hotaks444
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जवानी की दहलीज-7
उसका लिंग ठंडा पड़ा हुआ था पर बिल्कुल मरा हुआ भी नहीं था। वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गुसलखाने में ले आया।
"तुम बहुत सुन्दर लग रही हो !" उसने मेरी चुप्पी तोड़ने की असफल कोशिश की।
उसने हीटिंग रॉड को बंद किया और उंगली से पानी का तापमान देखा... संतुष्ट होकर उसने हीटर अलग रख दिया और बाल्टी में ठंडा पानी मिलाकर उसे नहाने लायक कर लिया। अब उसने मुझे स्टूल पर बिठा दिया और कल की तरह मुझ पर लोटे से पानी डालने लगा। गरम पानी से मुझे अच्छा लगा। इस बार वह शेम्पू भी लाया था और मेरे गीले बालों में शेम्पू लगाने लगा। उसने मुझे अच्छे से नहलाया। नहलाते वक्त उसने मेरे गुप्तांगों को ज़रूरत से ज़्यादा नहीं छूआ... मैं इंतज़ार करती रही।
"तुमको ये गन्दा लगता है?" उसने अपने लिंग की तरफ इशारा करते हुए पूछा।
"नहीं तो !"
"फिर तुम कल इसको "छी छी "क्यों कर रही थी?"
"अरे... इसको मुँह में थोड़े ही ले सकते हैं... इसमें से सुसू आता है।" मैंने उसे समझाते हुए कहा।
"अच्छा... तो ये बताओ... तुम्हारा सुसू कहाँ से आता है?"
"क्या?" मैं चोंक गई।
भोंपू जवाब के एवज़ में मेरे स्टूल के सामने नीचे ज़मीन पर बैठ गया और बड़े अधिकार से मेरी टांगें पूरी खोल दीं। फिर उसने लोटे में पानी लिया और मुझे थोड़ा पीछे धकेलते हुए एक हाथ से मेरी नाभि और उसके नीचे योनि के पास पानी की धार डालने लगा। ऊपर से पानी डालते हुए वह आगे झुका और अपनी जीभ निकाल कर मेरी योनि के पटलों को छूते हुए पानी को पीने लगा।
फिर उसने पानी डालना बंद किया और लोटा नीचे रख कर अपने दोनों हाथों से मेरी पीठ को सहारा देकर मेरे नितम्भ अपनी तरह खिसका लिए। अब उसने अपना मुँह मेरी टांगों के बीच गुसा दिया। मैं आश्चर्यचकित सोच नहीं पा रही थी वह क्या करना चाहता है। मेरी जाँघों पर उसके गालों की दाढ़ी चुभन और गुदगुदी कर रही थी। मेरी टांगें यकायक बंद हो गईं और उसका सिर मेरी जाँघों में जकड़ा गया। उसने अपनी जीभ पैनी की और उससे मेरी झांटों को दायें-बाएं करके योनि पर से बालों का पर्दा हटाने लगा। मुझे ज़ोरदार गुलगुली हुई... मेरी जाँघों में उसकी मूछें लग रही थीं... मैं स्टूल पर उचकने लगी। मुझे लगा यह अपनी जीभ इतनी गन्दी जगह क्यों लगा रहा है ! पर मुझे यह गुदगुदी बहुत अच्छी लग रही थी।
उसने अपनी पैनी जीभ को मेरी योनि फांकों के बीच लगाकर अपने चेहरे को तीन-चार बार दायें-बाएं हिलाया... इससे मेरी टांगें थोड़ी और चौड़ी हो गईं। मैंने भी सहयोग-वश उसके सिर पर से अपनी जाँघों की जकड़ हल्की की... मेरे चिपके हुए योनि कपाट भी थोड़े खुल गए।
उसने झट से अपनी जीभ मेरी योनि में थोड़ी सी घुसा दी जैसे कोई स्प्रिंग वाले दरवाज़े को बंद होने से रोकने के लिए पांव अड़ा देता है। मेरे मुँह से एक लंबी ऊऊऊऊऊ निकली और मेरे बदन में एक बिजली सी कौंध गई।
उसने अपनी जीभ के पैने सिरे को, जो कि बहुत थोड़ा सा योनि में घुसा हुआ था, धीरे से पूरा ऊपर किया और फिर धीरे से कटाव के नीचे तक ले गया। मैं छटपटाने लगी... मुझे ऐसी गहरी और चुलबुलाने वाली गुदगुदी पहले कभी नहीं हुई थी... शायद मैं मूर्छित होने वाली थी। मेरी योनि ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया ... मुझे इतना अधिक मज़ा बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने उसके सिर को पीछे की तरफ धकेल दिया।
"अरे ! इतनी गन्दी चीज़ को मुँह क्यों लगा रहे हो?"
"तुम्हें यह दिखाने के लिए कि यह गन्दी नहीं है !! जहाँ से तुम सुसू करती हो उसको मैंने प्यार किया... मुझे बहुत मज़ा आया... तुम्हें कैसा लगा?"
मन तो कर रहा था उसे सच बता दूं कि मुझे तो स्वर्ग सा मिल गया था... पर संकोच ! वह मेरे बारे में क्या सोचेगा... कि मैं कैसी लड़की हूँ... यह सोचकर मैंने कुछ नहीं कहा।
"बोलो ना... सच सच बताना... मज़ा आया ना?"
मैंने सिर हिला कर हामी भरी और शर्म के मारे अपने हाथों से अपनी आँखें ढक लीं।
"गुड ! थोड़े और मज़े लूटोगी?"
मैंने कुछ नहीं कहा... पर ना जाने कैसे मेरी टांगें थोड़ी सी खुल गईं और मैं अपना सिर पीछे की ओर लटका कर आसमान की ओर देखने लगी।
वह समझ गया... उसने अपना मुँह फिर से सही जगह पर रखा और अपनी जीभ और होटों से मुझ पर गज़ब ढाने लगा। मुझे बहुत ज़्यादा गुदगुदी हो रही थी और मेरे आनन्द का कोई ठिकाना नहीं था। जिस तरह गाय अपने बछड़े को जीभ से चाट चाट कर साफ़ करती है, वह अपनी फैली हुई जीभ से मेरी योनि को नीचे से ऊपर तक चाट रहा था। कभी कभी जीभ को पैनी करके उसे योनि के अंदर घुसाकर ऊपर-नीचे चलाता।
मैंने छत की तरफ देखते हुए अपने हाथ उसके सिर पर फिराने शुरू किये और चुपचाप स्टूल पर थोड़ा आगे की ओर खिसक गई जिससे सिर्फ मेरे ढूंगे स्टूल के किनारे पर टिके थे और भोंपू का सिर मेरी टांगों के बीच अब आसानी से जा रहा था। उसके सिर पर हाथ फिराते फिराते मैं यकायक उसके सिर को अपनी योनि की ओर दबाने लगी। मेरी योनि, जो एक बार अपना कौमार्य खो चुकी थी, अब सम्भोग-सुख को बार बार भोगना चाहती थी। मेरा धैर्य टूट रहा था और मैं अब सम्भोग के लिए व्याकुल होने लगी। मैं अपने हाथ से उसके सिर को एक लय में हिलाने लगी... उसकी जीभ मेरी योनि में अंदर-बाहर होने लगी... पर इससे मुझे तृप्ति नहीं मिल रही थी बल्कि मेरी कामाग्नि और भी भड़क उठी थी। मेरे कंठ से मादक आवाजें निकलने लगीं और मेरी आँखों की पुतलियाँ मदहोशी में ऊपर जाकर लुप्त हो गईं।
अचानक भोंपू ने अपना सिर मेरी जांघों से बाहर निकाला और एक गहरी सांस ली। वह थक गया था।
"कैसा लगा?" एक दो सांस लेने के बाद उसने पूछा।
मुझे जवाब देने में समय लगा। पहले मुझे स्वर्ग से धरती पर जो आना था... फिर अपनी आँखें खोलनी थीं... अपनी आवाज़ ढूंढनी थी ... होशो-हवास वापस लाने थे... तभी तो कोई जवाब दे सकती थी। पर भोंपू मेरे उन्मादित स्वरुप से समझ गया। उसने मेरी दोनों जांघों पर एक एक पुच्ची की और मेरे घुटनों का सहारा लेते हुआ खड़ा हो गया।
उसका लिंग ठंडा पड़ा हुआ था पर बिल्कुल मरा हुआ भी नहीं था। वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गुसलखाने में ले आया।
"तुम बहुत सुन्दर लग रही हो !" उसने मेरी चुप्पी तोड़ने की असफल कोशिश की।
उसने हीटिंग रॉड को बंद किया और उंगली से पानी का तापमान देखा... संतुष्ट होकर उसने हीटर अलग रख दिया और बाल्टी में ठंडा पानी मिलाकर उसे नहाने लायक कर लिया। अब उसने मुझे स्टूल पर बिठा दिया और कल की तरह मुझ पर लोटे से पानी डालने लगा। गरम पानी से मुझे अच्छा लगा। इस बार वह शेम्पू भी लाया था और मेरे गीले बालों में शेम्पू लगाने लगा। उसने मुझे अच्छे से नहलाया। नहलाते वक्त उसने मेरे गुप्तांगों को ज़रूरत से ज़्यादा नहीं छूआ... मैं इंतज़ार करती रही।
"तुमको ये गन्दा लगता है?" उसने अपने लिंग की तरफ इशारा करते हुए पूछा।
"नहीं तो !"
"फिर तुम कल इसको "छी छी "क्यों कर रही थी?"
"अरे... इसको मुँह में थोड़े ही ले सकते हैं... इसमें से सुसू आता है।" मैंने उसे समझाते हुए कहा।
"अच्छा... तो ये बताओ... तुम्हारा सुसू कहाँ से आता है?"
"क्या?" मैं चोंक गई।
भोंपू जवाब के एवज़ में मेरे स्टूल के सामने नीचे ज़मीन पर बैठ गया और बड़े अधिकार से मेरी टांगें पूरी खोल दीं। फिर उसने लोटे में पानी लिया और मुझे थोड़ा पीछे धकेलते हुए एक हाथ से मेरी नाभि और उसके नीचे योनि के पास पानी की धार डालने लगा। ऊपर से पानी डालते हुए वह आगे झुका और अपनी जीभ निकाल कर मेरी योनि के पटलों को छूते हुए पानी को पीने लगा।
फिर उसने पानी डालना बंद किया और लोटा नीचे रख कर अपने दोनों हाथों से मेरी पीठ को सहारा देकर मेरे नितम्भ अपनी तरह खिसका लिए। अब उसने अपना मुँह मेरी टांगों के बीच गुसा दिया। मैं आश्चर्यचकित सोच नहीं पा रही थी वह क्या करना चाहता है। मेरी जाँघों पर उसके गालों की दाढ़ी चुभन और गुदगुदी कर रही थी। मेरी टांगें यकायक बंद हो गईं और उसका सिर मेरी जाँघों में जकड़ा गया। उसने अपनी जीभ पैनी की और उससे मेरी झांटों को दायें-बाएं करके योनि पर से बालों का पर्दा हटाने लगा। मुझे ज़ोरदार गुलगुली हुई... मेरी जाँघों में उसकी मूछें लग रही थीं... मैं स्टूल पर उचकने लगी। मुझे लगा यह अपनी जीभ इतनी गन्दी जगह क्यों लगा रहा है ! पर मुझे यह गुदगुदी बहुत अच्छी लग रही थी।
उसने अपनी पैनी जीभ को मेरी योनि फांकों के बीच लगाकर अपने चेहरे को तीन-चार बार दायें-बाएं हिलाया... इससे मेरी टांगें थोड़ी और चौड़ी हो गईं। मैंने भी सहयोग-वश उसके सिर पर से अपनी जाँघों की जकड़ हल्की की... मेरे चिपके हुए योनि कपाट भी थोड़े खुल गए।
उसने झट से अपनी जीभ मेरी योनि में थोड़ी सी घुसा दी जैसे कोई स्प्रिंग वाले दरवाज़े को बंद होने से रोकने के लिए पांव अड़ा देता है। मेरे मुँह से एक लंबी ऊऊऊऊऊ निकली और मेरे बदन में एक बिजली सी कौंध गई।
उसने अपनी जीभ के पैने सिरे को, जो कि बहुत थोड़ा सा योनि में घुसा हुआ था, धीरे से पूरा ऊपर किया और फिर धीरे से कटाव के नीचे तक ले गया। मैं छटपटाने लगी... मुझे ऐसी गहरी और चुलबुलाने वाली गुदगुदी पहले कभी नहीं हुई थी... शायद मैं मूर्छित होने वाली थी। मेरी योनि ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया ... मुझे इतना अधिक मज़ा बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने उसके सिर को पीछे की तरफ धकेल दिया।
"अरे ! इतनी गन्दी चीज़ को मुँह क्यों लगा रहे हो?"
"तुम्हें यह दिखाने के लिए कि यह गन्दी नहीं है !! जहाँ से तुम सुसू करती हो उसको मैंने प्यार किया... मुझे बहुत मज़ा आया... तुम्हें कैसा लगा?"
मन तो कर रहा था उसे सच बता दूं कि मुझे तो स्वर्ग सा मिल गया था... पर संकोच ! वह मेरे बारे में क्या सोचेगा... कि मैं कैसी लड़की हूँ... यह सोचकर मैंने कुछ नहीं कहा।
"बोलो ना... सच सच बताना... मज़ा आया ना?"
मैंने सिर हिला कर हामी भरी और शर्म के मारे अपने हाथों से अपनी आँखें ढक लीं।
"गुड ! थोड़े और मज़े लूटोगी?"
मैंने कुछ नहीं कहा... पर ना जाने कैसे मेरी टांगें थोड़ी सी खुल गईं और मैं अपना सिर पीछे की ओर लटका कर आसमान की ओर देखने लगी।
वह समझ गया... उसने अपना मुँह फिर से सही जगह पर रखा और अपनी जीभ और होटों से मुझ पर गज़ब ढाने लगा। मुझे बहुत ज़्यादा गुदगुदी हो रही थी और मेरे आनन्द का कोई ठिकाना नहीं था। जिस तरह गाय अपने बछड़े को जीभ से चाट चाट कर साफ़ करती है, वह अपनी फैली हुई जीभ से मेरी योनि को नीचे से ऊपर तक चाट रहा था। कभी कभी जीभ को पैनी करके उसे योनि के अंदर घुसाकर ऊपर-नीचे चलाता।
मैंने छत की तरफ देखते हुए अपने हाथ उसके सिर पर फिराने शुरू किये और चुपचाप स्टूल पर थोड़ा आगे की ओर खिसक गई जिससे सिर्फ मेरे ढूंगे स्टूल के किनारे पर टिके थे और भोंपू का सिर मेरी टांगों के बीच अब आसानी से जा रहा था। उसके सिर पर हाथ फिराते फिराते मैं यकायक उसके सिर को अपनी योनि की ओर दबाने लगी। मेरी योनि, जो एक बार अपना कौमार्य खो चुकी थी, अब सम्भोग-सुख को बार बार भोगना चाहती थी। मेरा धैर्य टूट रहा था और मैं अब सम्भोग के लिए व्याकुल होने लगी। मैं अपने हाथ से उसके सिर को एक लय में हिलाने लगी... उसकी जीभ मेरी योनि में अंदर-बाहर होने लगी... पर इससे मुझे तृप्ति नहीं मिल रही थी बल्कि मेरी कामाग्नि और भी भड़क उठी थी। मेरे कंठ से मादक आवाजें निकलने लगीं और मेरी आँखों की पुतलियाँ मदहोशी में ऊपर जाकर लुप्त हो गईं।
अचानक भोंपू ने अपना सिर मेरी जांघों से बाहर निकाला और एक गहरी सांस ली। वह थक गया था।
"कैसा लगा?" एक दो सांस लेने के बाद उसने पूछा।
मुझे जवाब देने में समय लगा। पहले मुझे स्वर्ग से धरती पर जो आना था... फिर अपनी आँखें खोलनी थीं... अपनी आवाज़ ढूंढनी थी ... होशो-हवास वापस लाने थे... तभी तो कोई जवाब दे सकती थी। पर भोंपू मेरे उन्मादित स्वरुप से समझ गया। उसने मेरी दोनों जांघों पर एक एक पुच्ची की और मेरे घुटनों का सहारा लेते हुआ खड़ा हो गया।