MmsBee कोई तो रोक लो - Page 17 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

MmsBee कोई तो रोक लो

152

एक तो मुझे खाना खाने के बाद, चाय ना मिलने से, मेरा सर भारी हो रहा था. उस पर निक्की लोगों की इस बात ने मुझे और भी ज़्यादा उलझा कर रख दिया था. मैं समझ नही पा रहा था कि, आख़िर उन तीनो के बीच क्या खिचड़ी पक रही है.

मैं अभी इन्ही बातों से परेशान था कि, तभी शिखा ने आवाज़ देकर बरखा को बुलाया और उस से मेरे लिए चाय बनाने को बोलने लगी. चाय की तलब तो मुझे बहुत ज़्यादा लगी थी. लेकिन इतने सारे मेहमआनो के बीच मे मेरे लिए चाय बनवाना मुझे अच्छा नही लग रहा था. मैने शिखा को ऐसा करने से रोकते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, आप बेकार मे परेशान मत होइए. मुझे कोई चाय वाय नही पीना.”

लेकिन शिखा ने फ़ौरन ही मेरी इस बात को काटते हुए कहा.

शिखा बोली “भैया, इसमे परेशान होने वाली कोई बात नही है. मुझे निक्की ने पहले ही बता दिया था कि, आपको खाने के बाद चाय पीने की आदत है. वरना आपका सर भारी हो जाता है. इसलिए आप चुप कर के बैठिए, बरखा अभी चाय लेकर आती है.”

शिखा की इस बात को सुनकर, मैं चुप रहने के सिवा कुछ ना कर सका. बरखा चाय बनाने चली गयी. उसके बाद मेरी शिखा और सीरू से यहाँ वहाँ की बातें होती रही. थोड़ी देर बाद बरखा चाय लेकर आ गयी. उसने हम लोगों को चाय दी और फिर शिखा से कहा.

बरखा बोली “दीदी, वो नेहा मुझे बुला रही है. उसे बाजार से कुछ खरीदी करना है. मैं उसके साथ जा रही हूँ.”

इतना बोल कर बरखा चली गयी और हम लोग चाय पीने लगे. चाय पीना हो जाने के बाद सीरू ने भी शिखा से कहा.

सीरत बोली “भाभी, अब हम भी चलते है. घर मे भी बहुत काम है. आपको यदि कोई काम हो तो, हम मे से किसी को भी कॉल कर देना.”

इतना बोल सीरू और सेलू उठ कर खड़ी हो गयी. शिखा ने भी उसको जाने से नही रोका और वो भी उनके साथ उठ कर खड़ी हो गयी. वो लोग बाहर जाने लगी तो, मैं भी उठ कर उनके साथ बाहर आ गया.

बाहर आकर सीरू ने निक्की और आरू को आवाज़ लगाई. कुछ ही देर मे निक्की और आरू नीचे आ गयी. नीचे आकर दोनो शिखा से मिली और थोड़ी बहुत मुझसे बात करने के बाद, वो चारो घर चली गयी.

उनके जाने के बाद, हम अंदर जाने को हुए, तभी मेरा मोबाइल बजने लगा. मैने मोबाइल निकाल कर देखा तो, मौसी का कॉल आ रहा था. इसलिए मैं अंदर जाते जाते रुक गया और वही आँगन मे रखी चेयर पर बैठ गया. शिखा भी ना जाने क्या सोच कर आँगन मे ही बैठ गयी.

मैने शिखा को अपने पास बैठते देखा तो, उसे बताया कि, मेरी मौसी का कॉल आ रहा है. इसके बाद मैने कॉल उठाते हुए मौसी से कहा.

मैं बोला “जी मौसी, आज इतने दिन बाद मेरी याद कैसे आ गयी.”

मौसी बोली “बड़ा आया मौसी वाला, तुझे वहाँ का एक काम करने को दिया था. मेरे उस काम का क्या हुआ. कहीं तू मेरा काम करना भूल तो नही गया.”

मौसी की ये बात सुनते ही, मुझे उन का बताया काम याद आ गया. मैं सच मे ही उनका बताया काम करना भूल गया था. मैने इस बात के लिए उनसे माफी माँगते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी मौसी, मैं सच मे ही हॉस्पिटल के चक्कर मे, आपका काम करना भूल गया था. लेकिन अब मैं बाकी बचे 2-3 दिन मे आपका काम करने की पूरी कोसिस करूगा.”

मौसी बोली “ठीक है, जब तुझे समय मिले, तब तू इस काम को कर लेना. लेकिन भूलना मत ये बहुत ज़रूरी काम है.”

मैं बोला “आप फिकर मत कीजिए मौसी. मैं जल्दी ही आपका काम करके आपको कॉल करता हूँ.”

मेरी इतनी बात सुनने के बाद मौसी ने कॉल रख दिया. मगर उनके इस कॉल ने मुझे गहरी सोच मे डाल दिया था. मुझे इस तरह सोच मे पड़ा देख कर, शिखा से नही रहा गया और उसने मुझे टोकते हुए कहा.

शिखा बोली “क्या हुआ भैया. किस बात को लेकर इतना सोच मे पड़ गये.”

मैं बोला “कुछ नही दीदी. वो मेरी मौसी ने मुझे एक काम करने का बोला था. लेकिन मेरे दिमाग़ से ही वो काम निकल गया था. अभी उन ने मुझे वो ही काम याद दिलाने के लिए कॉल किया था.”

शिखा बोली “तो इसमे परेशान होने की क्या बात है. अभी तो आपको 3-4 दिन यहाँ रहना ही है. इस समय मे आप अपना काम कर सकते हो.”

मैं बोला “ये ही तो परेशानी वाली बात है दीदी. इतने दिन अज्जि जब पूरी तरह से खाली था. तब मुझे काम याद नही था और अब जब मुझे काम याद आया तो अज्जि के पास ज़रा भी समय नही है. मुझे समझ मे नही आ रहा कि, अपने इस काम के लिए, अब किसको पकडू.”

शिखा बोली “क्या मैं जान सकती हूँ कि, आपको क्या काम है.”

मैं बोला “मौसी ने एक आदमी का पता दिया है और उसके बारे मे मालूम करने को कहा है. लेकिन ये भी कहा है कि, इस बारे मे किसी को कुछ मालूम नही पड़ना चाहिए.”

मेरी बात ये बात सुनकर, शिखा चौके बिना ना रह सकी. उसने बड़ी बेचेनी के साथ मुझसे कहा.

शिखा बोली “मौसी ने मुंबई मे कहाँ का पता दिया है.”

शिखा की इस बात के जबाब मे मैने अपना मोबाइल निकाला और उसमे मेसेज मे सेव किया हुआ, उस आदमी का नाम और पता निकाल कर, मोबाइल शिखा के हाथ मे थमा दिया. मोबाइल मे नाम और पता देखते ही, शिखा ने मुझे हैरानी से देखते हुए कहा.

शिखा बोली “भैया, क्या आप जानते हो ये मुंबई के किस इलाक़े का पता है.”

मैं बोला “नही, मैं तो यहाँ कही घुमा ही नही हूँ. मैं तो बस प्रिया के घर, हॉस्पिटल, अज्जि के बंगले और आपके घर के सिवा कही गया भी नही हूँ.”

शिखा बोली “फिर भी आपको ये पता मिल गया है.”

शिखा की इस बात से अब मेरी भी हैरानी का कोई ठिकाना नही था. शिखा ने मुझे हैरान होते देखा तो, मेरी हैरानी को दूर करते हुए कहा.

शिखा बोली “भैया, अभी आप इसी इलाक़े मे हो जहाँ का पता आप ढूँढ रहे हो.”

शिखा की इस बात से मेरी हैरानी और भी ज़्यादा बढ़ गयी. क्योकि मेरे पास जो पता लिखा था वो कुछ और था. जबकि शिखा का घर जिस इलाक़े मे था, उस इलाक़े का नाम कुछ और ही था. इसलिए मैने शिखा से कहा.

मैं बोला “लेकिन दीदी, इस जगह का नाम तो आआआ.. है. जबकि मेरे पास जो पता है. उसमे तो ब्ब्ब्बबब.. नाम लिखा है. मेरी समझ मे नही आ रहा कि, आप कहना क्या चाहती हो.”

शिखा बोली “भैया, जैसे पहले मुंबई का नाम बॉम्बे था. बस उसी तरह पहले इस इलाक़े को उसी नाम से जाना जाता था, जो आपके पास लिखा है. लेकिन 10 साल पहले इस इलाक़े का नया नाम रख दिया गया था. अब नाम बदल जाने से जगह तो नही बदल जाएगी ना.”

शिखा की बात सुनकर, मैने खुश होते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, यदि ये इसी इलाक़े का पता है तो, फिर आप इस आदमी को भी जानती ही होगी.”

शिखा बोली “नही, इस मैं इस नाम के किसी आदमी को नही जानती. मैने अपनी सारी जिंदगी यही पर गुज़ारी है. यहाँ इस नाम का कोई भी आदमी नही रहता. मुझे लगता है कि, आपकी मौसी को किसी ने ग़लत पता दे दिया है.”

शिखा की बात सुनकर, मैने राहत की साँस लेते हुए उस से कहा.

मैं बोला “थॅंक्स दीदी. आपने मेरी बहुत बड़ी परेशानी हाल कर दी. वरना मैं बेकार मे ही इस पते को लेकर यहाँ वहाँ भटकता रहता.”

शिखा बोली “लेकिन आपका काम तो हुआ नही.”

शिखा की इस बात के जबाब मे मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “नही दीदी, मेरा काम तो हो गया. मौसी ने मुझे जो मालूम करने को कहा था. वो तो मैने मालूम कर लिया है. अब यदि वो आदमी यहाँ रहता ही नही है तो, इसमे हम भला क्या कर सकते है. मैं अभी मौसी को कॉल करके ये बात बता देता हूँ.”

ये कह कर, मैने शिखा से मोबाइल लिया और जैसे ही मौसी को कॉल लगाने लगा तो, शिखा ने मुझे रोकते हुए कहा.

शिखा बोली “एक मिनट भैया, यहाँ बहुत शोर-गुल हो रहा है. हम उपर चल कर मौसी से बात करते है. हो सकता है कि, उन्हे भी ये बात समझाना पड़ जाए.”

मुझे भी शिखा की ये बात सही लगी और फिर मैं शिखा के साथ उपर छत पर आ गया. हम उपर पहुचे तो, प्रिया बाहर छत पर ही, एक चेयर पर बैठी अख़बार पढ़ रही थी. उसने हमे उपर आते देखा तो, अख़बार एक किनारे रख दिया और मुस्कुराने लगी.

हम लोग भी उसे देख कर मुस्कुरा दिए और उसके पास खाली पड़ी चेयर पर जाकर बैठ गये. शिखा ने प्रिया को इस तरह वहाँ अकेले बैठे देखा तो, उस से कहा.

शिखा बोली “निक्की लोग तो कब की जा चुकी है. फिर तुम यहाँ अकेली क्यो बैठी हो.”

प्रिया बोली “दीदी, मैं भी नीचे ही आ रही थी. लेकिन तभी मेरी एक सहेली का कॉल आ गया और मैं उस से बात करने लगी. मगर बात करते करते उसने कहा कि, वो अभी थोड़ी देर से कॉल करती है. इसलिए मैं यही बैठ कर, उसके दोबारा कॉल आने का इंतजार करने लगी.”

प्रिया के कॉल वाली बात सुनते ही, शिखा को भी अपने उपर आने की वजह याद आ गयी. उसने फ़ौरन मुझे मौसी को कॉल लगाने को कहा और शिखा का इशारा मिलते ही मैने मौसी को कॉल लगा कर सारी बात बता दी. लेकिन इतनी जल्दी अपना काम हो जाने की बात मौसी के गले से नही उतार रही थी.

मैने मौसी के इस शंका का समाधान करने के लिए, उन को शिखा से बात करने को कह कर, मोबाइल शिखा को थमा दिया. जिसके बाद शिखा मौसी से बात करने लगी. शिखा मौसी से बात करते करते, हमारे पास से उठ कर, छत की दूसरी तरफ चली गयी. जिस वजह से मुझे उसकी बातें सुनाई देना बंद हो गया.

थोड़ी देर तक मौसी से बात करने के बाद, शिखा ने मेरे पास आकर वापस मोबाइल मुझे दे दिया. मैने मौसी से एक दो बातें की और उसके बाद उन्हो ने कॉल रख दिया. मेरी और मौसी की बात हो जाने के बाद, शिखा ने मुझसे कहा.

शिखा बोली “मैने मौसी को सब कुछ समझा दिया है और अब उनको भी इस बात का यकीन हो गया है.”

शिखा की बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “अब उनको यकीन हो या ना हो, ये उनकी परेशानी है. मैने तो अपना काम पूरा करके, अपना पिछा इस काम से छुड़ा लिया है.”

मेरी बात सुनकर शिखा भी हँसने लगी. फिर ना जाने क्या सोचकर, शिखा ने मुझसे सवाल करते हुए कहा.

शिखा बोली “भैया, क्या आपके घर से शादी मे कोई नही आएगा.”

मैं बोला “दीदी, मैने आज सुबह ही, प्रिया के सामने अपनी मम्मी से बात की थी. उनसे मैने यहाँ आने के बारे मे पुछा था. लेकिन उनका कहना था कि, अभी मेहुल की मम्मी हमारे घर मे है. जिस वजह से वो चाहते हुए भी इस शादी मे शामिल नही हो पाएगी.”

मेरी इस बात की हामी प्रिया ने भी भर दी. लेकिन शिखा ने इस सवाल के बदलने मे, मुझसे दूसरा सवाल करते हुए कहा.

शिखा बोली “आंटी जी नही आ सकती तो क्या हुआ. अंकल जी तो आ ही सकते है. आप उनको ही बुला लीजिए.”

शिखा के मूह से अपने बाप का नाम सुनकर, एक पल के लिए मेरा चेहरा कठोर हो गया और मेरा मन अपने बाप को गाली देने का करने लगा. लेकिन मैने अपने आप पर काबू करते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, अभी वो 2 दिन पहले यही पर थे. उनकी अचानक तबीयत खराब हो गयी और उनको वापस जाना पड़ा. अभी भी उनकी तबीयत सफ़र करने लायक नही है. ऐसे मे उनका भी यहाँ आ पाना नही हो सकता है. लेकिन आप फिकर मत कीजिए. मैं आपसे वादा करता हूँ कि, शादी के बाद, मैं मोम को आपसे मिलाने ज़रूर लेकर आउगा.”

मेरी बात सुनने के बाद, शिखा ने मुझसे इस बारे मे, आगे कुछ नही कहा और हम लोगों से एक दो बातें करके नीचे चली गयी. लेकिन उसका उतरा हुआ चेहरा इस बात की गवाही दे रहा था कि, वो मेरी इस बात से खुश नही थी.

प्रिया को भी ये बात समझ मे आ चुकी थी और वो ये अच्छी तरह से जानती थी कि, मैने पापा की तबीयत खराब होने वाली बात शिखा से झूठ कही है. इसलिए शिखा के जाते ही उसने मुझे टोकते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम्हारे इस झूठ ने, दीदी का दिल दुखा दिया. तुम्हे एक बार कोसिस करके तो देखना था. हो सकता था कि, अंकल शादी मे आने के लिए तैयार हो जाते.”

प्रिया की बात सुनकर मेरा मूड फिर खराब हो गया और मैं भावनाओ मे बह कर, वो सब कह गया. जिसकी प्रिया कल्पना भी नही कर सकती थी. प्रिया की इस बात के जबाब मे मैने, उस पर भड़कते हुए कहा.

मैं बोला “हां तुम बिल्कुल ठीक कहती हो. यदि मैं चाहता तो, मेरा कमीना बाप ज़रूर इस शादी मे आ सकता था. लेकिन मैं उस कमिने का गंदा साया, अपनी इस मासूम और भोली भली बहन पर, किसी भी कीमत पर, नही पड़ने देना चाहता. क्योकि मैं सिर्फ़ ज़ुबान से ही नही, दिल से भी शिखा को अपनी बहन मानता हूँ.”

मैं इस समय सच मे ही बहुत गुस्से मे था और मेरा मन मेरे बाप को गालियाँ देने का कर रहा था. यदि इस समय मेरे सामने प्रिया की जगह कीर्ति होती तो, शायद अब तक मैं अपने बाप को गाली दे भी चुका होता.

लेकिन प्रिया के होने की वजह से, मैं कुछ हद तक अपने गुस्से को दबा कर रह गया था. प्रिया मेरे इस गुस्से की वजह को पूरी नही तो, कुछ हद ज़रूर समझ चुकी थी. इसलिए उसने मेरा ध्यान इस बात पर से हटाने के लिए मुझसे कहा.

प्रिया बोली “अरे इस खुशी के मौके पर बेकार मे अपना मूड खराब मत करो. ये देखो आज के अख़बार मे तुम्हारे लिए कितनी प्यारी चीज़ छपी है.”

ये कह कर प्रिया मुस्कुराते हुए, मुझे एक शायरी पढ़ कर सुनाने लगी.

प्रिया की शायरी
“आज मौसम मे अजीब सी बात है.
बेकाबू से मेरे ख़यालात है.
दिल चाहता है तुमको चुरा लूँ तुमसे,
पर मम्मी कहती है कि चोरी करना पाप है.”

लेकिन प्रिया की ये शायरी सुनकर भी मेरा मूड सही नही हुआ था. उसने अभी भी मेरा मूड उखड़ा हुआ देखा तो, फिर से एक शायरी पढ़ने लगी.

प्रिया की शायरी
“उमर क्या कहूँ काफ़ी नादान है मेरी.
हंस के मिलना पहचान है मेरी.
आपका दिल ज़ख़्मो से भरा हो तो मुझे याद कीजिए,
दिलो को रिपेयर करने की दुकान है मेरी.”

प्रिया की ये शायरी सुनकर, मैं प्रिया की तरफ देखने पर मजबूर हो गया. इस शायरी को सुनकर, मुझे ऐसा लगा. जैसे प्रिया ये खुद से ही बोली जा रही हो. अपने इस शक़ को दूर करने के लिए मैने प्रिया के हाथ से अख़बार छीन लिया और उसमे प्रिया की कही शायरी देखने लगा.

मेरा सोचना सही ही निकला. प्रिया अपने मन से ही शायरी बोल कर, मुझे सुनाए जा रही थी. प्रिया की सुनाई दोनो शायरी अख़बार मे नही थी. ये देख कर मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “ये क्या है. इसमे तो तुम्हारी सुनाई एक भी शायरी नही है.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “उसमे तुम्हे सुनने लायक कोई शायरी थी ही नही. इसलिए अपने मन से ही सुना दी.”

प्रिया की बात सुनकर, मैने एक बार फिर अख़बार पर नज़र डाली. मुझे उसमे तृप्ति की एक रचना दिखाई दे गयी. उसको देख कर मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “लेकिन इसमे तो एक अच्छी रचना छपि है.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुझसे अख़बार ले लिया और देखने लगी कि, मैं किस रचना की बात कर रहा हूँ. उसे देखने के बाद, प्रिया ने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “ये तो किसी खाड़ुस शायरा की खाड़ुस सी रचना है.”

मैं बोला “मगर मुझे इसका लिखा हुआ पसंद आता है.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने हैरानी से मुझे देखते हुए कहा.

प्रिया बोली “क्या तुम तृप्ति की रचना पड़ते हो.”

मैं बोला “नही, लेकिन मैने मंडे को यहीं पर तृप्ति की एक रचना प्रतीक्षा पड़ी थी. मुझे वो बहुत पसंद आई थी. इसलिए मुझे इसका नाम याद हो गया. सच मे दिल को छुने वाली रचना लिखती है.”

मेरी इस बात को सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए अख़बार को देखा और मुझसे कहा.

प्रिया बोली “ओके, मैं इसकी ये रचना सुनाती हूँ. देखती हूँ इसकी इस रचना मे तुमको क्या समझ मे आता है. रचना का नाम है, अजनबी से नफ़रत.”

रचना का शीर्षक बता कर प्रिया ने तृप्ति की इस रचना को पढ़ना सुरू कर दिया.
“अजनबी से नफ़रत”

“वो बँधे है किसी और की, चाहतो की जंजीर मे,
फिर भी उन्हे चाहने की, चाहत सी क्यों होती है.
दिल को समझाया बहुत कि, हैं वो मेरे नही किसी और के.
फिर भी उनको देखते ही, दिल मे धक धक सी क्यों होती है.
पता है वो आए है, पर किसी और के बुलाने पे.
फिर भी उनके आने से, कहीं कोई दस्तक सी क्यों होती है,
नज़रें मिली थी मेरी उनसे, ऐसे ही अंजाने मे.
फिर भी उनकी नज़रों की ही, इनायत सी क्यों होती है,
कि नही मैने कभी, वक़्त की बर्बादी फ़िजूल मे.
फिर भी उनकी बातो को सुनने की, फ़ुर्सत सी क्यों होती है.
हक़ नही है मुझे कि, मैं डूब जाऊ उनकी यादों मे.
फिर भी उनको चूमने की, सरारत सी क्यों होती है.
होंगे ना वो मेरे कभी, अगर मर भी जाउ उनके इंतजार मे.
फिर भी उनकी बाहों मे आने की, हसरत सी क्यों होती है.
नही जानती वो चाहते है किसे, इतना दिल ओ जान से.
फिर भी उस “अजनबी से नफ़रत” सी क्यों होती है.”

प्रिया मुझे तृप्ति की ये रचना सुना रही थी और मैं इसमे खो सा गया था. शेर-शायरी या किसी कविता को समझ पाना मेरे लिए हमेशा से ही एक मुश्किल काम था. लेकिन ना जाने तृप्ति की रचना मे ऐसी क्या बात थी कि, मैं उसकी रचना को सिर्फ़ समझ ही नही गया था, बल्कि उसमे छुपे दर्द और बेबसी को भी महसूस कर पा रहा था.

जबकि प्रिया इस रचना को पढ़ने के बाद, मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी. उसकी इस मुस्कान से समझ मे आ रहा था कि, उसे इस रचना मे कुछ भी महसूस नही हुआ है. इस बात को सोच कर मैने उस से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ. क्या तुम्हे तृप्ति की ये रचना ज़रा भी समझ मे नही आई, जो तुम इस तरह मुस्कुरा रही हो.”

मेरी इस बात को सुनकर, प्रिया ने मुस्कुरा कर, शायरी मे जबाब देते हुए कहा.

प्रिया बोली
“मैं बेटी नही, ग़ालिब या फ़राज़ की.
जो बात समझ सकूँ, ग़ज़ल मे राज़ की.”

प्रिया की ये शायरी सुनकर, मैं अपनी हँसी ना रोक सका. लेकिन मैं उस से इसके बदले मे कुछ बोल पाता, उसके पहले ही उसका मोबाइल बजने लगा और प्रिया कॉल उठा कर बात करने लगी.

शायद उसकी सहेली, उसे कहीं आने के लिए बोल रही थी. लेकिन प्रिया उसे मना कर रही थी. प्रिया शायद मेरी वजह से अपनी सहेली के पास जाना नही चाहती थी. मगर बाद मे प्रिया ने उस से कह दिया कि, वो आने की कोसिस करती है. इसके बाद प्रिया ने कॉल रख दिया और मेरी तरफ देखते हुए कहा.

प्रिया बोली “क्या तुम मेरे साथ, मेरी सहेली से मिलने चलोगे.”

मैं बोला “हां, क्यो नही. चलो कहाँ चलना है.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया को शायद अब भी इस बात का यकीन नही आ पा रहा था कि, मैं बिना कुछ जाने, बिना कुछ पुछे, इतनी आसानी से, उसके साथ जाने को तैयार हो गया हूँ. इसलिए उसने फिर से मुझसे कहा.

प्रिया बोली “क्या तुम सच मे मेरे साथ चलने को तैयार हो.”

मैं बोला “हां, मैं सच मे तुम्हारे साथ चल रहा हूँ और यदि तुम मुझे अपनी सहेली से, अपना बॉय फ्रेंड बनाकर, मिलाना चाहती हो तो, मुझे इस मे भी कोई परेशानी नही है.”

मेरी बात सुनते ही प्रिया का चेहरा खुशी से खिल उठा. वो फ़ौरन उठ कर चलने के लिए तैयार हो गयी. मैं भी उठ कर खड़ा हो गया. मैने उस से कहा कि मैं शिखा से बता देता हूँ कि, हम थोड़ी देर मे घूम कर आते है.

इतनी बात कर के हम नीचे आ गये. नीचे आकर मैने शिखा को बताया और फिर मैं अपनी कार मे प्रिया के साथ उसकी सहेली से मिलने निकल गया. कुछ ही देर मे हम प्रिया के बताए पार्क मे पहुच गये.

गाड़ी से उतरते ही प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर हम ऐसे ही पार्क के अंदर आ गये. हम अंदर आ कर, हम अपने आस पास देखते हुए आगे बढ़ने लगे. प्रिया अपनी सहेली को चारो तरफ देख रही थी.

मैं प्रिया की सहेली को नही जानता था. इसलिए मैं वहाँ पर आए प्रेमी युगल को देख कर, वहाँ के रंगीन नज़ारो का मज़ा लेने लगा. अचानक ही मेरी नज़र वहाँ एक किनारे पेड़ के पास खड़े एक जोड़े पर जाकर ठहर गयी.

लड़की मुझे कुछ जानी पहचानी सी लगी तो, मैं उसे गौर से देखने लगा. मगर लड़की का चेहरा मेरी तरफ नही था. इसलिए मैं उसका चेहरा देखने के लिए, प्रिया से अपना हाथ छुड़ाया और उस लड़की की तरफ बढ़ गया.

मैं जैसे ही उस लड़की के पास पहुचा, प्रिया भी मेरे पीछे पीछे वहाँ आ गयी थी. अभी प्रिया मुझसे कुछ पुछ पाती कि, मुझे लगा कि, वो लड़की कोई और नही बल्कि बरखा है.

ये बात समझ मे आते ही, मैने बिना कुछ सोचे समझे उस लड़की के कंधे पर हाथ रख दिया. वो लड़की सच मे ही बरखा थी और अचानक मुझे अपने सामने देख कर, कुछ घबरा सी गयी थी.

वही उस लड़के ने जब मुझे बरखा के कंधे पर हाथ रखता देखा तो, उसने आगे बढ़ कर, मेरा कॉलर पकड़ लिया. उस लड़के की इस हरकत से मेरा ध्यान मेरी कॉलर की तरफ चला गया और तभी चटाक़…चटाक़…की गूँज से, मैं बुरी तरह से हड़बड़ा गया.
 
153
लेकिन मुझसे भी ज़्यादा इस गूँज से वो लड़का हड़बड़ा गया था. इस गूँज के साथ ही, उसके हाथ मेरी कॉलर से हट कर, अपने गालों पर चले गये. वो हैरानी से कभी बरखा तो, कभी प्रिया की तरफ देखने लगा.

तभी कही से नेहा वहाँ भागती हुई आ गयी. वो शायद दूर से ये सब नज़ारा देख चुकी थी. इसलिए उसने आते ही, उस लड़के के कंधे पर हाथ रख कर, बरखा और प्रिया पर भड़कते हुए कहा.

नेहा बोली “ये क्या बदतमीज़ी है. तुम लोगों ने हीतू को किस बात के लिए मारा है”

नेहा की इस बात के जबाब मे, बरखा ने उसके गुस्से की परवाह किए बिना, उल्टे उसको ही चेतावनी देते हुए कहा.

बरखा बोली “बदतमीज़ी तो तेरे इस हीतू ने की है. जिसने बिना कुछ सोचे समझे मेरे भाई के गिरेबान पर हाथ डाल दिया. समझा इसको कि पुनीत मेरा भाई है और मैं इसके साथ, किसी की कोई बदतमीज़ी सहन नही करूगी. फिर चाहे वो बदतमीज़ी करने वाला तेरा हीतू ही क्यो ना हो.”

बरखा के इस तमाचे और इस बात ने मेरे दिल पर बहुत गहरा असर किया था. मैं अभी तक बरखा को शिखा के रिश्ते से दीदी कहता था. मगर मुझे ये कभी महसूस नही हुआ था कि, वो भी शिखा की तरह मुझे अपना भाई मानती है.

लेकिन आज उसके इस गुस्से ने मुझे, उसके लिए मेरी अहमियत और उसके प्यार का अहसास करा दिया. मैं बड़े गौर से बरखा के इस रूप को देख रहा था. वही वो नेहा और हीतू को मेरे गिरेबान पर हाथ डालने के लिए फटकारते जा रही थी.

बरखा के साथ नेहा को देख कर, अब तक मेरी समझ मे सारा मामला आ चुका था. क्योकि प्रिया मुझे नेहा और उसके बाय्फ्रेंड से मिलने की बात पहले भी एक बार बता चुकी थी. बस मैं ये नही जानता था कि, प्रिया अभी मुझे नेहा से ही मिलाने ले जा रही है और शायद बरखा भी इस बात से अंजान थी कि, वहाँ प्रिया आने वाली है.वरना उसने पहले ही नेहा को बता दिया होता कि, प्रिया उसके घर मे है.

ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था. मैने घर मे बरखा की ये बात तो सुनी थी कि, वो नेहा के साथ बाजार जा रही है. मगर यहाँ अचानक से बरखा को किसी लड़के के साथ देख कर, मैं खुद को रोक ना सका और उसके पास चला गया. जिसका ख़ामियाजा मुझे तो नही, मगर उस बेचारे हीतू को अपने गाल पर तमाचा खा कर भुगतना पड़ गया था.

नेहा मुझे बरखा के घर मे देख चुकी थी और वो ये भी जानती थी कि, शिखा मुझे अपना भाई मानती है. इसलिए बरखा की बात के बाद उसने बरखा से तो कुछ नही कहा. लेकिन अपना सारा गुस्सा प्रिया पर उतारते हुए कहा.

नेहा बोली “बरखा का हीतू पर हाथ उठाना तो मैं समझ सकती हूँ और मैं इसे ग़लत भी नही मानती. लेकिन तूने क्यो हीतू पर हाथ उठाया. क्या पुनीत तुम्हारा भी भाई लगता है.”

नेहा की इस बात को सुनकर, प्रिया ने मुस्कुरा कर, उसकी तरफ देखा और फिर मेरा हाथ पकड़ कर, नेहा की बात का जबाब देते हुए कहा.

प्रिया बोली “भाई ये तेरा लगता होगा. मेरी तो ये जान है. आज मैं इसे ही तुझसे मिलाने लाई थी.”

प्रिया की बात सुनकर, नेहा ने एक बार मेरी तरफ देखा. फिर ठहाके मारकर हँसने लगी और प्रिया का मज़ाक उड़ाते हुए कहा.

नेहा बोली “हाहहाहा, पुनीत को तो मैं अच्छे से जानती हूँ. इसके बारे मे शिखा दीदी मुझे, परसो ही बता चुकी थी. ये अज्जि भैया का दोस्त है और यहाँ अपने अंकल का इलाज करवाने आया है. तुझे अपना झूठा बाय्फ्रेंड बनाने के लिए क्या कोई और लड़का नही मिला था. जो मुझे जलाने के लिए इस अपना झूठा बाय्फ्रेंड बनाकर यहाँ ले आई.”

नेहा के मूह से, मेरे बारे मे इतनी सब बातें सुनकर, प्रिया के चेहरे की हँसी गायब हो गयी और वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. शायद वो मुझसे ये जानना चाहती थी कि, नेहा ये सब क्या बोल रही है.

मगर मुझे तो खुद ही नही पता था कि, शिखा और नेहा के बीच मुझे लेकर क्या बातें हुई है. इसलिए मुझसे प्रिया से कुछ भी कहते नही बन रहा था. उधर नेहा ने फिर से प्रिया का मज़ाक उड़ाते हुए कहा.

नेहा बोली “वैसे तेरी पसंद की दाद देना पड़ेगी. तूने मुझे नीचा दिखाने के लिए अछा लड़का चुना था. मगर अफ़सोस की तेरा ये झुत पकड़ा गया.”

नेहा की बाते सुनकर, प्रिया शर्मिंदा होने के सिवा कुछ ना कर सकी. उसका झूठ पकड़ा गया था. जिस वजह से उसका चेहरा शरम से झुक गया था. मैं चाह कर भी प्रिया के लिए कुछ नही कर पा रहा था. ऐसे मे बरखा ने इन सब का ध्यान अपनी तरफ खिचते हुए कहा.

बरखा बोली “प्रिया ये सब क्या है. क्या नेहा सच कह रही है. क्या तुमने अभी जो कुछ भी कहा, वो झूठ है.”

बरखा के इस सवाल को सुनकर, प्रिया और भी ज़्यादा परेशान हो गयी. वो सर झुकाए रखने के सिवा कुछ नही कर पा रही थी. मुझे प्रिया की इस हालत पर तरस आ रहा था. इसलिए मैने बरखा को चुप करने के लिए उसकी तरफ देखा. मगर बरखा ने अपने सवाल का रुख़ प्रिया की तरफ से मोड़ कर, मेरी तरफ करते हुए कहा.

बरखा बोली “पुनीत तुम ही कुछ बोलो. क्या प्रिया ने अभी जो कुछ कहा है, वो सब झूठ है.”

बरखा के बार बार एक ही सवाल करने से अब मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था. मैं अभी इसी गुस्से मे बरखा को कुछ बोलने ही जा रहा था कि, तभी बरखा ने फिर से मुझसे सवाल करते हुए कहा.

बरखा बोली “देखो पुनीत, यदि प्रिया तुम्हारी गर्लफ्रेंड है तो, तुमको उसकी तरफ़दारी लेना चाहिए. तुम यदि सच मे उसके बाय्फ्रेंड हो तो, फिर कुछ बोलते क्यो नही. आख़िर ये उसकी इज़्ज़त का सवाल है.”

बरखा की ये बात सुनकर, मेरे दिमाग़ मे एक बिजली सी चमक गयी. मुझे अब समझ मे आ गया कि, बरखा एक ही बात पर बार बार ज़ोर क्यों दे रही है. असल मे वो चाहती थी कि, मैं प्रिया की तरफ़दारी करूँ और नेहा को ग़लत साबित कर दूं.

ये बात मेरी समझ मे आते ही, मेरा दिमाग़ तेज़ी से चलने लगा और एक पल मे ही मेरे दिमाग़ ने नेहा की हर बात का जबाब भी ढूँढ लिया. मैने बरखा की बात का जबाब देते हुए उस से कहा.

मैं बोला “दीदी, जब मुझे और प्रिया को कुछ पता हो, तभी तो हम नेहा की इस बात का कोई जबाब दें ना. हमे तो पता ही नही है कि, शिखा दीदी से नेहा की क्या बात हुई है. अब यदि शिखा दीदी ने नेहा से यदि ये कहा कि, मैं अज्जि का दोस्त हूँ तो, इसमे ये बात कहाँ से आ गयी कि, मैं प्रिया का बाय्फ्रेंड नही हूँ. बस इसी बात को सोच कर हम दोनो चुप है.”

“क्योकि शिखा दीदी और अज्जि दोनो ही, प्रिया के बार मे सब कुछ जानते है. तभी तो शिखा दीदी ने अंकल के पास से अपनी ड्यूटी प्रिया के पास करवाई थी. मैं शिखा दीदी का भाई हूँ, इसी वजह से तो, प्रिया अपनी सहेली निक्की के भाई की शादी को छोड़ कर, आपके घर मे है.”

“इस सब के बाद भी यदि नेहा को लगता है कि, मैं प्रिया का झूठा बाय्फ्रेंड हूँ तो, अब नेहा ही प्रिया के हाथ को देख कर बताए कि, प्रिया के हाथ मे इस “पी” के लिखे होने का मतलब वो क्या निकालेगी.”

ये कहते हुए, मैने प्रिया का वो हाथ पकड़ कर नेहा के सामने कर दिया, जिसमे उसने हथेली पर ब्लेड से बड़ा सा “पी” बनाया हुआ था. वो “पी” देख कर तो नेहा के साथ साथ बरखा और हीतू की आँखे फटी की फटी रह गयी.

वहीं प्रिया भी हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. क्योकि अभी तक उसको भी पता नही था कि, मुझे उसकी हथेली पर लिखे इस “पी” के बारे मे पता है. मैं गौर से सबका चेहरा देख रहा था और अब मुझे लगने लगा था कि, नेहा को भी इस बात पर यकीन आने लगा है. इसलिए मैने अपनी बात को आगे चालू रखते हुए कहा.

मैं बोला “यदि अब भी नेहा को इस बात पर शक़ है कि, मैं प्रिया का बाय्फ्रेंड नही हूँ तो, मैं इन नेहा का ध्यान इस बात की तरफ दिलाना चाहता हूँ कि, बरखा दीदी ने तो, हीतू को इसलिए तमाचा मारा था, क्योकि उसने उनके भाई का गिरेबान पकड़ा था. लेकिन मैं यदि प्रिया का झूठा बाय्फ्रेंड था तो, फिर प्रिया को हीतू को तमाचा मारने की क्या ज़रूरत थी.”

मेरी इन बातों से जहा प्रिया के चेहरे की चमक वापस लौट आई थी. वही इस बात ने नेहा को भी सोचने पर मजबूर कर दिया था. प्रिया के चेहरे की चमक को देख कर, बरखा ने अब नेहा को लताड़ते हुए कहा.

बरखा बोली “अब तेरा मूह क्यो बंद है. तेरा शक दूर हुआ या तुझे अब भी इन दोनो से कुछ पुच्छना है. अरे अपना पहाड़ जैसा मूह खोलने के पहले, एक बार मुझसे तो पुच्छ लेती कि, प्रिया पुनीत की गर्लफ्रेंड है या नही. वो मेरा भाई है, क्या मुझे उसके बारे मे इतना भी पता नही होगा.”

बरखा की ये बात सुनकर, नेहा की बोलती ही बंद हो गयी थी और अब प्रिया की जगह, उसका सर शरम से झुक गया था. वही हीतू ने मुस्कुरा कर, अपने गाल को सहलाते हुए बरखा से कहा.

हीतू बोला “नेहा को यकीन हो या ना हो. मुझे तो प्रिया की इस हरकत से पूरा यकीन हो गया है कि, पुनीत ही प्रिया का बाय्फ्रेंड है. मैं अपनी ग़लती के लिए तुम सब से माफी माँगता हूँ. अच्छा हुआ कि, पुनीत की दो ही चाहने वाली यहाँ थी. यदि एक दो और होती तो पता नही आज मेरा क्या हाल होता.”

हीतू की ये बात सुनकर, हम सबको हँसी आ गयी. इसके बाद हीतू ने मुझे अपना परिचय दिया. हीतू उसके प्यार का नाम था. उसका असली नाम हितेश था. उसके साथ थोड़ी देर की बात चीत से ही समझ मे आ गया था कि, वो बहुत मिलन-सार, हस्मुख और दिल का साफ लड़का है.

उसने किसी भी बात को अपने दिल से नही लगाया था और मेरे साथ भी बड़े प्यार से बात कर रहा था. आपस मे परिचय होने के बाद, हम सब वही एक कॉफी हाउस मे कॉफी पीने चले गये.

कॉफी पीने के बाद, मैने बरखा को बताया कि, हम प्रिया के घर जा रहे है. मैं प्रिया के घर से शाम को शिखा दीदी के पास आउगा. इसके बाद मैं प्रिया के साथ उसके घर वापस आ गया.

घर आकर प्रिया सीधे पद्मिमनी आंटी से जाकर लिपट गयी. पद्मि नी आंटी प्रिया को इतना खुश देख कर हैरान रह गयी. लेकिन मैं प्रिया की इस खुशी को समझ सकता था. प्रिया को खुश देख कर मुझे भी बहुत सुकून मिल रहा था.

थोड़ी देर आंटी से बात करने के बाद मैं अपने कमरे मे आ गया. क्योकि अब दोपहर के 2 बज चुके थे और अब किसी भी समय कीर्ति का कॉल आ सकता था. मुझे अपने कमरे मे आए अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि, कीर्ति का कॉल आने लगा.

कीर्ति का कॉल देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैने खुशी खुशी उसका कॉल उठाते हुए कहा.

मैं बोला “तो मेडम को मुझसे बात करने का समय मिल ही गया.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति खिलखिलाने लगी. वो समझ गयी थी कि, मैं सुबह मुझसे बात ना करने की वजह से ऐसा बोल रहा हूँ. इसलिए उसने अपनी सफाई देते हुए कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी जान, तुम कल बहुत थक गये थे और हम रात को देर तक बात भी करते रहे थे. इसलिए मैने सोचा कि आज तुमको आराम कर लेने दिया जाए. क्योकि आज तुमको हॉस्पिटल भी नही जाना था.”

मैं बोला “बड़ी आई मुझे आराम करने देने वाली. तुझे पता भी है कि, तेरी नितिका को प्रिया की तबीयत के बारे मे बताने से यहाँ कितना बड़ा हंगामा मच गया था.”

मैं तो ये बात कीर्ति को बताना चाहता था. लेकिन उसे ये बात पहले से ही पता थी. इसलिए उसने इस बात के लिए भी मुझसे माफी माँगते हुए कहा.

कीर्ति बोली “जान इस बात के लिए भी सॉरी. मुझे अभी अभी नितिका से पता चला कि, वहाँ क्या कुछ हो गया. ये तो मैं भी नही जानती थी कि, आंटी वहाँ पहुच कर इतना बड़ा हंगामा खड़ा कर देगी. लेकिन तुमको इतना ज़्यादा गुस्सा नही दिखाना चाहिए था.”

मैं बोला “तू बिल्कुल सही बोल रही है. मैने सच मे बहुत बड़ी ग़लती कर दी. मेरी जगह यदि तू होती और आंटी ने मुझे ये सब बोला होता तो, तू बड़े प्यार से सब सुन लेती.”

मेरी इस बात का मतलब समझ मे आते ही कीर्ति खिलखिला कर हँसने लगी और जल्दी से इस बात को बदलते हुए कहा.

कीर्ति बोली “जान ये सब बातें छोड़ो और ये बताओ, मौसी से शादी के बारे मे क्या बात हुई.”

मैं बोला “छोटी माँ को मैने सब कुछ बता दिया है. अब वो शादी मे देने वाला गिफ्ट सोच कर मुझे बता देगी.”

कीर्ति बोली “जान, मैने गिफ्ट सोच लिया है और मौसी को बता भी दिया है. अब देखो मौसी वो गिफ्ट देने के लिए तैयार भी है या नही.”

मैं बोला “तूने क्या गिफ्ट सोचा है.”

कीर्ति बोली “मैं अभी नही बताओगी. पहले मौसी को गिफ्ट देने के लिए तैयार हो जाने दो. उसके बाद बताउन्गी.”

मैने कीर्ति से गिफ्ट का पुच्छने की बहुत कोसिस की, मगर वो छोटी माँ के तैयार होने के पहले कुछ भी बताने को तैयार नही थी. मैने भी इस बात पर ज़्यादा बहस करना ठीक नही समझा और उस से कहा.

मैं बोला “ठीक है, तुझे जब ये बात बताना हो, तू बता देना. मगर अभी इतना तो बता दे कि, तू इस शादी मे आना चाहती या नही. क्योकि हमारे यहाँ से किसी के शादी मे शामिल ना होने की बात, शिखा दीदी को अच्छी नही लग रही है.”

कीर्ति बोली “शिखा दीदी का ऐसा सोचना भी सही है. लेकिन मौसी का कहना भी ग़लत नही है. वो चाह कर भी इस शादी मे शामिल नही हो सकती. रही मेरे आने की बात तो, अभी मेरी तबीयत कुछ ठीक सी नही है. इसलिए मैं सफ़र नही कर सकती.”

कीर्ति की तबीयत सही ना होने की बात सुनकर, मैने चिंता जाहिर करते हुए कहा.

मैं बोला “तेरी तबीयत को क्या हुआ. तूने डॉक्टर को दिखाया या नही.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे बुद्धू, मेरी तबीयत को कुछ नही हुआ. बस वो लड़कियों वाली परेशानी है. जो लड़कियों को हर महीने होती है.”

मैं कीर्ति की बात का मतलब समझ गया था कि, अभी उसके पीरियड्स चल रहे है. मुझे इस वजह से उसके आने मे कोई परेशानी नज़र नही आई. इसलिए मैने उस से, आने पर ज़ोर देते हुए कहा.

मैं बोला “तो इसमे कौन सी बड़ी बात हो गयी. क्या लड़कियाँ ऐसे मे कहीं आती जाती नही है. तुझे नही आना तो साफ मना कर दे. इसमे बहाने बनाने की ज़रूरत क्या है.”

कीर्ति बोली “तुमको तो हर बात खुल कर बताना पड़ती है. तुमको मालूम है कि, मेरे पेट मे पहले से ही परेशानी है और ऐसे समय मे मेरे पेट का दर्द कुछ ज़्यादा ही बढ़ जाता है. जिस वजह से मुझसे सही से चला भी नही जाता. अब यदि इसके बाद भी तुम चाहते हो कि, मैं वहाँ आ जाउ, तो चलो मैं वहाँ आ जाती हूँ. अब खुश ना.”

कीर्ति की इस बात ने मुझे सोच मे डाल दिया था. क्योकि उसका लिवर कमजोर था. ऐसे मे उसको सच मे इस समय परेशानी का सामना कर पड़ रहा होगा. बस यही बात सोचते हुए मैने उस से कहा.

मैं बोला “चल रहने दे. यदि तेरी तबीयत ठीक नही है तो, तुझे यहाँ आने की कोई ज़रूरत नही है. मैं तो सिर्फ़ इसलिए बोल रहा था, क्योकि इसी बहाने मैं तुझे देख भी लेता.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने मुस्कुरा कर मुझे समझाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे तो इसमे इतना दिल छोटा करने वाली क्या बात है. अब तुम्हारे वापस आने के बस 3 दिन ही तो बचे है और ये 3 दिन तो ऐसे ही चुटकी मे निकल जाएगे. उसके बाद तुम्हारा, जितना दिल करे, मुझे देखते रहना.”

कीर्ति की इस बात के बाद, मुझे उस से इस बारे मे कोई बहस करना सही नही लगा. क्योकि ये तो मैं भी जानता था कि, जितना मुस्किल मेरे लिए उसके बिना रह पाना हो रहा था. उतना ही मुस्किल उसके लिए भी मेरे बिना रह पाना हो रहा होगा.

लेकिन इस समय मुझे इन सब बातों से ज़्यादा, उसकी तबीयत की फिकर सताने लगी थी. ना जाने क्यो उसकी बात सुनकर, मेरा दिल घबरा सा रहा था. इसलिए मैने इस बात को यही ख़तम करते हुए उस से कहा.

मैं बोला “चल ठीक है, ये 3 दिन भी गुजर ही जाएगे. लेकिन तुझे ऐसे मे अभी स्कूल जाने की बिल्कुल ज़रूरत नही है. तू अभी घर पर रह कर ही आराम करना और अपनी तबीयत का पूरा ख़याल रखना. यदि कोई भी तकलीफ़ हो तो, फ़ौरन छोटी माँ को बताना और कुछ भी छुपाने की कोसिस मत करना. यदि तूने इसमे ज़रा सी भी लापरवाही की तो, मुझसे बुरा कोई नही होगा.”

कीर्ति बड़े गौर से मेरी ये सब बातें सुन रही थी. मैं जब अपनी बातें कह कर चुप हुआ तो, उसने मुझे छेड़ते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हाए मैं मर जावा. तुम मेरा कितना ख़याल रखते हो. यदि ये बात मौसी सुनेगी कि, उनका लल्ला, उनसे ज़्यादा मेरा ख़याल रखता है तो, वो मुझसे जलने लगेगी.”

कीर्ति की इस बात पर मैने चिड-चिड़ाते हुए उसे गुस्से मे बकना सुरू कर दिया. मगर कीर्ति का मुझे परेशान करना नही रुका. वो बहुत देर तक मुझे इन सब बातों मे उलझाए रही. इसके बाद हम थोड़ी देर यहाँ वहाँ की बात करते रहे. फिर 3:30 बजे के बाद, उसने रात मे बात करने की बात कह कर कॉल रख दिया.

मैं कीर्ति की तबीयत के बारे मे छोटी माँ से बात करना चाहता था. लेकिन कीर्ति ने ये कह कर रोक दिया था कि, उसकी तबीयत की चिंता करने की ज़रूरत नही है और यदि मैने इस बारे मे छोटी माँ से बात की तो, वो हमारे बारे मे क्या सोचेगी.

कीर्ति की इस बात की वजह से, मैं छोटी माँ से, उसकी तबीयत की बात नही कर सकता था. लेकिन अब मुझे उसकी तबीयत की चिंता सता रही थी और मैं इसी सोच मे खोया हुआ था कि, तभी किसी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखटा दिया.
 
154
अब निक्की तो घर पर थी नही और रिया पिच्छले कुछ दिनो से मेरे कमरे मे अकेले मे आई नही थी. ऐसे मे मैं प्रिया के सिवा किसी के आने की बात मैं सोच भी नही सकता था. मैने प्रिया के आने की उम्मीद के साथ दरवाजा खोल दिया.

लेकिन दरवाजा खोलते ही मेरी नज़र आने वाले पर पड़ी तो, मैं हैरान हुए बिना ना रह सका. मेरे सामने रोज की तरह, शाम की चाय लेकर निक्की खड़ी थी. मुझे अभी भी अपनी आँखों पर विस्वास नही हो रहा था और मैं हैरानी से उसे देख रहा था. उसने इस तरह मुझे हैरान होते देखा तो, मुस्कुरा कर मुझे टोकते हुए कहा.

निक्की बोली “क्या हुआ, क्या इतनी सी देर मे ही आप मुझे भूल गये है.”

निक्की की बात सुनते ही, मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी. मैने उसके अंदर आने के लिए रास्ता छोड़ा और उसे अंदर आने को कहा. जब वो अंदर आ गयी तो, उसने मुझे चाय दी और फिर खुद ही मेरी हैरानी को दूर करते हुए कहा.

निक्की बोली “आपको ज़्यादा हैरान होने की ज़रूरत नही है. ये घर मेरा है और मोहिनी आंटी की किसी बात की वजह से, ये घर मेरे लिए पराया नही हो जाएगा. उस समय सीरू दीदी और प्रिया की बात मान कर मुझे यहाँ से जाना पड़ा था. वरना मैं मोहिनी आंटी की बात की वजह से हरगिज़ यहाँ से जाने वाली नही थी.”

निक्की को घर मे फिर से वापस देख कर, मुझे भी बहुत खुशी हो रही थी. अभी मेरी निक्की से बात चल ही रही थी कि, तभी पद्‍मिनी आंटी भी आ गयी. उन्हो ने निक्की के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा.

पद्‍मिनी आंटी बोली “तूने अच्छा किया, जो वापस आ गयी. तेरे जाने से सारा घर सुना हो गया था.”

निक्की बोली “आंटी मैं तो जाना ही नही चाहती थी. लेकिन उस कमिनि की वजह से मुझे उस समय यहाँ से जाना भी पड़ा और फिर उसी की वजह से अभी यहाँ वापस आना भी पड़ा. क्योकि मैं उसकी आदत को अच्छी तरह से जानती हूँ. उसने मुझे हँसते हँसते यहाँ से भेज तो दिया था. लेकिन मेरे यहाँ से जाने के बाद खुद आँसू बहा रही होगी.”

निक्की की इस बात को सुनकर जहाँ आंटी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. वही मैं प्रिया और निक्की के बीच के इस अपनेपन को लेकर सोच मे पड़ गया. एक तरफ प्रिया ने ना चाहते हुए भी निक्की की खुशी के लिए उसको अपने घर से जाने दिया था तो, दूसरी तरफ निक्की भी प्रिया की खुशी का ख़याल करके फिर से वापस लौट आई थी.

उन दोनो के बीच का ये प्यार देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी थी. आंटी और निक्की के बीच प्रिया को लेकर अभी बातें चल ही रही थी कि, तभी नितिका अपने हाथ मे एक गिफ्ट लिए अंदर आ गयी. वो शायद प्रिया को ढूँढ रही थी. इसलिए उसने अंदर आते ही आंटी से कहा.

नितिका बोली “आंटी प्रिया कहाँ है. मैं उसे कब्से देख रही हूँ. वो कही नही दिख रही है.”

नितिका की बात सुन और उसके हाथ मे थमा गिफ्ट देख कर आंटी ने उस से कहा.
आंटी बोली “वो तो रिया के साथ बाजार तक गयी है. लेकिन तुम्हारे हाथ मे ये क्या है.”

आंटी की बात के जबाब मे नितिका ने मुस्कुराते हुए कहा.

नितिका बोली “आंटी, ये प्रिया के बर्त’डे का गिफ्ट है. मैं इसी को देने के लिए प्रिया को देख रही थी.”

नितिका की इस बात ने मुझे हैरान करके रख दिया. मुझे इतने दिनो मे किसी से भी, ये सुनने को नही मिला था कि, अभी कभी मे प्रिया का बर्थ’डे आने वाला है. ये बात सुनते ही, मैं अपने आप को रोक ना सका और मैने आंटी से कहा.

मैं बोला “आंटी मुझे किसी ने बताया नही कि, प्रिया का जनम दिन आने वाला है. कब है प्रिया का जनमदिन.”

मेरी बात सुनकर, आंटी और निक्की दोनो ही एक दूसरे को देखने लगे. वही नितिका ने मेरी बात सुनते ही, तपाक से जबाब देते हुए कहा.

नितिका बोली “अरे प्रिया का जनमदिन आने वाला नही है. वो तो थर्स्डे को निकल चुका है.”

नितिका की इस बात से मेरी हैरानी और भी ज़्यादा बढ़ गयी थी. क्योकि थर्स्डे को तो मैं प्रिया के घर मे ही था. फिर प्रिया के जनम दिन के बारे मे मुझे पता कैसे नही चला. मैं इसी बात को सोचते हुए आंटी से कहा.

मैं बोला “लेकिन आंटी उस दिन तो मैं यही पर था. फिर मुझे प्रिया के जनम दिन का कैसे पता नही चला.”

मेरी इस बात के जबाब मे, आंटी के कुछ कहने के पहले ही निक्की ने कहा.

निक्की बोली “उस दिन आप यहाँ नही थे. थर्स्डे को आप अमन भैया के काम से, अपने शहर गये हुए थे.”

निक्की के ये बात बोलते ही सारी बात मुझे समझ मे आ गयी और उस दिन की सारी बातें मेरे दिमाग़ मे घूमने लगी. तभी मुझे याद आया कि, उस दिन मैने रात को सबके साथ खाना खाया था. ये बात याद आते ही मैने निक्की से कहा.

मैं बोला “लेकिन उस दिन रात को तो, मैं आपके साथ ही हॉस्पिटल से घर आया था और फिर यहाँ आकर मैने सबके साथ खाना भी खाया था. मुझे अच्छे से याद है कि, तब भी किसी ने प्रिया के जनम दिन होने का कोई ज़िक्र नही किया था.”

निक्की बोली “वो इसलिए क्योकि प्रिया उस दिन आपके बिना बताए चले जाने से बहुत नाराज़ थी और उसने सबको आपको ये बात बताने से मना कर दिया था. यहाँ तक कि उसने मेहुल से भी साफ कह दिया था कि, वो भी आपसे इस बारे मे कोई बात नही करेगा.”

निक्की के ये बात बोलते ही, एक पल मे ही सारा माजरा मेरी समझ मे आ गया और मैं इसके आगे किसी से कुछ ना बोल सका. मगर मेरे मन मे इस बात को लेकर अफ़सोस ज़रूर था कि, प्रिया ने मेरे जनम दिन पर मुझे इतना कीमती गिफ्ट दिया था और मैं उसके जनम दिन मे उसे विश भी ना कर सका.

मैं अपने मन मे ये सब बातें सोच रहा था. लेकिन शायद आंटी को लगा कि, उन सबका इस तरह मुझसे प्रिया के जनम छुपाने की बात का, मुझे बुरा लग गया है. इसलिए उन्हो ने मुझे समझाते हुए कहा.

आंटी बोली “देखो बेटा, हम सब तुमसे ये बात छुपाना नही चाहते थे. लेकिन उस दिन प्रिया तुम्हारे बिना बताए जाने की बात से बहुत नाराज़ थी. फिर उसका जनम दिन भी था, ऐसे मे हमारे पास उसको खुश रखने के लिए, इस बात को तुम्हे ना बताने के सिवा कोई रास्ता नही था. जिसकी वजह से किसी ने भी उस दिन तुम्हारे सामने प्रिया के जनम दिन का कोई जिकर नही किया था.”

आंटी की इस बात के जबाब मे मैने मुस्कुराते हुए उन से कहा.

मैं बोला “आंटी, मेरे मन मे इस बात को लेकर कोई नाराज़गी नही है. मैं जानता हूँ कि प्रिया कितनी जिद्दी है. मैं तो बस इस बात को सोच रहा था कि, मैं यहाँ होते हुए भी उसको जनम दिन विश ना कर सका.”

मेरी बात सुनकर आंटी को भी तसल्ली हो गयी. उन्हो ने मेरी इस बात के जबाब मे मुझसे कहा.

आंटी बोली “कोई बात नही. अब जब नितिका प्रिया को उसके जनम दिन का गिफ्ट दे. तब तुम उसको जनम दिन विश कर देना और उस से अपना जनम दिन की बात छुपाने को लेकर झगड़ा भी कर लेना.”

आंटी की बात सुनकर, हम सब हँसने लगे. फिर आंटी ने नितिका को अपना गिफ्ट अभी वापस ले जाने को और मेरे सामने प्रिया को देने को कहा. नितिका भी सारी बात सुन चुकी थी. इसलिए वो अपना गिफ्ट वापस ले गयी. उसके जाने के बाद आंटी भी वहाँ से चली गयी और मैं निक्की से बात करने लगा.

कुछ देर मे प्रिया भी घर आ गयी. उसे जैसे ही पता चला कि, निक्की आई है और अभी मेरे कमरे मे है. वो सीधे भागते हुए मेरे कमरे मे आ गयी और निक्की से लिपट गयी. दोनो प्यार से एक दूसरे से झगड़ने लगी और मैं उनके इस झगड़े का मज़ा लेने लगा.

इसी बीच आंटी ने नितिका को उसका गिफ्ट लेकर मेरे कमरे मे भेज दिया. फिर सब वैसा ही हुआ, जैसा आंटी ने कहा था. प्रिया के जनम दिन की बात मुझे पता चलते ही मैं उस से इस बात को छुपाने के लिए झगड़ा करने लगा.

तभी आंटी भी वहाँ आ गयी. उन्हो ने भी ऐसा ही जाहिर किया, जैसे ये राज अभी अभी मेरे सामने खुला है. वो थोड़ी देर इसका मज़ा लेती रही और फिर हम दोनो मे सुलह करा दी. जिसके बाद प्रिया ने इस बात के लिए मुझे सॉरी कहा और मैने उसे जनम दिन विश किया.

कुछ देर सबका इसी तरह हँसी मज़ाक चलता रहा. फिर एक एक करके सब मेरे कमरे से चले गये. अब शाम के 6 बज चुके थे और मैं अपने कमरे मे अकेला था. ऐसे मे एक बार फिर मुझे कीर्ति की चिंता सताने लगी.

मैने कीर्ति का हाल चाल पता करने के लिए उसे कॉल लगा दिया और उस से उसकी तबीयत पुच्छने लगा. वो अपनी तबीयत ठीक होने की बात कह रही थी और मेरे इस तरह से उसकी तबीयत को लेकर परेशान होने की बात का मज़ाक उड़ा रही थी.

थोड़ी देर कीर्ति से बात करने के बाद मैने कॉल रख दिया. लेकिन अभी भी मुझे उसकी तबीयत की चिंता सता रही थी. ना जाने क्यो मेरा दिल उसकी इस बात पर यकीन नही कर पा रहा था कि, उसकी तबीयत ठीक है.

जब इस बात को लेकर मेरी उलझन बहुत ज़्यादा बढ़ गयी. तब मैने कीर्ति की बात को काटते हुए, छोटी माँ से ही इस बारे मे बात करने का फ़ैसला किया और उनको कॉल लगा दिया.

मगर मेरी किस्मत ने यहाँ धोका दे दिया और कॉल छोटी माँ की जगह कीर्ति ने उठाया. उसे शायद ये बात समझ मे आ गयी थी कि, उस से बात करने के बाद, मैने छोटी माँ को क्यो कॉल लगाया है.

इसलिए उसने इस बात को लेकर मुझसे झगड़ा करना सुरू कर दिया. उसका कहना था कि, मुझे उसकी बात पर विस्वास नही है. जिस वजह से मैं उसकी बात की सच्चाई पता करने के लिए छोटी माँ को कॉल कर रहा हूँ.

मैं उसे समझाने की बहुत कोसिस करता रहा. लेकिन अब वो मुझसे नाराज़ हो चुकी थी और मुझसे कोई बात ना करने की धमकी दे रही थी. जिसके बाद मुझे उसको यकीन दिलाने के लिए उसकी कसम खानी पड़ी कि, अब मैं ऐसा कुछ भी नही करूगा.

मेरे कसम खाने के बाद, उसका गुस्सा शांत हो गया. उसने मुझे यकीन दिलाया कि उसकी तबीयत ठीक है और फिर उसने रात को बात करने की बात कह कर कॉल रख दिया. मगर कीर्ति को लेकर, अभी भी ना जाने क्यो, एक अंजाना सा डर मुझे सता रहा था.

अपने इसी डर के साथ मैं 7 बजे शिखा के घर आ गया. लेकिन शिखा के घर आकर उस के साथ रहने से मेरे दिल को कुछ सुकून मिला. खाना पीना खाने के बाद, 10:30 बजे मैं उपर छत पर आ गया.

आज शिखा के घर मे शादी की कुछ रस्मे चल रही थी. जिस वजह से मुझे प्रिया के घर वापस लौटने मे ज़्यादा समय लगने वाला था. इसलिए मैने उपर आते ही कीर्ति को कॉल लगा दिया.
 
155
मगर मेरी किस्मत ने, मुझे यहाँ भी धोका दे दिया और छ्होटी मा की जगह, कॉल कीर्ति ने उठा लिया. उसे ये बात समझते ज़रा भी देर नही लगी की, उस से बात करने के बाद, मैने छ्होटी मा को क्यो कॉल लगाया है.

उसने मेरी इस बात को लेकर, मुझसे झगरा करना सुरू कर दिया और कहने लगी की, मुझे उस पर विस्वास नही है. इसलिए मैं उसकी बात की सक्चाई का पता करने के लिए छ्होटी मा को कॉल लगा रहा हू.

मैं उसे अपनी बात समझने की कोसिस करता रहा. लेकिन अब वो मेरी कोई भी बात सुनने के लिए तैयार ही नही थी और अब मुझसे बात ना करने की धमकी दे रही थी. जिस वजह से मुझे उसकी कसम खा कर, ये बात कहना पद गयी की, मैं अब ऐसा दोबारा नही करूगा.

मेरे कसम खाने के बाद, उसका गुस्सा शांत हो गया और अब वो मुझे इस बात का यकीन दिलाने लगी की, उसकी तबीयत पूरी तरह से ठीक है. फिर उसने छ्होटी मा के कभी भी आ जाने की बात कहते हुए, रात को बात करने की, बात कह कर कॉल रख दिया. मगर उसके कॉल रखने के बाद, मैं एक बार फिर उसकी सोच मे पद गया.

मैने उसे नाराज़ ना करने के लिए, उसकी तबीयत ठीक होने वाली बात मान तो ली थी. लेकिन मुझे अभी भी उसकी तबीयत को लेकर, एक अंजना सा दर सता रहा था. मैं बस अपने उसी दर को डोर करने के लिए छ्होटी मा को कॉल लगा रहा था. लेकिन कीर्ति ने अपनी कसम देकर, मेरे इस दर को डोर करने का ये रास्ता भी बंद कर दिया था.

मेरा कीर्ति की तबीयत को लेकर परेशान होना बेवजह नही था. सुबह से लेकर, अभी तक के हालत कुछ ऐसे थे, जो मुझे कीर्ति की तबीयत को लेकर परेशन होने के लिए मजबूर कर रहे थे. मगर उसकी ज़िद के आयेज मैं बिल्कुल बेबस था.

इन्ही सब बातों को सोचते सोचते बहुत समय बीट गया. मेरी बेबसी तो डोर नही हुई, मगर शिखा दीदी के घर जाने का समय ज़रूर हो गया. इसलिए मैं उठ कर तैयार हुआ और फिर आंटी को जाता कर 7 बजे शिखा दीदी के घर आ गया.

शिखा दीदी के घर आने के बाद, मैं ज़्यादातर समय उन्ही के साथ रहा. वो अपने घर मे चल रही शादी की तैयारी से जुड़ी छ्होटी छ्होटी बातें भी मुझे बता रही थी. उनका ये अपनापन देख कर, मेरा तनाव कुछ हद तक डोर हो गया और मैं भी उनकी बातों मे खुल कर शामिल हो गया.

नेहा भी वही पर थी और बरखा के साथ, घर के छ्होटे मोटे काम कर थी. उसने एक दो बार मेरी तरफ देखा. लेकिन मेरी उस से कोई बात नही हुई. इसी सब मे 10 बाज गये और फिर सब खाना खाने लगे. खाना पीना खाने के बाद, 10:30 बजे मैं उपर च्चत पर आ गया.

आज शिखा दीदी के घर मे शादी की कुछ रस्मे चल रही थी. जिस वजह से मुझे प्रिया के घर वापस लौटने मे कुछ ज़्यादा समय लगने वाला था यहा मैं कीर्ति से बात करने का समय निकल भी पता हू या नही, इसका भी पक्का पता नही था. इसलिए मैने उपर च्चत पर आते ही कीर्ति को कॉल लगा दिया.









मगर उपर छत पर आते ही, मुझे एक बार फिर से, कीर्ति की तबीयत की फिकर ने घेर लिया . इस खुशी के माहौल मे, मुझे उसकी कमी का अहसास, कुछ ज़्यादा ही सताने लगा था. मुझे कीर्ति से बात करने की इतनी बेचैनी पहले कभी नही थी, जितनी की आज थी.

लेकिन मैं ये भी अच्छी तरह से जानता था कि, अभी 10:30 बजे का समय, कीर्ति का अमि निमी के पास रहने का था और ऐसे मे मेरी कीर्ति से बात हो पाने की उम्मीद बहुत ही कम थी. फिर भी मैं बेचैनी के साथ, इस बात का इंतजार करने लगा कि, मेरे इस समय कॉल करने का अंजाम क्या होने वाला है.

मगर मेरे कॉल लगते ही, मेरा कॉल कट गया और वापस कीर्ति का कॉल आने लगा. जिसे देखते ही, मुझे इतनी खुशी हुई कि, मेरी आँखों मे नमी छा गयी. इस समय मुझे उस पर बहुत ज़्यादा प्यार आ रहा था. इसलिए मैने उसका कॉल उठाते ही, बड़े प्यार से कहा.

मैं बोला “आइ लव यू जान, आइ मिस यू सो मच. मुउउहह मुउउहह मुउउहह.”

ये कह कर मैं बेहताशा मोबाइल को चूमने लगा. उस समय मुझे वो मोबाइल नही, बल्कि कीर्ति का चेहरा नज़र आ रहा था. मैं बहुत ज़्यादा भावुक हो गया था और मेरी इसी भावुकता ने कीर्ति की कमी के अहसास को ऑर भी ज़्यादा बढ़ा दिया था.

मेरे लिए कीर्ति की इस कमी को सह पाना बहुत ही मुस्किल हो गया और मेरी आँखों की नमी, आँसू बनकर आँखों से बहने लगी. मैने इसे बहने से रोकने की बहुत कोसिस की, मगर अब इसको रोकना मेरे बस मे नही था.

जब मैने खुद को इसे रोकने मे बेबस पाया तो, मैने कॉल काट दिया और घुटनो के बल वही ज़मीन पर बैठ कर अपने पैरों मे, अपना चेहरा छुपा कर, फिर से अपने बहते आँसू रोकने की कोसिस करने लगा.

मगर मैं जितना अपने आँसू रोकने की कोसिस कर रहा था. मेरे आँसू उतनी तेज़ी से निकलते आ रहे थे. मैं खुद ही समझ नही पा रहा था कि, अचानक मेरे साथ ये सब क्या हो गया.

उधर कीर्ति को भी कुछ समझ मे नही आया कि, ये अचानक मुझे क्या हो गया और मैने क्यो कॉल काट दिया. वो मेरे कॉल काट देने के बाद से, लगातार कॉल लगाए जा रही थी. लेकिन जब मैने उसका कॉल नही उठाया तो, उसका कॉल आना बंद हो गया और फिर कुछ पल बाद, दूसरे मोबाइल पर उसका मेसेज आ गया.

कीर्ति का मेसेज
“तुम खफा क्यों हो मुझसे.?
तुम्हे मुझसे गिला क्या है.?

अचानक बेरूख़ी इतनी.
बताओ तो हुआ क्या है.?

मनाऊ किस तरह तुम को.?
मुझे इतना तो बतला दो.

तुम्हारे मुस्कुराने से.
मेरा दिल मुस्कुराता है.

तुम्हारे रूठ जाने से.
मेरा दिल टूट जाता है.

तुम्हारे नर्म होंटो पे.
गिले अच्छे नही लगते.

तुम्हारी आँख मे आँसू.
मुझे अच्छे नही लगते.
तुम्हारी आँख मे आँसू.
मुझे अच्छे नही लगते.”

मैने कीर्ति का मेसेज पढ़ा तो, मैने मजबूर होकर उसको कॉल लगा दिया. कीर्ति ने फ़ौरन ही मेरा कॉल उठा लिया और बहुत ज़्यादा बेचैन होते हुए कहा.

कीर्ति बोली “जान, क्या हुआ तुम्हे, तुम रो क्यो रहे हो.”

लेकिन इस समय मैं खुद अपने आप मे नही था. मैं तो बस अपनी आँखों की उस बेमौसम बरसात को रोकने की कोसिस कर रहा था, जो मेरी लाख कोसिसों के बाद भी, थमने का नाम नही ले रही थी.

मेरे आँसुओं के अहसास से उधर कीर्ति का दिल भी भर आया और उसकी आँखें भी बरसने लगी थी. उसने उन्ही बरसती आँखों के साथ मुझसे पुछा.

कीर्ति बोली “प्लीज़ जान, ऐसा मत करो, मुझे बताओ ना, तुम्हे क्या हुआ है. तुम्हे किस बात ने इतना दर्द दिया है जान. प्लीज़ बोलो जान.”

मगर मैं चाह कर भी उसकी किसी बात का जबाब नही दे पा रहा था. जब उसने देखा कि, मेरे उपर उसकी किसी बात का कोई असर नही पड़ रहा है तो, फिर उसने मुझे चुप कराने का आख़िरी रास्ता अपनाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “प्लीज़ जान, तुमको मेरी कसम, रोना बंद करो. अब यदि तुम्हारी आँख से एक आँसू भी गिरा तो, तुम्हारी कसम, मैं अभी अपनी जान दे दुगी.”

कीर्ति की इस बात ने किसी तीर की तरह मेरे दिल पर असर किया और मेरे आँसू खुद ब खुद थमना सुरू हो गये. कुछ पल बाद जब कीर्ति को अहसास हुआ कि, अब मेरे आँसू थम गये है तो, उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “जान, तुम्हे क्या हुआ. प्लीज़ कुछ बोलो, मेरा दिल बहुत घबरा रहा है.”

अब तक मैं खुद को कुछ हद तक संभाल चुका था. मैं कीर्ति को किसी बात के लिए परेशान नही करना चाहता था. इसलिए मैने बात को बदलते हुए कहा.

मैं बोला “मुझे कुछ भी नही हुआ. अब इस बात को छोड़ और ये बता कि, इतनी समय तूने कैसे वापस कॉल लगा दिया. तू तो इतनी समय अमि निमी के पास रहती है ना.”

लेकिन कीर्ति इतनी जल्दी बहल जाने वालो मे नही थी. उसने अपने सवाल को फिर से दोहराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मुझे बहलाने की कोसिस मत करो जान. जो पुच्छ रही हूँ, पहले उसका जबाब दो कि, तुम्हे क्या हुआ. तुम्हे किस बात ने इतना दर्द दिया है.”

मैं बोला “सच मे मुझे कुछ नही हुआ. बस तुझसे बात करते ही, पता नही क्यो, ये बेमौसम की बरसात सुरू हो गयी.”

मगर कीर्ति को अभी भी मेरी बात पर विस्वास नही हो रहा था. मुझे होने वाले किसी अंजाने से दर्द के अहसास ने उसे हिला कर रख दिया था. उसने मुझे अपनी कसम देते हुए कहा.

कीर्ति बोली “जान, तुम्हे मेरी कसम है. सच सच बताओ, तुम्हे क्या हुआ है.”

मैं कीर्ति को परेशान करना नही चाहता था. लेकिन मेरी समझ मे ही नही आ रहा था कि, मैं उस से क्या बोलूं और क्या ना बोलूं. मगर जब उसने फिर से अपनी कसम देते हुए, अपनी बात को दोहराया तो, मैने उसे समझाते हुए कहा.

मैं बोला “ये तेरी, हर बात पर कसम देने की आदत अच्छी नही है. मुझे सच मे कुछ नही हुआ है. बस तेरी कमी के अहसास और तेरी तबीयत की फिकर मे, ये बे-मौसम की बरसात हो गयी थी.”

मेरी इस बात को सुनते ही कीर्ति बिलखते हुए मुझसे कहने लगी.

कीर्ति बोली “जान, मुझे माफ़ कर दो. मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. मुझे अपनी तबीयत की बात तुमसे नही छुपाना चाहिए थी. मगर मुझे लगा कि, मेरी तबीयत की बात सुनकर तुम परेशान हो जाओगे. इसलिए मुझे ये बात तुमसे छुपाना पड़ गयी. लेकिन मैं ये नही जानती थी कि, मेरा ये बात छुपाना तुम्हे और भी ज़्यादा परेशान करके रख देगा.”

कीर्ति की ये बात सुनते ही, मैने बड़ी बेचैनी के साथ कहा.

मैं बोला “इन सब बातों को जाने दे. मुझे ये बता कि तुझे क्या हुआ और डॉक्टर. ने क्या कहा है.”

कीर्ति बोली “जान, इसमे ज़्यादा फिकर करने की कोई बात नही है. तुम्हे तो पता है कि, मेरा लिवर कमजोर है और ऐसे मे खाने पीने का, सही से ख्याल ना रखने की वजह से मुझे पीलिया (जॉंडिस) की शिकायत हो गयी है. डॉक्टर ने कहा है कि, एक हफ्ते मे मैं पूरी तरह से ठीक हो जाउन्गी.”

मैं बोला “तेरी तबीयत कब से खराब है.”

कीर्ति बोली “मेरी तबीयत सनडे से खराब है. उस दिन मैं आंटी का समान उपर रखवा रही थी. तभी मुझे चक्कर आ गया. मौसी ने डॉक्टर. को बुलाया तो, उसने मुझे पीलिया होना बताया. मैने ही मौसी और आंटी को, ये बात तुम्हे बताने से मना की थी. इसलिए किसी ने मेरी तबीयत के बारे मे कुछ नही बताया.”

कीर्ति की इस बात को सुनने के बाद, मेरे दिमाग़ मे सनडे से लेकर अभी तक की सारी बातें घूमने लगी और मैने उस से पुछा.

मैं बोला “तो क्या तूने सनडे को मुझसे झगड़ा करना भी इसी बात को छुपाने के लिए किया था.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति खामोश ही रही. उसने जब हां या ना मे भी कोई जबाब नही दिया तो, मैने उस से फिर पुछा.

मैं बोला “बोलती क्यो नही. क्या तूने सनडे को झगड़ा भी इसी बात की वजह से किया था.”

कीर्ति बोली “नही, उस झगड़े की वजह दूसरी थी. लेकिन वो मैं तुम्हे यहाँ आने पर ही बताउन्गी. प्लीज़ उसके बारे मे अभी कुछ मत पुच्छना.”

मैं बोला “ठीक है, मैं उसके बारे मे अभी कुछ नही पुछ्ता. लेकिन क्या अब मैं तेरी तबीयत के बारे मे छोटी माँ से बात कर सकता हूँ.”

कीर्ति बोली “इसकी क्या ज़रूरत है. मैं तुम्हे सब कुछ, सच सच बता तो रही हूँ. यदि इसके बाद भी, तुम किसी से मेरी तबीयत का पुछोगे तो, वो ये ही सोचेगे कि, मैने खुद ही ये बात तुमको बताने से, सबको रोका और फिर खुद ही तुमको ये बात बता दी. अब तुम ही सोचो ऐसे मे वो मेरे बारे मे क्या सोचेगे.”

कीर्ति की इस बात ने मुझे सोच मे डाल दिया. उसका ये कहना भी सही था. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, उसने ऐसा क्या कहा कि, सब ये बात मुझसे छुपाने को तैयार हो गये. इसलिए मैने बात को बदलते हुए उस से कहा.

मैं बोला “चल, मैं किसी से कुछ नही पुछ्ता. लेकिन एक बात बता कि, तूने सबको ऐसा क्या बोल दिया कि, किसी ने मुझे इस बात की भनक भी नही पड़ने दी.”

कीर्ति बोली “मैने किसी से कुछ खास नही कहा. मैने सिर्फ़ इतना कहा कि, अभी तुम वहाँ अंकल को लेकर परेशान हो. ऐसे मे यहाँ की किसी बात से तुमको परेशान करना या फिर किसी सोच मे डालना अच्छा नही होगा. इसलिए मेरी तबीयत के बारे मे तुम्हे कुछ ना बताना ही बेहतर होगा. मेरी ये बात उन दोनो को सही लगी और उन ने ऐसा करने की हामी भर दी.”

“लेकिन उनको अमि निमी की चिंता थी कि, अमि निमी मे से कोई भी, ये बात तुमको बता सकती है. मगर मेरे पास इसका भी रास्ता था. मैने अमि निमी से कहा कि, यदि वो मेरी तबीयत की बात तुमको बताएगी तो, तुम इलाज के लिए मुझे भी वहाँ बुला लोगे और फिर उन दोनो को अकेले यहाँ रहना पड़ेगा. मेरी इस बात को उन दोनो ने सच समझ लिया और इसलिए उन दोनो मे से किसी ने भी तुमको ये बात नही बताई.”

कीर्ति की अमि निमी वाली बात सुनकर, पहली बार मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आई. लेकिन अभी भी मेरे मन मे कुछ सवाल उठ रहे थे. इसलिए मैने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कीर्ति से कहा.

मैं बोला “लेकिन जब तेरी तबीयत खराब है तो, जाहिर सी बात है कि, तू अभी स्कूल नही जा रही होगी, तो फिर कल रात को आंटी ने तुझसे ये क्यो कहा था कि, तू इतनी रात तक फोन पर क्यो लगी हुई है. क्या कल तुझे स्कूल नही जाना है.”

मेरी बात सुनकर कीर्ति को भी हँसी आ गयी. उसने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “तुम फोन पर सिर्फ़ सुन सकते हो, देख थोड़ी ही सकते हो. आंटी ने कल जब मुझसे ये बात कही थी, तब मेरी दवाइयों की तरफ इशारा करके ये बात बोली थी. जिसका मतलब था कि, तेरी तबीयत खराब है, फिर तू इतनी रात तक फोन पर बात क्यों कर रही है.”

मैं बोला “तुम सबने मिलकर, अच्छा झूठ बोला था.”

मेरी बात के जबाब मे कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हां बोला तो था, लेकिन इसका कोई फ़ायदा कहाँ हुआ. तुमने हमारा झूठ पकड़ तो लिया ना. लेकिन मेरी समझ मे ये बात नही आ रही कि, अपनी तबीयत ठीक ना होने की बात तो मैने खुद तुम्हे बताई थी. फिर तुमको ये क्यो लग रहा था कि, मेरी तबीयत को कुछ ऑर हुआ है और मैं तुमसे कुछ छुपा रही हूँ.”

मैं बोला “जब तूने मुझे अपनी तबीयत ठीक ना होने की बात बोली और मुझे छोटी माँ से इस बारे मे बात करने से रोक दिया. तब मेरा ध्यान पिच्छली बातों पर गया. जैसे आंटी का देर रात को तेरे कमरे मे आना, जबकि आंटी रात को जल्दी सो जाती है. फिर छोटी माँ का उस समय उपर से आकर कॉल उठाना, जिस समय सब स्कूल गये होते है. फिर छोटी माँ के मोबाइल पर तेरा कॉल उठाना. जो ये बताने के लिए काफ़ी था कि, छोटी माँ अपना मोबाइल तेरे पास भूल गयी है. बस इन्ही बातों की वजह से मुझे लग रहा था कि, तेरी तबीयत को ज़रूर कुछ ओर ही हुआ है, जो तू मुझसे छुपा रही.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने चौुक्ते हुए कहा.

कीर्ति बोली “बाप रे, तुम कहाँ कहाँ अपना दिमाग़ दौड़ा रहे थे. मैने तो इन सब बातों को सोचा भी नही था.”

अभी कीर्ति इस से आगे कुछ बोल पाती कि, तभी मुझे सीडियों से किसी के आने की आहट सुनाई दी. मैने ये बात कीर्ति को बताई और अपना मोबाइल जेब मे रख कर, वही रखा अख़बार देखने लगा.

कुछ ही देर मे मुझे, बरखा चाय लेकर उपर आती हुई नज़र आई. उसे देखते ही मैं उठ कर खड़ा हो गया और उसके हाथ मे चाय देख कर उस से कहा.

मैं बोला “दीदी, इसकी क्या ज़रूरत थी. क्या मैं कोई बाहर वाला हूँ. जो मेरे लिए आप इतनी तकलीफ़ उठा रही है.”

मेरी बात के जबाब मे बरखा ने मुस्कुराते हुए मुझे चाय दी और मुझसे कहा.

बरखा बोली “मेरे भाई, तुम कोई बाहर वाले नही हो और यदि तुमको ये सब तकलीफ़ उठाना लगता है तो, मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो. अपने भाई के लिए मैं ये तकलीफ़ बार बार उठाने को तैयार हूँ. अब देख क्या रहे हो, जल्दी से चाय पी लो. वरना चाय ठंडी हो जाएगी और मुझे फिर से चाय गरम करने की तकलीफ़ उठाना पड़ेगी”

ये कह कर वो हँसने लगी और उसके साथ साथ मैं भी हंसते हुए चाय पीने लगा. बरखा भी मेरे पास आकर बैठ गयी. फिर मेरी उस से नीचे चल रही रस्मों के बारे मे बात होने लगी. अभी हमारी बात चल ही रही थी की, तभी मेरा मोबाइल बजने लगा.

मैने मोबाइल निकाल कर देखा तो, प्रिया का कॉल आ रहा था. मैने ये बात बरखा को बताई और प्रिया का कॉल उठाते हुए उस से कहा.

मैं बोला “हां, बोलो प्रिया.”

प्रिया बोली “ज़रा समय देखो 11 बज गया है. तुम अभी तक घर क्यो नही आए. मैं कब से तुम्हारे आने का इंतजार कर रहा हू.”

मैं बोला “सॉरी प्रिया, मैं तुमको ये बात बताना भूल गया. आज यहाँ पर शादी की कुछ रस्मे चल रही है. इसलिए मुझे आने मे देर मे हो जाएगी. तुम मेरे आने का इंतजार मत करो और सो जाओ.”

प्रिया बोली “कोई बात नही, तुम्हे आना हो, तुम तब आ जाना. मैं जाग रही हूँ.”

मैं बोला “प्रिया, तुम क्यो परेशान होती हो. मैं जब आउगा तो मेहुल या निक्की को जगा लुगा. तुम बेकार मे परेशान मत हो और आराम करो.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने हंसते हुए कहा.

प्रिया बोली “उन सबको जगाने का कोई फ़ायदा नही है. क्योकि राज भैया, मेहुल, और नितिका सब लोग निक्की के साथ डॉक्टर. अमन के घर गये है. आज वो लोग रात भर वही पर रहेगे. घर मे मैं और रिया दीदी बस है. रिया दीदी भी सिर्फ़ मेरी वजह से रुकी है, वरना वो भी चली गयी होती.”

मुझे प्रिया ये बात सुनकर, कुछ हैरानी ज़रूर हुई. क्योकि ना तो मेहुल ने मुझे इस बारे मे कुछ बताया था और ना ही निक्की ने कुछ बताया था. फिर भी मैने प्रिया को समझाते हुए कहा.

मैं बोला “प्रिया यदि ऐसी बात है तो, मैं यही दीदी के घर मे रुक जाउन्गा. तुम्हे मेरी फिकर करने की ज़रूरत नही है.”

लेकिन प्रिया ने मेरी इस बात पर नाराज़गी जताते हुए कहा.

प्रिया बोली “मैं घर मे सिर्फ़ तुम्हारे वापस आने की वजह से रुकी हूँ. वरना मैं भी निक्की के साथ ही चली गयी होती और तुम वापस आने को मना कर रहे हो. यदि ऐसा है तो, तुम अभी घर वापस आओ और मुझे भी अपने साथ लेकर चलो. अब मैं शिखा दीदी के ही रहूगी.”

मैं बोला “देखो प्रिया, ऐसी ज़िद नही करते. तुम्हे अभी आराम करने की ज़रूरत है. यदि तुमने मेरी बात नही मानी तो, मैं अभी निशा भाभी को कॉल करके तुम्हारी शिकायत कर दूँगा.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुझे धमकाते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम क्या निशा भाभी को कॉल करोगे. मैं खुद ही उनको कॉल करके कह देती हूँ कि, तुम मेरा ज़रा भी ख़याल नही रख रहे हो और यदि अब मेरी तबीयत खराब होती है तो, वो तुमको सीधा जैल करवा दे.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मैं हँसे बिना रह सका. मैं जानता था कि, वो जिद्दी है. इसलिए मैने उसकी ज़िद के सामने अपने हथियार डालते हुए कहा.

मैं बोला “ठीक है प्रिया. मैं आने के पहले तुमको कॉल लगा कर देखुगा. यदि तुम जागती रही तो, मैं घर वापस आ जाउन्गा. लेकिन तुम भी वादा करो कि, यदि तुम्हे नींद आएगी तो, तुम ज़बरदस्ती जागने की कोसिस नही करोगी और सो जाओगी.”

प्रिया बोली “ओके, मैं वादा करती हूँ कि, यदि मुझे नींद आती है तो, मैं ज़बरदस्ती जागने की कोसिस नही करूगी और सो जाउन्गी. फिर तुम कहाँ पर रुके हो, इस बात की भी तुमसे कोई सीकायत नही करूगी.”

इसके बाद मेरी प्रिया से थोड़ी बहुत बातें फिर उसने कॉल रख दिया. प्रिया के कॉल रखने के बाद मैने सारी बातें बरखा को बताई तो उसने मुस्कुराते हुए कहा.

बरखा बोली “ये लड़की खुद तो पागल है और तुमको भी पागल बना कर ही छोड़ेगी.”

बरखा की इस बात पर मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “क्यो दीदी, आपको प्रिया की किस बात मे उसका पागलपन नज़र आ रहा था.”

बरखा बोली “क्यो क्या तुमने उसका हाथ नही देखा था. अपने हाथ मे कितना बड़ा “पी” बना कर रखी है. अब इसे पागलपन नही तो और क्या कहेगे. क्या कोई लड़की अपने झूठे बाय्फ्रेंड के लिए ऐसी हरकत करती है.”

ये कह कर बरखा गौर से मेरा चेहरा देखने लगी. जैसे कि जानना चाहती हो कि कहीं ये सब सच तो नही है. ना जाने क्यो, मगर मैं सच बात बताने से अपने आपको ना रोक सका और मैने बरखा से कहा.

मैं बोला “दीदी, मैं उसका झूठा बाय्फ्रेंड ज़रूर हूँ. लेकिन उसके दिल मेरे लिए जो प्यार है, वो झूठा नही है.”

मेरी बात सुनकर, बरखा कुछ देर के लिए सोच मे पड़ गयी. फिर कुछ सोचते हुए उसने कहा.

बरखा बोली “इसका मतलब तो ये हुआ कि, दीदी कल जो तुम्हारे और प्रिया के एक दूसरे को पसंद करने वाली बात बोल रही थी, वो सच है.”

मैं बोला “हां, उनकी वो बात आधी सच है. प्रिया मुझे प्यार करती है. लेकिन मैं किसी ऑर लड़की को प्यार करता हूँ.”

मेरी बात सुनते ही बरखा के चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया और उसने परेशान होते हुए मुझसे पुछा.

बरखा बोली “क्या प्रिया इस बात को जानती है.”

मैं बोला “हां दीदी, प्रिया इस बात को अच्छी तरह से जानती है. उसे जिस दिन से ये बात पता चली कि, मेरी कोई गर्लफ्रेंड है. उस दिन के बाद, उसने कभी मेरे सामने अपने प्यार की बात नही रखी. वो सिर्फ़ मुझसे हमेशा दोस्ती रखना चाहती है और आज भी इसी रिश्ते से वो मुझे अपना बाय्फ्रेंड बना कर नेहा से मिलाने ले गयी थी.”

मेरी बात सुनकर बरखा ने हैरान होते हुए कहा.

बरखा बोली “जब वो सब जानती है तो फिर उसने अपना हाथ क्यो काटा.”

मैं बोला “ये तो मैं भी नही जानता कि उसने ये हरकत कब की है. बल्कि उसके हाथ का “पी” भी मैने आज आपके सामने ही देखा है.”

मेरी इस बात ने बरखा को ऑर भी ज़्यादा हैरान कर दिया. उसने चौुक्ते हुए मुझसे कहा.

बरखा बोली “आज ही देखा से तुम्हारा क्या मतलब है. यदि तुमने उसके हाथ का “पी” पहले कभी नही देखा तो, फिर तुम्हे इस बारे मे कैसे पता कि, उसने अपने हाथ मे “पी” बना कर रखा है.”

मैं बोला “मुझे तो ये बात निशा भाभी ने बताई थी. मगर ये तो मैने भी नही सोचा था कि, उसने इतनी बुरी तरह से अपना हाथ काटा है.”

बरखा बोली “क्या तुम्हारी गर्लफ्रेंड प्रिया के बारे मे जानती है.”

मैं बोला “हां दीदी, उसे प्रिया के बारे मे सब कुछ पता है. मैने तो प्रिया का झूठा बाय्फ्रेंड बनने से पहले सॉफ मना कर दिया था. लेकिन मेरी गर्लफ्रेंड ने कहा कि, प्रिया दोस्ती के रिश्ते से ये बात मुझसे बोल रही है और ऐसे मे मुझे उसकी बात मान लेना चाहिए. इसलिए आज मैने प्रिया के बिना पुच्छे ही उसके बाय्फ्रेंड बनने की बात की हां कर दी थी.”

मेरी बात सुनकर, बरखा एक बार फिर सोच मे पड़ गयी. उसका चेहरा देख कर ऐसा लग रहा था कि, जैसे वो किसी बात को लेकर उलझन मे हो. लेकिन फिर अचानक ही उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और उनसे मुझसे कहा.

बरखा बोली “तुम सच मे बहुत किस्मत वाले हो. जिसे दो इतना प्यार करने वाली लड़कियाँ मिली है. एक प्रिया, जो ये जानते हुए भी कि, तुम उसके नही हो सकते, तुम्हे हमेशा अपना दोस्त बनाए रखना चाहती है तो, दूसरी वो लड़की जो प्रिया के बारे मे सब कुछ जानते हुए भी, तुम्हे उसके पास जाने से नही रोकती. ऐसा आज के समय मे बहुत कम देखने को मिलता है और सबसे बड़ी बात ये है कि, उन दोनो के अंदर एक दूसरे के लिए कोई जलन की भावना नही है. जो कि एक ही लड़के को प्यार करने वाली दो लड़कियों के बीच मे अक्सर देखने को मिलती है.”

बरखा की ये बात सुनकर, मुझे ना जाने क्या सूझा कि, मैने बरखा की बात को बीच मे ही काटते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी ये भी तो हो सकता है कि, उन दोनो का प्यार ही सच्चा ना हो.”

मेरी बात सुनकर, बरखा ने मुझ पर भड़कते हुए कहा.

बरखा बोली “चुप कर बदतमीज़. एक तो वो दोनो तुझे प्यार करती है और तू है कि उनके प्यार का मज़ाक उड़ा रहा है.”

मैं बोला “दीदी, आप ही तो बोली कि, उन दोनो के अंदर एक दूसरे के लिए कोई जलन की भावना नही है. जो कि एक ही लड़के को प्यार करने वाली दो लड़कियों के बीच मे अक्सर देखने को मिलती है. अब इसका मतलब तो ये ही हुआ कि, उनका प्यार सच्चा नही है. तभी तो दोनो मे ज़रा भी जलन नही है.”

मेरी इस बात को सुनकर, बरखा ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर मुझे समझाते हुए कहा.

बरखा बोली “ऐसा नही मेरे भाई. प्यार मे जलन होना, एक स्वाभाविक सी बात है. लेकिन प्यार की कसोटी जलन नही, बल्कि विस्वास और समर्पण होती है. मुझे इन दोनो लड़कियों मे ये ही नज़र आ रहा है. इसलिए उन दोनो के अंदर एक दूसरे को लेकर ज़रा भी जलन नही है.”

बरखा की ये बात मुझे समझ मे तो आ गयी. लेकिन मुझे ये समझ मे नही आया कि उसे किसमे क्या नज़र आया और क्यो नज़र आया. इसलिए मैने बरखा से पुछा.

मैं बोला “दीदी मुझे समझ मे नही आया कि, आपने किसमे क्या देख लिया और कैसे देख लिया.”

बरखा ने मेरी इस बात पर मुस्कुराते हुए कहा.

बरखा बोली “मेरे प्यारे भाई, इसमे मैने ना समझ मे आने वाली कौन सी बात कह दी. सीधी सी बात तो है कि, एक तरफ तुम्हारी गर्लफ्रेंड ने प्रिया के बारे मे सब कुछ जानते हुए भी, तुम्हे उस से दूर रखने की बात नही सोची, जिसका मतलब है कि, उसे तुम पर पूरा विस्वास है.”

“वही दूसरी तरफ प्रिया तुम्हारे बारे मे सब कुछ जानते हुए भी, तुमसे हमेशा दोस्ती बनाए रखना चाहती है, जिसका मतलब है कि, तुम उसके साथ जिस रूप मे भी रहो, वो उसी रूप मे तुम्हारे साथ रहना चाहती है. ये उसका तुम्हारे लिए समर्पण है. सच्चे प्यार की विस्वास और समर्पण से बढ़ कर कोई कसोटी नही है.”

बरखा की ये बात सुनकर मैं सन्न सा रह गया. अजय, अमन और निशा भाभी ने सिर्फ़ प्रिया के प्यार को समझने के लिए एक घंटे से ज़्यादा का समय लगा दिया था. फिर भी वो किसी नतीजे पर नही पहुच पाए थे. वही बरखा ने कीर्ति और प्रिया दोनो के प्यार को कुछ ही देर मे, बड़ी सरलता से परिभाषित करके रख दिया था.

मैं अभी हैरानी से बरखा को देख ही रहा था कि, तभी हमे सीडियों से किसी के आने की हलचल सुनाई दी. जिसे सुनकर हमारा ध्यान बातों पर से हट गया और हम दोनो सीडियों की तरफ देखने लगे.
 
156
कुछ ही देर मे शिखा दीदी भागती हुई उपर आई. दीदी को देखते ही हम दोनो उठ कर खड़े हो गये. शिखा दीदी के पिछे पिछे नेहा और उसकी कुछ सहेलियाँ भी क़हक़हे लगाती उपर आ गयी.

शायद शिखा दीदी उनसे ही भाग कर उपर आई थी. लेकिन जब उन्हो ने उनको भी अपने पिछे उपर आते देखा तो, वो जल्दी से आकर बरखा के पिछे खड़ी हो गयी. उन्हे इस तरह से च्छुपते देख, बरखा ने शिखा दीदी से पुछा.

बरखा बोली “क्या हुआ दीदी, आप इस तरह से भाग क्यो रही है.”

बरखा की बात सुनकर, शिखा दीदी ने बड़ी ही मासूमियत से उसकी बात का जबाब देते हुए कहा.

शिखा बोली “देख ना, ये सब मिल कर मुझे परेशान कर रही है.”

शिखा की इस बात पर बरखा ने अपनी नज़रे तिरछी करते हुए, नेहा से पुछा.

बरखा बोली “क्या बात है. तुम सब मिलकर मेरी दीदी को क्यो परेशान कर रही हो.”

नेहा बोली “हम परेशान थोड़ी कर रहे है. हम तो बस दीदी से उनकी और जीजू की लव स्टोरी के बारे मे पुच्छ रहे थे. लेकिन ये हम लोगों को चकमा देकर यहाँ उपर भाग आ गयी.”

बरखा बोली “चलो, किसी को कुछ नही पुछ्ना. सब जाकर अपना काम करो और अब दीदी से कोई कुछ नही पुछेगा.”

लेकिन नेहा ने बरखा की इस बात को काटते हुए कहा.

नेहा बोली “बड़ी आई दीदी की चमची. हम तो आज सब कुछ पुच्छ कर ही रहेगे. हम भी देखते है, तू हमे कुछ पुच्छने से कैसे रोकती है.”

नेहा की इस बात पर एक बार फिर सभी लड़कियाँ क़हक़हे लगाने लगी. लेकिन उनकी इस बात से बरखा की भौहें तन गयी. उसने उन सबको घूर कर देखते हुए कहा.

बरखा बोली “लगता है, तुम लोग ऐसे नही मनोगी. रूको, अब मैं तुम लोगों को बताती हूँ कि, मैं तुम लोगों को कुछ पुच्छने से कैसे रोकती हूँ.”

ये कह कर वो, नेहा और उसकी सहेलियों की तरफ बढ़ने लगी. लेकिन बरखा को गुस्से मे अपनी तरफ़ आते देख कर, सभी लड़कियों ने क़हक़हे लगाते हुए, नीचे की तरफ दौड़ लगा दी.

बरखा का शरीर आत्लीट था और ये सच था कि, यदि वो उन मे से किसी का हाथ भी पकड़ लेती तो, सब मिलकर भी बरखा से उसका हाथ नही छुड़ा पाती. इसलिए सब ने वहाँ से भाग जाने मे ही अपनी भलाई समझी थी.

उन सबके नीचे चले जाने के बाद, बरखा ने हमारे पास वापस आते हुए, शिखा से कहा.

बरखा बोली “दीदी, जब तक आपका नीचे से बुलावा नही आ जाता. तब तक आप यही बैठो, वरना वो नेहा कमिनि फिर आपको परेशान करेगी. उसे आज कल बहुत मस्ती सूझ रही है. ज़रा शादी हो जाने दो, फिर मैं उसकी सारी मस्ती अच्छे से निकालती हूँ.”

बरखा को इस तरह नेहा की हरकत पर चिड़चिड़ाते देख कर, मैं अपनी हँसी ना रोक सका और मैने अपनी जगह पर बैठते हुए धीरे से बुदबूदाया.

मैं बोला “हिट्लर दीदी.”

ये बात मैने बहुत धीरे से कही थी. फिर भी ये बात शिखा दीदी और बरखा को सुनाई दे गयी. जहाँ मेरी ये बात सुनकर शिखा दीदी मुस्कुराने लगी. वही मेरी इस बात को सुनकर, बरखा ने मेरे उपर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

बरखा बोली “तुमसे उन लोगों को दीदी को परेशान करने से रोकते तो बना नही और मैने रोका तो, अब मेरा मज़ाक बना रहे हो. बड़े अच्छे भाई हो तुम और तुम्हे अपनी बहनो का कितना ज़्यादा ख़याल है.”

लेकिन मैं कुछ मज़ाक के मूड मे था और मैने बरखा की इस बात का जबाब भी मजाकिया अंदाज़ मे देते हुए कहा.

मैं बोला “जब आप झासी की रानी बन कर, दीदी के सामने खड़ी थी तो, किसकी मज़ाल थी कि, वो दीदी को कुछ कह सके. फिर भला ऐसे मे मैं बीच मे कूद कर क्या करता.”

हमे लगा कि, वो मेरे इस मज़ाक के जबाब मे, फिर से कुछ बोलेगी. लेकिन वो सर झुकाए चुप चाप बैठी रही. जब उसने कोई बात नही की और ऐसे ही मूह फूला कर बैठी रही तो, शिखा दीदी ने उसे समझाते हुए कहा.

शिखा बोली “अरे तुम भैया की इतनी सी बात का बुरा क्यो मानती हो. वो तो तुमसे सिर्फ़ थोड़ा सा मज़ाक कर रहे थे. यदि तुम ऐसे ही मूह फूला कर बैठी रही तो, भैया को बुरा लगेगा.”

शिखा दीदी की इस बात पर ना जाने क्यो, बरखा की आँखे छलक आई और उसने भड़कते हुए कहा.

बरखा बोली “मैं क्यूँ इसकी किसी बात का बुरा मानने लगी और मैं कौन सा इसकी सग़ी बहन हूँ, जो इसे मेरे मूह फूलने का बुरा लगेगा.”

बरखा की इस बात को सुनते ही शिखा दीदी को एक झटका सा लगा. उन्हे समझ मे नही आया कि, ये अचानक बरखा को क्या हो गया. उन्हो ने फ़ौरन मेरी तरफ देखा कि, कही मुझे बरखा की ये बात बुरी तो नही लग गयी.

लेकिन मैं बरखा की ये बात सुनकर भी मुस्कुराता ही रहा और शिखा दीदी को भी चुप रहने का इशारा कर दिया. मुझे बरखा की इस बात का ज़रा भी बुरा नही लगा था. क्योकि अब मैं उसकी इन बेसर पैर की बातों का मतलब अच्छी तरह से समझ चुका था.

मैं भी कुछ दिन पहले ऐसे ही एक दौर से गुजरा था. जब मुझे छोटी माँ की कमी का अहसास हो रहा था और फिर मैं उनसे बिना बात के ही झगड़ा करने लगा था. ऐसा ही कुछ आज शायद बरखा के साथ भी हो रहा था. इस खुशी के मौके पर उसे शायद अपने भैया की कमी बहुत अखर रही थी.

मगर चाहते हुए भी वो अपनी इस बात को किसी के सामने जाहिर नही कर पा रही थी. इसलिए उसने मेरी एक ज़रा सी बात को इतना बड़ा बना दिया था और मेरे अंदर अपने उस भाई को तलाश करने की कोसिस कर रही थी, जो अब इस दुनिया मे नही था.

शायद ये दुनिया की हर बहन की खूबी होती है कि, वो चाहे कितनी ही बड़ी और समझदार क्यो ना हो जाए. लेकिन उसके अंदर एक बच्पना और एक मासूमियत हमेशा छुपि हुई होती है. जिसे वो तभी बाहर लाती है, जब उसे अपने हिस्से का प्यार हासिल करना होता है.

ऐसा ही कुछ अभी बरखा भी कर रही थी. जो अभी कुछ देर पहले इतनी समझदारी की बातें कर रही थी. वो ही अब किसी मासूम बच्चे की तरह मूह फूला कर, आँखों मे नमी लिए बैठी थी और बेमतलब की बातें कर रही थी.

उसके इस दर्द को महसूस करके, मैं भी अपनी आँखें भीगने से ना रोक पाया और मैं उठ कर बरखा के पैरो के पास जाकर, ज़मीन पर घुटनो के बल बैठ गया. मैने उसके हाथों को अपने हाथों मे पकड़ते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी दीदी, मुझे नही पता था कि, मेरी ये बात आपको इतनी ज़्यादा बुरी लग जाएगी. यदि मुझे ऐसा ज़रा भी पता होता तो, मैं अपनी दीदी को नाराज़ करने की ग़लती कभी नही करता. प्लीज़ दीदी, अपने इस छोटे भाई को माफ़ कर दो.”

मेरी बात सुनकर, भी बरखा का गुस्सा कम नही हुआ. उसने मेरे हाथ से अपने हाथ छुड़ाते हुए, गुस्से मे मेरी तरफ देखा. लेकिन मेरे चेहरे पर नज़र पड़ते ही, मेरी आँखों मे आँसू देख कर, एक पल मे ही बरखा का दिल पिघल गया. उसने फ़ौरन अपने हाथों से मेरे आँसू पोछ्ते हुए कहा.

बरखा बोली “सॉरी भाई, मैने बेवजह की बातों को लेकर तुम पर गुस्सा किया और अपने साथ साथ तुमको भी रुला दिया.”

मैं बोला “दीदी, आपके आँसू बेवजह नही थे. मैं इनका मतलब अच्छी तरह से समझता हूँ. वो भाई ही क्या, जो अपनी बहन के बहते आँसुओं का मतलब भी ना समझ सके.”

मेरी ये बात सुनकर, बरखा के साथ साथ शिखा दीदी भी मुझे गौर से देखने लगी. मैने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “मगर दीदी, मेरी मोम कहती है की, उस उपर वाले ने, हमे अपने दिल का दर्द कम करने के लिए बेशुमार आँसू दिए है. जब ये आँसू बहते है तो, हमारे दिल का दर्द कम हो जाता है और जब हमारा कोई अपना इन आँसुओं को पोन्छ्ता है तो, हमे एक सुकून मिलता है. लेकिन यदि कोई हमारा अपना, हमारे ये आँसू बहते देख कर भी, इन्हे ना पोन्छ पाए तो, उसके दिल को इतना दर्द होता है कि, वो फिर कितने भी आँसू बहा ले, मगर उसका दर्द कम नही होता. क्या ये सब जानने के बाद भी, आपको ये लगता है कि, आपको इस तरह आँसू बहाना चाहिए.”

अपनी इतनी बात कह कर, मैं चुप हो गया. मेरी इस बात को सुनते ही बरखा समझ गयी की, मेरा इशारा उसके भाई की तरफ ही है और ये बात समझ मे आते ही, उसने फ़ौरन अपने आँसू पोछ्ते हुए मुझसे कहा.

बरखा बोली “सॉरी भाई, आज के बाद मेरी आँखों मे, उस वजह से कभी आँसू नही आएगे, जिस वजह से आज आए थे.”

मेरी बात बरखा के समझ मे तो आ गयी थी. लेकिन शिखा दीदी को कुछ समझ मे नही आया तो, उन्हो ने चिड़चिड़ाते हुए कहा.

शिखा बोली “अरे आप लोग, ये क्या वजह बेवजह लगाए हुए है. मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा है.”

मैने शिखा दीदी की बात सुनी तो, मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, सीधी सी बात तो है. बरखा दीदी मेरे मूह से अपने लिए हिट्लर दीदी सुनकर नाराज़ हो गयी थी और आँसू बहाने लगी थी. क्या कोई इतनी सी बात पर भी इस तरह से नाराज़ होता है. बस इसी बात को मैं बेवजह की बात कह रहा हूँ.”

मेरी इस बात को शिखा दीदी ने सच मानते हुए, बरखा से कहा.

शिखा बोली “आपने बिल्कुल सही कहा. क्या भला कोई इतनी सी बात पर भी अपने भाई से नाराज़ होता है.”

शिखा दीदी की इस बात के जबाब मे बरखा ने अपनी ग़लती मानते हुए कहा.

बरखा बोली “सॉरी दीदी, अब मैं आगे से ऐसी ग़लती कभी नही करूगी.”

बरखा की बात सुन कर, शिखा दीदी ने राहत की साँस ली और फिर उसे इसी बारे मे समझाती रही. थोड़ी देर बाद एक लड़की आई और शिखा दीदी को बुला कर नीचे ले गयी. उनके जाने के बाद मैने बरखा से कहा.

मैं बोला “दीदी, आपकी तरह शिखा दीदी को भी शेखर भैया की कमी सता रही है. इसी वजह से वो मुझे हमेशा अपने पास रखती है और मेरा इतना ख़याल रखती है. वो ना जाने किस तरह शेखर भैया की कमी के अहसास को अपने दिल के अंदर दबाए हुए है और बड़ी मुस्किल से इस शादी के लिए तैयार हुई है. यदि उनका ये अहसास फिर से जाग गया तो, मुझे डर है कि, ये शादी कभी भी नही हो पाएगी.”

मेरी बात को सुनकर, बरखा ने गंभीर होते हुए कहा.

बरखा बोली “तुम ठीक कहते हो. लेकिन ये भी तो नामुमकिन है कि, इस पूरी शादी मे दीदी को भैया की कमी का ज़रा भी अहसास ना हो. भैया ने दीदी की शादी को लेकर बहुत से सपने सजाए थे और इसलिए उन ने दीदी से पहले अपनी शादी करने से भी इनकार कर दिया था.”

ये कहते कहते एक बार फिर बरखा की आँखों मे नमी छा गयी. लेकिन उसने फ़ौरन ही अपनी आँखों की इस नमी को पोन्छ कर हटा दिया. मैं मन ही मन उसकी इस हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सका और मैने उस से कहा.

मैं बोला “दीदी, आप सच मे बहुत अच्छी हो. बाहर से देखने मे आप जितनी सख़्त नज़र आती हो. अंदर से आपका मन उतना ही कोमल है. आपका कहना बिल्कुल सही है कि, हम भैया की कमी को दीदी के दिल से कभी नही मिटा सकते. क्योकि दीदी उन्हे अभी भी बहुत प्यार करती है.”

“लेकिन दीदी, एक भाई का भला इस से बाद क्या सपना हो सकता है कि, उसकी बहन की शादी एक बड़े घर मे, एक बहुत अच्छे लड़के से हो. जो उसकी बहन को हमेशा खुश रखे और आज भैया का यही सपना पूरा होने जा रहा है. इसके बाद भी भैया की इस शादी को लेकर, जो खावहिशे थी, उन्हे हम पूरा करने की कोसिस करेगे.”

बरखा ने जब मेरी ये बात सुनी तो, वो गौर से मेरा चेहरा देखने लगी. शायद उसे समझ मे नही आया कि, मैं क्या कहना चाहता हूँ. उसने मुझसे सवाल करते हुए कहा.

बरखा बोली “तुम क्या कहना चाहते हो.”

मैं बोला “दीदी, मैं बस इतना कहना चाहता हूँ की, हम दीदी की शादी उसी तरह से करेगे, जिस तरह से भैया ने सोचा था.”

मेरी बात सुनकर, बरखा के दिल मे एक दर्द सा फिर जाग गया. वो चाह कर भी अपनी आँखे छलकने से नही रोक पाई. उसने अपने आपको संभालते हुए कहा.

बरखा बोली “मेरे भाई, तू ये सब मत सोच. तू जैसा सोच रहा है, वैसा कुछ भी नही हो सकता. इसलिए जैसा हो रहा है, वैसा होने दे. ये ही हम सब के लिए अच्छा है.”

मैं बोला “लेकिन क्यो दीदी, भैया की सोच को हम पूरा क्यो नही कर सकते.”

बरखा बोली “अब मैं तुझे कैसे समझाऊ. बस इतना समझ ले कि, अब ऐसा कुछ भी नही हो सकता.”

लेकिन मैने फिर ज़िद करते हुए अपनी बात को दोहरा कर कहा.

मैं बोला “दीदी आप मुझे इस बात को समझाइये कि, ऐसा क्यो नही सकता. आप मुझे समझाती हो तो, सच मे मुझे सब कुछ बहुत आसानी से समझ मे आ जाता है.”

मेरी इस बात पर बरखा ने मुस्कुराते हुए कहा.

बरखा बोली “देख, भैया का सपना था कि, वो दीदी की शादी बहुत धूम धाम करेगे और बारातियों का स्वागत ऐसे करेगे कि, वो भी अपना स्वागत देख कर दंग रह जाएगे. दीदी को दहेज मे हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज़ देगे. ताकि दीदी को अपनी ससुराल मे, किसी के सामने कभी किसी बात के लिए, सर ना झुकाना पड़े.”

ये कहते हुए बरखा मुझे शेखर भैया की, शिखा दीदी की शादी से जुड़ी हर छोटी बड़ी सोच के बारे मे बताने लगी. जिसे सुनने के बाद, मैं भी सोच मे पड़ गया.

अभी मैं बरखा से कुछ बोल पाता कि, तभी उसका नीचे से बुलावा आ गया और वो मुझसे थोड़ी देर बाद वापस आने की बोल कर नीचे चली गयी. उसके जाने के बाद, मैने कीर्ति वाला मोबाइल निकाला और जैसे ही हेलो कहा, कीर्ति ने मुझ पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अच्छा नाटक है तुम्हारा. मुझे कॉल मे रख कर, सब से आराम से बातें करते रहते हो. इस से समझ मे आता है कि, तुम्हे मेरी और मेरी तबीयत की कितनी फिकर है.”

मैं उसकी इस नौटंकी को समझ रहा था. इसलिए मैने उसको उसी के अंदाज मे जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी, मैं तो भूल ही गया था कि, तेरी तबीयत खराब है. ऐसी हालत मे तुझे आराम करना चाहिए. ठीक है, मैं अभी कॉल रखता हूँ. तू अभी आराम कर, हम लोग कल बात करते है.”

मेरी बात सुनते ही कीर्ति को झटका सा लगा. उसे लगा कि मैं कॉल रखने वाला हू. उसने फ़ौरन मुझे रोकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे अरे, मैं तो मज़ाक कर रही हूँ. मेरी तबीयत बिल्कुल थी है. प्लीज़ अभी कॉल मत रखना. मुझे तुमसे बात करनी है.”

मैं बोला “अब आई ना सीधे रास्ते पर, क्या तुझको मुझे परेशान किए बिना चैन नही मिलता है. जो रोज एक नया नाटक लेकर आ जाती है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने खिलखिला कर हँसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्या करू, मैं जब तक तुमको परेशान ना कर लूँ, मेरा खाना ही हजम नही होता है.”

मैं बोला “अरे मैं तो भूल ही गया. तू ये बता कि, तूने खाने मे क्या खाया है.”

कीर्ति बोली “कुछ मत पुछो. मुझे तो खाने के नाम से उल्टी आ रही है.”

मैं बोला “क्या हुआ. क्या तूने अभी तक खाना नही खाया.”

कीर्ति बोली “खाना तो खा लिया है. लेकिन खाना ऐसा था कि, बड़ी मुस्किल से हलक के नीचे उतरा है.”

मैं बोला “ऐसा क्या खाना था, जो तेरे हलक से ही नही उतरा.”

कीर्ति बोली “उबली हुई पालक, चपाती, मूली का रस और इसके बाद एक ग्लास दूध मे शहद मिलकर पिया है.”

मैं बोला “चल ठीक है. इस सब से तेरे लिवर की कमज़ोरी दूर होगी और तू जल्दी ठीक हो जाएगी.”

कीर्ति बोली “मुझे कोई ठीक वीक नही होना. तुम्हारे आते ही मैं सीधे घर की दौड़ लगाउन्गी.”

मैं बोला “क्यो क्या हुआ. क्या छोटी माँ तेरा अच्छे से ख्याल नही रखती.”

कीर्ति बोली “उन्ही के ख़याल रखने की वजह से तो यहाँ से भागना चाहती हूँ. पता नही नानी ने उनको क्या क्या बनाना सिखाया है. इतना तो मम्मी को भी नही आता. सुबह उठते ही सबसे पहले गरम पानी मे निंमबू निचोड़ कर देती है.”

“उसके बाद नाश्ते मे अंगूर, पपीता और गेंहू का दलिया. दोपहर को खाने मे पालक, मेथी, गाजर और एक ग्लास छाछ. रात को खाने मे उबली हुई सब्ज़ियों का सूप, चपाती, उबले आलू और हरी सब्ज़ियाँ जैसे पालक, बथुआ, मेथी ये सब खाना पड़ता है.”

“मैं तो ये सब खा खा कर पहले ही पागल हो गयी हूँ. उपर से आज मौसी कह रही थी कि, मूली के पत्ते पीलिया मे फ़ायदा करते है और इस से भूख भी बढ़ती है. मैं कल से तुझे इसका भी रस निकाल कर दूँगी.”

“इतना ही नही, वो दोनो छिप्कलिया भी मुझ पर नज़र रखी रहती है कि, मैं ये सब खा रही हूँ या नही खा रही हूँ. मेरा ख़याल रखने के बहाने दोनो मुझसे गिन गिन कर बदला ले रही है. मैं तो इस सब से बहुत तंग आ गयी हूँ और अब घर जाना चाहती हूँ. वहाँ कम से कम इतना सख्ती तो नही झेलना पड़ेगी.”

कीर्ति की इस बात को सुनकर, मुझे हँसी आ गयी और वो मेरे इस तरह से उसकी हालत पर हँसने की वजह से नाराज़ होने लगी. मैने उसे समझाते हुए कहा.

मैं बोला “देख, गुस्सा मत कर, छोटी माँ जो भी कर रही है. तेरी भलाई के लिए ही कर रही है. तू मेरी खातिर उनकी बात मानती जा. तू नही जानती कि, तेरी तबीयत की मुझे कितनी फिकर है. यदि मैं वहाँ होता तो, तुझे अपने हाथ से ये सब बना कर खिलाता.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने हैरान होते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्या तुम्हे भी ये सब बनाना आता है.”

मैं बोला “हां क्यो नही आता. छोटी माँ से मैने हर तरह का खाना बनाना सीखा है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने अपना सर पीटते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मर गये, अब तो जिंदगी भर ही ये सब खाना पड़ेगा.”

मैं बोला “ऐसा क्यो सोचती है. तू जल्दी ठीक हो जाएगी और अबकी बार जब मैं मुंबई आउगा तो, तुझे भी साथ लेकर आउगा. तेरे लिवर का इलाज यही करवा लेगे.”

कीर्ति बोली “अरे मेरे कहने का मतलब ये नही है. मैं तो बस ये कहना चाहती थी कि, मौसी को ये सब तुमको सिखाने की क्या ज़रूरत थी. ये सब तो अमि निमी को सिखाना चाहिए था.”

मैं बोला “मुझे अपनी किसी बात का मतलब मत समझा. मैं तेरी बात का मतलब अच्छी तरह से समझ गया हूँ कि, तू क्या कहना चाहती है. तू यही कहना चाहती है ना कि, तुझे मेरे साथ जिंदगी भर रहना है और अब तुझे ये सब जिंदगी भर झेलना पड़ेगा.”

मेरी बात सुनते ही कीर्ति फिर से खिल खिला कर हँसने लगी और फिर उसने बात को बदलते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मौसी ठीक कहती कि, मुंबई जाकर तुम बहुत समझदार हो गये हो. बहुत बड़ी बातें करने लगे हो.”

मैं बोला “क्या छोटी माँ ने तुझे ऐसा कहा.”

कीर्ति बोली “मुझसे नही, आंटी से बोल रही थी कि, दीदी पुन्नू मुंबई जाकर बहुत समझदार हो गया और बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगा है. लेकिन अभी भी जब परेशान होता है तो, अपनी माँ की गोद ढूंढता है. मुझे लगता है कि, अब उसे एक माँ की गोद की नही बल्कि एक सच्चे दोस्त की ज़रूरत है. जो उसे जीवन के इस सफ़र मे चलने का सही रास्ता बता सके. क्या मैं अपने बेटे की दोस्त नही बन सकती.”

मैं बोला “फिर आंटी ने क्या कहा.”

कीर्ति बोली “आंटी ने उनसे कहा कि, पुन्नू को तुझसे अछा दोस्त मिल ही नही सकता. लेकिन ये ज़रूरी नही कि, पुन्नू भी तुझे अपना दोस्त बनाए. यदि तू सच मे ऐसा चाहती है कि, तेरा बेटा तेरा दोस्त बने तो, तुझे भी सुनीता नही सोनू बनकर रहना होगा. तब शायद उसे भी तेरा दोस्त बनने मे कोई परेशानी ना हो.”

“उनकी ये बात चल ही रही थी कि, तभी मैं उन्हे घर वापस आते दिख गयी और उनकी बात वही पर रुक गयी. इसलिए मैं सीधे अपने कमरे मे आ गयी. फिर पता नही मौसी ने उनकी बात का क्या जबाब दिया था.”

कीर्ति की इस बात से मुझे छोटी माँ के अंदर आ रहे बदलाव का कुछ कुछ पता चल गया था. लेकिन उनको ऐसा करना क्यो ज़रूरी लग रहा था. ये बात मुझे समझ मे नही आ रही थी. इसलिए मैने कीर्ति से पुछा.

मैं बोला “तू ये कब की बात बता रही है.”

कीर्ति बोली “ये तेरे बर्थ’डे के दिन की बात है. उस दिन जब मैं शाम को यहाँ वापस आई थी, तब ये बात चल रही थी.”

कीर्ति के इतना बोलते ही मुझे सारी बात समझ मे आ गयी. उन्हो ने उस दिन मुझे किसी लड़की के लिए इतना परेशान और टूटा हुआ देखा था. जिसकी वजह से शायद उन्हे ये लग रहा था कि, मैं कहीं रास्ता ना भटक जाउ. इसलिए अब वो मुझसे एक दोस्त की तरह बर्ताव करने लगी थी. ताकि मैं अपनी परेशानियाँ उन्हे बेजीझक बता सकूँ.

ये बात समझ मे आते ही पहले तो मुझे छोटी माँ की इस हरकत पर हँसी आ गयी. लेकिन अगले ही पल, मैं सोच मे पड़ गया कि, क्या दुनिया की हर माँ के दिल मे अपने बच्चों के लिए इतना ही प्यार होता है. क्या कोई माँ अपने बेटे से इतना प्यार भी कर सकती है कि, उसके लिए अपने आपको ही बदल दे.

ये सब सोच कर और अपने लिए छोटी माँ का प्यार महसूस कर, मेरी आँखें छल छला गयी. आज पहली बार मेरा दिल उस उपर वाले से लड़ने को कर रहा था और आज पहली बार मुझे उस उपर वाले से कोई शिकायत हो रही थी.

मैं चीख चीख कर, उस उपर वाले से पुच्छना चाहता था कि, जब तुझको मेरे नसीब मे छोटी माँ का इतना ज़्यादा प्यार लिखना ही था तो, मुझे उनका सौतेला बेटा बना कर क्यो पैदा किया. मैं पुच्छना चाहता था कि, जब मुझे छोटी माँ का बेटा कहलाना ही था तो, तूने मुझे उनकी कोख से ही जनम क्यो नही दिया.
 
157
इस समय मेरे मन मे ऐसे ही बहुत से सवाल उठ रहे थे. जिनका जबाब मैं उस उपर वाले से माँगना चाहता था. मगर वो उपर वाला इस समय मेरे किसी भी सवाल का जबाब देने के मूड मे नही था. इसलिए उसने कुछ ऐसा किया, जिस से कि, मैं ये सब सवाल करना ही भूल जाउ.

मैं अपने इन्ही सवालों मे खोया हुआ था कि, तभी मेरे कानो मे दोनो मोबाइल बजने की आवाज़ सुनाई दी. असल मे हुआ ये था कि, मैं तो कीर्ति की बात सुनकर, अपने ख़यालों मे खो गया था और तभी एक घंटा पूरा होने की वजह से कीर्ति का कॉल कट गया था.

लेकिन मुझे इस बात का अहसास ही नही था. कॉल कटने के बाद, शायद मेरे कॉल ना उठाने की वजह से, वो मेरे दोनो मोबाइल पर कॉल लगाने लगी होगी. ये बात समझ मे आते ही मैने फ़ौरन कीर्ति का कॉल उठा लिया. मेरे कॉल उठाते ही उसने गुस्सा होते हुए कहा.

कीर्ति बोली “बात करते करते कहाँ खो जाते हो. मैं कितना कॉल लगा रही हूँ और तुम हो कि कॉल उठा ही नही रहे.”

मैं बोला “सॉरी, लेकिन अब तो मैने कॉल उठा लिया है ना, तो फिर क्यो अभी भी दूसरे मोबाइल पर कॉल लगाए जा रही है.”

कीर्ति बोली “अरे मैं कहाँ दूसरे मोबाइल पर कॉल लगा रही हूँ. तुम उस मोबाइल मे देखो कि किसका कॉल आ रहा है.”

कीर्ति की बात सुनते ही मैं अपना दूसरा मोबाइल निकाल कर देखने लगा. कीर्ति का कहना सच ही था कि, वो कॉल नही लगा रही है. क्योकि ये छोटी माँ का कॉल आ रहा था और उनका कॉल आते देख, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी.

शायद इसी को माँ का दिल कहते है की, पल भर पहले मैं बड़ी बेचैनी से उन्हे याद कर रहा था और कुछ पल ही बाद उनका मेरे पास कॉल आने लगा. मैने छोटी माँ का कॉल आने की कीर्ति को बताई और छोटी माँ का कॉल उठाते हुए कहा.

मैं बोला “जी छोटी माँ, क्या हुआ, आप इतनी रात को कॉल क्यो लगा रही है. वहाँ सब ठीक तो है ना.”

मैने एक ही साँस मे छोटी माँ से इतने सारे सवाल कर डाले. लेकिन उन ने मेरे इन सारे सवालों को अनसुना करके, मुझसे मेरी ही शिकायत करते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “बड़ा आया मेरी फिकर करने वाला, मैं कब से कॉल लगा रही हूँ और तू है कि, मेरा कॉल उठा ही नही रहा है. यदि मैने तेरा कॉल उठाने मे, इतनी देर लगाई होती तो, अभी तक तूने अपना मूह फूला लिया होता.”

छोटी माँ की ये बात सुनकर मुझे हँसी आ गयी और मैने उन्हे अपनी सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी छोटी माँ, लेकिन मेरे देर से कॉल उठाने मे भी आपकी ही ग़लती है. मैं आपको याद करने मे इतना खो गया था कि, आपके कॉल आने का मुझे कुछ पता ही नही चला.”

मेरी इस बात पर छोटी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “चल झूठे, अब अपनी ग़लती छुपाने के लिए मुझे मस्का लगा रहा है.”

मैं बोला “हां, आपको तो मेरी याद आती नही है. इसलिए आपको मेरी बात मस्का लगाना ही लगेगी.”

छोटी माँ बोली “अच्छा तो तुझे लगता है कि, मुझे तेरी याद नही आती. यदि ये बात सच है तो फिर तू ही बता दे कि, मैं इतनी रात को तुझे कॉल क्यो लगा रही हूँ.”

छोटी माँ की ये बात सुनकर, मैं सच मे सोच मे पड़ गया कि, उन्हो ने इतनी रात को किसलिए कॉल लगाया होगा. लेकिन मुझे शिखा दीदी की शादी के अलावा कोई ऐसी बात समझ मे नही आ रही थी. जिसके लिए अभी छोटी माँ कॉल लगा सकती हो. इसलिए मैने यही बात छोटी माँ से बोलते हुए कहा.

मैं बोला “इसमे कौन सी बड़ी बात है. आपने बस शिखा दीदी की शादी मे देने वाले गिफ्ट के बारे मे बताने के लिए कॉल किया होगा.”

अपना अंदाज़ा छोटी माँ को बताने के बाद, मैं बेसब्री से उनके जबाब का इंतजार करने लगा. उधर छोटी माँ ने मेरी ये बात सुनते ही, मुझसे कहा.

छोटी माँ बोली “हां, मैने यही बात बताने के लिए तुझे इतने समय कॉल किया था. लेकिन तुझे तो लगता है कि, मैं तुझे याद ही नही करती. इसलिए अब सोच रही हूँ कि, तुझे ये सब बताने का कोई फ़ायदा नही है. जब गिफ्ट वहाँ पहुचेगा, तब तू उसे खुद ही देख लेना.”

मैं ये बात अच्छी तरह से समझ रहा था कि, छोटी माँ मुझे तंग करने के लिए ऐसी बातें कर रही है. लेकिन जब उन्हो ने गिफ्ट यहाँ पहुचने के बाद, देखने की बात की तो, मैं अपने आपको ना रोक सका और मैने उन्हे मनाते हुए कहा.

मैं बोला “छोटी माँ, मैं तो सिर्फ़ मज़ाक कर रहा था. अब आप भी मुझे तंग करना बंद कीजिए और जल्दी से बताइए कि, आपने क्या गिफ्ट देने का सोचा है.”

लेकिन अब छोटी माँ इतनी जल्दी मान जाने के मूड मे नही लग रही थी. उन्हो ने फिर मुझे तंग करते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “अब तो तू बहुत समझदार हो गया है. जब तूने ये पता लगा लिया कि, मैने तुझे कॉल किसलिए था तो, अब ये भी खुद पता लगा ले कि, मैने क्या गिफ्ट देने बारे सोचा है.”

ये कह कर छोटी माँ हँसने लगी. मगर अब मुझे सबर नही हो रहा था और गिफ्ट के बारे मे जानने की बहुत ज़्यादा उत्सुकता थी. इसलिए मैने उनके सामने मिन्नत करते हुए कहा.

मैं बोला “प्लीज़ छोटी मा, अब ऑर परेशान मत कीजिए. प्लीज़ बताइए ना, आपने क्या गिफ्ट सोचा है.”

मुझे इस तरह अपनी मिन्नत करते देख, छोटी माँ को भी अब मुझे ऑर ज़्यादा परेशान करना ठीक नही लगा और उन्हो ने मुझे गिफ्ट के बारे मे बताते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “ये गिफ्ट मैने नही, कीर्ति ने सोचा है. मुझे उसकी बात सही लगी इसलिए मैने भी इसके लिए हां कर दी.”

मैं बोला “लेकिन क्या सोचा है, ये तो बताइए.”

छोटी माँ बोली “अरे थोड़ा सबर तो रख, बता तो रही हूँ. हमने तेरी बहन को उसकी शादी मे, एक कार गिफ्ट मे देने की बात सोची है. अब तू बता कि, तुझे ये गिफ्ट पसंद आया या नही.”

छोटी माँ की ये बात सुनकर, मेरा चेहरा खुशी से खिल गया और मैने अपनी खुशी जाहिर करते हुए, उनसे कहा.

मैं बोला “मुझे ये गिफ्ट सिर्फ़ पसंद नही, बहुत ज़्यादा पसंद आया है. आइ लव यू मोम.”

मेरी बात सुनकर, छोटी माँ ने चौुक्ते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “ये आख़िरी मे क्या बोला तू.”

मैं बोला “हाहहहाहा…सॉरी छोटी माँ.”

छोटी माँ बोली “चल कोई बात नही. तू अपना ख़याल रखना और किसी बात की चिंता मत करना. मैने तेरे खाते मे कुछ पैसे ऑर डाल दिए है. तुझे शादी मे जितना भी खर्च करना हो, कर लेना. यदि ये भी कम लगे तो, मुझे बता देना. अपनी बहन की शादी मे किसी बात की कमी नही होने देना.”

छोटी माँ की इस बात ने, मेरे मन मे शिखा दीदी की शादी को लेकर जो उत्साह था, उसको दुगुना कर दिया था. इसके बाद उन्हो ने मुझसे यहा शादी से जुड़ी बातों के बारे मे पुछा और फिर कल बात करने की बात कह कर कॉल रख दिया.

छोटी माँ से मेरी सिर्फ़ कुछ देर ही बात हुई थी. लेकिन उनकी इस कुछ देर की बात ने ही मुझे दिन भर की थकान और मेरे तनाव से मुक्ति दे दी थी. उनके कॉल रखने के बाद, मैने कीर्ति का कॉल उठाया तो, उसने चहकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “कहो कैसी रही.”

मैं बोला “बहुत अच्छी रही, लेकिन गिफ्ट मे कार देने का ख़याल तेरे मन मे कैसे आया.”

कीर्ति बोली “क्यो, जब अज्जि अपनी बहन को कार बिना किसी बात के दे सकता है तो, क्या तुम अपनी बहन की शादी पर उसे कार गिफ्ट नही कर सकते.”

कीर्ति की ये बात सुनते ही मुझे एक पल मे ही सारा माजरा समझ मे आ गया और मैने उसे समझाते हुए कहा.

मैं बोला “तेरी ये सोच सही नही है. हमे किसी भी बात मे, किसी की बराबरी नही करनी चाहिए और अज्जि के पास जो कुछ भी है, वो सब शादी के बाद तो दीदी का ही होगा.”

कीर्ति बोली “शादी के बाद दीदी का होगा ना. शादी के पहले तो दीदी का नही है. बस इसलिए मैं चाहती थी कि, हमारी दीदी के पास अपने मायके की तरफ से एक बड़ा सा गिफ्ट हो.”

मैं बोला “अब बस भी कर, तेरे से बातों मे जीतना मेरे बस की बात नही है.”

कीर्ति बोली “तो फिर बेकार मे जीतने की कोशिस ही क्यो करते हो. अब ये सब बातें छोड़ो और एक ज़रूरी बात सुनो. आज शीन बाजी, शेज़ा के साथ घर आई थी और तुमको पुछ रही थी.”

मैं बोला “क्यो, क्या हुआ.? बाजी किसलिए आई थी.? उनके घर मे सब ठीक तो है ना.?”

कीर्ति बोली “हां सब ठीक है. बस उन्हे तुम्हारे मुंबई जाने के बारे मे मालूम ही नही था. इसलिए वो ये बात सुनकर, चौक गयी थी. क्या तुमने अपने मुंबई जाने के बारे मे उनको नही बताया था.”

मैं बोला “हां, मैने ये बात किसी को भी नही बताई थी. क्या वो किसी खास काम से आई थी.”

कीर्ति बोली “उन्हो ने ऐसा कुछ खास नही बताया. बस इतना ही कहा कि, तुम पिच्छले एक महीने से उनके घर नही गये. इसलिए वो तुम्हारा हाल चाल पुच्छने आ गयी. लेकिन बाजी के आने की बात से तुम इतना परेशान क्यो हो रहे हो.”

मैं बोला “ऐसी कोई बात नही है. मुझे तो बस ये सोच कर बुरा लग रहा है कि, यदि मैने अपने यहाँ आने की बात बाजी को बता दी होती तो, उन्हे मेरा हाल जानने के लिए इस तरह परेशान नही होना पड़ता और ये भी तो हो सकता है कि, उन्हे मुझसे कोई ज़रूरी काम पड़ गया हो, जिसकी वजह से वो मुझे देखते हुए घर तक आ गयी.”

मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने बड़े ही प्यार से मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “तुम एक काम क्यो नही करते.”

मुझे समझ मे नही आया कि, कीर्ति अचानक मुझे कौन सा काम करने को बोल रही है. इसलिए मैने बड़ी उत्सुकता के साथ पुचछा.

मैं बोला “क्या काम.?”

कीर्ति बोली “अभी तुम्हे यहाँ की, कोई ना कोई फ्लाइट तो मिल ही जाएगी. तुम ऐसा करो कि कोई फ्लाइट पकड़ कर फ़ौरन घर आ जाओ और आकर अपनी प्यारी बाजी से ही पुच्छ लो कि, बाजी आप किस लिए हमारे घर आई थी. आपको मुझसे कोई ज़रूरी काम तो नही है.”

कीर्ति की इस बात को सुनते ही मैने अपना सर पीट लिया और मुझे अपनी की हुई ग़लती का अहसास भी हो गया. असल मे कीर्ति और शीन बाजी के बीच साँप और नेवले की दुश्मनी थी. दोनो एक दूसरे का नाम तक लेना भी पसंद नही करती थी.

ऐसे मे मेरा बाजी के आने की बात को लेकर, परेशान होना, कीर्ति को पसंद नही आया था. इसलिए वो मुझे इस तरह की जली कटी बातें सुना रही थी. उसने शायद मुझे बाजी के आने की बात सिर्फ़ इसलिए बता दी थी, क्योकि अभी मैं घर मे नही था. वरना वो इस बात को गायब ही कर जाती.

मुझे अपनी इस ग़लती का अहसास होते ही, मैने फ़ौरन अपनी ग़लती पर परदा डालते हुए, कीर्ति से कहा.

मैं बोला “सॉरी, अब तू इस बात को लेकर, अपना मूड खराब मत कर लेना. मैं तो ये सब इसलिए पुच्छ रहा था, क्योकि अभी असलम अपने नाना के घर गया हुआ है. इसलिए मुझे लगा कि, कहीं बाजी को मुझसे कोई ज़रूरी काम ना पड़ गया हो. वरना मैं ये सब तुझसे कभी नही पुछ्ता.”

मगर कीर्ति का मूड अभी भी सही नही था. उसने मेरी इन बातों से परेशान होकर, मुझे ताना मारते हुए कहा.

कीर्ति बोली “उन्हे कोई ज़रूरी काम वाम नही होगा. परसों से रमज़ान लगने वाला है. अब भला बिना चाँद देखे भी, क्या रमज़ान सुरू होता है. इसलिए वो अपने प्यारे चंदा को देखने आई थी.”

कीर्ति की इस बात को सुनकर, मैं सच मे ही बहुत परेशान हो गया. क्योकि मैं पिच्छले दो साल से, बाजी के यहाँ रोज़ की अफ्तारि का समान लेकर जाता था. ये सिलसिला तब सुरू हुआ था, जब मैं छोटी माँ के ना होने पर पापा से पैसे लेने उनके ऑफीस गया था और फिर वही पर मुझे छोटी माँ मिल जाने पर, हम दोनो ने वो देख लिया था, जिसके बाद मुझे पापा से नफ़रत हो गयी थी.

मैं तब इसी काम के लिए छोटी माँ से पैसा लेना चाहता था. लेकिन उस हादसे की वजह से मैं इतना दुखी था कि, मैं ये सब बातें भूल ही गया था. उस समय छोटी माँ ने मेरे मन से पापा की बातों को बाहर निकालने के लिए, मुझसे पुछा था कि, मुझे इतने पैसे किस काम के लिए चाहिए थे.

तब मैने उन्हे बताया था कि, मेरे दोस्त असलम के रोज़े सुरू हो रहे है और मैं उसके घर आफ्तारी का समान भेजना चाहता था. मगर अब मेरा किसी बात के लिए मन ही नही कर रहा है. लेकिन छोटी माँ ने मुझे समझाया और समान के लिए पैसे दिए.

जिसके बाद मैं आफ्तारी का समान लेकर, असलम के घर गया. असलम और शेज़ा तो ये सब देख कर बहुत खुश थे. लेकिन शीन बाजी ये सब देख कर बहुत नाराज़ हुई. वैसे तो वो मुझे बहुत प्यार करती थी. मगर एक छोटे से बच्चे से ये सब लेने का उनका दिल गवारा नही कर रहा था.

उन्हो ने इस सब के उपर से मुझे बहुत बातें सुनाई और मुझसे पुछा कि, मेरे पास इस समान के लिए इतने पैसे कहाँ से आए. तब मैने उन्हे सब कुछ सच सच बता दिया. मगर तब भी उन्हे मेरी बात पर विस्वास नही आ रहा था. जिस वजह से मैने उनकी बात छोटी माँ से करवा दी.

छोटी माँ ने उन्हे बताया कि, मैं जो भी बोल रहा हूँ, सच बोल रहा हूँ. तब जाकर उनको मेरे उपर विस्वास आया. मगर इसके बाद भी, उन्हो ने छोटी माँ से वो सब समान लेने से मना कर दिया. तब छोटी माँ ने उनको समझाते हुए कहा था.

छोटी माँ बोली “देखो शीन, तुम्हारी बात सही है कि, पुन्नू अभी छोटा है और उस से ये सब लेना तुमको शोभा नही देता. मगर तुम उसकी सिर्फ़ उमर क्यो देखती हो. तुम उसका, तुम लोगों के लिए प्यार क्यो नही देखती. आज पुन्नू यदि तुम्हारे लिए आफ्तारी लेकर आया है तो, तुमको किसने रोका है, तुम उसके लिए दीवाली मे फटाखे लेकर आ जाना.”

“मेरी एक बात याद रखो कि, त्योहार चाहे हमारा हो या तुम्हारा हो. हर त्योहार का मकसद सिर्फ़ प्यार और भाई चारा बढ़ाना होता है. लेकिन हम बड़े इस बात को समझते हुए भी, कभी समझ नही पाते और ये बच्चे नासमझ होते हुए भी हर त्योहार को मना लेते है. आज ये बच्चे यदि मेरा और तुम्हारा घर आगन महकाएगे तो, कल ज़रूर ये बड़े होकर सारे देश को महकाएगे. इसलिए इन फूलों को बढ़ने से मत रोको और इनको इनकी तरह ही खिलने दो.”

छोटी माँ की इस बात ने शीन बाजी के दिल पर असर किया और उन्हो ने मेरा दिया हुआ समान खुशी खुशी रख लिया. तब से मेरा रमज़ान मे बाजी के घर आफ्तारी भेजने का सिलसिला सुरू हो गया और वो अब भी चालू है.

मगर इस साल मेरे रमज़ान के समय मुंबई मे होने की वजह से, मुझे अपना ये सब कर पाना मुस्किल सा लग रहा था. लेकिन मैं चाहते हुए भी ये बात कीर्ति से नही कर सकता था.

क्योकि इस समय उसके सामने रमज़ान को लेकर अपनी परेशानी जाहिर करना, आग मे घी डालना ही था. अभी उसकी तबीयत भी सही नही थी, ऐसे मे मैं अपनी किसी भी बात से उसको परेशान करना नही चाहता था.

उधर कीर्ति अपनी बात बोलने के बाद, कुछ देर तक मेरे जबाब का इंतजार करती रही. लेकिन जब मैने कुछ नही कहा तो, उसे लगा कि, शायद मुझे उसकी बात का बुरा लग गया है. इसलिए उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “अब तुमको क्या हो गया. क्या मेरी बात का बुरा लग गया.”

मैं बोला “नही, मुझे तेरी किसी बात का बुरा नही लगा. लेकिन अब तू इस बात को यही ख़तम कर दे. अभी तेरी तबीयत ठीक नही है और ऐसे मे किसी बात पर गुस्सा होना तेरी सेहत के लिए अच्छा नही है.”

कीर्ति बोली “ओके, बाबा, अब मैं किसी बात पर गुस्सा नही होउंगी. लेकिन अब तुम मेरी एक बहुत ज़रूरी बात का जबाब दो.”

मैं बोला “हां, पुछ, क्या पूछना है.”

लेकिन अब कीर्ति का मूड बदल चुका था और वो कुछ मज़ाक मूड मे थी. उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “अभी तो तुम मूबाई मे हो. फिर तुम अपनी प्यारी बाजी के यहाँ आफ्तारी लेकर कैसे जाओगे.”

ये कह कर वो खिल खिला कर ऐसे हँसने लगी. जैसे कि इस बात के लिए मेरा मज़ाक उड़ा रही हो. लेकिन मैने उसकी इस बात को अनसुना करते हुए उस से कहा.

मैं बोला “अब तू अपनी नौटंकी बंद करती है या मैं कॉल रखू.”

कीर्ति बोली “अरे नही नही, तुम कॉल मत काटना. अब मैं तुमको ज़रा भी परेशान नही करूँगी. लेकिन ये तो बताओ कि, अब तुमने क्या करने का सोचा है.”

कीर्ति की बातों से लग रहा था कि, अब वो सच मे इस बारे मे जानना चाहती है. इसलिए मैने उस से सॉफ सॉफ कहा.

मैं बोला “अब इसमे सोचना क्या है. मैं जब वापस आउगा, तभी बाजी के घर जाउन्गा.”

कीर्ति बोली “तुम ऐसा क्यो नही करते कि, किसी के हाथ से आफ्तारी पहुचा दो.”

मैं बोला “ऐसा नही हो सकता. तू अभी बाजी को अच्छे से जानती नही है. वो मेरे अलावा किसी के हाथ से आफ्तारी नही लेगी.”

कीर्ति बोली “ऑर यदि उन्हो ने ले ली तो, क्या करोगे.”

मैं बोला “यदि ऐसा हो गया तो, तू जो भी बोलेगी, मैं वो करने को तैयार हूँ. लेकिन अब इस बात को यही ख़तम कर, अभी मुझे तुझसे ऑर भी ज़रूरी बातें करना है.”

कीर्ति बोली “सॉरी, बोलो ऑर क्या बात करना है.”

मैं बोला “अभी तूने मेरी और बरखा की सारी बातें सुनी है. उन सब बातों को सुन कर तुझे क्या लगता है कि, हमे क्या करना चाहिए.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति कुछ सोच मे पड़ गयी और फिर थोड़ी देर बाद उसने मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.

कीर्ति बोली “देखो, हर कोई अपनी बहन या बेटी की शादी के लिए बहुत कुछ सपने देखता है और उसी तरह की तैयारी करता है. लेकिन यहाँ सब कुछ अचानक ही हो रहा है. इतनी जल्दी मे शेखर भैया के हर सपने को पूरा करना मुमकिन नही है. मगर उन सपनो को ज़रूर पूरा किया जा सकता है, जिन मे दीदी के लिए शेखर भैया के दिली ज़ज्बात झलकते है.”

“मेरी मानो तो सिर्फ़ उन्ही सपनो को पूरा करने की कोसिस करो. यदि तुम ऐसा कर सके तो, यकीन मानो, ये शादी सिर्फ़ दीदी के लिए ही बल्कि हर देखने वाले के लिए एक यादगार बन रह जाएगी. क्योकि शेखर भैया के उन सपनो मे बेशुमार प्यार छुपा है और जिन बातों मे प्यार छुपा हो, उन्हे आसानी से भुलाया नही जा सकता.”

इतना कह कर कीर्ति चुप हो गयी और मैं उसकी बातों के बारे मे सोचने लगा. तभी मुझे किसी के उपर आने की आहट हुई और मैने ये बात कीर्ति को बता कर मोबाइल जेब मे रख लिया.
 
158
कुछ ही देर मे बरखा उपर आई और मेरे पास आकर बैठ गयी. वो गौर से मुझे देख रही थी और मैं इन सब बातों को सोचने मे लगा था. उसने मुझे इस तरह किसी सोच मे खोया देखा तो, मुझे टोकते हुए कहा.

बरखा बोली “क्या सोच रहे हो. यही कि जिस आदमी की 5 टेक्सटाइल मिल्स और ना जाने कितने टेक्सटाइल शोरूम्स हो, उसे भला हम लोग दहेज मे क्या दे सकते है या फिर ये कि, जिसकी बारात मे चीफ मिनिस्टर और मिनिस्टर जैसी हस्तियाँ शामिल हो रही हो. उसके बारातियों का स्वागत हम कैसे करें.”

मैने बरखा की इस बात पर मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “नही दीदी, मैं जानता हूँ कि, ये सब इतनी जल्दी मे कर पाना मुमकिन नही है. यदि हमे इसके लिए थोड़ा समय मिलता तो, हम ये भी करके दिखाने से पिछे नही हटने वाले थे.”

बरखा बोली “तो फिर किस बात की इतनी गहरी सोच मे पड़े हो.”

मैं बोला “दीदी, मैं तो बस ये सोच रहा था कि, जब भैया ने दीदी की शादी बड़े घर मे करने का सोचा होगा तो, तब वो खुद भी नही जानते होगे कि, दीदी की किस्मत उनको इतने बड़े घर मे लेकर जाएगी. भैया ने वो धूम धाम और बारातियों का स्वागत वाली बात तो, दीदी के मान सम्मान को सोच कर कही होगी.”

“लेकिन हमारी दीदी जिस घर मे जा रही है. वहाँ उनको किसी चीज़ की कोई कमी नही रहना है और हमारी दीदी के मान सम्मान को भी वहाँ कोई आँच नही आना है. क्योकि वहाँ सब हमारी दीदी को बहुत प्यार करते है और हमारी दीदी को कभी किसी बात के लिए, किसी के सामने नीचा नही देखना पड़ेगा.”

“इसलिए मैं इन सब बातों के बारे मे नही सोच रहा. मैं तो भैया की उन बातों के बारे मे सोच रहा हूँ. जिन बातों मे भैया के दीदी के लिए दिली ज़ज्बात झलकते है. मैं उन सब बातों को पूरा करना चाहता हूँ. ताकि ये शादी सिर्फ़ दीदी के लिए ही नही, बल्कि हम सब के लिए भी एक यादगार पल बन कर रह जाए.”

मेरी बात सुनकर बरखा भी सोच मे पड़ गयी. कुछ देर तक इस बात को सोचने के बाद उसने मुझसे कहा.

बरखा बोली “बात तो तुम्हारी सही है. लेकिन क्या तुम अकेले ये सब कर सकोगे.”

मैं बोला “दीदी, आप बस मेरा साथ दीजिए, मैं सब कुछ कर लूँगा. वैसे भी मैं अकेला नही हूँ. मेरा एक दोस्त यहाँ मेरे साथ है और मुझे उम्मीद है कि, प्रिया, रिया, राज और निक्की भी मेरा साथ ज़रूर देगे.”

बरखा बोली “मैं तुम्हारे साथ हूँ. तुम जैसा बोलॉगे, वैसा करवाने की सारी ज़िम्मेदारी मेरी है.”

मैं बोला “तो फिर ठीक है दीदी. हम कल से इन बातों को पूरा करना सुरू करते है.”

ये कह कर, मैने बरखा को सारी बातें समझाई. उसके बाद मैने निक्की को कॉल लगाया. लेकिन निक्की बहुत ज़्यादा शोर शराबे के बीच थी. इसलिए उसने थोड़ी देर से कॉल लगाने की बात कह कर कॉल रख दिया. बरखा ने इतनी जल्दी कॉल काटते देखा तो, मुझसे पुछा.

बरखा बोली “क्या हुआ. क्या निक्की से बात नही हुई.”

मैं बोला “अभी हो जाएगी. वो अभी वहाँ पर बहुत शोर शराबे के बीच थी. इसलिए उसने थोड़ी देर बाद कॉल करने को कहा है.”

मैने इतना बोला ही था कि, निक्की का कॉल आने लगा. मैं निक्की को अपनी सारी बातें बताने लगा. उसने मेरी बात सुनकर, मेरा साथ देने की हामी भर दी. उस से थोड़ी बहुत बातें करने के बाद, मैने कॉल रख दिया और फिर बरखा से कहा.

मैं बोला “लो एक काम तो हो गया.”

बरखा बोली “प्रिया से भी बात करके देख लो. वो अभी जाग ही रही होगी.”

मैं बोला “उस से बात करने की कोई ज़रूरत नही है. मैं उसको जैसा बोलुगा, वो वैसा करने के लिए खुशी खुशी तैयार हो जाएगी.”

मेरी इस बात को सुनकर, बरखा ने मुझे छेड़ते हुए कहा.

बरखा बोली “सब ख़ैरियत तो है ना. प्रिया पर बहुत ज़्यादा भरोसा है. कहीं ये आग दोनो तरफ से तो नही लगी है.”

मैं बोला “क्या दीदी, अब आप भी सुरू हो गयी. आप तो सब कुछ जानती है. फिर भी ऐसा कह रही है. मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नही थी. लगता है, अब आपको कुछ भी बताना बंद करना पड़ेगा.”

मेरी बात सुनते ही, बरखा ने फ़ौरन अपनी ग़लती मानते हुए कहा.

बरखा बोली “सॉरी मेरे भाई, मैं तो सिर्फ़ थोड़ा मज़ाक कर रही थी. मैं अच्छे से जानती हूँ कि, तुम्हारे दिल मे प्रिया के लिए ऐसा कुछ नही है. तुम ये बात इसलिए बोले हो, क्योकि प्रिया तुम्हारी कोई बात नही काटती है.”

मैं बोला “हां ये बात तो है दीदी. लेकिन प्रिया सच मे बहुत अच्छी लड़की है. इसलिए अब मैं भी उसकी बात को रखने की कोसिस करता हूँ. मगर आज मुझे आपकी ये बात समझ मे नही आई कि, आप तो प्रिया से पहली बार मिली थी. फिर पार्क मे आपने उसका साथ क्यो दिया. क्या आपको उसके बारे मे सब कुछ पहले से ही मालूम था.”

बरखा बोली “सब कुछ तो नही, मगर प्रिया की तबीयत का ज़रूर मुझे मालूम था. आज सुबह तुमने जब दीदी को कॉल लगा कर, अपने साथ प्रिया को लाने की बात पुछि थी. तब निक्की भी यही पर थी. उसे जब पता चला कि, प्रिया यहाँ आ रही है तो, उसने मुझे प्रिया की तबीयत के बारे मे बताया और उसका ख़याल रखने को कहा था.”

“इसलिए जब मैने पार्क मे प्रिया को नेहा की बातों से परेशान होते देखा तो, मुझे लगा कि, इस समय मुझे प्रिया की मदद करना चाहिए. जिसकी वजह से मैने तुम्हे प्रिया की तरफ से बोलने के लिए उकसाया था. मगर ये मेरी प्रिया से पहली मुलाकात नही थी. मैं प्रिया को पहले से ही जानती थी. बस ये नही जानती थी कि, निक्की ने जिस प्रिया के बारे मे कहा है, वो ये ही प्रिया है.”

बरखा की इस बात ने मुझे कुछ हैरान सा कर दिया. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, जब बरखा निक्की की सहेली के रूप मे प्रिया को नही जानती है तो, फिर वो प्रिया को कैसे जानती है.

क्योकि मुझे नेहा की बातों से भी ऐसा नही लगा था कि, इसके पहले उसने कभी भी बरखा को प्रिया से मिलाया हो. अपनी इसी हैरानी को दूर करने के लिए मैने बरखा से पुछा.

मैं बोला “दीदी, यदि आप प्रिया को निक्की की वजह से नही जानती तो, क्या प्रिया को नेहा की वजह से जानती है.”

बरखा बोली “ना मैं प्रिया को निक्की की वजह से जानती हूँ और ना ही नेहा की वजह से जानती हूँ.”

मैं बोला “तो फिर आप प्रिया को कैसे जानती है.”

बरखा ने मेरी इस बात के जबाब मे मुस्कुराते हुए कहा.

बरखा बोली “मैं प्रिया को इसलिए जानती हूँ, क्योकि हम दोनो ही किसी ना किसी स्पोर्ट्स से जुड़े हुए है और पिच्छले साल तुम्हारे शहर मे, जो नॅशनल गेम्स हुए थे, उसमे हम दोनो मुंबई की टीम की तरफ से गये थे.”

बरखा की इस बात ने मेरी इस हैरानी को कम करने की जगह ओर भी ज़्यादा बड़ा कर रख दिया. क्योकि बरखा को देख कर तो ये लगता था कि, वो किसी गेम से जुड़ी हुई है. लेकिन प्रिया को देख कर कही से भी ऐसा नही लगता था कि, वो किसी गेम से जुड़ी हुई है और नॅशनल गेम्स तक खेल चुकी है. मैने बड़ी उत्सुकता के साथ बरखा से पुछा.

मैं बोला “दीदी, आप दोनो किस गेम के लिए गये थे.”

बरखा बोली “मैं बॉक्सिंग और प्रिया स्विम्मिंग के लिए गयी थी.”

बरखा की इस बात पर मैं अपनी हँसी ना रोक सका और मैने हंसते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, आप तो एक बॉक्सर लगती हो. मगर प्रिया को देख कर तो, कही से भी ऐसा नही लगता कि, वो एक स्विम्मर है और नॅशनल गेम्स मे भी भाग ले चुकी है.”

मगर प्रिया के स्विम्मर होने की बात पर, मेरा इस तरह से हसना बरखा को अच्छा नही लगा. उसने मुझ पर गुस्सा करते हुए कहा.

बरखा बोली “हँसो मत, ये कोई हँसने की बात नही है. जिसे तुम सिर्फ़ एक स्विम्मर समझ कर हंस रहे हो, वो सिर्फ़ एक स्विममर नही, बल्कि स्विम्मिंग चॅंपियन है. नॅशनल गेम्स मे, टॉप 10 मेडल विन्नर्स मे उसका 1स्ट रॅंक था. उसने 9 गोल्ड मेडल्स और 1 सिल्वर मेडल्स जीता था. इसके अलावा नॅशनल अक्वाटिक चॅंपियन्षिप मे बेस्ट स्विम्मर अवॉर्ड भी उसी के नाम है.”

“उसके इतने मेडल देख कर तो, उस समय मुझे खुद उस से जलन होने लगी थी कि, मुझे एक सिल्वर मेडल हासिल करने के लिए इतना खून पसीना बहाना पड़ा गया और इसने तो गोल्ड मेडल्स की झड़ी लगा दी है. मगर आज उसको देख कर इस बात का अफ़सोस भी हो रहा है कि, इतनी होनहार लड़की को अपनी तबीयत की वजह से स्विम्मिंग छोड़ना पड़ गयी. वरना ये एशियन गेम्स और ओलिमपिक्स मे भी अपने जलवे दिखा रही होती.”

बरखा की बात सुनकर, मेरी हँसी को रोक लग गयी और मेरा चेहरा उतर गया. मेरा उतरा हुआ चेहरा देख कर, बरखा को लगा कि शायद मुझे उसकी बात का बुरा लग गया है. इसलिए उसने मुझसे कहा.

बरखा बोली “क्या हुआ.? क्या तुमको मेरी बात बुरी लगी.”

मैं बोला “नही दीदी, मुझे आपकी कोई बात बुरी नही लगी. मुझे तो ये सब सुनकर, बस इस बात का दुख हो रहा है कि, प्रिया अपनी बीमारी की वजह से, उन बुलंदियों को नही छु पाई, जिन्हे वो आसानी से छु सकती थी.”

अभी मेरी बात पूरी भी नही हो पाई थी कि, तभी प्रिया का कॉल आने लगा. बरखा ने प्रिया का कॉल आते देखा तो, उसने मुझसे कहा.

बरखा बोली “प्रिया की बड़ी लंबी उमर है. अभी हम इसकी बात ही कर रहे है और इसका कॉल आ गया. उस से कह दो कि, तुम आ रहे हो.”

मैने अभी जाने से मना करने की कोसिस की, मगर बरखा ने मेरी बात मानने से मना कर दिया. आख़िर मे मुझे उसकी बात मान कर, प्रिया से कहना ही पड़ा कि, मैं घर आ रहा हूँ.

प्रिया के कॉल रखने के बाद, मैं बरखा के साथ नीचे आ गया. नीचे आकर मैं कुछ देर शिखा दीदी से बात करता रहा. फिर उनसे जाने की इजाज़त लेकर मैं प्रिया के घर के लिए निकल गया.

रास्ते मे मैं कीर्ति से बातें करने लगा. थोड़ी बहुत बात करने के बाद, मैने उसे आराम करने को कहा, मगर वो अभी ओर बात करना चाहती थी. लेकिन मेरे समझाने पर उसने मेरी बात मान ली और प्रिया का घर आते ही उसने कॉल रख दिया.

मैं 12:30 बजे प्रिया के घर पहुच गया. वहाँ पहुचने के बाद, मैने प्रिया को कॉल लगाया तो, उसने फ़ौरन नीचे आकर दरवाजा खोल दिया. इस समय वो ब्लू शॉर्ट नाइटी मे थी और बहुत ज़्यादा सेक्सी लग रही थी.

उस नाइटी मे उसका अंग अंग दमक रहा था. मैने उसे देखा तो देखता ही रह गया. इसकी एक वजह शायद ये भी थी कि, ब्लू मेरा मन पसंद कलर था. उसने मुझे इस तरह घूरते देखा तो, उसके चेहरे की मुस्कुराहट और भी ज़्यादा बढ़ गयी.

उसने मुस्कराते हुए मुझे अंदर आने को कहा और मेरे अंदर आते ही दरवाजा बंद करने लगी. वो दरवाजा बंद करके पलटी तो, मैं अभी भी उसी को देख रहा था. ये देख कर उसने मुझसे इशारे से पुछा कि क्या हुआ तो, मैने उसे छेड़ते हुए कहा.

मैं बोला “ऐसी ड्रेस मे मेरे सामने मत आया करो, किसी दिन कुछ उल्टा सीधा हो गया तो फिर मुझे दोष मत देना.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने फ़ौरन मुझे सावधान करते हुए कहा.

प्रिया बोली “आए अभी मेरी तबीयत सही नही है. अभी ऐसा कुछ करने की बात सोचना भी मत.”

मैं बोला “याने कि तुम्हारे कहने का मतलब है कि, यदि तुम्हारी तबीयत सही हो तो, मैं ऐसा कर सकता हूँ.”

मेरी इस बात पर प्रिया ने मुस्कुरा कर मुझे आँख मारते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम करने का तो बोलो, मेरी तबीयत अभी सही हो जाएगी.”

मैने भी उसकी की तरह शरारत भरे अंदाज़ मे कहा.

मैं बोला “यदि ऐसी बात है तो, हम अभी मेरे कमरे मे चलते है.”

प्रिया बोली “शुभ काम मे देरी करनी भी नही चाहिए. चलो, जल्दी चलो.”

ये कह कर वो मेरे कमरे की तरफ बढ़ने लगी. लेकिन मैने फ़ौरन उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा.

मैं बोला “अरे मैं तो मज़ाक कर रहा था और तुम इसे सच मान रही हो.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने ज़ोर से हंसते हुए कहा.

प्रिया बोली “तो मैं कौन सा सच बोल रही हूँ. मैं भी तो मज़ाक ही कर रही हूँ.”

मैं बोला “तुम्हारे मज़ाक से तो भगवान ही बचाए. मुझे तो पता ही नही चलता कि, तुम कब मज़ाक कर रही हो और कब सच बोल रही हो. ठीक है, अब बहुत रात हो गयी है. तुम जाकर आराम करो.”

प्रिया बोली “अरे अभी तो आए हो. कम से कम थोड़ी देर तो मेरे साथ बात करो.”

प्रिया ने मेरे आने का बहुत इंतजार किया था. इसलिए मुझे उसकी बात काटना अच्छा नही लगा और मैं वही सोफे पर बैठ कर उस से बात करने लगा. बातों बातों मे उसने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “आज मैं तुमको कैसी लग रही हूँ.”

मैं बोला “तुम तो मुझे हमेशा ही सुंदर लगती हो. मगर आज इस नाइटी मे तुम बहुत ज़्यादा सेक्सी लग रही हो.”

मेरी ये बात सुनकर, प्रिया ने थोड़ा सा शरमाते हुए कहा.

प्रिया बोली “ये नाइटी मैने आज ही ली है.”

मैं बोला “अच्छा तो, आज दिन मे तुम इसके लिए ही बाजार गयी थी.”

प्रिया बोली “नही, वो मेरी शादी वाली ड्रेस की फिटिंग कुछ सही नही थी. इसलिए उसे बदलने गयी थी. वहाँ मुझे ये नाइटी दिख गयी और मुझे बहुत पसंद आई तो, मैने इसे भी ले लिया.”

मैं बोला “ये नाइटी सच मे बहुत अच्छी है और तुम्हरे बाकी के नाइटवेर से बिल्कुल भी अलग है. मगर मैने इसके पहले कभी तुमको ब्लू ड्रेस मे नही देखा. लगता है तुमको ब्लू कलर ज़्यादा पसंद नही है.”

मेरी इस बात पर प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “मुझे तो सभी कलर पसंद है. लेकिन आज नितिका दीदी ने बताया कि, किसी को ब्लू कलर कुछ ज़्यादा ही पसंद है. इसलिए मैने सोचा कि, क्यो ना आज कुछ ब्लू ही पहन लिया जाए.”

प्रिया की इस बात से मैं इतना तो समझ गया था कि, उसका ये इशारा मेरी ही तरफ है. क्योकि कीर्ति ने जब अपने ब्लू सलवार सूट वाली बात नितिका को बताई थी तो, उसने सॉफ कहा था कि, ब्लू मेरा मन पसंद कलर है.

अभी मैं इस बारे मे प्रिया से कुछ सवाल करने ही वाला था कि, तभी मुझे रिया आती दिखी. वो भी इस समय एक ब्लॅक नाइटी मे थी और उसकी भी नाइटी प्रिया जितनी ही शॉर्ट थी. मगर उसने नाइटी के उपर एक पारदर्शी गाउन पहना हुआ था. जिससे उसकी सुंदरता छन कर बाहर आ रही थी.

वो सीडियाँ उतरती हुई हम लोगों के पास आ रही थी. मगर प्रिया की मौजूदगी की वजह से मैने उस पर ज़्यादा ध्यान देना ज़रूरी नही समझा. हमारे पास आने के बाद, उसने बताया कि वो प्रिया को देखने उसके कमरे मे गयी थी. लेकिन प्रिया उसे वहाँ नही दिखी तो, वो उसे देखने नीचे आ गयी.

इसके बाद हम तीनो की यहाँ शिखा दीदी की शादी के बारे मे बातें होने लगी. उन दोनो से भी मैने बताया कि, मैं शिखा दीदी की शादी मे क्या करना चाहता हूँ. जिसे सुनने के बाद, दोनो के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और वो भी इसमे मेरा साथ देने को तैयार हो गयी.

उसके बाद, हम लोग थोड़ी देर इसी बारे मे बातें करते रहे. फिर 1:15 बजे रिया ने प्रिया को सोने जाने को कहा मगर प्रिया अभी जाने को तैयार नही थी. इसलिए मैने भी प्रिया को अब आराम करने का कहा. जिसके बाद वो हम दोनो को गुड नाइट बोल कर चली गयी.

उसके जाने के बाद रिया ने मुझसे कहा कि, वो मुझसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहती है. मैने उससे अपनी बात बोलने को कहा तो, उसने कहा कि, यहाँ नही, तुम अपने कमरे मे चलो, मैं थोड़ी देर बाद, तुम्हारे कमरे मे आती हूँ.

मुझे इतनी रात को अकेले मे रिया से अपने कमरे मे मिलना सही नही लग रहा था. लेकिन उसकी ज़िद के आगे मेरी एक नही चली और मुझे इसके लिए हां करना पड़ गया. मैं उसे जल्दी आने का बोल कर, अपने कमरे मे आ गया.

अपने कमरे मे आने के बाद, मैने अपने कपड़े बदले और फिर बेड पर लेट कर रिया के आने का इंतजार करने लगा. थोड़ी ही देर बाद, रिया आ गयी. उसे देखते ही मैं उठ कर बैठ गया.

रिया ने तेज़ी से कमरे के अंदर आते हुए, कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया और फिर अपना गाउन उतार कर, बेड पर फेकते हुए मेरी तरफ बढ़ गयी. इस से पहले मैं कुछ समझ पाता कि, रिया मेरे सामने आकर बैठ गयी.

ये सब इतना अचानक हुआ था कि, मैं थोड़ा सा हड़बड़ा गया और अभी मेरी ये हड़बड़ाहट दूर हो पाती कि, उस से पहले ही रिया ने मेरे चेहरे को पकड़ा और अपने होठ मेरे होठों पर लगा दिए.

मैं इस सबके लिए ज़रा भी तैयार नही था. इसलिए मैं उस से अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करने लगा. लेकिन उसकी पकड़ मे जितनी ज़्यादा मजबूती थी, उसके चुंबन मे उतनी ही ज़्यादा शिद्दत थी. जिसके आगे मेरा विरोध करना बेकार साबित हुआ और कुछ ही देर मे, मैं उसके सामने हथियार डाल कर उसके होठों का रस्पान करने मजबूर हो गया.

 
159
लेकिन ये सब सिर्फ़ एक पल के लिए ही था. क्योकि अगले ही पल मेरे मोबाइल की मेसेज टोन बज उठी. जिसे सुनते ही मेरा ध्यान रिया के चुंबन से हट गया और मैं अपने आपको रिया से अलग कर मेसेज देखने लगा.

आने वाले एसएमएस को देखते ही, मेरी सारी उत्तेजना ऐसे शांत पड़ गयी. जैसे किसी ने उफनते हुए दूध मे ठंडा पानी डाल दिया हो. ये प्रिया का मेसेज था और उसके इस मेसेज ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था.

प्रिया के इस एसएमएस से सॉफ पता चल रहा था कि, रिया के इस समय मेरे कमरे मे, मेरे साथ होने की बात को, वो जानती है और इसलिए उसे इस बात का डर सता रहा है कि, मेरे और रिया के बीच भी वो सब ना हो जाए, जो पापा और रिया के बीच मे हुआ था.

मुझे मेसेज पढ़ने के बाद, इस तरह से सोच मे खोया देख कर, रिया ने मेरे हाथ से मोबाइल ले लिया और मेसेज को देखने लगी.

प्रिया का एसएमएस
“रिश्तों का भरोसा कभी टूटने ना देना.
दोस्ती का साथ कभी छूटने ना देना.
रोक लेना खुद को ग़लती करने से पहले,
अपनी किसी ग़लती से मुझे रूठने ना देना.”

प्रिया का मेसेज पढ़ कर, रिया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. लेकिन उसे ये समझ मे नही आया था कि, ये एसएमएस प्रिया ने भेजा है. क्योकि प्रिया का नंबर मेरे मोबाइल मे स्वीट फ्रेंड के नाम से सेव था. रिया ने मुझे मोबाइल वापस देते हुए पुछा.

रिया बोली “ये क्या लफडा है. तुम्हारी ये स्वीट फ्रेंड कौन है. तुमने तो इसके बारे मे हम लोगों से कभी कुछ नही बताया.”

मैं रिया को प्रिया के बारे मे कुछ भी बताना नही चाहता था. इसलिए मैने बात को बदलते हुए कहा.

मैं बोला “मैं तुम्हे कब और कैसे कुछ बताता. जब से मैं आया हूँ, तब से तुम्हारे पास मेरे से बात करने का समय ही कहाँ था.”

रिया बोली “समय हो या ना हो. लेकिन यदि किसी के मन मे बात करने की चाहत हो तो, समय निकल ही जाता है. जैसे कि आज मैने अपनी बात कहने के लिए समय निकाला है.”

मैं बोला “चलो तुम्हे मेरे लिए समय तो मिला. अब बताओ, तुम्हे मुझसे क्या ज़रूरी बात करनी है.”

अभी रिया मेरी इस बात का कोई जबाब दे पाती कि, तभी प्रिया का दूसरा एसएमएस आ गया. रिया मुस्कुराते हुए, मुझे देखने लगी और मैं प्रिया का मेसेज पढ़ने लगा.

प्रिया का एसएमएस
“बस इतना चाहती हूँ जुदा होने से पहले.
तुम खुद ना खो जाना अपनी मंज़िल पाने से पहले.
रूठे ना कभी तुमसे मोहब्बत तुम्हारी,
इसलिए रोकती हूँ ग़लती होने से पहले.”

प्रिया के इस मेसेज ने मुझे ओर भी ज़्यादा उसके बारे मे सोचने के लिए मजबूर कर दिया था. पहले मेसेज मे जहाँ वो अपनी दोस्ती का वास्ता दे रही थी. वही इस दूसरे एसएमएस मे वो मुझे मेरे प्यार का वास्ता दे रही थी.

लेकिन दोनो ही एसएमएस मे समानता ये थी कि, उसके दोनो हीमेसेज मुझे कोई ग़लती करने से रोकने के लिए किए गये थे. ऐसा लग रहा था, जैसे कि प्रिया इस समय रिया के मेरे कमरे मे होने की बात से बहुत ज़्यादा परेशान थी.

मैं उसकी इस परेशानी को दूर करना चाहता था. लेकिन रिया के मेरे पास होने की वजह से मैं ऐसा कर नही पा रहा था. इधर रिया ने जब मुझे फिर से मेसेज पढ़ने के बाद, कुछ उलझन मे देखा तो, उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.

रिया बोली “लगता है तुम्हारी ये दोस्त, तुम्हारी किसी बात को लेकर बहुत परेशान है. पहले तुम इस से बात कर लो, फिर हम अपनी बात करते है.”

रिया ने कही तो मेरे दिल की बात थी. लेकिन उसके सामने प्रिया से बात करना मुझे सही नही लग रहा था. इसलिए कुछ देर सोचने के बाद, मैने एक मेसेज टाइप किया और प्रिया को भेज दिया.

मेरा एसएमएस
“इस दोस्ती को सदा ऐसे ही निभाती रहना.
दिल की हर बात मुझे ऐसे ही बताती रहना.
तुम्हारी दुआओं से मंज़िल भी पा जाउन्गा मैं.
भटकने ना देना रास्ता ऐसे ही दिखाती रहना.”

प्रिया को ये एसएमएस भेजने के बाद, मैं बेचैनी से उसके मेसेज का इंतजार करने लगा. रिया मेरे पास ही बैठी थी और मेरी इस बेचैनी को देख कर मुस्कुरा रही थी. कुछ ही देर बाद प्रिया का एसएमएस आ गया.

प्रिया का एसएमएस
“दुआ मांगती हूँ खुदा से एक अहसान लिख दे.
तुम्हारी तकदीर मे तुम्हारा प्यार लिख दे.
ना मिले तुम्हे कभी दर्द मोहब्बत मे,
वो चाहे तो मेरी तकदीर मे गम तमाम लिख दे.”

प्रिया का ये मेसेज देख कर, मुझे प्रिया के बड़े दिल का अहसास हो रहा था. दुनिया मे हर कोई अपने प्यार को हासिल करने के लिए दुआएँ माँगता है. लेकिन प्रिया की ये दुआ उसके प्यार को, उस से दूर कर देने वाली दुआ थी.

मैं इस वक्त प्रिया की चाहत और उसके दर्द को अच्छी तरह से महसूस कर सकता था. लेकिन मैं चाह कर भी उसके लिए कुछ नही कर सकता था. अपनी इस बेबसी को देख कर, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट और आँखों मे नमी आ गयी और मैने एक एसएमएस टाइप करके प्रिया को भेज दिया.


मेरा एसएमएस
“काश खुशियों की कोई दुकान होती.
और उसमे मेरी पहचान होती.
खरीद लेता सारी खुशियाँ तुम्हारे लिए.
चाहे उसकी कीमत मेरी जान होती.”

मेरे ये एसएमएस भेजने के थोड़ी ही देर बाद, प्रिया का एसएमएस भी आ गया. लेकिन शायद उसे इस बात का अहसास हो गया था कि, मैं उसकी वजह से परेशान हो गया हूँ. इसलिए इस बार उसका एसएमएस उसके उसी अंदाज़ मे आया, जिसके लिए वो जानी जाती थी.

प्रिया का एसएमएस
“अर्ज़ किया है,
इतने कमजोर हुए तेरी जुदाई से.
गौर फरमाइए,
इतने कमजोर हुए तेरी जुदाई से.
कि चिंटी भी अब खीच ले जाती है चारपाई से.”
“गुड नाइट..स्वीट ड्रीम..”

उसका ये एसएमएस पढ़ कर, एक पल के लिए मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी. मैने भी उसको गुड नाइट का एसएमएस भेज दिया. जिसके बाद प्रिया का कोई एसएस नही आया. लेकिन मैं इस बात को अच्छी तरह से समझता था कि, वो तब तक जागती रहेगी, जब तक कि रिया मेरे कमरे से नही चली जाती है.

इसलिए मैने अब मैं जल्दी से जल्दी रिया को अपने कमरे से भगाना चाहता था. वही रिया मेरे और प्रिया के बीच हुई इस बात चीत को देख कर हैरान और कुछ सोच मे पड़ी हुई थी.

उसे ये बात अच्छी तरह से समझ मे आ चुकी थी कि, मेरी जिंदगी मे कोई दो लड़कियाँ है. इसलिए जैसे ही उसने मुझे मोबाइल रखते देखा तो, फ़ौरन ही मुझसे इस बारे मे सवाल करना सुरू कर दिया.

मैं रिया से कोई झूठ बात बोलना नही चाहता था. मगर चाह कर भी मैं उसे सब सच सच नही बता सकता था. इसलिए मैने उसे एक ऐसी कहानी बना कर सुना दी. जिसमे पूरी सच्चाई थी मगर फिर भी कीर्ति या प्रिया का नाम नही आ रहा था.

मेरी बात सुनकर, रिया हैरानी से मुझे देख रही थी. वो शायद इस बात से हैरान थी कि, उसके जाने के बाद, मेरी जिंदगी मे इतना सब कुछ हो गया है. लेकिन वो इस बात से पूरी तरह से अंजान थी कि, मेरी जिंदगी मे जो कुछ भी हुआ है. वो सब उसके आने के बाद ही हुआ है.

कुछ देर तक रिया हैरानी से मुझे देखती रही. लेकिन फिर जब उसने अपनी हैरानी को छोड़ कर, बोलना सुरू किया तो, मुझे ही हैरान करके रख दिया. रिया अपने दिल की बात बोलती जा रही थी और मैं उसकी बात सुनता जा रहा था. अपनी बात कहते कहते उसकी आँखें भीग गयी थी और मैं भी अपनी आँखों को नम होने से नही रोक सका था.

मैं आज तक जिस लड़की को एक गिरी हुई लड़की समझ रहा था. वो ही लड़की आज मेरी नज़रों मे इतनी उँची हो गयी थी कि, अब मुझे अपनी पुरानी सोच पर पछ्तावा हो रहा था. मैने अपनी आँखों मे छाइ नामी पर हाथ फेरते हुए उसे सॉफ किया और रिया से कहा.

मैं बोला “सॉरी, मैं आज तक तुमको बहुत ग़लत समझता रहा. हो सके तो मुझे इसके लिए माफ़ कर दो.”

रिया ने मुझे ये कहते सुना तो अपने आँसू पोच्छने लगी. फिर मुस्कुराने की कोसिस करते हुए उसने कहा.

रिया बोली “इसमे सॉरी बोलने की कोई बात नही है. तुमने जो देखा था, वही समझा था. तुम्हारी जगह यदि मैं होती तो मैं भी तुमको ऐसा ही समझती.”

मैं बोला “हां, तुम ठीक कहती हो. लेकिन आज मैं एक बात को अच्छी तरह से समझ गया हूँ कि, आँखों देखा और कानो सुना हमेशा पूरी तरह से सच नही होता और हर बात के पीछे कोई ना कोई वजह छुपि होती है.”

रिया बोली “अब इन सब बातों को छोड़ो. चलो अब वो काम पूरा कर लेते है. जो एसएमएस आने की वजह से अधूरा रह गया था.”

रिया की इस बात ने मुझे ज़ोर का झटका सा दिया और मैं उसे गौर से देखने लगा. वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी और अपने होंठों पर जीभ फेर रही थी. मैने उसे समझाते हुए कहा.

मैं बोला “तुमको तो मैने सारी सच्चाई बता दी है. इसके बाद भी तुम मेरे साथ ऐसा क्यो करना चाहती हो. क्या तुमको ये नही लगता कि, मैं तुम्हारे साथ ये सब करके उस लड़की के साथ धोका करूगा, जो मुझसे सच्चा प्यार करती है.”

रिया बोली “मैं आज़ाद ख़यालों की लड़की हूँ और मुझे ऐसा कुछ नही लगता. मगर अब मेरा मूड भी कुछ करने का नही है. इसलिए आज तो मैं तुमको छोड़ देती हूँ. लेकिन दोबारा ऐसा नही होगा. अपनी इज़्ज़त को सभाल कर रखना. क्योकि मेरे रहते तुम्हारी इज़्ज़त को हमेशा ख़तरा बना रहेगा.”

इतना कह कर वो मुस्कुराते हुए, मेरे पास से उठ कर खड़ी हो गयी और मुझे गुड नाइट बोल कर जाने लेगी. लेकिन जाते जाते वो अचानक रुक गयी और मेरी तरफ पलट कर देखते हुए कहने लगी.

रिया बोली “एक शायरी तुम्हारी स्वीट फ्रेंड के लिए. उसे मेरी तरफ से ज़रूर सुना देना.”

रिया की शायरी
“ज़िंदगी तुझसे हर कदम पर समझौता क्यो किया जाए.
शौक जीने का है मगर इतना भी नही कि, मर मर के जिया जाए.
जब जलेबी की तरह उलझ ही रही है तू आए ज़िंदगी,
तो फिर क्यो ना तुझे चासनी मे डुबो कर मज़ा ही ले लिया जाए.”

ये शायरी बोलने के बाद, रिया ने मुझे आँख मारी और हंसते हुए मेरे कमरे के बाहर निकल गयी. मैं उसके बारे मे सोचता हुआ, बस उसे जाते हुए देखता रह गया.

आज रिया की बातें सुनने के बाद, मेरे उसके बारे मे सारे ख़यालात बदल चुके थे और आज वो मुझे प्रिया या निक्की की तरह ही अच्छी लग रही थी. कुछ देर रिया के बारे मे सोचते रहने के बाद, मैने टाइम देखा तो 2:30 बज गये थे.

मैने दरवाजा बंद किया और फिर आकर सोने की कोसिस करने लगा. लेकिन आँख बंद करते ही मेरी आँखों मे कीर्ति का चेहरा आ गया और मुझे उसके ख़यालों ने घेर लिया.

मुझे ये तो याद नही कि, ऐसा कब से था, मगर मैने इस बात को आजमाया था कि, मैं जब कभी उसकी नज़रो से दूर हो जाता था तो, उसकी तबीयत को कुछ ना कुछ ज़रूर हो जाता था और ऐसा ही कुछ अभी भी हुआ था.

कीर्ति खाने पीने की बहुत शौकीन थी और घर मे ज़्यादा तेल मसाले की चीज़ें खाने को ना मिलने पर, वो अपने इस सौक को चोरी छिपे बाहर पूरा करती थी. जिसके लिए उसे बाद मे घर मे बातें भी सुनना पड़ती थी. लेकिन उस पर इन सब बातों का कोई असर नही पड़ता था.

मगर इस बार उसकी तबीयत खराब होने पर वो छोटी माँ की देख रेख मे थी और छोटी माँ किसी की भी तबीयत को लेकर ज़रा भी लापरवाही पसंद नही करती थी और वो खाने पीने का खास ख़याल रखती थी.

यही वजह थी कि, अब कीर्ति को छोटी माँ की देख भाल से परेशानी होने लगी थी. मुझे कीर्ति की इस हालत पर बहुत दुख हो रहा था. लेकिन साथ साथ इस बात की खुशी भी थी कि, छोटी माँ उसके साथ सख्ती से पेश आ रही है और उसकी तबीयत को लेकर ज़रा भी लापरवाही नही कर रही है.

मेरा मन उसको देखने के लिए तड़प रहा था. दिल तो कर रहा था कि, मैं अभी उसके पास पहुच जाउ. लेकिन ऐसा हो पाना अभी किसी तरह से भी संभव नही था. मैं इस समय अपने आपको बहुत बेबस महसूस कर रहा था और मेरी इसी बेबसी ने मेरी आँखों से नींद उड़ा दी थी.

मैं पल पल करवट बदल रहा था और सोने की कोसिस कर रहा था. मगर किसी भी पहलू मे मुझे सुकून नही मिल रहा था और जब ऐसा करते बहुत देर हो गयी तो, मैं उठ कर बैठ गया.

लेकिन अब करूँ तो, क्या करूँ, ये बात मेरी समझ मे नही आ रही थी. अभी रात के 3:15 बजे थे, ऐसे मे बाहर जाकर टहलने का भी सवाल पैदा नही होता था. इसलिए मैने अपना मोबाइल उठाया और कीर्ति के भेजे हुए एसएमएस पढ़ने लगा.

कीर्ति के एसएमएस पढ़ते पढ़ते मेरे सामने वो एसएमएस आ गया, जो कीर्ति ने मुंबई आती आती समय मुझे अपना ख़याल रखने के लिए ट्रेन मे भेजा था.

कीर्ति का वो एसएमएस
“उदास लम्हो का भी ना कोई मलाल रखना.
तूफ़ानो मे भी अपना हौसला संभाल रखना.
मेरे लिए शर्त ए जिंदगानी हो तुम.
इसी खातिर ही सही खुद का ख़याल रखना.”

उसके इस एसएमएस को देख कर, मैं सोचने लगा कि, मुझे मेरी तबीयत का ख़याल रखने को कहा और खुद की तबीयत खराब कर ली. ये एसएमएस तो अपनी तबीयत का ख़याल रखने के लिए, अब मुझे इसको भेजना चाहिए.

ये बात मेरे दिमाग़ मे आते ही मेरा मन किया कि, मैं ये एसएमएस कीर्ति को भेज दूं. लेकिन मुझे इस बात का डर भी लग रहा था कि, कहीं मेरा एसएमएस जाने से उसकी नींद ना टूट जाए. इसलिए मैं चाह कर भी उसे मेसेज भेजने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था. मैं मेसेज भेजू या ना भेजू की अजीब सी कशमकश मे फसा हुआ था.

मगर फिर मेरे दिमाग़ मे ख़याल आया कि, मैं कीर्ति के दूसरे मोबाइल पर बहुत कम कॉल या एसएमएस करता हूँ और उस मोबाइल का इस्तेमाल कीर्ति सिर्फ़ मुझे कॉल करने के लिए करती है. ऐसे मे यदि मैं उस मोबाइल पर एसएमएस करता हूँ तो, कीर्ति को, मेरा मेसेज तभी दिखाई देगा, जब वो मुझे कॉल करने के लिए मोबाइल उठाएगी.

ये बात सोचते हुए, मैने अपनी सारी ताक़त जुटाई और डरते डरते कीर्ति के दूसरे मोबाइल पर वो एसएमएस भेज दिया. अब धड़कते दिल से ये देखने लगा कि, कहीं कीर्ति का कोई एसएमएस या कॉल तो नही आ रहा है. जब थोड़ी देर तक कीर्ति का कोई कॉल या एसएमएस नही आया तो, मैने राहत की साँस ली और फिर से लेट कर सोने की कोसिस करने लगा.

मगर हुआ वो ही, जिस से मैं डर रहा था. अभी मुझे आँख बंद किए कुछ ही देर हुई थी कि, कीर्ति का कॉल आने लगा. मैं फ़ौरन उठ कर बैठ गया और कीर्ति का कॉल उठाते हुए कहा.

मैं बोला “हेलो.”

कीर्ति बोली “जान, इतनी रात को क्या तुमको मेसेज मेसेज खेलना है.”

उसकी आवाज़ से वो उनीदी सी लग रही थी और उसकी आवाज़ बहुत रुक रुक कर आ रही थी. मुझे अब अपने एसएमएस करने की ग़लती पर पछतावा हो रहा था. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला “सॉरी, वो मैने ऐसे ही मेसेज कर दिया था. तू अपनी नींद खराब मत कर और सो जा.”

कीर्ति बोली “आइ लव यू जान, मुऊऊऊहह.”

मैं बोला “आइ लव यू, मुउउहह. अब तू सो जा.”

कीर्ति बोली “ओके जान, लेकिन तुम क्यो जाग रहे हो. क्या तुमको सोना नही है.”

मैं बोला “मुझे नींद नही आ रही है. लेकिन तू मेरी फिकर मत कर और अब कॉल रख.”

कीर्ति बोली “लेकिन तुम क्यो बैठे हो. तुम भी सो जाओ ना.”

मैं बोला “ठीक है, मैं भी सो जाता हूँ, पर अब तू कॉल रख.”

कीर्ति बोली “नही, मुझे कॉल नही रखना. तुम मुझे पकड़ कर सो जाओ.”

वो बहुत ज़्यादा नींद के नशे मे लग रही थी. इसलिए अब मुझे उस से ज़्यादा बहस करना ठीक नही लगा. इसलिए मैने लेटते हुए कहा.

मैं बोला “ये ले, मैं भी लेट गया. अब तू सो जा.”

कीर्ति बोली “अब अपनी आँख बंद करो और मुझे ज़ोर से पकड़ लो. मैं तुम्हारे सर पर हाथ फेरती हूँ.”

कीर्ति उनीदी सी हालत मे बुदबुड़ाए जा रही थी. मैने उसकी बात सुनकर अपनी आँख बंद कर ली. उसका बुदबुदाना और उसकी सांसो की आवाज़ से मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि, जैसे वो मेरे पास ही है.

कुछ देर मे मे उसका बुदबुदाना बंद हो गया और वो सो गयी. मगर उसकी साँसों की आवाज़ अभी भी सुनाई दे रही थी. जिस से मुझे बहुत सुकून मिल रहा था और इस सुकून को महसूस करते करते, पता नही कब, मैं भी गहरी नींद की आगोश मे चला गया.
 
160
मुझे इतनी ज़्यादा सुकून भरी नींद आई कि, सुबह 8:30 बजे किसी के दरवाजा खटखटाने पर ही मेरी नींद खुली. मैने दरवाजा खोला तो सामने प्रिया खड़ी थी. उसने बताया कि मेहुल लोग अमन के घर से सुबह वापस लौटे है.

मैने उस से निक्की के बारे मे पुछा तो उसने बताया कि, निक्की वही पर है. लेकिन 11 बजे तक आने का बोली है. इसके बाद वो मुझे फ्रेश होने का बोल कर वापस चली गयी और मैं फ्रेश होने चला गया.

मैं फ्रेश होकर तैयार होने लगा और तभी प्रिया चाय नाश्ता लेकर आ गयी. लेकिन आज उसके चेहरे से उसकी जानी पहचानी मुस्कान गायब थी. उसने फीकी सी मुस्कान के साथ मुझे चाय नाश्ता करने को कहा और मेरे पास ही बैठ गयी.

शायद कल देर रात तक रिया के मेरे कमरे मे रहने की वजह से उसके मन मे बहुत से सवाल थे. मगर शायद वो मेरे नाराज़ हो जाने के डर से, चाह कर भी कुछ पुच्छ नही पा रही थी. मैं उसकी इस परेशानी को समझ रहा था. इसलिए मैने उसकी इस परेशानी को दूर करने के लिए बात बनाते हुए उस से कहा.

मैं बोला “यार तुमने मुझे इतनी जल्दी क्यो जगा दिया. आज मेरी नींद पूरी नही हो पाई है.”

मुझे लगा था कि, प्रिया मुझसे मेरी नींद पूरे ना होने की वजह पुछेगि और मुझे इसी बहाने रिया की बात बताने का मौका मिल जाएगा. लेकिन उसने मेरी इस बात का सीधा सा जबाब देते हुए कहा.

प्रिया बोली “सॉरी, वो निक्की 11 बजे आने का बोली थी और तुम 8:30 बजे तक सोकर नही उठे थे. मुझे लगा कि तुमको तैयार होने और नाश्ता वग़ैरह करने मे देर ना हो जाए, इसलिए मैने तुमको जगा दिया, वरना मैं तुमको सोने देती. वैसे भी तुमको जगाने का ठेका तो निक्की ने ही लेकर रखा है.”

ये कह कर वो ज़ोर से खिलखिलाने लगी. मगर अब मैं उसकी इस हँसी को अच्छे से समझने लगा था. उसकी हँसी, उसके असली जज्बातों को छिपाने का सिर्फ़ एक परदा थी और ये परदा उसके चेहरे पर हमेशा रहता था.

मगर अब उसकी ये हँसी मेरे दिल को चोट पहुचाती थी. मैं उसके चेहरे पर नकली हँसी नही, बल्कि हमेशा असली हँसी देखना चाहता था. इसलिए अब मैने प्रिया के कोई सवाल करने का इंतजार करना ठीक नही समझा और खुद ही उसे रात को रिया से हुई वो बातें बताना सुरू कर दिया, जो बातें उसके लिए जानना ज़रूरी था.

वो बड़े गौर से मेरी बातें सुन रही थी और धीरे धीरे उसकी आँखें आँसुओं से भीग गयी. मेरी बात ख़तम होने के बाद, उसने अपने चेहरे से आँसुओं को सॉफ किया और फिर बिना कुछ कहे उठ कर जाने लगी. उसे इस तरह जाता देख, मैने फ़ौरन उसका हाथ पकड़ कर, उसे रोकते हुए कहा.

मैं बोला “तुम कहाँ जा रही हो. मैने ये बात सिर्फ़ तुमसे इसलिए बताई है, ताकि तुम्हारे मन मे रिया की किसी बात की वजह से कोई ग़लतफहमी ना रहे. लेकिन यदि ये सब बातें तुम रिया से जाकर करोगी तो, उसे ये जान कर बहुत दुख होगा कि, उसकी छोटी बहन उसके बारे मे इतना सब कुछ जानती है. वो बेचारी ये बात जानने के बाद खुद की ही नज़रो मे गिर जाएगी.”

मेरी बात सुनकर प्रिया वापस अपनी जगह पर बैठ गयी. लेकिन उसकी आँखों से आँसू अभी भी बह रहे थे. इस समय उसके दिल की जो हालत थी, मैं अच्छी तरह समझ रहा था. फिर भी मैने माहौल को हल्का बनाने के लिए प्रिया के आँसू पोछ्ते हुए कहा.

मैं बोला “तुम्हारी आँखों मे आँसू अच्छे नही लगते. तुम हँसती हुई ही अच्छी लगती हो. इसलिए हमेशा हँसती ही रहा करो. मेरी मोम कहती है कि, जो रिश्ते दिल से निभाए जाते है, उनमे प्यार और अपनापन हमेशा बना रहता है. ऐसे रिश्ते अपने दिल की बात कहने के लिए शब्दो के मोहताज नही होते. इसलिए तुम रिया से इस बारे मे कुछ मत कहो. ये ही तुम दोनो के लिए अच्छा है.”

अभी मैं प्रिया को समझा ही रहा था कि, तभी मेरा मोबाइल बजने लगा. मैने कॉल उठाया तो, छोटी माँ का कॉल था. मैने प्रिया को ये बात बताई और फिर छोटी माँ का कॉल उठाते हुए कहा.

मैं बोला “जी छोटी माँ.”

छोटी माँ बोली “क्या कर रहा था तू.”

मैं बोला “कुछ नही छोटी माँ, बस आपकी ही बात याद कर रहा था.”

छोटी माँ बोली “आज कल तू बहुत बातें बनाने लगा है. जब भी कॉल करो, बस एक ही बात बोलता है कि, आपको ही याद कर रहा था.”

छोटी माँ की इस बात पर मुझे हँसी आ गयी. मैं उनको अपनी सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “अब इसमे मैं क्या कर सकता हूँ. मैं जब भी आपको याद करता हूँ, आप कॉल कर देती हो.”

छोटी माँ बोली “चल ठीक है. मैने ये बताने के लिए कॉल किया था कि, मैने कार बुक्ड कर दी है और पेमेंट भी कर दी है. तुम आज 12 बजे के बाद ऑडी कार शोरुम मे जाकर कार उठा लेना.”

ये बात सुनकर, मेरी खुशी का ठिकाना नही रहा. अब तक प्रिया भी अपने आपको संभाल चुकी थी. उसने अचानक मुझे इतना खुश देखा तो इशारे से पुछ्ने लगी. मैने उसे थोड़ा रुकने का इशारा किया और छोटी माँ से कहा.

मैं बोला “छोटी माँ, ये तो आपने बहुत अच्छी खबर दी है. मगर आपने मुझसे बिना पुच्छे ही कार क्यो बुक्ड कर दी. कम से कम मुझसे कार का कलर ही पुच्छ लेती. अब पता नही आपने कौन सा कलर लिया है.”

मेरी बात सुनकर छोटी माँ ने हंसते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “तू नाराज़ क्यो होता है. कीर्ति ने मुझे बताया था कि, तूने रेड कलर की ऑडी कार लेने की बात सोची है. इसलिए मैने रेड कलर ही लिया है.”

छोटी माँ की इस बात ने मुझे हैरान कर दिया. मुझे समझ मे नही आया कि, मैने कब कीर्ति से ये बात कह दी थी. क्योकि ना तो मैने ऐसा कुछ सोचा था और ना ही ऐसा कुछ कीर्ति से कहा था.

फिर भी कीर्ति ने छोटी माँ के सामने मेरा नाम लेकर ये बात कह दी थी तो, मुझे भी छोटी माँ के सामने चुप रह जाना पड़ा. इसके बाद मैने छोटी माँ से इस बारे मे कोई ओर बात नही की और उनसे थोड़ी बहुत ज़रूरी बातें करके कॉल रख दिया.

छोटी माँ से बात हो जाने के बाद, मैने प्रिया की तरफ देखा तो, अब उसके चेहरे पर वो ही पहले वाली मुस्कान थी. शायद मेरी और छोटी माँ की बातें सुनकर, उसका मूड ठीक हो गया था. मेरे कॉल रखते ही उसने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “क्या तुम कोई कार ले रहे हो.”

मैं बोला “हां, मेरी मोम शादी मे शिखा दीदी को एक कार गिफ्ट कर रही है. उन्हो ने ये बताने के लिए कॉल किया था कि, मैं ऑडी कार शोरुम मे जाकर कार उठा लूँ.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया फटी फटी सी आँखों से मुझे देखने लगी. जैसे मैने कोई बहुत बड़ी हैरानी वाली बात कह दी हो. उसे इस तरह से हैरान देख कर मैने उस से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ.? तुम इस तरह मुझे क्यो देख रही हो.”

प्रिया बोली “तुम ठीक कहते थे. तुम्हारी मोम सच मे दुनिया की सबसे अच्छी मोम है.”

उसकी ये बात सुनकर मुझे हँसी आ गयी और मैने उस से पुछा.

मैं बोला “क्यो ऐसा क्या हुआ, जो आज तुमको मेरी ये बात सच लगने लगी. क्या शिखा दीदी को कार गिफ्ट कर देने से तुमको ऐसा लग रहा है.”

प्रिया बोली “नही, बात सिर्फ़ कार गिफ्ट करने की नही है. बात ये है कि, तुम्हारी मोम शिखा दीदी को जानती तक नही है. वो सिर्फ़ तुम्हारी खुशी के लिए ये सब कर रही है. वो एक माँ की तरह तुम्हारी देख भाल करती है और एक दोस्त की तरह तुम्हारा साथ भी देती है. तुमने पिच्छले जनम मे ज़रूर बहुत अच्छे करम किए होगे, इसलिए तुम्हे इस जनम मे ऐसी मोम मिली है.”

प्रिया के मूह से छोटी माँ के लिए ये सब बातें सुनकर, मेरा दिल खुश हो गया. मैने मुस्कुराते हुए, प्रिया से कहा.

मैं बोला “मेरी मोम की इतनी तारीफ के लिए थॅंक्स.”

इसके आगे हम लोग कोई और बात कर पाते कि, हमे बाहर से शोर शराबे की आवाज़ें आने लगी. ये आवाज़ें सुन कर हम एक दूसरे को देखने लगे. फिर प्रिया ने बाहर चल कर देखने को कहा तो, मैं उसके साथ उठ कर बाहर हॉल मे आ गया.

वहाँ नितिका और उसकी मोम मोहिनी के बीच किसी बात को लेकर कहा सुनी चल रही थी. राज, रिया, मेहुल, दादा जी और पद्‍मिनी आंटी सभी वहाँ पर मौजूद थे. नितिका इस समय एक ब्लॅक मिनी स्कर्ट टॉप मे थी. जो बेहद ही भड़कीला था.

उसे इस ड्रेस मे देख कर मुझे समझते देर नही लगी कि, हो ना हो सारी कहा सुनी इसी बात पर चल रही है. फिर भी मामले को समझने के लिए मैं खामोश होकर उन सबकी बातें सुनने लगा.

आंटी और दादा जी उन दोनो को शांत करवाने की कोसिस कर रहे थे. लेकिन पता नही मोहिनी आंटी ने ऐसी क्या बात बोल दी थी, जिसकी वजह से नितिका कुछ ज़्यादा ही गुस्से मे नज़र आ रही थी. उसने अपनी मोम पर गुस्से मे चीखते हुए कहा.

नितिका बोली “आप अपने आपको समझती क्या है. आप जब चाहे जिसकी बेज़्जती कर देगी और आप को कोई कुछ नही कहेगा. आज आपने आंटी के उपर उंगली उठा कर अच्छा नही किया. अब आप भी कान खोल कर सुन लीजिए. आज से मैं आपकी कोई भी बेहूदा बात नही सुनूँगी. मुझे क्या पहनना है, क्या खाना है, इसका फ़ैसला मैं खुद ही करूगी. आपको मेरी किसी बात मे टाँग अडाने की ज़रूरत नही है.”

नितिका ने बुरी तरह से मोहिनी आंटी को झिड़का था और उसकी इस बात को सुनकर मोहिनी आंटी का पारा भी बहुत चढ़ गया था. वो गुस्से मे नितिका को बकते हुए कहा.

मोहिनी आंटी बोली “बित्ते भर की छोरि और अपनी माँ से ज़ुबान लड़ाती है.”

ये कहते हुए मोहिनी आंटी ने नितिका को थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ उठाया, मगर नितिका ने उनका हाथ बीच मे ही पकड़ कर थप्पड़ पड़ने से रोक लिया. मोहिनी आंटी अपना हाथ छुड़ाने की कोसिस करने लगी. मगर नितिका ने मजबूती से उनका हाथ पकड़ा रखा.

नितिका का ये रूप मेरे लिए बिल्कुल ही नया था और एक तरह से वो अपनी मोम की सबके सामने खुल कर बेइज़्ज़ती कर रही थी. लेकिन मोहिनी आंटी ने जो बातें कीर्ति और निक्की के लिए बोली थी. उन बातों की वजह से मुझे उनके साथ ये सब होते देख कर खुशी हो रही थी.

मगर नितिका को ऐसा करते देख कर प्रिया आगे बड़ी और उसने नितिका से मोहिनी आंटी का हाथ छुड़ाते हुए, गुस्से मे सब से कहा.

प्रिया बोली “आप सब खड़े होकर ये तमाशा देख रहे है. आप सब से ये भी नही हुआ कि, दीदी को ऐसा करने से रोक दे.”

लेकिन किसी के कुछ बोलने के पहले ही, प्रिया की इस बात का जबाब नितिका ने देते हुए कहा.

नितिका बोली “कोई तमाशा नही देख रहा है. ये औरत इसी लायक है कि, सब इसकी बेज़्जती करते रहें. सीरू दीदी ठीक ही कहती थी कि, ये गाओं की गँवार है और इसे तो यहाँ मुंबई मे घुसने ही नही देना चाहिए था.”

नितिका की इस बात पर प्रिया ने गुस्से मे उसको घूरते हुए कहा.

प्रिया बोली “खबरदार दीदी, यदि आपने चाची के साथ ज़रा भी बदतमीज़ी की तो, मुझसे बुरा कोई नही होगा. वो आपकी माँ है और उनके साथ तमीज़ से बात कीजिए.”

मगर नितिका पर प्रिया की इस बात का ज़रा भी असर नही पड़ा. उसने उल्टा प्रिया को समझाते हुए कहा.

नितिका बोली “तुझे पता भी है, इस औरत ने तेरे बारे मे कितनी गंदी बात कही है. यदि तू सुन लेती तो, तू इसका मूह ही नोच लेती. मुझे तो अब इसको अपनी माँ कहते हुए भी शरम आ रही है.”

नितिका की इस बात ने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि, आख़िर मोहिनी आंटी ने ऐसी क्या बात बोल दी थी. जिसकी वजह से नितिका ही अपनी मोम के खिलाफ खड़ी हो गयी थी और इतना ज़्यादा भड़की हुई थी. लेकिन प्रिया ने नितिका की इस बात को सुनकर भी अनसुना करते हुए उस से कहा.

प्रिया बोली “बस दीदी, अब बहुत हो गया. चाची ने मुझे क्या बोला और क्या नही बोला, मुझे कुछ नही जानना. आप अभी के अभी चाची से अपनी ग़लती की माफी माँगो.”

नितिका बोली “मैने कोई ग़लती नही की और ना ही मैं इस औरत से अपनी किसी बात के लिए माफी माँगूंगी.”

लेकिन प्रिया भी कम जिद्दी नही थी. उसने अपनी बात को दोहराते हुए कहा.

प्रिया बोली “दीदी, आपको मेरी कसम है. आप चाची से अपनी ग़लती की माफी माँगो.”

मगर नितिका ने उसकी बात मानने से इनकार करते हुए कहा.

नितिका बोली “नही, मैं किसी बात की माफी नही माँगूंगी. तुझे जो समझना है, समझ ले.”

प्रिया बोली “दीदी, आपको मैने अपनी कसम दी है. आप अभी के अभी चाची से माफी माँगो, वरना आप मेरा मरा हुआ मूह देखोगी.”

प्रिया की इस ज़िद के आगे नितिका को झुकना ही पड़ गया. उसने मोहिनी आंटी को सॉरी कहा और फिर गुस्से मे पलट कर, अपने कमरे मे चली गयी. उसके जाते ही दादा जी भी अपने कमरे मे चले गये.

मोहिनी आंटी शांत खड़ी थी और पद्‍मिनी आंटी की आँखों मे नमी छाइ हुई थी. मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि, यहाँ हुआ क्या है. मगर प्रिया को जैसे ये सब जानने की कोई उत्सुकता ही नही थी. उसने मोहिनी आंटी का हाथ पकड़ कर उन्हे बैठाते हुए कहा.

प्रिया बोली “चाची, नीति दीदी ने आपके साथ जो बदतमीज़ी की है, उसके लिए मैं आपसे माफी मांगती हूँ. मैं जानती हूँ कि, आपको मैं और मेरी हरकतें पसंद नही है. मगर मैं आपसे वादा करती हूँ कि, आज के बाद आपको मेरी वजह से नीति दीदी से कोई शिकायत नही होगी.”

ये कहते कहते प्रिया की आँखों मे नमी छा गयी और वो अपनी आँखों की इस नमी को सबसे छुपाने के लिए, वहाँ से उठ कर जाने लगी. मगर राज जो अभी तक खामोशी से सब कुछ देख रहा था. उसने प्रिया का हाथ पकड़ कर उसे जाने से रोकते हुए आंटी से कहा.

राज बोला “चाची, आज नीति ने जो कुछ किया, मैं उसमे उसकी ज़रा भी ग़लती नही मानता. ये उसका अपनी बहन के लिए प्यार था, जो गुस्से के रूप मे बाहर निकल कर आया था और आज मैं भी आपसे ये जानना चाहता हूँ कि, मेरी जिस बहन की मुस्कान मेरी जान है, आप उसे बार बार आँसू क्यो देती हो. आपको मेरी इस भोली भाली बहन से इतनी नफ़रत क्यो है. आज आपको मेरे इस सवाल का जबाब देना ही होगा.”

ये कह कर राज मोहिनी आंटी को देखने लगा. वही प्रिया ने मोहिनी आंटी का बचाव करते हुए राज से कहा.

प्रिया बोली “भैया चाची मुझसे नफ़रत नही करती. बस उन्हे मेरी हरकतें पसंद नही है. इसलिए वो मुझे पसंद नही करती है.”

मगर राज ने प्रिया को डाँट कर चुप करते हुए कहा.

राज बोला “तू अपना मूह बंद रख. मैं कोई छोटा बच्चा नही हूँ, जो इनकी इस नफ़रत को भी ना समझ सकूँ. यदि इन्हे तेरे छोटे कपड़े पहनने से परेशानी है तो, फिर ये रिया को क्यो कभी कुछ नही कहती. रिया के साथ तो ये बड़े प्यार से पेश आती है. उसे तो ये कभी तेरी तरह जलील नही करती है. फिर तेरे साथ ये ऐसा क्यो करती है. आज मैं ये जान कर रहूँगा.”

राज की बात सुनकर, मोहिनी आंटी यहाँ वहाँ देखने लगी. उन्हे देख कर ऐसा लग रहा था कि, जैसे राज ने उनकी कोई चोरी पकड़ ली हो. मगर एक बार फिर प्रिया ने एक बार फिर मोहिनी आंटी का बचाव करते हुए कहा.

प्रिया बोली “भैया, वो मेरी चाची है और उन्हे मुझे कुछ भी बोलने का पूरा हक़ है. आपको मेरी कसम है. अब आप चाची से इस बारे मे कुछ नही पुछेगे. आप क्या, कोई भी उनसे कुछ नही पुछेगा.”

प्रिया की इस बात पर राज गुस्से मे उसकी तरफ देखने लगा. मगर प्रिया ने उसे गुस्से मे देखा तो, बड़ी मासूमियत से अपने कान पकड़ लिए और अपना सर हिला कर उसे गुस्सा ना करने के लिए कहने लगी.

प्रिया की इस मासूमियत और उसकी कसम के सामने राज बेबस हो गया. मगर उसका गुस्सा कम नही हुआ और वो वहाँ से चला गया. राज के वहाँ से चले जाने के बाद वहाँ खामोशी छा गयी.

अब वहाँ के इस तनाव भरे महॉल मे एक पल के लिए भी रह पाना मेरे लिए मुश्किल हो गया था. मैने मेहुल की तरफ देखा तो, उसने वहाँ से चलने का इशारा किया और फिर हम दोनो वहाँ से अंकल के कमरे मे आ गये.

अंकल के पास आते ही, अंकल इस शोर शराबे की वजह पुच्छने लगे. तब मेहुल ने बताया कि, हम सब नाश्ता कर रहे थे. नाश्ते के बाद, नितिका ने बताया कि, प्रिया ने उसे एक ड्रेस गिफ्ट की है. इतना बोल कर वो हम सब को दिखाने के लिए ड्रेस पहनने चली गयी.

जब वो ड्रेस पहन कर वापस आई तो, उसकी ड्रेस देख कर, मोहिनी आंटी का गुस्सा भड़क गया. उन्हो ने गुस्से मे प्रिया को उलट सीधा बकते हुए कहा कि, डायन खुद तो रंडी की तरह अपना जिस्म दिखाते फिरती है और अब मेरी बेटी को भी वैसा ही बनाना चाहती है. पता नही इसकी रगों मे किसका गंदा खून बह रहा है.

मोहिनी आंटी की इस बात को सुनकर, राज उनको ऐसी बात बोलने के उपर से गुस्सा करने लगा. मगर उस से ज़्यादा गुस्सा नितिका को आ गया. उसने तो सारा घर ही सर पर उठा लिया और मोहिनी आंटी को अपनी माँ मानने से ही इनकार करते हुए उल्टा सीधा बकने लगी.

वो प्रिया को ये सब बोले जाने की वजह से बहुत गुस्से मे थी. उसका कहना था कि, उसकी माँ ने सिर्फ़ प्रिया को ही नही, बल्कि आकाश अंकल और पद्‍मिनी आंटी के खून को भी गाली दी है और इसके लिए वो अपनी माँ को कभी माफ़ नही करेगी.

नितिका को इस तरह बकते देख दादा जी और पद्‍मिनी आंटी उसे समझाने की कोसिस करते रहे. लेकिन वो किसी बात सुनने को तैयार नही थी और तभी प्रिया भी वहाँ आ गयी और उसने ये सब झगड़ा शांत कराया. इसके बाद मेहुल वो सब बातें अंकल को बताने लगा, जो मेरे सामने हुई थी.

आज सुबह सुबह ही मोहिनी आंटी ने ऐसा धमाका कर दिया था कि, मेरा सारा मूड खराब हो गया था और ऐसा लग रहा था कि, अब बाकी का सारा दिन भी ऐसा ही गुजरने वाला है.

ये बात सोचते ही मुझे याद आया कि, अभी तो निक्की भी यहाँ आने वाली है. कहीं ऐसा ना हो कि, यहाँ के तनाव की वजह से उसका मूड भी खराब हो जाए. ये बात दिमाग़ मे आते ही, मैं फ़ौरन अपने कमरे मे आ गया.

अपने कमरे मे आते ही मैने फ़ौरन निक्की को कॉल लगा दिया. निक्की से बात करने पर पता चला कि, वो यहंन आने के लिए निकलने ही वाली थी. मगर मैने उसे यहाँ आने से रोकते हुए, उसे सीधे शिखा दीदी के घर पहुचने को कह दिया.

इसके बाद मैने प्रिया को कॉल करके निक्की के यहाँ ना आने के बारे मे बता दिया. जिसके बाद उसने कहा कि, वो अभी तैयार होकर आती है. फिर मैने राज, रिया और मेहुल को भी तैयार होने का बोलने के बाद, मैं उनके आने का इंतजार करने लगा.

कुछ ही देर मे राज और मेहुल तैयार होकर मेरे कमरे मे आ गये. मैं उन्हे कार के बारे मे बता रहा था. तभी रिया भी आ गयी और उसे भी प्रिया की तरह कार के बारे मे सुनकर, बहुत हैरत हुई.

हमारी बात चल ही रही थी कि, तभी राज गुस्से मे दरवाजे की तरफ देखने लगा. उसे इस तरह गुस्से मे दरवाजे की तरफ देखते देख कर, हम सब की नज़र भी दरवाजे की तरफ चली गयी.

लेकिन दरवाजे की तरफ देखते ही, मेरी और मेहुल की आँखे हैरत से खुली की खुली रह गयी. वही जब रिया की नज़र दरवाजे पर पड़ी तो, उसके चेहरे पर भी वो ही भाव आ गये, जो कि राज के चेहरे पर थे.
 
161
दरवाजे से मुस्कुराती हुई प्रिया अंदर आ रही थी. लेकिन हम सब के इस तरह से हैरान होने की वजह प्रिया का आना नही, बल्कि वो ड्रेस थी, जो इस समय वो पहने हुई थी. इस समय प्रिया रेड कलर का सलवार सूट पहने हुई थी.

इस सलवार सूट मे वो बेहद सुंदर, प्यारी और मासूम लग रही थी. मेहुल तो उसे ऐसे देख रहा था, जैसे की पहली बार वो प्रिया को देख रहा हो. तब तक वो चल कर हमारे पास आकर खड़ी हो गयी और फिर से अपनी मुस्कुराहट बिखेरते हुए, उसने हमसे कहा.

प्रिया बोली “कैसी लग रही हूँ मैं.”

प्रिया की बात सुनते ही मेहुल ने तपाक से कहा.

मेहुल बोला “बहुत सुंदर लग रही हो. मुझे तो अपनी आँखों पर अभी भी विस्वास नही हो रहा है कि, मेरे सामने जो लड़की खड़ी है, वो हमारी प्रिया है.”

मेहुल की बात सुनकर, प्रिया खिलखिलाने लगी. मगर राज ने उस पर गुस्सा करते हुए कहा.

राज बोला “ये सब क्या नाटक है. तूने नीति के कपड़े क्यो पहने है.”

प्रिया बोली “ये नीति दीदी के कपड़े नही है. ये तो मेरा सूट है, बहुत दिन से पहना नही था, इसलिए आज पहन लिया.”

लेकिन प्रिया की ये बात सुनते ही राज गुस्से मे उठ कर खड़ा हो गया और फिर प्रिया पर भड़कते हुए कहा.

राज बोला “मुझे चराने की कोसिस मत कर. मैं ही नही, ये सब भी जानते है कि, ये सूट नीति का है.”

राज की बात सुनकर, प्रिया ने मेरी तरफ देखा. मैने सर हिलाकर, उसे इस बात की सहमति दी कि, राज ठीक कह रहा है. असल मे प्रिया जो सूट पहने थी, वो सूट नितिका ने तब पहना था, जब हम सब वॉटरफॉल गये थे.

प्रिया को मेरी बात समझ मे आते ही, एक नज़र सब की तरफ देख और फिर फ़ौरन ही बात को बदलते हुए राज से कहा.

प्रिया बोली “हहेहहे, मैं तो मज़ाक कर रही थी. ये नीति दीदी का सूट ही है, मगर मुझे बहुत पसंद आया तो, मैने पहन लिया.”

प्रिया की बात सुनकर हम सब मुस्कुरा दिए. लेकिन राज पर इस सब का कोई असर नही पड़ा. उसने प्रिया की बात को काटते हुए कहा.

राज बोला “तुझे क्या पसंद है और क्या पसंद नही है, मैं सब जानता हूँ. तुझे किसी के लिए अपने आपको बदलने की कोई ज़रूरत नही है. अब जा और जाकर अपने कपड़े पहन कर आ. मुझे तेरे ये कपड़े ज़रा भी पसंद नही है.”

प्रिया बोली “भैया प्लीज़, मेरी खातिर, मुझे ये सूट पहनने दो ना.”

प्रिया ने बड़ी ही मासूमियत से ये बात कही थी और उसकी ये बात सुनकर, राज का दिल भी पिघल गया. राज ने उसे समझाते हुए कहा.

राज बोला “देख, तू कुछ भी पहने, मुझे कोई परेशानी नही है. मगर मेरी एक बात कान खोल कर सुन ले. तुझे कभी कुछ भी ऐसा करने की ज़रूरत नही है, जो तुझे पसंद ना हो. मेरे लिए तेरी खुशी से बढ़ कर, कुछ भी नही है. मैं हमेशा तुझे खुश और हंसते हुए देखना चाहता हूँ.”

राज की ये बात सुनकर, प्रिया उसके गले से लग गयी और हम सब लोग उनको देख कर मुस्कुरा लगे. तभी नितिका आ गयी. उसने प्रिया को राज के गले लगे देखा तो, उसने राज को टोकते हुए कहा.

नितिका बोली “भैया, अपना सारा प्यार क्या सिर्फ़ प्रिया पर ही लूटा देने का इरादा है या फिर कुछ हम दोनो बहनों के लिए भी बचाने का सोचा है.”

नितिका की बात सुनकर, हम सब हँसने लगे. लेकिन प्रिया ने सबको टोकते हुए याद दिलाया कि, 11 बज चुके है और अब हम लोगों को शिखा दीदी के घर के लिए निकलना चाहिए.

प्रिया की ये बात सुनकर सब उठ कर खड़े हो गये और शिखा दीदी के घर जाने के लिए बाहर आ गये. फिर प्रिया, रिया, नितिका कार मे और मैं, मेहुल, राज बाइक मे शिखा दीदी के घर के लिए निकले पड़े.

हम लोग 11:30 बजे शिखा दीदी के घर पहुच गये. निक्की वहाँ पहले ही पहुच गयी थी. वहाँ पर खाना पीना चल रहा था. हमारे पहुचते ही बरखा ने हम सब के लिए भी खाना लगा दिया. खाना पीना होते होते 12 बज गये.

उसके बाद मैने बरखा से हमारे साथ चलने का कहा तो, उसने कहा कि, अभी दीदी को पहली हल्दी चढ़नी है. ऐसे मे उसका हमारे साथ जा पाना मुश्किल है. मगर मैने उसे समझाया कि, हमे ज़्यादा देर नही लगेगी और यदि ज़्यादा देर लगी तो, हम उसे वापस घर भेज देगे.

मेरी बात सुनकर, वो हमारे साथ चलने के लिए तैयार हो गयी. लेकिन मैने उसे ये नही बताया कि हम कहाँ जा रहे है. फिर एक कार मे राज, रिया, प्रिया, नितिका और एक कार मे मैं, मेहुल, बरखा, निक्की ऑडी कार शोरुम के लिए निकल पड़े.

कुछ ही देर मे हम सब वहाँ पहुच गये. वहाँ पहुचने के बाद, बरखा को जब ये बात पता चली कि, वहाँ हम किसके लिए कार लेने आए है तो, वो ऐसा करने से पहले शिखा दीदी से पुच्छ लेने की ज़िद करने लगी.

मगर मैने ऐसा करने से मना करते हुए कहा कि, ये मेरी तरफ से नही बल्कि मेरी मोम की तरफ से है और शिखा दीदी को इस सब से कोई परेशानी है तो वो खुद ही मेरी मोम से बात कर लेगी. मेरा काम सिर्फ़ मोम का गिफ्ट दीदी तक पहुचाना है.

बाकी सब लोगों ने भी मेरी हां मे हां मिलाई और आख़िर मे बरखा को भी हमारी बात मानना पड़ गयी. फिर हमने मोम की बुक्ड की हुई कार वहाँ से ले ली. लेकिन प्रिया कार ले चलने के पहले, कार की पूजा करने की बात करने लगी.

मगर हम पूजन कोई समान लेकर नही गये थे. इसलिए मैं मेहुल और राज बाहर समान लेने आ गये. बाहर आने पर हमे सड़क के दूसरी तरफ एक दुकान नज़र आ गयी और हम वहाँ पूजन का समान लेने चले गये.

हम अभी दुकान से समान ले ही रहे थे कि, तभी छोटी माँ का कॉल आ गया. मैने मेहुल को छोटी माँ का कॉल आने की बात बताई और फिर उन लोगों को वही पर समान लेते छोड़ कर, मैं सड़क के किनारे यहाँ वहाँ टहलते हुए छोटी माँ से बात करने लगा.

छोटी माँ से बात करते करते मेरी नज़र शोरुम की तरफ पड़ी तो, प्रिया बाहर खड़ी मुझे ही देख रही थी. शायद वो हमारे पिछे पिछे ही शोरुम से बाहर आ गयी थी.

जैसे ही उसने मुझे अपनी तरफ देखते पाया तो, मुझे आँख मारते हुए मोबाइल पर लगे रहने का इशारा किया और फिर एक शैतानी भरी मुस्कुराहट मे मुस्कुराने लगी. शायद उसे ये लग रहा था कि, मैं अभी अपनी गर्लफ्रेंड से बात कर रहा हूँ.

उसकी इस बात के समझ मे आते ही मैने मुस्कुराते हुए पहले ना मे सर हिलाया और फिर हाथ से झूला झूलने का इशारा करते हुए उसे बताया कि मैं अपनी मोम से बात कर रहा हूँ.

प्रिया को मेरा ये इशारा समझ मे आते ही, उसने अपने दोनो कान पकड़ लिए और सॉरी बोलने वाले अंदाज़ मे अपना चेहरा सिकोड़ने लगी. उसकी इस हरकत पर मैं मुस्कुरा दिया और फिर ना मे सर हिला दिया.

प्रिया की इस हरकत ने मुझे कीर्ति की याद दिला दी थी. आज सुबह से मेरी उस से कोई बात नही हो पाई थी. सुबह उसने मुझे कॉल लगाया था. लेकिन उस समय मैं सो रहा था. इसलिए उसने मुझे परेशान करना ठीक नही समझा था.

मगर सोकर उठने के बाद, मुझे कीर्ति को कॉल करने का समय ही नही मिला और शायद कीर्ति को मेरी सुबह छोटी माँ से हुई बातों का पता था. इसलिए उसने ये सोच कर मुझे कॉल नही लगाया था कि, मैं अपने काम से फ्री होते ही खुद उसे कॉल करूगा.

ये बात दिमाग़ मे आते ही, मैने सोचा कि छोटी माँ से बात करने के बाद, कीर्ति से भी बात कर लेता हूँ. वरना कही वो इस बात को लेकर बेवजह मुझसे झगड़ा करना सुरू कर देगी.

इस समय मैं तीन तरफ़ा उलझा हुआ था. मैं फोन पर तो छोटी माँ से बात कर रहा था. लेकिन मेरा दिमाग़ कीर्ति के ख़यालों मे उलझा हुआ था. जबकि मेरी नज़र प्रिया पर टिकी हुई थी और मैं उस से इशारो मे बात कर रहा था.

अभी मैं इन्ही सब बातों मे उलझा हुआ था कि, अचानक ही प्रिया के चेहरे की रंगत बदल गयी और उसने घबरा कर, चीखते हुए मेरी तरफ हाथ उठाए. मगर इस से पहले कि मैं उसके इस इशारे को समझ कर, पिछे पलट कर देख पाता, उस से पहले ही मुझे पिछे से एक ज़ोर दार धक्का लगा और इस धक्के से मैं कहीं ऑर जाकर गिरा और मेरा मोबाइल कहीं ऑर जाकर गिरा.
 
Back
Top