Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई - SexBaba
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Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई

hotaks444

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चुदासी माँ और गान्डू भाई

लेखक- dcum
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पात्र (किरदार) परिचय

01. विजय- आज मैं 6'2” कद का बिल्कुल गोरा और सुगठित शरीर का 28 साल का आकर्षक नवयुवक हूँ। मैंने यहीं चंडीगढ़ से हास्टल में रहकर ग्रेजुयेशन की है और कालेज लाइफ में पहलवानी में अच्छा नाम कमाया है। मेरे माता पिता और मेरा छोटा भाई यहाँ से 250 किलोमीटर दूर एक गाँव में रहते हैं। अब मेरे लिए उस गाँव में रहना और खेती करना संभव नहीं था, इसलिए पिछले 3 साल से यहीं चंडीगढ़ में एक चेन डिपार्टमेंटल स्टोर में सर्विस में हूँ। मेरा नाम विजय है और मेरे पास दो बेडरूम का एक माडर्न फ्लैट है जिसमें की मैं अकेला रहता हूँ

02. राधा देवी- अब मैं अपनी माँ का परिचय आपको दे दें। मेरी माँ राधा देवी 46 वर्ष की मेरी ही तरह लंबी यानी की 5'10" की बिल्कुल गोरी और सुगठित शरीर की आकर्षक महिला हैं। मेरी माँ का शरीर साँचे में ढली एक प्रतिमा जैसा है, जिसके स्तन और नितंब काफी पुष्ट और शरीर भी बहुत गदराया सा है। पर लंबाई की वजह से बिल्कुल भी मोटी नहीं कही जा सकती। वैसे मैं आपको बता दें की मेरी माताजी पहनने ओढ़ने की खाने पीने की, घूमने फिरने की, मस्त तबीयत की एक हाउसवाइफ हैं।

03. पिताजी- पर पिताजी के असाध्य रोग की वजह से उसने पिछले 15 साल से अपने इन सारे शौकों को तिलांजलि दे रखी है। साथ ही माँ शरीर से जितनी आकर्षक औरत है, उतनी ही रंगीन तबीयत की भी औरत है। पिछले 15 साल से उसने एक पूर्ण पतिव्रता स्त्री की तरह अपना समस्त जीवन पति सेवा में समर्पित कर रखा है। गाँव में हमारी अच्छी खाशी जमीन जायदाद है, और माँ छोटे भाई के साथ खेतीबाड़ी का काम भी करती है। मुझे चंडीगढ़ में हास्टिल में रखकर ग्रेजुयेशन कराने में माँ का ही पूर्ण हाथ है।

04. अजय- मेरा छोटा भाई अजय 22 साल का हो गया है। वह भी माँ की तरह पूरी तरह से गदराया हुआ गोरा चिट्टा आकर्षक नौजवान है। उसने गाँव के स्कूल से ही 10वीं तक पढ़ाई की और उसके बाद पिताजी की दवापानी का, घर की देख-भाल का, तथा खेती बाड़ी का काम संभाल रखा है। इसके अलावा वो थोड़ा भोला और सीधा साधा भी है। मेरे बिल्कुल विपरीत उसके शरीर में काफी नजाकत है जैसे छाती पर बालों का ना होना, पूरा नौजवान होने के बाद भी बहुत ही हल्की दाढ़ी मूंछों का होना, लड़कियों जैसा शर्मीलापन होना इत्यादि। गाँव के मेहनती वातावरण में रहने के बाद भी बिल्कुल गोरा, मक्खन सा चिकना, नाजुक बदन का नौजवान है।
 
आखिरकार, आज से 15 दिन पहले वही हुआ जिसकी आशंका हम सबके मन में थी। 15 दिन पहले अजय का सुबह-सुबह फोन आया की पिताजी चल बसे। मैं फौरन गाँव के लिए रवाना हो गया। पिताजी के सारे क्रियाकर्म रश्मो रिवाज के अनुसार संपन्न हो गये। हम माँ बेटों ने आपस में फैसला कर लिया है की कल सुबह ही मेरे साथ माँ और अजय चंडीगढ़ आ जाएंगे। गाँव की जमीन जायदाद हम चाचाजी को संभला जाएंगे जो अच्छा ग्राहक खोजकर हमें उचित दाम दिलवा देंगे। चाचाजी ने बताया की कम से कम 40 लाख तो साड़ी संपत्ति के मिल ही जाएंगे।

दूसरे दिन दोपहर तक हम तीनों अपने लाव लश्कर के साथ चंडीगढ़ पहुँच गये। माँ ने आते ही बिखरे पड़े घर को सजा संवार दिया। एक कमरा माँ को दे दिया और एक कमरे में हम दोनों भाई आ गये। मैं स्टोर में परचेस आफिसर हूँ, जिससे सप्लायर्स के तरह-तरह के सैंपल्स मेरे पास आते रहते हैं। तरह-तरह के साबुन, शैम्पू, लोशन, क्रीम्स, सेंट्स इत्यादि के सैंपल पैक्स मेरे पास घर में ही थे।

इसके अलावा मेरे पास घर में जेंट्स अंडरगारमेंट्स और सार्टस, बाक्सर्स इत्यादि का भी अच्छा खशा सैंपल कलेक्सन था।

ये सब माँ और अजय को बहुत भाए, खासकर कास्मेटिक्स माँ को और गारमेंट्स अजय को। यहाँ माँ पर गाँव की तरह काम का बोझ नहीं था तो माँ मेरे स्टोर में चले जाने के बाद अजय के साथ चंडीगढ़ में घूमने फिरने निकल जाती थी। शहरी वातावरण में तरह-तरह की सजी धजी अपने जवान अंगों को उभारती शहरी महिलाओं को देखते-देखते माँ भी अपने शरीर के रख रखाव पर बहुत ध्यान देने लगी। इन सबका नतीजा यह हुआ की माँ दमकने लगी।

फिर मुझे पता चला की मेरे घर के पास ही हमारे स्टोर की एक ब्रांच में गूड्स डेलिवरी में एक आदमी की जरूरत है। वह नौकरी मैंने अजय की लगवा दी। माँ और अजय को शहरी जिंदगी बहुत ही रास आई।

मैं माँ का बहुत ध्यान रखता था। सजी धजी, चमकती दमकती माँ मुझे बहुत अच्छी लगती थी। मैं माँ को कहते रहता था की आज तक का जीवन तो उसने पिताजी की सेवा में ही काट दिया। लेकिन अब तो ऐशो आराम से रहे। मेरी हार्दिक इच्छा थी की मैं माँ को वो सारा सुख दें जिससे वो वंचित रही थी।


मुझे पता था की मेरी माँ शौकीन तबीयत की महिला है इसलिए माँ को पूछते रहता था की उसे जिस भी चीज की दरकार है वह मुझे बता दे। माँ मेरे से बहुत ही खुश रहती थी। रात में हम खाना खाने के बाद हाल में सोफे पर बैठकर टीवी वगैरह देखते हुए देर तक अलग-अलग टापिक्स पर बातें करते रहते थे। फिर माँ अपने कमरे में सोने चली जाती और अजय मेरे साथ मेरे कमरे में।

मेरे रूम में किंग साइज का डबलबेड था जिस पर हम दोनों भाई को सोने में कोई परेशानी नहीं थी। इस प्रकार बहुत ही आराम से हमारी जिंदगी आगे बढ़ रही थी।

एक दिन सुबह में बहुत ही सुखद सपने में डूबा हुआ था। मैं सपने में अपनी प्रिय माताजी राधा देवी को तीर्थों की सैर कराने ले जा रहा था।

हमारी ट्रेन में बहुत भीड़ थी। रात में टीटी को अच्छे खासे पैसे देकर एक बर्थ का बंदोबस्त कर पाया। उसी एक बर्थ पर एक ओर मुँह करके माँ सो गई और दूसरी ओर मुँह करके मैं सो गया। रात में कम्पार्टमेंट में नाइट लैंप जल गया। तभी माँ करवट में लेट गई। कुछ देर में मैं भी इस प्रकार करवट में हो गया की माँ की विशाल गुदाज गाण्ड ठीक मेरे लण्ड के सामने आ जाय।
 
मेरा 11" लंबा और 4” व्यास का लण्ड एकदम लोहे की रोड की तरह पैंट में तन गया था। मैंने लण्ड माँ की साड़ी के ऊपर से माँ की गाण्ड से सटा दिया। ट्रेन तूफानी रफ़्तार से दौड़े चली जा रही थी, जिससे की हमारा डिब्बा एक लय में आगे-पीछे हो रहा था। उसी डिब्बे की लय के साथ मेरा लण्ड भी ठीक माँ की गाण्ड के छेद पर ठोकर दे रहा था। मुझे बहुत मजा आ रहा था।


माँ जैसी भरे-पूरे शरीर की 40 साल से बड़ी उमर की औरतें सदा से ही मुझे बहुत आकर्षित करती थी। फिर माँ तो साक्षात सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थी। ऐसी औरतों के फैले हुए और उभार लिए हुए नितंब मुझे बहुत आकर्षित करते थे। मैं माँ जैसी ही भारी भरकम गाण्ड वाली औरत की कल्पना करते हुए कई बार मूठ मारा करता हूँ। आज भी शायद सपने में ऐसा ही सुखद संयोग बन रहा था।


जिस प्रकार सपने में मेरा लण्ड माँ की गाण्ड पर ठोकर दिए जा रहा था, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की मैं माँ की गाण्ड ताबड़तोड़ मार रहा हूँ। तभी ट्रेन को एक जोरदार झटका लगता है और मेरा सपना टूट जाता है। धीरेधीरे में सामग्य स्थिति में आने लगा। मुझे नाइट लैंप की रोशनी में मेरा कमरा साफ पहचान में आने लगा। लेकिन आश्चर्य मेरे लण्ड पर किसी गुदाज नरम चीज का अभी भी दबाव पड़ रहा था।


कुछ चेतना और लौटी तो मुझे साफ पता चला की मेरा छोटा भाई अजय जो मेरे साथ ही सोया हुआ था, सरक कर मेरी कंबल में आ गया है और वो अपनी गाण्ड मेरे लण्ड पर दबा रहा है। मेरा लण्ड बिल्कुल खड़ा था। मैं बिल्कुल दम साधे उसी अवस्था में पड़ा रहा। अजय मेरे लण्ड पर अपनी गाण्ड का दबाव देता फिर गाण्ड आगे खींच लेता और फिर दबा देता। एक लयबद्ध तरीके से यह क्रिया चल रही थी। अब मुझे पूरा विश्वास हो गया की अजय जो कुछ भी कर रहा है वो चेतन अवस्था में कर रहा है। थोड़ी देर में मेरे लिए और रोके रहना मुश्किल हो गया तो मैंने धीरे से अजय की साइड से कंबल समेटकर अपने शरीर के नीचे कर ली और चित्त होकर सो गया।


सुबह का वक़्त था और मेरा दिमाग बहुत तेजी से पूरे घटनाक्रम के बारे में सोच रहा था। आज से पहले कभी भी माँ मेरी काम-कल्पना (फैंटेसी) में नहीं आई थी। वैसे कालेज लाइफ से ही लंबा, सुगठित, अथलेटक शरीर होने से लड़कियां मुझ पर मर मिटती थी लेकिन मैंने अपनी ओर से कभी भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। मेरी स्टोर की आकर्षक सेल्स गर्ल्स पर जहाँ दूसरे पुरुष मित्र मरे जाते हैं वहीं उन लड़कियों के लिफ्ट देने के बावजूद भी मैं उनसे केवल काम का ही वास्ता रखता हूँ।

हाँ सुन्दर नयन नक्श की, आकर्षक ढंग से सजी धजी, विशाल सुडौल स्तन और नितंब वाली भरे बदन की प्रौढ़ (40 वर्ष से अधिक की) महिलाएं मुझे सदा से ही प्रभावित करती आई है। मेरी माँ में ये सारे गुण जो मुझे आकर्षित करते हैं, बहुतायत से मौजूद हैं। जब से माँ चंडीगढ़ आई है और अपने शरीर के रख रखाव पर पूरा ध्यान देने लगी है, तब से लगातार ये सारे गुण दिन प्रतिदिन निखर-निखर कर मेरी आँखों से सामने आ रहे हैं। तो आज सुबह के इस सुखद सपने का कहीं यह अर्थ तो नहीं की मेरी माँ ही मेरे सपनों की रानी है?

इस सपने का तो यही मतलब हुआ की मेरी माँ राधा देवी ही मेरी काम कल्पनाओं की रानी है। मैं माँ को चाहता हूँ, माँ मेरे अवचेतन मन पर छाई हुई है। मैं उसके मस्त शरीर को भोगना चाहता हूँ। फिर मैंने माँ का खयाल अपने दिमाग से निकल दिया और अपने छोटे भाई अजय के बारे में सोचने लगा।


अजय जिसे में ज्यादातर 'मुन्ना' कहकर ही संबोधित करता हूं, आखिरकार 'गे' (नेगेटिव होमो, यानी की लौंडा, मौगा, गान्डू या गाण्ड मरवाने का शौकीन) निकला।

तो अजय का इतना नाजुक, कोमल, चिकना, शर्मिला होने का मुख्य कारण यह है। आज तक मुझे अजय की । लड़कीपने की जो आदतें कमसिनी लगती आ रही थीं, वे सब अब मुझे उसकी कमजोरी लगने लगी। यहाँ आने के बाद अजय के भोलेपन में और शर्मीलेपान में धीरे-धीरे कमी आ रही है। पर अभी भी वो मुझसे बहुत शंका संकोच करता है। इस बात का पूरा ध्यान रखता है की उससे भैया के सामने कोई असावधानी ना हो जाय।
 
हालाँकि मैं अजय से बहुत स्नेह रखता हूँ, बहुत खुलकर दोस्ताना तरीके से पेश आता हूँ फिर भी मेरे प्रति अजय के मन में कहीं गहराई में डर छिपा है। और आज अपनी काम-भावनाओं के अधीन उस समय जिस समय वो मेरे लण्ड पर अपनी गाण्ड पटक रहा था, यह खौफ उसके मन में बिल्कुल नहीं था की भैया को यदि इसका पता चल जाएगा तो भैया उसके बारे में क्या सोचेंगे? ये सब सोचते-सोचते मुझे पता ही नहीं चला की कब मेरी आँख लग गई।


इसके बाद हम दोनों भाइयों के अपने-अपने काम पर निकलने तक सब कुछ सामान्य था। आज स्टोर में भी मेरे मन में रात की घटना घूम रही थी। रह-रह के पूर्ण नौजवान भाई का आकर्षक बदन, भोला चेहरा और उसका लड़कीपन आँखों के आगे छा रहा था। रात घर आते समय स्टोर से विदेशी 30 कंडोम का एक पैकेट और एक चिकनी वैसेलीन का जार ब्रीफकेस में डालकर ले आया। आज माँ ने गाजर का हलवा, पूरियां, दो मन पसंद शब्जियां, चटनी बना रखी थी और बहुत ही चाव से पूछ-पूछकर दोनों भाइयों को खाना खिलाई। खाना खाने के बाद रोज की तरह हम टीवी के सामने बैठे गप्प-सप्प करने लगे।


विजय ने बात छेड़ी- “माँ आज तो तूने इतने प्यार से खिलाया की मजा आ गया। ऐसे ही हँस-हँसकर परोसती रहोगी और चटनी का स्वाद चखाती रहोगी तो और कहीं बाहर जाने की दरकार ही नहीं है। सीधे स्टोर से तुम्हारे व्यंजनों का स्वाद लेने घर भाग के आया करूंगा...”



राधा हँसकर- “वहाँ गाँव में तो तेरे पिताजी का, गायों का, खेती बारी का और सौ तरह के काम रहते थे। यहाँ तो थोड़ा सा घर का और खाना बनाने का काम है, जो धीरे-धीरे करती रहती हैं। शाम होते ही तुम दोनों के आने की बाट जोहती रहती हूँ। तुम दोनों का ही खयाल नहीं रखूगी तो और किसका रचूँगी। माँ के परोसे हुए खाने में जो मजा है वो दूसरे के हाथों में थोड़े ही है..”


अजय- “हाँ माँ, भैया तो तुम्हारी इतनी बड़ाई करते रहते हैं। भैया कहते रहते हैं की बाहर का खाते-खाते मन ऊब गया अब जो घर का स्वाद मिला है तो बस बाहर कहीं जाने का मन ही नहीं करता...”


विजय- “हाँ मुन्ना, तुम तो इतने दिनों से माँ के साथ का मजा गाँव में लेते आए हो। अब भाई मैं तो यहाँ घर में ही माँ के परोसे हुए खाने का पूरा मजा लूंगा। जो मजा माँ के हाथ में है वो दूसरी में हो ही नहीं सकता...”


माँ- “विजय बेटा, तेरे जैसा माँ का खयाल रखने वाला बेटा पाकर मैं तो धन्य हो गई। मेरी हर इच्छा का तुम कितना खयाल रखते हो। मेरे बिना बोले ही मेरे मन की बात जान लेते हो। वहाँ गाँव में तुमसे दूर रहकर मैं ।
कोई बहुत खुश थोड़े ही थी। मन करता रहता था की तुम्हारे पास चंडीगढ़ कुछ दिनों के लिए आ जाया करूँ, पर तेरे पिताजी को उस हालत में छोड़कर एक दिन के लिए भी तुम्हारे पास आना नहीं होता था...”


विजय- “माँ, तुम्हारे जैसी शौकीन औरत ने कैसे फर्ज़ के आगे मन मारकर अपने सारे शौक और चाहतें छोड़ दी और उसकी पीड़ा को भला मुझसे ज्यादा कौन समझ सकता है? अब तो मेरा केवल एक ही उद्देश्य रह गया है। की आज तक तुझे जो भी खुशी नहीं मिली, वो सारी खुशियां तुझे एक-एक करके दें। माँ, तुम खूब सज-धज के चमकती दमकती रहा करो। मेरे स्टोर में एक से एक औरतों के शृंगार की, चमकने दमकने की, पहनने की चीजें मौजूद हैं। तुम्हें वे सब अब मैं लाकर दूंगा। अब यहाँ खूब शौक से और बन-ठन कर रहा करो..”


राधा लंबी साँस लेकर- "विजय बेटा, ये सब करने की जब उमर और अवस्था थी तब तो मन की साध मन में ही रह गई। अब भला विधवा को यह सब शोभा देगा? आस पड़ोस के लोग भला क्या सोचेंगे?”


विजय- “माँ, यह मेट्रो है, यहाँ तो आस पड़ोस वाले एक दूसरे को जानते तक नहीं, फिर भला परवाह और फिकर किसको है? अब तुम गाँव छोड़कर मेरे जैसे शौकीन और रंगीन तबीयत के बेटे के पास शहर में हो तो तुम गाँव वाली ये बातें छोड़ दो। तुम्हारी उमर को अभी हुआ क्या है? तुम्हारे जैसी मस्त तबीयत की औरतों में तो इस उमर में आकर आधुनिकता के रंग में रंगने के शौक शुरू होते हैं। क्यों मुन्ना, मैं ठीक कह रहा हूँ ना। अब तुम भी तो कुछ कहो ना..."


अजय- “माँ, जब भैया को तुम्हारा बन-ठन के रहना ठीक लगता है और साथ-साथ तुम भी तो यही चाहती रहती हो तो जो सबको अच्छा लगे वैसे ही रहना चाहिए...”


विजय- "और माँ, यह विधवा वाली बात तो अपने मन से बिल्कुल निकाल दो। दुनियां कहाँ से कहाँ आगे बढ़ गई। विदेशों में तो तुम्हारे जैसी शौकीन और मस्त औरतें आज विधवा होती हैं तो, दूसरे ही दिन शादी करके वापस सधवा हो जाती हैं...”


हम कुछ देर तक इसी प्रकार हँसी मजाक करते रहे और टीवी भी देखते रहे। फिर माँ रोज की तरह उठकर अपने कमरे में सोने चल दी। हम दोनों भाई भी अपने कमरे में आ गये। मैं आज सिर्फ बहुत ही टाइट ब्रीफ में था। वैसे तो मैं रोज पायजामा पहनकर सोता हूँ, पर आज एकदम तंग ब्रीफ पहनना भी मेरी तैयारी का एक हिस्सा था। अजय बाथरूम में चला गया।

वापस आया तो वो बिल्कुल टाइट बरमुडा शार्ट में था। कई दिनों से वो रात में बाक्सर या बरमुडा शार्ट में ही सोता है। मैं बेड पर बीचो-बीच बैठा हुआ था, अजय भी मेरे बगल में दोनों घुटने मोड़कर वज्रासन की मुद्रा में बैठ गया।
 
मैं मेरे रूम के किंग साइज डबलबेड पर टाँगें पसारे बैठा हुआ था और मेरा मक्खन सा चिकना छोटा भाई अजय मेरे बगल में ही मेरी ओर मुँह किए घुटने मोड़कर बैठा हुआ था। आज मैं अपने लड़कियों जैसे मक्खन से चिकने भाई की गाण्ड मारने की पूरी तैयारी के साथ था। मैं रात वाली घटना की मुझे जानकारी है, इसका संकेत अजय को पहले बिल्कुल भी नहीं दूंगा। मुझे यह तो पता चल ही गया था की मेरा छोटा भाई गाण्ड मरवाने का शौकीन है। इसलिए मैं उससे बहुत खुलकर बिना किसी झिझक के पेश आऊँगा।

विजय ने बात शुरू की- “मुन्ना देख, शहर में आते ही माँ कैसे निखरने लगी है। गाँव में रहकर माँ ने अपनी पूरी जवानी यूँ ही गॅवा दी। ना तो उसे पति का ही सुख मिला और ना ही सजने सँवारने का। पिछले 15 साल से । बिस्तर पकड़े हुए पापा की सेवा का फर्ज निभाते-निभाते माँ ने ऐसे ही जीवन को अपनी नियती मान लिया है।

तूने सुनी ना उसकी बातें; कह रही थी की 46 साल में ही उसके सजने सँवरने के दिन लद गये। हमारे स्टोर में। 60-60 साल की बूढ़ियां पाउडर लिपस्टिक पोतकर तंग स्कर्ट में आती है। तूने देखी ना?"

अजय- “भैया, धीरे-धीरे माँ भी शहर के रंग में रंगती जा रही है...”

विजय- “मुन्ना, माँ बहुत ही शौकीन मिजाज की और रंगीन तबीयत की औरत है। पर गाँव के दकियानूसी वातावरण में रहकर थोड़ी झिझक रही है। पर अब तुम देखना, माँ की सारी झिझक मिटाकर उसे मैं एकदम शहरी रंग में रंगकर पूरी माडर्न बना दूंगा। बिना माडर्न बने माँ जैसी शौकीन तबीयत की औरत भला अपने शौक कैसे पूरे करेगी?” यह कहते-कहते मैं अजय के बिल्कुल करीब आ गया और अजय की पीठ सहलाने लगा।


अजय- “हाँ.. भैया, पहनने ओढ़ने की तो माँ शुरू से ही शौकीन रही है। यहाँ शहर में आकर तो माँ दिनों दिन निखरती ही जा रही है। आजकल तो विलायती क्रीम पाउडर लगाकर माँ का चेहरा दमकने लगा है...”

मैं अजय की पीठ सहलाते-सहलाते हाथ को नीचे ले जाने लगा और अपनी हथेली मस्त भाई के फूले हुए चूतड़ों पर रख दी। चूतड़ों पर हल्के-हल्के 3-4 थपकी दी। मेरा 11” का हलब्बी लौड़ा मेरे तंग ब्रीफ में कसा पूरा तन गया था। ब्रीफ के आगे एक बड़ा सा उभार बन गया था जिसमें फूले हुए लण्ड का आकार साफ पता चल रहा था। अजय के चूतड़ों पर मेरी थापी पड़ते ही उसकी गाण्ड में एक सिहरन सी हुई। उसने कनखियों से मेरे ब्रीफ की तरफ देखा और फौरन वहाँ से नजरें हटाकर सीधा देखने लगा।


तभी विजय ने कहा- “तू तो अब पूरा बड़ा हो गया है। अब पहले जैसा मेरा गुड्डे सा प्यारा-प्यारा मुन्ना नहीं । रहा, जिसे मैं गोद में बिठाकर उसके गोरे-गोरे मक्खन से फूले गालों की पुच्चियां लेता था। क्यों मुन्ना अब तो तू पूरा बड़ा और जवान हो गया है ना? अब तो तू मेरी गोदी में भी नहीं बैठेगा। पर मेरे लिए तो अभी भी तुम वही गुड्डे सा मखमल सा गुदगुदा प्यारा-प्यारा मुन्ना है जिसे अभी भी अपनी गोद में बैठाकर खूब प्यार करने का मन करता है। क्यों मैं ठीक कह रहा हूँ ना? क्या भैया की गोद में बैठेगा?”


अजय- “भैया आपसे बड़ा तो मैं कभी भी नहीं हो सकता। आपके लिए तो मैं अभी भी पहले वाला वही मुन्ना हूँ। पर भैया आप ही बताओ क्या अभी भी मैं इतना छोटा हूँ की आप मुझे अपनी गोद में बैठाकर खिलाएं?”


विजय- “हाँ... तेरी यह बात तो सच है, अब तू पहले वाला गुड्डे सा मुन्ना तो नहीं रहा है, जिसे तेरे बड़े भैया अपनी गोद में बैठाकर तेरे गोरे-गोरे फूले-फूले गालों का चुम्मा लें। देखो तेरे में क्या मस्त जवानी चढ़ रही है। और दिन प्रति दिन चिकना और जवान होता जा रहा है। अरे तुझे पता नहीं चल रहा है की तू इतना मस्त हो। गया है, जिसे देखकर वहाँ गाँव की लड़कियां और औरतें आहें भरती होगी, और तेरे साथ सोने के लिए उनका जी मचलता होगा। लड़कियों की तो छोड़ तेरी चढ़ती जवानी देखकर तो तेरे भैया में भी मस्ती चढ़ती जा रही है। अब देखो तेरे भैया भी तुझे अपनी गोद में बैठाकर तेरे से प्यार करना चाहते हैं...”
 
अजय- “भैया, आपकी बातें आज कुछ अटपटी सी लग रही हैं। पहले तो आपने कभी भी मेरे से इस तरह की बातें नहीं की। आज आपको क्या हो गया है?”

विजय- “अरे आज तक तो मैं तुझे ऐसा प्यारा सा छोटा मुन्ना ही समझता आ रहा था, जिसे अपनी गोद में बिठाकर प्यार किया जाय। पर अब तो तू खुद ही कह रहा है की तू इतना छोटा भी नहीं रहा की मैं तुझे अपनी गोद में बैठा लूं, तो चलो तुझे बराबर का दोस्त समझ लेता हूँ। अब इस रात में अकेले में दो दोस्त खुलकर मस्ती भरी बातें नहीं करेंगे तो तू ही बता और क्या करें? अब तो तूने भी वहाँ गाँव में लड़कियों की लाइन मारनी शुरू कर दी होगी। कोई पटाखा लड़की देखकर खड़ा हो जाता होगा और उसे चोदने का दिल करता होगा...” अब मैं अपने प्यारे से मुन्ना से अश्लील बातें करने लगा और वो कैसे रिएक्ट करता है यह जानने पर उतर आया।


अजय- “भैया आप अपने छोटे भाई से इस तरह की गंदी बातें कैसे कर सकते हैं? आपको शर्म आनी चाहिए..." अजय ने यह बात कुछ तेज आवाज में ऐसे कही जैसे उसे मेरे मुँह से एकाएक ऐसी बात सुनकर विश्वास ना हो रहा हो।

विजय- “यार मैं तो तुझे बराबर का दोस्त समझकर ऐसी बात कर रहा हूँ। इसमें मैंने गलत क्या कहा? कोई पटाखा माल देखकर भाई मेरा तो नीचे टनटानाने लग जाता है। देख भैया से पूरा खुलेगा तभी तुझे भी पूरा मजा आएगा। मुझे पता है की तू पूरा जवान हो गया है और मस्ती करने और देने लायक हो गया है। अच्छा मुन्ना ईमानदारी से बताओ तुम्हारा खड़ा होता है या नहीं?” मैंने यह बात अजय की आँखों में आँखें डालकर कही।


मेरी बात सुनते ही उसका चेहरा कनपटी तक लाल हो गया और वो एकटक मेरी आँखों में देखने लगा। अजय इस समय उसी प्रकार रिएक्ट कर रहा था जैसे की एक छोटा भाई जिंदगी में पहली बार अपने बड़े भैया से इस प्रकार की अन्नेचुरल बात सुनकर करता है। मैं मन ही मन फूला नहीं समा रहा था। अब तो मैं इसके अल्हड़पन, झिझक और शर्म का खुलकर धीरे-धीरे पूरा मजा लूंगा। अभी मैं अजय पर यह बात बिल्कुल प्रगट नहीं करूंगा की मुझे उसकी रात वाली हरकत का पूरा पता है। तभी उसके नेचुरल रिएक्सन और झिझक का पूरा आनंद आएगा।


अजय- “भैया आप कैसी बात पूछ रहे हैं? आपके मुँह से यह सुनकर मुझे आपसे शर्म आने लग गई है, पर आप मेरे बड़े भाई होकर भी आपको मेरे से ऐसा पूछने में कोई शर्म नहीं आ रही है...” मुन्ना ने नीचे गर्दन किए हुए धीरे से कहा।

विजय- “मुझे पता है तू पूरा बड़ा और जवान हो गया है पर अपने ही भैया से शर्माता है। देखो मैं तुमसे कितना खुला हुआ हूँ जो बिल्कुल नार्मल तरीके से यह एक नेचुरल सी बात पूछ रहा हूँ। अब तू भी पूरा जवान हो गया है और मैं भी पूरा जवान हूँ और मैं जवानी का मजा लेना चाहता हूँ और फिर तेरे जैसे मस्त भाई का साथ है।


तो मुझे तो यही सूझा की आज अपने मुन्ना से बिल्कुल खुलकर मन की बातें करें। यह जवानी की उमर ही ऐसी है। जब खड़ा होता है तो बिल हूँढ़ता है, फिर चाहे आगे का हो या पीछे का। अब यार तुम तो ऐसे चिढ़ गये जैसे खड़ा होना तेरे लिए कोई नई बात हो। तो क्या तेरा खड़ा भी होता है या नहीं? यदि होता है तो कम से कम यह तो बता दो की कब से खड़ा हो रहा है? अब यह तो समझ रहा है ना की मैं किसके खड़े होने की बात कर रहा हूँ...” मैं मुन्ना को धीरे-धीरे अपने से खोल रहा था और साथ ही उसके अल्हड़पन और झेप का भी भरपूर मजा ले रहा था। मैंने पीछे के बिल की बात करके अपने इरादे का संकेत दे दिया था। मैं ऐसे मस्ताने छोटे भाई को धीरेधीरे पटाकर जिंदगी में पहली बार उसकी गाण्ड मारने का भरपूर मजा लेना चाहता था।
 
अजय- “भैया आपने मुझे नामर्द समझ रखा है क्या? मेरी उमर में आकर हर लड़के का खड़ा होता है तो मेरा क्यों नहीं होगा? आप मेरे से गंदी-गंदी बातें शायद इसलिए कर रहे हैं की बाद में मेरे साथ गंदा काम भी करने का इरादा रख रहे हैं। मैं सब समझ रहा हूँ। पर एक बात कान खोलकर सुन लीजिए मैं आपको मेरे साथ कुछ भी नहीं करने दूंगा..” मुन्ना ने कुछ ताव में आकर जबाब दिया, क्योंकी मैंने उसकी मर्दानगी पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया था। अब उसके हाव भाव से मुझे बहुत मजा आने लगा था और मैं इस झेप का पूरा मजा ले रहा था।

विजय- “देख मुन्ना तू अपने ही भैया से इतना शर्मा क्यों रहा है? जो लड़के बड़े होने लगते हैं उनका खड़ा तो होता ही है। जो नामर्द होते हैं उनका खड़ा नहीं होता। हमारा मुन्ना तो अपने भैया के जैसा गबरू जवान बनेगा तो मुन्ना का खड़ा क्यों नहीं होगा? अरे तब तो तेरा भी मेरा जैसा मस्त लौड़ा बन गया होगा। लौड़ा, समझ रहा है ना लौड़ा? तेरे भैया का तो पूरा मस्त लौड़ा है। एक बित्ते का मस्ताना हलब्बी लौड़ा। बोल भैया का लौड़ा देखेगा? अच्छा बताओ जब खड़ा होता है तब चमड़ी से सुपाड़ा पूरा बाहर आ जाता है या नहीं? अब तो मुन्ना अपने लण्ड की मुट्ठी मारकर रस भी झाड़ने लगा होगा। बताओ तुम्हारे लण्ड से रस निकलता है या नहीं?” अब मैं बिल्कुल खुल्लम-खुल्ला रूप में आने लगा।


अजय- “भैया आप बड़ा भाई होकर अपने छोटे भाई से ऐसी गंदी बातें कैसे पूछ सकते हैं? आप बहुत गंदे हैं, मैं तो आपको बहुत शरीफ और सभ्य समझता था, पर आप तो अपने छोटे भाई की ही लाइन मार रहे हैं। आप चाहते हैं ना की मैं भी आपके साथ आपकी तरह ही गंदी-गंदी बातें करूं? मैं आपके जितना बेशर्म तो नहीं हो सकता फिर भी लीजिए और इतना तो सुनिए। हाँ चमड़ी के खोल से पूरा सुपाड़ा बाहर निकल आता है। मुट्ठी तो कभी-कभी ही मारता हूँ। पर मेरी बिल्कुल पर्सनल इन सब बातों को जानकर आप क्या करेंगे? आखिरकार, मेरे । मुँह से ये सब सुनकर अब तो आप खुश हो गये हैं ना?” अजय ने यह बात कुछ झुंझलाहट के साथ कही।


विजय- “अरे तू तो पूरा जवान हो गया है। जब लण्ड से रस निकलता है तब कितना मजा आता है। पर तू तो एक पूरा मर्द होकर ऐसे नखरे दिखा रहा है जैसे एक ताजी-ताजी जवान हुई लौंडिया नखरे दिखाती है। तुझे तो बनाने वाले ने भूल से लइका बना दिया है, जबकी तुझे तो लड़की होना चाहिए था। तेरे चेहरे पर तो अभी तक और लड़कों के जैसे दाढ़ी मूंछ ही नहीं आई है। तेरे तो लड़कियों के जैसे बिल्कुल चिकने गाल हैं, रंग भी बिल्कुल गोरा चिट्टा और चमड़ी भी लड़कियों जैसी मखमल सी कोमल और गुदगुदी है। और जो सबसे बड़ी बात जो तुझे मर्यों से अलग करती है... वो है तेरी औरतों जैसी फूली-फूली मतवाली गाण्ड। तू तो यार लड़कियों जैसे नखरे भी दिखा रहा है। चल अब अपने बड़े भैया के सामने पूरा मर्द बनकर दिखा और यह लौंडियों के जैसे तुनकना छोड़। अब मेरी बात ध्यान से सुन, रात में जब कोई सपना वपना देखकर अपने आप झड़ता है तब उतना मजा नहीं आता। लण्ड के रस निकालने के और भी कई बहुत ही मजेदार तरीके हैं। जितना मजा दूसरे के साथ आता है। उतना मजा अपने आप झड़ने में नहीं आता। जिससे मन मिलता है, जिससे प्यार है उससे मजा लेने में कोई बुराई थोड़े ही है। पर तुम तो बात करते ही तुनक रहे हो। तुम चाहो तो मैं तुम्हें जवानी के मजे लेने के कई मजेदार तरीके सिखा सकता हूँ। तुम्हें इतना मजा आएगा की मेरी तरह यह खेल खेलने का तू खुद भी दीवाना हो जाएगा..”
 
अजय- “छीः भैया, दो लड़के आपस में? मुझे तो सोचकर ही कैसा लग रहा है, और आप इसमें मजा देख रहे हैं। दो लड़कों को भला आपस में क्या मजा आएगा? भले ही मैं आपकी नजर में एक लड़की जैसा हूँ, पर हकीकत में तो एक लड़का ही हूँ ना। आप तो सचमुच में मुझे एक लड़की समझकर मजा लेने के लिए पटाने लग गये हैं। आपको आज क्या हो गया है? छीः भैया, आप अपने छोटे भाई के साथ गंदा काम करना चाहते हैं। आपको इसमें शर्म आए या नहीं आए, पर मुझे तो बहुत शर्म आ रही है.”


मैं- “अच्छा एक बात ईमानदारी से बताओ ऐसी बातें इस एकांत रात में सुनकर तेरे लण्ड में हलचल हो रही है। या नहीं? उसमें एक मीठी-मीठी गुदगुदी सी हो रही है या नहीं? मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे मेरा लौड़ा ज्वालामुखी की तरह भीतर से उबल रहा है और उसके भीतर भरा हुआ पिघला लावा बाहर निकलने के लिए मचल रहा है। अब भाई तुम्हारी बात दूसरी है पर ऐसी बातें सुनकर लड़कियों की चूत और गाण्ड में भी खाज चलने लगती है। देखो मेरे ब्रीफ में लौड़ा कैसे तन गया है और ब्रीफ फाड़कर बाहर निकलने के लिए मचल रहा है...” गाण्ड शब्द मैंने जानबूझ कर जोड़ दिया। साथ ही यह बात कहते हुए मैंने मेरे ब्रीफ में फूले हुए लण्ड की तरफ भी इशारा किया।


अजय ने एक बार मेरे ब्रीफ में तने हुए लण्ड की तरफ देखा और फौरन वहाँ से नजरें हटा ली, कहा- “भैया आप बातें ही ऐसी गंदी-गंदी कर रहे हो की किसी का भी लण्ड ऐसी गंदी बातें सुनकर खड़ा तो होगा ही। मेरा भी खड़ा हो गया है, तो इसमें नई क्या बात है? मैं सब समझ रहा हूँ। आप मेरे से उत्तेजित करनेवाली बातें करके मुझे उत्तेजित करके मेरे साथ मनमानी करना चाहते हैं...”

मैं- “देख मुन्ना, जब लण्ड खड़ा होता है तो उसे फिर शांत भी करना पड़ता है। तुम्हें तो मुट्ठी मारकर शांत करने की आदत पड़ी हुई है, पर मैं मूठ मारते-मारते थक गया हूँ। फिर तुम्हारे जैसे चिकने भाई का साथ है। मेरा तो मन कर रहा है की क्यों ना हम दोनों भाई मिलकर आज मजा लें, और अपने-अपने खड़े लण्ड एक दूसरे की मदद से शांत करें। तुम चाहो तो मजा लेने का बहुत ही अनोखा और मजेदार तरीका मैं तुम्हारे साथ यह । मजा लेकर तुझे समझा सकता हूँ। अरे एक बार अपने भैया के साथ यह मजा लेकर तो देखो। यदि तुम्हें मजा नहीं आए तो बीच में ही छोड़ देना...”

अजय- “भैया आप यह मजा लेने में मेरे साथ कुछ करेंगे तो नहीं ना? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। की आपका क्या प्लान है? और साथ में मन में एक डर सा भी लग रहा है...” अजय आखिरकार, इस मजे का शौकीन था, सो वो लाइन पर आने लगा पर मेरे सामने नादान बन रहा था।
 
विजय ने भी अब गरम लोहे पर चोट की- “अब भाई यह तो मुझे कैसे पता चलेगा की कुछ करने से तेरा क्या मतलब है? पर क्या तुझे अपने भैया पर विश्वास नहीं है? मैं तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा जिससे तुमको थोड़ी सी भी तकलीफ हो। आखिर मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ और तुम्हें थोड़ी सी भी तकलीफ कैसे दे सकता हूँ। तुम्हारी एक 'उफ' भी मेरे दिल पर सौ घाव कर देती है। तुम्हारे साथ इतने प्यार से यह जवानी का खेल खेलूंगा की देखना तू पूरा मस्त हो जाएगा और भैया के साथ यह खेल रोज खेलने का दीवाना हो जाएगा। इतने प्यार से करूँगा की तुझे पता तक नहीं चलने दूंगा। फिर तेरे साथ ऐसे ही जवानी की मस्त बातें करता रहूँगा की तुझे दर्द का पता ही नहीं चलेगा..” मैंने बातों ही बातों में साफ संकेत दे दिया की मैं आज अपना हलब्बी लौड़ा तेरी गाण्ड में पेलूंगा।

फिर विजय ने बात पालटते हुए कहा- “मेरा मुन्ना भी माँ की तरह पूरी रंगीन तबीयत का है। माँ मजे लेने की पूरी शौकीन है तो तुम भी तो जवानी का मजा लेने का पूरा शौकीन दिखते हो। देखो तेरे ऊपर क्या मस्त जवानी चढ़ी है। एकदम माँ जैसी मस्त औरत की तरह दिख रहे हो। अरे मुन्ना मैं तो तुम्हें सीधा साधा और भोला भाला समझता था, पर तुम तो पूरे छुपे रुस्तम निकले। तूने तो गाँव के खुले वातावरण में खूब मस्ती की होगी और लोगों को करवाई होगी?” अब मैं रातवाली घटना का जिक्र करके उसपर मानसिक तौर पर पूरा हाबी होना चाह रहा था।

अजय- “भैया, आप कैसी बात पूछ रहे हैं। मैंने तो आज तक किसी लड़की या औरत की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा है। वो तो आप जैसे चालू लोगों का काम है। यहाँ आपके स्टोर में एक से बढ़कर एक खूबसूरत छोकरियां हैं, आपने तो ढेरों पटा रखी होंगी...”


विजय- “अरे मुन्ना नहीं। मेरी आजकल की छोकरियों में कोई दिलचस्पी नहीं है। तू तो यार अब मेरे बराबर का हो गया है, और बिल्कुल दोस्त जैसा है इसलिए तुझे दिल की बात बताता हूँ। मुझे तो माँ जैसी बड़ी उमर की। भरे-पूरे बदन की मस्त औरतें पसंद हैं, जिनकी बड़ी-बड़ी चूचियां हो और भारी-भरकम गाण्ड हो...” अब मैं छोटे भाई के चूतड़ सहलाते-सहलाते अपनी बीच की उंगली से उसकी बरमुडा शार्ट के ऊपर से गाण्ड खोदने लगा।


अजय- “पर भैया आप मेरे साथ यह क्या कर रहे हैं? मेरे पीछे से अपना हाथ हटाइए। आपका क्या इरादा है, मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। आज से पहले तो आपने ना तो कभी मेरे से ऐसी बातें की और ना ही । मेरे साथ ऐसी गंदी हरकतें की। आप किसके साथ यह सब कर रहे हैं, यह भी आपने नहीं सोचा। मैं कोई लड़की थोड़े ही हूँ जो मेरे साथ आप ये सब करने की सोच रहे हैं..”


विजय- “अरे मुन्ना तुम तो बुरा मान गये। मैं तो तुझे बराबर का दोस्त समझकर मन की बात कर रहा था। फिर तुम यार हो ही इतने मस्त की हाथ सरक कर अपने आप तुम्हारी सही जगह पर पहुँच गया। पर तुम इतना बुरा क्यों मान रहे हो? लगता है तुम अपनी इस मस्त चीज का मजा लेने के पूरे शौकीन हो। इसकी मस्ती लेने का तुम्हें चस्का लगा हुआ है। अरे माँ जैसे मजा लेने की शौकीन है, वैसे ही तू भी पूरा मजा लेने के शौकीन हो। मैं माँ का इतना ध्यान रखता हूँ और जो मजा उसे आज तक पिताजी से नहीं मिला वो सारा मजा मैं उसे देने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरी बात समझ रहा है ना की मैं माँ को कैसा मजा देना चाहता हूँ। पर तू तो माँ से भी दो कदम आगे है। तू मेरा इतना प्यारा, लाड़ला मेरा छोटा भाई है और ऊपर से पूरा शौकीन भी है, तो तुझे मैं तरसाने थोड़े ही दूंगा...”
 
मेरी बात सुनते ही अजय का चेहरा लाल हो गया। उसने नजरें झुका ली और वो मेरी ब्रीफ में तने हुए मेरे लण्ड
को एकटक देखने लगा। तभी अजय ने कहा- “भैया आपका माँ के बारे में जब इतना गंदा खयाल है तो आप छोटे भाई की क्या परवाह करेंगे। क्या आप मर्दो के साथ भी ये सब करने के शौकीन हैं?”


अब मैं अजय की फूली हुई गाण्ड पर हाथ फेरने लगा। हाथ फेरते-फेरते उसका गुदाज चूतड़ मुट्ठी में कस लेता और जोर से दबा देता। फिर भाई को अपनी ओर खींचकर उसे अपने सामने घुटने के बल खड़ा कर लिया, और उसकी आँखों में झाँकते हुये कहा- “मेरा मुन्ना बड़ा प्यारा, चिकना मस्त बिल्कुल नई-नई जवान हुई छोकरी जैसा है, और तुम्हारी यह फूली-फूली चीज तो बिल्कुल अपनी माँ के जैसी मस्त है। अब भाई माँ की तो मिलने से मिलेगी पर तुम्हारी तो इतनी मस्त चीज मेरे सामने है। भाई मेरी तो इस पर नीयत खराब हो गई है। तुम भी तो कम नहीं हो, अपनी इस मस्तानी चीज का खुलकर मजा लूटते हो और गाँव वालों को भी इसका स्वाद । चखाते आ रहे हो। अब भाई इसका मजा खाली गाँव वालों को ही दोगे या फिर अपने भैया को भी इसका स्वाद चखाओगे या नहीं?"


अब मैं शार्ट के ऊपर से उसकी गाण्ड में अंगुली करने लगा और बोला- “अब भैया का इस गोल छेद पर मन आ गया है। तेरे इस गोल छेद का खुलकर मजा लेंगे। क्यों देगा ना?”


अजय- “आप बड़ा भाई होकर छोटे भाई से कैसी बात पूछ रहे हैं? भैया आपने मुझे क्या समझ रखा है, जो वहाँ गाँव में हर गाँववाले के आगे अपनी पैंट नीची करता फिरे? आप मेरे प्रति इतना गंदा इरादा कैसे रख सकते हैं?”


विजय- “अरे शर्माता क्यों है? मुन्ना तुम हो ही इतना मस्त, मक्खन सा चिकना, इतना प्यारा की किसी का भी खड़ा कर दो। जब से मुझे पता चला की तुम शौकीन हो, तो मेरा भी लौंडेबाजी का शौक जाग उठा। मुझे सब पता है, कल रात तुम कितना मस्त होकर मेरे खड़े लण्ड पर अपनी फूली-फूली गाण्ड कैसे दबा रहे थे। अरे ऊपरऊपर से जब इतना मजा है तो अब खुल्लम खुल्ला दोनों भाई इस खेल का पूरा मजा लूटेंगे। अब भाई हम तो तुम्हारी इस मस्तानी गाण्ड का पूरा मजा लेंगे...”


यह कहकर मैं भी अजय के सामने घुटने के बल खड़ा हो गया और उसके होंठों पर अपनी जुबान फिराने लगा। मैं अपने छोटे भाई को बहुत ही कामुक भाव से देखता हुआ उसकी लाज शर्म से भरी कमसिनी पर लार टपका रहा था। मैं उसके साथ खुलकर ऐय्याशी करना चाहता था। ऐसे मस्त चिकने लौंडे के साथ लौंडेबाजी का पूरा लुत्फ़ लेना चाहता था। अजय के होंठों पर कामुक अंदाज में जुबान फेरते-फेरते मैंने उसके गुलाबी होंठ अपने होंठों में कस लिए और भाई के होंठों का रसपान करने लगा।
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