hotaks444
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मनिका अभी पानी का बर्तन गैस पर रखकर खड़ी हुई ही थी कि उसकी नज़र पास की टोकरी में पड़े बैंगनों पर चली गई,
उनमे से एक बैंगन थोड़ा ज्यादा लंबा और मोटा तगड़ा था, उस बैंगन को हथेली में लेते ही तुरंत मनिका को अपने पापा का लंड पहली बार देखने वाला दृश्य याद आ गया , यह बैंगन भी लगभग उतना ही मोटा तगड़ा था जितना की उसके पापा का लंड था, उस बैंगन को हाथ मे लेकर ही मनिका उत्तेजित हो गई और अपने पापा के लंड को याद करके उसकी बुर फुलने लगी।
मनिका की हालत अब खराब हो रही थी ,बैगन को देख देख कर उस की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी, मनिका उस मोटे तगड़े बैंगन को यूं पकड़ी थी कि मानो वो बैगन ना होकर उसके पापा का लंड हो, उत्तेजना में मनिका बैंगन को ही मुठ्ठीयाने लगी, उसे बैगन का निचला भाग बिल्कुल जयसिंह के लंड के सुपाड़े के ही तरह प्रतीत हो रहा था, जिस पर मनिका अपना अंगूठा रगड़ रही थी, थोड़ी देर पहले वाला नजारा उसकी आंखों के सामने नाच रहा था जब उसके पापा का नंगा लंड उसकी जांघो से आ टकराया था, उस पल को याद कर करके अब मनिका की चुत से पानी की बूंदे लगातार रिसने लगी थी, उसके मन में उस बैंगन को लेकर अजीब से ख्याल आये जा रहे थे, बैंगन की लंबाई और मोटाई उसे अपने पापा का खड़ा लंड याद दिला रही थी, जिसे याद करके मनिका से अब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हुए जा रहा था, आखिरकार उसने अपनी गर्मी को शांत करने के लिए बैंगन को पूरा उठा लिया और थोड़ा सा आगे की तरफ झुक गई, जिससे कि उसकी भरावदार बड़ी-बड़ी गांड उभरकर सामने आ गई और मनिका एक हाथ से बैंगन को लेकर स्कर्ट के ऊपर से ही बुर वाली जगह पर हल्के हल्के रगड़ने लगी, जैसे ही बैंगन का मोटा वाला हिस्सा बुर वाली जगह के बीचो-बीच स्पर्श हुआ वैसे ही तुरंत मनिका मदहोश हो गई और उसके मुख से गरम सिसकारी फूट पड़ी। थोड़ी देर बाद उसने बैंगन को साइड में रख दिया और पानी गरम करने पर अपना ध्यान लगाने लगी
,
बाहर जयसिंह अभी हुई घटना के बारे में सोच सोच कर परेशान हो रहा था ,उसे समझ ही नही आ रहा था वो इस पर कैसे रियेक्ट करे,
"मनिका का इस तरह मुझसे बेबाकी से चिपट जाना, बिना ब्रा के ही टीशर्ट पहन लेना,मुझे दिल्ली वाली घटना के लिए माफ कर देना और तो और मेरे लंड के उससे टच होने पर भी गुस्सा न होना" जयसिंह इन्ही बातो को समझने की कोशिश कर रहा था, पर साथ ही साथ उसको ये आनंद भी आ रहा था कि आज उसने अपनी बेटी के मुलायम मम्मों को महसूस किया, उसकी गोरी चिट्टी भरावदर जांघो से अपने लंड को रगड़ा,ये सोच सोच कर ही जयसिंह का लंड फूलकर कुप्पा हुआ जा रहा था, उसे ऐसा लग रहा कि उसके लंड में खून दुगुनी गति से दौड़ रहा हो, जयसिंह ने जब काफी देर मशक्कत की तो उसे भी अब हल्का हल्का शक से होने लगा
कि
"शायद मनिका दिल्ली जाकर बदल गयी है...... हो सकता है वो सेक्स के बारे में सिख गयी हो.......हो सकता है कि उसकी दोस्तो ने उसे चुदाई के बारे में बता दिया हो और शायद उनकी बातों से गरम होकर ये खुद भी सेक्स की आग में जल रही हो.....वैसे भी इसकी उम्र की लड़कियां तो चुदाई में पारंगत हो जाती है..... लगता है इसके मन मे भी चुदाई की जिज्ञासा जाग गयी और शायद बाहर किसी अंजान के डर से ये मेरे साथ ही........नहीं नहीं ये मैं क्या सोच रहा हूँ......वो मेरी बेटी है......पर वो तो खुद ही मुझे ढील दिए जा रही है......पर ये मेरी गलतवहमी भी तो हो सकती है......शायद वो बस मुझसे सारे गिले शिकवे दूर कर दोबारा बाप बेटी के रिश्ते को सामान्य करना चाह रही हो....पर अगर उसे करना होता तो वो मुझे खुद को मनिका पुकारने के लिए क्यों कहती.....क्यों वो मेरे लंड के टच होने पे भी बिल्कुल शांत रही.....इन सब बातों का कुछ न कुछ मतलब तो जरूर होगा"
जयसिंह इसी उधेड़बुन में लगा था पर उसे कुछ नही सूझ रहा था,पर साथ ही साथ वो अभी मनिका के संग गुजारे गए पल को याद करके मस्त हुआ जा रहा था, उसके पेंट का तंबू बढ़ने लगा था, और जब भी उसे मनिका की भरावदार गांड के बारे में ख्याल आता तो उस की उत्तेजना दुगनी हो जाती, वो अपने बदन की गर्मी को कैसे शांत करें इसका कोई जुगाड उसे समझ नही आ रहा था, बार बार उसकी आंखों के सामने मनिका की कसी हुई चुंचिया और भरावदार गांड की तस्वीर नाच पड़ती, हारकर जयसिंह ने सोचा कि चलकर एक गिलास ठंडा पानी ही पी लिया जाए ताकि उसका मन कुछ हद तक शांत हो
जयसिंह पानी पीने के लिए किचन की तरफ आ रहा था और जैसे ही वो किचन के दरवाजे पर पहुंचा तो सामने अपनी बेटी को झुकी हुई अवस्था में देखकर उसका लंड एक बार फिर से टनटना कर खड़ा हो गया, झुकने की वजह से उसकी छोटी सी स्कर्ट में से उसकी गुलाबी कच्छी की हल्की सी झलक उस गैस की जलने वाली आग में धुँधली सी दिखाई पड़ रही थी, जिसे देखते ही जयसिंह की आंखों में मदहोशी छाने लगी,उसकी सांसे तेज चलने लगी, जयसिंह का लोडा तनकर तौलिये से बाहर निकलने को बेकाबू हो रहा था, जयसिंह तौलिये के ऊपर से ही अपने लंड को मसलते हुए उस जानलेवा नज़ारे का आनंद उठा रहा था,
अब जयसिंह से और बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था, वो दबे पांव धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा, मनिका अब दोबारा खड़ी हो चुकी थी, उसे बिल्कुल भी आभास नही था कि उसके पापा उसके पीछे आकर उसका चक्षुचोदन करने में लगे हुए है, इधर जयसिंह धीरे धीरे चलकर मनिका के बिल्कुल पास पहुंच गया, इतने पास की मनिका के कच्चे बदन की मादक खुशबू उसके नथूनों में घुसने लगी,
"मनिका, पानी गर्म हो गया क्या" जयसिंह ने अचानक मनिका के कान के बिल्कुल पास आकर कहा
मनिका इस अचानक हमले से डर गई और उचककर थोड़ा पीछे की ओर हो गयी, और इसी दौरान वो हो गया जिसके लिए वो दोनों ही महीनों से तड़प रहे थे, मनिका के इस तरह अचानक पीछे हटने से जयसिंह अपने आप को संभाल नही पाया और उसका लंड जो तोलिये से लगभग बाहर ही था, वो सीधा मनिका की हल्की उठी हुई स्कर्ट के अंदर होते हुए उसकी गुलाबी पैंटी से जा रगड़ा, इस रगड़ से दोनों के मुंह से एक मादक सिसकारी फुट पड़ी, लगभग 30 सेकंड्स तक वो दोनों उसी अवस्था मे रहे, अब जयसिंह ने थोड़ा पीछे हटना ही मुनासिब समझा ओर जैसे ही वो पीछे हटने को हुआ उसका लंड भरपूर तरीके से कच्छी के ऊपर से ही मनिका की छोटी सी चुत से रगड़ गया, इस घर्षण से दोनों के बदन में मस्ती की एक लहर सी उठ गई, मनिका की चुत इतनी गर्मी बर्दास्त नही कर पाई और उसकी चुत से पानी की एक हल्की सी लकीर बहकर उसकी गुलाबी कच्छी को गीली कर गयी,मनिका को अब भरपूर मजा आ रहा था , अपने पापा के लंड की चुभन उसे मदहोश बना रही थी, उसकी आंखों में खुमारी झलकने लगी थी, उसका गला सूखता जा रहा था,
वो उत्तेजना में अपनी बड़ी कटावदार गांड को गोल गोल घुमा कर अपने पापा के लंड को चुभवा रही थी, इधर जयसिंह को जल्द ही मनिका की चुत के गीलेपन का अहसास हो गया था, और अब जयसिंह का शक यकीन में बदल गया था
पर इससे पहले की जयसिंह कुछ कर पाता , मनीका ने खुद ही थोड़ी आगे खिसककर जयसिंह के लंड से अपनी छोटी सी चुत को बेमन से दूर कर लिया
"अम्म... पापाआआआ..... पानीइई तो अभी गरम नही हुआ है" मनिका ने कांपते होठों से जवाब दिया, वो कहना तो चाहतो थी कि पानी तो नही पर वो खुद जरूर गरम हो गयी पर उसकी जीभ ने उसका साथ नही दिया
"ठीक है मनिका, मैं तब तक बाहर बैठता हूँ, वैसे भी अंधेरे में कुछ दिखाई नही दे रहा है" जयसिंह बोला
"पर आप आये क्यों थे पापाआआआ" मनिका ने पूछा
"अरे, मैं तो भूल ही गया, मैं तो पानी पीने आया था" जयसिंह ने कहा
"तो मेराअअआ पानी........आई मीन पानी पी लीजिए ना पापाआआआ" मनिका ने मादक आवाज़ में कहा
"जरूर मनीका, वो तो मैं पी ही लूंगा" जयसिंह ने अंधेरे का फायदा उठाकर अपने होठों पर जुबान फेरी और फिर पानी की बोतल लेकर किचन से बाहर निकल पड़ा,
जयसिंह के जाने के बाद मनिका ने महसूस किया कि वो पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी ,उसने अपनी स्कर्ट के अंदर अपनी बुर वाली जगह टटोली तो हैरान रह गई थी क्योंकि उसके काम रस ने पेंटी को पूरी तरह गीली कर दिया था, अब उसने सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाये , आज तो वो अपनी मंज़िल को पाकर ही रहेगी
"अगर पापा की जगह कोई और होता तो इतना सब कुछ होने के बाद मुझे यही पटककर चोद देता , पर शायद पापा के मन की झिझक अभी पूरी तरीके से दूर नही हुई है, पर कोई बात नहीं, मैं आज उनकी सारी हिचकिचाहट हमेशा हमेशा के लिए दूर कर दूंगी" मनिका अपने मन ही मन सोच रही थी
तभी उसके दिमाग मे एक ख्याल आया और वो गैस को कम करके बाहर हॉल की तरफ चल पड़ी, जहां जयसिंह बैठा हुआ था,
"अरे पापा, वो मैं छत पर से कपड़े लाना तो भूल ही गयी, अब तो बारिश भी कम हो गयी है, मैं अभी जाकर कपड़े लाती हूं" मनिका ने थोड़ा चिंतित होने का नाटक करते हुए कहा
"पर मनिका, तुम भीग जाओगी, अभी भी हल्की हल्की बारिश हो रही है, सीढियां भी गीली हो रखी है, अगर कहीं पैर फिसल गया तो, तुम रुको मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ"जयसिंह ने जवाब दिया
जयसिंह का जवाब सुनकर मनिका के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभर आई, उसे अपने मकसद में कामयाबी मिलते दिख रही थी
पर अचानक बारिश का जोर दोबारा बढ़ता ही जा रहा था, मनिका जानती थी की छत पर जाकर कपड़े समेटने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि सारे के सारे कपड़े गीले हो चुके ही होंगे, पर उसका मकसद तो कुछ और ही था, इसलिए वो छत की तरफ जाने लगी, जयसिंह भी उसके पीछे पीछे सीढ़ियों पर चढ़ने लगा, इस तरह सीढ़ियों पर चढ़ते हुए अपनी बेटी को देखकर उसका मन डोलने लगा था, क्योंकि जयसिंह की प्यासी आँखे उसकी बेटी की गोल गोल बड़ी गांड पर ही टीकी हुई थी, वैसे भी मन जब चुदवासा हुआ होता है तब औरत का हर एक अंग मादक लगने लगता है लेकिन यहां तो मनिका सर से लेकर पांव तक मादकता का खजाना थी, सीढ़ियों पर चढ़ते समय जब वो एक कदम ऊपर की तरफ रखती, तब उसकी भरावदार गांड और भी ज्यादा उभरकर बाहर की तरफ निकल जाती, जिसे देखकर जयसिंह के लंड में एेंठन होना शुरू हो गई थी, बस यह नजारा दो-तीन सेकंड का ही था और मनिका आगे की तरफ बढ़ गई लेकिन यह दो-तीन सेकेंड के नजारे ने ही जयसिंह के बदन को कामुकता से भर दिया, वो भी अपनी बेटी के पीछे पीछे सीढ़ियों से धीरे धीरे ऊपर चढ़ा जा रहा था, बारिश तेज हो रही थी, मनिका जानती थी की छत पर जाने पर वो भी भीग जाएगी लेकिन ना जाने क्यों आज उसका मन भीगने को ही कर रहा था, वो छत पर पहुंच चुकी थी, और बारिश की बूंदे उसके बदन को भिगोते हुए ठंडक पहुंचाने लगे,बारिश की बूंदे जब उसके बदन पर पड़ती तो मनिका के पूरे बदन में सिरहन सी दौड़ने लगती, था और ऊपर से यह बारिश का पानी उसे और ज्यादा चुदवासा बना रहा था, मनिका की पीठ जयसिंह की तरफ थी, मनिका पूरी तरह से भीग गयी थी और उसके बाल खुले हुए थे, जो कि पानी में भीगते हुए बिखर कर एक दूसरे में उलझ गए थे, मनिका के कपड़े पूरी तरह से गीले हो कर बदन से ऐसे चिपके थे कि बदन का हर भाग हर कटाव और उसका उभार साफ साफ नजर आ रहा था, जयसिंह तो यह देख कर एकदम दीवाना हो गया ,उसकी टॉवल भी तंबू की वजह से उठने लगी थी, उसको अपनी बेटी के खूबसूरत बदन का आकर्षण इस कदर बढ़ गया था कि उसके बदन में मदहोशी सी छाने लगी थी ,
उसे अब यह डर भी नहीं था कि कहीं उसकी बेटी उसकी जांघों के बीच बने हुए तंबू को ना देख ले, और शायद जयसिंह भी अब यही चाहता था कि उसकी बेटी की नजर उसके खड़े लंड पर जाए, जयसिंह भी बारिश के पानी का मजा ले रहा था लेकिन बारिश का यह ठंडा पानी उसके बदन की तपन को बुझाने की बजाय और भी ज्यादा भड़का रहीे थी, मनिका अब कपड़े समेटने की बजाय भीगने का मजा ले रही थी ,पहली बार यूँ आधी रात को वो छत पर भीेगने के लिए आई थी, शायद बारिश के ठंडे पानी से अपने बदन की तपन को बुझाना चाहतीे थी लेकिन इस बारिश के पानी से उसके मन की प्यास और भी ज्यादा भड़क रही थी, उसे पता था कि उसके पापा उसके भीगे बदन को देखकर उत्तेजित हो रहे होंगे और शायद वो भी यही चाहती थी, उत्तेजना के मारे भीगती बारिश में उसके दोनों हाथ खुद-ब-खुद उसकी चूचियों पर चले गए, जयसिंह साफ साफ तो नही देख पा रहा था पर बीच बीच मे बिजलियाँ चमकने से उसकी नज़र अपनी बेटी की इस हरकत पर चली जाती, वो आंख फाड़े अपनी बेटी की इस हरकत को देखा जा रहा था, उत्तेजना के मारे जयसिंह के लंड में अब मीठा मीठा दर्द होने लगा था, लंड की ऐंठन और
दर्द और भी ज्यादा बढ़ गया जब जयसिंह ने देखा कि मनिका की दोनों हथेलियां चूचियों पर से हटकर बारिश के पानी के साथ सरकते सरकते उसकी भारी भरकम भरावदार गांड पर चली गई और गांड पर हथेली रखते ही वो उसे जोर जोर से दबाने लगी।
अपनी बेटी की पानी में भीगी हुई मदमस्त भरावदार गांड को दबाते हुए देखकर जयसिंह से रहा नहीं गया , वो मदहोश होने लगा ,उसकी आंखों में खुमारी सी छाने लगी, एक बार तो उसके जी में आया कि पीछे से जाकर अपनी बेटी के बदन से लिपट जाए और तने हुए लंड कोें उसकी बड़ी बड़ी गांड की फांकों के बीच धंसा दे, लेकिन उसने बड़ी मुश्किल से अपने आपको रोके रखा, अपनी बेटी की कामुक अदा को देखकर जयसिंह की बर्दाश्त करने की शक्ति क्षीण होती जा रही थी, लंड में इतनी ज्यादा ऐठन होने लगी थी कि किसी भी वक्त उसका लावा फूट सकता था, अभी भी उसकी बेटी के दोनों हाथ उसकी भरावदार नितंबों पर ही टिके हुए थे,
उनमे से एक बैंगन थोड़ा ज्यादा लंबा और मोटा तगड़ा था, उस बैंगन को हथेली में लेते ही तुरंत मनिका को अपने पापा का लंड पहली बार देखने वाला दृश्य याद आ गया , यह बैंगन भी लगभग उतना ही मोटा तगड़ा था जितना की उसके पापा का लंड था, उस बैंगन को हाथ मे लेकर ही मनिका उत्तेजित हो गई और अपने पापा के लंड को याद करके उसकी बुर फुलने लगी।
मनिका की हालत अब खराब हो रही थी ,बैगन को देख देख कर उस की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी, मनिका उस मोटे तगड़े बैंगन को यूं पकड़ी थी कि मानो वो बैगन ना होकर उसके पापा का लंड हो, उत्तेजना में मनिका बैंगन को ही मुठ्ठीयाने लगी, उसे बैगन का निचला भाग बिल्कुल जयसिंह के लंड के सुपाड़े के ही तरह प्रतीत हो रहा था, जिस पर मनिका अपना अंगूठा रगड़ रही थी, थोड़ी देर पहले वाला नजारा उसकी आंखों के सामने नाच रहा था जब उसके पापा का नंगा लंड उसकी जांघो से आ टकराया था, उस पल को याद कर करके अब मनिका की चुत से पानी की बूंदे लगातार रिसने लगी थी, उसके मन में उस बैंगन को लेकर अजीब से ख्याल आये जा रहे थे, बैंगन की लंबाई और मोटाई उसे अपने पापा का खड़ा लंड याद दिला रही थी, जिसे याद करके मनिका से अब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हुए जा रहा था, आखिरकार उसने अपनी गर्मी को शांत करने के लिए बैंगन को पूरा उठा लिया और थोड़ा सा आगे की तरफ झुक गई, जिससे कि उसकी भरावदार बड़ी-बड़ी गांड उभरकर सामने आ गई और मनिका एक हाथ से बैंगन को लेकर स्कर्ट के ऊपर से ही बुर वाली जगह पर हल्के हल्के रगड़ने लगी, जैसे ही बैंगन का मोटा वाला हिस्सा बुर वाली जगह के बीचो-बीच स्पर्श हुआ वैसे ही तुरंत मनिका मदहोश हो गई और उसके मुख से गरम सिसकारी फूट पड़ी। थोड़ी देर बाद उसने बैंगन को साइड में रख दिया और पानी गरम करने पर अपना ध्यान लगाने लगी
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बाहर जयसिंह अभी हुई घटना के बारे में सोच सोच कर परेशान हो रहा था ,उसे समझ ही नही आ रहा था वो इस पर कैसे रियेक्ट करे,
"मनिका का इस तरह मुझसे बेबाकी से चिपट जाना, बिना ब्रा के ही टीशर्ट पहन लेना,मुझे दिल्ली वाली घटना के लिए माफ कर देना और तो और मेरे लंड के उससे टच होने पर भी गुस्सा न होना" जयसिंह इन्ही बातो को समझने की कोशिश कर रहा था, पर साथ ही साथ उसको ये आनंद भी आ रहा था कि आज उसने अपनी बेटी के मुलायम मम्मों को महसूस किया, उसकी गोरी चिट्टी भरावदर जांघो से अपने लंड को रगड़ा,ये सोच सोच कर ही जयसिंह का लंड फूलकर कुप्पा हुआ जा रहा था, उसे ऐसा लग रहा कि उसके लंड में खून दुगुनी गति से दौड़ रहा हो, जयसिंह ने जब काफी देर मशक्कत की तो उसे भी अब हल्का हल्का शक से होने लगा
कि
"शायद मनिका दिल्ली जाकर बदल गयी है...... हो सकता है वो सेक्स के बारे में सिख गयी हो.......हो सकता है कि उसकी दोस्तो ने उसे चुदाई के बारे में बता दिया हो और शायद उनकी बातों से गरम होकर ये खुद भी सेक्स की आग में जल रही हो.....वैसे भी इसकी उम्र की लड़कियां तो चुदाई में पारंगत हो जाती है..... लगता है इसके मन मे भी चुदाई की जिज्ञासा जाग गयी और शायद बाहर किसी अंजान के डर से ये मेरे साथ ही........नहीं नहीं ये मैं क्या सोच रहा हूँ......वो मेरी बेटी है......पर वो तो खुद ही मुझे ढील दिए जा रही है......पर ये मेरी गलतवहमी भी तो हो सकती है......शायद वो बस मुझसे सारे गिले शिकवे दूर कर दोबारा बाप बेटी के रिश्ते को सामान्य करना चाह रही हो....पर अगर उसे करना होता तो वो मुझे खुद को मनिका पुकारने के लिए क्यों कहती.....क्यों वो मेरे लंड के टच होने पे भी बिल्कुल शांत रही.....इन सब बातों का कुछ न कुछ मतलब तो जरूर होगा"
जयसिंह इसी उधेड़बुन में लगा था पर उसे कुछ नही सूझ रहा था,पर साथ ही साथ वो अभी मनिका के संग गुजारे गए पल को याद करके मस्त हुआ जा रहा था, उसके पेंट का तंबू बढ़ने लगा था, और जब भी उसे मनिका की भरावदार गांड के बारे में ख्याल आता तो उस की उत्तेजना दुगनी हो जाती, वो अपने बदन की गर्मी को कैसे शांत करें इसका कोई जुगाड उसे समझ नही आ रहा था, बार बार उसकी आंखों के सामने मनिका की कसी हुई चुंचिया और भरावदार गांड की तस्वीर नाच पड़ती, हारकर जयसिंह ने सोचा कि चलकर एक गिलास ठंडा पानी ही पी लिया जाए ताकि उसका मन कुछ हद तक शांत हो
जयसिंह पानी पीने के लिए किचन की तरफ आ रहा था और जैसे ही वो किचन के दरवाजे पर पहुंचा तो सामने अपनी बेटी को झुकी हुई अवस्था में देखकर उसका लंड एक बार फिर से टनटना कर खड़ा हो गया, झुकने की वजह से उसकी छोटी सी स्कर्ट में से उसकी गुलाबी कच्छी की हल्की सी झलक उस गैस की जलने वाली आग में धुँधली सी दिखाई पड़ रही थी, जिसे देखते ही जयसिंह की आंखों में मदहोशी छाने लगी,उसकी सांसे तेज चलने लगी, जयसिंह का लोडा तनकर तौलिये से बाहर निकलने को बेकाबू हो रहा था, जयसिंह तौलिये के ऊपर से ही अपने लंड को मसलते हुए उस जानलेवा नज़ारे का आनंद उठा रहा था,
अब जयसिंह से और बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था, वो दबे पांव धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा, मनिका अब दोबारा खड़ी हो चुकी थी, उसे बिल्कुल भी आभास नही था कि उसके पापा उसके पीछे आकर उसका चक्षुचोदन करने में लगे हुए है, इधर जयसिंह धीरे धीरे चलकर मनिका के बिल्कुल पास पहुंच गया, इतने पास की मनिका के कच्चे बदन की मादक खुशबू उसके नथूनों में घुसने लगी,
"मनिका, पानी गर्म हो गया क्या" जयसिंह ने अचानक मनिका के कान के बिल्कुल पास आकर कहा
मनिका इस अचानक हमले से डर गई और उचककर थोड़ा पीछे की ओर हो गयी, और इसी दौरान वो हो गया जिसके लिए वो दोनों ही महीनों से तड़प रहे थे, मनिका के इस तरह अचानक पीछे हटने से जयसिंह अपने आप को संभाल नही पाया और उसका लंड जो तोलिये से लगभग बाहर ही था, वो सीधा मनिका की हल्की उठी हुई स्कर्ट के अंदर होते हुए उसकी गुलाबी पैंटी से जा रगड़ा, इस रगड़ से दोनों के मुंह से एक मादक सिसकारी फुट पड़ी, लगभग 30 सेकंड्स तक वो दोनों उसी अवस्था मे रहे, अब जयसिंह ने थोड़ा पीछे हटना ही मुनासिब समझा ओर जैसे ही वो पीछे हटने को हुआ उसका लंड भरपूर तरीके से कच्छी के ऊपर से ही मनिका की छोटी सी चुत से रगड़ गया, इस घर्षण से दोनों के बदन में मस्ती की एक लहर सी उठ गई, मनिका की चुत इतनी गर्मी बर्दास्त नही कर पाई और उसकी चुत से पानी की एक हल्की सी लकीर बहकर उसकी गुलाबी कच्छी को गीली कर गयी,मनिका को अब भरपूर मजा आ रहा था , अपने पापा के लंड की चुभन उसे मदहोश बना रही थी, उसकी आंखों में खुमारी झलकने लगी थी, उसका गला सूखता जा रहा था,
वो उत्तेजना में अपनी बड़ी कटावदार गांड को गोल गोल घुमा कर अपने पापा के लंड को चुभवा रही थी, इधर जयसिंह को जल्द ही मनिका की चुत के गीलेपन का अहसास हो गया था, और अब जयसिंह का शक यकीन में बदल गया था
पर इससे पहले की जयसिंह कुछ कर पाता , मनीका ने खुद ही थोड़ी आगे खिसककर जयसिंह के लंड से अपनी छोटी सी चुत को बेमन से दूर कर लिया
"अम्म... पापाआआआ..... पानीइई तो अभी गरम नही हुआ है" मनिका ने कांपते होठों से जवाब दिया, वो कहना तो चाहतो थी कि पानी तो नही पर वो खुद जरूर गरम हो गयी पर उसकी जीभ ने उसका साथ नही दिया
"ठीक है मनिका, मैं तब तक बाहर बैठता हूँ, वैसे भी अंधेरे में कुछ दिखाई नही दे रहा है" जयसिंह बोला
"पर आप आये क्यों थे पापाआआआ" मनिका ने पूछा
"अरे, मैं तो भूल ही गया, मैं तो पानी पीने आया था" जयसिंह ने कहा
"तो मेराअअआ पानी........आई मीन पानी पी लीजिए ना पापाआआआ" मनिका ने मादक आवाज़ में कहा
"जरूर मनीका, वो तो मैं पी ही लूंगा" जयसिंह ने अंधेरे का फायदा उठाकर अपने होठों पर जुबान फेरी और फिर पानी की बोतल लेकर किचन से बाहर निकल पड़ा,
जयसिंह के जाने के बाद मनिका ने महसूस किया कि वो पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी ,उसने अपनी स्कर्ट के अंदर अपनी बुर वाली जगह टटोली तो हैरान रह गई थी क्योंकि उसके काम रस ने पेंटी को पूरी तरह गीली कर दिया था, अब उसने सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाये , आज तो वो अपनी मंज़िल को पाकर ही रहेगी
"अगर पापा की जगह कोई और होता तो इतना सब कुछ होने के बाद मुझे यही पटककर चोद देता , पर शायद पापा के मन की झिझक अभी पूरी तरीके से दूर नही हुई है, पर कोई बात नहीं, मैं आज उनकी सारी हिचकिचाहट हमेशा हमेशा के लिए दूर कर दूंगी" मनिका अपने मन ही मन सोच रही थी
तभी उसके दिमाग मे एक ख्याल आया और वो गैस को कम करके बाहर हॉल की तरफ चल पड़ी, जहां जयसिंह बैठा हुआ था,
"अरे पापा, वो मैं छत पर से कपड़े लाना तो भूल ही गयी, अब तो बारिश भी कम हो गयी है, मैं अभी जाकर कपड़े लाती हूं" मनिका ने थोड़ा चिंतित होने का नाटक करते हुए कहा
"पर मनिका, तुम भीग जाओगी, अभी भी हल्की हल्की बारिश हो रही है, सीढियां भी गीली हो रखी है, अगर कहीं पैर फिसल गया तो, तुम रुको मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ"जयसिंह ने जवाब दिया
जयसिंह का जवाब सुनकर मनिका के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभर आई, उसे अपने मकसद में कामयाबी मिलते दिख रही थी
पर अचानक बारिश का जोर दोबारा बढ़ता ही जा रहा था, मनिका जानती थी की छत पर जाकर कपड़े समेटने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि सारे के सारे कपड़े गीले हो चुके ही होंगे, पर उसका मकसद तो कुछ और ही था, इसलिए वो छत की तरफ जाने लगी, जयसिंह भी उसके पीछे पीछे सीढ़ियों पर चढ़ने लगा, इस तरह सीढ़ियों पर चढ़ते हुए अपनी बेटी को देखकर उसका मन डोलने लगा था, क्योंकि जयसिंह की प्यासी आँखे उसकी बेटी की गोल गोल बड़ी गांड पर ही टीकी हुई थी, वैसे भी मन जब चुदवासा हुआ होता है तब औरत का हर एक अंग मादक लगने लगता है लेकिन यहां तो मनिका सर से लेकर पांव तक मादकता का खजाना थी, सीढ़ियों पर चढ़ते समय जब वो एक कदम ऊपर की तरफ रखती, तब उसकी भरावदार गांड और भी ज्यादा उभरकर बाहर की तरफ निकल जाती, जिसे देखकर जयसिंह के लंड में एेंठन होना शुरू हो गई थी, बस यह नजारा दो-तीन सेकंड का ही था और मनिका आगे की तरफ बढ़ गई लेकिन यह दो-तीन सेकेंड के नजारे ने ही जयसिंह के बदन को कामुकता से भर दिया, वो भी अपनी बेटी के पीछे पीछे सीढ़ियों से धीरे धीरे ऊपर चढ़ा जा रहा था, बारिश तेज हो रही थी, मनिका जानती थी की छत पर जाने पर वो भी भीग जाएगी लेकिन ना जाने क्यों आज उसका मन भीगने को ही कर रहा था, वो छत पर पहुंच चुकी थी, और बारिश की बूंदे उसके बदन को भिगोते हुए ठंडक पहुंचाने लगे,बारिश की बूंदे जब उसके बदन पर पड़ती तो मनिका के पूरे बदन में सिरहन सी दौड़ने लगती, था और ऊपर से यह बारिश का पानी उसे और ज्यादा चुदवासा बना रहा था, मनिका की पीठ जयसिंह की तरफ थी, मनिका पूरी तरह से भीग गयी थी और उसके बाल खुले हुए थे, जो कि पानी में भीगते हुए बिखर कर एक दूसरे में उलझ गए थे, मनिका के कपड़े पूरी तरह से गीले हो कर बदन से ऐसे चिपके थे कि बदन का हर भाग हर कटाव और उसका उभार साफ साफ नजर आ रहा था, जयसिंह तो यह देख कर एकदम दीवाना हो गया ,उसकी टॉवल भी तंबू की वजह से उठने लगी थी, उसको अपनी बेटी के खूबसूरत बदन का आकर्षण इस कदर बढ़ गया था कि उसके बदन में मदहोशी सी छाने लगी थी ,
उसे अब यह डर भी नहीं था कि कहीं उसकी बेटी उसकी जांघों के बीच बने हुए तंबू को ना देख ले, और शायद जयसिंह भी अब यही चाहता था कि उसकी बेटी की नजर उसके खड़े लंड पर जाए, जयसिंह भी बारिश के पानी का मजा ले रहा था लेकिन बारिश का यह ठंडा पानी उसके बदन की तपन को बुझाने की बजाय और भी ज्यादा भड़का रहीे थी, मनिका अब कपड़े समेटने की बजाय भीगने का मजा ले रही थी ,पहली बार यूँ आधी रात को वो छत पर भीेगने के लिए आई थी, शायद बारिश के ठंडे पानी से अपने बदन की तपन को बुझाना चाहतीे थी लेकिन इस बारिश के पानी से उसके मन की प्यास और भी ज्यादा भड़क रही थी, उसे पता था कि उसके पापा उसके भीगे बदन को देखकर उत्तेजित हो रहे होंगे और शायद वो भी यही चाहती थी, उत्तेजना के मारे भीगती बारिश में उसके दोनों हाथ खुद-ब-खुद उसकी चूचियों पर चले गए, जयसिंह साफ साफ तो नही देख पा रहा था पर बीच बीच मे बिजलियाँ चमकने से उसकी नज़र अपनी बेटी की इस हरकत पर चली जाती, वो आंख फाड़े अपनी बेटी की इस हरकत को देखा जा रहा था, उत्तेजना के मारे जयसिंह के लंड में अब मीठा मीठा दर्द होने लगा था, लंड की ऐंठन और
दर्द और भी ज्यादा बढ़ गया जब जयसिंह ने देखा कि मनिका की दोनों हथेलियां चूचियों पर से हटकर बारिश के पानी के साथ सरकते सरकते उसकी भारी भरकम भरावदार गांड पर चली गई और गांड पर हथेली रखते ही वो उसे जोर जोर से दबाने लगी।
अपनी बेटी की पानी में भीगी हुई मदमस्त भरावदार गांड को दबाते हुए देखकर जयसिंह से रहा नहीं गया , वो मदहोश होने लगा ,उसकी आंखों में खुमारी सी छाने लगी, एक बार तो उसके जी में आया कि पीछे से जाकर अपनी बेटी के बदन से लिपट जाए और तने हुए लंड कोें उसकी बड़ी बड़ी गांड की फांकों के बीच धंसा दे, लेकिन उसने बड़ी मुश्किल से अपने आपको रोके रखा, अपनी बेटी की कामुक अदा को देखकर जयसिंह की बर्दाश्त करने की शक्ति क्षीण होती जा रही थी, लंड में इतनी ज्यादा ऐठन होने लगी थी कि किसी भी वक्त उसका लावा फूट सकता था, अभी भी उसकी बेटी के दोनों हाथ उसकी भरावदार नितंबों पर ही टिके हुए थे,