Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू ) - Page 2 - SexBaba
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Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )

मैने फ़ौरन निकलने का फ़ैसला किया...पर उन्होने उस दिन भी मुझे निकलने नही दिया मेरे ज़ख़्म ज़्यादा भरे नही थे...पर मैं बेचैन था आँखे बस बार बार बाजी को ढूँढने के लिए खोज रही थी...मैने उससे घुमा फिरा के सवाल पूछा क़ि क्या उन्हें कोई और भी मिला था? पहले तो उन्होने पूछा कि क्या तुम अकेले नही थे?....मैने झूट कहा कि मैं अकेला ही था फिर भी...उन्होने बताया कि ऐसी कोई खबर तो उन्हें नही मिली किसी के घाटी के आस पास लोगों की पर हां शहर के जंगलों में उसी तूफ़ानी रात उन्हें पोलीस की लाशें मिली थी जिनकी इन्वेस्टिगेशन अब भी चल रही है सुना है कोई जानवर था..इस बात को सुनके मेरे रौन्गटे खड़े हो गये....फिर भी मैने कोशिश जारी रखी पहले तो वहाँ से ऊन लोगो का शुक्रिया अदा करके जैसे भी हुआ उनके इस अहसान के लिए मैने उनका शुक्रिया अदा किया...फिर शहर जैसे तैसे गुप्त रूप से पहुचा...क्या पता? पोलीस को मेरे बारे में कोई शक़ हो गया हो? क्या पता वो मुझे अब भी ढूँढ रहे हों?......लेकिन मेरे घर के आसपास कोई नही था...मेरा चेहरा सिर्फ़ आमाली को याद था और एस.पी और आमाली और पोलीस के जो लोग इस इन्वेस्टिगेशन में थे वो सब मारे जा चुके थे...पर पोलीस फिर भी ख़ौफ़ में थी और जंगल में नो एंट्री का बोर्ड और रिस्ट्रिक्षन्स लगा चुकी थी इस वजहों से मैं जंगल के रास्ते नही जा पाया

मैने इन दिनो अपने अंदर गौर किया मेरे अंदर का शाप जैसे काबू में हो गया है....मेरा रूप अब मुझपे हावी नही हो सकता था...इस बात की खुशी भी थी...कुछ दिन तक सबकुछ ठंडा रहा पर अपने बंगले पर आकर मुझे कुछ अच्छा महसूस नही हो पा रहा था...मैने वो घर बेच दिया क्यूंकी उस घर में मेरी और बाजी की सारी याद जुड़ी हुई थी उस रात के बाद बाजी कहाँ थी ? किस हाल में थी? नही जानता क्या सुलूक होगा उनके साथ? क्या वो सच में खाई गिरके मर चुकी होंगी? लेकिन ये कैसे संभव था वो अब कैसे मर सकती थी?

ये सब सोचते सोचते ना जाने क्यू दिल में एक आस था कि कभी ना कभी तो बाजी वापिस ज़रूर आएँगी...हर पल अपने बेचे हुए बंगले के आस पास घूमता था क्या पता कब कहीं ना कहीं बाजी आके मुझे ढूँढे...लेकिन ये सारी उमीदें मेरा सिर्फ़ एक वेहेम था ऐसा कुछ नही था वो कभी नही आई...धीरे धीरे दिल फिरसे कारोबार में लगाने लगा पर शायद अब मेरा वो मंन नही था जो मैं काम कर सकूँ....फ़ैसला कर लिया कि इस जगह को छोड़के चला जाउन्गा कहीं दूर ताकि शायद मेरे किए गुनाह का प्रायश्चित कर सकूँ....अचानक एक दिन मेरे बेचे हुए बंगले के पास एक खत मिला...जिसे बेचा था उसने अभीतक किसी को ये प्रॉपर्टी बेची नही थी...मैं तुरंत गेट के करीब आया और उस खत को देखा फिर चारो ओर दिल थोड़ा सहमा...लेकिन उस पीले लिफाफे के अंदर के काग़ज़ को खोलते ही मानो जैसे आँख ठहर सी गयी थी

उसमें लिखा था "मेरे प्यारे भाई जिसने मुझे एक नयी ज़िंदगी दी कितने महीनो पहले मुझसे कहीं दूर बिछड़ गया...आजतक तुम्हारे प्यार के लिए मैं तरसती आई हूँ...ज़िंदगी की हर ठोकर जो तुमने खाई और मेरे हिस्से के भी दर्द और पाप को तुमने सहा....लेकिन तुम्हारी शीबा बाजी तुम्हें कहीं छोड़के नही गयी ये बहुत लंबी कहानी है कि उस रात के बाद आख़िर क्या हुआ था? सिर्फ़ इतना कहूँगी कि मेरे नीचे दिए गये पते को याद कर लो...और मेरे पास चले आओ एक यही रास्ता है...सफ़र बहुत दूर का तय कर लिया मैने एक तरह से ज़रूरी भी था ताकि तुमसे दूर रहूंगी तो पोलीस तुमपे शक़ नही करेंगी पर तुम्हारे वजूद को सोचते हुए मैं काँप जाती हूँ कि तुम भी कहीं ना कही मेरे ही दर्द को अकेले सह रहे हो...एक दरिन्दा बन गये हो...जिसका कोई इलाज़ नही इंसानो के लिए तुम सिर्फ़ एक ख़तरनाक ख़ूँख़ार शिकारी हो वापिस चले आओ मेरे भाई छोड़ आओ उस इंसानो की नगरी को और चले आओ मेरे पास ताकि हम यहाँ सुकून से जी सके तुमसे मिलने का बहुत मन कर रहा है...सोचा कि तुम्हें लेने आउन्गि लेकिन तुम तो जानते हो कि ये आसान नही मैं यहाँ कैसे आई? कैसे पहुचि? ये सारे सवालात हमारे मिलन के बाद ही ख़तम होंगे अपना ख्याल रखना बस तुम्हारे इंतेज़ार में तुम्हारी बाजी शीबा"..........वो कलम किसी स्याही से नही बल्कि खून से लिखी थी उसकी गंध मैं महसूस कर सकता था 

मेरी आँखो मे आँसू आ गये आज फिर एक बार बाजी मेरे पास थी मेरे साथ अब सिर्फ़ मैं बाजी से मिलने के लिए सारी तय्यारिया करने लगा नीचे लिखे पते के अनुसार उस देश में मुझे जाना था जिसका नाम था ट्रॅनसिलॅनियीया.....अपना सारा कारोबार सारी जाएज़ाद सबकुछ बेच बाच के ट्रॅन्सीलॅनिया के लिए मैं रवाना हो गया....और जल्द ही हिन्दुस्तान की सरहद से हवाई जहाज़ निकलते हुए साथ समुंद्र पार रोमेनिया पहुचा वहाँ से निकलके मेरी नींद टूटी मैने भी आम इंसानो के बीच चलते हुए पते के अनुसार बहुत ही मेहनत और मुशक्कत से ट्रेन पकड़ी जल्द ही ट्रेन सेंट्रल रोमेनिया मेी नस्तीत ट्रॅन्ज़ील्वेनिया में पहुचि स्टेशन से बाहर निकलते ही चारो ओर के इस खूबसूरत भरे वादियो और घाटियो में स्थित ईस्ट युरोप के देश सेंट्रल रोमेनिया के इस छोटे से वीरान क्षेत्र के सर ज़मीन पर मैने कदम रख डाला था

यहाँ के लोग अजनबी थे ...पर मुझमें इतनी काबिलियत और जुनून था बाजी से मिलने के लिए मैं हर उस दीवार को पार करता चला गया....ट्रॅन्ज़ील्वेनिया के एक छोटे कस्बे में पहुचा...जहाँ से वो जगह ज़्यादा दूर नही थी....हरपल उन बादलो में ग़रज़न होती थी और आसमान से सूरज ना के बराबर ही बाहर आता था....जल्द ही एक अँग्रेज़ से दोस्ती हुई जिसने मुझे आसरा दिया....उसने मुझसे सावालात किए कि मैं यहाँ क्यूँ आया हूँ? मेरा सिर्फ़ यही जवाबा होता क़ि बस अपने से मिलने.....उसने बताया कि इस गाओं से दूर सिवाय खंडहर और काली घाटियो के कुछ नही...और यहाँ काफ़ी जंगली जानवर रहते है जिनमें भेड़ियो का एक ग्रूप है जो रात को निकलके अपनी दरिंदगी से लोगो के घरो को उजाड़ते है उनका ताज़ा खून और उनका शिकार ही उनकी खुराक है...मैं ये सुनके दंग रह गया शायद मेरे ही तरह ये वेर्वुल्व्स हो सकते हो 

चार्ल्स ने मुझे मेरा कमरा दिखाया काफ़ी छोटा सा लेकिन काफ़ी शांति भरा कमरा था...और ये हिदायत दी चाहे रात को कितने भी दस्तक हों दरवाजा कभी ना खोलू इन सुनसान वादियो में एक चुप्पी है एक खामोशी है और जब भी दस्तक देती है मौत की दस्तक होती है....उसे ये बात नही पता थी कि मैं कौन था? ना वो ये जानता था कि यहाँ आने का और मेरे अपने कहने का क्या मतलब था? तो क्या मेरी बाजी दरिन्दा बनके इन मासूमो पे ज़ुल्म करती है...नही ये बात हजम नही हुई..दो रात काफ़ी भयंकर गुज़री गाओं में एकदम सन्नाटा छा जाता और बस जंगली भेड़ियो के रोने की आवाज़ें और कहीं अस्तबल में बढ़ घोड़ो की ही ही करती रोने की आवाज़ मानो जैसे इन बेज़ुबानो के निगाहो में पिसाच घूमता हो....

यहा आके मैने सबकुछ खो दिया था जहा मैं अच्छे ख़ासे कारोबार को इंडिया में संभालता था यहा आके बिल्कुल अलग एक मज़दूर की तरह पेड़ों की लकड़ियो को दिन में काट कर उन्हें गिन के कारीगरो तक पहुचाना ही काम बन गया था....लेकिन मैं अपने इस काम से खुश था...बस मुझे अपनी बाजी को ढूँढने का इंतेज़ार था कभी ना कभी तो मिलेगी वो?....दो दिन बाद उनका मुझे खत आया....उन्हें सबकुछ पता था और उन्हें आभास भी हो गया था कि मैं अब हिन्दुस्तान में नही हूँ उनके बेहद नज़दीक आ गया हूँ....उस खत में भी मेरे लिए उनके दिल में दया की भावना लिखी हुई थी...वो बस जल्द ही मुझसे मिलना चाहती थी पर इंसान उनके बारें में जानते है इन्ही वजहों से वो मेरे पास नही आ रही थी...लेकिन जल्द ही वो मुझसे मिलेगी ये बात सॉफ उन्होने खत पे लिखके भेजा था...

मैं खुश था और ये सारी दास्तान मैं अपनी पर्सनल डायरी में उतारता और फिर खिड़की से बाहर जमा देने वाली उस ठंड की बरफबारी को देख कर अपना परदा लगाए लॅंप बंद करके अपने बिस्तर पे आँखे मुन्दे सो जाता ख्वाब में भी यही दिखता था कि बाजी मेरे पास है मेरे साथ....एक दिन एक लड़की से मुलाक़ात हुई लकड़िया काटने के वक़्त पता चला वो भी पास ही के कबीले से है उसका नाम उसने लूसी बताया बला की खूबसूरत गोरी . वहाँ की भाषा धीरे धीरे मुझे आने लगी थी क्यूंकी वहाँ लोग इंग्लीश नही बोलते...लूसी से मैं वहाँ की कहानी और रहस्य के बारे में जानने लगता हमारी इन सब चीज़ो पे चर्चा होती और फिर वो वापिस अपने कबीले चली जाती और मैं वापिस अपने गाओं आ जाता...ऐसा लग रहा था मानो ये दिन कितना बाजी से मुझे दूर कर रहा है...उस रात डाइयरी में मैं अपनी आज की घटना लिखके बाजी से ना मिलने का अफ़सोस जताते हुए परदा लगाके बिस्तर पर लेटा ही था...हू हो करती हवा बाहर से सुनाई दे रही थी खिड़की के बाहर बर्फ सी जम गई थी कमरे में एक ओर आग की गरमाहट में मुझे धीरे धीरे नींद आने लगी

इतने में अचानक बाहर के दरवाजे पे दस्तक हुई....ठककक ठककक ठककक ठककक......"कौन है?".......मैने सवाल किया...."कौन है बाहर?".......इस बार भी कोई आवाज़ नही उसने दरवाजे पे दस्तक देना बंद कर दिया था....मुझे थोड़ा डर लगा और मैने पास रखी टॉर्च जलाई....इस वक़्त रात गये बाहर कहीं से भेड़िए की रोने की आवाज़ आए जा रही थी यहाँ कीहोल नही था जिसमे से देखा जाए अब सवाल था दरवाजे के बाहर जो भी था उसे दरवाजा खोलके ही मुझे देखना था....मैने फिर सवाल किया "कौन है बाहर? क्या चाहिए?"..........इस बार आवाज़ आई लेकिन बेहद अलग ये बाजी की आवाज़ नही थी

"मैं हूँ दरवाजा खोलो तुमसे बात करनी है दरवाजा खोलो"..........अज़ीब बात है इतनी ठिठुरती जमा देने वाली ठंड में कोई इंसान ऐसे अपने घर से निकलके मेरे यहाँ क्या करने आया ? जबकि चार्ल्स ने हिदायत दी थी कि दरवाजा चाहे कुछ भी हो मत खोलना....मेरे नथुनो में अज़ीब सी गंध आने लगी ये गंध क्सिी इंसान की नही थी....मैने इंतेज़ार नही किया जो होना था हो जाए....मैं धीरे धीरे कदमो से उस दरवाजे के करीब आया..."कौन हो तुम? इतनी रात गये यहाँ क्या कर रही हो?"........मेरे इस सवाल के कुछ देर बाद उसका जवाब आया...."मैं बहुत दूर से आई हू दरअसल्ल्ल"......वो और कुछ कह पाती चुप हो गयी उसकी झिझक मुझे सॉफ अंदेशा दे रही थी कि शायद ये कोई और है कोई पिसाच जो मुझे इंसान समझ के ही मेरा शिकार करने आई है

मैने दरवाजे की चितकनी खोली और उसे एक ही झटके में खोल डाला....बाहर की हवा कमरे के अंदर आई जिसने आग की लपटों को एकपल के लिए भुजा दिया....एकदम से ठंडी हवा मेरे चेहरे से लगी....और उसके बाद सामने खड़ा वो अक्स मेरे बेहद करीब खड़ा था..
 
दरवाजे की चरर चराती आवाज़ के खुलते ही बाहर की तेज़ हवा मेरे चेहरे से टकराई पूरा बदन मानो सिहर उठा....जब आँखे खोली तो सामने खड़े उस मुस्कुराते चेहरे को देख कर एक पल के लिए बस उसे ही घूर्रता रहा...उसने आम निवासीयो की तरह गले से लेके पाओ तक धकि पोशाक पहनी थी पर उसके बदन पे ना ही कोई स्वेटर या ऐसे कोई कपड़े थे जो उसे ठंड से बचाती हो इतनी सर्द रात को वो ऐसे तूफान में कैसे मेरे घर पहुचि इस बात की मुझे बेहद हैरानी थी...उसके बदन से एक अज़ीब सी महेक आ रही थी...उसका बदन निहायती बहुत गोरा था...एक सुंदर अँग्रेज़ औरत जिसकी आँखो के नीचे काले घेरे से थे आँखो की पुतलिया ठहरी हुई थी...आँखें एकदम सुर्ख ब्राउन रंग की थी....ये कोई इंसान नही थी...आम औरतो को मैने देखा था....उसका पूरा बदन ऐसा सफेद था मानो जैसे क़बर से उठके आई हो..वो बस मुस्कुरा रही थी ऐसा लग रहा था जैसे होंठो से अभी खून टपक के निकल जाएगा...बदन भरा पूरा था...उसकी चुचियों का उभार सॉफ देख सकता था....और पीछे के नितंब भी काफ़ी उठे हुए थे उसके बालों का रंग भी सुनहेरे रंग का था

"त्त...तुम यहाँ?".......जानने में देरी ना लगी ये लूसी थी....दूसरी बस्ती की निवासी और मेरी नयी बनी दोस्त लेकिन आज उसे देख कर बेहद अज़ीब लग रहा था और वो मुझे कहीं से भी इंसान नही नज़र आ रही थी

"हां मैं तुमसे ही मिलने आई हूँ इसलिए यहाँ आई हूँ तुम्हारे पास"......उसने फिर मुस्कुराया उसकी आँखो में एक कशिश थी उसकी खूबसूरती की तारीफ मैं करना चाहता था पर दिल को मज़बूत करते हुए उसे अंदर ले आया

बाहर की तूफ़ानी हो हो की आवाज़ें दरवाजे बंद होते ही दब गयी...अंदर जल रही आग में एक गर्मी थी...लेकिन उसे कोई फरक नही पड़ा वो एक सोफे पे जाके बैठ गयी और मैं ठीक मेज़ के उपर....हो हो करती हवाओं में एक अज़ीब सा शोर था मानो जैसे कितने लोग एक साथ हो हो की आवाज़ निकाल रहे हो....और फिर कुछ ही देर में हावोअवो की आवाज़ आई....भेड़िए की आवाज़ थी यह

लूसी जो मुझे एकटक बस मुस्कुराए देख रही थी....उस आवाज़ को सुन खिड़की की ओर देखने लगी "वो लोग मुझे ही ढूँढ रहे है"........उसने खिड़की की तरफ ही मुँह करके कहा....

"कौन ढूँढ रहे है?"........मैने उससे पूछा.....

"भेड़ियो का दल उनसे ही च्छुपते छुपाते यहाँ आई हूँ".......लूसी ने इस बार चेहरा मेरी ओर किया और मुस्कुराइ 

मैं : क्या मतलब? एनीवेस तुम कुछ लोगि 

लूसी : अपना खाना ख़ाके आई हूँ और तुम दोगे भी क्या? (वो मुस्कुराइ उसका अज़ीब बर्ताव उन दिनो की तरह नही था जब वो मुझसे जंगल में मिलती थी)

मैं : ह्म्म खैर यहाँ इतने रात गये तुम इस सर्द रात में अकेले मुझे कुछ समझ नही आ रहा लूसी तुम्हारी बस्ती भी तो यहाँ से काफ़ी दूर है और रात भी बहुत हो रही है 

लूसी : मुझे ख़ौफ़ नही लगता ख़ौफ़ उन्हें होता है जो इंसान होते है (उसकी ये बात मेरे अंदर के शक़ को यकीन में तब्दील कर चुकी थी मेरे सामने सोफे पे बैठी ये लड़की कोई इंसान नही थी जिस लूसी से मैं आजतक मिला था वो एक पिसाच थी) 

मैं : त्त...तुम्म वही हो ना 
 
लूसी टहाका लगाके हँसने लगी उसने मेरे मन को जैसे पढ़ लिया था....उसकी उस हल्की हँसी में भी एक डरावनापन था....कुछ देर तक हम चुप रहे फिर उसने खुद ही बात शुरू की....वो मुझे बहुत अच्छे तरीके से जानती है...यहाँ के निवासी उनकी जात और भेड़ियो से काफ़ी घबराते है लेकिन लूसी ने कभी इंसानो को नही मारा.....उसने बताया कि यहाँ शीबा बाजी ने उसे भेजा है मेरा हाल चाल जानने के लिए अब उन्हें मुझसे मिलना है

मैं भी सवाल भरी निगाहो से जिग्यासा भरी निगाहो से उससे आगे पूछने लगा कि बाजी कैसी है? वो यहाँ कैसे आई? वग़ैरा वग़ैरा

लूसी : ये बात मैं तुम्हें नही बता सकती हूँ मुझे कसम है बाजी जबतक तुमसे नही मुलाक़ात करेगी तब्तलक ये राज़ मैं तुम्हे नही बता सकती

मैं : फिर भी थोड़ा बहुत 

लूसी : आइ आम सॉरी आसिफ़ पर यही नियम है हम पिशाचों को अपनी मालकिन का हर नियम मानना पड़ता है (मालकिन शब्द सुनके लगा कि कहीं बाजी इन पिशाचो की रानी तो नही बन गयी तब तो मुझे लूसी से कोई ख़तरा नही था और वो जानती थी कि मैं अब एक शापित भेड़िया हूँ फिर भी उसे मुझसे डर नही लगा) हमारे यहाँ बहुत से ख़तरनाक ख़ूँख़ार पिसाच थे जिन्होने हंपे क़ब्ज़ा किया हुआ था मालकिन ने उन सब पिशाचियो का अंत कर डाला और हमे आज़ादी दी लेकिन यहाँ भेड़ियो का एक दल है जो जंगलों में रहता है और हमारा कट्टर दुश्मन और सबसे ज़्यादा इंसानो का 

मैं : ओह्ह सुना था चार्ल्स ने बताया तो था 

लूसी : हम इंसानो को नुकसान नही पहुचाते पर वो हमसे ख़ौफ़ खाते है असल में उनकी ग़लती भी नही है हमारी जात आज भी इंसान की खून की प्यासी है पर अब उन्होने भी अपनी इक्षाओं को मार लिया है...मालकिन ने हम सबको अपनी भूख पे काबू करना सिखा दिया है लेकिन भेड़ियो से हमे बहुत ख़तरा है हम उनसे बहुत घबराते है मालकिन उनसे समझौता करना चाहती है पर वो शैतान के बीज किसी की सुनते नही 

मैं लूसी की बात सुनके काफ़ी देर तक खामोश रहा फिर बात को पलटते हुए पूछा "तो शीबा बाजी से कब मिलने जाना है?".........

.लूसी मुस्कुराइ "आज नही आज भेड़िए बहुत ज़्यादा है हमारा रास्ता घैर लेंगे कल सूरज निकलने से पहले ही हमे रवाना होना है"..........

.उसकी बात को सुनके मैं खुश हुआ...."पर अगर चार्ल्स को".........मैं घबरा रहा था क्यूंकी मैं इंसानों की बस्ती में रह रहा था उन्हें अगर पता लग गया तो कहीं वो लोग मुझसे ही ख़ौफ़ ना खा जाए....

"ये बात तो आपको संभालना पड़ेगा"..........

मैं चुपचाप रहा ठीक है कोई बात नही मैने मन बना लिया था बाजी से ही तो मिलने इतना दूर आया था अब डर किस बात का 

मैने लूसी को आज रात यही ठहरने को बोला....और उसे अपनी कहानी सुनाने लगा कि कैसे मैने बाजी को एक पिशाचिनी बनाया था? कैसे मैने लिलिता के शाप को झेला और हम अपने देश को छोड़ यहाँ चले आए...बाजी मुझसे किस तरह दूर चली गयी....वो सबकुछ जानती थी बस मुस्कुरा के हां में जवाब दे रही थी...उसकी आँखे सफेद होने लगी उसके उपर पिशाची रूप सवार होने लगा उसके दाँत नुकीले हो गये...."कहीं वो भेड़िए यहाँ ना आ जाए"......लूसी को आभास हो रहा था....

.मैने उसके पास आके उसे शांत किया "डरो नही मैं संभाल लूँगा"..........वो मुस्कुराइ और मुझे चिड़ाया कि तुम तो महेज़ एक इंसान हो तुम क्या कर लोगे? मैं अकेले ही संभाल लूँगी उन्हें वो लोग जिन्होने मेरा पीछा किया था पर मैने उन्हें चकमा देके रास्ता भुला दिया..

..मैं मुस्कुराया सिर्फ़ 

मैं : वैसे ये बात तुम मुझे पहले कह देती कि तुम शीबा बाजी के साथ शामिल हो 

लूसी : तुम ख़ौफ़ जो खा जाते (इस बार हम दोनो टहाका लगाके हँसने लगे)

मैं लूसी को होंठो पे ज़ीब फिराते देख सकता था....वो कैसी निगाहों से मुझे घूर्र रही थी?.....यक़ीनन अपने सामने एक नौजवान लड़के को देख कर उसकी जिन्सी भूक बढ़ रही थी....इन पिशाचियो को मरने के बाद इनकी काम वासना कुछ ज़्यादा ही भड़क उठती है...इनकी जिन्सी भूक की तलब खून की प्यास से भी ज़्यादा बढ़ जाती है...मैने लूसी के मॅन को भाँप लिया जी तो मेरा भी था लेकिन पहेल नही कर पा रहा था...वो खुद ही धीरे धीरे मुझसे फ्लर्ट करने लगी....ऐसे अश्लील बातें करना शायद उसके लिए आम था 

मैं : तुमने इससे पहले किसी के साथ किया है 

लूसी : इंसान जब थी तब एक बेवफह के साथ किया था जिसने मुझे इन सुनसान वादियो में छोड़ दिया था...मेरी कोई बस्ती नही थी मैं दूर से आई एक विलायती लड़की थी....लेकिन कुछ बदमाशो ने मेरी इज़्ज़त लुटनी चाही...पर मैने पहाड़ से कूद के अपनी जान दे दी थी....और उसके दूसरे दिन ही मुझे जब होश आया तो मैं कुछ और ही थी....मैं मालकिन से मिली जिन्होने मुझे एक पिसाच बना दिया था अपनी तरह.....उन्होने मुझे अपना बदला लेने को कहा...और मैने उसी तरह ऊन पाँचो गुन्डो को और अपने उस बेवफा बाय्फ्रेंड को मौत के घाट उतार दिया

लूसी की आँखो से खून के आँसू बह रहे थे....मैने उसके करीब जाके उसकी आँखो से उन खून की बूँदो को पोन्छा और कंधे से उसे अपनी ओर किया "हम सब मज़बूर होते है लेकिन इसका ये मतलब नही कि बीती बातों को याद करे"........ना जाने क्यूँ मैं उसकी तरफ बढ़ा था उसने मेरी छाती पे हाथ रखके मेरे शर्ट के दो बटन्स खोल डाले...और फिर उस हाथ को नीचे खिसकाते हुए मेरे पाजामे के उभार को सहलाने लगी.....मेरा उभार अपने आप बड़ा होने लगा.....मैं लूसी को अपने से दूर ना कर पाया और उसने भी अपने ठंडे होंठ मेरे होंठो के बेहद नज़दीक ला दिए
 
[size=large]मैने उसके होंठो को बहुत प्यार से चूसा...और फिर बहुत ही कस्के..मैने उसकी पीठ अपनी तरफ मोड़ दी और उसकी चुचियों को भी भरपूर दबाने लगा...कपड़ों के उपर से ही...उसने फ़ौरन मुझे दूर धकेला और अपने पीछे लगे बटन्स को खोलती चली गयी और फिर उसके बाद...उसने जब अपने गाउन को अपने शरीर से अलग किया तो मेरे सामने एक नंगी मूर्ति खड़ी थी जिस काम वासना में मैं जल रहा था...उसके निपल्स एकदम गुलाबी थे पेट के नीचे से शुरू होते हल्की सुनहेरी झान्टो से एक लंबी लकीर जो सूजी चूत को अलग कर रही थी.....उसकी नितंब काफ़ी चिकने थे

वो मटकते हुए मेरे पास आई और खुद लेट गयी मैने अपनी बेल्ट ढीली की अपने कपड़ों को एक एक करके उतार के फैक्ना शुरू कर दिया जल्द ही ज़मीन पे हम दोनो के कपड़े इकट्ठे हो गये......मैने उसकी टाँगो को चौड़ा किया उसे लिटा दिया उसने अपनी उंगलियो पे थूक लगाके अपनी मादक खुश्बुदार चूत को और भी चिकना किया...मैने उसपे मुँह लगाया और अपनी ज़ीब को उस पाँव रोटी जैसी चूत में डालने लगा.....वो सिसक उठी उसने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया.....मैं उसकी चूत में मुँह घुसाए उसे सूंघते हुए किसी कुत्ते की तरह चाटने लगा

जिन्सी तलब मेरी भी उठने लगी बहुत साल से आजतक किसी के साथ सेक्स ना करने की अलमत थी...आज मुझपे जिन्सी भूक सवार थी...मैं उसके दाने को चूस्ता और फिर उसे उंगलियो से सहलाते हुए उसकी सूजी चूत को थूक से गीला करके चाट्ता...उसके छेद को कुरेदता...वो बस सिसकते हुए मेरे मुँह को अपनी चूत पे रगड़ रही थी.....उसका मुँह खुला तो उसके दो नुकीले दाँत दिखे आज पहली बार मैं दूसरे पिसाच के साथ सेक्स कर रहा था

मैं उठके अपना लंड उसके करीब लाया और उसने बिना मुझसे सवाल किए मेरे लंड को चूसना शुरू कर दिया "उम्म्म्ममम आहह"........वो मेरे लंड को चुस्ती रही जबकि उसकी चूत में मैं उंगली किए जा रहा था....उसकी चूत से लसलसा के सफेद रस छुट्टने लगा....और वो मेरे लंड को बड़े प्यार से चूसने लगी...उसे शायद आजतक इतना मोटा लंड और गरम खून वाला इंसान नसीब नही हुआ था....उस ठंडे जिस्म पे हाथ फिरते हुए मेरी उंगलिया उसकी चूत में तेज़ हो गयी....वो बस सिसकते हुए काँपने लगी और मेरे लंड को बहुत ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी उसकी हथेली में मेरा लंड था जिसे वो बीच बीच में भीच देती....मैं बस आहें भरता हुआ उससे मज़े ले रहा था

फिर जब उंगली करना बंद किया तो उसकी चूत ने एक तेज़ धार निकाला जिससे चढ़र भीग गयी....वो एकदम काँप उठी...पीला रस था एकदम....फिर मैने उस रसभरी चूत में मुँह लगाके उसे खूब चूसा चाटा....वो बस पागल हुई जा रही थी फिर कुछ देर बाद मैने उसके पेट पे लंड को हाथो से थपथपाना शुरू किया और फिर उसकी नाभि पर से रगड़ते हुए प्रेकुं छोड़ दिया...और खखारते हुए गले के थूक से उसकी रस से सनी चूत पे लगाया और कुछ अपने लंड पे....मैने हल्का सा चूत के मुँह पे लंड रखके दबाया...तो लंड अपने आप चूत के भीतर घुसने लगा...वो काँप उठी "आहह आहह स आआआहह आहहह".......जैसे जैसे लंड अंदर धँस रहा था उसकी सिसकिया भी तेज़ हो जाती

फिर उसके बाद उसने मेरे कंधे पे नाख़ून गढ़ा दिए...मैने फुरती से लंड को बाहर खींचा और फिर अंदर डाला कुछ देर तक करने के बाद मैं उसपे चढ़के लंड को चूत मे अच्छे से अड्जस्ट करके धक्के लगाने लगा..."ओह्ह यअहह आहह सस्स".......वो बस सिसकते हुए मेरे गाल और गले को चूमने लगी मैं उसकी चूत को चोदने लगा बस उसकी टाँगें मेरी कमर से रगड़ खाने लगी....वो मेरे कानो को और मेरे गाल को अपने नुकीले दाँतों से काट रही थी ज़बान से चाट रही थी जल्द ही मेरी भूक बढ़ गयी मेरे अंदर की ज्वाला फूटने को होने लगी और मैने तेज़ी से उसे चोदना शुरू कर दिया....हम दोनो के मुँह आपस में मिले और फिर शुरू हुआ बेदर्दी से एक दूसरे के होंठो को चूसना...ज़बान ज़बान से रगड़ना

कुछ देर में ही फ़च्छ से मेने लंड उसकी चूत के मुख से निकाला...और फिर मैने लिटा के उसे पहले अपना लंड चुस्वाया...वो बड़े मादक तौर से झुकके मेरी ओर बड़ी बड़ी सफेद निगाहो से देखते हुए लंड को पूरा मुँह में भरके उसका स्वाद चखने लगी और फिर उसे चूसने लगी....मैं मदहोशी में पागल हुए जा रहा था...आग की लपटें बरक़रार थी....अब वो मेरे पेट पे बैठी हुई थी उसके पेट के दोनो ओर मेरे हाथ मज़बूती से पकड़े हुए थे मेरे पूरे बदन पे गुस्सा होने से बल उठने लगे....और वो एकदम चिकनी थी...उसके निपल्स को बैठके एक बार चूस लिया फिर उन्हें मसल डाला वो मेरे लंड पे अपनी गान्ड के छेद को चौड़ा किए धीरे धीरे कूदने लगी...अब उसकी गान्ड में लंड की पकड़ बैठ चुकी थी

"आहह उम्म्म आहह".......किसी को पता नही था कि एक वीरान घर में दो जानवर एक दूसरे के साथ मिलन कर रहे थे....मैं सतसट उसकी गान्ड के छेद पे लंड घुसाए जा रहा था वो बस सिसक रही थी आँखे मूंद रही थी मेरी छाती पे हाथ रखके खुद ही गान्ड को उपर नीचे कूदवाने लगी....चुदवाने लगी....उसकी आँखें लज़्ज़त से बंद हो रही थी फिर मैने झट से उसे अपने करीब खींचा और उसके होंठो से होंठ लगाके पागलो की तरह चूमा....जल्द ही उसकी गान्ड काँपने लगी और मेरे लंड ने जवाब दे दिया और मैने उसकी गान्ड को हाथो से भींचते हुए उसके होंठो को चूस्ते हुए गान्ड में ही फारिग हो गया...जब गान्ड से लंड को बाहर खीचा था तो बहुत सारा लबालब रस बाहर उगलने लगा....वो एकदम पश्त पड़ चुकी थी और मेरी छाती पे सर रखके सोने लगी...मैं उसके कंधे को चूमते हुए अपने से लिपटाये बाजी के ख्याल में डूब गया....वो रात जल्द ही ढल गयी बाहर की ठंड अंदर की गर्मी के आगे पूरी फीकी पड़ चुकी थी वो सर्द भयंकर रात कब कट गई पता नही चला

सुबह 4 बजे भोर होने से पहले ही मुझे लूसी ने उठाया वो अपने कपड़े पहेन चुकी थी मैं अब भी नंगा था.....उसने बताया कि अब हमे रवाना होना है.......मैने सोचा यही ठीक रहेगा ताकि किसी की नज़रो में हम ना आ सके....बाहर गहरी धुन्ध थी....शायद कल रात की बर्फ़बारी की वजह से...मैं अस्तबल से अपना घोड़ा बाहर लाया और उसपे सवार हो गया लूसी मेरे ठीक सामने बैठ गयी उसकी गान्ड मुझसे एकदम चिपक चुकी थी...हम फ़ौरन रवाना हो गये....घोड़े के कदमो की आवाज़ जंगल के भीतर जाने लगी...घोड़ा मेरा पालतू था वो मेरी हर बात समझता था....इसलिए उसे लूसी से डर नही लगा.....अचानक घोड़ा भी दो कदम जंगल के भीतर और पाँव रखता इतनें मे घासो में कुछ हलचल हुई और घोड़ा ही ही करते हुए ख़ौफ़ ख़ाके पीछे होने लगा...."रुक क्यूँ गया आगे बढ़?".........लूसी भाँप चुकी थी उसने फ़ौरन मुझे मना किया

हम वही ठहर गये कुछ देर तक खामोशी छाई रही सूरज अब भी नही निकला था....इतने में हववव हावव करते कुछ कुत्तो जैसी आवाज़ आई और ठीक हमारे सामने झाड़ियो से निकलते 4 भेड़ियो का दल सामने था....उसका विशाल आकार मुझे ख़ौफ़ दिए जा रहा था...लूसी फ़ौरन घोड़े से उतर गयी और मैं भी....घोड़ा पीछे होने लगा वो एकदम ख़ौफ़ खाए जा रहा था मैं उसे शांत नही कर पा रहा था..."जिस बात का दर था वही हुआ मेरी घात लगाए ये भेड़िए छुपे हुए थे".........मैं सेहेम उठा शीबा बाजी से मिलने के लिए मैं किसी भी मुसीबत से सामना कर सकता था....लूसी को शीबा बाजी ने हिदायत दी थी वो मुझे महफूज़ रखने के लिए मेरे आगे खड़ी हो गयी और उन भेड़ियों को अपने नुकीले दाँत और सफेद निगाहो से देखने लगी बीच बीच में वो उन्हें फूँकार मारके पीछे हटने को कह रही थी पर वो भेड़िए जिनकी नज़रो में हिंसाकता और दांतो में अपने शिकार को कच्चा चबा जाने का मन साफ मुझे दिख सकता था
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[size=large][size=large]मैं सॉफ समझ चुका था उन लोगो की बातें "हाहाहा एक पिशचनी के साथ एक गरम गरम ताज़ा खून भी इंसान का मिलेगा वाहह आज तो शिकार में दुगना फायेदा हुआ"........उन लोगो की बातें मेरे ज़हन में ख़ौफ़ पैदा कर रही थी...अबतक मैं चुप था लेकिन मुझे अब मोर्चा संभालना चाहिए था कहीं वो लोग लूसी को मार ना डालें वो एक करके एक पंजे आगे रखते हुए हमारे करीब आने लगे जैसे अब नही तो तब वो हम्पे छलाँग लगा देंगे....लूसी को सबर ना हुआ और वो उनपर उड़ते हुए टूट पड़ी...उन भेड़ियों के झुंड ने उसपे ही सीधे हमला कर दिया वो चिल्लाई कि मैं बताए रास्ते की ओर भागु...पर मैं उसे अकेले मौत के दलदल में छोड़ नही पाया

और तभी एक तेज़वार मुझपे हुआ और मैं कब गश ख़ाके पेड़ से टकराके गिर पड़ा मुझे पता नही......वो भेड़िया मेरे नज़दीक आने लगा...लूसी ने फ़ौरन उसकी गर्दन पे दाँत गढ़ा दिए वो दहाड़ उठा और फिर लूसी ने उसे पूरी ताक़त से दूसरी ओर फैक दिया लेकिन पीछे से दूसरे भेड़िए ने उसपे हमला करके गिरा दिया....अब उन लोगो ने लूसी को घैर लिया और मैं बेबस लाचार उसकी ओर देखने लगा लूसी एकदम ठिठक चुकी थी उसके अकेले के बस का नही था इन ख़ूँख़ार खून के हिंसक जानवरो को मारना...."या अल्लहह मुझे इस बार पूरी ताक़त दे दे ताकि मैं उस मासूम को बचा पाऊ"........मैं खुदा से गुहार लगाने लगा लेकिन रास्ता मेरे सामने था....सूरज अभी निकला नही था....एक ही काम हो सकता था खुद पे दरिंदे को सवार करना..."आआआआआआआआआअहह".........मैं इतनी ज़ोर से गुस्से में ग़र्ज़ा कि उन भेड़ियों की निगाह मेरी ओर होने लगी....धीरे धीरे गुस्सा मुझपे हावी होने लगा और जल्द ही वो गुस्सा मेरे रूप को बदलने लगा

वो भेड़िए मुझे बड़ी गौर से देखने लगे लूसी चुपचाप ख़ौफ़ में सिमटी हुई थी....धीरे धीरे उनके सामने एक इंसान भेड़िए में तब्दील होने लगा....उसकी लंबे नाख़ून बढ़ने लगे उसके पूरे बदन से फाड़ के बाल बढ़ने लगे....एक जानवर में तब्दील होने लगा वो...उसकी आँखे गहरी सुर्ख लाल होने लगी....और उसके दाँत नुकीले होने लगे.....जल्द ही उनके सामने भेड़िया बनके आसिफ़ खड़ा हो चुका था....वो लोग उसे देख कर हक्का बक्का हो गये और उसपे हमला करने के लिए भी तय्यार थे.....भेड़िया उन पाँचो भेड़ियो को घूर्र रहा था...अपने आकार से भी दुगने आकर का भेड़िया उनके सामने खड़ा था....अब बाजी आसिफ़ के हाथो में थी...

उन भेड़ियों की तरफ घुर्राते हुए आसिफ़ ने ललकार दी....उन भेड़ियों को बस मौका चाहिए था और वो उसपे टूट पड़े...लूसी चिल्ला उठी पर उसके हाथ में अब कुछ नही था...आसिफ़ ने पास आ रहे एक भेड़िए की गर्दन को अपने पंजो से दबोच दिया और उसको एक ही झटके में दूसरी ओर हवा में फैक डाला...इस नज़ारे को देख कर चारो भेड़ियों की हड्डिया काँप उठी उन भेड़ियों ने सीधे आसिफ़ को घैरते हुए उसे काट खाना चाहा...एक भेड़िए ने आसिफ़ की टाँग को सख्ती से दाँतों से पकड़ लिया जबकि तीनो उसके बदन के हर अंग को अपने दांतो से पकड़ने की नाकाम कोशिशें कर रहे थे

लेकिन उस भेड़िए के आगे भेड़िए कहाँ टिक पाते?....आसिफ़ ने फ़ौरन अपनी एक लात पीछे के भेड़िए को मारी जो सीधे पेड़ सहित नीचे गिर गया....दोनो भेड़ियों को वो काटने को हुआ और इस भेड़ियों की लड़ाई में काफ़ी खून ख़राबे के बाद...आसिफ़ ने एक भेड़िए को सख्ती से पकड़के उसकी गर्दन को काट डाला..वो रोई आवाज़ में वही गिर पड़ा...दूसरे भेड़िए को गर्दन सहित पकड़के आसिफ़ ने उसे झाड़ियों में फैक डाला वो अभी उठ भी पाता...उसके गले पे आसिफ़ के सख़्त भारी पंजो के पाँव थे अब वो उठने के लायक नही रहा और फिर आसिफ़ ने उस भेड़िए की गर्दन को काट के उसका काम वही तमाम कर दिया...दो भेड़िए अब भी लड़ने को पास आए

पर आसिफ़ ने उन दोनो भेड़ियों को अपनी मज़बूत ताक़त से उछाल उछाल के पछाड़ दिया...दोनो की मिमियती आवाज़ को सुन आसिफ़ बस घुर्राटे हुए दाँत निकाले उन घायल भेड़ियों की तरफ देख रहा था....अचानक पीछे से एक भेड़िए ने हमला करना चाहा...पर उसकी गर्दन आसिफ़ के पंजो में गिरफ़्त हो चुकी थी इससे पहले कि वो उसपे हावी हो पाता...जल्द ही उस भेड़िए ने अपनी आँखे बंद कर ली उसका गला आसिफ़ घोंट चुका था...जब आसिफ़ को लगा कि वो मर चुका है तो उसने उसे फ़ौरन ज़मीन पे फ़ैक् डाला और उन दोनो की ओर देखने लगा

वो दोनो भेड़िए पंजो के बल बैठके आसिफ़ की ओर झुक गये मानो जैसे उन्हें अपनी हार मंज़ूर थी और फिर उन्होने हववव हववव करके रोना शुरू कर दिया.....आसिफ़ बस उन्हें घूर्र रहा था फिर आसिफ़ धीरे धीरे भेड़िए के रूप से बदलते हुए इंसान में तब्दील होने लगा...लूसी पास आ चुकी थी उसे आसिफ़ की ताक़त पे नाज़ हुआ....आसिफ़ उनके मन को पढ़ने लगा उनकी भौंकने की आवाज़ को पहचानते हुए मुस्कुराया 

भेड़िए : हमे अपनी हार मंज़ूर है आपके आगे हम झुकते है

आसिफ़ : इस दुनिया में कोई किसी का गुलाम नही हम सब आज़ाद जानवर है जाओ मैने तुम्हारी ज़िंदगियो को रिहा किया

भेड़िए : नही आका हम अपनी ग़लती पे शर्मिंदा है आप हमे जो चाहे सो सज़ा दे सकते है हमारी हार आज पहली बार हमसे भी बड़े भेड़िए से हुई है हम आपको अपना राजा मानते है

आसिफ़ : मुझे कोई राजा नही बनना मैं एक महेज़ शापित इंसान हूँ ठीक है तो तुम लोग मुझे एक वचन दो 

भेड़िए : बोलिए आका हम आपके सभी शर्तों के लिए तय्यार है

आसिफ़ : आज के बाद तुम लोग कभी भी मासूम इंसानो का शिकार नही करोगे और ना ही किसी पिसाच को मारोगे बशर्ते अगर वो तुम्हारे दुश्मन ना हो तुम लोग यहाँ से कहीं दूर चले जाओ जहाँ से दोबारा लौटके ना आओ जहाँ इंसान तो क्या किसी और पिसाच की भी परछाई ना पड़े अपनी अलग बस्ती बनाओ 

भेड़िए : जी आका हमे मंज़ूर है (उन भेड़ियों ने अपना सर आसिफ़ के आगे झुका लिया.....फिर आसिफ़ ने उन्हें देखते हुए ज़ोर से भेड़िए की आवाज़ निकाली हववववववववव ये जीत की खुशी थी वो भेड़िए भी आसिफ़ की आवाज़ के साथ चिल्ला उठे....जंगल में चारो ओर ये आवाज़ गूँज़ उठी)
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[size=large][size=large][size=large]फिर वो भेड़िए एक एक करके अलविदा कहके भाग गये...आसिफ़ बस मुस्कुराया "मान गये तुम्हें तुम ऐसे ही मालकिन के भाई नही कहलाए हो....एक सोने का दिल रखने वाला इंसान जो चाहे तो हमारे इन कट्टर दुश्मनो को मार सकता इंसाफ़ करके ऐसा समुझौता कर पाया है"........मैं बस मुस्कुराया और फिर देखा कि धीरे धीरे सूरज उगने लगा है....हम दोनो जल्द ही मेरा बेहोश घोड़ा जो जाग चुका था उसपे सवार होके घाटी की ओर बढ़ने लगे.....कितनी खूबसूरत घाटी थी चारो ओर चिड़ियो की आवाज़ें उफ्फ ऐसी जन्नत और कहाँ?....लूसी मुझे बताने लगी कि उन भेड़िए के संगठन ने नाक में दम कर रखा था उनकी दुश्मनी सालो साल से चली आ रही थी पर आज पहली बार उन्हें किसी ने हरा कर समझौता किया है....अब वो खुश है और यक़ीनन मालकिन शीबा भी फकर करेंगी कि उनका सबसे कट्टर दुश्मन उनके इलाक़े से दूर जा चुके है....मैं बस मुस्कुराया और सूरज की ओर देखने लगा
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जल्द ही हम एक पहाड़ के सामने थे एक उँचा पहाड़....सामने नहेर की आवाज़ आ रही थी....पानी बह रहा था उसमें चारो ओर हरा भरा जंगल और खूबसूरत वादियाँ...."उस पहाड़ को पार करते ही हमारा क़िला आ जाएगा चलो चले".........इतना कहके घोड़ा फिर पूरी रफ़्तार से उस ओर बढ़ने लगा....पहाड़ के रस्तो से उबड़ खाबड़ चलते हुए मैं अपनी मंज़िल से महेज़ कुछ ही दूरी पे था.....चार्ल्स की बात दिमाग़ में घूम सी गयी थी "उस पहाड़ को देख रहे हो...उस पहाड़ के बाद मौत शुरू होती है जहा सिर्फ़ मौत बसती है पिसाच जैसे ख़ूँख़ार जानवर सब वही रहते है....और हम इंसान इस छोटी सी बस्ती में हमारे में किसी की भी हिम्मत नही की उस ओर चले जाए सब ख़ौफ़ खाते है ये भूल तुम कभी मत करना".........चार्ल्स की उस बात को सुनके सच में मुझे अज़ीब महसूस हो रहा था....अच्छा हुआ ये सच्चाई कभी नही खुल पाएगी



जल्द ही मेरी सोच तब टूटी...जब लूसी ने मेरे बदन को झिंजोड़ा और सामने उंगली का इशारा किया...सामने पहाड़ जैसे ख़तम हुए उसी रास्ते से काफ़ी दूरी पे एक बड़ा सा क़िला देखने को मिला....मानो कितना पुराना था और कितना खूबसूरत.."यही है मालकिन और हमारा घर".........लूसी ने मुस्कुरा के जवाब दिया...मैं उसके साथ धीरे धीरे रास्ते पे चलता हुआ उस ओर आया घोड़ा पहले तो सहम उठा....पर मैने उसे समझाया कि उसे डरने की ज़रूरत नही उसे कुछ नही होगा...जल्द ही हम क़िले के बेहद करीब थे....ऐसा लग रहा था क़िला करीब 150 साल पुराना तो था ही...क्यूंकी उसकी एक एक ईंट काफ़ी पुरानी और जर्जर हो चुकी थी....कभी ये क़िला वहाँ के राजा स्किवोच का था लेकिन उनकी मृत्यु के बाद इस क़िले को हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया गया और आज यहाँ सिर्फ़ पिशाचो का वास था मुझे यकीन नही हो रहा था कि मेरी बाजी शीबा इन पिशाचो की रानी बन गयी थी



जल्द ही सामने एक बरा सा द्वार था जो चरर चर्राते हुए खुल गया हम अंदर दाखिल हुए अंदर एक खुला मैदान सा था और चारो ओर के इमारतो से घिरा......वहाँ के एकदम सन्नाटे भरे इलाक़े को देख मुझे हैरानी हुई....मैं और लूसी उतरे लूसी ने जो अपने बदन को कपड़े से ढक रखा था उसे उतार डाला...."आओ मेरे साथ"........मैने घोड़े को अपने साथ ले जाने लगा "इसे यही छोड़ दो ताकि ये खुली वादियो में रहे".......मैने घोड़े को वही बाँध दिया...और लूसी के साथ चलने लगा.....लूसी ने एक मशाल पास रखी उठाई और फिर उसे फुका मशाल अपने आप जल उठी 



हम धीरे धीरे सीडियो से उपर चढ़ने लगे और फिर दूसरी ओर काफ़ी गुफा जैसी उची दीवारे और बंद चारो तरफ से थी....जल्द ही हम एक डाइनिंग हॉल जैसी जगह में दाखिल हुए....सामने एक विशाल गद्दी पे बैठी सरताज और वेश भूषा में एक लड़की ने मेरी तरफ आँख घुमाई "लूसी उनके पास जाके सर झुकाके घुटनो के बल बैठके मालकिन हुकम बोल उठी".........जैसे ही मेरी निगाह उस रानी पे पड़ी मेरे चेहरे पे खुशी की ल़हेर दौड़ उठी वो रानी मुस्कुराई एकदम से अपनी गद्दी से उठी और मेरी ओर जैसे दौड़ पड़ी



"ओह्ह्ह आसिफ्फ तुम आख़िर आ ही गये".......शीबा बाजी मेरे गले लग्के मुझे खूब प्यार करने लगी 



"हां बाजी मैं आ गया आपके बिना कैसे रह पाता?"........मैं शीबा बाजी के चेहरे को हाथो में भरके उनके गाल और गले को चूमने लगा....लूसी की आँखो में भी खून के आँसू थे....शीबा बाजी ने मेरी खातिर दारी शुरू कर दी....


[size=large][size=large][size=large]कुछ देर बाद वहाँ एक और शक्स आया....और उसके पीछे भी बहुत से पिसाच जो मुझे आँखे फाडे देख रहे थे...वो सब मुझसे वाक़िफ़ थे इस बात का मुझे यकीन था....बाजी ने धीरे धीरे उन सबसे मुझे मिलवाया वो सब राज घराने के गुलाम थे....उन सबको मेरी कहानी पता थी..कुछ पिसाच बहुत उम्रदराज थे मानो बेहद पुराने हो कभी इस राजा स्किवोच के मुलाज़िम होया करते थे और आज भी है...उन पिसचो को मेरे गरम खून की गंध मिल ज़रूर रही थी उन्हें पता लग चुका था कि मैं एक शापित भेड़िया हूँ...पर उन्होने मुझे कुछ नही कहा मैं थोड़ा सम्भल ज़रूर गया था उनसे वो लोग मेरे लिए अजनबी थे.....शीबा बाजी ने बताया कि इनमें से कुछ पिसाच उनके ही बनाए हुए है जो कभी इंसान थे उनकी तरह और वो सब जानवरों का शिकार करते है उनका ताज़ा खून पीते है और उनमें से लूसी भी थी शीबा बाजी की सबसे अज़ीज़[/size][/size][/size]
 
जल्द ही भारी कदमो की आवाज़ सुनाई दी और ब्रिटिश अमल की वेश भूषा कपड़ों में एक आदमी अंदर आया उसे देख कर ख़ौफ़ खा जाने का दिल तो हो ही गया था....लेकिन उसे जाने में देरी ना लगी ये कोई और नही यहाँ का राजा स्किवोच था..."तुम्हें एक राज़ की बात बताना चाहती थी मेरे भाई आओ मेरे साथ".....मैं उनके साथ स्किवोच के करीब आया उन्होने मुझे बड़े गौर से देखा और मुस्कुराया "एक मासूम चेहरा आम इंसानो जैसा पर उतना ही ख़तरनाक".......उन्होने मुस्कुराया मैने भी उन्हें उनके तौर से सलाम किया...."ये अब मेरे पति है और मैं इनकी पत्नी बन चुकी हूँ".......मुझे इस बात को सुनके करीब बहुत ज़ोर का धक्का लगा बाजी ने शादी कर ली वो भी एक पिसाच के साथ 

मेरे मन को दोनो ने बखूबी पढ़ लिया था और ठहाका मारके हँसने भी लगे...."मेरा नाम स्किवोच द कस्वा है और मैं यहाँ का महाराजा हूँ तुम्हें किसी चीज़ से डरने की कोई ज़रूरत नही ये सब तुम्हारे अपने है....तुमने सही फरमाया तुम्हारी बेहन का मैं पति हूँ....और ये सारे मुलाज़िम हमारी देख रेख करते है और क़िले का भी इनमें से मेरे ज़्यादातर मुलाज़िम मेरे बनाए हुए है फिलहाल तो तुम मेहमान नही हमारे अपने बनके आए हो और तुमसे मिलने का मुझे भी बहुत मन था तो क्यूँ ना पहले दावत का लुफ्त उठाया जाए".........इतना हस्मुख और इतना सज्जन शक्स मैने अपनी ज़िंदगी में नही देखा था

हम सब जल्द ही एक डाइनिंग टेबल पे बैठे हुए थे करम्चारि सब जा चुके थे वहाँ सिर्फ़ लूसी ही मौजूद थी....."ह्म्म्म तुम्हारी बाजी ने मुझे सबकुछ बताया है कि किस तरह तुमने उन्हें नयी ज़िंदगी दी सच में ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है वरना हमसे तो सब नफ़रत ही करते है"............मैने कच्चे माँस को खाते हुए उनकी ओर देखा जो खून के जाम की चुस्किया ले रहे थे....."वैसे लूसी ने तुम्हें कोई तक़लीफ़ तो नही दी होगी आइ आम आपसोल्यूट्ली श्योर".......उनकी मुस्कान में एक शरारत थी मैं समझ चुका था वो सबकुछ जान गये कि लूसी और मेरे बीच जिस्मानी रिश्ते भी हुए है..लूसी शरमा गयी नज़रें झुकाए....

"ह्म्म अच्छा किया लूसी जो तुम इसे अपने साथ ले आई....रास्ते में उन भेड़ियों का क्या हुआ?".......स्किवोच को सब मालूम था..उन्होने एक ही झटके में कह डाला कि तुम्हें अपने भाई पे नाज़ होना चाहिए इसने उन भेड़िए के संगठन को हमारे इलाक़े से दूर कर दिया अब हमारा एक्मात्र दुश्मन भी नही रहा....शीबा बाजी बहुत खुश हुई और मुझे प्यार से देखने लगी...लूसी भी मेरे ताक़त की तारीफ करने लगी

कुछ देर बाद हम एक कमरे में दाखिल हुए...स्किवोच ने बाजी को मेरे सामने अपने गले लगाके गर्दन और गाल पे चूमा और उन्हें कुछ देर मेरे साथ वक़्त बिताने को कहके चले गये....मैं बाजी के नज़दीक आया और उन्हें बड़े प्यार से देखने लगा....मेरी आँखो में आँसू थे कि मेरी बाजी अब दुकेले हो गयी है उन्हें उनके मन के लायक जीवनसाथी मिल चुका है.....बाजी ने मुझे अपने साथ गद्देदार बिस्तर पे बिठाया और मेरे यहा आने का सबकुछ जानने लगी...मैं अपने से ज़्यादा उनके बारें में जानना चाहता था कि आख़िर उस रात क्या हुआ था? वो यहाँ कैसे आई? और कैसे स्किवोच ने उनसे शादी कर ली?

बाजी ने मुस्कुरा के मुझे सबर करने को कहा फिर धीरे धीरे ब्यान करने लगी अपना अतीत "उस रात जब हम बर्फ़ीली तूफान में बिछड़ गये थे तो मुझे कुछ याद नही रहा क्यूंकी बर्फ़ीले तूफान में मैं फिसलते हुए पहाड़ से सीधे नदी में गिर पड़ी थी.....अगर उस वक़्त कोई इंसान मेरी जगह होता तो शायद कबका मौत के घाट उतर जाता....मुझे कयि दिनो तक कुछ याद नही रहा....फिर अचानक एकदिन नही के पास ही मैं स्किवोच को मिली जो हिन्दुस्तान उस वक़्त हमारे शहर घूमने आया था उसे वहाँ हमारी मज़ूदगी की गंध मिली थी वो हमे ही ढूँढते हुए आया था...स्किवोच एक पुराना राइज़ शक्स है जिसने लिलिता से खुद ना मरने का अमल हासिल किया था लिलिता ने उसके मरने के बाद ही उसे ड्रॅक्यूला बना दिया...और वो हम सबसे उमर में 1500 साल का बड़ा है...उनके आगे पीछे कोई नही था...सिवाय उनके मुलाज़िमो के जब मैं उन्हें मिली तो मैं उन्हे बेहद पसंद आई उन्होने मुझे प्रस्ताव दिया कि मैं उनकी दुल्हन बन जाउ ताकि वो अपने अकेलेपन के जीवन को व्यतीत ना कर पाए....सच पूछो तो उनकी सेवा में ही मुझे उनसे इश्क़ हो गया था....मुझे उनके रंग रूप से कोई मतलब नही रहा....वो मुझे उसी बेहोशी हालत में ट्रॅन्ज़ील्वेनिया लाया था...फिर जब मुझे होश आया तो मैने वापिस जाने का मन बनाया पर सच पूछो तो उनके प्यार ने मुझे रोक दिया....लेकिन मैं तुम्हारे लिए सच में बहुत इंतेज़ार कर रही थी डर लग रहा था कि क्या तुम दूर चले गये? स्किवोच ने खुद ही चाहा कि वो तुम्हें वापिस ले आए पर क्या पता तुम हमारे रिश्ते से तय्यार ना होते? जल्द ही तुम्हारे पास खत भेजा था हमने हम तुम्हारे बारें में जान चुके थे कि तुम किस हाल में हो? सच पूछो भाई आज सच में खुशिया का फिर लौट आई है".........इतना कहके बाजी रोने लगी

मैने बाजी के आँसू पोंछे और उनके गोद पे अपना सर रख दिया....मैं बाजी के लिए बेहद खुश था...यहाँ के वातावरण में आज़ादी थी...स्किवोच को सबकुछ मालूम था कि मेरे और बाजी के बीच कैसे रिश्ते है? ईवन उसने ये बाजी को सॉफ कह दिया था कि अगर वो चाहे तो मुझसे भी जिस्मानी तालुक़ात रख सकती है क्यूंकी वो खुद अपने अकेलेपन को लूसी के साथ निकालते थे...मुझे ये जान के काफ़ी हैरानी हुई पर खुशी भी कि मुझे मेरी बाजी से अब चुपके चुपके प्यार तो नही करना परेगा.....बाजी काफ़ी देर तक मुझसे बात करती रही फिर उसने लूसी की मेरे लिए सेवा वाली बात पूछी.....वो रात कैसी थी बाजी को सब बताया?....बाजी ने मुझे आँख मार दी कि हमारी ये नयी ज़िंदगी में एक यही खुश रहने का तरीका है....कुछ देर बाद बाजी को बुलावा आया स्किवोच सर उन्हें बुला रहे थे.....बाजी अपने शौहर से मिलने फ़ौरन दरवाजे से आरपार चली गयी..

सूरज जल्द ही छिप गया और बदल गरजते हुए रात होने लगी..मैने बाहर निकलके स्किवोच के कमरे के पास जाके देखना चाहा....वहाँ खड़े मुलाज़िम बस चुपचाप मुस्कुरा के मुझे देख रहे थे "हमारी मालकिन और मालिक का ये वक़्त एक साथ बिताने का होता है ज़्यादातर वो एक्दुजे के साथ ही कमरे में वक़्त बिताते है".....

.मैं मुस्कुरा के शरम से लाल हो गया लेकिन सच पूछो तो यही यहाँ की रीत थी कोई किसी से शरमाता नही था ना मज़ाक उड़ाता था....एकदम से लूसी मिल गयी जो मेरे ही पास आ रही थी...."अर्रे वाह तुम यहाँ?"......उसने मेरे मंन को पढ़ लिया था
 
[size=small][size=large]"आओ तुम्हें कुछ दिखाती हूँ..वैसे तो मालिक के कहे बिना हम उनके कमरे में नही जा सकते पर हम उन्हें देख ज़रूर सकते है"........हम दोनो एक बंद कोठरी में गये....जिसकी दीवार का एक पत्थर खिसका हुआ था...."लो देखो".....मुझे अंधेरे में कुछ दिख नही रहा था....फिर मैने अपने अंदर की आत्मा को जगाना शुरू किया भेड़िया मुझपे हावी होने लगा थोड़ा सा...और जल्द ही मुझे ख्याल आया कि मैं अंधेरे में अपनी चमकदार आँखो की वजह से देख सकता हूँ....मैने सॉफ देखा...बाजी अपने गाउन और वेश भूषा में कोट और ढका पॉश कपड़े पहने स्किवोच से बात कर रही है फिर दोनो एक दूसरे का गहरा चुंबन लेने लगे और उस अंधेरे कमरे में ही घूमते हुए अपने कॉफिन में जाके एक दूसरे दूसरे के साथ लेट गये और कॉफिन को बंद कर लिया

"हमारे मालिक लगता है मालकिन को बहुत ज़्यादा चाहने लगे है तभी तो एक सेकेंड भी उन्हें अपने से दूर नही करते"...........

मैं मुस्कुराया और लूसी की ओर देखने लगा...लूसी की नज़रों में एक प्यास थी जिन्सी प्यास...अब तो हमारे पास पूरी रात बाकी थी फिर किसका इंतेज़ार....मैने उसे इन्सिस्ट किया कि क्या मैं बाजी और राजा स्किवोच की चुदाई देख सकता हूँ...तो उसने कहा ये मुमकिन नही क्यूंकी ये राजा पे डिपेंड करता है कि वो हमारे सामने खुल्लम खुल्ला मालकिन को चोदे....वैसे तो वो दोनो हमारे सामने आमतौर पे एक दूसरे के जिस्मो पे हाथ फैरना और चुंबन लेना ही ज़्यादातर करते है

मैने कहा कोई बात नही तुम मेरे कमरे में रात को आ जाना.....लूसी मेरी आग्या का पालन करते हुए चली गई...मैं भी उस बंद कोठरी से बाहर निकल आया...इस घुटन भरे खामोश क़िले में भला कौन रह सकता था.....चाँद पूरी तरीके से बड़ा होके सॉफ साफ दिख रहा था मैं अपने शाही बरामदे में खड़ा बाहर की खामोश सुनसान अंधेरी वादियो की ओर देखने लगा....इतना सबकुछ बदल जाएगा कभी सोचा नही था....इतने में किसी का हाथ मुझे अपने कंधे पे महसूस हुआ और मैं फॅट से पलटके उस साए की ओर देखने लगा

रात का साए में क़िला चाँदनी रात की रोशनी से रोशनदान था...अचानक उस हाथ ने मुझे पीछे पलटने और चौकन्ना होने पे मज़बूर कर दिया...जैसे ही मैं पीछे मुड़ा...एक हवा का झोंका मेरे चेहरे से लगा सामने वही मैली नाइट गाउन जैसी पोशाक में लूसी मेरी ओर प्यार भरी नज़रो से देख रही थी...."तुम डर गये क्या?"......


मैं मुस्कुराया "न्न्न..नहिी तो बस ऐसा लगा जैसे कोई मुझपे हमला करने वाला है"........लूसी हँसने लगी उसके नुकीले दाँत चमक रहे थे मानो जैसे वहीं ख़तरनाक दाँतों को वो मेरे गले में बस कुछ देर में ही धसाने वाली थी...

"ह्म्म्मम आमतौर पे अगर यहाँ तुम्हारी जगह कोई आम इंसान होता तो शायद यहाँ के मुलाज़िमो की भेट ज़रूर चढ़ता इंसानी खून के लिए सब तरस रहे है".......लूसी की ये बात मुझे हड़बड़ा सी गयी

मैं : मतलब..अब ये कैसे मुमकिन है? राजा स्किवोच ने कहा था कि तुम लोग इंसानो का शिकार नही करते

लूसी : स..स्ष धीरे कहो इस क़िले में आँखे और कान दोनो खुली रखा करो अगर मालिक का आगाह डोल गया तो बहुत नाराज़ होंगे मुझपे

मैं : ठीक है (मैं सच में इस क़िले में आके भी मेहमान नवाज़ी और खातिरदारी के बावजूद बाजी के लिए दुखी था कि हम दोनो ने एक दूसरे के साथ हमेशा रहने की कसम खाई थी फिर ये अचानक बाजी को इतना प्यार इस पिशाचों के राजा के उपर कैसे आने लगा और लूसी की हड़बड़ाहट ऐसे डरा रही थी मानो जैसे मैं सच्चाई के कोसो दूर हूँ और वो मुझसे छुपाने के डर से ऐसे बर्ताव कर रही हो)

लूसी के चेहरे पे अब एक कातिल मुस्कान थी और उसने मुझे अपने साथ बाजी और मालिक के बीच होने वाले संबंध को दिखाने गुप्त रूप से ले जाने लगी....हालाकी मुलाज़िम रात को ज़्यादा क़िले के अंदर बाहर का गश्त लगाते थे लेकिन एक यही मौका था जब दोनो अपने अपनी क़ब्र से बाहर निकलके एक दूसरे के साथ संबंध बनाते है....वो रात बेहद भयंकर थी...जल्द ही हम राजा स्किवोच के कमरे के बाहर खड़े थे अंदर मोमबतियो की उज्ज्वल रोशनी जल रही थी....पर ये फीकी रोशनी थी इन पिशाचों को अंधेरा बेहद पसंद है...और ये आग भी इनकी बनाई मायावी है...हम फिर वहीं बंद कोठरी के अंदर आए बाहर के एक छेद से चाँदनी रात की रोशनी दाखिल हो रही थी अंदर.....लूसी ने फिर से उस पत्थर को हटा दिया...अब कमरे के अंदर का मंज़र सॉफ था

"ओह्ह्ह मेरी जान तुम्हारे इस संगमरमर जैसे जिस्म को मैं पीना चाहता हूँ इसे मेरे आगोश में डाल दो मेरे बदन को चुमो"........उत्तेजक बातों से राजा शीबा बाजी के गाउन पर से ही उनके फितो को खोल चुका था अब धीरे धीरे उसने बाजी के गाउन के उपरी सिरे को फाड़ना शुरू कर दिया....बाजी मानो जैसे उसके आगोश में मूर्ति बनके खड़ी थी...राजा की आँखो में वासना को देख कर ना जाने क्यू मुझे खराब सा लगा?.....फिर उसने बाजी के कपड़ों को एक ही बार में ऐसा दोनो तरफ से फाड़ डाला..कि गाउन अपने आप बाजी के जिस्म से उतरते हुए टाँगो में आके फस गया.....लूसी तो बस मेरे कंधे को सहला रही थी उसे इन सब में लुफ्त उठाने का शायद शौक था....मैने अपने मन को दबाया अब बाजी किसी की बीवी बन चुकी थी...और उनके शौहर का उनपे पूरा हक़ था....

जल्द ही दोनो के होंठ एक दूसरे से टकराए और फिर एक दूसरे की ज़बान से ज़बान लड़ाने लगे.....लपलपाति ज़ुबान से राजा शीबा बाजी के होंठो को चाटने लगा उनकी ज़ीब को मुँह में भरके चूसने लगा...बाजी की आँखे मुंदी हुई थी....फिर कुछ देर बाद उसने धीरे धीरे बाजी के सख़्त निपल्स को अपने मज़बूत हाथो मे क़ैद किया और उसे दबाने लगा...इतने देर में राजा का चेहरा एकदम भयंकर सा होने लगा उसके दाँत उसकी आँखें उसका ख़ौफफनाक वो चेहरा इस्श्ह्ह शायद अल्लाह ने लानत का तौक इस इब्लीस के बेटे को पहनाया हो....उस शैतान राजा ने मेरी बाजी की नाभि पे ज़बान डाली और उसे कुरेदने लगा बाजी राजा का सर पकड़े अपनी नाभि में उसके मुँह को दबाने लगी...मेरी बाजी की जवानी का वो बहुत बारीक़ी से लुफ्त उठा रहा था...और फिर धीरे धीरे उसके हाथ बाजी के जाँघो से होते हुए झान्टो दार चूत के बीच आए और उसने बाजी की पाँव रोटी जैसी मखमल मुलायम रशभरी चूत को दाने सहित दबाया...."आहह उम्म्म आहह"........बाजी सिसकती रही और दो उंगली डालके बीच बीच में चूत को दबाते हुए राजा उसे अपनी सफेद निगाहो से घूर्र रहा था बाजी अपने पिशाची रूप में थी....दो मृत इंसान एक दूसरे के साथ संभोग कर रहे थे....अपनी बाजी को ऐसा लुफ्त उठाते देख मुझे ना जाने क्यू गुस्सा आने लगा? फिर कुछ देर बाद देखा कि उसने बाजी को लिटा दिया और उनके टाँगो के बीच आके उनकी टाँगों को फैलाने लगा बाजी ने खुद सख्ती से उनके मुँह को पीछे किया लेकिन वो माना नही उसने अपनी गीली ज़ुबान बाजी की चूत के मुँह पे चलानी शुरू कर दी
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[size=small][size=large][size=large]बाजी अपने होशो हवास से खो गयी....लज़्ज़त की सिसकारिया कमरे में गुंज़्ने लगी..."हाहाहा"......उस शैतान का ठहाका मेरी रग रग में जैसे आग उबाल रहा था....अपनी बाजी को किसी और के साथ हमबिस्तर होता देख मेरे ज़ज़्बात उठने लगे...उसने बाजी की चूत पे अपना पूरा मुँह रख दिया और बहुत ज़ोर ज़ोर से उनकी चूत को चूसने लगा....बाजीी काफ़ी ज़ोर से दहाड़ उठी....शायद उन्हें राजा की ज़ुबान का चस्का लगा था या फिर उनके अंदर की जिन्सी भूक उनपे बढ़ती जा रही थी....फिर राजा ने उठके अपने लंड को चूत के मुँह पे रखा.....बाजी ने आँखे बंद कर ली और राजा भी आहें भरता हुआ बाजी की चूत के अंदर अपना लंड डाल चुका था....वो खड़े खड़े बाजी की एक टाँग को अपने कंधे पे रखके उनकी चूत में सतसट धक्के पेलता रहा.....उनकी बुर को गीला करता रहा चोदता रहा...."आहह आअहह आहह"......राजा कितने मज़े से आहें भर रहा था इस बात का मुझे पक्का मालूमात था...मेरी बाजी की बुर उसे भा गयी थी....उसके कुछ देर बाद उसने बाजी की चूत से अपना लंड बाहर खींचा और फिर उन्हें पेट के बल लिटा के काफ़ी बेरहमी से लंड गान्ड के अंदर डाला....बाजी चिल्लाती रही चीखती रही पर उनकी आवाज़ को सुनके उस हाल का दर्द समेटना मेरे लिए बहुत मुस्किल था...शायद बाजी को इसकी आदत थी इस शैतान के साथ क्या वो ऐसे ही रोज़ मिलती होंगी? मेरी बाजी एक दोजख से निकलके दूसरे दोजख में क़ैद थी
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"आअहझह आआहह सस्स आआआआहह".......राजा बेधड़क आहें भरता हुआ गरज रहा था उसके शैतानी ठहाके और उसकी लज़्ज़तदार सिसकारियाँ मुझे उसकी जान लेने को आमादा कर रही थी....कुछ देर बाद जब उसका बर्दाश्त पूरा हुआ तो अपने असल रूप मे आके उसने बाजी की गर्दन से उन्हें पकड़ा और अपने लंड की सारी गंदगी उनके चेहरे और होंठो पे छोड़ता चला गया.....बाजी बस चुपचाप अंडकोष को सहलाते हुए अपने शौहर की ओर देख रही थी....फिर उस राजा ने उनकी गर्दन से बालो को हटाया और उसपे अपने दाँत गढ़ा दिए बाजी की एक हल्की चीख निकली और फिर पीठ से होते हुए फर्श पर काला खून गिरने लगा



"जब तक मालकिन का खून वो अपनी ज़ुबान से ना लगाए उन्हें चैन नही मिलता"......मुझे सख़्त गुस्सा आ गया था और मैं समझ चुका था कि अय्याश राजा जो किसी इब्लीस के बेटे से कम नही इसमें बाजी सिर्फ़ प्यार खोज रही थी लेकिन मुझे लूसी की ये बात हजम नही हुई...क्यूंकी मैं जहाँ तक मानता था....एक पिशाच दूसरे पिशाच को सिर्फ़ अपने फ़ायदे के लिए कांटता है....ताकि वो अपने गंदे खून को दूसरे के खून में शामिल कर सके



मैं और देख नही पाया दोनो एक दूसरे से प्यार भरी बातें करने लगे....लूसी और मैं वहाँ से जल्दी से निकल आए....लूसी मुझसे पूछने लगी कि तुम्हें मज़ा आया कि नही...पर मैं घृणा भरी निगाहो से लूसी की ओर बिना देखे अपने कमरे की ओर जाने लगा कहा कि मुझे कुछ आराम की ज़रूरत है उसने मुझे फोर्स करना चाहा मेरे जिस्म को सहलाना चाहा....पर बाजी की इस हालत को देखने के बाद मेरे अंदर की जिस्मानी भूक थम गयी थी



जब कमरे में लौटा तो मेरी आँखे बदल चुकी थी..गुस्सा मुझपे हावी हुआ जिन वजहों से मैं भेड़िए के रूप में तब्दील होने लगा था....फिर अपने गुस्से को पीते हुए रात के सन्नाटे में लॅंप की रोशनी में ही डाइयरी लिखने लगा बाहर की हो हो करती तेज़ हवाए खिड़की से आ रही थी.....इस सन्नाटे भरे वीरान क़िले में जहाँ मौत रहती थी वहाँ ऐसी हवाओं का आना डर पैदा कर देता था...मैने डाइयरी में लिखी आप बीती को गुस्से में आके फाढ़ के ओर फ़ैक् दिया...."या अल्लाह किस बात की सज़ा मिल रही है मुझे? मैं तो बस आज अपनी बाजी को खुश भी देख कर ऐसा क्यू लग रहा है कि मैं उन्हें कहीं ना कहीं खो चुका हूँ किसी ग़लत हाथो में उन्हें जाने दे रहा हूँ"........अपने आप से मैं बात कर रहा था...और उसी पल हवाओं में एक तेज़ गंध मुझे महसूस हुई....ये गंध किसी बहुत ही गंदी सी जैसे मानो सौ इंसानो की लाश की एक साथ बदबू हो....मैने देखा कि द्वार के नीचे से गेट अपने आप चर्र्चाते हुए खुला और इस शोर भरी खामोश सर्द रात में पंजो के बल चलते हुए दूर वीरानो में जाने लगा....जब गौर किया तो ये एक आदमी था...कोई और नही वही भयंकर चेहरा वही रूप ड्रॅक्यूला स्किवोच..उसकी हरक़ते मुझे किसी जंगली जानवर की तरह लग रही थी पर इतनी रात गये वो जा किस ओर रहा था



मैने चौंककना होके चारो ओर देखा...और फिर पाँचवी मंज़िल जितनी अपनी बाल्कनी से छलाँग लगा दी....जल्द ही मैं कच्ची मिट्टी पे उतरा....सूंघने की गंध काफ़ी तेज़ थी मेरी....बस इस बात का ख़ौफ़ था कहीं राजा को मेरे पीछा करने के बारे मे पता ना लग जाए...वो धीरे धीरे धुन्ध में चल रहा था....चारो ओर एकदम खामोशी कहीं दूर से जंगली जानवरों की रोने की आवाज़ें आ रही थी...मैं झाड़ियों के बीच बीच छुपते छुपाते जिस ओर वो जा रहा था उससे 30 कदम दूर मैं पीछे चल रहा था....जल्द ही वो एक गेट को खोलके अंदर गया....जब मैने उस ओर देखा तो चारो तरफ सिर्फ़ और सिर्फ़ क़ब्रे ही क़ब्रे थी....मैं धीरे धीरे पेड़ो के उपर चढ़के चुपके से देखने लगा चारो ओर पुराना सा क़ब्रिस्तान....तभी वो अचानक एक बड़ी पुरानी सी क़ब्र के करीब जाके बैठ गया....और उसके बाद उसकी वो ठहाका लगाती हँसी हा हा हा हा हा हा...हा हा हः हा हा....चारो ओर के वातावरण और इस हो हो करती हवाओं के शोर्र में एक बहुत ही गंदी डरावनी हँसी थी वो....और फिर वो अपने हाथो से क़बर को खोदने लगा....मैने सॉफ देखा उसकी आँखे सुर्ख सफेद थी और उसके दाँतों पे ज़ुबान लपलपा रही थी



कुछ देर बाद एक अज़ीब सी घुटन भरी आवाज़ उस क़बर से आती महसूस हुई....राजा घुटनो के बल बैठके अपने हाथ फैलाए उस ज़मीन को फाड़ के निकलती उस अज़ीब सी औरत की तरफ मुस्कुरा राह था....जिसके बाल सुर्ख गुलाबी और चेहरा इतना सफेद....





"मेरी बाजी के होते हुए भी ये शैतान किस औरत के पास आया था? ये कोई इंसान तो नही थी एक और नापाक पिशाच जो अपनी क़बर से रात के पयमाने में उठी थी"......उसने उठके पास चलके राजा के हाथो को अपने हाथो में ले लिया उसका वो भयंकर रूप देख कर साँसें मानो अटक सी गयी...उसने उस औरत के ठंडे हाथो में अपने रक्तहीन होंठो से चूमा...."मैं समझ चुका था कि ये शैतान आख़िर अपना रूप दिखाएगा ही मैं बस ठिठक के चुपचाप था वरना अगर उनके सामने आया तो यक़ीनन मौत को गले लगाना होगा"........उन नापाक पिशाचो ने एक दूसरे की ओर अज़ीब निगाहो से देखा फिर मुझे राजा की दोहरी आवाज़ सुनाई दी जो चारो ओर गूँज़ रही थी


[size=small][size=large][size=large]"जल्द ही तुम जीवित हो उठोगी मेरी रानी क्रिसटीना इस खामोश वीरान में तुम कब्से यूँ सोई हुई हो...बस अब शिकार खुद चलके हमारे पास आया है....जल्द ही मेरी पाँचवी दुल्हन को भी मैं बलि चढ़ाउंगा और उसके काले खून से तुम्हें फिर वैसे ही नहलाउंगा जो अब तक हर उस आधे चाँद के वक़्त करता आया हूँ बस एक और शिकार....और तुम नही जानती उसका भाई भी मेरे कब्ज़े में है अब उसके रूप को मैं पहचान गया हूँ और उस जैसे ख़तरनाक जानवर की हमे ज़रूरत है ताकि एक बार फिर हमारा वजूद पनपे...फिर हम अपनी प्यास को भुजाए फिर हम एक हो सके"........[/size][/size][/size]
 
जल्द ही उस औरत ने अपने होंठ खोले जिसके होंठो से गाढ़ा खून उगलने लगा राजा ने उसके होंठो से अपने होंठ जब सटाये...तो मैने अपना मुँह फेर लिया नापकीयत के इस बेहया को मैं और सहन नही कर सकता था....साथ ही ख़ौफ़ जागने लगा दिल ज़ोर से धड़क उठा यानी इसका मतलब ये राजा शैतान है इसने बाजी को अपनी पाँचवी दुल्हन के रूप में अपने पास रखा है मुझे बाजी को इसकी क़ैद से छुड़ाना होगा वरना............

अचानक मैने देखा कि दोनो एक दूसरे का हाथ पकड़े हवाओं में जैसे तैरने लगे.....और फिर धीरे धीरे दोनो क़िले के द्वार से वापिस अंदर की ओर चले गये.....मैं वही पेड़ पे उन्हें दूर जाते हुए देख रह था...वो दोनो धीरे धीरे सीडियो से नीचे चलते जा रहे थे....और नीचे की तह तक..जब सीडिया ख़तम हुई तो एक तहख़ाने का द्वार खुल गया जिसके अंदर की महक अज़ीब सी थी और चारो ओर कफ़न में लिपटी हुई उन दुल्हनो की लाश जिन्हें आजतक इस क़िले में रानी के रूप में लाया गया और फिर उनकी पिशाच को वापिस जगाने के लिए बलि चढ़ा दी गयी....मुझे जब इन सब को देख कर मालूमात हुआ तो मेरे अंदर का दिल जैसे काँपने लगा...मन किया अभी बाजी को अपनी बाहों में लून और इस नापाक जगह से हमेशा हमेशा के लिए कहीं दूर चला जाउ आजतक शायद बाजी मेरे ही आने के इंतेज़ार में बची हुई थी और वो इब्लीस भी मेरा फायेदा उठना चाहता था तभी तो उसने मुझे ख़ास तौर पे यहाँ ऐसे ही बुलाया इन शैतानो की चाल मैं समझ चुका था

मैं अभी अपने कमरे में लौटा ही था इतने में लूसी एकदम से सामने आके खड़ी हो गयी "कहाँ गये थे तुम?".........मैं अपने आपको बदल नही पा रहा था ख़ौफ्फ से मेरा पूरा बदन सिहर रहा था तो क्या ये सब भी इंसान का शिकार करते है अगर इन्हें पता लगा तो मुझे मार डालेंगे यह लोग पहले".......लूसी एकदम चुपचाप गंभीर निगाहो से मुझे घूर्र रही थी

"डरो नही तुम्हें मारने का मुझे कोई हक़ नही है...."........

मैं सहम उठा फिर चारो ओर देखते हुए उसके करीब आया

लूसी : मौत के घर में ज़िंदगी की दस्तक तभी सुनी जाती है जब कोई ज़िंदगी मौत में तब्दील होने वाली हो इस क़िले में ना जाने कितने सैकड़ो मासूम मालिक का शिकार होते आए है

मैं : मैं अपनी बाजी को यहाँ से लेके जाउन्गा 

लूसी : स्शह धीरे बोलो (उसने मुझे फ़ौरन धकेलते हुए दीवार से सटा दिया और दरवाजे को कस्के बंद कर दिया) अगर राजा को पता चला तो तुम्हें पहले जान से मार डालेंगे बेहतर यही है कि जो नापाक ज़िंदगी जी रहे हो उसे ही बस जी लो 

मैं : नही (मैं गरज उठा भेड़िया जैसे मुझपे हावी होने ही वाला था मेरी आँखो को देख कर लूसी सहम उठी मैने लूसी के कंधे से उसे जकड लिया) सुना तुमने मेरी बाजिी किसी बलि की भेट नही चढ़ेगी उसे मौत से वापिस मैं लाया था और इस इब्लीस की औलाद के लिए उसे जान से मरने दूं ताकि मुझे कुछ ना हो ये याद रखना शायद तुम्हारे दिल मरे हुए हों पर इस दरिंदे का दिल अब भी कहीं ना कही अपनी बाजी के लिए धड़कता है...उसके लिए मैं इस पिशाच से भी लड़ने को तय्यार हूँ पर मैं अपनी बाजी को यहा से लेके जाउन्गा ही

लूसी : तुम नही समझ रहे राजा की पहली बीवी क्रिसटीना बेगम थी जो जंग के दौरान खुद्कुशी कर गयी जानते हो क्यूँ? उसके पिताजी को पता लग चुका था कि उनका होने वाला दामाद एक पिशाच का पुजारी है उसने अपने खून को बहाया सिर्फ़ अमरता हासिल करने के लिए और अब उस जैसा ख़तरनाक पिशाच कोई नही ये सारे मुलाज़िम और मैं खुद उन से डरते है....

मैं : तो मार दो मुझे इससे पहले कि तुम्हें अपने मरी हुई जान का ख़ौफ़ हो क'मोन 

लूसी : ज़िंदगी में पहली बार किसी से दिल लगाया है....शायद ये आसान ना हो कहना पर मुझे तुम बेहद पसंद हो लेकिन अब जब तुम्हें अपनी बाजी के लिए यूँ लड़ता देख कर ऐसा ही लगता है कि तुम अपनी बाजी के लिए बने हो...तुम्हारे पवित्र रिश्ते को वो शैतान ख़तम कर देगा वो अपने हर दिए हुए ज़ख़्म को मालकिन की गर्दन पे काटके उन्हें अपने ओर खीचते है ताकि वो उन्हें छोड़ कर कहीं चली ना जाए 

मैं : तो फिर हम क्या करे? बाजी उसके कब्ज़े में है हम यहाँ फँस चुके है कोई तो रास्ता होगा

लूसी : तुम शीबा बाजी को लेके फरार हो जाओ

मैं : क्या? और अगर राजा को पता लगा तो वो तुम्हें ही मार देंगे और फिर हमारा पीछा करते हुए हम तक पहुच जाएँगे

लूसी : तुम सिर्फ़ अपने प्यार की परवाह करो चले जाओ इस शैतानी इलाक़े से दूर 

मैं : नही तुम्हें भी मेरे साथ चलना होगा

लूसी : अगर इंसानी बस्ती में किसी को मालूमात हुआ तो वो लोग मुझे जान से मार डालेंगे मैं मज़बूर हूँ (उसके खून के आँखो के गिरते आँसुओं को मैं देख सकता था) हर रात वो तहख़ाने में अपनी मरी हुई बीवी के साथ संबंध बनाता है और फिर उपर आता है फिलहाल तो बाजी के कमरे मे पिशाचो का पहरा होगा और आधा चाँद कल फिर निकलेंगा और क्या पता ? तुम्हारी बाजी की यह आखरी रात हो इसलिए कहती हूँ ले जाओ उन्हें यहाँ से

मैं : ठीक है 

वादा अब पक्का हो चुका था.....हावव हावव करते भेड़िए रो रहे थे....रात काफ़ी हो चुकी थी....खामोश खड़े उन पिशाचो की निगाहो के सामने लूसी खड़ी थी और उन्हे कातिलाना आँखो से घूर रही थी फिर उसने पास जाके दोनो पहरेदार पिशाचो के लंड को कपड़ों के बाहर से से ही सहला दिया....दोनो ही दाँतों पे ज़ुबान फिरने लगे....लूसी उन्हें खीचते हुए अपने साथ दूसरी ओर ले गयी....

तब तलाक़ प्लान के मुताबिक मैं बाजी के कमरे में आ चुका था...बाजी एकदम पस्त लेटी हुई थी...मैने बाजी को जैसे ही उठाया बाजी ने मेरी ओर हैरान भरी निगाहो से मुस्कुराइ "क्या हुआ तुम यहाँ इस वक़्त?"..........

.मैने बाजी के मुँह पे हाथ रखा..."बाजी समझाने का वक़्त नही है हमे यहाँ से रवाना होना होगा"......शीबा बाजी समझ नही पा रही थी..."पर वर कुछ नही बस ये राजा आपका शौहर ये एक खब्बीस है अपने फ़ायदे के लिए ये आपकी बलि चढ़ाएगा आपकी कुर्बानी से अपनी नापाक माशूका को ज़िंदा करेगा".........


बाजी ने मुझे धकेल दिया और गुस्से से उबल उठी "ये सब तुम क्या कह रहे हो?".....

."बाजी ये सच है"........
 
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