hotaks444
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सुबह सबेरे :बसंती
अब तक
आज वो मौक़ा था और टाइम भी थी। फिर मेरी भाभी को गारी देने का रिश्ता उनका भी था और मेरा भी। मेरी भाभी थीं तो उनकी छोटी ननद।
अरिया अरिया रइया बोवायो ,बिचवा बोवायो चउरिया ,
अरे बिचवा बोवायो चउरिया , की वाह वाह ,
अरे अरिया अरिया रइया बोवायो ,बिचवा बोवायो चउरिया ,
अरे बिचवा बोवायो चउरिया , की वाह वाह ,
सगवा खोटन गईं गुड्डी क भौजी अरे गुड्डी क भौजी
सगवा खोटन गईं चम्पा भौजी क ननदो अरे चंपा भौजी क ननदो ( मैंने जोड़ा )
अरे भोंसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह , अरे भोंसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह वाह
दौड़ा दौड़ा हे उनकर भैया ,हे बीरेंद्र भैया ( चंपा भाभी के पति , ये लाइन भी मैंने जोड़ी , अब चंपा भाभी अपने पति का नाम तो ले नहीं सकती थीं )
अरे भोंसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह , अरे भोंसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह
अरे दौड़ा दौड़ा बीरेंद्र भइया, दंतवा से खींचा लकड़िया की वाह वाह , अरे मुहवा से खींचा लकड़िया की वाह
सगवा खोटन गयी गुड्डी क भौजी , चंपा भाभी क ननदी
अरे गंडियों में घुस गयी लकड़िया की वाह वाह ,
फिर एक से एक , गदहा घोड़ा कुत्ता कुछ नहीं बचा।
खाना बनाते बनाते दर्जन भर से ज्यादा ही गारी उन्होंने मेरी भाभी को सुनाईं , मैंने भी साथ साथ में गाया और फिर अलग से अकेले गा के सुनाया।
और इसी बीच घण्टे डेढ़ घंटे में खाना भी बन गया।
हाँ , बसंती आई थी , बस थोड़ी देर के लिए। एक दो गारी उसने भी सिखाई , लेकिन बोला की उसे जल्दी है। बछिया हुयी है और रात में शायद वहीँ रुकना पड़े।
चम्पा भाभी थोड़ी देर के लिए आंगन में गयी तो बसंती ने झुक के झट से मेरी एक चुम्मी ली , खूब मीठी वाली और कचकचा के मेरे उभारों पे चिकोटी काटते बोली ,
" घबड़ा जिन , एकदम मुंह अँधेरे सबेरे , आउंगी और भिनसारे भिनसारे , ... जबरदस्त सुनहला शरबत ,नमकीन ,... घट घट का कहते हैं उसको सहर में, हाँ , ... बेड टी ,... "
और जबतक मैं कुछ बोलूं , बाहर निकल गयी।
चंपा भाभी मेरे पीछे पड़ गईं की मैं खाना खा लूँ , मैं लाख जिद करती रही की सबके साथ खाऊंगी , लेकिन ,
और मुझे थकान और नींद दोनों लग रही थी। कल रात भर जिस तरह मेरी कुटाई हुयी थी , फिर सुबह भी , जाँघे फटी पड़ रही थीं।
खाने के बाद जैसे मैं अपने कमरे में गयी तुरंत नीद आ गयी।
हाँ लेकिन सोने के पहले , जो कामिनी भाभी ने गोली खाने को बोला था , और उभारों पर और नीचे ख़ास तेल लगाने को बोला था , वो मैं नहीं भूली।
रात भर न एक सपना आया , न नींद टूटी। खूब गाढ़ी , बिना ब्रेक के घोड़े बेच के सोई मैं।
आगे
View attachment 1morning.jpg[/attachment]
गाँव में रात जितनी जल्दी होती है ,उससे जल्दी सुबह हो जाती है।
मैं सो भी जल्दी गयी थी और न जाने कितने दिनों की उधार नींद ने मुझे धर दबोचा था। एकदम गाढ़ी नींद , शायद करवट भी न बदली हो ,
( वो तो बाद में मेरी समझ में आया की मेरी इस लम्बी नींद में , मेरी थकान, रात भर जो कामिनी भाभी के यहां रगड़ाई हुयी थी , उससे बढ़कर , जो गोली कामिनी भाभी की दी मैंने कल सोने के पहले खायी थी उसका असर था। और गोली का असर ये भी था की जो स्पेशल क्रीम मेरी जाँघों के बीच आगे पीछे , कामिनी भाभी ने चलने के पहले लगायी थी न और ये सख्त ताकीद दी थी की सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर मैं उपवास रखूं , उस क्रीम का पूरा असर मेरी सोनचिरैया और गोलकुंडा दोनों में हो जाए।
दो असर तो उन्होंने खुद बताए थे , कितना मूसल चलेगा , मोटा से मोटा भी लेकिन , मैं जब शहर अपने घर लौटूंगी तो मेरी गुलाबो उतनी ही कसी छुई मुई रहेगी , जैसी जब मैं आई थी , तब थी ,बिना चुदी।
और दूसरा असर ये था की न मुझे कोई गोली खानी पड़ेगी और न लड़कों को कुछ कंडोम वंडोम , लेकिन न तो मेरा पेट फूलेगा ,और न कोई रोग दोष। रात भर सोने से वो क्रीम अच्छी तरह रच बस गयी थी अंदर।
हाँ , एक असर जो उन्होंने नहीं बताया था लकेँ मुझे खुद अंदाजा लग गया , वो सबसे खतरनाक था।
मेरी चूत दिन रात चुलबुलाती रहेगी , मोटे मोटे चींटे काटेंगे उसमें , और लण्ड को मना करने को कौन कहे , मेरा मन खुद ही आगे बढ़ के घोंटने को , ... )
और मेरी नींद जब खुली तो शायद एक पहर रात बाकी थी , कुछ खटपट हो रही थी।
मेरी खुली खिड़की के पीछे ही गाय भैंसे बंधती थी। और आज श्यामू ( वो जो गाय भैंसों की देख भाल करता था और जिसका नाम ले ले के चंपा भाभी और बसंती मेरी भाभी को खूब छेड़ती थीं ) भी नहीं था , दो दिन की छुट्टी गया था। इसलिए बसंती ही आज , कल चंपा भाभी ने उसे बोला भी था।
मैं अधखुली आँखों से कुछ देख रही थी कुछ सुन रही थी , गाय भैंसों का सारा काम और फिर दूध दूहने का ,...
चाँद मेरी खिड़की से थोड़ी दूर घनी बँसवाड़ी के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा था , जैसे रात भर साजन से खुल के मजे लूटने के बाद कोई नयी नयी दुल्हन अपनी सास ननदों से घूंघट के पीछे छिपती शरमाती हो।
उसी बँसवाड़ी के पास ही तो दो दिन पहल अजय ने कुतिया बना के कितना एकदम खुले आसमान के नीचे कितना हचक हचक के , और कैसी गन्दी गन्दी गालियां दी थीं उसने न सिर्फ मुझे और बल्कि मेरी सारे मायके वालियों को,
शरमा के मैंने आँखे बंद कर लीं और बची खुची नींद ने एक बार फिर ,...
और जब थोड़ी देर बाद फिर आँख खुली तो चाँद नयी दुल्हन की जैसे टिकुली साजन के साथ रात के बाद सरक कर कहीं और पहुँच चुकी होती है , उसी तरह आसमान के कोने में टिकुली की तरह ,
लेकिन साथ साथ हलकी हलकी लाली भी , जो थोड़ी देर पहले काला स्याह अँधेरा था अब धुंधला हल्का भूरा सा लग रहा था। चिड़ियों की आवाजों के साथ लोगों की आवाजें भी ,
बसंती की आवाज भी आ रही थी , किसी से चुहुल कर रही थी। उस का बाहर का काम ख़तम हो गया लगता था।
और बसंती की कल शाम की बात याद आगयी मुझे यहीं आँगन में तो , और चंपा भाभी के सामने खुले आम आँगन में , मेरे ऊपर किस तरह चढ़ के जबरदस्ती उसने , मैं लाख कसर मसर करती रही ,
लेकिन बसंती के आगे किसी की चलती है क्या जो मेरी चलती। जो किया सो किया ऊपर से बोल गयी , कल सुबह से रोज भोर भिनसारे ,मुंह अंधियारे , ,... ऐसी नमकीन हो जाओगी न की ,..
गौने की दुल्हन जैसे , जब उसकी खिलखिलाती छेड़ती ननदें ले जाके उसे कमरे में बैठा देती हैं , फिर बेचारी घूंघट में मुंह छिपाती है ,आँखे बंद कर लेती है ,लेकिन बचती है क्या ,
बस वही मेरी हालत थी।
मेरी कुठरिया में एक छोटा सा खिड़कीनुमा दरवाजा था। उसकी सिटकिनी ठीक से नहीं बंद होती थी , और ऊपर से कल मैं इतनी नींद में माती थी ,... उसे खींच के आगे करो और फिर हलके से धक्का दो तो बस , खुल जाती थी। अजय भी तो उसी रास्ते से आया था।
उस दरवाजे के चरमर करने की आवाज हुयी और मैंने आँखे बंद कर ली।
लेकिन आँखे बंद करने से क्या होता है , कान तो खुले थे , बसंती के चौड़े घुंघरू वाले पायल की छम छम,...
आराम से उसने मेरा टॉप उठाया और प्यार से मेरे उभार सहलाए।
मैं कस के आँखे मींचे थी।
और अब वो सीधे मेरे उभारों के आलमोस्ट ऊपर ,उसके हाथ मेरे गोरे गुलाबी गाल सहला रहे थे थे , और दूसरे हाथ ने बिना जोर जबरदस्ती के तेजी से गुदगुदी लगायी ,
और मैं खिलखिला पड़ी।
" मुझे मालुम है , बबुनी जग रही हो , मन मन भावे ,मूड़ हिलावे , आँखे खोलो। "
मुंह तो मेरा खुद ही खुल गया था लेकिन आँखे जोर से मैं भींचे रही , बस एक आँख ज़रा सा खोल के ,
दिन बस निकला था , सुनहली धूप आम के पेड़ की फुनगी पर खिलवाड़ कर रही थी , वहां पर बैठी चुहचुहिया को छेड़ रही थी।
और खुली खिड़की से एक सुनहली किरन , मेरे होंठों पे ,
झप्प से मैंने आँखे आधी खोल दी।
सुनहली धूप के साथ , एक सुनहली बूँद , बसंती के , ...
मेरे लरजते होंठ अपने आप खुल गए जैसे कोई सीप खुल जाए बूँद को मोती बनाने के लिए ,
एक , दो ,.... तीन ,... चार ,... एक के बाद एक सुनहरी बूँदें ,कुछ रुक रुक कर ,
आज न मैे मना कर रही थी न नखडा ,
थोड़ी देर में ही छररर , छरर ,...
और फिर मेरे खुले होंठों के बीच बसंती ने अपने निचले होंठ सटा दिए।
मेरे होंठों के बीच उसके रसीले मांसल होंठ घुसे धंसे फंसे थे।
सुनहली शराब बरस रही थी।
सुनहली धुप की किरणे चेहरे को नहला रही थी।
पांच मिनट , दस मिनट ,...टाईम का किसे अंदाज था ,
और जब वो उठी तो मेरे गाल अभी भी थोड़े फूले थे , कुछ उसका ,...
बनावटी गुस्से से उसने मेरे खुले निपल मरोड़ दिए पूरी ताकत से और बोली ,
"भाई चोद ,छिनार ,रंडी की जनी ,तेरे सारे मायकेवालियों की गांड मारुं , घोंट जल्दी। "
और मैं सब गटक गयी।
बसंती दरवाजा खोल के आंगन में चली गयी और मैं पांच दस मिनट और बिस्तर पर अलसाती रही।
बाहर आंगन में हलचल बढ़ गयी थी। दिन चढ़ना शुरू हो गया था।
अब तक
आज वो मौक़ा था और टाइम भी थी। फिर मेरी भाभी को गारी देने का रिश्ता उनका भी था और मेरा भी। मेरी भाभी थीं तो उनकी छोटी ननद।
अरिया अरिया रइया बोवायो ,बिचवा बोवायो चउरिया ,
अरे बिचवा बोवायो चउरिया , की वाह वाह ,
अरे अरिया अरिया रइया बोवायो ,बिचवा बोवायो चउरिया ,
अरे बिचवा बोवायो चउरिया , की वाह वाह ,
सगवा खोटन गईं गुड्डी क भौजी अरे गुड्डी क भौजी
सगवा खोटन गईं चम्पा भौजी क ननदो अरे चंपा भौजी क ननदो ( मैंने जोड़ा )
अरे भोंसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह , अरे भोंसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह वाह
दौड़ा दौड़ा हे उनकर भैया ,हे बीरेंद्र भैया ( चंपा भाभी के पति , ये लाइन भी मैंने जोड़ी , अब चंपा भाभी अपने पति का नाम तो ले नहीं सकती थीं )
अरे भोंसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह , अरे भोंसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह
अरे दौड़ा दौड़ा बीरेंद्र भइया, दंतवा से खींचा लकड़िया की वाह वाह , अरे मुहवा से खींचा लकड़िया की वाह
सगवा खोटन गयी गुड्डी क भौजी , चंपा भाभी क ननदी
अरे गंडियों में घुस गयी लकड़िया की वाह वाह ,
फिर एक से एक , गदहा घोड़ा कुत्ता कुछ नहीं बचा।
खाना बनाते बनाते दर्जन भर से ज्यादा ही गारी उन्होंने मेरी भाभी को सुनाईं , मैंने भी साथ साथ में गाया और फिर अलग से अकेले गा के सुनाया।
और इसी बीच घण्टे डेढ़ घंटे में खाना भी बन गया।
हाँ , बसंती आई थी , बस थोड़ी देर के लिए। एक दो गारी उसने भी सिखाई , लेकिन बोला की उसे जल्दी है। बछिया हुयी है और रात में शायद वहीँ रुकना पड़े।
चम्पा भाभी थोड़ी देर के लिए आंगन में गयी तो बसंती ने झुक के झट से मेरी एक चुम्मी ली , खूब मीठी वाली और कचकचा के मेरे उभारों पे चिकोटी काटते बोली ,
" घबड़ा जिन , एकदम मुंह अँधेरे सबेरे , आउंगी और भिनसारे भिनसारे , ... जबरदस्त सुनहला शरबत ,नमकीन ,... घट घट का कहते हैं उसको सहर में, हाँ , ... बेड टी ,... "
और जबतक मैं कुछ बोलूं , बाहर निकल गयी।
चंपा भाभी मेरे पीछे पड़ गईं की मैं खाना खा लूँ , मैं लाख जिद करती रही की सबके साथ खाऊंगी , लेकिन ,
और मुझे थकान और नींद दोनों लग रही थी। कल रात भर जिस तरह मेरी कुटाई हुयी थी , फिर सुबह भी , जाँघे फटी पड़ रही थीं।
खाने के बाद जैसे मैं अपने कमरे में गयी तुरंत नीद आ गयी।
हाँ लेकिन सोने के पहले , जो कामिनी भाभी ने गोली खाने को बोला था , और उभारों पर और नीचे ख़ास तेल लगाने को बोला था , वो मैं नहीं भूली।
रात भर न एक सपना आया , न नींद टूटी। खूब गाढ़ी , बिना ब्रेक के घोड़े बेच के सोई मैं।
आगे
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गाँव में रात जितनी जल्दी होती है ,उससे जल्दी सुबह हो जाती है।
मैं सो भी जल्दी गयी थी और न जाने कितने दिनों की उधार नींद ने मुझे धर दबोचा था। एकदम गाढ़ी नींद , शायद करवट भी न बदली हो ,
( वो तो बाद में मेरी समझ में आया की मेरी इस लम्बी नींद में , मेरी थकान, रात भर जो कामिनी भाभी के यहां रगड़ाई हुयी थी , उससे बढ़कर , जो गोली कामिनी भाभी की दी मैंने कल सोने के पहले खायी थी उसका असर था। और गोली का असर ये भी था की जो स्पेशल क्रीम मेरी जाँघों के बीच आगे पीछे , कामिनी भाभी ने चलने के पहले लगायी थी न और ये सख्त ताकीद दी थी की सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर मैं उपवास रखूं , उस क्रीम का पूरा असर मेरी सोनचिरैया और गोलकुंडा दोनों में हो जाए।
दो असर तो उन्होंने खुद बताए थे , कितना मूसल चलेगा , मोटा से मोटा भी लेकिन , मैं जब शहर अपने घर लौटूंगी तो मेरी गुलाबो उतनी ही कसी छुई मुई रहेगी , जैसी जब मैं आई थी , तब थी ,बिना चुदी।
और दूसरा असर ये था की न मुझे कोई गोली खानी पड़ेगी और न लड़कों को कुछ कंडोम वंडोम , लेकिन न तो मेरा पेट फूलेगा ,और न कोई रोग दोष। रात भर सोने से वो क्रीम अच्छी तरह रच बस गयी थी अंदर।
हाँ , एक असर जो उन्होंने नहीं बताया था लकेँ मुझे खुद अंदाजा लग गया , वो सबसे खतरनाक था।
मेरी चूत दिन रात चुलबुलाती रहेगी , मोटे मोटे चींटे काटेंगे उसमें , और लण्ड को मना करने को कौन कहे , मेरा मन खुद ही आगे बढ़ के घोंटने को , ... )
और मेरी नींद जब खुली तो शायद एक पहर रात बाकी थी , कुछ खटपट हो रही थी।
मेरी खुली खिड़की के पीछे ही गाय भैंसे बंधती थी। और आज श्यामू ( वो जो गाय भैंसों की देख भाल करता था और जिसका नाम ले ले के चंपा भाभी और बसंती मेरी भाभी को खूब छेड़ती थीं ) भी नहीं था , दो दिन की छुट्टी गया था। इसलिए बसंती ही आज , कल चंपा भाभी ने उसे बोला भी था।
मैं अधखुली आँखों से कुछ देख रही थी कुछ सुन रही थी , गाय भैंसों का सारा काम और फिर दूध दूहने का ,...
चाँद मेरी खिड़की से थोड़ी दूर घनी बँसवाड़ी के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा था , जैसे रात भर साजन से खुल के मजे लूटने के बाद कोई नयी नयी दुल्हन अपनी सास ननदों से घूंघट के पीछे छिपती शरमाती हो।
उसी बँसवाड़ी के पास ही तो दो दिन पहल अजय ने कुतिया बना के कितना एकदम खुले आसमान के नीचे कितना हचक हचक के , और कैसी गन्दी गन्दी गालियां दी थीं उसने न सिर्फ मुझे और बल्कि मेरी सारे मायके वालियों को,
शरमा के मैंने आँखे बंद कर लीं और बची खुची नींद ने एक बार फिर ,...
और जब थोड़ी देर बाद फिर आँख खुली तो चाँद नयी दुल्हन की जैसे टिकुली साजन के साथ रात के बाद सरक कर कहीं और पहुँच चुकी होती है , उसी तरह आसमान के कोने में टिकुली की तरह ,
लेकिन साथ साथ हलकी हलकी लाली भी , जो थोड़ी देर पहले काला स्याह अँधेरा था अब धुंधला हल्का भूरा सा लग रहा था। चिड़ियों की आवाजों के साथ लोगों की आवाजें भी ,
बसंती की आवाज भी आ रही थी , किसी से चुहुल कर रही थी। उस का बाहर का काम ख़तम हो गया लगता था।
और बसंती की कल शाम की बात याद आगयी मुझे यहीं आँगन में तो , और चंपा भाभी के सामने खुले आम आँगन में , मेरे ऊपर किस तरह चढ़ के जबरदस्ती उसने , मैं लाख कसर मसर करती रही ,
लेकिन बसंती के आगे किसी की चलती है क्या जो मेरी चलती। जो किया सो किया ऊपर से बोल गयी , कल सुबह से रोज भोर भिनसारे ,मुंह अंधियारे , ,... ऐसी नमकीन हो जाओगी न की ,..
गौने की दुल्हन जैसे , जब उसकी खिलखिलाती छेड़ती ननदें ले जाके उसे कमरे में बैठा देती हैं , फिर बेचारी घूंघट में मुंह छिपाती है ,आँखे बंद कर लेती है ,लेकिन बचती है क्या ,
बस वही मेरी हालत थी।
मेरी कुठरिया में एक छोटा सा खिड़कीनुमा दरवाजा था। उसकी सिटकिनी ठीक से नहीं बंद होती थी , और ऊपर से कल मैं इतनी नींद में माती थी ,... उसे खींच के आगे करो और फिर हलके से धक्का दो तो बस , खुल जाती थी। अजय भी तो उसी रास्ते से आया था।
उस दरवाजे के चरमर करने की आवाज हुयी और मैंने आँखे बंद कर ली।
लेकिन आँखे बंद करने से क्या होता है , कान तो खुले थे , बसंती के चौड़े घुंघरू वाले पायल की छम छम,...
आराम से उसने मेरा टॉप उठाया और प्यार से मेरे उभार सहलाए।
मैं कस के आँखे मींचे थी।
और अब वो सीधे मेरे उभारों के आलमोस्ट ऊपर ,उसके हाथ मेरे गोरे गुलाबी गाल सहला रहे थे थे , और दूसरे हाथ ने बिना जोर जबरदस्ती के तेजी से गुदगुदी लगायी ,
और मैं खिलखिला पड़ी।
" मुझे मालुम है , बबुनी जग रही हो , मन मन भावे ,मूड़ हिलावे , आँखे खोलो। "
मुंह तो मेरा खुद ही खुल गया था लेकिन आँखे जोर से मैं भींचे रही , बस एक आँख ज़रा सा खोल के ,
दिन बस निकला था , सुनहली धूप आम के पेड़ की फुनगी पर खिलवाड़ कर रही थी , वहां पर बैठी चुहचुहिया को छेड़ रही थी।
और खुली खिड़की से एक सुनहली किरन , मेरे होंठों पे ,
झप्प से मैंने आँखे आधी खोल दी।
सुनहली धूप के साथ , एक सुनहली बूँद , बसंती के , ...
मेरे लरजते होंठ अपने आप खुल गए जैसे कोई सीप खुल जाए बूँद को मोती बनाने के लिए ,
एक , दो ,.... तीन ,... चार ,... एक के बाद एक सुनहरी बूँदें ,कुछ रुक रुक कर ,
आज न मैे मना कर रही थी न नखडा ,
थोड़ी देर में ही छररर , छरर ,...
और फिर मेरे खुले होंठों के बीच बसंती ने अपने निचले होंठ सटा दिए।
मेरे होंठों के बीच उसके रसीले मांसल होंठ घुसे धंसे फंसे थे।
सुनहली शराब बरस रही थी।
सुनहली धुप की किरणे चेहरे को नहला रही थी।
पांच मिनट , दस मिनट ,...टाईम का किसे अंदाज था ,
और जब वो उठी तो मेरे गाल अभी भी थोड़े फूले थे , कुछ उसका ,...
बनावटी गुस्से से उसने मेरे खुले निपल मरोड़ दिए पूरी ताकत से और बोली ,
"भाई चोद ,छिनार ,रंडी की जनी ,तेरे सारे मायकेवालियों की गांड मारुं , घोंट जल्दी। "
और मैं सब गटक गयी।
बसंती दरवाजा खोल के आंगन में चली गयी और मैं पांच दस मिनट और बिस्तर पर अलसाती रही।
बाहर आंगन में हलचल बढ़ गयी थी। दिन चढ़ना शुरू हो गया था।