hotaks444
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"नामिता" संपूर्ण घटना-करम के मध्ये-नज़र प्रथम बार शिवानी ने हस्तक्षेप किया, उसने रुवान्से स्वर में अपनी दोस्त को पुकारा मगर आवेश से तिलमिलाती निम्मी उसकी आवाज़ पर ज़रा भी गौर नही फरमाती और सीढ़ियाँ लाँघते हुवे अपने कमरे के भीतर घुस जाती है.
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"तू फिकर ना कर बहू !! इस नये रिश्ते को स्वीकारने में उसे समय लगेगा. तू निम्मी की दोस्त होगी, हमें मालूम नही था" विह्वल कम्मो ने प्रेम-स्वरूप अपनी पुत्र-वधू को दुलार किया. दीप, शिवानी और यक़ीनन वक़्त की माँग भी यही थी, दोनो के नाटकीय चेहरे खिलने को आतुर थे. तत-पश्चात उन्होने मिल कर कम्मो को बेवकूफ़ बनाना आरंभ कर दिया.
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"सुनिए जी !! आप जल्द ही किसी अच्छे पंडित से शुभ मुहूरत निकलवाइए, साप्ताह के अंदर हम अपने दोनो बेटो की शादी कर देंगे" कम्मो ने रज़ामंदी ज़ाहिर की.
"बेटी !! तू एक बार रघु को देख लेती तो हमें निश्चिंतता हो जाती, मैं नही चाहती भविश्य में तुझे अपने फ़ैसले पर अफ़सोस हो. पिच्छले चार सालो से वह कोमा में है, ऐसे इंसान के साथ पूरी ज़िंदगी बसर करना कोई हसी-खेल नही" वह अपने अश्रुओं को पोन्छ्ते हुवे बोली.
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"हां बहू !! तेरी सास ठीक कह रही है" अपनी पत्नी के समर्थन में दीप ने कहा. माना शिवानी की देख-रेख उसके लाचार बेटे का भावी जीवन सुधार सकती थी मगर यह कतयि न्याय-संगत नही होता. वजह सिर्फ़ शारीरिक तृप्ति की नही थी, तंन के साथ मन का मेल भी अति-आवश्यक था.
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"मुझे सब मंज़ूर है पिता जी !! आप दोनो की छत्र-छाया, आशीर्वाद और प्यार मुझे कभी कमज़ोर नही पड़ने देगा. मैं शादी के बाद उनको देखना ज़्यादा पसंद करूँगी" अपने होने वाले सास-ससुर पर अटूट आस्था जताते हुवे शिवानी बोली. इतने आगे बढ़ने के उपरांत उसे पीछे हट जाना गवारा नही था, ख़ास कर दीप के विश्वास के कारण वह नाम मात्र को विचलित नही हुवी थी.
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"मैं मीठा लाती हूँ" कम्मो स-हर्ष उसके माथे का चुंबन ले लेती है. वर्तमान के इस कलयुगी संसार में शिवानी जैसी सू-संस्कृत व दयावान बहू का ढूँढे से भी मिलना बहुत कठिन है, फिर कम्मो की अभिलाषा तो चिराग जलाए बिना ही पूरी हो गयी थी.
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कुच्छ देर के ज़रूरी और निर्णायक वार्तालाप के उपरांत दोनो पति-पत्नी अपनी बहू को उसके हॉस्टिल छोड़ने निकल पड़ते हैं. हलाकी वे उसे घर में ही रोक लेना चाहते थे मगर शिवानी की ज़िद के आगे उन्हें झुकना पड़ा. वैसे आज की रात बहुत लंबी होने वाली थी, जहाँ दीप अपनी पुत्री को मनाने के लिए बेहद उत्साहित था वहीं कम्मो भी अपने पुत्र की नाराज़गी दूर करने को मचल रही थी.
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif](¨`·.·´¨) Always[/font]
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"तू फिकर ना कर बहू !! इस नये रिश्ते को स्वीकारने में उसे समय लगेगा. तू निम्मी की दोस्त होगी, हमें मालूम नही था" विह्वल कम्मो ने प्रेम-स्वरूप अपनी पुत्र-वधू को दुलार किया. दीप, शिवानी और यक़ीनन वक़्त की माँग भी यही थी, दोनो के नाटकीय चेहरे खिलने को आतुर थे. तत-पश्चात उन्होने मिल कर कम्मो को बेवकूफ़ बनाना आरंभ कर दिया.
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"सुनिए जी !! आप जल्द ही किसी अच्छे पंडित से शुभ मुहूरत निकलवाइए, साप्ताह के अंदर हम अपने दोनो बेटो की शादी कर देंगे" कम्मो ने रज़ामंदी ज़ाहिर की.
"बेटी !! तू एक बार रघु को देख लेती तो हमें निश्चिंतता हो जाती, मैं नही चाहती भविश्य में तुझे अपने फ़ैसले पर अफ़सोस हो. पिच्छले चार सालो से वह कोमा में है, ऐसे इंसान के साथ पूरी ज़िंदगी बसर करना कोई हसी-खेल नही" वह अपने अश्रुओं को पोन्छ्ते हुवे बोली.
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"हां बहू !! तेरी सास ठीक कह रही है" अपनी पत्नी के समर्थन में दीप ने कहा. माना शिवानी की देख-रेख उसके लाचार बेटे का भावी जीवन सुधार सकती थी मगर यह कतयि न्याय-संगत नही होता. वजह सिर्फ़ शारीरिक तृप्ति की नही थी, तंन के साथ मन का मेल भी अति-आवश्यक था.
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"मुझे सब मंज़ूर है पिता जी !! आप दोनो की छत्र-छाया, आशीर्वाद और प्यार मुझे कभी कमज़ोर नही पड़ने देगा. मैं शादी के बाद उनको देखना ज़्यादा पसंद करूँगी" अपने होने वाले सास-ससुर पर अटूट आस्था जताते हुवे शिवानी बोली. इतने आगे बढ़ने के उपरांत उसे पीछे हट जाना गवारा नही था, ख़ास कर दीप के विश्वास के कारण वह नाम मात्र को विचलित नही हुवी थी.
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"मैं मीठा लाती हूँ" कम्मो स-हर्ष उसके माथे का चुंबन ले लेती है. वर्तमान के इस कलयुगी संसार में शिवानी जैसी सू-संस्कृत व दयावान बहू का ढूँढे से भी मिलना बहुत कठिन है, फिर कम्मो की अभिलाषा तो चिराग जलाए बिना ही पूरी हो गयी थी.
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कुच्छ देर के ज़रूरी और निर्णायक वार्तालाप के उपरांत दोनो पति-पत्नी अपनी बहू को उसके हॉस्टिल छोड़ने निकल पड़ते हैं. हलाकी वे उसे घर में ही रोक लेना चाहते थे मगर शिवानी की ज़िद के आगे उन्हें झुकना पड़ा. वैसे आज की रात बहुत लंबी होने वाली थी, जहाँ दीप अपनी पुत्री को मनाने के लिए बेहद उत्साहित था वहीं कम्मो भी अपने पुत्र की नाराज़गी दूर करने को मचल रही थी.
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