hotaks444
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"सुन चूतिए... सुन, तेरी इनी हरकतों की वजह से आज हमारे नाम पे एक फूटी कोड़ी नहीं है... फॅक्टरी में जाके क्या गान्ड ही मरवाता है साले गान्डु... अनपढ़ भैनचोद..." कहके संजय वापस ललिता के पास आया
"ललिता.. पुरानी बातें भूल जा.. अब हम साथ हैं" कहके जैसे ही संजय पलटा ललिता ने उसे कहा
"नही संजय.. हम साथ नहीं है... इतने छोटे प्लान में मैं तुम्हारा साथ क्यूँ दूं.. इससे बड़ा प्लान मेरे दिमाग़ में है अभी.." ललिता ने अपनी सीट पे बैठ के कहा
"और वो क्या है ललिता.." संजय वापस अपनी चेर पे गया जहाँ पूजा उसके लिए सिगरेट लेके खड़ी थी
"वो मैं तुम्हे बाद में बताऊँगी.. पहले मैं जानना चाहती हूँ, तुमने इस काम के लिए इतने लोगों को क्यूँ इन्वॉल्व किया... आइ मीन, तुमने ये सब किया क्यूँ"
"ललिता.. शायद तुम भूल गयी हो, कि वीरानी ने मुझे तो चोट पहुँचाई थी, पर उसने डॅड को भी जैल पहुँचाया था... वो ड्रग्स का बॅग, उन्हो ने ही कार में रखवाया था, और उन्हे गिरफ्तार करवाया था.. ये तो भला हो दिलीप मासा का, उन्होने डॅड को बैल दिलवाई.. मुझे आज भी याद है वो दिन जब डॅड जैल से रिहा हुए थे और अंशु के घर पे बैठे थे.. मैं भी था वहाँ, डॅड की आँखों से, उनके हाथों से. हर जगह से खून बह रहा था.. यहाँ तक कि वो चल भी नहीं पा रहे थे.. और उनका गुनाह क्या था.. के उन्होने एक दो कौड़ी की असिस्टेंट का रेप किया था... उस दिन उन्होने साबित कर दिया कि डॅड उनके सौतेले भाई हैं.. मैं नहीं भूल सकता ललिता, तू भले ही भूल जाए, लेकिन मैं नहीं भूल सकता वो दिन जब मोम के पास एक ढंग की साड़ी नहीं थी और राज की माँ ने भी उनकी मदद नहीं की थी... आज तक हर जगह, हर वक़्त उन्होने हमे ज़लील ही किया है.. आज तक उन्होने मेरा हाल तक नहीं पूछा.... और तुझे आज भी उनकी फ़िक्र है ज़्यादा...." संजय ने सीट पे वापस बैठते हुए कहा
"नहीं, फ़िक्र तुम्हारी है तभी तो पूछ रही हूँ... तुम्हारी बात तो मुझे समझ आई पर ये बाकी के लोग... क्या विश्वास है इनका के ये लोग हमे धोखा नहीं देंगे संजय.. आज की डेट पे हमे किसी का इतना भरोसा नहीं करना चाहिए" ललिता ने बाकी सब को देखते हुए कहा
"हाहहाहा.. किसपे भरोसा नहीं है तुझे... इस पूजा पे" उसने पूजा को खड़ा करते हुए कहा
"सुन ध्यान से, पूजा और इसके माँ बाप आज भी हमारे गुलाम रहेंगे, और आगे जाके भी... क्यूँ कि जिस दिन पूजा अपने घर पे बैठ के आराम से दारू पी रही थी, अंशु और उसका पति उनके मा बाप से झगड़ा कर रहे थे.. अंशु के सास ससुर के पास इतनी प्रॉपर्टी थी कि कोई सोच भी नहीं सकता... पर उनके पास एक चीज़ नहीं थी... दिमाग़.. उन बूढ़ों ने सारी प्रॉपर्टी किसी ट्रस्ट के नाम पे की थी.. इस बात को लेके, रोज़ अंशु और उसके सास ससुर का झगड़ा होता था... लेकिन एक दिन, मेरी प्यारी डॉल.. मेरी डार्लिंग पूजा ने अपना दिमाग़ चलाया.. उसने यूनिवर्सिटी के फॉर्म के बहाने अपने प्यारे दादा दादी से साइन करवा ली और उनकी प्रॉपर्टी के नकली डॉक्युमेंट्स बना दिए.. उन पेपर्स के हिसाब से अब सारी प्रॉपर्टी पूजा की थी.. बात तो ये खुशी की थी, पर फिर भी अंशु खुश नहीं थी... उसने गुस्से में आके अपने सास ससुर को मार डाला... जिस रात को उसने और उसके पति ने उन बूढ़ो का खून किया, उनकी बॅड लक.. और मेरी गुड लक, मैं वहाँ पहुँच गया था.. पहुँचा तो मैं कुछ पैसे लेने था, पर मेरी किस्मत देखो... मैने अंशु को उसके सास ससुर को ठिकाने लगाने में मदद की.. तब से लेके आज तक, पूजा और अंशु मेरे तलवे ही चाटेंगे.. है ना मेरी रंडियों" कहके संजय ने पूजा को अपने बाजू में से धक्का दिया...
"ओह.. तो अभी अंशु और उसके बाप को हम कभी भी यूज़ कर सकते हैं, पर पूजा को नहीं,, क्यूँ कि इस किस्से में तो पूजा ने कुछ नहीं किया.. ललिता अब खुलके अपने सवाल पूछने लगी
"अहहहहहा.... व्हाट आ जोक हाँ... ये ऐसा करेगी तो इसके माँ बाप की लाश भी नहीं मिलेगी इसको..और इसके बाप को तो मैं यूज़ कर चुका हूँ समझी..." ज़य ने अंशु के पति को देखते हुए कहा
"ललिता... तुम्हारी बहेन का खून मैने ही किया है... उसे मैने ही मारा है.." दिलीप ने गर्व के साथ खड़े होके कहा
ललिता की आँखों में खून उतर आया... पर उसने खुद पे काबू रखा और पूछा
"क्यूँ.. "
"क्यूँ कि वो राज के हाथों की कट्पुतली बन चुकी थी.,, और पायल ने मिलके डॉली का एमएमस बनाया था जिसकी वजह से वो लोग डॉली को इस्तेमाल करके हम तक पहुँच सकते थे... ये बात हमे पायल ने खुद बताई... अगर वो नहीं मरती, तो आज हम सब यहाँ नहीं बैठे होते..." दिलीप ने बहुत ही सीधे तरीके से ये बात कही.. ना एमोशन्स, ना दुख.. कुछ भी नहीं
"पर संजय.... माया बुआ और पायल क्या कर रहे हैं इधर" ललिता ने आखरी सवाल पूछा
"माया बुआ बेचारी.... उनके पति का कर्ज़ा चढ़ चुका है... कितना है बुआ, ज़रा बताएँगे प्लीज़.." संजय ने माया बुआ को देखते हुए कहा
"20 करोड़.. और ललिता, उनके बिज़्नेस में हो रहे लॉस की वजह से ये कर्ज़ा आज 40 करोड़ हो चुका है..." माया बुआ ने दुख भरी आवाज़ में कहा
"ललिता.. पुरानी बातें भूल जा.. अब हम साथ हैं" कहके जैसे ही संजय पलटा ललिता ने उसे कहा
"नही संजय.. हम साथ नहीं है... इतने छोटे प्लान में मैं तुम्हारा साथ क्यूँ दूं.. इससे बड़ा प्लान मेरे दिमाग़ में है अभी.." ललिता ने अपनी सीट पे बैठ के कहा
"और वो क्या है ललिता.." संजय वापस अपनी चेर पे गया जहाँ पूजा उसके लिए सिगरेट लेके खड़ी थी
"वो मैं तुम्हे बाद में बताऊँगी.. पहले मैं जानना चाहती हूँ, तुमने इस काम के लिए इतने लोगों को क्यूँ इन्वॉल्व किया... आइ मीन, तुमने ये सब किया क्यूँ"
"ललिता.. शायद तुम भूल गयी हो, कि वीरानी ने मुझे तो चोट पहुँचाई थी, पर उसने डॅड को भी जैल पहुँचाया था... वो ड्रग्स का बॅग, उन्हो ने ही कार में रखवाया था, और उन्हे गिरफ्तार करवाया था.. ये तो भला हो दिलीप मासा का, उन्होने डॅड को बैल दिलवाई.. मुझे आज भी याद है वो दिन जब डॅड जैल से रिहा हुए थे और अंशु के घर पे बैठे थे.. मैं भी था वहाँ, डॅड की आँखों से, उनके हाथों से. हर जगह से खून बह रहा था.. यहाँ तक कि वो चल भी नहीं पा रहे थे.. और उनका गुनाह क्या था.. के उन्होने एक दो कौड़ी की असिस्टेंट का रेप किया था... उस दिन उन्होने साबित कर दिया कि डॅड उनके सौतेले भाई हैं.. मैं नहीं भूल सकता ललिता, तू भले ही भूल जाए, लेकिन मैं नहीं भूल सकता वो दिन जब मोम के पास एक ढंग की साड़ी नहीं थी और राज की माँ ने भी उनकी मदद नहीं की थी... आज तक हर जगह, हर वक़्त उन्होने हमे ज़लील ही किया है.. आज तक उन्होने मेरा हाल तक नहीं पूछा.... और तुझे आज भी उनकी फ़िक्र है ज़्यादा...." संजय ने सीट पे वापस बैठते हुए कहा
"नहीं, फ़िक्र तुम्हारी है तभी तो पूछ रही हूँ... तुम्हारी बात तो मुझे समझ आई पर ये बाकी के लोग... क्या विश्वास है इनका के ये लोग हमे धोखा नहीं देंगे संजय.. आज की डेट पे हमे किसी का इतना भरोसा नहीं करना चाहिए" ललिता ने बाकी सब को देखते हुए कहा
"हाहहाहा.. किसपे भरोसा नहीं है तुझे... इस पूजा पे" उसने पूजा को खड़ा करते हुए कहा
"सुन ध्यान से, पूजा और इसके माँ बाप आज भी हमारे गुलाम रहेंगे, और आगे जाके भी... क्यूँ कि जिस दिन पूजा अपने घर पे बैठ के आराम से दारू पी रही थी, अंशु और उसका पति उनके मा बाप से झगड़ा कर रहे थे.. अंशु के सास ससुर के पास इतनी प्रॉपर्टी थी कि कोई सोच भी नहीं सकता... पर उनके पास एक चीज़ नहीं थी... दिमाग़.. उन बूढ़ों ने सारी प्रॉपर्टी किसी ट्रस्ट के नाम पे की थी.. इस बात को लेके, रोज़ अंशु और उसके सास ससुर का झगड़ा होता था... लेकिन एक दिन, मेरी प्यारी डॉल.. मेरी डार्लिंग पूजा ने अपना दिमाग़ चलाया.. उसने यूनिवर्सिटी के फॉर्म के बहाने अपने प्यारे दादा दादी से साइन करवा ली और उनकी प्रॉपर्टी के नकली डॉक्युमेंट्स बना दिए.. उन पेपर्स के हिसाब से अब सारी प्रॉपर्टी पूजा की थी.. बात तो ये खुशी की थी, पर फिर भी अंशु खुश नहीं थी... उसने गुस्से में आके अपने सास ससुर को मार डाला... जिस रात को उसने और उसके पति ने उन बूढ़ो का खून किया, उनकी बॅड लक.. और मेरी गुड लक, मैं वहाँ पहुँच गया था.. पहुँचा तो मैं कुछ पैसे लेने था, पर मेरी किस्मत देखो... मैने अंशु को उसके सास ससुर को ठिकाने लगाने में मदद की.. तब से लेके आज तक, पूजा और अंशु मेरे तलवे ही चाटेंगे.. है ना मेरी रंडियों" कहके संजय ने पूजा को अपने बाजू में से धक्का दिया...
"ओह.. तो अभी अंशु और उसके बाप को हम कभी भी यूज़ कर सकते हैं, पर पूजा को नहीं,, क्यूँ कि इस किस्से में तो पूजा ने कुछ नहीं किया.. ललिता अब खुलके अपने सवाल पूछने लगी
"अहहहहहा.... व्हाट आ जोक हाँ... ये ऐसा करेगी तो इसके माँ बाप की लाश भी नहीं मिलेगी इसको..और इसके बाप को तो मैं यूज़ कर चुका हूँ समझी..." ज़य ने अंशु के पति को देखते हुए कहा
"ललिता... तुम्हारी बहेन का खून मैने ही किया है... उसे मैने ही मारा है.." दिलीप ने गर्व के साथ खड़े होके कहा
ललिता की आँखों में खून उतर आया... पर उसने खुद पे काबू रखा और पूछा
"क्यूँ.. "
"क्यूँ कि वो राज के हाथों की कट्पुतली बन चुकी थी.,, और पायल ने मिलके डॉली का एमएमस बनाया था जिसकी वजह से वो लोग डॉली को इस्तेमाल करके हम तक पहुँच सकते थे... ये बात हमे पायल ने खुद बताई... अगर वो नहीं मरती, तो आज हम सब यहाँ नहीं बैठे होते..." दिलीप ने बहुत ही सीधे तरीके से ये बात कही.. ना एमोशन्स, ना दुख.. कुछ भी नहीं
"पर संजय.... माया बुआ और पायल क्या कर रहे हैं इधर" ललिता ने आखरी सवाल पूछा
"माया बुआ बेचारी.... उनके पति का कर्ज़ा चढ़ चुका है... कितना है बुआ, ज़रा बताएँगे प्लीज़.." संजय ने माया बुआ को देखते हुए कहा
"20 करोड़.. और ललिता, उनके बिज़्नेस में हो रहे लॉस की वजह से ये कर्ज़ा आज 40 करोड़ हो चुका है..." माया बुआ ने दुख भरी आवाज़ में कहा