोड़ा )

अरे भोंसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह , अरे भोंसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह वाह 

दौड़ा दौड़ा हे उनकर भैया ,हे बीरेंद्र भैया ( चंपा भाभी के पति , ये लाइन भी मैंने जोड़ी , अब चंपा भाभी अपने पति का नाम तो ले नहीं सकती थीं )

अरे भोंसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह , अरे भोंसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह 
अरे दौड़ा दौड़ा बीरेंद्र भइया, दंतवा से खींचा लकड़िया की वाह वाह , अरे मुहवा से खींचा लकड़िया की वाह 


सगवा खोटन गयी गुड्डी क भौजी , चंपा भाभी क ननदी 

अरे गंडियों में घुस गयी लकड़िया की वाह वाह ,



फिर एक से एक , गदहा घोड़ा कुत्ता कुछ नहीं बचा। 


खाना बनाते बनाते दर्जन भर से ज्यादा ही गारी उन्होंने मेरी भाभी को सुनाईं , मैंने भी साथ साथ में गाया और फिर अलग से अकेले गा के सुनाया।

और इसी बीच घण्टे डेढ़ घंटे में खाना भी बन गया। 

हाँ , बसंती आई थी , बस थोड़ी देर के लिए। एक दो गारी उसने भी सिखाई , लेकिन बोला की उसे जल्दी है। बछिया हुयी है और रात में शायद वहीँ रुकना पड़े। 

चम्पा भाभी थोड़ी देर के लिए आंगन में गयी तो बसंती ने झुक के झट से मेरी एक चुम्मी ली , खूब मीठी वाली और कचकचा के मेरे उभारों पे चिकोटी काटते बोली ,




" घबड़ा जिन , एकदम मुंह अँधेरे सबेरे , आउंगी और भिनसारे भिनसारे , ... जबरदस्त सुनहला शरबत ,नमकीन ,... घट घट का कहते हैं उसको सहर में, हाँ , ... बेड टी ,... "




और जबतक मैं कुछ बोलूं , बाहर निकल गयी। 

चंपा भाभी मेरे पीछे पड़ गईं की मैं खाना खा लूँ , मैं लाख जिद करती रही की सबके साथ खाऊंगी , लेकिन ,


और मुझे थकान और नींद दोनों लग रही थी। कल रात भर जिस तरह मेरी कुटाई हुयी थी , फिर सुबह भी , जाँघे फटी पड़ रही थीं। 


खाने के बाद जैसे मैं अपने कमरे में गयी तुरंत नीद आ गयी। 

हाँ लेकिन सोने के पहले , जो कामिनी भाभी ने गोली खाने को बोला था , और उभारों पर और नीचे ख़ास तेल लगाने को बोला था , वो मैं नहीं भूली। 

रात भर न एक सपना आया , न नींद टूटी। खूब गाढ़ी , बिना ब्रेक के घोड़े बेच के सोई मैं।
 
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