Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस - Page 5 - SexBaba
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Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस

शेखर ने मुँह अंदर बैठा लिया था। चूत की दोनों फांकें उसके गाल से सटी थीं। वह चटखारे लेकर संतरे की तरह चूस रहा था। चूत का रस उसके होठों, गाल, नाक पर फैल गया था। संगीता की चूत का अरोमा उसे पागल बना रहा था। संगीता ने टांगें उसके कंधे पर कसके बाँध ली थीं। दोनों हाथों से उसके सिर को जकड़ कर चूत की तरफ दबा रही थी। साथ ही तन करके चूत भी धकेल रही थी। जोरों-जोरों से आवाज निकाल रही थी। बीच-बीच में शेखर उसकी किरकिरी पर दांत लगा देता तो वह जोरों से चीख उठती। हथेलियों से वह उसकी दोनों चूचियां मसला रहा था उससे भी वह चीख उठती थी। इतनी उत्तेजना में थी कि सिर को इधर उधर पटक रही थी, छटपटा रही थी। 

शेखर ने एक उंगली ले जाकर मुँह के नीचे की जगह से छेद में की तो उसने चूतड़ हवा में उठा दिये। 

उसका सारा शरीर ऐंठ गया। चूत दिखने लगी। वो बोले जा रही थी, आवाज में कंपकंपी भरी थी- “ओ आआरे मैं मरीईईइ माँ आआंआं माऱ डाला तुमने ओओ मेरे शेखर मैं तो आआआ गईईई… कभीई भी तो नहीं चुसवाईई…” वह झड़ी तो झड़ती ही गई। 

फिर शिथिल होकर हवा में उठा भाग नीचे आ गया। धीमे से उसने कहा- “ये क्या किया शेखर तुमने?” 

शेखर के चेहरे पर संगीता का चूतरस लिपट गया था। चूत दो बार झड़ने के बाद भी मुँह बाये खिली हुई थी। गुलाबी नरमी अंदर से झांक रही थी। छेद से पानी रिस रहा था, संगमरमरी मस्त गोलाइयां गर्व से उठी हुई थीं। शेखर का लण्ड बहुत ही गरमाया हुआ था। उसने सुपाड़े का मुँह छेद पर लगाया और पूरा का पूरा पेल दिया। साथ ही संगीता के होंठों पर उसी की चूत के रस से सने होंठ जमा दिये। 

लेकिन संगीता ने अपना मुँह घुमा लिया। 

फिसलकर शेखर के होंठ उसके गाल पर आ गये जहां उनको रगड़कर वह रस उसके गाल पर मलता हुआ बोला- “भाभी अब चेहरे पर और रौनक आ जायेगी…” 

उसका लौड़ा चूत को फाड़ने के लिये बेताब था। उसने तेजी से चुदाई चालू कर दी लेकिन संगीता की चूत ने उसी गरमी से जवाब नहीं दिया। शेखर ने सिर खिसका कर संगीता की दांईं चूची पर रख लिया। संगीता ने दांयें हाथ से सिर को जोरों से दबा लिया। शेखर ने होंठ खोलकर उसकी भरी और तनी घुंडियों को मुँह में ले लिया। 

संगीता अचानक उछल गई- “उई री…”

शेखर अब दाईं चूची को चूसने लगा था और बांईं चूची के चूचुक को मसल रहा था। 

संगीता के शरीर में गर्मी भर गई थी, उसकी चूत फड़कने लगी थी। उसने टांगें शेखर के कूल्हे पर बाँध ली थी। चूत को सिकोड़कर उसके लौड़े को अपनी पकड़ में ले लिया था। 

शेखर का लण्ड संगीता की सुरंग में दीवालों को रगड़ता हुआ पूरा अंदर तक जाता और बाहर आता था। संगीता आनंद में भरपूर थी। जिसका इजहार वह आवाजें निकाल के कर रही थी। वह अपने नाखून शेखर की पीठ पर गड़ाने लगी थी। शेखर अपने घुटनों के बल उठ गया था और दोनों से कस के चूचियां पकड़ रखी थीं जिससे पूरे जोर से पेल सके। 

लण्ड की चोट चूत पर पड़ती तो संगीता और जोश देती- “हाँ शेखर लगाओ न पूरो दम से…” 

शेखर- “ले मेरा… पूरी बुर को चीर के रख देगा…” 

संगीता- “हाँ हाँ लगाओ देखें कितना दम है…” 

शेखर- “अच्छा तो अब लो…” चोट से संगीता के चूतड़ पीछे हट गये। बेड चरमरा उठा। 

संगीता- “हाँ शेखर रख दो फाड़ के इसको। बना दो भुर्ता इसका…” 

“उसको आज मजा चखाता ही हूँ…” कहकर शेखर उतरकर बेड के बगल में खड़ा हो गया। दोनों जांघें खींचकर उसकी चूत को एकदम किनारे पर कर लिया। और संगीता की टांगें चौड़ी करके खड़े-खड़े ही छेद पर लण्ड लगा के पूरा पेल दिया। 

संगीता ने टांगें उसके कूल्हे के इर्द-गिर्द बाँध लीं। 

अब शेखर बड़ी ताक़त से सटासट चोदने लगा।


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संगीता कुछ ही झटके झेल पाई। फिर कराह उठी लेकिन उसे बहुत ही मजा आ रहा था। जैसे-जैसे लौड़ा धकापेल कर रहा था उसकी कराह बढ़ रही थी। चूत पानी-पानी हो रही थी- “ओओ ओओओ आआआ ओ मेरी मम्मी ओ माईई गोड उईईई माँ मैं मरीईई… उउउउइइइइ रीईईइ…”

शेखर बाहर तक बाहर खींचता। 

संगीता दांतों के ऊपर दांत जकड़े हुये अंदर खींचती लंबी सांस- “ओ मेरे शेखर ऊऊऊऊऊ हुहुहु…”

और शेखर सीधा खटाक से अंदर कर देता।

जब चोट पड़ चुकती तो जोर से संगीता की सांस बाहर होती- “उफ्फ्फ्फ…”

शेखर भी चरम आनंद में भर गया था- “ओ मेरी संगीता डार्लिंग… मेरा और ले ले… तुम्हारे जैसी चूत कोईईई नहींईइ…” उसने लण्ड को मुट्ठी मैं पकड़ा और लण्ड घुसेड़ा तो साथ में एक उंगली भी छेद में डालता ही गया। 

संगीता और न ठहर सकी- “ओ मेरी माँ… मैं तो गईई… लगा दोओ कस के…” उसकी चूत फड़क उठी चूत के ज्वालामुखी ने लावा छोड़ दिया और छोड़ती गई। 

शेखर बहुत कस-कस के झटके लगाते हुये बोला- “ओ मेरी संगीता मैं भी झड़ा… अब लो मेरे को…” 

मैंने जल्दी से कहा- “शेखर, अंदर मत झड़ना…”

और शेखर ने लण्ड बाहर खींच लिया। उसका सफेद लावा उफन-उफन कर मेरी चूत पर फैलता रहा और वह मेरे ऊपर ढेर हो गया। काफी देर तक हम एक दूसरे की बांहों में लेटे रहे। मैंने उसे बड़े प्यार से हटाया।

तो बोली- “बहुत देर हो गई है गनीमत है कि वो देर से आते हैं…” फिर अपनी पैंटी से चूत के ऊपर से शेखर का रस साफ किया और कपड़े पहनकर जाने के पहले उसकी तरफ देखकर शरारत से बोली- “लाला जी आपका आज रात का खाना हमारे यहां है जिसकी दावत देने के लिये ही मैं यहां आई थी…” 

मैं चुदी थी, चुदी थी और खूब चुदी थी। न चुदाई कराके भागने की जल्दी थी और न आवाज करने, चिल्लाने पर बंदिश जो मुझे वर्षों से नशीब नहीं हुआ था। 

जब मैं ऊपर जा रही थी तो एकदम हल्की थी जैसे हवा में उड़ रही हूँ। 

उस दिन के बाद शेखर से हमरो संबंध और गाढ़े हो गये। मैं उसकी भाभी और वह मेरा देवर था सिवाय उस समय के जब वह मुझे पकड़ के अपनी कसर निकालता था। उस समय वह मुझे संगीता कहता था। कम से कम महीने में एक दिन तो ऐसा आता ही था। इसमें कोई पछतावे की बात नहीं थी। वह सच्चे देवर की तरह वर्ताव और कर्तव्य करता था। मैं उसे चाहती थी।

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***** THE END समाप्त *****
 
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