Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई - Page 2 - SexBaba
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Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई

मेरी बात सुनते ही अजय का झूठमूठ का विरोध करने का सारा हौसला पस्त पड़ गया और वो बेड पर चुपचाप बैठ गया। मैं भी उसकी बगल में बैठ गया। मेरा 11" लंबा और 4" मोटा हलब्बी लौड़ा फुफ्कार मार रहा था। वो ब्रीफ फाड़कर बाहर आने के लिए मचल रहा था। अजय के प्रति आज तक जो मेरे मन में स्नेह भरा प्यार था, वो अब वासनात्मक प्यार बन गया था। मैं अपने खड़े लण्ड को ब्रीफ के ऊपर से पकड़कर हिला-हिलाकर नीचे देखते हुए अजय को दिखाने लगा। साथ ही उसके गोरे गालों पर स्नेहभरा हाथ भी फेर रहा था।


फिर विजयने कहा- “मुन्ना देख, ब्रीफ में कैसे तेरे वाली में जाने के लिए मचल रहा है। जबसे इसे पता चला है। की तू गाण्ड मरवाने का शौकीन है तब से यह मचल उठा है। एक बार मेरे वाले का मजा ले लेगा ना तो भैया का दीवाना हो जाएगा। तेरी बहुत प्यार से पूरी चिकनी करके लँगा। बोल भैया से पूरा मस्त होकर मजा लेगा। ना? आज मैं जैसा तेरा मजा लूंगा, वैसा मजा गाँव में तुझे गाँव वालों से कभी भी नहीं मिला होगा..."


अजय- “भैया बगल के कमरे में माँ सोई हुई है, कहीं माँ को पता चल जाएगा तो माँ हम दोनों भाइयों के बारे में क्या सोचेगी?” अब अजय चुदाने को आतुर लौंडिया की तरह बोला की चोद तो लो पर कहीं कोई देख लेगा तो?”


विजय- “अरे माँ की चिंता छोड़। उसके पास तो आगे वाली भी है और पीछे वाली भी है। जब तुमसे पीछे वाली
की खाज बर्दास्त नहीं होती तो अपनी मस्त और मजे लेने की शौकीन माँ आगे और पीछे दोनों जगह की खाज कैसे बर्दास्त करती होगी? पता चल जाएगा तो देखना दोनों भाइयों को आगे वाली का और पीछे वाली का दोनों का स्वाद चखाएगी। पर मुन्ना, माँ राजी-राजी देगी तो तू माँ की ले लेगा ना?”


अजय- “भैया आप बहुत गंदी-गंदी बातें करते हो। आप लेने की बात कर रहे हो मेरा तो माँ के सामने खड़ा तक नहीं होगा...”


विजय- “अभी तो सिर्फ बातें ही की है। लेकिन जब तुम्हारी ये मक्खन सी मुलायम गाण्ड तबीयत से लँगा तब देखना तुम खुद ही पीछे ठेल-ठेलकर मरवाओगे। जैसी तुम्हारी भैया मारेंगे ना वैसी तुम्हारी आज तक किसी ने भी नहीं मारी होगी...”


फिर अजय को ब्रीफ के ऊपर से लण्ड दिखाते हुए- “देख भैया का जब यह धीरे-धीरे अंदर जाएगा ना तो तुम
सबको भूल जाएगा। इसके बाद सिर्फ और सिर्फ भैया से ही मरवाएगा। बोल भैया को अपने ऊपर चढ़ाएगा ना?”


अजय- “मुझे शर्म आती है। मुझे कुछ भी नहीं कहना। आप जो चाहो वो करो। मैं सब समझ रहा हूँ। आज आप अपने छोटे भाई को छोड़ने वाले नहीं है तो मेरे से पूछ क्यों रहे हैं?”
 
मैं गाण्ड मरवाने के शौकीन छोटे भाई के इस समर्पण पर मर मिटा। मैंने कहा- “अरे तुम तो सुहागरात के दिन जैसे दुल्हन शर्माती है वैसे शर्मा रहे हो। भाई तुम्हारी इस अदा पे तो हम फिदा हो गये। हमने तो आज से तुमको ही अपनी दुल्हन मान लिया। आज तो तेरे सैया तेरा खुलकर मजा लेंगे...”

यह कहकर मैंने अजय के शार्ट में हाथ डाल दिया और उसकी गाण्ड के छेद में अंगुली धंसा दी और कहा- “अरे तेरी तो भीतर से भट्टी जैसी गरम है। इसमें जाने से भैया का तो राख में जैसे सक्करकंदा सिकता है वैसा सिक जाएगा। क्यों भैया का सिका हुआ सक्करकंदा खाएगा? खेतों का सक्करकंदा भूल जाएगा...”


अजय- “भैया आप बहुत चालू हो। अपने कमसिन छोटे भाई पर भी लाइन मारने की लिए उतारू हो गये। आप माँ को पटा लो। पर मेरे साथ ये सब मत करो मुझे आपसे बहुत शर्म आती है..."


मैं- “अरे शर्माता क्यों है? माँ को तो पटाऊँगा ही। पर माँ का स्वाद अकेला थोड़े ही चबँगा। तुझे भी उस मजे में शामिल करूंगा। देख भैया से पूरा खुलेगा नहीं तब इस खेल का पूरा मजा नहीं आएगा। तेरे भैया आज दिल खोलकर तेरी गाण्ड मारेंगे तो, तू भी अपने भैया से दिल खोलकर गाण्ड मरवा। अच्छा मुन्ना देख भैया का हलब्बी लौड़ा ब्रीफ में कैसे मचल रहा है? अच्छा मुन्ना बता ना, इसे कौन से मुँह से खाएगा? नीचे वाले से या ऊपर वाले से?”


अजय- “भैया आप जिस भी मुँह में देंगे वही मुँह आपके इस मस्ताने के लिए खोल दूंगा। आप भैया कैसी गंदीगंदी बातें कर रहे हैं?"


उसकी बात सुनकर मैंने उसे मेरे सामने चौपाया बना दिया और उसका बरमुडा चड्डी सहित नीचे सरकाकर टाँगों से बाहर निकाल दिया। अजय की एकदम चिकनी, फूली हुई बिल्कुल गोरी गाण्ड अपनी पूर्ण छटा के साथ मेरी आँखों के सामने थी। बीचो-बीच बड़ा सा खुला हुआ गोल छेद मुझे निमंत्रण दे रहा था। गोल छेद से भीतर का । गुलबीपन साफ दिख रहा था। मैं अपने चिकने भाई की मस्त गाण्ड के मदहोश कर देने वाले नजारे से काफी देर तक नयन सुख लेता रहा। मैं सपाट गाण्ड पर हाथ फेर रहा था। बीच-बीच में अंगुली से गाण्ड का छेद भी खोद देता था। फिर दोनों हाथों से गाण्ड का छेद फैलाया तो अजय की गाण्ड चौड़ी होने लगी। मैं बहुत खुश हुआ की यह मेरा 11" इंच का लंबा और मोटा लण्ड आराम से अपने अंदर ले लेगा।


फिर मैंने भाई को अपनी गोद में बैठा लिया और उसकी बनियान भी निकाल दी। भैया का प्यारा मुन्ना पूरा । नंगा मेरी गोद में बैठ हुआ था। मैं अजय के फूले हुए गालों को मुँह में भर रहा था। मस्त भाई की लड़की जैसी जवानी पर मैं अत्यंत कामुक होकर लार टपका रहा था। फिर मैंने उसके होंठ अपने होंठों में ले लिए और उन्हें चुभलाने लगा। अजय की छाती पर बिल्कुल भी बाल नहीं थे, जबकी मेरी छाती पर काफी थे। अजय के स्तन हल्के उभार लिए हुए थे। मैं उन्हें धीरे-धीरे दबाता जा रहा था और उसके मुँह में अपनी जुबान ठेल रहा था। कभी उसके निपल भी चींटी में लेकर हल्के से मसल देता। मुझे भाई के साथ ये सब करने में बहुत मजा आ रहा था। तभी मैंने हाथ नीचे करके अजय का लण्ड पकड़ लिया। अजय का लण्ड बिल्कुल सख़्त था। मेरी इच्छा भाई के लण्ड को देखने की और उससे खिलवाड़ करने की होने लगी।
 
मैंने अजय का मुँह मेरी ओर करके उसे घुटनों के बाल खड़ा कर लिया। अजय ने अपने हाथ अपने लण्ड पर रख लिए और आँखें बंद कर ली। अजय का करीब 10" लंबा और 3" मोटा लण्ड मेरी आँखों के आगे पूरा तना हुआ था। बिल्कुल सीधे लण्ड के आगे गुलाबी सुपाड़ा बड़ा प्यारा लग रहा था। उसके अंडकोष कड़े थे। अजय की झाँटें बहुत ही कम थीं, और उसकी दाढ़ी की तरह बहुत कोमल थीं। छोटे भाई के कठोर मस्ताने लण्ड को देखकर मुझे कोई शक नहीं रहा की मेरा भाई एक पूर्ण मर्द है। यह अलग बात है की उसके शरीर में कई लड़कियों वाले चिन्ह भी थे, जैसे बहुत हल्की दाढ़ी और मूंछे, लड़कियों जैसे फैले और चौड़े नितंब, त्वचा की कोमलता, शरीर में । खाशकर चेहरे पर कमसिनी, शर्मीलापन और सबसे बढ़कर बात की मर्दो को देने के लिए लालायित रहना जो उस जैसी उम्र की लड़कियों में कुदरती देन होती है।


मेरे छोटे भाई का 10” का मस्ताना लण्ड मेरे आगे तना हुआ था। लण्ड बिल्कुल सीधा और सपाट था। मैं बहुत खुश था की मेरा भाई एक पूर्ण मर्द है। मैं अजय के लण्ड को मुट्ठी में भींचकर उसकी कठोरता को महसूस करने लगा और बड़े चाव से उसे दबा-दबा के देख रहा था। उसके दोनों अंडकोषों को हथेली में रख ऊपर की ओर झटका दे रहा था। पीछे उसके गुदाज चूतड़ों पर हथेली रखकर उसे अपनी मर्दानी छाती पर दबा रहा था, और उसके लण्ड के कड़ेपन को छाती पर महसूस करके खुश हो रहा था।


विजय- “मुन्ना, जितनी मस्त तेरी गाण्ड है उतना ही मस्त तेरा यह प्यारा सा लण्ड है। तू तो पूरा जवान गबरू मर्द है रे। तेरे जैसे मर्दाने भाई की मस्ती करते हुए, बोल-बोलकर गाण्ड मारने में जो मजा है वो दूसरे किसी की मारने में थोड़ा ही है। अरे मारनी है तो किसी तेरे जैसे कमसिन लौंडे की मारो, जिसे मराने में मजा आता हो।


और खुशी-खुशी मराए, जिसे पूरा पता हो की उसके साथ क्या हो रहा है? कुछ लोग भोले भाले बच्चों को बहला फुसला के अपनी हवस मिटाते हैं, तो कुछ तो इतने गिर जाते हैं की हिंजड़ों को पैसे देकर उनकी ठोंकते हैं और कई तो ऐसे बूढ़ों की भी मिल जाती है तो ले लेते हैं, जिनकी जवानी ढल चुकी है और जिनका खड़ा तक नहीं होता। तेरे भैया तो ऐसे लोगों पर थूकते हैं। मुझे तेरे जैसा ही मस्त, मक्खन सा चिकना लौंडा चाहिए था जो पूरा मर्द हो और मराने का शौकीन हो। क्यों पूरा मस्त होकर मजा लेगा ना?”


अजय- “हाँ... भैया। जब आपने मुझे पटाकर पूरा बेशर्म बना ही लिया है तो मैं भी पीछे नहीं रहूँगा। अपने राजा भैया से खुलकर मजा लूंगा। आप भी तो अपना दिखाओ ना? मैं भी अपने प्यारे भैया के गुड्डे से खेलूंगा उसे । बहुत प्यार करूँगा..."


विजय- “हाँ मुन्ना, तो तू भैया का मुन्ना देखेगा। क्या भैया के साँप के साथ खेलेगा? पर देखना मेरा साँप बहुत जोर से फुफ्कार मारता है, और कहीं उसको तुम्हारा बिल दिख गया तो उसमें फौरन घुस जाएगा...” यह कहकर मैंने फौरन ब्रीफ टाँगों से बाहर कर दिया।


मेरा 11” का मस्ताना लण्ड अजय की आँखों के आगे हवा में लहरा उठा। काली-काली झांटों के घने गुच्छों के बीच से मेरा लण्ड बमबू की तरह एकदम सीधा होकर सिर उठाए हुए था। सुर्ख लाल सुपाड़ा फूलकर मुर्गी के अंडे जैसा बड़ा दिख रहा था। नीली नसें फूलकर ऐसे लग रही थीं, जैसे चंदन के तने पर नागिनें लिपटी हुई हों। मैंने अपनी स्पोर्ट गंजी भी खोल दी और अजय को मैंने अपने बगल में कर लिया और उसके सिर को अपनी छाती पर टिका लिया तथा उसे अपने लण्ड को जड़ से पकड़कर हिला-हिलाकर दिखाने लगा। मुन्ना अपने नये खिलौने को बड़े चाव से देख रहा था।


विजय- “मुन्ना, भैया का यह मस्ताना लण्ड ठीक से देख ले। खूब प्यार से इसके साथ खेल। क्यों पसंद आया
ना? बताना कैसा लगा भैया का लौड़ा?”


अजय- “भैया आपका तो बहुत बड़ा और मोटा है। मुझे अपनी मासूम गाण्ड में इसे लेने में बहुत दर्द होगा ना? भैया मैंने आज तक इतने तगड़े लण्ड से कभी नहीं मरवाई है। डर के मारे मेरी गाण्ड अभी से फटने लगी है...”
 
अजय की बात सुनकर विजय ने हँसते हुए कहा- “क्यों ऐसा बड़ा लण्ड गाँव में कभी देखा नहीं? एक बार इससे मरवा लेगा ना तो गाँव वालों को भूल जाएगा और भाई के लण्ड का दीवाना हो जाएगा...”


अजय- “भैया मैंने सारे गाँववालों के थोड़े ही देखे हैं। भैया आप भी। मैं तो बस दो लोगों के साथ कभी-कभी मस्ती ले लेता था। वो भी आप जितने प्यारे थोड़े ही थे। साले पक्के गान्डू थे। आप जितनी मस्ती भरी बातें वो थोड़े ही करते थे। गन्ने के खेत में फटाफट काम निपटाकर सरक लेते थे..”


विजय- “अरे तू तो बुरा मान गया। अब मैं अपने लण्ड के शौकीन भाई को लण्ड के लिए किसी का मुँह नहीं ताकने दूंगा। मेरा यह हलब्बी लण्ड एक बार भी तेरे अंदर चला गया ना तो छोटे मोटे लण्ड से तो तेरी गाण्ड की खुजली मिटेगी भी नहीं। बड़ी मस्ती से आज तेरी मारूंगा। तू भी क्या याद रखेगा की आज तो किसी पक्के लौंडेबाज से पाला पड़ा है। तेरी औरतों जैसी फूली गाण्ड को तो ऐसा ही मस्ताना सोटा चाहिए। अरे उन गाँववाले गान्डुओं की बात छोड़। उन्हें तेरे दर्द से और तेरे मजे से थोड़ा ही मतलब था। मैं जितनी मस्ती तेरे साथ करूँगा उससे ज्यादा मस्ती तुझे करवाऊँगा...” यह कहकर मैंने अजय के एक गाल को मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगा।


मेरी आँखें वासना के अतिरेक से लाल हो उठी। मैं बहुत ही कामुक अंदाज में अपने इस कमसिन लौंडे पर लार टपका रहा था और बहुत खुलकर उससे गाण्ड मारने की बात कर रहा था।


विजय- “ले भाई के गुड्डे से खेल। तू ऐसे ही मस्ताने लण्ड का दीवाना है ना। ले देख तेरे भैया कितने प्यार से तुझे अपना लण्ड दे रहे हैं.”


अजय ने एक हाथ नीचे करके मेरे लण्ड को जड़ से पकड़ लिया और उसपर मुट्ठी कस ली। अब वो लण्ड को जोर-जोर से दबाने लगा।


विजय- "क्यों एकदम मस्त है ना? देख तेरी गाण्ड में जाने के लिए कैसे मचल रहा है? आज तेरी इतने प्यार से मारूंगा की अपने उन दोनों दोस्तों की तुझे कभी भी याद नहीं आएगी। जितनी दिल खोलकर मरवाएगा ना तुझे उतना ही मजा आएगा...”


अजय- “भैया आपका कितना मोटा और कड़ा है। आपसे मरवाकर बहुत मजा आएगा। अब कभी आगे से आप मेरे सामने मेरे गाँववाले उन दोनों भडूओं की बात मत कीजिएगा। मैं तो अब सपने में भी उनके साथ मस्ती करने की नहीं सोच सकता। मैं तो अब अपने राजा भैया के साथ दिल खोलकर मस्ती करूँगा...”


विजय- “अरे चिंता मत कर। तेरी इतने प्यार से लँगा की तुझे पता ही नहीं चलेगा की कब तेरी गाण्ड मेरे पूरे लण्ड को लील गई। मेरे प्यारे मुन्ने को दर्द थोड़े ही होने दूंगा। आखिर तेरा बड़ा भाई हूँ तेरा दर्द मेरा दर्द...”


अजय- “भैया आप कितने अच्छे हैं। मुझे कितना प्यार करते हैं। इतना प्यार तो मुझे किसी ने नहीं किया...” यह कहकर अजय दोनों हाथों से मेरे लण्ड को सहलाने लगा, मरोड़ने लगा, लण्ड की चमड़ी ऊपर-नीचे करने लगा।
 
अजय- “भैया आप कितने अच्छे हैं। मुझे कितना प्यार करते हैं। इतना प्यार तो मुझे किसी ने नहीं किया...” यह कहकर अजय दोनों हाथों से मेरे लण्ड को सहलाने लगा, मरोड़ने लगा, लण्ड की चमड़ी ऊपर-नीचे करने लगा।


विजय- “अरे तू प्यार करने की चीज ही है। तू इतना प्यारा, नाजुक और एकदम नई-नई जवान हुई लड़की जैसा है। उससे भी बढ़कर तेरे पास भी मर्दो जैसा मस्ताना लण्ड है। तेरे जैसे के साथ ही लौंडेबाजी का असली मजा है...” यह कहकर मैंने पास की साइड टेबल पर पड़ी अपनी ब्रीफकेस अपनी गोद में रखकर खोली और कंडोम का पैकेट और वैसेलीन का जार उसमें से निकाल लिया।


अजय- “भैया आप तो पूरी तैयारी करके आए हो। तो आपने आज दिन में ही प्लान बना लिया था की आज रात छोटे भाई की गाण्ड मारनी है। आप पक्के उस्ताद हो...”


विजय- “तैयारी तो करनी ही पड़ती है। तेरे जैसे चिकने भाई की तो खूब चिकनी करके ही लेनी होगी ना। अब तो
डर नहीं लग रहा है ना? क्यों पूरा तैयार है ना? अरे अब तेरे जैसा गाण्ड मरवाने का शौकीन भाई मिला है तो मैं क्या जिंदगी भर मूठ ही मारता रहूँगा...”


यह कहकर विजय ने कंडोम के पैकेट से एक कंडोम निकाल ली और अपने लण्ड पर चढ़ा ली। यह बहुत ही झीनी हाई क्वालिटी की कंडोम थी, चढ़ने के बाद पता ही नहीं चल रहा था की लण्ड पर कंडोम चढ़ी हुई है। कंडोम चढ़ने के बाद लण्ड बिल्कुल चिकना प्लास्टिक के इंडे जैसा लग रहा था। तभी मैंने अजय को झुका लिया और उसकी गाण्ड की दरार में अंगुली फेरने लगा। फिर वैसलीन का जार खोला और अंगुली में ढेर सारी वैसेलीन लेकर अजय की गाण्ड पर लगा दी। गाण्ड में आधी के करीब अंगुली घुसाई और फिर देर सी वैसेलीन अंगुली में लगाकर उसकी गाण्ड में वापस अंगुली घुसा दी। थोड़ी देर गाण्ड के अंदर चारों ओर अंगुली घुमाकर गाण्ड अंदर से अच्छी तरह से चिकनी कर दी। फिर मैंने ढेर सी वैसेलीन अपने लण्ड पर भी चुपड़ ली। अब मैं अपने छोटे भाई पर चढ़ने के लिए पूरा तैयार था।


मैं अजय के पीछे आ गया और घुटनों के बल उसके पीछे खड़ा होकर अपने लण्ड का सुपाड़ा उसकी गाण्ड के खुले छेद पर टिका दिया। धीरे-धीरे लण्ड को अंदर ठेलने की कोशिश करने लगा पर मेरा मोटा सुपाड़ा उसके अंदर नहीं जा रहा था। थोड़ा और जोर लगाया तो मुश्किल से सुपाड़ा उसकी गाण्ड में अटक भर पाया। सुपाड़ा अटकते ही एक बार अजय नीचे कसमसाया पर शांत हो गया। अब मैंने लण्ड निकाल लिया और थोड़ी वैसेलीन लण्ड पर और लगा ली। इस बार वापस चढ़कर थोड़ा ज्यादा जोर लगाया तो सुपाड़ा पूरा अंदर समा गया। सुपाड़ा समाते ही झट से मैंने पूरा लण्ड वापस निकाल लिया। अजय की गाण्ड का छेद पूरा खुला हुआ था। हल्की गुलाबी वैसलीन गाण्ड में लगी हुई थी।


विजय- “मुन्ना तेरी गाण्ड तो बहुत टाइट है, मारने में पूरा मजा आएगा। तू चिंता मत कर। पूरी चिकनी करके
खूब आराम से मारूंगा...”


अजय- “भैया धीरे-धीरे करना। आपका बहुत मोटा है..."
 
अजय की गाण्ड पर थोड़ी सी और वैसलीन लगाकर मैं भाई पर फिर चढ़ गया। इस बार गाण्ड पर लण्ड रखकर थोड़ा दबाते ही सुपाड़ा भीतर समा गया। अब मैंने दो-तीन बार उसकी गाण्ड में लण्ड घुमाकर थोड़ी जगह बना ली और भीतर जोर देने लगा।


अजय भी गाण्ड ढीली छोड़ रहा था। नतीजा यह हुआ की धीरे-धीरे लण्ड अंदर सरकने लगा। आधा के करीब जब लण्ड अंदर समा गया तब मैं आधा लण्ड ही गाण्ड में थोड़ा-थोड़ा अंदर-बाहर करने लगा। फिर मैंने पूरा लण्ड वापस निकाल लिया। इस बार लण्ड और गाण्ड पर फिर अच्छी तरह से वैसेलीन चुपड़ी और भाई का पूरा किला फतह करने के लिये फिर उसपर सवार हो गया।


भाई पर चढ़ते ही विजय ने लण्ड गाण्ड में चांपना शुरू कर दिया। अजय की गाण्ड का छेद पूरा खुलकर चौड़ा हो चुका था। अजय गाण्ड मराने का आदि था। उसे पता था की गाण्ड को कैसे खुला छोड़ा जाता है, ताकी वो लण्ड को लील सके। मेरा लण्ड भाई की गाण्ड में साँप की तरह रेंगता हुआ अंदर जा रहा था। जब तीन चौथाई लण्ड आराम से अंदर समा गया तो मैं 2-3 इंच बाहर निकालता और वापस भीतर पेल देता। इससे गाण्ड में और जगह बनती गई, और जल्द ही मुझे महसूस हुआ की मेरे लण्ड की जड़ अजय के चूतड़ों से टकराने लगी है। इसका मतलब मेरा 11' का हलब्बी लौड़ा मेरे मासूम भाई की गाण्ड में जड़ तक समा गया है और पर्छ ने इस बीच चूं तक नहीं की।


विजय- “मुन्ना मान गये तुमको, पक्का गान्डू है तू। पूरा का पूरा अपने भीतर ले लिया और चू चपड़ तक नहीं की..” मैं मुन्ना का शौक देखकर जोश में भर गया और जोर-जोर से लण्ड उसकी गाण्ड में बाहर-भीतर करने लगा।


लण्ड और गाण्ड दोनों ही अत्यंत चिकनी वैसेलीन में चुपेड़ हुए थे इसलिए ‘पछ-पछ’ करता मेरा लण्ड लोकोमोटिव के पिस्टन की तरह अंदर-बाहर हो रहा था। अब मुझे छोटे भाई की मस्त गाण्ड मारने का पूरा मजा मिल रहा था। अब अजय भी मेरे धक्कों का जबाब गाण्ड पीछे ठेल देने लगा। मैं ताबड़तोड़ गाण्ड मारे जा रहा था और मुन्ना मस्त होकर मरा रहा था।


विजय- "क्यों मुन्ना, भैया से गाण्ड मराने में मजा आ रहा है ना? किसी ने इतने प्यार से आज से पहले तेरी
मारी थी क्या? भैया का इतना लंबा और मोटा लौड़ा देख कितने आराम से भीतर जा रहा है...”


अजय- “आपसे कराने में बहुत मजा आ रहा है, अब कभी भी आपके सिवाय किसी से नहीं कराऊँगा। हाँ भैया अब दर्द नहीं हो रहा है। आप खूब कस-कस के पूरा मस्त होकर मारिए। एक बात कह देता हूँ की आपको भी मेरा जैसा बोल-बोलकर मरवाने वाला ऐसा मस्त लौंडा दूसरा नहीं मिलेगा.”


अजय की इस बात से में दुगने जोश में भर धुवांधार तरीके से उसकी गाण्ड चोदने लगा। मैंने उसकी छाती पर अपनी बाँहें कस ली और जोर-जोर से अपना लण्ड उसकी गाण्ड में पेलने लगा।


विजय- “तेरी मारके तो बहुत मजा आ रहा है। अरे तेरी कसी गाण्ड तो कुंवारी छोकरी की चूत जैसी टाइट है। देख मेरा लौड़ा तेरी गाण्ड में कैसे फच-फच करके जा रहा है। अरे मुन्ना मेरे लण्ड को अपनी गाण्ड में कस ले रे। अब तेरे भैया का माल निकलने वाला है। आज जैसा मजा पहले कभी नहीं आया। अरे मैंने तो मूठ मार मारके यूँ ही ना जाने कितना माल बर्बाद कर दिया। आज से तो तू मेरी लुगाई बन गया है। अब जब भी खड़ा होगा तो तेरे पर ही चढ़ेगा रे। वो क्या मस्त और चिकना है मेरा भाई। जितने प्यार से तूने गाण्ड मराई है उतने प्यार से तो घर की औरत भी ना चुदवाए। साली देने के पहले 100 नखरे दिखाती है और दुनियां की फरमाशें रख देती है...” अब मैं झड़ने की कगार पर था।
 
मेरे धक्कों की स्पीड बढ़ गई। लण्ड से पिघला लावा बहने लगा। मैंने 4-5 कस के धक्के मारे और मैं शिथिल । पड़ता गया। फिर मैं मुन्ना पर से उतरकर बेड पर बैठ गया। लण्ड से कंडोम निकालकर साइड टेबल पर रख दी। मेरा लण्ड काफी मुरझा चुका था। मैं पास में ही घुटनों के बल बैठकर अजय की ओर देख रहा था। मेरे चेहरे पर पूर्ण तृप्ति के भाव थे। मैं कई बार मूठ मारता रहता हूँ पर जीवन में आज जैसा मजा मिला वैसा कभी भी नहीं मिला।


विजय- “क्यों मुन्ना खाली लोगों को ही मजा देते हो, या इसका भी मजा लेते हो?” मैंने अजय के लण्ड को पकड़ते हुए उससे पूछा। अजय का लण्ड बिल्कुल तना हुआ था और फूलकर एकदम खड़ा था।


अजय- “भैया मेरे से करने के बाद वे लोग मेरी मूठ मार देते थे...”


विजय- “अरे तुम तो अपनी गाण्ड ठुकवाते हो और खुद मूठ मरवा के राजी हो जाते हो। क्या कभी बदले में उन दोनों मादरचोदों की नहीं मारी जो गाँव में मेरे प्यारे मुन्ना की मारते थे। मूठ तो तुम खुद ही मार सकते हो...”

अजय- “नहीं भैया मुझे खुद मूढ़ी मार के मजा नहीं आता दूसरे लोग मेरी मूठ मारते हैं तब मजा आता है...”


मैं- “अरे आज तो तूने मेरी तबीयत खुश कर दी। चल आज मैं तुझे ऐसा मजा दूंगा की तू भी क्या याद रखेगा की भैया ने तेरी फोकट में नहीं मारी...” यह कहकर अजय को मैंने मेरे सामने बेड पर घुटनों के बल खड़ा कर लिया और प्यार से उसके लण्ड को पकड़कर हल्के-हल्के सहलाने लगा। लण्ड की चमड़ी ऊपर-नीचे कर रहा था

और गुलाबी फूले सुपाड़े पर अपनी अंगुली फेर रहा था। तभी मैं नीचे झुका और मुन्ना के मस्त सुपाड़ा पर । अपनी जीभ फिराने लगा। फिर मुँह गोल करके सुपाड़ा मुँह के बाहर-भीतर करने लगा। जब लण्ड मेरे थूक से ठीक तरह से गीला हो गया तब मैं उसके लण्ड को धीरे-धीरे मुँह में लेने लगा।


अजय- “भैया यह क्या कर रहे हैं? इसे अपने मुँह से निकाल दीजिए। मेरे इस गंदे को मुँह में मत लीजिए। मुझे बहुत शर्म आ रही है.."


विजय- “अरे मुन्ना जिससे प्यार होता है उसकी किसी चीज से घृणा नहीं हो सकती। मैं तेरे से बहुत प्यार करता हूँ, तुम्हारी किसी चीज से घृणा नहीं हो सकती। फिर यह तो तुम्हारा इतना प्यारा लण्ड है। जितना प्यार मुझे तुमसे है, तुम्हारी गाण्ड से है, उतना ही तुम्हारे लण्ड से है, तुम्हारे लण्ड के रस से है। उन दोनों चूतियों का । क्या, उन्हें तो अपनी मस्ती करनी थी, सो तुम्हारी मारी और अलग हो गये। मूठ तो तुम्हारी इसलिए मार देते थे की उन्हें आगे भी तेरी गाण्ड मारनी थी। उन्हें तुमसे प्यार थोड़े ही था। अब कुछ भी मत बोल और देख भैया तुझे कैसा मजा देते हैं...”
 
यह कहकर मैंने मुन्ना का लण्ड वापस अपने मुँह में ले लिया और आधे के करीब भीतर लेकर लण्ड चुभलाने लगा। मैंने अजय के दोनों फूले-फूले नितंब अपनी मुट्ठी में जकड़ लिए और अपने मुँह को आगे और पीछे करते हुए भाई का लण्ड बहुत ही मस्ती में चूसने लगा। मुझे मेरे मुन्ना का लण्ड चूसने में मजा भी आ रहा था और एक अवर्णनीय संतुष्टि भी मिल रही थी। अब मैं उसका लगभग पूरा लण्ड मुँह में लेकर चूस रहा था, मुँह में लण्ड आगे-पीछे करके अपना मुँह पेलवा रहा था।


अब अजय भी पूरी मस्ती में आ गया। उसे आज अनोखा स्वाद मिल रहा था जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। अब वो स्वयं अपने लण्ड को मेरे मुँह में पेलने लगा, आगे-पीछे करने लगा। तभी उसकी पेलने की गति बढ़ गई। मैं समझ गया की अजय अब झड़ने वाला है अतः मैं लण्ड को जोर लगाकर चूसने लगा। तभी अजय लण्ड को मेरे मुँह से निकालने की कोशिश करने लगा। मैं समझ गया की यह ऐसा क्यों कर रहा है, और मैंने उसके नितंब कस के पकड़कर अपनी ओर खींच लिए। अजय का लण्ड मैंने जड़ तक मुँह में ले लिया और मुँह में इस प्रकार कस लिया की उसके रस की एक-एक बूंद मैं निचोड़ हूँ।


अजय- “भैया मेरा निकलने वाला है। इसे मुँह से निकाल दीजिए। जल्दी कीजिए, देखिए कहीं आपके मुँह में गिर जाएगा...” अजय मेरे मुँह से लण्ड निकालने की कोशिश कर रहा था और मैं उसके चूतड़ों पर अपनी और दबाव बढ़ा रहा था। तभी अजय के लण्ड ने गरम गाढ़े वीर्य का फव्वारा मेरे मुँह में चोद दिया।


मैंने अपनी जीभ और मुँह के भीतरी भाग से उसके गाढ़े वीर्य से लण्ड को लपेट दिया और वीर्य से चिकने हुए लण्ड को तेजी से मुँह में आगे-पीछे करने लगा। अजय का रस रह-रह मेरे मुँह में छूट रहा था। मैं मुन्ना का लण्ड चूस जा रहा था और भाई के तरोताजा रस का पान कर रहा था। धीरे-धीरे लण्ड, अजय और मैं तीनों शिथिल पड़ते चले गये। अजय ने लण्ड मेरे मुँह से निकाल लिया। उसकी मेरे से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। वो सीधा बाथरूम में घुस गया और मैं बेड पर चित्त लेट गया और अपनी आँखें मूंद ली। थोड़ी देर में अजय भी बाथरूम से निकल आया। पर ना तो उसने कोई बात की ना ही मैंने। सुबह रात के तूफान का नामोनिशान नहीं था।
 
रोज की तरह आज रात भी खाने खाने के बाद मैं, अजय और माँ तीनों टीवी के सामने आ बैठ गये।


विजय- "माँ, आज गाँव से चाचाजी का फोन आया था, कह रहे थे की हमारे खेत गाँव का सरपंच खरीदना चाह रहा है। 20 लाख में उससे बात हुई है। मैंने चाचाजी से कह दिया है की यहाँ से अजय सारे कागजात और पावर आफ अटार्नी लेकर गाँव आ जाएगा और रिजिस्ट्री का काम कर देगा। तो मुन्ना कल वकील से कागजात तैयार करा लेते हैं और कागज तैयार होते ही तुम गाँव के लिए निकल जाओ। कम से कम आधे पैसे तो खड़े करो।


क्यों माँ मुन्ना ही ठीक रहेगा ना?”


राधा- “हाँ, फिर वहाँ चाचाजी हैं, कोई फिकर की बात नहीं है। अजय कभी शहर में तो रहा नहीं है। यहाँ दो महीने हो गये उसे गाँव की याद आती होगी..."


विजय- “तभी तो मुन्ना को भेज रहा हूँ। वहाँ इसके खास दोस्त हैं। माँ यह वहाँ बहुत मस्ती करता था। यह अपने दो दोस्तों को तो बहुत ही खाश बता रहा था। कहता था की इसके दोनों दोस्त खेतों में पहले तो अच्छी तरह से सक्करकंदा सेंकते थे फिर इसे खिला-खिला के मजा देते थे। क्यों मुन्ना कभी माँ को भी सक्करकंदा खिलाते थे या सक्करकंदों का सारा मजा अकेले ही ले लेते थे। अब यहाँ शहर में तो इसे गाँव जैसे सक्करकंदा कहाँ मिलेंगे...”


अजय- “भैया नहीं जाना मुझे और ना ही सक्करकंदा खाने। मुझे तो यहाँ के बड़े-बड़े केले अच्छे लगते हैं। मैं तो यहीं स्टोर में रोज नये दोस्तों से केले लेकर खाया करूंगा। सक्करकंदे का इतना ही शौक है तो गाँव आप चले जाओ...” अजय ने मेरी ओर देखकर मुश्कुराते हुए कहा।


विजय- “भैया के रहते तुझे दोस्तों से केले लेकर खाने की क्या जरूरत है? भैया क्या तेरे लिए केलों की कभी भी
कमी रखेगा। तुझे दिन में और रात में जितने केले खाने हैं, मैं खिलाऊँगा। अभी तो तुम गाँव जाओ और वहाँ खेतों में मजा लो। तूने तो माँ को कभी सक्करकंदा खिलाए नहीं, पर मैं माँ के लिए केलों की कमी नहीं रबँगा...” हम इसी तरह काफी देर बातों का मजा लेते रहे। फिर माँ अपने कमरे में चली गई तो हम दोनों भाई अपने कमरे में आ गये। मैं अपने कमरे में आदमकद शीशा लगी ड्रेसिंग टेबल के सामने सिंगल सीटर सोफे पर बैठ गया।
 
अजय- “भैया आप बड़े वो हो। माँ के सामने ऐसी बातें करने की क्या जरूरत थी? कल मैंने कहा तो था की मुझे उन सब कामों की लिए अब किसी भी दोस्त की जरूरत नहीं है। जब आप जैसा बड़ा भैया मौजूद है तो मुझे नहीं जाना किसी दोस्त के पास। अब से मैं तो अपने सैंया भैया का मूसल ही अपनी गाण्ड में ठुकवाऊँगा.."


विजय- “अरे अजय तू कौन से उन सब कामों की बात कर रहा है, मैं कुछ समझा नहीं...” मैंने अजय का हाथ पकड़कर उसे खींचकर अपनी गोद में बैठा लिया और बहुत प्यार से पूछा।


अजय- “वही जो कल आपने अपने छोटे भाई के साथ किया था। शुरू में तो कल आपने जान ही निकाल दी थी ओर अब पूछ रहे हैं की कौन सा काम?”


विजय- “अरे भाई कुछ बताओ भी तो की मैंने तेरे साथ ऐसा कल क्या कर दिया था? कहीं कुछ गलत सलत हो
गया तो बड़ा भाई समझकर माफ कर दे...”


अजय- “कल आपने अपना केला मेरे में दिया तो था। 11' का सिंगापुरी केला छोटे भाई के पीछे में देते समय दया नहीं आई और अब माफी माँग रहे हैं। अभी भी गोद में बैठाकर अपना केला खड़ा करके नीचे गाण्ड में धंसा रहे हैं...”


विजय- “मुन्ना बताओ ना कल मैंने अपनी कौन सी चीज तेरी किस में दी थी?"


अजय- “भैया आप मुझे अपने जैसा बेशर्म बनाना चाहते हैं। आपने अपना लण्ड मेरी गाण्ड में दिया था। आप मेरे ऊपर सांड़ की तरह चढ़ गये थे और मेरी गाण्ड हुमच-हुमच कर मारी थी। जाइए मैं आपसे और ऐसी बातें नहीं करूंगा...”


विजय- “अरे तू मेरा प्यारा भाई तो है ही पर अब से तू मेरा गाण्ड दोस्त भी बन गया। जब हम आपस में गाण्ड मारा मारी का खेल खेलने लग गये तो हम दोनों एक दूसरे के गाण्ड दोस्त हो गये। जब तुझे अपनी गाण्ड मराने में शर्म नहीं है तो लण्ड, गाण्ड, मारना, चूसना इन सबकी खुलकर बातें करने का मजा ही ओर है...”


अजय- ठीक है भैया।।

विजय- “चल मुन्ना उठ, अपनी पैंट खोल...”

अजय- “किसलिए भैया?”

विजय- “तेरे जैसे मस्ताने लौंडे से जब मेरा जैसा पक्का लौंडेबाज पैंट खोलने के लिए कहता है तो तू मतलब
समझ...”

अजय- “भैया मुझे आज नहीं मरानी..."

विजय- "देखा, समझ आ गई ना। पर मराएगा नहीं तो क्या अपनी माँ चुदाएगा?”
 
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