non veg story एक औरत की दास्तान - SexBaba
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non veg story एक औरत की दास्तान

hotaks444

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एक औरत की दास्तान--1

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक ओर नई कहानी लेकर हाजिर हूँ

हँसी की राह मे गम मिले तो क्या करें,

वफ़ा की राह मे बेवफा मिले तो क्या करे,

कैसे बचाए ज़िंदगी को धोकेबाज़ों से

कोई मुस्कुरा के धोका दे जाए तो क्या करें

रेल गाड़ी राजनगर प्लॅटफॉर्म से धीरे धीरे आगे सरक रही थी.. सभी यात्री अफ़रा तफ़री मे ट्रेन की तरफ भाग रहे थे.. कोई भी आदमी उस ट्रेन को मिस करने के मूड मे नही था.. इन सब कारनो से स्टेशन पर बड़ा शोर हो रहा था..

पर उस ट्रेन पर कोई "ऐसा भी था" या यूँ कह लें कि "ऐसी भी थी" जो इन सब से अंज़ान एक खिड़की पर बैठी हुई थी.. अब हल्की हल्की बारिश शुरू हो गयी थी और ट्रेन ने अपनी पूरी रफ़्तार पकड़ ली थी.. बारिश की छोटी छोटी बूँदें उसके गोरे गालों और गुलाबी होठों को भिगो रही थी पर उसे किसी चीज़ की भी परवाह नही थी..

वो एक 25-26 साल की लड़की थी जो चेहरे से किसी अच्छे घर की मालूम होती थी.. चेहरे पर अजीब सी मासूमियत थी पर कहीं ना कहीं उसके चेहरे मे दर्द भी छुपा हुआ था.. चेहरे पर अजीब सा सूनापन था जिसे समझ पाना काफ़ी मुश्किल था..पर एक बात जो कोई भी बता सकता था ये वो था कि उसने जीवन मे बहुत से दुख देखे हैं या यूँ कहें कि धोखे खाए हैं.. ज़िंदगी से उसे कदम कदम पर ठोकर ही मिली है..

उसके चेहरे के भाव अचानक बदलने लगे.. कभी उसके चेहरे की लकीरें ख़ुसी को दर्साति तो कभी गम के बादल उसके चेहरे पर दिखने लगते.. शायद अपनी बीती हुई ज़िंदगी को याद कर रही थी वो... हां यही तो कर रही थी वो... अपनी बीती ज़िंदगी को याद...

चलते चलते रुकने की आदत होगयि है,

बीती बाते दोहराने की आदत होगयि है..

क्या खोया, क्या पाया.. कुछ याद नई,

अब तो लोगो से धोका खाने की आदत सी होगयि है...

"बेटी सुबह के 9 बज चुके हैं.. आज उठना नही है क्या..?"

"सनडे है पापा कम से कम आज भी सोने दो ना.." अपने पापा के हाथ मे पकड़ी हुई रज़ाई उनसे छीनते हुए फिर अपने ऊपर डाल ली और सो गयी..

"अरे बेटी आज तेरे कॉलेज मे कल्चरल प्रोग्रॅम्स हैं... भूल गयी क्या..? जल्दी से तैय्यार हो जाओ वरना लेट हो जाओगी.." उसके पिता ने उसे फिर उठाने की कोशिश की..

"क्या पापा सोने दो ना... अभी भी 2 घंटे बाकी हैं... प्रोग्राम 11 बजे से है" उस लड़की ने रज़ाई से अपने कानो को दबा लिया..

"अरे बेटी मैने झूठ कहा था... 10:30 बज चुके हैं अब जल्दी से तैय्यार हो जाओ.." उसके पिता ने राज़ खोला..

"आप झूठ बोल रहे हो पापा" ये बोलते हुए वो अपनी टेबल पर रखकी घड़ी की तरफ घूमी...

"ओह नो.. यहाँ तो सच मे 10:30 बज चुके हैं.." वो उछलती हुई बिस्तर से उठ गयी और टवल उठाकर सीधा बाथरूम मे घुस गयी..

जब बाथरूम से वापस आई तो पाया कि घड़ी मे अभी 9:30 ही हुए हैं... ये देखकर उसे अपने पापा की चाल समझ मे आ गयी..

वो दौड़ती हुई अपने कमरे से बाहर आई और सीढ़ियों से उतर कर हॉल मे पहुँच गयी.. हॉल मे डाइनिंग टेबल पर बैठे उसके पिता उसका इंतेज़ार कर रहे थे..

"आओ आओ बेटी.. चलो नाश्ता कर लेते हैं.." उसके पिता ने अपनी बेटी के चेहरे पर नाराज़गी को भाँप लिया था..

"क्या पापा आप भी ना, मुझे जगाने के लिए घड़ी की टाइमिंग ही चेंज कर दी..?"उसने मुह्न बनाते हुए कहा...

"तो बेटी इसमें बुरा क्या है... हमारे पुर्वज़ भी कह गये हैं... कि सुबह जागने से चार चीज़ों की प्राप्ति होती है... आयु, विद्या, यश और बल" उसके पिता ने रोज़ की तरह ही वोही शब्द दोहरा दिए जो वो रोज़ दोहराते थे...

ये सुनकर उसकी बेटी ने फिर मुह्न फूला लिया... "पापा आप भी ना मुझे सोने नही देते" उसने एक बार फिर नाराज़गी भरे स्वर मे कहा..

"अगर मेरी बेटी सोई रहेगी तो अपने पापा से बात कब करेगी.. रात को जब मैं आता हूँ तो तुम सो चुकी होती हो... यही तो एक टाइम होता है जब मैं तुमसे मिल पाता हूँ..." इतना बोलकर उसके पापा ने उसके कोमल गालों पर अपने हाथ फेरे... ये सुनकर वो अपने पिता के गले लग गयी..

"ओह पापा आइ'म सॉरी... आइ ऑल्वेज़ हर्ट यू.."

"कोई बात नही बेटा... छोटों से ग़लतियाँ तो होती रहती हैं..पर बड़ों का ये फ़र्ज़ है कि वो उसे माफ़ करें..

खैर जाने दो... चलो नाश्ता करते हैं.."

"हां चलिए पापा" ये बोलकर वो दोनो नाश्ता करने लगे और एक नौकर उन्हे खाना पारोष रहा था... बड़े ही खुश थे दोनो बाप बेटी...

"ठाकुर विला" ये नाम था उस हवेली का जिसमे वो दोनो बाप बेटी रहते थे.. ठाकुर खानदान का देश विदेश मे बहुत बड़ा कारोबार था और ठाकुर प्रेम सिंग अकेले उसे संभालते थे.. हां, उस लड़की के पिता का नाम था प्रेम सिंग और उसकी एक ही लाडली बेटी थी जिसे उसने बचपन से अपने सीने से लगाकर पाला... उसकी मा बचपन मे ही प्रसव के दौरान ही गुज़र गयी थी और अपने पीछे छ्चोड़ गयी थी इस नन्ही सी जान स्नेहा को... स्नेहा... यही तो नाम था उसकी फूल जैसी बच्ची का.. राजनगर की शान था वो खानदान... ठाकुर खानदान...
 
" जिस्म के हर कोने से, खुश्बू तुम्हारी आती है..

जब भी तन्हा होता हूँ, याद तुम्हारी आती है.. "

"दिखा कर खवाब इन आँखों को, दे गये आँसू इन में तुम..

कैसे छलका दू यह आँसू, इन में भी तो रहते हो तुम.."

"हो गये तुमसे जुदा, कितने बदनसीब हैं हम..

रूठा हमसे आज मेरा खुदा, कितने फकीर हैं हम.."

"वाह वाह..वाह..वाह.. क्या शायरी अर्ज़ की है दोस्त... तुम्हें तो शायर बनना चाहिए.." वहाँ पर बैठे सारे लड़के एक साथ तालियाँ बजा उठे..

"क्या खाक शायर बनना चाहिए... ये भी कोई शायरी है... दिनभर दुख भरी शायरी करता रहता है और हमारा दिमाग़ खराब करता रहता है..हुह.. मैं सुनाता हूँ शायरी.. गौर से सुनना.."

जब चूत से लंड टकराता है, मत पूछिए क्या मज़ा आता है,

जब चूत से लंड टकराता है, मत पूछिए क्या मज़ा आता है..

टाँगों को उठा, कुच्छ चूत दिखा, मेरे लंड पर ज़रा हाथ फिरा

यह चूत खुशी में हँसती है, लंड भी हिलता है मस्ती में,

अब खोल दे अपनी चूत को तू, यह लंड मेरा फरमाता हैं,

जब चूत से लंड टकराता है, मत पूछिए क्या मज़ा आता हैं,

लंड भड़का है जैसे कोई भूत, जब से देखी है इसने चूत,

अंदर बाहर चोदे गा लंड, धक्के मारे ये ज़ोरों से

चूत भी पानी छ्चोड़े गी, लंड मेरा यही बताता हैं,

जब चूत से लंड टकराता है, मत पूछिए क्या मज़ा आता हैं.

"वाह वाह..." इतना बोलकर सारे लड़के एक साथ ठहाके लगाकर हस्ने लगे... रवि ने सबको आदाब किया...

उसकी ये शायरी सुनकर वहाँ बैठे राज को हस्ते हस्ते पेट मे दर्द होने लगा... पहली शायरी उसी ने बोली थी पर वो एक दुख भरी शायरी थी पर ये अडल्ट शायरी सुनकर वो रवि की काबिलियत की दाद दिए बिना ना रह सका...

"यार तू जब भी बोलेगा तो मुह्न से हगेगा ही.." उसने रवि की टाँग खींचते हुए कहा...

"क्यूँ बे.. तू मुझे अपनी तरह बनाना चाहता है..जो कि हमेशा दुखी रहता है... तुझे क्या लगता है... मैं तुझे नही देखता...? केयी दिनो से देख रहा हूँ.. तू बहुत खोया खोया सा रहता है... तू हर किसी से ये बात छुपा सकता है पर मुझसे नही... बता क्या बात है... बता ना यार..." रवि ने जिद्द करते हुए कहा... वो बहुत दिनो से देख रहा था कि राज कहीं खोया खोया सा रहता है... वो क्लास मे तो रहता था पर उसका दिमाग़ कहीं और रहता था.. उसने दोस्तों के बीच रहना भी कम कर दिया था... किसी से ज़्यादा बात नही करता... कोई इसका कारण पूछता तो बहाना बना देता कि कुछ दिनो से तबीयत खराब है... हर कोई उसके झूठ को मान लेता.. पर रवि उसके बचपन का दोस्त था...

दोनो साथ साथ बड़े हुए थे और हर दुख सुख मे एक दूसरे का साथ दिया था.. यहाँ तक की जब दोनो साथ होते थे तो एक ही थाली मे खाना भी खाते थे... और मज़े की बात तो ये थी कि दोनो का "फर्स्ट क्रश" भी एक ही था... और जब दोनो को ये बात पता चली कि दोनो एक ही लड़की से प्यार करते हैं तो उन दोनो ने ये कसम खाई कि कुछ भी हो जाए ..चाहे कोई भी मजबूरी हो पर एक लड़की को कभी अपनी दोस्ती के बीच नही आने देंगे.. पूरा कॉलेज उनकी दोस्ती की दाद देता था..

"अरे देख देख उधर देख... आ गयी अपने कॉलेज की ड्रीम गर्ल.. हर दिलों की धड़कन..." रवि ने राज का गला पकड़ कर उस तरफ घुमा दिया जिधर से वो लड़की आ रही थी...

अगल बगल मे बैठे सारे लड़के मुह्न फाडे उसे देख रहे थे... क्या फिगर था उसका.. क्या होंठ थे और क्या नैन नक्श... ऐसा लगता था जैसे खुदा ने उसके जिस्म के एक एक अंग को बड़ी फ़ुर्सत से बनाया है... वो कोई और नही बल्कि स्नेहा थी.. सब लोग उसकी सुंदरता के दीवाने थे.. क्या स्टूडेंट..क्या प्रोफेसर... यहाँ तक की लेडी प्रोफ़्फेसर्स की नियत भी डोल जाती थी उस मल्लिका-ए-हुस्न के दीदार से...

हुस्न परियो का और रूप चाँद का चुराया होगा

खूबसूरत फूलो से होटो को सजाया होगा

ज़ुलफ बिखरे तो घटाओ को आए पसीना

बड़ी फ़ुर्सत से रब ने तुझे बनाया होगा

राज के मुह्न से अचानक ये शायरी सुनकर रवि को कुछ हैरानी हुई... उसने राज की तरफ देखा तो पाया कि वो किन्ही ख़यालों मे गुम है... उसकी नज़रें स्नेहा पर ही टिकी हैं... उसकी पलकें एक बार भी नही झपक रही थी... अब रवि को कुछ कुछ समझ मे आने लगा था कि ये चक्कर क्या है...

हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले

पूरे हॉल मे लता मंगेशकर जी के गाने की ये पहली लाइन सुनते ही सन्नाटा छा गया.. सबलॉग इस आवाज़ के जादू मे मंत्रमुग्ध होकर स्टेज की तरफ देखने लगे... कितनी सुरीली थी वो आवाज़..बिल्कुल वैसी ही जैसी किसी कोयल की होती है...

जब बरसात के दिनो मे पानी की बूँदें पत्तों पर गिरकर किसी सितार की तरह सुरीली आवाज़ करती हैं... बिल्कुल वैसी थी वो आवाज़... किसी भी इंसान को सपनो की दुनिया मे ले जाने के लिए काफ़ी थी वो आवाज़... ऐसा लग रहा था कि जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर आई हो जो अपनी मधुर आवाज़ से सबको सम्मोहित कर रही हो...

क्या क्या हुआ दिल के साथ

क्या क्या हुआ दिल के साथ..

मगर तेरा प्यार नही भूले हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले दुनिया से शिकायत क्या करते

जब तूने हमे समझा ही नही

दुनिया से शिकायत क्या करते

जब तूने हमे समझा ही नही..

गैरो को भला क्या समझते जब अपनों ने समझा ही नही

तूने छ्चोड़ दिया रे मेरा हाथ

तूने छ्चोड़ दिया रे मेरा हाथ

मगर तेरा प्यार नही भूले
 
कितना दर्द था उस आवाज़ मे... ऐसा लग रहा था जैसे गाने वाली के साथ ही कोई ऐसी घटना हुई हो जिसे भूल पाना बहुत मुश्किल था... दर्शक दीर्घा मे बैठे लोग मंन ही मंन उसकी तारीफ कर रहे थे... "तुमने कभी सोचा था कि इसकी आवाज़ ऐसी होगी..?"

"नही यार.. जैसा इसका तंन वैसी इसकी आवाज़... सच मे खुदा ने बहुत फ़ुर्सत से बनाया होगा इस अनमोल चीज़ को"

"हां यार बड़ी ही सुरीली आवाज़ है...मंन तो करता है इसके गुलाबी होठों पर अभी जाकर चुंबन जड़ दूं.."

"अबे चुप कर भोंसड़ी के... किसी ने सुन लिया तो अभी तेरे गंद की बॅंड बजा डालेंगे.."

दर्शक दीर्घा मे बैठे लड़कों मे कुछ ऐसी ही बातें चल रही थी.. या यूँ कहें कि फुसफुसाहट चल रही थी... हर कोई दीवाना था उस लड़की का... हर कोई....

इन सब बातों से अंजान वो अपनी सुरीली आवाज़ मे गाए जा रही थी..

क्या क्या हुआ दिल के साथ

क्या क्या हुआ दिल के साथ

मगर तेरा प्यार नही भूले

हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले

कसमे खाकर वादे तोड़े

हम फिर भी तुझे ना भूल सके कसमे खाकर वादे तोड़े..

हम फिर भी तुझे ना भूल सके

झूले तो पड़े बागों में मगर हम बिन तेरे ना झूल सके

सावन में जले रे दिन रात

सावन में जले रे दिन रात

मगर तेरा प्यार नही भूले

क्या क्या हुआ दिल के साथ

क्या क्या हुआ दिल के साथ

मगर तेरा प्यार नही भूले

हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले

जैसे ही गाना ख़तम हुआ...पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा...उसने आज कल्चरल फंक्षन मे ऐसा समा बँधा था कि सारे दर्शक मंत्रमुग्ध हुए बिना ना रह सके... एक चुंबकिया आकर्षण था उसकी आवाज़ मे.. आज सब ने जान लिया था कि स्नेहा की सिर्फ़ आवाज़ ही नही बल्कि उसके जिस्म से जुड़ी हर एक चीज़ सुंदर थी...

"अबे... कहाँ खोया हुआ है...." रवि ने राज की आँखों के आगे हाथ लहराया...

गाना ख़तम होने तक राज की नज़र एक बार भी स्टेज से नही हटी थी... वो एक तक स्नेहा को देखे जा रहा था... ऐसा लग रहा था कि जैसे वो उसमे समा जाना चाहता हो... उसकी सुंदरता का रस पीना चाहता हो...

और ये बात रवि से छिपी नही थी... वो सॉफ सॉफ समझ गया था कि हो ना हो... राज के दिल मे स्नेहा के लिए कोई ना कोई जज़्बात ज़रूर घर कर गये हैं...

"अरे कुछ नही यार बस ऐसे ही.." राज ने बहाना बनाते हुए कहा... पर वो जान गया था कि उसकी चोरी पकड़ी गयी थी और अब उसकी बात ज़्यादा देर रवि से नही छुप सकती थी...

"साले मैं तेरा दोस्त हूँ... मुझसे तू नही छुपा सकता अपनी बात... बता.... तू स्नेहा से प्यार करता है ना...?" रवि ने अब सीधा वॉर करना ही ठीक समझा...

"अबे ये क्क्क...क्या बब्ब...ओल रहा है... मैं और प्यार... नही नही ये हो ही नही सकता..." राज की हकलाती आवाज़ मे झूठ की झलक सॉफ दिख रही थी...

"अपने दोस्त से झूठ बोलेगा...."

"नही यार मैं झूठ कहाँ बोल रहा हूँ...." तभी हॉल मे कुछ अनाउन्स्मेंट की आवाज़ आने लगी जिससे उन लोगों का ध्यान टूटा...

"बच्चों... आज मेरी बेटी रिया का जनमदिन है... इसलिए मैं आप सब को अपनी बेटी की बर्तडे पार्टी मे इन्वाइट करना चाहता हूँ... जिन्हे भी मन करे वो निसंकोच पधार सकते हैं..." स्टेज पर खड़ा कॉलेज का प्रिन्सिपल अपनी बेटी के जनमदिन पर सबको इन्वाइट कर रहा था... सुनने मे अटपटा लगता है पर इसका कारण ये था कि उसकी बेटी भी उसी कॉलेज मे पढ़ती थी इसलिए वो चाहती थी कि उसके कॉलेज के सारे लड़कों को इन्वाइट किया जाए...

"ज़रूर जाएँगे यार... ये प्रिन्सिपल की बेटी रिया बहुत बड़ी मस्त माल है..." रवि का ध्यान अब स्नेहा वाली बात से हट गया था..

"अबे चुप कर... लड़की देखी नही की लार टपकाना शुरू... चल घर चल... शाम को फिर पार्टी मे जाना है..." राज ने रवि के सर पर एक थप्पड़ मारते हुए कहा...

"हां चल यार...चलते हैं." दोनो हॉल से बाहर आ गये और बाइक उठा के चल दिए घर की तरफ..

क्रमशः.........................
 
एक औरत की दास्तान--2

गतान्क से आगे...........................

"और बेटा.. बताओ घर मे सब कैसा चल रहा है..?"

"सब ठीक है अंकल... आप तो जानते ही हैं कि मा पिताजी के मरने के बाद.. मैं कितना अकेला हो गया हूँ... बिज़्नेस का सारा बोझ मुझपर ही आ गया है... बहुत अकेला महसूस करता हूँ.. इसलिए अकेलापन दूर करने के लिए कुछ दिनो के लिए अमेरिका से राजनगर आ गया हूँ अपने पापा के पुराने बंग्लॉ पर.."

"हां..ये तुमने बहुत अच्छा किया बेटा... किसी भी चीज़ की दिक्कत हो तो बेहिचक मुझे बताना.. मैं तुरंत ही उसका निवारण कर दूँगा.."

"हां अंकल... बिल्कुल.. इसमें भी कोई कहने वाली बात थोड़े ही है... ये भी अपना ही घर है..." उसकी लालची नज़रें पूरे घर को देख कर मंन ही मंन उसकी तारीफ़ किए बिना ना रह सकी.... वो खुद एक बहुत बड़े बिज़्नेसमॅन का बेटा था पर आख़िर था तो इंसान ही.. और वैसे भी उस आलीशान घर को देखकर ईमानदार से ईमानदार व्यक्ति की नियत डगमगा सकती थी तो फिर वो क्या चीज़ था...

"बेटा एक बार फिर बोलता हूँ.. मुझे बताने मे किसी प्रकार का संकोच ना करना..." तभी ठाकुर साहब को अपनी बेटी आती हुई दिखाई दी... उसने पिंक कलर का टॉप और ब्लू कलर की जीन्स पहन रखी थी..जिसमे से उसके उभार सॉफ झलक रहे थे...

वहाँ पर बैठे लड़के ने मंन ही मंन उसके वाक्सों का साइज़ नापना शुरू कर दिया..

"36... नही नही... 34... नही 36..तो ज़रूर होंगे इसके बूब्स" उसके मंन मे जंग सी छिड़ गयी थी... कि उसके बूब्स 36 के हैं या 34 के... तबतक वो लड़की पास आ चुकी थी..

"बेटी इनसे मिलो ये हैं हमारे दोस्त के एकलौते बेटे.. वीर प्रताप सिंग.." ठाकुर साहब ने परिचय कराते हुए कहा...

"हेलो..." स्नेहा ने सुरीली आवाज़ मे कहा...जिसका उत्तर देना वीर के बस के बाहर था... वो भी सभी लोगों की तरह उसके रूप के जाल मे फँस गया था और उसके रूप के द्वारा सम्मोहित होकर उसे देखे जा रहा था... स्नेहा ने देखा कि वो कोई 25-26 साल का नौजवान था... उसका कद कोई 6 फिट. था.. रंग बिल्कुल गोरा और रोबदार चेहरा.. देखने से ही मर्द का बच्चा लगता था वो..

"और ये है मेरी बेटी स्नेहा... शायद तुम इससे मिल चुके हो.." ठाकुर साहब ने अपनी बेटी का परिचय करते हुए कहा...

"हां बिल्कुल मिल चुका हूँ.. पर तब ये छोटी हुआ करती थी.. इसलिए शायद इन्हे याद ना हो... और मुझे भी ज़्यादा कुछ याद नही है..." वीर ने अपना ध्यान स्नेहा पर से हटाते हुए कहा...

"पापा फिलहाल तो मुझे एक पार्टी मे जाना है... मैं आपसे बाद मे मिलती हूँ... बाइ..." स्नेहा ने अपने पिता से विदा लेते हुए कहा..

"जल्दी आ जाना बेटी... मुझे तुम्हारी फिकर होने लगती है...."

"हां पिताजी... जल्दी आ जाउन्गि... आइ लव यू.. बाइ..." ये बोलकर स्नेहा बाहर की तरफ चली गयी.. पीछे से वीर की नज़र उसके बड़े बड़े मटकते हुए चुतदो को लगातार निहार रही थी...

उसके मंन मे अभी सिर्फ़ एक ही बात आ रही थी...

"हाए.. कोई तो रोक लो...."

वो दिन राज के लिए बहुत भारी था... स्नेहा की याद मे अब उसका जीना मुश्किल हो रहा था... हर तरफ उसे वोही चेहरा नज़र आता था... ऐसा लगता था जैसे वो कह रही हो..."मुझे अपनी बाहों मे ले लो राज.."

पार्टी शाम के 7 बजे शुरू होने वाली थी पर वो 4 बजे ही पहुँच गया रवि के घर..

दरवाज़ा खाट खटाते ही रवि की मा बाहर आई....

"अरे बेटा तुम...? इस वक़्त..?"

"वो आंटी... रवि रेडी हो गया क्या.... वो आज हमारे प्रिन्सिपल की बेटी की बर्तडे पार्टी है ना तो वहीं जाने वाले हैं हम.." राज ने रवि की मम्मी के गेट पर आने की बात नही सोची थी... हर बार जब वो रवि के घर आता था तो वो खुद ही दरवाज़ा खोलता था..

राज की पार्टी वाली बात सुनकर रवि की मा एक बार सोच मे पड़ गयी...

"क्या सोच रही हैं आंटी...?"

"कुछ नही बेटा.... पर रवि ने तो मुझे बताया था कि पार्टी 7 बजे शुरू होने वाली है..." रवि की मा ने राज़ खोला...

ये सुनकर राज अपनी घड़ी की तरफ देखने लगा..तो पाया कि अभी तो घड़ी मे 4 ही बजे थे... वो लोग 2:30 मे कॉलेज से वापस आए थे और फिर स्नेहा के प्यार मे पागल राज बिना टाइम देखे ही पहुँच गया था रवि के घर...

"कौन है मा..?" दरवाज़े पर नॉक होने के कारण रवि की नींद टूट गयी थी जो अभी घोड़े बेच कर सो रहा था... वो आँख मलते मलते बाहर आया तो पाया कि दरवाज़े पर राज खड़ा है...

ये देखकर उसे ये समझते देर ना लगी कि राज पागल हो चुका है स्नेहा के प्यार मे... सो उसने अपने मा से बहाना बनाने की सोची ताकि राज किसी तरह के सवाल से बच जाए...

"अरे राज तू...? अंदर आजा... चल कमरे मे चलते हैं... तूने जो कॉपी मुझे दी थी असाइनमेंट कॉपी करने के लिए वो अभी कंप्लीट नही हुई है... आ जा अंदर...पहले वो कंप्लीट कर लूँ..फिर चलेंगे रिया की बर्तडे पार्टी मे..." रवि ने बात को संभालते हुए कहा...

पर एक लड़की का नाम सुनकर उसकी मा के कान खड़े हो गये...
 
"ये रिया कौन है रवि...?" मा ने कड़क आवाज़ मे पूछते हुए कहा..

"मा आप भी ना.. क्या क्या सोचती रहती हो... रिया अपने प्रिन्सिपल की बेटी का नाम है..." ये बोलते हुए उसकी आँखों के सामने रिया के बड़े बड़े बूब्स नाचने लगे.. उसने जैसे तैसे अपने जज़्बातों को काबू मे किया....

"अच्छा ठीक है ठीक है.... जाओ अब तुम दोनो अपने कमरे मे..." ये कहकर मा वहाँ से चली गयी...

मा के जाते ही रवि ने राज का हाथ पकड़ा और उसे लगभग खींचते हुए कमरे मे ले आया...

उसने दरवाज़े की सिट्कॅनी लगाई और राज पर बरस पड़ा...

"साले प्यार मे पागल आशिक़... खुद तो मरेगा और मुझे भी मरवाएगा..."

"अबे मैने क्या किया है...जो मुझे डाँट रहा है..."

"अबे साले अगर तुझसे मा पूछ लेती कि इतनी जल्दी पार्टी मे जा कर क्या करेगा तो क्या जवाब देता तू...?" रवि ने मुह्न बनाते हुए कहा...

ये सुनकर राज भी सोच मे पड़ गया....

"अच्छा चल छ्चोड़.. तू ये बता कि क्या तू सच मे स्नेहा से प्यार करता है या ये सिर्फ़ लुस्ट है...?" रवि ने बात बदलते हुए कहा...

"नही यार... मैं और लुस्ट..? मैं उससे सच्चा प्यार करता हूँ यार... उसके बिना दिन काटने मुश्किल हो गये हैं... रातों को नींद नही आती है.. रातें बस करवटें बदलने मे निकल जाती हैं... कुछ याद भी नही रहने लगा अब तो... यार कुछ भी कर पर मुझे स्नेहा से मिला दे.... प्लीज़... " राज ने रवि के सामने गिडगीडाते हुए कहा...

"अरे यार तू तो मेरा जिगरी यार है... तेरे लिए तो जान भी हाज़िर है तो ये छोकरी पटाना कौन सी बड़ी बात है... आअज चल तू पार्टी मे... मैं तेरी आज ही सेट्टिंग करवा दूँगा..." रवि ने राज को सांत्वना देते हुए कहा...

"तबतक मैं फ्रीज़ से ठंडा लाता हूँ..वो पीले और दिमाग़ को ठंडा रख.." ये बोलकर रवि बाहर गया और कुछ देर बाद दो पेप्सी की बॉटल लेकर अंदर आ गया...

इन्ही सब बातों मे 6 बज गये... इसके बाद रवि जल्दी जल्दी तैय्यार हुआ और बाइक उठा कर चल दिया पार्टी मे... जहाँ उसे अपने दोस्त की मदद करनी थी... क्या पता शायद आज उसे एक भाभी मिल जाए...

वो उसके ऊपर चढ़ा हुआ था और उसके होठों को लगतार चूस रहा था.. साथ ही साथ उसके दोनो हाथ उसके पूरे शरीर पर चला रहा था.. उसने धीरे धीरे अपना हाथ उस लड़की के बड़े बड़े उरोजो पर रख दिए और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा... लड़की के मुह्न से मादक आवाज़ें आने लगी... पूरा कमरा गरम हो चला था... वो धीरे धीरे अपना हाथ उसकी टॉप के नीचे ले गया और टॉप पकड़ कर उठाने लगा... धीरे धीरे उसने लड़की का टॉप ऊपर उठा दिया और फिर उसका सर ऊपर उठा कर उसका टॉप खोल दिया जिससे ब्रा मे क़ैद उसकी चूचियाँ सामने आ गयी... कोई 36 इंच की ब्रेस्ट साइज़ रही होगी... वो ब्रा के ऊपर से ही उन चूचियों को दबाने लगा...जिससे दर्द की एक मीठी लेहर उस लड़की के पूरे शरीर मे दौड़ गयी... कुछ देर तक उसकी चूचियों को दबाने के बाद लड़की ने उस लड़के की शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए... लड़के ने हाथ उठा कर शर्ट खोलने मे उसकी मदद की.. दोनो अब आधे नंगे थे.. अब लड़का अपना हाथ लड़की के पीठ पर चलाने लगा.. धीरे धीरे उसकी पीठ को गुदगुदते हुए वो अपना हाथ उसकी ब्रा की हुक पर ले गया... लड़की उसकी तरफ देख कर मुस्कुराइ जैसे उसे वैसा करने की इजाज़त दे रही हो... लड़के ने इशारा समझते हुए बिना देर किए उसके ब्रा का हुक खोल दिया... जिससे उसके दोनो कबूतर जो अब तक ब्रा नामक पिंजरे मे क़ैद थे उछल कर बाहर आ गये... बड़ी बड़ी चूचियों के ऊपर लाल लाल घुंडीयाँ(निपल) बड़े हसीन लग रहे थे... लड़के ने नीचे झुक कर उन दोनो निपल्स को एक एक कर चूम लिया..जिसके कारण लड़की के मुह्न से सिसकारी निकल गयी... उसके शरीर मे रक्त का प्रवाह अचानक बढ़ गया और योनि(चूत) से काम रस का प्रवाह होने लगा.. उसकी जीन्स अभी तक नही उतरी थी...उस लड़के ने अपना मुह्न उसके निपल पर लगाया और उन्हे चूसने लगा... पर उसके हाथ अपना काम कर रहे थे.. वो धीरे धीरे अपना हाथ उसके जीन्स की बटन पर ले गया और एका एक उसे खोल दिया.. लड़की ने पैर उठा कर उसका काम आसान कर दिया और लड़के ने जीन्स खींचकर एक तरफ फेंक दिया.. उसका मुह्न अभी तक उसके बड़े बड़े उरोजो का लगातार स्वाद ले रहा था...

लड़के ने उस लड़की की पॅंटी मे हाथ डाल दिया और उसके चूत के ऊपर चलाने लगा... उसकी चूत बिल्कुल गीली हो चुकी थी.. लड़के ने अब उसके उरोज़ छोड़ दिए और वापस उसके होठों पर आ गया.. पर उसका हाथ अब भी काम मे लगा हुआ था... उसने तेज़ी से उस लड़की की पॅंटी उतार दी और फिर अपने जीन्स पर हाथ लेजाकार अपना जीन्स और फिर चड्डी उतार कर फेंक दिया...
 
अब दोनो बिल्कुल नंगे एक दूसरे से गुत्थम गुत्था थे... लड़के ने एका एक अपनी एक उंगली उस लड़की की चूत मे घुसा दी... गुलाब की पंखुड़ी जैसी अनचुई चूत मे एक तेज़ दर्द की लहर दौड़ गयी... लड़की ने अपने होठों को लड़के के होठों से आज़ाद करने की कोशिश की और उसकी ये कोशिश सफल रही... दोनो के होंठ अलग होते ही लड़की चिल्ला उठी.. और उसे अपनी चूत से उंगली निकालने के लिए बोलने लगी जिसे उस लड़के ने अनसुना कर दिया.. और वापस उसके होठों पर अपने होंठ रख कर उन्हे चूसने लगा... उधर उसकी उंगली लगातार उसकी लड़की के चूत के अंदर बाहर हो रही थी..

इसके बाद लड़का नीचे की तरफ आ गया और उसकी चूत को देखने लगा... बिल्कुल लाल लाल किसी गुलाब की पंखुड़ी की तरह कोमल चूत किसी को भी दीवाना बना सकती थी.. उसने अपनी जीभ निकाली और लड़की की चूत के होंठों पर चलाने लगा... लड़की के मुह्न से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी जो ये सॉफ दर्शा रहा था कि उसे मज़ा आ रहा है... वो लड़का उसकी चूत के दाने पर अपनी जीब चलाते हुए उससे खेल रहा था जिससे उस लड़की का बुरा हाल हो रहा था...

इसके बाद उस लड़के ने अपनी जीभ को नुकीला करते हुए उस लड़की की चूत के अंदर डाल दिया... और चूत को चाटने लगा...

पेशाब की मादक ख़ूसबू से उसके नथुने भर गयी... जिसने उसे पागल बना दिया और वो तेज़ी के साथ उसकी चूत मे अपनी जीभ चलाने लगा... जिसके कारण उस लड़की की हालत और भी ज़्यादा खराब हो गयी... पूरे कमरे मे उसकी मादक सिसकारियाँ गूँज रही थी.. जो लड़के को और पागल कर रही थी... धीरे धीरे उस लड़की की हिम्मत जवाब दे गयी और वो अहहहह की ज़ोरदार आवाज़ करते हुए लड़के के मुह्न मे ही झाड़ गयी... लड़के ने बिना घृणा के उसका रास्पान कर लिया..

अब बारी थी असली काम करने की... लड़का उसके सामने खड़ा हो गया.. जिससे लड़की की नज़र पहली बार लड़के के काले मोटे लंड पर गयी..और ये कोई आसचर्या की बात नही थी.. उस हत्ते कत्ते शरीर के मालिक के पास 8 इंच का लंड होना कोई बड़ी बात नही थी...

पहले तो वो लंड की तरफ देखने मे शर्मा रही थी पर जब लड़के के जिद्द करने के बाद लंड की तरफ देखा तो उसके मुह्न पर जैसे पट्टी लग गयी.. डर के मारे उसका गला सुख गया... 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लंड उसकी 1 इंच की चूत मे कैसे जाएगा ये सोच सोचकर उसकी हालत खराब होने लगी... जाहिर सी बात है..पहली बार मे लड़की के लिए ऐसा सोचना लाज़मी है...

"ये इतना बड़ा मेरे इस छोटे से छेद मे कैसे जाएगा ?" पहली बार इस पूरे खेल के दौरान उस लड़की ने कुछ कहा था. उसकी आवाज़ मे घबराहट सॉफ महसूस की जा सकती थी.

"जान,क्यूँ चिंता करती हो ? बस दो मिनिट का समय लगेगा और ये अंदर चला जाएगा.. कैसे जाएगा... ये तुम मुझपर छ्चोड़ दो.. आज वो लड़की पहली बार चुदने वाली थी... आज उसका कौमार्या भंग होने वाला था...

लड़के ने वहीं पर सामने लगी अलमारी मे से वॅसलीन की एक डिब्बी निकाली और उसमे से थोड़ा वॅसलीन लेकर लड़की की चूत पर मालिश करने लगा... चूत की दीवारों पर वो धीरे धीरे वॅसलीन लगा रहा था जिससे लड़की को मज़ा आ रहा था.. कुछ गुदगुदी जैसी होने लगी उसकी चूत मे..

उसके बाद उस लड़के ने और वॅसलीन निकाली और अपने लंबे मोटे लंड पर लगाने लगा... उसके चेहरे पर ये सब करते हुए एक अजीब से मुस्कुराहट थी...

उसने धीरे धीरे अपने पूरे लंड को वॅसलीन से रगड़ दिया जिससे उसके लंड की परत फिसलन भरी हो गयी... इसके बाद उसने वो डिब्बा वापस अलमारी मे रख दिया और वापस लड़की के पास आ गया...

फिर उसने लड़की के चेहरे की तरफ देखा जिसने अपना सर हिलाया और उसे मूक स्वीकृति दे दी.. लड़के ने देर नही की और अपना लंड उस लड़की की चूत के मुहाने पर घिसने लगा... लड़की के मुह्न से मादक आवाज़ें आने लगी...

"क्यूँ तड़पाते हो डार्लिंग... अब डाल भी दो ना..." उसकी आवाज़ मे बेचैनी थी..

"इतने साल इंतेज़ार करवाया जान थोडा और सही..." लड़के के चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट थी...

"तंग मत करो... प्लीज़ डाल दो ना... फिर मुझे पार्टी मे भी जाना है.. आज मेरा बर्तडे है.." लड़की ने गिड़गिदाते हुए कहा..

"इसीलिए तो ये दिन चुना है जान... आइ वॉंट टू मेक युवर बर्तडे स्पेशल..." ये बोलकर लड़के ने एक चुंबन उसके होठों पर जड़ दिया..

ये सुनकर लड़की मुस्कुरा दी... उनका रिश्ता दो सालों से चल रहा था पर उसने लड़के को उसे कभी हाथ नही लगाने दिया था..पर बहुत ज़िद्द करने के बाद वो मान गयी थी क्यूंकी लड़के ने उससे शादी का वादा किया था...

दोस्तो ये कहानी आपको कैसी लग रही है ज़रूर बताए आपका दोस्त राज शर्मा

क्रमशः.........................
 
एक औरत की दास्तान--3

गतान्क से आगे...........................

खैर अब लड़के ने ज़्यादा देर करना ठीक नही समझा और अपना लंड लड़की की गुलाबी चूत के मुहाने पर टिका दिया... और हल्का सा धक्का लगाया...

इस हल्के से धक्के मे ही लड़की की जान निकल गयी और दोनो आँखें बाहर आ गयी....

"निकालो.. प्लीज़... बहुत दर्द हो रहा है... निकालो लो..." वो चीखते हुए बोली...

पर लड़के ने उसकी एक ना सुनी... उल्टा उसने उसके होठों को अपने होठों से दबा लिया.. इसके बाद उसने थोड़ा ज़ोर का धक्का लगाया जिससे उसका लंड सरसरता हुआ आधा चूत के अंदर घुस गया..

लड़की की आँखों मे आँसू आ गये.. होंठ लड़के के होंठों के बीच होने के कारण वो बस घून घून की आवाज़ें ही निकाल पा रही थी... दर्द इतना ज़्यादा था कि वो अपने हाथ पाँव फेंकने लगी जिसे उस लड़के ने अपनी मजबूत पकड़ से शांत किया..

इसके बाद वो उसके शांत होने का इंतेज़ार करने लगा.. और फिर एक ज़ोरदार धक्के के साथ पूरा लंड उसकी चूत मे पेल दिया... खून की एक पतली सी धार लड़की की चूत से बाहर आने लगी... आज उसका कौमार्या टूट चुका था...

वो आज औरत बन चुकी थी... जन्मदिन पर इससे अच्छा तोहफा उसके लिए कुछ नही हो सकता था... दर्द तो बहुत हो रहा था उसकी योनि मे पर वो ये सब सहने को भी तैय्यार थी...

अब वो धीरे धीरे शांत हो गयी तो लड़के ने भी धक्के लगाने शुरू कर दिए... धीरे धीरे वो अपना लंड उसकी चूत के अंदर बाहर करने लगा.. अब लड़की को भी मज़ा आने लगा और वो भी अपने मोटे मोटे चुतताड उठा कर उसका साथ देने लगी.. उसकी सिसकारियाँ पूरे कमरे मे गूँज रही थी जिससे माहौल की गर्मी और बढ़ रही थी साथ ही साथ लड़के के जोश को भी दुगना कर रही थी.. वो तेज़ी से चूत मे धक्के लगाने लगा... वो लंड को पूरा अंदर घुसाता और फिर पूरा बाहर निकालता था... लड़की भी उसकी ताल मे ताल मिला कर चुत्डो को ऊपर नीचे कर रही थी... उसे इतना मज़ा कभी नही आया था.. उसने कयि बार उंगली से अपने चूत की आग बुझाई थी पर उसे पहली बार पता चला कि लंड कितना मज़ा देता है...

अब लड़के के धक्के तेज़ हो रहे थे और लड़की भी तेज़ी से गंद उठा उठा कर उसका लंड अपनी चूत मे ले रही थी... दोनो हांप रहे थे.. अंत मे लड़के ने धक्कों की तेज़ी दोगुनी कर दी और फिर ज़ोर से चिल्लाया.. अहााहह..आर्गघ.. और अपना लंड एन मौके पर निकाल कर लड़की के पेट पर रख दिया.. उसके लंड का सारा विर्य उसकी चूचियों और पेट पर गिर गया.. लड़की भी अब तक झाड़ चुकी थी और लड़के के साथ ज़ोरों से हांप रही थी.. लड़का हांपते हुए लड़की की बड़ी बड़ी चूचियों पर गिर गया.. और उन्हे अपने मुह्न मे लेकर चूसने लगा..

"अब मुझे जाना होगा.. पार्टी शुरू होने वाली होगी.." उसने लड़के को अपने ऊपर से हटाते हुए कहा..

"थोडा और रुक जाओ ना रिया... प्लीज़..." नही रुक सकती... अब जाना होगा... उसने अपने शरीर पर से वीर्य सॉफ करते हुए कहा.. इसके बाद वो उठी और अपने कपड़े पहनने लगी. लड़के ने उसे पीछे से जाकड़ लिया और एक ज़ोरदार चुंबन उसके रसीले होंठों पर जड़ दिया. रिया के सुंदर चेहरे पर शर्म की लाली छा गयी. वो बिना कुछ बोले वहाँ से निकल गयी. उसे चलने मे दिक्कत हो रही थी पर उसके मन मे आज औरत बनने की ख़ुसी उसे दूर कर रही थी.

राज और रवि दोनो पार्टी मे पहुच चुके थे. ऱाश्ते मे रवि ने अपना सारा प्लान राज को समझा दिया था. जिसे राज ने किसी समझदार बच्चे की तरह मान लिया था. अब इंतेज़ार था तो सिर्फ़ स्नेहा के आने का.

अबे वो देख क्या लग रही है यार. "रवि ने रिया की तरफ राज का सर घुमाते हुए कहा." रिया ने ब्लू कलर का टॉप और जीन्स पहन रखा था. उसके कपड़े बड़े ही कसे हुए थे जिससे उसके शरीर का हर एक कोण साफ साफ दिखाई दे रहा था. उसका चेहरा आज कुछ ज़्यादा ही चमक रहा था. ऐसा क्यूँ था इस बात से सब बेख़बर थे. पार्टी मे सबकी नज़रें उसकी ही तरफ थी जो बार बार इतनी सारी नज़रों को अपनी तरफ देखते हुए पाकर खुदको स्वर्ग से उतरी अप्सरा से कम नही समझ रही थी.

फिर वो हुआ जो कोई भी लड़की नही होने देना चाहती. हर लड़की की एक इच्छा होती है कि वोही दुनिया की सबसे अच्छी लड़की हो और पूरी दुनिया उसकी तरफ देखकर आहें भरे.. पर अभी जो हुआ वो किसी भी लड़की को पसंद नही आता...

सारी नज़रें उस पर से हट गयी..और दरवाज़े की तरफ जा टिकी... लड़के एक बार फिर आहें भरने लगे... राज का चेहरा लाल हो गया और रवि उसकी तरफ देखकर मुस्कराने लगा...

सामने दरवाज़े से चलती हुई कोई और नही.. बल्कि वोही आ रही थी.. हुस्न की मल्लिका स्नेहा..

"वाह यार.. ऐसी आइटम एक बार बिस्तर पर आ जाए तो मज़ा आ जाए..." राज के बगल मे बैठा लड़का बोल उठा... ये सुनकर राज का दिमाग़ गरम हो गया... उसने आव देखा ना ताव बस खड़ा हो गया उस लड़के से लड़ने के लिए...

"क्या बोला मदर्चोद.... आज मैं तेरी गंद मार लूँगा भोंसड़ी के.." राज गुस्से मे चिल्ला उठा... पार्टी मे म्यूज़िक बहुत तेज़ बज रहा था जिससे उसकी आवाज़ उस लड़के को सुनाई नही पड़ी... पर रवि ने सुन लिया... उसने राज को जल्दी से खींच लिया और दूसरी तरफ ले आया...

"यार तुझे स्नेहा चाहिए या नही...?" रवि की आवाज़ मे नाराज़गी थी..

"हां चाहिए यार... पर तू ये क्यूँ पूछ रहा है..."

"अबे अकल के दुश्मन... भरी पार्टी मे लड़ाई करेगा तो घंटा वो पटेगी...?" रवि ने राज के सर पर एक चमात लगाया..

"पर वो लड़का स्नेहा के बारे मे गंदा बोल रहा था..."

"अबे ऐसे ही होते हैं आजकल के लड़के... लड़की देखी नही की फब्तियाँ कसनी शुरू कर देते हैं... चल छ्चोड़... अब हमे अपने प्लान पर काम करना शुरू कर देना चाहिए... देख उधर..(अपनी उंगली उधर करते हुए जिधर जूस के स्टॉल लगे हुए थे..) वहाँ नेहा खड़ी है... अब जा...." रवि ने राज को धक्का देते हुए कहा...

राज के तो तोते उड़ने लगे... लड़कियों से बात करना उसके बस की बात नही थी... फिर भी अपने प्यार को पाने के लिए उसे ऐसा करना ही था आज...

स्नेहा जूस का ग्लास पकड़े अपने टेबल पर बैठी थी... राज धीरे धीरे उस तरफ बढ़ने लगा... वो धीरे धीरे टेबल के पास पहुँचा और जान बूझकर स्नेहा से टकरा गया...जिससे उसका जूस का ग्लास उलट गया और स्नेहा के कपड़ों पर जूस गिर गया...

"ओह माइ गॉड.... आइ'म सो सॉरी... आइ'म रियली सॉरी... ग़लती हो गयी जी..." राज ने स्नेहा से माफी माँगने का नाटक करते हुए कहा...

"क्या रे साले... क्या कर रहा है... लड़की को तंग कर रहा है..." प्लान के मुताबिक रवि वहाँ पहुँच गया और टपोरी वाली लॅंग्वेज मे राज को धमकाने लगा...

"नही जी.. मैं तंग कहाँ कर रहा हूँ... मैं तो बस जूस गिरने के लिए माफी माँग रहा था..." राज ने डरते हुए कहा..

"अबे तेरी तो..." ये बोलकर रवि ने उसका कॉलर पकड़ लिया...

"ये क्या कर रहे हैं... छ्चोड़ दीजिए इन्हे... प्लीज़..." स्नेहा ने रवि का हाथ पकड़ कर राज को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा...

"आप बोलती हैं तो छ्चोड़ देता हूँ.. वरना इसका मैं आज कीमा बना देता..." रवि ने झूठे गुस्से का नाटक करते हुए कहा. इसके बाद वो वहाँ से चला गया पर जाते जाते उसने राज को आँख मार दी जिसका मतलब था कि प्लान बिल्कुल ट्रॅक पर चल रहा है...

"आइ'म सो सॉरी... मेरी वजह से आपके कपड़े गंदे हो गये... आप चाहें तो मैं आपको आपके घर छ्चोड़ सकता हूँ जहाँ आप अपने कपड़े चेंज कर लीजिएगा.. फिर मैं आपको वापस पार्टी मे ले आउन्गा.." रवि के जाने के बाद राज ने आगे के प्लान के मुताबिक काम करते हुए बोला...

"नही जी.. इसकी कोई ज़रूरत नही है... और सॉरी बोलने की भी कोई ज़रूरत नही है.. मैं जानती हूँ कि ये आपने जान बूझकर नही किया होगा.." दिल की सॉफ स्नेहा ने राज को एक बार मे ही माफ़ कर दिया जिसे सुनकर राज अपने किए पर पछताने लगा पर उसे तो कैसे भी स्नेहा को पाने का भूत सवार था...

"अरे आपको मुझसे डरने की ज़रूरत नही है... मैं अच्छे घर का लड़का हूँ.. कोई ऐसी वैसी हरकत नही करूँगा... मेरे पास बाइक है.. मैं बस आधे घंटे मे आपको वापस पार्टी मे ले आउन्गा..." राज ने फिर कोशिश की...

स्नेहा भी अब सोच मे पड़ गयी..की उसके साथ चली जाए... उसे लड़के मे कोई बुराई भी नज़र नही आ रही थी... आख़िर उसने राज के साथ जाने का फ़ैसला कर लिया...

"ठीक है जी मैं आपके साथ चलने के लिए तैय्यार हूँ पर ज़रा जल्दी क्यूंकी केक काटने मे अब सिर्फ़ कुछ ही वक़्त बाकी है."स्नेहा ने जवाब दिया.

"हमारी बाइक हवा से भी तेज़ चलती है." ये बोलकर राज बाहर आ गया और साथ मे स्नेहा भी.. फिर दोनो बाइक पर बैठकर चल पड़े स्नेहा के घर की तरफ.

"अरे माफ़ कीजिएगा.. इन सारी बातों मे मैं तो आपका नाम पूछना ही भूल गयी... क्या नाम है आपका..?" बाइक पर राज के पीछे बैठी स्नेहा को अब इतनी शांति अच्छी नही लग रही थी..

तभी अचानक राज ने एक ज़ोरदार ब्रेक लगाया और स्नेहा उछलकर राज से चिपक गयी और खुदको गिरने से बचाने के लिए उसे पीछे से कसकर पकड़ लिया... जिससे उसका सर राज के कंधे पर आ गया.. उसके जिस्म की भीनी ख़ूसबू राज के तंन मंन पर छा गयी..जिससे उसका जोश बढ़ गया और उसने शरम लाज छ्चोड़कर स्नेहा से बात करनी शुरू कर दी..

"बंदे को राज कहते हैं... राज सिंघानिया.." उसने जोश मे आते हुए बोला.. और ये बोलते बोलते उसने बाइक फिर से स्टार्ट कर दी..

"वोही राज ना..जो हमारे कॉलेज का टॉपर है... वही हो ना आप...?"

"जी बिल्कुल... मैं वही राज हूँ..."

ये सुनकर स्नेहा के चेहरे पर मुस्कान तेर गयी... पढ़ाई मे आगे रहने वाले लोग उसे हमेशा से पसंद थे... और कॉलेज के टॉपर से तो वो कब्से मिलना चाहती थी.. पर कभी मिल नही पाए थे वो दोनो..क्यूंकी राज तो क्लास मे जाता ही नही था.. बस नोट्स अपने दोस्तों से लेता और एग्ज़ॅम मे जाकर लिख देता... उसकी दिमागी क्षमता इतनी थी कि वो बिना क्लास अटेंड किए टॉपर बन गया था.. पर हां ये ज़रूर था कि डाउट पूछने के लिए वो हमेशा प्रोफेस्सर्स के आगे पीछे करता रहते था...

"और मेरा नाम.....

"स्नेहा..." राज ने बीच मे ही उसकी बात काट दी...

"पर आप मुझे कैसे जानते हैं..?" स्नेहा के चेहरे पर शक की लकीरें सॉफ देखी जा सकती थी...

"अजी आपको कौन नही जानता मोहतार्मा... ठाकुर साहब की एकलौती बेटी... राजनगर का बच्चा बच्चा आपको..." राज ने उसकी तारीफों के पूल बाँधते हुए कहा...

"अच्छा जी..तो ऐसी बात है.. मुझे तो पता ही नही था..."स्नेहा ने भी अब बातों के मज़े लेने शुरू कर दिए थे... असल मे राज भी उसे पसंद आ रहा था और आता भी क्यूँ ना... इतने हॅंडसम और इंटेलिजेंट लड़के पर तो कोई भी लड़की जान छिड़कने को तैय्यार हो जाती...

"और नही तो क्या... आपके रूप के जादू ने तो पूरे कॉलेज को दीवाना बना रखा है..." राज ने अब थोड़ा खुलते हुए कहा... जिससे स्नेहा शर्मा गयी और उसके होंटो पर एक मुस्कान तेर गयी...

"एक बात कहूँ स्नेहा जी..?" राज ने फिर कहा...

"नही.." स्नेहा ने मुह्न बनाते हुए बोली...

"क्यूँ नही जी...?" इस रूखे जवाब से राज घबरा गया... उसे लगा कि कहीं उसने कोई ग़लती तो नही कर दी..पर तभी स्नेहा बोल पड़ी..

"ये क्या जी जी लगा रखा है.. मैं तुमसे बड़ी थोड़े ही हूँ... एक ही क्लास मे हैं हम दोनो तो फिर ये जी जी बोलना बंद करो..."

"ओके स्नेहा जी... ऊपपस... आइ मीन स्नेहा... अब नही बोलूँगा... बस अब खुश...?" राज ने एक हल्की सी हसी हस्ते हुए कहा...

"बिल्कुल..."

"अच्छा तो मैं ये बोल रहा था कि आप गाती बहुत अच्छा हो... मैं तो तुम्हारी आवाज़ का दीवाना हो गया हूँ स्नेहा..." इस बात से एक बार फिर स्नेहा का गाल शर्म के मारे लाल हो गया... पता नही क्या बात थी उस लड़के मे.. जिस लड़की ने आज तक लड़कों की तरफ देखा तक नही था वो अचानक उससे ऐसे बात करने लगी जैसे पता नही कितने जन्मों से उसे जानती हो...

राज पीछे तो नही देख सकता था पर उसे स्नेहा के भाव समझ आ रहे थे... उसका दिल उछल रहा था....

तभी स्नेहा का घर आ गया और उनकी बातों का सिलसिला कुछ देर के लिए थम गया... स्नेहा बाइक से उतर कर अंदर गयी और 5 मिनिट मे कपड़े बदलकर वापस आ गयी... इस बार उसने पिंक कलर का चुरिदार पहन रखा था जिसमे वो और भी खूबसूरत लग रही थी... गेट से बाहर आते ही राज की नज़रें उस पर जम गयी.. एक बार भी बिना पालक झपकाए वो उसे देखता जा रहा था... देखता ही जा रहा था... जैसे उसे आज अपने सपनो की रानी मिल गयी हो... वो धीरे धीरे बाइक के पास आती जा रही थी..पर राज की नज़रें थी कि उसपर से हट नही रही थी...

स्नेहा ने इस बात को तुरंत ही नोटीस कर लिया था..पर वो कुछ बोली नही... पता नही क्यूँ आज उसके साथ कुछ अजीब सा हो रहा था... लड़कों का घूर्ना उसे सबसे ज़्यादा आखरता था..पर पता नही क्या बात थी राज मे... स्नेहा को उसका घूर्ना बिल्कुल बुरा नही लग रहा था उल्टा उसे शर्म आ रही थी...

शायद ये राज के प्यार की पवित्रता ही थी जो एक हवस भरी नज़र और एक प्यार भरी नज़र के फ़ासले को अच्छी तरह प्रदर्शित कर रही थी..

स्नेहा धीरे धीरे चल कर आई और अदा से बाइक पर बैठ गयी...

राज के दिल पर एक बार फिर च्छूरियाँ चल उठी.... उसने बाइक स्टार्ट की और वापस रिया के घर की ओर चल पड़े...

पूरे राश्ते राज के मुह्न से एक शब्द नही निकला... स्नेहा की सुंदरता ने उसकी ज़ुबान पर ताला लगा दिया था... उसके दिमाग़ मे स्नेहा की प्रसंशा मे बस ये कुछ शब्द ही आ पा रहे थे...

इतना खूबसूरत चेहरा है तुम्हारा;

हर दिल दीवाना है तुम्हारा;

लोग कहते हैं चाँद का टुकड़ा हो तुम;

लेकिन हम कहते हैं चाँद टुकड़ा है तुम्हारा....

"कुछ कहा तुमने...?" राज मन मे शायरी बोलते बोलते अपनी ज़ुबान पर ला बैठा था जो स्नेहा ने सुन लिया था और ये सवला पूछ बैठी...

राज को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या बोले...

"नही.. मैं बस इतना कह रहा था कि रिया का घर आने वाला है..." ये सुनकर स्नेहा उसके भोलेपन पर मुस्कुरा उठी... वो समझ चुकी थी कि वो उसे पसंद करता है... तबतक रिया का घर आ चुका था.. दोनो बाइक से उतर गये और राज ने बाइक पार्क कर दी... फिर दोनो एक साथ अंदर चले गये...

"क्या बॉस..? भाभी पटी की नही...?" रवि ने राज के पास आते ही ऐसे पूछा जैसे वो किसी बड़े मिशन पर गया था...

"अरे भाई लड़की इतनी जल्दी थोड़े हो पटती है.. पहले दोस्ती करनी पड़ती है और फिर बात कुछ आगे बढ़ती है..." राज ने जवाब दिया..

"वाह बेटा... अब तू मुझे ही सीखाने लग गया... साले मैने तेरी इतनी मदद की और तू मुझे सिखा रहा है..." रवि ने मुह्न बनाते हुए कहा...

"अबे चल चुप कर.. बड़ा आया मदद करने वाला... सारा काम तो मुझे ही करना पड़ा..." राज ने भी उसे चिढ़ाते हुए कहा...

"साले लड़की मिल गयी तो दोस्त से ऐसे बात करने लगा... सच ही कहते हैं लोग... लड़की ही दोस्ती मे दरार की सबसे बड़ी वजह बनती है..." रवि ने उदासी का नाटक करते हुए कहा...

"अबे चल... नौटंकी कहीं का... देख अब केक काटने वाला है... अब अपनी नौटंकी बंद कर दे..." राज ने रवि को हल्का सा घूँसा मारते हुए कहा...

क्रमशः.........................
 
एक औरत की दास्तान--4

गतान्क से आगे...........................

फिर हॉल मे एक बड़ा सा केक आया और रिया उसके सामने खड़ी हो गयी.. उसके बगल मे ही स्नेहा खड़ी थी.. फिर रिया ने केक काटा और सबने उसे "हॅपी बर्तडे" विश किया और गिफ्ट्स दिए... फिर सबने खाना खाया और पार्टी ख़तम हो गयी...

"क्या मैं आपको घर छ्चोड़ दूं स्नेहा...?" पार्टी ख़तम होने के बाद राज ने स्नेहा के पास जाकर कहा...

"नही राज... वैसे ही मैने तुमसे बहुत मदद ले ली... अब और नही... मैं अभी अपने दोस्तों के साथ चली जाउन्गि... तुम रहने दो..."

"अच्छा ठीक है स्नेहा... कल मिलते हैं कॉलेज मे..." ये बोलते समय राज के चेहरे पर मायूसी की लकीरें सॉफ देखी जा सकती थी और ये बात स्नेहा से भी च्छूपी हुई नही थी..... खैर इसके बाद सब अपने अपने घर चले गये....

**********************

"अब हमे शादी कर लेनी चाहिए जानू... तुमने मुझसे वादा किया था..." रिया ने उस लड़के को उसके वादे की याद दिलाते हुए कहा...

"रिया मेरी जान... अभी तुम्हारी उमर ही क्या है... अभी तो तुम सिर्फ़ 20 की हो... सही वक़्त आने पर हम कर लेंगे शादी..." लड़के ने उसकी चूचियों पर अपने होंठ लगाते हुए कहा...

"पर हम कब तक बिना शादी के इस तरह से शरीरीक संबंध बनाते रहेंगे..." रिया ने अपनी बात रखी...

"जान... अभी तो हमारे मज़े करने के दिन है... क्यूँ तुम अभी से शादी के बारे मे सोच सोच कर परेशान हो रही हो... जब वक़्त आएगा तो वो भी हो जाएगी... " उस लड़के की जीभ धीरे धीरे रिया के पेट से होती हुई उसकी नाभि पर आ गयी.. और फिर उसकी चूत पर... रिया की सिसकारी निकल गयी....

"अगर मुझे बच्चा हो गया तो...?" रिया ने फिर आशंका जताई...

"अरे नही होगा जान... देखो मैने कॉंडम लगा रखा है ना..." लड़के ने अपना लंड दिखाते हुए कहा... उस पर पिंक कलर का कॉंडम लगा हुआ था जो शायद स्ट्रॉबेरी फ्लेवर का था...

इस बात पर रिया शांत हो गयी.. उसके पास अब बोलने के लिए कुछ नही बचा था.. वो लड़का अब उसके ऊपर आ चुका था.... और अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था... पूरे कमरे मे उसकी सिसकारियाँ गूँज रही थी.... और फिर लड़के ने धक्के तेज़ किए और उसकी चूत मे ही झाड़ गया... पर कॉंडम ने बचा लिया...

रिया को कुछ समझ मे नही आ रहा था कि वो क्या करे... कब तक ऐसे अवैध संबंध बना कर रखे... उसने उस लड़के की तरफ नज़र डाली... जो अब आराम से खर्राटे मार रहा था और उसका लंड अब भी रिया की चूत मे था...

"कुछ समझ नही आ रहा यार... कि अब कैसे उससे बात करूँ... कोई आइडिया ही नही आ रहा दिमाग़ मे... और दिल है कि मानता नही... कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा यार..." राज और रवि एक गार्डन मे पेड़ के नीचे बातें कर रहे थे... कॉलेज तो वो जाते नही थे...इसलिए दिनभर घूमते रहते थे... कभी शॉपिंग माल तो कभी मल्टिपलेक्स.. और नही तो कहीं चूत बाजी(लड़कीबाज़ी) मे लगे रहते थे... उनका शेड्यूल भी अजीब था... रात मे वो रात भर पढ़ते रहते और बस 3 घंटे सोते थे... उनके अलावा ये बात किसी को नही पता थी कि वो कॉलेज नही जाते हैं... मा बाप को भी उन्होने उल्लू बनाने मे कोई कसर नही छ्चोड़ी थी...

पर एक बात और थी... राज के मा बाप नही थे.. उसके मा बाप की मृत्यु एक कार दुर्घटना मे उस समय हो गयी थी जब वो रात को एक पार्टी से वापस आ रहे थे.. राज उस समय बहुत छोटा था इसलिए उसे घर मे ही छ्चोड़ कर गये थे..उसका पालन पोषण एक नौकर ने किया था.. या यूँ कह लीजिए कि एक मॅनेजर ने किया था... क्यूंकी वो पढ़ा लिखा नही था फिर भी उसके राज के मा बाप के मरने के बाद उसका पूरा बिज़्नेस संभालता था... उसका काम बस इतना होता था कि वो ऑफीस जाकर वहाँ पर सभी को ज़रूरी आदेश दे देता था और बाकी का काम ऑफीस के लोग संभाल लेते थे..यूँ तो उनका नाम "जगलाल रामकुमार कृष्णकुमार चेद्दि लाल पासवान" था पर राज उन्हे "जग्गू काका" कहकर पुकारता था..

बचपन से उन्होने राज को अपने बेटे की तरह प्यार किया... जब उसके मा बाप मरे थे तो जग्गू काका सिर्फ़ 25 बरस के थे... अपने छ्होटे मालिक की सेवा करने के लिए उन्होने कभी शादी भी नही की... अपने मालिक के लिए वो जान भी देने को तैय्यार था.. और इसी प्यार मुहब्बत के कारण राज बिगड़ गया था...

हालाँकि उसे कोई बुरी आदत नही थी फिर भी जो लड़का कभी कॉलेज ना जाकर सिनिमा देखे और माल मे घूमे उसे बिगड़ा हुआ ना कहें तो क्या कहें...

खैर वापस अपनी कहानी पर आते हैं...

रवि भी सोच मे पड़ गया कि आख़िर वो राज की मदद कैसे करे...

"अबे सुन.. एक रापचिक आइडिया आया है वीरे..." रवि ने उछलते हुए कहा...

"जल्दी बता जल्दी बता..." राज ने भी उत्साहपूर्वक अपन कान उसके मुह्न के पास ले जाते हुए कहा...

"तू मुझसे प्यार का नाटक कर..." रवि की ये बात सुनकर राज चौंक उठा...

"अबे गे समझा है क्या...? साले मैं तुझे प्यार करूँ... मेरे पास लंड नही है क्या...?"

"अबे कौन सी बड़ी बात है मुझसे प्यार करना... न्यूज़ नही देखते क्या आजकल..? इंडिया मे गे मॅरेज लीगल हो गयी है... तू मुझसे प्यार का नाटक करेगा और स्नेहा को ये बात पता चलेगी तो फिर अगर वो तुझसे प्यार करती होगी तो उसे हम से जलन होगी... और वो आकर तुम्हें प्रपोज़ कर देगी... है ना मस्त आइडिया...?" रवि ने उत्तेजित होते हुए अपना गे बनने का आइडिया बताया...

"अबे घंटा आइडिया है.. पता नही तेरे इस चूतिया दिमाग़ में कैसी कैसी बातें आती रहती हैं... गे बनाएगा मुझे... चूतिया कहीं का..." राज ने मुह्न बनाते हुए कहा...

"अबे साले.. मुँह क्यूँ बना रहा है... वैसे भी हम दोनो हर जगह साथ ही जाते हैं.. और अब देखो जहाँ सारे प्रेमी बैठकर प्यार भरी बातें करते हैं.. हम भी वहीं बैठकर दो प्रेमियों की तरह बातें कर रहे हैं...पेड़ के नीचे.. प्यार भरी बातें.. तो हुए ना हम गे..हाहाहा..." रवि ने ठहाका लगाते हुए कहा...

पर राज को अभी कुछ भी अच्छा नही लग रहा था... उसके दिमाग़ मे तो बस स्नेहा..स्नेहा की धुन्न बज रही थी..

"बंद कर मज़ाक यार... आजकल मज़ाक नही अच्छे लगते.. प्लीज़ कुछ बढ़िया सा आइडिया दे.." राज ने विनती की...

"मैं तो कहता हूँ..कि जाकर पूरे कॉलेज के सामने उसे आइ लव यू बोल दो... और एक ज़ोर का चुंबन उसके होठों पर जड़ दो..." रवि ने फिर बिना सोचे समझे जवाब दिया...

"हां... आइ लव यू बोल दूं... और शहीद हो जाउ... साले तूने उसे किसी ऐरे गैरे की बेटी समझ रखा है क्या...? ठाकुर खानदान की एकलौती बेटी है... जान से मरवा देगा मुझे मेरा होने वाला ससुर..." इतनी डरावनी बात बोलते हुए भी राज उसे अपना ससुर बोलना नही भूला... उसे पूरी उम्मीद थी कि वो कैसे भी स्नेहा को ज़रूर पटा लेगा... चाहे इसके लिए उसे अपनी क्लासस ही क्यूँ ना अटेंड करनी पड़े... जो काम उसने कभी नही किया है वो भी क्यूँ ना करना पड़े... और अंत मे उसने एक फ़ैसला ले ही लिया... कि वो कल कॉलेज जाएगा...
 
"अरे बेटवा इतना सवेरे सवेरे काहे नाहत हो..? कहीं जाए का है का...?"

"हां काका कॉलेज जाना है... इसलिए आज सुबह सुबह नहा लिया..

"पर अभी तो सुबह के 4 बजल हैं.. अभी कौन कॉलेजेवा चलत होयहैं..?"

"अरे काका.. आज हमारी एक्सट्रा क्लास है.. इसलिए हमे आज 5 बजे ही बुला लिया है कॉलेज मे... इसलिए अभी ही नहा रहा हूँ ताकि 4 बजे तक कॉलेज पहुँच सकूँ.."

"अच्छा बेटा जैसन तोहार मर्ज़ी.." जग्गू काका ने भी अब ज़्यादा सवाल जवाब करना ठीक नही समझा... आज राज फिर पागलों की तरह सुबह 4 बजे ही नहा रहा था... हहालाँकि कॉलेज 10 बजे शुरू होता था और उसके घर से कॉलेज तक का रास्ता सिर्फ़ 20 मिनिट का था...फिर भी आज उसे कॉलेज जाने की इतनी जल्दी थी कि वो सुबह 4:30 मे ही घर से निकल गया... अभी बाहर पूरा अंधेरा ही था... सभी लोग अभी घर मे रज़ाई मे दुबक कर सोए हुए थे..पर प्यार मे पागल राज निकल गया कॉलेज के लिए...

अब उसे बस एक चिंता खाए जा रही थी..कि वो रवि के घर कैसे जाए...? उसकी मा अगर उससे सवाल जवाब करेगी तो वो क्या जवाब देगा...? वो अभी अपनी बाइक से कुछ ही दूर गया था कि उसे एक चाई की दुकान दिखी.. उसने सोचा कि क्यूँ ना यहाँ पर थोड़ा वक़्त बिता लिया जाए...

वो बाइक से उतरा और चाई की दुकान पर बैठ गया.. गनीमत थी कि वो दुकान इतनी सुबह सुबह खुल गयी थी वरना आज उसे रवि की मम्मी की डाँट सुननी पड़ती... उसने वहाँ बैठते ही चाई का ऑर्डर दिया... और पास मे ही पड़ा न्यूसपेपर उठा कर पढ़ने लगा.. न्यूसपेपर की हर फोटो मे उसे स्नेहा का चेहरा दिख रहा था... उसने न्यूसपेपर के अक्षर पढ़ने की कोशिश की पर आज पता नही क्यों उसे न्यूसपेपर पढ़ने मे भी मन नही लग रहा था.. उसके दिमाग़ मे बस एक ही शब्द था... बस एक ही नाम था...."स्नेहा स्नेहा..." इसी दौरान वहाँ पर चाई भी आ गयी... उसने बड़ी मुश्किल से चाई पी..क्यूंकी चाई भी आज उसके हलक से नीचे नही उतर रही थी... एक एक पल उसके लिए कैसा गुज़र रहा था ये तो सिर्फ़ उसका दिल ही जानता था.... जब उससे और ज़्यादा बर्दाश्त ना किया गया तो वो वहाँ से उठ गया और अपनी बाइक पर बैठकर बाइक स्टार्ट कर दी... अब उसे लग रहा था कि वो एक पल भी स्नेहा के बिना नही रह पाएगा... उसे कैसे भी उसका चेहरा देखना था.. कुछ भी करना था पर जिसे उसने अपने मन मे देवी के रूप मे बसाया है उसका चेहरा देखना है... उसका दिल ज़ोर से धड़क रहा था और दिमाग़ भारी असमंजस मे था कि अब वो क्या करे और क्या ना करे... अंत मे उसने एक फ़ैसला कर ही लिया जिससे वो कम से कम कॉलेज जाने से पहले ही स्नेहा का चेहरा देख सकता था... और इसी फ़ैसले पर अमल करते हुए उसने अपनी गाड़ी घुमा दी "ठाकुर विला" की तरफ...

"ठाकुर-विला" के बाहर पहुचते ही उसने अपनी बाइक एक साइड मे लगा दी... इसके बाद बाइक से उतर कर तेज़ धड़कनो के साथ गेट की तरफ बढ़ने लगा... उसकी साँसें आज कुछ ज़्यादा ही तेज़ चल रही थी.. ऐसा लग रहा था कि वो चाई की दुकान से बाइक पर नही बल्कि दौड़ कर यहाँ आया हो... जैसे जैसे वो गेट की तरफ बढ़ रहा था वैसे वैसे उसके दिल की धड़कनो की गति और ज़्यादा तेज़ होती जा रही थी.. उसने ऊपर वाले का नाम लिया और फिर आगे बढ़ने लगा.. वो बिल्कुल कछुए की तरह धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था.. ऐसा लग रहा था कि जैसे वो किसी जंग पर जा रहा हो.. अगर ये कोई मूवी होती तो दर्शक अभी तक चिल्ला कर बोल रहे होते... "अबे चूतिए आगे बढ़ ना..." खैर उसने अपनी गति बढ़ा ही दी.. और अब तेज़ कदमों से बढ़ने लगा दरवाज़े की तरफ... जैसा कि हर हवेली मे होता है... घर के सामने एक बड़ा लोहे का दरवाज़ा लगा हुआ था जिसपर एक गार्ड बैठकर चौकीदारी कर रहा था..

दरवाज़े पर एक बड़ा सा प्लेट लगा हुआ था जिसपर सुनहरे अक्षरों मे "ठाकुर विला" लिखा हुआ था...

पर उसके नीचे वाले प्लेट मे जो लिखा हुआ था उसे देख कर राज की हसी छूट गयी... नीचे छोटे से प्लेट मे लिखा हुआ था..."कुत्तों से सावधान"

उसने पूरे सेंटेन्स को मिलाकर पढ़ा तो वो कुछ ऐसा बना... "ठाकुर विला.. कुत्तों से सावधान"

उसने जल्दी से अपना दिमाग़ इस बकवास से हटाया और फिर अपना काम करने पर लगा दिया.. अपना मकसद पूरा करने पर...

"ओये किधर जाता है..." एक कड़क आवाज़ उसके कानो मे पड़ी... उसने सर घुमा कर देखा तो उस हवेली का गार्ड खड़ा था... करीब 7 फ्ट. लंबा कड़क आवाज़ और मर्दों वाली कड़क मूच्छे... राज की तो उसे देखते ही गंद फटने लगी... वो बिना पूछे ही अंदर घुस रहा था और उस गार्ड की नज़र उसपर पड़ गयी..

"अंकल जी.. मैं कहीं नही जा रहा हूँ.. ये तो अपना ही घर है... मैं तो बस इस घर की मालकिन स्नेहा जी से मिलने जा रहा था.." राज ने हाथ जोड़ते हुए कहा...

"ऐसे चोरों की तरह क्यूँ जा रहा था बे...?" उसने राज का कॉलर पकड़ कर उसे उठा लिया...

"मुझे छ्चोड़ दो भाई.. स्नेहा मेरे क्लास मे पढ़ती है और मैं उसका दोस्त हूँ... प्लीज़.. मैं बस उससे मिलने जा रहा था..." उसे अब साँस लेने मे तकलीफ़ हो रही थी.. उसका गला गार्ड के बड़े बड़े पंजों मे क़ैद था...

"झूट बोलता है तुम... तुम यहाँ चोरी करने आया था.. आज हम तुमको ऐसा सबक सिखाएगा कि तुम चोरी करना भूल जाएगा..." गार्ड ने उसके कॉलर पर अपनी पकड़ मजबूत कर दी...

"अरे भाई मैं चोरी करने नही आया था..." पर राज की ये बात गले मे ही अटक गयी क्यूंकी गार्ड ने उसका गला इतनी ज़ोर से पकड़ रखा था कि उसे साँस भी नही ली जा रही थी तो आवाज़ क्या निकलती...

"अबे रामू, श्यामू, मोहन... सब बाहर तो आओ... देखो आज मैने एक चोर पकड़ा है..." गार्ड ने चिल्लाते हुए कहा...

उसके इतना बोलते ही सामने बने सर्वेंट्स क्वॉर्टर से 3 मुस्टंडे बाहर निकले... उन्हें देखकर राज को पॅंट मे ही पेशाब हो गया... उसे पता था कि आज उसकी जान जाने वाली है.. उसने यहाँ आकर बहुत बड़ी ग़लती की है...

तीनो मुस्टंडे उसके सामने आए... और तीनो ने एक एक थप्पड़ उसे जमा दिया..."हमारे साहब के यहाँ चोरी करेगा साले..." इतना बोलकर तीनो ने मिलकर उसपर लात घूसों की बारिश कर दी... बेचारे के मुह्न और नाक से खून की एक धारा बह निकली... प्यार जो ना करवाए वो कम है.. उसके दिमाग़ मे बस अभी यही बात आ रही थी.. उसके मुह्न से अब घुटि घुटि चीख ही निकल पा रही थी..पर तीनो मुस्टंडे उसे मारते हुए ज़ोर ज़ोर से गालियाँ बके जा रहे थे...

क्रमशः.........................
 
एक औरत की दास्तान--5

गतान्क से आगे...........................

इतना शोर सुनकर ठाकुर साहब और स्नेहा दौड़ते हुए घर से बाहर निकले...

"क्या हो रहा है यहाँ...?" ठाकुर साहब ने कड़कती हुई आवाज़ मे कहा..जिसे सुनकर तीनो मुस्टंडे शांत हो गये... सामने राज लहूलूहान अवस्था मे पड़ा हुआ था... तबतक स्नेहा की नज़र उस तरफ जा चुकी थी पर राज का चेहरा ज़मीन की तरफ था जिससे वो उसका चेहरा नही देख पाई.....

"ठाकुर साहब ये चोर अपने घर मे चुपके से चोरी करने के लिए घुस रहा था.. मैने इसे देख लिया और पकड़ कर इसकी पिटाई कर दी.." गार्ड ने अपना सीना फूलते हुए कहा जैसे कोई बहुत बड़ा काम कर दिया हो...

"चोर को कोई ऐसे जानवरों की तरह मारता है क्या...?" स्नेहा ने दयनिय नज़रों से उस चोर की तरफ देखते हुए कहा...

"माफ़ करना बिटिया पर चोर को देखकर इतना गुस्सा आ गया था हम को की पूरा हाथ सॉफ करवा दिए इन मुस्टांडों से.. और जब ई चोरवा बोला कि वो आपसे मिलने आया था और आपके साथ पढ़ता था तो हम को और गुस्सा आ गया कि ये ससुरा हमारी बिटिया का नाम बीच मे ला रहा है और हम ने इसकी पिटाई करवा दी.." गार्ड ने कहा...

साथ पढ़ने वाली बात सुनकर स्नेहा का माता ठनका और वो दौड़ती हुई राज के पास पहुँच गयी... इतनी लात खाने के कारण वो अब तक बेहोश हो चुका था... स्नेहा ने उसका चेहरा जैसे ही अपनी तरफ घुमाया; उसकी चीख निकल गयी.. और उसकी आँखों मे आँसू आ गये...

"बेटी तू इसे जानती है क्या..?" स्नेहा की चीख सुनकर ठाकुर साहब ने पूछ ही लिया...

"हां पापा.. ये मेरे ही कॉलेज मे पढ़ता है.. इसका नाम राज सिंघानिया है.." स्नेहा ने राज का नाम बताते हुए कहा..

ठाकुर साहब:- राज सिंघानिया.. ह्म्म.. ये नाम तो कुछ जाना पहचाना लग रहा है.. कहीं ये प्रताप सिंघानिया का बेटा तो नही..

"कौन प्रताप सिंघानिया पापा..?" स्नेहा ने सवाल किया..

"अब जाने दो बेटा.. इसे होश आने दो तब ये खुद बता देगा..." ठाकुर साहब उसे देख कर कुछ सोच रहे थे.. शायद अपने पुराने दिन याद कर रहे थे...

"इसे इतना मारने की क्या ज़रूरत थी.. देखो क्या हाल बना दिया बेचारे का... तुमलोगों को मैं अभी नौकरी से निकलवा दूँगी..." अब स्नेहा ने उन्न मुस्टांडों की तरफ देखते हुए कहा.. राज अब भी उसकी गोद मे पड़ा हुआ था..

"माफ़ कर दो बिटिया... पर हमे लगा कि ई कोई चोर है..." गार्ड ने सफाई देने की कोशिश करते हुए कहा...

"तो इसने कहा था ना कि ये मेरे साथ पढ़ता है.. तुम मुझे बुलाकर पूछ भी तो सकते थे..इस अकेले को मारकर अपनी मर्दानगी झाड़ने लगे..?" पता नही क्यों आज स्नेहा को कुछ ज़्यादा ही गुस्सा आ रहा था... ठाकुर साहब ने पहले कभी उसे इतने गुस्से मे नही देखा था.. उन्हे लगा कि शायद उसकी नींद पूरी नही हुई है इसलिए वो गुस्सा रही है...

"बेटा अब जाने भी दो... ग़लती हो गयी उनसे.." ठाकुर साहब ने स्नेहा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा... तब जाकर कहीं वो शांत हुई...

"इसे उठाकर अंदर ले आओ मेरे कमरे मे.." स्नेहा ने उन लोगों को आदेश दिया..

"तुम क्या करोगी इसके साथ..?"ठाकुर साहब उसकी बात सुनकर असमंजस मे पड़ गये..

"मरहम पट्टी करूँगी पापा और क्या...?"

"पर बेटा उसके लिए मैं डॉक्टर को फोन कर दूँगा.. तुम्हें क्या ज़रूरत है इसकी..?" ठाकुर साहब ने स्नेहा की तरफ देखते हुए कहा..क्योंकि स्नेहा ने आज तक खुद की भी महराम पट्टी नही की थी और अचानक अब वो नर्स बनने चली थी..

"पापा.. ये मेरे कॉलेज मे पढ़ता है.. आपको चिंता करने की कोई ज़रूरत नही है... मैं कर दूँगी.." स्नेहा ने फिर ज़िद्द की..

"अच्छा ठीक है बेटा.. जैसी तेरी मर्ज़ी.." ठाकुर साहब ने ज़्यादा बहस करना ठीक नही समझा और उन्न मुस्टांडों को राज को कमरे मे पहुँचाने का आदेश देकर चले गये...

***************************

"एम्म..मैं कहाँ हूँ...?" राज की आँखें धीरे धीरे खुल रही थी... इतनी ज़्यादा मार खा कर वो आज दिन भर बेहोश रहा था.. स्नेहा ने उसे फर्स्ट एड देने के बाद डॉक्टर को भी बुला लिया था ताकि किसी तरह की लापरवाही की गुंजाइश ना रह जाए... उसके सर पर पट्टी बँधी हुई थी और मुह्न पर भी पट्टी सटी हुई थी.. वो उठने की कोशिश करने लगा पर स्नेहा ने उसे उसके कंधे पकड़ कर उसे उठने से रोक दिया..

"मैं कहाँ हूँ.." अपनी कमज़ोर लड़खड़ाती आवाज़ मे उसने एक बार फिर पूछा..

"तुम अभी मेरे घर ठाकुर विला मे हो.." उसके कानो मे एक पतली सुरीली सी आवाज़ गूँज उठी... उसने सर थोड़ा सा ऊपर करके देखने की कोशिश की तो सामने उसने चाँद से भी सुंदर.. अपने सपनो की राजकुमारी स्नेहा को पाया... उसे देखते ही ऐसा लगा जैसे उसका दर्द एक पल मे ही गायब हो गया हो...

"अरे स्नेहा तुम... पर मैं यहाँ कैसे पहुँचा...?" उसने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा..

"भगवान का शुकर करो कि तुम यहीं तक पहुँचे हो.. अगर मैं वहाँ समय पर नही पहुँची होती तो अभी ऊपर पहुँच गये होते.." स्नेहा ने ऊपर की तरफ इशारा करते हुए कहा...

"बहुत मारते हैं तुम्हारे नौकर यार... कीमा बना दिया मेरा.. हाए शरीर मे बड़ा दर्द हो रहा है..." राज ने अंगड़ाई लेते हुए कहा..

"उसी काम के लिए रखा है पापा ने उन्हे.. और तुम्हें क्या ज़रूरत थी ऐसे चोरों की तरह अंदर घुसने की..? इतना मारा उन्होने तुम्हें..अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो..?" स्नेहा ने उसे डाँटते हुए कहा...

"मैं तो सिर्फ़ तुमसे मिलना चाहता था स्नेहा.."

"इतनी सुबह सुबह कोई मिलने आता है भला..? तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता..?" ना चाहते हुए भी उसकी ज़ुबान से ये बात निकल ही गयी... उसने राज की तरफ देखा जो मुस्कुराता हुआ प्यार भरी नज़रों से उसकी तरफ देख रहा था पर स्नेहा की हिम्मत नही हो रही थी की वो राज से नज़रें मिला सके...

"तुम्हें अब थोड़े आराम की ज़रूरत है... मैं तुम्हारे लिए दूध भिजवा देती हूँ.. अगर हर फोन करना हो तो(रूम मे लगे टेबल की तरफ इशारा करते हुए) फोन उधर है... अब मैं चलती हूँ... कल सुबह मिलते हैं..." इतना बोलकर वो नज़रें झुकाए हुए बाहर की तरफ लगभग दौड़ती हुई चली गयी... उसने राज को कुछ भी बोलने का मौका नही दिया.. पर वो अब तक स्नेहा के दिल की बात भी जान चुका था और अब उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी जैसे उसने अपना सबसे बड़ा लक्ष्य पा लिया हो..

मोहब्बत में तेरी खो गये हम इस कदर,

ख़यालों खवाबों में आए सिर्फ़ तू ही नज़र,

ना है कोई होश ना कोई खबर खुद की अब,

तू ही है मेरी मंज़िल तू ही है हर मंज़र
 
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