Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 20 - SexBaba
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Long Sex Kahani सोलहवां सावन

रात भर ,... फुहार 







और तभी आँगन में पानी की पहली बूँद पड़ी ,लेकिन हम तीनों में से कोई हटने वाला नहीं था। 

एक ,.. दो ,... तीन,... चार ,.... सावन की बूंदे ,


आसमान बादलों से भर गया था ,और माँ ने गुलबिया को बोला ,चल अब भौजाई का नम्बर 


और गुलबिया मेरे मुंह के ऊपर थी ,मैंने खुद मुंह खोल दिया। लेकिन अबकी माँ ने गुलबिया के ही ब्लाउज से मेरी कोमल कोमल कलाई कस के बांध दी थी और खुद मेरी कमर के पास बैठ गयी थी। 

थोड़ी देर तक गुलबिया ने खेल तमाशा किया ,तड़पाया फिर बोली , 

" बहुत भूखी होगी मेरी ननदिया न। "



अब मैं इतनी नासमझ नहीं थी मैंने मुंह तुरंत बंद करने की कोशिश की पर गुलबिया के आगे , मेरे नथुने उसने बंद कर दिया , बोली 

चल गांड चाट ,अभी मेरे सामने इतनी मस्ती से चाट रही थी ,


मैं चाटना शुरू कर दिया। 

लेकिन ,... 


आसमान एकदम काला हो गया। 

रॉकी ,माँ ,पेड़ की बस छाया दिख रही थी। 

बारिश बहुत तेज हो गयी थी। 


भाभी की माँ ने एक साथ मेरे निपल और क्लीट नोच लिए , 

मैं जोर से चीखी मेरा मुंह पूरा खुल गया ,



और ,


और ,... 


और ,.... 

और ,... 


और ,.... 


तेज तूफ़ान आ गया था। बिजली चमक रही थी ,बादल गरज रहे थे। 


गुलबिया ने ,... 


फिर तो वो सब हुआ जो न कहने लायक ,न लिखने लायक। 

एकदम गर्हित ,किंकी ,.. 

पूरी रात ,गुलबिया ,... मां 


खूब भोगी गयी मैं ,चार चार बार उन दोनों को झाड़ा मैंने और उन दोनों ने ,


लेकिन ,... 

लेकिन न तो एक बूँद मैं रात में सोई न एक बार झड़ी। 





न मैं न रॉकी , उन दोनों ने ही नहीं छोड़ा मुझे। 



फिर जब रात अभी ख़तम नहीं हुयी थी ,एक आध पहर बाकी होगी। बारिश करीब बंद हो गयी थी , माँ ने दे दिया गुलबिया को इनाम ,


सुन अभी ले जा न इसको अपने टोले में ,ज़रा वहां का भी तो मजा ले ले। मैं सोने जा रही हूँ। भोर होने पर सारा गाँव देखेगा उसके पहले 

बस मैंने और गुलबिया ने खाली साडी टांग ली अपने देह के ऊपर ,जब मैं गुलबिया के साथ निकल रही थी ,

आसमान की स्याही हलकी पड रही थी। 

भरौटी पहुंचते पहुँचते ,आसमान में हलकी सी लाली दिख रही थी। हम दोनों सीधे गुलबिया के घर में घुस गए।




उसका मरद अपने काम के लिए निकल गया था ,सिर्फ हमी दोनों थे। 

मैं बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर गयी। 

लेकिन आधे घंटे भी नहीं सोई होउंगी की गुलबिया ने जगा दिया ,...आसमान में सूरज अभी बिंदी लगा रहा था।
 
भरौटी के मजे





फिर जब रात अभी ख़तम नहीं हुयी थी ,एक आध पहर बाकी होगी। बारिश करीब बंद हो गयी थी , माँ ने दे दिया गुलबिया को इनाम ,


सुन अभी ले जा न इसको अपने टोले में ,ज़रा वहां का भी तो मजा ले ले। मैं सोने जा रही हूँ। भोर होने पर सारा गाँव देखेगा उसके पहले 

बस मैंने और गुलबिया ने खाली साडी टांग ली अपने देह के ऊपर ,जब मैं गुलबिया के साथ निकल रही थी ,

आसमान की स्याही हलकी पड रही थी। 

भरौटी पहुंचते पहुँचते ,आसमान में हलकी सी लाली दिख रही थी। हम दोनों सीधे गुलबिया के घर में घुस गए। 

उसका मरद अपने काम के लिए निकल गया था ,सिर्फ हमी दोनों थे। 

मैं बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर गयी। 

लेकिन आधे घंटे भी नहीं सोई होउंगी की गुलबिया ने जगा दिया ,...आसमान में सूरज अभी बिंदी लगा रहा था।



............


एक बात अब मैं समझ गयी हूँ ,उस समय भी कुछ कुछ अंदाज तो हो ही गया था। अगर किसी लौंडिया को रात भर जगा के रखो , और ऊपर से उसे झड़ने भी मत दो ,... तो बस एक तो मारे थकान के उसका रेजिस्टेंस एकदम कम हो जाएगा , और झड़ने के लिए भी वो एकदम बेचैन रहेगी। 

और वही हुआ। 

पूरे दिन भर , भरौटी के लौंडो की लाइन , ... 


शुरू से बताती हूँ। 


थोड़ा फास्ट फारवर्ड करके , मुझे उठाते ही गुलबिया ने , मेरे आगे पीछे एक सूखे कपडे को ऊँगली में लपेट के अंदर की सुनील और चुन्नू की सारी मलाई साफ़ कर दी। यानी एकदम सूखी ,... 

और उसके साथ एक औरत थीं , गाँव के रिश्ते से जेठानी लगती थीं शायद ,बस उम्र में गुलबिया से १-२ साल ज्यादा होंगी ,२६-२७ की लेकिन हर बात में गुलबिया के टक्कर की ,बल्कि २० ही होगी। 



अगवाड़े की सफाई गुलबिया ने की तो पिछवाड़े का जिम्मा उन्होंने लिया , गांड मेरी एकदम सूखी कर दी। 

" रानी अब आयेगा मजा गांड मराई का , जब पटक पटक के लौंडे सूखी गांड में पेलेंगे ने , खूब परपरायेगी। " बोलीं वो ,

लेकिन मैं कुछ बोलने की हालत में नहीं थी , रात भर की जागी , जम कर मेरी कुटाई हुयी थी ,एक पल भी न सो पायी थी न एक बार भी झड़ी थी। 

और उसके बाद उन्होंने गुलबिया के साथ मिल के जो मेरी हालत की थी , उस थकान के बाद भी एक बार फिर मेरी चूत में दोनों ने मिल के आग लगा दी। 

ऊँगली ,जीभ औरतों के पास भी कम औजार नहीं होते पागल बनाने के लिए। 

नीचे की मंजिल उन्होंने सम्हाली और ऊपर की गुलबिया ने ,



पहले उन्होंने अपनी हथेली से मेरी गुलाबी सहेली को जाँघों के बीच रगड़ना शुरू किया , ...और मैं पागल हो गयी.

उसके साथ ही तर्जनी और अंगूठे के बीच मटर के दाने ऐसी मेरी भगनासा को जोर जोर से रगड़ना शुरू कर दिया। 

बस ,पल भर में मैं पनिया गयी। बुर बुरी तरह गीली हो गयी। 



और ऊपर ऊपर से दोनों कच्ची अमिया को चखना ,काटना गुलबिया ने शुरू कर दिया। वो तो गाँव के लौंडो से भी ज्यादा मेरी कच्ची अमिया की दीवानी थी। 





कभी निपल चूसती तो कभी चूंची पे ही कचकचा के दांत गड़ा देती। 



इस दुहरे हमले का असर ये हुआ की मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयी ,दोनों मिल के मुझे झड़ने के कगार पे ले जाती और फिर छोड़ देतीं। 

रात भर मैं तड़पती रही , और सुबह से फिर वही ,



मस्ती से मेरी हालत खराब थी ,बस मन कर रहां था दोनों कुछ भी करे ,कुछ भी करे मुझे झाड़ दे ,





लेकिन अबकी जब मेरी देह कांपने लगी , मैं थरथराने लगी तो उसी समय दोनों रुक गयीं। 




मैं आँखे बंद किये सोच रही थी दोनों छिनार अब कुछ करेंगी ,अब कुछ करेंगी लेकिन ,... 

हार कर जब मैंने आँखे खोली तो सामने एक लड़का था , खूब तगड़ा , मस्क्युलर और बस मेरी आँख खुलते ही उसने अपना छोटा सा लुंगी सा लिपटा कपड़ा हटा लिया।
 
एक एक पर तीन तीन 





मैं आँखे बंद किये सोच रही थी दोनों छिनार अब कुछ करेंगी ,अब कुछ करेंगी लेकिन ,... 

हार कर जब मैंने आँखे खोली तो सामने एक लड़का था , खूब तगड़ा , मस्क्युलर और बस मेरी आँख खुलते ही उसने अपना छोटा सा लुंगी सा लिपटा कपड़ा हटा लिया। 

लडके को मैंने तबतक पहचान लिया था। परसों दिन में ही तो जब मैं गुलबिया के साथ जा रही तो ये मिला और बजाय कुछ छेड़ने के ,कमेंट के सीधे बोल दिया 

" कब चुदवायेगी , आ घोंट ले मेरा लंड। "

और आज भी उसका लंड एकदम फनफना रहा था ,


न कोई फोरप्ले न चूमा चाटी ,सीधे चढ़ गया।
जब तक मैं सम्हलूँ ,पूरा मोटा सुपाड़ा उसने अंदर पेल दिया। 

मोटा तो खैर था ही लेकिन जिस तरह से उसने अंदर ठेला ,लग रहा था जैसे किसी ने अचानक एक झटके में पूरी मुट्ठी पेल दी हो ,मेरी जान निकल गयी। 

बस उसके तगड़े हाथों ने मेरी कोमल कलाइयों को जकड़ रखा था जिससे मैं सूत भर भी हिल नहीं सकती। 

मेरी कोमल मुलायम चमड़ी को रगड़ते ,दरेरते जिस तरह उसका मोटा लंड घुसा ,जोर से मेरी चीख निकल गयी। 








लेकिन उसे न तो कोई फर्क पड़ा न उसने मेरे चीखने की ,दर्द की परवाह की। 

न उसने अपने होंठों से मेरे होंठ सील करने की कोशिश की ,न मेरे उसे मेरे गदराये किशोर जोबन की परवाह की ,जिसपे गाँव के सारे लौंडे लट्टू थे ,

बस अपनी कमर के जोर से दूसरा धक्का मार दिया ,फिर तीसरा ,फिर चौथा ,


ई ईईईई ओह्ह ओह्ह्ह आह्ह जान गयी ईईईईई ,... मेरी ह्रदय विदारक चीख पूरे भरौटी में गूँज गयी ,


लेकिन उसने लंड आलमोस्ट पूरा निकाल कर एकदम ऐसा धक्का दिया की बस 

जैसे कोई खूब तगड़ा ,खेला खाया साँड़ ,किसी पहली बार वाली बछिया पर चढ़ जाए। 



ओह्ह हां रुक रुक , गुलबिया है भौजी बोलो न , जान निकल जायेगी मेरी ,नही उईईईईई 

और इस बार दो धक्के में ही लंड बच्चेदानी पे ठोकर मार रहा था। 


गुलबिया आयी , लेकिन बजाय मुझे बचाने के उसे ही ललकारने लगी। 

" अरे ऐसे हलके हलके चोदने से कुछ नहीं होगा। ई तो रंडी की जनी, खानदानी ७ पुस्त की रंडी है। इसके खानदान में लौंडियों की झांटे बाद में आती ही ,लौंडा पहले ढूंढती है। ई तो गदहे कुत्तों से चुदवाने वाली है , इसके चिल्लाने पे न जाओ। ई वैसे छिनारपना कर रही है ,पेल साली को पूरी ताकत से। "




फिर तो ऐसे तूफ़ान मचा ,



और गुलबिया और उसकी जेठानी भी , कोई मेरी चूची काटता तो कोई निपल उमेठता।


और उस लड़के की चुदाई भी ,

जैसे कोई मशीन चोद रही हो मुझे। 

न उसे मेरे दर्द की परवाह थी न मजे की , बस हर धक्का पहले से भी तगड़ा होता था। 

मैं कच्ची फर्श पे चूतड़ रगड़ रही थी ,चीख रही थी चिल्ला रही थी लेकिन बस वो चोद रहा था। 

एकदम रा और रफ,


ऊपर से गुलबिया की जेठानी ,जोर से मेरा निपल काट के बोलीं 

" अरे तानी और जोर से चिल्लाओ न , जैसे नौटंकी में नगाड़े का काम होता है न बस वही काम इस टोले में चीख का है। चुप चाप चुदवा लेती तो शायद बच जाती लेकिन अभी तुम्हारी चीख सुन के देखना गुड़ पे माखी की तरह लौंडे आ जायेंगे। "


वही हुआ। 

१५ -२० मिनट की धक्कम पेल चुदाई के बाद मुझे उस दर्द में भी मजा आने लगा था ,एक अलग तरह की सिहरन ,चूत सिकुड़ने फैलने लगी थी। मैं उसके धक्के का साथ देने की कोशिश करने लगी थी , मस्ती से मेरी आँख बंद हो गयी थी। 


और जब मेरी आँख खुली तो एक लौंडा और ,अपना बियर कैन मार्का लंड मुठियाते हुये।
मेरी तो आँखे फटी रह गयीं। 



आज तक इतना मोटा लंड नहीं देखा था और अभी पूरी तरह खड़ा भी नहीं था , बस वो मुझे देख के मुठिया रहा था। 

देखने में इतना गंवार , चेहरा भी एकदम , शायद वैसे तो मैं उसकी ओर मुंह उठा के भी नहीं देखती , लेकिन इस समय बस मेरी निगाहें उसके लंड से चिपकी रह गयी। 

मेरी निगाहें हटीं जब दो जोरदार चाँटे मेरे चूतड़ पर लगे और जो भरौटी का लौंडा मुझे चोद रहा था , उसने पहली बार बोला। मेरे चूतड़ पर झापड़ मारते ,

" चल छिनार चढ़ मेरे लंड पे ,चोद चढ़ के मुझे ,... "
 
चढ़ गयी शूली पर 












मेरी निगाहें हटीं जब दो जोरदार चाँटे मेरे चूतड़ पर लगे और जो भरौटी का लौंडा मुझे चोद रहा था , उसने पहली बार बोला। मेरे चूतड़ पर झापड़ मारते ,

" चल छिनार चढ़ मेरे लंड पे ,चोद चढ़ के मुझे ,... "

एक पल के लिए तो मैं सकपकायी लेकिन गुलबिया ने इशारा किया की मैं चुपचाप उसकी बात मान जाऊं वरना , ... 

और बिना रुके उसने फिर दो जबरदस्त चाँटे मेरी गांड पे मार दिए। चूतड़ पे जैसे गुलाब खिल आये। 

बस बिना रुके ,मैं अब उपर थी। 


कुछ देर तक तो मैं हलके हलके उसे चोदती रही , लेकिन फिर उसने जोर से मुझे अपनी ओर खींच लिया , कचकचा के मेरे निपल काट लिए और हचाक से जैसे कोई भाले बींधे ,अपना एक बित्ते का लंड मेरी चूत में पेल दिया। 

मैं फिर जोर से चीखी ,चीखती रही ,... 

क्योंकि अब चूतड़ों पर झापड़ पूरी तेजी से बरस रहे थे। 


गुलबिया की जेठानी ,क्या लोहे के हाथ थे ,उनके हाथों के तमाचे ,... पूरे चूतड़ पे जैसे किसी ने मिर्चे का लेप लगा दिया हो ऐसे छरछरा रहा था। 

नीचे से वो हचक के चोद रहा था ,चुदाई का मजा भी आ रहा था ,दर्द भी हो रहा था। 




एक पल के लिए उसने चुदाई रोक दी ,अपनी दोनों टाँगे मेरी कमर के ऊपर बाँध दी ,हाथ भी ,

पीछे से गुलबिया की जेठानी ने मेरी गांड पूरी ताकत से खोल दी ,गुलबिया बिचारी मेरा सर सहला रही थी। 

अचानक नीचे से उसने फिर मेरा निपल कस के काटा , दूसरा निपल गुलबिया ने पकड़ के उमेठ दिया। 

दर्द से मैं दुहरी हो गयी थी , जोर से चीख निकली। 

लेकिन ये दर्द तो कुछ भी नहीं था ,जो लौंडा बियर कैन सा लंड मुठिया रहा था ,उसने मेरी गांड में सुपाड़ा पेल दिया। 

न कोई क्रीम ,न कडुआ तेल ,आप सोच सकते हैं की क्या हालत हुयी होगी मेरी ------ खूब जोर से चीखी मैं। 

आँख में आंसू डबडबा आये। लेकिन वो ठेलता रहा ,धकेलता रहा और कुछ ही देर में सुपाड़ा मेरी गांड ने घोंट लिया। 




गुलबिया की जेठानी अब मेरे सर के पास बैठी थीं , गुलबिया के साथ , मुस्करा के गुलबिया से बोली। 

" जो तूम कह रही थी ,एकदम ई छिनार वैसे निकली। एह उमर में इतनी ताकत आज तक हम कौनो लौंडिया में नहीं देखे थे , जबरदस्त रंडी बनेगी ये। "


दर्द तो अभी भी हो रहा था ,लेकिन अब धक्के नीचे ऊपर दोनों ओर से बंद थे इसलिए थोड़ा कम ,


लेकिन मुझे क्या मालूम था ये तूफ़ान के पहले की चुप्पी थी ,

अभी गांड का छल्ला तो बाकी ही था ,


और पीछे से जो अबकी उसने जोर का धक्का मारा , मेरी दोनों चूंचियां पकड़ के ,बस ,... 

गांड के छल्ले को दरेरता फाड़ता ,... 

एक के बाद एक,... 

दर्द से लग रहा था मैं बेहोश हो गयी,लेकिन मैं चीख भी नहीं पायी। 







मैंने देखा नहीं था एक और लौंडा ,... और उसने अपना लंड मेरे मुंह में ठोंक दिया। 


गुलबिया और उसकी जेठानी दोनों खिलखिला रही थी , गुलबिया बोली ,


" अब आयेगा तोहें भरौटी क लौंडन क असली मजा , ... "


यहाँ दर्द से जान निकली जा रही थी ,तीनों छेदों में मोटे मूसल चल रहे थे और गुलबिया ,.... 

.... 
..... 

पर जिस चीज के लिए मैं रात भर तड़पती रही वो ,.. 

दर्द से सिसकते ,चीखते हुए भी बस पांच मिनट के अंदर मैं झड गयी। 


लेकिन उन तीनों पर कोई असर नहीं पड़ा। वो चोदते रहे ,पेलते रहे ,गांड मारते रहे। 

दस मिनट के अंदर मैं दुबारा झड़ रही थी। 

और जब मैं तीन बार झड चुकी उसके बाद ,वो तीनों ,


कहने की बात नहीं है की जिसने मेरी गाँड़ मारी ,उसका लंड खुद गुलबिया की जेठानी ने पकड़ के मेरे मुंह में ठेल दिया। मैं उसका चाट के साफ़ कर रही थी तब तक एक और लौंडा ,...मेरी गांड में। 


जिन दोनों ने मुंह और बुर चोदा था उन दोनों ने भी गांड का भुरता बनाया।
और मेरी चूत और गांड में तो लंड घुसे ही थे ,अक्सर मुंह में भी ,... 

दो तीन घंटे तक उन लौंडो ने मेरी ऐसी की तैसी की ,जब वो गए तो बस समझिये जैसे मैं किसी गाढ़ी रबड़ी के तालाब में गोते लगा रही थी। 

उठा नहीं जा रहा था ,

और उठ पायी भी नहीं की दो चार औरते और भरौटी की आ गयीं ,
 
भूलूंगी नहीं भरौटी 





















उठा नहीं जा रहा था ,

और उठ पायी भी नहीं की दो चार औरते और भरौटी की आ गयीं ,


फिर क्या क्या नहीं करवाया मुझसे 

बुर चटवाया 

गांड चटवायी ,अंदर तक जीभ डाल के ,

सुनहला शरबत ,





और सिर्फ मेरे साथ ही नहीं आपस में भी , एक जो उन की ननद लगती थी उसे पटक कर मुझसे उसकी गांड में तीन तीन उँगलियाँ एक साथ , लेकिन फिर वो उँगलियाँ मेरे ही जबरदस्ती ,




मुझसे उम्र में थोड़ी ही बड़ी रही होगी ,सावन में मायके आयी थी। चार महीने पहले शादी हुयी थी ,उनकी ननद लगती थी लेकिन गाँव के रिश्ते में मेरी भाभी की बहन होने से मेरी भाभी ही ,


और फिर घर के पास कच्ची मिटटी में हम दोनों की कुश्ती भी करायी , जो जीतता वो हारने वाली की गांड मारता। 

खूब तेज पानी बरस रहा था , कीचड़ हो रहा था। 

जीती मैं ही और उसकी गांड भी मारी मैंने अपनी उँगलियों से ,.. 



उनके जाने के बाद गुलबिया ने कुछ मुझे खिलाया पिलाया ,


कुछ देर में सावन की धुप छाँह खिल के धुप निकल आयी ,और गुलबिया मुझे खेत घुमाने ले गयी। 

दोपहरिया अभी नहीं हुयी थी ,


खेत में दो लौंडे , वो जो परसों मुझसे मिले थे उसके बाद और ,


किसी को गन्ने के खेत या अमराई का भी इन्तजार नहीं था ,जहाँ दबोच लिया वहीँ ,और हर बार तीन तीन एक साथ। 


गुलबिया मुझे उनके बीच छोड़ के चली गयी अपना काम निपटाने। 

जब वो लौटी तो तिजहरिया हो गयी थी ,


जब वह लौटी तो तब तक मैं कम से कम ६-७ लौंडों के साथ ,... दो तीन बार से कम उनमे से किसी ने नहीं किया , एकाध ने तो बुर भले ही छोड़ दिया लेकिन गांड सबने मारी , कभी कुतिया बना के ,कभी अपने लंड पे बैठा के ,




और अगर ज़रा भी ना नुकुर हुयी तो मार झापड़ , गांड पे गाल पे ,... 


वहीँ कुंए पे गुलबिया ने नहलाया मुझे मल मल के ,साथ में उसकी वो ननद भी थी जिसके साथ सुबह मेरी 'कुश्ती ' हुयी थी। मुझे नहलाते हुए वो अपने सैयां नन्दोईयों खूब सूना रही थी.

कैसे होली में आँगन में उसके देवर और दो ननदोइयों ने मिलकर उसके तीनों छेदों का बारी बारी से मजा लिया। 
हाँ 
उसकी ननदों और सास ने गांड की चटनी चखाई , फिर गाँव में भी ,... 


जब गुलबिया मुझे छोड़ने आयी तो मुझसे चला नहीं जा रहा था। 

शाम अच्छी तरह ढल गयी थी ,बस गनीमत थी मेरी भाभी और चंपा भाभी अभी भी कामनी भाभी के घर से नहीं आयी थी। 


हाँ , माँ ने मुझे देखा और गुलबिया की ओर तारीफ़ की नजर से , ...हलके से बोलीं भी 'भौजाई हो तो ऐसी ' 


मैं कटे पेड़ की तरह अपनी कुठरिया में बिस्तर पर गिर गयी और मेरी आँख लग गयी। 

मुझे बस इतना याद है की किसी समय माँ ने आकर अपनी गोद में मेरा सर रख कर प्यार से खाना खिलाया और फिर मैंने उनकी गोद में सर रख के ही सो गयी।








सुबह नींद खुली तो आसमान में अभी भी थोड़े थोड़े तारे थे लेकिन बंसती गाय भैंस का काम निपटा रही थी। 

मैं फिर सो गयी , 


मुझे इतना अंदाज है , बसन्ती आयी ,लेकिन मैंने आँख नहीं खोली।
 
अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है 



अब तक 





वहीँ कुंए पे गुलबिया ने नहलाया मुझे मल मल के ,साथ में उसकी वो ननद भी थी जिसके साथ सुबह मेरी 'कुश्ती ' हुयी थी। मुझे नहलाते हुए वो अपने सैयां नन्दोईयों खूब सूना रही थी.

कैसे होली में आँगन में उसके देवर और दो ननदोइयों ने मिलकर उसके तीनों छेदों का बारी बारी से मजा लिया। 
हाँ 
उसकी ननदों और सास ने गांड की चटनी चखाई , फिर गाँव में भी ,... 


जब गुलबिया मुझे छोड़ने आयी तो मुझसे चला नहीं जा रहा था। 


शाम अच्छी तरह ढल गयी थी ,बस गनीमत थी मेरी भाभी और चंपा भाभी अभी भी कामनी भाभी के घर से नहीं आयी थी। 


हाँ , माँ ने मुझे देखा और गुलबिया की ओर तारीफ़ की नजर से , ...हलके से बोलीं भी 'भौजाई हो तो ऐसी ' 


मैं कटे पेड़ की तरह अपनी कुठरिया में बिस्तर पर गिर गयी और मेरी आँख लग गयी। 

मुझे बस इतना याद है की किसी समय माँ ने आकर अपनी गोद में मेरा सर रख कर प्यार से खाना खिलाया और फिर मैंने उनकी गोद में सर रख के ही सो गयी। 

सुबह नींद खुली तो आसमान में अभी भी थोड़े थोड़े तारे थे लेकिन बंसती गाय भैंस का काम निपटा रही थी। 

मैं फिर सो गयी , 

मुझे इतना अंदाज है , बसन्ती आयी ,लेकिन मैंने आँख नहीं खोली।





आगे 





बचे हुए दिन









गाँव में दिन कपूर की तरह , पंख लगा के उड़ गए। पता ही नहीं चलता था कब सुबह हुयी कब शाम ढली। 

रोज मुंह अंधेरे , भिनसारे जब भोर का तारा अभी आसमान में ही रहता ,प्रत्यूषा भी अपने नन्हे नन्हे पग धरते नहीं आ पाती उस समय ,... 

खड़बड़ ,खड़बड़ कभी मेरी नींद खुल जाती ,कभी नहीं भी खुलती। 

मैंने बताया था न मेरा कमरा घर के पिछवाड़े वाली साइड में ,कच्चे आँगन के पास था। कमरा क्या एक छोटी सी कुठरिया ,जिसमें एक रोशनदान , एक खिड़की और एक ऐसा छोटा सा दरवाजा भी था ( एकदम खिड़की की ही तरह ) जो बाहर खुलता था और उसी के पास में ही गाय भैंसों के बाँधने की जगह , 

सुबह सुबह वहीँ बंसती आकर नाद साफ़ करना ,चारा डालना , गाय भैंस दुहने से लेकर उनका सारा काम करती थी। उसी की खड़बड़, और उस के बाद सीधे मेरे पास ,


मुंह अँधेरे ,भिनसारे , ... मैं अक्सर जाग कर भी सोने का नाटक करती पर बसन्ती भौजी पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। 

सुबह सुबह , निखारे मुंह ,... घल घल घल घल ,... सुनहरी शराब की धार,... 


मैं थोड़ा नाटक करती ,नखड़ा करती ,... लेकिन ये बात मुझे भी मालूम थी और बसन्ती भौजी को किये सिर्फ नाटक है। 


और जब मैं देर से उठकर ,मंजन कर के रसोई में पहुंचती तो हर बार चंपा भाभी कभी इशारे से छेड़ते तो कभी साफ़ साफ़ पूछती जरूर ,.... लेकिन भाभी के सामने नहीं। 

और अगर कभी भाभी आ भी गयी तो वो और बसन्ती उनसे बस यही कहती की ,


" तेरी ननद को शहर की सबसे नमकीन लौंडिया बना के भेजेंगे हम "


नमकीन तो पता नहीं ,लेकिन वजन मेरा जरूर बढ़ गया था ,कपडे सब टाइट हो गए थे। इतने प्यार दुलार से चंपा भाभी ,भाभी की माँ कभी मनुहार से तोकभी जबरदस्ती ,... खूब मक्खन डाला हुआ दूध का बड़ा सा ग्लास जरूर पिलातीं उसके बाद जबरदस्त नाश्ता भी। 

मैं कभी कहती की मेरे कपडे टाइट हो गए हैं ,वजन बढ़ गया है तो चंपा भाभी का स्टैण्डर्ड जवाब था ,

" अरे ननद रानी ,वजन बढ़ रहा है लेकिन सही जगह पे " और मेरे उभारों को सबके सामने मसल देतीं। मेरी भाभी भी उनका ही साथ देतीं कहतीं 

" अरे टाइट ,टाइट कर रही हो, वापस चलोगी न तो मिलेगा मेरा देवर रविन्द्र ,...उससे ढीला करवा दूंगी। "

मेरी आँखों के सामने रविंद्र की शक्ल घूम जाती और चन्दा की बात , " गाँव में जितने लौंडे हैं न रविंद्र का उन सबसे २० नहीं २२ है। "


(एक बार जब वह मेरे यहां आयी थी तो उसने रविंद्र 'का देखा ' था कभी बाथरूम में ). 


सिर्फ घर में ही नहीं बाहर भी भाभियों का इतना प्यार दुलार मिला की , मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी। 
 
सिर्फ घर में ही नहीं बाहर भी भाभियों का इतना प्यार दुलार मिला की , मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी। 

कामिनी भाभी की तो बात ही अलग थी ,मेरा उनका अलग ही रिश्ता था ,उन्होंने तो मुझे अपनी सगी ननद मान लिया था ( सच में उनकी सगी क्या चचेरी , मौसेरी ,फुफेरी ननद भी नहीं थी इसलिए ननद का अपना सब शौक वो मुझसे ही पूरा करती थी। ) 

मैंने बताया था न की उनके पिता जी मशहूर वैद्य थे और उनसे कामिनी भाभी ने जड़ी बूटी का ज्ञान ऐसा हासिल किया था की , बड़े डाक्टर हकीम फेल। खासतौर से लड़कियों औरतों की ' खास परेशानी ' के मामले में। लड़का पैदा करना हो ,न पैदा करना हो , पीरियड्स नहीं आते हो या लेट करना हो ,सब कुछ। 

और जो चीजें उन्होंने आज तक न किसी को बतायी न दी , वो अपना सारा खजाना मुझे दे दिया उन्होंने। कुछ किशमिश दिखाई थी ( चलने के पहले एक बड़ी बोतल दे दी थी मुझे उसकी ) जो चार चार अमावस की रात में सिद्ध की जाती थी तमाम तरह की भस्म के साथ ,स्वर्ण भस्म ,शिलाजीत अश्वगन्धा सब कुछ ,... बस एक किशमिश भी किसी तरह खिला दो ,जिसका खड़ा भी न होता उसका रात भर खड़ा रहेगा ,एकदम सांड बन जायेगा। और अगर कहीं पूनम की रात को खिला दो तो नसिर्फ रात भर चढ़ा रहेगा बल्कि जिंदगी भर दुम हिलाता घूमेगा। 


अगली पूनम तो रक्षाबंधन की पड़ने वाली थी और मैंने तय कर लिया था उसका इस्तेमाल किसके ऊपर करुँगी। 


ट्रेनिंग देने के मामले में भी ,लड़कों को कैसे पटाया जाया रिझाया जाय से लेकर असली काम कला तक। 

बड़ा से बड़ा हथियार मुंह में कैसे लेकर चूस सकते हैं , भले ही वो हलक तक उतर जाय लेकिन बिना गैग हुए ,चोक हुए , और सिर्फ मुंह के अंदर लेना ही नहीं बल्कि चूसना चाटना,चूस चूस के झाड़ देना। हाँ उनकी सख्त वार्निंग थी ,पुरुष की देह से निकला कुछ भी हो उसे अंदर ही घोंटना। इससे यौवन और निखरता है। 

इसी तरह से नट क्रैकर भी उन्होंने मुझे सीखाया था ,चूत में लंड को दबा दबा के सिकोड़ निचोड़ के झाड़ देने की कला। जब मरद रात भर के मैथुन से थका हो ,उससमय लड़कीको कैसे कमान अपनी हाथ में लेनी चाहिए 

( और इन सब की प्रक्टिकल ट्रेनिंग भी अपने सामने करायी , उनके पति ,ऊप्स मेरा मतलब भैया थे न। और प्रैक्टिस के लिए गाँव में लौंडो की लाइन लगी थी )


र्फ कामिनी भाभी ही नहीं सभी भाभियों ने कुछ कुछ सिखाया ,चमेली भाभी और गुलबिया ने तो मुझे एकदम पक्की चूत चटोरी बना दिया ,चाहे कोई प्रौढा हो या नयी बछेड़ी ,... बस चार पांच मिनट में कैसे झाड़ देना है। और सिर्फ चूत नहीं ,पिछवाड़े का भी स्वाद लेना मुझे गुलबिया ने अच्छी तरह सिखा पढ़ा दिया था , अंदर तक जीभ डाल डाल के करोचने की कला ,... 


और फिर गाँव की गारी ,एक से एक ,.. इसके पहले घर पे भाभियाँ मुझे घेर लेती थीं और शुद्ध नान वेज गारी दे दे के ,

लेकिन अब एक तो मैं ऐसी गारी का न बुरा मानूंगी बल्कि उससे भी खतरनाक खुली गारी से उनका जवाब दूंगी। 

दिन भर मौज मस्ती , गाँव की हर गैल पगड़न्ड़ी मैंने देख ली थी। गन्ने के खेत हो अमराई हो ,अरहर के खेत हों ,नदी का किनारा हो , शुरू शुरू में चन्दा के साथ ,





लेकिन अब तो कभी अकेले तो कभी गुलबिया तो कभी चन्दा के साथ , 




किसी गाँव के लौंडे को मैंने मना नहीं किया जोबन दान को। एक बार तो सरपत के झुण्ड के पास एक मिला ,कई दिन से तड़प रहा था बेचारा। बस वही मेड के पास,





एक ने तो आम की टहनी पे झुका के ही एक दम खुलेआम ,एक ने बँसवाड़ी में 



जब भी लौटती तो चंपा भाभी जरूर चेक करती ," आगे पीछे दोनों ओर से सडका टपक रहा है की नहीं। "

मैंने कभी उनको निराश नहीं किया। तीन चार से कम तो कभी नहीं ,

शाम को हम लोग अमराई में झूला झुलने जाते , और वहां जम के भाभियों के साथ सहेलियों के साथ मस्ती , 

कई बार जब रात का 'कुछ प्रोग्राम ' होता तो मैं भौजाइयों के साथ लौट आती वरना फिर अपनी सहेलियों के साथ 'शिकार' पे। 


रात का प्रोग्राम अजय के साथ ही होता,जब होता । वैसे भी इस वाले आँगन की साइड में मैं अकेले ही सोती थी ,भाभी रोज चंपा भाभी के साथ। 

ज्यादा नहीं दो दिन अजय रहा पूरी रात और एक दिन वो सुनील को भी ले आया। 

जिस रोज आना था उसके पहले वाली रात को हमारे ही घर पे रतजगा हुआ ,खूब मजा आया। पहले तो सोहर फिर जम के गारी ,

रात भर पानी भी बरस रहा था कोई जा भी नहीं सकता था वापस , 

और बाद में जोड़ी बना बना के ,ननद लड़का बनती और भौजाइयां ,दुल्हन उसकी , फिर सारे आसान सब के सामने। 

एक बार मेरी जोड़ी चमेली भाभी के साथ बनी तो एक बार बंसती के साथ। 

चंपा भाभी ने चन्दा को खूब रगड़ा लेकिन सबसे ज्यादा मजा आया कामिनी भाभी और मेरी भाभी की जोड़ी में ,... 

लेकिन सुबह होते ही पता चला की आज जाना है। मन एकदम नहीं कर रहा था लेकिन अब कालेज खुलने का टाइम हो गया था।
 
दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। मेरा तो वापस जाने का मन नहीं कर रहा था। पर भाभी बोलीं कि रक्षाबंधन में सिर्फ चार दिन बचे हैं… और मैं उनके पति और देवर की इकलौती बहन थी… और मुश्कुराकर चिढ़ाया- 

“और बाकी सावन वहां बरस जायेगा, वहां भी तुम्हारा कोई इंतज़ार कर रहा है…” 




मुश्कुराकर, जोबन उभारकर मैं बोली- “अरे डरता कौन है भाभी…” 


जिस दिन वापस जाना था, मैं सुबह से व्यस्त थी। सामान रखना, मिलने के लिये मेरी सारी सहेलियां आ रहीं थी और भाभियां। 

फिर भाभी मुन्ने को लेकर पहली बार मायके से वापस जा रही थीं, उसके रीत रिवाज… पता ही नहीं चला कि कैसे समय बीत गया। चलने के समय के थोड़ी देर पहले ही चन्दा ने आकर मेरे कान में कुछ कहा। 


मैंने भाभी से कहा कि- “मैं अपनी कुछ सहेलियों से मिलकर वापस आती हूं…” 
भाभी बोलीं- “जल्दी आना, बस आधे घंटे में बस आ जायेगी…” 


चन्दा मेरा हाथ खींचकर ले जाते हुए बोली- “हां बस इसको आधे घंटे में वापस ले आऊँगी… देर नहीं होगी…” 


मुझे भगाते हुए वह पास के बगीचे में एक कमरे में ले गयी। वहां अजय, रवी और दिनेश के साथ-साथ गीता भी थी और मुझको देख के सब मुश्कुरा पड़े। 


तीनों के पाजामें में तने तंबू और उनकी मुश्कुराहट को देखकर मैं उनका इरादा समझ गयी। तब तक चन्दा ने दरवाजे की सांकल बंद कर दी। 

“हे नहीं… अभी टाइम नहीं है, तुम तीनों के साथ। आधे घंटे में बस पकड़नी है…” 


अजय शरारत से बोला- 

“तो क्या हुआ… आधे घंटे बहुत होते हैं… अब तुम कित्ते दिन बाद मिलोगी…” 


“अरे दो महीने बाद… कातिक में तो आना ही है इसे… अच्छा चलो… आधे घंटें में किसके साथ…” चन्दा ने समझाया। 


दिनेश का नंबर लगा। 






आज मैं वही टाप और स्कर्ट पहने थी, जिसे पहनकर मैं शहर से आयी थी। कुछ खाने पीने से और उससे भी बढ़कर… कुछ मेरे यारों कि मेहनत से मेरे जोबन और गदरा गये थे, उभरकर टाप को फाड़ रहे थे। वही हाल मेरे चूतड़ों ने स्कर्ट का किया था। 







दिनेश ने कुछ अजय और रवी से बात की और तीनों अर्थ-पूर्ण ढंग से मुश्कुरा रहे थे। दिनेश पाजामा खोल के लेट गया, उसका कुतुब मीनार हवा में खड़ा था। मैं समझ गयी वह क्या चाहता है।


मैंने झुक के अपनी पैंटी उतारी और स्कर्ट उठा के दोनों टांगें फैलाकर उसके ऊपर चढ़ गयी। पर दिनेश का लण्ड खाली कुतुबमीनार की तरह लंबा ही नहीं बल्की खूब मोटा भी था। 


मैं अपनी चूत फैलाकर उसके सुपाड़े को रगड़ रही थी और वह अंदर नहीं घुस पा रहा था। तभी चन्दा और गीता दोनों ने मेरे कंधे पे धक्का देना शुरू कर दिया और लण्ड मेरी चूत में समाने लगा। उसका मोटा लण्ड जैसे ही मेरी चूत की दीवारों को कसकर फैलाता, रगड़ता अंदर घुस रहा था, मैं मस्ती से पागल हो रही थी। 
चन्दा और गीता का साथ देने के लिये, रवी भी आ आया और जल्द ही दिनेश का पूरा लण्ड इन तीनों ने घुसवा कर ही दम लिया। 






मस्ती में नीचे से दिनेश चूतड़ उठा रहा था और ऊपर से मैं। 


उसने मेरा टाप खोलकर मेरे फ्रट ओपेन ब्रा के सब हुक खोल दिये और कस-कस के मेरी चूचियां मसलने लगा। ये देखके अजय और रवी की हालत और खराब हो रही थी। 


चन्दा ने दिनेश को आँख मारी और उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया। 


मैं उसकी चौड़ी छाती पर थी, वह अपनी बांहों में मुझे कस के भींचे था और वह मेरे जोबन का रस चूस रहा था।











तभी अजय ने अपना लण्ड पीछे से मेरी गाण्ड के छेद पे लगाया। 


मैंने बचने के लिये हिलने डुलने की कोशिश की पर… दिनेश मुझे कस के पकड़े था और फिर उसका मोटा लंबा लण्ड भी जड़ तक मेरी चूत में धंसा था। अजय ने मेरे दोनों चूतड़ फैलाकर कस के धक्का मारा और एक बार में ही उसका मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में पूरा घुस गया। 




“उयीइइ… उयीइइइइ…” मैं जोर से चीखी।


पर रवी पहले से तैयार था और उसने अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसा दिया। 


वह कस के मेरा सर पकड़के ढकेल रहा था और वह अपना पूरा लण्ड मेरे मुँह में ठूंस के ही माना। उधर अजय ने मेरी कसी गाण्ड में अपना लण्ड पेलना चालू रखा। रवी का लण्ड मेरे मुँह में होने से कोई आवाज भी नहीं निकाल पा रही थी। 




उधर थोड़ी देर में ही अजय का लण्ड पूरी तरह मेरी गाण्ड में घुस आया और फिर उसने और दिनेश ने मिलकर मुझे चोदना शुरू कर दिया। जब अजय गाण्ड से लण्ड निकालता, तो मुझे पकड़कर अपना चूतड़ उठाकर दिनेश पूरा लण्ड मेरी चूत में डाल देता और फिर जब अजय जड़ तक अपना लण्ड डालकर मेरी गाण्ड मारता तो दिनेश बाहर निकाल लेता। लेकिन कुछ देर बाद, अजय और दिनेश एक साथ अपना लण्ड घुसेड़ने लगे। 


मुझे लगा रहा था, जैसे कोई एक झिल्ली मेरी चूत और गाण्ड के बीच है और जिसे दोनों लण्ड रगड़ रहे हैं। 


मैं भी एक साथ तीन लण्ड का मजा ले रही थी। मैंने रवी के लण्ड को खूब कस-कस के चूसना शुरू किया और मेरी जीभ उसके लण्ड को कस के चाट रही थी। मेरी एक चूची अजय मसल रहा था और दूसरी दिनेश। तीनों ही तेजी से चोद रहे थे और मैं भी चूतड़ उछाल-उछालकर, सर हिला-हिलाकर इस चुदाई का मजा ले रही थी। 






रवी सबसे पहले झड़ा और उसने कस के मेरा सर पकड़ रखा था जिससे मुझे उसका सारा वीर्य, निगलना पड़ा, पर वह इतना ज्यादा रुक-रुक कर झड़ रहा था कि मेरा पूरा मुँह उससे भर गया और कुछ मेरे गाल से होते हुए मेरे उभारों पर भी गिर गया। 


तब तक पूरबी ने बाहर से आकर दरवाजा खटखटाया- “हे बस आ गयी है, हार्न बजा रही है…” 


अजय और दिनेश अब और कस-कस के धक्के लगाने लगे। और मैं भी… मैं झड़ने लगी… मेरी चूत कस-कस के सिकुड़ रही थी और दिनेश और अजय दोनों एक साथ मेरी चूत और गाण्ड में झड़ रहे थे। 


पूरबी ने फिर गुहार लगायी- “अरे देर हो रही है, भाभी बुला रही हैं…” 


दिनेश ने अपना लण्ड मुश्किल से मेरी चूत से बाहर निकाला। उसमें अभी भी काफी मसाला बचा था। रवी की जगह अब उसने अपना लण्ड मेरे होंठों पर रख दिया और मैं उसे गड़प कर गयी।


और मेरे होंठों से छूते ही फिर वीर्य की एक बड़ी धार निकली जो मेरे मुँह को भरकर गालों पर आ गयी। उसने अपना लण्ड बाहर निकालकर सुपाड़े को मेरे निपकाल पर लगाया कि वीर्य का एक बड़ा थक्का वहां गिर गया। बाकी उसने अपने लण्ड को मेरी चूंचियों के बीच रगड़कर मेरी चूत का रस और अपने लण्ड का रस वहां साफ किया। 


अजय ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड से निकाल लिया था और लग रहा था कि वह अभी भी झड़ रहा है। उसने अपना लण्ड मेरे होंठों पर सटा दिया। मैं सोच रही थी कि… यह… अभी कहां से… क्या… 


पर चन्दा मेरे सर को दबाते बोली- “अरे ले-ले… ले-ले कसकर चूम ले तेरे यार का लण्ड है…” 


मेरे भी मन में झूले का दृश्य याद आ गया, जब पहली बार उसने मेरी मारी थी… और उसी ने शुरूआत की थी इस मजे की। 


मैंने होंठ खोलकर उसे ले लिया और होंठों से चूसते हुए जीभ से उसका सुपाड़ा अच्छी तरह चाटने लगी। कुछ अलग सा अजीब सा स्वाद… मैंने आँखें बंद कर ली और जोर से चूसने चाटने लगी। अजय भी उंह… उंह… हो… आह… आह कर रहा था। उसने जब अपने लण्ड को बाहर निकालकर दबाया तो वीर्य की एक बड़ी तेज धार मेरे गालों और जोबन पे पड़ गयी। एक बार फिर उसको मैंने मुँह में लेकर जो भी कुछ बचा, लगा था, चाट चूट कर साफ कर लिया। 


तब तक चन्दा ने सांकल खोल दी और पूरबी अंदर आ गई। 


“हे जल्दी चलो, बस खड़ी है, ड्राइवर हार्न बजाये जा रहा है…” उसने बोला। 


मैंने बढ़कर अपनी पैंटी उठानी चाही तो पूरबी ने उसे उठा लिया और मुश्कुराते हुये बोली- “हे अब इसे पहनने, पोंछने का टाइम नहीं है बस तुम चल चलो…” 


मेरी गाण्ड और चूत दोनों में वीर्य भरा था और बस चूना ही चाहता था। चूची और गाल पे जो लगा था सो अलग। पूरबी ने मेरे गाल पर लगे, अजय और रवी के वीर्य को कसकर चेहरे पे रगड़ दिया और कहा कि तेरा गोरा रंग अब और चमकेगा। चन्दा और गीता ने जल्दी-जल्दी मेरा टाप बंद कर दिया पर उन नालायकों ने मेरी ब्रा को खुला ही रहने दिया और मेरे निपल पर लगे वीर्य को भी वैसे ही छोड़ दिया। 


मैं जल्दी-जल्दी चलकर गयी। मेरे गालों पर तो लगा ही था, मेरा मुँह भी उन तीनों के रस से भरा था। बस खड़ी थी और ड्राइवर अभी भी हार्न बजा रहा था। मैं जल्दी-जल्दी सबसे मिली। 



राकी भी आकर मेरे पैरों को चाट रहा था।
 
मैं जल्दी-जल्दी चलकर गयी। मेरे गालों पर तो लगा ही था, मेरा मुँह भी उन तीनों के रस से भरा था। बस खड़ी थी और ड्राइवर अभी भी हार्न बजा रहा था। मैं जल्दी-जल्दी सबसे मिली। राकी भी आकर मेरे पैरों को चाट रहा था। 


मैं जब उसको सहलाने लगी तो पीछे से किसी ने बोला- “अरे ज्यादा घबड़ाने की बात नहीं है, कातिक में तो ये फिर आयेंगी…” 


मैं मुश्कुराये बिना नहीं रह सकी। 


ड्राइवर भी बगल के गांव का था। वह भी बिना बोले नहीं रह सका, आखिर मैं उसके बहनोई की बहन जो थी। मुझे देखते हुए, द्विअर्थी ढंग से बोला- 



“मैंने इतनी देर से खड़ा कर रखा है…” 


चमेली भाभी कैसे चुप रहतीं, उन्होंने तुरंत उसी स्टाइल में जवाब दिया- 


“अरे खड़ा किया है तो क्या हुआ, आ तो गयी हैं चढ़ने वाली, बैठाना दो घंटे तक…” 


किसी ने कहा कि ये बहुत देर से हार्न बजा रहा था। 


तो चम्पा भाभी मेरे गालों पर कस के चिकोटी काटतीं, बोलीं- “अब इसका हार्न बजायेगा…” 


सामान पहले ही रखा जा चुका था। मैं जाकर बस में बैठ गयी, खिड़की के बगल में और बस चल दी।





मैं देख रही थी, बाहर, खिड़की से, गुजरती हुई, अमरायी, जहां हम झूला झूलने जाते थे और जहां रात में पहली बार अजय ने… वो गन्ने के खेत, मेले का मैदान, नदी का किनारा 











सब पड़ रहे थे और पिक्चर के दृश्य की तरह सारा दृश्य एक-एक करके सामने आ रहा था। 


भाभी ने पूछा- “क्यों क्या सोच रही हो, तब तक एक झटका लगा और मेरी गाण्ड और चूत दोनों से वीर्य का एक टुकड़ा मेरे चूतड़ और जांघ पर फिसल पड़ा। 


भाभी और मेरे पास सट गयीं और मेरे गाल से गाल सटाकर बोलीं- 


“घर चलो, वहां मेरा देवर इंतजार कर रहा होगा…”
 
वापस घर : मेरी भाभी का देवर 





सामान पहले ही रखा जा चुका था। 

मैं जाकर बस में बैठ गयी, खिड़की के बगल में और बस चल दी। मैं देख रही थी, बाहर, खिड़की से, गुजरती हुई, अमरायी, जहां हम झूला झूलने जाते थे और जहां रात में पहली बार अजय ने…



वो गन्ने के खेत, मेले का मैदान, नदी का किनारा सब पड़ रहे थे और पिक्चर के दृश्य की तरह सारा दृश्य एक-एक करके सामने आ रहा था। 









भाभी ने पूछा- “क्यों क्या सोच रही हो, तब तक एक झटका लगा और मेरी गाण्ड और चूत दोनों से वीर्य का एक टुकड़ा मेरे चूतड़ और जांघ पर फिसल पड़ा। 


भाभी और मेरे पास सट गयीं और मेरे गाल से गाल सटाकर बोलीं-

“घर चलो, वहां मेरा देवर इंतजार कर रहा होगा…” 


मेरे चेहरे पर मुश्कान खिल उठी। मेरे सामने रवीन्द्र की शक्ल आ गयी। मैंने भी भाभी के कंधे पे हाथ रखकर, मुश्कुराकर कहा- 


“भाभी आपके भाइयों को देख लिया, अब देवर को भी देख लूंगी…” 


तो ये रही मेरी भाभी के गांव में आप बीती। भाभी के देवर ने मेरे साथ क्या किया, या मैंने भाभी के देवर के साथ, 
...................





जब मैं घर पहुँची तो बहुत देर हो चुकी थी, इसलिये मैं अपने घर पे ही उतर गयी। 


अगले दिन मैंने सुबह से ही तय कर लिया था, भाभी के घर जाने को। सावन की पूनो में अब तीन दिन बचे थे। और उसका बहाना भी मिल गया। जब स्कूल की छुट्टी हुई, तो तेज बारिश हो रही थी। और भाभी का घर पास ही था।

वैसे भी दिन भर बजाय पढ़ाई के मेरा मन रवीन्द्र में, चन्दा ने उसके बारें में जो बताया था। बस वही सब बातें दिमाग में घूमती रहीं।


भाभी के घर तक पहुँचते-पहुँचते भी मैं अच्छी तरह भीग गयी। मेरे स्कूल की यूनीफार्म, सफेद ब्लाउज और नेवी ब्लू स्कर्ट है।


और भाभी के गांव से आकर मैंने देखा कि मेरा ब्लाउज कुछ ज्यादा ही तंग हो गया है। भाभी के घर तक पहुँचते-पहुँचते भी मैं अच्छी तरह भीग गयी, खास कर मेरा सफ़ेद ब्लाउज, और यहां तक की तर होकर मेरी सफेद लेसी टीन ब्रा भी गीली हो गयी थी। 


भाभी किचेन में नाश्ता बना रहीं थीं और साथ ही साथ खुले दरवाजे से झांक कर टीवी पर दिन में आ रहा सास बहू का रिपीट भी देख रही थीं। 



मैंने भाभी से पूछा- “ये दिन में आप इस तरह… सास बहू देख रही हैं… रात में नहीं देखा क्या… और ये नाश्ता किसके लिये बना रही हैं…” 



भाभी हँसकर बोलीं- 




“रात में तो 9:00 बजे के पहले ही पति पत्नी चालू हो जाता है तो सास बहू कैसे देखूं… तेरे बड़े भैया आजकल ओवरटाइम करा रहे हैं। मैं इतने दिन सावन में गैर हाजिर जो थी। आजकल हम लोग रात में 8:00 बजे तक खाना खा लेते हैं और उसके बाद रवीन्द्र पढ़ने अपने कमरे में ऊपर चला आता है… और मेरे कमरे में, तुम्हारे बड़े भैया मेरे ऊपर आ जाते हैं।" 



“और ये नाश्ता किसके लिये बना रही हैं…” मुझसे नहीं रहा गया। 


“रवीन्द्र के लिये… आज उसकी सुबह से क्लास थी बिना खाये ही चला गया था आते ही भूख… भूख चिल्लायेगा…” 


मैंने उनके हाथ से चमचा छीनते हूये कहा- “तो ठीक है भाभी नाश्ता मैं बना देती हूं। और आप जाकर टीवी देखिये…” 


“ठीक है, वैसे भी मेरे देवर की भूख तुम्हें मिटानी है…” हँसते हुए, भाभी हट आयीं। 


“चलिये… भाभी आपको तो हर वक्त मजाक सूझता है…” झेंपते हुये मैंने बनावटी गुस्से से कहा। 


“मन मन भावे… और हां नाश्ते में उसे फल पसंद हैं तो अपने ये लाल सेब जरूर खिला देना…” ये कहकर उन्होंने मेरे गुलाबी गालों पर कस के चिकोटी काटी और अपने कमरे में चल दीं। 


भाभी के मजाक से मुझे आइडिया मिल गया और चम्पा भाभी का बताया हुआ श्योर शाट फार्मूला याद आ गया। 


मैंने फ्रिज़ खोलकर देखा तो वहां दशहरी आम रखे थे। मैंने उसकी लंबी-लंबी फांकें काटी और प्लेट में रख ली और उसमें से एक निकालकर, (मैंने भाभी के कमरे की ओर देखा वो, सास बहू में मशगूल थीं) अपनी स्कर्ट उठाकर, पैंटीं सरकाकर, चूत की दोनों फांके फैलाकर उसके अंदर रख ली और चूत कसकर भींच लिया। 


नाश्ता बनाते समय मुझे चन्दा ने जो-जो बातें रवीन्द्र के बारें में बतायी थीं याद आ रही थीं और न जाने कैसे मेरा हाथ पैंटी के ऊपर से रगड़ रहा था और थोड़ी ही देर में मैं अच्छी तरह गीली हो गयी। 


नाश्ता बनाकर मैंने तैयार किया ही था कि मुझे रवीन्द्र के आने की आहट सुनायी दी। वह सीधा ऊपर अपने कमरे में चला गया। 


वहीं से उसने आवाज लगायी- “भाभी मुझे भूख लगी है…” 


भाभी ने कमरे में से झांक कर देखा। मैंने इशारे से उन्हें बताया की नाश्ता तैयार है और मैं ले जा रही हूं। जब मैं सीढ़ी पर ऊपर नाश्ता लेकर जा रही थी,


तभी मुझे “कुछ” याद आया और वहीं स्कर्ट उठाकर आम की फांक मैंने बाहर निकाली। वह मेरे रस से अच्छी तरह गीली हो गयी थी। मैंने उसको उठाकर प्लेट में अलग से रख लिया। बिना दरवाजे पर नाक किये मैं अंदर घुस गयी। 


वह सिर्फ पाजामे में था, चड्ढी, पैंट उसकी पलंग पर थी और बनयाइन वह पहनने जा रहा था। 

मैंने पहली बार उसको इस तरह देखा था, क्या मसल्स थीं, कमर जितनी पतली सीना उतना ही चौड़ा, एकदम ‘वी’ की तरह… और वह भी गीले हो चुके मेरे उभारों से अच्छी तरह चिपके ब्लाउज, जिससे न सिर्फ मेरे उभार ही बल्की चूचुक तक साफ दिख रहे थे, घूर रहा था। थोड़े देर तक हम दोनों एक दूसरे के देह का दृष्टि रस-पान करते रहे। 


फिर अचानक वो बोला- “तुम… नाश्ता लेकर… भाभी कहां है…” लेकिन अभी भी उसकी निगाहें मेरे किशोर उभारों पर चिपकी थीं। 


मैं उसके बगल में सटकर जानबूझ कर बैठ गयी और अपनी तिरछी मुश्कान के साथ पूछा- “क्यों भाभी ही करा सकती हैं नाश्ता, मैं नहीं करा सकती… मेरे अंदर कोई कमी है…” 


मैंने नाश्ते की प्लेट सामने मेज पर रख दी थी। उसने भी बनयाइन पहन ली थी। मैंने उसकी चड्ढी और पैंट उठाया और खूंटी पर टांग दिया।


“तो लो ना… मेरे हाथ से कर लो…” और मैंने सबसे पहले वो फांक जो मैंने “वहां” रखी थी, उसे प्लेट से उठाकर अपने हाथ से उसके होंठों पर लगाया। 


उसने आपसे मुँह में ले लिया और थोड़ी देर चूसने खाने के बाद बोला- “इसमें थोड़ा अलग किस्म का रस है…” 
मैं अपने होंठों पर जीभ फिराती, उसे दिखाकर बोली- “हां हां होगा, क्यों नहीं मेरा रस है…” 


“तुम्हारा रस… क्या मतलब…” चौंक कर वो बोला।


“मेरा मतलब… कि मैंने अपने हाथ से खिलाया है इसलिये मेरा रस तो होगा ना…” 


बात बनाती मुश्कुराती मैं बोली। मैंने आम की एक दूसरी फांक उठा ली थी और उसके टिप को अपने गुलाबी होंठों से रगड़ रही थी, फिर उसे दिखाते हुए मैंने उसका टिप अपने होंठों के बीच गड़प लिया और उसे चूसने लगी। 

उसकी निगाहें मेरे होंठों पर अटकी हुईं थीं। 


“लो खाओ ना… इसमें भी मेरा रस है…” और जब तक वह समझे समझे मैंने उसे निकालकर उसके होंठों के बीच घुसेड़ दिया। वह क्या मना कर सकता था। अब मैंने खड़ी होकर एक कस के रसदार अंगड़ाई ली, मेरे कबूतर और खड़े हो गये थे और उसकी चोंच तो तनकर मेरे ब्लाउज फाड़े दे रहे थे। 


एक बार फिर उसकी निगाह वहीं पे गयी और जब मैंने उसकी निगाहों की ओर देखकर मुश्कुरा दिया तो वह समझ आया की चोरी पकड़ी गयी। उसने निगाहें नीची कर लीं और कहने लगा…


” तुम बदल गयी हो… बड़ी वैसी लगाने लगी हो…” 


“कैसी… खराब…” मैं बोली। 


“नहीं मेरा मतलब है… कैसे बताऊँ… वैसी… एकदम बदली बदली…” 


मैंने एक बार फिर अपने हाथ पीछे करके जोबन को कस के उभारा और हँस के बोली- “तो क्या… तुम्हारा मतलब है… सेक्सी… तो बोलते क्यों नहीं, सिर्फ मैं नहीं बदली हूँ तुम भी बदल गये हो, तुम्हारी निगाहें भी…”


मैं अब पाजामें में तने तंबू को देख रही थी। उसने चड्ढी भी नहीं पहन रखी थी इसलिये साफ-साफ दिख रहा था। 


उसने मेरी निगाह पकड़ ली पर मैंने तब भी अपनी निगाह वहां से नहीं हटायी। 
“मैं जरा बाथरूम हो के आता हूं…” वो बोला। 
“तो क्या मैं चलूं…” मैं भी खड़ी हुई।


तो वो बोला- “नहीं बैठो ना…” 
जैसे ही वह अंदर घुसा, मैं बोली- “ज्यादा टाइम मत लगाना नहीं तो मैं चली जाऊँगी…” 
“नहीं नहीं…” वह अंदर से बोला। 



मैंने उसका पर्स खोला, जैसा कि चन्दा ने कहा था उसके अंदर मेरी एक फोटो थी। मैंने पलटकर देखा तो पीछे उसने लिख रखा था, ‘आई लव यू’। 


मैं एकदम सिहर गयी। मेरे चूचुक कस के खड़े हो गये। मैंने भी एक पेन उठायी और उसके नीचे लिख दिया- ‘आई लव यू टू’ और फोटो वापस पर्स में रख दी। जब वह बाहर निकला तो मैं फिर उसके पास बैठ गयी और कहने लगी- “मुझे एक बात पता चली है…” 


उत्सुकता से उसने पूछा- “क्या…” View attachment 1male+001245.jpg[/attachment]
तो मैं मुश्कुराकर बोली- “किसी को मैं अच्छी लगती हूं…” 


“तो इसमें कौन सी खास बात है… तुम अच्छी हो… बहुत अच्छी हो… तो फिर बहुतों को अच्छी लगती होगी…” 
“नहीं ऐसी बात नहीं, वह एक खास है, बहुत खूबसूरत है, बुद्धिमान है… लेकिन थोड़ा बुद्धू है… और एक खास बात है…” मैं चलने के लिये उठी। 


“क्या बात है… बताओ ना…” वह भी अब थोड़ा थोड़ा समझ रहा था और बेताब था। 


“कान में बताऊँगी…” और मैंने अपने रसीले होंठों से उसके इअर-लोबस छू लिये और बोली- 


“वो मुझे भी बहुत अच्छा लगाता है…” 


और जैसे मैं अपनी स्कर्ट ठीक कर रही हूं, मेरे हाथ नीचे गये और उसके फिर से उठते, टेंट पोल को सहलाकर, वापस आ गये। जब तक वह सम्हले, सम्हले, मैं, अपने नितंबों को इरोटिक ढंग से हिलाती हुई, वापस अपने घर को चल दी। 
 
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