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- Dec 5, 2013
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'जी।'
'यह तुमने अच्छा नहीं किया, डॉली।'
'और करती भी क्या? आप ही बताइए, क्या वह मुझे आपको देखने के लिए यहां आने की आज्ञा देते?'
'शायद नहीं।'
'तो फिर?'
'तुम्हें न आना चाहिए था।'
'पर पता लगने पर मैं किस प्रकार रह सकती थी?'
'परंतु तुम्हें मेरे जीवन से अधिक मान अपने कर्त्तव्य का करना चाहिए।'
'तो क्या यह मेरा कर्त्तव्य नहीं था?'
'यह कर्त्तव्य नहीं, जो धर्म से गिरकर किया जाए।'
'तो अब क्या करू? अब तो मैं यहां आ चुकी हूं।'
'तुम इसी समय वापस लौट जाओ। देखो... चार बज रहे हैं, राज के आने से पहले घर पहुंच जाओगी। तुम नहीं जानतीं कि छोटी-छोटी बातें कभी-कभी एक तूफानी रूप धारण कर लेती हैं।'
'चली जाती हूं। अभी तो आ रही हूं।' डॉली यह कहकर बैठ गई और थोड़ी देर बाद बोली, 'क्यों चोट बहुत तो नहीं आई?'
'नहीं, ऐसी कोई बात नहीं।' शंकर ने अपने पैर से कंबल हटाकर डॉली को दिखाते हुए उत्तर दिया। पैर पर पट्टी बंधी थीं।
डॉली ने फिर कहा, 'कहो तो कुछ बना दूं, कोई नरम पदार्थ?'
'धन्यवाद। नौकर बना ही लेता है।'
'नौकर क्या बनाएगा। मैं बनाकर लाती ह।' यह कहकर डॉली उठी और चादर उतारकर कुर्सी पर रख दी, 'कहो क्या बनाऊं?'
'डॉली, मुझे संतोष तभी होगा जब तुम समय पर घर पहुंच जाओगी। देखो घड़ी की सुइयां कितनी तेजी से बढ़ी जा रही है।'
डॉली यह सुनकर रुक गई और कुर्सी से चादर उठाकर बोली, 'अच्छा तो मैं चलती हूं।'
शंकर को ऐसा जान पड़ा मानों डॉली क्रुद्ध हो। उसने डॉली को आवाज दी परंतु वह न लौटी और मकान से बाहर निकल गई। बाहर निकलते ही उसने एक नजर अस्तबल की ओर डाली। घोड़े उदास खड़े बाहर झांक रहे थे।
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सायंकाल के छः बजे तक जब डॉली घर न पहुंची तो राज घबराया। वह हैरान था कि बच्ची को अकेला छोड़कर वह कहां चली गई। उसने हरिया से पूछा परंतु हरिया से वह कुछ कहकर नहीं गई थी। इस समय वह अकेली जा भी कहां सकती है! हो सकता है कि कहीं से शंकर का पता चल गया हो और वहां चली गई हो परंतु उसको इतना साहस कैसे हुआ। वह सीधा शंकर के घर पहुंचा और अस्तबल में जाकर टॉम को आवाज दी, 'टॉम जरा अंदर से पता लगाना कि डॉली तो वहां नहीं आई?'
'क्यों, आप अंदर चले जाइए ना।'
'नहीं, अभी जल्दी में हूं। अंदर गया तो बैठना पड़ जाएगा।'
'अच्छा।' यह कहकर टॉम अंदर गया और थोड़ी देर में वापस आ गया।
राज ने पूछा, 'क्यों टॉम?'
'जी, आई थीं, परंतु यहां से गए बहुत देर हो चुकी है।' राज यह सुनते ही घबरा गया। उसने चारों ओर घूमकर देखा, सूरज डूब रहा था और अंधेरा बढ़ता जा रहा था। उसे ऐसा जान पड़ा मानों उसका दिल बैठा जा रहा हो। वह ढूंढता-ढूंढता अपनी हवेली तक जा पहुंचा परंतु उसे डॉली कहीं न दिखाई दी। वह हांफता हआ अपनी ड्योढी में घसा और लपककर कमरे का दरवाजा खोला। 'डॉली तुम?' उसके मुंह से अनायास ही निकल गया।
डॉली सामने पलंग पर लेटी हुई थी।
'जी, आप इतने परेशान क्यों हैं?'
'तुम कहां थीं?'
'शंकर को देखने गई थी।'
'क्यों ?'
'आपने मुझे तो सूचना न दी, परंतु पता चलने के बाद तो मुझे जाना ही था।'
'यह तुमने अच्छा नहीं किया, डॉली।'
'और करती भी क्या? आप ही बताइए, क्या वह मुझे आपको देखने के लिए यहां आने की आज्ञा देते?'
'शायद नहीं।'
'तो फिर?'
'तुम्हें न आना चाहिए था।'
'पर पता लगने पर मैं किस प्रकार रह सकती थी?'
'परंतु तुम्हें मेरे जीवन से अधिक मान अपने कर्त्तव्य का करना चाहिए।'
'तो क्या यह मेरा कर्त्तव्य नहीं था?'
'यह कर्त्तव्य नहीं, जो धर्म से गिरकर किया जाए।'
'तो अब क्या करू? अब तो मैं यहां आ चुकी हूं।'
'तुम इसी समय वापस लौट जाओ। देखो... चार बज रहे हैं, राज के आने से पहले घर पहुंच जाओगी। तुम नहीं जानतीं कि छोटी-छोटी बातें कभी-कभी एक तूफानी रूप धारण कर लेती हैं।'
'चली जाती हूं। अभी तो आ रही हूं।' डॉली यह कहकर बैठ गई और थोड़ी देर बाद बोली, 'क्यों चोट बहुत तो नहीं आई?'
'नहीं, ऐसी कोई बात नहीं।' शंकर ने अपने पैर से कंबल हटाकर डॉली को दिखाते हुए उत्तर दिया। पैर पर पट्टी बंधी थीं।
डॉली ने फिर कहा, 'कहो तो कुछ बना दूं, कोई नरम पदार्थ?'
'धन्यवाद। नौकर बना ही लेता है।'
'नौकर क्या बनाएगा। मैं बनाकर लाती ह।' यह कहकर डॉली उठी और चादर उतारकर कुर्सी पर रख दी, 'कहो क्या बनाऊं?'
'डॉली, मुझे संतोष तभी होगा जब तुम समय पर घर पहुंच जाओगी। देखो घड़ी की सुइयां कितनी तेजी से बढ़ी जा रही है।'
डॉली यह सुनकर रुक गई और कुर्सी से चादर उठाकर बोली, 'अच्छा तो मैं चलती हूं।'
शंकर को ऐसा जान पड़ा मानों डॉली क्रुद्ध हो। उसने डॉली को आवाज दी परंतु वह न लौटी और मकान से बाहर निकल गई। बाहर निकलते ही उसने एक नजर अस्तबल की ओर डाली। घोड़े उदास खड़े बाहर झांक रहे थे।
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सायंकाल के छः बजे तक जब डॉली घर न पहुंची तो राज घबराया। वह हैरान था कि बच्ची को अकेला छोड़कर वह कहां चली गई। उसने हरिया से पूछा परंतु हरिया से वह कुछ कहकर नहीं गई थी। इस समय वह अकेली जा भी कहां सकती है! हो सकता है कि कहीं से शंकर का पता चल गया हो और वहां चली गई हो परंतु उसको इतना साहस कैसे हुआ। वह सीधा शंकर के घर पहुंचा और अस्तबल में जाकर टॉम को आवाज दी, 'टॉम जरा अंदर से पता लगाना कि डॉली तो वहां नहीं आई?'
'क्यों, आप अंदर चले जाइए ना।'
'नहीं, अभी जल्दी में हूं। अंदर गया तो बैठना पड़ जाएगा।'
'अच्छा।' यह कहकर टॉम अंदर गया और थोड़ी देर में वापस आ गया।
राज ने पूछा, 'क्यों टॉम?'
'जी, आई थीं, परंतु यहां से गए बहुत देर हो चुकी है।' राज यह सुनते ही घबरा गया। उसने चारों ओर घूमकर देखा, सूरज डूब रहा था और अंधेरा बढ़ता जा रहा था। उसे ऐसा जान पड़ा मानों उसका दिल बैठा जा रहा हो। वह ढूंढता-ढूंढता अपनी हवेली तक जा पहुंचा परंतु उसे डॉली कहीं न दिखाई दी। वह हांफता हआ अपनी ड्योढी में घसा और लपककर कमरे का दरवाजा खोला। 'डॉली तुम?' उसके मुंह से अनायास ही निकल गया।
डॉली सामने पलंग पर लेटी हुई थी।
'जी, आप इतने परेशान क्यों हैं?'
'तुम कहां थीं?'
'शंकर को देखने गई थी।'
'क्यों ?'
'आपने मुझे तो सूचना न दी, परंतु पता चलने के बाद तो मुझे जाना ही था।'