rajsharmastories धोबन और उसका बेटा - Page 4 - SexBaba
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rajsharmastories धोबन और उसका बेटा

मा ने सिसकते हुए कहा " है बेटा, मत पुच्छ, बहुत अच्छा लग रहा है, मेरे लाल, इसी मज़े के लिए तो तेरी मा तरस रही थी. चूस ले मेरे बुर कूऊऊओ और ज़ोर से चुस्स्स्स्सस्स.. . सारा रस पी लीई मेरे सैय्या, तू तो जादूगर है रीईईई, तुझे तो कुच्छ बताने की भी ज़रूरत ऩही, है मेरे बुर के फांको के बीच में अपनी जीभ डाल के चूस बेटा, और उसमे अपने जीभ को लिबलिबते हुए अपनी जीभ को मेरी चूत के अंदर तक घुमा दे, है घुमा दे राजा बेटा घुमा दे...." मा के बताए हुए रास्ते पर चलना तो बेटे फ़र्ज़ बनता है और उस फ़र्ज़ को निभाते हुए मैने बुर के दोनो फांको को फैला दिया और अपनी जीभ को उसके चूत में पेल दिया. बर के अंदर जीभ घुसा कर पहले तो मैने अपनी जीभ और उपरी होंठ के सहारे बुर के एक फाँक को पार्कर के खूब चूसा फिर दूसरी फाँक के साथ भी ऐसा ही किया फिर चूत को जितना चिदोर सकता था उतना चिदोर कर अपने जीभ को बुर के बीच में दाल कर उसके रस को चटकारे ले कर चाटने लगा. छूट का रस भूत नासिला था और मा की चूत कामो-उत्तेजना के कारण खूब रस छ्होर रही थी रुँघहीन, हल्का चिप-छिपा रस छत कर खाने में मुझे बहुत आनंद आ रहा था, मा घुटि घुटि आवाज़ में चीखते हुए बोल परी "ओह चतो ऐसे ही चतो मेरे राजा, छत छत के मेरे सारे रस को खा जाओ, है रे मेरा बेटा, देखो कैसे कुत्ते की तरह से अपनी मा की बुर को छत रहा है ओह छत ना ऐसे ही छत मेरे कुत्ते बेटे अपनी कुटिया मा की बुर को छत और उसके बुर के अंदर अपने जीभ को हिलाते हुए मुझे अपने जीभ से छोड़ दाल". मुझे बरा असचर्या हुआ की एक तो मा मुझे कुत्ता कह रही है फिर खुद को भी कुट्टिया कह रही है. पर मेरे दिलो-दिमाग़ में तो अभी केवल मा की रसीलिी बुर की चटाई घुसी हुई थी इसलिए मैने इस तरफ से ध्यान ऩही दिया. मा की आगया का पालन किया और जैसा उसने बताया था उसी तरह से अपने जीभ से ही उसकी चूत को चॉड्ना शुरू कर दिया. मैं अपनी जीभ को तेज़ी के साथ बुर में से अंदर बाहर कर रहा था और साथ ही साथ चूत में जीभ को घूमते हुए चूत के गुलाबी च्छेद से अपने होंठो को मिला के अपने मुँह को चूत पर रगर भी रहा था. मेरी नाक बार बार चूत के भज्नसे से टकरा रही थी और सयद वो भी मा के आनंद का एक कारण बन रही थी. मेरे दोनो हाथ मा के मोटे गुदज जाँघो से खेल रहे थे. तभी मा ने तेज़ी के साथ अपने ****अरो को हिलना शुरू कर और ज़ोर ज़ोर से हफ्ते हुए बोलने लगी "ओह निकल जाएगा ऐसे ही बुर में जीभ चलते रहना बेटा ओह, सी सी सीईई, साली बहुत खुजली करती थी आज निकल दे इसका सारा पानी" और अब मा दाँत पीस कर लग भर चीकते हुए बोलने लगी ओह हूऊओ सीईईईईईई साले कुत्ते, मेरे पायारे बेटे मेरे लाल है रे चूस और ज़ोर से चूस अपनी मा के बुर को जीभ से छोड़ डीईई अभी,,,,,,,सीईईईईई ईईइ छोड़नाअ कुत्ते हरमजड़े और ज़ोर से छोड़ सलीईई, ,,,,,,,, छोड़ दाल अपनी मा को है निकाला रे मेरा तो निकल गया ओह मेरे चुड़ककर बेटे निकल दिया रे तूने तो.... अपनी मा को अपने जीभ से छोड़ डाला" कहते हुए मा ने अपने ****अरो पहले तो खूब ज़ोर ज़ोर से उपर की तरफ उछाला फिर अपनी आँखो को बंद कर के ****अरो को धीरे धीरे फुदकते हुए झरने लगी "ओह गई मैं मेरे राजा, मेरा निकल गया मेरे सैय्या है तूने मुझे जन्नत की सैर करवा दी रे, है मेरे बेटे ओह ओह मैं गई……."
 
मा की बुर मेरे मुँह पर खुल बंद हो रही थी. बर के दोनो फांको से रस अब भी रिस रहा था पर मा अब थोरी ठंडी पर चुकी थी और उसकी आँखे बंद थी उसने दोनो पैर फैला दिए थे और सुस्त सी होकर लंबी लंबी साँसे छ्होर्थी हुई लेट गई. मैने अपने जीभ से छोड़ छोड़ कर अपनी मा को झार दिया था. मैने बुर पर से अपने मुँह को हटा दिया और अपने सिर को मा की जाँघो पर रख कर लेट गया. कुच्छ देर तक ऐसे ही लेते रहने के बाद मैने जब सिर उठा के देखा तो पाया की मा अब भी अपने आँखो को बंद किए बेशुध होकर लेती हुई है. मैं चुप चाप उसके पैरो के बीच से उठा और उसकी बगल में जा कर लेट गया. मेरा लंड फिर से खरा हो चुका था पर मैने चुप चाप लेटना ही बेहतर समझा और मा की र करवट लेट कर मैने अपने सिर को उसके चुचियों से सता दिया और एक हाथ पेट पर रख कर लेट गया. मैं भी थोरी बहुत थकावट महसूस कर रहा था, हालाँकि लंड पूरा खरा था और छोड़ने की इच्छा बाकी थी. मैं अपने हाथो से मा के पेट नाभि और जाँघो को सहला रहा था. मैं धीरे धीरे ये सारा काम कर रहा था और कोशिश कर रहा था की मा ना जागे. मुझे लग रहा था की अब तो मा सो गई और मुझे सयद मूठ मार कर ही संतोष करना परेगा. इसलिए मैं चाह रहा था की सोते हुए थोरा सा मा के बदन से खेल लू और फिर मूठ मार लूँगा. मुझे मा के जाँघ बरे अच्छे लगे और मेरे दिल कर रहा था की मैं उन्हे चुमू और चतु. इसलिए मैं चुप चाप धीरे से उठा और फिर मा के पैरो के पास बैठ गया. मा ने अपना एक पैर फैला रखा था और दूसरे पैर को घुटनो के पास से मोर कर रखा हुआ था. इस अवस्था में वो बरी खूबसूरत लग रही थी, उसके बॉल थोरे बिखरे हुए थे एक हाथ आँखो पर और दूसरा बगल में. पैरो के इस तरह से फैले होने से उसकी बुर और गांद दोनो का च्छेद स्पस्त रूप से दिख रहा था. धीरे धीरे मैने अपने होंठो को उसके जाँघो पर फेरने लगा और हल्की हल्की चुम्मिया उसके रनो से शुरू कर के उसके घुटनो तक देने लगा. एक डम मक्खन जैसी गोरी चिकनी जाँघो को अपने हाथो से पकर कर हल्के हल्के मसल भी रहा मेरा ये काम थोरी देर तक चलता रहा, तभी मा ने अपनी आँखे खोली और मुझे अपने जाँघो के पास देख कर वो एक डम से चौंक कर उठ गई और पायर से मुझे अपने जाँघो के पास से उठाते हुए बोली "क्या कर रहा है बेटे....... ज़रा आँख लग गई थी, देख ना इतने दीनो के बाद इतने अcचे से पहली बार मैने वासना का आनंद उठाया है, इस तरह पिच्छली बार कब झारी थी मुझे तो ये भी याद ऩही, इसीलिए सयद संतुष्टि और थकान के कारण आँख लग गई"

"कोई बात ऩही मा तुम सो जाओ". तभी मा की नज़र मेरे 8.5 इंच के लौरे की तरफ गई और वो चौंक के बोली "अरे ऐसे कैसे सो जौ, (और मेरा लॉरा अपने हाथ में पकर लिया) मेरे लाल का लंड खरा हो के बार बार मुझे पुकार रहा है और मैं सो जौ"

"ओह मा, इसको तो मैं हाथ से ढीला कर लूँगा तुम सो जाओ"

"ऩही मेरे लाल आजा ज़रा सा मा के पास लेट जा, थोरा डम ले लू फिर तुझे असली चीज़ का मज़ा दूँगी"

मैं उठ कर मा के बगल में लेट गया. अब हम दोनो मा बेटे एक दूसरे की ओर करवट लेते हुए एक दूसरे से बाते करने लगे. मा ने अपना एक पैर उठाया और अपनी मोटी जाँघो को मेरे कमर पर दाल दिया. फिर एक हाथ से मेरे खरे लौरे को पकर के उसके सुपरे के साथ धीरे धीरे खेलने लगी. मैं भी मा की एक चुचि को अपने हाथो में पकर कर धीरे धीरे सहलाने लगा और अपने होंठो को मा के होंठो के पास ले जा कर एक चुंबन लिया. मा ने अपने होंठो को खोल दिया. चूमा छाति ख़तम होने के बाद मा ने पुचछा "और बेटे, कैसा लगा मा की बुर का स्वाद, अक्चा लगा या ऩही"

"है मा बहुत स्वादिष्ट था, सच में मज़ा आ गया"

"अक्चा, चलो मेरे बेटे को अच्छा लगा इस से बढ़ कर मेरे लिए कोई बात ऩही"

"मा तुम सच में बहुत सुंदर हो, तुम्हारी चुचिया कितनी खूबसूरत है, मैं.... मैं क्या बोलू मा, तुम्हारा तो पूरा बदन खूबसूरत है."
 
"कितनी बार बोलेगा ये बात तू मेरे से, मैं तेरी आनहके ऩही पढ़ सकती क्या, जिनमे मेरे लिए इतना पायर च्चालकता है". मैं मा से फिर पूरा चिपक गया. उसकी चुचिया मेरी च्चती में चुभ रही थी और मेरा लॉरा अब सीधा उसकी चूत पर ठोकर मार रहा था. हम दोनो एक दूसरे की आगोश में कुच्छ देर तक ऐसे ही खोए रहे फिर मैने अपने आप को अलग किया और बोला "मा एक सवाल करू"

"हा पुच्छ क्या पुच्छना है"

"मा, जब मैं तुम्हारी चूत छत रहा था तब तुमने गालिया क्यों निकाली"

"गालिया, और मैं, मैं भला क्यों कर गालिया निकलने लगी"

"ऩही मा तुम गालिया निकल रही थी, तुमने मुझे कुत्ता कहा और और खुद को कुट्टिया कहा, फिर तुमने मुझे हरामी भी कहा"

"मुझे तो याद ऩही बेटा की ऐसा कुच्छ मैने तुम्हे कहा था, मैं तो केवल थोरा सा जोश में आ गई थी और तुम्हे बता रही थी कैसे क्या करना है, मुझे तो एक डम याद ऩही की मैने ये साबद कहे है"

"ऩही मा तुम ठीक से याद करने की कोशिश करो तुमने मुझे हरामी या हरमज़दा कहा था और खूब ज़ोर से झार गई थी"

"बेटा, मुझे तो ऐसा कुच्छ भी याद ऩही है, फिर भी अगर मैने कुच्छ कहा भी था तो मैं अपनी र से माफी मांगती हू, आगे से इन बतो का ख्याल रखूँगी"

"ऩही मा इसमे माफी माँगने जैसी कोई बात ऩही है, मैने तो जो तुम्हारे मुँह से सुना उसे ही तुम्हे बता दिया, खैर जाने दो तुम्हारा बेटा हू अगर तुम मुझे डूस बीश गालिया दे भी दोगि तो क्या हो जाएगा"

"ऩही बेटा ऐसी बात ऩही है, अगर मैं तुझे गालिया दूँगी तो हो सकता है तू भी कल को मेरे लिए गालिया निकले और मेरे प्रति तेरा नज़रिया बदल जाए और तू मुझे वो सम्मान ना दे जो आजतक मुझे दे रहा है"

"नही मा ऐसा कभी ऩही होगा, मैं तुम्हे हमेशा पायर करता रहूँगा और वही सम्मान दूँगा जो आजतक दिया है, मेरी नॅज़ारो में तुम्हारा स्थान हमेशा उँछ रहेगा"
 
"ठीक है बेटा, अब तो हुमारे बीच एक दूसरे तरह का संबंध स्थापित हो गया है इसके बाद जो कुच्छ होता है वो हम दोनो की आपसी समझदारी पर निर्भर करता है"

"हा मा तुमने ठीक कहा, पर मा अब इन बातो को छोर कर क्यों ना असली काम किया जाए, मेरी बहुत इच्छा हो रही है की मैं तुम्हे चोदु, देखो ना मा मेरा डंडा कैसा खरा हो गया है"

"हा बेटा वो तो मैं देख ही रही हू, की मेरे लाल का हथियार कैसा तरप रहा मा का मालपुआ खाने को, पर उसके लिए तो पहले मा को एक बार फिर से थोरा गरम करना परेगा बेटा,"

"है मा तो क्या अभी तुम्हारा मन चुड़वाने का ऩही है"

"ऐसी बात ऩही है बेटे, चुड़वाने का मन तो है पर, किसी भी औरत को छोड़ने से पहले थोरा गरम करना परता है, इसलिए बुर चाटना, चुचि चूसना, चूमा चाती करना और दूसरे तरह के काम किए जाते है"

"इसका मतलब है की तुम अभी गरम ऩही हो और तुम्हे गरमा करना परेगा ये सब कर के"

"हा इसका यही मतलब है"

"पर मा तुम तो कहती थी तुम बहुत गरम हो और अभी कह रही हो की गरम करना परेगा"

"आबे उल्लूए गरम तो मैं बहुत हू पर इतने दीनो के बाद इतनी जबरदस्त चूत चटाई के बाद तूने मेरा पानी निकल दिया, तो मेरी गर्मी थोरी देर के लिए शांत हो गई है अब, तुरंत चुड़वाने के लिए तो गरम तो करना ही परेगा ना, ऩही तो अभी छ्होर दे कल तक मेरी गर्मी फिर चाड जाएगी और तब तू मुझे चोद लेना"

"ओह ऩही मा मुझे तो अभी करना है, इसी वाक़ूत"

"तो अपनी मा को ज़रा गरम कर दे और फिर मज़े ले चुदाई का"

मैने फिर से मा की दोनो चुचियाँ पकर ली और उन्हे दबाते हुए उसके होंठो से अपने होंठ भीरा दिया और. मा ने भी अपने गुलाबी होंठो को खोल कर मेरा स्वागत किया और अपनी जीभ को मेरे मुँह में पेल दिया. मा के मुँह के रस में गजब का स्वाद था. हम दोनो एक दूसरे के होंठो को मुँह में भर कर चूस्ते हू आपस में जीभ से जीभ लारा रहे थे. मा की चुचियों को अब मैं ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा था और अपने हाथो से उसके मांसल पेट को भी सहला रहा था. उसने भी अपने हाथो के बीच में मेरे लंड को दबोच लिया था और कस कस के मारोर्ते हुए उसे दबा रही थी. मा ने अपना एक पैर मेरी कमर के उपर रख दिया था और अपने जाँघो के बीच मुझे बार बार दबूच रही थी. अब हम दोनो की साँसे तेज चलने लगी थी. मेरा हाथ अब मा की पेत पर चल रहा था और वाहा से फिसलते हुए सीधा उसके ****अरो पर चला गया. अभी तक तो मैने मा के मक्खन जैसे गुदज ****अरो पर उतना ध्यान ऩही दिया था परंतु अब मेरे हाथ वही पर जा के चिपक गये थे. ओह ****अरो को हाथो से मसलने का आनंद ही कुच्छ और है. मोटे मोटे ****अरो के माँस को अपने हाथो में पकर कर कभी धीरे कभी ज़ोर से मसल्ने का अलग ही मज़ा है. ****अरो को दबाते हुए मैने अपनी उंगलियों को ****अरो के बीच की दरार में डाल दिया और अपनी उंगलियों से उसके ****अरो के बीच की खाई को धीरे धीरे सहलाने लगा. मेरी उंगलिया मा की गांद के च्छेद पर धीरे धीरे तैर रही थी. मा की गांद का छेद एक डम गरम लग रहा था. मा जो की मेरे गालो को चूस रही थी अपना मुँह हटा के बोल उठी, "ये क्या कर रहा है रे., गांद को क्यों सहला रहा है".

"है मा, तुम्हारा ये देखने में बहुत सुंदर लगता है, सहलाने दो ना,,,,,,,"
 
"चूत का मज़ा लिया ऩही, और चला है गांद का मज़ा लूटने", कह कर मा हासणे लगी. मेरी समझ में तो कुच्छ आया ऩही पर, जब मा ने मेरी हाथो को ऩही हटाया तो मैने मा की गांद के पकप्कप्ते च्छेद में अपनी उंगलियाँ चलाने की अपनी दिल की हसरत पूरी कर ली. और बरे आराम से धीरे धीरे कर के अपनी एक उंगली को हल्के हल्के उसकी गांद के गोल सिकुरे हुए च्छेद पर धीरे धीरे चला रहा था. मेरी उंगली का थोरा सा हिस्सा भी सयद गांद में चला गया था पर मा ने इस पर कोई ध्यान ऩही दिया था. कुच्छ देर तक ऐसे ही गांद के छेद को सहलाता और ****अरो को मसलता रहा. मेरा मन ही ऩही भर रहा था. तभी मा ने मुझे अपने जाँघो के बीच और कस के दबोच कर मेरे गालो पर एक पायर भारी थपकी लगाई और मुँह बिचकते हुए बोली, "****इए कितनी देर तक ****आर और गांद से ही खेलता रहेगा, कुच्छ आगे भी करेगा या ऩही, चल आ जा और ज़रा फिर से चुचि को चूस तो". मैं मा की इस पायर भारी झिरकी को सुन कर अपने हाथो को मा के ****अरो पर से हटा लिया और मुस्कुराते हुए मा के चेहरे को देखा और पायर से उसके गालो पर चुंबन डाल कर बोला "जैसी मेरी मा की इच्छा". और उसकी एक चुचि को अपने हाथो से पकर कर दूसरी चुचि से अपना मुँह सता दिया और निपपलो को मुँह में भर के चूसने का काम शुरू कर दिया. मा की मस्तानी चुचियो के निपल फिर से खरे हो गये और उसके मुँह से सिसकारिया निकलने लगी. मैं अपने हाथो को उसकी एक चुचि पर से हटा के नीचे उसकी जाँघो के बीच ले गया और उसकी बुर को अपने मुति में भर के ज़ोर से दबाने लगा, बर से पानी निकलना शुरू हो गया था. मेरी उंगलिओ में बुर का चिपचिपा रस लग गया. मैने अपनी बीच वाली उंगली को हल्के से चूत के च्छेद पर धकेला, मेरी उंगली सरसरती हुई बुर के अंदर घुस गई. आधी उंगली को चूत में पेल कर मैने अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. मा की आँखे एक डम से नशीली होती जा रही थी और उसकी सिसकारिया भी तेज हो गई थी. मैं उसकी एक चुचि को चूस्ते हुए चूत के अंदर अपनी आधी उंगली को गाचा गछ पेले जा रहा था. मा ने मेरे सिर को दोनो हाथो से पकर कर अपने चुचियों पर दबा दिया और खूब ज़ोर ज़ोर से सिसकते हुए बोलने लगी "ओह सी सस्स्स्स्स्स्सीए चूस ज़ोर से निपल को काट ले, हरामी, ज़ोर से काट ले मेरी इन चुचियों को है,,,,," और मेरी उंगली को अपने बुर में लेने के लिए अपने ****अरो को उच्छलने लगी थी. मा के मुँह से फिर से हरामी साबद सुन कर मुझे थोरा बुरा लगा. मैने अपने मुँह को उसके चुचियो पर से हटा दिया और और उसके पेट को चूमते हुए उसकी बुर की तरफ बढ़ गया. छूट से उंगलिया निकल कर मैने चूत के दोनो फांको को पकर के फैलाया और जहा कुच्छ सेकेंड पहले तक मेरी उंगलिया थी उसी जगह पर अपने जीभ को नुकीला कर के डाल दिया. जीभ को बुर के अंदर लिबलिबते हुए मैं भग्नासे को अपने नाक से रगार्ने लगा. मा की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. अब उसने अपने पैरो को पूरा खोल दिया था और मेरे सिर को अपने बुर पर दाहाती हुई चिल्लई "छत साले मेरी बुर को छत, ऐसे ही छत कर खा जा, एक बार फिर से मेरा पानी निकल दे हरामी, बुर चाटने में तो तू पूरा उस्ताद निकला रे, छत ना अपनी मा के बुर को मैं तुझे चुदाई का बादशाह बना दूँगी मेरे चूत चातु राजाआ साले,". मा की बाकी बाते तो मेरा उतास बढ़ा रही थी पर उसके मुँह से अपने लिए गली सुन ने की आदत तो मुझे थी ऩही. पहली बार मा के मुँह से इस तरह से गली सुन रहा था. तोरा अजीब सा लग रहा था पर, बदन में एक तरह की सिहरन भी हो रही थी. मैने अपने मुँह को मा के बुर पर से हटा दिया और मा की ऊवार देखने लगा. मा के मज़े में बढ़ा होने पर अपनी अधखुली आँखे पूरी खोल दी और मेरी र देखते हुए बोली, "रुक क्यों गया ****इए जल्दी जल्दी छत ना अपने माल पुए को". मैने मुस्कुराते हुए मा की र देखा और बोला "क्या मा तुम तो भी ना, तुम्हे ध्यान है तुमने अभी अभी मुझे कितनी गालिया दी है, मैं जब याद दिलाता हू तो तुम कहती हो दी ही ऩही अभी पाता ऩही कितनी गालिया दे दी". इस पर मेरी मा हासणे लगी और मुझे अपनी तरफ खीचा तो मैं उठ कर फिर से उसके बगल में जा के लेट गया. मा ने मेरे गाल पर अपने हाथो से एक पायर भारी थपकी दे कर पुचछा, "चल मान लिया मैने गली दी, तुझे बुरा लगा क्या". मैने मुँह बना लिया था. मा मुझे बाँहो में भरते हुए बोली, "आरे मेरे छोड़ू बेटे, मा की गालिया क्या तुझे इतनी बुरी लगती है की तू बुरा मान के रुत गया"

"ऩही मा बुरी लगने की बात तो ऩही लेकिन तुम्हारे मुँह से गालिया सुन के बरा अजीब सा लगा"

"क्यों अजीब लग रहा है क्या मैं गालिया ऩही दे सकती"

"दे सकती हो, उसका उदाहरण तो तुमने मुझे दिखा ही दिया मगर अजीब इस लिए लग रहा है क्यों की आज के पहले तुमको कभी गली देते हुए ऩही सुना"

"आज के पहले तुमने कभी मुझे नंगा भी तो ऩही देखा था ना, ना ही आज के पहले कभी मेरी बुर और चुचि चूस के मेरा पानी निकाला था, सब कुछ तो आज पहली बार हो रहा है, इसलिए गालिया भी आज पहली बार सुन रहा है" कह कर मा हस्ने लगी और मेरे लंड को अपने हाथो से मारोर्ने लगी.

"ओह मा क्या कर रही हो दुख़्ता है ना,,,,,,,,,, फिर भी तुम मुझे एक बात बताओ की तुमने गालिया क्यों दी"
 
"अरे उल्लू जोश में ऐसा हो जाता है, जब औरत और मर्द ज़यादा उत्तेजित हो जाते है ना तो अनप सनप बोलने लगते है, उसी दौरान मुँह से गालिया भी निकल जाती है, इसमे कोई नई बात ऩही है, फिर तू इतना घबरा क्यों रहा है, तू भी गाली निकल के देख तुझे कितना मज़ा आएगा" "ऩही मा, मेरे मुँह से तो गालिया ऩही निकलती"

"क्यों अपने दोस्तो के बीच गालिया ऩही बकता क्या जो नखरे कर रहा है"

"आरे मा दोस्तो के बीच और बात है, पर तुम्हारे सामने मेरे मुँह से गालिया ऩही निकलती है"

"वाह रे मेरे शरीफ बेटे, मा को घूर घूर के देखेगा, मा को नंगा कर देगा और उसकी चुदाई और चूसा करेगा मगर उसके सामने ग़ाली ऩही देगा, बरी कमाल की शराफ़त है तेरी तो"

"के मा, इस बात को गलियों से क्यों ज़ोर के देखती हो"

"अर्रे क्यों ना देखु, जब हमारे बीच शरम की सारी दीवारे टूट गई है और हम एक दूसरे के नंगे अंगो से खेल रहे है, तब ये शराफ़त का ढोंग करने का क्या फ़ायदा,,,,,, ,,. देख गालिया जब हम होश में हो तब देना या बोलना गुनाह है मगर, जब हम उत्तेजित होते है और बहुत जोश में होते है तो अपने आप ये सब मुँह से निकल जाता है, तू भी कर के देख" मैने बात टलने की गरज से कहा "ठीक है मैं कोशिश करूँगा पर अभी मैं इतने जोश में ऩही हू की गालिया निकल सकु"

"हा बीच में रोक कर तो तूने सारा मज़ा खराब कर दिया, देख मैं तुझे बतलती हू, गालिया और गंदी गंदी बाते भी अपने आप में उत्तेजना बढ़ने वाली चीज़े है, चुदाई के वाक़ूत इसका एक अलग ही आनंद है"

"क्या सब लोग ऐसा करते है"

"इसका मुझे ऩही पाता की सब लोग ऐसा करते है या ऩही मगर इतना मुझे ज़रूर पाता है की ऐसा करने में मुझे बहुत मज़ा आता है, और शायद मैं इस से भी ज़यादा गंदी बाते करू और गालिया दू तो तू उदास मत होना और अपना काम जारी रखना समझना मुझे मज़ा आ रहा है, और एक बात ये भी की अगर तू चाहे तो तू भी ऐसा कर सकता है"

"छ्होरो मा मेरे से ये सब ऩही होगा"

"तो मत कर ****इए, मगर मैं तो करूँगी मदाचोड़" कह कर मा ने मेरे लंड को ज़ोर से मारोरा. मा के मुँह से इतनी मोटी गली सुन के मैं थोरा हार्बारा गया था मगर मा ने मुझे इसका भी मौका ऩही दिया और मेरे होंठो को अपने होंठो में भर कर खूब ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. मैं भी मा से पूरी तरह से लिपट गया और खूब ज़ोर ज़ोर से उसकी चुचियों को मसल्ने लगा और निपल खीचने लगा मा ने सिसकारिया लेते हुए मेरे कान में फुसफुसते हुए कहा "चुचिया मसल्ने से भी ज़यादा जल्दी मैं गंदी बतो से गरम हो जौंगी, मेरे साथ गंदी गंदी बाते कर ना बेटा". मैं उसकी चुचियों से खेलता हुआ बोला "तुम्ही करो मा मेरे से ऩही हो रहा है".

"साले मा की छोड़ेगा ज़रूर मगर उसके साथ इसकी बात ऩही करेगा, चुदाई के काम के वाक़ूत चुदाई की बाते करने में क्या बुराई है बे ****इए"

"चुदाई की बाते तो हम कर ही रहे है, मगर ये जो तुमने ********* गली दी है वो मुझे बरा बुरा लगा, अगर मैं भी तुम्हे ********* काहु तो" मैने मुस्कुराते हुए पुचछा मुझे ये बोलने में बरा मज़ा आया. जो छ्चीज़ हम सामानया जीवन में ऩही करते और हमारे लिए वर्जित होती है उन्हे बोलने का ये मेरा पहला अनुभव था. मा ने मेरी शैतानी साँझ ली, वो समझ गई की लौंडा, बोल भी रहा है और नाटक भी कर रहा हर. मा ने कहा "हा हा साले बोल ना तो तुझे रोक कौन रहा है बोलने से, मगर ********* मैं ऩही तू है, जो अपनी मा को छोड़ेगा"

"अभी तक छोड़ा कहा है जो ********* कह रही हो, एक बार चोद लूँगा तब ********* बोलना"

"हा अभी तक तो तू चूत चट्टा है, चोदु अभी ऩही बना, सच में छोड़ेगा ना अपनी मा को"

अब हम दोनो रंग में आ चुके थे और खुल कर बाते कर रहे थे, मुझे मज़ा आ रहा था अब गंदी गंदी बतो को करने में.

"हा मा छोड़ूँगा, पूरा छोड़ूँगा और अपने दिल की तम्माना को आज पूरा कर लूँगा"

"कैसे छोड़ेगा, राजा मा को बता ना, की उसका बेटा उसको कैसे चॉड्ना चाहता है"

"है मा मैं तुम्हारे बुर में अपने लंड को डाल कर छोड़ूँगा,"

"खाली बुर में लंड डालने से चुदाई थोरे ही हो जाती है उसके लिए लंड को अग्गे पिच्चे भी हिलना परता है गन्दू"

"वो भी हिला लूँगा मेरी मैय्या तू बस एक बार लंड तो घुसने दे"

"है है, मेरा बेटा तो बरे जोश में आ गया, मा की बुर छोड़ने के लिए, बेटीचोड़, मा की चूत में लॉरा डालने में शरम ऩही आएगी तुझे"

"चूत मारनी, जब मा को कोई शरम ऩही है तो मैं क्यों शरमौ, मैं तो बस लॉरा पेल के तेरी इस बुर को बुरी तरह से चॉड्ना चाहता तू, साली मा" कह कर मैने मा की चूत को मुट्ठी में भर कर बुरी तरह भींच दिया. मेरे हाथ में लास-लासा रस लग गया. मेरे द्वारा बुर को भींचने पर मा चीखी और गली देते हुए बोली "मधर्चोड़, बेशरम साले बुर को ऐसे क्यों दबाता है, क्या समझ रखा है मुझे"
 
"समझना क्या है बुरछोड़ी, तू तो मेरी जान है, देख ना तेरी इस बुर में मैं अपना यही मोटा लॉरा डाल के छोड़ूँगा, चुडवाएगी ना साली, बोल नाआआआअ, चुड़वायएएगी ना, खूब गालिया भी दूँगा, गांद तक का ज़ोर लगा के छोड़ूँगा, है रे मेरी चुड़दकर मा, कितनी मस्त माल है तू, सच में कब से तुझे छोड़ने की तम्माना थी, हर रोज सोचता था की तेरी इस मस्तानी बुर में लॉरा डाल के हच हचा के छोड़ूँगा तो कितना मज़ा आएगा, आज मेरा सपना सच होगी"

"हा, हा, बहँचोड़ कर लियो ना अपना सपना सच, तेरी मा के बुर में गढ़े का लॉरा मधर्चोड़, कैसे अपनी मा को छोड़ने का सपना देखता था, देखो साले भरूवे को, रंडी की औलाद, कुटिया के पिल्ले आ चोद दे, तेरी गांद में जितना डम हो उतना डम लगा के चोद दे मधर्चूऊऊऊद्दद द्द्द्दद्ड"

हम दोनो अब पूरी तरह जोश में आ गये थे और एक दूसरे से गुटम गुटा होते हुए एक दूसरे का चुंबन कर रहे थे और एक दूसरे के अंगो से खेल रहे थे. कभी मेरे हाथ उसकी चुचियों को दबाते थे कभी मैं उसके बुर को मुति में भर के दबाता था कभी अपनी उंगलिया उसके चूत में डाल के खूब ज़ोर ज़ोर से आगे पिच्चे करता था. मा भी मेरे होंठ और गालो को चूस्ते हुए खूब ज़ोर ज़ोर से मेरे लंड को मसालते हुए मुठिया भी रही थी और मेरे आंडो से खले रही थी.. मा अब मेरे उपर आ चुकी थी और मैं उसके नीचे दबा हुआ था और उसके ****अरो को मसालते हुए उसकी गांद की दरार में उंगली डाल रहा था. तभी मा सीधा होते हुए मेरे उपर बैठ गई और अपनी दोनो जाँघो को मेरे कमर के दोनो तरफ कर के मेरी च्चती को चूमने लगी और अपने ****अरो को आगे पीछे कर के मेरे लंड पर अपनी बुर को रगर्ते हुए ज़ोर ज़ोर से सिकिया लेने लगी और लगभग चिकते हुए बोली "आज मत छ्होरना बेटे, जाम के कूट देना मेरी ओखली को अपने मूसल से, मेरी इस बिलबिलती हुई बिल में अपने साँप को घुसा के इसकी सारी खुजली मिटा देना बेटा, है चल जल्दी से मेरी बुर को चाट तो ज़रा" कह कर वो मेरी च्चती के उपर आ के बैठ गई. फिर अपने ****अरो को उठा के मेरे मुँह के सिधाई मेरे मुँह के उपर ले आई. मा ने अपने दोनो जाँघो को फैला कर मेरे मुँह से लगभग 6 इंच की दूरी पर रखा हुआ था. और मुझे देखते हुए मेरे बालो को पकर के मेरे गर्दन को उपर उठाते हुए बोली "चल ज़रा अcचे से छत मेरी इस निगोरी बुर को फिर तुझे जन्नत का मज़ा चकती हू".

"हा मा, मेरे मन भी तेरी चूत का रस पीने का कर रहा है जल्दी से सता दे अपनी चूत मेरे होंठो से, उस वाक़ूत तेरी बक-बक के चक्कर में तो ये काम अधूरा ही रह गया था"

मैने देखा की मा की चूत के गुलाबी होंठ ठीक मेरी आँखो के सामने खुले हुए थे. उसका झांतो से ढाका भज्नासा लाल नज़र आ रहा था. और गांद की सीकुर्ी हुई छेद फैल और सिकुर रही थी. उस गुलाबी दुपडुपते हुए चूत की छेद पर रंगहीन पानी सा लगा हुआ था जो की रोशनी में चमक रहा था. मेरे मुँह में उस छेद को देख कर पानी भर आया था. मैने अपने प्यासे तारपते होंठो को अपनी गर्दन उठा के चूत के मोटे फांको से भीरा दिया. मेरे होंठ अब मा की निचले होंठो से मिल चुके थे. मा ने भी धीरे धीरे अपने ****अरो का वज़न मेरे चेहरे पर दल दिया. मैं अब चूत के गुलाबी होंठो को अपने मुँह में भर कर चूस रहा था. अपनी जीभ को नुकीला कर के मैने बुर के छेद में सरका दिया. चूत में जीभ के जाते ही मा एक डम से सिसकार उठी और अपनी ****अरो को ज़ोर ज़ोर से हिलने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरी जीभ से ही अपनी चूत को मरवाना चाहती हो. मैने भी अपना पूरा जीभ पेल दिया था, और तेज़ी से चूत में घूमने लगा. मा की जंघे कांप रही थी. उसने दोनो हाथो से अपने चुचियों को पकर के रखा हुआ था और, खूब ज़ोर ज़ोर मसल रही थी. उसके होंठो से कपटी हुई आवाज़ में सिसकारिया निकल रही थी. मेरे दोनो हाथ उसके ****अरो से चिपके हुए थे और मैं पूरे चूत को मुँह में भर भर के चूस रहा था. चूत के गुलाबी होंठो को अपने होंठो में भर के चूस्टे हुए, जीभ को बुर के अंदर लिबलिबते हुए मैं चूत से निकलते हुए रस को कुत्ते की तरह से लॅप लॅप करते हुए छत रहा था. मा एक डम जोश में आ चुकी थी और अब उसके लिए ऐसा लगता था जैसे बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था, और वो खूब ज़ोर ज़ोर से अपनी चुचियों को एक हाथ से मसालते हुए दूसरे हाथ से मेरे सिर को पकर के और ज़ोर से अपनी बुर पर चिपकते हुए बोली "चूस ले मेरी चूत, खा जा सारे रस को मधर्चोड़ साले, खा जा अपनी मा के बुर को, ओह उूुुुुुुुुुुउउ घह, मेरे भज्नाशे को पकर के चूस ना, काट के खा जा उसको मेरे चुड़दकर बलम, ले और ले और लीईए". मैने जल्दी से उसके भज्नसे को मुँह में भर लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा और अपनी खुरदरी ज़बान को उसके उपर फिरा कर चाटने लगा. भज्नसे को चटवाने से मा का जोश दुगुना हो गया और वो और ज़्यादा सिसकरने लगी. चूत को मुँह पर रगर्ते हुए बोली "चूस ले चूस ले बेटा, है है मेरे चोदु सैय्या, कहा था तू अब तक, अगर पहले पाता होता की तू ऐसा चूत चतु है तो जाने कब की तुझे अपनी चूत दे देती और मज़े से चुड़वति. चूस ले बेटा, मा की बुर से अब जब भी रस निकलेगा तेरे लिए ही निकलेगा मेरे चोदु सैय्या"
 
मसलते मसलते मेरी नज़र मा के सिकुर्ते फैलते हुए गांद के छेद पर परी. मेरे मन मैं आया की क्यों ना इसका स्वाद भी चखा जाए देखने से तो मा की गांद वैसे भी काफ़ी खूबसूरत लग रही थी जैसे गुलाब का फूल हो. मैने अपनी लपलपाति हुई जीभ को उसके गांद की छेद पर लगा दिया और धीरे धीरे उपर ही उपर लपलपते हुए चाटने लगा. गांद पर मेरी जीभ का स्पर्श पा कर मा पूरी तरह से हिल उठी.

"ओह ये क्या कर रहा है, ओह बरा अक्चा लग रहा है रीईए, कहा से सीखा ये, तू तो बरा कलाकार है रीईई बेटीचोड़, है राम देखो कैसे मेरी बुर को चाटने के बाद मेरी गांद को छत रहा है, तुझे मेरी गांद इतनी अच्छी लग रही है की इसको भी छत रहा है, ओह बेटा सच में गजब का मज़ा आ रहा है, छत छत ले पूरे गांद को छत ले ओह ओह उूुुुुुऊउगगगगगगगग" .

मैने पूरे लगान के साथ गांद के छेद पर अपने जीभ को लगा के, दोनो हाथो से दोनो ****अरो को पकर कर छेद को फैलया और अपनी नुकीली जीभ को उसमे ठेलने की कोशिश करने लगा. मा को मेरे इस काम में बरी मस्ती आ रही थी और उसने खुद अपने हाथो को अपने ****अरो पर ले जा कर गांद के छेद को फैला दिया और मुझ जीभ पेलने के लिए उत्साहित करने लगी. "है रे सस्स्स्स्सिईईईईई पेल दे जीभ को जैसे मेरी बुर में पेला था वैसे ही गांद के छेद में भी पेल दे और पेल के खूब छत मेरी गांद को है दियायया मार गई रीईईई, ओह इतना मज़ा तो कभी ऩही आया था, ओह देखो कैसे गांद छत रहा है,,,,,,,,सस्स्स्स्ससे ईईई चतो बेटा चतो और ज़ोर से चतो, मधर्चोड़, सला गन्दू"

मैं पूरी लगान से गांद छत रहा था. मैने देखा की चूत का गुलाबी छेद अपने नासिले रस को टपका रहा है तो मैने अपने होंठो को फिर से बुर के गुलाबी छेद पर लगा दिया और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा जैसे की पीपे लगा के कोकोकॉला पे रहा हू, सारे रस को छत के खाने के बाद मैने बुर के छेद में जीभ को पेल कर अपने होंठो के बीच में बुर के भज्नसे को क़ैद कर लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से चूसा शुरू कर दी. मा के लिए अब बर्दाश्त करना श्यद मुश्किल हो रहा था उसने मेरे सिर को अपनी बुर से अलग करते हुए कहा "अब छ्होर बहिँचोड़, फिर से चूस के ही झार देगा क्या, अब तो असली मज़ा लूटने का टाइम आ गया है, है बेटा राजा अब चल मैं तुझे जन्नत की सैर कराती हू अब अपनी मा की चुदाई करने का मज़ा लूट मेरे राजा, चल मुझे नीचे उतरने दे साले"

मैने मा की बुर पर से मुँह हटा लिया. वो जल्दी से नीचे उतार कर लेट गई और अपने पैरो को घुटनो के पास से मोर कर अपनी दोनो जाँघो को फैला दिया और अपने दोनो हाथो को अपनी बुर के पास ले जा कर बोली "आ जा राजा जल्दी कर अब ऩही रहा जाता, जल्दी से अपने मूसल को मेरी ओखली में डाल के कूट दे, जल्दी कर बेटा दल दे अपना लॉरा मा की पयासी चूत में" मैं उसके दोनो जाँघो के बीच में आ गया पर मुझे कुच्छ समझ में ऩही आ रहा था की क्या करू, फिर भी मैने अपने खरे लंड को पकरा और मा के उपर झुकते हुए उसकी बुर से अपने लंड को सता दिया. मा ने लंड के बुर से सात ते ही कहा "हा अब मार धक्का और घुसा दे अपने घोरे जैसे लंड को मा की बिल में" मैने धक्का मार दिया पर ये क्या लंड तो फिसल कर बुर के बाहर ही रगर खा रहा था, मैने दुबारा कोशिश की फिर वही नतीज़ा ढक के तीन पट फिर लंड फिसल के बाहर, इस पर मा ने कहा "रुक जा मेरे अनारी सैय्या, मुझे ध्यान रखना चाहिए था तू तो पहली बार चुदाई कर रहा है ना, अभी तुझे मैं बेटाटी हू" फिर अपने दोनो हाथो को बुर पर ले जा कर चूत के दोनो फांको को फैला दिया, बुर के अंदर का गुलाबी छेद नज़र आने लगा था, बुर एक डम पानी से भीगी हुई लग रही थी, बुर चिदोर का मा बोली "ले मैने तेरे लिए अपने चूत को फैला दिया है अब आराम से अपने लंड को ठीक निशाने पर लगा के पेल दे". मैने अपने लंड को ठीक चूत के खुले हुए मुँह पर लगाया और धकका मारा, लंड थोरा सा अंदर को घुसा, पानी लगे होने के कारण लंड का सुपरा अंदर चला गया था, मा ने कहा "शाबाश ऐसे ही सुपरा चला गया अब पूरा घुसा दे मार धक्का कस के और चोद डाल मेरी बुर को बहुत खुजली मची हुई है" मैने अपनी गांद तक का ज़ोर लगा के धक्का मार दिया पर मेरा लंड में ज़ोर की दर्द की लहर उठी और मैने चीखते हुए झट से लंड को बाहर निकल लिया. मा ने पुचछा "क्या हुआ, चिल्लाता क्यों है"
 
"ओह मा, लंड में दर्द हो रहा है". मा उठ कर बैठ गई और मेरी तरफ देखते हुई बोली "देखु तो कहा दर्द है" मैने लंड दिखाते हुए कहा "देखो ना जैसे ही चूत में घुशाया था वैसे ही दर्द करने लगा" मा खुच्छ देर तक देखती रही फिर हस्ने लगी और बोली "साले अनारी चुड़दकर, चला है मा को छोड़ने, आबे अभी तक तो तेरे सुपरे की चमरी ढंग से उलटी ही ऩही है तो दर्द ऩही होगा तो और क्या होगा, चला है मा को छोड़ने, चल कोई बात ऩही मुझे इस बात का ध्यान रखना चाहिए था, मेरी ग़लती है, मैने सोच तूने खूब मूठ मारी होगी तो चमरी अपने आप उलटने लगी होगी मगर तेरे इस गुलाबी सुपरे की शकल देख के ही मुझे समझ जाना चाहिए था की तूने तो अभी तक ढंग से मूठ भी ऩही मारी, चल नीचे लेट अब मुझे ही कुच्छ करना परेगा लगता है". मैने तो अब तक यही सुना था की लरका लर्की के उपर चाड के छोड़ता है मगर जब मा ने मुझे नीचे लेटने के लिए कहा तो मैं सोच में पर गया और मा से पुच्छ "नीचे क्यों लेटना है मा, क्या अब चुदाई ऩही होगी". मुझे लग रहा था की मा फिर से मेरा मूठ मार देगी. मा ने हस्ते हुए कहा "ऩही बे ****इए चुदाई तो होगी ही, जितनी तुझे छोड़ने की आग लगी है मुझे भी चुड़वाने की उतनी ही आग लगी है, चुदाई तो होगी ही, तुझे तो अभी रात भर मेरी बुर का बजा बजाना है मेरे राजा, तू नीचे लेट अब उल्टी तरफ से चुदाई होगी.

"उल्टी तरफ से चुदाई होगी, इसका क्या मतलब है मा"

"इसका मतलब है मैं तेरे उपर चाड के खुद से चड़वौनगी, कैसे चड़वौनगी? ये तो तू खुद ही थोरी देर के बाद देख लियो मगर, फिलहाल तू नीचे लेट और अपना लंड खरा कर के रख फिर देख मैं कैसे तुझे मज़ा देती हू"

मैं नीचे लेट तो गया पर अब भी मैं सोच रहा था की मा कैसे करेगी. मा ने जब मेरे चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव देखे तो वो मेरे गाल पर एक प्यार भरा तमाचा लगते हुए बोली "सोच क्या रहा है मधर्चोड़ अभी चुप चाप तमाशा देख फिर बताना की कैसा मज़ा आता है" कह कर मा ने मेरे कमर के दोनो तरफ अपनी दोनो टाँगे कर दी और अपनी बुर को ठीक मेरे लौरे के सामने ला कर मेरे लंड को एक हाथ से पकरा और सुपरे को सीधा अपनी चूत के गुलाबी मुँह पर लगा दिया. सुपरे को बुर के गुलाबी मुँह पर लगा कर वो मेरे लंड को अपने हाथो से आगे पिच्चे कर के अपनी बुर के दरार पर रगर्ने लगी. उसकी चूत से निकला हुआ पानी मेरे सुपरे पर लग रहा था और मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. मेरी साँसे उस अगले पल के इंतेज़ार में रुकी हुई थी जब मेरा लंड उसके चूत में घुसता. मैं डम साढ़े इंतेज़ार कर रहा था तभी मा ने अपने चूत के फाँक को एक हाथ से फैलाया और मेरे लंड के सुपरे को सीधा बुर के गुलाबी मुँह पर लगा कर उपर से हल्का सा ज़ोर लगाया. मेरे लंड का सुपरा उसके चूत के फांको बीच समा गया. फिर मा ने मेरे च्चती पर अपने हाथो को जमाया और उपर से एक हल्का सा धक्का दिया मेरे लंड का थोरा सा और भाग उसकी चूत में समा गया. उसके बाद मा स्थिर हो गई और इतने से ही लंड को अपनी बुर में घुसा कर आगे पिच्चे करने लगी.
 
थोरी देर तक ऐसा करने के बाद उसने फिर से एक धक्का मारा, इस बार धक्का थोरा ज़यादा ही जोरदार था और मेरे लंड का लग भाग आधा से अधिक भाग उसकी चूत में समा गया. मेरे मुँह से एक ज़ोर डर चीख निकल गई. क्यों की मेरे लंड के सुपरे की चमरी एक डम से पिच्चे उलट गई थी. पर मा ने इस र कोई ध्यान ऩही दिया और उतने ही लंड पर आगे पिच्चे करते हुए धक्का मरते हुए बोली "बेटा चुदाई कोई आसान काम ऩही है, लर्की भी जब पहली बार चुड्ती है तो उसको भी दर्द होता है, और उसका दर्द तो तेरे दर्द के सामने कुच्छ भी ऩही है, जैसे उसके बुर की सील टूटती है वैसे ही तेरे लंड की भी आज सील टूटी है, थोरी देर तक आराम से लेता रह फिर देख तुझे कैसा मज़ा आता है". मा अब उतने लंड को ही बुर में ले कर धीरे धीरे धक्के लगा रही थी. वो अपने गांद को उच्छल उच्छल के धक्के पर धक्का मारे जा रही थी. थोरी देर में ही मेरा दर्द कम हो गया और मुझे गीले पं का अहसास होने लगा. मा की चूत ने पानी छ्होरना शुरू कर दिया था और उसकी बुर से निकलते पानी के कारण मेरे लंड का घुसना और निकलना भी आसान हो गया था. मा अब और ज़ोर ज़ोर से अपनी गांद उच्छल उच्छल के धक्के लगा रही थी और मेरे लौरे का ज़यादा से ज़यादा भाग उसके चूत के अंदर घुसता जा रहा था. मा ने इस बार एक ज़ोर दार धक्का मारा और मेरे लंड का जायदातर भाग अपनी चूत में च्छूपा लिया और सिसकरते हुए बोली "सस्स्स्स्स्सिईईईईई है दैयया, कितना टगरा लॉरा है जैसे की गरम लोहे का रोड हो, एक डम सीधा बुर के दीवारो को रगर मार रहा है, मेरे जैसी चूड़ी हुई औरत के बुर में जब ये इतना कसा हुआ है तो जवान लौंदीयों की चूत फर के रख देगा, मज़ा आ गया, ले साले और घुसा लॉरा और घुसा" कह कर तेज़ी से तीन चार धक्के मार दिए. मा के द्वारा तेज़ी से लगाए गये इन धक्को से मेरा पूरा का पूरा लंड उसकी चूत के अंदर चला गया. मा ने सिसकरते हुए धक्के लगाना जारी रखा और अपने एक हाथ को लौरे के जर के पास ले जाकर देखने लगी की पूरा लंड अंदर गया है की ऩही. जब उसने देखा की पूरा का पूरा लॉरा उसकी बुर में घुस चुका है तब उसने अपनी ****अरो को उच्छलते हुए एक तेज धक्का मारा और मेरे होंठो का चुम्मा ले कर बोली "कैसा लग रहा है बेटा, अब तो दर्द ऩही हो रहा है ना"

"ऩही मा अब दर्द ऩही हो रहा है, देखो ना मेरा पूरा लॉरा तुम्हारे बुर के अंदर चला गया है"

"हा बेटा अब दर्द ऩही होगा अब तो बस मज़ा ही मज़ा है, मेरे बुर के पानी के गीले पं से तेरी चमरी उलटने में आब आसानी हो रही है इसलिए तुझे अब दर्द ऩही हो रहा होगा, बल्कि मज़ा आ रहा होगा, क्यों बेटा बोल ना मज़ा आ रहा है या ऩही अपनी मा के बुर में लॉरा पेल के, अब तो तुझे पाता चल रहा होगा की चुदाई क्या होती है बएटााआआआ, ले मज़े चुदाई का और बता की तुझे कैसा लग रहा है मा की चूत में लॉरा धसने में"

"है मा, सच में गजब का मज़ा आ रहा है, ओह मा तुम्हारी चूत कितनी कसी हुई है मेरा लॉरा तो इसमे बरी मुस्किल से घुसा है जबकि मैने सुना था की शादी शुदा औरतो की चूत ढीली हो जाती है"
 
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