hotaks444
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कुमुद दौड़ी-दौड़ी आई और भौजी के कान में राकेश की तरफ इशारा करती हुई बोली- “भौजी उनको घसीटो…”
भौजी और कुमुद दोनों ने दौड़कर राकेश को पकड़कर नांद में गिरा दिया। उसके बाद तो सब की बारी आ गई। आदमी लोग भी पीछे रहने वाले नहीं थे। सुनीता, कुमुद, मिसेज़ अग्रवाल, मिसेज़ मलहोत्रा सब पानी में तरबतर हो गईं। कपड़े उनके बदन से चिपक गये थे। उभारों पर साड़ी चिपकी थी, चूतड़ों की दरार में साड़ी फँस गई थी, रानों से पेटीकोट साड़ी चिपक गये थे जिससे टांगों की आकृति और गहराई दिख रही थी। सब कपड़ों में भी नंगी थीं।
सब ललचाई नजरों से देख रहे थे। फिर गुलाल मलने का दौर चला। सबने सब औरतों के अंग छुये। उनको चिपका कर उनके बदन की आग ली। जिनकी आपस में रजामंदी थी उन्होंने लण्ड चूत पर भी हाथ फेरे। कुमुद ने राकेश का लण्ड साहला दिया। सुनीता ने अपनी रानें एकदम सटाकर शिशिर के लण्ड पर अपनी चूत दबा दी। मिसेज़ अग्रवाल और मिसेज़ मलहोत्रा ने तो सबके लण्ड का लुफ्त लिया। पूरे चेहरे रंग गुलाल में सन गये। वह भूतनियों जैसी लग रही थीं।
अग्रवाल और मलहोत्रा ने भौजी को पकड़कर नांद में धकेला तो भौजी अग्रवाल को भी अपने संग खींच ले गईं। उनकी साड़ी उघड़ गई थी और उन्होंने अपनी दोनों टांगें अग्रवाल की कमर के ऊपर बाँधकर उनको पानी में जकड़ रखा था। उन्होंने न तो चड्ढी पहन रखी थी न ही अंगिया। अगर अग्रवाल भी चड्ढी न पहने होते तो उनका लण्ड भौजी की चूत में घुस गया होता। अग्रवाल जब पानी से निकले तो उनका लण्ड तना हुआ था जिससे पैंट में टेंट बन गया था।
मिसेज़ अग्रवाल ने उसको देखा, सबने देखा। वास्तव में सभी आदमियों की यही हालत हो रही थी। गीले पैंटों से उनके लण्ड सर उठा रहे थे जिनको वह बड़ी मुश्किल से पैंट में हाथ डालकर दबा पा रहे थे।
भौजी जब पानी से निकलीं तो उनकी चूचियां तन गई थीं, गीले ब्लाउज़ से दो नुकीली चोंचें निकल रही थीं। साड़ी ऊपर तक चिपक गई थी, दो पुष्ट जांघें दिख रही थीं। वह बड़ी मादक दिख रही थीं। दोंनों हाथों में गुलाल भर के वह अग्रवाल से चिपक गईं उनको तबीयत से गुलाल मला।
मुश्कुराकर आँख नचाकर बोलीं- “लाला फिर खेलियो होली…”
अकेला मिलने पर वह अग्रवाल से बोलीं- “लाला तुम को शरम नईं आवत अपना खूंटा हमरी ऊके मुँह पे लगा दिये। तुमारे सारे से हम का कहैं तुमने तो हमें खराब कर दियो…”
अग्रवाल- “कहो तो हम माफी मांग लेहैं पर का करें भौजी तुम हो ही ऐसी कि हमहूं वो काबू में नई रहे…”
भौजी इतरा के- “सबर रखो ननदी से अच्छी हम थोड़े ही हैं…”
अग्रवाल- “तुमारे से उनका का मुकाबला। भौजी जब मुँह पर रख ही लियो तो भीतर भी ले लो न…”
भौजी आँखें दिखाते हुये- “लाला तुम बहुत बदमाश हो मैं ननदी से कहूँगी…”
अग्रवाल- “भौजी आप जो चाहो करो, हम तो दिल की बात कह दई…”
भौजी मस्ती से आँख नचाकर बोलीं- “रात में जबई मौका मिले आ जइयो, तुमरी इच्छा पूरी कर देंहैं…”
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भौजी और कुमुद दोनों ने दौड़कर राकेश को पकड़कर नांद में गिरा दिया। उसके बाद तो सब की बारी आ गई। आदमी लोग भी पीछे रहने वाले नहीं थे। सुनीता, कुमुद, मिसेज़ अग्रवाल, मिसेज़ मलहोत्रा सब पानी में तरबतर हो गईं। कपड़े उनके बदन से चिपक गये थे। उभारों पर साड़ी चिपकी थी, चूतड़ों की दरार में साड़ी फँस गई थी, रानों से पेटीकोट साड़ी चिपक गये थे जिससे टांगों की आकृति और गहराई दिख रही थी। सब कपड़ों में भी नंगी थीं।
सब ललचाई नजरों से देख रहे थे। फिर गुलाल मलने का दौर चला। सबने सब औरतों के अंग छुये। उनको चिपका कर उनके बदन की आग ली। जिनकी आपस में रजामंदी थी उन्होंने लण्ड चूत पर भी हाथ फेरे। कुमुद ने राकेश का लण्ड साहला दिया। सुनीता ने अपनी रानें एकदम सटाकर शिशिर के लण्ड पर अपनी चूत दबा दी। मिसेज़ अग्रवाल और मिसेज़ मलहोत्रा ने तो सबके लण्ड का लुफ्त लिया। पूरे चेहरे रंग गुलाल में सन गये। वह भूतनियों जैसी लग रही थीं।
अग्रवाल और मलहोत्रा ने भौजी को पकड़कर नांद में धकेला तो भौजी अग्रवाल को भी अपने संग खींच ले गईं। उनकी साड़ी उघड़ गई थी और उन्होंने अपनी दोनों टांगें अग्रवाल की कमर के ऊपर बाँधकर उनको पानी में जकड़ रखा था। उन्होंने न तो चड्ढी पहन रखी थी न ही अंगिया। अगर अग्रवाल भी चड्ढी न पहने होते तो उनका लण्ड भौजी की चूत में घुस गया होता। अग्रवाल जब पानी से निकले तो उनका लण्ड तना हुआ था जिससे पैंट में टेंट बन गया था।
मिसेज़ अग्रवाल ने उसको देखा, सबने देखा। वास्तव में सभी आदमियों की यही हालत हो रही थी। गीले पैंटों से उनके लण्ड सर उठा रहे थे जिनको वह बड़ी मुश्किल से पैंट में हाथ डालकर दबा पा रहे थे।
भौजी जब पानी से निकलीं तो उनकी चूचियां तन गई थीं, गीले ब्लाउज़ से दो नुकीली चोंचें निकल रही थीं। साड़ी ऊपर तक चिपक गई थी, दो पुष्ट जांघें दिख रही थीं। वह बड़ी मादक दिख रही थीं। दोंनों हाथों में गुलाल भर के वह अग्रवाल से चिपक गईं उनको तबीयत से गुलाल मला।
मुश्कुराकर आँख नचाकर बोलीं- “लाला फिर खेलियो होली…”
अकेला मिलने पर वह अग्रवाल से बोलीं- “लाला तुम को शरम नईं आवत अपना खूंटा हमरी ऊके मुँह पे लगा दिये। तुमारे सारे से हम का कहैं तुमने तो हमें खराब कर दियो…”
अग्रवाल- “कहो तो हम माफी मांग लेहैं पर का करें भौजी तुम हो ही ऐसी कि हमहूं वो काबू में नई रहे…”
भौजी इतरा के- “सबर रखो ननदी से अच्छी हम थोड़े ही हैं…”
अग्रवाल- “तुमारे से उनका का मुकाबला। भौजी जब मुँह पर रख ही लियो तो भीतर भी ले लो न…”
भौजी आँखें दिखाते हुये- “लाला तुम बहुत बदमाश हो मैं ननदी से कहूँगी…”
अग्रवाल- “भौजी आप जो चाहो करो, हम तो दिल की बात कह दई…”
भौजी मस्ती से आँख नचाकर बोलीं- “रात में जबई मौका मिले आ जइयो, तुमरी इच्छा पूरी कर देंहैं…”
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