non veg story एक बार ऊपर आ जाईए न भैया - Page 2 - SexBaba
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non veg story एक बार ऊपर आ जाईए न भैया

नीचे की बर्थ पर एक तरफ़ उसकी माँ सोई थी और दूसरी तरफ़ उसका बाप और वो बेशर्म अपनी बूर में मेरा सफ़ेदा लिए बीच में खड़ी थी. उसकी झाँटों पर मेरा सफ़ेदा लिसड़ा हुआ साफ़ दिख रहा था और उसकी बूर से पानी उसकी भीतरी जाँघों पर बह रहा था।

उसने आराम से अपनी मम्मी के रुमाल से अपनी बूर पोछी और मुझे नीचे आने का इशारा किया। मेरा दिल धक से किया, क्या फ़िर इसको नीचे चुदाने का भूत सवार हो गया। मेरे ना में सिर हिलाने पर उसने गुस्से से मुझे जोर से डाँटते हुए कहा, "नीचे और नहीं तो मैं जोर-जोर से चिल्लाने लगुँगी" और उसने एक बार पुकारा भी "मम्मी,,,मम्मी..."। मेरा तो अब उसका यह ड्रामा देख फ़टने लगा। मैं तोलिया लपेट झट से नीचे आया। स्वीटी यह सब देख कर हँस पड़ी। गुड्डी वहीं नीचे खिड़्की पकड़ कर झुक गई और अपना एक हाथ अपने जाँघों के बीच से निकाल कर अपने बूर की फ़ाँक खोल दी। किसी बछिया की बूर जैसी दिख रही थी उसके बूर की अधखुली फ़ाँक। मेरे पास अब कोई चारा नहीं था। मेरा लन्ड एक बार हीं झड़ा था और उसमें अभी भी पूरा कसाव था। मैंने एक नजर उसके खर्राटे लेते बाप के चहरे पर डाली और फ़िर बिना कुछ सोचें उसकी बूर में लन्ड घुसा दिया। एक मीठी आआअह्ह्ह्ह्ह के साथ गुड्डी अपने बूर में मेरे लन्ड को महसूस करके शान्त हो गई। मैं अब हल्के-हल्के उसको चोदने लगा था, कि आवाज कम से कम हो। गुड्डी भी शान्त हो कर चुद रही थी, हाँ बीच-बीच में वो अपने माँ-बाप की तरफ़ भी देख लेती थी। जल्दी हीं मेरा खून गर्म हो गया और मैंने सही वाले धक्के लगाने शुरु कर दिए। आअह्ह्ह्ह्ह आआह्ह्ह्ह ओह ओह से शमां बंधने लगा था। जल्द हीं मैं उसकी बूर में फ़िर से झड़ गया। वैसे भी किसी लड़की को ऐसे कुतिया के तरह चोदने में मैं जल्दी स्खलित हो जाता हूँ, मुझे ऐसा लगता है। वो यह समझ गई पर मुझे नहीं रुकने को कहा और फ़िर १५-२० सेकेण्ड बाद वो भी शान्त हो गई। हमदोंनो अलग हुए। गुड्डी ने फ़िर से अपनी मम्मी के रुमाल में अपना बूर पोछा और फ़िर उस लिसड़े हुए रुमाल को अपनी मम्मी के पास रख दिया। इसके बाद वो वैसे हीं नंग-धड़ंग टायलेट की तरफ़ बढ़ गई। मुझे भी पेशाब लग गया था, तो मैं भी हिम्मत करके उसके पीछे चल दिया। वैसे भी उस तरफ़ हीं वो जवान जोड़ा था जिसकी चुदाई हमने देखी थी।

मैंने देखा कि वो दोनों अभी भी जगे हुए हैं और मोबाईल पर कोई फ़िल्म देख रहे थे शायद। हम दोनों को ऐसे नंगे देख कर दोनों मुस्कुराए, तो मैं भी मुस्कुराया। टायलेट में पहले गुड्डी हीं गई, पर उसने दरवाजा बन्द नहीं किया और आज पहली बार मैंने एक जवान लड़की को पेशाब करते देखा। छॊटी बच्चियों को मैं अक्सर देखता था जब भी मौका मिला। बिना नजर हटाए मुझे बूर की उस फ़ाँक से निकलती पेशाब की धार को देखते हुए अपने लन्ड में हमेशा से कसाव्व महसूस होता था। आज मेरे सामने एक जवान लड़की जिसकी बूर पर झाँट भी थे, मेरे सामने बैठ कर मूत रही थी, मेरे से नजर मिलाए। मेरा लन्ड तो जैसे अब फ़ट जाता, कि तभी वो उठी और अपने बूर पर हाथ फ़िराया। उसकी हथेली पर उसके पेशाब के बूँद लग गए थे और उसने अपनी हथेली मेरी तरफ़ बढ़ाया। मैंने भी बिना कुछ सोंचे, उसकी पेशाब की बूँद को उसकी हथेली पर से चाट लिया। उसने मेरे होठ चूम लिए और फ़िर एक तरफ़ हट गई। उसके दिखाते हुए मैंने भी पेशाब किया और फ़िर जब मैं लन्ड हिला कर पेशाब की आखिरी कुछ बूँद निकाल रहा था गुड्डी झुकी और मेरे लन्ड को चाट ली। मेरा लन्ड अब कुछ ढ़ीला हो गया था और गुड्डी के पीछे-पीछे मैं भी अब वापस अपनी बर्थ की तरफ़ चल पड़ा। जाते हुए जब हमने फ़िर से उस दक्षिण-भारतीय जोड़े को देखा तो हम दंग रह गए। मेरे और गुड्डी को ऐसे डब्बे में घुमते देख उनको भी शायद जोश आ गया था और अब उस मर्द के लन्ड को चूस कर उसके साथ की लड़की कड़ा कर रही थी। गुड्डी ने एक बार उनको देखा फ़िर मुझे देखा और फ़िर वो नंगे हीं उस जोड़े की तरफ़ बढ़ गई। उसको पास आता देख वो लड़की सकपकाई और लन्ड को अपने मुँह से बाहर करके एक तरफ़ हट गई। 

गुड्डी वहीं सीट के पास अपने घुटनों पर बैठी और उस अनजाने मर्द के काले-कलुटे लन्ड अपने मुँह में ले कर चुसने लगी। मेरी अब फ़िर से फ़तणे लगी थी, ये रंडी साली अब क्या करने लगी। मैं अब वहाँ से जल्दी से जल्दी भागना चाहता था। पर गुड्डी ने उस लड़की को मेरी तरफ़ इशारा कर दिया और मुझसे बोली, "अपना लन्ड भी इस लड़की से चुसवाओ और कड़ा करो, फ़िर एक आखिरी बार मुझे चोद देना"। मेरे पास कोई चारा था नहीं सो मैं भी अब उनकी तरफ़ बढ़ा और वो लड़की सब समझ कर मेरे लन्ड को अपने मुँह में ले ली। यह लड़की अभी तक ब्लाऊज पहने हुए थी, और साया भी ठीक से बदन पर था। दो मिनट के बाद हीं गुड्डी वहीँ नीचे पीठ के बल लेट गई और मुझे अपने ऊपर आने का इशारा किया। उस मर्द ने भी अपनी वाली लड़की के सर पर चपत लगा कर अपनी तरफ़ बुलाया और फ़िर उसके साया के डोरी को खींच कर खोल दिया। अब बर्थ पर वो लड़की और नीचे गुड्डी दोनों साथ-साथ चुद रहीं थीं। भाषा में फ़र्क के बाद भी दोनों चुद रहीं उत्तर और दक्षिण भारतीय लड़कियों में मुँह से एक हीं किस्म की सिसकी निकल रही थी। आह्ह्ह आअह्ह्ह की दो आवाजों ने सामने की बर्थ पर सोए एक अंकल जी की नींद खोल दी। उस बुढ़े ने जब देखा कि जो जवान जोड़ा चुदाई में मस्त है तो तमिल मिले अंग्रेजी में बड़बड़ाया, "३-४ दिन सब्र नहीं होता है, इतनी गर्मी अब के जवानों को चढ़ती है कि बिना जगह समय देखे शुरु हो जाते हैं", फ़िर उठ कर पेशाब करने चला गया।


हम सब को अब इस सब बात से कोई फ़र्क तो पड़ना नहीं था। हमारा चुदाई का कार्यक्रम चलता रहा। उसके वापस आने तक हम दोनों मर्द अपनी-अपनी लड़की की बूर में खलास हो गए। पहले उस जोड़े का खेल खत्म हुआ और जब तक वो सब अपना कपड़ा ठीक करते मैं भी गुड्डी मी बूर में झड़ गया था, आज तीसरी बार झड़ने के बाद अब मेरे में दम नहीं बचा था अभी। मैं गुड्डी के ऊअप्र से हटा तो वो भी उठी और फ़िर उस लड़की का मुँह चूम कर बाए बोली और फ़िर अपने चूत में मेरे माल को भर कर फ़िर अपने सीट पर आई और फ़िर मम्मी वाले रुमाल में हीं अपना बूर पोछी। उस रुमाल का बूरा हाल था। फ़िर वहीं नीचे ही अपने कपड़े पहने, अपने मम्मी-पापा के बीच में खड़ा हो कर। रात के २:३० बज चूके थे। सो मैंने कहा कि अब कुछ समय सो लिया जाए। ट्रेन थोड़ा लेट है तो हम लोग को कुछ आराम का मौका मिल जाएगा। फ़िर मैं अपनी बहन स्वीटी के साथ लिपट कर सो गया और वो सामने के बर्थ पर करवट बदल कर लेट गई। ट्रेन पहले हीं लेट थी अब शायद रात में और लेट हो गई और करीब ६ बजे जब मैं जागा तो देखा कि गुड्डी के मम्मी-पापा उठे हुए हैं और अपना कपड़ा वगैरह भी ठीक कर चुके हैं। मैं भी ऊठा तो प्रीतम जी बोले, "अभी करीब दो घन्टे और लगेगा। आप आराम से तैयार हो लीजिए।" मैं टायलेट से हो कर आया तो स्वीटी आराम से जगह मिलने पर पसर कर सो गई थी और स्वीटी की नंगी गोरी जाँघ पर प्रीतम जी की नजर जमी हुई थी और उनकी बीबी टायलेट के बाहर के आईने में अपना बाल ठीक कर रही थी कंघी ले कर। मुझे यह देख कर मजा आया। मैंने स्वीटी की उसी नंगी जाँघ को प्रीतम जी के देखते-देखते पकड़ा को जोर से हिलाया, "स्वीटी, उठो अब देर हो जाएगा।" 
 
स्वीटी भी हड़बड़ा कर उठी और और मैंने इशारा किया कि वो साईड वाले रास्ते की तर्ह बनी सीढ़ी के बजाए दोनों सीट के बीच में मेरे सहारे उतर जाए। मैंने अपने बाँह को ऐसे फ़ैला दिया जैसे मैं उसको सहारा दे रहा होऊँ। उसने भी आराम से अपने पैर पहले नीचे लटकाए। प्रीतम जी सामने की सीट पर बैठे थे और सब दे ख रहे थे। स्वीटी के ऐसे पैर लटकाने से उसकी नाईटी पूरा उपर उठ गई और अब उसकी दोनों जाँघ खुब उपर तक प्रीतम जी को दिख रही थी। मैंनें स्वीटी को इशारा किया और वो धप्प से मेरे गोदी में कुद गई। उसकी चुतड़ को मैंने अपने बाहों में जकड़ लिया था और धीरे से उसको नीचे उतार दिया। मेरे बदन से उसकी नाईटी दबी और उसके पूरे सपाट पेट तक का भी दर्शन प्रीतम जी को हो गए। स्वीटी तो पहले ही दिन बिना ब्रा-पैन्टी सोई थी तो आज की रात क्यों अपने अंडर्गार्मेन्ट्स पहनती। मैंने देखा कि प्रीतम जी की गोल-गोल आँख मेरी बहन की मक्खन जैसी नंगी बूर से चिपक गई थी एक क्षण के लिए, तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "स्वीटी, अब जल्दी से आओ और अपना कपड़ा सब ठीक से पहनो अब दिन हो गया है और मैंने प्रीतम जी से नजर मिलाया।" बेचारा शर्म से झेंप गया। स्वीती भी अब अपने बालों को संभालते हुए टायलेट चली गई और मैं प्रीतम जी से बोला, "देख रहे हैं, इतने बड़ी हो गई है और बचपना नहीं गया है इसका, पता नहीं यहाँ अकेले कैसे रहेगी।" प्रीतम जी हीं झेंपते हुए बोले, "हाँ सो तो है, गुड्डी भी ऐसी ही है... नहा लेगी और सिर्फ़ पैन्ट पहन कर ऐसे ही खुले बदन घुमने लगेगी कि अपने घर में क्या शर्म..., अब बताईए जरा इस सब को... खैर सब सीख जाएगी अब जब अकेले रहना होगा।" हमारी बात-चीत से गुड्डी भी उठ गई और वो भी देखी कि अब रोशनी हो गया है तो नीचे आ गई। आधे घन्टे में हम सब उतरने को तैयार हो गए और करीब ७ बजे ट्रेन स्टेशन पर आ गई। हम सब साथ हीं स्टेशन के पास के एक होटल में रूम लिए, दोनों परिवार ने एक-एक रूम बुक किया। प्रीतम जी का वापसी का टिकट दो दिन बाद का था और मेरा तीन दिन बाद का। खैर करीब दो घन्टे बाद ९.३० बजे हम सब कौलेज के लिए निकल गए।

उस दिन हम सब खुब बीजी रहे, दोनों बच्चियों का नाम लिखवाया गया फ़िर करीब ४ बजे उन दोनों को एक हीं होस्टल रुम दिलवा कर हम सब चैन में आए। इसके बाद हमने साथ हीं एक जगह खाना खाया और फ़िर शाम में एक मौल में घुमे, और करीब ९ बजे थक कर चूर होटल में आए। सब थके हुए थे सो अपने-अपने कमरे में सो रहे। हालाँकि मैं स्वीटी के साथ हीं बिस्तर पर था बन्द कमरे में पर थकान ऐसी थी कि उसको छूने तक का मन नहीं था। वही हाल उसका था सो आराम से सोए। रात १० बजे से करीब ६ बजे सुबह तक एक लगातार सोने के बाद मेरी नींद खुली, देखा स्वीटी बाथरूम से निकल कर आ रही हैं। मुझे जागे हुए देखा तो वो सीधे मेरे बदन पर हीं गिरी और मुझसे लिपट गई। मुझे भी पेशाब लग रही थी तो मैंने उसको एक तरफ़ हटाया और बोला, "रूको, पेशाब करके आने दो..."। मुझे बाथरूम में ही लगा कि स्वीटी ने कमरे की बत्ती जला दी है। मैं जब लौटा तो देखा कि मेरी १८ साल की जवान बहन स्वीटी पूरी तरह से नंगी हो कर अपने पैर और हाथ दोनों को फ़ैला कर बिस्तर पर सेक्सी अंदाज में बिछी हुई है। अब कुछ न समझना था और ना हीं सोचना। सब समझ में आ रहा था सो मैं भी अपने गंजी और पैन्ट को खोल कर पूरी तरह से नंगा हो कर बिस्तर की ओर बढ़ा। मेरी बहन अब अपने केहुनी के सहारे थोड़ा उठ कर मेरे नंगे बदन को निहार रही थी। ५’१० का मेरा साँवला बदन दो ट्युब-लाईट की रोशनी में दमक रहा था। मैं बोला, "क्या देख रही हो ऐसे, बेशर्म की तरह..." स्वीटी बोली, "बहुत हैंडसम हैं भैया आप, भाभी की तो चाँदी हो जाएगी"। मैं भी उसको अपने बाहों में समेटते हुए बोला, "भाभी जब आएगी तब देखा जाएगा, अभी तो तुम्हारी चाँदी हो गई है... बेशर्म कहीं की।" स्वीटी ने मेरे छाती में अपना मुँह घुसाते हुए कहा, "सब आपके कारण हीं हुआ है... आपके लिए तो बचपन से हम रंडी बनने के लिए बेचैन थे, अब रहा नहीं जा रहा था। सो ट्रेन में साथ सटने का मौका मिला तो हम भी रिस्क उठा लिए।" 
 
एक बार ऊपर आ जाईए न भैया--4

मैंने उसकी नन्हीं-नन्हीं चूचियों को मसलते हुए कहा, "मेरे लिए.... पहले से अपना बूर का सील तुड़वा ली और बात बना रही है.... अच्छा बताओ न अब मेरी गुड़िया, किसके साथ करवाई थी पहले, कौन सील तोड़ा तुम्हारा?" अब स्वीटी मेरे से नजर मिला कर बोली, "कोई नहीं भैया, अपने से ४ बार कोशिश करके खीरा से अपना सील तोड़ी थी, एक सप्ताह पहले। जब पक्का हो गया कि अब घर से बाहर होस्टल में जाने को मिल जाएगा तब अपने से सील तोड़ी काहे कि मेरी दोस्त सब बोली कि अगर कहीं बाहर मौका मिला सेक्स का और ऐसे-वैसे जगह पर चुदाना पर गया या फ़िर परेशानी ज्यादा हुई तब क्या होगा... घर पर तो जो दर्द होगा घर के आराम में सब सह लोगी सो सील तोड़ लो। इसीलिए, रोशनी के घर पर पिछले मंगल को गई थी तो उसी के रूम में खीरा घुसवा ली उसी से। अपने से ३ बार घुसाने का कोशिश की पर दर्द से हिम्मत नहीं हुआ। फ़िर रोशनी हीं खीरा मेरे हाथ से छीन कर हमको लिटा कर घुसा दी। दिन में उसका घर खाली रहता है सो कोई परेशानी नहीं हुई। इसके बाद वही गर्म पानी ला कर सेंक दी। फ़िर करीब दो घन्टे आराम करने के बाद सब ठीक होने के बाद मोमबत्ती से रोशनी हमको १२-१५ मिनट चोदी तब जा कर हमको समझ में सब आ गया और हिम्मत भी कि अब सब ठीक रहेगा।" मेरा लन्ड तो यह सब सुन कर हीं झड़ गया। मेरे उस मुर्झाए लन्ड को देख वो अचम्भित थी तो मैंने उसको चुसने को बोला। वो झुकी और चुसने लगी मैं भी उसको अपने तरह घुमा लिया और हम दोनो ६९ में लग गए। स्वीटी मेरा लन्ड चूस रही थी और मैं उसका बूर जिसमें से अभी भी पेशाब का गन्ध आ रहा था और जवान लड़की की बूर कैसी भी हो लन्ड को लहरा देती है।

२ मिनट में लन्ड टनटना गया तो मैंने उसको बिस्तर पर सीधा बिछा कर उसके उपर चढ़ गया और लगा उसकी कसी बूर की चूदाई करने। वो अब मजे से कराह रही थी... यहाँ कोई डर-भय था नहीं, कोई न देखने वाला न सुनने वाला सो आज वो बहुत जोश में थी और पूरा सहयोग कर रहे थी। मैं भी अपनी सगी बहन की चुदाई खुब मन से मजे ले लेकर करने में मशगुल था। वो अचानक जोर से काँपी और निढ़ाल सी शान्त हो गई। मैं समझ गया कि उसको मजा आ चुका है। मेरे पूछने पर वो बोली, "हाँ भैया अब हो गया अब छोड़ दीजिए हमको...प्लीज।" उसकी आवाज मस्ती से काँप रही थी। मैंने भी उसको पकड़ कर अब तेज और जोर के धक्के लगाए, वो अब नीचे छटपटाने लगी थी। मैं बिना रिआयत किए उसकी चुदाई किए जा रहा था। बेचारी रो पड़ी कि मेरा भी पानी छुटने को हुआ तो मैंने अपना लन्ड बाहर खींचा और उसकी बूर से निकलते-निकलते झड़ गया। गनीमत थी कि मेरा वीर्य उसकी बूर के बाहर होने के बाद निकला वर्ना मामला सेकेण्ड भर का भी नहीं था। वो घबड़ा गई थी, और रो दी थी, फ़िर मैंने उसको समझाया कि परेशानी की कोई बात नहीं है। एक बूँद भी भीतर नहीं निकला है, तब कहीं जा कर वो शान्त हुई... आखिर वो मेरी बहन थी और मैं उसका भाई...। मैंने उसके पेट पर से सब कुछ साफ़ किया। वो अब शान्त हो गई थी, मैंने उसको प्यार से होठों पर चूमा, वो अब भी थोड़ा सीरियस थी उसको लग रहा था कि मैंने अपना माल का कुछ हिस्सा उसकी बूर की भीतर गिरा दिया है, हालाँकि ऐसा हुआ नहीं था। अब जब वो शान्त थी तो मैं यही सब उसको समझाने में लगा हुआ था। मैंने उसको अब कहा, "देखो स्वीटी, तुम मेरी बहन हो इस लिए यह सब तो किसी हाल में मेरे से होगा ही नहीं कि तुम्हारे बदन के भीतर मेरा निकल जाए... अब बेफ़िक्र हो जाओ और खुश हो जाओ, नहीं तो हम तुमको जोर से गुदगुदी कर देंगे", कहते हुए मैंने उसके बगलों में अपनी ऊँगली चलाई। 

वो भी यह देख कर थोड़ा हँसी... और माहौल हल्का हुआ तो मुझे लगा कि अब एक बार और उसको चोदें। मैंने मजाक करते हुए कहा, "लड़की हँसी... तो फ़ँसी, जानती हो ना, और तुम अब हँस रही हो... समझ लो, मेरे से फ़ँस जाओगी।" वो भी मेरी बात सुन कर मुस्कुराई, तो मैंने उसके चेहरे को अपने हाथों के बीच ले कर अपने होठ उसके होठों पर रख दिए। अब वो भी मेरे चुम्मा का जवाब देने लगी थी, मैंने अपने जीभ को उसके मुँह के भीतर घुसा दिया और बोला, "अब एक बार गाँड़ मराओगी मेरी जान...?" वो तुरन्त बिदकी..."नहींहींईईई... हरगीज नहीं, जो कर रहें है आपके साथ उससे संतोष नहीं है क्या आपको?" मैंने बात संभाली, "नहीं मेरी रानी, तुम तो हमको खरीद ली इतना प्यार दे करके", और अब मैं उसके चूचियों को चुसने चाटने लगा था। उसका गुलाबी निप्पल एकदम से कड़ा हो कर उभर गया था। वो बोली, "बस आज भर हीं इसके बाद यह सब बन्द हो जाएगा, फ़िर कभी आप इसका जिक नहीं कीजिएगा... नहीं तो फ़िर हमको बहुत शर्म आएगा। अब से फ़िर वही पहले वाला भैया और स्वीटी बन जाना है। अभी बहुत मुश्किल पढ़ाई करना है आगे। इसलिए आज-भर यह सब कर लीजिए जितना मन हो, फ़िर मत कहिएगा कि हम आपको ठीक से प्यार नहीं दिए", और उसने मेरा मुँह हल्के से चूम लिया। मैंने देखा कि अब एक बार फ़िर उस पर पढ़ाई का भूत चढ़ने लगा था, सो एक तरह से अच्छा ही था। मैंने भी कहा, "ठीक ही है, अभी मेरे पास है न २४ घन्टा... फ़िर ठीक है" और मैंने उसको बिस्तर पर सीधा लिटा दिया, वो समझ गई। मैं अब उसकी बूर पर अपना होठ चिपका कर चूसने लगा था। उसकी साँस तेज होने लगी थी।
मैं अब उसके बूर के भीतर जहाँ तक जीभ घुसा सकता था घुसा कर खुब मन से अपनी छॊटी बहन की बूर का स्वाद लेने में मगन था। वो इइइइस्स्स्स इइइइस्स्स्स कर रही थी, अपने सर को कभी दाएँ तो कभी बाएँ घुमा रही थी। मुझे पता चल रहा था कि उस पर चुदास चढ़ गया है।

मैंने अपनी बहन से कहा, "पलट कर झुको न मेरी जान, पीछे से चोदेंगे अब तुमको...बहुत मजा आएगा।" उसको कुछ ठीक से समझ में नहीं आया, वो पीछे मतलब समझी कि मैं उसकी गाँड़ मारने की बात कर रहा हूँ। वो तुरन्त बिदकी, "नहींईईई... पीछे नही, प्लीज भैया।" मैंने उसको समझाया, "धत्त पगली..., पीछे से तुम्हारा बूर हीं चोदेंगे। कभी देखी नहीं हो क्या सड़क पर कैसे कुत्ता सब कुतिया को चोदता है बरसात के अंत में.., वैसे ही पीछे से तुमको चोदेंगे।" वो अब सब समझी और बोली, "ओह, मतलब अब आप अपनी बहन को कुतिया बना दीजिएगा... हम तो पहले से आपके लिए रंडी बने हुए हैं।" मैंने उसको ठीक से पलट कर पलंग के सिरहाने पर हाथ टिका कर बिस्तर पर हीं झुका दिया, और फ़िर उसके पीछे आ कर उसके बूर की फ़ाँक जो अब थोड़ा पास-पास हो कर सटी हुई लगने लगी थी उसको खोल कर सूँघा और फ़िर चातने लगा। उसको उम्मीद थी कि मेरा लन्ड घुसेगा, पर मेरी जीभ महसूस करके बोली, "भैया अब चोद लीजिए जल्दी से पेशाब, पैखाना दोनों लग रहा है... सुबह हो गया है।" मुझे भी लगा कि हाँ यार अब सब जल्दी निपटा लेना चाहिए, सवा सात होने को आया था। मैं अब ठीक से उसके पीछे घुटने के बल बैठा और फ़िर अपना लन्ड के सामने वाले हिस्से पर अपना थूक लगाया और फ़िर उसकी बूर की फ़ाँक पर भीरा कर बोला, "जय हो..., मेरी कुत्तिया, मजे कर अब..." और धीरे से लन्ड को भीतर ठेलने लगा। इस तरह से बूर थोड़ा कस गया था, वो अपना घुटना भी पास-पास रखी थी बोली, "ऊओह भैया, बहुत रगड़ा रहा है चमड़ा ऐसे ठीक नहीं हो रहा है", और वो उठना चाही। मैंने उसका इरादा भाँप लिया और उसको अपने हाथ से जकड़ दिया कि वो चूट ना सके और एक हीं धक्के में उसकी बूर में पूरा ७" ठोक दिया भीतर। हल्के से वो चीखी.... पर जब तक वो कुछ समझे, उसकी चुदाई शुरु हो गई। मैंने उसको सामने के आईने में देखने को कहा जो बिस्तर के सिरहाने में लगा हुआ था। जब देखी तो दिखा उसका नंगा बदन, और उस पर पीछे से चिपका मेरा नंगा बदन..., उसकी पहली प्रतिक्रिया हुई, "छी: कितना गंदा लग रहा है... हटिए, हम अब यह नहीं करेंगे।" मैंने कहा, "अब कहाँ से रानी.... अब तो आराम से चूदो। लड़की को ऐसे निहूरा कर पीछे से चोदने का जो मजा है उसके लिए लड़का लोग कुछ भी करेगा।"
 
वो आआह्ह्ह आअह्ह्ह्ह्ह कर रही थी और मस्ती से चूद भी रही थी, बोली "आप लड़का हैं कि भिअया हैं मेरे....?" मैंने बोला, "भैया और सैंया में बस हल्के से मात्रा का फ़र्क है, थोड़ा ठीक से पूकारो जान।" वो चूदाई से गर्मा गई थी, बोली, "हाँ रे मेरे बहनचोद....भैया, अब तो तुम मेरा सैयां हो ही गया है और हम तुम्हारी सजनी.. इइइस्स .आआह्ह्ह, इइस्स्स्स उउउउउउउ आआह्ह्ह्ह्ह भैया बहुत मजा आ रहा है और अपना सिर नीचे झुका कर तकिए पर टिका ली। उसका कमर अब ऊपर ऊठ गया था और मुझे भी अपने को थोड़ा सा घुटने से ऊपर उठाना पड़ा ताकि सही तरीके से जड़ तक उसकी बूर को लन्ड से मथ सकूँ। उसके बूर में से फ़च फ़च, फ़च फ़च आवाज निकल रहा था। बूर पूरा से पनिआया हुआ था। मेरे जाँघ के उसके चुतड़ पर होने वाले टक्कर से थप-थप की आवाज अलग निकल रही थी। मैं बोला, "तुम्हारा बूर कैसे फ़च-फ़च बोल रहा है सुन रही हो...", वो हाँफ़ते हुए जवाब दी, "सब सुन रहे हैं... कैसा कैसा आवाज हो रहा है, कितना आवाज कर रहे हैं बाहर भी सुनाई दे रहा होगा।" मैंने कहा, "तो क्या हुआ, जवान लड़का-लड़की रूम में हैं तो यह सब आवाज होगा हीं..." और तभी मुझे लगा कि अब मैं खलास होने वाला हूँ, सो मैंने कहा, " अब मेरा निकलेगा, सो अब हम बाहर खींच रहे हैं तुम जल्दी से सीधा लेट जाना तुम्हारे ऊपर हीं निकालेगें, जैसे ब्लू फ़िल्म की हीरोईन सब निकलवाती है वैसे ही।" मेरे लन्ड को बाहर खीचते हीं पिचकारी छुटने को हो आया, तो मैं उसको बोला, "मुँह खोल कुतिया जल्दी से..." बिना कुछ समझे वो अपना मुँह खोली और मैंने अपना लन्ड उसकी मुँह में घुसेड़ दिया औरुसके सर को जोर से अपने लन्ड पर दबा दिया। वो अपना मुँह से लन्ड निकालने के लिए छ्टपटाई... पर मेरे जकड़ से नहीं छूट सकी और इसी बीच मेरे लन्ड ने झटका दिया और माल स्वीटी की मुँह के अंदर, एक के बाद एक कुल पाँच झटके, और करीब दो बड़ा चम्मच माल उसके मुँह को भर दिया और कुछ अब बाहर भी बह चला। स्वीटी के न चाहते हुए भी कुछ माल तो उसके पेट में चला हीं गया था। मैं अब पूरी तरह से संतुष्ट था। स्वीटी अब फ़िर अजीब सा मुँह बना रही थी... फ़िर आखिर में समझ गई कि क्या हुआ है तो उसके बाद बड़े नाज के साथ बोली, "हरामी कहीं के....एक जरा सा दया नहीं आया, बहन को पूरा रंडी बना दिए.... बेशर्म कहीं के, हटो अब..." और एक तौलिया ले कर बाथरुम की तरफ़ चली गई। मुझे लगा कि वो नाराज हो गई है मेरे इस आखिरी बदमाशी से, पर ठीक बाथरूम के दरवाजे पर जा कर वो मुड़ी और मुझे एक फ़्लाईंग किस देते हुए दरवाजा बन्द कर ली।

करीब २० मिनट के बाद स्वीटी नहा कर बाहर आई, तौलिया उसके सर पर लिपटा हुआ था और वो पूरी नंगी हीं बाहर आई और फ़िर मुझे बोली, "अब जाइए और आप भी जल्दी तैयार हो जाइए, कितना देर हो गया है, गुड्डी अब आती होगी, आज तो अंकल-आँटी के लौटने का दिन है।" मैं उठा और बाथरूम की तरफ़ जाते हुए कहा, "हाँ ७ बजे शाम की ट्रेन है।" स्वीटी तब अपने बाल को तौलिए से सुखा रही थी। करीब ९ बजे हम दोनों तैयार हो कर कमरे से बाहर निकले, तब तक प्रीतम जी का परिवार भी तैयार हो गया था। गुड्डी उसी मंजिल पर एक और बंगाली परिवार टिका हुआ था उसी परिवार की एक लड़की से बात कर रही थी। उसको अगले साल बरहवीं की परीक्षा देनी थी और वो लड़की गुड्डी से इंजीनियरींग के नामाकंन प्रक्रिया के बारे में समझ रही थी। हम सब फ़िर साथ हीं नास्ता करके फ़िर घुमने का प्रोग्राम बना कर एक टैक्सी ले कर निकल गए। दिन भर में हम पहले एक प्रसिद्ध मंदिर गए और फ़िर एक मौल में चले गए। सब लोग कुछ=कुछ खरीदारी करने लगे। दोनों लड़कियों ने एक-एक जीन्स पैन्ट खरीदी और फ़िर एक ब्रैन्डेड अंडर्गार्मेन्ट्स की दुकान में चली गई। हम सब अब बाहर हीं रूक गए। फ़िर हम सब ने वहीं दिन का लंच लिया और फ़िर करीब ४ बजे होटल लौट आए। आज शाम ७ बजे प्रीतम जी और उनकी पत्नी लौट रहे थे, मेरा टिकट कल का था। थोड़ी देर में गुड्डी हमारे कमरे में आई और एक छोटा सा बैग रख गई जो उसका था और साथ में हम दोनों को बताई कि उसका इरादा आज होस्टल जाने का नहीं है। आज रात वो हमारे साथ रुकने वाली है और फ़िर कल दोनों सखियाँ साथ में हीं होस्टल जाएँगी। मेरी समझ में आ गया कि अब आज रात मेरा क्या होने वाला था। बस एक हीं हौसला था कि स्वीटी समझदार है और वो मुझे अब परेशान नहीं करेगी। वैसे भी उसका इरादा अब क्यादा सेक्स करने का नहीं था। ६ बजे के करीब हम सब स्टेशन आ आ गए और फ़िर प्रीतम जी को ट्रेन पर चढ़ा दिया। वो और उनकी बीवी अपनी बेटी को हजारों बात समझा रहे थे, पर मुझे पता था कि उसको कितना बात मानना था। खैर ठीक समय से ट्रेन खुल गई और हम सब वापस चल दिए। 

रास्ते में हीं हमने रात का खाना भी खाया। वहीं खाना खाते समय हीं गुड्डी ने अपना इरादा जाहिर कर दिया, "आज रात सोने के पहले तीन बार सेक्स करना होगा मेरे साथ, मैं देख चुकी हूँ कि तुमको लगातार तीन बार करने के बाद भी कोई परेशानी नहीं होती है।" फ़िर उसने स्वीटी से कहा, "क्यो स्वीटी, तुम्हें परेशानी नहीं न है अगर मैं आज रात मैं तुम्हारे भैया के साथ सेक्स कर लूँ"। स्वीटी का जवाब मेरे अंदाजे के हिसाब से सही थी, "नहीं, हम तो जितना करना था कर लिए, अब भैया जाने तुम्हारे साथ के बारे में।" ९.३० बजे हम लोग अपने कमरे पर आ गए। और आने के बाद स्वीटी ड्रेस बदलने लगी पर गुड्डी आराम से अपने कपड़ी उतारने लगी और मुझे कहा कि मैं अभी रूकूँ। गुड्डी ने आज गुलाबी सलवार सूट पहना हुआ था। पूरी तरह से नंगी होने के बाद उसका गोरा बदन उस कमरे की जगमगाती रोशनी में दमक रहा था। काली घुँघराली झाँट उसकी बूर की खुबसूरती में चार चाँद लगा रही थी। वो आराम से नंगे हीं मेरे पास आई और फ़िर मेरे टी-शर्ट फ़िर गंजी और इसके बाद मेरा जीन्स उतार दिया। फ़िर जमीन पर घुटनों के सहारे बैठ गई और मेरा फ़्रेन्ची नीचे सरार कर मुझे भी नंगा कर दिया। स्वीटी भी अब बाथरूम से आ गयी थी और विस्तर पर बैठ कर हम दोनों को देख रही थी, "तुमको भी न गुड्डी, जरा भी सब्र नहीं हुआ..."। गुड्डी ने उसको जवाब दिया, "अरे अब सब्र का क्या करना है, तीन बार सेक्स करने में बारह बज जाएगा, अभी से शुरु करेंगे तब... फ़िर सोना भी तो है। दिन भर घुम घाम कर इतना थक गई हूँ।" स्वीटी बोली, "वही तो मेरा तो अभी जरा भी मूड नहीं है इस सब के लिए...."। 

गुड्डी मेरा लन्ड चूसना शुरु कर दी थी। मैंने कहा, "तुम लोग थक गई और मेरे बारे में कुछ विचार नहीं है...", गुड्डी बोली, "ज्यादा बात मत बनाओ मुफ़्त में दो माल मिल गई है मारने के लिए तो स्टाईल मार रहे हो... नहीं तो हमारी जैसी को चोदने के लिए दस साल लाईन मारते तब भी मैं लाईन नहीं देती, क्यों स्वीटी...?" फ़िर हम सब हँसने लगे और मैंने गुड्डी के चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उसको जमीन से उठाया और फ़िर उसके होठ को चुमते हुए उसको बिस्तर पर ले आया। स्वीटी एक तरफ़ खिसक गई तो मैंने गुड्डी को वही लिटा दिया और फ़िर उसकी चूचियों को सहलाते हुए उसकी बूर पर अपना मुँह भिरा दिया। झाँट को चाट-चाट कर गिला कर दिया और फ़िर उसके जाँघों को फ़ैला कर उसकी बूर के भीतर जीभ ठेल कर नमकीन चिपचिपे पानी का मजा लिया। उसकी सिसकी निकलनी शुरु हो गई तो मैं उठा और फ़िर उसके जाँघ के बीच बैठ कर अपने खड़े लन्ड को उसकी फ़ाँक पर लगा कर दबा दिया। इइइइइइइस्स्स्स की आवाज उसके मुँह से निकली और मेरा ८" का लन्ड उसकी बूर के भीतर फ़िट हो गया था। मैंने झुक कर उसके होठ से होठ भिरा दिए और फ़िर अपनी कमर चलानी शुरु कर दी। वो अब मस्त हो कर चूद रही थी और बगल में बैठी मेरी बहन सब देख रही थी। मेरी जब स्वीटी से नजर मिली तो उसने कहा, "इस ट्रिप पर आपकी तो लौटरी निकल आई है भैया, कहाँ तो सिर्फ़ मेरा हीं मिलने वाला था, वो भी अगर आप हिम्मत करते तब, और कहाँ यह गुड्डी मिल गई है जो लगता है सिर्फ़ सेक्स के लिए हीं बनी है।" मैं थोड़ा झेंपा, पर बात सच थी। मैंने उसकी परवाह छोड़ कर गुड्डी की चुदाई जारी रखी। आअह्ह्ह्ह आआह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह आह्ह्ह आह्ह्ह्ह...हुम्म्म हुम्म्म हुम्म्म... हम दोनों अब पूरे मन से सिर्फ़ और सिर्फ़ एक दूसरे के बदन का सुख भोगने में लगे हुए थे।

करीब १० मिनट की धक्कम-पेल के बाद मैं खलास होने के करीब आ गया, मैंने अपना लण्ड बाहर खींच लिया। गुड्डी भी शायद समझ गई थी फ़िर वो बोली, "अरे निकाले क्यों मेरे भीतर हीं गिरा लेते, अभी तो आज तक कोई डर नहीं है आज तो तीसरा दिन ही है... खैर मेरे मुँह में गिराओ... आओ" और उसने अपना मुँह खोल दिया तो मैं अपना लण्ड उसके मुँह में दे दिया। वो अब अपना मुँह को थोड़ा जोर से लन्ड पर दाब कर आगे-पीछे करने लगी तो लगा जैसे म्रेरे लन्ड का मूठ मारा जा रहा है। साली जब की चीज थी... बेहतरीन थी सेक्स करने में। ८-१० बार में हीं पिचकारी छूट गया और वो आराम से शान्त हो कर मुँह खोल कर सब माल मुँह में ले कर निगल गई। एक बूँद बेकार नहीं हुआ। स्वीटी यह सब देख कर बोली, "छी: कैसे तुम यह सब खा लेती हो, गन्दी कहीं की..."। गुड्डी हँसते हुए बोली, "जब एक बार चस्का लग जाएगा तब समझ में आएगा, पहली बार तो मैगी का स्वाद भी खराब हीं लगता है सब को। अब थोड़ा आराम कर लो..." कहते हुए वो उठी और पानी पीने चली गई। मुझे पेशाब महसूस हुआ तो मैं भी बिस्तर से उठा तो वो बोली, "किधर चले, अभी दो राऊन्ड बाकि है..."। मैं बोला, "आ रहा हूँ, पेशाब करके..." तब वो बोली मैं भी चल रही हूँ। हम दोनों साथ साथ हीम एक-दूसरे के सामने दिखा कर पेशाब किए। तभी मैंने गुड्डी से कहा कि एक बार स्वीटी को भी बोलो ना आ कर पेशाब करे, मैं भी तो देखूँ उसके बूर से धार कैसे निकलती है।" गुड्डी हँसते हुए बोली, "देखे नही क्या, बहन है तुम्हारी" और फ़िर वहीं से आवाज लगाई, "स्वीटी...ए स्वीटी, जरा इधर तो आओ।" स्वीटी भी यह सुन कर आ गई तो गुड्डी बोली, "जरा एक बार तुम भी पेशाब करके अपने भैया को दिखा दो, बेचारे का बहुत मन है कि देखे कि उसकी बहन कैसे मूतती है।" हमारी चुदाई का खेल देख कर स्वीटी गर्म न हुई हो ऐसा तो हो नहीं सकता था, आखिर जवान माल थी वो। हँसते हुए वो अपना नाईटी उठाने लगी तो मैं हीं बोला, "पूरा खोल हीं दो न... एक बार तुम्हारे साथ भी सेक्स करने का मन है मेरा और तुम तो सुबह बोली थी कि आज तुम हमको मना नहीं करोगी, जब और जितना बार हम कहेंगे, चुदाओगी।" 
 
एक बार ऊपर आ जाईए न भैया--5

स्वीटी ने मुझसे नजरें मिलाई और बोली, "बदमाश..." और फ़िर एक झटके में नाईटी अपने बदन से निकाल दी। ब्रा पहनी नहीं थी सो पैन्टी भी पूरी तरह से निकाल दी और फ़िर टायलेट की सीट पर बैठी, तो मैं बोला, "अब दिखा रही हो तो नीचे जमीन पर बैठ के दिखाओ न, अच्छे से पता चलेगा, नहीं तो कमोड की सीट से क्या समझ में आएगा।" स्वीटी ने फ़िर मेरे आँखों में आँखें डाल कर कहा, "गुन्डा कहीं के..." और जैसा मैं चाह रहा था मेरे सामने नीचे जमीन पर बैठ गई और बोली, "अब पेशाब आएगा तब तो..." और मेरी नजर उसकी खुली हुई बूर की फ़ाँक पर जमी हुई थी। गुड्डी भी सामने खड़ी थी और मैं था कि स्वीटी के ठीक सामने उसी की तरह नीचे बैठा था अपने लन्ड को पेन्डुलम की तरह से लटकाए। करीब ५ सेकेन्ड ऐसे बैठने के बाद एक हल्की सी सर्सराहट की आवाज के साथ स्वीटी की बूर से पेशाब की धार निकले लगी। मेरा रोआँ रोआँ आज अपनी छोटी बहन के ऐसे मूतते देख कर खिल गया। करीब आधा ग्लास पेशाब की होगी मेरी बहन, और तब उसका पेशाब बन्द हुआ तो दो झटके लगा कर उसने अपने बूर से अंतिम बूँदों को भी बाहर किया और फ़िर उठते हुए बोली, "अब खुश..."। मैंने उसको गले से लगा लिया, "बहुत ज्यादा..." और वहीं पर उसको चूमने लगा। मेरा लन्ड उसकी पेट से चिपका हुआ था। वैसे भी मेरे से लम्बाई में १०" छोटी थी वो। मैंने उसको अपने गोद में उठा लिया और फ़िर उसको ले कर बिस्तर पर आ गया। फ़िर मैंने गुड्डी को देखा जो हमारे पीछे-पीछे आ गई थी तो उसने मुझे इशारा किया को वो इंतजार कर सकती है, मैं अब स्वीटी को चोद लूँ।

मैंने स्वीटी को सीधा लिटा दिया और सीधे उसकी बूर पर मुँह रखने के लिए झुका। वो अपने जाँघों को सिकोड़ी, "छी: वहाँ पेशाब लगा हुआ है।" गुड्डी ने अब स्वीटी को नसीहत दिया, "अरे कोई बात नहीं है दुनिया के सब जानवर में मर्दजात को अपनी मादा का बूर सूँघने-चाटने के बाद हीं चोदने में मजा आता है। लड़की की बूर चाटने के लिए तो ये लोग दंगा कर लेंगे, अगर तुम किसी चौराहे पर अपना बूर खोल के लेट जाओ।" मैंने ताकत लगा कर उसका जाँघ फ़ैला दिया और फ़िर उसकी बूर से निकल रही पेशाब और जवानी की मिली-जुली गंध का मजा लेते हुए उसकी बूर को चूसने लगा। वो तो पहले हीं मेरे और गुड्डी की चुदाई देख कर पनिया गई थी, सो मुझे उसके बूर के भीतर की लिसलिसे पदार्थ का मजा मिलने लगा था। वो भी अब आँख बन्द करके अपनी जवानी का मजा लूटने लगी थी। गुड्डी भी पास बैठ कर स्वीटी की चूची से खेलने लगी और बीच-बीच में उसके निप्पल को चूसने लगती। स्वीटी को यह मजा आज पहली बार मिला था। दो जवान बदन आज उसकी अल्हड़ जवानी को लूट रहे थे। अभी ताजा-ताजा तो बेचारी चूदना शुरु की थी और अभी तक कुल जमा ४ बार चूदी थी और इस पाँचवीं बार में दो बदन उसके जवानी को लूटने में लगे थे। जल्दी हीं मैंने उसके दोनों पैरों को उपर उठा कर अपने कन्धे पर रख लिया और फ़िर अपना फ़नफ़नाया हुआ लन्ड उसकी बूर से भिरा कर एक हीं धक्के में पूरा भीतर पेल दिया। उसके मुँह से चीख निकल गई। अभी तक बेचारी के भीतर प्यार से धीर-धीरे घुसाया था, आज पहली बार उसकी बूर को सही तरीके से पेला था, जैसे किसी रंडी के भीतर लन्ड पेला जाता है। मैंने उसको धीरे से कहा, "चिल्लाओ मत...आराम से चुदाओ..."। वो बोली, "ओह आप तो ऐसा जोर से भीतर घुसाए कि मत पूछिए...आराम से कीजिए न, भैया..."। मैंने बोला, "अब क्या आराम से.. इतना चोदा ली और अभी भी आराम से हीं चुदोगी, हम तुम्हारे भाई हैं तो प्यार से कर रहे थे, नहीं तो अब अकेले रहना है, पता नहीं अगला जो मिलेगा वो कैसे तुम्हारी मारेगा। थोड़ा सा मर्दाना झटका भी सहने का आदत डालो अब" और इसके बाद जो खुब तेज... जोरदार चुदाई मैंने शुरु कर दी।

करीब ५ मिनट वैसे चोदने के बाद मैंने उसके पैर को अपने कमर पे लपेट दिया और फ़िर से उसको चोदने लगा। करीब ५ मिनट की यह वाली चुदाई मैंने फ़िर प्यार से आराम से की, और वो भी खुब सहयोग कर के चुदवा रही थी। इसके बाद मैनें उसके दोनों जाँघों के भीतरी भाग को अपने दोनों हाथों से बिस्तर पर दबा दिया और फ़िर उसकी बूर में लन्ड के जोरदार धक्के लगाने शुरु कर दिए। जाँघों के ऐसे दबा देने से उसका बूर अपने अधिकतम पर फ़ैल गया था और मेरा लन्ड उसके भीतर ऐसे आ-जा रहा था जैसे वो कोई पिस्टन हो। इस तरह से जाँघ दबाने से उसको थोड़ी असुविधा हो रही थी और वो मजा और दर्द दोनों हीं महसूस कर रही थी। वो अब आआह्ह्ह्ह आआह्ह्ह्ह कर तो रही थी, पर आवाज मस्ती और कराह दोनों का मिला-जुला रूप था। मैंने उसके इस असुविधा का बिना कुछ ख्याल किए चोदना जारी रखा और करिब ५ मिनट में झड़ने की स्थिति में आ गया। मेरा दिल कर रहा था कि मैं उसकी बूर के भीतर हीं माल निकाल दू~म, पर फ़िर मुझे उसका सुबह वाला चिन्तित चेहरा याद आ गया तो दया आ गई और मैंने अपना लन्ड बाहर खींचा और उसकी नाभी से सटा कर अपना पानी निकाल दिया। पूरा एक बड़ा चम्मच निकला था इस बार। मैं थक कर हाँफ़ रहा था और वो भी दर्द से राहत महसूस करके शान्त पड़ गई थी। मैंने पूछा, "तुमको मजा मिला, हम तो इतना जोर-जोर से धक्का लगाने में मशगुल थे कि तुम्हारे बदन का कोई अंदाजा हीं नहीं मिला।" हाँफ़ते हुए उसने कहा, "कब का... और फ़िर बिस्तर पर पलट गई। बिस्तर की सफ़ेद चादर पर दो जगह निशान बन गया, एक तो उसकी बूर के ठीक नीचे, क्योंकि जब वो चुद रही थी तब भी उसकी पनियाई बूर अपना रस बहा रही थी और फ़िर जब वो अभी पलटी तो उसके पेट पर निकला मेरा माल भी एक अलग धब्बा बना दिया। मैंने हल्के-हल्के प्यार से उसके चुतड़ों को सहलाना शुरु कर दिया और फ़िर जब मैंने उसकी कमर दबाई तो वो बोली, "बहुत अच्छा लग रहा है, थोड़ा ऐसे हीं दबा दीजिए न..." मैंने उसके चुतड़ों पर चुम्मा लिया और फ़िर उसकी पीठ और कमर को हल्के हाथों से दबा दिया। वो अब फ़िर से ताजा दम हो गई तो उठ बैठी और फ़िर मेरे होठ चूम कर बोली, "थैन्क्स, भैया... बहुत मजा आया।" और बिस्तर से उठ कर कंघी ले कर अपने बाल बनाने लगी जो बिस्तर पर उसके सर के इधर-उधर पटकने के कारण अस्त-व्यस्त हो गए थे।

मैंने अब गुड्डी पर धयान दिया तो देखा कि वो एक तरफ़ जमीन पर बैठ कर हेयर ब्रश की मूठ अपने बूर में डाल कर हिला रही है। उसके बूर से लेर बह रहा था। उसने मुझे जब फ़्री देखा तो बोली, "चलो अब जल्दी से चोदो मुझे...सवा ११ हो गया है और अभी दो बार मुझे आज चुदाना है तुमसे."। मैं थक कर निढ़ाल पड़ा हुआ था, लन्ड भी ढ़ीला हो गया था पर गुड्डी तो साली जैसे चुदाई का मशीन थी। मेरे एक इशारे पर वो बिस्तर पर चढ़ गई और लन्ड को मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसने लगी। वो अब स्वीती को बोली, "तुम्हारी बूर की गन्ध तो बहुत तेज है, अभी तक खट्टा-खट्टा लग रहा है नाक में"। स्वीटी मुस्कुराई, कुछ बोली नहीं बस पास आ कर गुड्डी मी बूर पर मुँह रख दी और उसके बूर से बह रहे लेर को चातने लगी। स्वीटी का यह नया रूप देख कर, जोरदार चुसाई से लन्ड में ताव आ गया और जैसे हीं वो कड़ा हुआ, गुड्डी तुरन्त मेरे कमर के दोनों तरफ़ पैर रख कर मेरे कमर पर बैठ गई। अपने दोनों हाथ से अपनी बूर की फ़ाँक खोली और मुझे बोली, "अब अपने हाथ से जरा लन्ड को सीधा करो कि वो मेरे बूर में घुसे।" मैं थका हुआ सा सीधा लेटा हुआ था और मेरे कुछ करने से पहले हीं मेरी बहन स्वीटी ने मेरे खड़े लन्ड को जड़ से पकड़ कर सीधा कर दिया जिससे गुड्डी उसको अपने बूर में निगल कर मेरे उपर बैठ गई।
 
टी अब सिर्फ़ देख रही थी और गुड्डी मेरे उपर चढ़ कर मुझे हुमच-हुमच कर चोद रही थी। कभी धीरे तो कभी जोर से उपर-नीचे हो होकर तो कभी मेरे लन्ड को निगल कर अपनी बूर को मेरे झाँटों पर रगड़ कर वो अपने बदन का सुख लेने लगी। मैं अब आराम से नीचे लेटा था और कभी गुड्डी तो कभी स्वीटी को निहार लेता था। करीब १२-१५ मिनट बाद वो थक कर झड़ गई और अब हाँफ़ते हुए मेरे से हटने लगी कि मैंने उसको कमर से पकड़ा और फ़िर उसको लिए हुए पलट गया। अब वो नीचे और मैं उसके उपर था। वो अब थक कर दूर भागना चाहती थी सो मुझे अब छोड़ने को बोली, पर मैं अभी झड़ा नहीं था और मेरा इरादा अब उसको रगड़ देने का था। मैंने फ़ुर्ती से उसको अपने गिरफ़्त में जकड़ा और फ़िर उपर से उसकी बूर को जबर्दस्त धक्के लगाए। 

वैसे भी अब तक के आराम से मैं ताजा दम हो गया था। वो अब मेरी जकड़ से छूटने के लिए छटपटाने लगी, पर मैंने अपनी पकड़ ढ़ीली नहीं की। वो अब पूरा दम लगा रही थी और मैं उसको अपने तरीके से चोदे जा रहा था। गुड्डी की बेबसी देख कर स्वीटी ने उसका पक्ष लिया, "अब छोड़ दीजिए बेचारी को, गिड़गिड़ा रही हैं", गुड्डी लगातार प्लीज, प्लीज, प्लीज... किए जा रही थी। पर सब अनसुना करके मैं थपा थप उपर से जोर जोर से चोद रहा था। आवाज इतना जोर से हो रहा था कि अगर कोई दरवाजे के बाहर खड़ा होता तो भी उसको सुनाई देता। वैसे मुझे पता था कि अब आज की रात होटल की उस मंजिल पर सिर्फ़ एक वही बंगाली परिवार (मियाँ, बीवी और दो बेटियाँ) टिका हुआ था और उस परिवार से किसी के मेरे दरवाजे के पास होने की संभावना कम हीं थी। हालाँकि पिछले दिन से अब तक दो-चार बार स्वीटी और गुड्डी की थोड़ी-बहुत बात-चित उस परिवार से हुई थी। करीब ७-८ मिनट तक उपर से जोरदार चुदाई करने के बाद मैं गुड्डी के उपर पूरी तरह से लेट गया। उसका पूरा बदन अब मेरे बदन से दबा हुआ था और मेरा लन्ड उसकी बूर में ठुनकी मार कर झड़ रहा था। गुड्डी कुछ बोलने के लायक नहीं थी। अब मेरे शान्त पड़ने के बाद वो भी शान्त हो कर लम्बी-लम्बी साँस ले रही थी। करीब ३० सेकेन्ड ऐसे ही पड़े रहने के बाद मैं गुड्डी के बदन से हटा, और फ़क्क की आवाज के साथ मेरा काला नाग उसकी गोरी बूर से बाहर निकला और पानी के रंग का मेरा सब माल उसकी बूर से बह कर बिस्तर पर फ़ैल गया। आज तो उस होटल के बिस्तर की दुर्दशा बना दी थी हमने। हम सब अब शान्त हो कर अलग अलग लेते हुए थे। थोड़ी देर बाद गुड्डी हीं बोली, "स्वीटी जरा पानी पिलाओ डार्लिन्ग.... तुम्हारा भाई सिर्फ़ देखने में शरीफ़ है, साला हरामी की तरह आज चोदा है मुझे।" स्वीटी ने मुझे और गुड्डी को पानी का एक-एक ग्लास पकड़ाया और बोली, "सच में, हमको उम्मीद नहीं था कि भैया तुमको ऐसे कर देंगे। पूरा मर्दाना ताकत दिखा दिए आज आप उसको नीचे दबाने में। हम सोच रहे थे कि ऐसे हीं न बलात्कार होता होगा लड़कियों का"। मैंने हँसते हुए कहा, "बलात्कार तो गुड्डी की थी मेरा, मेरे उपर बैठ कर... जब कि मुझे थोड़ा भी दम नहीं लेने दी। अब समझ आ गया कि एक बार अगर लन्ड भीतर घुसा तो तुम लाख चाहो चोदने में जो एक्स्पर्ट होगा वो तुमको फ़िर निकलने नहीं देगा, जब तक वो तुम्हारी फ़ाड़ न दे।"

इधर-उधर की बातें करने के बाद करीब १२ बजे स्वीटी बोली अब चलिए सोया जाए, बहुत हो गया यह सब। मैंने हँसते हुए गुड्डी को देख कर कहा, "अभी एक बार का बाकी है भाई गुड्डी का...." गुड्डी कुछ बोली नहीं पर स्वीटी बोली, "कुछ नहीं अब सब सोएँगे..." अब जो बचा है कल दिन में कर लीजिएगा। इसके बाद हम सब वैसे हीं नंग-धड़ग सो गए। थकान की वजह से तुरन्त नींद भी आ गई। वैसे दोस्तों आप सब को भी पता होगा कि सुबह में कैसे हम सब का लन्ड कुछ ज्यादा हीं कड़ा हो जाता है। सो जब सुबह करीब साढ़े पाँच में मेरी नींद खूली तो देखा कि स्वीटी एक तकिया को अपने जाँघ में फ़ँसा कर थोड़ा सिमट कर सोई हुई है और गुड्डी एकदम चित सोई थी पूरी तरह से फ़ैल कर। मेरा लन्ड पूरी तरह से तना हुआ था, पेशाब भी करने जा सकता था फ़िर वो ढ़ीला हो जाता पर अभी ऐसा भी नहीं था कि पेशाब करना जरुरी हो। बस मैंने सोचा कि अब जरा गुड्डी को मजा चखा दिया जाए, अब कौन जाने फ़िर कब मौका मिले ऐसा। वो जैसे शरारती तरीके से ट्रेन में और यहाँ भी मुझे सताई थी तो मुझे भी अब एक मौका मिल रहा था। मैंने अपने लन्ड पर आराम से दो बार खुब सारा थुक लगाया और फ़िर हल्के हाथ से उसके खुले पैरों को थोड़ा सा और अलग कर दिया फ़िर उसके टाँगों की बीच बैठ कर अपने हाथ से लन्ड को उसकी बूर की फ़ाँक के सीध में करके एक जोर के झटके से भीतर ठेल दिया। मेरा लन्ड उसकी बूर से सटा और मैंने उसको अपने नीचे दबोच लिया। गुड्डी नींद में थी सो उसको पता नहीं था, वो जोर से डर गई और चीखी, "ओ माँ....." और तब उसको लगा कि उसकी चुदाई हो रही है। उसको समझ में नहीं आया कि वो क्या करे और उस समय उसक चेहरा देखने लायक था... आश्चर्य, डर, परेशानी, बिना पनिआई बूर में लन्ड के रगड़ से होने वाले दर्द से वो बिलबिला गई थी।

गुड्डी की ऐसी चीख से स्वीटी भी जाग गई और जब देखा कि हम दोनों चोदन-खेला में मगन हैं तो वो अपना करवट बदल ली। गुड्डी भी अब तक संयत हो गई थी और अपना पैसे मेरे कमर के गिर्द लपेट दी थी। मैंने उसके होठ से अपने होठ सटा दिए और प्यार से उसको चोदने लगा। वो भी अब मुझे चुमते हुए सहयोग करने लगी थी। सुबह-सुबह की वजह से मुझे उसके मुँह से हल्की बास मिली पहली बार चूमते समय पर फ़िर तो हम दोनों का थुक एक हो गया और बास का क्या हुआ पता भी नहीं चला। मैंने अपना फ़नफ़नाया हुआ लन्ड अब उसकी बूर से बाहर खींचा और बोला कि अब चलो तुम मेरा चूसो मैं तुम्हारा चाटता हूँ। फ़िर हम ६९ में शुरु हो गए, पर मुझे लगा कि यह ठीक नहीं है, तो मैंने अपना लन्ड उसकी मुँह से खींच लिया और फ़िर उसको कमर से पकड़ कर घुमाया तो वो मेरा इशारा समझ कर अपने हाथ-पैरों के सहारे चौपाया बन गई और मैं उसके पीछे आ कर उसको चोदने लगा। इसी क्रम में मैं उसकी गाँड़ की गुलाबी छेद देख ललचाया और बोला, "गाँड मरवाओगी गुड्डी... एक बार प्लीज."। वो बोली अभी नहीं, बाद में अभी प्रेशर बना हुआ है और अगर तुम बोले होते तब पहले से तैयारी कर लेती, एक दिन पूरा जूस पर रहने के बाद गाँड़ मरवाने में कोई परेशानी नहीं होती है, अभी तो वो थोड़ा गंदा होगा।" मैंने फ़िर कहा, "बड़ा मन है मेरा..." और मैं उसकी गाँड़ की छेद को सहलाने लगा। वो मुझसे चुदाते हुए बोली, "ठीक है, अभी ९ बजे जब मार्केट खुलेगा तो दवा दूकान से एक दवा मैं नाम लिख कर दुँगी ले आना। उसके बाद उसको अपने गाँड़ में डाल कर मैं पैखाना करके अपना पेट थोड़ा खाली कर लूँगी तो तुम दोपहर में मेरी गाँड़ मार लेना, जाने से पहले।" मैं आश्चर्य में था, साली क्या-क्या जुगाड़ जानती है... सेक्स के मजे लेने का और मजे देने का भी। मैं तो उसका मुरीद हो गया था। 
 
एक बार ऊपर आ जाईए न भैया--6

अब चैन से मैंने खुब प्यार से चुमते-चाटते गुड्डी को चोदा और वो भी खुद मन से आवाज निकाल निकाल कर चूदी। फ़िर जब मेरा निकलने वाला हुआ तो मैं बोला, "मुँह खोले, सुबह-सुबह मेरा माल से दिन की शुरुआत करो। वो भी खुब मन से मेरा अपने मुँह में गिरवा कर निगल गई और बोली अब मैं जा रही हूँ बाथरूम... तुम अब स्वीटी को जगाओ, बोलो कपड़ा-वपड़ा पहने, रूम साफ़ करने वाली बाई ७ बजे आ जाएगी।" उसको जाते देख मैं फ़ुर्ती से उसके आगे जा कर बाथरू में घुस गया, "मुझे बहुत जोर से पेशाब लगा हुआ है, वो तो तुमको चोदने के चक्कर में मैं रुका हुआ था। वो मेरे साथ हीं आई पर कमोड पर बैठने के लिए इंतजार की कि मै पहले पेशाब करके चला जाऊँ। फ़िर उसने दरवाजा बन्द कर लिया घड़ी में सवा छः बजे थे और मैं बिस्तर पर जा कर बाएँ करवट स्वीटी की पीठ से चिपक कर उसके बदन पर अपना दाहिना हाथ और पैर चढ़ा कर प्यार से पुकारा, "स्वीटी...स्वीटी, अब कितना सोना है, सुबह हो गई है।" वो कुनमुनाई और मेरे तरफ़ घुम गई और फ़िर मेरे सीने में अपना सर घुसा कर आँख बन्द कर ली। मैंने उसके पीठ को सहलाना शुरु किया और वो मेरे से और ज्यादा चिपक गई। अब मैंने उसके चेहरे को अपने हाथ से थोड़ा उपर उठाया और फ़िर उसके होठों को हल्के से चुमने लगा। वो भी अब सहयोग करने लगी तो मैंनें अपने दाहिने हाथ को उसकी जाँघों के बीच में पहुँचा दिया और फ़िर उसको बोला, "थोड़ा जाँघ खोलो ना रानी....तुम्हारी बूर को भी तो जगाना है"। वो अब आँख खोल कर देखी और फ़िर धीरे से मेरे कान में बोली, "बहिन-चोद..., रंडीबाज..." और मुस्कुराई। मैंने उसकी बात का बुरा नहीं माना और आराम से उसकी बूर को सहलाने लगा। जल्दी हीं उसकी बूर पानी छोड़ने लगी, तो मैं उसके उपर चढ़ गया। स्वीटी ने अब अपने हाथ से मेरा लन्ड पकड़ा और फ़िर उसको अपने बूर में घुसा लिया और फ़िर बोली, "चोदो मेरे राजा....अपनी रानी को आज चोद कर उसके पेट से राजकुमारी पैदा कर लो.... बहिन-चोद"।

उसकी ऐसी बातें सुनकर मेरा खून उबलने लगा और फ़िर मैंने जोर-जोर से उसकी बूर में धक्के लगाने शुरु कर दिए। वो अब बीच-बीच में मुझे गाली बक रही थी, और साथ हीं साथ जैसे रात में मस्त हो कार हल्ला कर करके गुड्डी चुदी थी वैसी हीं चीख-चिल्ला कर खुब मस्त हो कर मेरी बहन चुदवा रही थी। मैंने भी उसको कहा, "ले साली खाओ धक्का... आज तुम्हारी बूर फ़ाड़ देंगे, साली हमको गाली दे रही हैं मादरचोद की औलाद...." मेरी गाली उसकी गाली से ज्यादा जबर्दस्त थी। वो अब कुछ समय तक शान्त रहीं सभ्य की तरह चुदी और फ़िर बोली, "रूक साले हरामी... बहिन-चोद, रुक अब थोड़ा। हमको पलटने दो, फ़िर कुतिया के जैसे चोदना हमको हरामजादे।" मैंने लन्ड बाहर खींच कर उसको पलटने का मौका दिया, और उसी समय गुड्डी आ गई और बोली, "वाह यहाँ तो भाई-बहन में गाली की अंताक्षरी हो रही हैं मजा आ गया यह सब सुन कर...."। स्वीटी अब मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ ये हरामी आज हमको चोद के मेरे पेट से अपना बच्चा पैदा करेगा साला... सोचें हो कि तुम उसका मामा लगोगे कि बाप लगोगे।" गुड्डी बड़ी आराम से बोली, "तुम इसके लिए एक बेटी पैदा कर देना... ये जनाब उसको चोद के बेटा पैदा करेंगे तो फ़िर सब ठीक हो जाएगा, दोनों रिश्ते से नानाजी कहलाएँगे", इस बात पर दोनों रंडियाँ हँस पड़ी और मैं खीज गया और अपनी सारी खीज अपनी बहन की बूर पर निकाला। मेरे धक्कों से अब वो कराह रही थी और मैं था कि उसके पेट के नीचे से अपना हाथ निकाल कर उसको अपने जक्ड़ में ले कर उसको लगातार गालियाँ देता हुआ चोदे जा रहा था, "साली रंडी ले चुद मादर-चोद, साली कुतिया ले चुद मादर-चोद, कमीनी कुत्ती...ले चुद मादर-चोद..."। तभी वो खलास हो गई और फ़िर थोड़ा शान्त हो कर बोली, "जब निकालना होगा तब बाहर कर लीजिएगा भैया..."। मैं अभी भी जोश में था सो बोला, "अब भैया याद आ रहें हैं और अभी जब गाली दे रही थी तब..
अब देखो साली कैसे तुम्हारे बूर में अपना माल गिरा कर तुमको बिन-ब्याही माँ बनाता है तुम्हारा भैया..."। मेरी इस बात पर तो उसके होश उड़ गए। मैंने उसको कहा भी यह बात एक दम गंभीर अंदाज में, सो वो डर गई थी। वो अब गिड़गिड़ाने लगी। मैं उसको अपनी गिरफ़्त में लेकर चोदे जा रहा था। जब मेरा निकलने वाला हुआ तो मैंने कहा, "एक शर्त पर तुमको माँ नहीं बनाऊँगा... तू अपने मुँह में डलवा और सब निगल जा।" वो तुरन्त मान गई, "लो मैं अभी से मुँह खोल दी, जब चाहो घुसा देना झड़ने से पहले...", मैं अब अपना लन्ड उसकी बूर से निकाल कर जल्दी से उसके सामने आ गया और फ़िर स्वीटी के मुँह डाल दिया। अपने हाथ से ५-७ बार हिला कर मैंने अपना सारा माल अपनी बहन स्वीटी के मुँह में गिरा दिया और न चाहते हुए थोड़ा मुँह बनाते हुए उसको वो सब निगलना पड़ा।

इसके बाद मैं और स्वीटी नहा लिए और गुड्डी बोली कि वो गाँड मराने के बाद में नहाएगी। उसने अपने लिए दो दवा का नाम लिख कर दिया और कहा कि मैं अपने लिए एक वियाग्रा लेता आउँ क्योंकि लन्ड का खुब टाईट होना जरुरी है गाँड़ में घुसने के लिए।। जब दवा ले कर करीब १० बजे मैं लौटा तो देखा कि पास के कमरे में टिका हुआ बंगाली परिवार की दोनों बेटियाँ मेरे कमरे में बैठ कर मेरी बहन और गुड्डी से बातें कर रही हैं। ऐसा लग रहा था जैसे उन सब की पुरानी पहचान हो। मेरे लिए तो उन दोनों का वहाँ होना KLPD था, पर उन दोनों को जब मैंने मुझे देख कर मुस्कुराते देखा तो मैं झेंप रहा था। स्वीटी मुझे अब बोली, "विक्रम (मेरा असली नाम), ये दोनों अभी करीब दो घन्टे अकेली हीं हैं यहाँ। इनके मम्मी-पापा कुछ काम से गए हैं करीब २ बजे तक लौटेंगे सो अकेले रुम में बोर होने से अच्छा है कि हम सब से बातें करें, यहीं सोच कर ये दोनों यहाँ आ गई हैं।" मैं टेंशन में था कि अब गाँड़ मराई के प्रोग्राम का क्या होगा कि तभी उन में से बड़ी बहन ने कहा, "आप परेशान मत होईए... हम १०-१५ मिनट में अपने रुम में चले जाएँगे, फ़िर आप-लोग फ़्री होंगे तब हम आ जाएँगें। असल में रुम में टीवी भी नहीं है न सो हम इधर चले आए।" मैंने अब अचकचा कर उन दोनों को और फ़िर स्वीटी को देखा, तो गुड्डी बोली, "कल के आपके जोश से बाहर तक सब आवाज गया था जब ये दोनों खाने के बाद ऐसे हीं बाहर तहल रहीं थीं। उसी के बारे में अभी हम सब बात कर रहे थे। इन लोगों को सब मालूम है, वो तो गनिमत है कि इनके मम्मी-पापा यह सब नहीं जानते, नहीं तो इन दोनों का कोर्ट-मार्शल कर देते हम लोग से बात करने पर। इन दोनों को अभी का हमारा प्रोग्राम पता है।" मैं अब थोड़ा रेलैक्स करके बोला, "अरे नहीं ऐसी जल्दी भी नहीं है तुम दोनों बैठो और थोड़ा गप-शप कर लो। हम लोग को आधा घन्टा काफ़ी है। असल में मेरे लिए यह पहला अनुभव होगा, सो मैं थोड़ा तनाव में था।" मैं अब गौर से उन दोनों बहनों को देखा। बड़ी वाली थोड़ी मोटी थी, कुछ ज्यादा हीं सांवली, करीब ५’ लम्बी ३६-२८-३६ की फ़ीगर होगी। १९-२० के करीब उमर लग रहा था, उसका नाम था ताशी, बी०ए० फ़ाईनल में थी। उसकी छोटी बहन भी सांवली हीं थी पर खुब दुबली-पतली, लम्बी थी ५’५"। चुच्ची तो जैसे उसको था हीं नहीं, ३०-२१-३२ की फ़ीगर होनी चाहिए। उसका नाम आशी था और वो १२वी० में थी। 
 
स्वीटी उन दोनों से बोली, "असल में मैं भी यह आज देखना चाहती हूँ। पीछे वाले हिस्से को ऐसे होते हुए सिर्फ़ सुनी हूँ आज तक, सो आज जब गुड्डी तैयार हो गई विक्रम से पीछे करवाने के लिए तो मैं भी सोची कि अब यह मौका नहीं खोया जाए। वैसे तुम लोग सेक्स करती हो?" मेरी बहन ने यह सवाल बड़ा सही पूछा था। ताशी ने हीं जवाब दिया, "ज्यादा नहीं, ५ बार की हूँ लड़के के साथ, वैसे हम दोनों बहन आपस में मजा करते रहते हैं। आशी अभी तक किसी लड़के के साथ नहीं की है।" फ़िर वो गुड्डी की तरफ़ देखते हुए बोली, "अगर आधा-एक घन्टा का बात है तो क्या हम भी यह देख लें... अगर बुरा लगे म्री बात तो मना कर देना प्लीज।" उसकी बात सुन कर मेरा लन्ड एक झटका खा गया। गुड्डी अब मुझसे बोली, "क्या कहते हो गाँडू पार्टनर....?" मेरे मुँह से बिना सोचे निकला, "जैसा तुम समझो, इस मामले में तो तुम्हारे सामने मैं अनाड़ी हूँ।" उसने हँसते हुए कहा, "हूँह्ह्ह्ह.... अनाड़ी...., चलो आज तुमको गाँड़ू बना ही देती हूँ। लाओ दवाई दो... आधा घन्टा तो तैयारी में लगेगा।" और मैंने जेब से दोनों दवा निकाल कर उसको दे दिया। गुड्डी वहीं खड़ी हो गई और फ़िर एक तो मोम-जैसा कैप्सुल था जिसको उसने अपनी गाँड की छेद में घुसाने से गाँड़ का सारा मल/पैखाना निकल जाता और दुसरा दवा, एक मलहम था तेज दर्द-निवारक। उसने उन दवाओं के बारे में बताया। मैं दंग था कि साली को क्या सब पता है.... लगा कि क्या स्वीटी को उसके साथ रख कर मैं कहीं गलती तो नहीं कर रहा। पर फ़िर लगा कि अब जब स्वीटी चुदाने लगी है तो गुड्डी जैसी जानकार का साथ उसके हक में ही है, सो मैं अब अपनी बहन की सेक्स-सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो गया। गुड्डी ने वहीं सब के सामने उस मोम जैसे कैप्सुल को एक-एक करके तीन, अपनी गाँड़ की छेद में घुसा ली और फ़िर अपना नाईटी नीचे करके वहीं बैठ कर बातें करने लगी और मुझे बोली कि मैं अब वियाग्रा खा लूँ, उसका असर होने में करीब एक घन्टा लगेगा। 

अभी १०:३० हो रहा था और उसने कहा कि वो करीब १२ बजे अपने गाँड़ में डलवाएगी। मैं बोला कि फ़िर अभी से १२ बजे तक मैं क्या करुँगा? गुड्डी खिलखिला कर हँसी और बोली, "इतनी सारी लौन्डिया है और तुम को कुछ समझ नहीं आ रहा, भोंदूँ कहीं के....", तभी आशी बोली, "दीदी, क्या एक बार आगे वाले में भी घुसाएँगे भैया क्या?" गुड्डी बोली, "मैं तो अब सिर्फ़ गाँड़ मरवाउँगी....अब यह तो यही जाने या फ़िर तुम लोग में से कोई चुदा लो। वियाग्रा का असर तो करीब ११:३० से शुरु होगा और तब करीब एक घन्टे तो लन्ड टन्टनाया रहेगा मेरे लिए।" मैंने स्वीटी की तरफ़ देख कर इशारा किया और तब स्वीटी भी मेरा मन भांप कर बोली, "आशी अगर तुमको इतना मन है तो अपना चुदा लो आज एक बार....।" आशी यह सुन कर घबड़ा गई, "नहीं...नहीं..., पहले कभी की नहीं हूँ, कहीं मम्मी जान गई तो...।" मैं देख रहा था कि ताशी सब चुप-चाप सुन रही है। मैंने अब उसको ही कहा, "ताशी, तुम तो पहले की हो यह सब, तो आज एक बार जल्दी से मेरे साथ सेक्स कर लो, देखो यह बच्ची बेचारी भी देख लेगी सब और समझ भी लेगी।" मेरी बात सुन कर ताशी तो ना... ना... करने लगी पर बाकी तीनों लड़कियों ने मेरा साथ दिया और ताशी के ना... ना... करते हुए भी मैं अपनी जगह से उठा और फ़िर ताशी के चेहरे को अपने हाथों में ले कर उसके होठ चुमते हुए उसके ना... ना... का राग हीं बन्द कर दिया। ५ सेकेण्ड में हीं ताशी भी मुझे होठ चुमने में सहयोग करने लगी। मैंने अब उसके बगल में बैठते हुए उसको अपनी गोदी में खींच लिया। ताशी एक बार मुझसे छुटने की कोशिश की, "कभी ऐसे किसी के सामने नहीं की हूँ.... मुझे शर्म आ रही है, मैं नहीं करुँगी अभी।" मैंने और फ़िर बाकी सब ने उसको समझाना शुरु किया। मैं उसके बदन पर हाथ घुमा रहा था और इधर-उधर चेहरे पर चुमता जा रहा था। उसका बदन गर्म होने लगा था। 

मैं उसके सामने खड़ा हो गया और फ़िर स्वीटी, जो ताशी के ठीक बगल में बैठी थी, से बोला "स्वीटी अब तुम जरा ताशी के हाथ में मेरा लन्ड पकड़ाओ न" और मैं अपने शर्ट का बटन खोलने लगा। स्वीटी आगे बढ़ी और मेरे जीन्स-पैन्ट की जिप खोल कर मेरे आधा फ़नफ़नाए हुए लन्ड को बाहर खींच ली। इतनी देर में मैं अपने कपड़े उतार चुका था सो जीन्स-पैन्ट के बटन को खोलते हुए उसको नीचे करके अपने बदन से निकाल कर पूरा नंगा खड़ा हो गया। मेरा लन्ड अभी आधा ही ठनका था और लाल सुपाड़े की झलक मिलने लगी थी। छोटी बहन आशी के मुँह से निकला, "माय गौड...", मैं पूछा - "कभी देखी हो आशी मर्दाना लन्ड....।" उसके चेहरे पर आश्चर्य था। मैंने उसको कहा, "आओ पकड़ कर देखो इसको..." और मैं अब उसकी तरफ़ बढ़ कर उसका हाथ पकड़ कर अपने लन्ड पर रख दिया और फ़िर जब वो लन्ड को अपनी मुट्ठी में लपेट ली तब मैंने उसके मुट्ठी के उपर अपने हाथ से मुट्ठी बना कर उसके हाथ को अपने लन्ड पर हल्के-हल्के चलाया। मेरे लन्ड के सामने की चमड़ी अब पीछे खिसक गई और मेरा लाल सुपाड़ा चमक उठा। धीरे-धीरे लन्ड खड़ा होने लगा था, वो अब करीब ७" हो गया था। ताशी सब देख रही थी। मैंने अब आशी को कहा, "मुँह में लोगी? देखो एक बार मुँह में ले कर".... और मैंने अपना लन्ड उसके चेहरे की तरफ़ कर दिया। वो न में सर हिलाने लगी तो मैंने भी उसको बच्ची जान जिद नहीं किया और फ़िर एक बार अपना ध्यान उसकी बड़ी बहन ताशी की तरफ़ किया। अब मैंने ताशी को पकड़ कर खड़ा कर लिया और फ़िर उसको बाहों में भींच कर जोर-जोर से चुमने लगा। मेरा खड़ा लन्ड उसकी पेट में चुभ रहा था। ताशी एक भूरे रंग के प्रिन्टेड सूती सेमी-पटियाला सलवार-सूट पहने थी। उसको भी शायद मन होने लगा था चुदाने का। वो अब मेरा साथ दे रही थी। मैंने अब पहली बार उसकी चूचियों को पकड़ा और फ़िर उसके चेहरे से अपना ध्यान हटा कर उसकी चुचियों पर लगा दिया। उसके हाथ को मैंने अपने हाथ से पकड़ कर अपने लन्ड पर रख दिया और वो भी मेरा इशारा समझ कर अब लन्ड सहलाने लगी थी। मैंने उसके पीठ की तरफ़ हाथ ले जा कर उसके कुर्ते की जिप खोल दी और फ़िर उसका कुर्ता उतार दिया। सफ़ेद ब्रा में उसके भरी हुई छाती मेरे सामने इतरा रही थी। दोनों बड़ी-बड़ी चूची सामने में एक दुसरे से चिपकी हुई थीं और उसका ब्रा जो शायद थोड़ा पहले का था, बड़ी मुश्किल से उसकी ३६ साईज की चुचियों को सम्भाले हुए था। मैंने उसकी सलवार की डोरी खींची और फ़िर उसका सलवार भी निकाल दिया। नीले रंग के पैन्टी में उसकी बूर की कल्पना से मैं अब पूरी तरह से गर्मा गया था। मैंने बिना देर किए उसकी पैन्टी भी नीचे सरारी और उसकी बिना झाँटों वाली चिकनी बूर मेरे सामने थी। करीब एक सप्ताह पहले झाँट साफ़ की होगी सो अब हल्का सा आभास हो रहा था झाँट का। उसकी बूर की चमड़ी काली थी।
 
ताशी के चेहरे से शर्म झलक रही थी। इस तरह सब के सामने नंगे होने का यह पहला अनुभव था। मेरा लन्ड टन्टनाया हुआ था सो मैंने ताशी को अपनी तरफ़ खींचा और इसी बीच में उसकी बूर का अपने हाथों से मुआयना किया कि उसकी बूर पनिआई है कि नहीं। शर्म और आने वाले समय की सोच ने उसकी बूर से पानी निकालना शुरु कर दिया था। मेरा काम आसान हो गया था। उसको लिटाते हुए मैंने लगातार उसकी चूचियों को चुसते चुमते हुए उसको और गरम करता रहा था और फ़िर अपने हाथों में थुक लगा कर उसकी बूर की चमड़ी और छेद दोनों को गिला कर दिया था। उसके मुँह से चुदास से भरी हुई सिसकी निकलनी शुरु हो गयी थी। मैंने अब उसको बिस्तर पे ठीक से लिटा दिया और ताशी अपना चेहरा उस तरफ़ घुमा ली थी जिस तरफ़ उसकी छोटी बहन नहीं बैठी थी। उसको इस तरह से नंगी लेट कर अपनी छोटी बहन से नजर मिलाने में शर्म लग रही थी। मैंने आराम से एक बार आशी को देखा जो बड़े चाव से सब देख रही थी और अपने जाँघों को भींच रही थी... मैं उसके जाँघों को ऐसे कसते हुए देख कर सब समझ गया... पर क्या कर सकता था अभी....बेचारी आशी। मेरी बहन स्वीटी ने मुझे देख कर आँख मारी। गुड्डी अभी टट्टी करके अपने गाँड़ को पूरी तरह से खाली करने गई हुई थी। मैं अब ताशी की जाँघो को खोल कर उसके खुली बूर पर अपना लन्ड सटा कर अपने घुटने के बल उसकी खुली जांघों के बीच में बैठ गया था। फ़िर ताशी के ऊपर झुकते हुए मैंने उसके कंधों को अपने चौड़े सीने से दबा कर एक तरह से उसको बिस्तर पर दबा दिया और फ़िर उसकी पतली कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने लन्ड को उसकी पनिआई हुई बूर में दबाने लगा। ताशी के मुँह सिसकी और कराह की मिलीजुली आवाज निकल रही थी और उसकी आँखे मस्ती से बन्द थी। मैंने लगातार प्रयास करके जल्दी ही अपना पूरा लन्ड ताशी की ठ्स्स बूर में घुसा दिया और फ़िर एक बार गहरी साँस खींची और फ़िर ताशी के कान में कहा, "भीतर घुस गया है ताशी पूरा लन... अब चुदने को तैयार हो जाओ..."। ताशी एक बार आँख खोली और मुझे देखी, फ़िर उसके अपने बाहों से मुझे कस कर भींच लिया और मैंने उसके बूर की चुदाई शुरु कर दी। गच्च...गच्च...खच्च...खच्च... फ़च्च... फ़च्च... उसकी पनिआई हुई बूर से एक मस्त गाना बजने लगा था। और तब मैंने आशी की तरफ़ देखा। वह पूरे मन से अपनी बहन की चुद रही बूर पर नजर गड़ाए हुए मेरे लन्ड का बहन की बूर में भीतर-बाहर होना देख रही थी।

मैंने उसको पुकारा, "देखी, कैसे बूर को चोदा जाता है.... तुम भी ऐसे ही चुदोगी लड़कों से।" मेरे आवाज से आशी का ध्यान टुटा। उसकी नजर मेरी नजर से मिली और उसका गाल शर्म से लाल हो गया था। तभी गुड्डी बाथरूम से बाहर आई, पूरी तरह से नंग-धड़ग और फ़िर मुस्कुराते हुए बिस्तर पर बैठ कर ताशी की चुचियों से खेलने लगी। जल्दी हीं वो ताशी के होठ को चुम रही थी और तब मैंने अपना बदन सीधा किया और फ़िर अपने पंजों पर बैठ कर ताशी के पेट को अपने हाथों से जकड़ कर जबर्दस्त तेजी से उसकी चुदाई शुरु कर दी। ताशी मस्ती से भर कर चीखना चाहती थी पर गुड्डी ने उसके मुँह को अपने मुँह से बन्द कर दिया था और ताशी की आवाज गूँअँअँ...गुँअँ... करके निकली। करीब पाँच मिनट के बाद, मैंने अपना लन्ड पूरा बाहर खींच लिया और तभी गुड्डी भी अपना चेहरा अलग की। ताशी ने एक कराह के साथ अपनी आँख खोली और हम सब की तरफ़ देखा। उसकी बूर से गिलापन बह चला था और वो मस्त हो चुकी थी। मैंने उसको पलटने का इशारा किया और तब गुड्डी ने उसको उलट कर पेट के बल कर दिया मैंने अपना लन्ड उसकी गाँड़ की छेद से लगाया तो वो बिदक गई और फ़िर से सीधा होने लगी और तब मैंने उसको दिलासा दिया, "डरो मत...., इसके लिए तो आज गुड्डी है, अभी तो बस मैं चेक कर रहा था कि कैसा लगेगा गाँड पर लन्ड..., तुम थोड़ा सा ऊपर उठाओ न कमर... तुमको कुतिया पोज में चोदना है।" वो समझ गई और फ़िर चौपाया की तरह झुक कर खड़ी हो गई और मैंने किसे कुत्ते की तरह उसके कंधों को जकड़ कर पीछे से उसकी बूर में लन्ड घुसा दिया और फ़िर आशी ती तरफ़ दे खा जो अब थोड़ा आगे खिसक आई थी और मैंने ताशी की धक्कम-पेल चुदाई शुरु कर दी। उसकी बूर से पूच्च्च...पूच्च्च... की आवाज निकलती तो कभी उसकी चुतड़ थप्प...थप्प..थप्प.. थप्प.. करती। वो एक बार फ़िर थड़थड़ाई और मुझे लग गया कि बेचारी झड़ गई है। वो अब थक कर निढ़ाल हो गई थी और अपना बदन मेरे से चुदने के लिए बिल्कुल ढीला थोड़ दी थी। मैं भी अब झड़ने वाला था, कि तभी ताशी से पूछा, "मेरा माल मुँह में लोगी ताशी?"। उसने नहीं में सिर हिलाया तब, गुड्डी तुरंत मेरे सामने मुँह खोल कर लेट गई।

मैं समझ गया और फ़िर १०-१२ धक्के के बाद, मैंने अपना लन्ड ताशी की बूर से निकाल कर गुड्डी मी मुंह में घुसा दिया और ५ सेकेन्ड के भीतर मेरा माल छुट गया और गुड्डी मेरे लन्ड को चूस कर सब अपने मुँह में भर ली। करीब एक चम्मच तो जरुर निकला था सफ़ेद-सफ़ेद लिस्लिसा माल। ताशी अब तक सीधा चित लेट गई थी और अपना बदन बिल्कुल ढीला छोड़ी हुई थी। गुड्डी अपना मुँह बन्द की और मेरे माल को मुँह में लिए हुए ही उठी और फ़िर मेरी बहन स्वीटी के पास जा कर उसके मुँह में मेरा थोड़ा सा माल टपका दी। स्वीटी मुस्कुराते हुए उसे निगल ली, और तब गुड्डी ने उसके बगल में बैठी ही आशी के तरफ़ चेहरा घुमाया। मेरा लन्ड एक ठनका मारा, साली गुड्डी.... हराम जादी, उस बच्ची को भी नहीं छोड़ेगी। आशी के चेहरे को पकड़ कर उसको इशारा से मुँह खोलने को कहा। आशी भी यह सब देख कर गरम थी सो मुँह खोल दी और गुड्डी उसके होठ से होठ सटा कर उसके मुँह में मेरा सफ़ेदा गिरा दी और फ़िर आशी को बोली, "निगल जाओ इस चीज को।" आशी बिना कुछ समझे उसे निगल गई। ताशी सब देखी और बोली, "छीः... " हम सब हँसने लगे।
गुड्डी बोली, "तुम तो ताशी मेरा गाँड़ मराई देखने का कीमत अपना बूर चुदा कर चुकाई, और क्या आशी फ़ोकट में मेरा गाँड़ मराई देखती... उसको भी तो इसका कीमत चुकाना चाहिए... तो वह इसका कीमत लन्ड का माल खा कर चुकाई।" आशी सिटपिटा कर चुप ही रही... पर मैं हँस पड़ा।

मेरा लन्ड अब शायद वियाग्रा के असर में था, टन्टनाया हुआ... और तैयार। मेरे लन्ड को हल्के से एक चपत लगाई गुड्डी और मैं आह्ह... कर बैठा तो वो बोली, "मेरी गाँड़ फ़ाड़ोगे और मेरा एक थप्पड़ नहीं खाओगे... ऐसा कैसे होगा।" इसके बाद को थोड़ा और जोर से जल्दी-जल्दी ५ थप्पड़ गुड्डी ने मेरे फ़नफ़नाए हुए लन्ड को लगा दिए और मैं अब दर्द महसूस करके चिहुँक कर पीछे हटा। गुड्डी मुझे परेशानी में देख कर खिल्खिलाई और बोली, "आ जाओ अब... फ़ाड़ो मेरी गांड़"। मुझे गुस्सा आया और फ़िर अपने गुस्से पर काबू करते हुए मैने गुड्डी को बिस्तर पर खींचा, "साली... मादरचोद... रन्डी..."। गुड्डी अब स्वीटी से बोली, "जरा वो कन्डोंम ला दो", फ़िर मुझसे बोली, "कन्डोम पहन कर गाँड़ मारना डीयर"। मैंने जब कंडोम अपनी बहन के हाथ से लिया तो वो बोली, "लाईए मैं पहना देती हूँ", और फ़िर वो बडे प्यार से कंडोम को पैकेट से निकाल कर मेरे लन्ड पर पहनाने लगी। उसने कंडोम को पहले ही खोल दिया था, अनुभव हीन थी मेरी बहन। मैंने उसको बताया कि सही तरीके से लन्ड के ऊपर कंडोम कैसे चढ़ाते हैं और फ़िर गुड्डी को पास में खींचा। गुड्डी क्रीम को अपने गाँड़ की गुलाबी छेद पे मल रही थी और फ़िर धीरे-धीरे अपनी ऊँगली से अपने गाँड़ की छेद को गुदगुदा भी रही थी। मैं भी अब उसकी देखा-देखी उसकी गाँड़ को अपने ऊँगली से खोदने लगा। वो खिब सहयोग कर रही थी। जल्दी हीं उसका गाँड़ का छेद अब खुल गया और भीतर का हल्का गुलाबी हिस्सा झलकने लगा था, तब वो बिस्तर पकड़ कर निहुर कर सही पोज में आ गई और फ़िर मुझे बोली, "आ जाओ और धी-धीरे घुसाना... एक बार में नहीं होगा तो धीरे-धीरे दो-चार बार कोशिश करना, चला जाएगा भीतर..."। मैं अब पहली बार गाँड़ मारने के लिए तैयार हुआ और फ़िर उसकी गाँड़ की छेद पर लगा दिया और फ़िर भीतर दबाने लगा।

तीन बार के बाद मेरा सुपाड़ा भीतर घुस गया। गुड्डी लगातार पूछ रही थी कि कितना गया भीतर। उसे दर्द हो रहा था पर वो सब बर्दास्त कर रही थी। जब मैंने सुपाड़ा भीतर जाने की बात बताई तो बोली, ठीक है अब बिना बाहर खींचे लगातार भीतर दबाओ गाँड़ में...मुझे जोर से पकड़ना और छोड़ना मत अब। बाकी तीनों लड़कियाँ वहीं पास में बैठ कर सब देख रही थी पर सारा ध्यान अभी गुड्डी की गाँड़ पर था। मैंने गुड्डी मे बताए अनुसार ही ताकत लगा कर अपना लन्ड भीतर घुसाने लगा और गुड्डी दर्द से बिलबिला गई थी। अपनी कमर हिलाई जैसे वो आजाद होना चाहती हो। पर मैंने तो उसको जोर से पकड़ लिया था, जैसा उसने कहा था और बिना गुड्डी की परवाह किए पूरी ताकत से अपना लन्ड उसकी टाईट गाँड़ में पेल दिया। जब आधा से ज्यादा भीतर चला गया तब गुड्डी बोली, "अब रुक जाओ... बाप रे... बहुत फ़ैल गया है दर्द हो रहा है अब... प्लीज अब और नहीं मेरी गाँड़ फ़ट जाएगी।" मैंने उसको बताया कि करीब ६" भीतर चला गया है और अब करीब २" हीं बाहर है तो वो अपना हाथ पीछे करके मेरे लन्ड को छु कर देखी कि कितना भीतर गया है और फ़िर बोली, "अब ऐसे ही आगे-पीछे करके मेरी गाँड़ मारो... बाकी अपने भीतर चला जाएगा"। मैं अब जैसा उसने कहा था, गुड्डी की गाँड़ मारने लगा... और फ़िर देखते देखते मुझे लगा कि उसका गाँड़ थोड़ा खुल गया हो और फ़िर धीरे-धीरे उसकी गाँड़ मेरा सारा लन्ड खा गई। करीब ५ मिनट गाँड़ मराने के बाद वो मुझे लन्ड बाहर निकालने को बोली, और फ़िर आराम से गुड्डी उठी और मुझे बिठा कर मेरी गोद में बैठ गई... गाँड़ में इस बार उसने खुद भी मेरा लन्ड घुसा लिया था। मुसकी गाँड़ अब खुल गई थी। मेरे सीने से उसकी पीठ लगी हुई थी और सामने से अपनी बूर खोल कर वो मेरे घुटनो पर अपने पैर टिकाए बैठ कर बोली, "कोई आ कर मेरी बूर में ऊँगली करो न हरामजादियों... सब सामने बैठ कर देख रही हो।" ताशी और आशी दोनों बहने अब गुड्डी की बदन को सहलाने लगे थी और तभी वो उन सब को हटा कर ऊपर से मुझे चोदने लगी, बल्कि ऐसे कहिए कि मेरे लन्ड से अपना गाँड़ मराने लगी। यह सब सोच अब मुझे दिमाग से गरम करने लगा और जल्द हीं मेरा पानी छूटा.... मेरे कन्डोम ने उस पानी को कैन कर लिया और गुड्डी भी सब समझ कर उठी और मेरा कन्डोम एक झटके से खींच कर एक तरफ़ फ़ेंक दिया और फ़िर बिस्तर पर फ़ैल कर अपने हाथ से अपना गाँड़ खोल कर बोली, "आओ हरामी, एक बार और मार लो मेरी गाँड़ बिना कन्डोम के..."। मैं भी तुरन्त उसके ऊपर चढ़ कर उसकी गाँड़ में लन्ड घुसा दिया। अब उसका गाँड़ पूरी तरह से खुल गया था.... खुब मन से इस बार मैंने उसकी गाँड़ मारी करीब १० मिनट तक और फ़िर उसकी गाँड़ में हीं झड़ गया। अब तक मैं बहुत थक गया था, बल्कि हम दोनों तक गये थे सो हम एक तरफ़ हो निढ़ाल पड़े रहे और लम्बी-लम्बी साँसे लेते हुए अपनी थकान मिटाने का प्रयास करने लगे।

करीब ५ मिनट बाद हम दोनों उठे, गुड्डी अब नहाने के लिए बाथरूम में चली गयी और हम सब लोग अपने कपड़े वगैरह ठीक करने लगे। ताशी और आशी दोनों की साँस भी अब ठीक हो गई थी। घड़ी में अब करीब १ बज गया था और मेरे ट्रेन के लिए अब निकलने का समय भी नजदीक हो गया था। मैंने ताशी, आशी से उनका पता और नम्बर लिया और फ़िर उन दोनों को उनके होठों पर चुम्मी ले कर विदा किया। उन दोनों के मम्मी-पापा आ गए थे। गुड्डी जब नहा धो कर बाहर आई तो मैं तैयार होने चला गया। फ़िर हम सब एक साथ ताशी के कमरे में गए और फ़िर उस पूरे परिवार से विदा लिया। ताशी के मम्मी-पापा ने मुझे कहा भी कि कभी अगर आना हुआ तो उनके घर भी मैं जरुर आउँ... और मैंने उन दोनों बहनों की तरफ़ देखते हुए कहा, "जरुर..." और फ़िर उन्हें नमस्ते कह कर बाहर आ गया। फ़िर मैं स्वीटी और गुड्डी के साथ होटल छोड़ कर बाहर आ गया और फ़िर साथ हीं स्टेशन के लिए चल दिए। दोनों लड़कियाँ मुझे ट्रेन में बिठा कर वापस अपने कौलेज लौट गईं। मैंने उन दोनों को गले से लगा कर विदा किया, और तब स्वीटी मेरे कान में बोली, "अब आपको पता चलेगा.... बहुत मस्ती किए हैं यहाँ.... वैसे वहाँ भी विभा दी तो हैं हीं, पर वो मेरे जैसे नहीं है... बहुर शर्मिली है, कुछ गड़बड़ मत कर लीजिएगा..."। मैंने हल्के से उसके गाल पर थपकी दी और फ़िर उन दोनों को विदा कर दिया।
ट्रेन समय से खुल गई, और अब मैं अपनी सीट पर लेटा पिचले कुछ दिनों के घटनाओं के बारे में सोचने लगा। सब कुछ एक सपना जैसा लग रहा था। 
 
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