Nangi Sex Kahani नौकरी हो तो ऐसी - Page 2 - SexBaba
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Nangi Sex Kahani नौकरी हो तो ऐसी

मैने उसके सर को पकड़ा और उस पर हाथ रखकर आगे पीछे करने लगा और मेरे लंड को उसके मूह के अंदर अंदर घुसेड़ने लगा. उसके मूह से "गुगगुगग्गगुउुगु गु उउउउउ गु गु" आवाज़े निकल रही थी और मैं मुखमैथून से आनंदित हो रहा था. अब मुझसे बर्दाश्त नही हुआ और मैने अपना पूरा वीर्य उसके मूह के अंदर तक छोड़ दिया. वो इस धक्के से अंजान थी और जब तक उसे कुछ भी समझ आए मैने आधा वीर्य उसके गले तक धकेल दिया था. और उसका मन ना होते हुए बचा आधा वीर्य उसे पीने को कहा.उसने मन ना होते हुए भी वीर्य पी लिया और मेरे गीले लंड को मूह मे अपने जीभ से सॉफ करने लगी. 

मैं अब नीचे गिर गया और वो भी मेरे उपर गिर गयी. उसकी चुचिया मेरे पेट से चिपकी हुई थी. मेरे पेट मे अजीब सी और बहुत ही ठंडक महसूस हो रही थी. थोड़ी देर तक हम ऐसे ही चिपके रहे उसके बाद मे मैने उसके चूत मे उंगली डाली परंतु मुश्किल से एक उंगली अंदर जा पा रही थी. उसमे भी उसके चेहरे पर चिंता बढ़ा दी थी. क्यू कि मैं जैसे ही थूक लगा के उंगली अंदर डालता उसे दर्द होने लगता. 

अब मैने उसे खड़ा कर दिया. और मैं उसके सामने सीधे खड़ा हो गया और मेरे लंड महाशय को उसकी चूत के उपर निशाना लगाके थूक से लंड महाशय का सूपड़ा गीला करके चूत पर लगा दिया. उसका एक हाथ मेरे छाती पर था. जैसे ही मैने लंड अंदर डालना शुरू किया. मेरे लंड का सूपड़ा उसकी चूत की टाइट होंठो से भिड़ाने लगा. अब मैने ज़रा ज़ोर्से चूत के अंदर सूपड़ा घुसाने की कोशिश की और लंड का सूपड़ा थोड़ा अंदर चला गया, जैसे की उसका एक हाथ मेरे छाती पे था. वो मुझे पीछे धकेलने लग गयी. और उसके मूह से "उईईइ माआआआअ…उई मा " की आवाज़े निकलनि शुरू हो गयी. 

जैसे कि उसकी चूत बड़ी ही टाइट और बिन चुदी थी मुझे बहुत ही प्रयास करने पड़ रहे थे, परंतु उसमे भी एक आनंद था. अब मैने उसे मेरे लंड पे थूकने को कहा और उसको मैने अपने छाती से कस्के पकड़ लिया पूरी ताक़त लगा के, अब तक तो उसे पता ही चल गया था कि अब तो उसकी खैर नही वो थोडिसी झिजक रह थी मैं एक हाथ से लंड को चूत के होल के निशाने पे लगाया, और उसे अपनी छाती से दबाते हुए, पूरी ताक़त से ज़ोर का झटका मारा, "आआआआआआआहह…..उवूऊयियैयियैयीयियी….माआआअ….मार गेयी….एयाया…उउउउउ.ईईईई" 
उसकी मूह से ज़ोर्से आवाज़ निकली और निकलती रही, उसकी चूत का हाइमेन फट गया था और खून निकलने लगा था उसे बहुत ही दर्द होना शुरू हो गया, वो मुझसे छूटने की कोशिश कर रही थी परंतु मैने कस्के पकड़ने के कारण कुछ ना कर पाई, नीचे उसकी चूत से खून की लाल रंग की बूंदे टपक रही थी और ज़ोर के धक्के के बजह से वो एकदम डर गयी थी और उसे दर्द असहनीय हो रहा था. 

अब मैने धीरे धीरे करके उसे सहलाते हुए धक्को को कंट्रोल मे लाया और आधे से उपर लंड उसकी चूत मे घुसेड़ने मे कामयाब रहा, और उसे भी अब चूत गीली होने के वजह से मज़ा आने लगा पर बहुत ही कम, वो दर्द से बिलख रही थी और उसकी आँखो के कोने से थोड़ा थोड़ा पानी आसू बन के टपक रहा था. नवेली दुल्हन अभी कुँवारी चूत की नही रही थी, अभी वो सौभाग्यवती बन गयी थी. मैने धक्को की गति बढ़ाई अभी उसे और मज़ा आने लगा और वो मेरा चुदाई मे साथ देने लगी. 

मुझे अब पूरा लंड उस मासूम कली के अंदर डालने की इच्छा हो रही थी, इसलिए मैने अब पोज़िशन बदली और उसे कुत्ती की तरह खड़ा किया और पीछेसे उसकी पीठ से चिपक के उसे अपनी बाहो मे भर के पूरे लंड को पूरा अंदर बाहर निकाल के धक्के मारने लगा, वो अभी झड़ने वाली थी, थोड़ी ही देर मे वो दो बार झाड़ गयी, उसके मूह पे अभी थोड़ी खुशी और थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था और वो चुदाई मे अब मेरा पूरा साथ दे रही थी. 

मैने बीच मे लंड को उसके मूह मे दिया और उसने थूक डाल के चूत के रस से उसे मिक्स करके चूसने लगी, और मेरे लंड को गीला कर दिया, मेरा लंड एकदम आकर्षक और बहुत ही बड़ा और मोटा दिख रहा था, वो इतनी चुदाई होने के बाद भी आगे चुदाई की जाए इस बात के लिए मन से तैयार नही थी, मैने अभी उसे अपनी बाहो मे उठाया और अब मेरेपे जानवर सवार हो गया, जैसे कि उसका सब नियंत्रण अब मेरे हाथो मे था, मैने ज़ोर के झटके मार मार के अपना पूरा भरा, मोटा, लंबा लंड उसके चूत मे घुसेड दिया और वो दर्द से और ज़्यादा बिखलने लगी….. 10 इंच का मेरा हथोदा उसके सहन से बिल्कुल ही बाहर था….बेचारी बहुत ही नाज़ुक कली थी…अब उसका फूल बना दिया था मैने …अब मेरे मूह से ज़ोर्से आवाज़े निकलने लगी, मैने अपना वीर्य उसकी चूत मे अंदर तक डाल दिया और मुझे बहुत ही आनंद महसूस होने लगा. 

थोड़ी देर के बाद मैं अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाला तो मैने उसे उसके मूह मे थमा दिया, वो बेचारी अपने मूह से वीरयमिश्रित लंड को सॉफ कर रही थी, और वीर्य चूस भी रही थी. एक दिन मे मैने उसे इस खेल मे माहिर बना दिया था, उतने मे ही बाथरूम के दरवाजे पर क़िस्सी के हाथ की ठप पड़ी. 

मैने हल्केसे बाथरूम का दरवाजा खोला, तो बाहर चाइवाला राधे खड़ा था, मैं उसे देख के थोड़ा मुस्कुराया और 
उसे बोला "वाह राधे, तूने दिल खुश कर दिया आज तो मेरा , अब तुझे खुश मैं करूँगा!! " 
राधे बोला " मेरे लिए, क्या करोगे आप बाबूजी…. " 
मैं बोला "कुछ नही बस रात को दस बजे मेरे कॅबिन के बाहर आ जाना ….ठीक है….."
 
बेचारा राधे कुछ समझ नही पा रहा था. और मैं और मेरी गाव की गोरी मुस्कुरा रही, थी अभी गाँव की गोरी ने अपने पूरे कपड़े पहेन लिए और मुझे गाल [पे दो चार चुम्मे देके "फिर मिलेंगे बाबूजी इसी सफ़र मे" कह के निकलने लगी, राधे भी उसके पीछे निकल गया. 

मैं वाहा से निकल के अपने केबिन मे आ गया. तो बहू, सेठानी और सेठ जी खाना खा रहे थे, 
सेठ जी मुझे देख के बोले "अरे भाई कहा निकल लिए थे सबेरे सबेरे …ये क्या शहर है घूमने के लिए …किस डिब्बे मे घुस गये थे ..टिकेट कलेक्टर पकड़ लेता तो…." 
मैं मन मे बोला "अबे बुड्ढे मुझे क्या टी. सी. पकड़ेगा साला, अब तक तीन को चोद चुका हू, उसे तू हमारे साथ होते हुए भी नही पकड़ पाया, तो टी.सी. क्या मुझे विदाउट टिकेट पकड़ेगा…" और मन ही मन मे मुस्कुराया. 
सेठ जी को देख के बोला "कुछ नही सेठ जी एक चाइ वाला मिला था, उसीसे थोड़ी गाव की बातें हो रही थी….." 

सेठ जी मुझे देख के बोले "तो ठीक है….आओ अभी तुम्हे भूक लगी होगी …खाना ख़ालो " 
मैं सेठानी के बाजू मे जाके बैठ गया, वैसे ही सेठानी ने मेरे बाजू खिसक अपनी गांद मेरे गांद से चिपका दी और सारी का पल्लू नीचे गिरा दिया, बूढ़ा सेठ सेठानी को घूर्ने लगा, परंतु सेठानी उसे बिल्कुल ही भाव नही दे रही थी, सेठानी ने नीचे मेरी टाँग से टाँग मिला ली और अपने मांसल हाथ मेरे हाथ से खाते हुए मुझसे घिसने लगी. मैने पीछे से हाथ डॉल के सेठानी की कमर की बारीक सी चिमती ली. वैसे ही वो थोड़ी जगह से हिल गयी..और उठके नीचे बैठ गयी, अब मुझसे और थोड़ी चिपक के मेरे आँखो मे आँखे डाल के प्यार भरी गरम निगाह से देखने लगी. थोड़ी देर बाद हम लोगो का खाना हो गया और सेठ जी बाजू मे ही जाके एक खाली बर्त पे सो गये. 

सेठ जी की आँख जैसे ही लगी, बहू और सेठानी मेरी बाजू मे आके मुझसे चिपकाना शुरू हो गयी, मैने झट से बहू का ब्लाउस खोला, अब मुझे बहू के स्तनो मे से दूध चूसने की बहुत इच्छा हो रही थी, मैने ब्लाउस खोलते ही बहू का एक निपल अपने मूह मे ले लिया और दूध चूसना शुरू कर दिया आआआ….हहाा….क्या मज़ा आ रहा था, बहुत ही बढ़िया थोड़ी देर बाद मैने बहू का दूसरा निपल चूसना शुरू किया, और बहू बहुत ही गरम होने लगी, नीचे सेठानी ने बर्त पे बैठे बैठे ही मेरी पॅंट की ज़िप खोल दी, और मेरे लंड को मूह मे लेने लगी. 

इन दोनो औरतो की हरकते बढ़ती जा रही थी, मैं सोच रहा था कि ये दोनो मुझे जाके काम करने भी देगी या मुझे चोदने की मशीन बना देगी. सेठानी के लाल लाल होंठो के अंदर मेरे लंड का सूपड़ा बहुत ही आकर्षक लग रहा था, वो मेरे लंड को अपने मूह की लार से गीला कर देती और फिर सॉफ करती…वाह क्या मदमस्त होंठ थे सेठानी के, बहुत ही नरम और मुलायम मुझे बहुत ही मज़ा आ रहा था. इतने मे मेरा नियंत्रण छूटा और मैने मेरा पूरा वीर्य सेठानी के मूह मे छोड़ दिया सेठानी ने आधा वीर्य बहू के मूह मे डाला और बाद मे दोनो ने सब वीर्य पी लिया. 

अब मुझे नींद बहुत ही आ रही थी, और मैं अपनी जगह पे बैठे बैठे ही सो गया. 

क्रमशः......... 
 
नौकरी हो तो ऐसी--5

गतान्क से आगे...... 
जब मेरी नींद खुली तो शाम हो चुकी थी. ट्रेन एक स्टेशन पे रुकी थी, और सेठानी, बहू सेठ जी बाहर प्लॅटफॉर्म पे खड़े थे, बैठ बैठ के थक जाने से वो लोग बाहर घूम रहे थे, लग रहा था कि ये कोई बड़ा स्टेशन था, क्यू कि बहुत भाग दौड़ हो रही थी, बहुत सारे लोग चढ़ रहे थे, और बहुत सारे उतर रहे थे, पाँच मिनिट के बाद वो तीनो ट्रेन मे चढ़े और कॅबिन मे आके बैठ गये, सेठानी मेरे बाजू मे बैठ गयी. 

अभी सेठ जी मुझे मेरी पढ़ाई के बारे मे पूछने लगे और जानने लगे कि इसको कितना पता है, मतलब मेरी नालेज को जानने की कोशिश कर रहे थे, मैने उनके हर प्रश्न का आसान और सीधे शब्दो मे जवाब देते हुए सेठ जी को खुश कर दिया. सेठ जी मुझे बता रहे थे कि उनके गाव मे उनकी बहुत ही इज़्ज़त है, लोग उनके सामने मूह उपर करके चलने की हिम्मत भी नही करते, मतलब सेठ जी से डरते है. ये सेठ जी मुझे गाव की और उसकी राग रोब धन की कहानिया बता बता के पका रहा था. और उधर सेठानी और बहू उसकी तरफ गुस्से से देख रहे थे, लगता था कि ये कहानिया उनके लिए रोज की हो. 

थोड़ी देर बाद मे सेठानी ने विषय बदलते हुए कहा "अरे छोड़ो, ये तुम्हारी बातें, इससे ये तो पूछो ये शादी कब करेगा…..अपनी गाव मे तो बहुत अच्छी अच्छी लड़किया है इसके लिए " 
तो सेठ बोला "हां हां बोलो भाई बोलो शादी कब करोगे…" 
मैं सेठानी की बहू की तरफ देखने लगा वैसे ही वो हलकीसी मुस्कुराइ और मुझे आन्ख मारी. 
मैं बोला "अभी तो कोई इरादा नही है …आगे देखते है अगर कोई अच्छी लड़की मिल गयी तो कर लूँगा एक दो साल मे…." 

ऐसी सब बातें चल रही थी, मुझे बहुत ही पका रहा था, ऐसे ही रात के आठ बज गये थे अब मैं कब दस बज़ेंगे इस चिंता से मरे जा रहा था, थोड़ी देर मे खाना आ गया और हम लोग खाना खाते हुए, बातें कर रहे थे, और इधर सेठानी और बहू मेरी टाँगो से अपनी टांगे घिस रही थी. मैने जल्दीही खाना खा लिया, और फिर सेठानी और बहू ने फिरसे सेठ जी को नींबू पानी जिसमे नींद की गोलिया मिश्रित थी, पिला दिया. सेठ जी थोड़ी ही देर मे ढेर हो गये और बर्त पे सो के खर्राटे मारने लगे. 

अभी मौसम बनने लगा था. सेठ जी सोते ही बहू ने सेठानी की सारी खोलना शुरू किया , अब सेठानी निक्कर और ब्लाउस मे मेरे सामने खड़ी थी, थोड़ी ही देर मे सेठानी ने आगे होते हुए बहू की सारी भी खोल दी, और उसे भी अपनी तरह अध- नंगी बना दिया….वाह क्या नज़ारा था, दो आप्सरा मेरे सामने ..उनके वो पुष्ट शरीर, बड़ी बड़ी गान्डे और भरे हुए स्थान देख के मेरे रामजी टाइट होने लगे और उनके सूपदे से पानी आना शुरू हो गया.
 
अभी राधेको आने मे देर थी, दस बजने को कुछ मिनिट बाकी थे, मैं राधे की राह देख रहा था, क्यू मुझे इन दोनो रंडियो को उससे चुदवाना था, और उसके साथ साथ मिलकर मुझे भी इन दोनो को चोदना था. मैं बहू के पीछे गया और अपना लंड उसकी गांद की पहाड़ियओके बीच घुसा के आगे पीछे करने लगा, वैसे ही उसने गरम और तेज सासे लेना शुरू कर दिया , मैने मेरे हाथ उसकी चुचियो पे रख दिए, और उसके ब्लाउस के अंदर हाथ डालकर उसकी चुचीयोको सहलाने लगा, एक उंगली मैने उसके मूह मे डाल दी और वो उसे अपनी जीभ से चाटने लगी, मैने अब मूह से उंगली निकाल के उसके बाल सहलाना शुरू किया. और थोड़ी ही देर मे फिरसे उसकी चुचिया दबाने लगा. 

चुचियोमे दूध भरा होने के कारण और वो ब्लाउस मे टाइट दबी होने के कारण उसमे से थोड़ा थोड़ा दूध निकल रहा था और उसके ब्रा और ब्लाउस को गीला कर रहा था. सेठानी सामने से आई और उसने ब्लाउस के उपर मूह लगा के बहू का एक निपल अपने मूह मे लिया और चूसने लगी, मैं देख पा रहा था कि सेठानी बहू के ब्लाउस पहने होते हुए भी दूध चूसने मे कामयाब हो रही थी, बहू का ब्लाउस अभी चुसाइ के कारण आधे से ज़्यादा गीला हो गया था और उसमे से उसकी चुचिया और निपल बहुत ही मादक और कम्सीन दिख रहे थे. 

अब मैने बहू के ब्लाउस का हुक बिना खोले हुए ही एक स्थान को बाहर निकाल दिया, वो स्थान आधा ब्लाउस मे दबे होने के कारण बहुत ही टाइट और भरा महसूस हो रहा था, अब मैने उस चुचि का एक निपल अपनी दो उंगलियो मे दबाया और उसे चिमतिया लेने लगा, वैसे ही बहू के मूह से "आअहह..आअहह..हह" आवाज़ निकलने लगी, मैने अभी निपल को एक हाथ से पकड़ा और दूसरे हाथ की उंगलियो से उसपे टीचकिया मारने लगा. टीचकिया मारने से और निपल को दबाने से निकलने वाले दूध से मेरी उंगलिया गीली हो गयी. मैने आगे से सेठानी को बाजू करते हुए बहू के निपल को अपने मूह मे लिया, और उसपे हल्केसे अपनी जीभ फिराने लगा, मेरी हर्कतो से बहू बहुत ही गरम हो रही थी, और उसकी आवाज़ बढ़ रही थी, उसके शरीर पर ए.सी. डिब्बे मे होने के बाद भी पसीना चढ़ रहा था, और सेठानी मन ही मन मे तड़प रही थी और सोच रही थी की मेरी बारी कब आएगी पर उसे क्या पता था मैने उसके लिए आज ख़ास इंतज़ाम किया है. 

जैसे ही मैं निपल को अपने मूह मे लेके चूसने लगा वैसे ही बहू के मूह से "आऐईइ..उउउन्हनह" की आवाज़ आने लगी. मैने अभी उसे थोड़ा थोड़ा दांतो से काटना शुरू कर दिया. फिर मैने ज़ोर्से और लंबे टाइम तक निपल को दांतो मे पकड़ा रहा और काटते रहा और इधर बहू की आवाज़ उँची हो रही थी, मैने अब अपनी जीभ बहू के कान मे घुसा दी. और उसे चूसने और काटने लगा. अब मुझे बहू की चूत से खेलने की बहुत ही इच्छा हो रही थी, मुझे बहू की गुलाबी चूत के अंदर कब जीभ डालु ऐसे हो गया था, क्यू कि उसकी चूत के पानी का स्वाद आज भी मेरे मूह मे ताज़ा था. 

मैने कमर के तरफ हाथ बढ़ा के बहू की निकर उतार दी. और पैरो मे से निकाल कर बाजू मे रख दी. बहू अपने हाथ से चूत को सहलाने लगी. मैने उसे अब एक बर्त पे बिठाया और उसकी टाँगो को फक दिया, जितना फक सकता था, टाँगो के बीच मे बड़ी जगह बनाने के कारण बहू की चूत एकदम स्पस्ट और बहुत ही नजाकातदार दिख रही थी, चूत के बाजू के बॉल जैसे किसी किले का रक्षण करनेवाले सैनिको के तरह दिख रहे थे, और वो बाल सैनिक बनके बहू के गांद तक पहुच गये थे, अब सेठानी ने बहू की टाँगो के बीच घुस कर बहू की चूत के दोनोहोंठो पर उंगलिया रख के चूत को फैला दिया …वाह क्या लग रही थी बहू की चूत …एकदम मदमस्त लाल गुलाबी कलर मानो उसमे से गिरे जा रहा हो, बहू की चूत का दाना एकदम स्पस्ट दिख रहा था, और बहू की तेज सासो के चलने के कारण चूत का दाना आगे पीछे हो रहा था, मैं अब सेठानी को बाजू करते हुए बहू की टाँगो के बीच बैठ गया, और चूत के ओठो को फैला के चूत के दाने को उंगलियो से दबाने और घिसने लगा, वैसे ही बहू की आआवज़े फिरसे बढ़ गयी. मैने अभी उंगलियोकि घिसने की गति बढ़ाई और ज़ोर्से उंगलिया उसके दाने पे घिसने लगा, अभी बहू के मूह से "उउउउह्ह…उ …माआअ..उउउउउउ" की ज़ोर ज़ोर की आवाज़े निकलने लगी. और वो जल्द ही झाड़ गयी. कहानी अभी बाकी है दोस्तो 

क्रमशः............
 
नौकरी हो तो ऐसी--6

गतान्क से आगे...... 

अभी मुझे किसिके पैरो की आवाज़ सुनाई दी. मुझे यकीन था कि राधे ही होगा, मैं कॅबिन के दरवाजे के पास गया और खड़ा रहा, राधे ने दरवाजा खटखटाया, तो मैने दरवाजा खोला और राधे को अंदर ले लिया, अंदर जैसे की बहू और सेठानी आधी नंगी खड़ी थी, उनको देखके राधे थोडसा शर्मा गया, और मेरे पीछे आके खड़ा हो गया. 

मैं बोला "राधे …..अरे डरो नही…..तुमने आज हमे खुश किया है ….आज हम तुम्हे खुश करवाते है" 
राधे बोला "वो तो ठीक है बाबूजी पर ये तो खानदानी लगती है" 
मैं बोला "हा तो खानदानी ही है…चुदवाने मे इनसे खानदानी औरते तुम्हे नही मिलेगी..??" 
राधे कुछ समझ नही पा रहा था, इतने मे मैने सेठानी को इशारा कर दिया, सेठानी समाज़ गयी और राधे की तरफ आने लगी, मैने राधे को आगे खड़ा किया, सेठानी ने राधे का एक हाथ पकड़ा और अपने कमर पर घिसने लगी, राधे और डर गया, मैं बोला "अरे डरो नही …आनंद उठाओ" 
अब राधे थोड़ा मुस्कुराया और सेठानी से घिसट बढ़ाने लगा, इधर बहू आके मुझसे चिपक गयी और मैं अपना लंड उसकी गंद के पहाड़ो के बीच घिसने लगा. 

अब सेठानी ने राधे के पॅंट की ज़िप खोल दी, और दो सेकेंड के अंदर राधे का काला जाड़ा साप जैसा लंड बाहर निकाला, उसको देखके सेठानी बोली "वाह वाह …..इसे कहते है लवदा.." सच मे राधे का लंड, लंड नही बड़ा सा कला सा साप लग रहा था, लगभग 9 इंच तक होगा, मुझे अब एहसास हुआ कि आज की रात बहुत ही मजेदार होनेवाली है, सेठानी ने राधे का लंड मूह मे लेके उसपे थूक लगा के चाटने लगी और उसे पीने लगी, राधे का लंड पलभर मे बहुत ही कठिन और वज्र के सामान बन गया, बड़ा ही आकर्षक दिख रहा था वो. 

अब राधे उपर मूह करके नीचे लेट गया और सेठानी को अपने उपर बिठा लिया, और उसने धीरे धीरे करके अपना लंड सेठानी की चूत मे घुसाना चाहा, अब उसने उसपे थूक जमाई और फिरसे घुसाने लगा, सेठानी की चूत मेरे से चुदी होने के कारण लंड दूसरी बार मे अंदर चला गया, मैं और बहू प्रणय कर रहे थे और इन दोनोकी रासलीले भी देख रहे थे, मैने बहू के रसीले आम अपने मूह मे जकड़े हुए थे, और उनमे से रस चूस रहा था, उधर अभी आधे से उपर लंड बड़े हल्केसे राधे ने सेठानी की चूत के अंदर डाल दिया और अब वो ज़ोर के धक्के मारना शुरू कर रहा था. 

राधे से नियंत्रण नही हो पा रहा था उसने अभी लंबे और ज़ोर्से धक्के मारना शुरू किया, वैसे ही सेठानी उपर कूदने लगी और चिल्लाने लगी, उसकी चूत फटी जा रही थी, और उसका चूत का खड्‍डा दिनो दिन बड़ा बड़ा होते जा रहा था, अब सेठानी भी पूरे जोश मे थी, और राधे भी, राधे ने अब पूरी गति पकड़ ली, और कसे हुए घोड़े की तरह सेठानी पे सवार हो गया. 

राधे नीचे और सेठानी उपर..वाह क्या नज़ारा था. सेठानी की चूत मे लंड जा रहा था और गांद का हिस्सा लाल लाल हो रहा था. सेठानी की गांद का खड्‍डा बहुत ही सुंदर और मस्त दिख रहा था, अब मैं राधे के पास गया और सेठानी की गांद के खड्डे मे थूक डाल दिया, और 1 उंगलिसे थूक को अंदर बाहर करने लगा, होल बहुत ही टाइट था, और नीचे राधे के झटको से मेरी उंगली सेठानी की गांद से निकल आ रही थी.
 
अब मेरे दिमाग़ मे एक कल्पना आई, मैं सेठानी को चोदना चाहता था परंतु अकेले नही, राधे के साथ साथ! मैने अभी सेठानी को वैसे ही पड़े रहने दिया और बहू के कान मे कुछ बोला, बहुने संदूक खोलके एक तेल की शीशी निकाली और उसमे से तेल निकाल के मेरे लंड पे लगा दिया, और सेठानी की गांद पे भी, 

सेठानी बोली "ये क्या कर रहे हो तुम लोग " 
मैं बोला "कुछ नही रानी…अब दो दो घोड़े तेरी सवारी करेंगे ….बहहुत ही मज़ा आएगा तुझे" 
सेठानी बोली "नही नही…अरे ये कैसे हो सकता है ….मेरी जान निकल जाएगी " 
मैं बोला "कुछ नही होगा आपको…..बस पड़े रहो ….और मुहसे ज़्यादा आवाज़ मत निकालो…नही तो कल जब हम गाओं मे पहुचेंगे तब पाँच पाँच लोगो से चुदवाउन्गा तुझे …समझी मेरी प्यारी रंडी." 

नीचे राधे उपर सेठानी, सेठानी का मूह राधे की तरफ किए हुए, और सेठानी के उपर मैं, नीचेसे राधे ने अपना लंड सेठानी की चूत के अंदर डाला, मुझे कुछ दिख नही रहा था, उतने मे बहू ने मेरे लंड को पकड़ और सेठानी की गांद के होल पे जो तेल से लथपथ था उसपे रख दिया. सेठानी मूड के पीछे देखने लगी, बहुने एक बार मेरा लंड मूह मे लिया और उसके पे तेल लगाके गांद के होल पे रख दिया, तेल से सेठानी की गांद बहुत चमक रही थी. 

अब मैने सेठानी की गांद पे एक दो चपाटिया लगाई, और लंड को एक हाथ मे पकड़ के सेठानी की गांद के होल पे लगाने लगा, नीचेसे राधे सेठानी की चूत की चुदाई कर रहा था, और सेठानी को बहुत ही आनंद रहा था, राधे के बड़े काले लंड से, मैने अब अपने लंड का सूपड़ा सेठानी के कुछ समझने से पहेले ही गांद के अंदर घुसा दिया और हल्केसे अंदर बाहर करने लगा, सेठानी के गांद पे थोड़े थोड़े बाल होने के कारण उसकी गांद और भी मदभरी और रसभरी दिख रही थी. सेठानी के मूह से "आआहह आअहह आहह " आवाज़ आना शुरू हो गयी. मुझे अभी गर्मी बर्दाश्त नही हो रही थी. मैने ज़रा धक्को की गति बढ़ाई और आधे लंड को गांद के अंदर घुसेड दिया वैसे ही सेठानी कराह उठी. 

लंड के धक्को से होनेवाला दर्द उसके सर तक पहुच गया था और एक 10 इंच के पहाड़ को और दूसरे 9 इंच के साप को झेलना उउसके बस की बात नही लग रही थी, उसने अपने हाथ पाव फड़फड़ाना शुरू कर दिया. धक्को की गति बढ़ाते हुए मैने सेठानी के गले को अपने हाथो से पकड़ लिया और पीछेसे धक्के मारते मारते उसके गालो को चूमने लगा, कानो को काटते हुए चुम्मा लेने लगा, इतने मे सेठानी झड़ने लगी, और वो ज़ोर्से चिल्लाने लगी, उसके चिल्लाने के बजाह से सेठ जी अपने बेड से थोड़े हिल गये पर बुड्ढ़ा उठा नही, मैं अब सेठानी की गांद और पीठ से पूरा चिपक गया और सेठानी के शरीर के साथ एक होकर ज़ोर्से लंड को अंदर बाहर करने लगा, तेल की चिकनाई के कारण लंड अंदर तक जा रहा था और बाहर भी निकल रहा था, परंतु नीचेसे राधे का बड़ा लंड होने के कारण लंड को थोडिसी घिसन महसूस हो रही थी. 

अब राधे ने अपनी गति कम कर दी और मैने सेठानी की गांद को अपने हाथो मे पकड़ के ज़ोर्से आगे पीछे करने लगा गांद का घेराव बहुत ही बड़ा था और सेठानी के पहाड़ो के बीच मे मेरा लंड अतिशेय मदमस्त लग रहा था, मैने गांद से हाथ निकाल कर अब सेठानी के सर के बाल पकड़ लिए, और ज़ोर्से खिचना शुरू करते हुए सेठानी को बालो से आगे पीछे खिचना शुरू किया, सेठानी के मूह से निकलने वाली "आआहू आआहूउ हहुउऊउ आआहाआहुउऊुउउ आआआआआआआआअहहुउऊुुउउ….ऊवूयूयुयूवयू…..उउउहह..उहह" आवाज़े तेज़ हो गयी. और मैने और राधे ने अपनी गति और बढ़ा दी, राधे के मूह से भी "आअहह आअहह " आवाज़ निकल रही थी.
 
अब राधे सेठानी के नीचेसे निकल के खड़ा हो गया और मैं सेठानी के नीचे सो गया और उसको अपने उपर बिठाते हुए उसकी गांद मे अपना लंड घुसा दिया और झटके मारने लगा, उधर राधे ने सेठानी के मूह मे अपना काला मोटा चौड़ा लंड घुसेड दिया, और ज़ोर्से अंदर बाहर करने लगा, सेठानी की सासे फूली जा रही थी, परंतु उसको मिलनेवाले असीम आनंद को वो गँवाना नही चाहती थी, इसलिए लंड के अत्याचारो को सही जा रही थी, अब राधे सेठानी के उपर चढ़ गया और उसकी चूत मे लंड घुसाके ज़ोर्से धक्के मारने लगा, और थोड़ी ही देर मे सेठानी के अंदर झाड़ गया, उसकी वीर्य की गर्मी सेठानी के चेहरे पे और आवाज़ से साफ झटके रही थी. अब मैं भी चरंसीमा तक पहुच गया, और मैने भी अपने वीर्य के सात आठ हवाई जहाज़ सेठानी की गांद के अंदर दाग दिए. 

सेठानी की गांद और चूत वीर्य से लथपथ थी. वीर्य की बूंदे उनकी गांद से और चूत से टपक रही थी. बहू ने सेठानी की चूत से टपकने वाले वीर्य को चाटते हुए उसमे उंगली डाल दी, और उंगली से वीर्य को बाहर निकाल के उंगली को चाट रही थी, सेठानी की कोमल चूत औट गांद बहुत ही लाल पड़ गयी थी. गांद का होल तो मेरे लंड के अत्याचार से फट गया था, और ऐसे लग रहा था जैसे मेरे लंड को फिरसे पुकार रहा था. 

थोदीही देर मे राधे वाहा से मुझे धन्यवाद देते हुए निकला और अब डिब्बे मे मे, सेठानी और बहू ऐसे तीन लोग ही जाग रहे थे, जोकि चुदाई के कारण बहुत ही थक गये थे. 

मैने सेठानी के गाल का चुम्मा लेते हुए पूछा "सेठानी जी, कल हम कितने बजे पहुचेंगे आपके गाव?" 
सेठानी हसके बोली "करीब 9:30 बजे तक तो पहुच जाएँगे " 
उतने मे बहू ने मेरी टाँग पे अपनी मांसल टांग घिसते हुए और मेरे पेट से चिपकते हुए कहा "अब हमारी चुदाई का क्या होगा…..गाव मे हम तो ये ना कर सकेंगे …किसिको पता लग गया तो लेने के देने पड़ जाएँगे " 
सेठानी बोली "हां…अभी आदत पड़ गयी है तुमसे चुदवाने की …तुमसे बिना चुदवाये तो मैं रह ना पाउन्गा " 
बहू बोली "ठीक है ….गाव मे जाके चुदाई का इंतज़ाम करने की ज़िम्मेदारी मेरी….मैं देखती हू कौन मा का लाल पकड़ पाता है हमे" 

बहू की उंगली अभी भी सेठानी की गांद मे ही गढ़ी हुई थी, और बहू उसे छोटे बच्चो की तरह लाल पड़ी गांद मे डाल के अंदर बाहर कर रही थी. कुछ घंटो मे ही बहू और सेठानी मे क्या दोस्ती बन गयी थी …वाह….मानो…जैसे दोनो रंडीखाने मे सादियो से रहती हो. 

मेरा लंड इन दोनो की हर्कतो से फिरसे खड़ा हो गया और बहू ने उसे अपने मूह मे ले लिया, और अंदर बाहर करने लगी, उसके मुहसे निकल रही लार नीचे चटाई पे गिर रही थी, हम लोग नीचे चटाई पे बैठे होने के कारण नीचेसे बहुत ही ठंड लग रही थी, पर उपर से उतनी ही गर्मी हो रही थी, बहू ने अब मेरा लंड सेठानी के मूह मे ऐसे दे दिया जैसे कोई सिगार दी हो, क्या व्यवसायिक रंडिया लग रही थी दोनो के दोनो…मानो जैसे बरसो से इनका चुदवाने का धंधा रहा हो. 

बीच मे लंड बहू ने फिरसे अपने मूह मे ले लिया और 
सेठानी बोली "हां….पर गाव मे जाके कोई और मिल गयी तो हम दोनो को भूल मत जाना ….नहितो हम दोनो तुम्हे …" 
मैं बोला "तुम दोनो क्या……………." 
सेठानी और बहू कुछ नही बोली बस थोडिसी मुस्कुराइ. 
क्रमशः..............
 
नौकरी हो तो ऐसी--7

गतान्क से आगे...... 
मुझे मन ही मन मे बहू की गांद मारने की बहुत ही इच्छा हो रही थी, परंतु बहू ऐसा नही करने देगी ये मुझे पता था, क्यू कि जब मैने उसे सेठानी की गांद मारने की बात कान मे बताई थी, तब वो बोली थी "मेरे साथ ऐसा करने की कोशिश कभी मत करना नहितो तुम्हारा ये हथौड़ा जड़ से उखाड़ दूँगी, मुझे मेरी गांद तुम्हारे इस हथौड़े से नही फाड़नी है …मेरी प्रिय सासुमा की तरह..जो आजकल ऐसे चल रही है जैसे गांद मे कुछ फसा हो…." 

उसी वक़्त मैने मन ही मन मे सोच लिया था कि गाव जाके एक दिन इसकी ऐसी गांद मारूँगा ना कि चलने क्या उठने के काबिल भी नही रहेगी, और जिस दिन से ये ख़याल मेरे जहाँ मे उत्पन्न हुवा था उसी दिन मे मैं बहू की गांद मरनेवाले दिन का बेसबरी से इंतेज़्ज़ार किए जा रहा था. 

अब बहू और सेठानी ने मेरे लंड को चूस चूस के पूरा गरम कर दिया, इतना कि थोड़ी ही देर मे मैं बहू के मूह मे झाड़ गया, और मेरा वीर्य पीते हुए बहुने थोड़ासा वीर्य अपने प्रिय सासू के मूह मे डाल दिया, उन्होने ने भी किसी प्रषाद की तरह ग्रहण करते हुए पी लिया उन दोनो के होंठो पे मेरे वीर्य की धाराए मानो अमृत मालूम हो रही थी. 

अभी सेठानी उठ खड़ी हुई और साड़ी पहनने लगी और 
बोली "अभी सो जाओ …कल सबेरे जल्द ही स्टेशन आ जाएगा तो हमे बहुत सारा समान बाहर निकालना होगा" 
बहुने मेरे लंड को सहलाते हुए पूछा "हमारे वो आ रहे है हमे लेने?? " 
सेठानी बोली "पता नही वो आएगा की नही….परंतु मनोहर और उसकी बीबी छाया आनेवाले है सामान लेने स्टेशन पे " 
छाया नाम सुनते ही मेरा लंड खुश हो गया, और मैने मन ही मन मे प्लान भी बना लिया कि गाव मे जाके सबसे पहले छाया को चोदुन्गा. थोड़ी ही देर मे हम तीनो लोग अपने अपने बर्त पे लूड़क गये. और कब नींद लगी पता ही नही चला.


.. 
…. 
…… 

जब सबेरे बूढ़ा सेठ जी मुझे बिर्तपे हिलने लगा तब जाके मेरी नींद खुली और मैने अपनी घड़ी मे टाइम देखा तो 8:30 बज रहे थे, अब थोड़ी ही देर मे हम लोग सेठ जी के प्रिय गाव, जहा पे उनकी बहुत इज़्ज़त वाहा पहुचने वाले थे. 


9:40 के करीब ट्रेन स्टेशन पे पहुचि. और हम लोग सामान लेके भीड़ से निकलते हुए ट्रेन से उतरने लगे, उतने मे मनोहर "सेठ जी सेठ जी …….." चिल्लाता हुआ आया, और उसने सेठ जी के हाथ से समान लेते हुए अपने काँधे पे डाल लिया, उसके साथ उसकी बीवी छाया भी आई हुई थी, वो भी भागते भागते आगे आई, छाया ने सेठानी के हाथ की संदूक ले ली और अपने सर पर रख ली. मैं अपनी नयी शिकार को देख के हैरान रह गया और मन मे बोला, "वाह….वाह ……..दिल खुश हो गया."
 
छाया रहती गाव मे थी परंतु दिखने मे एकदम गोरी, सादे पाच फीट कद, भरा हुवा गोलाकार शरीर, 20-21 साल की उमर, उसके तने हुए ब्लाउस से बाहर निकलने की चाह रखनेवाली उसकी चुचिया, उसके वो भरी हुई मदमस्त गांद, उसकी वो चाल, चलते समय उसकी गोल गोल गांद इस तरह हिल रही थी, कि देखनेवाले दंग रह जाए. 

उसने अपने सर पे संदूक रखा हुवा था, और वो चले जा रही थी, मनोहर के पीछे पीछे. मनोहर कद मे उससे कम लग रहा था, थोड़ा सा मोटू और छोटू और बड़ा ही अच्छा इंसान मालूम पड़ रहा था, अपने चेहरे से, और उसकी बीवी, छाया मदमस्त अपने स्थानो को गांद को हिलाते हुए चले जा रही थी. 

थोड़ी ही देर मे हम स्टेशन से बाहर निकल आए, बाहर सेठ जी और सेठानी के लिए एक तांगा, और दूसरा तांगा बहू और मेरे लिए खड़ा था, मनोहर सेठ जी के साथ टांगे मे बैठ गया और मेरे और बहू के साथ छाया बैठ गयी, मैं तो तांगे वाले के साथ आगे मूह करके बैठा था, और मेरे पीठ पीछे छाया बैठी थी, अब मैने थोड़ा सा वातावरण का अंदाज लेना चाहा. 

मैं पीछे खिसक गया, और छाया की पीठ से पीठ लगा दी, वैसे ही वो आगे सरक गयी, और चुपचाप बैठ गयी, मैं फिरसे उसकी तरफ खिसका, इस बार वो आगे सरक नही पाई, क्यू की वो आगे सरक्ति तो तांगे से गिर जाती, पसीने से उसके सारी का पल्लू गीला था, वो मुझे महसूस होने लगा, मैं और थोड़ा पीछे खिसक गया और उसके पीठ से अपनी पीठ पूरी तरह चिपकाकर उसकी पीठ पर रेल दिया. 

जैसे ही तांगा हिलता, हम दोनो एक दूसरे के और करीब आ जाते और ज़्यादा चिपक जाते, जैसे की मेरा बाया हाथ बहू के बाजू मे था, मैने अपना दाया हाथ पीछे किया, और उसे पीछे करते हुए हल्केसे छाया की चुचि के साइड पर मलने लगा, जैसे ही मैने छाया की चुचि के साइड पर हाथ रखा, मैं महसूस कर पा रहा था, कि उसकी सासे तेज़ हो रही है. 

अब मैने हल्केसे बहू की तरफ देखा तो उसकी आँख लग चुकी थी, और तांगा सुरक्षित होने के कारण उससे गिरने का कोई ख़तरा भी नही था, मेरा हौसला बहू के सोने के कारण और बढ़ गया, और मैने अब अपना हाथ छाया की चुचि के साइड से निकाल के उसकी पूरी गोलाकार, भारी हुई चुचि पर रख दिया, और उसे मसलने लगा, थोड़ी ही देर मे मुझे उसका निपल हाथ मे लगा, मैने उसे दबाना शुरू किया, वैसे ही छाया की सासे और बढ़ने लगी, 
छाया मेरे कान मे बोली "ये क्या कर रहे हो बाबूजी…." 
मैं कुछ नही बोला. 

उसने एक हाथ से मेरे हाथ को उसके स्तनो से निकालने की कोशिश की, परंतु ये मैं भी समझ गया था कि, उस कोशिश मे दम नही था, और वो महज ही कोशिश कर रही थी, मैने अब अपना हाथ और पीछे करते हुए उसके ब्लाउस मे हाथ डाल दिया, जैसे ही मैने उसके ब्लाउस मे हाथ डाला "वाह क्या बड़ी बड़ी नरम नरम चुचिया थी उसकी…..क्या बोलू …स्वर्ग समेत आनंद महसूस होने लगा." 

पूरे सफ़र मे मैं उसकी कोमल चुचियो को मसल रहा था, और निपल्स को चिमकारिया ले रहा था, छाया की हालत बहुत पतली हो गयी थी, वो ज़ोर ज़ोर से सासे ले रही थी, लग रहा था कि उसे इस तरह अभी तक किसीने गरम ना किया हो, मेरा लंड तो ऐसे खड़ा हो गया था मानो जैसे पॅंट को चीर के बाहर आ जाए.
 
अब गाव दिखने लगा था, मैने छाया के ब्लाउस से अपना हाथ निकाल लिया, और आगे की तरफ ध्यान से देखने लगा, 
इतने मे तान्गेवाला बोला "अब हम पाच मिनिट मे घर पहुच जाएँगे बाबू…..वो जो हवेली दिख रही है पीले रंग की …. वो है सेठ जी की हवेली" 

तांगा हवेली के सामने जाके रुका, और मैं नीचे कूद गया, अंदरसे दो चार लोग बाहर आ गये, और समान उठाके अंदर ले जाने लगे. हवेली पुरखो की और बहुत पुरानी मालूम होती थी, परंतु उसकी देखभाल बहुत अच्छे की गयी होगी क्यूकी आज भी वो हवेली एकदम शान से खड़ी थी, और उसपे वो अलग अलग तरह का नाकषिकम उसे और भी शोभा दे रहा था. 

सेठ जी ने मुझे अंदर बुलाया और एक नौकर को मुझे मेरा कमरा दिखाने के लिए बोला, मैं अंदर गया, तो वो नौकर आके मुझे मेरे कमरे की तरफ, समान उठाके लेके निकल पड़ा, हवेली 3 माले की थी. नीचे के माले पे सेठ जी रहते होंगे ऐसे मैने सोचा, पता नही था, परंतु अभी आ गया हू तो पता चला ही जाएगा. वो नौकर मुझे दूसरे माले पे लेके गया और एक कमरा खोल के मेरा समान रखते हुए मेरे हाथ मे चाबी देते हुए निकल गया. मैं कमरे के अंदर आया कमरे के अंदर एक अच्छा सा बिस्तर, एक बड़ा सा मेज, एक छोटा परंतु आरामदायक 2 आदमियोको बैठने के लिए सोफा, और बहुत सारा समान अच्छी तरह रखा हुआ था. बाजू मे ही जोड़के छोटसा बाथरूम था, मैं तो शहर मे भी इतना खुशहाली से नही रहा था, ऐसे लग रहा था अब गाव मे ही मेरा आगे का जीवन व्यतीत होनेवाला हो. 

मैने बाथरूम के अंदर जाके मूह हाथ धो लिया, और आके अपने बिस्तर पर लेट गया, लगभग शाम हो रही थी तब दरवाजे पे किसीकि हाथ की आवाज़ सुनाई दी, मैने जाके दरवाजा खोला, तो बाहर सेठानी खड़ी थी. 
मैं बोला "इतने देर बाद याद आई हमारी" 
सेठानी बोली "नही ऐसी बात नही है….पर अब हालत ट्रेन जैसे थोड़ी ही है…तुम जल्दिसे तैयार होके नीचे आ जाओ ….नाश्ता और चाइ तैयार है ……नाश्ता होनेके बाद 6 बजे माता रानी की पूजा है ….आज बहुरानी घर आई है ना इसलिए…..तो तुम जल्दिसे नीचे आ जाओ…सेठ जी तुम्हारा इंतेज़ार कर रहे है" 
मैं बोला "ये तो ठीक है सेठानी जी…परंतु हमारी रात की पेट पूजा का क्या बंदोबस्त है" 
सेठानी बोली "वो तो हमारी प्यारी बहुरानी पे निर्भर है….देखते है कैसे रास्ता निकल आता है आपकी और हमारी पेट पूजा का.." 

ये कह के सेठानी चल दी, मैं तैयार होके नीचे के माले पे आ गया, उतने मे मुझे छाया ने आवाज़ दी और मुझे नाश्ते के लिए अंदर बुलाया. मैं अंदर चला गया और एक टेबल पे बैठ गया, छाया आई और मुझे नाश्ता देने लगी, मैने हल्केसे उसके पिछवाड़े की तरफ हाथ डालते हुए उसके गांद को एक छोटिसी चिमती ली, तो वो उछल पड़ी और हस्ने लगी और बोली "लगता है आप अपनी हर्कतो से बाज नही आनेवाले बाबूजी…." और मुझे आँख मार दी. थोड़ी ही देर मे मैने नाश्ता ख़तम किया तो एक नौकर आके मुझे बोला "बाबूजी बगल के कमरे मे पूजा शुरू होनेवाली है …आप जल्दिसे वाहा आईएगा …गाव के बहुत सब लोग आए है" 
क्रमशः.............. 
 
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