hotaks444
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“दीदी, तुम कहो तो मैं भी कुछ इसकी ट्रेनिंग करवा दूं…” पूरबी मेरी भाभी से मुश्कुरा के बोली।
“और क्या, तुम ससुराल से इत्ती प्रैक्टिस करके आयी हो, और… आखिर ये तुम्हारी भी तो ननद है…” भाभी बोलीं।
हमलोग झूले के लिये निकलने ही वाले थे की जमकर बारिश शुरू हो गयी और हमारा प्रोग्राम धरा का धरा रह गया।
बारिश खूब देर तक चली और बारिश के कारण चन्दा भी नहीं आ पायी। पर पूरबी, गीता, कामिनी भाभी के साथ खूब चुहलबाजी हुई, सब शर्म छोड़कर, और खास कर तो पूरबी मेरे पीछे ही पड़ी थी। जब कोई भाभी उसे चिढ़ाते हुये पूछती- “लगाता है, खूब स्तन मर्दन हुआ है, तुम्हारी चोली तंग हो गयी है…”
तो वह चोली के ऊपर से ही मेरे जोबन दबा के दिखाते हुये कहती- “हां भाभी वो ऐसे ही दबाते थे…”
पूरबी तो मेरे पीछे थी ही, पर जिस तरह कामिनी भाभी मुझे मीठी तिरछी निगाहों से देख रहीं थी, मैं समझ गयी कि उनके भी इरादे कम खतरनाक नहीं। दो-तीन घंटे में मैं पूरबी और कामिनी भाभी से काफी खुल गयी। जब शाम होने को थी तब बारिश बंद हुई और सब लोग जा रहे थे की चन्दा आयी। चलते समय, कामिनी भाभी मुझसे गले मिली और बोली- “ननद रानी मैं तो तुम्हें इतना एक्सपर्ट बना दूंगी कि जितना चार-चार बच्चों की मां नहीं होती…”
..............
फिर बारिश ,झमाझम
चन्दा ने मुझे नीचे से ऊपर तक देखा, और धीरे से बोली- “इतना श्रिंगार, किसी के पास जाने वाली थी क्या…”
मैं भी उसी सुर में बोली- “तुम्हारे बिना कौन ले जाने वाला है…”
“उसी लिये तो आयी हूँ सुबह तुमने किसी से वादा किया था…” मेरे गाल पर कस के चिकोटी काटती वो बोली।
“भाभी, जरा इसको मैं बाहर की हवा खिला लाऊँ, गांव के बाग बगीचे दिखा लाऊँ…” वह चम्पा भाभी से बोली।
“ले जाओ, बेचारी सुबह से घर में बैठी है, बरसात के चक्कर में झूला भी नहीं जा पायी…” चम्पा भाभी ने इजाजत दे दी।
हम दोनों तेजी से घर के बाहर निकले। मैं चन्दा से भी तेज चल रही थी।
“हे बहुत बेकरार हो रही हो यार से मिलने के लिये…” चन्दा ने मुझे छेड़ा।
“और क्या…” मैं भी उसी अंदाज में बोली।
बरसात के बाद जमीन से जो भीनी-भीनी सुगंध निकल रही थी, ठंडी मदमस्त सावन की बयार बह रही थी, हरी कालीन की तरह धान के खेत बिछे थे, झूलों पर से कजरी गाने की आवाजें आ रही थीं, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था। चन्दा मेरा हाथ पकड़कर एक आम के बाग में खींच ले गयी।
बहुत ही घना बाग़ था और अंदर जाने पर एक अमराई के झुंड के अंदर वो मुझे ले गई।
कोई सोच भी नहीं सकता था कि वहां कोई कमरा होगा। शायद बाग के चौकीदार का हो। पर तबतक चन्दा मेरा हाथ पकड़कर कमरे के अंदर ले गयी और जब तक मेरी आँखें उसके अंधेरे की अभ्यस्त होतीं, उसने अंदर से सांकल लगा दी। अंदर पुवाल के एक ढेर पे सुनील और रवी लेटे थे, और एक बोतल से कुछ पी रहे थे। दोनों के पाजामे में तने तंबू बता रहे थे कि इंतजार में उनकी क्या हालत हो रही है।
“हे, दोनों… तुमने तो कहा था कि…” शिकायत भरे स्वर में मैंने चन्दा की ओर देखा।
तब तक सुनील ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी गोद में खींच लिया, और जब तक मैं सम्हलती उसके बेताब हाथ मेरी चोली के हुक खोल रहे थे।
“अरे एक से भले दो… आज दोनों का मजा लो…” चन्दा भी उनके पास सटकर बैठकर बोली।
“अरे लड़कियां बनी इस तरह होती हैं, एक-एक गाल चूमे और दूसरा, दूसरा…” यह कहकर उसने मेरा गाल कस के चूम लिया।
“और एक-एक चूची दबाये और दूसरा, दूसरा…” ये कहते हुए सुनील ने कस के मेरी एक चूची अधखुली चोली के ऊपर से दबायी और रवी ने चोली
खोल के मेरा दूसरे जोबन का रस लूटा।
मैं समझ गयी की आज मैं बच नहीं सकती इसलिये मैंने बात बदली- “ये तुम दोनों क्या पी रहे थे, कैसी महक आ रही थी…”
अभी भी उसकी तेज महक मेरे नथुनों में भर रही थी।
“अरे चन्दा, जरा इसको भी चखा दो ना…” सुनील बोला। मैं उसकी गोद में पड़ी थी। मेरा एक हाथ रवी ने कस के पकड़ा और दूसरा चन्दा ने। चन्दा ने बोतल उठाकर मेरे मुँह में लगायी पर उसकी महक या बदबू इतनी तेज थी कि मैंने कसकर दोनों होंठ बंद कर लिये।
पर चन्दा कहां मानने वाली थी, उसने कस के मेरे गाल दबाये और जैसे ही मेरा मुँह थोड़ा सा खुला, बोतल लगाकर उड़ेल दी। तेज तेजाब जैसे मेरे गले से लेकर सीधे चूत तक एक आग जैसी लग गयी। थोड़ी देर में ही एक अजीब सा नशा मेरे ऊपर छाने लगा।
“अरे गांव की हर चीज ट्राई करनी चाहीये, चाहे वह देसी दारू ही क्यों ना हो…” चन्दा हँसते हुये बोली। पर चन्दा ने दुबारा बोतल मेरे मुँह को लगाया तो मैंने फिर मुँह बंद कर लिया। अबकी सुनील से नहीं रहा गया, और उसने मेरे दोनों नथुने कस के भींच दिये।
“मुझे मुँह खुलवाना आता है…” सुनील बोला।
मजबूरन मुझे मुँह खोलना पड़ा और अबकी चन्दा ने बोतल से बची खुची सारी दारू मेरे मुँह में उड़ेल दी। मेरे दिमाग से लेकर चूत तक आग सी लगा गयी और नशा मेरे ऊपर अच्छी तरह छा गया। सुनील और रवी ने मिलकर मेरी चोली अलग कर दी थी और दोनों मिलकर मेरे जोबन की मसलायी, रगड़ायी कर रहे थे।
“हे तुमने कहा था… की…” मैंने शिकायत भरे स्वर में सुनील की ओर देखा।
सुनील ने मेरे प्यासे होंठों पर एक कसकर चुम्बन लेते हुये, मेरे निपल को रगड़ते हुये बोला- “तो क्या हुआ, रवी भी मेरा दोस्त है, और तुम भी… और वह बेचारा भी मेरी तरह तुम्हारे लिये तड़प रहा है, और इसके बाद तो मैं तुमको चोदूंग ही, बिना चोदे थोड़े ही छोड़ने वाला हूँ मैं। तुम मेरे दोस्त की प्यास बुझाओ तब तक मैं तुम्हारी सहेली की आग बुझाता हूं, चलो चन्दा…” और वह चन्दा को पकड़कर वहीं बगल में लेट गया।
“हे ये क्या यहीं… मेरे सामने मुझे शर्म लगेगी…” मैंने मना किया।
“अरे रानी चोदवाने में… लण्ड घोंटने में शर्म नहीं और सामने शर्मा रही हो…”
“नहीं नहीं अबकी नहीं…” मैं मना करती रही।
“चलो अबकी तो मान जाती हूँ पर ये शरम वरम का चक्कर छोड़ो, अगली बार से मेरे सामने ही चुदवाना पड़ेगा…” चन्दा बोली।
“और क्या, तुम ससुराल से इत्ती प्रैक्टिस करके आयी हो, और… आखिर ये तुम्हारी भी तो ननद है…” भाभी बोलीं।
हमलोग झूले के लिये निकलने ही वाले थे की जमकर बारिश शुरू हो गयी और हमारा प्रोग्राम धरा का धरा रह गया।
बारिश खूब देर तक चली और बारिश के कारण चन्दा भी नहीं आ पायी। पर पूरबी, गीता, कामिनी भाभी के साथ खूब चुहलबाजी हुई, सब शर्म छोड़कर, और खास कर तो पूरबी मेरे पीछे ही पड़ी थी। जब कोई भाभी उसे चिढ़ाते हुये पूछती- “लगाता है, खूब स्तन मर्दन हुआ है, तुम्हारी चोली तंग हो गयी है…”
तो वह चोली के ऊपर से ही मेरे जोबन दबा के दिखाते हुये कहती- “हां भाभी वो ऐसे ही दबाते थे…”
पूरबी तो मेरे पीछे थी ही, पर जिस तरह कामिनी भाभी मुझे मीठी तिरछी निगाहों से देख रहीं थी, मैं समझ गयी कि उनके भी इरादे कम खतरनाक नहीं। दो-तीन घंटे में मैं पूरबी और कामिनी भाभी से काफी खुल गयी। जब शाम होने को थी तब बारिश बंद हुई और सब लोग जा रहे थे की चन्दा आयी। चलते समय, कामिनी भाभी मुझसे गले मिली और बोली- “ननद रानी मैं तो तुम्हें इतना एक्सपर्ट बना दूंगी कि जितना चार-चार बच्चों की मां नहीं होती…”
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फिर बारिश ,झमाझम
चन्दा ने मुझे नीचे से ऊपर तक देखा, और धीरे से बोली- “इतना श्रिंगार, किसी के पास जाने वाली थी क्या…”
मैं भी उसी सुर में बोली- “तुम्हारे बिना कौन ले जाने वाला है…”
“उसी लिये तो आयी हूँ सुबह तुमने किसी से वादा किया था…” मेरे गाल पर कस के चिकोटी काटती वो बोली।
“भाभी, जरा इसको मैं बाहर की हवा खिला लाऊँ, गांव के बाग बगीचे दिखा लाऊँ…” वह चम्पा भाभी से बोली।
“ले जाओ, बेचारी सुबह से घर में बैठी है, बरसात के चक्कर में झूला भी नहीं जा पायी…” चम्पा भाभी ने इजाजत दे दी।
हम दोनों तेजी से घर के बाहर निकले। मैं चन्दा से भी तेज चल रही थी।
“हे बहुत बेकरार हो रही हो यार से मिलने के लिये…” चन्दा ने मुझे छेड़ा।
“और क्या…” मैं भी उसी अंदाज में बोली।
बरसात के बाद जमीन से जो भीनी-भीनी सुगंध निकल रही थी, ठंडी मदमस्त सावन की बयार बह रही थी, हरी कालीन की तरह धान के खेत बिछे थे, झूलों पर से कजरी गाने की आवाजें आ रही थीं, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था। चन्दा मेरा हाथ पकड़कर एक आम के बाग में खींच ले गयी।
बहुत ही घना बाग़ था और अंदर जाने पर एक अमराई के झुंड के अंदर वो मुझे ले गई।
कोई सोच भी नहीं सकता था कि वहां कोई कमरा होगा। शायद बाग के चौकीदार का हो। पर तबतक चन्दा मेरा हाथ पकड़कर कमरे के अंदर ले गयी और जब तक मेरी आँखें उसके अंधेरे की अभ्यस्त होतीं, उसने अंदर से सांकल लगा दी। अंदर पुवाल के एक ढेर पे सुनील और रवी लेटे थे, और एक बोतल से कुछ पी रहे थे। दोनों के पाजामे में तने तंबू बता रहे थे कि इंतजार में उनकी क्या हालत हो रही है।
“हे, दोनों… तुमने तो कहा था कि…” शिकायत भरे स्वर में मैंने चन्दा की ओर देखा।
तब तक सुनील ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी गोद में खींच लिया, और जब तक मैं सम्हलती उसके बेताब हाथ मेरी चोली के हुक खोल रहे थे।
“अरे एक से भले दो… आज दोनों का मजा लो…” चन्दा भी उनके पास सटकर बैठकर बोली।
“अरे लड़कियां बनी इस तरह होती हैं, एक-एक गाल चूमे और दूसरा, दूसरा…” यह कहकर उसने मेरा गाल कस के चूम लिया।
“और एक-एक चूची दबाये और दूसरा, दूसरा…” ये कहते हुए सुनील ने कस के मेरी एक चूची अधखुली चोली के ऊपर से दबायी और रवी ने चोली
खोल के मेरा दूसरे जोबन का रस लूटा।
मैं समझ गयी की आज मैं बच नहीं सकती इसलिये मैंने बात बदली- “ये तुम दोनों क्या पी रहे थे, कैसी महक आ रही थी…”
अभी भी उसकी तेज महक मेरे नथुनों में भर रही थी।
“अरे चन्दा, जरा इसको भी चखा दो ना…” सुनील बोला। मैं उसकी गोद में पड़ी थी। मेरा एक हाथ रवी ने कस के पकड़ा और दूसरा चन्दा ने। चन्दा ने बोतल उठाकर मेरे मुँह में लगायी पर उसकी महक या बदबू इतनी तेज थी कि मैंने कसकर दोनों होंठ बंद कर लिये।
पर चन्दा कहां मानने वाली थी, उसने कस के मेरे गाल दबाये और जैसे ही मेरा मुँह थोड़ा सा खुला, बोतल लगाकर उड़ेल दी। तेज तेजाब जैसे मेरे गले से लेकर सीधे चूत तक एक आग जैसी लग गयी। थोड़ी देर में ही एक अजीब सा नशा मेरे ऊपर छाने लगा।
“अरे गांव की हर चीज ट्राई करनी चाहीये, चाहे वह देसी दारू ही क्यों ना हो…” चन्दा हँसते हुये बोली। पर चन्दा ने दुबारा बोतल मेरे मुँह को लगाया तो मैंने फिर मुँह बंद कर लिया। अबकी सुनील से नहीं रहा गया, और उसने मेरे दोनों नथुने कस के भींच दिये।
“मुझे मुँह खुलवाना आता है…” सुनील बोला।
मजबूरन मुझे मुँह खोलना पड़ा और अबकी चन्दा ने बोतल से बची खुची सारी दारू मेरे मुँह में उड़ेल दी। मेरे दिमाग से लेकर चूत तक आग सी लगा गयी और नशा मेरे ऊपर अच्छी तरह छा गया। सुनील और रवी ने मिलकर मेरी चोली अलग कर दी थी और दोनों मिलकर मेरे जोबन की मसलायी, रगड़ायी कर रहे थे।
“हे तुमने कहा था… की…” मैंने शिकायत भरे स्वर में सुनील की ओर देखा।
सुनील ने मेरे प्यासे होंठों पर एक कसकर चुम्बन लेते हुये, मेरे निपल को रगड़ते हुये बोला- “तो क्या हुआ, रवी भी मेरा दोस्त है, और तुम भी… और वह बेचारा भी मेरी तरह तुम्हारे लिये तड़प रहा है, और इसके बाद तो मैं तुमको चोदूंग ही, बिना चोदे थोड़े ही छोड़ने वाला हूँ मैं। तुम मेरे दोस्त की प्यास बुझाओ तब तक मैं तुम्हारी सहेली की आग बुझाता हूं, चलो चन्दा…” और वह चन्दा को पकड़कर वहीं बगल में लेट गया।
“हे ये क्या यहीं… मेरे सामने मुझे शर्म लगेगी…” मैंने मना किया।
“अरे रानी चोदवाने में… लण्ड घोंटने में शर्म नहीं और सामने शर्मा रही हो…”
“नहीं नहीं अबकी नहीं…” मैं मना करती रही।
“चलो अबकी तो मान जाती हूँ पर ये शरम वरम का चक्कर छोड़ो, अगली बार से मेरे सामने ही चुदवाना पड़ेगा…” चन्दा बोली।