Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 16 - SexBaba
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Long Sex Kahani सोलहवां सावन

सुबह सबेरे :बसंती 


अब तक 



आज वो मौक़ा था और टाइम भी थी। फिर मेरी भाभी को गारी देने का रिश्ता उनका भी था और मेरा भी। मेरी भाभी थीं तो उनकी छोटी ननद। 



अरिया अरिया रइया बोवायो ,बिचवा बोवायो चउरिया , 

अरे बिचवा बोवायो चउरिया , की वाह वाह ,

अरे अरिया अरिया रइया बोवायो ,बिचवा बोवायो चउरिया , 

अरे बिचवा बोवायो चउरिया , की वाह वाह ,

सगवा खोटन गईं गुड्डी क भौजी अरे गुड्डी क भौजी 

सगवा खोटन गईं चम्पा भौजी क ननदो अरे चंपा भौजी क ननदो ( मैंने जोड़ा )

अरे भोंसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह , अरे भोंसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह वाह 

दौड़ा दौड़ा हे उनकर भैया ,हे बीरेंद्र भैया ( चंपा भाभी के पति , ये लाइन भी मैंने जोड़ी , अब चंपा भाभी अपने पति का नाम तो ले नहीं सकती थीं )

अरे भोंसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह , अरे भोंसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह 
अरे दौड़ा दौड़ा बीरेंद्र भइया, दंतवा से खींचा लकड़िया की वाह वाह , अरे मुहवा से खींचा लकड़िया की वाह 


सगवा खोटन गयी गुड्डी क भौजी , चंपा भाभी क ननदी 

अरे गंडियों में घुस गयी लकड़िया की वाह वाह ,



फिर एक से एक , गदहा घोड़ा कुत्ता कुछ नहीं बचा। 


खाना बनाते बनाते दर्जन भर से ज्यादा ही गारी उन्होंने मेरी भाभी को सुनाईं , मैंने भी साथ साथ में गाया और फिर अलग से अकेले गा के सुनाया।

और इसी बीच घण्टे डेढ़ घंटे में खाना भी बन गया। 

हाँ , बसंती आई थी , बस थोड़ी देर के लिए। एक दो गारी उसने भी सिखाई , लेकिन बोला की उसे जल्दी है। बछिया हुयी है और रात में शायद वहीँ रुकना पड़े। 

चम्पा भाभी थोड़ी देर के लिए आंगन में गयी तो बसंती ने झुक के झट से मेरी एक चुम्मी ली , खूब मीठी वाली और कचकचा के मेरे उभारों पे चिकोटी काटते बोली ,




" घबड़ा जिन , एकदम मुंह अँधेरे सबेरे , आउंगी और भिनसारे भिनसारे , ... जबरदस्त सुनहला शरबत ,नमकीन ,... घट घट का कहते हैं उसको सहर में, हाँ , ... बेड टी ,... "




और जबतक मैं कुछ बोलूं , बाहर निकल गयी। 

चंपा भाभी मेरे पीछे पड़ गईं की मैं खाना खा लूँ , मैं लाख जिद करती रही की सबके साथ खाऊंगी , लेकिन ,


और मुझे थकान और नींद दोनों लग रही थी। कल रात भर जिस तरह मेरी कुटाई हुयी थी , फिर सुबह भी , जाँघे फटी पड़ रही थीं। 


खाने के बाद जैसे मैं अपने कमरे में गयी तुरंत नीद आ गयी। 

हाँ लेकिन सोने के पहले , जो कामिनी भाभी ने गोली खाने को बोला था , और उभारों पर और नीचे ख़ास तेल लगाने को बोला था , वो मैं नहीं भूली। 

रात भर न एक सपना आया , न नींद टूटी। खूब गाढ़ी , बिना ब्रेक के घोड़े बेच के सोई मैं।




आगे 








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गाँव में रात जितनी जल्दी होती है ,उससे जल्दी सुबह हो जाती है। 

मैं सो भी जल्दी गयी थी और न जाने कितने दिनों की उधार नींद ने मुझे धर दबोचा था। एकदम गाढ़ी नींद , शायद करवट भी न बदली हो ,

( वो तो बाद में मेरी समझ में आया की मेरी इस लम्बी नींद में , मेरी थकान, रात भर जो कामिनी भाभी के यहां रगड़ाई हुयी थी , उससे बढ़कर , जो गोली कामिनी भाभी की दी मैंने कल सोने के पहले खायी थी उसका असर था। और गोली का असर ये भी था की जो स्पेशल क्रीम मेरी जाँघों के बीच आगे पीछे , कामिनी भाभी ने चलने के पहले लगायी थी न और ये सख्त ताकीद दी थी की सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर मैं उपवास रखूं , उस क्रीम का पूरा असर मेरी सोनचिरैया और गोलकुंडा दोनों में हो जाए। 

दो असर तो उन्होंने खुद बताए थे , कितना मूसल चलेगा , मोटा से मोटा भी लेकिन , मैं जब शहर अपने घर लौटूंगी तो मेरी गुलाबो उतनी ही कसी छुई मुई रहेगी , जैसी जब मैं आई थी , तब थी ,बिना चुदी। 

और दूसरा असर ये था की न मुझे कोई गोली खानी पड़ेगी और न लड़कों को कुछ कंडोम वंडोम , लेकिन न तो मेरा पेट फूलेगा ,और न कोई रोग दोष। रात भर सोने से वो क्रीम अच्छी तरह रच बस गयी थी अंदर। 

हाँ , एक असर जो उन्होंने नहीं बताया था लकेँ मुझे खुद अंदाजा लग गया , वो सबसे खतरनाक था। 

मेरी चूत दिन रात चुलबुलाती रहेगी , मोटे मोटे चींटे काटेंगे उसमें , और लण्ड को मना करने को कौन कहे , मेरा मन खुद ही आगे बढ़ के घोंटने को , ... )




और मेरी नींद जब खुली तो शायद एक पहर रात बाकी थी , कुछ खटपट हो रही थी। 

मेरी खुली खिड़की के पीछे ही गाय भैंसे बंधती थी। और आज श्यामू ( वो जो गाय भैंसों की देख भाल करता था और जिसका नाम ले ले के चंपा भाभी और बसंती मेरी भाभी को खूब छेड़ती थीं ) भी नहीं था , दो दिन की छुट्टी गया था। इसलिए बसंती ही आज , कल चंपा भाभी ने उसे बोला भी था। 

मैं अधखुली आँखों से कुछ देख रही थी कुछ सुन रही थी , गाय भैंसों का सारा काम और फिर दूध दूहने का ,... 

चाँद मेरी खिड़की से थोड़ी दूर घनी बँसवाड़ी के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा था , जैसे रात भर साजन से खुल के मजे लूटने के बाद कोई नयी नयी दुल्हन अपनी सास ननदों से घूंघट के पीछे छिपती शरमाती हो। 

उसी बँसवाड़ी के पास ही तो दो दिन पहल अजय ने कुतिया बना के कितना एकदम खुले आसमान के नीचे कितना हचक हचक के , और कैसी गन्दी गन्दी गालियां दी थीं उसने न सिर्फ मुझे और बल्कि मेरी सारे मायके वालियों को,




शरमा के मैंने आँखे बंद कर लीं और बची खुची नींद ने एक बार फिर ,... 

और जब थोड़ी देर बाद फिर आँख खुली तो चाँद नयी दुल्हन की जैसे टिकुली साजन के साथ रात के बाद सरक कर कहीं और पहुँच चुकी होती है , उसी तरह आसमान के कोने में टिकुली की तरह ,


लेकिन साथ साथ हलकी हलकी लाली भी , जो थोड़ी देर पहले काला स्याह अँधेरा था अब धुंधला हल्का भूरा सा लग रहा था। चिड़ियों की आवाजों के साथ लोगों की आवाजें भी ,

बसंती की आवाज भी आ रही थी , किसी से चुहुल कर रही थी। उस का बाहर का काम ख़तम हो गया लगता था। 

और बसंती की कल शाम की बात याद आगयी मुझे यहीं आँगन में तो , और चंपा भाभी के सामने खुले आम आँगन में , मेरे ऊपर किस तरह चढ़ के जबरदस्ती उसने , मैं लाख कसर मसर करती रही ,


लेकिन बसंती के आगे किसी की चलती है क्या जो मेरी चलती। जो किया सो किया ऊपर से बोल गयी , कल सुबह से रोज भोर भिनसारे ,मुंह अंधियारे , ,... ऐसी नमकीन हो जाओगी न की ,.. 


गौने की दुल्हन जैसे , जब उसकी खिलखिलाती छेड़ती ननदें ले जाके उसे कमरे में बैठा देती हैं , फिर बेचारी घूंघट में मुंह छिपाती है ,आँखे बंद कर लेती है ,लेकिन बचती है क्या ,

बस वही मेरी हालत थी। 

मेरी कुठरिया में एक छोटा सा खिड़कीनुमा दरवाजा था। उसकी सिटकिनी ठीक से नहीं बंद होती थी , और ऊपर से कल मैं इतनी नींद में माती थी ,... उसे खींच के आगे करो और फिर हलके से धक्का दो तो बस , खुल जाती थी। अजय भी तो उसी रास्ते से आया था। 


उस दरवाजे के चरमर करने की आवाज हुयी और मैंने आँखे बंद कर ली। 

लेकिन आँखे बंद करने से क्या होता है , कान तो खुले थे , बसंती के चौड़े घुंघरू वाले पायल की छम छम,...

आराम से उसने मेरा टॉप उठाया और प्यार से मेरे उभार सहलाए। 


मैं कस के आँखे मींचे थी। 

और अब वो सीधे मेरे उभारों के आलमोस्ट ऊपर ,उसके हाथ मेरे गोरे गुलाबी गाल सहला रहे थे थे , और दूसरे हाथ ने बिना जोर जबरदस्ती के तेजी से गुदगुदी लगायी , 

और मैं खिलखिला पड़ी। 

" मुझे मालुम है , बबुनी जग रही हो , मन मन भावे ,मूड़ हिलावे , आँखे खोलो। "

मुंह तो मेरा खुद ही खुल गया था लेकिन आँखे जोर से मैं भींचे रही , बस एक आँख ज़रा सा खोल के ,

दिन बस निकला था , सुनहली धूप आम के पेड़ की फुनगी पर खिलवाड़ कर रही थी , वहां पर बैठी चुहचुहिया को छेड़ रही थी। 

और खुली खिड़की से एक सुनहली किरन , मेरे होंठों पे ,

झप्प से मैंने आँखे आधी खोल दी। 




सुनहली धूप के साथ , एक सुनहली बूँद , बसंती के , ... 

मेरे लरजते होंठ अपने आप खुल गए जैसे कोई सीप खुल जाए बूँद को मोती बनाने के लिए ,

एक , दो ,.... तीन ,... चार ,... एक के बाद एक सुनहरी बूँदें ,कुछ रुक रुक कर ,

आज न मैे मना कर रही थी न नखडा ,


थोड़ी देर में ही छररर , छरर ,... 

और फिर मेरे खुले होंठों के बीच बसंती ने अपने निचले होंठ सटा दिए। 

मेरे होंठों के बीच उसके रसीले मांसल होंठ घुसे धंसे फंसे थे। 


सुनहली शराब बरस रही थी। 

सुनहली धुप की किरणे चेहरे को नहला रही थी। 

पांच मिनट , दस मिनट ,...टाईम का किसे अंदाज था ,





और जब वो उठी तो मेरे गाल अभी भी थोड़े फूले थे , कुछ उसका ,... 

बनावटी गुस्से से उसने मेरे खुले निपल मरोड़ दिए पूरी ताकत से और बोली ,

"भाई चोद ,छिनार ,रंडी की जनी ,तेरे सारे मायकेवालियों की गांड मारुं , घोंट जल्दी। "



और मैं सब गटक गयी। 


बसंती दरवाजा खोल के आंगन में चली गयी और मैं पांच दस मिनट और बिस्तर पर अलसाती रही।
बाहर आंगन में हलचल बढ़ गयी थी। दिन चढ़ना शुरू हो गया था।
 
भोर हुयी 


बसंती दरवाजा खोल के आंगन में चली गयी और मैं पांच दस मिनट और बिस्तर पर अलसाती रही।
बाहर आंगन में हलचल बढ़ गयी थी। दिन चढ़ना शुरू हो गया था। 

अलसाते हुए मैं उठी , अपना टॉप ठीक किया और ताखे के बगल में एक छोटा सा शीशा लटका हुआ था। 

मैंने बाल थोड़ा सा ठीक किया , ऊपर वाले होंठ पर अभी भी दो चार ,... सुनहरी बूंदे ,... चमक रही थीं। 

मेरी जीभ ने उसे चाट लिया ,

थोड़ा नमकीन थोड़ा खारा ,

मेरे उभार आज कुछ ज्यादा ही कसमसा रहे थे। 

दरवाजा तो बंसती ने ही खोल दिया था , मैं आँगन में निकल गयी। 

किचन में मेरी भाभी कुछ कड़ाही में पका रही थीं , और चंपा भाभी भी उन के साथ , ... 

भाभी ने वहीँ से हंकार लगाई , " चाय चलेगी। " 

" एकदम भाभी चलेगी नहीं दौड़ेगी , " मुस्कराते हुए मैं बोली। 

और आँगन में एक कोने में झुक के मंजन करने लगी। 

बसंती कहीं बाहर से आई और मेरे पिछवाड़े सहलाती हंस के बोली , 

" अरे ननद रानी मैं करवा दूँ मंजन , बहुत बढ़िया करवाउंगी। "

मेरे मन में कल सुबह की तस्वीर घूम गयी , जब कामिनी भाभी ने मंजन करवाया था। 

सीधे मेरी गांड में दो ऊँगली डाल के खूब गोल गोल अंदर घुमाया और निकाल के सीधे मेरे मुंह में , दांतों पर , अंदर ,.... 

मैं सिहर गयी। बसंती कौन कामिनी भाभी से कम है अभी दस मिनट पहले ही , ... 


"नहीं नहीं मैंने कर लिया अपने से। " घबड़ा के मैं बोली। 

" अरे कैसी भौजाई हो , ननद से पूछ रही हो। करवा देती बिचारी को ज़रा ठीक से ,... " खिलखिलाते हुए अंदर से मेरी भाभी बोलीं। 

" अरे कर लिया तो दुबारा करवा लो न , तीन तीन भौजाइयों के रहते ननद को अपनी ऊँगली इस्तेमाल करनी पड़े ,बड़ी नाइंसाफी है , बसंती तू तो भौजाइयों की नाक कटा देगी। " चंपा भाभी ने बंसती को उकसाया। 


लेकिन तबतक मंजन खत्म करके मैं रसोई में पहुँच गयी।
 
रसोई में



आज मेरी भाभी तो चंपा भाभी और बसंती की भी नाक काट रही थीं , छेड़ने में। और उनसे भी ज्यादा एकदम खुला बोलने में। 

मेरे रसोई में घुसते ही चालू हो गईं , मेरे यारों का हाल चाल पूछने में। 

गलती मुझसे ही होगयी , मैंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया , ये पूछ के ,

" क्यों भाभी पड़ोस के गाँव में कुछ पुराने यार थे क्या जो रात ,... " 


मेरी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की वो चालू हो गईं,

" अरे मैंने सोचा था की क्या पता तेरा इस गाँव के लड़कों से मन भर गया हो तो बगल के गाँव में तेरा बयाना दे आऊं। हाँ लेकिन अब एक बार में एक से काम नहीं चलने वाला है , एक साथ दो तीन को निबटाना पडेगा , आगे पीछे दोनों का मजा ले लो , फिर न कहना की भाभी के गाँव में गयी वो भी सावन में लेकिन पिछवाड़ा कोरा बच गया। "

उन्हें क्या बताती की मेरे पिछवाड़े कितना जबरदस्त हल चला है कामिनी के भाभी के घर , वो तो जादू था कामिनी भाभी की क्रीम में वरना अभी तक चिलखता ,खड़ी नहीं रह पाती। 

लेकिन फिर मुझे याद आया , धान के खेत में काम करनी वलियों की , जिन्होंने सब कुछ सुना भी ,और थोड़ा बहुत देखा भी। और उनके आगे तो रेडियो टेलीग्राफ सब झूठ तो भाभी को तो रत्ती रत्ती भर की खबर मिल गयी होगी। 

उधर बसंती जिस तरह से चम्पा भाभी से कानाफूसी कर रही थी मैं समझ गयी सुबह जो उसने 'बेड टी'पिलाई है उसकी पूरी हाल चाल चंपा भाभी को उसने सुना दिया होगा और फिर जिस तरह से चंपा भाभी ने मेरी भाभी को मुस्कराकर देखा और आँखों के टेलीग्राफ से तार भेजा , 

और मेरी भाभी ने मुझे देखा , मैं सब समझ गयी और जोर से ब्लश किया। 





तब तक भाभी की माँ आ गईं , और बात उन्होंने भले न सुनी हो लेकिन जोर से ब्लश करते हुए मुझे उन्होंने देख लिया। 




फिर दो भौजाइयों के बीच में कुँवारी कच्ची उमर की ननद , जैसे शेरनियों के बीच कोई हिरनी , समझ वो सब गयी की मेरी कैसी रगड़ाई हो रही होगी। 

उन्होंने मुझे बांहों में भींच लिया और एकदम से अपनी शरण में ले लिया।


कस के उन्होंने अपनी बांहों में भींच लिया। 


लेकिन अब तक मैं समझ गयी थी की उनकी पकड़ ,जकड में वात्सल्य कम , काम रस ज्यादा है और आज तो रोज से भी ज्यादा , जिस तरह से उनकी उँगलियाँ मेरे कच्चे नए आये उभारों को दबा सहला रही थीं और उँगलियों की टिप , मेरे कंचे की तरह गोल कड़े निपल को जाने अनजाने छू रही थी ये एकदम साफ़ लग रहा था। 



और सिर्फ मैं ही नहीं चंपा भाभी , मेरी भाभी भी सब समझ रही थीं और मुझे देख देख के मंद मंद मुस्करा रही थी। 

मैं लेकिन और जोर से उनसे चिपक गयी। 

और उन्होंने मेरी भाभी और चंपा भाभी दोनों को हड़काया , 

" तुम दोनों न सुबह सुबह से मेरी बेटी के पीछे पड़ जाती हो। कुछ खिलाया पिलाया है न बिचारी भूखे पेट और , बस उसके पीछे। "

तबतक बसंती भी आगयी . 

भाभी की माँ को देख के जोर से मुस्कराई और हँसते हुए उनकी बात बीच में काट के बोली, 

" अरे एकदम पिलाया है , भोर भिनसारे ,मुंह अँधेरे ,न बिसवास हो तो अपनी लाड़ली बिटिया से पूछ लीजिये न , "

हलके से उन्होंने पूछ लिया , " क्यों। "

बिना जवाब दिए मैं जोर से लजा गयी। सौ गुलाब मेरे किशोर गालों पे खिल गए। 

और उन्हें उनकी बात का जवाब मिल गया। 

खुश होके उन्होंने न सिर्फ कस के मुझे और जोर से भींच लिया बल्कि , मेरे गुलाबों पे कचकचा के चूम लिया और फिर उनके होंठ सीधे मेरे होंठों पे और होंठों के बीच उनकी जीभ घुसी हुयी जैसे बसंती की बात की ताकीद करती ,


कुछ देर बाद जब उनके होंठ हटे तो उन्होंने खुश होके बसंती की ओर देखा लेकिन उसको हड़का भी लिया ,

" एक बार थोड़ा बहुत कुछ पिला दिया तो हो गया क्या , नयी नयी जवानी आई है उसकी , तुम सबके भाइयों देवरों की प्यास बुझाती रहती है बिचारी मेरी बेटी , एक बार में प्यास बुझेगी क्या , उसकी तुम तीनो उसके पीछे पड़ी रहती हो। 

आज मेरी भाभी भी कुछ ज्यादा मूड में थी और अब वो मोर्चे पे आगयी। बोलीं 

" आप हम लोगो को बोलती रहती हैं। अरे हम नहीं पूरा गाँव आपके इस बेटी के पिछवाड़े के पीछे पड़ा है और उसका गाँव के लौंडों की क्या गलती है , ये चलती ही है इस तरह अपना पिछवाड़ा कसर मसर करती , लौंडो को ललचाती। गलती इसके कसे कसे पिछवाड़े की है। "
 
भाभी की माँ 

अब तक 












और मेरी भाभी ने मुझे देखा , मैं सब समझ गयी और जोर से ब्लश किया। 


तब तक भाभी की माँ आ गईं , और बात उन्होंने भले न सुनी हो लेकिन जोर से ब्लश करते हुए मुझे उन्होंने देख लिया। फिर दो भौजाइयों के बीच में कुँवारी कच्ची उमर की ननद , जैसे शेरनियों के बीच कोई हिरनी , समझ वो सब गयी की मेरी कैसी रगड़ाई हो रही होगी। 

उन्होंने मुझे बांहों में भींच लिया और एकदम से अपनी शरण में ले लिया।
कस के उन्होंने अपनी बांहों में भींच लिया। लेकिन अब तक मैं समझ गयी थी की उनकी पकड़ ,जकड में वात्सल्य कम , काम रस ज्यादा है और आज तो रोज से भी ज्यादा , जिस तरह से उनकी उँगलियाँ मेरे कच्चे नए आये उभारों को दबा सहला रही थीं और उँगलियों की टिप , मेरे कंचे की तरह गोल कड़े निपल को जाने अनजाने छू रही थी ये एकदम साफ़ लग रहा था। और सिर्फ मैं ही नहीं चंपा भाभी , मेरी भाभी भी सब समझ रही थीं और मुझे देख देख के मंद मंद मुस्करा रही थी। 

मैं लेकिन और जोर से उनसे चिपक गयी। 

और उन्होंने मेरी भाभी और चंपा भाभी दोनों को हड़काया , 

" तुम दोनों न सुबह सुबह से मेरी बेटी के पीछे पड़ जाती हो। कुछ खिलाया पिलाया है न बिचारी भूखे पेट और , बस उसके पीछे। "

तबतक बसंती भी आगयी . 

भाभी की माँ को देख के जोर से मुस्कराई और हँसते हुए उनकी बात बीच में काट के बोली, 

" अरे एकदम पिलाया है , भोर भिनसारे ,मुंह अँधेरे ,न बिसवास हो तो अपनी लाड़ली बिटिया से पूछ लीजिये न , "

हलके से उन्होंने पूछ लिया , " क्यों। "

बिना जवाब दिए मैं जोर से लजा गयी। सौ गुलाब मेरे किशोर गालों पे खिल गए। 

और उन्हें उनकी बात का जवाब मिल गया। 

खुश होके उन्होंने न सिर्फ कस के मुझे और जोर से भींच लिया बल्कि , मेरे गुलाबों पे कचकचा के चूम लिया और फिर उनके होंठ सीधे मेरे होंठों पे और होंठों के बीच उनकी जीभ घुसी हुयी जैसे बसंती की बात की ताकीद करती ,

कुछ देर बाद जब उनके होंठ हटे तो उन्होंने खुश होके बसंती की ओर देखा लेकिन उसको हड़का भी लिया ,

" एक बार थोड़ा बहुत कुछ पिला दिया तो हो गया क्या , नयी नयी जवानी आई है उसकी , तुम सबके भाइयों देवरों की प्यास बुझाती रहती है बिचारी मेरी बेटी , एक बार में प्यास बुझेगी क्या , उसकी तुम तीनो उसके पीछे पड़ी रहती हो। 

आज मेरी भाभी भी कुछ ज्यादा मूड में थी और अब वो मोर्चे पे आगयी। बोलीं 

" आप हम लोगो को बोलती रहती हैं। अरे हम नहीं पूरा गाँव आपके इस बेटी के पिछवाड़े के पीछे पड़ा है और उसका गाँव के लौंडों की क्या गलती है , ये चलती ही है इस तरह अपना पिछवाड़ा कसर मसर करती , लौंडो को ललचाती। गलती इसके कसे कसे पिछवाड़े की है। "













आगे 




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लेकिन माँ हार मानने वाली नहीं थी और जब तक वो थीं , मुझे कुछ बोलने की जरूरत भी नहीं थी। उन्होंने जवाबी बाण छोड़े मेरी भाभी के ऊपर 


" तुम सब भी न मेरी बिचारी बेटी पर ही सब इल्जाम धरोगी। अभी तो जवानी उसकी बस आ रही है अरे अपनी सास को बोलो , अपनी ससुराल वालों को बोलों , तेरे देवर सब बचपन के गांडू, गांड मराने में नंबर ,और उनको छोडो , मेरी समधन , तेरी सास सब की सब खानदानी गांड मराने की शौक़ीन ,किसीको नहीं मना करतीं तो वो असर तो इस बिचारी के खून में आ ही गया होगा न। बचपन में जो चीज घर में खुलेआम देख रही होगी तो सीखेगी ही , फिर इसमें मेरी बेटी का क्या कसूर ,अपनी सास के बारे में बोलो न ,... "

और उसके बाद उन्होंने बाणों का रुख चंपा भाभी की ओर कर दिया ,

" और इसका पिछवाड़ा कसा कसा है तो दोस किसका है , तेरे देवरों का न। काहे नहीं ढीली कर देते , मेरी बेटी ने तो किसी को मना नहीं किया , क्यों बेटी है न। तूने कभी नहीं मना किया न ? ये बिचारि तो गन्ने का खेत हो आम का बाग़ हो कहीं भी निहुरने के लिए तैयार रहती है अपने देवरों को बोलों। "

मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मुस्कराउं या गुस्सा होऊं।
जहाँ तक मेरा सवाल था, चंपा भाभी बिना जवाब दिए कैसे रहतीं। बोल पड़ीं 

" अच्छा अच्छा , चलिए हम भौजाई आपकी प्यारी बिटिया की प्यास नहीं बुझाते , तो आपको इतना प्यार उमड़ रहा है तो एक बार आप भी क्यों नहीं इसकी प्यास बुझा देतीं। "

चंपा भाभी की बात ने आग में घी डालने का काम किया। 

भाभी की माँ का एक हाथ मेरे कच्चे टिकोरों पर था और दूसरे से वो मेरा सर प्यार से सहला रही थीं। 

चंपा भाभी की बात का कुछ देर तक तो उन्होंने जवाब नहीं दिया फिर हलके से पुश करके मेरा सर अपनी गोद में कर लिया , दोनों जांघों के ठीक बीचोबीच और कुछ अपनी भरी भरी मांसल जाँघों से उन्होंने मेरे सर को कस के दबोच लिया था और जो हाथ सर सहला रहा था उसने सर को जैसे दुलार से कस के पुश कर रखा था , जाँघों के बीच में ठीक 'प्रेम द्वार ' के ऊपर , साडी वहां उनकी सिकुड़ गयी थी और मैं वो मांसल पपोटे महसूस कर रही थी। 

कुछ देर तक वो चुप रहीं फिर उन्होंने जो बोलना शुरू किया तो , 

" अरे काहें नहीं पिलाऊँगी , मेरी पियारी दुलारी बिटिया है। तुम लोगों की तरह नहीं की एक बार जरा सा दो बूँद ओस की तरह चटा के पूरे गाँव में गाती हो। अरे मैं तो मन भर पेट भर , और एक बार नहीं बार बार , ...मेरी बिटिया एकदम नंबर वन है हर चीज में। तुम्ही लोग जब ये आई थी तो पूछ रही थीं न की बिन्नो किससे किससे चुदवाओगी ,अजय से की सुनील से की दिनेश से , मैंने कहा था न की अरे सोलहवां सावन है ये सबका मन रखेगी। और वही हुआ न , आज तक जो किसी को मना किया हो इसने , ...है न बेटी। "
 
पकौड़ियाँ 











" अरे काहें नहीं पिलाऊँगी , मेरी पियारी दुलारी बिटिया है। तुम लोगों की तरह नहीं की एक बार जरा सा दो बूँद ओस की तरह चटा के पूरे गाँव में गाती हो। अरे मैं तो मन भर पेट भर , और एक बार नहीं बार बार , ...मेरी बिटिया एकदम नंबर वन है हर चीज में। तुम्ही लोग जब ये आई थी तो पूछ रही थीं न की बिन्नो किससे किससे चुदवाओगी ,अजय से की सुनील से की दिनेश से , मैंने कहा था न की अरे सोलहवां सावन है ये सबका मन रखेगी। और वही हुआ न , आज तक जो किसी को मना किया हो इसने , ...है न बेटी। "

मैं क्या बोलती। और वो फिर चालू हो गईं हाँ टोन थोड़ा बदल गया , मेरी आँखों में आँखे डाल के मुस्कराते हुए जैसे मुझसे कह रही हों , कहने लगी ,

" और अगर ये सीधे से नहीं , ...तो मुझे जबरदस्ती करनी भी आती है। अरे जबरदस्ती का अलग मजा है। कई बार छोटे बच्चे नहीं मानते तो उन्हें मार के ,जबरदस्ती समझाना पड़ता है तो बस , ... छोटी सी तो है , देखना वो नमकीन शरबत पी पी के , इतना नमकीन हो जायेगी की , अपने स्कूल का बल्कि शहर का सबसे नमकीन माल , पीना तो इसे पडेगा ही। "

मेरी आँखे बंद हो गयी और कारण उनकी बाते नहीं उँगलियाँ थीं जो अब खुल के मेरे कंचे की तरह कड़े कड़े गोल निपल पे घूम रहीं थीं उसे मसल रही थीं , और मस्ती से मैं पनिया रही थी मेरी आँखे बंद हो रही थीं।
एक रात पड़ोस के गाँव में बिताने के बाद न जाने मेरी भाभी को क्या हो गया था। आज वो बसंती और गुलबिया से भी दो हाथ आगे बढ़ बढ़ के , ... उन्होंने चैलेन्ज थ्रो कर दिया,

" अरे तो फिर देर किस बात की , न नाउन दूर ,न नहन्नी दूर , तो हो जाय , की आपकी बिटिया हम लोगों से सरमा लजा रही है। मिटा दीजिये पियास इसकी। वर्ना जंगल में मोर नाचा किसने देखा , हो जाय। "

चंपा भाभी और बसंती दोनों ने हामी भरी। 

अब मेरी हालत खराब थी ,बुरी फंसी, बचने का कोई रास्ता भी नहीं समझ में आ रहा था। 

बस मैंने वही ट्रिक अपनाई जो कई बार अपना चुकी थी , बात बदलने की। 

बाहर मौसम बहुत मदमस्त हो रहा था। ढेर सारे सफ़ेद आवारा बादल धूप का रस्ता रोक के खड़े हो जा रहे थे , गाँव के लौंडो की तरह। हवा भी ठंडी ठंडी चल रही थी। बाहर कहीं से कजरी गाने की आवाजें आ रही थीं। 

" आज सोच रही हूँ बाहर घूम आऊं , मस्त मौसम हो रहा है। "

लेकिन काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती सो मेरी ट्रिक फेल हो गयी। 


और हुआ ये की मेरी भाभी कड़ाही में पकौड़ियाँ छान रही थीं , प्याज ,आलू और बैगन के। 

बंसती निकाल के ले आई और उसने भाभी की मां की ओर बढ़ाया , तो मेरी भाभी और चम्पा भाभी दोनो ने जोर जोर से सर हिला के मना किया और मेरी ओर इशारा किया। 

मेरे कुछ कहने के पहले ही बसंती ने सीधे मेरे मुंह में दो गरमागरम पकौड़े ,... खूब करारी ,स्वादिष्ट,मजेदार। 

' ओह अाहहहह , ... उहह ,' पूरा मुंह छरछरा रहा था जैसे आग लग गयी हो। 

पकौड़ी नहीं मिर्चों का बाम्ब हो जैसे और सब की सब एक से एक तीखी , जोर से लग रही थी , चीख भी नहीं पा रही थी। पूरे मुंह में ऊपर से नीचे तक , उफ्फ,

पानी ,... ओह पानी ,... पानी ,... मिर्च लग गयी मैं तड़फड़ाती चिल्लाई। 

लेकिन वहां कौन पानी देने वाला था ,ऊपर से जले पर मिर्च छिड़कने वाले और ,

मेरी भाभी और चंपा भाभी मेरी हालत देख के मुस्करा रही थीं। और आज मैंने कहा था न की मेरी भाभी सबके कान काट रही थीं , अपनी हंसी रोकती मुझसे बोलीं ,

" अरे बहुत पियास लगी है , तो तेरे मुंह के पास ही तो झरना है। बस मुंह लगाओ , और मन भर के पीओ ,चुसुर चुसुर। कुल प्यास बुझ जायेगी। अरे पीने का मन है तो पी लो न , काहें पकौड़ी में मिर्चों का बहाना बना रही हो। अब भौजाई लोग पानी नहीं देंगी वही देंगी जो इतनी देर से बिटिया को प्यार दिखा रही हैं। "

" अच्छा चल ये बैगन वाली खा लो , इसमें मिर्च नहीं होगी। " मेरे मना करते करते ,बसंती ने एक बैंगनी मेरे मुंह में ठेल दिया। 
इसमें तो पहले से भी दस गुनी मिर्चे थीं। 


मेरी आँख से नाक से पानी बह रहा था , मुंह से बोल भी मुश्किल से निकल रहे थे। 

चंपा भाभी के मुंह से बोल निकले लेकिन अबकी निशाने पर उनकी सास यानि मेरी भाभी की माँ थी। 

" इतने देर से बोल रही थीं न की बिटिया की प्यास बुझा देंगीं , दुलारी बिटिया ,पियारी बिटिया , और ये भी बोल रही थी की नहीं मानेगी तो जबरदस्ती हाथ पैर बाँध के , ... बिचारी अब खुद इतनी देर से रिरिया रही है , बिनती कर रही है , पानी पानी तो काहे नहीं पिलाती पानी। ये तो खुदे मुंह बाए मांग रही है और आप ,... "

मेरे हाथ तो वैसे ही मेरी भाभी की मां की टांगो के बीच फंसे थे , मिर्चों के चक्कर में मुंह से आह आह के अलावा कुछ आवाज नहीं निकल रही थी। हिलने डुलने की हालत में मैं एकदम नहीं थी और ऊपर दूत की तरह बसंती , उनके साथ ही बैठी थी। उसकी पकड़ तो मैं देख ही चुकी थी। 


पता नहीं सच या मेरी आँखों को धोखा हुआ वो ( मेरी भाभी की माँ , अपनी गोरी गोरी मांसल पिंडलियों से साड़ी ऊपर सरका रही थीं ). 

लेकिन ,... 


मुझे बचाने दूत की तरह वो आई , चन्दा। 
 
चन्दा 












लेकिन ,... 


मुझे बचाने दूत की तरह वो आई , चन्दा। 

उसे क्या मालूम यहां क्या चल रहा है और आते ही आंधी तूफ़ान की तरह चालु हो गयी ,

" इतना बढ़िया मौसम है तुम घर के अंदर छुपी दुबकी बैठी हो। कल भी मैं आई थी तो तुम नहीं मिली थी , अरे अब बस पांच छह दिन बचे हैं , फिर तो वही शहर , वही स्कूल वही किताबें ,... उठो न। " 

और खींच के उसने मुझे उठा दिया गप्प से प्लेट से तीन पकौड़ै गपक लिए। 

उसे ज़रा भी मिर्ची नहीं लगी। 

मेरी भाभी मुझे और अपनी माँ को देख के हलके हलके मुस्करा रही थी। 

चंपा भाभी नहीं दिख रही थीं , लेकिन मेरी भाभी ने चन्दा से बोला ,

" अरे कुछ खा पी लेने दो बिचारी को भूखी है , " 

लेकिन उनकी बात काट के चन्दा बोली ,

" अरे दी , आपकी इस बिचारी को मैं खिला पिला दूंगी न , गाँव के ट्यूबवेल की मोटी धार का पानी , मोटे मोटे रसीले गन्नों का रस , एकदम प्यासी नहीं रहेगी , चलिए ये पकौड़ी मैं ले लेती हूँ जब तक ये तैयार होगी मैं खिला दूंगी। "

लेकिन मेरे मुंह की मिर्चें , अभी भी मेरी हालत खराब थी। 

तबतक चंपा भाभी आई और उन्होंने एक बड़ा सा पानी भरा गिलास मेरे हाथ में पकड़ा दिया , और कान में फुसफुसा के बोलीं ,

" अरे ननद रानी , अभी तो भौजाइयों का ही पानी पी के काम चला लो , जो पिलाने वाली थीं , वो तो ,... "

मैंने जैसे ही मुंह में लगाया , एक अलग ढंग का स्वाद , महक ,... 

लेकिन बसंती थी न और उसका साथ देने के लिए चन्दा , दोनों ने हाथ से ग्लास पकड़ के मेरे मुंह में , और जबतक मैं आखिरी बूँद तक गटक नहीं गयी , वो दोनों ढकेले रही। ऊपर से चन्दा ने मेरी भाभी से शिकायत भी लगा दी ,

" दी ,ये आपकी छुटकी ननदिया न , नम्बरी छिनार है। मन करता है इसका लेकिन जब तक जबरदस्ती न करो न तो , ... "

" अरे तो करों न जबरदस्ती किसने मना किया है , अरे सोलहवां सावन मना रही है अपना तो , ... " मेरी भाभी तो आज मेरे पीछे ही पड़ गयी थीं। 

चन्दा मुझे खींचते हुए मेरे कमरे में ले गयी , और दरवाजा बिना उठगाये उसने अपना गाना शुरू कर दिया , और मैं तो बोल नहीं सकती थी क्योंकि उसने दो दो पकोड़ियाँ एक साथ ठूंस दी थी,

मैंने कुछ ना नुकुर की तो मेरी नानी चन्दा रानी बोलीं ," अरे अब एक साथ दो दो की आदत डाल लो। "
 
मैंने कुछ ना नुकुर की तो मेरी नानी चन्दा रानी बोलीं ," अरे अब एक साथ दो दो की आदत डाल लो। "
……
गाँव में अक्सर मैं साडी ब्लाउज ही पहनती थी , और जब मैंने साडी निकालने के लिए अलमारी खोली तो चन्दा ने हाथ पकड़ लिया ,

" अरे गुड्डी रानी , ऐसे ही चलो , गाँव की गोरी नहीं शहर की छोरी बन के। कपडे बदलने में तुझे टाइम भी लगेगा और वहां सुनील मेरे खून का प्यासा हुआ बैठा है , जल्दी चलो। तेरी कुछ हो न हो मेरी ऐसी की तैसी हो जायेगी। "

अब मैं समझी। 

असली मामला सुनील का है। मेरा भी तो मन कर रहा था उससे मिलने का। कितने दिन हो गए उससे मिले , परसों दोपहर को मिली थी। कल मुझे बहुत बुरा लगा जब मैंने उसे मना किया और अगले दिन के लिए टाल दिया। लेकिन करती भी क्या कामिनी भाभी ने अगवाड़ा पिछवाड़ा सब सील कर दिया था आज सुबह तक के लिए। 

लेकिन चन्दा की खिचाई करने में मुझे भी मजा आता था। 

" अरे क्या करेगा तेरा यार , कहीं दो चार बार एक साथ चढ़ाई कर देगा तेरी गुलाबो पर। " मैंने छेड़ा। 

" अरी यार वही तो नहीं करेगा। अगर तू आधे घंटे में न मिली न तो उस ने धमकी दी है मेरा परमानेंट उपवास। " बुरा सा मुंह बना के वो बोली। और फिर जोड़ा 

, "चल न यार ऐसे ही , कपड़ों का तो वैसे ही वो दुश्मन है। कल उस ने तुझे टॉप में देखा था इसलिए बोला है मुझे की उसे शहर की छोरी बना के ले आना। "


" अरे यार देख न कित्ता क्रश हो गया है , यही पहन के रात में सोई थी मैं। " मैंने उसे अपना टॉप दिखाया और गलती कर दी। 

टॉप के ऊपर से ही मेरे कच्चे टिकोरों को जोर से दबाती बोली ,

" मेरी मुनिया , क्रश तो तुझे वो करेगा , हाँ ये बात जरूर है की ये तेरे लिए भी शरम की बात है और गाँव के लौंडों के लिए भी की तेरी रात कपडे पहने पहने बीती , चल आज से तेरा कुछ इंतजाम करती हूँ हर रात एक नया औजार , रात भर की बुकिंग करवाउंगी तेरी। "


और साथ ही आलमारी की ओर मुड़ के उसने एक टॉप निकाल के मुझे पकड़ा दिया और जब तक मैं कुछ बोलूं , ओ टॉप मैं पहने थीउसे उतार के फेंक दिया। उसने जो टॉप निकाल के पकड़ाया तो मेरी चीख निकल गयी। 

एकदम शियर ,आलमोस्ट ट्रांसपेरेंट। दो साल पुराना और अब इतने दिनों में मेरी चूंचीयो पे जो उभार आया था उसमें उन्हें इस टॉप में घुसेड़ना भी मुश्किल था। अभी तो मैं सिर्फ रात में सोने के लिए इसे इस्तेमाल करती थी.

" चल इसे पहन और जल्दी चल। " 

चन्दा रानी ने हुक्म सूना दिया लेकिन गनीमत थी की बाहर से बसंती ने हंकार लगाई और वो निकल गयी।
मैं मन ही मन मुस्कराई , सुनील के बारे में सोच के , शहर की छोरी,चल आज दिखाती हूँ तुझे शहरी माल का जलवा। 

और सुनील ही क्यों रास्ते में और भी तो गाँव के लौंडे मिलेंगे। फिर कामिनी भाभी ने लड़कों पर बिजली गिराने की इतनी तरकीबें सिखाईं थी , ज़रा उनका भी ट्रायल हो जाएगा। 

मैंने अपना जादू का पिटारा निकाला और फिर दीवाल पर टंगे शीशे की मदद ली ,देखते ही देखते , ... 

होंठ डार्क स्कारलेट रेड , और ऊपर से निचले होंठों को मैंने थोड़ा और भरा भरा कर दिया ,ऊपर से लिप ग्लास , कित्ते भी वो चूमे चाटें चूसें ,उसका रंग न कम हो। 

गोरे गुलाबी गालों पर पहले हल्का सा फाउंडेशन , फिर भरे भरे गालों पे गुलाबी रूज , चीकबोन्स को भी हाईलाइट किया और उसके बाद बड़ी बड़ी आँखे ,

( झूठे ही मेरे स्कूल के लड़के सारंग नयनी नहीं कहते थे )

हल्का सा मस्कारा और फिर काजल की धार , एकदम कटार। 

बालों को भी बस स्ट्रिप सा कर के , सीधे मेरे नितम्बों तक काले बादलों की तरह लहरा रहे थे। 


मैं चन्दा का सेलेक्ट किया टॉप पहनने जा रही थी की तभी याद आया , जो जादू की शीशियां कामिनी भाभी ने दी थी , गारंटी मीलों दूर का शिकार खुद अपने आप खुद पैरों के बीच आ गिरेगा। 

उरोज कल्प जो तेल दिया था उन्होंने हल्का सा दो बून्द हथेली पर लेकर रगड़ कर दोनों उभारों पर , और फिर एक एक बूँद सीधे निपल पर। 

असली जगह तो अभी बाकी थी , उनकी दी हुयी क्रीम अगवाड़े पिछवाड़े थोड़ी सी लगा लिया , एक उंगली से एकदम अंदर तक। 

कामिनी भाभी की बात याद करके मैं मुस्करा दी , इत्ता टाइट हो जाएगा तेरा की बड़े से बड़े चुदक्कडों का पसीना छूट जाएगा ,अंदर घुसेड़ने में। 

आ जाओ सुनील राजा देखतीं हूँ तेरे खूंटे को , मेरी सबसे प्यारी सहेली को हड़का रहे थे न। 

तब तक वो मेरी प्यारी सहेली मुझे गरियाती हुयी अंदर घुसी और मेरा हाथ पकड़ के बाहर खींच के ले आई , मुश्किल से निकलते निकलते मैंने टॉप पहना।
और आंगन में मेरे इस नए रूप को देखकर सबकी हालत खराब थी , चंपा भाभी ,मेरी भाभी ,बसंती।

लेकिन सबसे ज्यादा असर पड़ा था भाभी की माँ के ऊपर , चन्दा को हड़काते वो बोलीं ,
 
लेकिन सबसे ज्यादा असर पड़ा था भाभी की माँ के ऊपर , चन्दा को हड़काते वो बोलीं ,

" अरे भूखी पियासी मेरी चिरैया को ले जा रही हो , जल्दी ले आना , दोपहर के पहले। "

चन्दा ने बड़ी जोर से आँख मारी और बोली ," चिंता मत करिये आपकी सोन चिरैया को दाना चुगा दूंगी , भर जाएगा पेट। "


और उसका साथ बसंती ने दिया , हँसते हुए भाभी की माँ से बोली , " अरे सही तो कह रही है , चन्दा। जब गांड मारी जायेगी आपकी इस बिटिया की न तो जाएगा तो पेट में ही , अरे ऊपर वाले मुंह से न सही , नीचे वाले मुंह से। "

मेरी भाभी और चंपा भाभी खिलखिला के हंसीं। 

लेकिन चन्दा ने बोला , " बस दोपहर के पहले , दो ढाई घंटे में ,... "

और बसंती फिर बोली अबकी चन्दा के पीछे पड़के ( आखिर गाँव के रिश्ते से वो भी उसकी ननद थी न ) , " सुन , लौटा के लाओगी न तो मैं खुद चेक करुँगी तेरी सहेली को , आगे पीछे दोनों ओर से टपटप सड़का टपकना चाहिये नहीं तो इसी आँगन में निहुरा के तेरी गांड मार लूंगी। "


लेकिन चन्दा हँसते खिलखिलाते मेरा हाथ पकड़ के बाहर। 

पीछे से भाभी की मां की आवाज सुनाई पड़ी ," दोपहर के पहले आ जाना। आज इसी आँगन में तुझे अपने हाथ से खिलाऊंगी , पिलाऊँगी। "


" एकदम माँ। " बाहर से ही मैंने जवाब दिया और चन्दा के पीछे पीछे निकल पड़ी तेजी से। 

आखिर सुनील से मिलने की जल्दी मुझे भी तो थी।
 
सावन के नजारे हैं 


अब तक 





मैं चन्दा का सेलेक्ट किया टॉप पहनने जा रही थी की तभी याद आया , जो जादू की शीशियां कामिनी भाभी ने दी थी , गारंटी मीलों दूर का शिकार खुद अपने आप खुद पैरों के बीच आ गिरेगा। 

उरोज कल्प जो तेल दिया था उन्होंने हल्का सा दो बून्द हथेली पर लेकर रगड़ कर दोनों उभारों पर , और फिर एक एक बूँद सीधे निपल पर। 

असली जगह तो अभी बाकी थी , उनकी दी हुयी क्रीम अगवाड़े पिछवाड़े थोड़ी सी लगा लिया , एक उंगली से एकदम अंदर तक। 

कामिनी भाभी की बात याद करके मैं मुस्करा दी , इत्ता टाइट हो जाएगा तेरा की बड़े से बड़े चुदक्कडों का पसीना छूट जाएगा ,अंदर घुसेड़ने में। 

आ जाओ सुनील राजा देखतीं हूँ तेरे खूंटे को , मेरी सबसे प्यारी सहेली को हड़का रहे थे न। 

तब तक वो मेरी प्यारी सहेली मुझे गरियाती हुयी अंदर घुसी और मेरा हाथ पकड़ के बाहर खींच के ले आई , मुश्किल से निकलते निकलते मैंने टॉप पहना।


और आंगन में मेरे इस नए रूप को देखकर सबकी हालत खराब थी , चंपा भाभी ,मेरी भाभी ,बसंती।

लेकिन सबसे ज्यादा असर पड़ा था भाभी की माँ के ऊपर , चन्दा को हड़काते वो बोलीं ,

" अरे भूखी पियासी मेरी चिरैया को ले जा रही हो , जल्दी ले आना , दोपहर के पहले। "

चन्दा ने बड़ी जोर से आँख मारी और बोली ," चिंता मत करिये आपकी सोन चिरैया को दाना चुगा दूंगी , भर जाएगा पेट। "


और उसका साथ बसंती ने दिया , हँसते हुए भाभी की माँ से बोली , " अरे सही तो कह रही है , चन्दा। जब गांड मारी जायेगी आपकी इस बिटिया की न तो जाएगा तो पेट में ही , अरे ऊपर वाले मुंह से न सही , नीचे वाले मुंह से। "

मेरी भाभी और चंपा भाभी खिलखिला के हंसीं। 

लेकिन चन्दा ने बोला , " बस दोपहर के पहले , दो ढाई घंटे में ,... "

और बसंती फिर बोली अबकी चन्दा के पीछे पड़के ( आखिर गाँव के रिश्ते से वो भी उसकी ननद थी न ) , 


" सुन , लौटा के लाओगी न तो मैं खुद चेक करुँगी तेरी सहेली को , आगे पीछे दोनों ओर से टपटप सड़का टपकना चाहिये नहीं तो इसी आँगन में निहुरा के तेरी गांड मार लूंगी। "


लेकिन चन्दा हँसते खिलखिलाते मेरा हाथ पकड़ के बाहर। 

पीछे से भाभी की मां की आवाज सुनाई पड़ी ,


" दोपहर के पहले आ जाना। आज इसी आँगन में तुझे अपने हाथ से खिलाऊंगी , पिलाऊँगी। "


" एकदम माँ। " बाहर से ही मैंने जवाब दिया और चन्दा के पीछे पीछे निकल पड़ी तेजी से। 

आखिर सुनील से मिलने की जल्दी मुझे भी तो थी।




आगे 




क्या मौसम था , आसमान में सफ़ेद खरगोशों ऐसे बादल जो किरनो से लुका छिपी खेल रहे थे उसकी परछाईं धरती पर पड़ रही थी।

पास के गाँव में हलकी हलकी बरसात लगता है अभी हुयी थी , हवा में नमी के साथ मिटटी पर बारिश की बूंदे पड़ने से जो एक खास महक निकलती है वो मिली हुयी थी।



पास ही किसी अमराई में झूला पड़ा था और नयी उम्र की किशोरियों की कजरी गाने की आवाज सुनाई दे रही थी



View attachment 1rain G N 3.gif[/attachment]दूर दूर तक हरी चूनर की तरह धान के खेत फैले थे। और पास ही में मेड पर एक मोर नाच नाच के किसी मोरनी को रिझाने की कोशिश कर रहा था। 



कभी कच्चे रास्ते से तो कभी पगडण्डी तो कभी खेतों के बीच से धंस के चन्द मुझे खींचे ले जा रही थी ,

मेरे कानो में कभी रेडियो पर सुने एक पुराने गाने की आवाज गूँज रही थी,



सावन के नज़ारे हैं , सावन के नजारे हैं 

कलियों की आँखों में मस्ताने इशारे हैं 

जोबन है फ़िज़ाओं पर , जोबन है फिजाओं पर 

उस देश चलो सजनी , उस देश चलो सजनी ,

फूलों के यौवन पर भँवरे आ मरें , फूलों के यौवन पर भँवरे आ मरे 


अब गाँव के रास्तों पगडंडियों ,अमराइयों और गन्नों के खेतों का मुझे अंदाजा हो गया था। 

पास में ही गन्ने का एक खेत दिखा जहां पहली बार सुनील ने मुझे , ...मैंने चन्दा से इशारा किया की क्या यहीं पर , पर उसने आँखों से मना कर दिया और एक बगल की बँसवाड़ी से दूसरी ओर खींच ले गयी।
और क्या मस्ती की हम दोनों ने ,

हवाओं में मस्ती ,

फिजाओं में मस्ती ,

नयी नयी आई जवानी की मस्ती 

और ऊपर से नए नए आये जोबन का जोश , हम दोनों दोनों होश खो बैठे थे। 

ऊपर से गाँव का खुलापन , न कोई डर न कोई भय ,.... फिर कामिनी भाभी की ट्रेनिंग , लौंडे फंसाने की ,जवानी के जलवे दिखाने की। 

न जाने कितनों के दिल में आग लगाई , कितनों के मन में आस जगाई। था तो सावन लेकिन मुझे स्कूल में पढ़ी एक कविता याद आ रही थी 'बसंती हवा ' बस बिलकुल उसी शैतान हवा की तरह 


चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,

चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,

हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।

सुनो बात मेरी -
अनोखी हवा हूँ।
बड़ी बावली हूँ,

बड़ी मस्तमौला।
नहीं कुछ फिकर है,
बड़ी ही निडर हूँ। 

जिधर चाहती हूँ,
उधर घूमती हूँ,

बस एक दम उसी तरह। 



एक लड़के की तो बस , कच्ची उमर का था , मुझसे भी एक दो महीने छोटा , लेकिन खूंटा खड़ा था। मुझे देख के कुछ बोला अपने तने औजार पे हाथ रख के इशारा किया , बस मैं रुक गयी ,और उलटे जबरदस्त आँख मार के बोली ,


" हे नयी उमर की नयी फसल , ज़रा जाके अपनी छुटकी बहन से मुट्ठ मरवा के देखो , कुछ निकलता विकलता भी है की नहीं। अगर कुछ सफ़ेद सफ़ेद निकले न आ जाना तुझे हफ रेट पे चाइल्ड कनसेसन दे दूंगी।"



चन्दा हंस के बोली यार तूने बिचारे को मना कर दिया तो मैंने बताया, 

" देख मैंने मना नहीं किया सिर्फ उसको बोला है टेस्ट कर ले मशीन चलती वलती है की नहीं , ,... "

" एकदम वर्ना नया चुदवैया ,चूत की बरबादी। " हँसते हुए बसंती ने मेरी बात की हामी भरी। 

रास्ते में कितने गाँव के लौंडे मिले मैंने गिने नहीं। 

पता ठिकाना नोट करने का काम मेरी सहेली चन्दा रानी का था।




हाँ मैंने मना किसी को नहीं किया लेकिन हाँ भी नहीं, किसीको झुक के कसे लो कट टॉप से जोबन की गहराई दिखाई तो किसी को हलके से निहूर के गोलकुंडा की गोरी गोरी गोलाइयों के दर्शन कराये। 


और मेरे सोलहवें सावन के जुबना के उभार , कटाव तो उस झलकउवा टॉप से वैसे भी साफ़ साफ दिख रहे थे। कमेंट एक से एक खुले , लेकिन अब मैं न सिर्फ उसकी आदी हो गयी थी बल्कि जवाब भी देना सीख गयी थी ,कुछ बोल के ,कुछ जोबन उभार के तो कुछ नैनों के बाण चला के ,


कामिनी भाभी की एक बात मैंने गाँठ बाँध ली थी ,इग्नोर किसी लड़के को मत करना। 

और डार्क स्कारलेट रेड लिपस्टिक वाले रसीले होंठों से फ़्लाइंग किस तो मैंने सबको दी। 

चन्दा बोली भी , आज तो तूने गाँव के लौंडो की बुरी हालत कर दी ,लेकिन ये सब छोड़ेंगे नहीं तुझे बिना तेरे ऊपर चढ़े। 

" तो चढ़ जाए न , मैंने इनकी बुरी हालत को तो बहुत हुआ तो ये मेरी बुर की बुरी हालत कर देंगे , तो कर दें। पांच छ दिन बाद तो मुझे चले ही जाना है। " ठसके से मैं बोली 

तबतक वो जगह आ गयी थी जहां हम दोनों को पहुंचना था।
 
गांव के मजे


तबतक वो जगह आ गयी थी जहां हम दोनों को पहुंचना था।
……….

बँसवाड़ी , घनी अमराई ,जिसमें गाँव के लौंडे दिन दहाड़े कच्चे टिकोरों से ले कर नयी आई अमिया का रस लूटें तो भी पता न चले ,के आगे , इस रास्ते पर मैं पहले कभी आई नहीं थीं। 


पगडण्डी अब बहुत संकरी हो चली थी , बस एक के पीछे एक पैर रखकर अपने को सम्भालते मैं चन्दा के पीछे पीछे ,

और एक मोड़ पर मुड़ते ही ,एक ओर धान के खेत हरी चुनरी की तरह फैले और दूसरी ओर गन्ने के खूब ऊँचे घने खेत जिसमें आदमी को कौन कहे हाथी भी खो जाए , और धान के खेत में रोपनी करती ,आपस में चुहल करती ,गाने गाती ,छेड़ती काम करने वाली लड़कियां औरतें। 


कई को तो मैंने पहचान लिया , वही जो कामिनी भाभी के खेत में काम कर रही थीं और जब मैं गुलबिया के साथ निकली तो उन्होंने जम के मेरी ऐसी की तैसी की थी , ख़ास तौर से एक लड़की ने जो मेरी उमर की हो रही होगी , अभी कुँवारी थी और गाँव के रिश्ते से गुलबिया की ननद लगती थी , 

उसे मैंने पहचान लिया और उसने मुझे , जम के मुस्कराई , और साथ की औरतों को भी मुझे दिखा के मुझसे बोली ,

" अरी ,इतना चूतड़ मटका मटका के मत चलो , गाँव क कउनो लौंडा पटक के गांड मार देयी। "

जवाब उसी की एक सहेली ने दिया ,

" अरे मार देगा तो मरवा लेंगी ये , और क्या। भूल गयी क्या कल कामिनी भाभी के घर सबेरे सबेरे, ... "

और सब खिलखिला के हंसने लगी। 

कुछ शरम से कुछ झिझक से मेरी चाल धीमी हो गयी थी लेकिन चन्दा तेजी से चलते , उनसे कुछ ही दूर गन्ने के खेत के बगल में खड़ी हो गयी थी और मैं जब उसके पास पहुंची तो बस वो मेरी कोमल कलाई पकड़ के झट से गन्ने के खेत में धंस गयी। 



उन लड़कियों की हंसी , खिलखिलाहट अभी भी हमारे साथ थी। 

इस गन्ने के खेत में मैं कभी नहीं आई थी। बस ये सोच रही थी की चन्दा कम से कम कुछ अंदर तक चले , जिससे वहां से आवाजें धान के खेत तक तो न पहुंचे लेकिन हम लोग पंद्रह बीस कदम भी नहीं चले होंगे की वो मुझे आलमोस्ट खींचते हुए गन्ने के खेत के अंदर , हम पतली सी मेंड़ से उतर कर अब सीधे खेत में ,


बहुत ही घना खेत था। 


देह छिलती थी , मुश्किल से धूप छन छन कर अंदर पहुंचती थी।


लेकिन हम लोग बस थोड़ा ही चले होंगे की एक थोड़ी सी खुली जगह , जैसे अभी कुछ देर पहले ही किसी ने पांच दस गन्ने उखाड़ के कुछ जगह बनाई हो। 

सुनील कहीं दिख नहीं रहा था।



मैं इधर उधर देख रही थी , तभी किसी ने पीछे से मुझे दबोच लिया। 

मैं कुछ बोल पाती उसके पहले , उसके होंठों ने मेरे होंठ सील कर दिए और दोनों हाथों ने सीधे कबूतरों को कैच कर लिया। 

इस पकड़ को तो मैं सपने में भी पहचान लेती। 

चन्दा खिलखिला रही थी फिर उसने और आग लगाई , सुनील को बोला ,

" अरे ऊपर से क्या मजा आयेगा , उतारो टॉप इसका न ,.. " 

पलक झपकते कब सुनील ने टॉप उतारा , कब फेंका और कब मेरी सहेली चंदा रानी ने उसे कैच किया पता नहीं चला।



सुनील जितना मेरे जुबना का दीवाना था उतना ही उसका दुश्मन ,हाँ मेरे होंठ जरूर आजाद हो गए। 

सुनील के होंठों ने मेरे उभार को चूसना चाटना शुरू किया तो दूसरा उसके तगड़े हाथों के कब्जे में। मसली चूंचीयंजा रही असर मेरे गुलाबो पे हुआ वो पनियाने लगी। 



गाँव में एक आदत मैंने सीख ली थी , लड़कों की निगाह तो सीधे उभारों पर पड़ती ही थी उसमें मैं कभी बुरा नहीं मानती थी ,लेकिन अब जैसे वो मेरे कबूतरों ललचाते थे , मेरी निगाह बिना झिझक के सीधे उनके खूंटे पे पहुँच जाती थी , कितना मोटा ,कितना कड़ा ,कितना तन्नाया बौराया ,...
 
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