hotaks444
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ये सोच कर उसका दिल धक-धक करने लगता है. वो सोचती है, “तो क्या ये आवाज़ वर्षा के कमरे से आ रही है !! पर वर्षा तो यहा नही है”
रेणुका, रसोई के बाहर खड़ी-खड़ी पहली मंज़िल पर वर्षा के कमरे को घुरती है.
“वर्षा का कमरा, रसोई के नज़दीक है, वाहा से आवाज़ रसोई तक पहुँच सकती है” --- रेणुका सोचती है
कुछ देर सोचने के बाद, रेणुका सीढ़ियों की तरफ बढ़ती है.
उस कमरे की तरफ बढ़ते हुवे उसके कदम किसी अंजाने भय से थर-थर काँप रहे हैं.
जब रेणुका कमरे के बाहर पहुँचती है तो रुक जाती है.
“सूकर है, इस कमरे में भी कोई नही है, पर ये आवाज़ आ कहा से रही थी” – रेणुका कमरे की बाहर की कुण्डी लगी देख कर अपने मन में कहती है.
रेणुका बहुत हैरान और परेशान है. वो वापिस मूड कर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगती है
“अफ….. तुम ये क्या कर रहे हो ?”
रेणुका ये सुन कर सीढ़ियों के बीच में ही रुक जाती है. इस बार उशे आवाज़ बहुत नज़दीक सुनाई देती है.
वो वापिस उपर की तरफ आती है
“वही जो मुझे करना चाहिए”
“हे भगवान ये आवाज़ तो वर्षा के कमरे से ही आ रही है, कौन है अंदर ?” – रेणुका ने मन ही मन कहा
रेणुका काँपते हाथो से वर्षा के कमरे के बाहर लगी कुण्डी को खोलती है और दरवाजे को खोलने के लिए अंदर की ओर धक्का देती है पर …………………..
……………………………… दरवाजा नही खुलता !!!
“मेरा शक सही निकला….. अंदर कोई है” – रेणुका धीरे से कहती है
“वर्षा !! क्या तुम अंदर हो ?” ----- रेणुका ने आवाज़ लगाई
अंदर से कोई जवाब नही आता
रेणुका फिर से आवाज़ लगाती है, “वर्षा क्या तुम अंदर हो….. पर ये तुम्हारे साथ कौन है”
फिर भी अंदर से कोई आवाज़ नही आती.
तभी रेणुका को वर्षा के कमरे की खिड़की का धयान आता है.
रेणुका खिड़की पर जा कर उसे खोलने की कॉसिश करती है, पर वो नही खुलती.
“आआययईीीई….. थोडा रूको”
रेणुका को फिर से अंदर से आवाज़ सुनाई देती है
रेणुका ज़ोर से धक्का दे कर खिड़की खोल देती है. वो जो देखती है, उसे देख कर उसकी आँखे खुली की खुली रह जाती हैं.
वो देखती है की वर्षा घुटनो के बल ज़मीन पर है और उसके पीछे एक लड़का उसकी योनि में लिंग डाले हुवे है.
“हट जाओ… भाभी देख रही है”
“देखने दो….. इस खेल का कोई दर्शक भी तो होना चाहिए”
“वर्षा ये सब क्या है…. और तुम कहा थी” --- रेणुका हैरानी भरे शब्दो में पूछती है
“आअहह……… धीरे-धीरे करो ना”
“धीरे-धीरे ही तो मार रहा हूँ…. ज़ोर-ज़ोर से मारूँगा…. तो जाने क्या होगा”
“हे !! कौन हो तुम ?, छोड़ो वर्षा को वरना ………” रेणुका ने कहा
“ये लंड इस चूत में बहुत गहराई में उतर चुका है, अब ये अपना काम किए बिना नही निकलेगा”
“बदतमीज़…. कौन हो तुम ?” – रेणुका ने गुस्से में कहा
“एक बार आप भी मेरे आगे झुक कर देख लो, पता चल जाएगा की मैं कौन हूँ, ऐसा लंड नही देखा होगा आपने” वो अपना लिंग बाहर निकाल कर रेणुका की तरफ हिलाता है और हिला कर वापिस वही डाल देता है जहा से निकाला था.
रेणुका ये सब सुन और देख कर भोंचक्की रह जाती है. उसकी आँखो में गुस्से के कारण खून उतर आता है.
“आअहह…. जल्दी ख़तम करो, भाभी को गुस्सा आ रहा है”
“आने दो गुस्सा, वैसे ये गुस्सा इस कारण है कि तुम्हारी जगह मेरे आगे वो क्यों नही हैं”
“ऐसी बाते मत करो भाभी को ऐसी बाते अछी नही लगती”
“एक बार मेरे आगे आ जाएगी तो इन्हे सब अछा लगने लगेगा”
“भाभी… क्या आप यहा आना चाहती हो ?”
“चुप करो वर्षा…. मुझे इस पूरे घर में तुम थोड़ी अछी लगती थी. आज तुम पर से भी विस्वाश उठ गया… छी….” रेणुका ने गुस्से में कहा
“भाभी छोड़ो ना, अंदर आ जाओ और मज़े करो”
ये सब देख कर रेणुका की आँखो में आँसू आ जाते हैं. वो सोचती है, “ये किस नरक में झोंक दिया पिता जी ने मुझे. इस से अछा तो मुझे मार देते”
“क्या सोच रही हो भाभी…. कहो तो मैं कुण्डी खोलूं ?”
“भाढ़ में जाओ तुम दोनो” – रेणुका कहती है और वाहा से चल देती है
“जल्दी-जल्दी करो कहीं भाभी पिता जी को बुला कर ना ले आए”
“अभी तो सुरू किया है, थोडा मज़ा तो लेने दो”
रेणुका जाते-जाते अपने कान पर हाथ रख लेती है.
रेणुका भारी कदमो से सीढ़ियों से नीचे उतरती है. वो जो कुछ देख कर आ रही थी, उसने उसे अंदर तक झकज़ोर दिया था.
वो खोई-खोई रसोई की तरफ जाती है. रसोई में घुसने से पहले वो मूड कर देखती है कि वीर अपनी पल्टन के साथ बाहर जाने की तैयारी कर रहा है.
वो असमंजस में है कि, वीर को वर्षा के बारे में बताए या ना बताए. पर कुछ सोच कर वो वीर की तरफ बढ़ती है.
वीर उसे आते देख चिड जाता है और झल्ला कर पूछता है, “क्या बात है”
“जी.. आप से कुछ ज़रूरी बात करनी थी”
“हां बोलो, क्या बकवास करनी है”
“जी… थोडा इधर आओ ना, बात गंभीर है”
“तेरे साथ और हो भी क्या सकता है, मनहूस कही की” – वीर ने गुस्से में कहा
“मनहूस मैं नही ये घर है, ये परिवार है, पता नही किस जनम की सज़ा मिल रही है मुझे यहा”
रेणुका, रसोई के बाहर खड़ी-खड़ी पहली मंज़िल पर वर्षा के कमरे को घुरती है.
“वर्षा का कमरा, रसोई के नज़दीक है, वाहा से आवाज़ रसोई तक पहुँच सकती है” --- रेणुका सोचती है
कुछ देर सोचने के बाद, रेणुका सीढ़ियों की तरफ बढ़ती है.
उस कमरे की तरफ बढ़ते हुवे उसके कदम किसी अंजाने भय से थर-थर काँप रहे हैं.
जब रेणुका कमरे के बाहर पहुँचती है तो रुक जाती है.
“सूकर है, इस कमरे में भी कोई नही है, पर ये आवाज़ आ कहा से रही थी” – रेणुका कमरे की बाहर की कुण्डी लगी देख कर अपने मन में कहती है.
रेणुका बहुत हैरान और परेशान है. वो वापिस मूड कर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगती है
“अफ….. तुम ये क्या कर रहे हो ?”
रेणुका ये सुन कर सीढ़ियों के बीच में ही रुक जाती है. इस बार उशे आवाज़ बहुत नज़दीक सुनाई देती है.
वो वापिस उपर की तरफ आती है
“वही जो मुझे करना चाहिए”
“हे भगवान ये आवाज़ तो वर्षा के कमरे से ही आ रही है, कौन है अंदर ?” – रेणुका ने मन ही मन कहा
रेणुका काँपते हाथो से वर्षा के कमरे के बाहर लगी कुण्डी को खोलती है और दरवाजे को खोलने के लिए अंदर की ओर धक्का देती है पर …………………..
……………………………… दरवाजा नही खुलता !!!
“मेरा शक सही निकला….. अंदर कोई है” – रेणुका धीरे से कहती है
“वर्षा !! क्या तुम अंदर हो ?” ----- रेणुका ने आवाज़ लगाई
अंदर से कोई जवाब नही आता
रेणुका फिर से आवाज़ लगाती है, “वर्षा क्या तुम अंदर हो….. पर ये तुम्हारे साथ कौन है”
फिर भी अंदर से कोई आवाज़ नही आती.
तभी रेणुका को वर्षा के कमरे की खिड़की का धयान आता है.
रेणुका खिड़की पर जा कर उसे खोलने की कॉसिश करती है, पर वो नही खुलती.
“आआययईीीई….. थोडा रूको”
रेणुका को फिर से अंदर से आवाज़ सुनाई देती है
रेणुका ज़ोर से धक्का दे कर खिड़की खोल देती है. वो जो देखती है, उसे देख कर उसकी आँखे खुली की खुली रह जाती हैं.
वो देखती है की वर्षा घुटनो के बल ज़मीन पर है और उसके पीछे एक लड़का उसकी योनि में लिंग डाले हुवे है.
“हट जाओ… भाभी देख रही है”
“देखने दो….. इस खेल का कोई दर्शक भी तो होना चाहिए”
“वर्षा ये सब क्या है…. और तुम कहा थी” --- रेणुका हैरानी भरे शब्दो में पूछती है
“आअहह……… धीरे-धीरे करो ना”
“धीरे-धीरे ही तो मार रहा हूँ…. ज़ोर-ज़ोर से मारूँगा…. तो जाने क्या होगा”
“हे !! कौन हो तुम ?, छोड़ो वर्षा को वरना ………” रेणुका ने कहा
“ये लंड इस चूत में बहुत गहराई में उतर चुका है, अब ये अपना काम किए बिना नही निकलेगा”
“बदतमीज़…. कौन हो तुम ?” – रेणुका ने गुस्से में कहा
“एक बार आप भी मेरे आगे झुक कर देख लो, पता चल जाएगा की मैं कौन हूँ, ऐसा लंड नही देखा होगा आपने” वो अपना लिंग बाहर निकाल कर रेणुका की तरफ हिलाता है और हिला कर वापिस वही डाल देता है जहा से निकाला था.
रेणुका ये सब सुन और देख कर भोंचक्की रह जाती है. उसकी आँखो में गुस्से के कारण खून उतर आता है.
“आअहह…. जल्दी ख़तम करो, भाभी को गुस्सा आ रहा है”
“आने दो गुस्सा, वैसे ये गुस्सा इस कारण है कि तुम्हारी जगह मेरे आगे वो क्यों नही हैं”
“ऐसी बाते मत करो भाभी को ऐसी बाते अछी नही लगती”
“एक बार मेरे आगे आ जाएगी तो इन्हे सब अछा लगने लगेगा”
“भाभी… क्या आप यहा आना चाहती हो ?”
“चुप करो वर्षा…. मुझे इस पूरे घर में तुम थोड़ी अछी लगती थी. आज तुम पर से भी विस्वाश उठ गया… छी….” रेणुका ने गुस्से में कहा
“भाभी छोड़ो ना, अंदर आ जाओ और मज़े करो”
ये सब देख कर रेणुका की आँखो में आँसू आ जाते हैं. वो सोचती है, “ये किस नरक में झोंक दिया पिता जी ने मुझे. इस से अछा तो मुझे मार देते”
“क्या सोच रही हो भाभी…. कहो तो मैं कुण्डी खोलूं ?”
“भाढ़ में जाओ तुम दोनो” – रेणुका कहती है और वाहा से चल देती है
“जल्दी-जल्दी करो कहीं भाभी पिता जी को बुला कर ना ले आए”
“अभी तो सुरू किया है, थोडा मज़ा तो लेने दो”
रेणुका जाते-जाते अपने कान पर हाथ रख लेती है.
रेणुका भारी कदमो से सीढ़ियों से नीचे उतरती है. वो जो कुछ देख कर आ रही थी, उसने उसे अंदर तक झकज़ोर दिया था.
वो खोई-खोई रसोई की तरफ जाती है. रसोई में घुसने से पहले वो मूड कर देखती है कि वीर अपनी पल्टन के साथ बाहर जाने की तैयारी कर रहा है.
वो असमंजस में है कि, वीर को वर्षा के बारे में बताए या ना बताए. पर कुछ सोच कर वो वीर की तरफ बढ़ती है.
वीर उसे आते देख चिड जाता है और झल्ला कर पूछता है, “क्या बात है”
“जी.. आप से कुछ ज़रूरी बात करनी थी”
“हां बोलो, क्या बकवास करनी है”
“जी… थोडा इधर आओ ना, बात गंभीर है”
“तेरे साथ और हो भी क्या सकता है, मनहूस कही की” – वीर ने गुस्से में कहा
“मनहूस मैं नही ये घर है, ये परिवार है, पता नही किस जनम की सज़ा मिल रही है मुझे यहा”