hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
दूधी मोटी मोटी और एकदम लंबी,,,, एकदम तगड़ी देख ले फ्रीज में रखी होगी,,,,,( इतना कहकर निर्मला मुस्कुराने लगी शुभम को अब अपनी मां का या मुस्कुराना और उसके बातों का मतलब थोड़ा थोड़ा समझ में आने लगा था। वह बिना कुछ बोले फ्रीज में से दुधी निकाल कर किचन पर रख दिया,,, उसका लंड लगातार पेट में तंबू बनाए हुए था जिस पर बार-बार निर्मला की नजर पड़ रही थी।और उसे देखकर निर्मला की बुर फूल पिेचक रही थी। उसका बस चलता तो वह खुद ही अपने बेटे के पेंट को निकालकर उसके लंड को अपनी बुर में डलवा कर चुद गई होती लेकिन अभी मजबूर थी,,, अपने बेटी के साथ चुदवाने के बाद भी अभी भी वह शर्मो हया के पर्दे में कैद थी।
शुभम दूधी को चाकू से काटना शुरु कर दिया जिसे देखकर निर्मला मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,,,
दुधी कैसी है शुभम?
कैसी है मतलब मम्मी मे कुछ समझा नहीं,,,,
अरे बुद्धू कैसी है मतलब उसका साइज़ की मोटाई लंबाई कैसी है तभी तो बनने में स्वादिष्ट आएगी,,,,,
( शुभम आप अपनी मम्मी का मतलब समझने लगा था लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोला।)
मुझे क्या मालूम मम्मी मैं खाना थोड़े ही पकाता हूं।
हां सही बात है तुम लडको लोगों को कहां पता कि दूधी का मजा औरतों को कैसा लगता है। मर्दों का तो ं काम ही होता है बस दूध खरीद कर ले जाओ और उसे घर पर रख दो तुम लोग यह भी नहीं देखते कि दूधी लंबी है कि छोटी है कि मोटी है कितना तगड़ा है यह सब से तुम लोगों को कोई भी मतलब नहीं होता बस अपना फर्ज निभा देते हो और अपना मजा लेने के औरतों को थमा देती हो कभी यह सब भी तो सोचा करो कि औरतों को क्या पसंद है दुधी का साइज कितना होना चाहिए,,,, दूधी कितनी लंबी होनी चाहिए,,,, कितनी मोटी होती है तब मजा आता है,,,,,,,,,,,,,,,,, उसी पकाने में। ( निर्मला पकाना शब्द अपना मतलब निकल जाने के बाद ही बोली थी शुभम पूरी तरह से समझ गया था कि वह दूधी के बहाने उसके लंड के बारे में बात कर रहीे हैं। शुभम को भी अपनी मां के दो अर्थ वाले शब्द को सुनकर मजा आने लगा था। तभी तो वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,,,)
मम्मी क्या सच में ऐसा होता है लेकिन दूध ही वाली बात तो मैं नहीं जानता था कि दुधी के पतले मोटे लंबे तगड़े होने से औरतों को फर्क पड़ता है। आख़िर ईसे पका कर खाना ही तो है।
तू सच में बुद्धू है शुभम पकाना ही तो है यह तो मुझे अच्छी तरह से मालूम है लेकिन पतली दुबली होने पर उसमें से कुछ निकलता नहीं है बल्कि गर्मी से ही खत्म हो जाता है। और दूधी जब मोटी तगड़ी और लंबी होती है तो,,,, उसे पकने में टाइम लगता है करने में टाइम लगता है,,, जरा सी गर्मी पाकर तुरंत पिघल नहीं जाता बल्कि गर्म होकर धीरे-धीरे अपना पानी छोड़ता रहता है। तब जाकर उसे खाने में औरतों को इतना मजा आता है कि तुम लोगों को इस बात का एहसास तक नहीं होता।
( निर्मला खुद नहीं समझ रही थी कि वह क्या कह रही है लेकिन जो भी कह रही थी उस बात को कहने में वह पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह एकदम से चुदवासी हो गई थी,,, यही हाल शुभम का भी था। अपनी मां के दो अर्थ वाली बात को सुनकर वह पूरी तरह से गरमा चुका था उसका लंड पैंट के अंदर गदर मचाए हुए था। जिस की हालत को निर्मला तिरछी नजर से देख ले रही थी यही सही समय भी था लेकिन कैसे यह नहीं समझ पा रही थी निर्मला तभी उसके मन में एक ख्याल आया वह आंटे को घूंथते हुए,,,, अपने दोनों हथेलीयो को पूरी तरह से गीले आटे में सान ली,,, और अपने पैरों को पटकने लगे वह इस तरह से बर्ताव करने लगी कि जैसे उसकी साड़ी में कोई कीड़ा या चींटी घुस गई हो,,,,, उसके दोनों हाथ आटे में सने हुए थे और वह जोर जोर से अपने पैरों को पटकते हुए शुभम की तरफ देखने लगी जो की दूधी को काट रहा था,,,,, अपनी मां को इस तरह से उछलता हुआ देखकर वह बोला,,,,
क्या हुआ मम्मी इस तरह से क्यों उछल रही हो?
लगता है कि कुछ मेरी साड़ी में घुस गया है।
क्या घुस गया है मम्मी,,,,,,
अरे मुझे क्या मालूम धीरे धीरे काट रहा है मुझे डर लग रहा है (बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली)
तो देख लो ना क्या है?
अरे पागल अगर मेरे दोनों हाथों में आटा ना लगा हुआ होता तो क्या मैं देख नहीं लेती।,,,,,,,( वह जोर-जोर से पैरों को पटकते हुए बोली शुभम को लग रहा था कि शायद सच में कोई कीड़ा होगा जो साड़ी में घुस गया है।)
तो मम्मी जल्दी से हाथ धो कर देख लो कि क्या है,,,,,
अरे इतना समय नहीं है मेरे पास मुझे गुदगुदी सी हो रही है और धीरे-धीरे लगता है काट भी रहा है,,,,,( वह उसी तरह से उछलते हुए बोली लेकिन इस बार शुभम की नजर उसकी दोनों चूचियों कर चली गई जो की उछलकूद मचाते हुए ब्लाउज को पूरी तरह से झकझोर दे रही थी। यह नजारा बड़ा ही काम होता जिस तरह से निर्मला उछल-कूद मचा रहे थे उस तरह से तो लग रहा था कि उसकी बड़ी बड़ी दोनो चुचियों के वजन से उसके ब्लाउज के बाकी बचे बटन भी टूट जाएंगे,,,,,, वह वही खड़ा हो कर के अपनी मां को ऊछलता हुआ देखता रहा और उत्तेजित होता रहा। उसके पैंट मे बना तंबु अपनी सीमा को पार कर चुका था। शुभम को यह नजारा बेहद कामुक लग रहा था। उसकी नजर ब्लाउज के अंदर उछलते हुए गदर मचा रहे दोनों खरबूजे पर टिकी हुई थी। तभी उसकी मां पैर पटकते हुए बोली।
बेटा एक काम कर तू ही देख ले की क्या है?
मम्मी में? ( शुभम आश्चर्य के साथ बोला)
हां तु जल्दी से देख मुझसे रहा नहीं जा रहा,,,,,
( अपनी मां की बात सुनकर शुभम खुश हो गया शुभम तो यही चाहता ही था,,, अपनी मां की साड़ी उठाकर ऊसके मदमस्त बदन का दीदार करने का इससे अच्छा मौका भला कहां मिल पाता । वह तो झट से सारा काम छोड़कर अपनी मां के पास पहुंच गया। शुभम ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा था। और अपने बेटे को अपनी ठीक पीछे खड़ा हुआ देखकर निर्मला के बदन मे गुदगुदी होने लगी। उसकी युक्ति उसे सफल होती हुई दिख रही थी। शुभम की तो दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी वह धीरे से अपनी मां की साडी को पकड़ा और उसे उठाने लगा,,, जैसे जैसे साड़ी ऊपर की तरफ उठ रही थी वैसे वैसे उसकी नंगी टांगें अपना जलवा पूरी तरह से बिखेर रही थी। अपनी मां की नंगी पिंडलियों को देखकर शुभम का गला सूखने लगा मोटी मोटी नंगी जांघे उसके होश उड़ा रही थी। धीरे धीरे करके उसने अपनी मां की सारी को कमर तक उठा दिया कमर तक साड़ी के उठते ही बड़ा ही उत्तेजक कामोत्तेजना से भरपूर वह नजर आपकी आंखों के सामने दिखाई देने लगा कि उसका लंड भी उस नजारे को देख कर सलामी भरने लगा। यह नजारा देख कर तो शुभम की सांस ही अटक गई निर्मला की मखमली गुलाबी रंग की पैंटी शुभम के होश उड़ा रहीे थी। शुभम अच्छी तरह से जानता था कि मखमली गुलाबी रंग की पैंटी में निर्मला की गुलाबी रंग का खजाना छिपा हुआ है। शुभम तो अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा कर बिना कुछ बोले बस उसकी गोल नितंबों को देखे जा रहा था। निर्मला भी ऊछल कुद मचाना बंद कर दी थी,,,, इतने करीब एक बार फिर से अपने बेटे को पाकर और ऐसी स्थिति में कि उसका बेटा खुद ऊसकी साड़ी उठाकर कमर तक किया हो,,, और उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख रहा हूं इस बात से ही उसका बदन पूरी तरह से उत्तेजना के मारे सरसराने लगा।
कुछ देर तक दोनों यूं ही ऐसे ही खड़े रहे शुभम की आंखें नहीं देख रही थी अपनी मां की खूबसूरत बदन का दीदार करते हुए और निर्मला कसमसा रही थी ऐसी स्थिति में अपने आप को पा कर। निर्मला की सांसो के साथ साथ उसकी बड़ी बड़ी छातिया भी ऊपर नीचे हो रही थी। तभी शुभम हकलाते हुए बोला।
मममम,,,, मम्मी,,,, यहां तो कुछ भी नजर नही आ रहा है।
बेटा मेरी पेंटी मे है,,,,
( अपनी मां की हर बात सुनते ही उसका बदन उत्तेजना के मारे कांप गया। उसे भला ऐसा करने में क्यो ईन्कार होता ।
वह एक हाथ से अपनी मां की साड़ी पकड़ कर दूसरे हाथ से धीरे-धीरे अपनी मां की पैंटी को नीचे सरकाने लगा,,, उसके हाथ उत्तेजना के मारे कांप रहे थे उसका गला सूख रहा था।
धीरे-धीरे करके उसने अपनी मां की पैंटी को एकदम नीचे जांघो तक सरका दिया। वह बड़ी ही प्यासी आंखों से अपनी मां की भरी हुई नितंब को देख रहा था,,, निर्मला भी अपनी गर्दन घुमा कर अपने बेटे की हरकत को देखकर एकदम खामोश हो चुकी थी। उसकी बुर की मदनरस टपक रहा था गजब का माहौल बन चुका था। बेटा अपनी मां की साड़ी उठाकर उसकी पैंटी को नीचे तक सरका दिया था। वह कुछ पल तक अपनी मां के नितंबो को देखने के बाद बोला ।
शुभम दूधी को चाकू से काटना शुरु कर दिया जिसे देखकर निर्मला मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,,,
दुधी कैसी है शुभम?
कैसी है मतलब मम्मी मे कुछ समझा नहीं,,,,
अरे बुद्धू कैसी है मतलब उसका साइज़ की मोटाई लंबाई कैसी है तभी तो बनने में स्वादिष्ट आएगी,,,,,
( शुभम आप अपनी मम्मी का मतलब समझने लगा था लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोला।)
मुझे क्या मालूम मम्मी मैं खाना थोड़े ही पकाता हूं।
हां सही बात है तुम लडको लोगों को कहां पता कि दूधी का मजा औरतों को कैसा लगता है। मर्दों का तो ं काम ही होता है बस दूध खरीद कर ले जाओ और उसे घर पर रख दो तुम लोग यह भी नहीं देखते कि दूधी लंबी है कि छोटी है कि मोटी है कितना तगड़ा है यह सब से तुम लोगों को कोई भी मतलब नहीं होता बस अपना फर्ज निभा देते हो और अपना मजा लेने के औरतों को थमा देती हो कभी यह सब भी तो सोचा करो कि औरतों को क्या पसंद है दुधी का साइज कितना होना चाहिए,,,, दूधी कितनी लंबी होनी चाहिए,,,, कितनी मोटी होती है तब मजा आता है,,,,,,,,,,,,,,,,, उसी पकाने में। ( निर्मला पकाना शब्द अपना मतलब निकल जाने के बाद ही बोली थी शुभम पूरी तरह से समझ गया था कि वह दूधी के बहाने उसके लंड के बारे में बात कर रहीे हैं। शुभम को भी अपनी मां के दो अर्थ वाले शब्द को सुनकर मजा आने लगा था। तभी तो वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,,,)
मम्मी क्या सच में ऐसा होता है लेकिन दूध ही वाली बात तो मैं नहीं जानता था कि दुधी के पतले मोटे लंबे तगड़े होने से औरतों को फर्क पड़ता है। आख़िर ईसे पका कर खाना ही तो है।
तू सच में बुद्धू है शुभम पकाना ही तो है यह तो मुझे अच्छी तरह से मालूम है लेकिन पतली दुबली होने पर उसमें से कुछ निकलता नहीं है बल्कि गर्मी से ही खत्म हो जाता है। और दूधी जब मोटी तगड़ी और लंबी होती है तो,,,, उसे पकने में टाइम लगता है करने में टाइम लगता है,,, जरा सी गर्मी पाकर तुरंत पिघल नहीं जाता बल्कि गर्म होकर धीरे-धीरे अपना पानी छोड़ता रहता है। तब जाकर उसे खाने में औरतों को इतना मजा आता है कि तुम लोगों को इस बात का एहसास तक नहीं होता।
( निर्मला खुद नहीं समझ रही थी कि वह क्या कह रही है लेकिन जो भी कह रही थी उस बात को कहने में वह पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह एकदम से चुदवासी हो गई थी,,, यही हाल शुभम का भी था। अपनी मां के दो अर्थ वाली बात को सुनकर वह पूरी तरह से गरमा चुका था उसका लंड पैंट के अंदर गदर मचाए हुए था। जिस की हालत को निर्मला तिरछी नजर से देख ले रही थी यही सही समय भी था लेकिन कैसे यह नहीं समझ पा रही थी निर्मला तभी उसके मन में एक ख्याल आया वह आंटे को घूंथते हुए,,,, अपने दोनों हथेलीयो को पूरी तरह से गीले आटे में सान ली,,, और अपने पैरों को पटकने लगे वह इस तरह से बर्ताव करने लगी कि जैसे उसकी साड़ी में कोई कीड़ा या चींटी घुस गई हो,,,,, उसके दोनों हाथ आटे में सने हुए थे और वह जोर जोर से अपने पैरों को पटकते हुए शुभम की तरफ देखने लगी जो की दूधी को काट रहा था,,,,, अपनी मां को इस तरह से उछलता हुआ देखकर वह बोला,,,,
क्या हुआ मम्मी इस तरह से क्यों उछल रही हो?
लगता है कि कुछ मेरी साड़ी में घुस गया है।
क्या घुस गया है मम्मी,,,,,,
अरे मुझे क्या मालूम धीरे धीरे काट रहा है मुझे डर लग रहा है (बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली)
तो देख लो ना क्या है?
अरे पागल अगर मेरे दोनों हाथों में आटा ना लगा हुआ होता तो क्या मैं देख नहीं लेती।,,,,,,,( वह जोर-जोर से पैरों को पटकते हुए बोली शुभम को लग रहा था कि शायद सच में कोई कीड़ा होगा जो साड़ी में घुस गया है।)
तो मम्मी जल्दी से हाथ धो कर देख लो कि क्या है,,,,,
अरे इतना समय नहीं है मेरे पास मुझे गुदगुदी सी हो रही है और धीरे-धीरे लगता है काट भी रहा है,,,,,( वह उसी तरह से उछलते हुए बोली लेकिन इस बार शुभम की नजर उसकी दोनों चूचियों कर चली गई जो की उछलकूद मचाते हुए ब्लाउज को पूरी तरह से झकझोर दे रही थी। यह नजारा बड़ा ही काम होता जिस तरह से निर्मला उछल-कूद मचा रहे थे उस तरह से तो लग रहा था कि उसकी बड़ी बड़ी दोनो चुचियों के वजन से उसके ब्लाउज के बाकी बचे बटन भी टूट जाएंगे,,,,,, वह वही खड़ा हो कर के अपनी मां को ऊछलता हुआ देखता रहा और उत्तेजित होता रहा। उसके पैंट मे बना तंबु अपनी सीमा को पार कर चुका था। शुभम को यह नजारा बेहद कामुक लग रहा था। उसकी नजर ब्लाउज के अंदर उछलते हुए गदर मचा रहे दोनों खरबूजे पर टिकी हुई थी। तभी उसकी मां पैर पटकते हुए बोली।
बेटा एक काम कर तू ही देख ले की क्या है?
मम्मी में? ( शुभम आश्चर्य के साथ बोला)
हां तु जल्दी से देख मुझसे रहा नहीं जा रहा,,,,,
( अपनी मां की बात सुनकर शुभम खुश हो गया शुभम तो यही चाहता ही था,,, अपनी मां की साड़ी उठाकर ऊसके मदमस्त बदन का दीदार करने का इससे अच्छा मौका भला कहां मिल पाता । वह तो झट से सारा काम छोड़कर अपनी मां के पास पहुंच गया। शुभम ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा था। और अपने बेटे को अपनी ठीक पीछे खड़ा हुआ देखकर निर्मला के बदन मे गुदगुदी होने लगी। उसकी युक्ति उसे सफल होती हुई दिख रही थी। शुभम की तो दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी वह धीरे से अपनी मां की साडी को पकड़ा और उसे उठाने लगा,,, जैसे जैसे साड़ी ऊपर की तरफ उठ रही थी वैसे वैसे उसकी नंगी टांगें अपना जलवा पूरी तरह से बिखेर रही थी। अपनी मां की नंगी पिंडलियों को देखकर शुभम का गला सूखने लगा मोटी मोटी नंगी जांघे उसके होश उड़ा रही थी। धीरे धीरे करके उसने अपनी मां की सारी को कमर तक उठा दिया कमर तक साड़ी के उठते ही बड़ा ही उत्तेजक कामोत्तेजना से भरपूर वह नजर आपकी आंखों के सामने दिखाई देने लगा कि उसका लंड भी उस नजारे को देख कर सलामी भरने लगा। यह नजारा देख कर तो शुभम की सांस ही अटक गई निर्मला की मखमली गुलाबी रंग की पैंटी शुभम के होश उड़ा रहीे थी। शुभम अच्छी तरह से जानता था कि मखमली गुलाबी रंग की पैंटी में निर्मला की गुलाबी रंग का खजाना छिपा हुआ है। शुभम तो अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा कर बिना कुछ बोले बस उसकी गोल नितंबों को देखे जा रहा था। निर्मला भी ऊछल कुद मचाना बंद कर दी थी,,,, इतने करीब एक बार फिर से अपने बेटे को पाकर और ऐसी स्थिति में कि उसका बेटा खुद ऊसकी साड़ी उठाकर कमर तक किया हो,,, और उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख रहा हूं इस बात से ही उसका बदन पूरी तरह से उत्तेजना के मारे सरसराने लगा।
कुछ देर तक दोनों यूं ही ऐसे ही खड़े रहे शुभम की आंखें नहीं देख रही थी अपनी मां की खूबसूरत बदन का दीदार करते हुए और निर्मला कसमसा रही थी ऐसी स्थिति में अपने आप को पा कर। निर्मला की सांसो के साथ साथ उसकी बड़ी बड़ी छातिया भी ऊपर नीचे हो रही थी। तभी शुभम हकलाते हुए बोला।
मममम,,,, मम्मी,,,, यहां तो कुछ भी नजर नही आ रहा है।
बेटा मेरी पेंटी मे है,,,,
( अपनी मां की हर बात सुनते ही उसका बदन उत्तेजना के मारे कांप गया। उसे भला ऐसा करने में क्यो ईन्कार होता ।
वह एक हाथ से अपनी मां की साड़ी पकड़ कर दूसरे हाथ से धीरे-धीरे अपनी मां की पैंटी को नीचे सरकाने लगा,,, उसके हाथ उत्तेजना के मारे कांप रहे थे उसका गला सूख रहा था।
धीरे-धीरे करके उसने अपनी मां की पैंटी को एकदम नीचे जांघो तक सरका दिया। वह बड़ी ही प्यासी आंखों से अपनी मां की भरी हुई नितंब को देख रहा था,,, निर्मला भी अपनी गर्दन घुमा कर अपने बेटे की हरकत को देखकर एकदम खामोश हो चुकी थी। उसकी बुर की मदनरस टपक रहा था गजब का माहौल बन चुका था। बेटा अपनी मां की साड़ी उठाकर उसकी पैंटी को नीचे तक सरका दिया था। वह कुछ पल तक अपनी मां के नितंबो को देखने के बाद बोला ।