hotaks444
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बसंती
लेकिन बसंती सिर्फ दर्द देना नहीं जानती थी बल्कि मजे देना भी , और मौके का फायदा उठाना भी /
जब मैं दर्द से दुहरी हो रही थी उसने मेरा कुर्ता कंधे तक उठा दिया और अब मेरे गोल गोल गुदाज उभार भी खुले हुए थे।
एक हाथ उन खुले उभारों को कभी पकड़ता ,कभी सहलाता ,कभी दबाता।
कभी निपल जोर से पकड़ के वो पुल कर देती।
और कब दर्द मजे में बदल गया मुझे पता ही नहीं चला। साथ में नीचे की मंजिल पे अब दुहरा हमला हो रहा था। एक हाथ की हथेली मेरी चूत पे रगड़घिस्स कर रही थी और दूसरे हाथ का हमला मेरे पिछवाड़े बदस्तूर जारी था।
गांड में घुसी अंगुलिया गोल गोल घूम रही थीं , करोच रही थी
और जब वो वहां से निकली तो
सीधे नीचे वाले मुंह से ऊपर वाले मुंह में ,...
और हलक तक। बसंती से कौन जीत सका है आज तक।
और बात बदलने में भी और केयर करने दोनों में बसंती नंबर एक।
बोली ,चलो अब थोड़ा मालिश कर दूँ , सारा दर्द एकदम गायब हो जाएगा। फिर खाना।
.............................
बसंती दर्द देने में भी माहिर थी और दर्द दूर करने में ,
लेकिन मजा दोनों हालत आता था।
मेरी टाइट शलवार अब ऑलमोस्ट उतर चुकी थी और कुरता बस कंधों तक सिमटा पड़ा था।
मैं पेट के बल लेटी थी , मेरे खुले गोरे गदराये उरोज चटाई पर दबे , और मस्त नितम्ब उभरे हुए ,
" हे सर पे कड़ा कड़ा लग रहा है , ये लगा लो " बसंती ने अपना ब्लाउज उतार के मेरे सर के नीचे रख दिया और तेल लगी उसकी उँगलियाँ मेरे कंधे दबाने लगी और थोड़ी ही देर में उन उँगलियों ने मेरी देह की सारी थकान , सब दर्द , जिस तरह सुनील और अजय ने मिल के मुझे रगड़ा था , सब गायब। बस हलकी हलकी नींद सी मेरी आँखों में छा रही थी। लेकिन मुझे लग रहा था जल्द ही बसंती की उँगलियाँ फिर एक बार , वहीँ पहुँच जाएंगी ,... और फिर मस्ती में मेरी देह ,...
लेकिन बसंती तड़पाने और तरसाने में भी उतनी ही माहिर थी जितनी जवानी की आग लगाने में ,
कन्धों के बाद उसके दोनोंहाथ मेरी पीठ को मींजते मींडते जब कुल्हो तक आये तो मुझे लगा की अब , अब ,.... लेकिन बसंती तो बसंती ,उस ने दोनों कूल्हों को जोर जोर से दबाया , मेरे नितम्बो का सारा दर्द निकाल दिया और यहाँ तक की जब उसने जोर से दोनों हाथों से दोनों नितम्बो को फैला के मेरे पिछवाड़े के छेद को पूरी ताकत से फैलाया , मुझे लगा अब फिर से ,...
लेकिन नहीं ,उसके हाथ अब सीधे सरक के मेरी जाँघों और टखनों तक पहुँच गए थे। मेरे पैरों का सारा दर्द उसकी उँगलियों ने जैसे चूस लिया था।
और ' वो वाली ' फीलिंग मुझे उसकी उँगलियों ने नहीं बल्कि , उसके गदराये भरे भरे ठोस उरोजों ने दी जब हलके से उसने , अपने उभारों को मेरी पान ऐसी चिकनी पीठ पे हलके से सहलाया और , धीरे धीरे नीचे की ओर ,
एक बार फिर उसकी उँगलिया मेरे भरे चूतड़ों पे थीं। और अबकी वो जोर जोर से उसे दबा रही थी ,मसल रही थी , कोई मर्द क्या मसलेगा ऐसे। और साथ में उसके जोबन मेरी पीठ पे ,
एक बार उसने फिर गांड के छेद को , और अबकी पहले से भी जोर से , .... जब अच्छी तरह छेद खुल गया तो सीधे कटोरी से ,
टप ,... टप ,... टप ,
कड़वे तेल की बूंदे , एक के बाद एक। एक चौथाई कटोरी तो मेरी गांड में उसने डाल दिया होगा।
कड़वे तेल का असर होना तुरंत शुरू होगया , छरछराना
लेकिन मुझे मालूम था मुझे क्या करना है और मैंने जोर से गांड भींच ली।
लेकिन असली असर था , बंसती की उँगलियों का।
जैसे ही मैंने गांड का छेद भींचा , बसंती की तेल से सनी गदोरी सीधे मेरी चुनमुनिया पर ,जिसके अंदर अभी भी अजय की गाढ़ी गाढ़ी रसीली मलाई बची थी।
और हलके से सहलाने के साथ बसंती की अनुभवी हथेली ने मेरी चिकनी चमेली को धीमे धीमे भींचना शुरू कर दिया।
मस्ती से मेरी आँखे भिंच गयीं , कड़वे तेल का छरछराना परपराना सब मैं भूल गयी।
लेकिन बसंती सिर्फ दर्द देना नहीं जानती थी बल्कि मजे देना भी , और मौके का फायदा उठाना भी /
जब मैं दर्द से दुहरी हो रही थी उसने मेरा कुर्ता कंधे तक उठा दिया और अब मेरे गोल गोल गुदाज उभार भी खुले हुए थे।
एक हाथ उन खुले उभारों को कभी पकड़ता ,कभी सहलाता ,कभी दबाता।
कभी निपल जोर से पकड़ के वो पुल कर देती।
और कब दर्द मजे में बदल गया मुझे पता ही नहीं चला। साथ में नीचे की मंजिल पे अब दुहरा हमला हो रहा था। एक हाथ की हथेली मेरी चूत पे रगड़घिस्स कर रही थी और दूसरे हाथ का हमला मेरे पिछवाड़े बदस्तूर जारी था।
गांड में घुसी अंगुलिया गोल गोल घूम रही थीं , करोच रही थी
और जब वो वहां से निकली तो
सीधे नीचे वाले मुंह से ऊपर वाले मुंह में ,...
और हलक तक। बसंती से कौन जीत सका है आज तक।
और बात बदलने में भी और केयर करने दोनों में बसंती नंबर एक।
बोली ,चलो अब थोड़ा मालिश कर दूँ , सारा दर्द एकदम गायब हो जाएगा। फिर खाना।
.............................
बसंती दर्द देने में भी माहिर थी और दर्द दूर करने में ,
लेकिन मजा दोनों हालत आता था।
मेरी टाइट शलवार अब ऑलमोस्ट उतर चुकी थी और कुरता बस कंधों तक सिमटा पड़ा था।
मैं पेट के बल लेटी थी , मेरे खुले गोरे गदराये उरोज चटाई पर दबे , और मस्त नितम्ब उभरे हुए ,
" हे सर पे कड़ा कड़ा लग रहा है , ये लगा लो " बसंती ने अपना ब्लाउज उतार के मेरे सर के नीचे रख दिया और तेल लगी उसकी उँगलियाँ मेरे कंधे दबाने लगी और थोड़ी ही देर में उन उँगलियों ने मेरी देह की सारी थकान , सब दर्द , जिस तरह सुनील और अजय ने मिल के मुझे रगड़ा था , सब गायब। बस हलकी हलकी नींद सी मेरी आँखों में छा रही थी। लेकिन मुझे लग रहा था जल्द ही बसंती की उँगलियाँ फिर एक बार , वहीँ पहुँच जाएंगी ,... और फिर मस्ती में मेरी देह ,...
लेकिन बसंती तड़पाने और तरसाने में भी उतनी ही माहिर थी जितनी जवानी की आग लगाने में ,
कन्धों के बाद उसके दोनोंहाथ मेरी पीठ को मींजते मींडते जब कुल्हो तक आये तो मुझे लगा की अब , अब ,.... लेकिन बसंती तो बसंती ,उस ने दोनों कूल्हों को जोर जोर से दबाया , मेरे नितम्बो का सारा दर्द निकाल दिया और यहाँ तक की जब उसने जोर से दोनों हाथों से दोनों नितम्बो को फैला के मेरे पिछवाड़े के छेद को पूरी ताकत से फैलाया , मुझे लगा अब फिर से ,...
लेकिन नहीं ,उसके हाथ अब सीधे सरक के मेरी जाँघों और टखनों तक पहुँच गए थे। मेरे पैरों का सारा दर्द उसकी उँगलियों ने जैसे चूस लिया था।
और ' वो वाली ' फीलिंग मुझे उसकी उँगलियों ने नहीं बल्कि , उसके गदराये भरे भरे ठोस उरोजों ने दी जब हलके से उसने , अपने उभारों को मेरी पान ऐसी चिकनी पीठ पे हलके से सहलाया और , धीरे धीरे नीचे की ओर ,
एक बार फिर उसकी उँगलिया मेरे भरे चूतड़ों पे थीं। और अबकी वो जोर जोर से उसे दबा रही थी ,मसल रही थी , कोई मर्द क्या मसलेगा ऐसे। और साथ में उसके जोबन मेरी पीठ पे ,
एक बार उसने फिर गांड के छेद को , और अबकी पहले से भी जोर से , .... जब अच्छी तरह छेद खुल गया तो सीधे कटोरी से ,
टप ,... टप ,... टप ,
कड़वे तेल की बूंदे , एक के बाद एक। एक चौथाई कटोरी तो मेरी गांड में उसने डाल दिया होगा।
कड़वे तेल का असर होना तुरंत शुरू होगया , छरछराना
लेकिन मुझे मालूम था मुझे क्या करना है और मैंने जोर से गांड भींच ली।
लेकिन असली असर था , बंसती की उँगलियों का।
जैसे ही मैंने गांड का छेद भींचा , बसंती की तेल से सनी गदोरी सीधे मेरी चुनमुनिया पर ,जिसके अंदर अभी भी अजय की गाढ़ी गाढ़ी रसीली मलाई बची थी।
और हलके से सहलाने के साथ बसंती की अनुभवी हथेली ने मेरी चिकनी चमेली को धीमे धीमे भींचना शुरू कर दिया।
मस्ती से मेरी आँखे भिंच गयीं , कड़वे तेल का छरछराना परपराना सब मैं भूल गयी।