hotaks444
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शुभम जैसे ही अपनी नानी के चरण स्पर्श किया वैसे ही उसकी नानी अपने नाती के अच्छे और संस्कारी व्यवहार को देखकर एकदम से गदगद हो गई और झट से उसे उठाकर अपने गले लगा ली,,,,
जीते रहो बेटा मुझे तुमसे यही उम्मीद थी वरना आजकल के छोकरे तो अपने बड़ों से ठीक से बात तक नहीं करते,,,,,( इतना कहते हुए वह अपने चश्मे को ठीक से व्यवस्थित करते हुए शुभम की तरफ ऊपर से नीचे देखकर बोली,,,)
सच में निर्मला शुभम को एकदम जवान हो गया है अब यह बिल्कुल भी बच्चा नहीं रहा,,,,,, और हां मैं इतनी देर से घंटी बजा रही थी तो तू क्या कर रहा था तुझे तो आकर झट़ से दरवाजा खोलना था,,,,।
( अपनी नानी के इस सवाल का वह जवाब नहीं दे पा रहा था वह अपनी मां की तरफ देखने लगा तो निर्मला ही बात को संभालते हुए बोली।)
अरे मम्मी इसके फाइनल एग्जाम आने वाले हैं ना तो उसी से विषय में तैयारी कर रहा था इसलिए उसे पता नहीं चला,,,,
( निर्मला बात को संभालते हुए बहाना बना दी थी जिस पर उसकी मम्मी को विश्वास भी हो गया था,,,, अब वह अपनी मां से सच्चाई तो बता नहीं सकती थी कि उनका नाती उनकी बेटी को जमकर चोद रहा था,,,, और उनकी बेटी को चुदवाने में इतना मजा आ रहा था कि वह जान बूझकर दरवाजा नहीं खोली,,,,)
चल अच्छा ठीक है,,,, मेरा बैग घर मे ले आ,,,
( शुभम की नानी आगे-आगे जाने लगी और निर्मला ने बेटे की तरफ विजयी मुस्कान बिखेरते हुए कमरे में जाने लगी,,, पीछे पीछे शुभम भी अपनी मां की गदराई गांड को मटकते हुए देखकर जाने लगा जिसको कुछ देर पहले ही जमकर रौंद रहा था।
घर में आते ही निर्मला की मम्मी कुर्सी पर बैठ कर पंखे की ठंडी हवा खाने लगी तब जाकर उन्हें थोड़ा सुकून मिला,,,,,, बातचीत का दौर शुरु हो चुका था निर्मला अपनी मम्मी से हंस-हंसकर बातें कर रही थी शुभम भी अपनी नानी को पाकर खुश था क्योंकि जब भी वह आती थी तो कुछ ना कुछ उसके लिए जरूर लाती थी। वैसे भी शुभम की नानी आज काफी महीनों बाद घर आई थी इसलिए तीनों कुछ ज्यादा ही प्रसन्न नजर आ रहे थे,,,,,, बातों ही बातों में पता चला कि शुभम की नानी आंख का इलाज करने आई हुई है। दरवाजे पर लगातार बज रही घंटी की आवाज को नजरअंदाज करते हुए कुछ देर पहले निर्मला अपने बेटे से चुदाई का अद्भुत आनंद लेते हुए सब कुछ भूल चुकी थी और दरवाजा खोलने की अफरा तफरी में अपनी मां को घर आया देखकर वह इस बात को बिल्कुल भी भूल चुकी थी कि,,,, सुभम उसके साथ पूरी तरह से खुल चुका था क्योंकि वह शुभम से सारी बातें करके उसे समझा ली थी और अब तो उसके लिए सारे रास्ते खुल चुके थे,,,, वह शुभम के साथ अब घर में चाहे जब किसी भी समय अशोक की गैरहाजिरी में चुदाई का सुख ले सकती थी और उसे इस बात की खुशी भी थी लेकिन जल्द ही उसका यह नशा काफूर हो गया क्योंकि उसकी मम्मी उसके घर पर आंखों का इलाज कराने आई थी,,,, जिसमें दस पंद्रह दिन लग सकते थे और इसीलिए जल्दी उसका प्रसन्नता से भरा हुआ चेहरा उदास हो गया। इस बात को शायद शुभम भी अच्छी तरह से समझ गया था कि उसकी आजादी पर कुछ दिन के लिए विराम लग चुका था इसलिए वह भी अपनी नानी के आने से अब खुश नजर नहीं आ रहा था। दोनों एक दूसरे की तरफ देखकर आंखों ही आंखों में अपनी उदास पन का इजहार कर दिए,,,,, अब शुभम और निर्मला के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था आज पहली बार निर्मला को अपनी मां का इस तरह से घर पर आना बहुत ही बुरा लग रहा था। दोनों की आजादी छीन चुकी थी दोनों को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कुछ देर पहले उनके बदन में पर लग गए होैं और अभी उड़ने का मजा लिया भी नहीं था कि उनके पर को किसी ने जबरदस्ती नोच लिया हो,,,,, शुभम की नानी हंस हंस कर बोले जा रही थी लेकिन अब उनकी बातों को दोनों के कान सुनने से इंकार कर रहे थे। तभी इस बात का एहसास दिलाते हुए शुभम की नानी बोली।
क्या बात है तुम दोनों मेरी बात का कोई जवाब नहीं दे रहे हो और ना ही खुश नजर आ रहे हो कहीं ऐसा तो नहीं तुम लोगों को मेरा आना अच्छा नहीं लगा।
अरे नहीं नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं आपको बता ही ना कि मेरे सर में थोड़ा सा दर्द है इसलिए और वैसे भी शुभम भी काफी परेशान है एग्जाम को लेकर के,,,, वैसे मम्मी घर पर सब कुछ ठीक है ना पापा कहते हैं भाभी कैसी हैं भैया और बच्चे,,,,,,,
अरे सब मजे में हैं वह लोग तो तुम लोगों के आने का इंतजार करते रहते हैं लेकिन तुम लोगों को इस शहरी जीवन से जरा भी फुर्सत मिले तब ना गांव का रुख करो,,,,,,,
नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है दरअसल उन्हें बिजनेस से और शुभम की पढ़ाई की वजह से बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता था लेकिन इस बार गर्मियों की छुट्टी में हम लोग जरुर आएंगे गांव घूमने,,,,,,
( निर्मला का मन बिल्कुल उदास हो चुका था वह अपनी मां के सवालों का बिल्कुल भी जवाब देना नहीं चाहती थी लेकिन वह नहीं चाहती थी कि उसकी मां को जरा भी इस बात का एहसास हो कि उनके आने पर वह बिल्कुल भी खुश नहीं है। बेमन से वह अपनी मां के साथ बैठकर कुछ देर तक बातें करती रही,,,, तब वह अपनी मम्मी से बोली,,,,,,
मम्मी आप बाथरूम में जाकर थोड़ा सा फ्रेश हो जाओ मैं आपके लिए खाना लगा देती हूं उसके बाद खाना खाकर आप आराम कर लो,,,,,,
ठीक है बेटी,,,, वैसे भी मैं काफी थक गई हूं लेकिन तू मेरा बिस्तर अपने कमरे में लगाना क्योंकि मुझे चश्मा लगाने के बावजूद भी ठीक है फिर दिखाई नहीं देता है इसलिए मुझे तेरी जरूरत पड़ेगी,,,,, और तू सुभम मुझे जरा बाथरुम तक ले चल,,,,,, ( इतना कहते हुए वह कुर्सी पर से उठने लगी और शुभम भी उनका हाथ पकड़ कर बाथरूम की तरफ ले जाने लगा निर्मला वही कुर्सी पर बैठे-बैठे मन में बुदबुदाने लगी,,,, क्योंकि आप कमरा भी हाथ से जा चुका था। अपनी मां की आदत को अच्छी तरह से जानती थी उसकी मां को,,, जब भी वह पास में होती थी तो उसके पास ही सोने की आदत थी इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई,,,, बस पैर पटक कर रह गई,,,,, नहा धोकर फ्रेश होने के बाद निर्मला की मम्मी खाना खा कर सो गई भाई तो बड़े आराम से चैन की नींद सो रही थी लेकिन निर्मला की नींद तो हराम हो चुकी थी।
निर्मला के साथ साथ शुभम भी उदास बैठा था,,,,
दोनों कमरे के बाहर बैठे हुए थे और कमरे में निर्मला की मां आराम से सो रही थी आज निर्मला को पहली बार उसकी खुद की मां मुसीबत लग रही थी क्योंकि दोनों के मजे में भंग पड़ गया था और यह सब निर्मला की मां की वजह से हुआ था। सोफे पर बैठा हुआ था निर्मला उसके करीब जाकर बैठ गई और उसे दिलासा देते हुए बोली।
मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि मम्मी इस तरह से आ जाएगी हम दोनों के बीच अच्छा तालमेल बैठ रहा था तभी यह मम्मी का आना मुझे अच्छा नहीं लगा,,,,,
मम्मी मुझे भी आज पहली बार नानी का घर आना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है पता नहीं क्यों मन बेचैन सा हो रहा है।( शुभम उदास मन से बोला और निर्मला अपने बेटे की यह बात सुनकर मन ही मन इस बात से प्रसन्न होने लगी थी उसका बेटा उसका दीवाना हो चुका था इसलिए इस तरह की बातें कर रहा है अपने बेटे के सर पर हाथ रखते हुए निर्मला बोली।)
कोई बात नहीं बेटा,,,, मैं जल्दी से जल्दी मम्मी को किसी आंख के अच्छे डॉक्टर को दिखाकर उनका इलाज कराकर इधर से रवाना कर दूंगी उसके बाद हम दोनों के लिए सब कुछ साफ हो जाएगा,,,,,,,( निर्मला मुस्कुराते हुए बोली अपनी मां की यह बात सुनकर शुभम को थोड़ी बहुत राहत हुई।)
सच मम्मी,,,, क्या फिर से हम दोनों,,,,,,( शुभम इतना कहकर खामोश हो गया इससे आगे वह कुछ बोल नहीं पाया,,,,, लेकिन निर्मला अपने बेटे की यह बात का मतलब अच्छी तरह से समझ गई थी इसलिए मुस्कुराते हुए अपने बेटे से बोली,,,,,)
क्या फिर से हम दोनों,,,,आं,,,, बोल क्या बोलना चाह रहा है,,,,,
( निर्मला चेहरे पर प्रसन्नता के भाव लिए अपने बेटे से आगे की बात पूछने लगी लेकिन शुभम शर्मा रहा था और शरमाते हुए बोला।)
कुछ नहीं मम्मी मैं तो यूं ही पूछ रहा था,,,,,
यूं ही नहीं तो जरूर कुछ कहना चाहता है लेकिन कह नहीं पा रहा है । बता और मुझसे शर्माने की कोई जरूरत नहीं है,,,, देख अब तो हम दोनों के बीच वह शब्द ही हो गया जो एक पति पत्नी और प्रेमी प्रेमिका के बीच होता है एक मर्द और औरत के बीच जो जिस्मानी संबंध होते हैं वह संबंध हम दोनों के बीच हो गया है इसलिए शर्माने की जरुरत नहीं है।
( निर्मला अपनी मीठी बात से शुभम को समझाने की कोशिश करने लगी लेकिन शुभम की शर्म अभी भी दूर नहीं हो पा रही थी यह बात अलग है कि बिस्तर पर नंगे होने के बाद वह सब कुछ भूल जाता था लेकिन बिस्तर से उतरते ही फिर से शर्म का लिबास तन पर ओढ़ लेता था। इसलिए फिर से शर्माते हुए बोला,,,,।)
सच में मम्मी नहीं कुछ और नहीं कहना चाहता था,,,,
जीते रहो बेटा मुझे तुमसे यही उम्मीद थी वरना आजकल के छोकरे तो अपने बड़ों से ठीक से बात तक नहीं करते,,,,,( इतना कहते हुए वह अपने चश्मे को ठीक से व्यवस्थित करते हुए शुभम की तरफ ऊपर से नीचे देखकर बोली,,,)
सच में निर्मला शुभम को एकदम जवान हो गया है अब यह बिल्कुल भी बच्चा नहीं रहा,,,,,, और हां मैं इतनी देर से घंटी बजा रही थी तो तू क्या कर रहा था तुझे तो आकर झट़ से दरवाजा खोलना था,,,,।
( अपनी नानी के इस सवाल का वह जवाब नहीं दे पा रहा था वह अपनी मां की तरफ देखने लगा तो निर्मला ही बात को संभालते हुए बोली।)
अरे मम्मी इसके फाइनल एग्जाम आने वाले हैं ना तो उसी से विषय में तैयारी कर रहा था इसलिए उसे पता नहीं चला,,,,
( निर्मला बात को संभालते हुए बहाना बना दी थी जिस पर उसकी मम्मी को विश्वास भी हो गया था,,,, अब वह अपनी मां से सच्चाई तो बता नहीं सकती थी कि उनका नाती उनकी बेटी को जमकर चोद रहा था,,,, और उनकी बेटी को चुदवाने में इतना मजा आ रहा था कि वह जान बूझकर दरवाजा नहीं खोली,,,,)
चल अच्छा ठीक है,,,, मेरा बैग घर मे ले आ,,,
( शुभम की नानी आगे-आगे जाने लगी और निर्मला ने बेटे की तरफ विजयी मुस्कान बिखेरते हुए कमरे में जाने लगी,,, पीछे पीछे शुभम भी अपनी मां की गदराई गांड को मटकते हुए देखकर जाने लगा जिसको कुछ देर पहले ही जमकर रौंद रहा था।
घर में आते ही निर्मला की मम्मी कुर्सी पर बैठ कर पंखे की ठंडी हवा खाने लगी तब जाकर उन्हें थोड़ा सुकून मिला,,,,,, बातचीत का दौर शुरु हो चुका था निर्मला अपनी मम्मी से हंस-हंसकर बातें कर रही थी शुभम भी अपनी नानी को पाकर खुश था क्योंकि जब भी वह आती थी तो कुछ ना कुछ उसके लिए जरूर लाती थी। वैसे भी शुभम की नानी आज काफी महीनों बाद घर आई थी इसलिए तीनों कुछ ज्यादा ही प्रसन्न नजर आ रहे थे,,,,,, बातों ही बातों में पता चला कि शुभम की नानी आंख का इलाज करने आई हुई है। दरवाजे पर लगातार बज रही घंटी की आवाज को नजरअंदाज करते हुए कुछ देर पहले निर्मला अपने बेटे से चुदाई का अद्भुत आनंद लेते हुए सब कुछ भूल चुकी थी और दरवाजा खोलने की अफरा तफरी में अपनी मां को घर आया देखकर वह इस बात को बिल्कुल भी भूल चुकी थी कि,,,, सुभम उसके साथ पूरी तरह से खुल चुका था क्योंकि वह शुभम से सारी बातें करके उसे समझा ली थी और अब तो उसके लिए सारे रास्ते खुल चुके थे,,,, वह शुभम के साथ अब घर में चाहे जब किसी भी समय अशोक की गैरहाजिरी में चुदाई का सुख ले सकती थी और उसे इस बात की खुशी भी थी लेकिन जल्द ही उसका यह नशा काफूर हो गया क्योंकि उसकी मम्मी उसके घर पर आंखों का इलाज कराने आई थी,,,, जिसमें दस पंद्रह दिन लग सकते थे और इसीलिए जल्दी उसका प्रसन्नता से भरा हुआ चेहरा उदास हो गया। इस बात को शायद शुभम भी अच्छी तरह से समझ गया था कि उसकी आजादी पर कुछ दिन के लिए विराम लग चुका था इसलिए वह भी अपनी नानी के आने से अब खुश नजर नहीं आ रहा था। दोनों एक दूसरे की तरफ देखकर आंखों ही आंखों में अपनी उदास पन का इजहार कर दिए,,,,, अब शुभम और निर्मला के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था आज पहली बार निर्मला को अपनी मां का इस तरह से घर पर आना बहुत ही बुरा लग रहा था। दोनों की आजादी छीन चुकी थी दोनों को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कुछ देर पहले उनके बदन में पर लग गए होैं और अभी उड़ने का मजा लिया भी नहीं था कि उनके पर को किसी ने जबरदस्ती नोच लिया हो,,,,, शुभम की नानी हंस हंस कर बोले जा रही थी लेकिन अब उनकी बातों को दोनों के कान सुनने से इंकार कर रहे थे। तभी इस बात का एहसास दिलाते हुए शुभम की नानी बोली।
क्या बात है तुम दोनों मेरी बात का कोई जवाब नहीं दे रहे हो और ना ही खुश नजर आ रहे हो कहीं ऐसा तो नहीं तुम लोगों को मेरा आना अच्छा नहीं लगा।
अरे नहीं नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं आपको बता ही ना कि मेरे सर में थोड़ा सा दर्द है इसलिए और वैसे भी शुभम भी काफी परेशान है एग्जाम को लेकर के,,,, वैसे मम्मी घर पर सब कुछ ठीक है ना पापा कहते हैं भाभी कैसी हैं भैया और बच्चे,,,,,,,
अरे सब मजे में हैं वह लोग तो तुम लोगों के आने का इंतजार करते रहते हैं लेकिन तुम लोगों को इस शहरी जीवन से जरा भी फुर्सत मिले तब ना गांव का रुख करो,,,,,,,
नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है दरअसल उन्हें बिजनेस से और शुभम की पढ़ाई की वजह से बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता था लेकिन इस बार गर्मियों की छुट्टी में हम लोग जरुर आएंगे गांव घूमने,,,,,,
( निर्मला का मन बिल्कुल उदास हो चुका था वह अपनी मां के सवालों का बिल्कुल भी जवाब देना नहीं चाहती थी लेकिन वह नहीं चाहती थी कि उसकी मां को जरा भी इस बात का एहसास हो कि उनके आने पर वह बिल्कुल भी खुश नहीं है। बेमन से वह अपनी मां के साथ बैठकर कुछ देर तक बातें करती रही,,,, तब वह अपनी मम्मी से बोली,,,,,,
मम्मी आप बाथरूम में जाकर थोड़ा सा फ्रेश हो जाओ मैं आपके लिए खाना लगा देती हूं उसके बाद खाना खाकर आप आराम कर लो,,,,,,
ठीक है बेटी,,,, वैसे भी मैं काफी थक गई हूं लेकिन तू मेरा बिस्तर अपने कमरे में लगाना क्योंकि मुझे चश्मा लगाने के बावजूद भी ठीक है फिर दिखाई नहीं देता है इसलिए मुझे तेरी जरूरत पड़ेगी,,,,, और तू सुभम मुझे जरा बाथरुम तक ले चल,,,,,, ( इतना कहते हुए वह कुर्सी पर से उठने लगी और शुभम भी उनका हाथ पकड़ कर बाथरूम की तरफ ले जाने लगा निर्मला वही कुर्सी पर बैठे-बैठे मन में बुदबुदाने लगी,,,, क्योंकि आप कमरा भी हाथ से जा चुका था। अपनी मां की आदत को अच्छी तरह से जानती थी उसकी मां को,,, जब भी वह पास में होती थी तो उसके पास ही सोने की आदत थी इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई,,,, बस पैर पटक कर रह गई,,,,, नहा धोकर फ्रेश होने के बाद निर्मला की मम्मी खाना खा कर सो गई भाई तो बड़े आराम से चैन की नींद सो रही थी लेकिन निर्मला की नींद तो हराम हो चुकी थी।
निर्मला के साथ साथ शुभम भी उदास बैठा था,,,,
दोनों कमरे के बाहर बैठे हुए थे और कमरे में निर्मला की मां आराम से सो रही थी आज निर्मला को पहली बार उसकी खुद की मां मुसीबत लग रही थी क्योंकि दोनों के मजे में भंग पड़ गया था और यह सब निर्मला की मां की वजह से हुआ था। सोफे पर बैठा हुआ था निर्मला उसके करीब जाकर बैठ गई और उसे दिलासा देते हुए बोली।
मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि मम्मी इस तरह से आ जाएगी हम दोनों के बीच अच्छा तालमेल बैठ रहा था तभी यह मम्मी का आना मुझे अच्छा नहीं लगा,,,,,
मम्मी मुझे भी आज पहली बार नानी का घर आना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है पता नहीं क्यों मन बेचैन सा हो रहा है।( शुभम उदास मन से बोला और निर्मला अपने बेटे की यह बात सुनकर मन ही मन इस बात से प्रसन्न होने लगी थी उसका बेटा उसका दीवाना हो चुका था इसलिए इस तरह की बातें कर रहा है अपने बेटे के सर पर हाथ रखते हुए निर्मला बोली।)
कोई बात नहीं बेटा,,,, मैं जल्दी से जल्दी मम्मी को किसी आंख के अच्छे डॉक्टर को दिखाकर उनका इलाज कराकर इधर से रवाना कर दूंगी उसके बाद हम दोनों के लिए सब कुछ साफ हो जाएगा,,,,,,,( निर्मला मुस्कुराते हुए बोली अपनी मां की यह बात सुनकर शुभम को थोड़ी बहुत राहत हुई।)
सच मम्मी,,,, क्या फिर से हम दोनों,,,,,,( शुभम इतना कहकर खामोश हो गया इससे आगे वह कुछ बोल नहीं पाया,,,,, लेकिन निर्मला अपने बेटे की यह बात का मतलब अच्छी तरह से समझ गई थी इसलिए मुस्कुराते हुए अपने बेटे से बोली,,,,,)
क्या फिर से हम दोनों,,,,आं,,,, बोल क्या बोलना चाह रहा है,,,,,
( निर्मला चेहरे पर प्रसन्नता के भाव लिए अपने बेटे से आगे की बात पूछने लगी लेकिन शुभम शर्मा रहा था और शरमाते हुए बोला।)
कुछ नहीं मम्मी मैं तो यूं ही पूछ रहा था,,,,,
यूं ही नहीं तो जरूर कुछ कहना चाहता है लेकिन कह नहीं पा रहा है । बता और मुझसे शर्माने की कोई जरूरत नहीं है,,,, देख अब तो हम दोनों के बीच वह शब्द ही हो गया जो एक पति पत्नी और प्रेमी प्रेमिका के बीच होता है एक मर्द और औरत के बीच जो जिस्मानी संबंध होते हैं वह संबंध हम दोनों के बीच हो गया है इसलिए शर्माने की जरुरत नहीं है।
( निर्मला अपनी मीठी बात से शुभम को समझाने की कोशिश करने लगी लेकिन शुभम की शर्म अभी भी दूर नहीं हो पा रही थी यह बात अलग है कि बिस्तर पर नंगे होने के बाद वह सब कुछ भूल जाता था लेकिन बिस्तर से उतरते ही फिर से शर्म का लिबास तन पर ओढ़ लेता था। इसलिए फिर से शर्माते हुए बोला,,,,।)
सच में मम्मी नहीं कुछ और नहीं कहना चाहता था,,,,