hotaks444
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चंपा भाभी
अब मेरी देह बुरी तरह टूट रही थी।
पलंग पर लेटते ही मुझे पता नहीं क्यों रवीन्द्र की याद आ रही थी।
मुझे अचानक याद आया, चन्दा ने जो कहा था, रवीन्द्र के बारे में, उसका… उसने जितना देखा है उन सबसे ज्यादा… और उसने दिनेश का तो देखा ही है… तो क्या रवीन्द्र का दिनेश से भी ज्यादा… उफ़… आज तो मेरी जान ही निकल गयी थी और रवीन्द्र… यह सोचते सोचते मैं सो गयी।
सपने में भी, रवीन्द्र मुझे तंग करता रहा।
जब मैं उठी तो शाम ढलने लगी थी। बाहर निकलकर मैंने देखा तो भाभी लोग अभी भी नहीं आयी थीं। मैंने किचेन में जाकर एक गिलास खूब गरम चाय बनायी और अपने कमरे की चौखट पर बैठकर पीने लगी। बादल लगभग छट गये थे, आसमान धुला-धुला सा लगा रहा था।
ढलते सूरज की किरणों से आकाश सुरमई सा हो रहा था, बादलों के किनारों से लगाकर इतने रंग बिखर रहे थे कि लगा रहा था कि प्रकृति में कितने रंग हैं। जहां हम झूला झूल रहे थे, उस नीम के पेड़ की ओर मैंने देखा, जैसे किसी बच्चे की पतंग झाड़ पर अटक जाय, उसके ऊपर बादल का एक शोख टुकड़ा अटका हुआ था।
तभी कहीं से राकी आकर मेरे पास बैठ आया और मेरे पैर चाटने लगा। मेरे मन में वही सब बातें घूमने लगीं जो मुझे चिढ़ाते हुए, चम्पा भाभी कहतीं थीं… उस दिन चन्दा कह रह थी। लगता है, राकी भी वही कुछ सोच रहा था, मेरे पैर चाटते चाटते, अब उसकी जीभ मेरे गोरे-गोरे घुटनों तक पहुँच गयी थी। मैं वही टाप और स्कर्ट पहने हुए थी जो दिनेश के आने पे मैंने पहन रखा था। कुछ सोचकर मैं मुश्कुरायी।
राकी को प्यार से सहलाते, पुचकारते, मैंने अपनी, जांघें थोड़ी फैलायीं और स्कर्ट थोड़ी ऊपर की, जैसे मैंने दिनेश को सिड्यूस करने के लिये किया था।
उसका असर भी वैसे ही हुआ, बल्की उससे भी ज्यादा, मेरी निगाहें जब नीचे आयीं तो… मैं विश्वास नहीं कर सकती… उसका लाल उत्तेजित शिश्न काफी बाहर निकल अया था। और अब वह मेरी जांघों को चाट रहा था।
मेरी शरारत बढ़ती ही जा रही थी।
मैंने हिम्मत करके स्कर्ट काफी ऊपर कर ली और जांघें भी पूरी फैला दीं। अ
ब तो राकी… जैसे मेरी चूत को घूर रहा हो।
मेरे निपल भी कड़े हो रहे थे लेकीन मैं चाय, दोनों जांघें फैला के आराम से पी रही थी। तभी सांकल बजी और झट से घबड़ाकर मैंने अपनी स्कर्ट ठीक की और जाकर दरवाजा खोला।
चम्पा भाभी थीं अकेले।
“क्यों भाभी नहीं आयीं कहां रह गयीं। वो…”
“अपने भैया से चुदवा रही हैं…” अपने अंदाज में हँसकर चम्पा भाभी बोली।
पता चला की रास्ते में चमेली भाभी और उनके पति मिल गये थे तो भाभी वहीं चली गयीं। चम्पा भाभी भी चौखट पर बैठ गयीं थी और मैं भी।
चाय के गिलास को अपने होंठों से लगाकर सेक्सी अंदाज में भाभी ने पूछा- “ले लूं…”
मेरे चेहरे को मुश्कुराहट दौड़ गयी और मैंने कहा- “एकदम…”
तभी उनकी निगाह, नीचे बैठे राकी पर और उसके खड़े शिश्न पर पड़ गयी- “अच्छा, तो इससे नैन मटक्का हो रहा था…” चम्पा भाभी ने मुझे छेड़ा।
उनका हाथ मेरी गोरी जांघ पर था। उन्होंने जैसे उसे सहलाना शुरू किया, मुझे लगा मैं पिघल जाऊँगी, मेरी जांघें अपने आप फैल गयीं।
उन्होंने सहलाते-सहलाते मेरी स्कर्ट को पूरी कमर तक उठा दिया और जैसे, राकी को दिखाकर मेरी रसीली चूत एक झपट्टे में पकड़ लिया।
पहले तो वह उसे सहलाती रहीं फिर उनकी दो उंगलियां मेरे भगोष्ठों को बाहर से प्यार से रगड़ने लगीं। मेरी चूत अच्छी तरह गीली हो रही थी। भाभी ने एक उंगली धीरे से मेरी चूत में घुसा दी और आगे पीछे करने लगी।
जैसे वो राकी से बोल रहीं हों, उसे दिखाकर, भाभी कह रह थीं-
“क्यों, देख ले ठीक से, पसंद आया माल, मुझे मालूम है… जैसे तू जीभ निकाल रहा है, ठीक है… दिलवाऊँगीं तुझे अबकी कातिक में। हां एक बार ये लेगा न… तो बाकी सब कुतिया भूल जायेगा, देशी, बिलायती सभी… हां हां सिर्फ एक बार नहीं रोज, चाहे जितनी बार… अपना माल है…” भाभी की उंगली अब खूब तेजी से मेरी बुर में जा रही थी।
और राकी भी… वह इतना नजदीक आ गया था कि उसकी सांस मुझे अपनी बुर पे महसूस हो रही थी और इससे मैं और उत्तेजित हो रही थी।
मेरी निगाह, ये जानते हुये भी कि भाभी मुझे ध्यान से देख रही हैं, बड़ी बेशरमी से, राकी के अब खूब मोटे, लंबे, पूरी तरह बाहर निकले शिश्न पर गड़ी थी।
“पर भाभी… इतना बड़ा… मोटा… कैसे जायेगा…” मैंने सहमते हुये पूछा।
“अरे पगली, ये जो मुन्ना हुआ है तेरी भाभी के कहां से हुआ है, उसकी बुर से, या मुँह से… या कान से…” भाभी ने हड़काते हुये पूछा।
“मैं क्या जानू, मेरा मतलब है, मैंने देखा थोड़े ही… ठीक है भाभी उनकी बुर से ही निकला है…” मैंने सहमते हुए बोला।
“और कितना बड़ा है… कितना वजन था कितना लंबा रहा होगा तू तो थी ना वहां…” भाभी ने दूसरा सवाल दागा।
“हां भाभी, 4 किलो से थोड़ा ज्यादा और एक डेढ फीट का तो होगा ही…” मैंने स्वीकार किया।
“तो मेरी प्यारी गुड्डी रानी, जिस बुर से 4 किलो और डेढ फीट का बच्चा निकल सकता है तो उसमें एक फीट का लण्ड भी जा सकता है, तू चूत रानी की महिमा जानती नहीं…”
और फिर मेरे कान में बोलीं-
“अरे कुत्ता क्या, अगर तू हिम्मत करे तो गदहे का भी लण्ड अंदर ले सकती है और मैं मजाक नहीं कर रही, बस ट्रेनिंग चाहिये और हिम्मत, ट्रेनिंग मैं करवा दूंगी, और हिम्मत तो तेरे अंदर है ही…”
अपनी बात जैसे सिद्ध करने के लिये, अब उन्होंने दो उंगलियां मेरी बुर में डाल दी थीं और फुल स्पीड में चुदाई कर रहीं थीं। पर मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था।
भाभी से मैंने खुलकर पूछ लिया- “पर भाभी… लड़की की बात और है… और वो कैसे… कर सकता है…”
“अरे, घबड़ा क्यों रही है, बड़ी आसानी से करवा दूंगी पर इसका मतलब है कि मन तेरा भी कर रहा है… अरे इसमें क्या है, बस चारों पैरों पर, कुतिया की तरह खड़ी हो जाना, (मुझे याद आया, दिनेश ने मुझे इसी तरह चोदा था), टांगें अच्छी तरह फैला लो, फिर ये, (राकी की ओर उन्होंने इशारा किया) पास आकर तेरी बुर चाटेगा, और अगर एक बार इसने चाट लिया तो तुम बिना चुदे रह नहीं सकती, एकदम गीली हो जाओगी।
जब अपनी मोटी खुरदुरी जीभ से चाटेगा ना… उतना मजा तो किसी भी मर्द से चुदाई में नहीं आता जित्ता चटवाने में आता है, और फिर जैसे कोई मर्द चोदता है, तुम्हारी पीठ पर चढ़कर ये अपना लण्ड डाल देगा। इसका पहला धक्का ही इतना तगड़ा होता है… इसलिये आंगन में वह चुल्ला देख रही हो ना, गले की चेन को हम लोग उसी में बांध देते हैं जिससे कोई छुड़ा ना सके। बस एक बार जब तुमने पहला धक्का सह लिया ना, और उसका लण्ड थोड़ा भी अंदर घुस गया ना, तो फिर क्या… आगे सब राकी करेगा, तुम्हें कुछ नहीं करना।
तुम लाख चूतड़ पटको, लण्ड बाहर नहीं निकलने वाला… काफी देर चोदने के बाद उसका लण्ड फूलकर, गांठ बन जायेगा, तुमने देखा होगा कितनी बिचारी कुतियों को… जब वह फँस जाता है ना… बस असली मजा वही है… कोई मर्द कितनी देर तक करेगा 15 मिनट, 20 मिनट।
पर राकी तो गांठ बनने के बाद कम से कम एक घंटे के पहले नहीं छोड़ता… तो तुम्हें कुछ नहीं करना… बस तुम कातिक में आ जाओ…”
भाभी की इस बात से अब मुझे लगा गया था कि ये सिर्फ मज़ाक नहीं है। उनकी उंगली अब पूरी तेजी से सटासट-सटासट, मेरी बुर में आ जा रही थी और राकी के लण्ड की टिप पे मैं कुछ गीला देख रही थी। भाभी ने फिर कैंची ऐसी अपनी उंगली फैला दी और मैं उचक गयी, मेरी चूत पूरी तरह खुल गयी थी।
उसे राकी को दिखाते हुये, वो बोलीं-
“देख कैसी मस्त गुलाबी चूत है, इस माल का पूरी ताकत से चोदना तेरी गुलाम हो जायेगी…”
और उचकने से भाभी ने अपनी हथेली मेरे चूतड़ के नीचे कर दी। थोड़ी देर के लिये उन्होंने उंगली निकालकर मेरा गीला पानी मेरे पीछे के छेद पे लगाना शुरू कर दिया।
“नहीं भाभी उधर नहीं…” मैं चिहुंक गयी।
अब मेरी देह बुरी तरह टूट रही थी।
पलंग पर लेटते ही मुझे पता नहीं क्यों रवीन्द्र की याद आ रही थी।
मुझे अचानक याद आया, चन्दा ने जो कहा था, रवीन्द्र के बारे में, उसका… उसने जितना देखा है उन सबसे ज्यादा… और उसने दिनेश का तो देखा ही है… तो क्या रवीन्द्र का दिनेश से भी ज्यादा… उफ़… आज तो मेरी जान ही निकल गयी थी और रवीन्द्र… यह सोचते सोचते मैं सो गयी।
सपने में भी, रवीन्द्र मुझे तंग करता रहा।
जब मैं उठी तो शाम ढलने लगी थी। बाहर निकलकर मैंने देखा तो भाभी लोग अभी भी नहीं आयी थीं। मैंने किचेन में जाकर एक गिलास खूब गरम चाय बनायी और अपने कमरे की चौखट पर बैठकर पीने लगी। बादल लगभग छट गये थे, आसमान धुला-धुला सा लगा रहा था।
ढलते सूरज की किरणों से आकाश सुरमई सा हो रहा था, बादलों के किनारों से लगाकर इतने रंग बिखर रहे थे कि लगा रहा था कि प्रकृति में कितने रंग हैं। जहां हम झूला झूल रहे थे, उस नीम के पेड़ की ओर मैंने देखा, जैसे किसी बच्चे की पतंग झाड़ पर अटक जाय, उसके ऊपर बादल का एक शोख टुकड़ा अटका हुआ था।
तभी कहीं से राकी आकर मेरे पास बैठ आया और मेरे पैर चाटने लगा। मेरे मन में वही सब बातें घूमने लगीं जो मुझे चिढ़ाते हुए, चम्पा भाभी कहतीं थीं… उस दिन चन्दा कह रह थी। लगता है, राकी भी वही कुछ सोच रहा था, मेरे पैर चाटते चाटते, अब उसकी जीभ मेरे गोरे-गोरे घुटनों तक पहुँच गयी थी। मैं वही टाप और स्कर्ट पहने हुए थी जो दिनेश के आने पे मैंने पहन रखा था। कुछ सोचकर मैं मुश्कुरायी।
राकी को प्यार से सहलाते, पुचकारते, मैंने अपनी, जांघें थोड़ी फैलायीं और स्कर्ट थोड़ी ऊपर की, जैसे मैंने दिनेश को सिड्यूस करने के लिये किया था।
उसका असर भी वैसे ही हुआ, बल्की उससे भी ज्यादा, मेरी निगाहें जब नीचे आयीं तो… मैं विश्वास नहीं कर सकती… उसका लाल उत्तेजित शिश्न काफी बाहर निकल अया था। और अब वह मेरी जांघों को चाट रहा था।
मेरी शरारत बढ़ती ही जा रही थी।
मैंने हिम्मत करके स्कर्ट काफी ऊपर कर ली और जांघें भी पूरी फैला दीं। अ
ब तो राकी… जैसे मेरी चूत को घूर रहा हो।
मेरे निपल भी कड़े हो रहे थे लेकीन मैं चाय, दोनों जांघें फैला के आराम से पी रही थी। तभी सांकल बजी और झट से घबड़ाकर मैंने अपनी स्कर्ट ठीक की और जाकर दरवाजा खोला।
चम्पा भाभी थीं अकेले।
“क्यों भाभी नहीं आयीं कहां रह गयीं। वो…”
“अपने भैया से चुदवा रही हैं…” अपने अंदाज में हँसकर चम्पा भाभी बोली।
पता चला की रास्ते में चमेली भाभी और उनके पति मिल गये थे तो भाभी वहीं चली गयीं। चम्पा भाभी भी चौखट पर बैठ गयीं थी और मैं भी।
चाय के गिलास को अपने होंठों से लगाकर सेक्सी अंदाज में भाभी ने पूछा- “ले लूं…”
मेरे चेहरे को मुश्कुराहट दौड़ गयी और मैंने कहा- “एकदम…”
तभी उनकी निगाह, नीचे बैठे राकी पर और उसके खड़े शिश्न पर पड़ गयी- “अच्छा, तो इससे नैन मटक्का हो रहा था…” चम्पा भाभी ने मुझे छेड़ा।
उनका हाथ मेरी गोरी जांघ पर था। उन्होंने जैसे उसे सहलाना शुरू किया, मुझे लगा मैं पिघल जाऊँगी, मेरी जांघें अपने आप फैल गयीं।
उन्होंने सहलाते-सहलाते मेरी स्कर्ट को पूरी कमर तक उठा दिया और जैसे, राकी को दिखाकर मेरी रसीली चूत एक झपट्टे में पकड़ लिया।
पहले तो वह उसे सहलाती रहीं फिर उनकी दो उंगलियां मेरे भगोष्ठों को बाहर से प्यार से रगड़ने लगीं। मेरी चूत अच्छी तरह गीली हो रही थी। भाभी ने एक उंगली धीरे से मेरी चूत में घुसा दी और आगे पीछे करने लगी।
जैसे वो राकी से बोल रहीं हों, उसे दिखाकर, भाभी कह रह थीं-
“क्यों, देख ले ठीक से, पसंद आया माल, मुझे मालूम है… जैसे तू जीभ निकाल रहा है, ठीक है… दिलवाऊँगीं तुझे अबकी कातिक में। हां एक बार ये लेगा न… तो बाकी सब कुतिया भूल जायेगा, देशी, बिलायती सभी… हां हां सिर्फ एक बार नहीं रोज, चाहे जितनी बार… अपना माल है…” भाभी की उंगली अब खूब तेजी से मेरी बुर में जा रही थी।
और राकी भी… वह इतना नजदीक आ गया था कि उसकी सांस मुझे अपनी बुर पे महसूस हो रही थी और इससे मैं और उत्तेजित हो रही थी।
मेरी निगाह, ये जानते हुये भी कि भाभी मुझे ध्यान से देख रही हैं, बड़ी बेशरमी से, राकी के अब खूब मोटे, लंबे, पूरी तरह बाहर निकले शिश्न पर गड़ी थी।
“पर भाभी… इतना बड़ा… मोटा… कैसे जायेगा…” मैंने सहमते हुये पूछा।
“अरे पगली, ये जो मुन्ना हुआ है तेरी भाभी के कहां से हुआ है, उसकी बुर से, या मुँह से… या कान से…” भाभी ने हड़काते हुये पूछा।
“मैं क्या जानू, मेरा मतलब है, मैंने देखा थोड़े ही… ठीक है भाभी उनकी बुर से ही निकला है…” मैंने सहमते हुए बोला।
“और कितना बड़ा है… कितना वजन था कितना लंबा रहा होगा तू तो थी ना वहां…” भाभी ने दूसरा सवाल दागा।
“हां भाभी, 4 किलो से थोड़ा ज्यादा और एक डेढ फीट का तो होगा ही…” मैंने स्वीकार किया।
“तो मेरी प्यारी गुड्डी रानी, जिस बुर से 4 किलो और डेढ फीट का बच्चा निकल सकता है तो उसमें एक फीट का लण्ड भी जा सकता है, तू चूत रानी की महिमा जानती नहीं…”
और फिर मेरे कान में बोलीं-
“अरे कुत्ता क्या, अगर तू हिम्मत करे तो गदहे का भी लण्ड अंदर ले सकती है और मैं मजाक नहीं कर रही, बस ट्रेनिंग चाहिये और हिम्मत, ट्रेनिंग मैं करवा दूंगी, और हिम्मत तो तेरे अंदर है ही…”
अपनी बात जैसे सिद्ध करने के लिये, अब उन्होंने दो उंगलियां मेरी बुर में डाल दी थीं और फुल स्पीड में चुदाई कर रहीं थीं। पर मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था।
भाभी से मैंने खुलकर पूछ लिया- “पर भाभी… लड़की की बात और है… और वो कैसे… कर सकता है…”
“अरे, घबड़ा क्यों रही है, बड़ी आसानी से करवा दूंगी पर इसका मतलब है कि मन तेरा भी कर रहा है… अरे इसमें क्या है, बस चारों पैरों पर, कुतिया की तरह खड़ी हो जाना, (मुझे याद आया, दिनेश ने मुझे इसी तरह चोदा था), टांगें अच्छी तरह फैला लो, फिर ये, (राकी की ओर उन्होंने इशारा किया) पास आकर तेरी बुर चाटेगा, और अगर एक बार इसने चाट लिया तो तुम बिना चुदे रह नहीं सकती, एकदम गीली हो जाओगी।
जब अपनी मोटी खुरदुरी जीभ से चाटेगा ना… उतना मजा तो किसी भी मर्द से चुदाई में नहीं आता जित्ता चटवाने में आता है, और फिर जैसे कोई मर्द चोदता है, तुम्हारी पीठ पर चढ़कर ये अपना लण्ड डाल देगा। इसका पहला धक्का ही इतना तगड़ा होता है… इसलिये आंगन में वह चुल्ला देख रही हो ना, गले की चेन को हम लोग उसी में बांध देते हैं जिससे कोई छुड़ा ना सके। बस एक बार जब तुमने पहला धक्का सह लिया ना, और उसका लण्ड थोड़ा भी अंदर घुस गया ना, तो फिर क्या… आगे सब राकी करेगा, तुम्हें कुछ नहीं करना।
तुम लाख चूतड़ पटको, लण्ड बाहर नहीं निकलने वाला… काफी देर चोदने के बाद उसका लण्ड फूलकर, गांठ बन जायेगा, तुमने देखा होगा कितनी बिचारी कुतियों को… जब वह फँस जाता है ना… बस असली मजा वही है… कोई मर्द कितनी देर तक करेगा 15 मिनट, 20 मिनट।
पर राकी तो गांठ बनने के बाद कम से कम एक घंटे के पहले नहीं छोड़ता… तो तुम्हें कुछ नहीं करना… बस तुम कातिक में आ जाओ…”
भाभी की इस बात से अब मुझे लगा गया था कि ये सिर्फ मज़ाक नहीं है। उनकी उंगली अब पूरी तेजी से सटासट-सटासट, मेरी बुर में आ जा रही थी और राकी के लण्ड की टिप पे मैं कुछ गीला देख रही थी। भाभी ने फिर कैंची ऐसी अपनी उंगली फैला दी और मैं उचक गयी, मेरी चूत पूरी तरह खुल गयी थी।
उसे राकी को दिखाते हुये, वो बोलीं-
“देख कैसी मस्त गुलाबी चूत है, इस माल का पूरी ताकत से चोदना तेरी गुलाम हो जायेगी…”
और उचकने से भाभी ने अपनी हथेली मेरे चूतड़ के नीचे कर दी। थोड़ी देर के लिये उन्होंने उंगली निकालकर मेरा गीला पानी मेरे पीछे के छेद पे लगाना शुरू कर दिया।
“नहीं भाभी उधर नहीं…” मैं चिहुंक गयी।