Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 9 - SexBaba
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Long Sex Kahani सोलहवां सावन

बसंती 



लेकिन बसंती सिर्फ दर्द देना नहीं जानती थी बल्कि मजे देना भी , और मौके का फायदा उठाना भी /

जब मैं दर्द से दुहरी हो रही थी उसने मेरा कुर्ता कंधे तक उठा दिया और अब मेरे गोल गोल गुदाज उभार भी खुले हुए थे। 

एक हाथ उन खुले उभारों को कभी पकड़ता ,कभी सहलाता ,कभी दबाता। 

कभी निपल जोर से पकड़ के वो पुल कर देती। 

और कब दर्द मजे में बदल गया मुझे पता ही नहीं चला। साथ में नीचे की मंजिल पे अब दुहरा हमला हो रहा था। एक हाथ की हथेली मेरी चूत पे रगड़घिस्स कर रही थी और दूसरे हाथ का हमला मेरे पिछवाड़े बदस्तूर जारी था। 

गांड में घुसी अंगुलिया गोल गोल घूम रही थीं , करोच रही थी 

और जब वो वहां से निकली तो 

सीधे नीचे वाले मुंह से ऊपर वाले मुंह में ,... 


और हलक तक। बसंती से कौन जीत सका है आज तक। 


और बात बदलने में भी और केयर करने दोनों में बसंती नंबर एक। 

बोली ,चलो अब थोड़ा मालिश कर दूँ , सारा दर्द एकदम गायब हो जाएगा। फिर खाना।


.............................



बसंती दर्द देने में भी माहिर थी और दर्द दूर करने में , 

लेकिन मजा दोनों हालत आता था। 

मेरी टाइट शलवार अब ऑलमोस्ट उतर चुकी थी और कुरता बस कंधों तक सिमटा पड़ा था। 
मैं पेट के बल लेटी थी , मेरे खुले गोरे गदराये उरोज चटाई पर दबे , और मस्त नितम्ब उभरे हुए , 


" हे सर पे कड़ा कड़ा लग रहा है , ये लगा लो " बसंती ने अपना ब्लाउज उतार के मेरे सर के नीचे रख दिया और तेल लगी उसकी उँगलियाँ मेरे कंधे दबाने लगी और थोड़ी ही देर में उन उँगलियों ने मेरी देह की सारी थकान , सब दर्द , जिस तरह सुनील और अजय ने मिल के मुझे रगड़ा था , सब गायब। बस हलकी हलकी नींद सी मेरी आँखों में छा रही थी। लेकिन मुझे लग रहा था जल्द ही बसंती की उँगलियाँ फिर एक बार , वहीँ पहुँच जाएंगी ,... और फिर मस्ती में मेरी देह ,... 

लेकिन बसंती तड़पाने और तरसाने में भी उतनी ही माहिर थी जितनी जवानी की आग लगाने में , 

कन्धों के बाद उसके दोनोंहाथ मेरी पीठ को मींजते मींडते जब कुल्हो तक आये तो मुझे लगा की अब , अब ,.... लेकिन बसंती तो बसंती ,उस ने दोनों कूल्हों को जोर जोर से दबाया , मेरे नितम्बो का सारा दर्द निकाल दिया और यहाँ तक की जब उसने जोर से दोनों हाथों से दोनों नितम्बो को फैला के मेरे पिछवाड़े के छेद को पूरी ताकत से फैलाया , मुझे लगा अब फिर से ,... 


लेकिन नहीं ,उसके हाथ अब सीधे सरक के मेरी जाँघों और टखनों तक पहुँच गए थे। मेरे पैरों का सारा दर्द उसकी उँगलियों ने जैसे चूस लिया था। 


और ' वो वाली ' फीलिंग मुझे उसकी उँगलियों ने नहीं बल्कि , उसके गदराये भरे भरे ठोस उरोजों ने दी जब हलके से उसने , अपने उभारों को मेरी पान ऐसी चिकनी पीठ पे हलके से सहलाया और , धीरे धीरे नीचे की ओर ,

एक बार फिर उसकी उँगलिया मेरे भरे चूतड़ों पे थीं। और अबकी वो जोर जोर से उसे दबा रही थी ,मसल रही थी , कोई मर्द क्या मसलेगा ऐसे। और साथ में उसके जोबन मेरी पीठ पे ,

एक बार उसने फिर गांड के छेद को , और अबकी पहले से भी जोर से , .... जब अच्छी तरह छेद खुल गया तो सीधे कटोरी से ,

टप ,... टप ,... टप ,

कड़वे तेल की बूंदे , एक के बाद एक। एक चौथाई कटोरी तो मेरी गांड में उसने डाल दिया होगा। 

कड़वे तेल का असर होना तुरंत शुरू होगया , छरछराना 

लेकिन मुझे मालूम था मुझे क्या करना है और मैंने जोर से गांड भींच ली।

लेकिन असली असर था , बंसती की उँगलियों का। 

जैसे ही मैंने गांड का छेद भींचा , बसंती की तेल से सनी गदोरी सीधे मेरी चुनमुनिया पर ,जिसके अंदर अभी भी अजय की गाढ़ी गाढ़ी रसीली मलाई बची थी। 

और हलके से सहलाने के साथ बसंती की अनुभवी हथेली ने मेरी चिकनी चमेली को धीमे धीमे भींचना शुरू कर दिया। 

मस्ती से मेरी आँखे भिंच गयीं , कड़वे तेल का छरछराना परपराना सब मैं भूल गयी।
 
तेल मालिश 








मस्ती से मेरी आँखे भिंच गयीं , कड़वे तेल का छरछराना परपराना सब मैं भूल गयी। 

और जैसे चूत की रगड़ाई काफी नहीं थी , बसंती के दूसरे हाथ ने हलके से मेरी चूंची को पकड़ा और दबाना ,रगड़ना ,मसलना सब कुछ चालू हो गया। 
असर ये हुआ की गांड के अंदर का छरछराना परपराना मैं सब भूल गयी। 

पांच दस मिनट में ही मस्ती में चूर ,

लेकिन कड़वा तेल अंदर अपना काम कर रहा था , खास तौर से गांड के छल्ले पर ,जहाँ सुनील के मोटे लंड ने उसे फैलाकर , जब वह रगड़ते दरेरते घुसता था , लगता था अंदर कहीं कहीं छिल भी गया था ,


और जब मुझे लगा मैं एक बार फिर झड़ने के कगार पे हूँ ,चूत की पुत्तियाँ अपने आप जोर जोर से भिंच रही थीं , लग रहा था अब , ... अब 


तब तक बसंती ने अपने दोनों हाथ हटा लिए और मेरी पतली कमर पकड़ के मुझे फिर डॉगी पोज में कर दिया , घुटने दोनों मुड़े हुए और चटाई पर , चूतड़ हवा में ,


" हाँ बस ऐसे ही जइसन गांड मरवावे बड़े गंडिया उठाये रहलूं न , बस एकदम वैसे " और वो गायब। 

और लौटी तो उसके हाथ में एक शीशी थी , और उसमे कुछ सफ़ेद मलाई जैसा। 


बिना कुछ कहे पिछवाड़े का छेद उसने फैलाया और सीधे वो शीशी से मेरी गांड में ,

" अरे ई कामिनी भाभी क स्पेशल क्रीम है ,खास गांड फड़वाने के बाद के लिए बस एका घोंट लो , और दस मिनट अइसे गांड उठाय के रहो , कुल दर्द गायब। और तबतक हम खाना ले आते हैं ". 

बंसती की बात एकदम सही थी , एकदम ठंडा , पूरे अंदर तक। और कुछ ही देर में सारी चिलख ,दर्द, परपराना सब गायब। 

मैं पिछवाड़े का छेद भींचे ,एकदम चुपचाप वैसे ही पेट के बल लेटी ,


( ये तो मुझे बहुत बाद में पता चला की कामिनी भाभी की वो क्रीम,दर्द तो एकदम गायब कर देती थी ,अंदर कुछ चोट खरोंच हो तो उसके लिए भी एंटी सेप्टिक का कामकरती थी ,लेकिन साथ में दो काम और करती थी। एक तो वो गांड को फिर से पहले जैसा ही टाइट कर देती थी , जैसे उसके अंदर कुछ गया ही न हो। इकदम कसी कच्ची कली की तरह। लेकिन दूसरी चीज और खतरनाक थी , उसमें कुछ ऐसा पड़ा था की कुछ देर बात ही गांड में बड़े बड़े चींटे काटने लगते थे , और बस मन करता था कोई हचक के मोटा , लम्बा पूरा अंदर तक पेल दे।)

और जब बसंती दस की जगह पंद्रह मिनट में लौटी ,हाथ में थाली लिए तो , बिना ब्लाउज के भी साडी को उसने अपने उभारों पे ऐसे लपेट के रखा था बिना ब्लाउज के , ... बस थोड़ा थोड़ा दिखता लेकिन हाँ कटाव उभार सब महसूस होता था। 

और मेरे बगल में बैठ गयीं।
धम्म से।
 
बसंती की मस्ती 












(ये तो मुझे बहुत बाद में पता चला की कामिनी भाभी की वो क्रीम,दर्द तो एकदम गायब कर देती थी ,अंदर कुछ चोट खरोंच हो तो उसके लिए भी एंटी सेप्टिक का कामकरती थी ,लेकिन साथ में दो काम और करती थी। एक तो वो गांड को फिर से पहले जैसा ही टाइट कर देती थी , जैसे उसके अंदर कुछ गया ही न हो। इकदम कसी कच्ची कली की तरह। लेकिन दूसरी चीज और खतरनाक थी , उसमें कुछ ऐसा पड़ा था की कुछ देर बात ही गांड में बड़े बड़े चींटे काटने लगते थे , और बस मन करता था कोई हचक के मोटा , लम्बा पूरा अंदर तक पेल दे।


और मेरे बगल में बैठ गयीं।


धम्म से। 

...................................

शरारत में मैं कौन बसंती भौजी से कम थी। 

उसके दोनों गरमागरम जलेबी की तरह रसभरे उभार , साडी से झलक रहे थे , और मैंने एक झटके में उनकी साडी खीच दी। 

" काहे भौजी का छिपायी हो , उहौ आपन ननदी से। "
और दोनों उभार छलक कर बाहर ,

जितने बड़े बड़े उतने ही कड़े कड़े और ऊपर से दोनों घुन्डियाँ ,एकदम खड़ी। 

मेरा एक हाथ झटाक से सीधे वहीँ। 

लेकिन बजाय बुरा मानने के बसंती भौजी ने एक लाइफ टाइम ऑफर दिया ,अपनी बुर दिखाने का। 

" अरे तोहार चुनमुनिया तो हवा खिलाने के लिए खोलदिए हैं , तुम कहोगी की भौजी आपन ना दिखायीन। "

लेकिन जैसे कहते हैं न टर्म्स एंड कंडीशंस अप्लाई , बस वही बात ,बसंती भौजी ने मेरी आँखे बंद करा दीं और बोला मैं ऊँगली से देखूं ,

मैं मान गयी। धीरे धीरे उनका हाथ मुझे उनकी जांघ की सीढ़ी से चढ़ाते हुए ,मेरे हाथ की उँगलियाँ ,

खूब चिकनी एकदम मक्खन , मांसल लेकिन गठी , ...धीमे धीमे मेरी उँगलियाँ चढ़ती गयीं , और फिर झांटो का झुरमुट और वहीँ बसंती भाभी की ऊँगली ने मेरा हाथ छोड़ दिया। 

एक कौर खाना सीधे मेरे मुंह में। 

उनके हाथ से दाल रोटी भी इतनी मीठी लग रही थी की जैसे पूड़ी हलवा हो ,

और मेरी ऊँगली , अब इतनी भोली भी नहीं थी। झांटो के बगीचे में उसने रास्ते ढूंढ लिया , और फिर तो , बसंती भौजी की बुर की पुत्तियाँ ,खूब उभरीं उभरीं कुछ देर तक तो अंगूठा और तर्जनी दबा दबा के उनका स्वाद ले रहा था , और फिर 


गचाक्क , गप से मेरी ऊँगली उनके नीचे वाले मुंह में घुस गयी और उनके निचले होंठों ने जोर से उसे दबोच लिया। 


जैसे मैंने बंसती भाभी की मेरे मुंह में कौर खिलाते ऊँगली को शरारत से दांत से दबोच लिया और हलके से काट कर पूछा ,

" भौजी ,आपने खाया। "

" तूहूँ न , अरे हमार प्यारी प्यारी ननदिया भूखी रहे और हम खाय लेब " बसंती ने बहुत प्यार से जवाब दिया। 

और मैं सब कुछ हार गयी ,

गच्च से पूरी ऊँगली मैंने बसंती भौजी के निचले मुंह में जड़ तक ठेल दी और शरारत से बोली।

" झूठ भौजी ,मुझे मालूम है भौजी तु का का गपागप खात हो , घोंटत हो और आपन छोटकी ननदिया क ना पूछी हो। "

" अरे अब आगे आगे देखना , अबहीं त तू घोंटब शुरू कयलु हौ , एक से एक लम्बा ,मोट ,मोट घोंटाउब न ,एक साथ दो दो , तीन तीन। "

बंसती भौजी ने अपनी बात की ताकीद करते साथ में अपनी ऊँगली मेरी कच्ची सहेली के मुंह में ठेल दी।और फिर तो घचाघच , घचाघच , सटासट सटासट ,

और जवाब मेरे ऊपर वाले मुंह ने दिया , एक हाथ से मैंने भौजी का सर पकड़ा और फिर मेरे होंठ उनके होंठों के ऊपर और मेरा आधा खाया ,कुचला सीधे मेरी जीभ के साथ उनके मुंह में , और कुछ देर तक उनकी जीभ ने मेरी जीभ के साथ चल कबड्डी खेला ,फिर क्या कोई लड़की लंड चूसेगी जैसे वो मेरी जीभ चूस रही थीं। 

उसके बाद तो सब कौर कभी उनके मुंह से मेरे मुंह में , और कभी मेरे मुंह में और साथ में हम दोनों खुल के एक दूसरे के होंठ का मुंह का रस ले रहे थे। 

नीचे बसंती भौजी की बुर उसी स्वाद के साथ मेरी ऊँगली भींच रही थी। 

और अब वो खुल कर बखान कर रही थीं गाँव के मर्दों का किसका कित्ता बड़ा और कित्ता मोटा है कौन कित्ती देर तक चोद सकता है। हाँ एक बात सब में थी की सब के सब मेरे जुबना के दीवाने हैं ,

बात बदलने के लिए मैंने कमान अपने हाथ में ले ली और शिकायत की ," भौजी हमारे पिछवाड़े तो , हमार तो जान निकल गयी और आप कह रही थीं की ठीक से नहीं मारा। "

" एकदम सही कह रह थी मैं , अरे असली पहचान ई है की अगर हचक हचक के गांड मारी जायेगी न तुहार , तो बस खाली कलाई के जोर से एक बार में दो उँगरी सटाक से घोंट लेबु। और घबड़ा जिन , ई कामिनी भाभी के मर्द , जउने दिन उनके नीचे आओगी न त बस , तब पता चलेगा गांड मरवाई क असली मजा। " बसंती ने हाल खुलासा बयान किया.
 
मरद ,कामिनी भाभी के 



ई कामिनी भाभी के मर्द , जउने दिन उनके नीचे आओगी न त बस , तब पता चलेगा गांड मरवाई क असली मजा। " बसंती ने हाल खुलासा बयान किया और ,


मेरा ध्यान चंपा भाभी की बात ओर चला गया , कल इसी आँगन में तो , उ कह रही थीं यही बात. 
मेले में उन्होंने देखा था मुझे , और तभी से ,...एकदम बजरबट्टू। उस के बाद जो कामिनी भाभी रतजगा में आई और उन्होंने मुझे अच्छी तरह 'खुलकर 'देखा , तो चंपा भाभी को बताया। और चंपा भाभी भी , और बोलीं उनसे ," अरे अगर गाँव में सावन बरस रहा है तो उनसे कह दो न उहै बिचारे काहें प्यासे रहें। छक के आपन पियास बुझावें न। "

मेरा ध्यान फिर बसंती की बात की ओर गया। आज जब कामिनी भाभी आई थीं तो फिर वही बात कर रही थीं। उसके बाद तो भौजी ने जो बात बताई कामिनी भाभी के पति के बारे में की मेरे कान खड़े हो गए। 

कामिनी भाभी के पति शादी के पहले शुद्ध बालक भोगी थे। लेकिन शादी के बाद कामिनी भाभी ने उनकी हालत सुधार दी, पर अभी भी हफ्ते दस दिन दिन में अगर कही कोई कमसिन नमकीन लौंडा दिख गया तो वो बिना उस का शिकार किये नहीं मानते और कामिनी भाभी भी बुरा नहीं मानती बल्कि उन्हें अगर कही कोई शिकार दिख गया तो उसे खुद पटा कर के , ... और उन का भी फायदा हो जाता है क्योंकि उस रात वो दुगुनी ताकत से। फिर उस के साथ कामिनी भाभी को भी तो कच्ची कलियों का शौक है , लड़के लड़की में भेद वो भी नहीं करतीं। 

फिर खिलखिलाते हुए बसंती भौजी ने पूछा , " जानती हो कामिनी का पिछवाड़ा इतना चौड़ा काहें है। "

बात बसंती भौजी की एकदम सही थी , जवाब भी उन्होंने दिया। 

" अरे दूसरे तीसरे उनके मर्द पिछवाड़े का बाजा जरूर बजाते हैं। और ओह दिन तो पूरे गाँव में मालूम हो जाता है , आधे दिन उ उठ नहीं पाती। उनका लंड एक तो ऐसे पूरा मूसल है और जउन मरदन को लौंडेबाजी की आदत होती है न उनका वैसे ही देर में लेकिन , ... उ तो गांड में तीस चालीस मिनट से पहले नहीं उहो पूरी ताकत से तूफान मेल चलाते हैं। "

साथ साथ भौजी की ऊँगली भी मेरी ओखली में चल रही थी और मस्ती से मेरी हालत ख़राब हो रही थी। लेकिन मुझे विश्वास नहीं हुआ और मैं बोल पड़ी ,

" सच में भौजी ,तीस चालीस मिनट बिस्वास नहीं होता। "

बसंती जोर से खिलखिलाई और कस के मेरे खड़े निपल उमेठ के बोली , 

" पूछें नाउ ठाकुर केतना बाल। कहेन मालिक अगवे गिरी। अरे बहुते जल्द , तुंहु घोंटबु उनकर तो अगले दिन हम पूछब न तोसे , कहो कैसे लगा। अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों एक हो जाइ. “



और हम दोनों एक साथ हंस पड़े। 

मेरी उंगली भी भौजी की बुर में बुरी तरह अंदर बाहर हो रही थी।
बसंती ने बात बदली और उस का जिक्र छेड़ दिया ,जो हम लोगों के लिए बाहर से पानी भरती थी और उस का मर्द , बाहर कुंवे से पानी निकालता था। उसको तो मैं अच्छी तरह जानती थी , बसंती की उम्र की ही होगी , एकदो साल छोटी और मजाक में छेड़ने में भी एकदम वैसी। 

" कभी कुंवे के पानी से नहायी हो यहाँ। " बसंती ने पूछा।
 
गुलबिया क मरद 













और हम दोनों एक साथ हंस पड़े। 

मेरी उंगली भी भौजी की बुर में बुरी तरह अंदर बाहर हो रही थी।
बसंती ने बात बदली और उस का जिक्र छेड़ दिया ,जो हम लोगों के लिए बाहर से पानी भरती थी, गुलबिया और उस का मर्द , बाहर कुंवे से पानी निकालता था। उसको तो मैं अच्छी तरह जानती थी , बसंती की उम्र की ही होगी , एकदो साल छोटी और मजाक में छेड़ने में भी एकदम वैसी। 

" कभी कुंवे के पानी से नहायी हो यहाँ। " बसंती ने पूछा। 

" हां दो तीन बार , जब नल नहीं आ रहा था ,खूब ठंडा और फ्रेश। " मैने बोला। 

" और जो कुंए का पानी निकालता था , उसके पानी से " घच्च से दूसरी ऊँगली भी मेरी पनीली चूत में ठेलते ,आँख नचा के उसने पूछा। 
" धत्त " खिस्स से हंस दी मैं। 


" अरे उ , कामनी के मर्द से भी दो चार आगे है। "

ये तो मुझे पूरा यकीन था की कामिनी भाभी के पति का बंसती कई बार घोंट चुकी है , लेकिन ये भी ,... "

और जैसे मेरे सवाल को भांपते बसंती खिलखिला के हंसी , बोली अरे मेरा देवर लगता है। और फिर पूरा हाल खुलासा बताया।
"सिर्फ लम्बाई या मोटाई में ही नहीं वो चुदाई में भी कामिनी के मरद से २२ है। चूत चोदने में तो बस इस सोचो अच्छी अच्छी चुदी चुदाई ,कई कई बच्चों की महतारी , भोंसड़ी वालियां पसीना छोड़ देती हैं उस की चुदाई में। ऐसा रगड़ चोदता है न की बस , लेकिन अगर उ गांड मारने पे आ गया न तो बस ,चाहे जितना रोओ ,चिल्लाओ , गांड फाड़ के रख देगा। अगर तुम दो चार बार मरवा लो न उससे फिर सटासट गपागप गांड में लंड घोंटोगी , खुदै गांड फैला के लंड पे बैठ जाओगी। " 

मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था , डर भी लग रहा था , मन भी कर रहा था। 
कुछ बसंती की बातें कुछ उसकी उँगलियों का असर जो मेरी चूत में तूफ़ान मचा रही थीं। 

बसंती मुस्करा के शरारत से बोली , " अरे ई मतलब नहीं की गांड मरावे में दरद नहीं होगा। अरे जब गाण्ड के छल्ले में दरेरता ,रगड़ता , घिसटता , फाड़ता घुसेगा न , जो दरद होगा वही तो असली मजा है , मारने वाले के लिए भी और मरवाने वाली के लिये भी। "

बात बसंती भौजी की एकदम सही थी ,जब सुनील का मोटा सुपाड़ा दरेरता हुआ घुसा था , एकदम जैसे किसी ने गांड में मुट्ठी भर लाल मिर्च झोंक दी हो , आँख से पानी निकल आया था। लेकिन याद करकेफिर से गांड सिकुड़ने फूलने लगती थी। 

बसंती भौजी ने मेरे चूत के पानी से दुबई अपनीउंगली निकाली और मेरी दुबदुबाती गांड के छेद पे मसल दी और हंस के मसल के बोलीं ,

" क्यों मन कर रहा है उसका लेने का ,लेकिन भरौटी में जाना पड़ेगा उसके घर। अरे तोहार भौजी हूँ ,दिलवा दूंगी खुद ले चलूंगी। हाँ जाने के पहले गांड में पाव भर कड़वा तेल डाल के जाना। "

मैं कुछ बोलती ,जवाब देती उसके पहले ही भौजी ने एक वार्निंग भी दे दी ,

" लेकिन भरौटी के लौंडन से बच के रहना। "

" काहें भौजी " अपनी बड़ी बड़ी गोल आँखे नचाते मैंने पूछा। 

" अरे हमार छीनार ननद रानी , एक तो उन साल्लो का , मनई क ना , गदहन क लंड होला। बित्ता भर से कम तो कौनो क ना होई। फिर अगर कही तोहार एक माल उनके पकड़ में आ गया तो बस , .... उ इहां तक की गन्ना और अरहर क खेत भी नहीं खोजते , उन्ही सीधे मेड़ के नीचे , सरपत के पीछे ,कहीं भी चढ़ जाएंगे। और फिर एस रगड़ रगड़ के चोदिहें न , मिटटी का ढेला ,गांड से रगड़ रगड़ के टूट न जाय तब तक , और ऐसी गंदी गन्दी गाली देते हैं और चोदवाने वाली से दिलवाते हैं की बस कान में ऊँगली डाल लो। और फिर खाली चोद के छोड़ने वाली नहीं , उन्ही निहुरा के कुतिया बना के गांड भी मारेंगे। कम से कम दो तीन बार। और अकेले नहीं दो तीन लौंडे मिल जाते है , और एक गांड में तो दूसरा बुर में , कौनो दो तीन बार से कम नहीं चोदता। जितना रोओ ,चीखो चिल्लाओ , कौनो बचाने वाला नहीं। और अगर कहीं भरोटी क मेहरारून देख लिहिन तो बजाय बचावे के उ और लौंडन क ललकरइहें। "

और उस के साथ जीतनी जोर जोर से बंसती भौजी की दो उँगलियाँ मेरी चूत चोद रही थी की जैसे कोई लंड ही चूत मंथन कर रहा हो। 

मैं सोच रही थी की बंसती मना कर रही है या मुझे उकसा रही है उन लौंडो के साथ , .... 

मेरी ऊँगली भी बसंती की बुर में गोल गोल घूम रही थी। अच्छी तरह पनिया गयी थी। मीठा शीरा निकलना शुरू हो गया था , खूब गाढ़ा लसलसा। 

मैं तो पहले अजय ,सुनील ,रवि और दिनेश के साथ ही , ... लेकिन यहाँ तो बसंती ने पूरी लाइन लगा दी और वो भी एक से एक। 

जोर से मेरी क्लिट रगड़ते बसंती बोली ,

" अरे देखना बिन्नो , लंड की लाइन लगा दूंगी। आखिर तोहार भौजी हूँ, एक जाइ त दू गो घुसे बदे तैयार रहिएँ ,एक से एक मोटे लम्बे। जब घर लौटुबी न रोज त हम चेक करब , आगे पीछे दूनो ओर से सड़का टप टप टपकत रही। "

" भौजी आप के मुंह में घी शक्कर " मारे ख़ुशी के भौजी के सीधे होंठो पे चूमती और जोर से उनकी बड़ी बड़ी चूंची मिजती मैं बोली। 

खाना तो कब का ख़तम हो गया था अब तो बस चुम्मा चाटी रगड़न मसलन चल रही थी। 

हम दोनों झड़ने के कगार पर ही थीं। तब तक बंसती बोलीं ,

" अरे चला , तोहार मुंह हम अबहियें मीठ करा देती हूँ। "
 
मुंह का मजा 



हम दोनों झड़ने के कगार पर ही थीं। तब तक बंसती बोलीं ,

" अरे चला , तोहार मुंह हम अबहियें मीठ करा देती हूँ। "

और अगले पल धक्का देकर मुझे चटाई पर लिटा दिया और सीधे मेरे ऊपर , उनकी झान्टो भरी बुर मेरे मुंह के ऊपर ,उनकी दोनों मांसल जाँघों के बीच में मेरा सर दबा।
….ये नहीं था इसके पहले मैंने चूत नहीं चाटी थी। चंदा की , फिर नदी नहाने में पूरबी की ,कल इसी आँगन में चंपा भाभी की भी , 


लेकिन जो मजा आज बसंती की चूत में आ रहा था ,एकदम अलग। एक गजब का स्वाद , और उसके साथ जो अंदाज था उसका , एक रॉ सेक्स का जो मजा होता है न बस वही और साथ में जो वो जबरदस्ती कर रही थी , जो उसकी ना न सुनने की आदत थी ,... और साथ में गालियों की फुहार , बस मजा आ गया। 

उसने सबसे पहले मेरी नाक दबाई और जैसे मैंने सांस लेने के लिए मुंह खोला , बस झाटों भरी उसकी बुर सीधे मेरे गुलाबी होंठो के बीच। मैंने थोड़ा बहुत सर हिलाने की कोशिश की तो कचकचा के उसने अपनी भरी भरी मांसल जाँघों के बीच उसे कस के भींच दिया और अब मैं सूत बराबर भी सर नहीं हिला सकती थी। और वह सीधे एकदम 'फेस सिटिंग 'वाली पोजीशन में। 

और जब मैंने हलके हलके चाटना चूसना शुरू किया तभी नाक उसने छोड़ी। लेकिन बसंती भौजी , जिस हाथ ने नाक छोड़ा मेरे निपल को पकड़ लिया। 


बस शहद , थोड़ी देर तक बाहर से चूसने चाटने के बाद ,मुझसे भी नही रहा गया और मेरी जीभ ने प्रेम गली का रास्ता ढूंढ ही लिया और सीधे अंदर। 

जैसे एक तार की चाशनी हो, खूब गाढ़ी। और रसीली। 

जितनी जोर से मैं चाटती थी उस के दूने जोर से बसंती मेरे होंठों पर मेरे मुंह पे अपनी बुर रगड़ती थी ,क्या कोई मर्द किसी लौंडिया का मुंह चोदेगा। 

और साथ में उनकी ऊँगली कभी कभी मेरी चूत की भी ,.... बस बार वो मुझे किनारे पे ले जाती लेकिन झड़ने नहीं देती। 


दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त रगडाई ,चुसाई के बाद , वो झड़ी और झड़ती रही देर तक। सब शहद और चासनी सिर्फ मेरे मुंह पे नहीं बल्कि चेहरे पर भी।
लेकिन उसके बाद भी उनकी बुर ने मेरे मुंह पर से कब्जा नहीं छोड़ा। 

कुछ देर तक हमदोनो एक दूसरे की आँख में आँख डाल कर देखते रहे , फिर भौजी ने शरारत से जोर से मेरे गाल पर एक चिकोटी काटी और बोलीं ,

" ननद रानी मन तो कर रहा था की अबहियें तुम्हे पेट भर खारा शरबत पिला देती लेकिन , ... " फिर कुछ देर रुक के वो बोलीं ," लेकिन , चंपा भाभी ने बोला था पहली बार उनके सामने , आखिर जंगल में मोर नाचा किसी ने न देखा तो , क्या मजा। "

मेरी मुस्कराती आँखे बस यही कह रही थीं , पिला देती तो पिला देती ,मैं गटक जाती। 

और जब वो हटीं तो मैं थकी अलसायी वहीँ चटाई पे लुढक गयी। 

और जब मैं उठी तो बसंती मुझे जगा रही थी ,शाम होने वाली थी और झूला झूलने चलना था। मेरे लिए साडी भी उसने ला के रख दी थी। ( पेटीकोट न मैं पहनती थी न कोई भौजाइ पहनने देती ,)
" भौजी , ब्लाउज " ? 

" आज अईसे चलो , तोहार जोबन क उभार तनी गाँव क लौंडन खुल के देख लें " बसंती कोई मौका छोड़ती क्या ?

लेकिन बहुत निहोरा करने पर वो एक ब्लाउज ले आई ,चोली कट बहुत छोटा सा। पहनाया भी उसी ने।
 
झूले को 


और जब वो हटीं तो मैं थकी अलसायी वहीँ चटाई पे लुढक गयी। 

और जब मैं उठी तो बसंती मुझे जगा रही थी ,शाम होने वाली थी और झूला झूलने चलना था। मेरे लिए साडी भी उसने ला के रख दी थी। ( पेटीकोट न मैं पहनती थी न कोई भौजाइ पहनने देती ,)
" भौजी , ब्लाउज " ? 

" आज अईसे चलो , तोहार जोबन क उभार तनी गाँव क लौंडन खुल के देख लें " बसंती कोई मौका छोड़ती क्या ?

लेकिन बहुत निहोरा करने पर वो एक ब्लाउज ले आई ,चोली कट बहुत छोटा सा। पहनाया भी उसी ने। 

आधे से ज्यादा उभार बाहर छलक रहे थे। आगे से बंद होने वाले हुक थे और बड़ी मुश्किल से दो हुक बंद हुए , कटाव उभार निपल्स सब साफ़ दिखते थे। 

लेकिन बसंती की शरारत घर से निकलने पर मुझे समझ में आई। 

बाहर मौसम का क्या कहूँ , आसमान में बादल खूब घने घिर आये थे। चारो ओर हरी चूनरी की तरह फैले धान के खेत , खेतों में काम कर रही औरतों के रोपनी गाने की मीठी मीठी आवाजें , कहीं नाचते अपनी प्रेयसी को रिझाते मोर , जगह जगह आमों से लदी अमराई , और उन पर पड़े झूले ,... 

हम लोग थोड़ी देर में उसी रास्ते पर थे जिधर से सुबह मैं आई थी , एक ओर मेरी ऊंचाई से भी दूने गन्ने के घने खेत और दूसरी ओर गझिन अरहर , दिन में भी कोई न दिखायी दे और अब तो बादल घने हो गए थे। 

बंसती ने शरारत से मेरे उभारों की और देखा और मुझे बात एकदम समझ में आगयी। 

जो चोली वो ढूंढ के मेरेलिए लायी थी , वो काफी घिसी हुयी थी ,इसलिए सब कुछ झलक रहा था लेकिन उससे भी बढ़ कर अगर मजाक मजाक में भी किसी ने ऊँगली से भी उसे खिंच दिया तो बस ,... चरर्र , 


फट के हाथ में आ जाती। 

तबतक बसंती ने बोला , " एक मिनट रुको जरा ,मुझे ज़रा जोर से 'आ रही ' है। 

' आ तो ' मुझे भी रही थी। लेकिन यहाँ कहाँ खुले में , 
 
बसंती की मस्ती 











तबतक बसंती ने बोला , " एक मिनट रुको जरा ,मुझे ज़रा जोर से 'आ रही ' है। 

' आ तो ' मुझे भी रही थी। लेकिन यहाँ कहाँ खुले में , 

पर बसंती सोचने का मौका दे तो न, 
और धमम से उसने खीच के मुझे भी अपने बगल में बैठा लिया जहाँ मेड थोड़ी ऊँची थी ,सामने अरहर के घने खेत थे ,

उसने साडी उठा के कमर में लपेट ली और उसकी देखा देखी मैं भी ,

बस , बसंती ने तेज धार के साथ , छुरर छुर्र और फिर मोटी धार , पीले रंग की ,.. 
मैं भी शुरू हो गयी , लेकिन मारे शर्म के मेरी आँखे बंद थी। 


पर बसंती आँखे बंद कहाँ रहने देती , और उसने मेरा सर मोड़ के सीधे अपनी जाँघों के बीच से निकलती , .... 

उठते हुए बोली , तुम सोच रही होगी भौजी ने एतना ढेर सारा खारा शरबत बेकार कर दिया ,लेकिन चलो कल भिनसारे से बिना नागा ,झान्टो के छन्ने से छना खारा शरबत , ... और साडी ठीक करते करते उसने अपनी तरजनी अपनी भीगी गीली बुर पे रगड़ी और सीधे मेरे होंठ पे लगा दी ,

" चला तब तक तनी स्वादे चख ला। "

लेकिन मेरी निगाह कही और अटकी थी ,जहाँ हम लोग बैठे थे वहीँ ठीक बगल में एक पतली मेंड़ सी पगडण्डी थी जहाँ पहले मुझे अंदर गन्ने के खेत के रास्ते में एक लड़का दिखा था और फिर चंदा मुझे छोड़ के उधर चल दी थी। सुबह उधर जो दूर १० -१२ मिटटी के घर दिखे थे वो अभी भी हलके से दिख रहे थे। 

मैं पूछ बैठी ,

" बसंती भौजी , ई रास्ता कहाँ जा रहा है। "

बसंती पहले तो खिलखिलाती रही फिर अपने ढंग से बोली , " अरे बहुत तोहरे चूत में चीटा काटत हाउ ,चला एक दिन तोहैं एक रास्ता पे भी घुमाय आइब। अरे इहै रास्ता तो हौ भरोटी क। "

" धत्त मैं जोर से बोली , लेकिन मैं सोच रही थी की इसका मतलब सुबह चंदा उधर ही , ... 

थोड़ी देर में हम लोग अमराई में पहुंच गए। और काफी अंदर जाने के बाद जहां पेड़ बहुत गझिन हो गए थे वहां झूला पड़ा था ,

(वही जगह जहां भाभी के गाँव में सबसे पहल मैंने झूला झूला था और इसी झूले पे रात के अँधेरे में ,तेज बारिश में अजय ने मेरी सील तोड़ी थी। )


बादल और घने हो गए थे , हल्का अँधेरा सा हो गया था ,हवा भी हलकी हलकी चल रही थी , बस लग रहा था की अब बारिश हुयी तब बारिश हुयी। 

कामिनी भाभी ,चंपा भाभी ,पूरबी पहले ही पहुँच गयी। और हम लोगों के साथ गाँव की एक दो और लड़कियां भी आ गयीं।
 
मजा झूले पे ,अमराई में 


थोड़ी देर में हम लोग अमराई में पहुंच गए। और काफी अंदर जाने के बाद जहां पेड़ बहुत गझिन हो गए थे वहां झूला पड़ा था ,

(वही जगह जहां भाभी के गाँव में सबसे पहल मैंने झूला झूला था और इसी झूले पे रात के अँधेरे में ,तेज बारिश में अजय ने मेरी सील तोड़ी थी। )


बादल और घने हो गए थे , हल्का अँधेरा सा हो गया था ,हवा भी हलकी हलकी चल रही थी , बस लग रहा था की अब बारिश हुयी तब बारिश हुयी। 

कामिनी भाभी ,चंपा भाभी ,पूरबी पहले ही पहुँच गयी। और हम लोगों के साथ गाँव की एक दो और लड़कियां भी आ गयीं। 


... 















झूले पे मेरे पीछे कामिनी भाभी थीं और आगे बसंती। बंसती के पीछे पूरबी और कामिनी भाभी के पीछे चंपा भाभी। उनके अलावा दो तीन और भौजाइयां , गाँव की लड़कियां। पेंग एक ओर से चमेली भाभी दे रही थीं और दूसरी और से गीता। 
चमेली भाभी ने बताया की चंदा जब मुझे छोड़ने गयी थी उसके बाद नहीं आई शायद अपनी किसी सहेली के पास चली गयी होगी। 

मैंने मुश्किल से अपनी मुस्कान दबाई। जब से बसंती ने भरौटी के लौंडों के बारे में बताया था ,और ये भी की वो रास्ता चंदा जिस से गयी थी , कहाँ जाता है , मुझे अंदाज हो गया था , चंदा रानी कहाँ अपनी ओखल में धान कुटवा रही होंगी। 

कामिनी भाभी जिस तरह से मुझे देख के मुस्करा रहीं थी ,उनका इरादा साफ़ नजर आ रहा था और जिस तरह से मैं बसंती और उनके बीच में थी, फिर आज मेरी भाभी भी नहीं थी झूले पे की कोई उनका लिहाज झिझक , ...लेकिन मेरा ध्यान कामिनी भाभी से ज्यादा उनके पति के बारे में था , जिस तरह कल चंपा भाभी और आज बसंती ने बताया था , सुन सोच के ही मेरी गीली हो रही थी।


पहली बार मैं जब भाभियों के साथ झूला झूलने आई थी ,उससे आज मामला और ज्यादा 'हाट हाट ' हो रहा था। 


ये बात नहीं थी की उस दिन मैं बच गयी थी ,खूब मस्त गाली भरी कजरी मैंने पहली बार सुना था , और भौजाइयों ने रगड़न मसलन भी की थी और ऊँगली भी। लेकिन पहला दिन था मेरा इस लिए मैं थोड़ी हिचक रही थी और भाभियाँ भी थोड़ा , ... सोच रही थीं की कहीं कुछ ज्यादा हो गया तो मैं शहर की छोरी कहीं ,... बिचक गयी तो। लेकिन अब उस 'रतजगे ' वाली रात के बाद मैंने सारी भौजाइयो का और उन्होंने मेरा 'सब कुछ ' देख भी लिया और हाथ वाथ भी लगा दिया था। और दो चार तो जो यहाँ थी ,चंपा भाभी , बसंती ,कामिनी भाभी इन सबको पक्का पता चल गया था की मैं भी अब उन्ही की गोल में शामिल हो गयी हूँ। 

फिर आज मेरी भाभी भी नहीं थीं साथ में कि ,कुछ उनका लिहाज , हिचक ,... 

और आज एक नयी गौरेया भी आई थी। मुझसे भी दो साल छोटी , अभी आठवीं पास कर के नौवें में गयी थी आगे सुधी पाठक एवं पाठिकाएं स्वयं समझ सकती हैं। जी , सुनील की छोटी बहन नीरू। 


और पूरबी के साथ जब नदी नहाने गयी थी तो उसके कच्चे टिकोरों की मैं 'नाप तौल ' अच्छे से की थी। टिकोरे आ गए थे बस अभी थोड़े छोटे थे और मूंगफली के दाने ऐसे , बस जैसे नौवीं में पढ़ने वाली लड़कियों के होते हैं। पूरबी ने मुझे उकसाया तो मैंने नीचे का भी हाल चेक किया , बस सुनहली झांटे ,रेशम के धागे ऐसी बस आ रही थी। 

लेकिन भौजाइयों के बीच ननद आ जाये तो फिर , ... और भौजाई भी कौन गुलबिया , एकदम बसंती के टक्कर की बल्कि छेड़ने में , खुल के गारी देने में उससे भी दो हाथ आगे। वही ,जो हम लोगों के यहां पानी लाती थी और उसका मरद कुंवे पे पानी भरता था , जिसकी आज इतनी बड़ाई बसंती ने की थी। आज गुलबिया ठीक नीरू के पीछे बैठी और मैं समझ गयी की जहाँ पेंग तेजी हुयी , नीरू के टिकोरे उसके हाथों में होंगे। 


ओहो ओहो तनिसा धीरे धीरे पेंग मार लिया ,धीरे धीरे पेंग मार पीया ,

तनिसा धीरे धीरे पेंग मार पिया , ज़रा सा धीरे धीरे पेंग मार पिया। 





एक ओर से पूरबी ने पेंग मारते हुए कजरी शुरू की तो गुलबिया ने छेड़ा , 

अरे धीरे धीरे मारने में न मारने वाले को मजा न मरवाने वाली को और जवाब चंपा भाभी ने दिया , 

अरे जस नया मॉल लेके बैठी हो तो शुरू शुरु में धीरे धीरे ही मारनी पड़ेगी न। 

पूरबी और कजरी जो पेंग मार रही थी उन्होंने रफ़्तार बढ़ा दी और एक भौजी जो गुलबिया के पीछे बैठीं थी उन्होंने बोला , 

अरे जरा छुटकी ननदिया को जोर से पकड़ो न .और गुलबिया ने नीरू के नए नए आये उभारों के ठीक नीचे हाथ लगाते हुए कस के दबोच लिया।
 
पूरबी और कजरी जो पेंग मार रही थी उन्होंने रफ़्तार बढ़ा दी और एक भौजी जो गुलबिया के पीछे बैठीं थी उन्होंने बोला , 

अरे जरा छुटकी ननदिया को जोर से पकड़ो न .और गुलबिया ने नीरू के नए नए आये उभारों के ठीक नीचे हाथ लगाते हुए कस के दबोच लिया। 


मेरी हालत कुछ कम नहीं थी लेकिन मैं जानती थी क्या होनेवाला था। पेंग तेज होने के साथ ही मेरा आँचल उड़ के जैसे हटा , कामिनी भाभी ने मेरे दोनों कबूतर गपुच लिए और बसंती का हाथ मेरे चिकने पेट पे था। 

पुरवा पवनवा उडावेला अंचरवा रामा , अरे ननदी जुबना झलकावेला हरी। 

अरे रामा ननदी , दुनो जुबना झलकावेला हरी , अरे लौंडन के ललचावेला हरी। 

अबकी कजरी गुलबिया ने छेड़ी, 

और कामिनी भाभी ने जैसे उसकी ताकीद करते हुए सीधे मेरी चोली में हाथ डाल दिया और सीधे मेरे जुबन उनके हाथ में। 


बादल बहुत जोर से घिर आये थे और लग रहा था बारिश अब हुयी ,तब हुयी। हवा भी हलकी हलकी चल रही थी और झूले के पेंग की रफ़्तार बहुत तेज हो गयी थी। कजरी के बीच सिसकियों की आवाजे भी आ रही थी। 

और तब तक टप टप बूंदे पड़ने लगी और मैं समझ गयी की अब भौजाइयां और जोश में आ जाएंगी , और हुआ भी वही। 

मुश्किल से दिख रहा था। कहीं दूर बिजली भी चमक रही थी। सब लोग अच्छी तरह भींज गए थे लेकिन न झूले की रफ़्तार कम हुयी और न भौजाइयों की शरारतों की। 

कामिनी भौजी ने जरा साथ हाथ और अंदर किया और ,

ब्लाउज का कपड़ा एक तो एकदम घिसा हुआ और पुराना था , फिर एक दम टाइट भी , 

जरा सा कामिनी भाभी के तगड़े हाथ का जोर और ,

चर्र चरर ,

और बसंती ये मौका क्यों छोड़ती ,जहाँ ज़रा सा फटा था , वहीँ से पकड़ के सीधे नीचे तक , एक उभार अब खुल के बाहर। 

" ई हाउ जुबना क ताकत देखा एकदम चोली फाड़ देहलस। " एक भौजाई बोली तो बसंती बोली अरे एह ननद के भाई लोग हमार फाड़े है तो एनकर फायदे क जिमेदारी भौजाई क है। "

और एक बचा हुआ हुक भी तोड़ दिया। 

एक एक उभार बसंती और कामिनी भाभी ने बाँट लिया और कामिनी भाभी के एक हाथ दोनों जाँघों केबीच , सीधे प्रेम गली में। 


बस गनीमत थी अब अँधेरा इतना हो गया था की कुछ दिख नहीं रहा था , बारिश भी तेज हो गयी थी। बस बिजली जब चमकती तो ,

और नीरू की हालत और ज्यादा ख़राब हो रही थी , गुलबिया के साथ दो और भौजाइयों ने उसे दबोच लिया था।
और कामिनी भाभी की चतुर चालाक ऊँगली मेरी दोनों मांसल रसीली पनियाई चूत की पुत्तियों के बीच रगड़ घिस्स कर रही थी , एक निपल बसंती की मुट्ठी में तो दूसरा उभार कामिनी भाभी के हाथों में और अब तो ब्लाउज का कवच भी नहीं था। चूंचियां एकदम पथरा गयी थीं। बस मन कर रहा था की , किसी तरह ,,... लेकिन आँगन में जैसे बंसती भौजी ने तड़पाया ,तीन बार किनारे तक ले गयीं , लेकिन बिना झाडे छोड़ दिया। बस वही हालत कामिनी भाभी भी मेरी कर रही थीं। मैं सिसक रही थी ,तड़प रही थी ,चूतड़ पटक रही थी ,... 

मस्ती के चककर में गाने बंद हो गए थे , हाँ पेंगे और जोर जोर से लग रही थीं। 
 
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