hotaks444
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उस दिन और कोई ऐसी घटना नही हुई जिसका वर्णन यहाँ किया जा सके
अगले दिन शाम को विलायती सूट पहन कर मैं तैयार हो चुका था पर मैं ये भी समझ गया था कि आज कुछ ना कुछ होगा ज़रूर क्योंकि मुनीम भी आज का ही बोल रहा था फोन पर कपड़ो मे जितने छोटे हथियार मैं छुपा सकता था उतने मैने छुपा लिए शाम घिरने लगी थी तो मैं भी नाहरगढ़ के लिए निकल पड़ा, दिल थोड़ा सा ज़्यादा ही धड़क रहा था पर देव भी कुछ कुछ सियासत समझने लगा था महल आज किसी दुल्हन की तरह सज़ा हुआ था
रात धीरे धीरे जवान हो रही थी मैने गाड़ी रोकी तो तुरंत ही दरबान मेरी ओर लपका बड़े ही अदब से उसने गाड़ी का दरवाजा खोला और गाड़ी उसके हवाले करके मैं सफेद संगमर मर की सीढ़िया चढ़तेहुवे महल के अंदर जाने लगा और अंदर पहुचते ही वहाँ की चकाचोंध से मेरी आँखे चुन्धिया गयी खूब मेहमान थे एक पल के लिए मेरे दिल मे ख़याल आया कि अगर मेरी फॅमिली भी आज ज़िंदा होती तो ऐसी ही शानो-शोकत मेरे घर पर भी होती मैं अपने ख़यालो मे डूबा हुआ था कि...
ठाकुर राजेंदर मेरे पास आए और बोले देव, हम तुम्हारी ही राह देख रहे थे अपने ननिहाल मे आपका स्वागत है वो बोले अच्छा लगा आपको यहाँ देख कर मैने कहा अब आपने बुलाया है तो आना ही था पर शायद मेरा यहाँ आना कुछ लोगो को अच्छा ना लगे ये बात मैने धनंजय को देखते हुए कही थी तो वो बोले आप चिंता ना करे आज की शाम के खास मेहमान है आप और नाहरगढ़ की मेजबानी का लुफ्त लीजिए फिर वो मुझे और लोगो से मिलवाने लगे थे पर मैं ना जाने क्यो दिव्या को ढूँढने लगा था आख़िर वो भी तो इसी महल मे रहती थी
पर वो कही दिखाई नही दे रही थी और मेरा मन भी पार्टी मे बिल्कुल नही लग रहा था तो बस टाइम काट ही रहा था और फिर मैने जो देखा मैं उसे देख कर हक्का बक्का रह गया सीढ़ियो से एक परी उतार कर चली आ रही थी अपनी सहेलियो के साथ एक खूबसूरत चेहरा , ठाकुर साहब ने सबसे परिचय करवाते हुवे कहा कि दोस्तो स्वागत कीजिए हमारी बेटी दिव्या का , तो दिव्या भी मेरी तरह झूठ के साए की पहचान करवा गयी थी मैने खुद को मेहमानो की भीड़ मे जैसे छुपासा लिया था
पर ये छुपान छुपाई भला कितनी देर रहती तालियो की गड़गड़ाहट के बीच दिव्या ने केक कटा और अपने माता पिता को खिलाने लगी तो ठाकुर साहब ने कहा कि दिव्या केक आज के ख़ास मेहमान को भी खिलाओ तो वो चहकते हुए बोली कॉन पिताजी तो उन्होने कहा अर्जुनगढ़ के ठाकुर देव, अब बारी थी हम दोनो के आमना सामना करने कि जैसे ही उसने मुझे देखा तो वो शॉक हो गयी और उसके मूह से निकल गया तूमम्म्ममममममममम
मैने कहा हाँ मैं पर ये बातचीत बस इतनी ही थी कि बस हम दोनो ही सुन सके तो फिर उसने मुझे केक खिलाया और फिर बाते होने लगी कई बार धनंजय से भी नज़रे मिली पर वो मुझसे कट ता ही रहा दिव्या बोली तुमने बताया नही कि तुम ही देव ठाकुर हो मैने कहा आपने भी तो नही बताया कि आप नाहरगढ़ के ठाकूरो की बेटी है तो वो बोली ऐसे कैसे बता देती मैने कहा तो फिर कैसे बता सकता था हम बाते कर ही रहे थे कि ममाजी ने कहा आओ आपको महल घुमा देता हूँ
ऐसे ही रात का 1 बज गया था पार्टी तो कब की ख़तम हो गयी थी और फिर मैं भी उनसे विदा लेकर अर्जुनगढ़ के लिए निकल ही रहा था कि दिव्या भागते हुए गाड़ी के पास आई और बोली देव मुझे आपसे कुछ इंपॉर्टेंट बात करनी है तो मैने कहा अभी मुझे जाना होगा दिव्या पर मैं जल्दी ही बगीचे मे आप से मिलूँगा वो मुझे रोकती ही रह गयी चेहरे से कुछ हैरान परेशान सी लग रही थी पर उसकी बातों पर इतना गोर नही किया मैने और हवेली के लिए निकल गया
अगले दिन शाम को विलायती सूट पहन कर मैं तैयार हो चुका था पर मैं ये भी समझ गया था कि आज कुछ ना कुछ होगा ज़रूर क्योंकि मुनीम भी आज का ही बोल रहा था फोन पर कपड़ो मे जितने छोटे हथियार मैं छुपा सकता था उतने मैने छुपा लिए शाम घिरने लगी थी तो मैं भी नाहरगढ़ के लिए निकल पड़ा, दिल थोड़ा सा ज़्यादा ही धड़क रहा था पर देव भी कुछ कुछ सियासत समझने लगा था महल आज किसी दुल्हन की तरह सज़ा हुआ था
रात धीरे धीरे जवान हो रही थी मैने गाड़ी रोकी तो तुरंत ही दरबान मेरी ओर लपका बड़े ही अदब से उसने गाड़ी का दरवाजा खोला और गाड़ी उसके हवाले करके मैं सफेद संगमर मर की सीढ़िया चढ़तेहुवे महल के अंदर जाने लगा और अंदर पहुचते ही वहाँ की चकाचोंध से मेरी आँखे चुन्धिया गयी खूब मेहमान थे एक पल के लिए मेरे दिल मे ख़याल आया कि अगर मेरी फॅमिली भी आज ज़िंदा होती तो ऐसी ही शानो-शोकत मेरे घर पर भी होती मैं अपने ख़यालो मे डूबा हुआ था कि...
ठाकुर राजेंदर मेरे पास आए और बोले देव, हम तुम्हारी ही राह देख रहे थे अपने ननिहाल मे आपका स्वागत है वो बोले अच्छा लगा आपको यहाँ देख कर मैने कहा अब आपने बुलाया है तो आना ही था पर शायद मेरा यहाँ आना कुछ लोगो को अच्छा ना लगे ये बात मैने धनंजय को देखते हुए कही थी तो वो बोले आप चिंता ना करे आज की शाम के खास मेहमान है आप और नाहरगढ़ की मेजबानी का लुफ्त लीजिए फिर वो मुझे और लोगो से मिलवाने लगे थे पर मैं ना जाने क्यो दिव्या को ढूँढने लगा था आख़िर वो भी तो इसी महल मे रहती थी
पर वो कही दिखाई नही दे रही थी और मेरा मन भी पार्टी मे बिल्कुल नही लग रहा था तो बस टाइम काट ही रहा था और फिर मैने जो देखा मैं उसे देख कर हक्का बक्का रह गया सीढ़ियो से एक परी उतार कर चली आ रही थी अपनी सहेलियो के साथ एक खूबसूरत चेहरा , ठाकुर साहब ने सबसे परिचय करवाते हुवे कहा कि दोस्तो स्वागत कीजिए हमारी बेटी दिव्या का , तो दिव्या भी मेरी तरह झूठ के साए की पहचान करवा गयी थी मैने खुद को मेहमानो की भीड़ मे जैसे छुपासा लिया था
पर ये छुपान छुपाई भला कितनी देर रहती तालियो की गड़गड़ाहट के बीच दिव्या ने केक कटा और अपने माता पिता को खिलाने लगी तो ठाकुर साहब ने कहा कि दिव्या केक आज के ख़ास मेहमान को भी खिलाओ तो वो चहकते हुए बोली कॉन पिताजी तो उन्होने कहा अर्जुनगढ़ के ठाकुर देव, अब बारी थी हम दोनो के आमना सामना करने कि जैसे ही उसने मुझे देखा तो वो शॉक हो गयी और उसके मूह से निकल गया तूमम्म्ममममममममम
मैने कहा हाँ मैं पर ये बातचीत बस इतनी ही थी कि बस हम दोनो ही सुन सके तो फिर उसने मुझे केक खिलाया और फिर बाते होने लगी कई बार धनंजय से भी नज़रे मिली पर वो मुझसे कट ता ही रहा दिव्या बोली तुमने बताया नही कि तुम ही देव ठाकुर हो मैने कहा आपने भी तो नही बताया कि आप नाहरगढ़ के ठाकूरो की बेटी है तो वो बोली ऐसे कैसे बता देती मैने कहा तो फिर कैसे बता सकता था हम बाते कर ही रहे थे कि ममाजी ने कहा आओ आपको महल घुमा देता हूँ
ऐसे ही रात का 1 बज गया था पार्टी तो कब की ख़तम हो गयी थी और फिर मैं भी उनसे विदा लेकर अर्जुनगढ़ के लिए निकल ही रहा था कि दिव्या भागते हुए गाड़ी के पास आई और बोली देव मुझे आपसे कुछ इंपॉर्टेंट बात करनी है तो मैने कहा अभी मुझे जाना होगा दिव्या पर मैं जल्दी ही बगीचे मे आप से मिलूँगा वो मुझे रोकती ही रह गयी चेहरे से कुछ हैरान परेशान सी लग रही थी पर उसकी बातों पर इतना गोर नही किया मैने और हवेली के लिए निकल गया