Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 8 - SexBaba
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Long Sex Kahani सोलहवां सावन

चंपा भाभी 






अब मेरी देह बुरी तरह टूट रही थी। 


पलंग पर लेटते ही मुझे पता नहीं क्यों रवीन्द्र की याद आ रही थी। 


मुझे अचानक याद आया, चन्दा ने जो कहा था, रवीन्द्र के बारे में, उसका… उसने जितना देखा है उन सबसे ज्यादा… और उसने दिनेश का तो देखा ही है… तो क्या रवीन्द्र का दिनेश से भी ज्यादा… उफ़… आज तो मेरी जान ही निकल गयी थी और रवीन्द्र… यह सोचते सोचते मैं सो गयी। 


सपने में भी, रवीन्द्र मुझे तंग करता रहा। 


जब मैं उठी तो शाम ढलने लगी थी। बाहर निकलकर मैंने देखा तो भाभी लोग अभी भी नहीं आयी थीं। मैंने किचेन में जाकर एक गिलास खूब गरम चाय बनायी और अपने कमरे की चौखट पर बैठकर पीने लगी। बादल लगभग छट गये थे, आसमान धुला-धुला सा लगा रहा था। 



ढलते सूरज की किरणों से आकाश सुरमई सा हो रहा था, बादलों के किनारों से लगाकर इतने रंग बिखर रहे थे कि लगा रहा था कि प्रकृति में कितने रंग हैं। जहां हम झूला झूल रहे थे, उस नीम के पेड़ की ओर मैंने देखा, जैसे किसी बच्चे की पतंग झाड़ पर अटक जाय, उसके ऊपर बादल का एक शोख टुकड़ा अटका हुआ था। 


तभी कहीं से राकी आकर मेरे पास बैठ आया और मेरे पैर चाटने लगा। मेरे मन में वही सब बातें घूमने लगीं जो मुझे चिढ़ाते हुए, चम्पा भाभी कहतीं थीं… उस दिन चन्दा कह रह थी। लगता है, राकी भी वही कुछ सोच रहा था, मेरे पैर चाटते चाटते, अब उसकी जीभ मेरे गोरे-गोरे घुटनों तक पहुँच गयी थी। मैं वही टाप और स्कर्ट पहने हुए थी जो दिनेश के आने पे मैंने पहन रखा था। कुछ सोचकर मैं मुश्कुरायी। 


राकी को प्यार से सहलाते, पुचकारते, मैंने अपनी, जांघें थोड़ी फैलायीं और स्कर्ट थोड़ी ऊपर की, जैसे मैंने दिनेश को सिड्यूस करने के लिये किया था। 
उसका असर भी वैसे ही हुआ, बल्की उससे भी ज्यादा, मेरी निगाहें जब नीचे आयीं तो… मैं विश्वास नहीं कर सकती… उसका लाल उत्तेजित शिश्न काफी बाहर निकल अया था। और अब वह मेरी जांघों को चाट रहा था।


मेरी शरारत बढ़ती ही जा रही थी। 


मैंने हिम्मत करके स्कर्ट काफी ऊपर कर ली और जांघें भी पूरी फैला दीं। अ


ब तो राकी… जैसे मेरी चूत को घूर रहा हो।


मेरे निपल भी कड़े हो रहे थे लेकीन मैं चाय, दोनों जांघें फैला के आराम से पी रही थी। तभी सांकल बजी और झट से घबड़ाकर मैंने अपनी स्कर्ट ठीक की और जाकर दरवाजा खोला। 


चम्पा भाभी थीं अकेले। 

“क्यों भाभी नहीं आयीं कहां रह गयीं। वो…” 


“अपने भैया से चुदवा रही हैं…” अपने अंदाज में हँसकर चम्पा भाभी बोली। 


पता चला की रास्ते में चमेली भाभी और उनके पति मिल गये थे तो भाभी वहीं चली गयीं। चम्पा भाभी भी चौखट पर बैठ गयीं थी और मैं भी। 

चाय के गिलास को अपने होंठों से लगाकर सेक्सी अंदाज में भाभी ने पूछा- “ले लूं…” 

मेरे चेहरे को मुश्कुराहट दौड़ गयी और मैंने कहा- “एकदम…” 

तभी उनकी निगाह, नीचे बैठे राकी पर और उसके खड़े शिश्न पर पड़ गयी- “अच्छा, तो इससे नैन मटक्का हो रहा था…” चम्पा भाभी ने मुझे छेड़ा। 

उनका हाथ मेरी गोरी जांघ पर था। उन्होंने जैसे उसे सहलाना शुरू किया, मुझे लगा मैं पिघल जाऊँगी, मेरी जांघें अपने आप फैल गयीं। 


उन्होंने सहलाते-सहलाते मेरी स्कर्ट को पूरी कमर तक उठा दिया और जैसे, राकी को दिखाकर मेरी रसीली चूत एक झपट्टे में पकड़ लिया। 


पहले तो वह उसे सहलाती रहीं फिर उनकी दो उंगलियां मेरे भगोष्ठों को बाहर से प्यार से रगड़ने लगीं। मेरी चूत अच्छी तरह गीली हो रही थी। भाभी ने एक उंगली धीरे से मेरी चूत में घुसा दी और आगे पीछे करने लगी। 

जैसे वो राकी से बोल रहीं हों, उसे दिखाकर, भाभी कह रह थीं- 


“क्यों, देख ले ठीक से, पसंद आया माल, मुझे मालूम है… जैसे तू जीभ निकाल रहा है, ठीक है… दिलवाऊँगीं तुझे अबकी कातिक में। हां एक बार ये लेगा न… तो बाकी सब कुतिया भूल जायेगा, देशी, बिलायती सभी… हां हां सिर्फ एक बार नहीं रोज, चाहे जितनी बार… अपना माल है…” भाभी की उंगली अब खूब तेजी से मेरी बुर में जा रही थी।


और राकी भी… वह इतना नजदीक आ गया था कि उसकी सांस मुझे अपनी बुर पे महसूस हो रही थी और इससे मैं और उत्तेजित हो रही थी। 


मेरी निगाह, ये जानते हुये भी कि भाभी मुझे ध्यान से देख रही हैं, बड़ी बेशरमी से, राकी के अब खूब मोटे, लंबे, पूरी तरह बाहर निकले शिश्न पर गड़ी थी। 


“पर भाभी… इतना बड़ा… मोटा… कैसे जायेगा…” मैंने सहमते हुये पूछा। 

“अरे पगली, ये जो मुन्ना हुआ है तेरी भाभी के कहां से हुआ है, उसकी बुर से, या मुँह से… या कान से…” भाभी ने हड़काते हुये पूछा।


“मैं क्या जानू, मेरा मतलब है, मैंने देखा थोड़े ही… ठीक है भाभी उनकी बुर से ही निकला है…” मैंने सहमते हुए बोला। 

“और कितना बड़ा है… कितना वजन था कितना लंबा रहा होगा तू तो थी ना वहां…” भाभी ने दूसरा सवाल दागा। 

“हां भाभी, 4 किलो से थोड़ा ज्यादा और एक डेढ फीट का तो होगा ही…” मैंने स्वीकार किया। 

“तो मेरी प्यारी गुड्डी रानी, जिस बुर से 4 किलो और डेढ फीट का बच्चा निकल सकता है तो उसमें एक फीट का लण्ड भी जा सकता है, तू चूत रानी की महिमा जानती नहीं…”


और फिर मेरे कान में बोलीं-

“अरे कुत्ता क्या, अगर तू हिम्मत करे तो गदहे का भी लण्ड अंदर ले सकती है और मैं मजाक नहीं कर रही, बस ट्रेनिंग चाहिये और हिम्मत, ट्रेनिंग मैं करवा दूंगी, और हिम्मत तो तेरे अंदर है ही…”



अपनी बात जैसे सिद्ध करने के लिये, अब उन्होंने दो उंगलियां मेरी बुर में डाल दी थीं और फुल स्पीड में चुदाई कर रहीं थीं। पर मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। 
भाभी से मैंने खुलकर पूछ लिया- “पर भाभी… लड़की की बात और है… और वो कैसे… कर सकता है…” 


“अरे, घबड़ा क्यों रही है, बड़ी आसानी से करवा दूंगी पर इसका मतलब है कि मन तेरा भी कर रहा है… अरे इसमें क्या है, बस चारों पैरों पर, कुतिया की तरह खड़ी हो जाना, (मुझे याद आया, दिनेश ने मुझे इसी तरह चोदा था), टांगें अच्छी तरह फैला लो, फिर ये, (राकी की ओर उन्होंने इशारा किया) पास आकर तेरी बुर चाटेगा, और अगर एक बार इसने चाट लिया तो तुम बिना चुदे रह नहीं सकती, एकदम गीली हो जाओगी। 



जब अपनी मोटी खुरदुरी जीभ से चाटेगा ना… उतना मजा तो किसी भी मर्द से चुदाई में नहीं आता जित्ता चटवाने में आता है, और फिर जैसे कोई मर्द चोदता है, तुम्हारी पीठ पर चढ़कर ये अपना लण्ड डाल देगा। इसका पहला धक्का ही इतना तगड़ा होता है… इसलिये आंगन में वह चुल्ला देख रही हो ना, गले की चेन को हम लोग उसी में बांध देते हैं जिससे कोई छुड़ा ना सके। बस एक बार जब तुमने पहला धक्का सह लिया ना, और उसका लण्ड थोड़ा भी अंदर घुस गया ना, तो फिर क्या… आगे सब राकी करेगा, तुम्हें कुछ नहीं करना


तुम लाख चूतड़ पटको, लण्ड बाहर नहीं निकलने वाला… काफी देर चोदने के बाद उसका लण्ड फूलकर, गांठ बन जायेगा, तुमने देखा होगा कितनी बिचारी कुतियों को… जब वह फँस जाता है ना… बस असली मजा वही है… कोई मर्द कितनी देर तक करेगा 15 मिनट, 20 मिनट। 


पर राकी तो गांठ बनने के बाद कम से कम एक घंटे के पहले नहीं छोड़ता… तो तुम्हें कुछ नहीं करना… बस तुम कातिक में आ जाओ…” 


भाभी की इस बात से अब मुझे लगा गया था कि ये सिर्फ मज़ाक नहीं है। उनकी उंगली अब पूरी तेजी से सटासट-सटासट, मेरी बुर में आ जा रही थी और राकी के लण्ड की टिप पे मैं कुछ गीला देख रही थी। भाभी ने फिर कैंची ऐसी अपनी उंगली फैला दी और मैं उचक गयी, मेरी चूत पूरी तरह खुल गयी थी। 


उसे राकी को दिखाते हुये, वो बोलीं- 

“देख कैसी मस्त गुलाबी चूत है, इस माल का पूरी ताकत से चोदना तेरी गुलाम हो जायेगी…” 


और उचकने से भाभी ने अपनी हथेली मेरे चूतड़ के नीचे कर दी। थोड़ी देर के लिये उन्होंने उंगली निकालकर मेरा गीला पानी मेरे पीछे के छेद पे लगाना शुरू कर दिया। 
“नहीं भाभी उधर नहीं…” मैं चिहुंक गयी।
 
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]पिछवाड़ा 







थोड़ी देर के लिये उन्होंने उंगली निकालकर मेरा गीला पानी मेरे पीछे के छेद पे लगाना शुरू कर दिया। 

“नहीं भाभी उधर नहीं…” मैं चिहुंक गयी। 

“क्यों… इतने मस्त चूतड़ हैं तेरे, तू क्या सोचती है तेरी गाण्ड बची रहेगी…” उन्होंने उंगलियां तो वापस मेरी चूत में डाल दीं पर अब उन्होंने अपना अंगूठा मेरी गाण्ड के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया। 

और फिर एक झटके में अपना अंगूठा, मेरी कोरी गाण्ड में डाल दिया। उनके इस दोहरे हमले को मैं नहीं झेल सकी और जोर से झड़ गयी पर उनका अंगूठा, गाण्ड में और उंगलियां बुर का मंथन करती रहीं। 

जब मैं झड़ कर शांत हो गयी तो उन्होंने, अपनी उंगलियों में लगा मेरी चूत का सारा रस, राकी के नथुनों पर खूब अच्छी तरह पोत दिया। उसे लगा कि, दो बोतल शराब का नशा हो आया हो। 
मैंने स्कर्ट को ठीक करने की कोशिश की पर भाभी ने मुझे मना कर दिया। 


थोड़ी देर तक हम चुपचाप बैठे रहे फिर चम्पा भाभी ने मेरे टाप को थोड़ा ऊपर उठाकर मेरे एक उभार को खोल दिया और उसे सहलाने लगीं। उनसे बोले बिना नहीं रहा गया- “अरे गुड्डी तेरी चूंचियां तो बड़ी रसीली हैं…” 
मैंने मुश्कुरा कर कहा- “भाभी आपको पसंद हैं…” 


उन्होंने अब टाप पूरा उठाकर दोनों जोबन आजाद कर दिये थे- “एकदम…” और इसे बताने के लिये उन्होंने दोनों को खूब प्यार से पकड़ लिया। 


उसे सहलाते हुये बोलीं- “यार तू मुझे बहुत अच्छी लगती है। तुझे एक ट्रिक बताती हूँ कोई भी लड़का तेरा गुलाम हो जायेगा, चाहे जितना भी शर्मीला क्यों ना हो… रवीन्द्र क्या बहुत शर्मीला और सीधा है…” 

“हां भाभी, एकदम शर्मीला लड़कियों से भी ज्यादा, जरा भी लिफ्ट नहीं देता…” मैंने अपनी परेशानी साफ-साफ बतायी। 

“तो सुन… उसके लिये तो एकदम सही है… तू कोई भी खाने वाली चीज ले-ले, आम की फांक, गाजर, जो भी उसे पसंद हो और उसे अपनी चूत में रख ले, और हां कम से कम 6-7 इंच लंबी तो होनी ही चाहिये, उसे कम से कम एक घंटे तक चूत में रखे रह, और उसके बाद चूत से निकालने के तीन चार घंटे के अंदर, उसे रवीन्द्र को खिला दे, तेरे आगे पीछे जैसे राकी फिरता है ना, दुम हिलाता ना फिरे तो मेरा नाम बदल देना…” मेरे कड़े किशोर चूचुक मसलते भाभी ने मुश्कुराकर हल बताया। 


“पर भाभी उसकी तो दुम है ही नहीं…” आँख नचाकर, हँसते हुए मैंने पूछा। 

“अरे आगे वाली दुम तो है ना…” भाभी भी मेरी हंसी में शामिल हो गयीं थी। 

बाहर बसंती और भाभी की आवाज सुनाई पड़ रही थी। चम्पा भाभी दरवाजा खोलने उठीं पर उसके पहले उन्होंने मेरे गुलाबी टीन होंठों पर एक कस-कसकर चुम्मी ले ली और मैंने भी उसी तरह जवाब दिया। 
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पर्व है पुरुषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का।

देहरी पर दीप एक जलता रहे,
अंधकार से युद्ध यह चलता रहे।

हारेगी हर बार अंधियारे की घोर-कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण-लालिमा।

दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है,
कायम रहे इसका अर्थ, वरना व्यर्थ है।

आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए।

झिलमिल रोशनी में निवेदित अविरल शुभकामना,
आस्था के आलोक में आदरयुक्त मंगल भावना।
 
चम्पा भाभी 


अजय और सुनील, चन्दा के यहां जो मेहमान आये थे, उनको छोड़ने शहर गये थे, इसलिये रात में… वैसे भी आज मैं बुरी तरह थकी थी। जब मैं सोने गयी तो भाभी ने मुन्ने को मेरे पास लिटा दिया और बोलीं- “आज मुन्ना, अपनी बुआ के पास सोयेगा…” 
“और मुन्ने की अम्मा, क्या मुन्ने के मामा के पास सोयेंगी…” हँसकर मैंने पूछा। 
मुश्कुराकर भाभी बोलीं- “नहीं मुन्ने की मामी के पास…” 
चम्पा भाभी के पति कुछ दिन के लिये शहर गये थे, इसलिये वो अकेली थीं। चम्पा भाभी का कमरा मेरे कमरे के बगल में ही था। थोड़ी ही देर में, कपड़ों की सरसराहट के बीच भाभी की फुसफुसाहट सुनायी दी- “थोड़ी देर रुक जाओ भाभी, गुड्डी जाग रही होगी…” 


“अरे तो क्या हुआ वह भी यह खेल अच्छी तरह से सीख जायेगी…” चम्पा भाभी बेसबर हो रहीं थी। 

“ठीक कहती हो भाभी आप ऐसा गुरू कहां मिलेगा, इस खेल का… अच्छी तरह सिखा दीजियेगा, मेरी ननद को…”


मुझे कसकर नींद आ रही थी पर नींद के बीच-बीच में, चूड़ियों और पायल की आवाज, सिसकियां, चीख, मुझे सब कुछ साफ-साफ बता दे रही थी कि दोनों भाभी के बीच रात भर क्या खेल हो रहा है। 


अगले दिन जब मैं नाश्ते के लिये रसोई में पहुँची तो वहां बसंती, चम्पा भाभी और मेरी भाभी सभी थीं। बसंती ने मुझे खूब मलाई पड़ा हुआ, दूध का बड़ा गिलास दिया। दूध, घी, मक्खन खा-खाकर मेरा वजन खास कर कुछ “खास जगहों” पर ज्यादा बढ़ गया था और मेरे सारे कपड़े तंग हो गये थे। 


मैंने नखड़ा दिखाया- “नहीं भाभी, दूध पी-पीकर मैं एकदम पहलवान बन जाऊँगी…” 
“तो ठीक तो है, वहां चलकर मेरे देवर से कुश्ती लड़ना…” भाभी ने मुझे चिढ़ाया और मुझे पूरा ग्लास डकारना पड़ा। 


तब तक बसंती खूब ढेर सारा मक्खन लगी हुई, रोटियां ले गयी और छेड़ते हुये बोली- “अरे मक्खन खा लो खूब चिकनी भी हो जाओगी और नमकीन भी…” 

मेरे चिकने गाल सहलाते हुये भाभी ने फिर छेड़ा- “अरे मेरा देवर खूब स्वाद ले-लेकर तुम्हारे इन चिकने गालों को चाटेगा…” 


चम्पा भाभी क्यों चुप रहती- “अरे सिर्फ गालों को ही क्यों, इसकी तो हर जगह मक्खन मलाई है, सब जगह रस ले-लेकर चाटेगा। और नमकीन तो ये इतनी हो जायेगी की पूरे शहर में इसी का जलवा होगा, लौंडिया नंबर वन…” तब तक दूध उबलने लगा था और भाभी उधर चली गयीं।
 
बसंती 









तब तक दूध उबलने लगा था और भाभी उधर चली गयीं। 

बसंती मुझे घूरते हुये बोली- “अरे ननद रानी तुम्हें अगर सच में नमकीन बनना है ना तो सबसे सही है की तुम… खारा नमकीन शरबत पी लो, इतना नमक हो जायेगा ना कि फिर…” 


मैंने देखा कि चम्पा भाभी उसे आँखों सें चुप रहने का इशारा कर रही हैं

पर मैं बोल पड़ी- “बसंती भाभी, कहां मिलेगा वह शरबत…” 


बसंती ने मेरे मस्त गालों को सहलाते हुये कहा- “अरे मैं पिलाऊँगी अपनी प्यारी ननद को, दोनों टाइम सुबह शाम। सबसे नमकीन माल हो जाओगी…” 


मैंने देखा कि चम्पा भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थीं- “पियोगी ना… और अगर तुमने एक बार हां कह दिया और फिर मना किया ना तो हाथ पैर बांध कर जबरन पिलाऊँगी…” 
बिना समझे मैंने हामी भरते हुए धीरे से सर हिला दिया। 


तब तक मेरी भाभी आ आयीं और पूछने लगीं- “ये आप दोनों लोग मिलकर मेरी ननद के साथ क्या कर रही हैं…” 

“हम लोग इसे अपने शहर की सबसे नमकीन लौंडिया बनाने की बात कर रहे थे…” चम्पा भाभी हँसकर बोलीं।


“एकदम भाभी, मेरी ओर से पूरी छूट है, और अगर ये कुछ ना नुकुर करे ना तो आप दोनों जबर्दस्ती भी कर सकती हैं…” 


“तो बसंती ठीक है, चालू हो जाओ, और जब ये लौट कर जायेगी ना तो फिर इसके शहर के जितने लड़के हैं सब मुट्ठ मारें तो गुड्डी का नाम लेकर और रात में झडें तो सपने में इसी छिनार को देखकर और तेरे देवर को तो ये बहनचोद बना ही देगी…” चम्पा भाभी अब पूरे मूड में थीं। 


भाभी ने हामी भरी। बसंती भी आज मेरे साथ खुलकर रस ले रही थी, वह बोली- “अरे तुम्हारा देवर रवींद्र सिर्फ बहनचोद थोड़ी ही है…” 


“फिर… और… क्या-क्या है…” मजा लेते हुए भाभी ने बसंती से पूछा। 


“अरे गंडुआ तो शकल से ही और बचपन से ही है, जब शादी में आया था तभी लगा रहा था और अब अपनी इस ननद रानी के चक्कर में… भंड़ुआ भी हो जायेगा… जब ये रंडी बनकर कालीनगंज में पेठे पे बैठेगी तो… मोल भाव तो वही करेगा…” और सब लोग खुलकर हँसने लगी। 


आज कहीं जाना नहीं था इसलिये मैं सलवार सूट पहनकर बैठी थी। बसंती ने खूब रच-रच कर मुझे मेंहदी लगायी थी और महावर भी, आज सुबह से वह ज्यादा मेहरबान थी और चम्पा भाभी के साथ मिलकर खूब गंदे मजाक कर रही थी। चन्दा के इंतेजार में दोपहर हो गयी थी। कामिनी भाभी भी आयीं थी। मेहंदी सूख गयी थी और बसंती उसे छुड़ा रही थी।



कामिनी भाभी ने बसंती से कहा- “मेहंदी तो खूब रच रही है, ननद रानी के हाथ में, बहुत अच्छी लगायी है तुमने…” 


वो हँसकर बोली- “इसलिये कि जब ये गांव के लड़कों का पकड़ें तो उन्हें अच्छा लगे…”


“हे अच्छा बताओ, तुमने अब तक किसका-किसका पकड़ा है…” चम्पा भाभी चालू हो गयीं। 

मैं चुप थी। 
“अच्छा चलो, नाम न सही नंबर ही बता दो, 4, 5, 6 मेरे कितने देवरों का पकड़ा है, अबतक…” 


“अरे भाभी यहां आपके देवरों का पकड़ रही है और घर चलकर मेरे देवर का पकड़ेगी…” मेरी भाभी क्यों मौका चूकतीं। 


“धत्त भाभी, आप भी…” शर्म से मेरे गाल गुलाबी हो रहे थे। 


कामिनी भाभी हँसकर बोलीं।- “अरे इसमें धत्त की क्या बात, तुम्हारी भाभी पकड़ने का ही तो कह रहीं हैं लेने का तो नहीं… पकड़कर देख लेना, कितना लंबा है, कितना मोटा है, दबाकर देख लेना कित्ता कड़ा है, और न हो तो टोपी हटाकर सुपाड़ा भी देख लेना, पसंद हो तो ले-लेना…” 


“अरे भाभी, ये सिर्फ यहीं नखड़ा दिखा रही है, वहां पहुँचकर तो ये सोचेगी कि जब मैंने भाभी के सारे भाईयों का पकड़ा, किसी को भी नहीं मना किया तो बेचारे अपने भाई का क्यों ना पकड़ूं और फिर अपने मेंहदी रचे हाथों में गप्प से पकड़ लेगी…” भाभी ने मुझे छेड़ा। 


पर मेरे मन में तो रवीन्द्र की… जो चन्दा ने कहा था कि उसका इत्ता मोटा है, कि मेरे हाथ में नहीं आयेगा। घूम रही थी। 


“और क्या पहले हाथ में, फिर अपने इन दोनों कबूतरों के बीच पकड़ेगी…” कामिनी भाभी ने मेरे उभारों पर चिकोटी काटते हुये कहा। 

“और फिर ऊपर वाले होंठों के बीच…” चम्पा भाभी बोलीं। 
“और फिर नीचे वाले होंठों के बीच…” अब मेरी भाभी का नंबर था। 


“अरे, जब रवीन्द्र बोलेगा, बहन एक बार पकड़ लो मेरा तो ये कैसे मना करेगी, बोलेगी लाओ भैया…” भाभी आज चालू थीं। उन्होंने मुझे चिढ़ाते हुए गाना शुरू किया और सब भाभियां उनका साथ दे रहीं थीं- 








हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो। 

ना ये आधा, ना ये पौना, पूरा फुट है, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो। 
ना ये छोटा, ना ये पतला, पूरा अंदर है, पकड़कर देख लो। 

हो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो, गुड्डी रानी, पकड़कर देख लो। 
हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो। 

काहे का रुकना, क्या झिझकना, तुम्हारा धन है, पकड़कर देख लो, हो बांकी ननदी पकड़कर देख लो। 
हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, गुड्डी रानी, पकड़कर देख लो। 

नीचे लकड़ी ऊपर छतरी, रूप ग़जब का, पकड़कर देख लो। हो बांकी ननदी पकड़कर देख लो। 
हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो। 
 
चंदा 



तभी चमेली भाभी आयीं और उन्होंने बताया कि चन्दा को बुखार हो गया है इस लिये वो नहीं आ पायी है और उसने मुझे वहीं बुलाया है। मैं तुरंत जाने के लिये तैयार हो गयी और चम्पा भाभी की ओर देखा। उन्होंने तुरंत हां कह दी।


पर बसंती भाभी ने बोला- “अरे एक हाथ की मेंहदी तो छुड़वा लो…” 


पर मैंने कहा कि मैं रास्ते में खुद छुड़ा लूंगी। सलवार और कुर्ता दोनों टाइट हो गये थे और मेरे जोबन के उभार और चूतड़ एकदम साफ-साफ दिख रहे थे। 

पीछे से कामिनी भाभी ने छेड़ा- “अरे ऐसे चूतड़ मटका के ना चलो, कोई छैला मिल जायेगा तो बिना गाण्ड मारे नहीं छोड़ेंगा…”

“अरे भाभी, इसको भी तो गाण्ड मरवाने का मजा चखने दीजिये…” मैंने पीछे मुड़कर देखा तो बसंती हँसकर बोल रही थी। 


अब तक गांव की गली, पगडंडियों का मुझे अच्छी तरह पता चल गया था इसलिये, हरी धानी चुनरी की तरह फैले खेतों के बीच, पगडंडियों पर, आम से लदे अमराईयों से होकर, हिरणी की तरह उछलती, कुलांचे भरती, जल्द ही मैं चन्दा के घर पहुँच गयी।


चन्दा बिस्तर पे ओढ़ के लेटी थी। माथे पे हल्की सी हरारत लग रही थी। 

मैंने उससे कहा- “जोबान दिखाओ…” 
और उसने शरारत से अपनी चोली पर से आंचल हटा दिया। 

मैं क्यों चूकती, मैंने चोली के दो बटन खोले और अंदर हाथ डालकर, धड़कन देखने के बहाने, उसके जोबन दबाने लगी। मैं समझ गयी थी कि मेरी सहेली पे किस चीज का बुखार है। उसका सीना सहलाते, मसलते मैं बोली- “हां धड़कन तो बहुत तेज चल रही है, डाक्टर बुलाना पड़ेगा और इंजेक्शन भी लगेगा…” 


“हां नर्स, तुम तो मेरे डाक्टर को अच्छी तरह जानती हो पर जब तक वह नहीं आते, तुम्हीं मेरे सीने पर मालिश कर दो ना…” मेरे हाथ को अपने सीने पर कस के दबाते वह बोली। 


“डाक्टर, हाजिर है…” मैंने नजर उठायी तो अजय और सुनील दोनों एक साथ बोल रहे थे। 

सुनील को पकड़ के, मैं सामने ले गयी और बोली- “मुझे मालूम है की तुम्हारा फेवरिट डाक्टर कौन है…” 

सुनील मेरी टाइट सलवार में मेरे कसे भरे-भरे नितंबों को देख रहा था। उसका तम्बू तना हुआ था। 


अपनी ओर से ध्यान खींचती मैं बोली- “अरे डाक्टर साहब, बीमार ये है, मैं नहीं, पहले इसके मुँह में अपना थर्मामीटर लगाकर इसका बुखार तो लीजिये…” 

“अरे कैसी नर्स है, थर्मामीटर निकालकर लगाना तो तुम्हारा काम है…” सुनील बोला। 


“हां… हां अभी लगती हूँ डाक्टर साहब…” और मैंने उसका लण्ड निकालकर चन्दा के होंठों के बीच लगा दिया। 


मैंने एक हाथ से चन्दा का सर पकड़ रखा था और दूसरे से सुनील का तन्नाया लण्ड। उसे मैंने चन्दा के प्यासे होंठों के बीच घुसा दिया। 
चन्दा भी जैसे जाने कब की भूखी रही हो, झट गप्प कर गयी। 


मैंने चन्दा से शरारत से कहा- “अरे सम्हाल कर काटना नहीं, अगर पारा बाहर निकल गया तो डाक्टर साहब बहुत गुस्सा होंगे…” 

सुनील से अब नहीं रहा जा रहा था और उसका हाथ कस-कस के मेरे नितंबों को दबा रहा था। कुछ देर बाद, उसने मेरे चूतड़ कस के भींचं लिये और मेरी गाण्ड में अपनी एक उंगली चलाने लगा। 

“अरे डाक्टर साहब मरीज का ध्यान करिये… नर्स का नहीं…” 

अब उसने सीधे मेरी गाण्ड के छेद में सलवार के ऊपर से उंगली घुसाते हुए कहा- “अरे जब नर्स इतनी सेक्सी हो उसके चूतड़ इतने मस्त हों तो उसका भी ख्याल करना पड़ता है ना…” 
“तो मेरे पीछे, मेरी गाण्ड में उंगली क्यों कर रहे हैं…” मैंने बनावटी शिकायत के अंदाज में कहा। 

अपने मुँह से सुनील का लण्ड निकालकर चन्दा बोली- “इसलिये गुड्डी रानी कि वह तुम्हारी सेक्सी गाण्ड मारना चाहते हैं…”
 
दो दो डाक्टर 



अपने मुँह से सुनील का लण्ड निकालकर चन्दा बोली- “इसलिये गुड्डी रानी कि वह तुम्हारी सेक्सी गाण्ड मारना चाहते हैं…” 

मैंने फिर पकड़कर सुनील का लण्ड चन्दा के मुँह में ढकेला और बोली- “हे थर्मामीटर क्यों बाहर करती हो…”


तब तक मुझे अजय की आवाज सुनायी दी- “हे सिस्टर, जरा इन डाक्टर साहब के पास भी तो आओ…” 


वह बगल के ही पलंग पे बैठा था और उसने खींच के मुझे अपनी गोद में बैठा लिया। उसका तन्नाया मोटा लण्ड जैसे मेरी सलवार फाड़कर मेरी गाण्ड में घुस जायेगा। 


कुर्ते के ऊपर से मेरे मम्मे भी खूब तने लगा रहे थे। उसने उस कस के पकड़ लिया अर दबाते हुए बोला- नर्स, इस डाक्टर के थर्मांमीटर का भी तो ख्याल करो। 


“अभी लीजिये…” मैं बोली और जिप खोलकर उसके तने लण्ड को मैंने बाहर कर दिया। मेरे गोरे-गोरे हाथों में बसंती ने जो मेंहदी लगायी थी खूब चटख चढ़ी थी। 
अजय भी खूब प्यार से उन्हें निहार रहा था। उसने गुजारिश की- “हे, रानी जरा अपने इन प्यारे-प्यारे हाथों से पकड़ो ना इसे, सहलाओ, रगड़ो…” 


“अभी लो मेरे जानम…” और मेंहदी लगे अपने हाथों से मैंने पहले तो उसे धीरे से पकड़ा, और फिर हलके-हलके सहलाने लगी। 


अजय अब खूब कस के मेरे सूट के ऊपर से ही मेरे मम्मों को दबा, मसल रहा था- “हे तुम्हारा ये सूट बहुत सेक्सी है, इसमें तुम्हारे सेक्सी मम्मे और चूतड़ और सेक्सी लगते हैं…” उसने मेरे सूट की तारीफ की। 
मैं हँस दी। 

उसने पूछा- “क्यों क्या हुआ…” 


मैंने बताया कि- “जल्दी में मैं सूट में आ गयी। 
जब मैं साड़ी पहनकर आती थी, तो बस तुम लोग साड़ी उठाकर काम चला लेते थे। मैंने सोचा की आज सलवार सूट में मेरी बचत होगी पर… आज तुम दोनों लगता है…” 


मेरी बात काट कर अजय ने सीधे, मेरी सलवार का नाड़ा खोलते हुये कहा- 


“ऐसा कुछ नहीं है, बिचारी चूत को चुदना ही है, आखिर लण्ड को इतना तड़पाती है…” 

और उसने मेरी सलवार घुटने तक सरका दी और मेरी चूत को कस के दबोच लिया। 


मैंने चन्दा की ओर निगाह डाला तो वह कस-कस के सुनील का लण्ड चूस रही थी। उसकी साड़ी भी जांघों के ऊपर उठ चुकी थी और सुनील अपनी दो उंगलियों से उसको चोद रहा था। 


अजय ने तब तक मुझे घुटने और कोहनियों के बल कर दिया और कहने लगा- “चलो, तुम्हें सिखाता हूँ कि सलवार सूट पहने-पहने कैसे चुदवाते हैं…”


मेरे पीछे आकर उसने मेरी टांगें फैलायीं पर सलवार पैरों में फंसी होने के कारण वह ज्यादा नहीं फैला पाया और मेरी जांघें कसी-कसी थीं। उसने एक उंगली मेरी चूत में कस-कस के अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी और मैं जल्द ही गीली हो गयी। मेरी कमर पकड़कर अब उसने चूत फैलाकर अपना लण्ड एक करारे धक्के में अंदर धकेल दिया। 



मेरी जांघें सटी होने के कारण मेरी चूत भी खूब कसी थी और लण्ड चूत की दीवारें को कस-कस के रगड़ता घिसता जा रहा था। मुझे एक नये किस्म का मजा मिल रहा था। थोड़ी देर इसी तरह चोद के अब अजय ने मेरे रसभरे झुके हुए मम्मों को कुर्ते के ऊपर से ही पकड़ लिया था और उन्हें दबा-दबा के कस के चोदने लगा। 


हमारी देखा देखी, सुनील ने भी अब अपना लण्ड चन्दा के मुँह से निकाल लिया था और उसकी जांघों के बीच आकर चुदाई करने लगा। 


अजय ने मेरा कुरता ऊपर सरका दिया था और अब मेरी खुली लटकी चूचियां कस-कस के निचोड़ रहा था। पर थोड़ी ही देर में अजय ने मेरे सारे कपड़े उतार दिये और मुझे लिटाकर, मेरी टांगें अपने कंधे को रखकै कस-कस के चोद रहा था। 
यही हाल बगल के पलंग पे चन्दा की भी थी जिसको सुनील ने पूरी तरह निर्वस्त्र कर दिया था और उसके मोटे-मोटे चूतड़ पकड़ के कस-कस के चोद रहा था। 


यह पहली बार था कि हम और चन्दा अगल बगल इस तरह दिन में, पलंग पर अगल बगल लेटकर, अजय और सुनील से खुल्लमखुल्ला चुदा रहे थे। सुनील की निगाह अभी भी मेरे चूतड़ों पर थी। चन्दा ने उसकी चोरी पकड़ ली, वह बोली- 

“क्यों आज उसकी बहुत गाण्ड मारने का मन कर रहा है क्या, जो चोद मुझे रहा है पर चूतड़ उसके घूर रहा है…” 

और मुझसे कहा- “हे गुड्डी, मरवा ले ना गाण्ड आज, रख दे मन मेरे यार का…” 


“ना बाबा ना, मुझे नहीं मरवानी गाण्ड, इतना बोल रही है तो तू ही मरवा ले ना…” 

अजय और सुनील दोनों मुश्कुरा रहे थे- “यार आज साथ-साथ चुदाई कर रहे हैं। तो कुछ बद कर करें ना…” 

कुछ देर बाद सुनील बोला- “मुझे मंजूर है…” 
मेरी चूची पकड़कर कसके चोदते हुये, अजय ने कहा- “तो ठीक है, जिसका यार पहले झड़ेगा, उसके माल की गाण्ड मारी जायेगी…” सुनील ने शर्त रखी। 

अजय और चन्दा दोनों एक साथ बोले- “हमें मंजूर है…” 
पर मैं बोली- “हे गड़बड़ तुम लोग करो पर, गाण्ड हमारी मारी जाय…” 


पर हमारी सुनने वाला कौन था। अजय मेरी चूची रगड़ते, गाल काटते, कसकर चोद रहा था और सुनील भी चन्दा की बुर में सटासट अपना लण्ड पेल रहा था। पर तभी मैंने ध्यान दिया कि चन्दा ने कुछ इशारा किया और सुनील ने अपना टेमपो धीमे कर दिया बल्की कुछ देर रुक गया। 


मैं कुछ बोलने ही वाली थी की अजय ने मेरी क्लिट पिंच कर ली और मैं झड़ने लगी। मैं अपनी चूत में कस के अजय का लण्ड भींच रही थी, अपने चूतड़ कस-कस के ऊपर उठा रही थी, और अपने हाथों से कस के उसकी पीठ जकड़ ली। और जल्द ही अजय भी मेरे साथ झड़ रहा था। 


जब हम दोनों झड़ चुके तो मुझे अहसास हुआ कि… पर साथ-साथ झड़ने का जो मजा था… 
मैंने जब बगल में देखा तो अब चन्दा भी खूब कस-कस के चूतड़ उछाल रही थी और वह और सुनील साथ-साथ झड़ रहे थे। 


मैं शांत बैठी थी तो अजय और सुनील एक साथ दोनों मेरे बगल में आ गये और गुदगुदी करने लगे। 


अजय बोला- “हे… यार… चलता है…” और उसने मेरे गाल को चूम लिया। 
मेरे दूसरे गाल को सुनील ने और कस के चूम लिया। अजय ने मेरी एक चूची पकड़ के दबा दिया। सुनील ने मेरी दूसरी चूची पकड़ के मसल दिया। 


“हे… एक साथ… ध-दो…” चन्दा बोली। 
“अरे जलती है क्या… अपनी-अपनी किश्मत है…” अब मैं भी हँसकर बोली और मैंने अपने मेंहदी लगे हाथों में दोनों के आधे-खड़े लण्ड पकड़ लिये, और आगे पीछे करने लगी। 
 
फट गयीइइइइइ पिछवाड़े वाली 



मैंने अपने मेंहदी लगे हाथों में दोनों के आधे-खड़े लण्ड पकड़ लिये, और आगे पीछे करने लगी। 


जल्द ही दोनों तनकर खड़े हो गये। 


अजय के लण्ड के चमड़े को मैंने कस के खींचा और उसका मोटा गुलाबी सुपाड़ा बाहर निकल आया। मैंने उंगली से उसके छेद को हल्के से छू दिया और वह सिहर गया। 

तब तक अचानक अजय ने मुझे पकड़कर कस के झुका दिया और उसका गरम सुपाड़ा, मेरे गुलाबी होंठों से रगड़ खा रहा था- 

“ले चूस इसे, घोंट, खोल के अपना मुँह ले अंदर जैसे अभी चन्दा चूस रही थी…” 



और मैंने अपने होंठ खोलकर पहली बार उसके सुपाड़े को घोंट लिया। मेरे गुलाबी, मखमली होंठ उसके सुपाड़े को रगड़ते, घिसते हुये, उसे अंदर ले रहे थे। मेरी रेशमी जुबान, सुपाड़े के निचले हिस्से को चाट रही थी। थोड़ी देर तक मैं उसके मोटे सुपाड़े को चूमती चाटती रही। अजय ने उत्तेजित होकर मेरे सर को और जोर से अपने लण्ड पर दबाया और आधा लण्ड मेरे मुँह में घुस गया। 

मेरे हाथ उसके लण्ड के बेस को पकड़े हुए, दबा सहला रहे थे और फिर मैं उसके पेल्हड़ को भी सहलाने लगी। 


“हां हां ऐसे ही, और कस के चूस ले, चूस ले मेरा लण्ड साल्ली… ले-ले पूरा ले…” 

मुझे अच्छा लगा रहा था कि मेरा चूसना अजय को इतना अच्छा लगा रहा है। मैं अपनी गर्दन ऊपर-नीचे करके खूब कस के चूस रही थी। कुछ देर चूसने के बाद, जब मैं थोड़ी थक जाती तो उसे बाहर निकालकर लालीपाप की तरह उसके लाल खूब बड़े सुपाड़े को चाटती, मेरी जीभ उसके पूरे लण्ड को चाटती और फिर मैं उसका लण्ड गप्प से लील जाती। 


मेरे गाल एकदम फूल जाते, कभी लगता कि वह मेरे हलक तक पहुँच गया है पर मैं गप्पागप उसका लण्ड घोंटती रहती, चूसती रहती। मैं सुनील को एकदम भूल गयी थी पर मुझे तब उसकी याद आयी जब उसने मेरे चूतड़ सहलाते हुये मेरे गाण्ड के छेद पर अपना लण्ड लगाया। 


“नहीं… नहीं… वहां नहीं…” मैंने कहने की कोशिश की। 


पर अजय ने कस के मेरा सर अपने लण्ड पर दबा दिया और मेरी आवाज नहीं निकल पायी। थोड़ी देर वहां रगड़ने के बाद, सुनील ने लण्ड मेरी चूत पे सटाया और एक झटके में सुपाड़ा अंदर पेल दिया। मेरी जान में जान आयी कि मेरी गाण्ड बच गयी।


पर चन्दा के रहते, ये कहां होने वाला था।

चन्दा ने पहले तो सहलाने के बहाने मेरे चूतड़ को कस-कस के दो-दो हाथ लगाये और फिर अपनी उंगली में खूब थूक लगाकर उसे मेरी गाण्ड के छेद पे लगाया। 

सुनील ने अपनी पूरी ताकत लगाकर मेरे दोनों कसे-कसे कोमल नितंबों को अच्छी तरह फैलाया और चन्दा ने भी कस के मेरी गाण्ड के छेद को चियार कर उसमें अपनी थूक लगी उंगली को ढकेल दिया। मैंने अपनी गाण्ड हिलाने की बहुत कोशिश की पर वह धीरे-धीरे, पूरी उंगली अंदर करके मानी। 


पर वह वहां भी रुकने वाली नहीं थी।

जब मेरी गाण्ड को उसकी आदत हो गयी तो वह उसे गोल-गोल घुमाने लगी, और फिर जोर-जोर से अंदर-बाहर करने लगी। 

जब मैंने अपने चूतड़ ज्यादा हिलाये तो वो बोली- 

“अरे, अभी एक उंगली में इत्ता चूतड़ मटका रही हो तो अभी थोड़ी देर में ही पूरा मूसल ऐसा लण्ड इसी गाण्ड में घुसेगा तो कैसे गप्प करोगी…” 


मैं चाहकर भी कुछ नहीं बोल सकती थी क्योंकी अजय मेरा सर पकड़ के मेरे मुँह को अब पूरी ताकत से लण्ड से चोद रहा था और अब मेरे थूक से वह इतना चिकना हो गया था कि गपागप मैं उसे लील रही थी और कई बार तो वह मेरे गले तक ढकेल देता। 


और उधर सुनील भी मेरे मम्मे पकड़कर कस के चोद रहा था। जब कुछ देर बाद चन्दा ने मेरी गाण्ड से उंगली निकाली तो मेरी सांस आयी। 
अब मेरी चूत सुनील के लण्ड की धकापेल चुदाई का पूरा मजा ले रही थी और मैं भी अपनी चूत उसके मोटे खूंटे जैसे लण्ड पर भींच रही थी। 


तभी चन्दा ने किसी ट्यूब की एक नोज़ल मेरी गाण्ड के छेद में डाल दी। मैं मन ही मन उसे खूब गालियां दे रही थी। वह जेली की ट्यूब थी और उसने दबा-दबाकर पुरी ट्यूब मेरी गाण्ड में खाली कर दी। मेरी पूरी गाण्ड चप-चप हो रही थी। 

उसके ट्यूब निकालते ही सुनील ने अपना लण्ड मेरी चूत से निकालकर मेरी डर से दुबदुबाती गाण्ड के छेद पे लगा दी। चन्दा ने बेरहमी से मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ के, खूब कस के गाण्ड के छेद तक फैला दिया था। 

अब सुनील का लण्ड भी मेरी चूत को चोद के अच्छी तरह गीला हो गया था और गाण्ड के अंदर भी खूब क्रीम भरी थी, इसलिये अब जब उसने धक्का मारा तो थोड़ा सा मेरी गाण्ड में घुस गया। पर मेरी गाण्ड एकदम कड़ी हो गयी थी और मसल्स अंदर लण्ड घुसने नहीं दे रही थीं। सुनील ने मुझसे कहा कि मैं डरूं नहीं और थोड़ा ढीली करूं पर मैं और सहम गयी।

चन्दा कस के बोली- 

“हे ज्यादा छिनारपना ना दिखा, गाण्ड ढीली कर ठीक से मरवा नहीं तो और दर्द होगा…” और उसने अचानक मेरी दोनों टांगों के बीच हाथ डालकर कस के अपने नाखूनों से मेरी क्लिट पर खूब कस के चिकोट लिया। 

मैं दर्द से बिलबिला कर चीख उठी और मेरा ध्यान मेरी गाण्ड से हट गया। 

सुनील पूरी तरह तैयार था और उसने तुरंत मेरी कमर पकड़ के कस के तीन-चार धक्कों में अपना पूरा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में पेल दिया। मेरी पूरी गाण्ड दर्द से फटी जा रही थी। मैंने बहुत जोर से चीखने की कोशिश की पर अजय ने और कस के अपना लण्ड मेरे हलक तक ठेल दिया और कस के मेरा सर दबाये रहा। सिर्फ मेरी गों गों की आवाज निकल पा रही थी। मैं कस-कस के अपनी गाण्ड हिला रही थी पर… 


“गुड्डी रानी, अब चाहो कितना भी चूतड़ हिलाओ, गाण्ड पटको, पूरा सुपाड़ा अंदर घुस गया है, इसलिये अब लण्ड बाहर निकलने वाला नहीं है…” चन्दा मेरे सामने आकर मुझे चिढ़ाते हुये बोली और मेरा जोबन कस के दबा दिया। 


सुनील अब पूरी ताकत से मेरी कसी, अब तक कुंवारी गाण्ड के अंदर अपना सख्त, मोटा लण्ड धीरे-धीरे घुसा रहा था। मैं कितना भी चूतड़ पटक रही थी पर सूत-सूत करके वह अंदर सरक रहा था। दर्द के मारे मेरी जान निकली जा रही थी पर उस बेरहम को तो… कभी कमर तो कभी मेरे कंधे पकड़कर वह पूरी ताकत से अंदर ठेल रहा था और जब आधा लण्ड घुस गया होगा और उसको भी लगा कि अब और अंदर पेलना मुश्किल है तो वह रुका।


मुझे लगा रहा था कि किसी ने मेरी गाण्ड के अंदर लोहे का मोटा राड डाल दिया है। उसके रुकने से मेरा दर्द थोड़ा कम होना शुरू हुआ।


पर चन्दा को कहां चैन, वह बोली- “हे गुड्डी रानी, क्या मजे हैं तुम्हारे, एक साथ दो लण्ड का मजा, एक मुँह में चूस रही हो और दूसरे से गाण्ड में मजा ले रही हो, और मैं यहां सूखी बैठी हूं। 
और अजय से कहा- “हे इसका मुँह छोड़ो, जब तक सुनील इसकी गाण्ड का हलुवा बना रहा है, तुम मेरे साथ मजा लो ना…” अजय ने जब इशारे से बताने की कोशिश कि जैसे ही वह मेरे मुँह से लण्ड निकालेगा, मैं चीखने चिल्लाने लगूंगी।
तो चन्दा ने अजय का लण्ड मेरे मुँह से निकालते हुए कहा- “अरे चीखने चिल्लाने दो ना साल्ली को। पहली बार गाण्ड मरा रही है तो थोड़ा, चीखना, चिल्लाना, रोना, धोना, अच्छा लगाता है। थोड़ा, रोने चीखने दो ना उसको…” ये कहकर उसने अजय को वैसे ही नीचे लिटा दिया और खुद उसके ऊपर चढ़ गयी

। 
मैं भी गर्दन मोड़कर उसको देख रही थी। वह अपनी चूत, ऊपर से अजय के सुपाड़े तक ले आती और जब अजय कमर उचकाकर लण्ड घुसाने की कोशिश करता, तो वह छिनार चूत और ऊपर उठा लेती। उसने अजय की दोनों कलाई पकड़ रखी थी। फिर उसने अपने माथे की बिंदी उतारकर अजय के माथे को लगा दी और कहने लगी- “आज मैं चोदूंगी और तुम चुदवाओगे…” 


और उसने अपनी चूत को उसके लण्ड पे जोर के धक्के के साथ उतार दिया। थोड़ी ही देर में अजय का पूरा लण्ड उसकी चूत के अंदर था। अब वह कमर ऊपर-नीचे करके चोद रही थी और अजय, जैसे औरतें मस्ती में आकर नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर चुदवाती हैं, वैसे कर रहा था। 


चन्दा ने मेरा एक झुका हुआ जोबन कस के दबा दिया और अब सुनील को चढ़ाते हुए, कहने लगी-


“हे अभी मेरी चूत की चुदाई तो सुपाड़ा बाहर लाकर एक धक्के में पूरा लण्ड डालकर कर रहे थे, और अब इस छिनाल की गाण्ड में सिर्फ आधा लण्ड डालकर… क्या उसकी गाण्ड मखमल की है और मेरी चूत टाट की… अरे मारो गाण्ड पूरे लण्ड से, फट जायेगी तो कल क्ललू मोची से सिलवा लेगी साल्ली… ऐसी गाण्ड मारो इस छिनाल की… की सारे गांव को मालूम हो जाये कि इसकी गाण्ड मारी गयी, पेल दो पूरा लण्ड एक बार में इसकी गाण्ड में… वरना मैं आ के अभी अपनी चूची से तेरी गाण्ड मारती हूं…” 


चन्दा का इतना जोश दिलाना सुनील के लिये बहुत था। सुनील ने मेरी कमर पकड़कर अपना लण्ड थोड़ा बाहर निकाला और फिर पूरी ताकत से एक बार में मेरी गाण्ड में ढकेल दिया। 

उउह्ह्ह, मेरी तो जान निकल गयी। 

मैंने दांत से होंठ काटकर चीख रोकने की कोशिश की पर दर्द इतना तेज था कि तब भी चीख निकल गयी। पर मैं जानती थी, कि अब सुनील नहीं रुकने वाला है, चाहे मेरी गाण्ड फट ही क्यों ना जाये। और वही हुआ, सुनील ने बिना रुके फिर पहले से जोरदार धक्का मारा और मैं बेहोश सी हो गयी, मेरी बहुत तेज चीख निकली पर चन्दा ने कसकर मेरे मुँह पर हाथ लगाकर भींच लिया। 

सुनील धक्के को धक्का मारता रहा। मैं छटपटा रही थी, दर्द से बेहाल हो रही थी लेकिन चन्दा ने इतनी कस के पूरी ताकत से मेरा मुँह भींच रखा था कि मेरी जरा सा भी चीख नहीं निकल पायी। 
कुछ देर में सुनील के धक्के रुक गये, पर मुझे अहसास तभी हुआ, जब चन्दा ने हाथ हटा लिया और बोली- “अरे जरा बगल में तो देख, कितनी आराम से तेरी गाण्ड ने लण्ड घोंट रखा है…” 
और सच में जब मैंने बगल में देखा तो वहां शीशे में साफ दिख रहा था कि, कैसे मेरी कसी-कसी गाण्ड में उसका मोटा लण्ड पूरे जड़ तक मेरी गाण्ड में घुसा है। अब दर्द जैसे धीरे-धीरे कम हुआ मेरी गाण्ड ने लण्ड अपने अंदर महसूस करना शुरू कर दिया। 

थोड़ी देर तक रुक के सुनील ने लण्ड थोड़ा बाहर निकाल के कस-कस के धक्के फिर मारने शुरू कर दिये। पर अब मुझे दर्द के साथ एक नये तरह का मजा मिल रहा था। उधर, अजय ने भी अब चन्दा को चौपाया करके चोदना शुरू कर दिया था। मैं और चन्दा दोनों एक साथ एकदम सटकर चुदवा रहे थे।


सुनील अब मेरी चूचियां पकड़ के गाण्ड मार रहा था। 

वह एक हाथ से मेरी चूची पकड़ता और दूसरी से चन्दा की दबाता। अब अजय और सुनील दोनों पूरी तेजी से धक्के पे धक्के मारे जा रहे थे। सुनील ने मेरी चूत में पहले तो दो, फिर तीन उंगलियां घुसा दीं और कस के अंदर-बाहर करने लगा। कहां तो मेरी चूत को एक उंगली घोंटने में पसीना होता था और कहां तीन उंगलीं… मेरी गाण्ड और चूत दोनों का बुरा हाल था, पर मजा भी बहुत आ रहा था। जब उसका लण्ड मेरी गाण्ड में जाता तो वह उंगली बाहर निकाल लेता और जब चूत में तीन उंगलियां एक साथ पेलता तो गाण्ड से लण्ड बाहर खींच लेता। 


मैं बार-बार झड़ने के कगार पर पहुँचती तभी चन्दा ने कस के मेरी क्लिट पकड़कर रगड़ मसल दी और मैं झड़ने लगी और बहुत देर तक झड़ती रही। मेरा सारा रस उसकी उंगली पर लग रहा था। जब मैं झड़ चुकी तो सुनील ने मेरी चूत से अपनी उंगली निकालकर मेरे मुँह में लगा दी और मुझे मजबूर करके चटाया। फिर तो मैंने उसके उंगलियों से एक-एक बूंद रस चाट लिया। 


चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए बोली- “क्यों कैसा लगा चूत रस…” 


मैं चुप रही।
पर चन्दा क्यों चुप रहती। वह बोली- “अरे अभी तो सिर्फ चूत रस चाटा है अभी तो और बहुत से रस का स्वाद चखना है…” 



जब सुनील ने उसे आँख तरेर कर मना किया तो वो बोली- “अरे गाण्ड मरवाने का मजा ये लेंगी, तो चूम चाटकर साफ कौन करेगा…” 
तभी सुनील ने मेरे चूतड़ों पर कस-कस के कई दोहथ्थड़ मारे, इत्ते जोर से की मेरे आँखों में गंसू आ गये। और उसने जोर से मेरी चोटी पकड़कर खींचा, और बोला- “सच सच बोल गाण्ड मराने में मज़ा आ रहा है की नहीं…” 


“हां हां आ रहा है…” मुझे बोलना ही पड़ा। 
“तो फिर बोलती क्यों नहीं…” 


सच कहूं, मेरी समझ में नहीं आ रहा था अब मुझे कभी-कभी दर्द में भी अजब मज़ा मिलता था, कल जब दिनेश ने चोदते समय कीचड़ में जमकर मेरी चूचियां रगड़ीं थीं और आज जब इसने मेरे चूतड़ो पर मारा- “हां हां मेरे जानम मार लो मेरी गाण्ड, बहुत मजा आ रहा है ओह हां हां… डाल ले… मारो मेरी गाण्ड… कस के मारो पेल दो अपना पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में…” और सच में मैं अब उसके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी। काफी देर चोदने के बाद अजय और सुनील साथ-साथ ही झड़े। 




किसी तरह चन्दा का सहारा लेकर मैं घर लौटी।
 
वापस .... घर 





तभी सुनील ने मेरे चूतड़ों पर कस-कस के कई दोहथ्थड़ मारे, इत्ते जोर से की मेरे आँखों में गंसू आ गये। और उसने जोर से मेरी चोटी पकड़कर खींचा, और बोला-

“सच सच बोल गाण्ड मराने में मज़ा आ रहा है की नहीं…” 


“हां हां आ रहा है…” मुझे बोलना ही पड़ा। 


“तो फिर बोलती क्यों नहीं…” 


सच कहूं, मेरी समझ में नहीं आ रहा था अब मुझे कभी-कभी दर्द में भी अजब मज़ा मिलता था, कल जब दिनेश ने चोदते समय कीचड़ में जमकर मेरी चूचियां रगड़ीं थीं और आज जब इसने मेरे चूतड़ो पर मारा- 


“हां हां मेरे जानम मार लो मेरी गाण्ड, बहुत मजा आ रहा है ओह हां हां… डाल ले… मारो मेरी गाण्ड… कस के मारो पेल दो अपना पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में…” 


और सच में मैं अब उसके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी। काफी देर चोदने के बाद अजय और सुनील साथ-साथ ही झड़े। 


किसी तरह चन्दा का सहारा लेकर मैं घर लौटी। 



...............



मैं बता नहीं सकती कितना दर्द हो रहा था। किसी तरह चंदा का हाथ पकड़ के मैं चल रही थी।


“" साल्ले सुनील की बहन का भोसड़ा मारूं, उस छिनार नीरू की गांड में , अगर जाने के पहले उस की गांड न फ़ड़वायी तो कहना , तब पता चलेगा की कच्ची गांड में ठेलने में क्या आग लगती है , उउउ ओह्ह्ह्ह्ह्ह इइइइइइइइ , फट गयीईई। " मेरी बड़ी बड़ी आँखों से आंसू छलक पड़े। 

लग रहा था कोई लकड़ी की फांस , गांड के अंदर चुभ गयी है। 

चंदा कभी मुस्करा रही थी ,कभी समझा रही थी। 

" अरे एकदम मैं भी साथ दूंगी तेरा बिन्नो , उस कच्चे टिकोरे का मजा लेने में। मिल के लेंगे उसकी। " उसने मेरा मन रखा.

सुनील की बहना मुझसे भी दो साल छोटी थी ,अभी नौवें में गयी ही थी। बस छोटे से कच्चे टिकोरे , ... जब नदी नहाने हम सब गए थे तो पूरबी के साथ मिल के हमने थोड़ा रगड़ मसल की थी और नीचे भी हाथ लगाया था , रेशमी झांटे बस अभी निकलनी शुरू ही हुयी थीं। 

फिर चिढ़ाते हुए उस चंदा की बच्ची ने पूछा , क्यों ज्यादा दर्द हो रहा है क्या। 

मुझे बहुत गुस्सा आया ,मन तो किया एक हाथ लगाउं कस के , और उस चक्कर में गिरती गिरती बची। 

एक पतली सी मेंड़ पे हम दोनों चल रहे थे , एक पैर आगे रखो और दूसरा उसके ठीक पीछे , ऐसी संकरी। एक ओर आदमी से भी डेढ़ गुने ऊँचे गन्ने के खेत और दूसरी और अरहर के घने खेत और साथ में पानी बरसने से खेत गीला भी था.

चंदा ने एक हाथ से मेरा हाथ पकड़ा और दूसरे से कमर और किसी तरह लड़खड़ाते मैं बची। 



लेकिन उस चक्कर में पिछवाड़े ऐसी चिलख उठी की बस मैं बिलबिला उठी , और सारा गुस्सा चंदा पर,

" जबरन फैला के अपने यार का पूरा ठेलवाया , उसे चढ़ा के और अब दर्द पूछ रही हो। " मैं दर्द से तड़पती बोल उठी। 

लेकिन चंदा कौन कम थी , पीछे से मेरे चूतड़ सहलाती बोली ,

" अरे मेरी नानी , तो परेशान काहें होती है अगली बार अपने यार से भी ठेलवा लेना , वो भी कौन तेरे पिछवाड़े का कम रसिया है। गांड के दर्द का इलाज यही है , चार पांच बार कस कस के मरवा लेगी न तो खुद तेरी गांड में कीड़े काटेंगे। तब मैं पूछूंगी तुझसे। "

बात चंदा की भी एकदम गलत नहीं थी। 

दर्द तो हो रहा था , लेकिन सुनील का सफ़ेद रस जब लसलसा गांड की दरार के बीच लगता तो एकदम से मजे से मैं गिनगीना उठती। अपनी पूरी मलाई उसने मेरे अंदर ही छोड़ दी और अभी भी ,... 

अरहर के खेत अब खत्म हो गए थे , एक ओर हरी कालीन की तरह धान के खेत थे और दूसरी ओर अभी भी गन्ने के खेत। हमारा घर अब पास आ गया था , एकछोटी सी अमराई बस उसके बगल से वो कच्चा रास्ता था जो घर के ठीक पीछे ,

जिस तरह से सहारा लेकर कभी लंगड़ा के मैं चल रही थी और हर चार पांच कदम के बाद जो मैं चिलख उठती बस मन यही कह रहा था ,मैं बार बार मना रही थी की बस घर पे भाभी , या भाभी की माँ न हों। 

कोई भी होगा तो क्या बोलुँगी मैं ,किसी तरह कोशिश कर के सीधे चलने की कोशिश कर रही थी पर दो चार कदम के बाद , चीख रोकते रोकते भी , ... 


तबतक मेरा ध्यान चंदा की ओर गया.वो कुछ बोल रही थी। 

गन्ने के घने खेतों के बीच एक बहुत पतली सी पगडंडी सी थी बल्कि मेंड़ ही , बहुत ध्यान से देखने पे ही दिखती थी। चंदा उधर मुड़ गयी थी और बोल रही थी ,

" अब तो घर आ गया है तू निकल ,मैं चलती हूँ। "


मुझे खेत के उस पार कोई लड़का सा दिखा लेकिन अगले पल वो आँख से ओझल हो गया था , हाँ ये लग रहा था की ये पतला रास्ता खेत के उस पार की किसी बस्ती की ओर जा रहा था , जहां ८-१० कच्चे घर बने थे। 


मेरे कुछ जवाब देने के पहले ही चंदा उस गन्ने के खेत में गायब थी। बस गन्नों के हलके हलके हिलने से लग रहा था की वो उसी और जा रही थी ,जिधर वो बस्ती थी। 

देखते देखते चंदा भी उन बड़े गन्ने के खेतों में खो गयी और मैं घर के रास्ते पे।


किसी तरह रुकते रुकाते मैं घर के सामने पहुँच गयी। 

दरवाजा बंद था। दो पल मैं सुस्ताई , गहरी सांस ली और दरवाजा खटखटाया बस यह सोचते की भाभी लोग न हों। 

दरवाजा बंसती ने खोला। 
 
बसंती 



दरवाजा बंद था। दो पल मैं सुस्ताई , गहरी सांस ली और दरवाजा खटखटाया बस यह सोचते की भाभी लोग न हों। 

दरवाजा बंसती ने खोला। 
मैंने कुछ घबड़ाते ,सम्हलते ,सिमटते ,घर के अंदर देखा। 

अंदर का पक्का हिस्सा जिधर चंपा भाभी , भाभी की माँ रहती थी ,बंद था। मैंने कुछ राहत की सांस ली और बाकी राहत बसंती की बात से मिल गयी की भाभी और उनकी माँ रवी के यहाँ गयी हैं और चंपा भाभी ,कामिनी भाभी के साथ उनके घर। बसंती को बोला गया है की मुझे खाना खिला के , थोड़ी देर बाद शाम होते होते आम के बाग़ में ले आये वहीँ जहाँ हम लोग पिछली बार झूला झूलने गए थे। 


बंसती ने अंदर से दरवाजा बंद कर दिया था। 

आसमान में सावन भादों के धूप छाँह की लुका सजीपी छिपी चल रही थी। 

आँगन के पेड़ के ठीक ऊपर किसी कटी पतंग की तरह एक घने काले बादल का टुकड़ा अटक गया था ,जिसकी परछाईं में आँगन में थोड़ा थोड़ा अँधेरा छाया था।


आँगन में एक चटाई जमीन पे बिछी थी और बगल में एक कटोरी में कड़वा तेल रखा था ,लगता था बसंती तेल मालिश कर रही थी। 

एक पल में मेरी आँखों ने आसमान में उड़ते बादलों की पांत से लेकर घर में पसरे सन्नाटे तक सब नाप लिया और ये भी अंदाज लगा लिया की घर में सिर्फ हम दोनों हैं और शाम तक कोई आने वाला भी नहीं है। 

तब तक बसंती ने जोर से मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया।

उफ़ मैंने बसंती के बारे में पहले बताया था की नहीं , मेरा मतलब देह रूप के बारे में। चलिए अगर बताया होगा भी तो एक बार फिर से बता देती हूँ ,

उम्र में मेरी भाभी की समौरिया रही होगी या शायद एकाध साल बड़ी, २५ -२६ की और चंपा भाभी से एकाध साल छोटी। लेकिन मजाक करने में दोनों का नंबर काटती थी। लम्बाई मेरे बराबर ही रही होगी , ५-५ या ५-६ , बहुत गोरी तो नहीं , लेकिन सांवली भी नहीं , जो गेंहुआ कहते हैं न बस वैसा। लेकिन देह थी उनकी खूब भरी पूरी लेकिन एक छटांक भी मांस फालतू नहीं , सब एक दम सही जगह पे। दीर्घ नितम्बा और कसी कसी चोली से छलकते गदराये जोबन , पतली कमर और एकदम गठी गठी देह , जैसे काम करने वालियों की होती है , भरी भरी पिंडलियाँ। 

किसी तरह अपने दर्द को मैंने रोक रखा था लेकिन जैसे ही बसंती ने अंकवार में पकड़ के दबाया , एक बार फिर से पिछवाड़े जोर से चिलख उठी , और बसंती समझ गयी , बोली। 
" क्यों बिन्नो , लगता है पिछवाड़े जम के कुदाल चली है। "

और जोर से उसके हाथ ने मेरे चूतड़ को दबोच लिया , एक ऊँगली सीधे कसी शलवार की के बीच पिछवाड़े की दरार में घुस गयी। 

और अबकी चिलख जो उठी तो मैं चीख नहीं दबा पायी। 

" अरे थोड़ी देर लेट जाओ ,कुछ देर में दर्द कम हो जाएगा। पहली बार मरवाने में होता है " खिलखिलाते हुए बसंती बोली। 

मैं जैसे ही चटाई पर बैठी एक बार फिर जैसे ही मेरे नितम्ब फर्श पे लगे , जोर से फिर दर्द की लहर उठी 


" अरे तुम तो एकदमै नौसिखिया हो , पेट के बल लेटो , तनी एहपर कुछ देर तक कौनो जोर मत पड़े दो , आराम मिल जाएगा। "

और मैं चट्ट से पट हो गयी. सच में दुखते पिछवाड़े को आराम मिल गया। 

बसंती के एक हाथ मेरे पेट के नीचे रखा और जब तक मैं समझूँ समझूँ , मेरी शलवार का नाड़ा खुल चूका था और दोनों हाथों से उसने शलवार सरका के घुटने तक। 

मैंने कुछ ना नुकुर किया , लेकिन हम दोनों जानते थे उसमें कोई दम नहीं थी। और कोई पहली बार तो मेरे कपडे बसंती ने उठाये नहीं , सुबह सुबह मेहंदी लगाते हुए कुर्ता उठा के मेरे जोबन पे , चंपा भाभी के सामने और उसके पहले जब वो मुझे उठाने गयी थी सीधे मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डाल के अच्छी तरह मेरी चुन्मुनिया को रगड़ा मसला था.
कुछ देर में कुरता भी काफी ऊपर सरक चूका था लेकिन एक बात बसंती की सही थी जब ठंडी हवा मेरे खुले चूतड़ों पे पड़ी तो धीरे धीरे दर्द उड़ने लगा। 

बसंती की हथेली मेरे भरे भरे गोरे गुदाज चूतड़ों को सहला रही थी दबोच रही थी। 



और मुझे न जाने कैसा कैसा लग रहा था।
 
मस्ती 






बसंती की हथेली मेरे भरे भरे गोरे गुदाज चूतड़ों को सहला रही थी दबोच रही थी। 
और मुझे न जाने कैसा कैसा लग रहा था।


बस मस्ती से आँखे मुंदी जा रही थी , लग रहा था मैं बिना पंखो के बादलों के बीच उड़ रही हूँ। 
दर्द कहीं कपूर की तरह उड़ गया था। 

बसंती की उँगलियाँ बस ,.... 

उईईईईईई , मैं जोर से चीखी। 

" नहीं भौजी उधर नहीं , " दर्द से कराहते मैं बोली। 

बसंती ने दोनों अंगूठे से पिछवाड़े का छेद फैला के पूरी ताकत से मंझली ऊँगली ठेल दी थी। 
उसकी कलाई के पूरे जोर के बावजूद मुश्किल से पहला पोर घुस पाया था। 

बहुत कसी है अभी , बसंती बोली और फिर ऊँगली निकाल के जब तक मैं सम्हलूं सीधे मेरे मुंह में। 

" चल तू मना कर रही थी तो उधर नहीं तो इधर , ज़रा कस कस के चूसो अबकी पूरी ऊँगली घुसाऊँगी। "

और मैं जोर जोर से चूसने लगी। अभी कुछ देर पहले ही तो अजय का इत्ता मोटा लम्बा चूसा था ,अचानक याद आया की ये ऊँगली कहाँ से निकली है अभी लेकिन बंसती से पार पाना आसान है क्या। 

मैं गों गों करती रही उसने जड़ तक ऊँगली, ठूस दी। 

और जब निकाली तो फिर जड़ तक सीधे गांड में ,

और अबकी मैं और जोर से चीखी , लेकिन बंसती बोली ,

" तेरी गांड मारने वाले ने ठीक से नहीं मारी ,रहम दिखा दी। "



और फिर दूसरी ऊँगली भी घुसाने की कोशिश करने लगी।
बसंती भौजी की कोशिश और नाकमयाब हो ,ऐसा हो नहीं सकता। चाहे लाख चीख चिल्लाहट मचे ,

और कुछ ही देर बसंती की एक नहीं दो उँगलियाँ मेरी कसी गांड के अंदर ,पूरी नहीं सिर्फ दो पोर। 

जितना सुनील के मोटा सुपाड़ा पेलने पे दर्द हुआ था उससे कम नहीं हुआ , और मैं चीखी भी उतनी ही। 

लेकिन बसंती पे कुछ फरक न पड़ा , वो गरियाती रही , जिसने मेरी गांड मारी उसको। 

" अरे लागत है बहुत हलके हलके गांड मारी है उसने तेरी , हचक हचक के जबतक लौंडा गांड में न ठेले ,"

बात उसकी सही थी , शुरू में तो मेरे चीखने चिल्लाने से सुनील ने आधे लंड से ही , वो तो साल्ली छिनार चंदा , उसने गाली दे के , जोश दिला के सुनील का पूरा लंड पेलवाया। 
" बिना बेरहमी और जबरदस्ती के कौनो क गांड पहली बार नहीं मारी जा सकती। और तुम्हारी ऐसी मस्त गांड बनी ही मारने के लिए है। " बसंती गोल गोल दोनों उंगलिया घुमा रही थी और बोले जा रही थी।
" अरे गांड मरवावे का असल मजा तो तब है तू खुदै गांड फैला के मोटे खूंटे पे बैठ जाओ। लेकिन ई तब होइ जब हचक हचक के कौनो मरदन से तब असल में गांड मरौवल का मजा आई। देखा चोदे और गांड मारे में बहुत फरक है ,चोदे के समय धक्के पे धक्का , जोर जोर से तोहार जइसन कच्ची कली क चूत फटी। लेकिन गांड मारें में एक बार डाल के पूरी ताकत से ठेलना पड़ता है। जब तक गांड क छल्ला न पार हो जाय. "

बसंती की बात में दम था। 

लेकिन तब तक उसकी दोनों उँगलियाँ मेरी गांड के छल्ले को पार कर चुकी थीं और उसने कैंची की तरह उसे फैला दिया। और गांड का छल्ला उतना फ़ैल गया जितना सुनील के मोटे लंड ने भी नहीं फैलाया था। और यही नही उन फैली खुली उँगलियों को वो धीरे धीरे आगे पीछे कर रही थी। 

और मैं जोर जोर से चीख रही थी। 

लेकिन बसंती सिर्फ दर्द देना नहीं जानती थी बल्कि मजे देना भी , और मौके का फायदा उठाना भी /

जब मैं दर्द से दुहरी हो रही थी उसने मेरा कुर्ता कंधे तक उठा दिया और अब मेरे गोल गोल गुदाज उभार भी खुले हुए थे। 

एक हाथ उन खुले उभारों को कभी पकड़ता ,कभी सहलाता ,कभी दबाता। 

कभी निपल जोर से पकड़ के वो पुल कर देती। 

और कब दर्द मजे में बदल गया मुझे पता ही नहीं चला। साथ में नीचे की मंजिल पे अब दुहरा हमला हो रहा था। एक हाथ की हथेली मेरी चूत पे रगड़घिस्स कर रही थी और दूसरे हाथ का हमला मेरे पिछवाड़े बदस्तूर जारी था। 

गांड में घुसी अंगुलिया गोल गोल घूम रही थीं , करोच रही थी 

और जब वो वहां से निकली तो 

सीधे नीचे वाले मुंह से ऊपर वाले मुंह में ,... 


और हलक तक। बसंती से कौन जीत सका है आज तक। 


और बात बदलने में भी और केयर करने दोनों में बसंती नंबर एक। 

बोली ,चलो अब थोड़ा मालिश कर दूँ , सारा दर्द एकदम गायब हो जाएगा। फिर खाना।
 
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