hotaks444
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कुछ चीजे हमें बड़ी आसानी से मिल जाती है, तो कुछ चीजो के लिए हमें हजार कोशिशें करनी होती है, हजारो बार हारना पड़ता है..तब भी जरुरी नहीं वो चीज हमें मिल ही जाये। वासना की लड़ाई में आप तलवार की नोक पे खड़े होते है, ज़रा सी चूक और आप गए। वही अगर आपने सावधानी से खेला तो बाजी आपकी भी हो सकती है। बुआ के लिए मेरी वासना की लड़ाई कुछ इसी प्रकार की जंग थी।
कमरे से निकल कर मैं जब बाहर आया तो सच में काफी देर हो चुकी थी..सभी लोग नास्ता कर रहे थे। पर मेरी नजरे तो किसी और को ढूंढ रही थी। मुझे देखना था कि रात में हुई उस वासना की लड़ाई में जिसमे में मै बुआ के कच्छी के अंदर उसके नंगी चुत तक पोहोच गया था उसके बाद उसकी क्या प्रतिक्रिया थी। क्या अब मैं इस लड़ाई में जीत के काफी करीब आ गया था..या बस वो सिर्फ रात गयी बात गयी वाली बात थी। क्या रात के उस हाहाकारी मंजर के बाद मैं बुआ को चोद सकता था या फिर उसकी मर्यादा, संस्कार, पतिव्रता धर्म, रिश्ते के वसूल वाला रोग दुबारा से जग जायेगा। मै किसी चीज को ले के कतई निश्चित नहीं था..ना ही मैं मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहा था। अभी थोड़ी देर पहले चाची के साथ घटी कामुक घटना के बाद मुझे लग रहा था कि मैंने अपने डर को काफी पीछे छोर आया हूँ लेकिन बुआ को ले के आये मेरे इस विचार से मेरे अंदर डर की लहर फिर से हिलोरे मारने लगी थी। और तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और मेरी नजर अनायास ही उधर मुड़ गयी..
एक अधेर शादी-शुदा..गदराया कामुक बदन..गीले बाल..गोरा चेहरा..और उस कामुक चेहरे पे कुछ गीले बालों की लटे इधर-उधर होती हुई..रसीले होंठ..गुदाज चिकने गर्दन..और उसके नीचे साँसों के साथ इठलाती..चुस्त...काफी बड़े..गुदाज..मांसल..ब्लाउज में कैद चुचियां..हल्का सा मोटापन लिए हुए मांसल पेट..किसी अँधेरे कुएँ से भी गहरी नाभि..कामुकता से मेरी आँखे बंद हो गयी..लिंग में एक झुरझुरी सी दौड़ गयी..मैंने खुद को संभाला..बुआ के गीले हुस्न-पान के लिये आँखें खोली..लेकिन मुझे बस एक आखिरी झलक मिली उसके चौड़े..पीछे की ओर उभड़े..फैले हुए..चलने के साथ बलखाती हुई विशाल नितम्ब की।
"ये चुदासी औरत पलंग तोड़ देगी"
दोपहर का समय था। सुबह से लगातार की गयी कोशिशों के बाद भी मुझे बुआ के करीब जाने का मौका नहीं मिल पाया था। घर काफी खाली हो चूका था..अधिकांश रिश्तेदार जा चुके थे। बुआ गीले कपड़ो को छत पे सूखने के लिए डाल कर नीचे आयी थी और दादी के कमरे के दरवाजे पे खड़ी हो कर दादी से कुछ बाते कर रही थी। मै सुबह से लगातार मौके की तलाश में था..मै बेचैन था..कैसे भी मै उसके बदन को छूना चाहता था। मेरी बेचैनी इस कदर बढ़ गयी थी की मैं लगातार उसपे नजर रख रहा था..कितनी बार हमारी आँखे मिली थी..कितनी बार हमलोगों ने दो-चार बाते की थी पर उसकी प्रतिक्रिया सामान्य थी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था, जैसे पिछली रात मेरे हाथों ने उसके चुदासी चुत को रगड़ के झाड़ा ही नहीं था, जैसे मेरे कठोर लण्ड ने जीवन में पहली बार उसके चुत को छुआ ही नहीं था। उसकी सामान्य प्रतिक्रिया मुझे काफी परेशान कर रही थी। दूसरी तरफ चाची थी जो मेरे से नजर मिलाने से भी कतरा रही थी..सुबह से चाची ने एक दफा भी मेरे से बात नहीं करा था। और यही एक कारण था की चाची के मामले में मुझे डर बिलकुल भी नहीं लग रहा था।
बुआ दरवाजे पे खड़ी बाते कर रही थी और मेरी नजर उसके विशाल चौड़े गाण्ड पे टिकी हुई थी..उसके हिलने से उसके चुतड़ो में होती कंपन से मेरे लौड़े में जान आ गयी थी। मै अपने लौड़े को हाथ में पकड़ के पायजामे में एडजस्ट कर ही रहा था कि एका-एक बुआ ने पीछे पलट कर देखा..मेरी आँखें उसके गुदाज गाण्ड से होती हुई उसके आँखों से मिल गयी..बुआ ने कुछ पलों तक मेरी आँखों में देखा और फिर उसकी नजर मेरे हाथ में पकडे हुए लौड़े पे गयी और फिर वो पलट कर पहले जैसी खड़ी हो गयी। नहीं..पहले जैसी नहीं..इस बार उसकी गाण्ड पीछे को ज्यादा उभड़ गयी थी। बुआ इस बार आगे को थोड़ा ज्यादा झुक के खड़ी हुई थी जिसकी वजह से उसकी गाण्ड काफी मादक मुद्रा में थी..क्या ये मेरे लिए एक न्योता है..
"आओ मेरी गाण्ड पे अपना खड़ा लौड़ा रगड़ो"
मै कुछ करने की सोच ही रहा था कि बुआ के हाथ में पकड़ा हुआ उसका हेयर-क्लिप नीचे गिर गया और उसके बाद बुआ ने गर्दन घुमा के एक बार फिर मेरी ओर देखा और हेयर-क्लिप उठाने के लिए नीचे झुक गयी। उफ़्फ़.. क्या मंजर था..मेरी साँसे थम गयी थी..उसके चौड़े नितम्ब झुकने के कारण अथाह फ़ैल गए थे..ऐसा लग रहा था कि उसके विशाल नितम्ब कभी भी साड़ी फाड़ कर उसके गुदाज गाण्ड को नंगी कर देंगे और मुझे उसके भुड़े गाण्ड के छेद के साथ-साथ उसकी लप-लपाती चुदासी, काले झांटो वाली बुर के भी दर्शन हो जायेंगे। लेकिन मेरे हसीन सपने थम गए थे..बुआ खड़ी हो चुकी थी और साथ ही साथ मेरे लण्ड को भी भरपूर खड़ा कर चुकी थी। झुकने के वजह से उसकी साड़ी उसके चौड़े चुतड़ो के बीच फंस गए थे..मतलब आज बुआ ने कच्छी नहीं पहना था। साड़ी और पेटिकोट के नीचे उसके चौड़े नितम्ब और उसकी शादी-शुदा बुर बिलकुल नंगी थी। मेरे दिल की बेचैनी अब मेरे तने हुए लौड़े तक पोहोंच गयी थी। मैंने कदम बढ़ाया और ठीक बुआ के पीछे आ के खड़ा हो गया। बुआ की गाण्ड अभी भी पीछे की ओर कुछ ज्यादा उभड़ी हुई थी और साड़ी अभी तक उसके चुतड़ो के मांसल दरार में फंसी हुई थी। मेरे हाथ नीचे हो गए थे और बुआ के नितम्ब से कुछ ही दूरी पे झुल रहे थे लेकिन डर फिर से मेरे पे हावी हो रहा था। रात में मिली धमकी का असर अभी तक था। कुछ मिनट मुझे हिम्मत जुटाने में लग गए और फिर मैंने धीरे से अपनी उंगलियां बुआ के मदमस्त गाण्ड के दरार में फिराया और एक झटके में उसमे फँसी साड़ी बाहर की ओर खींच लिया। बुआ के शरीर में हलकी सी कंपन हुई जो मैं उसके चौड़े नितंब पे महसूस कर सकता था, लेकिन सामने दादी बैठी थी इसलिए वो कुछ प्रतिक्रिया दे नहीं पायी। अब मेरे हाथ बुआ के दोनों मदमस्त शादी-शुदा विशाल गुम्बद जैसे चुतड़ो पे फिसल रहे थे। मैंने लाढ से अपना ठोड़ी बुआ के कंधे पे रखा और उसके गाण्ड को मुट्ठी में भरते हुए कहा..
"तुम कब जाने वाली हो बुआ?"
अब मेरा अकड़ा हुआ लण्ड बुआ के कमर पे ठोकर मार रहा था।
"क्यों बड़ी जल्दी है मुझे यहाँ से भगाने की" बुआ ने हलकी भारी साँसों के साथ कहा।
अब तक मेरे हाथ की उँगलियाँ फिर से साड़ी समेत बुआ के गाण्ड के दरार में पेवस्त हो चुकी थी और साथ ही साथ मेरे लफ्ज़ भी निकल रहे थे..
कमरे से निकल कर मैं जब बाहर आया तो सच में काफी देर हो चुकी थी..सभी लोग नास्ता कर रहे थे। पर मेरी नजरे तो किसी और को ढूंढ रही थी। मुझे देखना था कि रात में हुई उस वासना की लड़ाई में जिसमे में मै बुआ के कच्छी के अंदर उसके नंगी चुत तक पोहोच गया था उसके बाद उसकी क्या प्रतिक्रिया थी। क्या अब मैं इस लड़ाई में जीत के काफी करीब आ गया था..या बस वो सिर्फ रात गयी बात गयी वाली बात थी। क्या रात के उस हाहाकारी मंजर के बाद मैं बुआ को चोद सकता था या फिर उसकी मर्यादा, संस्कार, पतिव्रता धर्म, रिश्ते के वसूल वाला रोग दुबारा से जग जायेगा। मै किसी चीज को ले के कतई निश्चित नहीं था..ना ही मैं मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहा था। अभी थोड़ी देर पहले चाची के साथ घटी कामुक घटना के बाद मुझे लग रहा था कि मैंने अपने डर को काफी पीछे छोर आया हूँ लेकिन बुआ को ले के आये मेरे इस विचार से मेरे अंदर डर की लहर फिर से हिलोरे मारने लगी थी। और तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और मेरी नजर अनायास ही उधर मुड़ गयी..
एक अधेर शादी-शुदा..गदराया कामुक बदन..गीले बाल..गोरा चेहरा..और उस कामुक चेहरे पे कुछ गीले बालों की लटे इधर-उधर होती हुई..रसीले होंठ..गुदाज चिकने गर्दन..और उसके नीचे साँसों के साथ इठलाती..चुस्त...काफी बड़े..गुदाज..मांसल..ब्लाउज में कैद चुचियां..हल्का सा मोटापन लिए हुए मांसल पेट..किसी अँधेरे कुएँ से भी गहरी नाभि..कामुकता से मेरी आँखे बंद हो गयी..लिंग में एक झुरझुरी सी दौड़ गयी..मैंने खुद को संभाला..बुआ के गीले हुस्न-पान के लिये आँखें खोली..लेकिन मुझे बस एक आखिरी झलक मिली उसके चौड़े..पीछे की ओर उभड़े..फैले हुए..चलने के साथ बलखाती हुई विशाल नितम्ब की।
"ये चुदासी औरत पलंग तोड़ देगी"
दोपहर का समय था। सुबह से लगातार की गयी कोशिशों के बाद भी मुझे बुआ के करीब जाने का मौका नहीं मिल पाया था। घर काफी खाली हो चूका था..अधिकांश रिश्तेदार जा चुके थे। बुआ गीले कपड़ो को छत पे सूखने के लिए डाल कर नीचे आयी थी और दादी के कमरे के दरवाजे पे खड़ी हो कर दादी से कुछ बाते कर रही थी। मै सुबह से लगातार मौके की तलाश में था..मै बेचैन था..कैसे भी मै उसके बदन को छूना चाहता था। मेरी बेचैनी इस कदर बढ़ गयी थी की मैं लगातार उसपे नजर रख रहा था..कितनी बार हमारी आँखे मिली थी..कितनी बार हमलोगों ने दो-चार बाते की थी पर उसकी प्रतिक्रिया सामान्य थी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था, जैसे पिछली रात मेरे हाथों ने उसके चुदासी चुत को रगड़ के झाड़ा ही नहीं था, जैसे मेरे कठोर लण्ड ने जीवन में पहली बार उसके चुत को छुआ ही नहीं था। उसकी सामान्य प्रतिक्रिया मुझे काफी परेशान कर रही थी। दूसरी तरफ चाची थी जो मेरे से नजर मिलाने से भी कतरा रही थी..सुबह से चाची ने एक दफा भी मेरे से बात नहीं करा था। और यही एक कारण था की चाची के मामले में मुझे डर बिलकुल भी नहीं लग रहा था।
बुआ दरवाजे पे खड़ी बाते कर रही थी और मेरी नजर उसके विशाल चौड़े गाण्ड पे टिकी हुई थी..उसके हिलने से उसके चुतड़ो में होती कंपन से मेरे लौड़े में जान आ गयी थी। मै अपने लौड़े को हाथ में पकड़ के पायजामे में एडजस्ट कर ही रहा था कि एका-एक बुआ ने पीछे पलट कर देखा..मेरी आँखें उसके गुदाज गाण्ड से होती हुई उसके आँखों से मिल गयी..बुआ ने कुछ पलों तक मेरी आँखों में देखा और फिर उसकी नजर मेरे हाथ में पकडे हुए लौड़े पे गयी और फिर वो पलट कर पहले जैसी खड़ी हो गयी। नहीं..पहले जैसी नहीं..इस बार उसकी गाण्ड पीछे को ज्यादा उभड़ गयी थी। बुआ इस बार आगे को थोड़ा ज्यादा झुक के खड़ी हुई थी जिसकी वजह से उसकी गाण्ड काफी मादक मुद्रा में थी..क्या ये मेरे लिए एक न्योता है..
"आओ मेरी गाण्ड पे अपना खड़ा लौड़ा रगड़ो"
मै कुछ करने की सोच ही रहा था कि बुआ के हाथ में पकड़ा हुआ उसका हेयर-क्लिप नीचे गिर गया और उसके बाद बुआ ने गर्दन घुमा के एक बार फिर मेरी ओर देखा और हेयर-क्लिप उठाने के लिए नीचे झुक गयी। उफ़्फ़.. क्या मंजर था..मेरी साँसे थम गयी थी..उसके चौड़े नितम्ब झुकने के कारण अथाह फ़ैल गए थे..ऐसा लग रहा था कि उसके विशाल नितम्ब कभी भी साड़ी फाड़ कर उसके गुदाज गाण्ड को नंगी कर देंगे और मुझे उसके भुड़े गाण्ड के छेद के साथ-साथ उसकी लप-लपाती चुदासी, काले झांटो वाली बुर के भी दर्शन हो जायेंगे। लेकिन मेरे हसीन सपने थम गए थे..बुआ खड़ी हो चुकी थी और साथ ही साथ मेरे लण्ड को भी भरपूर खड़ा कर चुकी थी। झुकने के वजह से उसकी साड़ी उसके चौड़े चुतड़ो के बीच फंस गए थे..मतलब आज बुआ ने कच्छी नहीं पहना था। साड़ी और पेटिकोट के नीचे उसके चौड़े नितम्ब और उसकी शादी-शुदा बुर बिलकुल नंगी थी। मेरे दिल की बेचैनी अब मेरे तने हुए लौड़े तक पोहोंच गयी थी। मैंने कदम बढ़ाया और ठीक बुआ के पीछे आ के खड़ा हो गया। बुआ की गाण्ड अभी भी पीछे की ओर कुछ ज्यादा उभड़ी हुई थी और साड़ी अभी तक उसके चुतड़ो के मांसल दरार में फंसी हुई थी। मेरे हाथ नीचे हो गए थे और बुआ के नितम्ब से कुछ ही दूरी पे झुल रहे थे लेकिन डर फिर से मेरे पे हावी हो रहा था। रात में मिली धमकी का असर अभी तक था। कुछ मिनट मुझे हिम्मत जुटाने में लग गए और फिर मैंने धीरे से अपनी उंगलियां बुआ के मदमस्त गाण्ड के दरार में फिराया और एक झटके में उसमे फँसी साड़ी बाहर की ओर खींच लिया। बुआ के शरीर में हलकी सी कंपन हुई जो मैं उसके चौड़े नितंब पे महसूस कर सकता था, लेकिन सामने दादी बैठी थी इसलिए वो कुछ प्रतिक्रिया दे नहीं पायी। अब मेरे हाथ बुआ के दोनों मदमस्त शादी-शुदा विशाल गुम्बद जैसे चुतड़ो पे फिसल रहे थे। मैंने लाढ से अपना ठोड़ी बुआ के कंधे पे रखा और उसके गाण्ड को मुट्ठी में भरते हुए कहा..
"तुम कब जाने वाली हो बुआ?"
अब मेरा अकड़ा हुआ लण्ड बुआ के कमर पे ठोकर मार रहा था।
"क्यों बड़ी जल्दी है मुझे यहाँ से भगाने की" बुआ ने हलकी भारी साँसों के साथ कहा।
अब तक मेरे हाथ की उँगलियाँ फिर से साड़ी समेत बुआ के गाण्ड के दरार में पेवस्त हो चुकी थी और साथ ही साथ मेरे लफ्ज़ भी निकल रहे थे..