Nangi Sex Kahani जवानी की दहलीज - Page 3 - SexBaba
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Nangi Sex Kahani जवानी की दहलीज

जवानी की दहलीज-13

भीमा के चांटे की आवाज़ से अशोक को उत्तेजना मिली। उसका लंड और कड़क होकर मेरी चूत में ठुमकने लगा। भीमा अपना सुपारा मेरी गांड के छेद पर सिधा रहा था और अशोक के ठुमकों के कारण मेरी गांड हिल रही थी।

" अबे रुक... मुझे निशाना तो साधने दे ! एक बार इसकी गांड में घुस जाऊं फिर जी भर के चोद लेना !!" भीमा ने अशोक को आदेश दिया।

" ओह... ठीक है !" कहकर अशोक एक अच्छे बच्चे की तरह निश्चल हो गया।

अब भीमा ने मेरी गांड के छेद पर अपना लार से सना थूक गिराया और अपने सुपारे पर भी लगाया। फिर उंगली से मेरे छेद के अंदर-बाहर थूक लगा दिया। अब वह छेद पर सुपारा टिका कर अंदर डालने के लिए जोर लगाने लगा। मुझे बहुत दर्द हुआ तो मेरे मुँह से चीख निकलने लगी और मेरे ढूंगे अपने आप इधर-उधर हिलने लगे। इससे अशोक को मज़ा आया क्योंकि उसका लंड मेरी चूत में डगमगाया पर इससे भीमा को गुस्सा आया क्योंकि उसका निशाना लगने से चूक गया। उसने एक जोरदार तमाचा मेरे चूतड़ पर मारा और गुर्राते हुए बोला," साली मटक मत... गांड मारने दे नहीं तो तेरी गांड मार दूंगा !!"

फिर अपनी बेतुकी बात पर खुद ही हँस पड़ा। अशोक भी हंसा और उसके हँसने से उसका लंड मेरी चूत में थर्राया। हालांकि मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था पर मेरी चूत पर अकस्मात लंड के झटके मुझे गुदगुदी करने लगे थे। अब भीमा ने फिर से मेरी गांड अपने थूक से गीली की और इस बार पूरे निश्चय के साथ लंड गांड में घुसाने के लिए जोर लगा दिया। उसका सुपारा मेरी गांड के छल्ले में फँस गया और मेरी जान निकल गई। मुझे बहुत गहरा और पैना दर्द हुआ... मुझे लगा उसने मेरी गांड चीर दी है और निश्चय ही वहां से खून निकल रहा होगा। मैंने घबरा के पीछे मुड़ के देखना चाहा तो अशोक ने मेरे गाल पर चूम लिया और मुझे कन्धों से जकड़ कर पकड़ लिया। वह भी भीमा का लंड जल्दी से मेरी गांड में घुसवाना चाहता था जिससे वह भी चुदाई शुरू कर सके।

भीमा ने भी जल्दी से लंड पीछे खींच कर एक ज़ोरदार झटका और मार दिया और उसका लंड काफी हद तक मेरी गांड में घुस गया। मैं दर्द के मारे उचक गई और मेरे पेट से एक गहरी चीख निकल गई। उस धक्के के कारण मैं थोड़ा आगे को हो गई जिससे अशोक का लंड मेरी चूत से थोड़ा बाहर हो गया... तो अशोक ने मेरे कन्धों को नीचे दबाते हुए अपने कूल्हे ऊपर को उचकाए और अपना लंड पूरा चूत में घुसा दिया। इस नीचे की तरफ के धक्के से भीमा को भी फायदा हुआ और उसका लंड मेरी गांड में और ज्यादा घुस गया। मैं दर्द से तिलमिला रही थी और मेरी दर्दभरी चीखें उन्हें और भी प्रोत्साहित और उत्तेजित कर रहीं थीं। उनके लंड मानो मेरी चीखों से और भी कड़क हो रहे थे।

भीमा ने अपना लंड बाहर की ओर खींचा तो मेरी गांड उसके साथ साथ पीछे आई और अशोक का लंड चूत में पूरा घुस गया... जब भीमा ने गांड के अंदर लंड पेलने के लिए आगे को धक्का दिया तो अशोक का लंड थोड़ा बाहर आ गया... अब उसने अंदर डालने को धक्का लगाया तो गांड से भीमा का लंड थोड़ा बाहर आ गया।

उनका इस तरह परस्पर धक्का मारना उनके लिए परस्पर चुदाई का जरिया बन गया। भीमा धक्का मारता तो अशोक का लंड बाहर आ जाता और जब अशोक धक्का मारता तो भीमा का लंड बाहर आ जाता। उनकी धक्का-मुक्की में अशोक और मैं धीरे धीरे बिस्तर के किनारे से खिसकते खिसकते बिस्तर के बीच में आ गए थे। भीमा अब खड़े हो कर नहीं बल्कि मेरे ऊपर लेटकर मेरी गांड मार रहा था। वह मुझे ऊपर से नीचे दबाकर गांड में लंड पेलता तो अशोक अपने कूल्हे ऊपर उठा कर मुझे चोदता। दोनों एक लय में अपने आप को और एक-दूसरे को मज़े दिला रहे थे। बस मैं उन दोनों के बीच में पिस सी रही थी।

मैंने महसूस किया कि मेरी गांड का दर्द बहुत कम हो गया था... मेरी गांड ने भीमा के लंड को अपने अंदर एक तरह से मंज़ूर कर लिया था... बस गांड सूखी हो जाती थी तो भीमा अपनी लार टपका कर उसे गीला कर देता। उधर मेरी चूत अशोक के निरंतर धक्कों से उत्तेजित हो रही थी, मेरे शरीर को अब धीरे धीरे भौतिक सुख का आभास होने लगा था। शायद मुझे अपनी अवस्था से समझौता सा हो गया था... जितना हंसी-खुशी से झेला जाए उतना ही अच्छा है।

अशोक और भीमा वैसे तो असीम आनन्द प्राप्त कर रहे थे क्योंकि वे पहली बार किसी लड़की की चूत और गांड एक साथ मार रहे थे, पर ऐसा करने में वे बहुत छोटे धक्के लगाने पर मजबूर थे। दोनों को डर था कि जोश में आकर उनमें से किसी एक का भी लंड बाहर नहीं आ जाना चाहिए वरना दोबारा अंदर डालने में तीनों को काफी मशक्क़त करनी पड़ती। अब जैसे जैसे दोनों मैथुन की चरम सीमा पर पहुँचने वाले थे उन्हें लंबे और ज़ोरदार झटके देने का जी करने लगा।

“ यार ! तू थोड़ी देर रुक जा... मैं होने वाला हूँ... मैं अच्छे से इसकी गांड मार लूं... मेरे बाद तू इसको जोर से चोद लेना !!” भीमा ने अशोक से आग्रह किया।

“ ठीक है... तू मज़े ले ले !” कहकर अशोक ने अपनी हरकतें बंद कर दीं और अपने हाथों से मेरे मम्मे और चूचियों को प्यार से सहलाने लगा। जब से मेरी दुर्गति शुरू हुई थी इन दोनों में से पहली बार किसी ने मेरे शरीर को प्यार से छुआ था। मुझे अशोक के प्यारे स्पर्श ने राहत सी दी। भीमा ने अब पूरे वेग से मेरी गांड पर वार करने शुरू किये। जहाँ अब तक उसका लंड एक इंच से ज्यादा हरकत नहीं कर रहा था... अब वह अपना स्ट्रोक बढ़ाने लगा। उसने एक बार फिर अपनी लार से अपने लंड को सना दिया और फिर लगभग पूरा लंड अंदर-बाहर करने लगा।

मुझे आश्चर्य इस बात का था कि मुझे भीमा के ज़ोरदार धक्के अब मज़ा दे रहे थे पर मैंने अपनी खुशी ज़ाहिर नहीं होने दी। भीमा के लगातार प्रहार से अगर अशोक का लंड चूत से बाहर निकलने लगता तो अशोक एक दो छोटे धक्के मार कर अपने लंड को फिर से पूरा अंदर घुसा लेता।

आखिर भीमा चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो ही गया और एक ज़ोरदार आखरी वार के साथ वह मुझ पर मूर्छित हो कर गिर गया... मानो वीर-गति को प्राप्त हो गया हो। उसका हिचकियाँ सा लेता लंड मेरी गांड में गरमागरम पिचकारी छोड़ रहा था। थोड़ी देर में उसकी देह शांत हो गई और उसने अपने मायूस हो गए लिंग को मेरी गांड से बाहर निकाल लिया और खड़ा हो गया। अपने आप को गुसलखाने तक ले जाने से पहले उसने मेरी पीठ पर प्यार और आभार भरा हाथ लगा दिया।

इधर, अशोक हरकत में आते हुए पलट कर मेरे ऊपर आ गया और अपने मुरझाते लंड को आलस से झकझोरते हुए मुझे चोदने लगा। उसका लंड अर्ध-शिथिल सा हो गया था सो उसको कड़ा होने में कुछ समय लगा पर जल्द ही वह पूरे जोश में आकर मेरी चुदाई करने लगा। वह झुक झुक कर मेरे मम्मे मुँह में ले लेता और कभी मेरे होठों को भी चूम लेता।

मुझे चुदाई में मज़ा आने लगा था पर किसी भी हालत में मैं सहयोग नहीं करना चाहती थी ना ही खुशी का कोई संकेत देना चाहती थी। अशोक भी ज्यादा देर तक अपने पर नियंत्रण नहीं कर पाया और लैंगिक सुख की पराकाष्ठा पर पहुँच गया।उसका लंड वीर्योत्पात करे इससे पहले ही उसने लंड बाहर निकाला और ऊपर खिसक कर मेरे मुँह में डालने लगा। जब मैंने अपना मुँह नहीं खोला तो उसने अपनी उँगलियों से मेरी नाक बंद कर दी और मेरे एक मम्मे को जोर से कचोट दिया। मेरी चीख निकली और मेरा मुँह खुलते ही उसने अपना लंड मेरे मुँह में घुसा दिया... और एक गहरी राहत की सांस लेते हुए अपने वीर्य का फव्वारा मेरे गले में छोड़ दिया। जब तक उसके लंड ने आखरी हिचकोला नहीं ले लिया उसने अपने लंड को मेरे मुँह में दबाए रखा। फिर आनन्द से दमकती आँखें लिए वह मेरे ऊपर से उठा और मेरे दोनों मम्मों के बीच अपना सिर रख कर मुझे प्यार करने लगा।

थोड़ी देर बाद दोनों मुझे गुसलखाने में ले गए और मुझे नहला कर, तौलिए में लपेट कर, बड़ी देखभाल और चिंता के साथ, जैसे डॉक्टर मरीज़ को ऑपरेशन के बाद ले जाते हैं, मुझे उसी चाची के पास ले गए जिसने मुझे दुल्हन की तरह सजाया था।

भोली की कहानी यहाँ समाप्त होती है। कहानी कैसी लगी? आपकी टिपण्णी, आलोचना और प्रोत्साहन का मुझे इंतज़ार है !
 
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