Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस - Page 2 - SexBaba
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Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस

कुमुद दौड़ी-दौड़ी आई और भौजी के कान में राकेश की तरफ इशारा करती हुई बोली- “भौजी उनको घसीटो…” 

भौजी और कुमुद दोनों ने दौड़कर राकेश को पकड़कर नांद में गिरा दिया। उसके बाद तो सब की बारी आ गई। आदमी लोग भी पीछे रहने वाले नहीं थे। सुनीता, कुमुद, मिसेज़ अग्रवाल, मिसेज़ मलहोत्रा सब पानी में तरबतर हो गईं। कपड़े उनके बदन से चिपक गये थे। उभारों पर साड़ी चिपकी थी, चूतड़ों की दरार में साड़ी फँस गई थी, रानों से पेटीकोट साड़ी चिपक गये थे जिससे टांगों की आकृति और गहराई दिख रही थी। सब कपड़ों में भी नंगी थीं। 

सब ललचाई नजरों से देख रहे थे। फिर गुलाल मलने का दौर चला। सबने सब औरतों के अंग छुये। उनको चिपका कर उनके बदन की आग ली। जिनकी आपस में रजामंदी थी उन्होंने लण्ड चूत पर भी हाथ फेरे। कुमुद ने राकेश का लण्ड साहला दिया। सुनीता ने अपनी रानें एकदम सटाकर शिशिर के लण्ड पर अपनी चूत दबा दी। मिसेज़ अग्रवाल और मिसेज़ मलहोत्रा ने तो सबके लण्ड का लुफ्त लिया। पूरे चेहरे रंग गुलाल में सन गये। वह भूतनियों जैसी लग रही थीं। 

अग्रवाल और मलहोत्रा ने भौजी को पकड़कर नांद में धकेला तो भौजी अग्रवाल को भी अपने संग खींच ले गईं। उनकी साड़ी उघड़ गई थी और उन्होंने अपनी दोनों टांगें अग्रवाल की कमर के ऊपर बाँधकर उनको पानी में जकड़ रखा था। उन्होंने न तो चड्ढी पहन रखी थी न ही अंगिया। अगर अग्रवाल भी चड्ढी न पहने होते तो उनका लण्ड भौजी की चूत में घुस गया होता। अग्रवाल जब पानी से निकले तो उनका लण्ड तना हुआ था जिससे पैंट में टेंट बन गया था। 

मिसेज़ अग्रवाल ने उसको देखा, सबने देखा। वास्तव में सभी आदमियों की यही हालत हो रही थी। गीले पैंटों से उनके लण्ड सर उठा रहे थे जिनको वह बड़ी मुश्किल से पैंट में हाथ डालकर दबा पा रहे थे। 

भौजी जब पानी से निकलीं तो उनकी चूचियां तन गई थीं, गीले ब्लाउज़ से दो नुकीली चोंचें निकल रही थीं। साड़ी ऊपर तक चिपक गई थी, दो पुष्ट जांघें दिख रही थीं। वह बड़ी मादक दिख रही थीं। दोंनों हाथों में गुलाल भर के वह अग्रवाल से चिपक गईं उनको तबीयत से गुलाल मला। 

मुश्कुराकर आँख नचाकर बोलीं- “लाला फिर खेलियो होली…” 

अकेला मिलने पर वह अग्रवाल से बोलीं- “लाला तुम को शरम नईं आवत अपना खूंटा हमरी ऊके मुँह पे लगा दिये। तुमारे सारे से हम का कहैं तुमने तो हमें खराब कर दियो…” 
अग्रवाल- “कहो तो हम माफी मांग लेहैं पर का करें भौजी तुम हो ही ऐसी कि हमहूं वो काबू में नई रहे…” 

भौजी इतरा के- “सबर रखो ननदी से अच्छी हम थोड़े ही हैं…” 

अग्रवाल- “तुमारे से उनका का मुकाबला। भौजी जब मुँह पर रख ही लियो तो भीतर भी ले लो न…” 

भौजी आँखें दिखाते हुये- “लाला तुम बहुत बदमाश हो मैं ननदी से कहूँगी…” 

अग्रवाल- “भौजी आप जो चाहो करो, हम तो दिल की बात कह दई…” 

भौजी मस्ती से आँख नचाकर बोलीं- “रात में जबई मौका मिले आ जइयो, तुमरी इच्छा पूरी कर देंहैं…”

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औरतों की होली

इस बीच औरतों का ग्रुप जमा हो गया था तो औरतें उधर चली गईं। कुछ औरतें बातचीत से, हाव-भाव से हरकतों से बेकाबू हो रही थीं, फूहड़ से फूहड़ बातें कर रही थीं। बदन खोल-खोलकर के दिखा रही थीं। इन सबमें आगे मिसेज़ वर्मा थी। वह एक बहुत बड़ा डिल्डो लिये थीं। हरकतों से ऊपर से अपने में लगा कर दिखाती थीं। किसी औरत से चिपक जाती थीं, उसको चूमने लगती थीं, ऊपर से डिल्डो लगाने लगती थीं। 

ढोलक पर थाप पड़ने लगी। कोई स्वांग भर रहा था, कोई नाच रहा था, कोई गा रहा था। मिसेज़ वर्मा की मंडली ने सामूहिक गाना शुरू किया-


“झड़ते हैं जिसके लिये चूत को याद करके,
ढूँढ़ लाया हूँ वही लण्ड मैं तेरे लिये,
बुर में रख लेना इसे हाथों से ये छूटे न कहीं,
पड़ा रहेगा यूँ ही झांटों के बाल तले,

झड़ते हैं जिसके लिये रोज ही उठ-उठ के। 
लण्ड मोटा है मेरा चूत पे फिसले न कहीं,
कसके ले लेना इसे चूत उठा-उठाकर के,
लगाये जायेगा यही धक्के धकाधक से,
झड़ते हैं जिसके लिये मूठ मल-मल के, 


मिसेज़ वर्मा ने शेर सुनाना चालू किया:

दिला तो दिया है तुझे पर एक शर्त लगाई है,
लेनी है वो चीज़ जो तूने टांगों में छिपाई है।


और उन्होंने टांगों के बीच में हाथ कर लिया। फिर…

बेदर्द जामाना क्या जाने क्या चीज़ जुदाई होती है,
मैं चूत पकड़कर बैठी हूँ घर-घर में चुदाई होती है।
 

चूत को उन्होंने मुट्ठी में जकड़ लिया। फिर…

मुड़कर जरा इधर भी देख जालिम, कि तमन्ना हम भी रखते हैं
लण्ड तेरे पास है तो क्या, चूत तो हम भी रखते हैं।
 

यह कहते हुये उन्होंने साड़ी ऊपर उठा दी, नीचे कुछ भी नहीं पहने थीं। 

शेर कहे शायरी कहे या कहे कोई खयाल,
बीवी उसकी चूत उठाये चोदे उसका यार।
 

यह कहकर टांगें फैलाकर उन्होंने ऐसी हरकत की जैसे चुदवा रही हों। 

अचानक भौजी ने जोर से कहा- “ऐसी गरम हो रई है तो खोल के सड़क पे खड़ी हो जा कोई लगा देगो…” 

मिसेज़ वर्मा को ऐसी उम्मीद नहीं थी, उन्होंने चौंक कर भौजी को देखा और बोलीं- “लगता है तुम सड़क पर ही लगवाती होगी, तेरा आदमी नामर्द होगा…” 

भौजी ने जावाब दिया- “मेरा आदमी तेरी जैसी चार को एक साथ करे और तेरा आदमी तेरी भी भूख न मिटा पाये…” 

मिसेज़ वर्मा भौजी के पास आ गईं बोली- “तू कितनों का एक साथ ले सकती है? ला देखूं क्या छिपाया है?” यह कहते हुये उन्होंने धक्का देकर भौजी को चित्त गिरा दिया और आदमी की तरह उन पर पसर गईं। 

भौजी ने चट से पलटी खाकर मिसेज़ वर्मा को अपने नीचे कर लिया। एक हाथ से उनकी दोनों कलाइयां जकड़ लीं। 

मिसेज़ वर्मा ने छुड़ाने की बड़ी कोशिश की पर भौजी की मजबूत जकड़ से न छूट सकीं। 

मिसेज़ वर्मा की साड़ी पलटते हुये भौजी ने कहा- “बछिया जैसी गरमा रही है, ले मैं लगाती हूँ बैल का तेरे में…” अपने दोनों घुटने फँसाकर भौजी ने मिसेज़ वर्मा की टांगें चौड़ा दी। चूत मुँह खोले सामने थी। अच्छा खासा बड़ा सा छेद था, भोसड़ी हो गई थी। लगता था खूब इश्तेमाल की गई थी। भोसड़ी गीली हो रही थी। गुलाबी नरम गहराइयों में पानी और गाढ़ी सी सफेदी चमक रही थी। मालूम होता था हाल में ही लण्ड का रस चखा था जो थोड़ा अंदर रह गया था। पानी बाहर रिस रहा था। सब लोग गौर लगाकर मज़े लेकर देख रहे थे। भौजी ने सुपर साइज़ का डिल्डो उठा लिया।
 
मिसेज़ वर्मा घिघिया उठीं- “इसे मत करो मैं नहीं ले पाऊँगी सही में मैं नहीं ले सकती इसे प्लीज़्ज़…” 

भौजी बोली- “लेगी कैसे नई? इतना डलवाने के लिये शोर जो मचाबे है…” उन्होंने डिल्डो को चूत के छेद में घुसेड़ा तो बड़ी मुश्किल से अंदर गया। उन्होंने घुमा करके और भीतर करना चाहा। 

तो मिसेज़ वर्मा तड़पने लगीं। वह सिर यहां वहां पटक रही थीं और बोले जा रही थीं- “मत करो प्लीज़्ज़…” 

भौजी ने जोर लगाके डिल्डो को आधा अंदर कर ही दिया। 

मिसेज़ वर्मा के मुँह से एक चीख निकली। अब भौजी डिल्डो को आगे पीछे कर रही थीं साथ ही चूत की घुंडी पर अंगूठा फेरती जा रही थीं। धीरे-धीरे मिसेज़ वर्मा को मजा आने लगा। वह आनंद में भर कर ‘सी सी’ करने लगीं थीं। बोले जा रही थीं “घुसेड़ दो उसको और अंदर लगाओ जोर कस के…” लेकिन डिल्डो उनके अंदर उससे ज्यादा और नहीं घुस सकता था।

वह भौजी को अपने ऊपर खींचना चाहती थीं आदमी जैसा कस के प्यार पाने के लिये। 

भौजी ने कहा- “लो अब कौन इनको संभालेगा?” 

और मिसेज़ वर्मा की एक सहेली चूत खोल के उनके ऊपर लेट गई। सेर को सवा सेर मिल गया था।


होली की महफिल

होली की शाम को सब लोग नहा-धोकर शिशिर के यहां इकट्ठे हुये। मलहोत्रा परिवार न आ सका, उनके यहां मेहमान आ गये थे। कुमुद ने सेब, पापड़ी, गुझिया, भांग की बरफी और भांग मिली ठंडाई का इंतेजाम कर रखा था। होली के माहौल का असर था ऊपर से भांग का शुरूर, सब बहक रहे थे। राकेश ने सुझाया कि सब लोग अपने-अपने पहले सेक्स का अनुभव सुनायें। 

सब एक साथ बोले- हाँ सब लोग अपनी अपनी बीती बतायें। सबसे पहले मेजबान शिशिर से कहा गया कि वह अपना अनुभव बाताये।


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होली की महफिल

होली की शाम को सब लोग नहा-धोकर शिशिर के यहां इकट्ठे हुये। मलहोत्रा परिवार न आ सका, उनके यहां मेहमान आ गये थे। कुमुद ने सेब, पापड़ी, गुझिया, भांग की बरफी और भांग मिली ठंडाई का इंतेजाम कर रखा था। होली के माहौल का असर था ऊपर से भांग का शुरूर, सब बहक रहे थे। राकेश ने सुझाया कि सब लोग अपने-अपने पहले सेक्स का अनुभव सुनायें। 

सब एक साथ बोले- हाँ सब लोग अपनी अपनी बीती बतायें। सबसे पहले मेजबान शिशिर से कहा गया कि वह अपना अनुभव बाताये। 


***** ***** शिशिर की कहानी

होली का दिन था। मैं इंटरमीडियेट मैं रहा हूँगा। मेरी भाभी मुहल्ले में होली खेलकर आईं। वह बड़ी खुश थीं, कुछ गुनगुना रही थीं। मैं यह बता दूं कि भाभी मेरे से छः-सात साल बड़ी थीं, मेरे से बड़ा लाड़ करतीं थीं, जिसमें सेक्स बिल्कुल नहीं था। जब वह ब्याह के आईं तो मैं दस साल का रहा हूँगा। वह बिल्कुल भीग गईं थीं, साड़ी बदन से चिपक गई थी। उनके उभार और कमर की गोलाइयां पूरी तरह उभर आईं थीं। मेरी भाभी में बहुत ग्रेस था। अच्छी उंचाई की आकर्षक मुखछबि थी और शादी के छः-सात सालों में बदन बड़ी समानता से सुडौल हो गया था। 

आते ही वह बाथरूम में चली गईं। बाथरूम में दो दरवाजे थे, एक उनके कमरे की तरफ खुलता था एक मेरे कमरे की ओर जो अक्सर बंद रहता था क्योंकी मैं नीचे का बाथरूम इश्तेमाल करता था। लेकिन इस समय मेरी तरफ का दरवाजा खुला हुआ था। 

उन्होंने भी ध्यान नहीं दिया क्योंकी होली के लिये मुझे अपने दोस्त के यहां जाना था और दूसरे दिन वापिस आना था। लेकिन मेरा प्रोग्राम ऐन मौके पर कैंसिल हो गया था। मैं यहीं होली खेलकर वापिस आ गया था और उसी बाथरूम में नहा धो लिया था। गलती से अपनी तरफ का दरवाजा खुला छूट गया था। मैं कमरे मैं आराम से लेटा हुआ था जहां से बाथरूम का नजारा साफ नजर आ रहा था। 

भाभी ने सबसे पहले अपनी साड़ी उतार के फेंक दी फिर पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी पैंटी खींच ली। वह रंग से तर हो रही की जैसे उसपर ही निशाना लगाकर रंग फेंका गया हो। जैसे-जैसे वह ब्लाउज़ के बटन खोल रही थीं मेरी सांसें गरम होती जा रही थीं। ब्लाउज़ उनके शरीर से फिसलकर नीचे गिर गया। वह मेरे सामने केवल ब्रेजियर और पेटीकोट में खड़ी थीं। ब्रेजियर उनके सीने से चिपक गई थी बादामी शहतूत से चूचुक और उनके घेरे साफ नजर आ रहे थे। पेटीकोट आगे से उनकी रानों से बुरी तरह चिपक गया था और चूतड़ों के बीच में दरार अ फँस गया था। सामने झांट के बाल नजर आ रहे थे। उत्तेजित होकर मेरा लण्ड एकदम खड़ा हो गया। 

उन्होंने पीछे हाथ करके जैसे ही हुक खोलकर ब्रेजियर अलग की कि स्प्रिंग की तरह दो सफेद गेंदें सामने आ गईं। बहुत ही मतवाले भरे हुये जोबन थे। भाभी ने अपना हाथ पेटीकोट के नाड़े की तरफ बढ़ाया तो मेरा लण्ड और ऊपर होकर हिलने लगा। उन्होंने एक झटके में नाड़ा खींचा और पेटीकोट नीचे गिर गया। माई गोड मेरे सामने भाभी पूरी नंगी खड़ी थीं। बड़े-बड़े उभार, बादामी फूले-फूले चूचुक, चिकनी सुडौल जांघें, भरे-भरे उभार लिये चूतड़ों की गोलाइयां और जांघों के ऊपर तराशे हुये बादामी बाल। मैंने अपना लण्ड पकड़कर लिया नहीं तो वह हिल-हिल के बुरा हाल कर देता। 

भाभी की जांघों और चूतड़ों पर रंग के धब्बे लगे हुये थे। चूत के बाल भी रंग में चिपक गये थे। उन्होंने साबुन से मलकर रंग को छुड़ाया। इसके बाद उन्होंने जो कुछ किया मैं उठ के खड़ा हो गया। 

भाभी ने साबुन का ढेर सारा झाग बनाया और अपनी टांगें चौड़ी करके उंगली से साबुन का झाग अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगीं। मेरे सामने उनकी चूत का मुँह खुला हुआ था। छेद के ऊपर फांकों के बीच की और अंदर की साबुन मिली लाल गहराई मेरे सामने थी। लगता था वह रात के लिये तैयारी कर रही थीं। मेरे से न रहा गया और मैं दरबाजे के सामने जा खड़ा हुआ, लण्ड एकदम तना हुआ। 

भाभी ने मुझे देखा और उनके मुँह से चीख निकली- “उई माँ…” फिर एक हाथ से उन्होंने अपनी चूत ढंक ली और दूसरे से अपनी चूचियां छिपाते हुये बोलीं- “ऐसे क्या देखते हो जाओ न…” फिर खुद ही भागकर अपने कमरे में चली गईं। 

मैं बहुत गरम हो चुका था। उत्तेजना मैं मेरा लण्ड फड़फड़ा रहा था। आँखों के सामने भाभी का नंगा बदन नाच रहा था। मैं बाथरूम में घुस गया। पैंट उतारकर लण्ड को कस-कस के झटके दिये जि कि गाढ़ा गाढ़ा सफेद पदार्थ काफी देर तक उगलता रहा। भाभी की पैंटी उठा के उससे पोंछा। पता नहीं भाभी ने यह सब देखा या नहीं। 

शाम को भाभी मिलीं तो शर्म से लाल हो रही थीं। आँखें नहीं मिला रही थीं। 

हिम्मत करके मैंने उनसे से कहा- “भाभी, आप अंदर से भी उतनी सुंदर है जितनी बाहर से…”

भाभी बोलीं- “तुम बहुत बेशरम हो गये हो, जल्दी तुम्हारी शादी करना पड़ेगी…” 

उसके बाद बहुत दिनों तक वह मुझसे शर्माती रही। मैं भी उनसे बहुत दिनों तक सहज न हो पाया। 

सुनीता सोच रही की कि शिशिर उसमें अपनी भाभी को देखता है और इसीलिये शुरू से उसको ताकता है और भाभी-भाभी कहता है। जैसे अपनी भाभी के सामने न बढ़ा उसी तरह उसके आगे भी नहीं बढ़ता है। सुनीता ने निश्चय कर लिया कि इसका यह बैरियार तोड़ना ही पड़ेगा।
 
कुमुद की कहानी

मेजबान के रूप में अगली बारी कुमुद की थी। कुमुद ने पहले सेक्स वाली बातें महफिल में नहीं सुनाई थीं। पहले तो झिझकी लेकिन फिर कहने लगी:

“होली मनाने मेरी दीदी मैके आई थीं। उनकी शादी को एक साल से कम हुआ था। होली वाले दिन जीजाजी भी आ गये। जीजाजी बड़े खुले और मजाकिया किश्म के हैं। मेरी भाभियों ने उनसे छेड़खानी की, गंदे मजाक किये। जिनका उन्होंने तुरंत बढ़कर जवाब दिया, उनके संग होली खेली जिसमें मर्यादा को ध्यान में रखते हुये उन्होंने एक दूसरे के अंग छुये। मेरे साथ भी जीजाजी ने होली खेली लेकिन उस समय वह मर्यादा भूल गये। रंग लगाने के बहाने उन्होंने मेरे दोंनों उरोजों को मसला और हाथ बढ़ाकर चूत के ऊपर भी रगड़ दिया…” यह कहकर कुमुद ने सबेरे की होली को निशाना बना करके दबी आँखों से राकेश की ओर देखा। 

कुमुद ने कहना चालू रखा- “मेरी दीदी ने देख करके भी अनदेखी कर दी। भाभियां हँसती रही। मेरे ऊपर कुछ शुरूर आ गया। रंग बाजी खतम हुई तो कहा गया कि सब लोग नहा धोकर तैयार हो जाओ क्योंकि जीजाजी के चाचा जी ने सबको बुलाया है जो उसी शहर में रहते थे। 

एक भाभी ने ताना कसा कि मेरी ननद यानी दीदी के संग तो होली मनाई ही नहीं है। 

तो वह मुश्कुराके बोले अभी मनाऊँगा। 

मैं नहाने के लिये गुसलखाने में घुस गई। कपड़े उतार के नीचे की ओर देखा जहां जीजाजी ने हाथ लगाया था तो सिहरन हो आई। मैंने वहां पानी की तेज धार छोड़ दी। साबुन उठाने के लिये ताक पर हाथ बढ़ाया और ऊपर देखा जहां से छत साफ नजर आती थी। वहां जीजाजी दीदी को पकड़े हुये थे। छत की सीढ़ियों का दरवाजा उन्होंने बंद कर रखा था।

दीदी रंग से सराबोर हो रही थीं। दीदी अपने को छुड़ा के भागीं। जीजाजी ने छत की मुड़ेर पर दीदी को पकड़ लिया और सामने से चिपका लिया। दीदी मुड़ेर पर झुकतीं गईं और जीजाजी उनकी चूचियों को चूमने लगे। दीदी ने उनके सिर के ऊपर हाथ रखकर और जोर से सिर चूचियों पर दबा लिया और दूसरे हाथ से जीजाजी का लण्ड टटोलने लगीं। जीजाजी को जैसे करेंट लग गया हो। वह दीदी से अलग हो गये और पेटीकोट समेत उनकी साड़ी उलट दी। 

गीले अंडरवेर को नीचे खींच कर उतार लिया फिर उंगली में घुमाते हुये नीचे सड़क पर फेंक दिया। अपने हाथ से पैंट के बटन खोलने लगे। इस बीच दीदी अपने ब्लाउज़ के बटन खोल चुकी थीं और उन्होंने ब्रेजियर के हुक खोलकर उसको अलग कर दिया। उनके भरे जोबन मुँह बाये खड़े थे। मुझे नहीं मालूम था कि उनकी गोलाइयां इतनी बड़ी थीं। जीजाजी ने अपनी पैंट गिरा दी। उनका मोटा लण्ड एकदम तनकर में खड़ा था। उस बीच मैंने साबुन घिस-घिस के बहुत सारा झाग बनाया, तभी जीजाजी का लण्ड सामने दिखा तो अपने आप मेरा हाथ चूत के छेद पर चला गया और मैंने सारा का सारा झाग चूत में घुसेड़ लिया। 

दीदी ने अपने आप टांगें चौड़ा दीं। वह चूत का मुँह फैलाये मुड़ेर से टिकी झुकी हुई थीं, पीठ मुड़ेर पर पसरी हुई थी। दीदी का सिर मुड़ेर से बाहर निकला हुआ था। साड़क पर जाने वाला कोई भी ऊपर देखे तो उनकी पोजशिान को देख सकता था लेकिन इस समय उनको इसकी फिक्र नहीं थी। जीजाजी ने खड़े-खड़े ही लण्ड को हाथ से पकड़कर उनकी चूत के मुँह पर रखा और धीरे-धीरे अंदर डालना चालू किया। दीदी की चूत उसको लीलती गई। दीदी ने कस करके दोनों बाहें जीजाजी की पीठ पर बाँध लीं। पहले तो जीजाजी धीरे-धीरे आगे-पीछे करते रहे फिर उन्होंने धकाधक-धकाधक चालू कर दी। दीदी भी चूत उठा-उठाकर के झेल रही थीं। 

इस बीच पता नहीं कब मैं गुसलखाने में रखी कपड़े डालने की रैक से टिक गई थी और उसकी खूंटी की घुंडी को अपनी चूत में घुसेड़ लिया था। जब जीजाजी धकाधक लगा रहे थे तो मैं भी खूंटी पर उसी लय से आगे पीछे हो रही थी। मैं मज़े में पूरी तरह डूबी थी कि दरवाजा खटखटाने से होश में आई। 

बड़ी भाभी कह रही थी- अब निकलोगी भी बाहर या नहाती ही रहोगी सबको तैयार होना है। 

मैंने जल्दी से अपनी सफाई की और बाहर निकल आई। जीजाजी अभी भी दीदी को लगाये जा रहे थे। 

उसी दिन शाम को जीजाजी के चाचा जी के यहां मेरी शिशिर से मुलाकात हुई। वास्तव में हम लोगों को मिलाने के लिये ही यह आयोजन किया गया था। कहानी खत्म होने पर बड़े कामुक तरीके से राकेश ने कुमुद को देखा।

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राकेश की कहानी

अब बारी राकेश की थी। उसने कहा:

मेरी शादी की तैयारियां हो रही थीं। कालेज के मेरे दोस्त जमा हो गये थे। शादी के कामों में नाइन का काफी रोल होता है, बहुत सारे नेगों में नाइन का अहम काम होता है। भाभी ने उबटन की रश्म की तो मेरे को हल्दी बेसन और चंदन से अच्छी तरह उबटन लगाने के लिये नाइन बैठी। कलावती उसका नाम था। कलावती दुबली पतली थी, सांवला रंग था, बड़ी बड़ी आँखों वाले उसके चेहरे में बेहद आकर्षण था। कामकाजी शरीर एकदम चुस्त और छरहरा था कहीं भी बेकार की चर्बी नहीं थी। उसके लंबे बदन की कशिश किसी को भी बाँध लेती थी। वह एकदम जवान थी। 

उबटन लगाते हुये जब मेरे दोस्तों ने देखा तो कइयों का दिल उस पर आ गया। शाम को जब हम सब लोग बैठे तो रमेश ने जो शादीशुदा था कहा- “वह नाइन की लेना चाहता है…” 
उसके बाद तो एक-एक करके सब शादीशुदा और कुँवारे दोस्तों ने अपनी मंशा जता दी कि वह कलावती को चोदना चाहते हैं। डर था कि नाइन कहीं उनकी बात सुनकर भड़क न उठे और जंजाल खड़ा कर दे। 

रमेश बोला- “मैं रह नहीं सकता मैं नाइन से बात करूंगा…” 

मेरे को बड़ा डर लगा कि कहीं बवंडर न उठ खड़ा हो। रमेश ने समझाया कि तुम मत घबड़ाओ मैं सीधे पूछ लूंगा, वो नहीं चाहेगी तो बात खतम। 

नाइन को एक नौकरानी के जरिये यह कहकर बुलाया गया कि दूल्हे राजा बुलाते हैं। मैं और सब दोस्त अंदर के दूसरे कमरे में बैठ गये। केवल रमेश उस कमरे में रहा। कलावती आई तो मुझे पूछने लगी। 

रमेश बड़ी नम्रता से बोला- “कलावती दूल्हे राजा तुमसे शर्मा रहे हैं। मुझसे कहा है कि तुमसे बात करूं। देखो कलावती मेरी बात तुम्हें अच्छी न लगे तो नाराज न होना। मैं दूल्हेराजा की तरफ से तुमसे माफी मांग लूंगा लेकिन बात आगे मत बढ़ाना…”

कलावती सहम गई- “आप क्या बात करते हैं, बाबूजी बोलिये क्या है?”

रमेश- “कलावती तुम बहुत अच्छी हो तुम्हारा घरवाला बहुत ही भाग्यवान है। बात यह है कि तुमने हम लोगों का दिल जीत लिया है। हम लोग चाहते हैं कि तुम हमें शुख दे दो कि हम हमेशा तुम्हें याद करते रहें…” 

कलावती कुछ समझी कुछ नहीं, बोली- “मैं क्या सेवा कर सकती हूँ?” 

रमेश को सीधा कहना पड़ा- “हम लोग तुमको भोगना चाहते हैं…”

मेरा दिल धकधक कर रहा था। 

कलावती के चेहरे पर लाजभरी खुशी दौड़ गई। मस्ताकर बोली- “सबसे पहले दूल्हेराजा को करना होगा। अपनी दुल्हन से पहले मेरे साथ सुहागरात मनांयें। उनसे सोने का गहना लूंगी, फिर तुम सब लोगों की तबीयत खुश कर दूंगी…” 

शर्त बड़ी टेढ़ी थी। शादी शुरू हो गई थी नेग हो रहे थे। मैं सुनीता के लिये बेकरार था। कलावती से संभोग नहीं कर सकता था। उसको बहुत समझाया ज्यादा पैसे का लालच दिया लेकिन वह टस से मस न हुई। यहां मेरे दोस्त मेरे ऊपर दबाव डाल रहे थे, वह कलावती को चोदने को उतावले थे। कहने लगे कि नाम के लिये डाल देना बस। उतने सारे दोस्तों का मन रखने के लिये मुझे उनकी बात मानना पड़ी। 

तय हुआ कि बारात उठने के पहले जब मुझे तैयार होने के लिये एक कमरे में अकेला छोड़ दिया जायेगा तब कलावती चुपचाप कमरे में आ जायेगी। नाइन होने से उसका आना जाना आसान था। शादी के बाद जब मैं सुनीता के साथ रात रंगीन कर कहा हूँगा, उस समय मेरे दोस्त भी कलावती के संग आनंद मनायेंगे। 

जब कलावती कमरे में आई तो मैं उसे देखता ही रह गया। लगता है उसने अपना भी उबटन कर डाला था। चेहरे पर गजब की लुनाई थी। बहुत कीमती न सही लेकिन उसने एक अच्छी साड़ी और राजस्थानी चोली पहन रखी थी जो उसके ऊपर खूब फब रही थी। आते ही उसने मेरे पैर छुये। 

मैंने यह कहते हुये कि ये क्या करती हो, अपने से चिपका लिया। उसकी कमनीय देह बेला की लता सी मेरे से चिपक गई। उसका बदन मेरे वदन के उतार चढ़ाव में फिट हो गया था। मेरी रानों में उसकी जांघें समा गईं थीं। लण्ड के ऊपर चूत फिट हो गई थी। सीने पर उसके सख्त स्तनों और चूचुकों की चुभन महसूस कर रहा था। वह और भी चिपकती हुई खड़ी रही। जल्दी से निपटने के लिये मैंने चूत छूने के लिये साड़ी में हाथ डालना चाहा। 

तो वह बोली- “राजाजी इत्ते बेसब्र न हो। लो इनसे खेलो…” हाथ पीछे करके उसने चोली की डोरी खींच दी। नीचे उसने कुछ भी नहीं पहन रखा था। 

लपक कर मैंने दोनों गोलाइयों को मुट्ठी में दबा लिया। उसकी छातियां छोटी पर सख्त थीं। छातियों को मसलते ही कलावती ‘आह आह’ कर उठी। मैंने सिर झुका कर उसकी बाईं चूची मुँह में ले करके धीरे से दांतों से दबा ली। 

कलावती जोर-जोर से ‘उइईईईई‘ कर उठी। जल्दी ही वह गरम हो गई थी। उससे अब रहा न गया तो लण्ड को पकड़ के हिलाते हुये बोली- “इसे निकालो न…” 

मैंने पाजामा और अंडरवेर का नाड़ा खोलकर नीचे गिरा दिया। 

उसने मेरा तना हुआ लण्ड देखा तो मुँह से निकल गया- “उई दैय्या… इत्ता बड़ा हथियार है… मेरी लिल्ली मैं कैसे घुसेगा?” 

मैंने कहा- “तो फिर अपनी लिल्ली दिखाओ न…” और उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया तो साड़ी समेत पेटीकोट नीचे गिर गया। 

जैसे ही वह नंगी हुई भाग के बिस्तर पर लेट गई। मैं भी पूरा नंगा होकर उसके ऊपर जा गिरा। कलावती ने मेरे से पूछा- “राजाजी, तुमने पहले किसी को चोदा है?” 

मैंने झूठ बोला- “नहीं तो…”

कलावती का चेहरा चमक उठा- “ओ मइया… मैं ही इसका पहला रस लूंगी। मैं ही आपकी सही औरत बनूंगी…” फिर बोली- “इसका प्रसाद चखना होगा…” 

मेरे को पलटा कर वह दोनों टांगों के बीच बैठ गई। दोनों हाथों से लण्ड को छूकर हाथ माथे पर लगा लिये जैसे यह भी कोई पूजा की चीज़ हो। दांईं मुट्ठी में लण्ड को बंद करके उसके मालिश के अभ्यस्थ हाथों ने मुट्ठी पूरे लण्ड पर इस तरह आगे पीछे की कि मैं हवा में तैरने लगा। फिर अगले हिस्से की खाल हटाकर सुपाड़ा उसने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगी। मेरा लण्ड फड़फड़ाने लगा। फिर वो पूरे लण्ड को चचोरने लगी। 

मैं बेकाबू हो गया। चूतड़ उठा-उठाकर लण्ड उसके मुँह में ही पेलने लगा। 

मेरे से उसने कहा- “जब झड़ो तो रुकना नहीं। ज्यादा से ज्यादा आने देना…” इसके बाद उसने जो लय चालू की कि मेरे चूतड़ हवा में ही उठे रह गये और बढ़-बढ़ के धकाधक धक्के मारने लगे। 

कलावती भी मुँह से पसंदगी जता रही थी- “उऊं ऊं ऊं ऊं…”

मेरे से रुका न गया। लण्ड ने एक झटका दिया और जैसे ही वीर्य उगलना चालू किया तो उसने फिर सुपाड़े को दांतों में थाम लिया और निकलते हुये रस को पीती गई। 
जब लण्ड ठंडा हो गया तो आखिरी बार चाटती हुई बोली- “अपने मर्द के अलावा बस मैंने तुम्हारा प्रसाद लिया है। उनका भी बस चखा भर था। आपके किसी भी दोस्त का नहीं चखूंगी…” 

मैंने खींच करके उसको अपने सीने से चिपका लिया। 

कलावती ने मेरे सीने की चूचुक को मुँह में ले लिया और हाथ नीचे ले जाकर मेरे लण्ड के ऊपर ढक लिया। सीने से चिपके-चिपके ही वह धीरे-धीरे मेरी चूचुक चूसने लगी और बड़े अच्छे तरीके से लण्ड सहलाने लगी। मेरा लण्ड बढ़ता ही गया और थोड़ी ही देर में पत्थर की तरह सख्त हो गया। 

कलावती- “लो अपनी सुहागरात मना लो…” कहकर पलट कर चित्त लेट गई। फिर बोली- “मैं बाताती हूँ, कल अपनी दुल्हन की सील कैसे तोड़ोगे?” 

टांगें चौड़ा करके उनके बीच में मुझे घुटनों के बल बैठा लिया। फिर अपनी टांगें मेरे दोनों कंधों पर रख लिये। उसके चूतड़ हवा में उठ गये थे। मेरे सीधे सामने चूत का मुँह खुल गया था। छेद अंदर तक दिख रहा था। अंदर तक चूत गीली थी और पानी रिसकर रानों पर फैल रहा था। 

कलावती ने अपनी मुट्ठी से लण्ड पकड़कर चूत के मुँह से सटा दिया और बोली- “इसे धीरे-धीरे घुसेड़ दो…” 

मैंने जोर लगाया। उसकी चूत टाइट थी पर मेरा पूरा लण्ड आसानी से उसमें चला गया। चूत की पकड़ में उसको बहुत आनंद मिल रहा था। 

कलावती कहने लगी- “राजाजी, हमारी इसमें तो आराम से चला गया लेकिन कल ऐसा नहीं कर पाओगे। दुल्हन की फुद्दी में घुसेगा नहीं और फिसलकर ऊपर खिसक जायेगा। और जब घुसने लगेगा तो दुल्हन अपनी फुद्दी पीछे हटाती जायेगी क्योंकी उनको दर्द होगा। इस आसान में तुम दुल्हन पर पूरा काबू रख सकते हो। अगर टांगें कस के जकड़ लोगे तो वह पीछे नहीं हट पायेगी। रुक-रुक करके डालना लेकिन वह मना करें, चीखें भी तो मत रुकना, पूरा अंदर कर ही देना…” 

मैं इस बीच धीरे-धीरे अंदर बाहर कर रहा था। 

कलावती कहने लगी- “मेरी इसको तो कूटो न कसके कि इसकी सारी गरमी निकल जाये…” 

मैंने लण्ड को बाहर तक निकाला और झटके से पूरा अंदर कर दिया। 

कलावती के मुँह से निकला- “हाय राजा क्या लौड़ा है… अंदर तक हिला दिया और लगाओ कस के…” 

उसके मुँह से खुला-खुला सुनकर मैं और उत्तेजित हो गया। पिस्टन की तरह धकम-पेल करने लगा। बड़ी दूर तक बाहर निकालता और खड़ाक से अंदर कर देता। 

उसने कस के बांहों से मेरी पीठ को जकड़ रखा था। हर चोट पर वो पीठ में नाखून गड़ा देती और जोर से चिल्लाती- “ओ रज्जा फाड़ दो इसको छोड़ना नहीं…” उसकी जबान गंदी से गंदी होती जा रही थी- “रज्जा इसकी भोसड़ी बना दो आज, बड़ा सताती है मुझे…”

मेरे को उसकी गंदी बातें बुरी नहीं लग रही थीं बल्की मैं आनंदित हो रहा था और अपनी चोटें बढ़ाता जा रहा था। 

अचानक उसने कसके चूत चिपका दी- “ओ ओ ओ रज्ज्जा मैं… मैं तो झ्झड़ गईईई…” और अपने दांत मेरे सीने में गड़ा दिये। मैंने भी लण्ड अंदर रहते हुये ही उसकी क्लिटोरिस के ऊपर लण्ड की जड़ को कस के रगड़ा और सारा का सारा वीर्य छोड़ दिया। 

काफी देर तक हम लोग वैसे ही पड़े रहे। फिर वह उठी। उकड़ू हो करके उसने अपना सिर मेरे पैरों पर रखा दिया। मैंने उठकर के एक सोने का हार उसके गाले में डाल दिया। 

वह बोली- “राजाजी मेरे को भूल मत जाना। मैं भी आपकी औरत की तरह हूँ। सुहागरात आपने मेरे साथ मनाई है…” और वह कपड़े पहनकर चली गई। 

कहां तो मैं जल्दी निपटना चाहता था और कहां एक घंटे से ऊपर उसके साथ हो गया। 

कुमुद अपना क्षोभ न छुपा सकी, कहा- “हाउ इनसेंसिटिव… बेचारी सुनीता…”

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***** ***** To be contd... ...
 
सुनीता की कहानी

अब सुनीता की बारी थी। सुनीता ने कहा:

मेरा पहला और आखिरी सेक्स बस राकेश से ही है। लेकिन मैं अपनी कहानी तब कहूँगी जब राकेश यहां से चले जायेंगे। 

राकेश ने जाने से मना कर दिया। सब लोगो के जोर देने पर आखिर राकेश को वहां से जाना ही पड़ा। 

सुनीता ने कहना शुरू किया:

राकेश से मेरी मुलाकात की शुरूआत देखने दिखाने के सिलसिले मैं औपचारिक रूप से हुई थी। हम लोग एक ही शहर में रहते थे। बाद में मेरी एक सहेली के जरिये जो उनकी कालोनी में रहती थी हम लोंगों का संपर्क बन गया था। हम लोग मिलते रहते थे लेकिन एक दूसरे को बांहों में लेने या चुंबन लेने से आगे नहीं बढ़े थे। मैंने ही नहीं बढ़ने दिया था। 
यह प्रसंग मेरी और राकेश की शादी का ही है। राकेश के रिश्तेदार और दोस्त इकट्ठे हो गये थे। मेरे यहां भी मेरी सहेलियां और मेहमान जमा थे। विवाह के पहले के नेग हो रहे थे। 
बारात आने के एक दिन पहले सहेली के जरिये मुझे राकेश का एक गुप्त नोट मिला- “आज रात होटल ताज के इस रूम में जरूर से हमसे मिलो…” 

हल्दी बगैरह चढ़ने के बाद मैं घर से कैसे निकल सकती थी लेकिन जरूर मिलो की खबर सुनकर जाना तो था ही। बड़ी मुश्किल से अकेले कमरे में आराम करने का बहाना करके सहेली की सहायता से छुप छुपा कर बाहर निकल पाई। होटल पहुँची तो सिहरन होने लगी। ऐसा लग रहा था कि इस राकेश से मैं पहली बार मिलने जा रही हूँ। मिलन की कामना से शरीर गरम हो गया। कमरे में पहुँची तो शर्म से दुहरी हो रही थी। गहने और शादी के जोड़े के अलावा मैं सब तरह से दुल्हन थी। 


कमरे में पहुँचते ही राकेश ने मुझे दबोच लिया और कसकर होंठों पर अपने होंठ रख दिये। मैंने भी उसे कस कर जकड़ लिया। वैसे ही ले जाकर उसने मुझे बेड पर गिरा दिया और खुद मेरे ऊपर गिर गया। ब्लाउज़ के ऊपर से ही दायें उरोज पर उसने मुँह रख दिया और बांयें को मुट्ठी में दबोच लिया। मुझे न करने की इच्छा ही नहीं हुई। वह धीरे-धीरे बात करता रहा और मेरे बटन और हुक खोलता रहा। फिर उसने जो बताया मैं शर्म से गड़ गई। 

दो दिन पहले मेरे यहां मेंहदी की रश्म हुई थी। मैं एक चौकी पर बैठी मेंहदी लगवा रही थी घुटनों पर हथेलियां फैलाये, तभी राकेश और उसके दोस्त वहां आ गये थे। उस दिन रिवाज के अनुसार मैंने लहंगा पहना था। आदत न होने के कारण लहंगे का ऊपर का हिस्सा मुड़े हुये घुटनों के ऊपर चढ़ गया था और नीचे का हिस्सा जमीन पर गिर गया था। टांगों के बीच का नजारा साफ दिख रहा था। मैंने गुलाबी सिल्क की पैंटी पहन रखी थी। शायाद मैं आने वाली रंगीनियों को याद करके बहुत गरमा रही थी क्येांकि पैंटी पर चूत के ठीक ऊपर एक बड़ा गीला धब्बा फैला हुआ था। 

उसके सब दोस्तों ने उसको देखा। मेंहदी लगाने वाला भी बार-बार वहां देख रहा था। राकेश ने आँखों से इशारा किया लेकिन मैंने ध्यान ही नहीं दिया था। राकेश ने उठे लहंगे को नीचे करने की कोशिश भी की थी लेकिन सबके सामने छू भी नहीं सकता था और सबने देख तो लिया ही था। 

यह सही है कि इन दिनों दिमाग में राकेश की याद करके मेरी चूत रिस रही थी और मैं लगवाने के लिये बेकरार थी। मैंने राकेश से कहा- “मुझे माफ कर दो मैं…”

पूरा बोलने के पहले ही राकेश कहने लगा- “डार्लिंग, क्या बात करती हो… तुमने जानबूझ कर थोड़ी किया। चलो उसी बहाने दोस्तों को भी मजा मिल गया, वैसे तो तुम दिखाती नहीं…” 

मैंने कहा- “धत्त बेशरम…”

राकेश फिर बोला- “एक बात है कि उस दिन मेरा लण्ड एकदम खड़ा हो गया था और अब रोज खड़ा हो जाता है। उसी का इलाज करने के लिये तुम्हें बुलाया है…” 

मैंने कहा- “कल शादी की रश्म तो पूरी हो जाने दो…”

राकेश ने प्रश्न किया- “मान लो मैं तुमको आज करना ही चाहूँ तो?”

मैंने सहज भाव से कहा- “मैं तुम्हारी हूँ, यह शरीर तुम्हारा है, जो चाहे करो। लेकिन रीति निभाने के लिये एक दिन का सब्र रखो न…” 

तब राकेश ने कलावती और दोस्तों की सब बात मुझे बता दी और कहा- “मैं तुमसे पहले किसी को नहीं भोगूंगा। सुहागरात तो तुम्हारे साथ ही मनेगी। बोलो क्या कहती हो?” 

मैंने बाहें और टांगें फैला दी और कहा- “लो मनाओ अपनी सुहागरात…” 

राकेश धीरे-धीरे चूमता हुआ आगे बढ़ने लगा। 

मैंने उसके कान में कहा- “मुझे जल्दी से जल्दी वापिस पहुँच जाना चाहिये। मैं तो तैयार ही हूँ। मेरी यह गीली ही बनी रहती है। लगा दो न इसमें…” 

राकेश ने एक झटके में पेटीकोट और साड़ी खींच दी। फिर अपने कपड़े उतार फेंके। मैं उसके मजबूत लण्ड से खेलना चाहती थी, वह भी मेरी चूचियों से और चूत से खिलबाड़ करना चाहता था लेकिन समय नहीं था।

मैंने उसका लण्ड पकड़ करके चूत से सटाया और जैसे ही उसने जोर लगाया मैं चिल्ला उठी। मेरी तबीयत हो रही थी, लेकिन लण्ड का घुसना इतना आसान नहीं था जितना मैं समझ रही थी। जब भी वह लगाता मैं चिल्ला उठती और वह हटा लेटा। 

मैं कहने लगी- “बस रहने दो लण्ड चूत का मिलना तो हो ही गया है…”

इस बार राकेश ने अपने थूक से लण्ड को गीला किया, अपने हाथ से पकड़कर घुमाकर सुपाड़ा थोड़ा छेद में फँसाया और मेरी कमर पकड़ करके पूरे जोर से पेल दिया। मैं चिल्लाती रही लेकिन वह रुका नहीं… जब तक पूरा लण्ड अंदर तक नहीं घुस गया। मैं रोने लग गई थी। 

उसने मेरे आंसू पोंछते हुये कहा- “डार्लिंग तुमको जो सजा देना हो दे लो…” 

लण्ड के आगे पीछे होने से अब भी चूत के भीतर छुरी जैसी चल रही थी। मैंने कहा- “अब और मत सताओ…” 

वह बोला- “अच्छा…” और घुसे हुये लण्ड पर ही जोर लगाकर अपनी इच्छा शक्ति से उसने पानी छोड़ दिया। पानी निकलने के पहले उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। 

जब मैं उठी तो बेड पर ख़ून देखकर घबड़ा उठी। राकेश ने समझाया कोई बात नहीं होटल वाले को वह चादर के पैसे दे देगा और उसने वह चादर लपेटकर अपने पास रख ली जो आज भी हमारे पास है। जब मैं होटल से निकली तो शादी के पहले ही लुट चुकी थी। 

कुमुद की भावना अब राकेश के बारे में बदल चुकी थी। वह उसे और भी सराहने लगी थी। 

सुनीता ने आगे कहा:

जहां तक कलावती का सवाल है, कलावती ने खुद सुनीता को सब बता दिया और कभी अपना हक नहीं जताया। सुनीता उसकी सहायता करती रहती थी। तीज त्योहार पर उसको साड़ी गहने आदि भी देती रहती थी। होली दिवाली वह राकेश के साथ मनाती थी। उस समय वह राकेश से चुदवाती भी थी। एक होली को जब राकेश उसको चोद रहा था तो राकेश का लण्ड फच्च-फच्च कर रहा था। 

राकेश ने पूछा- “क्या बात है?”

तो कलावती ने बताया- “यहां आने के पहले उसने अपने मर्द से होली मनाई की जो अंदर ही झड़ गया था…”

राकेश ने कहा- “अगली बार से वह होली दिवाली उसके संग पहले मनाये फिर अपने मर्द के साथ…” 

आखिरी बारी मिसेज़ संगीता अग्रवाल की थी।
 
मिसेज़ संगीता अग्रवाल की कहानी:

यह घटना शादी के काफी बाद की है। शादी के पहले मैं गाँव में पली बढ़ी। वहां ऐसा कुछ खास नहीं घटा सिवाये इसके कि मेरी बगल में एक लड़का रहता था। जब मैं छत पर जाती थी तो वह अपना लण्ड खोलकर के खड़ा हो जाता था। शादी होने के बाद मैं शहर में आ गई। संयुक्त परिवार था।

सास ससुर थे, दो जिठानियां थीं। मैं सबसे छोटी थी, सबसे सुंदर और सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी। परिवार मैं सब लोग मेरी सुनते, थे लाड़ भी करते थे, खासतौर पर बड़ी जेठानी। पति भी बात मान लेते थे क्योंकी चुदाई में मैं उनको खुश कर देती थी। मैं बहुत सेक्सी थी। सेक्स की कहानियां पढ़कर मन बहलाती थी। मैं काफी दबंग हो गई थी। जो चाहती थी कर लेती थी। 

गर्मियों के दिन थे। बड़ी जेठानी के मैके में उनके छोटे भाई की शादी थी। बड़ी जेठानी मैके जाने के लिये बहुत उत्साहित थीं। उनको लिवाने उनके भाई आ रहे थे। हमारे यहां का रिवाज था कि शादी व्याह के मौके पर खास रिश्तेदारों को लिवाने के लिये उनके मैके से कोई आता था। उनका वही भाई आया जिसका व्याह था। ऊँचा अच्छा खासा गबरू जवान, नाम था प्रदीप। मैके जाने के उत्साह मैं सीढ़ियां उतरते हुये जेठानी का पैर फिसला और उनके पैर की हड्डी टूट गई। अब वह तो जा नहीं सकतीं थीं, इसलिये तय हुआ कि उनकी जगह मैं जाऊँगी। 

हम लोगों के यहां यह भी रिवाज है बल्की इसको अच्छा भी माना जाता है। इससे यह भावना बनती है कि परिवार की सब बहुयें बहनें हैं। उनका अपना घर ही मायका नहीं है बल्की देवरानियों जिठानियों के घर भी उनके मायके हैं। 

ट्रेन का लंबा सफर था। ग्वालियर से दोपहर में ट्रेन चलती थी और दूसरे दिन दोपहर में जबलपुर पहुँचती थी। मेरे मन में शरारत सुझी कि क्यों न सफर का मजा लिया जाये। सबसे पहले मैंने संबोधन ठीक किया। कहा- “मैं तुमसे छोटी होऊँगी, मुझे संगीता कहकर पुकारो…” और खुद मैं उसे प्रदीप जी कहने लगी। 

टू-टियर में हम दोंनों का रिजर्वेशन था लेकिन दिन में तो हम लोग नीचे की बर्थ पर ही बैठे। जगह ज्यादा थी फिर भी मैं उससे सटकर बैठी। गरमी होने का बहाना करके मैंने अपना पल्लू गिरा दिया। सामने की बर्थ पर बूढ़े आदमी औरत बैठे थे जो आराम कर रहे थे। वैसे भी मुझे उनकी चिंता नहीं थी। मेरे बड़े-बड़े मम्मे ब्लाउज़ को फाड़ते हुये खड़े थे। मैंने नीचे तक कटा ब्लाउज़ पहन रखा था जिसमें से मेरी गोलाइयां झांक रही थीं। वह दबी आँखों से मेरे गले के अंदर झांक रहा था। मुझे छका कर मजा आ रहा था। सामान उठाने रखने के लिये झुकने के बहाने मैं अपनी चूचियां उससे चिपका देती थी। 

पहले तो वह सिमट जाता था। पर थोड़ी देर में प्रदीप की झिझक जाती रही कि मैं उसकी बहन की देवरानी हूँ और उसकी बहन की जगह जा रही हूँ। उससे मेरी रिश्तेदारी तो थी नहीं। उसे भी मजा आने लगा और वह अपनी बांहों से ही मेरी चूचियां रगड़ने लगा। सोने का बहाना कर उसने आँखें बंद कर रखी थीं। 

उसकी आँखें खोलने के लिये मैंने कहा- “ओह कितनी गरमी है…” और ब्लाउज़ के ऊपर का बटन खोल दिया। अब मेरे फूले-फूले चूचुक भी दिखाई देने लगे थे। 

वह टकटकी लगाकर मेरे हिलते हुये मम्मे देख रहा था। उसकी टांगों के बीच में भी हलचल दिखाई दे रही थी। और ज्यादा चिढ़ाने के लिये मैंने कहा- “प्रदीप जी मैं तो अंदर तक भीग गई हूँ…” और उसके सामने ही साड़ी में हाथ डालकर चड्ढी बाहर खींच ली। 

वह अचकचा गया। गोद में हाथ रखकर उसने अपने लण्ड के उठान को छुपा लिया। 

मैं भी मानने वाली नहीं थी। जब उसने हाथ हटा लिये तब हाथ में पकड़ी मैगजीन को उसकी गोद में गिराकर उठाने के बहाने उसके मोटे लण्ड को अच्छी तरह टटोल लिया। अब स्थिति साफ थी। उसके खड़े पोल से टेंट जैसा बन गया। मैंने इशारा करते हुये कहा- “ये क्या है? अपने को काबू में भी नहीं रख सकते, ऐसी बेशरमी करते हो…” 

झेंपने के बजाये उसने चट से जवाब दिया- “जब उसकी अपनी चीज़ सामने हो तो मिलने को बेकरार तो होगा ही…”

मैंने चोट की- “उसकी चीज़ 16 तारीख तक दूर है…” 16 तारीख को उसकी शादी थी। 

उसने कहा- “उससे भी अच्छी चीज़ सामने है…” 

मैंने कहा- “मुँह धोकर रखो…” 

लेकिन हम छूने छुलाने का उपक्रम करते रहे। रात के करीब आठ बजे गाड़ी बीना पहुँची। प्रदीप सामान उठाते हुये बोला- “यहां उतरना है…” 

मैंने सोचा यहां ट्रेन बदलानी है। हम लोग नीचे उतर आये। कुली से सामान दूसरे प्लेटफार्म पर ले जाने की बाजाये प्रदीप सामान स्टेशन से बाहर निकाल ले गया। एक आटो से हम लोग कहीं चल दिये। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। जब आटो एक होटल के सामने रूका तो मेरी समझ में कुछ आया। 

प्रदीप बोला- “आज की रात यहीं रुकेंगे…” उसने अचानक प्रोग्राम बदल दिया था। नहले पर दहला लगा दिया था। कहां तो मैं मजा चखा रही थी अब वह मजा चखा रहा था। 
मैंने पूछा- “यहां क्यों रुक गये हैं?” 

तो मुश्कुराके बोला- “तुमको ज्यादा गरमी लग रही है, उसको निकालना है…” 

मैं तो सोच भी नहीं सकती थी कि प्रदीप ऐसा कर सकता है। कमरा उसने मिस्टर और मिसेज़ प्रदीप के नाम से बुक कराया। खाना कमरे में ही मंगाया। अपने लिये शराब भी। 
मैंने शराब के लिये मना कर दिया। मैंने कहा- “मैं नहा लूं…”

तो बोला- “संगीता डार्लिंग एक राउंड नहाने के पहले हो जाये फिर नहाने के बाद में। आज तो रात भर जश्न मनायेंगे…” फिर मुझे पकड़कर मम्मे दबाते हुये बोला- “तुम्हारे इन रस कलसों ने ट्रेन में बड़ा तड़पाया है इनसे तृप्ति तो कर लूं…” 

उसने मेरा ब्लाउज़ और अंगिया उतार फेंकी। कस-कस के चूची मर्दन करने लगा। मैं धीमी धीमी आवाजें करने लगी। चूचियां मेरी कमजोरी हैं। उन पर मुँह रखते ही मैं काबू में नहीं रहती। कोई भी मेरी इस कमजोरी को जानकर मुझे चोद सकता है। प्रदीप ने मेरे चूचुक मुँह में लिये तो मैं उत्तेजना से ‘उंह उंह’ करने लगी और उसका लण्ड थाम लिया। उसने नाड़ा खींचकर मुझे पूरा नंगा कर दिया। और खुद ही अपने सब कपड़े उतार फेंके।

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मिसेज़ संगीता अग्रवाल की कहानी - cond...

उसका लण्ड देखकर मैं दंग रह गई। खीरे की तरह मोटा और लंबा तना हुआ खड़ा था। अग्रवाल साहब से दोगुना। कमर में हाथ डालकर वह मुझे बेड पर ले गया। चित्त लिटाकर मेरी टांगें खोल दीं। मैंने सोचा अब वह डालेगा। मैं लेने को उत्सुक हो गई। 

लेकिन वो मेरी चूत की तरफ देखता ही रह गया। उसके मुँह से निकला- “ओ माई गाोड क्या डबलरोटी की तरह फुद्दी है और ये चूतड़ों की गोलाइयां… मैंने तुम्हारी जैसी औरत देखी ही नहीं है…” 

मैंने पूछा- “प्रदीप जी, कितनी देखी है इस तरह?”

वह हँसने लगा- “होने वाली बीवी की देखी है, दो भाभियों की देखी है और ऐसी ही एक दो और देखी हैं…” 

संगीता जान गई कि वह खेला खाया हुआ है। 

मैंने इस बीच उसका लण्ड पकड़ लिया था जो मुट्ठी में भी नहीं आ रहा रहा था। चूत की तरफ उसे खींचा तो वह बोला- “इसकी पहली जगह तो यहां है…” और उसने लण्ड उसके होठों से सटा दिया। 

मैंने मुँह एक तरफ फेर लिया, बोली- “यहां नहीं लूंगी…” 

प्रदीप बोला- “चलो तुम नहीं लेकिन मैं तो अमृतपान करूंगा…” वह बेड के नीचे ही बैठ गया। दोनों टांगें कंधों पर धर लीं और अपना मुँह मेरी चूत के छेद पर रख दिया। मुझे उसकी भी आदत नहीं थी। मैंने उसका मुँह हटाना चाहा तो उसने और जोर से चिपका लिया। 

मैं छुड़ाने के लिये टांगें उसकी पीठ पर मारने लगी और कहा- “ये मत करो…”

वह मार सहता गया। उसने मेरी क्लिटोरिस को अपने होठों में दबोच लिया और चूसने लगा। 

मैं एकदम आनंद में भर गई। टांगों का मारना बंद हो गया। मैं बुदबुदाये जा रही थी- “ओ माँ इस तरह मत करो… ओ प्रदीप इस तरह…”

मेरे शब्दों का उल्टा ही मतलब था। मैं आनंद में भरी हुई थी और चाहती थी कि वह करता ही रहे। उसने अपनी जीभ छेद में डाल दी तो मैंने चूत हवा में उठा दी। प्रदीप के सिर पर हाथ रख के कसके दबा लिया और अपनी चूत उसके मुँह से रगड़ने लगी। मेरे सारे शरीर में करेंट दौड़ रहा था। मैं बोले जा रही थी- “प्रदीप चाटो इसे और कस के चाटो… पूरी जीभ अंदर कर दो… करते रहो न…”

प्रदीप ने जीभ निकाल के एक उंगली अंदर पूरी डाल दी और अंदर बाहर करने लगा। 

मैं एकदम से झड़ गई, चिल्ला उठी- “ओओह्ह… माँआं… क्या कर दियाआ?” बड़ी देर तक झड़ती रही। यह मेरा पहला अनुभव था। मैं खलास हो चुकी थी। प्रदीप का अभी भी तना हुआ था। 

प्रदीप मेरी बगल में आकर लेट गया। उसने मेरी चूची पर हाथ रखा तो मैंने हटा दिया। अब मेरी तबीयत नहीं थी। मैं एक रात में एक बार ही चुदाई कराती थी। प्रदीप ने धीरे-धीरे बाताना चालू किया कि किस तरह उसने अपनी बड़ी भाभी की ली थी। जब कहानी चरम पर पहुँची तो मैंने महसूस किया कि मेरी चूत में सुरसुरी होने लगी है और मैं प्रदीप के लण्ड से खेल रही हूँ। 

प्रदीप चाहता था कि मैं उसके लण्ड से खेलती रहूँ। लेकिन मैं उसके उस बड़े हथियार को अपनी चूत में लगवाना चाहती थी जो बड़ा गरम हो रहा था। आखिर वह मान गया। मैंने घुटने मोड़कर टांगें इतनी फैला लीं जितनी फैल सकती थीं। हाथ से पकड़कर सुपाड़ा चूत के अंदर किया तो बड़ी मुश्किल से घुसा। उसने जोर लगाया तो थोड़ा और अंदर घुसा। मैं मना कर रही की कि प्रदीप ने और धकेल दिया। लेकिन लण्ड पूरा न जाकर बीच में फँस गया। यह चूत कितनी बार चुद चुकी थी लेकिन उस लण्ड को नहीं ले पा रही थी। उसका लण्ड खूब गरम हो रहा था। मुझे तकलीफ हो रही थी लेकिन मैं झेलने को तैयार थी। 

मैंने कहा- “क्या देखते हो राजा कर दो पूरा अंदर एक बार में…” 

और कहने की जरूरत नहीं थी। प्रदीप ने मेरे घुटने थामे और एक झटके में जड़ तक घुसेड़ दिया। मैं चाहती थी कि वह थोड़ा ठहरे लेकिन उसने मौका ही नहीं दिया। उसने निकाला और फिर अंदर कर दिया। चूत की दीवालों को रगड़ता हुआ उसका लण्ड घुसता था तो मैं आनंद से भर जाती थी। निकलता था तो फिर लेने के लिये चूत उठा देती थी। वह धकाधक पेल रहा था। मैं उसे उत्साहित कर रही थी। 

हर चोट पर मेरी सीत्कार निकल जाती थी- “ऊंऊंह्ह ऊंह्ह… माँ… इतने जोर से क्यों मारते हो?”

वह भी कहता- “ले ऐऐऐ बहुत गरमी लग रही थी न तुझको ओओ…”

फिर चोट पर मैं सिसकी- “ओओ मइया… मैं तो मर जाऊँगीईई…” 

और प्रदीप कस के धपाक- “ले इसको ले… तेरी रिस रही चूत की गरमीइ निकल जायेगी…”

मेरी चूत ने न जाने कितनी चोटें खाईं। अचानक एक चोट ऐसी पड़ी कि चूत हवा में उठ गई। मैंने कस के उसको जकड़ लिया- “ओओह्ह… मैं क्या करूं… मैं तो गईई…”

प्रदीप- “लेऐऐ मैं भी आया…” उसने आखिरी धक्का दिया और अपना गाढ़ा-गाढ़ा रस छोड़ दिया। 

इसके बाद मैं नहाने चली गई। प्रदीप भी साथ ही नहाया। नहाते समय फिर हम लोग चुदाई किये। उस रात कई बार मैं चुदी यहां तक की पीछे वाले छेद में भी उसने डाला। 
सुबह उठे तो मैंने प्रदीप को चिढ़ाया- “हाय राम… तुमने मुझे खराब कर दिया…” 

दूसरे दिन बगैर रिजर्बेशन के बड़ी मुश्किल से हम लोगों को ट्रेन में घुसने भर की जगह मिली लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं थी। 

जब मौका मिलता मैं उससे कहती- “हाय राम… तुमने मुझे खराब कर दिया…” 

आने के पहले मैं एक बार और उसके सुपर-डुपर लण्ड का आनंद लेना चाहती थी। उसको भी कोई ऐतराज नहीं था। अपनी नवेली से तो वह सुहागरात मना ही चुका था और प्रदीप के ही शब्दों में उसकी बीवी के मुकाबाले मैं सुपर थी। लेकिन शादी की भीड़ में कोई सुनसान जगह नहीं मिल पा रही थी। 

एक दिन उसने बताया कि साथ वाले उसके घर में भूसा भरा रहता है। अगर मैं चाहूँ तो वहां हो सकता है। भूसा क्या मैं तो उससे लगवाने के लिये कहीं भी तैयार थी। आने के एक दिन पहले भूसे पर लिटाकर उसने मेरी मस्त चुदाई की।

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***** ***** to be contd...
 
सुनीता और शिशिर की कहानी

होली के दूसरे दिन शिशिर जब लंच से लौटा तो सुनीता भाभी का फोन पर मेसेज था- “जितनी जल्दी हो सके घर आ जाओ…” शिशिर सब सुभ हो की कामना करते हुये सुनीता के घर जल्दी से जा पहुँचा। सुनीता भाभी ने दरवाजा खोला तो वह खूबसूरत साड़ी में सजी धजी खड़ी थीं। 

शिशिर ने पूछा- “क्या बात है भाभी?” 

तो बड़ी अदा से मैं बोली- “देवरजी तुम कह रहे थे कि भाभी होली नहीं मनाओगी तो मैंने सोचा चलो तुम होली मना लो। तुम्हारी शर्त पूरी करने के लिये बड़ी मुश्किल से कल अपने को तुम्हारे भइया से बचा के रक्खा है। आज तो वह छोड़ेंगे नहीं इसलिये अभी मना लो…” और एक प्लेट में से मुट्ठी में गुलाल लेकर मैं आगे बढ़ी। 

शिशिर बोला- “भाभी इतनी मंहगी साड़ी खराब करोगी?” 

लेकिन इसके पहले ही मैंने शिशिर के चेहरे पर गुलाल मला दिया। शिशिर ने मुझको पकड़ लिया और अपना गुलाल लगा गाल मेरे गुलाबी गालों पर रगड़ने लगा। फिर उसने मुझे बाहों में लेकर मेरे रसीले होंठों पर चूमा और अपने होंठ गड़ा दिये। फिर मुझे प्यार से चूसने लगा। सुनीता भाभी उससे चिमत गईं और चुंबन का जवाब पूरे जोर से देने लगीं। कुछ देर वह ऐसे ही चिपके रहे फिर भाभी ने उसकी पीठ के ऊपर हाथ ले जाकर शिशिर का सिर पकड़कर उसे नीचे को खींचा। 

शिशिर का मुँह उनके कंधों को चूमता हुआ सीने पर जा पहुँचा। वह अपने गालों का गुलाल सुनीता भाभी के उभारों के ऊपर रगड़कर ब्लाउज़ पर लगाने लगा। सुनीता को करेंट सा लगा, वह उत्तेजित हो उठी, चूचुक सख्त हो गये। शिशिर को एकदम पता लग गया। उसने दायां हाथ सुनीता की कमर में डालकर सामने से चिपका लिया और बांयें हाथ से उनके ब्लाउज़ के बटन खोल दिये। सुनीता ने पीछे हाथ करके ब्रा की हुक खोलकर के उसको अलग कर दिया। उसके सुडौल गदराये उरोज सामने थे जिनके ऊपर गहरे गुलाबी रंग के फूले हुये चूचुक तने खड़े हुये थे। शिशिर उनको देखता ही रह गया। 

सुनीता भाभी ने टोका- “क्या देख रहे हो?”

शिशिर सच बोला- “भाभी इतनी खूबसूरत गोलाइयां नहीं देखी…” 

सुनीता ने चोट की- “कितनों की देखी है?” 

शिशिर का खड़ा हुआ लण्ड सुनीता की चूत को चुभ रहा था। उसने हाथ बढ़ाकर उसको पकड़ लिया। प्रतिक्रिया के रूप में शिशिर ने सुनीता भाभी की दाईं चूची मुँह में ले ली। सुनीता के मुँह से सीत्कार निकल गई। उन्होंने सारा भार शिशिर के ऊपर डाल दिया। 

शिशिर ने उन्हें बाहों में संभाल न लिया होता तो गिर जातीं। सहारे से बेडरूम में ले जाकर शिशिर ने पलंग पर लिटा दिया। सुनीता ने गले में बाहें डालकर अपने ऊपर खींचा। 
शिशिर ने कहा- “पहले अपने नीचे का खजाना तो दिखाओ…” 

शोख अदा से सुनीता बोलीं- “पहले हम खजाने की चाभी देखेंगे…” इसके साथ ही सुनीता ने पैंट के बटन और जिपर खोल डाले और अंडरवेर समेत पैंट पैरों के नीचे गिरा दिया। 
कमीज उतार कर वह एकदम नंगा हो गया। उसका लण्ड फनफनाकर कर खड़ा था। 

“उईईई माँ… इतना बड़ा और मोटा है? कैसे समायेगा?” उत्तेजना में सुनीता भाभी की जबान लड़खड़ा रही थी। 

शिशिर ने साड़ी की ओर हाथ बढ़ाया और एक झटके में साड़ी खींच दी और सिलिकन पेटीकोट का नाड़ा खोल लिया। सुनीता ने कुछ कहे बगैर अपने चूतड़ उठा दिये और आसानी से खींच करके पेटीकोट नीचे गिर दिया। उसने कीमती पैंटी पहन रखी थी। एक बड़ा सा धब्बा चूत के पानी से फैल गया था। 

शिशिर पैंटी उतारने लगा तो सुनीता बोली- “इसे पहने रहने दो…” लेकिन उतरवाने में विरोध नहीं किया। 

क्या नजारा था। संगमरमरी बदन सामने था। भाभी की पतली कमर, मांसल चूतड़, फूली हुई चूत, बड़ी-बड़ी गोल-गोल ऊंचाइयां और मदहोश मुश्कान आमंत्रित कर रही थीं। शिशिर मतवाला सा सुनीता भाभी की ओर बढ़ा और उन्होंने हाथ फैलाकर उसको समेट लिया। उसने उनकीे दांयें चूचुक को मुँह में ले लिया और बायीं चूची को हाथ से मसलने लगा।

भाभी “सी सी” कर उठीं। उन्होंने मुट्ठी में लण्ड थाम लिया और चूत के ऊपर फेरने लगीं। शिशिर ने पोजीशन बदल दी और बांयें चूचुक को मुँह में ले लिया तो भाभी ने एक लंबी आवाज की- “आआआह” और कानों में फुसफुसाईं- “देवरजी अब क्यों तड़पा रहे हो?” 

साथ ही दोनों हाथों से उसका सिर पकड़कर नीचे को खींचने लगी। शिशिर नीचे खिसकता गया। भाभी ने लण्ड की उत्सुकता में अपनी टांगें चौड़ी कर ली। लेकिन शिशिर खिसकता ही गया। वह जांघों तक खिसक आया। भाभी की टांगें दोनों कंधों पर आ गईं। उसने भाभी की चूत पर मुँह रख दिया।
 
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