hotaks444
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[size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large]प्यार हो तो ऐसा पार्ट--14
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गतान्क से आगे......................
[size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large]भीमा को रेणुका के उभार अपनी छाती पर महसूस हो रहे थे. रेणुका की गरम साँसे उसके सीने से टकरा रही थी. भीमा खुद को अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था. पर वो रेणुका को हटने को नही बोल सका क्योंकि उसे पता था कि वो डर के कारण उस से चिपकी है. पर काम की भावना किसी भी वक्त जागृत हो सकती है. भीमा का लिंग ना चाहते हुवे भी तन गया. रेणुका को अपनी योनि के ठीक उपर भीमा का लिंग महसूस हुवा. पहले तो उसे लगा कि शायद वो कुछ और है. लेकिन जल्दी ही वो समझ गयी कि ये कुछ और नही भीमा का लिंग ही है. ये रीयलाइज़ होते ही रेणुका फ़ौरन भीमा से अलग हो गयी. “माफ़ कीजिएगा मेम्साब…मुझे ग़लत मत समझना…वो बस यू ही.” भीमा गिड़गिदाया. “कोई बात नही…ग़लती मेरी ही थी.” रेणुका ने कहा. …………………………………………………………………………………………… प्रेम उस साए को अपनी ओर आते देख चुप गया. वो साया छुपाते छुपाते चल रहा था. जैसे ही वो साया प्रेम के आगे से गुजरा प्रेम ने उसे दबोच लिया. उस साए ने काला कंम्बल ओढ़ रखा था जिसे प्रेम ने एक झटके में खींच लिया. “प्रेम तुम…तो क्या तुम मेरे पीछे भाग रहे थे.” “मदन तुम? ये सब क्या है भाई” मदन प्रेम को सारी कहानी सुनाता है. “ह्म्म तो वर्षा किशोरे के घर पर है.” प्रेम ने कहा “हां…मैं बस घर जा रहा था और तुम लोग पीछे पड़ गये…उपर से वो चीन्ख…मेरी तो हालत खराब हो गयी. मैं तो वापिस जाने वाला था लेकिन फिर साधना का चेहरा आँखो में घूमने लगा. मुझे लगा मुझे हर हाल में घर जाना चाहिए.” मदन ने कहा. “ठीक है मैं तुम्हे घर छोड़ देता हूँ आओ.” प्रेम ने कहा. “ठीक है चलो.” “तो तुम लोगो ने उस दरिंदे को देखा है…उसके बारे में विस्तार से बताओ” प्रेम ने कहा. “मुझे तो वो कोई पिशाच लगता है” मदन ने कहा. “पिशाच…नही नही ऐसा नही हो सकता.?” प्रेम ने कहा. “क्यों ऐसा क्यों बोल रहे हो?” मदन ने पूछा. “बरसो से कही किसी ने किसी पिशाच को नही देखा…अचानक यहा गाँव में वो कहा से आ गया.” प्रेम ने कहा. “पर मुझे तो वो पिशाच ही लगता है…इंसान को तो पिशाच ही खाते हैं ना.” मदन ने कहा. “वो जो भी है आज फिर गाँव में ही है…वो चीन्ख उसके यहा होने की चेतावनी है.” मदन का घर आ गया. साधना मदन को देखते ही उस से लिपट गयी. “कहा चले गये थे भैया तुम?” साधना ने आँखो में आँसू भर के पूछा. “सब बताउन्गा पहले पिता जी से तो मिल लूँ” मदन ने कहा. मदन ने अपने पिता के पाँव छुवे. उन्होने भी उसे गले लगा लिया. मदन ने सारी बात विस्तार से बताई. “क्या तुम्हे पता है हम पर क्या बीती” साधना ने कहा. “हां किशोरे ने सब बताया…उस वीर को कुत्ते की मौत मिलेगी.” मदन ने कहा. “मैं चलता हूँ” प्रेम ने कहा. “तुम इतनी रात को कहा जा रहे हो यही रुक जाओ ना” साधना ने कहा. “मेरा जाना ज़रूरी है” प्रेम ने कहा और वाहा से निकल गया. “प्रेम बहुत बदल गया है भैया.” साधना ने कहा. “हां पता चला मुझे स्वामी बन गया है वो” मदन ने कहा. ……………………………………………………………. “ये भीमा कहा गया…उसके घर जा कर देखता हूँ क्या पता वाहा हो.” प्रेम ने सोचा प्रेम भीमा के घर पहुँच गया और उसका दरवाजा खड़काया. “स्वामी जी आप माफ़ कीजिए आप को बाहर छ्चोड़ कर मैं यहा आ गया…मैं वो चीन्ख सुन कर डर गया था स्वामी जी” भीमा ने कहा. “अगर ऐसा है तो तुम यही रूको…मैं अभी मंदिर जा रहा हूँ अपने पिता जी के पास. उनसे पिशाच के बारे में कुछ पूछना है.” “प..प…पिशाच वो तो सच में भूतो से ख़तरनाक होते हैं” भीमा ने कहा. “अभी बस ये अंदाज़ा भर है…तुम अभी यही रूको बाद में मिलते हैं…मैं पहले अपने पिता जी से बात कर लू..उन्हे पिशाच के बारे में बहुत जानकारी है.” “नही स्वामी जी मैं आपके साथ चलता हूँ.” प्रेम ने रेणुका की तरफ देखा. रेणुका के चेहरे पर डर के भाव साफ दीखाई दे रहे थे. “नही तुम यही रूको…इनको अकेले डर लगेगा.” “पर आप अकेले…” भीमा ने कहा. “मैं अकेला नही हूँ…भगवान मेरे साथ हैं…तुम यही रूको.” प्रेम ने कहा. प्रेम को भीमा की आँखो का डर भी सॉफ दीखाई दे रहा था. वो नही चाहता था कि भीमा को इस वक्त साथ ले जाया जाए. प्रेम वाहा से चल दिया. “पिता जी की तबीयत खराब है पता नही कुछ बता पाएँगे या नही.” प्रेम रात के सन्नाटे में मंदिर की ओर बढ़ रहा था. हर तरफ ख़ौफ़ का मंज़र महसूस हो रहा था. प्रेम अपने पिता केसव पंडित के चरनो में जा कर बैठ जाता है. “पिता जी आज मुझे आपकी मदद की सख़्त ज़रूरत है” प्रेम ने कहा. “क्या हुवा…मुझे तो लगता था अब मेरा बेटा स्वामी बन कर मुझे भूल ही जाएगा. स्वामी को किस बारे में मदद चाहिए.” केसव पंडित ने कहा. “पिता जी गाँव में फैले ख़ौफ़ का कारण क्या है?” “मुझे कुछ अंदाज़ा नही बेटे. तबीयत खराब रहती है मेरी मैं इस मंदिर से बाहर आता जाता ही नही.” “लेकिन फिर भी आपका खबर तो है ही कि गाँव में क्या हो रहा है.” “हां लोग मुझे आकर बाते सुनाते हैं उसी से पता चलता है.” “पिता जी क्या गाँव में फैले ख़ौफ़ का कारण कोई पिशाच हो सकता है.” “क्या पता हो भी सकता है और नही भी.” “मुझे पिशाच के बारे में कुछ जानकारी दे दो पिता जी…आख़िर होता क्या है ये पिशाच.” “बेटे पिशाच देव योनि से होते हैं और माँस खाना पसंद करते हैं.कहा जाता है कि वो दक्ष के पोते हैं. काला शरीर होता है और आँखे लाल होती हैं.” “ह्म्म इसका मतलब उन्हे उनके शरीर से पहचाना जा सकता है?” प्रेम ने कहा. “पिशाच कोई भी रूप ले सकते हैं और तुम्हारी आँखो के सामने गायब भी हो सकते हैं. वो अपने वास्तविक रूप में कम ही मिलेंगे तुम्हे.” “ये तो नामुमकिन सी बात लगती है पिता जी.” “पता नही…पर पिशाच के बारे में जो मान्यता है मैने तुम्हे बता दी.” “इसका मतलब पिशाच भूतो से भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं.” प्रेम ने पूछा. “भूतो की अलग सत्ता है और पिशाच की अलग” केसव पंडित ने कहा. “ह्म्म…मैं चलता हूँ पिता जी लगता है आज फिर वो गाँव में ही घूम रहा है.” प्रेम ने कहा. “रूको बेटा…तुम उसका कुछ नही बिगाड़ सकते.” केसव पंडित ने कहा. “कोई बात नही पिता जी पर मैं कोशिस तो करूँगा ही” प्रेम ने चलते हुवे पीछे मूड कर कहा. “तुम समझ नही रहे हो अगर ये पिशाच ही है तो तुम्हारी कोई कोशिश काम नही करेगी” केसव पंडित ने ज़ोर से कहा. पर प्रेम जा चुका था. “एक बार दीख जाए ये… फिर ही पता चलेगा कि ये पिशाच है या कुछ और” प्रेम ने खुद से कहा. प्रेम गाँव की अंधेरी गलियों में अकेला इधर उधर भटकने लगा…पर उसे कुछ नज़र नही आया. ………………………………………………………………………………. “मेमासाब आप सो जाओ डरो मत मैं यही हूँ.” भीमा ने कहा. “अजीब सा सन्नाटा छाया है बाहर…जैसे की तूफान से पहले का सन्नाटा हो” रेणुका ने कहा. “क्या आप पिशाच के बारे में कुछ जानती हैं.” “नही मुझसे ऐसी बात मत करो मुझे वैसे ही डर लग रहा है.” “माफ़ करना मेम्साब वैसे ही पूछ रहा था.” भीमा ने कहा. “आप मुझसे उस बात के लिए नफ़रत तो नही करेंगी” भीमा ने पूछा. “कौन सी बात” रेणुका का ध्यान कही और था इश्लीए वो समझ नही पाई. “कोई भी औरत मेरे इतने नज़दीक नही आई आज तक मैं भावनाओ में बह गया था मेम्साब.” भीमा ने कहा. “कोई बात नही भीमा मैं समझ रही हूँ तुम बहुत आछे इंसान हो मैं जानती हूँ.” रेणुका ने कहा. “मेम्साब आपका इस ग़रीब की कुटिया में मन नही लग रहा होगा” “नही ये बहुत अछी जगह है…मनहूस हवेली से ज़्यादा सकुन है यहा.” अचानक बाहर कुछ हलचल होती है और भीमा खिड़की पर खड़े हो कर देखता है. “क्या है?” “दीखाई तो कुछ नही दे रहा लेकिन ऐसा लगा था कि कोई बहुत तेज़ी से भागा है यहा से.” रेणुका भी उठ कर खिड़की पर आ गयी. “शायद कुत्ता या बिल्ली होगी” रेणुका ने कहा. लेकिन तभी खौफनाक चीन्ख गूँज उठी. रेणुका इतनी घबरा गयी कि फिर से भीमा से चिपक गयी. “आधे से ज़्यादा लोग तो ये चीन्ख सुन कर ही मर जाएँगे…कैसी चेतावनी है ये भूतो की.” भीमा ने कहा. “मुझे बहुत डर लग रहा है भीमा मैं मरना नही चाहती.” रेणुका ने कहा. “डर तो मुझे भी बहुत लग रहा है क्या करें कुछ समझ नही आता. अब तो इस समस्या का समाधान स्वामी जी ही करेंगे.” ना चाहते हुवे भी भीमा का लिंग फिर से तन ही गया और रेणुका को इस बार बहुत आछे से महसूस हुवा. पर रेणुका इतनी डरी और सहमी थी कि भीमा से चीपकि रही. भीमा अपनी जींदगी में अभी तक कुँवारा था और पहली बार किसी औरत को इतने नज़दीक पाकर भावुक हो रहा था. उसके डर पर अंजाने में ही हवस की आग हावी हो रही थी. कब भीमा के हाथ रेणुका के नितंबो पर टिक गये उसे पता भी नही चला. उसने रेणुका के नितंबो को दोनो हाथो से अपनी और खींचा. नितंबो पर पड़े दबाव के कारण उसका लिंग रेणुका की योनि पर बुरी तरह से सॅट गया. “भीमा नही….” रेणुका ने कहा और भीमा से अलग हो गयी. “मेम्साब मैं जा रहा हूँ मुझे यहा नही रुकना चाहिए.” “नही रूको बाहर मत जाओ…मैं ही पागल हूँ जो बार बार तुमसे चिपक जाती हूँ. कही तुम मुझे ग़लत तो नही समझ रहे.” “नही मेम्साब आप ग़लत नही हो सकती मैं ही पापी हूँ.” रेणुका भीमा के पास आई और बोली, “क्या मैं तुम्हे अछी लगती हूँ.” “नही मेम्साब….मेरा मतलब हां मेम्साब आप बहुत अछी हैं…पर ना जाने आज मुझे क्या हो रहा है.” भीमा ने कहा. प्रेम पूरे गाँव में हर तरफ घूमता रहा पर उसे कुछ दीखाई नही दिया. पर रह रह कर गाँव में चीन्ख ज़रूर गूँज रही थी. "ये चीन्ख तो गूँज रही है पर दीखाई कोई नही दे रहा अगर वो यहा है तो दीखाई क्यों नही देता. क्या सच में ये पिशाच ही है ? या कुछ और" प्रेम ये सब सोचते हुवे आगे बढ़ा जा रहा था कि उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी. प्रेम ने चारो तरफ देखा पर कोई नही दीखा. "ये मारा जाएगा कोई इसे बचा लो...नही बचा लो इसे." "ये आवाज़ कहा से आ रही है" प्रेम हैरत में पड़ गया. प्रेम आवाज़ की दिशा का अंदाज़ा लगा कर एक तरफ चल पड़ा. पीपल के एक पेड़ के नीचे एक आदमी बैठा रो रहा था. "इसे मरने से बचा लो" "हे कौन हो तुम और रो क्यों रहे हो...गाँव के सब लोग तो घरो में हैं तुम इतनी रात को यहा क्या कर रहे हो" प्रेम ने कयि सवाल किए. "मुझे बहुत दुख है...कोई बचा लो इसे." वो आदमी रोते हुवे बोला. "कोई मुसीबत में है क्या बताओ मुझे मैं उसकी मदद करूँगा." वो आदमी ज़ोर ज़ोर से रोने लगा और बोला, "कोई तो बचा लो इसे." "किसको बचाने को बोल रहे हो...मुझे बताओ मैं तुम्हारी मदद करूँगा" प्रेम ने कहा. "तुम्हारी जींदगी ख़तरे में है...तुम्हारी मदद के लिए किसी को बुला रहा हूँ" उस आदमी ने कहा. "क्या बकवास कर रहे हो" प्रेम ने कहा. "कुछ ऐसा ही तुम्हारे साथियो ने कहा था कल...मैने उन्हे कहा था कि तुम लोगो की जींदगी ख़तरे में है किसी को बुला लो पर वो लोग मेरी बात पर हसणे लगे और कुछ ही देर में मारे गये" कह कर वो आदमी फिर से रोने लगा. "क्या? तुम उस वक्त वाहा थे." "हां मैने बहुत आवाज़ लगाई मदद को पर कोई नही आया." "मेरे लिए तुम्हे रोने की ज़रूरत नही है...तुम अपनी चिंता करो" "हा..हा..हा..बहुत खूब तुम्हे खाने में बहुत मज़ा आएगा मुझे बहादुर लोगो का माँस खाने अछा लगता है मुझे." "तो क्या तुम पिशाच हो?" "हा..हा..हा...पिशाच से उसके बारे में नही पूछते बेवकूफ़ अपनी चिंता करो...तुम्हे मारने में बहुत मज़ा आएगा." "हा..हा..हा..मुझे भी तुम्हे मारने में मज़ा आएगा. पिशाच को मारना अछा लगेगा मुझे." प्रेम भी हसणे लगा. प्रेम की बात सुनते ही वो आदमी खड़ा हो गया और प्रेम के उपर छल्लांग लगा दी. पर प्रेम वाहा से हट गया और अपनी मुथि बंद करके कुछ मन्त्र बोले और मुथि खोल कर कोई भबूत जैसी चीज़ उसकी आँख में डाल दी. पिशाच आँख मसल्ने लगा और इधर उधर हाथ मार कर वाहा से गायब हो गया. "कहा गये पिशाच मिया...आओ थोड़ा और खेलते हैं...मुझे भी अब रोना आ रहा है कोई तो तुम्हे बचा ले." पिशाच आँख मलता हुवा जंगल में अपने ठिकाने पर पहुँच गया. "कौन है ये लोंदा जिसने मेरी ऐसी हालत कर दी...इस लोंडे को तो मैं तडपा तडपा कर मारूँगा...इसके पूर खानदान को निगल जाउन्गा हे...हे..हे..हा..हा..हा" पिशाच ज़ोर ज़ोर से हसणे लगा. उसकी आवाज़ सुन कर जानवर भी इधर उधर भागने लगे. पिशाच एक हिरण पर झापड़ पड़ा और उसे चीर कर खा गया. "आदमी के माँस में जो बात है वो इन जानवरो में नही." पिशाच ने कहा. इधर प्रेम हर तरफ पिशाच को ढून्दता रहा पर वो उशे कही नही दीखा. ......................................... भीमा रेणुका के पैरो में गिर गया और बोला, "मेम्साब मुझे माफ़ कीजिए आप जानती हैं कि मैं ग़लत नही हूँ." "उठ जाओ भीमा मैं जानती हूँ तुम कैसे इंसान हो...उठो...तुम्हे देखा है मैने हवेली में...तुम ग़लत नही हो सकते...शायद शरीर की प्यास ही ऐसी होती है" "मेम्साब मुझे नही पता क्या हुवा शायद...शायद..." भीमा बोलते बोलते रुक गया. "हां-हां बोलो बात क्या है?" "शायद आपको खेत में नगन अवस्था में देख कर ऐसा हुवा है...वरना ऐसा मुमकिन नही था." "क्या तुम मेरी मदद करने की बजाए मेरा शरीर देख रहे थे?" "नही मेम्साब...पर नज़र तो चली ही गयी थी...वो मेरे बस में नही थी...मैं झूठ नही बोलना चाहता आपसे" "ह्म्म तुम दिल के सच्चे हो भीमा...सब सच बोल रहे हो...मुझे ये बात अछी लगी." "मेम्साब मैने कुछ ग़लत तो नही बोल दिया" "तुमने सच बोला है. अब वो ग़लत है या सही इस से क्या फरक पड़ता है." "मेम्साब अब आप सो जाओ" "तुम्हारे होते हुवे सोना ठीक नही अब यहा." "मैं चला जाता हूँ मेम्साब आप चिंता मत करो...वैसे भी मुझे लगता है कि मुझे स्वामी जी के पास जाना चाहिए अब" "अरे मज़ाक कर रही हूँ भोन्दु...चल अपना बिस्तर लगा ले" "मेम्साब आप सच में बहुत अछी हो." "ठीक है ठीक है...मैं शो रही हूँ अब...बाहर काफ़ी शांति है अब. बहुत देर से चीन्ख भी नही आई...शायद वो दरिन्दा अब यहा नही है" "मुझे भी ऐसा ही लगता है." भीमा ने कहा. दोनो अपने अपने बिस्तर पर लेट गये. "अच्छा भीमा तुमने अब तक शादी क्यों नही की." "मेम्साब सरिता के शिवा किसी से शादी करने का मन ही नही हुवा." "सरिता जैसी ही लड़की चाहिए तुम्हे हा." "आपके जैसी भी मुझे अछी लगेगी." "तो मैं तुम्हे अछी लगती हूँ." "आप किस को अछी नही लगेंगी मेम्साब...आप जैसा कोई मिल जाए तो किश्मत बन जाए." भीमा थोड़ा थोडा रेणुका से खुलने लगा था. "भीमा तुम भी बहुत अच्छे हो...तुमने अपनी जान पर खेल कर सरिता को बचाया और मुझे भी बचाया." "आगर आप उस दिन हिम्मत ना देती तो शायद मैं कभी सरिता की मदद नही कर पाता. रही बात आपको बचाने की तो वो भी आपके कारण ही मुमकिन हुवा. उस दिन की हिम्मत दुबारा काम आई." "क्या मैं सो जाउ अब?" रेणुका ने कहा. "जैसी आपकी इच्छा मेम्साब मुझे तो नींद नही आएगी" "मुझे बहुत नींद आ रही है कयि दिनो से उन भूतो के कारण हवेली में ठीक से नींद नही आई" "आप बेफिकर हो कर सो जाओ मेम्साब मैं हू ना." "तुम्हारे होने का मुझे बहुत सुकून है भीमा...बहुत सुकून है" "काश मेम्साब जैसी ही कोई लड़की मेरी जींदगी में आ जाए" भीमा ने अपने मन में सोचा. रात बीत जाती है. मदन सुबह सवेरे ही वर्षा के पास वापिस आ जाता है. इधर ठाकुर रुद्र प्रताप सिंग की हालत बिगड़ रही है. पहले वीर फिर जीवन...उसे बहुत गहरा सदमा लगा है. वैद का कहना है कि शायद वो कुछ पल के ही महमान हैं. क्रमशः.........................[/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size]
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गतान्क से आगे......................
[size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large]भीमा को रेणुका के उभार अपनी छाती पर महसूस हो रहे थे. रेणुका की गरम साँसे उसके सीने से टकरा रही थी. भीमा खुद को अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था. पर वो रेणुका को हटने को नही बोल सका क्योंकि उसे पता था कि वो डर के कारण उस से चिपकी है. पर काम की भावना किसी भी वक्त जागृत हो सकती है. भीमा का लिंग ना चाहते हुवे भी तन गया. रेणुका को अपनी योनि के ठीक उपर भीमा का लिंग महसूस हुवा. पहले तो उसे लगा कि शायद वो कुछ और है. लेकिन जल्दी ही वो समझ गयी कि ये कुछ और नही भीमा का लिंग ही है. ये रीयलाइज़ होते ही रेणुका फ़ौरन भीमा से अलग हो गयी. “माफ़ कीजिएगा मेम्साब…मुझे ग़लत मत समझना…वो बस यू ही.” भीमा गिड़गिदाया. “कोई बात नही…ग़लती मेरी ही थी.” रेणुका ने कहा. …………………………………………………………………………………………… प्रेम उस साए को अपनी ओर आते देख चुप गया. वो साया छुपाते छुपाते चल रहा था. जैसे ही वो साया प्रेम के आगे से गुजरा प्रेम ने उसे दबोच लिया. उस साए ने काला कंम्बल ओढ़ रखा था जिसे प्रेम ने एक झटके में खींच लिया. “प्रेम तुम…तो क्या तुम मेरे पीछे भाग रहे थे.” “मदन तुम? ये सब क्या है भाई” मदन प्रेम को सारी कहानी सुनाता है. “ह्म्म तो वर्षा किशोरे के घर पर है.” प्रेम ने कहा “हां…मैं बस घर जा रहा था और तुम लोग पीछे पड़ गये…उपर से वो चीन्ख…मेरी तो हालत खराब हो गयी. मैं तो वापिस जाने वाला था लेकिन फिर साधना का चेहरा आँखो में घूमने लगा. मुझे लगा मुझे हर हाल में घर जाना चाहिए.” मदन ने कहा. “ठीक है मैं तुम्हे घर छोड़ देता हूँ आओ.” प्रेम ने कहा. “ठीक है चलो.” “तो तुम लोगो ने उस दरिंदे को देखा है…उसके बारे में विस्तार से बताओ” प्रेम ने कहा. “मुझे तो वो कोई पिशाच लगता है” मदन ने कहा. “पिशाच…नही नही ऐसा नही हो सकता.?” प्रेम ने कहा. “क्यों ऐसा क्यों बोल रहे हो?” मदन ने पूछा. “बरसो से कही किसी ने किसी पिशाच को नही देखा…अचानक यहा गाँव में वो कहा से आ गया.” प्रेम ने कहा. “पर मुझे तो वो पिशाच ही लगता है…इंसान को तो पिशाच ही खाते हैं ना.” मदन ने कहा. “वो जो भी है आज फिर गाँव में ही है…वो चीन्ख उसके यहा होने की चेतावनी है.” मदन का घर आ गया. साधना मदन को देखते ही उस से लिपट गयी. “कहा चले गये थे भैया तुम?” साधना ने आँखो में आँसू भर के पूछा. “सब बताउन्गा पहले पिता जी से तो मिल लूँ” मदन ने कहा. मदन ने अपने पिता के पाँव छुवे. उन्होने भी उसे गले लगा लिया. मदन ने सारी बात विस्तार से बताई. “क्या तुम्हे पता है हम पर क्या बीती” साधना ने कहा. “हां किशोरे ने सब बताया…उस वीर को कुत्ते की मौत मिलेगी.” मदन ने कहा. “मैं चलता हूँ” प्रेम ने कहा. “तुम इतनी रात को कहा जा रहे हो यही रुक जाओ ना” साधना ने कहा. “मेरा जाना ज़रूरी है” प्रेम ने कहा और वाहा से निकल गया. “प्रेम बहुत बदल गया है भैया.” साधना ने कहा. “हां पता चला मुझे स्वामी बन गया है वो” मदन ने कहा. ……………………………………………………………. “ये भीमा कहा गया…उसके घर जा कर देखता हूँ क्या पता वाहा हो.” प्रेम ने सोचा प्रेम भीमा के घर पहुँच गया और उसका दरवाजा खड़काया. “स्वामी जी आप माफ़ कीजिए आप को बाहर छ्चोड़ कर मैं यहा आ गया…मैं वो चीन्ख सुन कर डर गया था स्वामी जी” भीमा ने कहा. “अगर ऐसा है तो तुम यही रूको…मैं अभी मंदिर जा रहा हूँ अपने पिता जी के पास. उनसे पिशाच के बारे में कुछ पूछना है.” “प..प…पिशाच वो तो सच में भूतो से ख़तरनाक होते हैं” भीमा ने कहा. “अभी बस ये अंदाज़ा भर है…तुम अभी यही रूको बाद में मिलते हैं…मैं पहले अपने पिता जी से बात कर लू..उन्हे पिशाच के बारे में बहुत जानकारी है.” “नही स्वामी जी मैं आपके साथ चलता हूँ.” प्रेम ने रेणुका की तरफ देखा. रेणुका के चेहरे पर डर के भाव साफ दीखाई दे रहे थे. “नही तुम यही रूको…इनको अकेले डर लगेगा.” “पर आप अकेले…” भीमा ने कहा. “मैं अकेला नही हूँ…भगवान मेरे साथ हैं…तुम यही रूको.” प्रेम ने कहा. प्रेम को भीमा की आँखो का डर भी सॉफ दीखाई दे रहा था. वो नही चाहता था कि भीमा को इस वक्त साथ ले जाया जाए. प्रेम वाहा से चल दिया. “पिता जी की तबीयत खराब है पता नही कुछ बता पाएँगे या नही.” प्रेम रात के सन्नाटे में मंदिर की ओर बढ़ रहा था. हर तरफ ख़ौफ़ का मंज़र महसूस हो रहा था. प्रेम अपने पिता केसव पंडित के चरनो में जा कर बैठ जाता है. “पिता जी आज मुझे आपकी मदद की सख़्त ज़रूरत है” प्रेम ने कहा. “क्या हुवा…मुझे तो लगता था अब मेरा बेटा स्वामी बन कर मुझे भूल ही जाएगा. स्वामी को किस बारे में मदद चाहिए.” केसव पंडित ने कहा. “पिता जी गाँव में फैले ख़ौफ़ का कारण क्या है?” “मुझे कुछ अंदाज़ा नही बेटे. तबीयत खराब रहती है मेरी मैं इस मंदिर से बाहर आता जाता ही नही.” “लेकिन फिर भी आपका खबर तो है ही कि गाँव में क्या हो रहा है.” “हां लोग मुझे आकर बाते सुनाते हैं उसी से पता चलता है.” “पिता जी क्या गाँव में फैले ख़ौफ़ का कारण कोई पिशाच हो सकता है.” “क्या पता हो भी सकता है और नही भी.” “मुझे पिशाच के बारे में कुछ जानकारी दे दो पिता जी…आख़िर होता क्या है ये पिशाच.” “बेटे पिशाच देव योनि से होते हैं और माँस खाना पसंद करते हैं.कहा जाता है कि वो दक्ष के पोते हैं. काला शरीर होता है और आँखे लाल होती हैं.” “ह्म्म इसका मतलब उन्हे उनके शरीर से पहचाना जा सकता है?” प्रेम ने कहा. “पिशाच कोई भी रूप ले सकते हैं और तुम्हारी आँखो के सामने गायब भी हो सकते हैं. वो अपने वास्तविक रूप में कम ही मिलेंगे तुम्हे.” “ये तो नामुमकिन सी बात लगती है पिता जी.” “पता नही…पर पिशाच के बारे में जो मान्यता है मैने तुम्हे बता दी.” “इसका मतलब पिशाच भूतो से भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं.” प्रेम ने पूछा. “भूतो की अलग सत्ता है और पिशाच की अलग” केसव पंडित ने कहा. “ह्म्म…मैं चलता हूँ पिता जी लगता है आज फिर वो गाँव में ही घूम रहा है.” प्रेम ने कहा. “रूको बेटा…तुम उसका कुछ नही बिगाड़ सकते.” केसव पंडित ने कहा. “कोई बात नही पिता जी पर मैं कोशिस तो करूँगा ही” प्रेम ने चलते हुवे पीछे मूड कर कहा. “तुम समझ नही रहे हो अगर ये पिशाच ही है तो तुम्हारी कोई कोशिश काम नही करेगी” केसव पंडित ने ज़ोर से कहा. पर प्रेम जा चुका था. “एक बार दीख जाए ये… फिर ही पता चलेगा कि ये पिशाच है या कुछ और” प्रेम ने खुद से कहा. प्रेम गाँव की अंधेरी गलियों में अकेला इधर उधर भटकने लगा…पर उसे कुछ नज़र नही आया. ………………………………………………………………………………. “मेमासाब आप सो जाओ डरो मत मैं यही हूँ.” भीमा ने कहा. “अजीब सा सन्नाटा छाया है बाहर…जैसे की तूफान से पहले का सन्नाटा हो” रेणुका ने कहा. “क्या आप पिशाच के बारे में कुछ जानती हैं.” “नही मुझसे ऐसी बात मत करो मुझे वैसे ही डर लग रहा है.” “माफ़ करना मेम्साब वैसे ही पूछ रहा था.” भीमा ने कहा. “आप मुझसे उस बात के लिए नफ़रत तो नही करेंगी” भीमा ने पूछा. “कौन सी बात” रेणुका का ध्यान कही और था इश्लीए वो समझ नही पाई. “कोई भी औरत मेरे इतने नज़दीक नही आई आज तक मैं भावनाओ में बह गया था मेम्साब.” भीमा ने कहा. “कोई बात नही भीमा मैं समझ रही हूँ तुम बहुत आछे इंसान हो मैं जानती हूँ.” रेणुका ने कहा. “मेम्साब आपका इस ग़रीब की कुटिया में मन नही लग रहा होगा” “नही ये बहुत अछी जगह है…मनहूस हवेली से ज़्यादा सकुन है यहा.” अचानक बाहर कुछ हलचल होती है और भीमा खिड़की पर खड़े हो कर देखता है. “क्या है?” “दीखाई तो कुछ नही दे रहा लेकिन ऐसा लगा था कि कोई बहुत तेज़ी से भागा है यहा से.” रेणुका भी उठ कर खिड़की पर आ गयी. “शायद कुत्ता या बिल्ली होगी” रेणुका ने कहा. लेकिन तभी खौफनाक चीन्ख गूँज उठी. रेणुका इतनी घबरा गयी कि फिर से भीमा से चिपक गयी. “आधे से ज़्यादा लोग तो ये चीन्ख सुन कर ही मर जाएँगे…कैसी चेतावनी है ये भूतो की.” भीमा ने कहा. “मुझे बहुत डर लग रहा है भीमा मैं मरना नही चाहती.” रेणुका ने कहा. “डर तो मुझे भी बहुत लग रहा है क्या करें कुछ समझ नही आता. अब तो इस समस्या का समाधान स्वामी जी ही करेंगे.” ना चाहते हुवे भी भीमा का लिंग फिर से तन ही गया और रेणुका को इस बार बहुत आछे से महसूस हुवा. पर रेणुका इतनी डरी और सहमी थी कि भीमा से चीपकि रही. भीमा अपनी जींदगी में अभी तक कुँवारा था और पहली बार किसी औरत को इतने नज़दीक पाकर भावुक हो रहा था. उसके डर पर अंजाने में ही हवस की आग हावी हो रही थी. कब भीमा के हाथ रेणुका के नितंबो पर टिक गये उसे पता भी नही चला. उसने रेणुका के नितंबो को दोनो हाथो से अपनी और खींचा. नितंबो पर पड़े दबाव के कारण उसका लिंग रेणुका की योनि पर बुरी तरह से सॅट गया. “भीमा नही….” रेणुका ने कहा और भीमा से अलग हो गयी. “मेम्साब मैं जा रहा हूँ मुझे यहा नही रुकना चाहिए.” “नही रूको बाहर मत जाओ…मैं ही पागल हूँ जो बार बार तुमसे चिपक जाती हूँ. कही तुम मुझे ग़लत तो नही समझ रहे.” “नही मेम्साब आप ग़लत नही हो सकती मैं ही पापी हूँ.” रेणुका भीमा के पास आई और बोली, “क्या मैं तुम्हे अछी लगती हूँ.” “नही मेम्साब….मेरा मतलब हां मेम्साब आप बहुत अछी हैं…पर ना जाने आज मुझे क्या हो रहा है.” भीमा ने कहा. प्रेम पूरे गाँव में हर तरफ घूमता रहा पर उसे कुछ दीखाई नही दिया. पर रह रह कर गाँव में चीन्ख ज़रूर गूँज रही थी. "ये चीन्ख तो गूँज रही है पर दीखाई कोई नही दे रहा अगर वो यहा है तो दीखाई क्यों नही देता. क्या सच में ये पिशाच ही है ? या कुछ और" प्रेम ये सब सोचते हुवे आगे बढ़ा जा रहा था कि उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी. प्रेम ने चारो तरफ देखा पर कोई नही दीखा. "ये मारा जाएगा कोई इसे बचा लो...नही बचा लो इसे." "ये आवाज़ कहा से आ रही है" प्रेम हैरत में पड़ गया. प्रेम आवाज़ की दिशा का अंदाज़ा लगा कर एक तरफ चल पड़ा. पीपल के एक पेड़ के नीचे एक आदमी बैठा रो रहा था. "इसे मरने से बचा लो" "हे कौन हो तुम और रो क्यों रहे हो...गाँव के सब लोग तो घरो में हैं तुम इतनी रात को यहा क्या कर रहे हो" प्रेम ने कयि सवाल किए. "मुझे बहुत दुख है...कोई बचा लो इसे." वो आदमी रोते हुवे बोला. "कोई मुसीबत में है क्या बताओ मुझे मैं उसकी मदद करूँगा." वो आदमी ज़ोर ज़ोर से रोने लगा और बोला, "कोई तो बचा लो इसे." "किसको बचाने को बोल रहे हो...मुझे बताओ मैं तुम्हारी मदद करूँगा" प्रेम ने कहा. "तुम्हारी जींदगी ख़तरे में है...तुम्हारी मदद के लिए किसी को बुला रहा हूँ" उस आदमी ने कहा. "क्या बकवास कर रहे हो" प्रेम ने कहा. "कुछ ऐसा ही तुम्हारे साथियो ने कहा था कल...मैने उन्हे कहा था कि तुम लोगो की जींदगी ख़तरे में है किसी को बुला लो पर वो लोग मेरी बात पर हसणे लगे और कुछ ही देर में मारे गये" कह कर वो आदमी फिर से रोने लगा. "क्या? तुम उस वक्त वाहा थे." "हां मैने बहुत आवाज़ लगाई मदद को पर कोई नही आया." "मेरे लिए तुम्हे रोने की ज़रूरत नही है...तुम अपनी चिंता करो" "हा..हा..हा..बहुत खूब तुम्हे खाने में बहुत मज़ा आएगा मुझे बहादुर लोगो का माँस खाने अछा लगता है मुझे." "तो क्या तुम पिशाच हो?" "हा..हा..हा...पिशाच से उसके बारे में नही पूछते बेवकूफ़ अपनी चिंता करो...तुम्हे मारने में बहुत मज़ा आएगा." "हा..हा..हा..मुझे भी तुम्हे मारने में मज़ा आएगा. पिशाच को मारना अछा लगेगा मुझे." प्रेम भी हसणे लगा. प्रेम की बात सुनते ही वो आदमी खड़ा हो गया और प्रेम के उपर छल्लांग लगा दी. पर प्रेम वाहा से हट गया और अपनी मुथि बंद करके कुछ मन्त्र बोले और मुथि खोल कर कोई भबूत जैसी चीज़ उसकी आँख में डाल दी. पिशाच आँख मसल्ने लगा और इधर उधर हाथ मार कर वाहा से गायब हो गया. "कहा गये पिशाच मिया...आओ थोड़ा और खेलते हैं...मुझे भी अब रोना आ रहा है कोई तो तुम्हे बचा ले." पिशाच आँख मलता हुवा जंगल में अपने ठिकाने पर पहुँच गया. "कौन है ये लोंदा जिसने मेरी ऐसी हालत कर दी...इस लोंडे को तो मैं तडपा तडपा कर मारूँगा...इसके पूर खानदान को निगल जाउन्गा हे...हे..हे..हा..हा..हा" पिशाच ज़ोर ज़ोर से हसणे लगा. उसकी आवाज़ सुन कर जानवर भी इधर उधर भागने लगे. पिशाच एक हिरण पर झापड़ पड़ा और उसे चीर कर खा गया. "आदमी के माँस में जो बात है वो इन जानवरो में नही." पिशाच ने कहा. इधर प्रेम हर तरफ पिशाच को ढून्दता रहा पर वो उशे कही नही दीखा. ......................................... भीमा रेणुका के पैरो में गिर गया और बोला, "मेम्साब मुझे माफ़ कीजिए आप जानती हैं कि मैं ग़लत नही हूँ." "उठ जाओ भीमा मैं जानती हूँ तुम कैसे इंसान हो...उठो...तुम्हे देखा है मैने हवेली में...तुम ग़लत नही हो सकते...शायद शरीर की प्यास ही ऐसी होती है" "मेम्साब मुझे नही पता क्या हुवा शायद...शायद..." भीमा बोलते बोलते रुक गया. "हां-हां बोलो बात क्या है?" "शायद आपको खेत में नगन अवस्था में देख कर ऐसा हुवा है...वरना ऐसा मुमकिन नही था." "क्या तुम मेरी मदद करने की बजाए मेरा शरीर देख रहे थे?" "नही मेम्साब...पर नज़र तो चली ही गयी थी...वो मेरे बस में नही थी...मैं झूठ नही बोलना चाहता आपसे" "ह्म्म तुम दिल के सच्चे हो भीमा...सब सच बोल रहे हो...मुझे ये बात अछी लगी." "मेम्साब मैने कुछ ग़लत तो नही बोल दिया" "तुमने सच बोला है. अब वो ग़लत है या सही इस से क्या फरक पड़ता है." "मेम्साब अब आप सो जाओ" "तुम्हारे होते हुवे सोना ठीक नही अब यहा." "मैं चला जाता हूँ मेम्साब आप चिंता मत करो...वैसे भी मुझे लगता है कि मुझे स्वामी जी के पास जाना चाहिए अब" "अरे मज़ाक कर रही हूँ भोन्दु...चल अपना बिस्तर लगा ले" "मेम्साब आप सच में बहुत अछी हो." "ठीक है ठीक है...मैं शो रही हूँ अब...बाहर काफ़ी शांति है अब. बहुत देर से चीन्ख भी नही आई...शायद वो दरिन्दा अब यहा नही है" "मुझे भी ऐसा ही लगता है." भीमा ने कहा. दोनो अपने अपने बिस्तर पर लेट गये. "अच्छा भीमा तुमने अब तक शादी क्यों नही की." "मेम्साब सरिता के शिवा किसी से शादी करने का मन ही नही हुवा." "सरिता जैसी ही लड़की चाहिए तुम्हे हा." "आपके जैसी भी मुझे अछी लगेगी." "तो मैं तुम्हे अछी लगती हूँ." "आप किस को अछी नही लगेंगी मेम्साब...आप जैसा कोई मिल जाए तो किश्मत बन जाए." भीमा थोड़ा थोडा रेणुका से खुलने लगा था. "भीमा तुम भी बहुत अच्छे हो...तुमने अपनी जान पर खेल कर सरिता को बचाया और मुझे भी बचाया." "आगर आप उस दिन हिम्मत ना देती तो शायद मैं कभी सरिता की मदद नही कर पाता. रही बात आपको बचाने की तो वो भी आपके कारण ही मुमकिन हुवा. उस दिन की हिम्मत दुबारा काम आई." "क्या मैं सो जाउ अब?" रेणुका ने कहा. "जैसी आपकी इच्छा मेम्साब मुझे तो नींद नही आएगी" "मुझे बहुत नींद आ रही है कयि दिनो से उन भूतो के कारण हवेली में ठीक से नींद नही आई" "आप बेफिकर हो कर सो जाओ मेम्साब मैं हू ना." "तुम्हारे होने का मुझे बहुत सुकून है भीमा...बहुत सुकून है" "काश मेम्साब जैसी ही कोई लड़की मेरी जींदगी में आ जाए" भीमा ने अपने मन में सोचा. रात बीत जाती है. मदन सुबह सवेरे ही वर्षा के पास वापिस आ जाता है. इधर ठाकुर रुद्र प्रताप सिंग की हालत बिगड़ रही है. पहले वीर फिर जीवन...उसे बहुत गहरा सदमा लगा है. वैद का कहना है कि शायद वो कुछ पल के ही महमान हैं. क्रमशः.........................[/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size]