hotaks444
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दीप्ति तो उन दो उठी हुई टांगों के बीच में घुस कर उस बिचारी चूत पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी. दीप्ति का अनुभव भले ही कम था परन्तु तीव्र इच्छाशक्ति के कारण अपनी प्यारी देवरानी की चूत को जी भर के चाट सहला रही थी. अब किसी को प्यार करने के लिये कोई कायदा कानून तो होता नहीं भाई और फ़िर ये तो खेल ही अवैध संबंधों का चल रहा था.
दीप्ति के इस जोश भरे धावे को अपनी कोमल चूत पर सहना शोभा के लिये जरा मुश्किल हो रहा था. लेकिन दीप्ति जो जैसे जानवर हो गयी थी. बलपूर्वक शोभा को लिटाये रख कर क्या जांघ, क्या चूत, क्या पेड़ू सब जगह अपनी बेरहमी के निशान छोड़ रही थी.
"दीदी, जरा आराम से, प्लीज". शोभा ने याचना की.
पर दीप्ति के कान तो बन्द हो गये थे. मुहं से गुर्राहट का स्वर निकल रहा था और लपलपाती जीभ चूत के होंठों से रस पी रही थी. अपने दांतों का भी भरपूर इस्तेमाल कर रही थी लेटी पड़ी शोभा पर. पहले अन्दरुनी जांघ के चर्बीदार हिस्से को जी भर के खाया. फ़िर चूत के उभरे हुये होंठों को चबाया और तुरन्त ही घांव पर मरहम लगाने के उद्देश्य से अपनी लचीली जीभ को पूरा का पूरा उस गुलाबी सुरन्ग में घुसेड़ दिया. शोभा का दर्द और उत्तेजना के मारे बुरा हाल था. दीप्ति अगर ऐसे ही करती रही तो उसकी चूत अगले दो दिन तक किसी से चुदने के काबिल नहीं रहेगी. होंठों से थूक बहकर कान तक आ गया था. शोभा ने दोनों हाथों को ऊपर उठा, एक से टेबिल और दूसरे से सोफ़े का किनारा थाम लिया.
उधर दीप्ति भी तरक्की पर थी. शोभा ने तो दो उन्गलियाँ अन्दर डाली थी. दीप्ति ने एक साथ तीन उन्गलियां शोभा की नरम चूत में घुसेड़ दी. उन्गलियों के घर्षण के कारण एक बार के लिये शोभा की चूत में जलन मच गई और उसके मुहं से जोर से आह निकली. लेकिन दीप्ति ने इस सब की परवाह किये बगैर अपना हाथ आगे पीछे करना जारी रखा. शोभा का शरीर भी इस उन्गली चुदाई की ताल के साथ ऊपर नीचे होने लगा.
तभी दीप्ति को याद आया की कैसे छोटी ने उसकी क्लिट को चूसा था और फ़िर वो किस तरह से झड़ रही थी. उसे अपनी चूत पर वो बिन्दु भी अच्छे से याद था जो अकेला ही उसके नारी शरीर को थरथराने के लिये काफ़ी था. दीप्ति के होठों ने उसकी उन्गलियों का साथ पकड़ा और लगे शोभा कि चूत के मुहाँने को सहलाने. थोड़ी ही देर में उसे भी शोभा की चूत के ऊपर ठीक वैसा ही मटर के दाने जैसा हिस्सा मिल गया जो अब धीरे धीरे उभर कर काफ़ी बड़ा हो गया था. उन्गलियों से चूत चोदन जारी रख कर दीप्ति की जीभ उस छोटे से मांसपिण्ड पर सरकी. शोभा के मुहं से चीख फ़ूट पड़ी "दीदीईईईईईई, चुसो जोर से, मारो मेरी चूत.....", "माई गॉड, आप सच में, सच में...ओह्ह्ह मां".
"क्या सच में? हां? क्या? क्या हूं मैं? बोलो?" दीप्ति ने शोभा के ऊपर चढ़ते हुये अपना रस से सना मुखड़ा देवरानी के चेहरे के सामने किया. हरेक क्या-क्या के साथ अपनी उन्गलियां उसकी चूत में और गहरे तक मार रही थी.
"रंडी है आप दीदी, रंडीईईई...", "ओह दीदीईईई, और चूसो ना प्लीईईईज, मुझे आपकी पूरी जीभ चाहिये अपनी चूत में..." शोभा मस्ती में कराही.
"और मेरी उन्गलियां? ये नहीं चाहिये तुम्हें?" एक झटके में अपना हाथ शोभा की तड़पती चूत में से खींच लिया.
शोभा ने हाथ बढ़ा दीप्ति की कलाई को थाम लिया। "नहीं दीदी ऐसा मत करो. मुझे सब कुछ चाहिये. सब कुछ जो आप के पास है. मैं सब कुछ ले लूंगी अपने अन्दर. उससे भी ज्यादा. और ज्यादा...आह" कहते हुये शोभा ने वापिस अपनी जेठानी का हाथ अपनी उछलती चूत पर रख दिया. दीप्ति फ़िर से पुराने तरीके से शोभा की चूत मारने और चाटने लगी. परन्तु अब शोभा को और ज्यादा की चाह थी. वो उठ कर बैठ गय़ी. दीप्ति उसे बाहों में भरने के लिये बढ़ी तो शोभा ने उसे धक्का देकर नीचे लिटा दिया. और फ़िर दीप्ति के ऊपर आते हुये शोभा ने अपनी टपकती चूत दीप्ति के मुहं के ऊपर रख दी.
दीप्ति के इस जोश भरे धावे को अपनी कोमल चूत पर सहना शोभा के लिये जरा मुश्किल हो रहा था. लेकिन दीप्ति जो जैसे जानवर हो गयी थी. बलपूर्वक शोभा को लिटाये रख कर क्या जांघ, क्या चूत, क्या पेड़ू सब जगह अपनी बेरहमी के निशान छोड़ रही थी.
"दीदी, जरा आराम से, प्लीज". शोभा ने याचना की.
पर दीप्ति के कान तो बन्द हो गये थे. मुहं से गुर्राहट का स्वर निकल रहा था और लपलपाती जीभ चूत के होंठों से रस पी रही थी. अपने दांतों का भी भरपूर इस्तेमाल कर रही थी लेटी पड़ी शोभा पर. पहले अन्दरुनी जांघ के चर्बीदार हिस्से को जी भर के खाया. फ़िर चूत के उभरे हुये होंठों को चबाया और तुरन्त ही घांव पर मरहम लगाने के उद्देश्य से अपनी लचीली जीभ को पूरा का पूरा उस गुलाबी सुरन्ग में घुसेड़ दिया. शोभा का दर्द और उत्तेजना के मारे बुरा हाल था. दीप्ति अगर ऐसे ही करती रही तो उसकी चूत अगले दो दिन तक किसी से चुदने के काबिल नहीं रहेगी. होंठों से थूक बहकर कान तक आ गया था. शोभा ने दोनों हाथों को ऊपर उठा, एक से टेबिल और दूसरे से सोफ़े का किनारा थाम लिया.
उधर दीप्ति भी तरक्की पर थी. शोभा ने तो दो उन्गलियाँ अन्दर डाली थी. दीप्ति ने एक साथ तीन उन्गलियां शोभा की नरम चूत में घुसेड़ दी. उन्गलियों के घर्षण के कारण एक बार के लिये शोभा की चूत में जलन मच गई और उसके मुहं से जोर से आह निकली. लेकिन दीप्ति ने इस सब की परवाह किये बगैर अपना हाथ आगे पीछे करना जारी रखा. शोभा का शरीर भी इस उन्गली चुदाई की ताल के साथ ऊपर नीचे होने लगा.
तभी दीप्ति को याद आया की कैसे छोटी ने उसकी क्लिट को चूसा था और फ़िर वो किस तरह से झड़ रही थी. उसे अपनी चूत पर वो बिन्दु भी अच्छे से याद था जो अकेला ही उसके नारी शरीर को थरथराने के लिये काफ़ी था. दीप्ति के होठों ने उसकी उन्गलियों का साथ पकड़ा और लगे शोभा कि चूत के मुहाँने को सहलाने. थोड़ी ही देर में उसे भी शोभा की चूत के ऊपर ठीक वैसा ही मटर के दाने जैसा हिस्सा मिल गया जो अब धीरे धीरे उभर कर काफ़ी बड़ा हो गया था. उन्गलियों से चूत चोदन जारी रख कर दीप्ति की जीभ उस छोटे से मांसपिण्ड पर सरकी. शोभा के मुहं से चीख फ़ूट पड़ी "दीदीईईईईईई, चुसो जोर से, मारो मेरी चूत.....", "माई गॉड, आप सच में, सच में...ओह्ह्ह मां".
"क्या सच में? हां? क्या? क्या हूं मैं? बोलो?" दीप्ति ने शोभा के ऊपर चढ़ते हुये अपना रस से सना मुखड़ा देवरानी के चेहरे के सामने किया. हरेक क्या-क्या के साथ अपनी उन्गलियां उसकी चूत में और गहरे तक मार रही थी.
"रंडी है आप दीदी, रंडीईईई...", "ओह दीदीईईई, और चूसो ना प्लीईईईज, मुझे आपकी पूरी जीभ चाहिये अपनी चूत में..." शोभा मस्ती में कराही.
"और मेरी उन्गलियां? ये नहीं चाहिये तुम्हें?" एक झटके में अपना हाथ शोभा की तड़पती चूत में से खींच लिया.
शोभा ने हाथ बढ़ा दीप्ति की कलाई को थाम लिया। "नहीं दीदी ऐसा मत करो. मुझे सब कुछ चाहिये. सब कुछ जो आप के पास है. मैं सब कुछ ले लूंगी अपने अन्दर. उससे भी ज्यादा. और ज्यादा...आह" कहते हुये शोभा ने वापिस अपनी जेठानी का हाथ अपनी उछलती चूत पर रख दिया. दीप्ति फ़िर से पुराने तरीके से शोभा की चूत मारने और चाटने लगी. परन्तु अब शोभा को और ज्यादा की चाह थी. वो उठ कर बैठ गय़ी. दीप्ति उसे बाहों में भरने के लिये बढ़ी तो शोभा ने उसे धक्का देकर नीचे लिटा दिया. और फ़िर दीप्ति के ऊपर आते हुये शोभा ने अपनी टपकती चूत दीप्ति के मुहं के ऊपर रख दी.