Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू ) - SexBaba
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Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )

hotaks444

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सिफली अमल ( काला जादू )

ये कहानी पूरी तरीके से काल्पनिक है इस कहानी का किसी के साथ कोई संबंध नही इस कहानी को रियल समझने की भूल ना करे..ये सिर्फ़ एंजाय्मेंट के लिए लिखी गयी है बस एंजाय करे इन्सेस्ट हेटर्स प्ल्स इफ़ यू हेट इन्सेस्ट प्ल्स डॉन'ट विज़िट आप अपना कीमती वक़्त बर्बाद करेंगे ये कहानी किसी घटना का दावा नही करती इस कहानी के कुछ एलिमेंट्स बहुत शॉकिंग है बट हॉरर इंट्रेस्टेड रीडर्स दिल को मज़बूत कर लेना 

कहानी में लिखा हर पात्र सिर्फ़ मनोरंजन के लिए लिखा है इसका कोई असल ज़िंदगी से मतलब नही...इस कहानी में लिखे कुछ चीज़ें रीडर्स को शॉक भी कर सकते है इसलिए बड़े अहेतियात और सावधानी से पढ़ें और ये ना सोचे कि ये सब रियल है....सिफली अमल सिर्फ़ गुनाह का काम है ऐज अ राइटर आइ आम टेल्लिंग माइ ऑल रीडर्स जस्ट एंजाय दिस स्टोरी डॉन'ट बिलीव ऑन इट 

दुनिया में अगर मैं किसी को सच्चे दिल से किसी को चाहता था तो वो थी मेरी इकलौती बाजी शीबा...हम दोनो के बीच बचपन से ही भाई बेहन से ज़्यादा घनिष्ट प्यार था...और यही वजह थी कि हम दोनो एक दूसरे से एक सेकेंड के लिए भी अलग नही हो पाते....बचपन में ही साथ साथ खेले और साथ बड़े हुए जबकि मेरी बाजी की उमर मुझसे करीबन २ साल बड़ी थी....बाजी मेरा हमेशा ख्याल रखती मम्मी और पापा जब नही होते तब वही मुझे संभालती खाना देती....हमारे इस प्यार की चर्चा पापा और मम्मी भी करते थे लेकिन उन्हें नही पता कि हम दोनो के बीच एक रिश्ता और जल्द ही कायम होने वाला है

धीरे धीरे बाजी तकरीबन २३ साल की हो चुकी थी जबकि मैं अपने 21 के बीच में ही था...हम लोग मम्मी पापा की आब्सेंट में ही घर में बनी बुखारी की छत के नीचे कच्ची ईंट वाली बाथरूम में एक साथ नहा लेते थे मेरी बाजी की चूत पर काफ़ी घने बाल उगे हुए थे जबकि मेरे लंड पर भी जंगल उगा हुआ था....मेरा लंड उस वक़्त खड़ा हो जाता था और बाजी की गान्ड को देख कर हिलोरे मारने लग जाता...बाजी ने कहा कि ये सब नॉर्मल है क्यूंकी वो जानती थी कि ना उनमें शरम और हया का कोई परदा था और ना ही मेरे अंदर....धीरे धीरे गाँव में रह कर हम अपने घर को अच्छा संभाल लेते थे पापा भी पूरी मेहनत करते और शहर में ही कमाने को चले जाते वहाँ उनको अच्छा ख़ासा वेतन मिलता था

इधर हम और मम्मी भी ख़ुदग़र्ज़ थी हम पर ज़्यादा ध्यान नही देती थी...हम कब घर से निकलते है कहाँ जाते है? इस्पे भी सवाल नही करती थी..और यही वजह थी कि ये आज़ादी हमारे रिलेशन्षिप को बहुत आगे बढ़ाने वाली थी और जल्द ही हम दोनो के बीच वो हुआ जो शायद लोगो की नज़रों में एक गुनाह हो पर हम दोनो के लिए एक दूसरे की ज़रूरत जिस्मानी तालुक़ात..ना बाजी अपनी चूत की गर्मी को शांत कर पाती और ना मैं अपने लंड की हवस को काबू कर पाता....हम दोनो एक दूसरे को किस करते चूत पे लंड रगड़ते और उनकी गान्ड के छेद पे लंड मलके थोड़ा सा घुसा देना यही सब हमारे अकेले पन का खेल बन गया था....और धीरे धीरे ये खेल चुदाई में तब्दील हो गया बाजी की सहेलिया गाओं की अक्सर गंदी गंदी चीज़ों और लौन्डो की ही बात करती थी..और इधर मेरा कोई दोस्त नही था काम के बाद सीधे स्कूल और वहाँ भी पढ़ाई में ही मन लगता था फिर बाकी टाइम या तो साइबर केफे जो था छोटा सा वहाँ जाके ब्लू फिल्म देखना और तरह तरह की अप्सराओं के नाम की मूठ मारना यही आदत थी और बाद में तो बाजी हवस पूरी कर ही देती थी...ब्लू फिल्म और सेक्स रिलेटेड चीज़ों को जानते जानते मैं पूरा पका आम बन गया था गाँव से सटे टाउन से जाके सस्ते में कॉंडम मिल जाता था केमिस्ट से लेके....और फिर बाजी को चुपके चुपके जंगल या फिर खेत मे ले जाके चोद देता

बहुत मज़ा आता था...और शायद आज भी वही मज़ा मिलने वाला था.... पढ़के घर लौटा ही था...कि मम्मी ने आवाज़ दी

मम्मी : अर्रे बेटा शीबा अकेले खेत पर चली गयी सब्ज़िया तोड़ कर लाने तू भी जाके मदद कर दे

मैं : ठीक है मम्मी (मैने कपड़ों को बदला और पाजामा और शर्ट में ही खेतों की तरफ रवाना हो गया पापा उस वक़्त शहर में थे)

जल्द ही कच्चे रास्ते से बस्ती से निकलते हुए खेतों मे पहुचा....तो शीबा बाजी अपने मुँह पे वॉटर पंप से पानी मार रही है....मैं उसके करीब गया और ठीक उसके पीछे खड़ा होके अपना लंड उसकी गान्ड के बीच फसि सलवार के भीतर लगाया और झुक कर उसकी चुचियों को दबाने लगा..."उफ़फ्फ़ हाीइ म्म्ममममम तू नहिी सुधरेगा"......मेरी बाजी अपनी फीके चेहरे से मेरी ओर देखा और हँसने लगी हम दोनो भाई बेहन खेत में पॅकडम पकडायि खेलने लगे फिर मैने बाजी को अपनी गिरफ़्त में खींच लिया और उनके होंठो से होंठ लगा के पागलों की तरह चूसने लगा...बाजी भी अपनी गीली ज़ुबान मेरे मुँह में डाल के चलाने लगी हम दोनो एक दूसरे को पागलो की तरह किस करते रहे.."उम्म आहह सस्स चल उस साइड अभी इतनी कड़क धूप में कोई आएगा नही"........बाजी ने कान में फुसफुसाया
 
फिर क्या? हम भाई बेहन बड़े बड़े गन्ने के खेतो के भीतर गये और एक खाली जगह पे सुखी घास पे मैने बाजी को बैठाया और उनकी सलवार का नाडा खोला ...अपना पाजामा नीचे किया और उनकी जंपर को भी उपर कर दिया और ब्रा से ही चुचियों को बाहर निकाल के उसके मोटे ब्राउन निपल्स को चूसने लगा...बाजी असल में गोरी बहुत हैं और उनके निपल्स बहुत मोटे है चुचियाँ भी काफ़ी थुल्लि थुल्लि सी निकली हुई है और आँख भूरी सी हैं...मैं बाजी के होंठो को पागलो की तरह चूमते हुए उनके निपल्स को चूसने लगा...बाजी का एक हाथ मेरे लंड पे सख्ती से आगे पीछे चल रहा था....मेरा बंबू बहुत मोटा हो गया था..मैने बाजी की ज़ुल्फो को हटा के उनके गले को चूमा और एक प्रेमी की तरह उन्हें लिटा के उनके होंठो को फिर चूसने लगा...."इसको भी चूस"....बाजी ने दूसरी चुचि को मेरे मुँह से सटाते हुए कहा

मैने उस चुचि को भी ज़ोर ज़ोर से मसला और उसे खूब चूसा....बारी बारी से दोनो चुचियों को चूसने के बाद बाजी को हान्फ्ते पाया...और फिर उनकी गोरी टाँगो को थोड़ा फैलाया और उसमें से महकती नमकीन छोड़ती रस भरी चूत में मुँह लगा के खूब रगड़ा...उफ्फ कितनी लज़्ज़तदार चूत है मेरी बाजी की उफ्फ बाजी का पेट काँप रहा था उसकी नाभि पे मेरी उंगली चल रही थी बाजी के दोनो हाथ सख्ती से मेरे सर पे टिका हुआ था और वो मुझे जितना हो सके मेरे मुँह को अपने भीतर चूत में दबा रही थी मैं उनकी चूत के दाने को चुसते हुए उनकी फांको में ज़ुबान घुसाए करीब बहुत देर तक चूस्ता रहा "आहह सस्स ओउर्र ज़ोरर्र स आहह आअहह आईईइ"........बाजी चिल्लाती रही और मेरे हाथ ज़बरदस्ती उनकी चुचियों को मसल्ते रहे फिर मैने उनकी लबालब चूत से मुँह हटाया और फिर बाजी को किस किया बाजी ने मेरा पूरा साथ दिया हम दोनो ऐसे ही कुछ देर घास पे लेटे रहे फिर उन्होने मुझे खड़ा किया "देखता रह कोई आ ना जाए"......बाजी मेरा लंड खूब बारीक़ी से चुस्ती रही उफ़फ्फ़ क्या मज़ा था? उसने पहले मेरे मोटे सुपाडे को मुँह में लेके चूसा फिर अंडकोष पे ज़बान फिराई फिर पूरे लंड को मुँह में लेके चूसा..ओउू अओउू करती उनकी गले से घुटि आवाज़ उफ़फ्फ़

मेरी टाँगें काँपे जा रही थी की अब रस छोड़ा कि तब...मैने बाजी के मुँह में ही धक्के मारने शुरू किए और उनके गरम मुँह में लंड चुस्वाता रहा...वो बड़े ही प्यार से मेरे लंड को चूस रही थी अपने भूरी निगाहों से मुझे देख रही थी मेरी गान्ड के छेद पे अंगुल कर रही थी....उफ्फ इतना मज़ा हाए रे....बाजी को फ़ौरन मैने अपने लंड से अलग किया उनके मुँह से थूक की लार सीधे लंड से चिपकी हुई थी फिर लंड को पोन्छा हाथो से ही और फिर ढेर सारा थूक बाजी की गान्ड पे लगाया....बाजी मना करती थी की उनकी ज़्यादा चूत ना मारु वरना आगे चलके अगर उनका विवाह हुआ तो बात खुल जाएगी की वो चुदि हुई है और आप तो जानते हो हमारे यहाँ गान्ड मारने से लोगो को बड़ा परहेज़ है ये सब कहानियो में सुना है...लेकिन मुझे मेरी बाजी की गान्ड बेश कीमती प्यारी थी 

मैने बाजी की गान्ड को उचकाया "बाजी एक बार मार लेने दो ना अपनी चूत"......बाजी का पूरा मुँह लाल था पर उन्होने मना किया पर ज़्यादा नही..."तू कॉंडम लाया है ना"......

फिर मैने कॉंडम निकाला...दो कॉंडम लंड पे चढ़ाए इस मामले में अब बहुत अहतियात बरतते थे...फिर बाजी ने खुद ही मेरे लंड पे कॉंडम चढ़ाया "अब ठीक है आराम से लगा देती हूँ"...उन्होने मुझे खड़ा करके मेरे लंड पे कॉंडम लगाया और बोला जल्दी धक्के मार कोई आ जाएगा...मैने बाजी की चूत पे धीरे से लंड को टिकाया और उसके ल्यूब्रिकेशन से लंड अंदर धंसता रहा बाजी इतनी देर में काँपती रही...फिर मैने उनकी चूत में एक करारा धक्का दे मारा...बाजी पस्त हो गयी उनकी तो आदत थी पर उन्हें सख़्त दर्द होता था

वो चिल्लाति रही आहें भरती रही....अगर उस वक़्त कोई 40 कदम भी दूर खड़ा हो तो सुन ले....मैने बाजी के मुँह पे हाथ रख कर धक्के मारने शुरू किए....बाजी लेटी उम्म्म उम्म की आवाज़ निकालके कराहती रही....फिर कुछ देर में ही बाजी की चूत पूरी खुल गयी और वो रस छोड़ने लगी....मैं बाजी के हाथो को सख्ती से पकड़े उनकी गान्ड में ताक़त लगाए धक्को पे धक्के मारता रहा...फिर कुछ देर तक धक्को की रफ़्तार तेज़ की फिर धीमी कॉंडम इस बीच बाहर आ जाता..फिर बाजी उसे सेट करती और फिर शुरू होता चुदाई का सिलसिला...

बाजी की चूत बीच बीच में एकदम काँप उठ रही थी....और वो सिसकते हुए बस मेरे गान्ड पे हाथ चला रही थी....बाजी का मदमस्त जिस्म मुझे पागल कर रहा था मैं सख्ती से उनके चुचियों को भीच रहा था दबा रहा था...और कुछ ही देर में बाजी ने मुझे रोक दिया और मेरी लंड को अपनी चूत के मुहाने से निकाला और ढेर सारा पानी छोड़ दिया उनकी सलवार थोड़ी गीली हो गयी फिर अहेतियात बरतते हुए मैं उन्हें फिर धक्के पे धक्के लगाते हुए चोदता रहा...फिर बाजी ने बोला कि अब उनसे नही होगा वो थक चुकी है

मैने उन्हें उठाया क्यूंकी अब मेरा भी निकलने को ही था...और उनको घोड़ी बनाया और पीछे खड़ा होके उनके गान्ड की छेद पे थोड़ा सा थूक लगाया बाकी तो चूत का रस लगे गीले कॉंडम और लंड की करामात थी घुसने की....फछक्क से लंड थोड़ा अंदर घुसा..बाजी काँप उठी और फिर मेरे लंड को खाने लगी जब देखा कि गान्ड ने रास्ता बना लिया तो उसे बाहर खींचा तो बाजी ने हल्की पाद छोड़ा....बदबू काफ़ी महेक दार थी पर मस्त थी मैने एक और करारा धक्का मारा और अब गान्ड के भीतर लंड डालने लगा फिर बाहर खींचता फिर घुसाता इस बीच मेरी रफ़्तार बहुत तेज़ हो चुकी थी बाजी मुझे झडने के लिए पूरी गालियाँ और गंदी गंदी बातें कह रही थी "ज़ोरर से चोद डाल निकाल ले अपना लंड रस्स बाहर निकाल दे".....कुछ ही देर में मैं ऐसा काँप उठा कि मैं और रुक ना पाया धड़ा धड़ धक्के लगाता रहा रस छोड़ता रहा और रस सीधे कॉंडम में भरती रही...बाजी की उछलती चुचियो को हाथो से नीचे से दबा भी रहा था फिर कुछ देर बाद मेरा दिल जब पूरा हट गया सेक्स से तो लंड को बाहर खीचा
 
लंड से कॉंडम फैंका जिसने आधे से ज़्यादा लंड को पूरा रस से भीगा दिया था....फिर मैने ज़ेब से रुमाल निकाला लंड को सॉफ किया फिर बाजी की चूत के अंदर तक उंगली से सॉफ करके पोन्छा और उनकी चौड़ी गान्ड के होल को भी सॉफ किया...बाजी काफ़ी खुश थी और थक चुकी थी "अब हो गया चलें".......बाजी ने मुस्कुरा कर मेरे गाल को चूमा मैने बाजी के गीले होंठो को चूमते हुए बोला चलो. 

हम दोनो झाड़ियो से बाहर आए और अपने कपड़ों को ठीक करते हुए पास रखके सब्ज़ियो को इकट्ठा किया उसे बोरी में डालके अपने कंधे पे उठा लिया और बाजी के साथ घर लौट आया मम्मी का यूषुयल डाइलॉग इतनी देर कैसे हो गयी?..बाजी ने बात संभाल ली मम्मी ने भी कोई ख़ास सवाल नही किया फिर मैं कमरे में आके नहाने चला गया....फिर बाजी सारा काम काज करके नहाने चली गयी

दिन ही ऐसे ही कटने लगे हम भाई बेहन के बीच जो अटूट रिश्ता था वो कभी टूटने वाला तो नही था...और इसी वजह से मैं बाजी से दूर नही रह पाता था...पापा ने ज़ोर देना शुरू किया कि आगे की पढ़ाई करने के लिए तो शहर जाना ही होगा...आइडिया मुझे भी भाया क्या पता? बाजी को मैं यहाँ ले आउ और शहर के खुले वातावरण और आज़ादी में मज़े ले सकूँ यहाँ ना कोई रोकेगा ना कोई टोकेगा पर बात आसान नही थी....बाजी से 5 साल के लिए दूर हो गया और यहाँ आके ग्रॅजुयेशन ख़तम करके मैने खुद को काफ़ी काबिल बना लिया ढंग की जॉब हासिल कर ली और यही शहर में मन लगने लगा गाओं जाने का दिल तो था पर काम की वजह से हफ्ते में ही जा पाता था और इन हफ़्तो में बाजी से कोई भी रिश्ता नही जोड़ पा रहा था मैं अकेले में मुझे खाली हाथ लौटना पड़ता...एक दिन हादसे में मेरे मम्मी और पापा चल बसे...सदमे ने हम लोगो को घैर लिया था बाजी अकेली पड़ चुकी थी...गाँव छोड़ने के सिवाय और कोई चारा नही था वहाँ सिर्फ़ ग़रीबी ही थी....बाजी को मैने संभाला और उन्हें मान कर अपने साथ शहर ले आया

गाँव को हमने छोड़ दिया जो कुछ भी था उसे बेच बाचके बॅंक में फिक्स कर दिया...पैसो की कोई कमी नही थी ना ही बाजी के कोई ज़्यादा खर्चे थे वो आम बनके रहती थी...बाजी ने निक़ाह के लिए कोई रिश्ता नही सोचा था और ना मैं किसी से चर्चा कर पा रहा था....पूरे दिन ऑफीस उसके बाद घर पे सिर्फ़ हम दोनो भाई बेहन थे अब हम दोनो के अंदर एक दूसरे के लिए बहुत मोहब्बत जाग गयी थी बाजी मुझे सोते वक़्त अपनी चुचियों पे सर रखकर सुलाती कभी मेरे बालों से खेलती बाजी और हम चादर लपेटे एक दूसरे के साथ हमबिस्तर होकर सोते थे....लेकिन किस्मत ना जाने क्या खेल खेल रही थी

एक दिन ऑफीस मैं था फोन आया कि शहर के बीचो बीच भारी ट्रॅफिक में बाज़ार से सटे रोड पे एक लड़की का आक्सिडेंट हुआ है और वो कोई और नही थी मेरी बाजी शीबा थी...मेरे पाओ से जैसे ज़मीन खिसक गयी आनन फानन हॉस्पिटल पहुचा....डॉक्टर कोशिशें कर रहा था और मैने उनसे मिन्नत माँगी काफ़ी पैसे खर्च हुए लेकिन बाजी को बचाया ना जा सका ऑपरेशन फेल हुआ और डॉक्टर ने मुझसे सिर्फ़ नज़रें झुकाए मांफ माँगी

मेरा सबकुछ छिन गया था....मेरी प्यारी बाजी मुझसे हमेशा हमेशा के लिए दूर हो गयी थी पहले पापा और मम्मी और अब मेरी बाजी उस वक़्त मैने अपने आप को कैसे संभाला था आस पड़ोस के लोगो ने मुझे कैसे संभाला था कुछ याद नही? मेरी बाजी की लाश को जल्द ही गाढ दिया गया अब घर में सिर्फ़ खामोशियाँ थी और दर्द था जो आँसू बनके मेरे आँखो से निकलता...ज़िंदगी इतनी अधूरी सी लगने लगी थी कोई ना दोस्त था ना कोई परिवार मैं बहुत अकेला था...रोज़ नमाज़ में खुदा से दुआ करता कि मेरी बाजी को वापिस भेज दो चाहे इसमें मेरी जान भी क्यू ना ले लो मुझे उसके पास रहना है वरना मैं मर जाउन्गा लेकिन भला खुदा कहाँ से मरे इंसान को वापिस भेज पाता.....

धीरे धीरे ज़िंदगी को चलाने के लिए खुद को बिज़ी करने के लिए काम तो करना ही था...लेकिन हर बार मेरा सवाल सिर्फ़ मेरी बेहन को वापिस पाने का होता...कोई मुझे पागल कहता कोई मुझे तुम डिप्रेस हो कहके टाल देता डाँट देता कोई कहता डॉक्टर के पास जाओ...लेकिन मुझे एक गुस्सा था एक जुनून चढ़ गया था कि मैं अपनी बाजी को इस दुनिया में वापिस लाउन्गा....एक दिन इंटरनेट पे एक आर्टिकल देखा....जानने में आया कोई सिफली आमाली था जिसके पास हर मुस्किल का हल है...मैं जो रास्ता इकतियार कर रहा था शायद ये मुझे अपनी क़ौम से बाहर ले जा रहा था मैने ना अपनी क़ौम की परवाह की ना ही परवाह की क्या ग़लत था क्या सही? 

उस आमाली से मिलने का प्लान बना लिया....ऐसे कयि आमाली होते है जो पैसे के लिए लोगो को लूट लेते है....पर मुझे अंजाम की फिकर नही थी....आमाली को अपना मसला बताया जो आग के सामने ध्यान कर रहा था उसने मेरा परिचय नही लिया उसे सबकुछ पहले से पता था...मैं बस उससे कितनी मिन्नते कर रहा था ये मैं ही जानता था और वो....वो उठा और काफ़ी गंभीर सोच से इधर उधर टहलने लगा

"ना क़ौम इसकी इज़ाज़त देता है ना ही हमारा खुदा....हम ऐसे रास्ते को कभी इकतियार कर लेते है जिसमें सिवाय गुनाह और सज़ा के कुछ नही मिलता"....उसकी जलती आँखो में मेरे लिए उसका जवाब था....लेकिन मेरी आँखो में सिर्फ़ सवाल मुझे मेरी बाजी वापिस चाहिए थी चाहे कैसे भी?....मेरे जुनून मेरे पागलपन को देख कर उसे ना जाने क्यू लगा कि शायद मैं कामयाब हो सकता हूँ पर इसकी कोई गारंटी नही थी क्यूंकी ये अमल ना तो किसी ने पहले किया था और ना ही कोई करने की ज़ुर्रत कर सकता था....इस अमल में मरे इंसान को वापिस लाया जा सकता था मैं चुपचाप सुनता रहा उनकी बात...लेकिन वो इंसान इंसान नही इंसान के जिस्म में एक जीता जागता शैतान बन जाएगा एक पिसाच.....जिसे इंग्लीश में बोलते है वेमपाइर

बिजलिया जैसे मेरे माथे में गूँज़ रही थी....क्या ये मुमकिन था? मैं इतना पढ़ा लिखा कभी इन सब बातों पे यकीन तो क्या कभी मानता तक नही था...उसने मुझे मुस्कुरा कर अपने पास रखी वो किताब दी...उसमें ये सारा अमल करने का तरीका लिखा था शर्तें थी....लेकिन उसने सख़्त हिदायत दी कि ना इसकी खुदा उसे इज़ाज़त देगा ना मुझे जो भी कर रहा हू अपने बल बूते पे ही करना होगा वरना अंजाम मौत से भी बत्तर 

मेरे अंदर इतना जुनून था कि मैं कुछ भी करने को तय्यार था वो अमल था...एक मरे हुए इंसान में उसकी रूह को वापिस डालना जो इंसान नही बल्कि एक पिसाच बन जाएगी जो लोगो को दिखेगी लेकिन वो मरी हुई होके भी एक नया जनम पाएगी पिसाच का जो सालो साल जीती रहेगी...और कभी नही मरेगी....पिसाचिनी लिलिता नाम की एक पिसाचनी से मुझे गुहार लगानी थी और इस अमल में उसकी हर शरतो को मानने के बाद ही मुझे मेरी बाजी वापिस मिल सकती थी लेकिन अमल को पाने से पहले मुझे कुछ और भी चीज़ें लानी थी जो अमल में काम आए
 
मैं उसी रात अपने काम के लिए निकल गया ये जानते हुए कि जो रास्ता मैं इकतियार कर रहा हूँ सिवाय मौत और गुनाह के उसमें कुछ नही लिखा मुझे अपनी क़ौम से निकाल दिया जाएगा कि मैं एक शैतान से दुआ माँग रहा हूँ....लेकिन कहते है ना जुनून इंसान के अंदर शैतान ही पैदा करता है...उस रात काफ़ी सन्नाटा था...आँखो से आँसू गिर रहे थे और मैं फावड़े से ज़मीन खोद रहा था....मेरी बाजी को यहीं दफ़नाया गया था....कुछ देर में ही बाजी का जिस्म मेरे सामने था जो एकदम सफेद सा पड़ चुका था आँखे मुन्दि हुई टांका लगा हुआ था उस खूबसूरत चेहरे की गर्दन के आस पास किस बेरहेमी से उसका आक्सिडेंट हुआ था....मैने रोते हुए अपनी बाजी की लाश को बाहों में उठाया और जैसे तैसे बाहर निकाला इससे पहले कोई मुझे देख ले मुझे यहाँ से निकलना था

जल्द ही गाड़ी को मैं घर ले आया मैने पहले से ही शहर से दूर इस वीराने में एक घर ले लिया था हालाँकि ये मेरे ऑफीस से दूर था लेकिन मुझे अपना काम यही अंजाम देना था इस सुनसान वातावरण में....मैने बाजी की लाश को उठाया और उसे ज़मीन पे रख दिया दरवाजा खिड़की सब बंद कर लिए बाजी के बदन से निहायती बदबू आ रही थी लाश अभी सड़ी नही थी क्यूंकी महेज़ 12 दिनों के अंदर ही मैं उन्हें ले आया था वापिस ज़मीन से दोबारा खोदके....अमल शुरू किया चारो ओर मोमबत्तिया जलाई जैसा जैसा आमाली ने बताया था सबकुछ करने लगा और फिर धीरे धीरे मोमबत्तीी की लौ मेरे पढ़ते उस मंत्रो से फडफडाने लगी कहीं खिड़की से हवा अंदर आ रही थी और मोमबति के बनते चक्र के बीच बाजी का बेशुध कपड़े से लिपटा जिस्म पड़ा हुआ था मानो जैसे अभी गहरी नींद से जाग जाएगी मेरी निगाह बाजी की लाश पे थी और होंठ मंत्रो का जाप कर रहे थे

धीरे धीरे मोमबत्ती की लौ फड़ फड़ा रही थी...और फिर एकदम से हो हो करती हवाओं का शोर अंदर आने लगा.....मेरे मंत्रो का जाप कमरे में ही गुंज़्ने लगा....और अचानक परदा हिलने लगा..मुझे कुछ ध्यान नही था सिर्फ़ मंत्रो को पढ़ता रहा मैने सिर्फ़ एक तौलिया ओढ़ रखा था और जिस्म नापाक जैसा आमाली ने बताया था किताब का पन्ना अपने आप हवा से फड़ फड़ा रहा था पलट रहा था जिसपे उंगली रखके मैं आगे पढ़ता रहा....अचानक मोमबत्ती की लौ बुझने लगी...लेकिन मैं पढ़ता रहा आख़िर कुछ देर में सबकुछ थम सा गया मानो जैसे एक तूफान आके गया हो..लेकिन इस बीच ना बाजी के शरीर में कुछ हरक़त हुई और ना ही मुझे कुछ ऐसा महसूस हुआ....मैने बाजी के करीब आके रोटी निगाहो से उनके चेहरे पे उंगलिया चलाई....फिर अपने आखरी रिचुयल को फॉलो करने के लिए उठ खड़ा हुआ

मैं जानता था मुझे क्या करना है? मैने फ्रिज से एक मग भरा बकरे का ताज़ा ताज़ा खून निकाला जिसे कैसे हासिल करके मैं लाया था मैं ही जानता हूँ कसाइयो ने मुझे कितनी अज़ीब निगाहो से देखा ये मैं ही जानता हूँ...एक जान को पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता था मैने बाजी से लिपटी चादर को उतार दिया...और उनका नंगा जिस्म मेरी आँखो के सामने था 

"मुझे मांफ करना बाजी अगर मैं आपके साथ कुछ गुनाह कर रहा हूँ तो ये सब आपको पाने के लिए ही तो है"......मैने धीरे से बाजी की लाश को कहा और धीरे धीरे मग का खून उनके उपर डालने लगा....जल्द ही वो खून से तरबतर भीग गयी उनका बदन एकदम लाल हो गया मैं मत्रो को पढ़ता हुआ खुद को भी ताज़े खून से नहलाने लगा चारो ओर एक अज़ीब सी महेक थी....मैं काँपते हुए ज़ोर ज़ोर से पिसाचिनी का नाम लेने लगा...."लिलित्ता लियिलिताया"....उसके बाद उसे बुलाने का आखरी वो 4 मन्त्र जिसे पढ़ते ही जैसे पूरा बदन सिहर उठा कभी एकदम से कप्कपाती ठंड महसूस होती और कभी एकदम सख़्त गर्मी 

पूरा कमरे अंधेरे में डूब गया मोमबत्तिया भुज चुकी थी खून से तरबतर बाजी का जिस्म चक्र के अंदर वैसे ही लेटा हुआ था...मेरे सामने एक अज़ीब सी औरत खड़ी थी जिस देख कर मैं घबरा गया लेकिन घबराने से काम नही बनने वाला था क्यूंकी मेरा एक ग़लत कदम मुझे मौत के घाट उतार देता..वो मुस्कुरा रही थी उस जैसी अज़ीब सी औरत बिना कपड़ों के एकदम नंगी मेरे सामने खड़ी थी मैने कभी आजतक नही देखा था क्या ये आँखो का धोखा था? मैने धीरे धीरे अपनी बात कहना शुरू किया "म्म..एररी बी.हाँ मुझे वापिस चाहिए मुझे मेरी बेहन लौटा दो मैं उसे जीता देखना चाहता हूँ प्लज़्ज़्ज़ प्लज़्ज़्ज़"....मैं मिन्नत करते हुए उसके आगे झुक गया था आँसू फुट फुट के बह रहे थे और उसकी ठहाका लगाती आवाज़ मानो जैसे कितनी डायन एक साथ ठहाका लगाके मेरी दुखिपने पे हँस रही हो लेकिन उसने कुछ और नही कहा बस चुपचाप ठहाका लगाती रही


उसके बाद मुझे कुछ याद नही कि मेरे साथ क्या हुआ क्यूंकी मैं मिन्नत करते करते बेहोश हो गया था...जब होश आया तो सुबह के 4 बज चुके थे..मैं वैसे ही खून में लथपथ पड़ा हुआ था जब दूसरी ओर निगाह की तो देखा तो चौंक उठा मेरी बेहन करवट बदले दूसरी ओर सो रही है...य..ए कैसे हो सकता है? मैं बाजी के पास आया और उनके जिस्म पे हाथ फेरा उसका शरीर एकदम ठंडा था लेकिन उसका चेहरा अज़ीब सा हो गया था मैने फ़ौरन उसकी नब्ज़ को चेक किया लेकिन कुछ महसूस नही हुआ...मैने उसे झिन्झोडा जगाया "बाजी उठो बाजी उठो प्ल्ज़्ज़ बाजी आँखो खोलो".......लेकिन सब बेकार तो फिर वो सब क्या था महेज़ एक सपना? मैं अपने आप पे गुस्सा कर रहा था चीख रहा था चिल्ला रहा था अपनी बेबसी और नाकामयाबी पे खुद ही के हाथ के पास रखा वेस फोड़ दिया मेरे हाथो से खून बहने लगा मुझे दर्द हुआ था मैने फ़ौरन उठके बाजी की लाश को उठाया और उसे बाथरूम में जाके सॉफ किया उसे टेबल के उपर लिटा दिया कुछ देर तक चुपचाप हाथ से बहते खून को पकड़े उसके ओर सख़्त निगाहों से देखने लगा कि अब क्या करूँ?
 
इसी कशमकश में मैं उठके जैसे ही वापिस मुड़ा मैं चौंक उठा...साँस रुक सी गयी काँप गया हाथ...बाजी मेरे सामने थी और वो जाग चुकी थी वो अज़ीब निगाहो से मेरी ओर देख रही थी...वो घुर्रा रही थी उसकी दबी आवाज़ सुनाई दे रही थी कितना हिंसक चेहरा बन गया था उसका पूरा बदन सफेद वो आख़िर जिंदी कैसे हुई?....वो फर्श टपके खून पे ज़बान फैरने लगी और उस टपकते खून के साथ मेरे पास हाथो के बल आने लगी "ब..आज़्ज़ई बाज़्ज़ििई बाजीज़िी आप ज़िंदा हो आप वापिस आ गयी बाजी".......मैं पागलो की तरह चिल्ला पड़ा और उसके चेहरे को हाथो में लेके सहलाने लगा ना जाने कितनी खुशी के आँसू बहाए ना जाने कैसे शुक्रिया अदा करे? उसने मुस्कुरा कर देखा "देखा भाई मैं आ गयी तुम्हारे पास तुमने मुझे बुलाया पता है मैं कितना बेचैन थी मेरी रूह हरपल तुम्हारे साथ थी".....मैने उसे अपने सीने से लगा लिया और ऐसे बच्चो की तरह दबा लिया मानो जैसे उससे अलग ना हो पाउन्गा "नही बाजी अब तुम कहीं नही जाओगी? तुम मेरे पास रहोगी बोलो बाजी बोलो"......बाजी की आँखे सुर्ख लाल थी और अचानक उनके दाँत बाहर आने लगे

और अचानक उन्होने सख्ती से मेरा हाथ पकड़ा और मेरे कटे खून बहते ज़ख़्मो को चूसने लगी..."बा..आज़्ज़िई क..क्या कर्र रही हो? बाजिी"........बाजी ने मेरा हाथ नही छोड़ा बस मेरे खून को चुस्ती रही....मैं समझ चुका था कि बाजी अब इंसान नही थी...तो क्या वो मुझे भी? मैं खुशी खुशी मौत को स्वीकार करने के लिए तय्यार था...लेकिन उसने जल्द ही मुझे अपने से दूर धकेल दिया और अपने मुँह पे लगे खून को पोन्छा "नहिी मैं ये क्या कर रही हूँ? ये मैं अपने भाई को".......बाजी को सोच की कशमकश में घिरा देख मैं उठा और उन्हें सहारे से खड़ा किया 

मैं : बाजी आपको कैसा महसूस हो रहा है?"

बाजी : ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं अंधेरे में रहूं ये खामोशियाँ ये सन्नाटा मुझे बेहद पसंद है मुझे अपने भाई के साथ ही रहना है अपने आसिफ़ के साथ (बाजी की आँखें सुर्ख लाल थी आँखो के कन्चे एकदम लाल उसका चेहरा कोई देखे तो ख़ौफ़ से डर जाए लेकिन मेरी बेहन मेरे पास लौट आई थी कुछ देर बोलते बोलते वो बेहोश हो गयी)

और फिर मैने उन्हें उठाया और बाहों में लिए बिस्तर पे लिटा दिया और खुद भी उनके बगल में लेट गया....वो मेरी आगोश में आ गयी..और मुझसे खुद को लिपटा लिया उसके बाद मुझे हल्की नींद आई थी और मैं सो भी गया था...

मैने एक बात नोटीस कर ली थी कि बाजी के बदलते बर्ताव में बहुत कुछ अज़ीब था जब दूसरे दिन उठा तो वो ना बिस्तर पे थी और उन्हें जब ढूँढा तो वो मेरे बने आल्मिराह के अंधेरो में छुपी हुई थी उसने कहा उसे धूप पसंद नही.....जब बादल आसमान पे घिरते थे तो वो काफ़ी राहत महसूस करती थी वरना आमतौर पे मैं उसे घर के सबसे ख़ुफ़िया कमरे में रखने लगा....जहाँ रोशनी ना आए....बाजी को मोमबति और लॅंप की रोशनी ही पसंद थी....वो बाहर नही निकलती थी...लेकिन हर रात उसे भूक लगती थी और वो पागलो की तरह फ्रिज से कच्चा माँस निकालके उसे खाती थी...उसे जिस चीज़ की तलब थी वो खून जो उसे हरपल मेरी ओर खींचती थी मैने खुद एक बार अपने कंधे पे हल्का सा चाकू दबाया और जो खून बहा उसे पाने की हसरत में बाजी मुझपे टूट पड़ी और मेरे खून को चूसने लगी...पागलो की तरह दाँत गढ़ाने लगी लेकिन उनकी मुहब्बत उन्हें मुझे यूँ मार देना नही चाहती थी उन्हें जब अहसास होता तो वो अपनी आधे ही प्यास में मुझसे दूर हो जाती और पछताती कि ये मैने क्या किया उनके साथ? धीरे धीरे मेरा सबसे मिलना जुलना बंद हो गया सिर्फ़ सबको यही समझ आता कि मैं एक वीरान घर में रहता हू और मेरे साथ कोई नही रहता जबकि ऐसा नही था....हम दोनो घर में बंद रहते थे और जब मैं रात को आता तो बाजी मुझसे लिपट जाती मैं उनके लिए किसी तरह बकरे या मुर्गे का खून ले आता था मैं अपने घर में एक जानवर को पाल रहा था....धीरे धीरे मैं भी इसका आदि होने लगा बाहर नॉर्मल लाइफ जीता एक इंसान की तरह और घर में आके अपनी ही बेहन की तरह एक दरिन्दा बन जाता माँस के टुकड़ो पे नमक लगाके उसे खाता

और बाजी से लिपटके रात में उन्हें खूब प्यार करता एक रात बाजी ने आँखे खोली और मुझे सोता हुआ पाया...उनकी हिंसक भारी लाल निगाहें जल उठी और उनके दो नुकीले दाँत मुस्कान से बाहर आ गये...और उन्होने मुस्कुरा कर कब बिस्तर से उठके मुझसे खुद को अलग किया और कब निकल गयी पता ना चला...अचानक मैने खिड़की से किसी के कूदने की आवाज़ सुनी और मेरी नींद खुल गयी आँख खुलते ही बाजी सामने ना दिखी मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठा और चारो ओर कमरे की तरफ घरो में बाजी को खोजने लगा "बाजिी दीदी".......बाजी वहाँ नही थी मानो जैसे कहीं गायब हो गयी थी 

मैं बाहर की ओर भागा....खिड़की खुली हुई थी जो हवा से कभी बंद हो रही थी कभी खुल रही थी तेज़ हवा चल रही थी और मैं फ़ौरन कूद पड़ा दौड़ता हुआ जंगलों की तरफ भागा "बाजिी बाजीीइई बाजीी".......मैं चिल्लाता रहा चारो ओर के उड़ते चम्गादडो को उड़ते हुए देख सकता था इस घने जंगल में ना जाने कहाँ बाजी गायब थी.....मैं बाजी खोजते हुए जंगल के भीतर आ गया....और जब सामने देखा तो ठिठक गया बाजी अपने हाथो पे लगे खून को चाट रही थी पागलो की तरह उनके पूरे कपड़े और मुँह खून से तरबतर था ताज़ा खून वो भी किसी और का नही एक मरे हुए हिरण का...जिसका शिकार यक़ीनन बाजी ने कुछ देर पहले ही किया था
 
बाजी के चेहरे पे संतुष्टि देख कर मैं भागते हुए उनके करीब आया "बाजी ये सब क्या है? आप यहाँ इस वक़्त इस हालत में ये सब?"......मेरे सवाल को अनदेखा करके बाजी उठी और उसने अपनी उंगलियो से खून को चाट कर मेरी ओर देख कर मुस्कुराया "एक तलब उठती है मुझमें भाई जो मुझे खुद पे खुद शिकार करने पे मज़बूर कर देती है मैं तुम्हें नुकसान नही पहुचा सकती लेकिन जानवरों के खून से कही हद्तक मुझे अच्छा महसूस होता है मेरी खुराक पूरी हो जाती है"........बाजी की उन डरावमी बातों को सुनके मेरे चेहरे पे शॉक भाव तो थे ही पर एक डर दिल से उतर चुका था कि बाजी इंसान का तो कभी शिकार नही करेगी..बाजी ने अपने मन को दबा लिया था...मेरी बाजी एक जीती जागती पिसाच बन गयी थी

बाजी मेरे करीब आई और मुझे अपने साथ ले गयी....हम वापिस घर पहुचे मैं बहुत सोच में डूबा था ये सब उस अमल का किया धरा था....बाजी ज़िंदी हुई पर एक खुद पिसाच बनके उठ गयी वो कब बाथरूम में जाके शवर लेके नंगी ही टवल को लपेट के बाहर आई मुझे पता नही चला उसने एक ही झटके में अपना टवल उतार फैका उसके आँखो में वासना थी...."खून की वासना के साथ साथ जिन्सी की भी सख़्त वासना".....मेरा गला सुखता जा रहा था मैं उसकी खूबसूरती की तरफ खुद ब खुद उस सिचुएशन में भी उसके करीब जा रहा था 

और उसके बाद उसने मुझे बिस्तर पे धकेल दिया और मेरे उपर सवार हो गयी मैने अपनी आँखे मूंद ली

बाजी मेरे सामने मदरजात नंगी थी और वो होंठो पे ज़बान फिराते हुए अपने नुकीले दांतो पे भी वो ज़ुबान फेर रही थी....उसने एकटक मेरी ओर अपनी एकदम लाल आँखो से देखा और मेरे पाजामे को धीरे धीरे नीचे खिसका दिया...अमालि की हर एक बात दिमाग़ में गूँज़ी थी...पिसाच सिर्फ़ खून के भूके नही होते जिस्म के भी भूके होते है उनके अंदर हर वक्त बेहया और गंदगी की तलब उठती है हमबिस्तरी की चाहत होती है 

जबतक सोच में डूबा तब तक एक अज़ीब सा अहसास हुआ अपने लंड पे हुआ बाजी धीरे धीरे मेरे लंड को पूरा मुँह में लेके चुस्स रही थी और अपने नुकीले नाख़ून भरे हाथो से मेरे लंड को सख्ती से पकड़े भीच रही थी उसकी चमड़ी को उपर नीचे कर रही थी...उसके दाँत मेरे चमड़ी पे गढ़ रहे थे रगड़ खा रहे थे...लेकिन मुझे ये दर्द सहना था मुझे अपनी बाजी की हवस में ही मुहब्बत ढूँढनी थी उसमें खो जाना था

बाजी ने मेरे लंड को बहुत प्यार से चूसना शुरू किया और फिर बहुत ज़ोरो से वो मुझे अपनी लाल आँखो से देखते हुए ललचा रही थी मेरे सुपाडे पे ज़बान फेर रही थी लंड को हाथो में लिए उसे सहला रही थी....मैं लेटा लेटा आहें भर रहा था...कुछ देर बाद बाजी मेरे उपर से उठी और मेरे उपर चढ़ते हुए मेरे गाल गले सीने पे निपल्स पे सब जगह चूमती रही उसकी ज़ुल्फो को मैं अपने मुँह पे महसूस कर रहा था.....

उसके बाद उसने ताबड़तोड़ पागलो की तरहा मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया हम पागलो की तरह एक दूसरे से ज़बान भिड़ाते हुए बहुत ज़ोर ज़ोर से स्मूच करने लगे एक दूसरे के होंठो से होंठ गहराई तक मिल रहे थे...वो मेरी पीठ पे नाख़ून गढ़ाने लगी मेरे बदन से खुद के बदन को रगड़ने लगी बीच बीच में उसकी एक टाँग मेरे लंड के हिस्से पे रगड़ती...बाजी का जोश बढ़ चुका था मैने उसके सख़्त निपल्स को मुँह में लेके चूसना शुरू किया उसकी खूबसूरती निखर सी गयी थी उसकी चुचियाँ भी काफ़ी भारी हो गयी और गान्ड भी काफ़ी मोटी हो गयी...बाजी मुझे अपनी चुचियों को चुस्वाती रही मेरे मुँह पे अपनी चुचियों को रगड़ती रही 

मैने उन्हें अपने से अलग किया और फिर उनकी ज़ुबान से ज़बान लगाई और फिर उनके चूत पे हल्का सा चुम्मा जड़ा...बाजी कसमसा उठी...रात काफ़ी गहरी हो चुकी थी कहीं कोई जंगली जानवर हॉ हॉ करके रो रहा था...मानो जैसे एक साथ कितनी बलाओ को देख लिया हो उसने और यहाँ मैं एक जीती जागती पिसाच के साथ हमबिस्तर हो रहा था

उसका पूरा शरीर एकदम सफेद हो चुका था उसकी आवाज़ भी भारी सी हो गयी थी....बाजी मेरे सर को अपनी चूत के मुँह पे रखने लगी....मैने उन्हें पलट दिया और उनकी गान्ड की फांको से लेके चूत के मुंहाने तक मुँह डाल दिया...."आहह ओह आहह ससस्स आहह".....बाजी कसमसाती हुई हाथ नीचे करके अपनी क्लाइटॉरिस को रगड़ रही थी...और मैं उनकी गान्ड की फांको में मुँह डाले कुत्ते की तरहा उनकी गान्ड के छेद और सूजी चूत को चाट रहा था..फिर उसमें ज़ुबान घुसाके छेद को भी टटोल देता..मैं बाजी की गान्ड में मुँह रगड़ने लगा बाजी की चूत से लसलसाते हुए रस आने लगा जिसे मैं चाट रहा था

फिर उसकी गान्ड में एक उंगली धीरे से सर्काई...बाजी चिहुक उठी....फिर उस उंगली को गोल घुमाने लगा गान्ड का छेद चौड़ा होने लगा बाजी अपनी गान्ड हवा में उठा लेती....मैने उनकी गान्ड पे थूका और उसमें दो उंगली सरका दी...अब बाजी की गान्ड ढीली पड़ चुकी थी...मैने नीचे से उनकी चूत की दरारों को भी अंगुल करना शुरू कर दिया था बाजी बहुत ज़ोर ज़ोर से सिसकिया लेने लगी....मैने उन्हें फिर पलटा और उनकी गान्ड में उंगली करता हुआ उनकी चूत को चूस्ता रहा उसके दाने को चबाता रहा....बाजी मेरे मुँह को अपनी चूत पे दबाती रही

कुछ ही देर में बाजी ने अपना पानी छोड़ दिया ये पानी गाढ़ा था..इसका स्वाद उत्तेजना भरा नमकीन...मैने अपने लंड को सीधे ही चूत के मुंहाने में फसाया और कस के एक धक्का मारा...बाजी का मुँह खुला का खुला रह गया..और वो मेरे धक्को को सहती रही...मैं उनकी चूत में सटासॅट धक्के मारता रहा....वो लगभग गान्ड भींच लेती लंड के अंदर घुसते ही मैने उनकी चुचियों को फिर दबाना शुरू कर दिया इस बीच उनके होंठ मेरे होंठो के पास थे उन्होने फॅट से मेरे चेहरे को अपने हाथो में लेके मेरे होंठो से अपने होंठ लगा दिए 

हम पागलो की तरह एक दूसरे को चूमते रहे...फिर उसके बाद धक्को की स्पीड भी तेज़ हो गयी....चूत फ़च फ़च की आवाज़ निकालने लगी पर बाजी शांत कहाँ होने वाली थी....उसने मुझे लिटा या और खुद ही मेरे लंड को अपनी चूत पे अड्जस्ट करते हुए कूदने लगी "आहह आहह सस्स आहह"......वो ज़ोर ज़ोर से कूदते हुए सिसक रही थी...मेरे सीने को दबा रही थी....आज इतने दिनो बाद हम फिर एक हुए थे हमारा प्यार फिर अपने मुकाम पे आ गया था....बाजी चुदती रही सिसकती रही आहें भरती रही और मैं बस उसके आगोश में डूबा रहा

जल्द ही मैने खुद उनकी गान्ड भीच दी और उनकी गान्ड को अपने लंड के उपर दबाने लगा नीचे से अपने लंड को बहुत ज़ोर से उनकी गान्ड के अंदर बाहर करने लगा....बाजी चिल्ला रही थी और इतनी ही देर मे उन्होने मुझे कस के पकड़ा और अपना पानी फिर छोड़ दिया जैसे वो पश्त हुई मैने फिर उन्हें चोदना जारी रखा वो दहाड़ती रही उसकी आँखे लाल हो गयी दाँत बाहर निकल आए...वो कांपति रही झडती रही...मेरे उपर सवार रही जबतक मैं ना झड जाउ

फिर वही हुआ बाँध टूट गया और मेरे लंड ने ढेर सारा रस अपनी बाजी की गान्ड में छोड़ दिया बाजी की गान्ड और मेरा लंड दोनो रस से भीगते चले गये फिर भी मैं धक्के मारता रहा...और जल्द ही लंड फिसलके बाहर निकल आया...बाजी ने जल्दी से उठके मुझे बिठाया और मेरे पास झुकके मेरे रस छोड़ते लंड को मुँह में लेके चूसने लगी...मानो जैसे वो एक बूँद भी नही छोड़ना चाहती....उसका एक हाथ ज़बरदस्त तरीके से अपनी चूत पे उंगलिया कर रही थी

कुछ देर बाद उसने मेरे लंड के सारे रस को चूस लिया और फिर अपने होंठ पोंछे और फिर मेरे होंठो से होंठ लगाके मुझे लिटा दिया और खुद मेरे उपर टाँग रखके लेट गयी....कुछ देर बाद वो पश्त पर गयी उसकी आँखे लाल से काली हो गयी उसका रूप सामान्य हो गया..और उसके नुकीले दाँत ठीक वैसे ही अपने रूप में आ गये...वो मेरे छाती के बालों से खेलते हुए अपना सर मेरे छाती पे रखके सो गयी और मैं उसे अपनी बाहों में भरे बस अंजाम की फिकर करने लगा

दिन यूही बीत गये लेकिन बाजी के गर्भ में कोई बच्चा नही ठहरा या यूँ कह लो उन्हें कभी कोई बच्चा नही ठहरेगा वो एक मरी हुई इंसान थी एक पिसाच भला पिसाच को बच्चा कैसे ठहर सकता है?....उस दिन मम्मी पापा की बहुत याद आ रही थी बाजी भी उन्हें याद कर रही थी...पर मैं जानता था अगर वो हमे देख रहे होंगे तो चैन से नही होंगे उनके अंदर सख़्त गुस्सा और नफ़रत होगी कि मैने अपनी बाजी के साथ ये क्या किया? 

बाजी का बर्ताव बहुत बदल सा गया था जिससे मुझे डर सताने लगा...एकदिन बाज़ार चौक में किसी से बहस हो गयी थी बाजी को मैं रात के वक़्त ही बाहर ले आता था लेकिन उसे भीड़ भाड़ से घुटन होने लगती थी...लोगो से नज़र चुराती और मुझे फिकर होती थी...अचानक एक आदमी को ग़लती से मेरा धक्का लग गया उसने मेरा कॉलर पकड़ लिया "देख कर नही चल सकता".......मैने उसे धक्का दिया और उससे बहस हो गयी...बाजी जो मेरे संग खड़ी थी उसके अंदर ना जाने क्या होने लगा? वो उस आदमी की ओर बहुत गुस्से भरी निगाहों से देखने लगी ऐसे हालत में ना तो मैं वहाँ और कुछ देर रुक सकता था और ना ही मैं कुछ और कर सकता था...मैने बाजी को अपने साथ लिया और बिना पीछे मुड़े उसे शांत करते हुए भीड़ भाड़ से कोसो दूर ले जाने लगा

बाजी : उसकी हिम्मत कैसे हुई? उसे छोड़ूँगी नही मैं 
मैं : जाने दो गुस्सा थूक दो बाजी आओ चलें 

बाजी बस सख़्त निगाहो से कुछ सोच रही थी और मुझे उसके इस हिंसक बर्ताव से बेहद डर लग रहा था...आमाली की दी हुई वो किताब उस सब सामान को मैने जला कर गाढ दिया था..ताकि अब मैं ऐसे गुनाह का कोई दोबारा काम ना कर पाऊ...उस रात मौसम ठीक नही था तूफान का अंदेशा था...बाजी के साथ मैं बिस्तर पे लेटा हुआ था....कब नींद लगी पता नही

अचानक बाजी की आँख खुली और उसने मेरी ओर देख कर अपना हाथ हटाया....फिर धीरे से उठके बाहर निकल आई बहुत चालाकी से उसने खिड़की से छलाँग लगाई ताकि उसके भाई को पता ना चल सके...और फिर किसी जानवर की तरह इतनी रफ़्तार में रास्ते पे दौड़ने लगी कि पलक झपकते ही गायब दिखी...जब मुझे महसूस हुआ कि बाजी घर पे नही है तो मैं फिर उठ गया क्या वो फिर शिकार के लिए गयी?

मेरी सोच मेरे डर मुझपे हावी हुए जा रही थी...फ़ौरन टॉर्च लिया और जंगल का एक दौरा किया....बारिश घनी हो गयी...."बाअज्जिई बज्जिि शीबा बाजीी".....मैं सुनसान जंगल में चिल्लाते हुए आगे बढ़ रहा था...अचानक वापिस आया तो देखा कि रास्ते पर पाओ के निशान है...वो पाओ के निशान एक ओर ख़तम होते ही 10 कदम दूर शुरू हो रहे है....बारिश से निशान गायब हो रहे थे...मैने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और बहुत बारीक़ी से उस पाओ के निशान को देखते देखते रास्ते पे चलने लगा....जल्द ही मैं टाउन में था...यहाँ निशान गायब थे...मैं बाजी को हर ओर खोज रहा था डर सता रहा था कहाँ गयी मेरी बाजी कहीं कुछ हो तो नही गया? दिल में अज़ीबो ग़रीब ख़यालात आने लगे घबराहट से उल्टिया लग रही थी दिल कांपें जा रहा था

अचानक कुत्तो की रोने की आवाज़ सुनाई दी एक साथ इतने सारे कुत्ते हॉ हॉ करके रो रहे थे...मैने गाड़ी उसी ओर की और हेडलाइट्स को ऑफ किया...मैं धीरे से गाड़ी से नीचे उतरा अचानक मेरे पैर पे कुछ लगा जुतो की ओर जब देखा तो टॉर्च की रोशनी में दंग रह गया ताज़ा खून और ये खून गली के अंदर जा रहा था...."आअहह"......एक बहुत अज़ीब सी घुट्टी आवाज़ आई....बिजलिया कढ़क रही थी चारो तरफ बंद मार्केट था...कोई घर नही...मैने काँपते हुए गली के पास जाके झाँका....और जो सामने देखा उससे मेरी पैरो तले ज़मीन खिसक गयी मानो काटो तो खून नही

बिजली की गड़गड़ाहट में बीच बीच की रोशनी में मैने साफ देखा बाजी एक आदमी की गर्दन को एक हाथ से जकड़े उसकी गर्दन पे मुँह लगाए हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे उसके माँस को काट काट के उसके अंदर का सारा खून पी रही हो....अचानक बाजी ने उस बेजान शरीर को छोड़ा और उसके बाद इतनी ज़ोर का ठहाका लगाके हँसने लगी कि पूरा माहौल डरावना सा हो गया उसकी ठहाका लगाती आवाज़ उसकी सुकून भरी जीत को दर्शा रही थी मैं काँपते हुए गाड़ी में जैसे आके बैठ गया....दिल को पकड़े मुझे कुछ सूझ नही रहा था

ये मेरी बाजी नही हो सकती नहियिइ...कुछ देर बाद मैने देखा कि बाजी वैसे ही नंगे पाओ इतनी तेज़ी से दौड़ी कि पलक झपकते ही वो गायब काफ़ी देर तक मैं रुका रहा...मेरी गाड़ी से निकलने की हिम्मत नही थी...फिर भी एक एक पाओ बाहर रखते हुए भीगते हुए उस गली की तरफ पहुँचा वहाँ अब एक घना सन्नाटा छाया हुआ था...मैं पास आया उस लाश के पास...बिजलिया कड़क रही थी बार बार उसकी रोशनी में एक बेजान लाश सड़क पे पड़ी दिख रही थी उसने एक काला जॅकेट और जीन्स पहना हुआ था और उसके चारो तरफ खून ही खून मैने जब उस शक्स की ओर देखा...तो मैने मुँह पे हाथ रख दिया ये वही था वही आदमी जिससे बाज़ार में आज बहस हुई थी ..ओह क्या बाजी ने मेरे लिए उसे ये मेरे लिए किसी ख़तरे की बात थी वहाँ रुकना एक सेकेंड भी मुझे ख़तरे में डालने वाला था...मैने उसकी ठहरी आँखो में देखा जो सख़्त ख़ौफ्फ में शायद मारा हुआ था..और फिर उसके बेदर्द ज़ख़्म पे उफ्फ कितना गहरा...पिशाचिनी की तरह ही बाजी बन चुकी थी...मेरी एक दुआ दूसरो के लिए एक सज़ा बन जाएगी सोचा नही था

मैं उल्टे पाओ दौड़ा जल्दी से गाड़ी मे बैठ गया और फिर फ़ौरन तेज़ी से गाड़ी को घर की ओर मोड़ दिया....पूरे रास्ते डर और दहशत से मेरी आँखे काँप रही थी नींद उड़ चुकी थी सुबह के 3 बज चुके थे जब घर लौटा तो देखा सबकुछ वैसा ही था...पाओ के निशान गायब थे शायद बारिश से मिट गये हो..दरवाजा सटा हुआ था इसका मतलब बाजी आ गयी है और मुझे मौज़ूद ना देख कर शायद उसे समझ आ जाएगा...मैं डरते डरते कमरे में दाखिल हुआ चारो ओर अंधेरा था....कमरे की तरफ जब आया तो देखा बाजी गहरी नींद में बिस्तर पे आँखे मुन्दे सोई हुई है...मैं दिल को पकड़े वॉशरूम चला गया काफ़ी उल्टिया की एक डर सता रहा कहीं पोलीस ने कहीं लोगो को कुछ पूछा तो???

मैं अपने मुँह पे पानी मारके बाहर आया और अचानक देखा कि बाजी बिस्तर पे मज़ूद नही है वो कब्से मेरे पीछे खड़ी थी इस बात का मुझे अहसास नही उसके मुँह पे अब भी खून लगा हुआ था उसके नुकीले दाँत उसकी मुस्कुराहट से बाहर निकल आए थे मेरी आँखे भारी हो गयी और उसने उसी वक़्त मेरे एक लफ़्ज कहे बिना ही मेरे कंधे पे हाथ रखके मुझे ज़ोर से दीवार पे धकेल दिया और मुझसे एकदम लिपटके खड़ी हो गयी उसकी आँखे एकदम लाल थी उसके होंठो मे अब भी उसके शिकार का ताज़ा खून लगा हुआ था....उसने मेरी ओर बड़ी भयंकर निगाहो से देखा मेरा दिल काँप रहा था शायद बाजी मुझे उसी तरह मारने वाली थी

मैं एकदम से ठिठक गया...अब जैसे जिस्म एकदम बेजान हो चुका था...बाजी की ठंडी साँसें मुझे अपने चेहरे पे महसूस हो रही थी....उसके हाथ जो मेरे छाती और कंधे पे टिके हुए थे उससे मेरा पूरा बदन उसके ठंडे जिस्म की ठंडक से अकड़ रहा था...फिर अचानक वो ठंडे हाथ अपने आप मेरे चेहरे की तरफ आने लगे और फिर मेरे पूरे बदन को सहलाते हुए ठंड से कंपकपाते हुए मेरे चेहरे पे....मैने अपनी आँखे खोल ली थी उसकी ऊन भयंकर लाल निगाहो में भी मेरे लिए एक प्यार का अहसास एक दया दिख रही थी

"तुमने जान लिया ना भाई कि मैं कौन हूँ? क्या बन चुकी हूँ मैं? नही रोक पाती खुद को अपने अपनो पर किसी और के गुस्से को मैने सिर्फ़ बदला लिया"..........यक़ीनन उसने मेरे मन की बात पढ़ ली थी आम इंसानो से बिल्कुल हटके बर्ताव थे उसके 

"त..तुंन्ने म..मुझी की..उ मेरे लिए".....कहने को शब्द नही बन पा रहा था फिर भी दिल को मज़बूत करते हुए अपने डर पे खुद को काबू किया..."तुमने जो कुछ भी किया ये तुमने ठीक नही किया पर त..तूमम्मने आख़िर उसे मारा क्यूँ?"......

उसकी आँखे इधर उधर घूम रही थी मानो जैसा एक सवाल उसका भी हो

शीबा : म...मुझहहे समझ नही आया भाई बसस्स दि..ल्ल क..इया क..आइ उसे जान से मार दूं उसका खून मुझे अपनी ओर खींच रहा था और मैं खुद की तलब को नही रोक पाई

मैं : तुम्हें इस तलब को रोकना होगा प्लज़्ज़्ज़ तुम किसी और की जान नही लोगि प्रॉमिस मी प्रोमिस मी और अगर तुमने ऐसा किया तो मुझे मार देना

शीबा : भाईईईई (उसकी आँखे एकदम से गंभीर होके मेरी ओर देखने लगी जिन आँखो में सख़्त परेशानी और तक़लीफ़ दिख सकती थी जिन आँखो में खून एक जगह जमा होके लाल सा हो चुका था) आइन्दा ऐसा कभी मत कहनन्ना उस दिन मैं खुद को ख़तम कर लूँगी खुद को
 
ये मुहब्बत ही तो थी जो एक दरिंदे को एक इंसान से जोड़ रही थी ना ही मुझे ख़ौफ्फ था ना ही उसे मुझे मारने की कोई तलब फिर भी वो मेरे गले लग गयी और उसके आँखो से बहते खून के आँसू मेरे गर्दन पे टपक रहे थे...मैने उसे अपने से अलग किया फिर ना पूछो कि क्या हुआ? वही जो मुहब्बत के आगे होता है...एक दूसरे की आगोश में डूब के एक दूसरे से लिपटके अपने मनचाही मुहब्बत को अंजाम देना उस रात मैने शीबा बाजी के साथ खूब सेक्स किया और उनके अंदर की जिन्सी तलब को शांत करने लगा....उस रात कितनी बार मैं उन पर सवार था और वो मुझे नही मालूम बस इतना मालूम है आखरी बार चिड़िया की आवाज़ आ रही थी सुबह हो चुकी थी और हम कब्से इन अंधेरो में एक दूसरे के बिस्तर को गरम कर रहे थे

उस पूरे दिन बाजी मुझसे नंगी लिपटी बस एक चादर ओढ़े जिसके अंदर मैं भी मौज़ूद था बाजी से लिपटा सिर्फ़ बाजी के बालों पे हाथ फेरते हुए सोच रहा था मुझे अपने किए पे शर्मिंदगी थी कि कहीं ना कहीं बाजी की इस हालत का मैं ही ज़िम्मेदार हूँ...पर फिर भी हालात काबू किए जा सकते थे....बाजी रोज़ रात शिकार के लिए जंगल चली जाती थी और इंसानो से कोसो दूर रहने लगी....धीरे धीरे बाजी को अपनी प्यास पे काबू होने लगा था....लेकिन ना तो वो मज़ार जा सकती थी और सिर्फ़ दिल ही दिल में खुदा से अपनी इस शैतानी ज़िंदगी के लिए माँफी मांगती थी उसने मुझे कभी कोसा नही उलटे मेरी ग़लतियो को नादानी बताके अपने उपर सारी ग़लतियो का बोझ लिया....मैं बाजी से मँफी माँगना चाहता था पर बाजी मुझसे माँफी नही चाहती थी...मैने जो किया उसका खामियाज़ा ज़रूर भुगत रहा था...हमेशा कोई ना कोई नुकसान ज़रूर होता था पर मैं उस नुकसान को अपनी ही किए का ज़िम्मेदार ठहराता बस अल्लाह से दिल ही दिल में माँफी माँगता था....कि मरने के बाद चाहे वो मुझे कोई भी सज़ा दे...और धीरे धीरे हमे इस ज़िंदगी में जीने की आदत सी पड़ गयी 

बाजी भी धीरे धीरे नये कारोबार में मेरा साथ देने लगी....हमारा नया कारोबार काफ़ी अच्छे से चलने लगा....बाजी को कभी किसी से मिलने की ज़रूरत ना हुई सबकुछ मैं ही हॅंडल करता था....लेकिन कोई ये नही जानता था कि उनकी मालकिन एक इंसान नही थी...ये राज़ किसी को पता ना चल पाया था कुछ लोगो ने शक़ भी किया कि ये भाई बेहन का जोड़ा अकेले क्यू रहता है?.....लेकिन किसी की हिम्मत नही थी जानने को...उधर पोलीस ने काफ़ी तफ़तीश की और लाश की शिनाख्त में किसी जंगली जानवर का हमला बताया.....उन्हें कोई ख़ास शक़ तो नही हुआ था मेरी बाजी पे पर मुझे अपनी बाजी को उनकी निगाहों से दूर रखना था....बाजी ने मुझे समझाया कि फिकर करने की ज़रूरत नही उन्हें आभास हो जाता है अगर कोई ख़तरा पास हो और अब ऐसा कोई ख़तरा हमारे उपर नही था

बाजी भी अब इंसानो की तरह ज़िंदगी व्यतीत करने की कोशिश करने लगी हमारा कारोबार इतना बड़ा था कि अपने लोगों के दिलो में हमारी इज़्ज़त दुगनी हो गयी हमने एक खूबसूरत जगह पे बड़ा सा बंगला बना लिया....इस बार शायद खुदा का हम पर रहम आ गया था शायद उन्होने हमे मांफ कर दिया...मुझे बहुत खुशी थी अंदर ही अंदर पर कहीं ना कहीं मज़बूर था बाजी की कमज़ोरियो को लेके...धीरे धीरे साल बीतते गये और बाजी पूरी तरीके से जानवरों के ब्लड पे सर्वाइव करने लगी वो बहुत तेज़ इंटेलिजेंट हो गयी थी...कारोबार को भी वही आधे से ज़्यादा संभालने लगी थी...किसी की आँख में आने का कोई सवाल नही था...

धीरे धीरे मुझे इसकी आदत होने लगी लेकिन अचानक एक बढ़ते तूफान ने घर में दस्तक दी....एक अज़ीब सा दर्द बदन में होना शुरू हो गया ये दर्द आजतक तो नही हुआ था पर ये कैसा दर्द था....कभी कभी गुस्सा इतना उबल जाता कि कोई चीज़ को तोड़ देता इस बात को बहुतो ने नोटीस कर लिया था बाजी ने मेरी इस अज़ीबो ग़रीब हरक़त के लिए मुझसे जानना चाहा कि आख़िर मुझे हुआ क्या है? मैने उन्हें बताया कि ना जाने क्यूँ पर मुझे बहुत ज़्यादा अज़ीब सा महसूस होने लगा है आजकल . बाजी ने मेरी हालत को देखते हुए मुझे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी वो मेरे इस अज़ीब बर्ताव को महसूस करते हुए ही ख़ौफ़ खा जाती थी

डॉक्टर को मेरी बातों में कुछ अज़ीब महसूस हुआ उन्हें शायद मैं मानसिक रोगी लगने लगा था....और वो कुछ मेडिसिन्स देते जिनका मुझपे ना के बराबर असर होता हर पल बाजी के साथ कच्चे माँस का शौक और फिर हाथो के बल चलने की एक आदत इन सब को बाजी ने नोटीस किया...एकदिन ब्रश करते वक़्त दाँतों में अज़ीब सी ऐंठन हुई और जैसे ही मैने अपनी उंगली दाँत पे लगाई खच्छ से मेरी उंगली कट गयी और खून निकल गया...मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ये मुझे क्या हो रहा है? क्या ये सब अमल करने का नतीजा था? या फिर क्या मैं भी बाजी के साथ साथ खुद एक पिसाच बन रहा था....लेकिन मुझे तो ना दिन में धूप की रोशनी से बदन जलता महसूस होता और ना ही मुझे कुछ ऐसा फील हो रहा था जो बाजी को होता....एक रात बदन पे अज़ीब सी खुजली सी होने लगी बाजी को ठंडा करके मैं अभी करवट बदले सोया ही था कि मुझे महसूस हुआ कि मेरे पूरे बदन में कुछ काट रहा है जब मैने लाइट ऑन करके आयने के सामने खुद को देखा तो दंग रह गया

धीरे धीरे करके मेरे पूरे बदन पे बाल निकल्ने लगे थे चारो ऑर बगलो में छाती से लेके पेट पे पीठ पे इतने घने....मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ईवन मेरी दाढ़ी से लेके सिर के दोनो सिरो से जुड़ रहा था....मैने सोचा शायद ये मेरा वहाँ है एक बार नहाने के लिए शवर ऑन किया और खुद पे पानी बरसाने लगा....अचानक मेरे पूरे बदन पे जो गर्मी महसूस हो रही थी अब वापिस ठंडक महसूस होने लगी मेरे हथेली और इर्द गिर्द के बाल अपने आप झड्ने लगे...ये बहुत अज़ीब दृश्य था....मैं एकटक पानी में बहते फर्श पे गिरते उन बालों को देखने लगा और जब मेरी निगाह सामने की आयने पे हुई तो मेरी आँखो का रंग ऐसा था मानो जैसे किसी जंगली जानवर का हो और वो धीरे धीरे इंसानी आँखो में तब्दील हो गया मैने अपने मुँह पे हाथ रख लिया ये सब क्या था? आख़िर कार मन बना चुका था कि मुझे एक बार फिर उस आमाली से मिलने जाना होगा वही मुझे इसका तोड़ बता सकते है....क्या ये सब एक पिसाच के साथ हमबिस्तर होने से था या फिर अब मुझे खुदा के कहेर का सामना करना था...इन सब सवालो के साथ मैं दूसरे दिन आमाली के यहा पहुचा

आमाली चुपचाप मेरी बातों को गौर से सुनते हुए उठ खड़ा हुआ खंडहर के अंदर जल रही एक मोमबत्ती और चारो ओर की एक अज़ीब सी गंदी महक गूँज़ रही थी....उस वक़्त मैं पूरा पसीने पसीने हो रहा था....आमाली की आँखे यूँ गहराई में थी मानो जैसे उनसे ये सब कहीं उम्मीद ही ना किया हो...."जिस बात का डर था आख़िर वो सामने आ ही गया"..........आमाली की बातों ने मेरे दिल को ज़ोरो से हिला दिया

"यही कि तुम्हारे उपर धीरे लिलिता के अमल का प्रकोप आने लगा है....उसने तुम्हें तुम्हारी बेहन को ज़िंदगी के नाम पे एक पिशाचिनी तो बना दिया लेकिन उसका खामियाज़ा तुम्हें अब चुकाना है"...........आमाली की बातों ने मुझे सहमा दिया तो क्या इसका मतलब? अब मेरी मौत तय हो चुकी है ये सब जो कुछ हो रहा है

"सवाल का जवाब तो मैं तुम्हें नही दूँगा क्यूंकी जवाब तुम खुद खोज सकते हो सिर्फ़ यही कहूँगा कि आनेवाले उस प्रकोप को तुम्हें हर हाल मे सहना है...ये एक ऐसी रूह है जो तुमपे हावी हो रही है...तुम्हें एक जानवर बना रही है...जब जब तुम्हारे अंदर गुस्सा और बदले की आग पन्पेगि दहेक के उठेगी तुम वही बन जाओगे".......आमाली की उंगली मेरी ओर खड़ी हो गयी मैं चुपचाप बस अपने गाल और गले को पोंछ रहा था

"नहिी नहियिइ य..ई स..एब्ब नैइ ह..ना चाहिई".......मैं उठ खड़ा हुआ...."चले जाओ यहाँ से अब तुम्हारा इंसानो से कोई नाता नही रहा है तुमने जो रास्ता खुद इकतियार किया उसे अब तुम्हें खुद संभालना है जाओ चले जाऊओ".......आमाली की बातों ने मुझे गुस्सा दिला दिया और वो थोड़ा सहम उठा मेरी आँखे एकदम सुर्ख भूरी हो चुकी थी मानो जैसी किसी जानवर की आँख हो....मैं घुर्र्राने लगा...और खुद पे क़ाबू करते हुए बहुत तेज़ी से वहाँ से निकल गया.....आमाली बस हाथ फैलाए अल्लाह से माँफी माँग रहा था वो जानता था दोजख में तो उसे भी कल जाना है

मैं कितनी तेज़ी से दौड़ते हुए गाड़ी में बैठा और कितनी स्पीड में जंगल के रास्ते अंधेरे में गाड़ी को चला रहा था मुझे नही पता.....बस आवाज़ें गूँज़ रही थी कोई मेरे कानो में कुछ कह रहा था आँखे मुन्दता तो बाजी का चेहरा सामने होता वो मुझे बुला रही थी मुझे ढूँढ रही थी उसकी लाल आँखे और नुकीले दाँत मुझे दिख रहे थे....अचानक मैने सामने देखा एक भेड़िया खड़ा था मैने जल्दी से गाड़ी को दूसरी ओर मोड़ दिया और सटाक से गाड़ी ढलान से थोड़ी से नीचे जा गिरी...मैं एकदम से गश ख़ाके गाड़ी से बाहर निकल आया...अगर ज़्यादा गाड़ी ढलान क्रॉस कर जाती तो मैं मौत के आगोश में होता नीचे खाई थी
 
हाववववववव हावववव.....कुत्तो की रोने की आवाज़ें आ रही थी...जब उपर उठके आया तो चारो ओर एकदम गहरा अंधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था...रात मे झींघुर की आवाज़ आ रही थी इन खामोश वादियो में रास्ते पे जो भेड़िया देखा वो गायब था तो क्या ये मेरा वेहेम था....मैने गाड़ी को स्टार्ट करनी चाही लेकिन गाड़ी का एंजिन शायद बंद हो चुका था .....मैं उपर उठके आया और गाड़ी के टाइयर के सहारे पीठ किए ज़मीन पे बैठ गया..."या अल्लहह ये क्या हो रहा है मेरे साथ? क्यू मैं शैतान बन रहा हूँ?".......मेरे अंदर गुस्से की आग दहेकने लगी थी आँखे फिर से जलने लगी..और मैं उठ खड़ा हुआ ये क्या? ये मेरे पूरे बदन में फिरसे खुजली हो रही है...मैने अपने पूरे कपड़ों को जैसे तैसे उतार फैंका...उतारते ही मेरे पूरे बदन के बाल अपने आप बढ़ने लगे...मैं ख़ौफ्फ से चिल्ला उठा दाँतों में फिर ऐंठन सी होने लगी...सर भारी होने लगा...."आहह आहह आहह"..........मैं दहाड़ते हुए ज़मीन पे घुटनो के बल बैठ गया कुत्ते ज़ोरो से रो रहे थे.....मेरे हाथो के नाख़ून बढ़ने लगे मैं किसी जानवर में तब्दील हो रहा था...."हावववववववववव".........वो पूर्णिमा की रात थी जब चाँद बादलो से हटके मेरे सामने आया मैं उठके ना जाने क्यू भेड़िया की तरहा रोने लगा....मेरी आवाज़ से भेड़ियों की भी कहीं कहीं से रोने की गूँज़ सुनाई दे रही थी

धीरे धीरे मेरा पूरा शरीर ऐंठने लगा और मैं कब वहाँ से जंगलों के बीचो बीच से दौड़ता हुआ किसी साए की तरह भागा मुझे कुछ मालूम नही...."तुमने वो आवाज़ सुनी?"......पोलिसेवाले ने अपनी गाड़ी से बाहर झाँकते हुए उस आवाज़ को सुना 

"हां आजकल शहर में भी ऐसे क़िस्से देखने को मिल रहे है कुछ साल पहले भी एक आदमी को किसी ने बुरी तरीके से मारा था सूत्रो के मुताबिक कोई जानवर था जंगली जानवर"........"ह्म हो सकता है ये वही हो".....दोनो ने आपस में चर्चा किया

दोनो ने अपनी अपनी गन निकाल ली थी और जंगल के इलाक़े में टॉर्च मार रहे थे....सुनसान रात दूर दूर से कहीं क्सिी जानवर की रोने की आवाज़....उन्हें दहशत भी दिला रही थी.."मैं जाके देखता हूँ तू यही ठहर"........एक पोलीस वाला उतरके झाड़ियों के अंदर से होता हुआ उस आवाज़ पे गौर करते हुए जाने लगा "संभाल्ल्ल के"....पीछे से पोलीस वाला हिदायत देते हुए ज़ोर से बोला...धीरे धीरे घास पे ही उसे अपनी आवाज़ सुनाई देने लगी....गन उसके करीब ही थी...अचानक कोई साया एक ओर से दूसरी ओर काफ़ी ज़ोर से दिखता हुआ उसे महसूस हुआ वो चौंक उठा....वो उस साए के पीछे दौड़ा अचानक फिर एक साया उसके पीछे से गायब हो गया झडियो में "उफ़फ्फ़ हे भगवांन ये तो कोई!"....वो जान चुका था ये कोई बहुत ही तेज़ जानवर था और बहुत ही बड़ा उसके आकार से उसे पता लग गया "ज़रूर ये कोई जंगली जानवर है कोई शेर".........उसने अपने दोस्त को ना बुलाके खुद ही इस मामले को हॅंडल करना शुरू किया और उस पुराने तालाब के पास आया....पानी चाँद की रोशनी में उज्ज्वल था....धीरे धीरे वो तालाब के करीब गया वहाँ एक साया था जिसकी गर्दन पानी में थी 

पोलीस वाले ने अपनी टॉर्च जलाई और जैसे उस ओर नज़र दौड़ाई एक भयंकर जंगली भेड़िया ज़ुबान पानी पे फिराते हुए चाट रहा था...उसकी निगाह पोलीस वाले की ओर आई उसकी आँखे जो इतनी देहेक्ति आग जैसी सुर्ख भूरी थी उसे देखते ही वो टॉर्च उसके हाथ से छूट गयी उसने चीख कर एक बार उस जानवर के उपर फाइयर एकि ढ़चह आआआआअहह....इस आवाज़ को सुन वो गाड़ी के सामने खड़ा उसका दोस्त दूसरा पोलीस वाला भी धीरे धीरे जंगल के पास आया "शेखावत शेखावत".......वो उसे आवाज़ लगाते हुए उसी पुराने तालाब के करीब आया हाथ में गन थी जो काँप रही थी....जब वो उस ओर आया उसने देखा कि एक लाश लाहुलुहान एक ओर पड़ी हुई है....जिसकी गर्दन से खून बह के तालाब के पानी में जाके बह रहा है.....पोलीस वाला जैसे ही सहम्ते हुए मुँह पे हाथ रखके दूसरी ओर पलटा ही था उस पैड के उपर बैठा वो 6 फुट का भेड़िया अपने नुकीले दांतो से उसको ही घूर्र रहा था...."आआआआआअहह".......उस भेड़िया ने उसके उपर छलाँग लगाई उसके गले पे अपने नुकीले दाँत की पाकड़ बैठा दी...उस अंधेरी वादियो में एक बार बहुत ज़ोर से वो आवाज़ गूँज़ी थी और फिर सुनाई दी एक भेड़िए के आवाज़ हवववववववव....एक पत्थर के उपर इंसान से बने भेड़िए मे तब्दील आसिफ़ की वो आवाज़ गूँज़ी थी...

उसके बाद कब वो भेड़िया झाड़ियों में से ही गुम होके घर लौटा पता नही...अपनी लॅंप की रोशनी को कम करके आयने के करीब खड़ी शीबा अपने भाई का इंतेज़ार कर रही थी उसने सॉफ गौर किया कि आसिफ़ के फटे कपड़ों में आसिफ़ खून से लथपथ सीडियो से उपर दाखिल हुया.....जैसे ही दरवाजा खुला शीबा उसकी तरफ देखी उसके पूरे बदन पे लगे खून को सूंघते हुए उसकी ओर अज़ीब निगाहो से देखने लगी...."ये सब क्या हुआ?"......शीबा की खून से तलब जाग तो रही थी लेकिन उसे अपने भाई का यह हाल देख बेहद सवाल थे

आसिफ़ वही बैठके रोने लगा..."ये सब क्या हो रहा है? क्यउउू कर रहा हूँ मैंन्न्न् मैने जो किया गलात्त्ट"........आसिफ़ रोने लगा उसके चेहरे के आँसुओ को पोंछती हुई शीबा की आँखो में भी खून के आँसू घुलने लगे "धीरे धीरे ये दरिंदगी बढ़ती जाएगी मेरी शीबा बाजी मैं भी एक दरिन्दा बन जाउन्गा और बन गया हूँ दो खून किए मैने ये मैने क्या किया? ये कैसी तलब है बाजीी".......

बाजी ने मुझे उठाया और मेरे बदन पे लगे हर खून के कतरे को अपनी उंगलियो पे लेके चाटने लगी उसमें इंसान का स्वाद था...."आओ तुम डरो नही ऐसा होता है कभी कभी हमे अपने असल रूप के साथ ज़िंदगी बितानी पड़ती है आओ".........उसके बाद बाजी मुझे नहलाने ले गयी बाजी ने मेरे पूरे बदन को पानी से सॉफ किया मेरे बाल को झड्ते देख बदन से उसे भी महसूस हुआ कि मैं क्या बन चुका हूँ?.....जैसे ही मेरा गुस्सा शांत होता है मैं वो दरिन्दा नही रहता और ...बाजी ने कहा की अब हमे दुनिया की नज़रों से कहीं दूर चले जाना चाहिए....पर मुझे वक़्त चाहिए था ताकि मैं इस नये रूप को काबू कर पाता इसका कोई तोड़ नही था झेलना तो हर कीमत पे था इसे...मैं नहा कर कब बिस्तर पे आके पस्त होके सो गया बाजी की बाहों में पता नही...बाजी भी फ़िकरमंद थी उन्हें भी एक डर सता रहा था

धीरे धीरे मुझे अपनी मालूमत का आहेसस हुआ मैं क्या बन चुका हूँ?...आमाली की बातों को गौर करते हुए जब नेट पे सर्च किया तो पाया कि लिलिता का असल गुलाम एक भेड़िया होता है..जो उसका सारा काम करता है उसकी क़ैद में रहता है....तो इसका मतलब जो कामयाबी मैने हासिल की उसके बाद ही मुझे ये रूप एक शाप के तौर पे दिया गया या यूँ कह लूँ खुदा का यह मुझपे कहेर था....मैं अपनी सज़ा को कबुल करने के लिए राज़ी था....बाजी हर बात का ध्यान रखती कि मुझे सख़्त गुस्सा ना आए....मैने धीरे धीरे अपने इस नायाब रूप पे काबू करना शुरू कर दिया ये मुस्किल ज़रूर था पर अगर मुहब्बत साथ हो तो हर जंग आसान है....उधर पोलीस भी अपने कर्मचारियो की मौत से आग बाबूला हो उठी पूरे शहर में जंगली जानवर की तालश होने लगी जो गये रात को लोगो का खून पीता है और उन्हें बेरहमी से मार देता है अब ये शहर सेफ नही था हम दोनो के लिए शक कभी भी हम पर आ सकता था

एक रात बाजी ने मुझे उठाया "चलो शिकार पे चलना है"..........हम अपने खाने के लिए एक नया रास्ता इकतियार कर चुके थे गये रात को जंगल में शिकार करने के लिए...हम दोनो बाहर निकल आए....लेकिन हम नही जानते थे कि पोलीस ने भी अपनी ख़ुफ़िया पोलीस को हमे पकड़ने के लिए लगाया था....जनवरो के खून पे ही हम सर्वाइव कर सकते थे एक यही रास्ता था....यक़ीनन इससे हमारी प्यास तो भुजती थी पर एक यही रास्ता था...अचानक एक हिरण दिखा और बाजी अपनी लप्लपाती ज़ुबान के साथ उसके पीछे दौड़ी...उसकी इतनी तेज़ी थी कि पालक झपकते वो हिरण के बिल्कुल नज़दीक जा रही थी.....अचानक मुझे कुछ आभास हुआ और मैं चिल्ला उठा "बाजीीीइ रकूओ"........

"शूट फाइयर"..........झाड़ियो में छुपे हमारे लिए जो जाल पोलीस ने बिछाया था उसमें फस गये थे हम......धड़ध धढ़ करके आर्मी के 4 जवान पोलीस कर्मी के साथ बाजी की ओर गोली चलाने लगे....बाजी जल्दी से एक पैड पे चढ़के छुप गयी उसके नुकीले दाँत बाहर निकल आए मेरा गुस्सा दहक उठा

"आआहह".......मैं उन लोगो की ओर बढ़ा उन लोगो ने मुझे घैर लिया था...बाजी हमला करना चाहती थी उनका सवर का बाँध टूट रहा था..."कौन हो तुम लोग? कहाँ से आए हो?".......वो लोग मुझे ऐसी निगाहो से देख रहे थे मानो मैं उन्हें कोई पागल नज़र आ रहा था...हमारा राज़ खुल गया था....अचानक कहीं दूर चाँदनी रात की रोशनी मुझपे पड़ी "जीना चाहते हो भाग जाओ".........

एक पोलीस वाला हंस के मेरे पास आया "साले हमे डरा रहा है पोलीस को"....उसने आगे आकें मुझे थप्पड़ मारा ही था कि बाजी एकदम से हवा की भाती उड़के उसके करीब आई और पलक झपकते ही उसे सबकी निगाहो से उड़ा ले गयी..."आआआआअहह"......एक चीख गूँज़ी....मैं जानता था बाजी उसके गले की नस फाड़के उसका ताज़ा खून पी चुकी थी

"हववववववववव"........मेरी इस अज़ीब हरक़त को देख वो पोलीस वाले और आर्मी के जवान थर्र थर्र काँपते हुए पीछे होने लगे

उसके सामने ही मेरी आँखे और शरीर तब्दील होने लगा....वो लोग बस कांपें जा रहे थे..."गनीमत चाहते तो भागगग जाऊओ".....मेरी घूंटति आवाज़ भारी होने लगी और मैं किसी भेड़िए की तरह घुर्राने लगा....जल्द ही उनके सामने एक भेड़िया था "फाइयर".....उन लोगों ने शूट करना चाहा...पर मैं उन पर हमला कर चुका था...किसी का हाथ चीर के उखाड़ दिया तो किसी के गले से ही उसकी गर्दन को अपने दांतो में क़ैद कर लिया ..."भागूऊ भागगूव".........वो लोग अब तक अपनी गाडियो तक पहुच भी पाते सामने बाजी उनके खड़ी थी....एक पिसाच को देख कर वो लोग बहुत डर चुके थे और उसके बाद फिर कितनी बेरहेमी मौत से बाजी ने उन्हें मारा नही पता बस चीखें गूँज़ रही थी....इंसानो ने शैतानो को बुलावा भेजा था....जल्द ही चारो ओर कटी लाषे थी....बाजी मेरे इस नायाब रूप को देख कर मुस्कुराइ और उसने मुझे अपने गले लगा लिया...

भेड़िया उसका मुँह चाटने लगा उसके चेहरे पे अपना मुँह रगड़ने लगा...बाजी उसके बालों से खेलने लगी "चलो हमारा शिकार हमे मिल गया है जल्दी से कहीं खंडहर में आज रात बिता लेते है चलो मेरे साथ"........ना जाने बाजी मुझे कहाँ ले जा रही थी और मैं उनके पीछे पीछे ऊन्ही की तरह तेज़ी में दौड़ते हुए जंगल के किस ओर से निकलके दूसरी ओर दौड़ा.....जल्द ही हम एक पुराने से खंडहर के सामने थे जो यहाँ का पुराना कब्रिस्तान था....बाजी मेरे पंजो को पकड़के अपने साथ उस खंडहर में ले आई.....बिजलिया कडकने लगी और चारो ओर बारिश झमा झम शुरू हो गई...हूओ हो करती हवाओ का शोर गूँज रहा था बाजी को ये आधी रात के वक़्त की बारिश बहुत पसंद थी कब्रिस्तान में एकदम वीरानी छाई थी....क़बरो के बीच से चलते हुए हम कब खंडहर के अंदर दाखिल हुए पता नही चला
 
बाजी एक क़बर के उपर बैठके मेरी ओर निगाह डाले मेरे इस नये रूप को अपनी आँखो से सेकने लगी...."ऐसा लगता है जैसे कितना पुराना रिश्ता हो हम दोनो के बीच आओ मेरे भीइ समा जाओ मुझ में"..बाजी की खून लगी नाइटी को उसने एक झटके में फीता खोलके अपने बदन से अलग कर दिया.....अब वो मेरे सामने एकदम नंगी थी एक नंगी पिसाचनी मरी हुई औरत का जिस्म जो खूबसूरती का कहेर ढा रहा था....भेड़िया अपनी ज़ीब निकाले उसकी चूत के करीब आया और उसे चाटने लगा "आहह बॅस धीरी से आहह".......स्लूर्रप स्लूर्रप की आवाज़ उसकी ज़बान से आ रही थी और वो अपनी बाजी की ही फुद्दि को चाटने लगा उसमें मुँह डालने लगा....वो और पागलो की तरहा उसे चूस रहा था उस जानवर के रुए से शीबा बाजी खेल रही थी 

कुछ देर बाद बाजी कसमसाने लगी और उसे अपने से अलग किया उसकी चूत पूरी गीली हो चुकी थी...एक मेहेक्ति रस छोड़ रही थी....आम औरतो से भी कयि लज़्ज़तदार....उसने उस भेड़िए को उठाया और फिर उसके पंजो को सहलाते हुए उसके रोएँ से नीचे हुए पेट के नीचे झूलते उस मोटे भारी लंड को हाथो में लेके मसलना शुरू किया....वो धीरे धीरे अपने आप रूप में आने लगा बाजी ने उसे मुँह में लेके चूसना शुरू कर दिया ....भेड़िए की गुर्राहट आवाज़ पूरे खंडहर में गूँज़ रही थी...बाहर बिजलियो की गड़गड़ाहट सुनाई दे रही थी

खूब ज़ोर ज़ोर से बाजी उसका लंड चुस्स रही थी....उसके मुँह से लंड के निकलते लसलसाते रस को गले से होते हुए ज़मीन पे बिखेर रही थी....उम्म्म्म बाजी उस भयंकर भेड़िए के चेहरे को देख कर मुँह में भरके उसके अंडकोषो को भी चूस रही थी.....कुछ देर बाद उसने लंड को मुत्ठियाना ज़ारी रखा और उस मोटे लंड के लिए क़बर पे लेटके हल्का सा मुस्कुराइ....उसके नुकीले दाँतों की बीच की ज़ुबान भेड़िए की ज़ुबान से टकरा गयी और दोनो एक दूसरे की ज़ीब को चूसने लगे....बाजी उसके एक एक दाँत को ज़बान से चाट रही थी और वो भी बाजी के पूरे होंठो को चाट रहा था चूस रहा था मुँह में ज़ीब डाल रहा था....उसके बाद वो पंजो के बल बाजी के कंधे पर दोनो हाथ रखके अपना मोटा लंड चूत के उपर रखा

बाजी ने उसे अड्जस्ट कर लिया "आहह ये मिलन होने दो भाई मुझे तुम्हारा ये रूप चाहिए".........बाजी ने मेरे लंड को महसूस किया और मैने धक्के देने शुरू कर दिए..."आहहह सस्स आहह".......बाजी चिल्लाती रही उसके नुकीले दाँत हँसने से बाहर निकल आते...भेड़िया घुर्राते हुए उसकी चूत मारे जा रहा था उसका मोटा लंड ठंडे खून भरे जिस्म के अंदर बाहर हो रहा था...."आहह स आहह सस्स आहह"......बाजी भी आहें भरती रही आँखे उसने मूंद ली....और फिर भेड़िया ज़ोरो से बाजी की फुददी मारता रहा....मारते मारते उसके धक्के तेज़ हो गये और बाजी ने उसके पीछे की पूंछ को सहलाते हुए उसकी गान्ड के उपर दबाव दिया और वो झुकके बाजी की चूत में धक्के पेलता रहा

कुछ देर बाद वो घुर्राते हुए अपना रस छोड़ता लंड बाजी की चूत से निकालके बाजी की चुचियों पे और मुँह पे झड़ने लगा....बाजी उसकी एक एक बूँद को चाट रही थी फिर जब वो पष्ट हो गया तो उसके रस छोड़ते लंड को फिर से मुँह में लेके चूसा.....उसके बाद ज़ीब से पूरे गीले लंड को सॉफ किया उसने भी बाजी के निपल्स पे ज़बान फिराई और उसे काँटा दोनो चुचियों को अपने पंजो से दबाया और पूरे पेट से लेके चुचियों पे ज़ीब फिराई उसे चूसने की कोशिश की....बाजी ने उसे उठाया और उसके सामने कुतिया बन गयी....उसकी गान्ड की फांको के बीच भेड़िया ने मुँह लगाया और उसके छेद को चाटने लगा...बाजी सिहर उठी उसने अपनी गान्ड इस जानवर के लिए ढीली छोड़ दी थी...भेड़िए की लार और थूक से छेद पूरा गीला होने लगा था...भेड़िया ने अपने एक लंबे नाख़ून भरी उंगली उसके छेद पे लगाके उंगली अंदर की बाजी को सख़्त जलन हुई पर वो मीठे दर्द की आहें भर रही थी 

फिर उसके बाद जल्द ही उसे अपने छेद पे एक मोटे चीज़ का अहसास हुआ...भेड़िया अब उसपे चढ़के अपने लंड उसके छेद के उपर फिराते हुए अंदर डालने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...जल्द ही लंड गान्ड के द्वार में धस्ता चला गया और फिर बाजी ज़ोर से दहाड़ उठी....कुछ देर में लंड सततत गान्ड से अंदर बाहर होने लगा गान्ड का छेद इतना फटके चौड़ी हो गयी थी कि लंड आराम से भीतर तक जा रहा था और बाहर आ रहा था....."हववववव"........भेड़िए की आवाज़ पूरे खंडहर में गुंज़्ने लगी वो अपने चेहरे को उठाए बार बार हाउलिंग करते हुए सतसट धक्के बाजी की गान्ड पे मारता रहा...उसने बाजी के सख्ती से दोनो कुल्हों को अपने पंजो से पकड़ रखा था बाजी के दोनो ओर जो नाख़ून लगे थे उससे रिस रिस के काला खून बह रहा था...बाजी बस मीठी सिसकारिया लेते जा रही थी "औरर्र ज़ोरर से आहह और्र्रर आअहह"......उसकी जिन्सी भूक इतनी बढ़ गयी थी कि उसे अपने इस ख़तरनाक जानवर का भी ख़ौफ़ नही था

इस वीरानयत में खामोशियो में दो डरावनी आवाज़ें कब्रिस्तान के खंडहरो में गूँज़ रही थी जो कि इंसानो की नही बल्कि एक पिसाच और एक दरिंदे की थी जो एक दूसरे से मिलन कर रहे थे....जल्द ही बाजी को गरम गरम अपनी गान्ड में अहसास हुआ और फिर काँपते भेड़िए को देख उसके पंजे को सहलाने लगी जो सख्ती से उसकी गान्ड को भीचे हुए था....जल्द ही गान्ड से लबालब भेड़िए का गाढ़ा रस गिरने लगा बाजी वैसे ही पष्ट पड़ी लेटी रही और जल्द ही अपने लंड को झाड़ते हुए भेड़िया अपने रूप से तब्दील होते हुए इंसानी रूप में आ गया आसिफ़ अपनी बाजी की गान्ड मे लंड को निचोड़ते हुए उसके बगल में आके लेट गया और दोनो एक दूसरे से लिपटके कब्र के ही उपर सो गये...

अब महसूस हुआ कि रात ढल चुकी है और सुबह की हल्की हल्की रोशनी खंडहर के अंदर पड़ रही है...तो एक बार जाग के खुद से लिपटी नंगी बाजी को अपने से अलग किया और फिर बाहर निकलके चारो ओर देखने लगा सुबह होने वाली थी...सूरज अभी निकला नही था....मैने झट से बाजी को अपनी बाहों में भरा और कब उसी सुबह 4 बजे की हल्की रोशनी में जंगलो ही जंगलों से बाजी को घर लाया पता नही....वो तब भी सो रही थी जब मैने उन्हें अपनी बाहों से वापिस बिस्तर पर रखते हुए पीछे मुड़ा तो उन्होने मेरे हाथ को कस कर पकड़ लिया मैने मुस्कुरा कर उनके माथे पे एक किस किया और फिर अपनी उंगली छुड़ा कर बाथरूंम मे नहाने चला गया...कल रात का वाक़या एक बार फिर मेरे ज़हन में उतर गया...इस बार मुझे पछतावा नही था बल्कि ये महसूस हुआ कि ज़िंदगी को जीने के लिए कभी कभी जान लेने वाले जानवरों को मारना ही पड़ता है यहा मैं जानवर था वो इंसान थे जो मुझे जानवर समझने की भूल कर रहे थे...और अगर कोई भी मेरी बेहन और मेरे बीच आएगा उसका भी यही हश्र होगा 

बाजी को दिन में सोने की आदत थी....मैं अपने कारोबार को संभालने के लिए काम पे निकल गया एक काग़ज़ पे लिख दिया कि मैं जल्द ही आ जाउन्गा वो फिकर ना करे...और बाहर ना आए....बाजी वैसे ही अंधेरे कमरे में करवट बदले आँखे मुन्दे सो रही थी....मैने बाजी के नंगे शरीर पे एक चादर ढक दी....और मैं वहाँ से निकल गया......शहर में तो ये हादसा आग की तरह फैल गया कि पोलीस की एक टुकड़ी फ़ौजी के साथ बीचो बीच जंगल में मरी पड़ी मिली....सबकी बेरहेमी मौत को जानने पर शहर के लोग और भी ख़ौफ़ में पड़ गये...क्यूंकी मौत किसी इंसान से नही बल्कि एक घातक जानवर से हुई थी दाँतों के काटे निशान गले पे थे उनके और किसी के हाथ तो किसी का पैर अपने जिस्मो से अलग था खून बेतहाशा था

प्रशासन को जवाब देना भारी पड़ा...हर तरफ इस शहर में हुए इन दो हादसो की बात फैल गयी पहली दो पोलीस कर्मी की बेरहेमी से मौत और फिरसे उन पर किए जा रहे स्टिंग ऑपरेशन में भी उनकी मौत हो गयी थी कोई जंगली जानवर था जो जंगल में रहता है और कोई भी आस पास की बस्ती पे हमला करके उन्हें मार डालता है...सबकोई ख़ौफ़ में था....प्रशासन ने सबसे विनती कि कोई भी रात 12 बजे के बाद अंधेरे में ना तो बाहर निकले और ना ही जंगल की तरफ़ जाए....वो उस जानवर को ढूँढ निकालेगे.....ये सब जानके मुझे बेहद फिकर हुई क्यूंकी लपेटे में बाजी ही आनेवाली थी उनके और वो लोग यक़ीनन बाजी को जब देख लेंगे तो उन्हें जान से मारें बिना नही छोड़ेंगे...बाजी क्या थी? इस वजूद को तो सिर्फ़ मैं जानता था हालाँकि बाजी को अब ख़तम करना इतना आसान नही था उन इंसानो के पास लेकिन ये काम मुझे खुद निपटाना था

जंगल में इन्वेस्टिगेशन शुरू हो गयी....लेकिन उन्हें कोई सुराग ना मिला..हालाँकि एक बाघ को मारके उन्होने सोचा कि शायद यही उनका शिकार है पर शायद वो लोग बेवकूफ़ थे क्यूंकी कोई बचा तो नही था जो उन्हें हमारा सुराग दे पाता....लेकिन मैं जानता था ये इंसान धीरे धीरे मेरी बाजी के पास पहुचने के लिए कोई भी हद तक जा सकते है....और इस बीच वो हुआ जो मैने सोचा भी नही था

मैं हर रात इसी लिए चौकन्ना होके अपने घर के चारो ओर एक बार चक्कर लगाता कि कहीं शायद कोई इंसान हम पर तो नज़र नही रख रहा....रोज़ रात बाजी को मैने बाहर निकलने से मना किया था ताकि उन्हें कोई प्राब्लम ना फेस करनी पड़े....हर रात शिकार के लिए मैं खुद निकल जाता था...ताकि पुलिस की नज़रों में वो ना आ सके....लेकिन मैं जानता था वो हम पर नज़र रखने की नाकाम कोशिश कर रहे थे...
 
"साहेब ये है वो बाबा"..........पोलीस इनस्पेक्टर ने एस.पी के सामने उस आमाली को खड़ा कर दिया...."ह्म्म्म तुम क्या जानते हो? और यहाँ क्यूँ आए हो?".......एस.पी ने इस केस को खुद ही अपने हाथो में ले लिया था...

."आप लोग कुछ नही जानते सिर्फ़ यही समझते है कि महेज़ इंसान ही ऐसी चाल चलता है...लेकिन उससे भी दुगनी ताक़त है और वो है शैतानो की"......

.एस.पी झल्ला उठा "व्हाट नॉनसेन्स? तुम कहना चाहते हो कि ये सब काम किसी भूत पलित का है".....एस.पी कुछ मानने को तय्यार नही था उसे सिर्फ़ इस ढोंगी बाबा पे निहायत गुस्सा आ रहा था

"सच बताओ क्या कहना चाहते हो? वरना".................

.आमाली एस.पी की बात पे हँसने लगा "वरना क्या? क्या कर लोगे तुम मेरा? अगर सच जानना है तो गौर से सुनो और एक लव्ज़ ना कहना"........आमाली बताता चला गया उस सच्चाई को और एस.पी और बाकी खड़े ऊन पोलीस के माथे पे पसीने छूटते चले गये....

.............................

उस रात भी मैं जंगल के किनारे आया...चारो ओर खामोशियाँ छाई हुई थी...अचानक नथुनो में जैसे कोई महेक लगी...ये कच्चे माँस की महेक थी...मैं ना चाहते हुए भी उस ओर आया...मेरे अंदर का जुनून फिर मुझपे हावी होने लगा....

"सा..अहीब्बब वो देखिए वो आ रहा है".

..इस बात से बेख़बर कि ये इंसानो की फिर एक घिनोनी चाल थी...लेकिन वो ये नही जानते थे कि मैं उनसे ज़्यादा शातिर था सामने कच्चे माँस का टुकड़ा पड़ा हुआ था..जिसे सूंघते हुए मुझे इंसान की गंध भी मिल गयी थी 

मैने झाड़ियों की ओर देखा और इससे पहले मैं करीब जा पाता "फाइयर".....धधड़ धधह करते हुए चारो ओर रोशनी जला दी गयी और मुझपे फाइरिंग शुरू हो गयी उनकी गोलियो से बचते हुए मैं जंगल के अंदर भागने लगा....मैं जानता था इन लोगो ने मुझे देख लिया है और अब मारे बिना नही छोड़ेंगे...उनके साथ कुत्ते भी थे जो डर से मेरा पीछा नही कर पा रहे थे बस रोए जा रहे थे...एस.पी अपने साथियो के साथ हम पर हमला करने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...लेकिन अचानक उन्हें ये ईलम ना हुआ कि मौत उनके लिए उन्हें खीचते हुए जंगल मे ला रही थी एक के बाद एक पलक झपकते ही उनके आदमी गायब होते गये और सिर्फ़ छूट गयी लाशें पीछे...

जल्द ही मैं पहाड़ के करीब आ गया ऊन लोगो ने मुझे घेर लिया वो लोग कांप ज़रूर रहे थे पर उनके पास कोई चारा नही था...उनकी आँखो मे मेरे लिए दहशत थी."आआअहह"......मैं दहाड़ते हुए उन पर टूट पड़ा गोलिया मेरे बदन को छूती चली गई एक ही पंजे में मैने एस.पी को मार डाला...लेकिन मुझे अपने बदन के दूसरी ओर गुप्ती का अहसास हुआ एक बंदे ने पीछे से मेरे बदन पे गुप्ती घुसा दी थी...मैं दहाड़ता हुआ दर्द से उसकी गर्दन दबोच चुका था...अब उनके हाथ में गन थी और उन्होने अभी गोलिया चलाई ही थी कि पीछे से बाजी ने उन्हें गर्दन से पकड़के हवा में ही फैक दिया....और उसके जिसने मुझे गुप्ती घुसाई थी उसकी गर्दन को मैने तोड़ दिया और उसके गले की नस को अपने दांतो से काट लिया वो वही तड़प तड़प कर मरने लगा बाजी ने मेरे ही सामने दोनो पोलीस कर्मी की गर्दन को पकड़ के उनकी गर्दन पे काटते हुए उनका ताज़ा खून पी लिया.....जो बचे पोलीस कर्मी थे वो भागने को हुए पर अब मेरे हाथो से सिर्फ़ उन्हें मौत ही नसीब होने वाली थी

जबतक मैने उन्हें मार डाला तब तक बाजी की एक चीख सुनाई दी...जब मूड के देखा तो बाजी के पेट से गोली आर पार हो चुकी थी और उनका हाथ खून से सरॉबार था काला खून...वो मेरी ओर कांपति निगाहो से देख रही थी...."आआआअहह"........मैं दहाड़ते हुए बाजी के करीब आके उन्हें अपने आगोश में ले लिया "हववववववववववव".......और एक बार फिर पूरे जंगल में मातम मना रहे उस भेड़िए की आवाज़ गूँज़ उठी 

सामने आमाली एक पोलीस ऑफीसर के साथ था जो मुझे डरी निगाहो से देख रहा था इससे पहले वो मुझपे वार कर पाता मैने उस कॉन्स्टेबल को एक ही बारी में गर्दन से सर काट के अलग कर दिया....आमाली सहम उठा "म...मुझहहे मांफफ्फ़ कर्र दूओ मांफफ्फ़ कर दूओ"........वो एक हिंसक भेड़िए के आगे झुक कर अपनी ज़िंदगी की भीक माँग रहा था...लेकिन बहुत देर हो चुकी थी मैने उसकी गर्दन अभी दबोची ही थी और बाजी ने उसकी गर्दन पे काट लिया वो तड़प्ता रहा छटपटाता रहा पर उसे अपने किए की तो सज़ा मिलनी ही थी....हो हो करती हवाओं के शोर में एक तूफान था....पहाड़ से एक मोटा बर्फ का ढलान गिर रहा था.....ये बर्फ़ीली तुफ्फान था...मैं बाजी के करीब आ पाता इससे पहले ही तूफान के लपेटे में हम दोनो आ गये...चारो ओर बस लाशें थी....मुझे कुछ दिखाई नही पड़ रहा था...."आसिफफ्फ़ आसिफफफफफफफफफफ्फ़"......बस एक ज़ोर की गूँज़ उठी वो आवाज़ और उसके बाद बर्फीला तूफान पहाड़ से ना जाने कहाँ बाजी गिरी कुछ मालूम नही...मैं वापिस अपने रूप में आने लगा था "बाजीीइईईई"........बस मैं सिर्फ़ चीख ही पाया क्यूंकी उसके बाद ना तो बाजी मुझे मिली और ना ही कोई और सबूत मिल सका..मैं बस उस तूफान में जैसे तैसे खोता चला गया शहर जाना आसान नही था.....क्या पता? पोलीस की टुकड़ी हमारे घर तक पहुच गयी हो और हमारे बारें सबकुछ मालूमात कर लिया हो

मैं बस चीखता चिल्लाता रहा लेकिन बाजी का मुझे कोई सबूत ना मिला...उस काली घाटी के बर्फ़ीले तूफान में मैं ना जाने कहा बेहोश होके गिरता चला गया....उसके बाद आँखे जैसे डूब सी गयी मानो जैसे अब कभी ना खुलेगी

"बज्जििइईई".......मैने एक बार फिर अपनी आँखे खोली उस भयंकर सपने से उठ चुका था...मैं इतनी ज़ोर का चिल्लाया था कि मेरी आवाज़ कमरे के चारो ओर गूँज़ उठी...वो बर्फीला तूफान बाजी की वो चीख सबकुछ गायब था....मैं एक कंबल ओढ़े कब्से नंगे बदन बिस्तर पे सोया हुआ था पता नही मेरे माथे पे लगी पट्टी और बदन के चारो तरफ लगी पत्तियो के एक तरफ खून का एक बड़ा सा धब्बा बन चुका था जो सुख गया था...अचानक एक ख़ान ड्रेस पहने गोल टोपी पहने दाढ़ी वाला शक्स अंदर आया "अर्रे बेटा तुम ठीक तो हो अच्छा हुआ तुम जाग गये हम तुम्हारी आवाज़ सुनके ही वापिस लौटे"........उसके साथ एक लड़की थी शायद उस बूढ़े आदमी की बेटी

"म..मैंन यहँन्न कैसेए?"......मेरी कुछ समझ नही आ रहा था कि मैं उस बर्फ़ीली तूफान से आखरी बार कैसे बचा था? बस मुझे इतना याद है कि मैं बेहोश हो गया था..और अपनी बाजी को खो चुका था

"दरअसल बेटा हमे तुम हमारी बस्ती के किनारे बर्फ में दबे मिले तुम्हारा सर पत्थरो पे लग गया था तुम शायद बहुत ज़ख़्मी हो गये थे 2 दिन पहले हुई उस बर्फ़बारी में ही शायद तुम्हारा यह हाल हुआ"........इतना तो तय हो चुका था कि इन लोगो को मेरे बारे में कुछ ख़ास पता नही था और मेरे लिए ये बात बहुत चैन की थी

"मेरी बेटी क़ीज़ा ने तुम्हें 2 दिन पहले नहेर के पास देखा बर्फ के अंदर से सिर्फ़ तुम्हारा हाथ दिख रहा था और तुम्हारा सर बुरी तरीके से पत्थर पे लगा हुआ था चारो ओर खून ही खून देख कर वो मेरे पास दौड़ी आई तब जाके तुम्हे यहा ले आए अब कैसा महसूस कर रहे हो बेटा? कहाँ से आए हो तुम?"..........उन्हें बताने के लिए मेरे पास कोई रास्ता तो नही था ना पूछ सकता था कि मेरे साथ क्या हुआ था? मेरी बाजी कहाँ है? ये सब सवाल मेरे अंदर उस वक़्त नदी की धारा की तरह बह रहे थे

मैं : द..अरस्सल्ल व.ओह्ह मैं पास ही के शहर का हूँ असल में हमारी गाड़ी का आक्सिडेंट हुआ तो 

बुज़ुर्ग : अच्छा अच्छा चलो अल्लाह का शूकर है कि तुम सही सलामत बच गये (बुज़ुर्ग खुदा का शुक्रियादा करने लगा बातों से ही लग रहा था कि उन्होने मेरे रूप को पहचाना नही था ना ही मैं उन्हें भेड़िए के रूप में मिला था वरना अबतक तो पोलीस मेरी लाश की शिनाख्त कर रही होती और ये लोग ख़ौफ्फ से डर जाते)
 
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